Saturday, March 14, 2015

FUN-MAZA-MASTI माँ बेटे की अगन --6

 FUN-MAZA-MASTI

 माँ बेटे की अगन --6

 सुबह सरला बिस्तर पर नही थी वो विजय के बापू के पास थी दो दीन गुजर गये उस रात बिस्तर मे विजय सरला के पास आया उसका तना हुआ गन्ना साडी मे सरला के पपिते जैसे मोटे चुत्तरो के बीच चुभने लगा सरला की कच्ची निंद तुट गई
सरला- विजय ये तु क्या कर रहा है छोड मुझे
विजय- प्यार कर रहां हू मेरी प्यारी मां को
सरला- विजय बेटा ये वक्त नही है ईन बातों का घर पे तेरे बापू बिमार पडे है और तुझे ये सब करने का सुझ रहा है छी छी छोड मुझे
विजय- बापू के बारे मे मुझे भी बुरा लग रहा है मां, पर कब तक तु चिंता मे लगी रहेगी, आज रात मुझे तेरी जरूरत है ।
सरला- विजय वो मेरे पती है
विजय- तो ये गले का मंगलसूञ, भुल गई में तेरा कौन हूं। आज तेरे ईस पती की तुझे सेवा करनी है , बापू की चिंता छोड दे तेरा नया पती तेरा साथ बीस्तर पर लेटा है।
सरला कुछ न बोली विजय सरला को बाहों मे लपेटने लगा
विजय उसके उपर चढ गया उसने सरला बाल खींच दिये और सरला के होट विजय के सामने आये। सरला के होंठ थरथराने लगे। विजय अपना आपा खो बैठा । उसने सरला को जखड लिया।
उसने उसके होंठ सरला के कांपते गरम होठो से भीडा दीये । दो दीन से शान्त पडी सरला के बदन की अगन फीर भड़क उठी । विजय के हाथ सरला के स्तनों को मसल रहे थे। उसने एक-एक करके ब्लाऊज के हुक खोल दीये सरला के दोनो टरबूज जैसे स्तन खुली हवा मे आझाद हो गये दोनो चुचियों के काले अंगूर दो तरफ मुह कीये थे मानो जैसे विजय से नाराज हो दो दीन मिलने ना आये हो ईस लिए । विजय की अगन बढने लगी।
विजय सिर्फ लूंगी मे था उसने झट से लूंगी उतार डाली और नंगा हो गया। उसका मोटा और तगड़ा लण्ड सरला की चूत पर निशाना कीये तना था । विजय ने अब सरला का ब्लाऊज उतार डाला और सरला की साडी की गाठ खोल कर अलग कर दी । पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और पेटीकोट निकाल दीया । हमेशा की तरह सरला की चुत अंदर नंगी थी। उसका गन्ने जैसा लण्ड गरम लोहा हए
सीधा खड़ा तन्ना रहा था।
सरला बदन के प्यास के मारे अपने होंट काट रही थी वो चिल्ला-चिल्ला कर कहना चाहती थी विजय बेटा मुझे चोद पर हालात के मारे मजबूर थी । दोनो का पसीना पानी की तरह
बह रहा था।
सरला का नंगा जिस्म विजय की बाहों में कैद था । होंट से होंट और विजय के पहाडी छाती से सरला के मोटे मुलायम नरम स्तन चिपके हुए थे । दोनो के बदन मिलन की मांग कर रहे थे। दोनो जिस्म अब बदन की आग में जल रहे थे। विजय ने सरला की टांगे फैलाई । सरला की चूत के होंट खुल गये थे....। विजय लंड सरला की खुली हुई दरार और चुत के चिरे पर रगडने लगा ।सरला की चूत गीली हो चुकी थी।
सरला- आहहहह हा हहहहह ममममम
विजय- उमममम हह रानी मुझे पता है तू बडी प्यासी है पर तू मजबूरी में कह नही सकती पर में हूं ना मैने तुझे सच्चा प्यार कीया है। बस तू अब मुझे अपना सब कुछ मान ले । भुल जा तेरा अतित । मै तुझे मेरी रानी बनाके रखूंगा।
सरला आंखे बंद कीये कुछ नही बोली बस बेबसी मे आंसू बहाने लगी
विजय ने सरला की बांहे फैलाई और उसकी हथेली अपनी हथेली मै कैद करली और खड़ा लण्ड चुत की दरार में घुस पड़ा, गरम मोटे और लम्बे लण्ड का अहसास सरला को चुत मे होने
लगा। विजय झटके लगाने लगा
सरला- आह आह हहहहह ममममममां ममममां आ आ सससससस आ आ उमुहहह
विजय- हहह आहहह हहहह
सरला को दर्द हो रहा था पर बाहर आवाज ना जाए ईस लिये वो अपना मुंह दबाये झटके सह रही थी ।
कुछ ही समय में विजय का लम्बा लण्ड चुत में पूरा जड़ तक जाने लगा था।



विजय- मजा ले जान रो मत तुने आजतक मेरी बदन की प्यास बुझाई है में तेरी आगे की जिंन्दगी मे खुशीया

भर दुंगा, मै तुझे शहर ले जाउंगा वहां हम पती-पत्नी की जिन्दगी जियेंगे । अब तो हस दे मेरी जान ।

सरला कुछ देर बाद मुस्कुराई और उसने विजय के होंट पे होंट टीकाए और चुमने लगी ।

शायद वो भी विजय की रखेल बनके जीना नही चाहती थी वो फीर एक सुहागन की जिन्दगी जीना चाहती थी ।

विजय आनन्द से भर उठा । .... उसके धक्के तेजी पकड़ने लगे। सरला मदहोश होती जा रही थी।

विजय कमर उठा कर वो सरला की चुत को सटासट पेल रहा था। अचानक ईस घमासान चुदाई मे

तड-तड कर सरला की चुडीयां तुटने लगी और बीखरने लगी

दोनो जिस्म वासना में लिपटे हुए थे ।

विजय के झटके सरला को चरम सीमा पर ले जा रहे थे....

