Thursday, January 31, 2013

कुँवारी छबीली -4

कुँवारी छबीली -4

गतान्क से आगे..................
बहुत देर तक हम शर्म से सर झुकाए बैठे रहे. फिर मैने हिम्मत की ओर आगे
बढ़ कर छबिलि को गले से लगा लिया. "छबिलि, ऐसा कुछ नही है हम तुम्हे जैसा
सोच रही हो वैसे नही मानते है तुम तो मेरी पहली मुहब्बत हो मैं तुम्हारे
साथ ऐसा कैसे कर सकता हू ओर मैं तो तुम्हे किसी ओर के साथ बाँटने का सोच
कर ही डर जाता हू चाहे वो दूसरा आदमी तुम्हारा पति ही क्यू ना हो. मैं
तुम्हे रसिया के साथ बिल्कुल नही बाँटना चाहता. रसिया का उस दिन तुम्हारे
सामने मूतना ओर कमरे मे आना एक संयोग हो सकता है ओर अगर उसने जान बूझकर
भी किया है तो इसमे मैं सामिल नही हू". मैने रसिये को चुप रहने का इशारा
किया की तुम बीच मे मत बोल पड़ना जो जैसा कह रहा हू कहने ओर करने दो. "उस
दिन रसिया तुम्हे भोगना चाहता था पर मैं तो इस बात के लिए राज़ी नही था
ना. ओर रसिया तुम्हे हाथ भी नही लगाएगा. ओर अगर तुम मुझसे भी संबंध ना
रखना चाहो तो भी तुम आज़ाद हो ना रखो संबंध पर अपने आप को ख़त्म करने
जैसा ख़याल दिल मे भी मत लाना वरना मैं तुम्हारे साथ जान दे दूँगा. जहाँ
तक तुम्हारे पति की बीमारी का सवाल है तो मैं उसे ठीक कर्वाऊंगा.
च्चबिली मेरी बाते सुन कर मुझसे चिपक गई. ओर चुप चाप रोती रही.

बहुत देर तक छबिलि रोती रही. मैने उसे चुप करने की कोशिश नही की क्यूंकी
इस समय उसका रोना ही ठीक था. आज रो लेने से उसके दिल का गुबार निकल जाएगा
वरना वो गुस्से मे कुछ भी कर सकती है. बस वो मेरे सीने से लगी रोती रही
ओर मैं उसके बालों मे हाथ फिरता रहा जिससे उसको इस बात का एहसास रहे की
मैं उसके साथ हू वो इस मझधहार मे अकेली नही है.

रोने से धीरे धीरे उसका गुस्सा आंशुओं के साथ बह गया. अब वो कुछ शांत लग रही थी.

उसने अपना मूह उठाया. ओर जैसे ही उसे रसिया नज़र आया उसने एक बार को मूह
फेर लिया पर फिर अपने ज़ज्बात काबू मे रखते हुए बोली कारण क्या तुम कुछ
देर के लिए बाहर जा सकते हो. रसिया भी स्थिति को समझ रहा थॉ ओ चुप चाप
बाहर चला गया.

अब छबिलि ने मेरी तरफ देखा ओर बोली "छैल थे मन्ने खराब कर दी. थे मन्ने
इत्ति गिरेडी समझ ली के. की मैं थन्सु तो चुड़वऊंगी ही ही थारे दोस्तान
सू भी चूदबा लगूंगी. मैं थन्सु प्यार कियो है ईं कारण थॅंको नंबर आयो है
नही तो मैं ऐइयाँ कोनी फिसलती. थे तो मानने उऊन दिन भा गया था जद थे
म्हारे घर किराए का मकान देखन वास्ते आया था. ओर ऊहि कारण रयो की मैं
पिच्छला किरायेदार ने भगा कर थाने उनकी जगा मकान दे दियो. पर यार यो काई
है थे अपने दोस्त ने भी ले आया. खैर ले आया तो कोई बात कोनी पर अन म्हेरे
सथे इन्वॉल्व भी करना चा राइया हो. या तो ग़लत बात है. थे म्हरी इज़्ज़त
दो कोड़ी की समझली."

"ना छबिलि ऐसी कोई बात नही है" माने उसे सफाई दी "वो हमेशा से ही मेरे
साथ रह रहा है जब से हम इस शहर मे आए है. उसे अलग से नही बुलाया है. वो
तो उसकी आदत है यहाँ वहाँ मूह मारने की तो जब भी उसका कोई जुगाड़ लग जाता
है तो वो उस जुगाड़ के घर पर ही रहने लगता है जब तक की उस जुगाड़ का पति
ना आ जाए. तो इस कारण ये एक हफ्ते गायब था. मुझे क्या पता था की वो आते
ही तुझे अपनी तरफ आक्रिस्ट करने के लिए तुझे लाउडा दिखाएगा. ओर मुझे ये
भी नही पता था की जब दोपहर मे हम दोनो चुदाई कर रहे थे तो वो हमे देख रहा
था. वो तो अचानक जब वो कमरे मे घुस गया तब मेरी उस पर नज़र पड़ी"

"पन थारो दोस्त थारे साथ भी दागा करे है के"

अरे उसने अपना पुराना आइडिया लगा दिया था यहा भी. उसने सोचा की लड़की फँस
जाए तो बुरा क्या है. वैसे भी तू एकदम कंटीली नार है. कोई भी फँस सकता
है.

अच्छा या बात है. थे क्यामे फाँसया?

अरे मैं भी तो तेरे रूप जाल मे फँस कर रह गया हू. अब तू ऐसी बाते करती है
तो दिल बहुत दुख़्ता है.

वो सब तो ठीक है पर अब मैं एक फ़ैसलो कारियो है, की अब मैं म्हारे पति के
साथ ही रहूंगी थारी तरफ नज़र भी उथकि कोनी देखूनली.

तो तेरी सेक्षुयल डिज़ाइर्स का क्या होगा छबिलि.

"इनमे थे मारी मदद करो. मानने मारे मर्द रो इलाज कारवानो है. पर ये तो
मानने ही कोनी. थे मारे साथ चलोगा तो ये मना कोनी कर पनवेला.कोई ना कोई
बहाने से आंको इलाज कारानो है मनने. या तो थे भी जानो हो की थारे साथ
म्हरी जिंदगी तो चाले कोनी."

इलाज तो मैं करवा दूँगा पर एक बात बताओ क्या तुम मुझे कभी नही मिलॉगी. ओर
अगर मैं तुमसे शादी करना चाहू तो तुम्हे क्या एतराज है.

ना छैल, अब सब ख़तम है. थे अगर म्हाने थोड़ी भी चाहो हो तो थाने मेरी
हेल्प करनी पदेलि. ओर शादी तो आपन कोनी कर सका. थे म्हारा दोस्त रॉवोला
जिंदगी भर. ओर बाकी रैही चुदाई की बात तो जुगाड़ कर द्*यंगी थारो भी.

अच्छा

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च्चबिली ने बाहर खड़े करण को आवाज़ दी "रसिया ज़रा अंदर आओ"

रसिया अंदर आ गया तो च्चबिली ने कहा "बैठो" रसिया बैठ गया "देखो रसिया
ऐसा है की तुम मुझ पर जो वार आजमा रहे हो मैं उन सब को पसंद नही करती इस
लिए अब प्लीज़ मेरे सामने इस तरह की हरकतें बंद कर देना. मैं भावनाओ मे
बह गई थी वरना मैं सायड परवेज़ के साथ भी इस तरह की हरकत नही करती. तो
आपसे रिक्वेस्ट है की आप यहाँ पर सलीनता से रहे. ओर मेरी तरफ ध्यान ना ही
दें तो अच्छा ही. समझ गये आप मैं क्या कहना चाह रही हू"

मैं तो बहुत पहले ही समझ गया था जब ये हंगामा शुरू हुआ. मेरी ग़लती हो गई
जो मैने आपको सिड्यूस करने की कोशिश की. आप मेरी तरफ से बेफ़िक़र रहिए.
ऐसी कोई हरकत नही होगी. पर मैने आप दोनो की बातें बाहर से सुनी है ओर
मुझे राजस्थानी कम ही समझ आती है पर आप ने जो कुछ कहा उसका भावार्थ समझ
गया हू. आप जिस तरह पहले रह रहे थे वैसे रहे ना तो आपको कोई तकलीफ़ होगी
ना ही मेरे दोस्त को. मुझे तो इस बात का दुख है की मेरे कारण मेरे दोस्त
को तकलीफ़ हो रही है. बाकी रही आपके पति के इलाज की बात तो वो मैं
कार्ओौनगा. मैं संजीवनी मेडिकल कॉलेज मे म्बबस थर्ड एअर का स्टूडेंट हू.
वहाँ पर सभी प्रोफेस्सर्स से मेरी दोस्ती सी है. आप कभी भी आ सकती है.

छॅबिली ने रसिया से इतने सुलझे हुए जवाब की आशा नही की थी क्यूंकी वो समझ
रही थी की रसिया चवँनी छाप टाइप का लड़का होगा ओर उसकी सोच चूत से सुरू
हो कर चूत पर ही ख़तम हो जाती होगी. पर ये तो बहुत अच्छा लड़का निकला. ओर
मेडिकल स्टूडेंट भी है चलो उसके पति का प्रॉपर इलाज भी हो जाएगा.

छबिली का पति दो दिन बाद वापस आ गया वापस आने पर उसने पाया की छॅबिली का
व्यवहार उसके प्रतिपूरी तरह से बदला हुआ है वो उससे बहुत प्यार से पेश आ
रही है. ओर उसकी हर बात मान रही है. वो उससे पुचहता है की क्या बात है तू
आज इतना प्यार क्यू लूटा रही है. पर च्चबिली उसे केवल देख कर मुश्कुरा
देती है. शाम को खाना खाने के बाद च्चबिली अपने पति के पास आती है ओर
कहती है "मैं थाने एक बात कऊन अगर थे मानो तो."

"हाँ बोल छबिलि, तेरी बात ना मनुन्गो तो कीं की मनुन्गो"

"थे काल म्हारे सागे अस्पताल चलो, मैं थारो पूरो इलाज कारानो चाऊं हू,
इता दिन होग्या आपान ने एक सागे रहता पर थन्सु काम कोनी होवे ओर थे इन गम
मैं दारू पीनी भी सुरू कर दी. आपन एक बारी दाक्दर बाबू ने दिखा कर तो
आवाँ."

"बिँसु कोई फयडो होतो दिखे है के तनने"

"होसी फाय्दो भी होसी थे मारे सागे चालो तो सरी"

"ठीक है तू कवे है तो चल चालसयू, कद चाल्नो है"

"काल सुबह ही चाल स्यां"

ये बातें करके च्चबिली ओर उसका पति सोने लगे च्चबिली ओर परवेज़ के लॅंड
की बहुत याद आ रही थी पर वो सब्र कर रही थी की अब तो उसका पति ही ठीक हो
जाएगा तो उसे परवेज़ के लंड की ज़रूरत ही नही पड़ेगी. ओर जब उसकी चूत मे
ज़्यादा ही गर्मी आने लगी तो उसने अपने घाघरे को अपनी टाँगों की तरफ से
थोडा थोडा उठाया ओर कमर तक उपर कर लिया पर बेड पर वैसे ही लेती रही. पास
मे ही उसका पति सो रहा था. उसे आज जिस तरह से उसके पति ने उससे प्यार से
बातें की थी उसे अपने पति पर बहुत प्यार आ रहा था बस उसका पति उसकी चूत
की गर्मी का कोई इलाज करने मे अभी सक्षम नही था. उसने अपने पति की तरफ
करवट ली ओर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए अपने के हाथ को अपनी चूत पर
फिरने लगी. पहले चूत के बाहरी होठों के उपर से हाथ फिरती रही फिर उसने
अपनी चूत की फांकों को थोडा सा खोला ओर अपनी एक उंगली को चूत एक अंदर
वाले हॉट्तो पर फिराना शुरू कर दिया.

अब तो उसकी हालत ओर भी खराब होने लगी थी उसकी अब इच्छा हो रही थी की जब
तक उसका पति ठीक ना हो जाए तब तक वो परवेज़ से जा कर चुड़वा ले पर फिर
उसने अपने आप पर जब्त किया ओर उंगली को अपनी चूत के अंदर डाल का अंदर
बाहर करने लगी इस तरह उसे कुछ कुछ चुदाई का सा अहसास होने लगा था उंगली
ओर लंड मे बहुत फ़र्क होता है पर कुछ तो मज़ा उंगली भी दे ही रही थी साथ
साथ वो अपने पति को देखती जा रही थी ओर एक दो बार उसके चेहरे को चूम भी
चुकी थी ओर वो अपनी पति से चुदाई का सोच सोच कर ही अपनी चूत मे उंगली कर
रही ती जैसे उसे उसका पति खूब ज़ोर झोर से चोद रहा है. ओर इस एहसास के
साथ वो कुछ ही देर मे छूट गई. ओर ढेर सारा कमरश छ्चोड़ दिया. उसका घाघरा
नीचे से गीला हो गया था क्यूंकी उसने सामने से तो घाघरा उपर कर लिया था
पर पीछे से उपर नही किया था. ओर आज उसकी चुदाई की इच्छा भी बहुत हो रही
थी इस कारण उसकी चूत ने रस भी बहुत ज़्यादा छ्चोड़ा था.

उसने झट पास मे पड़े एक कपड़े को उठाया पर ये तो उसके पति का कुर्ता था.
उसने खुरते को वापास फेंका ओर फिर इधर उधर देखा छूट को पोंच्छने के लिए
कोई कपड़ा उसे नज़र नही आया तो उसने सोचा की उसका घाघरा भी नीचे से गीला
हो चुका है ओर अब इसमे नींद तो आएगी नही तो चलो इसे उतार कर इससे ही
पोंच्छ लेती हू. ये सोचते हुए उसने घाघरे का नाडा खोल दिया नाडा खुलते ही
घाघरा उसके पैरों मे पड़ा था. उसने घाघरे को उठाया ओर उससे अपनी चूत को
पोंच्छने लगी. चूत पोंच्छने के दौरान वो नीचे से पूरी तरह नंगी थी
क्यूंकी चड्डी तो वो पहनती ही नही थी घाघरे के नीचे. नंगे बदन पर रात को
चल रही हवा के झोंके लग रहे थे जिस कारण उसे बहुत अच्छा एहसास हो रहा था.
पर इस अहसास ने उसकी जवानी के एहसास को फिर एक बार जगा दिया था क्यूंकी
उंगली ही तो की थी लॅंड थोड़े ही डाला था.

जब उससे नही रहा गया तो वो ऐसे ही बाहर घूमने चली आई उसने सोचा के बाहर
एक तो अंधेरा है बाहर की लाइट बंद है ओर दूसरा रात बहुत ज़्यादा हो गई है
इस कारण परवेज़ ओर कारण तो सो गये होंगे.

