Monday, June 1, 2020

FUN-MAZA-MASTI ओह माय फ़किंग गॉड--12

FUN-MAZA-MASTI

ओह माय फ़किंग गॉड--12




अचानक उसका शरीर ऐंठ गया और बुरी तरह कांपने लगा, फिर शांत हो गया. मेरे लंड पर रस की बारिश कर वह तो झड़ गयी लेकिन मेरा अभी तक खड़ा था. कुछ और धक्को के बाद मैं उसकी चूत में झड़ गया और उसके उपर निढाल हो गया. कुसुम का बदन बिल्कुल शांत था जैसे की उसमे जान ही नहीं हो. मैं उसको तंग करना ठीक नहीं समझा और उसकी ओर करवट ले सो गया. थकान और मस्त चुदाई के कारण जल्द ही गहरी नींद में चला गया.



पक्षियों की चहचहाहट ने मेरी नींद तोड़ दी. बिस्तर पर मैं अकेला था, पता नहीं कुसुम कब उठी और चली गयी. घड़ी की सुइयां सुबह के छह बजा रही थी. बारिश थम गयी थी लेकिन आसमान में अभी भी घना बदल था. कल रात हमने दरवाजा बंद नहीं किया था. अचानक बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आई. कुछ देर बाद कुसुम बाथरूम से निकली. उसकी बदन पर कोई कपड़ा नहीं था. मुझे अपनी और घूरते देख सकपका गयी. मारे शर्म के अपनी मम्मों और चुत को दोनों हाथों से छिपाने की कोशिश की.

 मैं उसको देख मुस्कुराते हुए बोला, “रात को नींद अच्छी हुई?”

 कुसुम बाहर की और देखते हुए बोली, “साहब, दरवाजा बंद कर दो ना. सुबह हो गयी है”

 मैं भी नंगा ही था. उठकर दरवाजा बंद किया, तब तक कुसुम पेटीकोट पहन ली. मैं उसके सामने खड़ा हो गया और उसकी कमर को पकड़ अपने करीब खींच लिया. कसमसाते हुए खुद को मुझसे अलग करना चाहती तो थी लेकिन मेरी पकड़ के आगे हारकर बोली, “साहब, ऐसा मत करो ना, जाने दो मुझे. सुबह हो गयी है. मेरी बहन परेशां होगी घर पर” 

उसकी गर्दन को चुमते हुए मैं बोला, “तुम्हारी बहन ठीक होगी. तुम चिंता मत करो. कल रात को ठीक से तुम्हे देखा नहीं था. आज तो देखने दो.” 

मेरी बात सुन कुसुम शर्म से लाल हो गयी. रात की बात अलग है, लेकिन दिन के उजाले में अपनी जिस्म की नुमाइश करने मैं हर औरत थोड़ी-बहुत तो जरूर शर्माएगी. मैं पीछे हट कर उसको घूरने लगा. बेचारी कुसुम शर्म से जमीन में गड़े जा रही थी. सर की झुकाकर बेचारी नाख़ून से फर्श को खरोंचने लगी. 


मैं धीरे धीरे उसके पास गया और दोनों कन्धो से पकड़ अपने करीब खींच लिया. कुसुम की निगाहें अभी भी जमीन पर गड़ी थी. मरे शर्म के मुझसे नज़र नहीं मिला पा रही थी. एक बार मेरी और देखने के बाद फिर से नज़र झुकाकर उसने पेटीकोट को ऊपर खिसकाकर छाती के ऊपर बांध ली. मैंने कुसुम को बाँहों में जकड़कर उसकी गर्दन और कान को चूमने लगा. धीरे-धीरे कुसुम भी गर्माने लगी. 

मुझे जकड कर मेरी छाती में मुंह गड़ा “ऊन्ह्ह्ह.....हम्म्म्म....उन्ह्ह्हूँ” की आवाज निकलने लगी.