सरला की चूत विजय के लण्ड को गहराई तक ले रही थी....गहरी चुदाई से उसकी चुत अन्दर तनी जा रही थी ।

विजय भी अब चरम सीमा पर पहुंचने लगा था। उसके धक्के बढ़ गए.... सरला का जिस्म भी अब उत्तेजना की

सीमा को पार करने लगा। सरला चूतड़ उछल उछल कर उसका साथ बराबरी से दे रही थी। सरलाने साडी मुंह मे

भर ली थी और चिल्ला रही थी । उसके धक्के बेतहाशा तेज होते गये ।

सरला झड़ने लगी.... उसके धक्के चलते रहे और वो झड़ती रही ।

विजय- आह्ह्ह्ह् आ.... मां निकला रे मेरा....

विजय अकड गया और उसके लण्ड ने अपनी पिचकारी छोड़ दी। अपना पूरा जोर लगा कर उसने सरला की चूत

को अपना रस भरने लगा। और विजय निढाल हो कर सरला के ऊपर ही लेट गया। और उसके होट चुमने लगा

सरला तो बेहोश ही पडी थी ।

फिर विजय सरला से लिपट कर ही सो गया।

दोनो की आंख लग गई और फीर सुबह हो गई नये दीन की नई सुबह कुछ नया मोड सरला के जीवन मे ले आई

थी।


खिडकी से आती पहली कीरन से सरला की निंद तूटी विजय का पैर सरला की गुदाज नंगी जांघो पे था और हाथ

उसके एक चुची को थामे था । सरला यह देख मुस्कुराई

सरला- पगला कही का रात तो रात निंद मे भी मुझपर अपना हक जता रहा है । कीतना प्यार करता है मुझे

सरला विजय के माथे पर चुमती हुई नंगी खडी हूई उसने साडी बदन से लपेट ली और कमरे से बाहर लडखडाती

निकल पडी । सरला नहा के विजय के बापू के कमरे मे आई उसे अजीब लगा पास जाके देखा तो उनकी सासें

बंद थी सरला ना रोई ना उदास हुई कल रात के बाद वो इस सब के लिए मानसिक रूप से तैयार थी । वो विजय

के कमरे मे गई और उसे उठाने लगी

सरला- विजय बेटा, विजय बेटा उठ

विजय जाग गया

विजय- हमममम क्या है

सरला को सामने देख वो उसे बदन पे खिंचने लगा उसे चुमने लगा ।

सरला- अ अ अ ये सब बादमे बेटा तेरे बापू की सासें नही नही चल रही है रे ।

यह सुनकर वो उठ खडा हुआ उसने कपडे पहन लिए ।

और देखने लगा उसके बापू का देहांत हो चुका था । गांव के लोगो मे खबर फैल गई लोग इकठ्ठा हुए । पतीव्रता

सरला दीखावे आंसू बहा रही थी शायद क्युंकी उसे नया चाहने वाला मिल चुका था।

दोपहर तक सारी विधीया पुरी कीये विजय घर लौटा नहाया और घर मे दोनो आझाद पंछी थे वो सरला के आंसू

बहाये सुजी आंखे जब टावल मे उसके सामने खडे विजय से मिली तो वो शरमा गई ।

उसने सरला को बाहों मे भर लिया और चुमने लगा

विजय- हुममम तो आखिर तू मेरी हो ही गई।

सरला विजय के आंखों मे देखती हुई

सरला- विजय बेटा तु मुझे इतना क्यू चाहता है । मुझमे एसा क्या है रे ।

विजय- तू परी है मां , पता है मै तुझे अपनी जवानी से चाहता हूं । बापू के बाहों मे जब भी देखता मुझे जलन

होने लगती थी ।

सरला- चल बदमाश अपनी मां पे डोरे डालता था।

विजय- चलो मैने तो मेरा सीक्रेट बता दीये अब तेरी बारी

सरला- नही नही मुझे नही बताना वो बडा दुखद अतित है मेरा।

विजय- तो मेरे साथ नही बाटेगी तेरा दुख

सरला- वो बात ये है बेटा मै तब सोलाह साल की थी तब एक दीन स्कूल से आते समय गांव के एक लडके ने

मेरे उपर बलात्कार कीया था, पुरे गांव मे यह बात हवा की तरह फैल गई , मेरी तो जिंदगी ही जैसे नरक बन

गई, पर कुछ साल बाद तेरे बापू ने मुझसे मेरे बारे मे यह हकीकत जानते हुए भी शादी की ईसलिए तेरे बापू मेरे

जिंदगी मे इतने अहम है।

विजय- ओह तो ये बात है । कसम से मां अगर वो आदमी आज मुझे मील जाए ना तो उसका लंड काट डालूंगा

, और बापू के तो जितने अहसान मानू कम है अगर वो तुझसे शादी ना करते तो आज मुझे इतनी सुंदर मां और