बाहर आ कर छबिली इधर उधर घूमने लगी परवेज़ के कमरे की लाइट अभी तक जल रही
थी तो क्या परवेज़ अभी तक जाग रहा है. पुराना इश्क़ फिर से करवटें लेने
लगा था. ओर वो अपने आप को रोक नही सकी ओर उसके कदम परवेज़ के कमरे की तरफ
बढ़ चली. कमरे की खिड़की की किनारी से कमरे मे झाँक कर देखने लगी जहाँ से
रोशनी बाहर आ रही थी. पर अंदर तो कारण अकेला सो रहा था. परवेज़ तो कमरे
मे कही भी नही था. ये कहाँ गया उसने वहाँ से सारे कमरे को देख लिया. पर
परवेज़ कहीं नज़र नही आया. उसने दूसरी खिड़की की तरफ रुख़ किया जहाँ पर
खिड़की बंद नही थी. खिड़की के पास पहुँच कर उसने पूरे कमरे का मुआयना
किया एक चारपाई पर कारण पेट के बाल लेता हुआ था ओर खर्राटे ले रहा था. पर
परवेज़ कही नही था. तो क्या परवेज़ कमरे मे नही था. कहाँ गया परवेज़.
इतने मे उसे श्श्कारी की आवाज़ आई सस्स्स्शह हाए छबिलि क्या करूँ तेरे
बिना मेरा क्या होगा मेरी जान मैं तो मर ही जौंगा हाए छबिलि तेरी मस्त
चूत के बिना मैं कैसे रहूँगा आजा छॅबिली आजा एक बार तेरी चूत मे अपना
लॅंड डाल डू तुझे मस्ती से चोद डालु तुझे.
छबिलि को अब परवेज़ की आवाज़ तो सुनाई दे रही थी पर उसे परवेज़ कही नज़र
नही आया. यहाँ वहाँ नार दौड़ने पर उसे अहसास हुआ की परवेज़ तो खिड़की के
पास ही बने बाथरूम से आ रही थी. तो क्या परवेज़ उसके नाम की मूठ मार रहा
था. परवेज़ की शीष्कारी की आवाज़े अभी भी बाथरूम से आ रही थी छबिलि की
चूत मे से इन आवाज़ों को सुन कर पानी टपकने लगा था जो धीरे धीरे उसकी
जांघों पर फिसलता हुआ नीचे की तरफ चलने लगा था कुच्छ ही देर के बाद उसे
इस बात का एहसास हुआ तो उसने नीचे की तरफ देखा ओर जब उसकी नज़र अपनी नंगी
चूत पर गई तो उसे ध्यान आया की वो तो नीचे से एकदम नंगी है ओर नंगी ही
बाहर चली आई थी. अब उसकी चूत उससे विद्रोह करने लगी थी पर उसने अपने आप
को काबू मे किया ओर वो झट से वापस आ गई ओर भागती हुई अपने कमरे मे चली गई
ओर उसने झट से वहाँ पड़े एक कमरे मे पड़े कपड़े से अपनी चोट को पोंच्छा
ओर जा कर अपने पति से चिपक कर सो गई.
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सुबह वो ओर उसका पति नहा धो कर तय्यार हो गये अस्पताल जाने के लिए ओर फिर
छबिलि परवेज़ के रूम की तरफ चली उसे बुलाने के लिए तो परवेज़ उसे बाहर ही
बैठा मिल गया उसका चहरा एकदम उतरा हाउ था जैसे वो अपने ही जनाज़े को कंधा
दे कर आ रा हो. उसने परवेज़ को आवाज़ दी पर उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया
नही आई तो वो थोड़ी आयेज बढ़ी ओर फिर से आवाज़ दी पर परवेज़ पर कोई असर
नही था वो उसके पास गई ओर उसके कंधे को झकझोड़ कर उसे बुलाया तो वो एयेए
है कौन है. कह कर उसकी तरफ देखने लगा. चबिली आज उसकी आँखों मे देखने की
ताब नही ला पा रही थी उसने परवेज़ को कहा चलो हम लोग तय्यार है तो परवेज़
भी उसकी तरफ नही देख रहा था उसने कहा चलो ओर खड़ा हो गया पर उसकी चल मे
कही कोई गर्मजोशी नही थी बस जैसे अपने आप को घसीट रहा हो. धीरे धीरे उनके
पीछे पीछे चलता हुआ बाहर आ गया. तभी छबिलि को जैसे कुछ ध्यान आया "अरे ये
कारण कहाँ है."
हाई! सयद वो तो अंदर ही है. परवेज़ बोला
अरे उसे अंदर क्यू छ्चोड़ दिया वोही तो कह रहा था की डॉक्टर उसका दोस्त
है. उसे ले कर आओ. जाओ ना परवेज़ अंदर चल पड़ा रसिया को बुलाने के लिए.
बाहर छबिलि का पति उससे कहता है की तुमने मेरी कमी की बात इन सबको बता दी?
अरे नही मैने इनको कुच्छ नही बताया है मैने तो इनको कहा है की तुम आजकल
बहुत कमजोर हो गये हो काम मे दिल नही लगता है ओर डॉक्टर्स को दिखाया तो
फयडा नही हुआ तो कारण ने कहा की उसकी पहचान बड़े अस्पताल के बड़े डॉक्टर
से है वो इलाज करवा देगा. मैं कोई पागल हू क्या जो ये बात इनको बतौँगी
मुझे तुम्हारी इजात की कोई परवाह नही है क्या. छबिलि ने सॉफ झूठ बोला. पर
उसका पति भी तो इसी झूठ से संत्ुस्त होता सच से कहा संत्ुस्त होने वाला
था वो.
इतनी देर मे रसिया ओर परवेज़ दोनो बाहर आते हुए नज़र आए. फिर उनलोगो ने
टॅक्सी की ओर अस्पताल की तरफ चल दिए.
अस्पताल पहुँच कर रसिया एकदम बिज़ी हो गया उसने छबिलि के पति का इलाज
करवाने के लिए डॉकटर को दिखाया उसके द्वारा लिखी गई सारे जाँचे करवा ली
ओर फिर से उसे ले कर डॉक्टर के पास आ गया.

डॉकटर रिपोर्ट ले कर बहुत देर तक उनका मुआयना करता रहा फिर उसने रसिया से
कहा ज़रा डॉकटर सक्सेना को बुला कर ले आओ तो. कुछ ही देर मे दा. सक्सेना
भी आ गये अब दोनो डॉकटर बहुत देर तक रिपोर्ट्स को ले कर आपस मे पता नही
क्या बातें करते रहे उसके बाद उन्होने छबिलि ओर उसके पति को अंदर बुलाया
मैं ओर रसिया भी साथ मे अंदर जाने लगे तो डॉकटर ने हम दोनो को रोक दिया
ओर बोले की तुम लोग ज़रा भरा इंतजार करो हमे इन दोनो से कुच्छ ज़रूरी बात
करनी है. मैं रसिया को ओर रसिया मुझे प्रश्नवचक नज़रों से देखते रहे.
दोनो को ही जवाब नही मिल रहा था की हमे बाहर क्यू रोका है. फिर मैने कहा
की हो सकता है की छबिलि ओर उसके पति को इलाज समझा रहे होंगे इस कारण हमे
बाहर रोका है की उन्हे शर्म ना आए इलाज सीखने मे.
पर हमे अपने प्रश्न का जवाब जल्द ही मिल गया. छबिलि अपने पति के साथ
डॉकटर के चेंबेर से बाहर आ रही थी उसका ओर उसके पति का चेहरा उतरा हुआ
था. छबिलि की तो आँखों से आंशु बह रहे थे. जैसे ही बाहर आए तो हम उनकी
तरफ लपके. जैसे ही छबिलि की नज़र मुझ पर पड़ी वो भाग कर मुझसे लिपट गई ओर
ज़ोर ज़ोर से रोने लग. "परवेज़ मेरा सब कुछ लूट गया ऑर मैं जिंदा कैसे
रहूंगी." मुझे उस एक सेंटेन्स मे ही सारी बात समझ मे आ गई की क्या हो गया
है मैने उसके सर पर हाथ फेरा की चुप ओ जाओ सब ठीक हो जाएगा.
क्या ठीक हो जाएगा पता है डॉक्टर्स ने क्या कहा है. छबिलि कुच्छ कहना चाह
रही थी पर उसके पति ने उसे चुप करा दिया पर आज छबिलि बहुत उदास थी सारे
रास्ते वो रोटी रही .
मैने भी उससे ज़्यादा कुच्छ पुछ्ने की कोशिश नही की ना ही रसिया कुछ बोल
रहा था. जबकि रसिया को चुप करना बहुत ही मुश्किल काम है. १५ मिनिट के
सफ़तर के बाद हम घर आ गये. मैने ओर छबिली के पति ने छबिलि को सहारा दे कर
उसके बेडरूम तक पहुँचाया ओर फिर मैं रसिया के स्थ अपने कमरे मे आ गये.
मैने रसिया से कहा की यार ऐसा कर कुछ चाय तो बना कर भेज दे उन लोगों को
छबिली को तो बहुत आघात पहुँचा है वो तो बना नही पाएगी ओर दुख मे पता नही
वो कुछ खा पाएँगे या नही. आज रसिया एकदम चुप छाप था उसने इस तरह की कोई
आस नही की थी ना ही मैने की थी हम दोनो ही छबिलि की हालत देख कर बहुत
दुखी थे. रसिया चुप छाप उठा ओर चाय बनाने लगा. चाय बनाने के बाद उसने कहा
परवेज़ तू चाय ले कर चला जा मुझसे नही जया जाएगा.
नही यार वो मुझसे बहुत आत्तेच है मैं नही जा पाऊँगा मैं उसकी आँखों का
सामना नही कर पाऊँगा. तुम ही दे आओ यार प्लीज़
ठीक है मैं दे आता हू. ओर रसिया चाय ले कर चला गया. एक मिनिट मे ही दे कर
वो वापस आ गया.
क्या हुआ इतनी जल्दी कैसे आ गया तू वापस. चाय नही दे कर आया
चाय तो दे आया हू पर मुझसे छबिलि की हालत देखी नही जा रही है. वो बहुत
दुखी है ओर लगातार रो रही है. मुझसे तो वहाँ रुका नही गया. इसलिए मैं
फटाफट भाग आआया.
"खैर अब अपन कर भी क्या सकते है". मैने कहा. "अरे यार छबिलि की एक ननद है
संगीता, जिसके साथ वो मुझे मार्केट मे मिली थी जब उसने मकान के लिए मुझे
हाँ कहा था साथ मे सास भी थी पर मुझे इसकी ननद संगीता समझदार लगी, हम ऐसा
नही कर सकते क्या की संगीता को बुला लें जिससे वो इसे इस दुख के दौर से
बाहर निकालने मे सहायता कर सके."
यार आइडिया तो अच्छा है पर ये भी तो हो सकता है की जिस तरह अभी ये अपने
पति से एकदम विरक्त है तो उसे जुड़े हर व्यक्ति से वो नफ़रत करती हो ओर
उससे भी नाराज़ हो कर मुझे कुच्छ भला बुरा ना कह दे. रसिया ने अपनी राय
रखी.
तुम्हारी बात ठीक है पर हमारे पास ओर कोई ऑप्षन भी तो नही है. मैं इसके
पति से बात करता हू संगीता को बुलाने के लिए.
मैं छबिलि के बेड रूम की तरफ चल दिया. ओर वहाँ जा कर मैने छबिलि की पति
को आवाज़ दी "नरेन्द्र, ज़रा बाहर तो आना"
वो बाहर चला आया "हाँ बोलो, क्या बात है."
तुम्हारी बीवी की तबीयत खराब है तुम एक काम करो उसकी ननद को बुला लो, जो
ये अपना दिल हल्का कर सके"
ठीक कहते हो तुम परवेज़, मुझे संगीता को बुला हिलेना चाहिए मुझसे तो इसका
रोना देखा नही जा रहा है..
ना तो नरेन्द्र ने मुझे कुच्छ बताया ना मैने पुचछा की डॉक्टेर ने क्या
कहा. मैं परदा पड़ा ही रहने दिया. कई बार ये बहुत अच्छा रहता है की कुछ
चीज़े छुपि ही रहें.
तुम अभी चले जाओ ओर संगीता को बुला लाओ.
"ठीक है" कह कर नरेन्द्र मोटर साइकल उठा कर निकल गया.
क्रमशः....................


कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6
--
raj sharma

कुँवारी छबीली -3

कुँवारी छबीली -3

गतान्क से आगे..................
मैने नशे की कुच्छ गोली रसिया के हाथों मँगवाई ओर शाम का इंतजार करने लगा.
शाम को छबिलि जब मेरे साथ छेद्खनि कर रही थी तो मैने उसे कहा एक ग्लास ले
कर आ वो ग्लास ले कर आई तो मैने उसे वो गोली दी. "या कीं काम की गोली है"
"कुच्छ नही ये सेक्स बढ़ने की गोली है. लेले"
"मेरे तो अइया ही भोत सेक्स च्देड़ॉ है थे चॉवो तो मन्ने सारी रात चोदो.
बैयाँ भी दिन मा मैं जद थन्सु चूदबा चाह री थी तब थॅंका लापाड़िया यार आ
गया. इब गोली छ्चोड़ो ओर मन्ने चोद दो".
तू गोली तो खा एक गोली मैं खा चुका हू. फिर अगर तू नही खाएगी तो तेरे को
तो मज़ा आ जाएगा ओर मैं रह जौंगा ओर हो सकता है के फिर मैं तेरी चूत ही
फाड़ डालु.
"ना बाबा ना चूत मत फाड़ ज्यो. फेर मैं ताँको लंडो काइयान्म ल्यूणगी"
"तू ले तो गोली" फिर देख मज़ा.
मेरे ज़्यादा इन्सिस्ट करने पर उसने गोली खा ली. मैने उसे पकड़ लिया ओर
उसे अपनी जांघों पर बिता लिया ओर उसके चूनचे मसालने शुरू कर दिए. बार बार
अपनी गर्दन पीछे को फैंक रही थी. ओर अपने हाथों से मेरी पीठ को मसल रही
थी.
मैने देखा की रसिया दरवाजे की ओट मैं खड़ा हुआ है ओर हमे ही देख रहा है
पर च्चबिली की उसकी तरफ पीठ थी इस कारण वो उसे देख नही पा रही थी. मैने
उसे अपने पास करते हुए उसके मूह को नज़दीक किया ओर उसे फ्रेंच किस करने
लगा. वो इस मामले मे एकदम ट्रेंड थी ओर बहुत अच्छा फ्रेंच किस करती थी.
अब वो एकदम गरम हो चुकी थी उसने मेरे कपड़े उतार कर फैंकने शुरू कर दिए
थी उसकी इन सब हरकतों के कारण मेरा लॅंड खड़ा हो गया था जिसका उसे पूरा
पूरा एहसास था ओर अब उसने मेरे लॅंड पर अपना हाथ फिरना सुरू कर दिया था.
हाथ फिरने के कारण लॅंड लगभग एक इंचो र बढ़ गया था.
वो मेरी गोदी से अलग हुई ओर उसके मेरी पंद का हुक खोल दिया उर पंद को
निकालने लगी. फिर वो अंडरवेर के तरफ़ बढ़ी ओर उंदर्वेर के नीचे जाते ही
मेरा लॅंड आज़ाद हो गया. वो लॅंड को चूसना चाह रही थी पर मुझे पीछे नंगा
खड़ा रसिया नज़र आ रहा था जो हमे देख कर अपना लॅंड सहला रहा था.
मैने उसकी ब्लाउस की डोरी खींच दी. आज उसने बॅक लेस वाला ब्लाउस पहना था
या कह सकते है की टॉप ही था. डोरी खलते ही टॉप खुल कर उसकी गोदी मे जा
गिरा ओर उसके दोनो संतरे एकदम से आज़ाद हो गये "अरे यो के कर्यो, थे तो
म्हाने नंगी कर दी. म्हरी दोनु च्चातियाँ ने थे उघड़ी कर दी इब मैं के
करू कथे जाउ". मैने उसे हंसते हुए जवाब दिया "यहाँ कौन है जिससे तू अपनी
चूंचिया च्छुपाना चाह रही है. मैं तो तेरी हुँचियों को देख भी चुका हू ओर
चूस भी चुका हू. मुझे उनका रस पीने मे बहुत मज़ा आता है पर अभी मुझे
रसिया की दर्शन के लिए ओर भी कुच्छ करना ढा. मैने उसके घागरे का नाडा
खींच डाला. उसका घांगरा नीचे गिर गया ओर एकदम चिकनी चूत मेरे सामने थी.
"अरे बा रे या के करी थे. नाड़ो क्यू खोलयो थे तो मन्ने पूरी नंगी कर दी
म्हारो भोसड़ो तो पूरो खुलकी दिख ग्यो थाने" ये कहते हुए उसने अपनी चूत
पर अपना हाथ रखने की कोशिश की पर मैने ना उसे चूत पर हाथ रखने दिया ना
उसे गांद पर हाथ रखने दिया. उसके मस्त गांद देख कर रसिया की हालत खराब हो
गई थी ओर वो छबिलि की गांद देख देख कर ताबड़तोड़ लंड को हिलाए जा रहा था.
अब मैं नीचे झुका ओर उसकी चूत पर उंगली फिराई तो देखा की उसकी चूत एकदम
चू रही थी ओर भट्टी की तरह गरम हो रही थी. "थे के चेक करो हो अब तरसाओ मत
थारो लंड म्हरी चूत मे डाल के चोद डालो फाड़ गेरो म्हरी चूत ने या भोत
तंग करे है मन्ने. जल्दी सी बाड दययो इम्मे लॅंड. छ्हैल थे के सोचबा ने
लगगया. डालो नि"
अब मुझसे भी राका नही गया ओर मैने उसकी चूत मे लॅंड पेल दिया ओर छोड़ना
सुरू कर दिया हर झटके के साथ "आअहह आअहह हन ओर ज़ोर सू चोदो भंवर जी" की
आवाज़ आ रही थी ओर मैं इसी जोश मे उसे चोदे जा रहा था रसिया अब तक अपना
पानी निकल कर आराम कर रहा था ओर हमारी चुदाई देख रहा था. अभी कुच्छ टाइम
उसे आराम भी चाहिए था इस कारण वो सोच रहा था की मैं अपनी चुदाई पूरी कर
लू फिर वो लगे.
कुच्छ देर मे मेरा पानी उबाल खाने लगा. ओर फिर छबिलि की गरम चूत के कारण
मैं ओर रुक नही पाया ओर मेरा पानी उसकी चूत मे निकालने लगा तभी रसिया बोल
पड़ा अरे तुम लोग ये क्या कर रहे हो. साले परवेज़ तो ये गुल खिलता है तू
यहाँ पर.
च्चबीई को पता नही था की रसिया पीच्चे च्छूपा हुआ सब देख रहा था इस कारण
वो चौंक गई ओर मैने भी चौकने का नाटक करने लगा. मेरा पानी तो निकल ही
चुका था तो मैने अपना लंड उसकी चूत मे से लॅंड बाहर निकल लिया. जैसे ही
लॅंड बाहर निकाला उसकी चूत से विर्य टपकने लगा.
तो ये काम कर रहे थे. ओर साले निकल लिया पानी.
अब तो इसके पति को पूरी बात बतौँगा की तेरी ओरात मेरे यार के साथ चुदति है.
प्लीज़ थे अइयाँ मति करो, म्हारो आदमी मन्ने मार नखेलो"
मैने भी कहा यार रसिया क्यू हंगामा कर रहा है. करने दे ना तेरे बाप का
क्या जा रहा है.
तो फिर मुझे भी करने दे.
ये सुनते ही छबिलि की आँखों मे चमक आ गई पर उसने हमे दिखाया नही. " मैं
ऐइयाँ ना कर सकु"
"सेयेल तू मेरी जान पर बुरी नज़र रखता है." मैने कहा
अबे तू मुझे समझा रहा है. तू भी तो किसी ओर के माल पर हाथ सॉफ कर रहा है
अब ओ मुझे करने दे नही तो मैं बतौँगा.
बता ना मेरी तरफ से मुझे कोई फ़र्क़ नही पड़ता.
"अरे ना बताइजे बाने, मन्ने मार नखे ला बॉ" थे चाओ बो काम म्हारे साथ कर
ल्यो पर म्हारे बने मत बताइजयो"
रसिया ने मेरी तरफ आख मारी

