Saturday, March 26, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ नयी-नवेली जवानी--2

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

नयी-नवेली जवानी--2
गतान्क से आगे..... .......
मैंने एक बाल्टी में पानी भरा और अपना रंगों से बोत कुर्ता-पैजामा और
गंजी खोल कर एक तरफ़ रख दिया, और सिर्फ़ एक अंडरवीयर में बैठ कर अपना सर
धोने लगा। रिया सामने खड़ी हो कर हैंड्पम्प चलाने लगी। जब तीसरी बार वो
हैंडिल दबाते हुए पम्प पर झुकी तब पहली बार उसकी फ़्रौक के खुले गले से
भीतर का नजारा दिखा। रिया की चुची अब उभार लेने लगी थी। नींबू से थोड़ा
बड़ा आकार था उनका। अभी तो वो उभर हीं रहीं थी, सो लटकने जैसी कोई बात हीं
नहीं थी, सीधा सामने की तरफ़ फ़ुली हुई थी। मुझे अभी तक वो बच्ची हीं लगी
थी, सो मैंने कुछ खास ध्यान नहीं दिया। मैं नहा रहा था और एक बार साबून
लगा चुका था। पर होली का रंग क्या एक बार में साफ़ होना था। पेट पर बड़ा
पक्का रंग लगाया था रिया ने। मैं अब दुबारा साबुन मल रहा था बदन पर। रिया
बाल्टी भर कर बोली, "मैं भी अब सर धोना शुरु करती हूँ", और मेरे अनुमान
के विपरीत रिया भी मेरी तरह हीं अपना कपड़ा खोल दी। जल्द हीं सिर्फ़ एक
पैन्टीनुमा जांघिया में मेरे सामने बैठ गई और अपना सर पानी से भीगोने
लगी। देसी शैली के संडास में जिस तरह से हमसब बैठते हैं वैसे हीं वो मेरे
सामने बैठी थी और तब पैन्टी के तन जाने से उसकी बूर कैसी और कितनी फ़ुली
हुई है, यह अंदाज लगाना मेरे जैसे कमीने मर्द के लिए मुश्किल न था। अब
मेरा नहाना कम हो रहा था और माल दर्शन ज्यादा। पर एस माल में मुझे बचपन
से भरी एक कच्ची कली का आहसास था। तब मेरा मानना था कि कच्ची चीज खट्टी
ज्यादा होती है (मैंने बताया है आपको कि तब मैं २८-३० से कम की माल को
चोदने में कम हीं इच्छुक रहता था)। एक बार सर धोने के बाद रिया ने चेहरा
ऊपर किया और बोली "चेहरे पर ज्यादा रंग है क्या?" उसका हाथ अभी भी सर पर
था सो मेरी नजर उसकी काँख में गई। बस ४-६ धागे थे रोएँ जैसे वहाँ, काँख
के बाल के नाम पर। मुझे अपने काँख में देखते हुए जान कर रिया ने अपना हाथ
हल्का नीचे किया तो वो रोएँ भी काँख के गड्ढ़ें में कहीं छुप गए। मैंने
उसका चेहरा घुरा और कहा, "हाँ, रंग तो है। तीन-चार बार अगर साबुन से
धोवोगी तो शायद ठीक-ठाक कम हो जाए"।

वो अब अपने घुटनों पर बैठ गई थी और अपने चेहरे पर साबुन मल रही थी। उसकी
आँख बंद थी और मुझे नयनसुख का मौका मिल गया था। मेरी नजर अब उसकी
छोटी-छोटी नींबू की साईज के उभार ले रहे छातियों पर थे। अर्धगोलाकार, ऐसा
लग रहा था कि एक बड़े साईज के नींबू को बीच से काट कर उसके दोनों टुकड़ों
को उसकी छाती से चिपका दिया गया है। आप उसकी साईज का अंदाजा ऐसे लगा सकते
हैं कि अभी उसकी छाती के उभार का करीब ४०% हिस्सा तो उस भूरे रंग के
हिस्से का हीं था जो बाद में उसकी चुची के निप्पल का हिस्सा बनते। रिया
की छाती को तो मैं अभी चुची भी नहीं कह सकता, इतने छोटे थे। बायीं काँख
में ४-६ बाल थे, जिनके बारे में मैंने पहले बताया, पर दाहिने वाली काँख
में कुछ ज्यादा बाल थे करीब १२-१५ और ये वाले थोड़े काले भी हो गए थे। पेट
बिल्कुल सपाट, बल्कि पसलियों की गिनती जहाँ खत्म होती थी वहाँ पर से थोड़ा
भीतर हीं दबे हुए थे। घुटनों पर खड़ी होने की वजह से मुझे उसकी कमर उसके
छाती वाले हिस्से से पतली लग रही थी और फ़िर नीचे के चुतड़ वाले हिस्से के
साथ पुरा शरीर देखने से वही क्लासिक आवर-ग्लास फ़ीगर दिखा जो किसी भी जवान
लौंडिया का सपना होता है। मैंने अनुमान लगाया की अगर मापा गया तो साली की
फ़ीगर ३०-१९-३२ के करीब आएगी, जो ५'२" लम्बी १३/१४ साल की रिया के साँवले
बदन के लिए एक दम मस्त थी। मेरे दिमाग में आया कि अगर मैं इसकी चाती को
चुसूँ तो शायद पुरा का पुरा छाती हीं मेरे मुँह में घुस जाएगा। यह सोच
मैं हँस पड़ा दिल हीं दिल में कि कैसी बच्ची सी है यह लड़की अभी और फ़िर वो
जब पुरा जवान हो जाएगी तो कैसे उसके ये सब अंग और भी जान-मारूँ हो
जाएँगे।