बीवी ना मिलती और अपनी मां के साथ ईलू-ईलू और मां के जवानी के मजे ना मिलते। थैक्यू बापू , आप की

इस अमानत को मै हमेशा खुश रखूंगा ।

सरला- चल हट बेशरम कहीका

विजय- तेरे लिए तो मैने सारी शरम छोड दी है बस अब तेरी सारी शरम दूर करनी है।

सरला- तू बडा गरम है रे शहर मे जरूर कोई ना कोई होगी तेरी गरमी दूर करने वाली है ना।

विजय- तेरी कसम कोई नही है पर अब होगी रोज रात मेरी गरमी दूर करने वाली ।

सरला – अच्छा वो भला कौन

विजय- देखो तो पुछ एसे रही है जैसे कुछ पता ही नही की मेरा इशारा कीसकी ओर है।

सरला शरम के मारे लाल हो गई पर वो विजय के मन की बात परखने नाटक करने लगी





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FUN-MAZA-MASTI जाल में फंसाया--3

FUN-MAZA-MASTI

 जाल में फंसाया--3

मुझे लगा कि मैंने बहुत सधे हुए अल्फाज़ में अपनी बात कही थी. उसका असर भी देखने को मिला. वहीदा न तो कल रात जो हुआ उससे इंकार कर सकती थी और न ही इस बात से मुकर सकती थी कि उसने मुझे दिन में आने के लिए कहा था. उसने धीमी आवाज में कहा, “एहसान साहब, आप सचमुच ऐसा समझते हैं? कहीं आप मुझे बना तो नहीं रहे हैं?”

मेरी नज़र उसके मम्मों पर थी जो उसकी कमीज़ के महीन कपडे से झाँक रहे थे. वहीदा ने जब देखा कि मेरी नज़र कहाँ थी तो उसने शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. मैं समझ गया कि उसने मेरे सामने समर्पण कर दिया है. मैंने कहा, “मैं क्या समझता हूं यह मैं बोल कर नहीं बल्कि कर के दिखाऊंगा.”

मैंने वहीदा का एक हाथ अपने हाथ में लिया और उसे उठा कर अपने होंठ उस पर रख दिये. जैसे ही मेरे होंठों ने उसके हाथ को छुआ, वो सिहर उठी. उसका जिस्म मेरे जिस्म से सट गया. उसके मम्मे मेरे सीने से लग गए. मैं उसके नर्म हाथ को चूमने लगा. मेरा मुंह रफ्ता-रफ्ता उसकी बांह और कंधे पर फिसलते हुए उसकी सुराहीदार गर्दन पर पहुँच गया. मेरी जीभ उसकी गर्दन पर फिसल रही थी तो मेरा हाथ उसकी कमर पर. मुझे अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा था. जिस वहीदा को हासिल करने के सपने मैं सालों से देख रहा था वो आज मेरे हाथों में कठपुतली बनी हुई थी. मेरे होंठ उसके गालों पर पहुँच गए. उसके नर्म और रेशमी गालों की लज्जत नाकाबिले-बयां थी. मेरे होंठ उसके एक गाल का जायजा ले कर उसके गले के रास्ते दुसरे गाल पर पहुँच गए. एक गाल से दूसरे गाल का सफ़र चलता रहा और साथ ही मेरा हाथ उसकी कमर से उसके सीने पर पहुँच गया.

जैसे ही मेरी मुट्ठी वहीदा के मम्मे पर भिंची, उसका जिस्म तड़प उठा. उसकी आँखें बरबस मेरी आँखों से मिलीं. उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. मैने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये. मैने अपने होंठों से उसके होंठ खोलते हुए उसका निचला होंठ अपने होंठों के बीच दबाया और उसका रस पीने लगा. अब वहीदा की शर्म जा चुकी थी. उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थीं. उसने अपना मुंह खोल कर अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए. जैसे ही मेरी जीभ उसके मुंह में पहुंची, उसने उसका स्वागत अपनी जीभ से किया. जीभ से जीभ का मिलन जितना रोमांचकारी मेरे लिए था उतना ही वहीदा के लिए भी था. वो पूरे जोश से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी. मैं भी उसकी जीभ का रसपान करते हुए उसकी चून्ची को मसलने लगा।

मेरा हाथ वहीदा के मम्मे को छोड़ कर उसके मांसल चूतड़ पर पहुँच गया. कुछ देर चूतड़ को सहलाने और दबाने के बाद मेरा हाथ उसकी सलवार के नाड़े पर पहुंचा तो वो थोड़ा कसमसा कर बोली, “नहीं, एहसान साहब.”

मैं जैसे ओंधे मुंह ज़मीन पर गिरा. मंजिल मेरी पहुँच में आने के बाद वहीदा मुझे रोक रही थी. मैंने इल्तजा भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा. उसने अपनी बात पूरी की, “दरवाजा बंद नहीं है!”