 मेरा लिंग जो वैसे ही सुबह-सवेरे खून से भरा था और चूत के अन्दर जाने को बेताब था. और ज्यादा देर करना बिल्कुल गलत था इसलिए मैं कुसुम को पलट कर दीवाल के सहारे खड़ा कर दिया और पेटीकोट ऊपर उठा उसकी चूत के मुंह पर लिंग को रख कर एक हल्का धक्का मारा. कुसुम के मुंह से “इस्सस्स्स” की एक तेज़ आवाज के साथ पूरा जिस्म थरथरा गया.


 मैं कुछ सेकंड के लिए रुक गया और उसकी चुचियों का मर्दन के साथ-साथ उसकी गर्दन और पीठ को चूमने लगा. 

अबकी बार कुसुम के मुंह से सिसिकारी के आलावा भी कुछ निकला. मेरी और घूमकर बोली, “साहब, आप एकदम फ़िल्मी हीरो जैसे प्यार करते है”

 मेरी हंसी निकल गयी. दोनों के होंठ मिल गये और हम जीभ से एक दुसरे के हलक की गहराई मापने लगे. दोनों के लार आपस में घुलकर बड़ा मजेदार स्वाद दे रहा था. 

कुसुम पेटीकोट को छोड़ दोनों हाथों से दीवार पकड़ ली. उसकी चूचियां सुबह की ठण्ड की वजह से सख्त हो गयी थी. मैंने चुमना जारी रखते हुए एक बांह से कसकर उसकी कमर को लपेट लिया और दूसरी हाथ से उसकी चुचियों को मसलने लगा. 

चुचियों के निप्पल को दो उँगलियों के बीच फँसाकर मरोड़ा था कि कुसुम की साँस अटक गयी. होंठों को मुझसे अलग कर जोर जोर से हिचकी लेने लगी. मैं चोदना छोड़ कुसुम की पीठ को सहलाने लगा लेकिन उसकी हिचकी है कि थम ही नहीं रही. हारकर मैं उसको पकड़ कर बिस्तर पर बैठाया और पानी पीने को दिया. पानी पीने के बाद वह सहज हुई और शर्माती हुई मुझे देखने लगी मानो खुद से कोई शर्मिंदगी का काम हो गया हो.



मैं जैसे उसके करीब गया, उसकी आँखें बंद और होंठ खुल गये जैसे मुझे आमंत्रण दे रही हो कि आओ और मेरे होंठो का रस चखो. कुसुम को कन्धों से पकड़ कर उसकी खुली होंठो को अपनी होंठो से लगा उसकी रसदार जीभ को चूसने लगा. बिना होंठो को अलग किये धीरे से उसको बिस्तर पे लिटा कर मैं उसके ऊपर आ गया. कुछ सेकंड की चुम्मी के बाद मैंने पाया कि कुसुम मेरे लंड को सहला रही है, जो उसकी मुलायम हाथ के प्यार पा और ज्यादा अकड़ गया था.



मैं कुसुम के हाथ से लंड ले उसकी चूत के मुहाने पर लगाकर आगे-पीछे रगड़ने लगा. वह बेकरारी के मारे कमर को आगे पीछे करने लगी. 

समझदार को इशारा काफी है. मैंने अपने शरीर का पूरा वजन अपने लंड पर दाल दिया और मेरा लंड सरसराते हुए उसकी चूत के अन्दर तक चला गया. इसके साथ-साथ मेरे टट्टे उसकी गांड से चिपक गये. उसकी कमर को पकड़ कर मैं जोर-जोर से झटके देने लगा जिसने उसकी जिस्म को झकझोर कर रख दिया.


 हमारे चुम्मी की लय टूट गयी और कुसुम अब जोर जोर से सीत्कार करने लगी. उसकी बदन के रोंये कांटे के जैसे खड़े थे और कांप रहे थे. मैं समझ गया कि यह अब जल्द ही झड़ने वाली है. मैंने उसकी दोनों टांगो को अपने कंधे के सहारे सीधा कर कमर पकड़ जोरदार धक्का मरना चालू किया. 