कहने को तो च्चामिया ने सहमति दे दी की कुच्छ भी कर लो पर उसके पति को मत
बताना. पर दिल ही दिल मे वो घबरा रही थी की वो किस दलदल मे फँस गई है. एक
तो वो पहले ही ग़लत काम कर रही है परवेज़ से चुद्व कर उपर से एक ओर
मुसीबत आ गई है.
अब वो अपने आप को कोष रही थी की किस घड़ी मे वो परवेज़ की तरफ अकरास्ट हो
गई जिस के कारण वो इतना नीचे गिर गई की अपने पति से धोखा करते हुए वो गैर
मर्द से चुद्व भी रही है ओर अब वो अपने पति से ज़्यादा उस गैर मर्द से
प्यार रकति है. ओर हर वक़्त इस फिराक़ मे रहती है की किसी तरह उसके पति
उससे डोर रहे ओर वो परवेज़ से चुद सके खुल कर. जिसमे उसके पति के नपुंसक
होने ओर उसकी दारू का भी बहुत बड़ा हाथ था. वो अब अपने घर के कामो मे लग
गई ओर साथ ही उसका दिमाग़ हर समय इसी उधेड़बुन मे लगा हुआ था की उसने ये
क्या कर दिया है. अब उसमे ओर एक रंडी मे क्या फ़र्क़ रह गया है. अगर वो
हर किसी के सामने अपनी चूत फैला कर लेट जाएगी तो. उसे इस बात पर अफ़सोस
हो रहा था की परवेज़ अपने दोस्त को यहाँ क्यू ले कर आया. पर परवेज़ ओर
रसिया तो हॅमेसा ही साथ रहे है. तो रसिया को तो आना ही था पर सू तो ख़याल
रखना चाहिए था. रसिया ने उसे लोडा क्या दिखा दिया उसकी चूत मे खुजली चलने
लगी. ओर उसने आव देखा ना ताव ओर भाग कर परवेज़ के लॅंड पर बैठ गई ओर बिना
ये देखे की दरवाजा बंद है या नही वो उसके लॅंड की सवारी करने लगी थी.
पर एक बात उसके दिमाग़ मे रह रह कर खटक रही थी की परवेज़ का दोस्त रसिया
उन दोनो को देख कर इतना नाराज़ क्यू दिख रहा था अगर वो परवेज़ का दोस्त
है तो उसे इस बात पर खुश होना चाहिए था की उसके दोस्त को भी चोद्ने के
लिए एक चूत मिल गई है जिसे वो जब चाहे तब चोद सकता है.
पर रसिया तो जैसे कुच्छ ओर ही चाहता था. वो तो ऐसे दिखा रहा था जैसे वो
उसके पति का दोस्त है. कही वो उसे जान बुझ कर तो दलदल मे नही धकेल रहा
है. ओर ये भी तो हो सकता है की परवेज़ प्र रसिया दोनो ही मिले हुए हो.
उसे रसिया से छुड़वाने मे. पर परवेज़ को इससे क्या मिलने वाला था. हो
सकता है रसिया ने उसे कोई लालच दिया हो.
वैसे इस बात की कोई गॅरेंटी नही थी की रसिया उसे चोद देगा तो भी वो उसके
पति को नही बताएगा. हो सकता है उसे चॉड्नी के बहाने वो कोई सबूत इकतहा
करने लगे ओर उसके आधार पर वो उसे ओर चोद्ने को कहे.
अब च्चबिली दोनो से ही नही चुड्ना चाहती थी. क्यूंकी उसने अब ये फ़ैसला
कर लिया था की वो अपने पति के साथ इही खुश रहे गी चाहे उसका पति कैसा भी
क्यू ना हो.
आख़िर उसने फ़ैसला किया ओर फिर परवेज़ को आवाज़ दी. "परवेज़! परवेज़!"
थोड़ी देर मे मैं उसके सामने हाज़िर था. क्या बात है च्चबिली. मैने देखा
उसकी आँखों से आंशु तपाक रहे थे. ओर उसका सारा चेहरा आसुओं से भरा हुआ
था.
क्या बात है तुम इतनी उदास क्यू हो.
"नही ऐइयाँ ही बुला लियो (कुच्छ नही है ऐसे ही)." फिर सुने दुबारा कहा
"एक बात बताओगा"
हन बोलो ना क्या पूच्छना है
रसिया तरो खास दोस्त है ना (रसिया तुम्हारा खास दोस्त है ना).
"हन!" ये कहते हुए मेरा दिल बैठा जा रहा था मुझे लगने लगा था की उसे
रसिया का लॅंड बहुत पसंद आ गया है अब वो रसिया से चुद्वन चाहती है. पर
मैने खूब हिम्मत करके पूचछा "क्यू क्या बात है"
थे आज जानकार मानने छोड़ता बख़त दरवाजो खुलयो छ्चोड़यो तो ना (तुमने आज
जान बूझकर मुझे छोड़ते वक़्त दरवाजा खुला छ्चोड़ा था ना).
नही च्चबिली ऐसा नही है. मैने सफाई देनी चाही.
म्हंसु झूठ मति बोलो. थे कदे भी इत्ता लापरवाह कोनी हो सको चाहे आपन दोणू
ही घर मा एकला होआन पर थे दरवाजो बंद करो पन आज थे जानकार दरवाजो खुलयो
छ्चोड़यो (मुझसे झूठ मत बोलो. तुम कभी भी इतने लापरवाह नही होते हो चाहे
हम दोनो ही घर पर क्यू ना हो. पर आज तुमने जान बुझ कर दरवाजा खुला
छ्चोड़ा था.)
मेरा सर नीचे झुका हुआ था मैं उसकी तीखी नज़रों का सामना नही कर पा रहा था.
छबिलि का ये रूम मेरे लिए एकदम नया था आज तक वो हर वक़्त सेक्स के बारे
मे सोचने वाली लड़की के रूप मे ही मुझे नज़र आती थी पर आज उसकी बात सुन
कर मुझे खुद को गुनाह का एहसास होने लगा था लगने लगा था जैसे मैने बहुत
बड़ा गुनाह कर दिया हो एक लड़की को पाप के रास्ते पर धकेल कर. मैने छबिलि
को पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया ओर उसे चुप करवाने लगा. ओर कहने लगा की
इस सब का गुनहगार मैं हू. मैने ही तुम्हे इस रास्ते पर धकेला है मैं अगर
उस समय रुक जाता तो तू आज भी पति व्रता होती.
ये सुनते ही छबिलि को जैसे अचानक अपना पति याद आ गया ओर साथ ही उसे अपने
पति की हालत का भी एहसास हुआ.
ना थारी के ग़लती है थे तो म्हारी हेल्प ही तो करी है. ग़लती तो मेरी है
जो मैं ही खुद पर काबू कोनी रख सकी. ओर रखूं भी काइयां म्हारे पति देव
मैं तो दाना ही कोनी. बी को तो खड़ो ही कोनी होवे. ना तो थारी ग़लती है
ना म्हरी ग़लती है उपरवालो म्हरी किस्मत मे या ही लिखी है की म्हारे पति
को सुख कोनी मानने तो सुख ढूँढ़नो ही पॅड्सी.
ये कह कर वो रोने लगी ओर मैं उसे चूप करवाने लगा.
बहुत देर तक रोने के बाद वो मेरी बाहों मे ही सो गई. मैने कुच्छ देर तक
तो उसे अपनी गोदी मे सुलाए रखा फिर उसे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. ओर
बाहर आ गया. बाहर आते ही रसिया मिल गया.
क्या हुआ भाई. क्यू रो रही है.
तेरे कारण रो रही है.साले तू इसे छोड़ना चाहता है ना. तो ये अपनी मजबूरी
पर रो रही है.
आबे मैने उसे कब मजबूर किया.
अरे यार उसे तो उपर वाले ने बजबूर कर रखा है.
उसका पति नपुंसक है वो उसे चोद नही सकता. इस कारण ही वो मेरे पास आई थी.
ओर मुझसे चुड गई. वो जितने दिन हो सके केवल मुझसे ही चुड्ना चाहती थी पर
तू बीच मे आ गया ओर उसे चोद्ने के लिए अट्टरक्त करने लगा ओर फिर मजबूर भी
करने की कोशिश की. तो वो बेचारी अपनी किस्मत पर रो रही थी की उपर वाले ने
क्या किस्मत बनाई है. पति चोद नही सकता ओर बिना चुदे रह नही सकती.
आबे फिलोसफी छोड़ ओर बता वो मुझसे चुदेगि या नही.
पता नही
कुच्छ तो पता होगा.
कह नही सकते अभी तू उसे परेसान मत कर ना ही उसे धमकना वो अभी मेंटली ठीक
नही है. उसे कुच्छ आराम करने दे वो खुद जो भी फ़ैसला करेगी वो हमे मंजूर
होना चाहिए.
ठीक है भाई. जैसी तेरी मर्ज़ी.
ये कह कर हम दोनो भी अपने कमरे मे चले गये ओर सोने का उपक्रम करने लगे.
गर्मियों की दिन चल रहे थे इस कारण दिन मे बहुत गर्मी हो जाती थी ओर
राजस्थान मे दिन मे लोग दोपहर के टाइम बाहर नही निकलते है ज़्यादातर सोते
है या वैसे ही आराम करते है. हमने भी कुच्छ देर आराम करने का फ़ैसला
किया.
कुच्छ देर आराम करने के बाद मेरी नींद बाहर से आ रही आवाज़ो से खुली.
बाहर आ कर देखा तो छबिलि कुच्छ कर मार रही थी. मैने गौर किया की अब उसके
चेहरे पर किसी तरह की उदासी नही है. वो एकदम शांत है जैसे उसने कोई
फ़ैसला कर लिये हो. उसने मेरी तरफ मूड कर देखा ओर मुस्कुराइ

कैसी हो छबिलि.
ठीक हू.
बहुत देर तक सोई आज तो.
हाँ तबीयत कुछ ठीक नही लग रही थी, रसिया कहाँ है.
क्यू क्या बात है.
कुछ खास बात नही है. पर मैं तुम दोनो से एक बात करना चाहती थी.
बोलो फिर.
ना दोनो से. एक से नही.
रसिया तो मार्केट गया है कहे तो बुलवा लू. मैने मोबाइल निकालते हुए कहा.
बुला लो. कहना साथ मे कॉंडोम भी ले कर आए.
क्या?
जो कहा है वो करो. ओ क.
ठीक है. ओर मैने अपने मोबाइल से रसिया को फोन लगाया ओर उसे वापस बुला लिया.
१० मिनिट मे रसिया घर पर था. हम दोनो छबिलि के कमरे मे गये.
छबिलि कमरे मे लेती हुई थी. जब हम दोनो कमरे मे गये तो छबिलि लेती हुई थी
वो उठ कर खड़ी हो गई ओर हम दोनो के लिए बैठने के लिए जगह बनाई ओर चाय
बनाने चली गई.
रसिया मुझे देख कर आँखों से सवाल कर रहा था की क्या बात है यहाँ क्यू बुलाया है.
मैने अन्नाभिग्यता जाहिर की. मुझे सच मे मालूम नही था.
कुच्छ ही देर मे छबिलि चाय बना कर ले आई साथ ए कुछ स्नॅक्स भी थे हम सब
ने चाय ओर स्नॅक्स लेने सुरू कर दिए.
क्या बात है छबिली. आज हमे इस कमरे मे क्यू बुलाया है. मैने पूछा.
"वो सामने देख रहे हो" छबिली ने सामने अपने बेडरूम की तरफ इशारा किया.
"वहाँ मेरी सुहग्रात होनी थी जो हो ना सकी. पता है क्यू? क्यूंकी मेरे
पति का लिंग खड़ा नही होता. उन्होने बहुत कोशिश की की किसी तरह वो मुझे
खुश रख सके पर कोई भी लड़की खुश तभी रह सकती है जब उसका पति उसे शारीरिक
रूप से खुश रख सके. वो रोज मेरे लिए नये नये तोहफे ले कर आते थे मेरा दिल
बहलाने की कोशिस करते थे मेरा दिल बहलता भी था पर रात आते आते मुझे फिर
इसी बात का एहसास होने लग जाता था की मुझसे बदकिस्मत कोई लड़की नही हो
सकती जिसका पति उसे खुश नही कर सकता. गली की कुतिया भी अपनी गांद मतकाती
हुई मुझे इस बात का एहसास करवा देती थी की देख मैं भी खुश हू पर तू तो
मेरे बराबर भी नही है. इन दिनो मेरे पति ने भी अपनी कमी के एहसास के कारण
शर्राब पीनी शुरू कर दी थी. मेरे दिल को ये एहसास खाए जा रहा था की एक
दिन मेरे घर पर परवेज़ कमरे की तलाश मे आया. इसके खूबसूरत चेहरे ओर कद
काठी ने मेरे दिल को मोह लिया ओर जो कमरा मैने आजतक किसी को नही दिया था
वो इसे कमरा मैने इसे देने का निश्चय किया. ओर पति के विरोध के बावजूद वो
कमरा इसे दे दिया."
"अगले ही दिन जब मेरे पति ने शराब की बोतल को हाथ लगाया उसके साथ साथ
मुझे भी ये एहसास होने लगा की वो मेरे लिए नही बना है. मेरा दिमाग़ आपे
से बाहर हो गया ओर गुस्से मे मैं पता नही क्या क्या कर गई. ओर नतीजतन मैं
परवेज़ से चुद गई. पहली बार जब चूड़ी तो मुझे इस बात की बहुत आत्मग्लानि
महसूस हुई पर पता नही क्यू मैं अपने आप को रोक नही पाई ओर मैं पति से छुप
छुप कर परवेज़ के अंगों से खेलने लगी. मेरे तन बदन की जो आग छुपि हुई
पड़ी थी उस आग को परवेज़ ने ऐसी हवा दी थी की अब मुझे सेक्स के अलावा
कुच्छ नज़र ही नही आता था."


मैने अपने पति को भुला दिया था ओर मैं परवेज़ के साथ खुश थी. मैं उसके
साथ दुबारा सेक्स करना चाहती थी मुझे इसका मौका भी मिला जब मेरे पति ने
मुझसे कहा की उसे कुछ दिनो के लिए बाहर जाना है. कोई ओर ओरत होती तो वो
उदास होती की उसका पति उससे दूर जा रहा है पर मुझे इस बात से बेहद खुशी
हुई. मैने खुशी खुशी अपने पति को विदा किया क्यूंकी इसके बाद मुझे खुल कर
परवेज़ से सेक्स करने का मौका जो मिलने वाला था. पर तभी ना जाने कहाँ से
रसिया की एंट्री हो गई ओर वो भी उस वक़्त जब मैं परवेज़ से चूदने ही वाली
थी. मेरे तन बदन मे सेक्स की आग भरी पड़ी थी ओर परवेज़ उसे ठंडी करने ही
वाला था. जब मैं सेक्स के बीच मे रह गई तो मेरी चूत ओर ज़्यादा गीली हो
गई ओर मुझे हर हालत मे अपनी चूत मे एक लॅंड चाहिए था.
उसी समय सायद रसिया भी मेरी तरफ आक्रिस्ट हुआ ओर उसने मेरे साथ सेक्स
करने के सपने देखने सुरू कर दिए. पता नही उसने मेरे बारे मे क्या सोचा पर
अब वो मुझसे हर हाल मे सेक्स करना चाहता था ओर इस काम के लिए उसने मुझे
लंड दिखा कर उकसाने का प्रयत्न किया ओर मैं उसके जाल मे आने ही वाली थी.
की तभी मुझे परवेज़ नज़र आ गया ओर मैं सेक्स की चाह से भरी परवेज़ से चुद
गई. मैने उस समय ये भी नही देखा की दरवाजा बंद है या नही ओर रसिया हमे
देख रहा है या नही. मैने परवेज़ पर पूरा भरोसा किया. पर उसने इस बार मेरे
साथ धोखा किया था. उसने जान बुझ कर रसिया को हमारी रति क्रीड़ा देखने का
रास्ता दिया था सायद वो भी चाहता था की मैं रसिया से चुड़ू.
तुम दोनो ने ही मुझे रंडी समझ लिया था सायद तुम सोच रहे थे की मुझे लंड
की इतनी भूख है की तुम दोनो मुझे साथ मे भोग सकते हो या मैं हर किसी से
चूड़ने को तय्यार हो जाऊंगी.
रसिया तुझसे तो मैने कोई उमीद लगाई ही नही थी पर परवेज़ तूने मेरे भरोसे
को तोड़ा है. अब जबकि तुम मुझसे सेक्स करना चाहते हो ओर मुझसे सेक्स का
सही अर्थ ही तुमने बताया था तो परवेज़ अब तुम्हे हक़ है की तुम चाहो तो
खुद मुझसे सेक्स करो या किसी ओर के हवाले कर दो. आज जैसा तुम चाहोगे मैं
वैसा ही करूँगी क्यूंकी आज मेरे जीवन का आख़िरी दिन है आज मैं तुम्हारी
हू. पर मैं एक रंडी का जीवन नही जी सकती इस लिए मैं अपने जीवन को ख़त्म
कर रही हू. मैने अपने पति के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है. आओ जो मज़े
लेना चाहते हो ले लो अपने दोस्त को साथ लेना चाहते हो तो ले लो.
मेरी ओर रसिया दोनो की गर्दन शर्म से झुकी पड़ी थी. हमे सूझ नही रहा था
की क्या कहे. हम दोनो ही इस ओरत के गुनहगार थे. ये बेचारी तो अपना जीवन
किसी तरह काट ही रही थी हमने ही आ कर इसके जीवन मे आग लगाई थी.
क्रमशः....................