उसकी बात सुन कर मेरी नज़र दरवाजे पर गई. डोर क्लोजर से किवाड़ बंद तो हो गया था पर चिटकनी नहीं लगी हुई थी. मुझे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आया कि किवाड़ को धकेल कर कोई भी अन्दर आ सकता था. मैं चिटकनी लगाने के लिए उठा पर वहीदा मेरे से पहले दरवाजे तक पहुँच गई. जैसे ही वो चिटकनी लगा कर पलटी, मैंने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया. मैने उसे दरवाजे से सटा कर उसकी दोनों चूचियों पर अपने हाथ रख दिये. मेरे होंठ एक बार फिर उसके होंठों पर काबिज हो गए. साथ ही मैं उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा. अब बिला-शक वहीदा पूरी तरह मेरे काबू में थी और मैं जान गया था कि मेरी बरसों की मुराद पूरी होने वाली है. मैं कभी उसकी चून्चियों को कमीज़ के ऊपर से मसलता था तो कभी अपनी अंगुलियों से उसके निप्पल को मसल देता था. वहीदा चुपचाप आँखें मूंदे अपनी चून्चियां दबवा रही थी. उसका लरजता जिस्म और उसकी तेज़ होती सांसे उसकी उत्तेजना की गवाही दे रही थीं. उसकी जीभ फिर मेरी जीभ से टकरा रही थी. अब अगली पायदान पर चढ़ने का वक़्त आ गया था.

मैं अपना हाथ वहीदा की कमीज़ के ज़िप पर ले गया. वो कुछ बोलती उससे पहले मैंने ज़िप को पूरा नीचे खिसका दिया. ज़िप खुलते ही उसने अपना मुंह मेरे मुंह से अलग किया. उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखा. उसकी नज़रों में शर्म भी थी. मैं जानता था कि किसी भी औरत के लिए यह लम्हा बहुत मुश्किल होता है, मेरा मतलब है एक नए मर्द के सामने पहली बार अपने जिस्म को बेपर्दा करना. मैंने वहीदा को बहुत प्यार से कहा, “वहीदा, प्लीज़ मुझे इस नज़ारे से महरूम मत करो. मैंने इस लम्हे का सालों इंतजार किया है. तुम चाहो तो अपनी आँखें बंद कर लो.”

वहीदा ने मुझे निराश नहीं किया. उसने मौन स्वीकृति में अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने धीरे से उसके दुपट्टे को उसके जिस्म से अलग किया. मैंने उसकी कमीज़ को नीचे से ऊपर उठाया. जब वह उसके सीने तक पहुँच गई तो उसने अपनी बाँहें ऊपर उठा कर कमीज़ उतारने में मेरा सहयोग किया. अब उसके सीने पर ब्रा के अलावा कुछ नहीं था. काले रंग के महीन कपडे की ब्रा उसके मम्मों की खूबसूरती छुपाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. मैंने उसे पीछे घुमा कर उसकी ब्रा के हुक खोले. जब मैंने ब्रा को उसके जिस्म से हटाया तो मैं उसकी नंगी सुडौल पीठ के हुस्न में खो गया. मैं बेसाख्ता अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा. वहीदा ने अपना जिस्म किवाड़ से सटा दिया. मुझे लगा कि मैं उसके बाकी कपडे भी पीछे से उतारूं तो उसे कम झिझक होगी. मैंने अपने हाथ आगे ले जा कर उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. इस बार उसने कोई एतराज़ नहीं किया. जब मैंने सलवार नीचे खिसकाई तो वहीदा ने अपने पैर उठा कर सलवार उतारने में मेरी मदद की. मेरी नज़र उसकी चड्डी से झांकते मांसल कसे हुए नितम्बों पर अटक गई. मैंने हौले-हौले उसकी चड्डी को नीचे खिसकाया. जैसे ही उसके नंगे नितम्ब नुमाया हुए, मैं बे-अख्तियार हो कर उन्हें चूमने लगा. चड्डी को उसके जिस्म से अलग कर के मैं उसकी नंगी रानों को सहलाने लगा. मेरी जीभ उसके लज़ीज़ चूतड़ों के एक-एक इंच का जायका ले रही थी. चूतड़ों को चाटते-चाटते मैंने अपने कपडे भी उतार दिये.

मैं खड़ा हो गया. वहीदा की पीठ मेरी तरफ थी. मैं पीछे से उसके नंगे जिस्म का दिलकश नज़ारा देख रहा था. उसे पता नहीं था कि उसकी तरह मैं भी मादरजात नंगा था. मैंने उससे चिपक कर अपने हाथ उसकी चून्चियों पर रख दिए. मेरा बेकाबू लंड उसके चूतड़ों के बीच की खाई में धंस गया. शायद लंड के स्पर्श से उसे मेरे नंगेपन का एहसास हुआ. वह उत्तेजना से कांप उठी. मैं भी उसकी नंगी चून्चियों के स्पर्श से पागल सा हो गया था. मैंने अपना मुंह उसके गाल पर रख दिया और उसे मज़े से चूसने लगा. यह मन्ज़र मेरी कल्पना से भी ज्यादा दिलकश था – वहीदा का नंगा जिस्म मेरे सामने, उसकी नंगी चून्चियां मेरी मुट्ठियों में और मेरे होंठ उसके लज़ीज़ रुखसार पर. मेरा मुंह उसके गाल से उसके कान पर पहुँच गया और मैं अपनी जीभ से उसके कान को सहलाने लगा. साथ ही मेरा जिस्म अपने आप आगे-पीछे होने लगा. मेरा लंड उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से से रगड़ने लगा. मेरी हरकतों से वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी. उसकी सिसकारियां निकलने लगीं और उसके चूतड़ लरजने लगे.

वहीदा पर गर्मी चढ़ते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई. अब तक मैंने उसकी चून्चियों का नंगापन सिर्फ अपने हाथों से महसूस किया था. अब मैं उनका नज़ारा पाने को बेक़रार हो गया. मैं उसकी चून्चियों को दबाते हुए बोला, “वहीदा, आज तक मैंने इन्हें सिर्फ सपनों में देखा है. आज तुम मुझे इनका दीदार हक़ीक़त में करवा दो तो मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.” यह कह कर मैंने उसे अपनी तरफ घुमा दिया.