मेरे धक्को के जोर से बिस्तर बुरी तरह से हिल रही थी. कुसुम अपने सर को जोर से पटक रही थी और उसकी सीत्कार अब चीत्कार में बदल गयी थी, “हैईईईईई.... माई रीईईईईई.... फट गयी रे ऐ... हाय रेरेरे.....”


 मेरे सर पे हवास का हैवान सवार था जो इन चीखों को अनसुना कर सिर्फ लंड पेलने में लगा था. अचानक कुसुम का बदन ऐंठ गया. वह एकदम से ऊपर उठ फिर धड़ाम से गिर पड़ी. साथ-साथ उसकी चीख भी बंद. बस जोर-जोर से साँस ले रही थी. मेरे लंड में भी लावा भर चूका था जो एक विस्फ़ोट के साथ कुसुम की रसदार चूत में उगल पड़ा. लगभग आधा मिनट तक मैं झड़ा और फिर उसकी बगल में गिर पड़ा.
कुछ मिनट के बाद कुसुम उठी, अपने कपड़े समेट बाथरूम में चली गयी. मेरा पेट हल्का लग रहा था, पैरों में जैसे जान ही नहीं थी. कुछ देर बाद कुसुम कपड़े पहन बाहर आई, मेरी और एकबार देखने के बाद दरवाजा खोल चली गयी. मैं अपने बिस्तर पे नंगा लेटा रहा. लेटे-लेटे नींद आ गयी थी कि फ़ोन की घंटी ने मेरी नींद तोड़ दी. मैंने देखा माँ का फोन आ रहा था. मैंने फ़ोन उठाया तो सुबह-सुबह एक बुरी खबर सुनने को मिली. मेरे नानाजी का अचानक स्वर्गवास हो गया और मेरा पूरा परिवार उनके घर को निकल पड़े है. माँ का कहना था कि मैं जल्द-से-जल्द घर को रवाना दूँ. दिन के शुरुआत मे ऐसी खबर सुन मेरा मन भरी हो गया. तैयार हो के प्लांट की और निकला. वहां जाकर ऑफिस में छुट्टी के लिए ईमेल किया और मेरे बॉस से फ़ोन पर बात की. यहाँ प्लांट का काम लगभग हो चूका था मेरे डिपार्टमेंट का. इसलिए छुट्टी मिलने में कोई दिक्कत नहीं हुई. एक हफ्ते की छुट्टी मिली. मैंने दोपहर की बस से निकलने का फैसला किया.