--
कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6
raj sharma

कुँवारी छबीली -2

कुँवारी छबीली -2

गतान्क से आगे..................
मैं रात का छबीली को चोदने की योजना बनाने लग गया था। आज मैं भी स्वस्थ
था और छैबीली भी तरोताजा नजर आ रही थी। बार हम एक दूसरे को इशारे कर कर
के खुश हो रहे थे... रात होने का इन्तजार कर रहे थे।
रात को फिर वही छबीली की गालियों की आवाज आई... उसका पति निढाल पड़ा था...
और खर्राटे ले रहा था। धुत्त हो चुका था। मैं कमरे में छबीली का इन्तजार
कर रहा था...

कुच्छ ही देर मे मेरे सामने चबिली खड़ी थी मैं जनता था की वो क्यू आई है
पर फिर भी मैने उसे देखते हुए कहा "क्या बात है चबिलि बहुत आवाज़ें आ रही
थी"
"बो मेरो ख़सम मर ग्यो, सालो रोज ही पी की आजयवे है. रॅंड का ने ना लुगाई
सू मतलब है ना घर बार सू. अब पॅडीओ है गांद उँची करियाँ जी तो करे है की
गांद मे बंबू रोप दयू, खुद को तो बंबू कम करे कोनिया, आइज़ो मर्द के कम
को"
तो टेंसटीओं क्यू लेती है मेरी रानी तू यहाँ आजा. मैने उसे प्यार से अपने
पास बुलाया ओर अपने आगोश मे ले लिया.
वो कटे हुए वृक्ष के समान मेरी गोदी मे आ गई. मैने उसे अपने कंधे ले सागा
लिया इस समय वो सच मे दुखी थी वो मुझसे चूड़ना तो चाहती थी पर उसे साथ ही
इस बात का भी दुख था की उसका परमाणेंट जुगाड़ किसी कम का नही है ओर इसी
कारण वो दुखी थी.
तू फ़िक़र ना कर मेरी रानी तेरे पति के लॅंड का भी इलगज करवाएँगे ओर वो
ठीक भी हो जाएगा पर तुझे उसजी नशे की आदत का कुच्छ करना पड़ेगा.
"पर ऊँका लान्द तो खड़ा ही कोनी होवे" सब होगा कुच्छ सब्र कर.
सांत्वना देते देते मेरे हाथ उसकी पीठ का मुआयना कर रहे थे.
उसने देहाती ओरतो की तरह कानचली पहन रखी थी जिसके पीछे की तरफ केवल एक
धागा होता है मैने पीठ पर हाथ फिराते फिराते उसकी दोनो डोर खोल दी. जिस
कारण उसकी कानचली खुल गई ओर आयेज को आ गई. कानचली के नीचे ब्रा नही पहनी
जाती तो वो उपर से एकदम नंगी हो गई थी उसकी दोनो चूंचियाँ मेरे सामने खुल
गई थी तो मैने देर ना करते हुए उसकी एक चूंची को अपने मूह के हवाले कर
दिया ओर दूसरी को अपने हाथों से मसलना शुरू कर दिया

मैने छबिलि की दोनो चूंचियों को काम मे लेना सुरू कर दिया था एक चूंची
मेरे मूह मे थी एक दम गोल चूंची थी उसकी जैसे संगेमरमर से तराशि हुई.
पर्फेक्ट बनाई हुई. हाथ लगाने पर जैसे मैली हो जाए इस तरह की. मेरा हाथ
उस पर चल रहा था ओर दूसरी चूंची मेरे मूह मे थी ओर मैं लगातार उसे चूसे
जा रहा था जैसे मुझे दोबारा ये चूंचिया चूसने को नही मिलेगा. आज पहली बार
मैं छबिलि की चूंचियों को चूस रहा था पिच्छली बार ना तो मुझे इतना होश था
की उसकी चूंचियों को चुसून ओर ना ही उसे इस बात की परवाह की मुझसे
चूंचियाँ चुस्वाए. दोनो को ही चुदाई की लगी पड़ी थी ओर दोनो का ध्यान भी
उस ऑर ही था ओर दूसरे मुझे ओर उसे पहली बार चुदाई का मौका लगा था इस कारण
भूखे शेर की तरह टूट पड़े थे पर आज दोनो ही फ़ुरसत मे थे. ना तो वो
जल्दबाज़ी करना चाहती थी ना ही मैं जल्दबाज़ी करना चाहता था. मैने उसे
लिटा दिया ओर अब आराम से उसके नज़दीक लेट कर उसकी चोंछियों को चूसने लगा.
मेरा हाथ उसकी दूसरी चूंची पर चल रहा था मैं चुचि चूसने मे इतना मस्त था
की मुझे सी बात का एहसास ही नही रहा की मैं उसकी चुचि को ज़्यादा तेज़ी
से मसालने लगा था ओर उसे दर्द हो रहा है.
"सस्स्स्स्स्स्स्स्शह छैल भंवर दर्द होवे ना बोबा मे, तोड़ा धीरे दाबो नि"
मुझे लगा की उसे ज़्यादा दर्द है तो मैने उसकी चूंची से हाथ भी हटा लिए
ओर मूह भी. मेरे ऐसा करते ही उसने आँखे खोली ओर मेरी तरफ प्रस्न वाचक
नज़रों से देखा फिर बोली" रुक क्यूँ गया छैल चूसो नि"
पर तुम्हे तो दर्द हो रहा था ना.
"इत्तो कोनी थे तो चूसो जी"
अभी तो बोली थी
" थे तो नीरा गेल्ला हो" (गेल्ला=पागल)
मुझे बात समझ आ गई की वो मस्त हो रही है मैने फिर से बूब्स प्रेस करने
शुरू कर दिए. ओर साथ ही मेरा एक हाथ नीचे चल दिया ओर अब वो उसके पेट पर
था. पेट एकदम चिकना जैसे करीना का गाल. मैने चुचियों को छ्चोड़ कर पेट की
तरफ रुख़ कर लिया.
मैने अपनी जीभ निकली ओर उसकी नाभि मे डाल दी
"आ! छैल कई करो हो थे, मेरी सूंड़ी ने माटी च्छेदो मैं मार जौंगी, म्हारे
ब्स्दे मे चार्न चार्न हो है" (सूंड़ी =नेवेल)
मैने उसकी नाभि पर जीभ फिरनी जारी रखी ओर वो दर्द ओर मज़े के अहसास से
उच्छलती रही. फिर मैने थोड़ा ओर नीचे जाते हुए उसकी चूत के पास अपना मूह
ले गया. वहाँ से उसकी चूत की महक सॉफ मेरे नथुनो मे जा रही थी. वहाँ पर
मैदान सफाचट था यानी आज उसने चुदाई का पूरा प्रोग्राम बनाया था. क्यूंकी
पिच्छली बार उसकी चूत पर जंगल था ओर इस बार एक बॉल तक नही है. लगता था
जैसे हेर रिमूवर से सफाई की है.
"तेरी चूत तो मस्त है च्चबिली"
"थाने पसंद आई भंवर जी, मैं तृप्त हो गी"
पसंद क्यूँ नही आएगी इतनी मस्त चूत
'थे बठहे सू मूह हटा ल्यो, गंदी जगान है या"
गंदी कहाँ है याअर एकदम सॉफ है मुझे तो चिकनी चूत चाटने मे बड़ा मज़ा आता
है. मैं तो इसका सारा रस पी जॉवुगा.
"च्चि, चूत भी कोई चाटने की चीज़ हो है, या तो चुद्ने ओर मूतने की चीज़ हो है"
आई तू देख चूत क्या काम आती है" ये कह कर मैने उसकी चूत के होठों पर अपने
होठ रख दिए.
"आ भंवर, मैं मार जौंगी, मारे तो सरीर मे पुर मे करेंट दौड़ राइयो है"
मैने उसकी चूत का अभी तक निकला सारा पानी पी लिया था पर मेरे होठों के
प्रभाव से उसने झटके खाने सुरू कर दिए थे ओर उसकी चूत ने एक बार फिर से
पानी का फव्वारा छ्चोड़ किया ओर मैने किसी प्रकार की देरी किए बिना उसका
सारा रस पी गया. ओर फिर मेरे दिल मे आई की क्यू ना अब इसे लॅंड चुस्वाया
जाए. तो मैने अपना आंगल चेंज किए ओर अपना लंड उसके मूह के पास कर लिया ओर
फिर से उसकी चूत को चाटने लगा. वो मेरा इशारा समझ गई पर बोली. "म्हंसु
लॅंड कोनी छूसयो जा, मैं इने चूम ल्यूणगी बस"
तो कर जो तुझे ठीक लगे.
उसने मेरे लॅंड को अपने नाज़ुक हाथों से पकड़ा ओर धीरे से उस पर अपने
कोमल होठ रख दिए फिर हटा लिए. मेरा लॅंड तो उसके होठों का एहसास पाते ही
उच्छलने लगा. उसने अपने होठों का प्रभाव मेरे लॅंड पर देख लिया ओर साथ ही
सोचा की ये मेरी चूत चट रहा है तो मुझे इतना अनानद आ रहा है तो मुझे भी
इसे मज़ा देना चाहिए ये सोच कर उसने लॅंड को मूह मे ले लिए ओर धीरे चूसने
लगी.
मेरा लॅंड पहली बार चूसा जा रहा था इस कारण मैं ज़्यादा देर तक जब्त ना
कर सका ओर उसके मूह मे ही अपना सारा विर्य छ्चोड़ दिया.


मेरे विर्य की धार जैसे ही उसके हलाक मे गई वो एकदम से बोखला गई. ओर उसने
अपना मूह मेरे लंड पर से हटाने की कोशिश की पर मुझे इतना मज़ा आ रहा था
जिसमे मैं किसी तरह का व्यवधान नही चाहता था इस कारण मैने उसका सर पकड़
कर अपने लंड पर कस दिया अब मेरा विर्य पीना उसकी मजबूरी हो गई थी. जब
मेरे लंड किर एक एक बूँद उसके मूह मे चली गई तब मैने उसे आज़ाद किया.
उसने गुस्से मेरी तरफ देखते हुए कहा " ओ कई तरीक़ो है, म्हारे मूह मे थे
लंड को पानी छ्चोड़ डियो".
क्यू मज़ा नही आया क्या.
"मजो तो आयो पर यो पानी पीबा को थोड़ी होवे है"
तू सोच मत यार मज़ा ले. कैसा लगा.
"भोत स्वाद हो, जी करे है की ओर पीउ, ओर निकली काईं"
अब तो कुच्छ देर रुकना पड़ेगा. तू मेरे पास आजा आगे की कार्यवाही करें.
"रूको छैल मैं थारे वास्ते मलाई वालो दूध ले कर आउन, नही तो अगर थे भी
मारे नामरद पति की जियाँ होगया तो मैं कथे जाऊंगी चूदबा ने" ये कह कर वो
नंगी ही बाहर निकल गई. घर बंद होल की वजह से उसे किसी के द्वारा देख लिए
जाने का दर तो था नही ओर उसका पति तो दारू के नशे मे बेसूध पड़ा हुआ था.
उसकी मटकती हुई नंगी गांद को देख कर मुझे फिर से जोश आने लगा था. मैं भी
नंगा ही उठा ओर उसके पीच्चे पीच्चे किचन मे चला गया. वो मेरे लिए दूध
बनाने लगी ओर मैं नीचे झुका ओर उसकी चूत पर अपनी जीभ रख कर चाटने लगा.
उसकी तो जैसे सांश ही बंद हो गई उसने एक लंबी सांस खेंची फिर मेरे सर को
चूत पर दबा लिया. ओर बोली "छैल भंवर रोकूऊऊऊऊओ तो डूऊऊऊऊऊऊओध
पीईईईईईईईईईईलओ"
मैं अब उसकी बात नही सुन रहा था क्यूंकी अब मैं उसे जल्द से जल्द गरम
करके छोड़ना चाह रहा था. जब उसकी चूत चूने लगी तो वो बोली "छैल कमरा मा
चलन, आते रसोई मे ठीक कोनी"
"तू आज तक कभी रसोई मे चूड़ी है"
"मैं तो एक ही बार चूड़ी हू छैल, बी दिन थे चोदि थी बस अब तो दुबारा
चूदबा की गहरी जी मे आई हुई है"
तो छबिलि आज किचन मे चुदाई करेंगे
"आठे काइयां होसी खाट कथे है"
खाट किस कम के लिए
"तो चोदोग काइयां बिना खाट"
आज देख तू कैसे चोद्त हू तुझे. ये कह कर मैने उसे अपनी एक टाँग शेल्फ पर
रखने को कहा. ऐसा करते ही उसकी चूत खुल गई ओर साइड मे जगाहा हो गई. मैं
उसके पास गया ओर अपने लंड को उसकी चूत पर रखा ओर धक्का दिया पर चूत अंदर
नही गई. तो मैने एक जोरदार झटका मारा. आधा लॅंड अंदर हो गया. "आआअहह
मर्गि छैल, मेरी चूत फाट गी, मानने छ्चोड़ द्यो, मानने कोड़ी मर्वानी"
क्यू क्या हुआ
थे देखो तो हो कोनी के चूत काइयां मारया करे है, पूरो लंड घुसा दियो वो
भी एयाडी खड़ी करकी"
मैने अपनी चुदाई की स्पीड थोड़ी कम आर दी. पर लंड को बाहर नही
निकाला.कुच्छ ही देर मे च्चबिली ने अपनी गांद आगे को करनी सुरू कर दी. ओर
वो हर झटके का मज़ा लेने लगी. इस पोज़िशन मे लंड पानी जल्दी छ्चोड़ता है
पर अभी कुच्छ ही देर पहले छबिलि ने लंड को चूस चूस कर उसका सारा रस निकल
दिया था इस कारण मैं आराम से चोद पा रहा था. अब छबिलि को र से आवाज़ें
करने लगी ओर कहने लगी "छोड़ भैवर छोड़, मारी चूत कई दीना सू तरस रही थी,
ईं को सारो रस निकल दे साली बहुत फड़के है इनकी रदक निकल दे मार दे मेरी
चूत मार मार के भोसड़ो बना दे, ओर ज़ोर सू मार ओर ज़ोर सू एकदम जड़ तक
घाल दे पूरो लॅंड अंदर जाने दे. मेरी छूट की परवाह ना कर बस तो तू मानने
रत दिन छोड़यान जा"
उसकी इस तरह की बातें सुन कर मेरे लॅंड को जोश आ गया ओर अब मैं दे दनादन
झटके मार रहा तो ओर कुच्छ ही देर मे मेरे आंडों मे फिर से विर्य उत्पादन
सुरू हो गया ओर सीधी सप्लाइ लंड देवता को हो गई. मेरे लंड ने सारा विर्य
छबिलि की चूत को अर्पण कर दिया. उसकी सारी चूत विर्य से भर गई. ओर हम
दोनो ही निढाल हो गये. तूफ़ानी चुदाई से.
फिर वो उठी ओर उसने कोई कपड़ा ढूँढा ओर पहले अपनी चूत को सॉफ किया. सॉफ
करने पर जब कपड़े पर विर्य आ गया तो उसका मान मचल गया उर उसने कपड़े पर
लगा विर्य पानी उंगली पर लगा कर अपने मूह मे दाल लिया ओर उंगली चूसने लगी
फिर उसने इस तरह सारा विर्य चट कर दिया. पर उसकी प्यास नही भारी थी तो
उसने मेरे लंड पर लगे विर्य को सॉफ करने की गरज से लंड पर ज़ुबान फेरनी
सुरू कर दी. मेरी हालत खराब थी क्यूंकी चोद्ने के बाद लंड एकदम सेन्सिटिव
हो जाता है. पर मैने उसे कुच्छ नही कहा. उसे विर्य चाट लेने दिया.
उसका चेहरा अब एकदम खिला हुआ था. उसने खड़े हो कर दूध का गिलास उठाया ओर
उसे मेरे मूह से लगा दिया. मैने उसके हाथों से दूध पीना सुरू किया. आधा
ग्लास होते ही उसने दूध मेरे होठों से अलग करते हुए उसे अपने होठों से
लगा लिया ओर बाकी दूध पी गई.
मैने उससे पूचछा ये क्या था.
"छैल कुच्छ नई है, अइयाँ करबा सू प्यार बढ़े है"
मैं केवल उसे देखा कर मुश्कूराता रहा.
फिर मैने उसे उठाया ओर अपने कनरे मे ले गया ओर बेड पर लिटा दिया ओर उसके
पास ही मैं भी लेट गया.