वहीदा ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, “ये क्या कर रहे हैं, एहसान साहब?” शर्म से उसकी गर्दन झुक गई.

“प्लीज़ देखने दो, वहीदा.” मैंने उसके हाथ हटाते हुए कहा. वहीदा की हालत तो ऐसी थी जैसे वो शर्म से जमीन में गड़ जाना चाहती हो.

मैंने कहा, “इतना हसीन नज़ारा शायद फिर कभी मुझे देखने को नहीं मिलेगा. ... ओह! इतने प्यारे मम्मे! इन्हें देख कर तो मैं अपने होश खो बैठा हूँ!”

अब तारीफ का औरत पर असर न हो, यह तो नामुमकिन है. वहीदा भी अपने मम्मों की तारीफ सुन कर यकीनन खुश हुई. वह शर्माते हुए बोली, “यह क्या कह रहे हैं आप! आपको तो झूठी तारीफ करने की आदत है.”

“झूठी तारीफ करने वाले और होंगे,” मैंने हैरत का दिखावा करते हुए कहा (मेरा इशारा युसूफ की तरफ था जो आम शौहरों की तरह अपनी बीवी की चून्चियों की तारीफ अब शायद ही कभी करता होगा). मैंने आगे कहा, “तुम्हारी कसम, ऐसे हसीन मम्मे मैंने आज तक नहीं देखे. अगर मेरी बात झूठ हो तो अल्लाह मुझे अभी अँधा कर दे!”

यह सुनते ही वहीदा ने कहा, “अंधे हों आपके दुश्मन! मेरा मतलब कुछ और था.”

“तुम्हारा मतलब है कि युसूफ इनकी झूठी तारीफ करता है,” मैंने एक चूंची हाथ में ले कर कहा.

वहीदा ने शर्मा कर मेरे हाथ की तरफ देखा जो उसकी एक चूंची पर काबिज़ हो चुका था. उसने कहा, “उनके पास कहाँ वक़्त है इन्हें देखने के लिए!” उसकी आवाज में थोड़ी मायूसी थी पर वो मेरी बातें सुन कर थोड़ी खुश भी लग रही थी.

मैंने सोचा कि अब आगे बढ़ने का वक़्त आ गया है. मैं वहीदा को अपनी एक बांह के घेरे में ले कर दीवान की तरफ बढ़ा. उसने कोई एतराज़ नहीं किया. लगता था कि आगे जो होने वाला था उसके लिए वो दिमागी और जिस्मानी तौर पर तैयार हो चुकी थी. मैंने उसे दीवान पर लिटाया और खुद भी उसके पास लेट गया. मैंने उसकी तरफ करवट ले कर उसे अपनी तरफ घुमाया. हमारे चेहरे एक-दूसरे के सामने थे. वो पहली बार मेरे जिस्म को पूरा नंगा देख रही थी. उसने शरमा कर अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया. हमारे जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए थे. मैंने उसके चेहरे को उठा कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. जब चुम्बन का आगाज़ हुआ तो वहीदा पीछे नहीं रही. उसने शर्म त्याग कर चुम्बन में मेरा पूरा साथ दिया. एक बार फिर जीभ से जीभ मिली और हम दोनों एक नशीले एहसास में खो गए. मुझे पहली बार पता चला कि होंठों से होंठों और जीभ से जीभ का मिलन इतना मज़ेदार हो सकता है. मज़ा शायद वहीदा को भी आ रहा था. तभी वो पूरी तन्मयता से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी.

मेरा हाथ फिर से वहीदा के जिस्म का जायजा लेने में लगा था. इस बार उसका हाथ भी निष्क्रिय नहीं था. वो भी मेरे जिस्म को टटोल रही थी और सहला रही थी. हमारा चुम्बन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. न मैं पीछे हटने को तैयार था और न वहीदा. हमारी जीभ एक-दूसरे के मुंह के हर कोने को टटोल रही थी. कुछ देर बाद वहीदा ने सांस लेने के लिए अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग किया तो मेरी नज़र उसके सीने पर गई. ओह, क्या दिलफरेब मम्मे थे! गोरे-गोरे, एकदम अर्ध-गोलाकार और गर्व से उठे हुए! साइज़ में नारंगियों के बराबर और वैसे ही रसीले भी! उनके मध्य में उत्तेजना से तने हुए निप्पल! मेरी नज़र उन पर अटक सी गई. और फिर मेरा मुंह अपने आप एक मम्मे पर पहुँच गया. मेरी जीभ उस पर फिसलने लगी. उसका सफर मम्मे की बाहरी सीमा से शुरू होता था और निप्पल से थोडा पहले ख़त्म हो जाता था. एक मम्मे को नापने के बाद मेरा मुंह दूसरे मम्मे पर पहुँच गया, फिर वही खेल खेलने.