दोपहर को मैं हवेली लौटा. नीचे दरवाजे पर कुसुम और उसकी बहन खड़ी थी. मुझे देख कुसुम की नज़रे शर्म से नीची हो गयी. मैं ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे दिमाग में कुछ और ही था. फटाफट सामान एक छोटे बैग में भर दिया और कमरा बंद कर नीचे आ गया. कुसुम सवालिया नज़रों से मुझे घुर रही थी लेकिन मैं सीधे ठकुराईन के हवेली में गया. दरवाजा पर दस्तक देने से लाली बाहर आई. इससे पहले कि वह मुझसे कोई सवाल करती मैं खुद बोला, “लाली, घर में एक जरूरी काम आ गया है. मैं अभी निकल रहा हूँ. वापस आने में हफ्ता लग सकता है. आकर भाड़ा दे दूंगा. चलता हूँ” उसको बोलने का कोई मौका दिए बगैर मैं तेज़ी से हवेली से बहार निकल गया. रिक्शा लिया और बस स्टैंड की और चल पड़ा. आधे घंटे के अन्दर मैं बस में था. दिमाग में सिर्फ नानाजी की यादें घूम रही थी. शाम के वक़्त ऑफिस पहुंचा. पहले ही फ़ोन और ईमेल किया हुआ था. इसलिए सिर्फ बॉस से मुलाकात कर सारा मामला समझाने के बाद मैं अपने फ्लैट में आ गया. अगले दिन तड़के मेरी गाड़ी थी. सुबह ५ बजे ट्रेन पकड़ कर मैं घर की और रवाना हुआ. रस्ते में माँ को फ़ोन भी किया. माँ ने बताया कि घर की चाभी रीता काकी के पास है. शाम के सात बजे मैं स्टेशन पर उतरा. स्टेशन से रिक्शा लेकर जब मैं घर की ओर निकला तब अँधेरा हो चुका था. रिक्शा नेहा का पार्लर होकर गुजरा तो एकबार मन मैं आया कि अन्दर जाकर सोमलता से मिलूँ, लेकिन फिर उसी वक़्त खुद को रोक लिया. सीधे रीता काकी के दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर बाद काकी दरवाजा खोली. उन्होंने मुझे सर से पांव तक अजीब नज़रों से घूरी, जैसी कि किसी चीज़ की तलाश हो. मैं डरते हुए कहा, “काकी, घर की चाभी ......” काकी का ध्यान टूटा और वह बिना कुछ बोले अन्दर चली गयी और चाभी का गुच्छा लेकर बहार आई. चाभी देते हुए बोली, “बेटा, तुम थककर आये हो, मैं रात का खाना भिजवाती हूँ.” मैं जवाब में बस “जी” कहा और चाभी लेकर घर आ गया. दो दिन के सफ़र के कारण बदन दर्द से चूर था. नहाने के बाद थोड़ी देर के लिए लेट गया तो पता नहीं कब नींद लग गयी. दरवाजे की घन्टी से नींद खुली. घड़ी देखा तो रात के नौ बज रहे थे.


थकी आँखों से दरवाजा खोला तो डब्बे लिए काकी खड़ी थी. काकी अन्दर आ गयी. टिफिन का डब्बा मेज़ पर रखने के बाद बोली, “अकेले हो?” मैं आश्चर्य होकर पूछा, “हाँ काकी, मेरे सिवा और कौन होगा घर पर?” काकी कुछ देर खामोश रही जैसे कुछ सोच रही हो. फिर मेरी आँखों में झांकती हुई बोली, “तुम कब निकल रहे हो नानी के घर?” मैं बोला, “जी, कल सुबह की पहली ट्रेन से निकल जाऊंगा.” काकी बिना कुछ बोले दरवाजे की तरफ मुड़ गयी और धीमी क़दमों से बाहर चली गयी. मैंने दरवाजा बंद किया लेकिन मेरा मन चिंता की कुहरे में खो गया. काकी को जब पता है कि घर में मैं अकेला हूँ तो बार-बार क्यों पूछ रही है. उनको किस बात पर शक है? मुझे इस मामले में कोई सुराग नहीं मिला. खाना खाकर सो गया, अगली सुबह जल्दी उठाना था. अगले तीन दिन नानी के घर में बीताने के बाद मैं घर वापस आ गया क्योंकि घर में किसी ना किसी को रहना था. पिछले कुछ दिनों से मोहल्ले में चोरो का काफी उत्पात है. घर खाली रखना समझदारी का काम नहीं है. माँ-पिताजी कुछ दिन और वहां गुजरने वाले है. मैं शाम ढलते-ढलते घर आया. स्नान करने के बाद चाय लेकर बैठा ही था कि दरवाजे की घंटी बजी. खोला तो रीता काकी थी, लेकिन खाली हाथ. मुस्कुराते हुए बोली, “आ गया तू? कैसे है सब वहां? तेरी माँ नहीं आई?” मेरे दिल में पिछले दिन से ही डर बैठा हुआ था. “अभी घंटे भर पहले आया हूँ. माँ और पिताजी अगले हफ्ते आयेंगें. अभी कुछ दिनों की छुट्टी है मेरी.” काकी दरवाजा बंद का अन्दर आ गयी और सोफे पर आराम से बैठ गयी. मैं खड़ा देखता रहा कि क्या बात है? मुझे खड़े देख बोली, “बैठ जाओ बेटा. खड़े क्यों हो?” मैं भी सोफे के दुसरे किनारे बैठ गया. लेकिन दिल में अभी भी अजीब-सी घबराहट थी. काकी मेरी तरफ एकटक देखे जा रही थी. आँख से आँख मिलते ही बोली, “तेरे घर में जो औरत काम करती थी, वह आजकल कहाँ है?” मेरा दिल धक्क से रुक-सा गया. इसलिए काकी मुझसे बार-बार पूछ रही थी, मैं अकेला हूँ या नहीं. तो क्या इसको पता चल गया कि सोमलता मेरे घर में थी. मैं चुप रहा. फिर काकी पूछी, “विवेक की बीबी की पार्लर में मैंने देखा था एकबार. वहां काम करती है क्या?” मैं डरते-डरते उसको देख बोला, “जी हाँ”