फिर मैने उसे उठाया ओर अपने कनरे मे ले गया ओर बेड पर लिटा दिया ओर उसके
पास ही मैं भी लेट गया.
मैने छबिलि को ले जा कर अपने बेड पर लिटा दिया ओर पूचछा कैसी लगी चुदाई.
"आज तो जिंदगी को स्वाद ही ग्यो. मैं तो सोची ही कोनी थी के चुदाई मे
इत्तो भी मजो आ सके है के, म्हरी भाईली बताई थी के चुदाई मे भोत मजो आवे
है पन इम्मे तो उसे भी ज़्यादा मजो आयो जिततो बा बताई"
बहुत देर तक हम आपस मे ऐसे ही नंगे लेते हुए बातें करते रहे. इसी बीच
मैने उसे बताया की मेरा एक दोस्त है कारण जिसे हम सब रसिया कहते है वो
आने वाला है. तो वो नाराज़ हो गई की ये क्या बात हुई अपने दोस्त को क्यू
बुला रहे हो. फिर हम दोनो चुदाई कैसे करेंगे.
कुच्छ फ़र्क़ नही आएगा. वो समझदार है ओर हम कौनसा उसके सामने चुदाई
करेंगे. (मैने उसे पाटने की गरज से कहा) वो कौन सा हमेशा यहाँ पर रहने
वाला है.
"ना, मैं कोनी आन दयू. यो कोई तरीक़ो कोनी होयो. छैल थे म्हरी चूत की तो
सोच ही कोनी राइया हो, बो आज़ाई तो मैं के मोमबत्ती घालूंगी"
यार तू नाराज़ क्यू हो रही है अगर तुझे आदमी ठीक ना लगे तो वापस भेज
देना. मैं जनता था की जीतने दीनो से वो नही चूड़ी है उस सूरत मे वो मुझसे
भी चुद्वयेगि ओर रसिया से भी चुद्वयेगि.
बहुत देर तक माह ऐसे ही नंगे पड़े रहे फिर छबिलि उठी ओर कपड़े पहनने लगी
तो मैने उसे कहा कहाँ जा रही हो आज यही सो जाओ.
"ना भंवर आठे ना सो साकु हुओर कोई काम हो तो बताओ, बो हिज़डो है ना दारू
पी की पदयो है बो देख ना ले"
मैने भी ज़्यादा फोर्स नही किया क्यूंकी हक़ीकत मैं भी जनता था की उसका
इस तरह मेरे साथ सोना ख़तरे से खाली नही है. मैने उसे जाने दिया ओर उसके
मधुर सपनो मे खो गया.
अगले दिन सुबह उसका पति. उठा ओर मेरे पास आया ओर बोला "मैं हफ़्ता भर के
लिए बारे जौ हू थे घर ओर म्हरी बिंदानी को ख़याल रखज्यो"
"जी ज़रूर". मैं इतना ही बोल पाया (दिल मे तो लादू फुट रहे थे की अब एक
हफ्ते तक दिन रात उसे छोड़ सकता था) तभी उधर से छबिलि निकली तो उसके पति
ने उसे बुलाया ओर कहा मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहा हू उसकी ये बात
सुन कर च्चबिली के चेहरे पर एक चमक आ गई ओर उसने मेरी तरफ देखा ओर मेरे
चेरे पर मुस्कान देख कर वो अस्वस्त हो गई की अब हफ्ते भर उसे चड्डी चोली
घग्रा कुच्छ भी नही पहनना है.
कुच्छ ड्र बाद उसका पति चला गया. उसके जाते ही हम दोनो बेताब प्रेमियों
की तरह मिले. पर हमारा जश्न कुच्छ ही देर चला. दरवाजे पर ड़सतक हुई तो
छबिलि ने दरवाजा खोला. बाहर खड़े आदमी ने पूचछा. परवेज़ है क्या.
जी है बोलो
उनसे मिलना है मेरा नाम रसिया है.
"अरे तू है के रसिया" ये कहते हुए वो अलग ह गई ओर रसिया अंदर आ गया. अंदर
आते हुए भी वो छबिलि की कमसिन काया को देख रहा था ओर उसे नज़रों से नाप
रहा था. वो अब तक नाप चुका था की च्चबिली की कमर 26" गांद 36"इंच ओर
चूंचियाँ 38" की है ओर पुर सरीर पर ढूँढने पर भी कहीं थोड़ी भी चर्बी नही
मिल रही थी.
मेरी हालत खराब थी एक तरफ तो छबिलि को छोड़ने के लिए लॅंड देवता खड़े हो
चुके थे ओर उद्सरी तरफ सेयेल रसिया ने एकदम ग़लत एंट्री मारी थी. ओर साला
मेरे ही माल को घूर भी रहा था. आज पहली बार मुझे रसिया अच्छा नही लग रहा
था. कारण क्या था पता नही.

साले कहाँ था इतने दिन. मैने रसिया को आते ही घुड़की पिलानी सुरू की.
अरे परवेज़ भाई आप तो जानते हो मेरी आदत. वो मूड कर छबिलि को देख रहा था
ओर उसके वहाँ होने के कारण खुल कर बता नही पा रहा था.
तो साले इतने दिन लगते है छोरि चोद्ने मे. पूरे 6 दिन से आया है. पता है
तुझे. मैने छॅबिली का लिहाज ना करते हुए कहा. शायद मैं छॅबिली को उसकी
असलियत बता देना चाहता था. सायड मैं समझ रहा था की छॅबिली को अगर उसकी
सच्चाई पता चलेगी तो वो उसकी तरफ अकरास्ट नही होगी वरना साला हर कही हाथ
मार लेता है. कई बार तो साले ने मेरे ही माल पर हाथ मरने की कोशिश की है.
परवेज़ यार ज़रा देख कर बात कर.
क्या देखु बता. साले देखता तो तू है जहाँ भी कोई अबला नारी दिखी नही तेरा
लॅंड खड़ा हो जाता है उसकी हेल्प करने के लिए.
अब च्चबिली ने वहाँ से जाने मे ही भलाई समझी. मुझे उसके चेहरे पर रसिया
के लिए वितिशणा के भाव नज़र आ रहे थे. ओर मुझे स बात से खुशी भी थी की
मैं कुच्छ हद तक अपने इरादों मे कामयाब भी हो गया था.
च्चबिली अब कुच्छ कुच्छ रसिया से घबराने लगी थी.
रसिया मेरे साथ मेरे रूम मे आ गया ओर अपनी चुदाई के किससे सुनने लगा जो
वो हर बार सुनता था की किस तरह उसने एक जवान आंटी को 6 दिन तक रात दिन
चोद है ओर वो सीधा वहीं से आ रहा है. उसने देखा की हमेशा मैं उसकी चुदाई
की बातों मे इंटेरेस्ट लिया करता था पर इस बार मैने ज़रा भी इंटेरेस्ट
नही दिखाया. वो कुच्छ हैरान था की एक हफ्ते मे ऐसा क्या हो गया जो मेरा
इन बातों से इंटेरेस्ट ख़त्म ह गया है.
वो मेरे पास आया ओर बोला परवेज़ तेरी तबीयत तो खराब है.
क्यू बे साले मेरी तबीयत को क्या होना है.
नही मुझे कुच्छ गड़बड़ लग रही है.
सेयेल तबीयत तो तेरी खराब होने वाली है. बिना कॉंडम के यहाँ वहाँ छोड़ता रहता है.
अबे तुझे भी इन बातों का ज्ञान हो गया. उसने अचंभा किया.
क्यू साले चूत तेरी ही किस्मत मे है क्या हम नही चोद सकते क्या किसी छोरि को.
क्यू नही चोद सकते पर तुझे चूत मिली कहाँ.
हमारे लिए तो चूत खुद चल कर आती है.
चल चल हांक मत. अच्छा चल एक बात बता. मैं इस मकान के लिए कई बार चक्कर
लगा चुका हू पर मुझे ये मकान नही मिला ओर तेरे जैसे बुधहू को मिल गया.
साले ज़्यादा स्याना समझता है अपने आपको. देख मैने ले लिया मकान भी ओर
बाकी भी बहुत कुच्छ.
आबे ओर क्या है यहाँ लेने को.
यहाँ वहाँ देख हो सकता है तुझे कुच्छ नज़र आ जाए वैसे भी तू तो कहता है
की तेरी नज़र बड़ी परखी है.
सेयेल वो तो लड़की मे मामले मे है……….. आबे साले तो उस लड़की के बारे मे
तो नही कह रहा है जिसने दरवाजा खोला था ओर जिसके सामने तो लॅंड चूत की
बाते कर रहा था.
मैने गर्व से गर्दन हिलाई.
आबे साले क्या मस्त माल पटाया है तूने तो. इसका बाप क्या करता है.
आबे बाप नही उसका पति. सादी सुदा है वो.
अबे तो पति के होते हुए वो तुझसे चुद रही है. दिन मे तो तू रहता नही है
रात मे उसका पति भी रहता होगा तो चुद्ति कब है.
जब दिल करता है चुद लेती है. उसके पति की ना उसे परवाह है ना मुझे.
यार ये तो बहुत मस्त माल है ऐसा माल तो मैने आज तक नही देखा है ये तो
करीना कपूर की कमर ओर प्रियंका की गांद को भिमात देती है. यार प्लीज़
मुझे भी दिलवा दे इसकी.
चूप साले. तेरे लिए अतैई है क्या. इते दिन हो गये तुझे लड़कियाँ चोद्ते
हुए आज तक भाई की याद आई तुझे. आज कहता है की चुद्व दे. चल भाग यहाँ से.
यार तू कहेगा उसे चुद्व दूँगा तो मेरा काम कर्दे मैं तेरा काम कर दूँगा.
अब तो बेटा तू ज़मीन पर नाक भी रगड़ेगे. पर साले जब मेरे पास छॅबिली है
तो मुझे उन दो चार रुपेये के माल की तरफ देखने की ज़रूरत भी क्या है.
साले मान जा ना.
अबे तू मेरा जुगाड़ भी खराब करेगा.
अरे कुच्छ नही होगा. तो हन तो कर
साले मुझे थोड़ी छोड़ेगा जो मेरी हन का इंतजार कर रहा है. जिसे छोड़ना है
उससे पूच्छ.
आबे ये मुश्किल है पहले अगर मैं अकेला आया होता तो मैं उसे छोड़ लेता पर
अब तो उसे लॅंड मिल रहा है तो वो तय्यार नही होगी. तुझे ही ट्राइ करनी
होगी.
पर देख ले केवल एक बार ही दील्वौनगा.
ओक.

मुझसे हन करवाने के लिए उसने एक बार की खातिर हन तो कर दी पर उसकी आँखों
म सॉफ लिखा था की वो एक बार मे मानने वाला नही है वो ये चाहता है की मैं
एक बार उसे छोड़ने डू फिर तो वो खुद की रह खुद बना ही लेगा. खैर अगर
च्चबिली उससे चूड़ना चाहेगी तो मैं रोकने वाला होता भी कौन हू ओर मेरे
रोके च्चबिली रुकेगी भी नही. पर सबसे बड़ी स्मास्या ये टिकी रसिया को
च्चबिली की दिलाई कैसे जाए.
मैं इसी उधेड़बुन मे था की मैने देखा की रसिया बाहर खड़ा मूट रहा है. आबे
सेयेल ये क्या कर रहा है ये मरवाएगा. ये सोचते हुए मैं उसे रोकने के लिए
बाहर की तरफ भगा. क्यूंकी मुझे पता था की जहाँ वो मूट रहा था वहाँ पर
च्चबिली ने लॉन लगा रखा था वो रोज वो डूब मे घंटो बैठती थी.
मैं जैसे ही बाहर आया तो मैने देखा की च्चबिली तो बाहर ही है ओर साला
रसिया उसकी तरफ मूह करके ही लॅंड बाहर निकले मूट रहा है. उसका लॅंड बाहर
से ही नज़र आ रहा था. मैने सोचा की शायदच्छबिली ने उसे देखा नही है इस
कारण कुच्छ कहा नही है. पर जब मैं बाहर आया तो देखा की च्चबिली तो रसिया
के लॅंड को ही देख रही है. ओर उसकी आँखे सेक्स से भारी हुई थी. वो बड़ी
ही ललचाई नज़रों से रसिया के लॅंड को देख रही थी ओर साला रसिया जान बुझ
कर लॉन मे मूट रहा था अब उसका मूट ख़त्म हो गया था पर अभी भी साला लॅंड
पकड़े खड़ा था. ओर च्चबिली भी उसके लॅंड पर नज़रें गड़ाए खड़ी थी दोनो मे
से किसी को भी इस बात का गुमान नही हुआ की टंकी खाली हो गई है अब
पाइप्लाइन समेत लेनी चाहिए.
मैने बाहर जा कर खांसने की आक्टिंग की तो दोनो अपने अपने को दुरुस्त करने
मे लग गये. मैने रसिया को अंदर बुलाया ओर पूछा क्या प्रोग्रेस है.
एक दम मस्त है भाई. ये तो बड़े आराम से पाट जाएगी. इसने शायद ज़्यादा
लॅंड खाए नही है मेरे लॅंड को बड़ी ललचाई नजरन से देख रही थी.
मैने भी देखा. पर लॅंड को देखना एक बात है पर छुड़वा लेना अलग बात.
तो क्या करें हम
सोचता हू. फिर मैने उसे अपने पास बुलाया ओर कहा तू एक काम कर इसका
हज़्बेंड तो है नही तो हम इसको सेक्स पवर वाली गोली दे देते है फिर ये
चूड़ने के लिए तडपेगी तो पाने आप हमारे पास आएगी.
पर क्या वो हमसे गोली लेगी.
ऑफ कोर्स नोट. नही लेगी पर क्या किसी ओर तरीके से उसे गोली नही दी जा सकती.
"गोली तो मैं खिला दूँगा" मैने कहा "पर सुके बाद का काम तेरे ज़िम्मे है"
बाकी मैं संभाल लूँगा. वो तुझसे तो चुड्ती है ना. तो एक काम करेंगे की जब
वो गोली के असर मे आ कर लॅंड ढूँढती हुई यहाँ वहाँ घमेगी तो तुम उसे पकड़
लेना ओर उसे ओर गरम कर देना.
ओके
मेरा एक पर्सेंट भी मान नही था की मैं रसिया के साथ छबिलि को शेर करू पर
यहाँ दो बातें थी जो मुझे ये सब करने को मजबूर कर रही थी. पहली बात ये की
रसिया मेरा जिगरी दोस्त था ओर आज तक उसने या मैने किसी चीज़ पर हाथ रख
दिया तो दूसरे ने माना नही किया की मैं इस चीज़ को नही दूँगा या शेर नही
करूँगा. हन च्चबिली च्छेज नही थी पर आज रसिया उसे भी शेर करने की ज़िद कर
बैठा था ओर मुझे उसकी ज़िद मन्नानी पद रही थी. दूसरी बात ये की जब रसिया
अपने लॅंड को बाहर निकल कर प्रदर्शनी लगा कर मूत रहा था तो छबिलि उसके
लॅंड को बार बार ललचाई नज़रों से देख रही थी. छॅबिली को इतने सालो से लंड
नही मिला था इस कारण अब वो हर दिखने वाला लंड अपनी चूत मे लेना चाह रही
थी. ओर अगर मैने रसिया को माना कर दिया ओर छॅबिली खुद उसके सामने नंगी
खड़ी हो गई की लो छोड़ दो या रसिया ने उसे फिर से जलवे दिखा कर चोद्ने को
मजबूर कर दिया तो मेरी क्या इमेज रह जाएगी. माशूका भी जाएगी ओर दोस्ती
भी. इससे अच्छा है की माशुका को जाने दू जो की लग रहा था की जाएगी ही. पर
दोस्त पर माशुका को कुर्बान करके दोस्ती तो बचाई जा सकती है.
यही सब सोच कर मैने रसिया को दीपिका की दिलाने का वादा कर लिया था. पर अब
मैं ये सोच रहा था की उसे किस प्रकार चुद्ने के लिए तय्यार किया जाए.
मेरे सामने तो वो सयद ही रसिया से चुड़े ओर मुझे रसिया पर कोई भरोसा नही
था वो उसे बेरहमी से छोड़ सकता था इस कारण मैं चाहता था की जिस टाइम
छबिलि चुदे मैं भी वहाँ पर मोजोद रहू. छबिलि के होश मे रहते हुए ये
मुमकिन नही था.
क्रमशः....................

कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6

--
raj sharma

कुँवारी छबीली -1

कुँवारी छबीली -1

"सुनो भाई, कोई कमरा मिलेगा?"
"वो सामने पूछो !"
मैंने उस हवेली को घूम कर देखा और उसकी ओर बढ़ गया। वहाँ एक लड़की
सलवार-कुर्ते में अपने गीले बालों बिखेरे हुये शायद तुलसी की पूजा कर रही
थी।
मुझे देख कर वो ठिठक गई- कूण चावे, कूण हो?
"जी, कमरा किराये पर चाहिये था।"
"म्हारे पास कोई कमरो नहीं है, आगे जावो।"
"जी, थैन्क्स !"
"रुको, कांई काम करो हो?"
"वो पीछे बड़ा ऑफ़िस है ना, उसी में काम करता हूँ।"
"थारी लुगाई कटे है?"
"ओह, मेरी शादी नहीं हुई है अभी !" मैं समझ गया गया था कि बिना परिवार के
ये मकान नहीं देने वाली।
"कांईं जात हो...?"
मैंने उसे बताया तो वो हंस पड़ी, मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर वो बिना
कुछ कहे भीतर चली गई।
मैं निराश हो कर आगे बढ़ गया।
लाऊड स्पीकर की तेज आवाज, भीड़ भाड़ में, महमानो के बीच में मैं अपने दोस्त
करण को ढूंढ रहा था। सभी अपने कामों में मगन थे। एक तरफ़ खाना चल रहा था।
आज मैंने होटल में खाना नहीं खाया था, करण के यहाँ पर खाना जो था।
"शी ... शी ... ऐ ..."