शुरू में तो लगा कि वहीदा भी इस खेल का मज़ा ले रही थी पर फिर वो बेचैन दिखने लगी. उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपना निप्पल मेरे मुंह में घुसा दिया. मैंने अपनी जीभ से निप्पल को सहलाना शुरू किया तो उसका शरीर रोमांच से लहराने लगा. मैंने उसके दूसरे मम्मे को अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने और दबाने लगा. इस दोहरे हमले से वहीदा पगला सी गयी. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी गर्मी बढ़ती देख कर मैं भी जोश में आ गया. मेरे मुंह और हाथ का दबाव बढ़ गया. मैं उसकी चूंची को चूसने के साथ-साथ उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच दबाने लगा. मेरी मुट्ठी उसकी दूसरी चूंची पर भिंची हुई थी. दोनों चून्चियों का जी भर कर मज़ा लेने के बाद मैंने नीचे की ज़ानिब रुख किया. मेरा मुंह उसके सुडौल और सपाट पेट और उसके मध्य में स्थित नाभि की सैर करने लगा.

वहीदा अब बुरी तरह मचलने और फुदकने लगी थी. मेरा मुंह उसकी पुष्ट और दिलकश जाँघों पर पहुँच गया. मैं उसकी पूरी जाँघों पर अपनी जीभ फिराने लगा, पहले एक जांघ पर और फिर दूसरी पर. उसकी जाँघों का मनमोहक संधि-स्थल मेरे मुंह को निमंत्रण देता प्रतीत हो रहा था मानो कह रहा हो कि आओ, मेरा भी स्वाद चखो. जाँघों के मध्य एक पतली सी दरार थी, कोई तीन इंच लम्बी और बालरहित. मेरी जीभ जाँघों के मध्य पहुंची तो वहीदा ने उन्हें जोर से भींच लिया. मैंने यत्न कर के उसकी जाँघों को चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके तने हुए क्लाइटोरिस पर रख दी. जब मेरी जीभ ने उसे सहलाना और चुभलाना शुरू किया तो वहीदा का शरीर बेतहाशा फुदकने लगा. उसने मेरे सर को पकड़ कर जबरदस्ती ऊपर उठाया और हाँफते हुए बोली, “ये क्या कर रहे हैं, एहसान साहब? प्लीज़, ऐसा मत कीजिये.”

क्रमशः 

FUN-MAZA-MASTI जाल में फंसाया--2

FUN-MAZA-MASTI

 जाल में फंसाया--2

अचानक वहीदा की सुरीली आवाज ने मुझे जैसे नींद से जगाया. वो कह रही थी, “शायद एहसान साहब को खाना पसंद नहीं आया. ये तो कुछ खा ही नहीं रहे हैं!”

वहीदा ने ये बात युसूफ को कही थी पर मैंने फ़ौरन जवाब दिया, “यह कैसे हो सकता है कि तुम जो बनाओ वो किसी को पसंद न आये. तुम्हारे हाथों में तो जादू है. लेकिन मुश्किल ये है कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या खाऊं.”

जवाब के साथ-साथ वहीदा की तारीफ भी हो गई जो उसे जरूर अच्छी लगी होगी. मेज के नीचे मेरा पैर अब उसकी पिंडली की मालिश कर रहा था. उसकी सलवार ऊपर उठ चुकी थी. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं युसूफ की मौजूदगी में उसकी बीवी की नंगी टांग को अपने पैर से सहला रहा था और वो इससे बेखबर था. मुझे यह शक भी हो रहा था कि कहीं वो जानते हुए अनजान तो नहीं बन रहा था.

मैंने अपना पैर पीछे खींचा तो वहीदा के चेहरे पर निराशा का भाव आया. पर वो जल्दी ही संभल गई और सामान्य तरीके से बात करने लगी. मैंने भी अपना ध्यान बातचीत और खाने की तरफ मोड़ दिया. कुछ देर में डिनर ख़त्म हो गया. हाथ धोने के बाद मैंने फिर वहीदा से खाने की तारीफ की. युसूफ ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ चुका था. वहीदा ने धीरे से मुझे कहा, “आप बहुत दिलचस्प बातें करते हैं. मैं दिन में घर पर ही रहती हूँ. आप जब चाहें यहाँ आ सकते हैं.”

यह तो खुला निमंत्रण था. आज शाम वो नहीं हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी पर आगे के लिए रास्ता खुल चुका था. और मुझे नहीं लगा कि यह युसूफ की जानकारी के बिना हुआ होगा. मैं दिखने में बेशक युसूफ से बेहतर हूं पर इतना भी नहीं कि वहीदा जैसी दिलफ़रेब औरत मुझ पर फ़िदा हो जाए. यह कमाल तो उस क़र्ज़ का था जो वक़्त पर वापस आता नहीं लग रहा था. खैर, अगर वहीदा ब्याज देने के लिए तैयार है तो मैं इतना बेवक़ूफ़ नहीं हूँ कि यह सुनहरा मौका छोड़ दूं! यह सोचते-सोचते मैं अपने घर पहुँच गया. मेरे दिल-ओ-दिमाग पर पूरी तरह वहीदा का नशा छाया हुआ था. मुझे अपनी बेग़म में वहीदा का अक्स नज़र आ रहा था. सोने से पहले मैंने उनकी चूत को इतना कस कर रगड़ा कि वे भी हैरान रह गयीं.