“तूने ही काम दिलवाया होगा. विवेक तो तेरा दोस्त है ना” सोफे पर और जमकर बैठते हुए बोली. मैं समझ गया कि बेटा अब बचने का कोई उपाय नहीं है. इसको सब पता चल गया है. मैं नज़रे नीची कर चुप हो गया. कोई जबाब ही नहीं सूझ रहा था. “उस औरत के साथ तो खूब मस्ती की तूने जब सुमित्रा दीदी घर पर नहीं थी” मैं डर गया, पता नहीं अब आगे क्या होगा? अचानक मेरे दिमाग में क्या सुझा, मैं झट से उठा और काकी के पैर पकड़ कर बैठ गया. मेरे इस हरकत से काकी अकचका उठी. “प्लीज काकी, माँ को नहीं बताना इसके बारे में. मैं आपके पैर पकड़ता हूँ.” लगभग गिडगिडाते हुए मैं बोला. काकी मेरी ओर देख मुस्कुराई और बोली, “वाह रे मेरे कन्हैया! गोपियों को घर लाकर रासलीला करते हुए डर नहीं लगा, अब क्यों डरता है?” मैं और कसकर पैर पकड़ते हुए बोला, “नहीं काकी अब कभी ऐसा नहीं करूँगा. आप किसी को नहीं बताना. प्लीज!” काकी सोफे पर ढल गयी. उनके चेहरे पर जीत की मुस्कान थी और मेरी हालत हलाल होने वाले बकरे की तरह. मारे डर के मेरा लंड चमड़ी के अन्दर चला गया. काकी सोफे पर धंस कर बैठी थी मानो कोई महारानी हो और मैं उनका दास. मेरी ओर देख शैतानी मुस्कराहट के साथ बोली, “बेटा, मूठ मारते हो?” काकी के मुंह से यह सवाल सुनकर मुझे मेरी कानों पर यकीं नहीं हुआ, “क्या?” रीता काकी अब सीधी बैठ गयी और धीरे लहजों में बोली, “ज्यादा भोले बनने की कोई दरकार नहीं है. किसी औरत की याद में मूठ तो मारते होगे ना? क्या?” मैंने नज़र झुका ली, “जी काकी, कभी कभी!” वह फिर सोफे पर ढल गयी और बोली, “मेरे सामने करो” मैं चौंक गया, “क्या???” आँख बंद कर काकी बोली, “पतलून उतार और मेरे सामने मूठ मार. देखूं तेरा हथियार कितना बड़ा है”