एक महिला घाघरे चूनर में अपने को घूंघट में छुपाये हुये मुझे हाथ हिला कर
बुला रही थी। मैं असमन्जस में पड़ गया। फिर सोचा कि किसी ओर को बुला रही
होगी।
उसने अपना घूंघट का पल्लू थोड़ा सा ऊपर किया और फिर से मुझे बुलाया।
मैंने इशारे से कहा- क्या मुझे बुला रही है?
"आप अटे कई कर रिया हो?"
"आप मुझे जानती हो?"
"हीः ... कई बाबू जी, मन्ने नहीं पहचानो? अरे मूं तो वई हूँ हवेली वाली,
अरे वो पीपल का पेड़ ..."
"ओह, हाँ ... हा... बड़ी सुन्दर लग रही हो इस कपड़ों में तो..."
"अरे बहू, काई करे है रे, चाल काम कर वटे, गैर मर्दां के साथ वाता करे है।"
"अरे बाप रे ... मेरी सास।" और वो मेरे पास से भाग गई। मैं भोजन आदि से
निवृत हो कर जाने को ही था की दरवाजे पर ही वो फिर मिल गई। मुझे उसने
मेरी बांह पकड़ कर एक तरफ़ खींच लिया।
"अब क्या है?" मैं खीज उठा।
"म्हारे को भूल पड़ गई, म्हारे घर माईने ही कल सवेरे कमरो खाली हो गयो है
... आप सवेरे जरूर पधारना !"
मैंने खुशी के मारे उसका हाथ जोर से दबा दिया।
"शुक्रिया... आपका नाम क्या है?"
"थाने नाम कांई करनो है ... छबीली नाम है म्हारो, ओर थारा?"
"नाम से क्या करना है ... वैसे मेरा नाम छैल बिहारी है !" मैंने उसी की
टोन में कहा।
"ओये होये ... छैलू ... हीः हीः !" हंसते हुये वो आँखों से ओझल हो गई।
मेरी आँखें उसे भीड़ में ढूंढती रह गई।
मैं सवेरे ही छबीली के यहाँ पहुँच गया। मैंने घण्टी बजाई तो एक चटख मटक
लड़की ने दरवाजा खोला। टाईट जींस और टी शर्ट पहने वो लड़की बला की सेक्सी
लग रही थी। खुले बालों की मुझे एक महक सी आई।
"जी वो... मुझे छबीली से मिलना है..."
"माईने पधारो सा..." उसकी मीठी सी मुस्कान से मैं घायल सा हो गया।
"जी वो मुझे कमरा देखना है..."
"थां कि जाने कई आदत है, अतरी बार तो मिल्यो है ... पिछाणे भी को नी...?"
"ओह क्या ? आप ही छबीली हैं...?"
वो जोर से हंस दी। मैं अंसमजंस में बगले झांकने लगा। कमरा बड़ा था, सभी
कुछ अच्छा था... और सबसे अच्छा तो छबीली का साथ था। मैं कमरे से अधिक उसे
देख रहा था।
वो फिर आँखें मटकाते हुये बोली- ओऐ, कमरा देखो कि मन्ने ...?"
फिर खिलखिला कर हंस दी।

मैं उसी शाम को अपने कमरे में सामान वगैरह ले आया। वो मेरा पीछा ही नहीं
छोड़ रही थी। इस बार वो सलवार-कुर्ता पहने हुई थी।
"घर के और सदस्य कहाँ हैं?"
"वो... वो तो राते आवै है... कोई आठ बजे, बाकी तो साथ को नी रेहवै..."
"मतलब...?" "म्हारे इनके हिस्से के पांती आयो है ... सो अठै ही एकलो रहवा करे !"
मैं अपने बिस्तर पर आराम कर ही रहा था कि मुझे छबीली की चीख सुनाई दी।
मैं तेजी से उठ कर वहा पहुँचा। वो पानी से फिसल गई थी और वहीं गिरी पड़ी
थी।
मैंने तुरन्त उसे अपनी बाहों में उठा लिया और उसके बेडरूम में ले आया।
उसके पांव में चोट लगी थी।उसने अपनी खूबसूरत पैरो पर से सलवार ऊपर कर दी।
लगी नहीं थी, बस वहाँ सूजन आ गई थी। मैंने बाम लाकर उसके पैरों पर मलना
आरम्भ कर दिया। मेरे हाथ लगाते ही वो सिहर उठी। मुझे उसकी सिरहन का अहसास
हो गया था। मैंने जान कर के अपना हाथ थोड़ा सा उसकी जांघों की तरफ़ सहला
दिया। उसने जल्दी से सलवार नीचे दी और मुझे निहारने लगी। फिर वो शरमा गई।
"ऐ ... यो काई करो ... मन्ने तो गुदगुदी होवै !" वो शरमा कर उठ गई और
अपना मुख हाथों से ढांप लिया।
मुझे स्वयं ही उसकी इस हरकत पर आनन्द आ गया। एक जवान खूबसूरत लड़की की
जांघों को सहलाना ... हाय, मेरी किस्मत ...।
"छबीली, तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुन्दर हो?"
"छैल जी, यूं तो मती बोलो, मन्ने कुछ कुछ होवै है।"
"सच, आपका बदन कैसा चिकना है ... हाथ लगाने का जी करता है !"
उसकी बड़ी बड़ी आँखें मेरी तरफ़ उठ गई। उनमे अब प्रेम नजर आ रहा था। उसके
हाथ अनायास ही मेरी तरफ़ बढ़ गये।
"मन्ने तो आप कोई जादूगर लगे हो ... फिर से कहो तो..."
"आपका जिस्म जैसे तराशा हुआ है ... कोई कलाकर की कृति हो, ईश्वर ने
तुम्हें लाखो में एक बनाया है !"
"हाय छैलू ! इक दाण फ़ेर कहो, म्हारे सीने में गुदगुदी होवै है।"
वो जैसे मन्त्र मुग्ध सी मेरी तरफ़ झुकने लगी। मैंने उसकी इस कमजोरी का
फ़ायदा उठाया और मैं भी उसके चेहरे की तरफ़ झुक गया। कुछ ही देर में वो
मेरी बाहों में थी। वो मुझे बेतहाशा चूमने लगी थी। उसका इतनी जल्दी मेरी
झोली में गिर जाना मेरी समझ में नहीं आया था।
मैं तुरन्त आगे बढ़ चला... धीरे से उसके स्तनों को थाम लिया। उसने बड़ी बड़ी
आँखों से मुझे देखा और मेरा हाथ अपने सीने से झटक दिया। मुझे मुस्करा कर
देखा और अपने कमरे की ओर भाग गई। उसकी इस अदा पर मेरा दिल जैसे लहूलुहान
हो गया।
उसके पति शाम को मेरे से मिले, फिर स्नान आदि से निवृत हो कर दारू पीने
बैठ गये। लगभग ग्यारह बज रहे थे। मैं अपनी मात्र एक चड्डी में सोने की
तैयारी कर रहा था। तभी दोनों मियां बीवी के झगड़े की आवाजें आने लगी।
मियां बीवी के झगड़े तो एक साधारण सी बात थी सो मैंने बत्ती बंद की और लेट
गया।
अचानक मेरे कमरे की बत्ती जल गई। मैं हड़बड़ा गया... मैं तो मात्र एक छोटी
सी चड्डी में लेटा हुआ था।...

"चलो, आज थन्ने एक बात बताऊँ?" उसके गाल तमतमा रहे थे। वो बुरी तरह से
गुस्से मे लग रही थी.
"अरे मुझे कपड़े तो पहनने दो..." मैने उसे रोके की गरज से कहा क्यूंकी
मुझे उनके खरेलो मामलो मे अपने आप को घसीटे जाना ठीक नही लग रहा था ओर
मैं अपने आप को इस सब से अलग रखना चटा था.
"कपड़ा री ऐसी की तैसी... अटै कूण देखवा वास्ते आ रियो है?" के कहते हुए
उसने मुझे घसीटना सुरू कर दिया. अब मुझे बेमान से ही उसके साथ जाना पड़ा.
उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींच के ले चली। अपना कमरा धड़ाक से खोला, ओर कहा
"यो देखे है काई ! देख्या कि नाहीं... यो हरामी नागो फ़ुगो दारू पी ने
पड़यो है।" उसने अपने पति की तरफ इशारा करते हुए कहा. मैने देखा उसका पति
एकदम नंगा बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसने इतनी दारू पी रखी थी की उसे
बिल्कुल होश नही था की उसने कपड़े पहने है या नही. मैने उसे देखते ही कहा
"अरे ये क्या... चलो बाहर चलो...!"
"अरे आ तो सरी... ये देख... लाण्डो तो देख, भड़वा का उठे ही को नी... भेन
चोद !" वो एकदम गुस्से मे मुझे पूरी तरह से घसीटते हुए कमरे मे ले गई ओर
उसने उसके पास जाकर उसका ढीला ढाला लण्ड रबड़ की तरह पकड़ कर हिला दिया।
फिर उसने उसकी पीठ पर दो तीन घूंसे मारे दिये। जैसे उससे किसी बात का
बदला लेना चाहती है
"साला... हरामी... हीजड़ा...!" लगातार उसकी ज़ुबान से अपने पति के लिए
गालियाँ निकल रही थी.
"बस गाली मत दे... चल आ जा...!" मैने उसे रोकने की गरज से कहा.
"यो हराम जादो, मेरे हागे सोई ही ना सके... बड़ा मरद बने है !" उसने अपने
पति को एक लात ओर जमा दी. ओर फिर वो रोने लगी.
वो धीरे से सुबक उठी और मेरे पैरों के नजदीक रोती हुई बैठ गई। मुझे पता
था कि इसके दिल की भड़ास निकल जायेगी तो यह शांत हो जायेगी। मैं उसे
खींचते हुये बाहर ले आया। उसके मचलने पर मैंने उसे अपनी बाहों में उठा
लिया और बैठक में ले आया। उसने मेरी गले में अपनी बाहें डाल दी और लिपट
सी गई। मेरी तो एक तरह से ऐश हो गई थी इतनी खूबसूरत लड़की मेरी बाहों मे
थी. वो बेचारी तो रो रही थी ओर मैं उसकी चुचियों का अपने सीने पर एहसास
पा कर खुश हो रहा था ओर मेरा लॅंड खड़ा होता जा रहा था.
वो बहुत गुस्से में थी... अपने आपे में नहीं थी।वो मुझ से अलग हुई ओर
उसने अपना कमीज उतार फ़ेंका।
"ये देख छैला, मेरी चूचियाँ देख... कैसी नवी नवेली हैं !" उसने अपनी
चुचियों को अचानक मेरे सामने करते हुए कहा.
आह ! अचानक इस हमले के लिये मैं तैयार नहीं था। उसकी चूचियाँ गोल कटोरी
जैसे सीधे तनी हुई... जिनमें झुकाव जरा भी नहीं था, मेरे मन को बींध गई,
मेरी सांस फ़ूल सी गई। ओर मेरी आँखें वही जा कर अटक गई थी. इतनी खूबसूरत
चुचियाँ मैने पहली बार देखी थी. इनफॅक्ट मैने तो चुचियाँ ही पहली बार
देखी थी. वो भी इतनी खूबसूरत की नज़र हटाए नही हट रही थी. मैने सोचा की
बेटा अगर ऐसे ही देखता रहेगा तो तेरे हाथ से गया कमरा पर क्या करता ना तो
दिल पर ज़ोर चलता है ना लॅंड पर. क्यूंकी अब तो लंड भी दिल का साथ देने
लगा था ओर टन कर खड़ा था.
"और ये देख, साली इस चूत को... किसके किस्मत होगी मेरी ये चूत... प्यासी
की प्यासी... रस भरी... वो भड़वा... भेन चोद... मेरा मरद नहीं चोदेगा तो
और कूण फ़ोड़ेगा इन्ने...?" कहते हुए उसेन अपने घग्रे को उपर कर दिया. मुझे
एक झांट का जंगल नज़र आया. आज तक ना चूत देखी थी ना चुचियाँ. ओर आज
किस्मत देखो देखने को मिली तो भी तो साथ मे.
मेरा दिल जैसे मेरे उछल कर मेरे गले में आ गया। यह क्या हो रहा है मेरे ईश्वर !
फिर अचानक वो जैसे चुप सी हो गई।
"हाय, मैंने ये क्या कर दिया..." जैसे होश में आई हो। अब वो एकदम शर्मा
गई ओर उसने अपनी नज़रें नीचे करली
"नहीं, कोई बात नहीं... मन की आग थी... निकल गई !" मैने उसे दिलासा देने
की गरज से कहा. साथ ही ये भी दर था की अगर नाराज़ हो गई तो साला मेरा ही
कमरा छिनएगा. इस कारण मेरी गांद भी फट रही थी की नाराज़ ना हो जाए.
उसने नजर नीची करके कहा,"अभी जाना नहीं, मैं चाय बना कर लाती हूँ... मेरे
पास कुछ देर बैठना..."
वो चाय बनाने चली गई। मेरी नजरें जैसे ही नीचे गई मैं शरमा गया। मेरा
लण्ड जाने कबसे खड़ा हुआ था। मैंने उसे नीचे दबाने की कोशिश की।


"यो तो यूँ ही रहेगो... जतरा नीचे दबाओगे उतना ऊँचो आवेगो !" उसकी
खिलखिलाहट कमरे में तैर गई।
फिर वो चाय बनाने चली गई। चाय बना कर वो जल्दी ही ले आई। उसने चाय मेरे
हाथ में पकड़ा दी। लण्ड स्वतन्त्र हो कर मेरी चड्डी को फ़ाड़ने के लिये जोर
लगाने लगा। वो मेरे लण्ड की हालत देख कर खिलखिला उठी। मेरी शर्म के मारे
बुरी हालत थी.
मैने घबराते हुए कहा "अरे वो... ओह क्या करूँ?"
उसकी आवाज़ मे वही खनक थी "कुछ नहीं, मरद का लण्ड है, वो तो जोर मारेगा
ही..." वो लगातार मेरे लॅंड को ही घुरे जा रही थी जो मेरी छ्होटी से
चड्डी मे च्छूपने की नाकाम कोशिश कर रहा था. कभी मैं उस पर एक हाथ रखता
तो कभी दूसरा क्यूंकी
मैं बुरी तरह उसकी बातों से झेंप गया।
"ये देख, मैं भी मर्दानी हूँ... ये मेरा सीना देख... और नीचे मेरी ये..."
उसने चादर उतारते हुये कहा।
मैंने उसके मुख पर हाथ रख दिया।मुझे उसकी बातों से शर्म महसूस हो रही थी
जबकि वो पता नही आज क्यू बेशर्म हुई जा रही ति चाय पीकर वो मेरे और करीब
आ गई।
"छैलू, मुझे एक बार बस, मर्दों वाला आनन्द दे दो..." उसने कातर शब्द मेरे
दिल को चीर गये। मुझ पर हमले पर हमले हो रहे थे। भला कैसे सहता ये सब...।
यह तो चुदाई की बात करने लगी थी।
"पर आपका पति...?" मैने अपने दिल की शंका जाहिर की छोड़ना तो मैं भी
चाहता था उस कंटीली नार को. उसके अंग देख कर मेरा लॅंड तो जैसे आज चड्डी
फाड़ने को ही बेताब नज़र आ रहा था.
"बस... उस भड़वे ने सूया ही रेवण दो..." फिर जैसे चेहरे से तनाव हट गया।
कुछ ही पलों में वो मुस्करा रही थी। मुझे उसने धक्का देकर बिस्तर पर चित
गिरा दिया और मेरी चड्डी खींच कर उतारने लगी। जैसे ही मेरी चड्डी मेरे
लॅंड से अलग हुई वो एकदम फुफ्कार कर उसके मूह के पास आ गया.
"छैला, बस ये मस्त मुस्टण्डा मन्ने एक दाण... बस एक बार..." उसने मुझसे
जैसे रिक्वेस्ट की. हालत मेरी ऐसी हो रही थी की अगर इस वक़्त ओ माना भी
करती तो सयद मैं तब भी उसकी छूट ज़रूर मरता चाहे इसके लिए मुझे उसका रेप
भी क्यू ना करना पड़ता.
मैं कुछ कहता उसके पहले वो उछल कर मेरे ऊपर चढ़ गई। उसने मेरा मोटा लण्ड
पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने लंदपहली बार पकड़ा
हो वो ललचाई नज़रों से मेरे लॅंड को देख रही थी. सही भी था उसके पति का
छूटा सा मुरझाया हुआ सा लॅंड मैं देख ही चुका था. उस लॅंड से तो ये क्या
चुदी होगी.
"हाय, म्हारी बाई रे... यो तो मन्ने मस्त मारी देगो रे... " उसे मसल कर
उसने मेरे लण्ड की खूबसूरती को निहारा और अपनी चूत की दरार पर घिसने लगी।
उसकी छूट इस समय तक एकदम गीली हो चुकी थी जब उसने मेरे लॅंड को अपनी छूट
की दरार पर रगड़ा तो मेरा लॅंड एकदम से उसकी छूट के रस से सराबोर हो गया.
मेरे जवान तन में वासना सुलग उठी। मेरे जिस्म में ताकत सी भरने लगी। लण्ड
बेहद कठोर हो गया।