अगली सुबह भी वहीदा का अक्स बार-बार मेरी नज़रों के सामने आ रहा था. मैं अपने दफ्तर पहुंचा तो मैं अपने काम पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाया. मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए. जब मैं कॉलेज में नया-नया पहुंचा था तब मैं अपनी इंग्लिश की लेक्चरर पर इस कदर फ़िदा हो गया था कि मैं रात-दिन उनके सपने देखता रहता था. मुझे लगता था कि वे मुझे नहीं मिलीं तो मैं ट्रेन के आगे कूद कर अपनी जान दे दूंगा. सपनों में मैं न जाने कितनी बार उन्हें चोद चुका था. आज मेरी हालत फिर वैसी ही हो गई थी. उस लेक्चरर की जगह अब वहीदा ने ले ली थी. फर्क यह था कि वो लेक्चरर मेरी पहुँच से दूर थी जबकि वहीदा मुझे हासिल हो सकती थी. हो सकता था कि वो इस वक़्त मेरा इंतजार कर रही हो. उसने साफ़ कहा था कि मैं कभी भी उससे मिलने जा सकता था. मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि मैं आज ही उससे मिलूँ या दो दिन और इंतजार करूं. मेरा दिमाग कह रहा था कि दो दिन बाद युसूफ को मेरी हर बात माननी पड़ेगी. वो मजबूर हो कर वहीदा को मेरे हवाले करेगा. लेकिन मेरा दिल कह रहा था कि वहीदा तो आज ही मेरी आगोश में आने के लिए तैयार है. फिर मैं उसके लिए दो दिन क्यों तरसूं!

मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया. हिम्मत कर के मैं युसूफ के घर की तरफ रवाना हो गया. मैंने कार को उसके घर से थोड़ी दूर छोड़ा और पैदल ही घर तक पहुंचा. घंटी बजाने के बाद मैं बेसब्री से वहीदा से रूबरू होने का इंतजार करने लगा. दरवाजा खुलने में देर हुई तो मेरे मन में शक ने घर कर लिया. मैं सोचने लगा कि मैंने यहाँ आ कर कोई गलती तो नहीं कर दी! दो मिनट के लम्बे इंतजार के बाद दरवाजा खुला. वहीदा मेरे सामने थी पर उसके चेहरे पर मुझे उलझन नज़र आ रही थी. मैंने थोड़ी शर्मिंदगी से कहा, “शायद मैं गलत वक़्त पर आ गया हूं. मैं चलता हूं.”

“नहीं, नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है. आप अन्दर आइये.” उसने पीछे हट कर मुझे अन्दर आने का रास्ता दिया.

“लेकिन तुम कुछ उलझन में दिख रही हो,” मैंने अन्दर आते हुए कहा.

“नहीं, उलझन कैसी?” उसने कहा. “आप बैठिये. मैं फ़ोन पर बात कर रही थी कि दरवाजे की घंटी बज गई. मैं बात ख़त्म कर के अभी आती हूँ.”

अब मैंने इत्मीनान की सांस ली. मेरे आने से वहीदा की फ़ोन पर हो रही बात में खलल पड़ गया था इसलिए वो परेशान दिख रही थी और मैं कुछ का कुछ सोचने लगा था.

वहीदा दो मिनट में वापस आ गई. न जाने यह मेरा भ्रम था या हकीकत पर इस बार वो पहले से ज्यादा दिलकश लग रही थी. उसके व्यवहार में भी अब गर्मजोशी आ गई थी. उसने पूछा, “आप चाय लेंगे या कॉफ़ी ... या कुछ और?”

‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा. मैं ‘कुछ और’ लेने के लिए ही तो आया था पर थोडा तकल्लुफ दिखाना भी लाजमी था. मैंने कहा, “तुम्हे तकलीफ करने की जरूरत नहीं है. मैं तो सिर्फ तुम से मिलने के लिए आया हूं क्योंकि कल तुम्हारे साथ ज्यादा बात नहीं हो सकी थी.”

वहीदा ने कहा, “इसमें तकलीफ की क्या बात है! मैं तो वैसे भी चाय पीने वाली थी. लेकिन आप कुछ और लेना चाहें तो ...”

फिर ‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा मन उसे दबोचने पर आमादा हो गया. पर मैंने अपने आप पर काबू करते हुए कहा, “तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मौका मैं कैसे छोड़ सकता हूँ!”

“मैं अभी आती हूं,” उसने कहा.

वहीदा किचन में चली गई तो मेरे दिल में नापाक खयाल आने लगे. मैं सोच रहा था कि जो हाथ चाय बना रहे हैं वो मेरे लंड के गिर्द होते तो कैसा होता! मेरे होंठ चाय के प्याले के बजाय वहीदा के होंठों पर हों तो कैसा रहेगा! और वो दुबारा ‘कुछ और’ की पेशकश करे तो क्या मैं उसे बता दूँ कि मेरे लिए ‘कुछ और’ का मतलब उसकी चूत है? फिर मैंने सोचा कि मैं कहीं खयाली पुलाव तो नहीं पका रहा हूं! ऐसा न हो कि मैं जो सोच रहा हूं वो हो ही नहीं और मुझे खाली हाथ लौटना पड़े.

कुछ मिनट बाद वहीदा चाय की ट्रे ले कर आई. ट्रे मेज पर रख कर उसने प्यालों में चाय डाली. जब वो मुझे प्याला देने के लिए आगे झुकी तब मुझे पता चला कि वो कपडे बदल चुकी थी. उसकी कमीज़ के गले से न सिर्फ मुझे उसके दिलकश मम्मे दिख रहे थे बल्कि इस बार तो मुझे उसके निपल की भी झलक दिख रही थी. मम्मे बिलकुल अर्ध-गोलाकार और दूधिया रंग के थे. इस रोमांचक दृश्य ने मेरे दिल की धड़कने बढ़ा दीं. मेरा मन कर रहा था कि मैं उसके मम्मों को कपड़ों की क़ैद से आजाद कर दूं. उधर मेरा लंड भी कपड़ों से बाहर निकलने के लिए मचल रहा था. मेरी नज़रें पता नहीं कब तक उन दिलफरेब मम्मों पर अटकी रहीं. एक सुरीली आवाज ने मुझे खयालों कि दुनिया से बाहर निकला, “एहसान साहब, चाय लीजिये ना!”