फ़िर मेरी नजर उसकी जाँघो पर गई, जो पतली-पतली सी थी। जहाँ पर उसकी पैन्टी
की एलास्टीक थी वहाँ पर जांघ की गोलाई मेरे बाहों के घेरे से १-२" हीं
ज्यादा थे, करीब २०" होंगा। मेरी नजर उसकी गहरी ढ़ोरी (नाभी) पर टिक गई।
बस यह चीज थी रिया की, जो बिल्कुल मस्त थी और किसी भी तरह से किसी एक
जवान लौन्डिया के इसी अंग के साथ कंम्पीट कर सकती थी। रिया अब अपना चेहरा
धो रही थी पानी से, और जब वो आँख खोली तो देखा की मैं उसके बदन को घुर
रहा हूँ। चेहरे पर थोड़ा अटपटापन दिखा पर फ़िर मेरे तरफ़ से वह बेफ़िक्र हो
कर बोली, "मामा, अब चेहरा कैसा है?" मैं तब उसके द्वारा लगाए हुए पेट के
रंग को साबून से घस रहा था, कहा "थोड़ा कम हुआ है, एक-दो बार और धो लो।
तुम तो मुझे पेट पर खुब गाढ़ा रंग लगाई हो, और अपना पुरा बदन एक दम बचा
ली, सिर्फ़ चेहरा रंगवाई हो।" वो इस बात में अपना जीत समझी, खुश हो गई और
एक बार फ़िर चेहरा पर साबुन लगाने लगी। अब वो मेरे सामने जमीन पर बैठ गयी
थी, सामने पैर फ़ैला कर और इस तरह से बैठने पर उसकी पेट पर दो-तीन धारियाँ
बन गयी थीं। उसकी पैन्टी पुरानी थी और उसका पट्टा जो उसकी बूर को ढ़के हुए
था थोड़ा ढ़ीला था सो उसके अनजाने हीं वो एक तरफ़ हो गया था और उसके बाएँ
पट्टे (बूर और जाँघ के जोड़ वाली जगह) का दीदार मुझे होने लगा था। बाहर की
तरफ़ जाँघ पर रोएँदार बाल थी नन्हें-नन्हें, पर भीतरी जाँघ अभी बिल्कुल
चिकनी थी। कुछ रोएँ थे भी तो वो बचपन की याद थे न कि जवानी के।