वो लण्ड को अपनी चूत खोल कर उसमें घुसाने लगी। पर लॅंड उसकी छूट मे जा
नही पा रहा था. वो बार बार अंदर लेने की कोशिश कर रही थी पर सयद लॅंड
बड़ा था या छूट छ्होटी थी दोनो को ही समझ नही आ रहा था. उसने इस बार लॅंड
पर खूब दबाव दिया तो धीरे से लण्ड चूत के मुख में अन्दर चला आया। मुझे एक
बहुत ही मीठा सा अहसास हुआ। उसके मुख से भी एक वासना भरी आह निकल गई।
मैने अब लॅंड को ज़ोर दे कर उसकी छूट मे लण्ड को और घुसा डाला। मुझसे रहा
नहीं जा रहा था और मैंने नीचे से चूत में लण्ड जोर से उछालने लगा पर पूरा
लॅंड अंदर नही जा रहा था ओर उसकी लॅंड अंदर लेने मे ही जान निकली जा रही
थी तो मैने पलटी मारी ओर उसके उपर आ गया ओर क जोरदार झटका मारा इसके साथ
ही लण्ड पूरी गहराई में चूत को चीरता हुआ घुस गया।
छबीली के मुख से एक जोर की चीख निकल गई, उसके आँखों से आंशु निकालने लगे
पर साथ ही मैं भी तड़प सा गया। मेरे लण्ड में एक तीखी जलन हुई जो मुझसे
सहन नही हो रही थी ओर मुझे समझ भी नही आ रहा था की ये जलन है किस चीज़ की
मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिये। मैंने दुबारा जोश में एक
धक्का और दे दिया।
इस बार वो फिर चीखी। मुझे भी जोर की जलन हुई।
"ओह यह क्या बला है?"
उससे दर्द सहन नही हो रहा था तो वो बोली "अब नहीं... छैला... बस करो !"
मेरा लण्ड मैने बाहर निकाल लिया। उसने अपनी चूत ऊपर उठाई तो खून के कतरे
टपकने लगे। जिसे देख कर वो ओर भी घबरा गई. समझ मे मेरी भी कुच्छ नही आ
रहा था. उससे ज़्यादा तो मैं घबरा रह था.
"अरे ये तो सुपारे के साथ की चाम फ़ट गई है... देखो खून निकल रहा है।" वो
लण्ड को निहारते हुये बोली। (अरे ये तो लॅंड के सुपरे दे साथ लगी चाँदी
फट गई है)
"और छबीली, तेरी चूत में से ये खून...?"
"वो तो पहली बार चुदी लगाई है ना...जाणे झिल्ली फ़ट गई है।" उसकी आँखों मे
खुशी के अंशु थे. (वो पहली बार चुदाई की है ना इस कारण चूत की झिल्ली फट
गई है)
"तो क्या इतने महीनों तक...?" मुझे अचंभा हुआ.
"म्हारी जलन यूँ ही तो नहीं थी ना... मन्ने तो हाथ जोड़ ने बस यो ही तो
मांगा था।" (हमारी जलन यो ही नही थी ना हमने तो हाथ जोड़ कर बस यही तो
माँगा था)

"मेरी छबीली, आह्ह... " मैंने उसे फिर से दबा लिया क्यूंकी अब मुझसे रहा
नही जा रहा था और उस पर चढ़ बैठा। घायल लण्ड को मैंने जोश में एक बार
छबीली की चूत में उतार दिया। जैसे ही लॅंड छूट मे उतरा मेरे मूह से एक
बार फिर से सिषकार निकल गई वहीं च्चबिली तो आहे भरने लगी ओर मिन्नटे करने
लगी की "होल होल घालना मेरी छूट छ्होटी से है. आभार पहली बार चूदरी है.
तोड़ो ख़याल रखज्यो" पर मुझे ये सब बाते सुनाई ही नही दे रही थी अब मुझ
पर तो उसकी जवानी भोगने का भूत सवार था. मैं आज अपने कुंवारे पन से आज़ाद
हो जाना चाहता था. साथ ही मुझे इस बात की खुशी थी की मुझे पहली बार मे ही
किस्मत से कुँवारी चूत मिल गई जिसकी छबिलि से मैने बिल्कुल आशा नही की थी
क्यूंकी वो शादी शुदा थी ओर दूसरे जिस तरह से वो कल से मुझे देख देख कर
मुश्कूराती थी मुझे लगता था की वो चलीउ किस्म की है पर वो तो बिचारी
किस्मत की मारी निकली. जवानी के जोश मे मैने एक जोरदार झटका मारा. वो एक
बार फिर बिलख उठी। मुझे भी जलन हुई। पर दोनों ने उसे स्वीकार किया और
सारे दर्द को झेल लिया। कुछ ही देर के बाद बस सुख ही सुख ही था। अब दोनो
एक दूसरे का साथ दे रहे थे जब मैं अपने लॅंड से झटका मरने लगता तो वो भी
नीचे से अपनी गांद उछाल उछाल कर चुदाई का अनद ले रही थी. " हन ओर माई डाल
दयो छैल भंवर मेरी भोसड़ी ने पूरी चोद दयो. आज मेरी मनकि पूरी कर दयो. ओ
हिंजाडो तो मारी भोस ने चोद नही सके है ओर चोदो भंवर जी ओर चोदो"
पहली बार की चुदाई में दो अनाड़ी साथ थे। हमें जिस तरह से जिस पोज में
आनन्द आया, चुदाई करने लगे। मस्ती भरी सिसकारियाँ रात भर गूंजती रही।
जैसे ये छैल और छबीली की सुहागरात थी। हम रुक रुक कर सुबह तक चुदाई करते
रहे। जवान जिस्म थे, थकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। सुबह के चार बजने को
थे।
मेरी तो चुदाई करते करते जान ही निकल गई थी। वो चुद कर जाने कब सो गई थी।
मैंने उसकी साफ़ सफ़ाई करके कपड़े पहना दिये थे। धीरे से बैठक से निकल कर
अपने कमरे में आ गया था। मैंने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और कटे वृक्ष
की तरह से बिस्तर पर गिर पड़ा।
मुझे जाने कब गहरी नींद आ गई। जब आँख खुली तो दिन के बारह बज रहे थे।
उठने को मन नहीं कर रहा था। लण्ड पर सूजन आ गई थी। मैंने दरवाजा खोला और
फिर से सो गया। दोपहर को चार बजे नींद खुली तो मैं दैनिक क्रिया से निपट
कर नहा धोकर बैठक में आ गया। वहाँ कुर्सी पर बैठ कर रात के बारे में
सोचने लगा। लगा कि जैसे ये सब सपना था।
तभी छबीली चाय लेकर आ गई। वो भी बहुत धीरे चल रही थी। तबियत से रात को
चुद गई थी ना। फिर उसकी चूत की सील भी तो टूटी थी। वो अपनी टांगें चौड़ी
करके चल रही थी।

"दोनों की हालत ही एक जैसी है..." छबीली भी अपना मुख छिपा कर हंसने लगी।
"हाय राम जी, कांई मस्त मजो आ गयो राते..." उसने अपनी चूत पर हाथ फ़ेरते हुये कहा।
"तो छबीली... अब चार पांच दिन आराम करो... दोनों के दरवाजे तो खुल गये
है, फिर जोरदार चुदाई करेंगे।"
"चलो अब भोजन कर लो... म्हारे तो यो देखो, कैसी सूजन आ गई है, बट एन्जॉयड
वेरी मच !"
"अरे तुम तो अन्ग्रेजी जानती हो?"
"माय डियर आय एम ए पोस्ट ग्रेजुएट इन बोटेनी !" वो इतरा कर बोली।
"ओये होये सदके जावां, म्हारी समझ में तो तू तो निरी अनपढ़ छोरी है।"
"अब तुम लग रहे हो वैसे ही वैसे जैसे देहात के !"
"ये देख म्हारी हालत भी थारे जैसी ही लागे... ये लण्ड तो देख !" मेरा
सूजन से भरा लण्ड और भी मोटा हो गया था। उसने तिरछी निगाह से देखा और मुख
दबा कर हंस पड़ी।
"यो म्हारो भोसो भी देख, कई हाल है... देख तो सरी..." उसने अपना पेटीकोट
ऊंचा कर लिया। पूरी में ललाई आ गई थी, सूजन सी लगती थी। मैंने धीरे से
नीचे बैठ कर उसे चूम लिया और पेटिकोट नीचे कर दिया।
चार पांच दिन तक हम दोनों बस अंगों से ही खेलते रहे। वो मेरे लॅंड को इधर
उधर से निकलती हुई पकड़ कर दबा देती थी ओर मैं भी उसकी छूट को सहला देता
था जब हम बहुत उत्तेजित हो जाते थे तो मेरा लण्ड कोमलता से सहला कर मेरा
वीर्यपात करवा देती थी। मैं भी उसके दाने को सहला कर, हिला कर उसका पानी
निकाल देता था। मुझे लगता था वो मुझसे प्यार करने लगी है। मेरा मन भी
छबीली के बिना नहीं लगता था।
मैं सोच रहा था कि छबीली का पति यूँ तो करोड़पति था पर एक असफ़ल पति था।
पत्नी के साथ सुहागरात भी नहीं मना पाया था। उसे डॉक्टरी इलाज की
आवश्यकता थी या शायद वो नपुंसक ही था। पर यह बात उसके पति से कौन पूछे?
बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे?
तो फिर वो ठीक कैसे होगा? खैर मुझे इससे क्या मुझे तो इसी कारण से तो चूत
छोड़ने को मिल रही थी.
मेरा दोस्त करण चार दिन हो गये पता नही कहाँ गायब हो गया था. साला एक
नंबर का रसिया था मैने तो उसका नाम ही रसिया रख छोडा था पता नही कहाँ
कहाँ मूह मारता फिरता था. जब भी कोई लड़की दिख जाती थी तो उसके पीछे हो
लेता था ओर कई बार तो साले की किस्मत इतनी तेज निकलती थी की पूछो मत.
साले को चूत मिल भी जाती थी ओर कई आंटी तो उसे अपने घर ले जाती थी
चुड़वाने ओर साला वहाँ ३-४ दिन रुक कर चुदाई करके ही आता था.
मैं इस मकान मे रसिया के साथ ही रहने वाला था पर अब मेरा दिल डॉल रहा था
क्यूंकी इस बार मेरी सेट्टिंग बैठ गई थी ओर मुझे एक मस्त कुँवारी चूत मिल
गई थी.
क्रमशः....................
कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6

--
raj sharma

"माँ,मुझे शर्म आएगी."

"माँ,मुझे शर्म आएगी."

दोस्तों मैं उस वक़्त की कहानी से अपने ब्लॉग की शुरुआत कर रही हूँ जब
सर्वप्रथम चुदाई से मैं परिचित हुई थी.मेरे घर में मेरी माँ,मुझसे दो साल
छोटी एक बहन और मैं हूँ. मेरे पिताजी की मृत्यु लगभग १५ वर्ष पूर्व हो
गयी थी.पिताजी की मृत्यु हो जाने की वजह से घर चलाने के मामले में यही
फर्क आया कि माँ को पेंसन मिलने लगी जिससे किसी तरह खर्च चल जाता
था.पिताजी कि मृत्यु के दो साल बाद की बात है मैं और मेरी बहन एक ही
चारपाई पर सोये थे. उसी कमरे में माँ भी सोती थी लेकिन अलग बिस्तर पर.रात
में करीब १२ बजे मेरी नींद अचानक खुल गयी मैंने कमरे में कुछ हलचल महसूस
क़ी.हालांकि कमरे में अँधेरा था लेकिन मैं उसी अँधेरे में देखने क़ी
कोशिश कर रही थी. मुझे समझ में आया कि माँ के बिस्तर पर माँ के अलावा कोई
और भी है.कौन हो सकता है? मेरे मन में विचार आने लगा.मैं बिना आवाज़ किये
उठकर बैठ गयी और उत्सुकता से देखने लगी.उसके बाद जो मुझे दिखाई दिया उसको
देखकर मै चकित हो गयी.मुझे माँ की गांड और चियरी हुई चुत में कुछ घुसता
और निकलता हुआ दिखा.मैं उस वक़्त बहुत छोटी थी मुझे इतना ही मालुम था कि
लड़कियों की मूतने वाली छेद में लड़के अपना मूतने वाला डंडा डालते हैं तो
बहुत अच्छा लगता है.आज मैं उस दृश्य को अपनी आँखों से साक्षात देख रही थी
तो उत्तेजना स्वाभाविक बात थी. मेरी छोटी बहन मेरे साथ सोई थी मैंने उसे
डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा और खुद बा खुद मेरी अंगुलियाँ मेरी गीली हो
चुकी चुत में सरकने लगीं.उधर जितनी तेज़ी से माँ की चुत में लंड जा रहा था
उतनी ही तेज़ी से मेरी अंगुलियाँ भी मेरी चुत को चोद रही थीं. कुछ देर बाद
मुझे चरम आनंद की प्राप्ति हुई और मुझे नींद आ गयी.

अगले कुछ दिनों तक एकाध बार छोड़ कर मैं हर रात को माँ की चुदाई का
इंतज़ार करने लगी और चुदाई की स्वक्रिया संपन्न करने लगी.अब अँगुलियों से
मेरा मन भर गया था मेरी चुत को अब लंड की सख्त आवश्यकता महसूस होने
लगी.लेकिन कोई चारा नज़र नहीं आ रहा था.
संयोग से एक रात को माँ को चुदवाते हुए देखकर मैं अपनी चुत में
अंगुली कर रही थी कि मेरे मुंह से सीत्कार निकल गया जिसको माँ ने सुन
लिया.मैं जान नहीं पाई कि क्या हुआ लेकिन अगले दिन माँ का व्यवहार कुछ
बदला बदला सा था.मुझसे रहा नहीं गया मैंने माँ से पूछा,"क्या बात है माँ
आज बहुत उदास ho ?"माँ ने कहा,"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है." कुछ देर
के बाद माँ ने मुझे अकेले में बुलाया और बोलीं,"कल रात......" इतना
सुनते ही मेरे कान खड़े ho गए.मेरा चेहरा उतर गया .तब माँ ने कहा,"देखो
बेटी मेरी उम्र इस वक़्त ४० साल है और तुम जानती ho कि तुम्हारे
पिताजी को मरे हुए दो साल से ऊपर ho गया..." और माँ का गला भर आया,आँखों
से आंसू छलक पड़े.मैंने माँ को दिलासा दिया और कहा कोई बात नहीं है
माँ.मेरी इस बात से उनका दिल कुछ हल्का हुआ औरवो बोलीं,"बेटी तुम नाराज़
नहीं ho मुझसे."
मैंने कहा,"नहीं माँ इसमें नाराज़ होने वाली कौन सी बात है.ऐसा तो सबके
साथ होता होगा.?"
माँ के चहरे पर कुछ मुस्कान आई.मैं उस वक़्त कुछ और नहीं बोली.उस दिन
के बाद मैं तीन रातों तक माँ के चुदाने का इंतज़ार करती रही लेकिन उनकी
चुदाई नहीं हुई.अब मैं माँ की हमराज़ ho ही गयी थी.मैंने माँ से
पूछा,"क्यों माँ, आजकल अंकल रात को नहीं आ रहे हैं, क्यों ?"
माँ ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा,"तुमको क्या मतलब है इससे? "
मैं भी अब जवान ho रही थी और कई दिनों तक चुदाई का लाइव सीन देख चुकी
थी.मेरी चुत को लंड की ज़रूरत सताने लगी थी ऊपर से माँ की हमराज़ भी ho गई
थी जिसका नतीजा ये हुआ कि मैंने बे अदबी के साथ माँ से कह दिया,"माँ मुझे
भी वही चाहिए जो तुम रोजाना रात को अपनी चुत में डलवाती ho" माँ तो
बिलकुल सन्न रह गईं.उन्हें मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी.
माँ मजबूर ho गयी थी.उसने कहा,"तुम्हारे चुत में भी लंड पेलवा दूंगी
लेकिन ध्यान रहे तुम्हारी छोटी बहन को ये सब बातें मालूम नहीं होनी
चाहिए." मैंने ख़ुशी से उछलते हुए कहा,ओ के माँ ! तुम कितनी अच्छी ho."