मरता क्या ना करता? मेरे सामने कोई उपाय नहीं है. ऐसा नहीं है कि मुझे कोई शर्म आ रही है. पिछले दो महीनों से मेरे साथ जो जो हुआ है उसके सामने यह कुछ नहीं है लेकिन रीता काकी? मेरे पड़ोस की काकी, मेरी माँ की सहेली, राजेश भैया की माँ. अगर मेरी करतूत बाहर किसी को पता लग गया तो मेरी इज्जत गयी नाली में. मैंने धीरे से पेण्ट और चड्डी उतारा और काकी के सामने खड़ा हो गया. काकी आंख खोल देखी और बोली, “जरा नजदीक आ” मैं हडबडाहट में एकदम सामने चला गया कि मेरा लंड काकी के मुंह के बिल्कुल सामने आ गया. काकी गुस्से में धक्का दे चिल्लाई, “क्या कर रहा है कलमुंहे, मुंह में घुसायेगा क्या?” मैं डर से बोला, “सॉरी काकी” काकी सहज हो बोली, “ठीक है अब हाथ चलाओ” और सीधी बैठ गयी. वह एकटक मेरे लंड को घुर रही थी, लेकिन मेरा लंड मारे डर के पिचक गया था और सख्त होने का नाम नहीं ले रहा था. मैं तेज़ी से हाथ चला रहा था लेकिन कोई फायदा नहीं. लंड जब अपने आप पर आ जाए तो किसी की बाप की नहीं सुनता. यह देख काकी बोली, “क्या हुआ कन्हैयालाल? तेरा हथियार तो बेकार-सा लगता है” लंड की बदनामी कोई मर्द बर्दाश्त नहीं करता. मैं थोडा तैश में बोला, “आपके डर के कारण उठ नहीं रहा है, वरना कितनी की फाड़ चूका है” काकी हँसते हुए बोली, “अच्छा बेटा! ला मैं ही इसे उठा देती हूँ. इधर आ” मैं काकी के सामने खड़ा हो गया. मेरा दिल बाग़-बाग़ हो रहा था. काकी दांये हाथ से लंड को नीचे से उठा चमड़ी खींच कर सुपारे को निहारने लगी. मैं खड़ा काकी को अब एक औरत के हिसाब से देखने लगा. लेकिन देखने को कुछ था नहीं. काकी एक बंद गले का ब्लाउज पहने थी जिससे उनकी मम्मो के कोई हिसाब नहीं लग रहा था. एक बार नंगा देखने की तमन्ना जरूर है. खैर काकी अब मेरे लंड को धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगी. काकी के हाथ का प्यार पाकर लंड की नसों में खून दौड़ने लगा और सख्त होना शुरू हुआ. जब लंड पुरे आकर में आ गया तो काकी मेरे तरफ देख बोली, “लो शैतान तैयार हो गया” मैं चुपचाप मज़ा ले रहा था. काकी ने अब पूरा ध्यान मेरे लंड को देकर उसकी मालिश करने लगी. अब मेरी सिसकारी छूटने लगी. काकी हँसते हुए बोली, “खूब मजे लो बेटा काकी के हाथ का” काकी की रफ़्तार बदने लगी और साथ में मेरी सिसिकारी की. अब मैं छूटने वाला था. मेरा लंड जोर की पिचकारी मार दी बिना किसी चेतावनी के. गाड़ा सफ़ेद वीर्य उछल कर काकी के गले और छाती को पोत दिया. काकी को इसकी उम्मीद नहीं थी. वह गुस्से में चिल्लाई, “हरामी क्या किया तूने? बोल नहीं सकता था साले. सारा कपड़ा ख़राब कर दिया. हट सामने से....” मुझे धकेल कर बाथरूम में घुस गयी. मैं धम्म से सोफे पर बैठ गया. जो अभी-अभी हुआ वह सपने जैसा लग रहा था. यहाँ तक कि मैंने सपने में भी नहीं सोचा था. लगभग दस मिनट के बाद काकी दनदनाते हुए बहार आई और दरवाजा खोल जाने लगी. पीछे मुड़ के बोली, “आगे से हद में रहना, समझे” मैं कुछ बोलता इससे पहले ही वह निकल चुकी थी. “आगे से” का मतलब? क्या जो अभी हुआ वह फिर होगा? क्या काकी सचमुच में? सोचते सोचते मैं सोफे पर ही निढाल हो गया. 










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