सच कहूँ तो अब मैं यह सोचने लगा था कि क्या रिया की बूर पर बाल उग गए
हैं, अगर हाँ तो कैसे हैं - रोएँ जैसे या झाँट बन गए। रिया के दिमाग के
भीतर का तो पता नहीं पर मेरे भीतर के कमीने की सोच का असर जरुर मेरे लन्ड
पर होने लगा था और अब वो मेरे अंडरवीयर के भीतर थोड़ा अंगराई लेने लगा था
और मेरा वह वस्त्र अब एक हल्का सा टेन्ट बना लिया था। रिया ने अब चेहरा
धो लिया था और अपने पुरे बदन पर पानी डाल ली थी। उसके बदन पर का अकेला
कपड़ा जो एक गाढ़े हरे रंग की एक पुरानी पैन्टी था, अब पुरी तरह से भींग कर
उसकी बूर पर चिपक गया था। काश यह साला पैन्टी अगर सफ़ेद होता तो मुझे जरुर
पता चल जाता की भीतर के बाल रोएँ हैं या काली झाँट। यार लोग, एक बात
बताओ, ये जवान लड़कियाँ अक्सर गहरे रंग की पैन्टी हीं क्यूँ पहनती है?
(मेरी सखियाँ भी जवाब दें तो मजा आएगा)। अब मेरा इरादा था कि रिया के नजर
में मेरा टेन्ट आ जाए और तब देखूँ कि उसका कैसा रीऐक्शन है। रिया आराम से
मेरे सामने बैठ कर साबुन पुरे बदन पर मलती हुई बोली कि मामा अब जरा
बाल्टी भर दीजिए। मैं भी खड़ा हो गया और हैंडपम्प चला-चला कर बाल्टी को
भरने लगा। मैं रिया के हाथ जैसे-जैसे सब तरफ़ घुम-घुम कर साबुन लगा रहे
थे, वैसे-वैसे उसके बदन पर घुम रहा था। मेरा टेन्ट अब लगभग पुरा आकार ले
चुका था। तभी रिया ने अपना हाथ अपनी पैन्टी के भीतर घुसा लिया, साबुन के
साथ। ढ़ीली पैन्टी सामने से फ़ुली जरुर पर मुझे असल चीज का दीदार नहीं हुआ।
बाल्टी भर चुका था सो मैं नीचे बैठ गया। तभी रिया ने साबुन की बट्टी अपने
पैन्टी से निकाल कर मेरी तरफ़ बढ़ा दी जिसे मैंने हाथ बढ़ा कर ले लिया। रिया
अपने हाथ से अपने छाती के उभार को मल रही थी, जब मैंने उस साबुन के बट्टी
को अपने अंडरवीयर के भीतर घुसा कर लन्ड पर मला। तब एक सोच थी मेरे चोदू
दिमाग के भीतर कि मैं वही साबुन अपने खड़े लन्ड पर लगा रहा हूँ जिसने
अभी-अभी रिया की बूर की खुश्बू का मजा लिया था। इस सोच के साथ सिर्फ़ ५-७
बार हीं मैं साबुन लन्ड पर मला कि मेरा लन्ड ३-४ गहरे झटके लगा कर झड़
गया। वो तो मेरे अंडरवीयर था जिसने मेरे उस सफ़ेद माल के दीदार रिया को
नहीं करने दिया वर्ना वो बच्ची पता नहीं क्या समझती, क्या सोचती।

तभी रिया ने मुझे कहा कि मैं उसके पीठ पर जल्दी से साबुन मल दूँ ताकि वो
नहाना खत्म करे। मुझे मौका भी नहीं मिला और मैं अपने सफ़ेदा (वीर्य) से
लिपसे हुए साबुन को उसके पीठ पर मलने चल दिया उसके पीछे। मैं रिया के
पीछे साबुन मल रहा था और चक्कर में था कि आज एक बार उसके बूर को देख सकूँ
और जान सकूँ कि उसके बूर पर कैसे बाल हैं, पर अभी तक तो सिर्फ़ "बैडलक" ही
था। मुझे पता था कि आज ही यह संयोग बन सकता है, वर्ना फ़िर पता नहीं यह
मौका बाद में मिले न मिले। आप हीं बताएँ कितने लोगों को ऐसे एक जवान हो
रही लड़की, एक कली से फ़ूल बनने की प्रक्रिया में पहले सीढ़ी पर खड़ी लड़की के
ऐसे खुले बदन देखना नसीब हो सका है आज तक। १३-१४ की उमर तो वो होती है कि
लड़की इस समय अपने जीवन में सबसे ज्यादा शर्मिली और अंतर्मुखी रहती है। पर
आज मेरा नसीब कि मेरे साथ ऐसी लड़की थी जो शायद या तो एकदम भोली थी या एक
शातिर कमीनी जो इस तरह मेरे सामने लगभग पूरी नंगी हो कर मुझे अपने कच्चे
बदन का दीदार करा रही थी। उसे पता तो नहीं चला पर मैंने अपने एक हाथ को
अपने अंडरवीयर के भीतर घुसा कर अपने लौंड़े को हथेली में सुड़क कर उसके
भीतर का बचा खुचा सफ़ेदा भी निकाल लिया और फ़िर अपने उस सफ़ेदे को चुपचाप से
उसके गले पे रख दिया फ़िर जब वो अपना जाँघ अपने हथेली से घस रही थी मैंने
मौका देख कर अपने सफ़ेदा को उसके पुरे पीठ पर मल दिया। हम दोनों करीब
२०-२५ मिनट नहा चुके थे। मैं अब अपने लिए एक बार फ़िर बाल्टी भरने लगा कि
वो मेरे बाल्टी से दो मग पानी अपने बदन पर डाल कर बोली, "अब मेरा हो गया,
जो रंग बचा अब वो खुद उड़ जाएगा" और अपना बदन एक छोटे से तौलिए में पोछने
लगी जिसे वो अपने साथ लाई थी।