दोस्तों! जब मेरी मम्मी ने मुझसे कहा की वे मेरी चुत में लंड पेलवा
देंगी तो मैं बहुत खुश हुई. मैं इस बात पर बहुत आह्लादित हुई कि मैंने
मम्मी को मजबूर कर दिया था.उसी दिन जब मैं नहाने जा रही थी तो मम्मी
बाथरूम में आ गयीं और दरवाजा बंद कर लिया और बोली,"अपने कपड़े उतारो."
मैंने मम्मी से कहा ,"माँ,मुझे शर्म आएगी."
मम्मी ने मुझे डांटते हुए कहा,"छिनाल कहीं की,चुत और लंड का खेल देखकर
पेलवाने की तुम्हारी हवस जाग उठी लेकिन यह नहीं जानती हो कि मर्द को
क्या पसंद आता है.? मर्द को चिकनी चुत चाहिए. देखूं तुम्हारी झाटें साफ़
हैं कि नहीं?"
इसी के साथ मम्मी ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और पूरी तरह नंगी हो
गईं. उनकी चुत के बाल एकदम साफ़ थे. क्या शानदार चुत थी मम्मी की! मुझे
यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं इसी चुत के रस्ते बाहर निकली हूँ.मैं भी
नंगी हो गयी . माँ ने मेरी चुत को सहलाया और बोली,"आज तुम्हारे अंकल
इसमें अपना लंड पेलकर बहुत खुश होंगे.एक बात बता दूं. उन्होंने मुझसे एक
बार कहा था कि नेहा (मेरी मम्मी का नाम नेहा है),एकाध नए माल का इंतज़ाम
करो , पैसों की फिक्र मत करना.माँ ने मुझे रगड़ रगड़ कर अच्छी तरह नहलाया
.मेरी चुत के बाल साफ़ किये और तब बोलीं,"अब तुम्हारी चुत लंड लेने के
लिए एकदम तैयार है."
शाम को अंकल आये तो मैं उनको निहारती रह गयी. क्या बलिष्ठ गठा हुआ बदन
पाया था अंकल ने ! हम लोग खाना खाकर सोने की तैयारी करने लगे. मेरी छोटी
बहन जल्दी सो गई. उसके बाद हम तीन लोग एक ही बिस्तर पर आ गए.माँ ने
कहा,"क्यों जी,आप बहुत दिनों से किसी नए माल के बारे में कह रहे थे. आज
मैं अपनी बिटिया को आपके हवाले कर रही हूँ लेकिन दो बातों का ध्यान
रखियेगा.पहली बात ये कि बेचारी की चुत एकदम कोरी है बहुत आराम से
पेलियेगा.दूसरी बात ये कि हम दोनों माँ बेटी को कोई अच्छा ईनाम
दीजियेगा."
अंकल बोले,"नेहा, तुम भी तो साथ ही हो जब मैं पेलूँगा तो तुम रहोगी ही.
रही ईनाम की बात तो तुम्ही बता दो क्या ईनाम चाहिए?"
माँ ने कहा,"मुझे एक हार चाहिए."
मैं बोली," मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए.बाद में बताउंगी."
इस दौरान मम्मी ने मेरे कपड़े उतार दिए थे.मेरी बुर को सहलाकर अंकल को
दिखाकर बोली,"देखो जी कितनी चिकनी चुत है मेरी रानी बिटिया की! "
मैंने अंकल के पैजामे का नाड़ा खोलते हुए कहा,"आपका लंड भी कोई कम नहीं
है इस उम्र में भी."
माँ ने भी अपने सारे कपडे उतार दिए.अब हम तीनों मादरजाद नंगे थे. अंकल
मेरे होटों को चूसते हुए एक हाथ से मेरी चुत को सहला रहे थे ,तथा दूसरे
हाथ से मम्मी की गांड सहला रहे थे.मैं तो गरम होने लगी.लेकिन मम्मी अभी
गरम नहीं हुई थी.मम्मी ने मुझसे पूछा,"क्यों बेटी,लंड चूसोगी?" मैंने
कहा,"आप लोग जैसा आदेश करें.मैं तो अनाड़ी हूँ.मुझे आप लोगों के मार्ग
निर्देशन में ही पेलवाना है." मम्मी बोली,"तब ठीक है,मैं जैसा कहती हूँ
वैसा करो.हम तीनो ऐसी पोजीशन में हो गए कि मैं उनका लंड चूस रही थी,मम्मी
मेरी चुत चाट रही थी और अंकल मम्मी की चुत चाट रहे थे.अर्थात तीनो लोगों
ने एक सर्किल बना रखा था.मैं तो मम्मी द्वारा चुत की चटाई से ही एक बार
झड़ गई.थोड़ी देर बाद मैंने मम्मी से कहा,"माँ,मेरी बुर में जल्दी लंड
डलवा दो नहीं तो मैं पागल हो जाउंगी." माँ ने कहा,"अच्छा,अपनी टांगें
फैलाकर पीठ के बल लेट जाओ. मैं वैसलीन की शीशी लाती हूँ." मम्मी ने मेरी
चुत के अन्दर वैसलीन लगा दिया और अंकल से बोली,"मेरी रानी बिटिया की
कुंवारी चुत में लंड का प्रथम प्रवेश करवाइए." और मम्मी ने अंकल के
सुपाड़े पर भी वैसलीन लगा दिया. अंकल ने मेरी टांगों को फैलाकर लंड को
मेरी प्यासी चुत के मुहाने पर रखा और मेरी मम्मी ने अंकल के पीछे से मेरी
चुत को फैला रखा था.अंकल ने धक्का लगाया लेकिन निशाना चूक गया.मेरी चुत
तड़प रही थी कि जल्दी से उसमें लंड घुसे. मैं लगभग रोते हुए
बोली,"माँ!पेलवा दो न, क्यों देरी हो रही है?" माँ ने कहा,"इस बार घुस
जायेगा बेटी,घबराओ मत,मैं भी तो लगी हूँ इसी कोशिश में.पेलिए जी मेरी
बेटी को,बेचारी तड़प रही है."और जब इस बार अंकल ने अपना सुपाड़ा घुसा
दिया तो मुझे लगा कि मेरी जान निकल जाएगी,लेकिन मैंने अपने दांत बैठा लिए
थे.मम्मी मेरी चुत को पीछे से सहला रही थी ताकि दर्द न हो. अंकल ने थोडा
और घुसाया तो मुझे लगा कि अब पूरा हो गया.लेकिन जब मैंने अंकल से कहा कि
अब धक्का लगाइए तो उनके बोलने से पहले मम्मी ने बाहर निकले हुए लंड को
नापकर कहा ,"बस बेटी ४ इंच लंड अभी बाहर है ३ इंच तो तुमने निगल लिया
है." यह सुनकर मेरी तो हालत खराब हो गयी.खैर अंकल ने थोडा और जोर लगाया
तो दो बार में पूरा लंड जड़ तक घुस गया. अंकल ने स्पीड तेज़ की तो धीरे
धीरे मुझे मज़ा आने लगा.मैं आह्ह्ह्ह ऊह..ह ह ह ह ह पेल दो राजा फाड़ दो
मेरी बुर को ......उफ़.थोड़ी देर के बाद फच फच की आवाज़ आने लगी.मुझे
बहुत अच्छा लग रहा था. अंकल ने मेरी चूचियों के निप्पल को दबा दबा कर लाल
कर दिया था.उधर मम्मी मेरी चुत को सहला रही थी.बीच बीच में वह मेरी चुत
और उसमें फंसे हुए लंड को चाटने भी लगती थी.कुछ देर के बाद मुझे ऐसा लगा
कि मैं आसमान में उड़ रही हूँ.मैंने अंकल को खूब जोर से भींच लिया और
अपनी गांड इस क़दर उचकाने लगी कि लंड खूब गहराई तक जाय.अब मेरा काम तमाम
होने वाला था.मैं बडबडाने लगी,"अह ..मेरे राजा उन्ह...आह औच..ओह.मैं आ
गयी आह.ह ह हह ओह..ओहोहोह .....अहः अह अह अह अह ..आह आह आह ऊह ओह्ह
........और मेरी चुत ने पानी छोड़ दिया. लेकिन अंकल रुकने का नाम नहीं ले
रहे थे.मम्मी ने मुझसे पूछा,"क्यों बेटी मज़ा आया? कहो तो मैं भी चोदवा
लूं.तुम्हे चुदवाते देखकर मेरी बुर भी पनिया गयी है.अंकल ने अपना ७ इंच
का लपलपाता हुआ लंड बहार निकाल लिया.मम्मी को इतना जोश चढ़ चुका था कि
अंकल ज्यों ही पीठ के बल लेटे मम्मी उनके खड़े लंड को अपनी चुत में फंसा
दिया और धक्का मारने लगी.मैं मम्मी के पीछे जाकर उनकी चियरी हुई चुत
में अंकल के फंसे हुए लंड को देखने लगी.क्या गज़ब
का नजारा था.मैं बुर लंड के संधिस्थल को चाटने लगी.मेरी बुर फिर से
पनियाने लगी थी. मम्मी ने उछल उछल कर खूब चुदवाया.अब मम्मी पीठ के बल
लेट गयीं और अंकल ने सामने से अपना लंड घुसा दिया और जोर जोर से चोदने
लगे.थोड़ी देर बाद उनका पानी निकल गया.उस रात को अंकल ने हम माँ बेटी को
तीन बार चोदा. रात के दो बजे हमलोग सो गए.

आपके लिए कसी हुई चुत के साथ

उम्म्म्मम्मु
आह ......

--
raj sharma

Tuesday, January 29, 2013

सेक्सी कहानियाँ मैं, लीना और चाचा-चाची--6

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मैं, लीना और चाचा-चाची--6

gataank se aage............

मैंने पक्क से अपना खड़ा लंड बाहर खींच लिया. चाचाजी ने मुझको नीचे लिटाया
और लंड को चाटने लगे. "वाह देख कैसा रसीला लग रहा है, ला अब दे दे अपनी
मलाई मुझको"

चाचाजी ने सुपाड़ा मुंह में ले लिया और चूसने लगे. "अह चाचाजी .... चूसिये
चाचाजी .... ओह ओह " अब चाचाजी लंड को मुठ्ठी में पकड़कर मेरी मुठ्ठ मार
रहे थे, साथ ही सुपाड़ा चूसते जाते.

मैं झड़ गया. चाचाजी ने मेरा पूरा वार्य जीभ पर भर लिया और फ़िर मुंह बंद
करके चख चख कर निगल गये. उनका लंड अब तक फिर से खड़ा हो गया था.

चाचाजी के साथ मेरी चुदाई घंटा भर और चली. इस बार वे घंटे भर तक मेरी
मारते रहे. मन भर के हर आसन में उन्होंने मेरी मारी. आधे घंटे तो मुझे
दीवाल से सटा कर खड़े खड़े मारते रहे, बहुत मूड में थे. मुझसे गांड फ़िर से
नहीं मरायी उन्होंने, मेरा लंड चूस डाला, मेरे वीर्य के लट्टू हो गये थे.

उसके बाद हम जो सोये वो सीधे रात को उठे. रात को लीनाने सब के लिये बदाम
का हलुआ बनाया. खास कर चाचाजी के लिये "चाचाजी, खाओ और लंड खड़ा करो फ़िर
से. आज रात भर आप से चुदवाऊंगी"

चाचाजी बोले "लीना रानी, आज रात बस मैं और तुम. ऐसा चोदूंगा कि कल उठ नहीं पाओगी"

"चाचाजी, वो शर्त याद है ना? मैं कहूंगी वो करना पड़ेगा, आखिर आज आप को
कोरी कोरी गांड दिलवायी मैंने आप के भतीजे की"

"हां हां बहू रानी, तेरे जैसे सुंदर छिनाल चुदैल रंडी की बात नहीं
मानूंगा तो किसे की मानूंगा"

हम सब नहाने गये. लीना ने नहाते वक्त उसने मेरी गांड में बर्फ़ भर दिया और
क्रीम लगा दी "इससे राहत मिलेगी, गांड भी फ़िर से टाइट हो जायेगी. अनिल
राजा, बहुत मजा आया मुझको, तुम्हारी गांड इतनी अच्छी है कि मैं कब से सोच
रही थी कि इसको चोदने लायक लंड मिलना चाहिये वो मिल गया. तुमको मजा आया?"

"हां रानी, बहुत मजा आया, सब तुम्हारी वजह से, तुम न कहतीं तो शायद मैं
खुद नहीं मरवाता. चाचाजी का लंड वाकई मतवाला है, मैं भी आशिक हो गया
उनका. चाची के साथ कैसी रही तुम्हारी चुदाई?"

"एकदम मस्त, सच में बुर है या शहद का घड़ा, घंटे भर में कटोरी भर रस
पिलाया मुझको चाची ने. और सुनो, मेरी चूंची से चुदवाया उहोंने" लीना शोखी
से नोली.

"क्या बात करती हो?"

"हां, मेरी चूंची को अपने भोसड़े में ले लिया, इतना बड़ा छेद है उनका, आधी
चूंची अंदर ले ली, बड़ी रसिया हैं चाची. आज रात को तुम मजा ले लेना, कल तो
वे जा रहे हैं"

"तुम रात भर सच में चुदवाओगी चाचाजी से?" मैंने पूछा तो बोली "और क्या,
और तरसा तरसा कर चुदवाऊंगी, झड़ जाते हैं तो फिर आधा घंटा लगता है लंड
उठने में. मुझे तो हर पल चुदना है, देखो आज रात क्या दुर्गत करती हूं,
झड़ने नहीं दूंगी उस चोदू आदमी को, तरसा तरसा कर चुदवाऊंगी. तुम्हारे साथ
काफ़ी झड़ चुके दोपहर को, अब रात में हिसाब लूंगी"

उस रात मैंने चाची के साथ काफ़ी मजे किये. अधिकतर उनकी चूत चूसी, क्योंकि
वाकई उनकी बुर के पाने का स्वाद लाजवाब है. गांड भी मारी पर सिर्फ़ एक
बार. दोपहर को चाचाजी के साथ की चुदाई में लंड दो बार झड़ चुका था.

लीना ने शायद चाचा जी को इतना निचोड़ा कि सुबह उनसे उठा भी नहीं जा रहा
था. बड़ी मुश्किल से उठकर तयार हुए. ट्रेन से जाते वक्त लीना को खूब
आशिर्वाद दे कर गये. लीना ने जाते वक्त उनकी चेन लौटा कर कहा "चाचाजी, ये
लीजिये, मैंने तो मजाक में रख ली थी"

चाचाजी ने वापस लीना को दे दी "पर मैंने सच में दी थी बहू. अब रख ले और
तुम दोनों अब हमारे यहां आना, अब हम साल भर को बेटी के यहां जा रहे हैं
अमेरिका, वापस आयेंगे तब बेटे, तुम दोनों आना हमारे यहां. मजा करेंगे, अब
तो तुम दोनों के बिना हमको नहीं सुहायेगा. और बेटी तेरा वो अमरित जो तूने
कल पिलाया, एकदम मजा आ गया"

चाची भी बोलीं "ये बहू तो एकदम रति देवी है बेटे, तुझे भी बहुत सुख देगी
और हम को भी"

ट्रेन जाने के बाद मैंने पूछा "चाचाजी से चुदवाया रात भर या उनको बुर
चुसवायी जो अमरित की बात कर रहे थे. मैं तो सोच रहा था कि तू उनसे
चुदवायेगी"

"और क्या? पहले एक घंटा चुसवायी, वो ही जिद कर रहे थे कि चखने दे बेटी
तेरी गोरी गोरी बुर का स्वाद, फ़िर चुदवाया. पर वो उस अमरित की बात नहीं
कर रहे थे"

"तो?" मैंने पूछा.

"मैंने उनको अपना मूत पिलाया" लीना मेरे कान में बोली. मैं उसकी ओर देखने लगा.

"पहले खूब चूत चुसवायी और उनके लंड से खेलती रही, पर चोदने नहीं दिया. जब
रिरियाने लगे तो बोली कि मेरा मूत पियो तो चुदवाऊंगी." कहकर लीना बड़ी
शोखी से मेरी ओर देखने लगी.

मैं बोला "कैसी चालू चीज है तू लीना! चाचाजी को ऐसा बोली? तुम क्या करोगी
चुदाई की हवस में, कुछ नहीं कहा जाता. क्या बोले वो?"

"वो एकदम से राजी हो गये. मैंने तो मस्ती में कहा था कि देखें कितने फ़िदा
हैं मुझपे पर जब उन्होंने तुरंत हां कह दी तो मैं बाथरूम में ले गयी. दो
घूंट पिला कर मैं तो रुक गयी, पर उनको इतना अच्छा लगा कि पूरा पी गये.
उसके बाद रात भर में चार बार पिया, तड़के तो वहीं बिस्तर में मुंह खोल कर
लेट गये और मुझे बोले कि मूत दे मेरे मुंह में, फ़िर चोद डाला. पर अनिल,
मेरा मूत पीकर उनका ऐसा खड़ा होता था कि फ़िर घोड़े जैसे चोदते थे. बहुत मजा
आया मेरे राजा, चूत की प्यास एकदम कम हो गयी"

फ़िर लीना बोली "पर जो मजा दिया चाचाजी ने, लगता है जल्दी ही ये आग फ़िर से
जाग उठेगी. हा ऽ य राजा, बहुत मजा आता है ऐसे गरम मर्दों से चुदवाने में"

"चाचाजी तो अब नहीं हैं साल भर, चल मैं अपने यार दोस्तों को बुलवा लेता
हूं अगले हफ़्ते, तब तक तू आराम कर ले"

"अनिल, वो तुम्हारे मौसाजी हैं ना, दीपक मौसाजी नाम है शायद"

"हां. उनका क्या?"

"मेरे खयाल से अगले महने उनके यहां गांव में चलें तो?" लीना मेरी ओर देखकर बोली.

"अरे पर तूने उनको कब देखा? वो तो शादी में भी नहीं आये थे."

"चाचीजी कुछ बोल रही थीं. ठीक से कुछ बताया नहीं पर जाते जाते मुझे कहके
गयीं कि बेटी अब मैं और तेरे चाचाजी तो नहीं हैं साल भर, नहीं तो तुझे
पूरा ठंडा कर देते तू हमारे गांव आती तो. फिर दो मिनिट के बाद बोलीं कि
अनिल से कहो कि दीपक मौसा के यहां ले चलो. बस और कुछ नहीं बोलीं, हंस
दीं." लीना बोली.

"ठीक है मेरी जान, अगले महने वहां चलेंगे"

----समाप्त----










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