मैं अपने सर पर पानी डाल कर अब नहाने के अंतिम दौर में था कि तभी वो हुआ
जिसके बारे में मैंने सोचा भी नहीं था। मुझे उम्मीद थी रिया पहले अपने
उपर के बदन पर अपने साथ लाया हुआ कुर्ता डालेगी फ़िर अपने पैन्टी को खोल
कर नीचे अपना सलवार पहनेगी, पर वो तो साली बिल्कुल अल्हड़ की तरह थी। उसने
अपने बदन को पोछने के बाद बिना कोई हिचक अपनी पैन्टी बिलकुल मेरे सामने
खड़े हो कर खोल दी और फ़िर बिना किसी हड़बड़ी के अपने हाथ के तौलिए से मेरे
सामने खड़े हो कर अपने बूर को रगड़-रगड़ कर पोछने लगी। मैं अब अपना नहाना
भूल कर उसकी बूर से नजर गड़ाए यह सब देख रहा था। अभी कुछ क्षण पहले तक तो
कहाँ मैं इस बूर पर बाल है या नहीं, है तो कैसा, जैसा कुछ-कुछ सोच-सोच कर
परेशान था अब वही मस्त कच्ची कली की बूर मेरे से करीब ४ फ़ीट की दूरी पर
बिल्कुल निरावृत अपने पुरे असली रूप में अपना दीदार खुब साफ़ चमक के साथ
करा रहा था। क्या चीज होती है यार यह १३ साल की लड़की की बूर भी, भाई
वाह....मजा आ गया।

उसकी बूर की चमड़ी थोड़ी काली थी, पर बहुत मुलायम दिख रही थी। हल्का फ़ुला
हुआ था वह इलाका. पर अभी उसमें पुरी तरह से जवान लौंडिया की तरह का
फ़ुलापन नहीं था। बूर की फ़ाँक एकदम टाईट दिख रही थी, लग रहा था की किसी ने
एक अंडाकार चीज पर एक थोड़े मोटे चाकू के एक चीरा लगा दिया है। बूर के
भीतर से कोई पुत्ती बाहर निकली नहीं दिख रही थी, जब वो मेरे सामने खड़ी थी
बिल्कुल नंगी। मेरी नजर तो उस बेशकीमती चीज पर जैसे अटक गई थी। वह एक
अद्भूत चीज था जो मुझे अभी देखने को मिल रहा था। एक मर्द को १३ साल की एक
घरेलू लड़की की अनछुई बूर देखने को आसानी से नहीं मिलती, वह भी ऐसे ३-४
फ़ीट की दूरी से। उसकी बूर की फ़ाँक के हल्का ऊपर कुछ धागे जैसे बाल थे, जो
ये बता रहे थे कि अब लड़की जवानी की सीढ़ी पर अपना पहला दो-तीन कदम बढ़ा दी
है और कुछ हीं समय में पुरा जवान हो जाएगी। १५-२० धागे हीं होंगे उस बाल
के जो कायदे से झाँट कहे जा सकते थे वर्ना बाकी तो आज भी रोएँ हीं थे।
रिया जब देखी कि मैं उसके बूर वाले इलाके पर अपनी नजर गड़ाए हूँ तो उसने
पुरे भोलेपन से कहा, "मामा, मैं जब बोलती हूँ कि मैं यह बाल साफ़ करुँगी
तो मम्मी और दीदी दोनों डाँटने लगती है कि नहीं अभी थोड़ा और बड़ा हो जाएगा
तब करना, अभी से क्रीम लगाने से चमड़ा और काला हो जाएगा। अब यहाँ कौन
देखेगा कि काला-गोरा का चिन्ता करूँ।" मुझे उसके साथ ऐसे बात करके मजा आ
रहा था सो मैं अपनें अंडरवीयर में हाथ डाल अपने लंड पर साबुन मलते हुए
कहा, "क्यों अभी तो मैं ही देख रहा हूँ, ऐसे हीं और लोग भी देखेंगे
तुम्हारी चीज?", मैं कह कर हँसने लगा। रिया भी तौलिए से अपना पीठ रगड़ कर
पोंछती हुई बोली, "अरे मामाजी, आप तो घर के आदमी हैं इसीलिए आपके सामने
ऐसे नहा ली नहीं तो ऐसे खुले में थोड़े नहाती। घर पर भी अगर कोई बाहर का
नहीं आया रहता है तभी ऐसे सब के सामने कपड़ा बदल लेती हूँ।"
क्रमशः....... ............


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