मैंने चौंक कर वहीदा के चेहरे की तरफ देखा. वो देख चुकी थी कि मेरी नज़रें कहाँ अटकी हुई थीं. जब हमारी नज़रें मिली तो उसके रुखसार शर्म से लाल हो गए. मैंने प्याला लेने के लिए हाथ बढाया तो कल की तरह हमारे हाथ टकराए और मेरा शरीर झनझना उठा. मैंने किसी तरह अपने जज्बात पर काबू पाया और प्याला ले लिया. वहीदा भी अपना प्याला ले कर मेरे पास बैठ गई. उसके जिस्म से उठती महक मुझे मदहोश कर रही थी. यह पहला मौका था जब मैं उसके साथ अकेला था. मैं थोडा घबरा भी रहा था कि मैं उत्तेजनावश कुछ ऐसा न कर बैठूं जिससे वो नाराज़ हो जाए. मेरे हाथ पसीने से इस कदर गीले थे कि मुझे प्याला थामने में मुश्किल हो रही थी. मेरी धडकनों की आवाज तो वहीदा के कानों तक पहुँच रही होगी.

वहीदा ने शायद मेरी दिमागी हालत भांप ली थी. वह बोली, “आप कुछ बोल नहीं रहे हैं. शायद मेरे साथ बोर हो रहे हैं!”

मैंने अपने आप को संभाल कर कहा, “बोर और तुम्हारे साथ? मैं तो खुद को खुशकिस्मत समझ रहा हूँ कि मैं तुम्हारे जैसी नफीस और हसीन खातून के पास बैठा हूं.”

“मुझे यकीन है कि आप हर खातून को यही कहते होंगे,” वहीदा ने शरारत से कहा.

“तो मैं तुम्हे चापलूस लगता हूं,” मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा. “सच तो यह है कि तुम्हारे जैसी खूबसूरत और जहीन औरत मैंने आज तक नहीं देखी. और अब देख रहा हूं तो यह क़ुबूल करने में क्या हर्ज़ है!” मुझे फिर लग रहा था कि औरत को पटाने के लिए चापलूसी एक बेहद कारगर हथियार है और मुझे इसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए.

‘अच्छा? तो बताइये कि मैं आपको जहीन कैसे लगती हूँ?” वहीदा ने पूछा.

यह सवाल वाकई मुनासिब था. इसका जवाब देना आसान नहीं था पर औरत की तारीफ में कंजूसी करना भी मुनासिब नहीं है. इसलिए मैंने कहा, “जैसे तुमने अपने घर को संवार रखा है और जैसे तुम अपने आप को संवार कर रखती हो, यह तो कोई जहीन औरत ही कर सकती है.”

“अच्छा जी, तो मैं आपको संवरी हुई दिख रही हूँ?” वहीदा के अल्फ़ाज़ से लग रहा था कि वो अपनी और तारीफ सुनने के मूड में थी.

“क्यों नहीं? तुम्हे युसूफ ने नहीं बताया कि तुम्हारा लिबास का चुनाव कितना उम्दा है? उसे पहनने का सलीका कितना नफीस है? तुम्हारे बाल और तुम्हारे नख-शिख हमेशा संवरे रहते हैं! तुम्हे देख कर तो मुझे युसूफ पर रश्क होता है!” मैंने वहीदा की तारीफ करने के साथ-साथ युसूफ को भी लपेटे में ले लिया था. मुझे मालूम था कि शादी के इतने अरसे बाद कोई शौहर अपनी बीवी की ऐसे तारीफ नहीं करता है.

वहीदा थोड़े रंज से बोली, “उनके पास कहाँ वक़्त है ये सब देखने का? वे तो हमेशा अपने कारोबार में मसरूफ रहते हैं.”

इसका मतलब था कि मेरे कहने का असर हुआ था. वहीदा अपने शौहर की जानिब अपनी नाराज़गी को छुपा नहीं पाई थी. मुझे लगा कि मुझे अपना रद्दे-अमल जारी रखना चाहिये. साथ ही मुझे लगा कि वहीदा ने कारोबार का ज़िक्र कर के क़र्ज़ वाले मसले की तरफ भी इशारा कर दिया है.

“मुझे तो लगता है कि युसूफ न तो अपने कारोबार को ठीक तरह संभल पा रहा है और न अपनी बीवी को,” अब मैंने मुद्दे पर आने का फैसला कर लिया था. “और वो कारोबार में ऐसा मसरूफ भी नहीं है कि अपनी बीवी पर ध्यान न दे पाए. उसकी जगह मैं होता तो ...” मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

“आपको उनके कारोबार के बारे में क्या मालूम?” वहीदा ने थोड़ी हैरत दिखाते हुए पूछा.

अब मुझे शक हुआ कि युसूफ ने अपनी कारोबारी मुश्किलात और अपने क़र्ज़ के बारे में वहीदा को बताया था या नहीं! मैं तो सोच रहा था कि मुझे उसका खुला निमंत्रण क़र्ज़ के कारण ही मिला था. यह भी मुमकिन था कि वो जानबूझ कर अनजान बन रही हो. अब मुझे क्या करना चाहिये? मैंने तय किया कि कारण कुछ भी हो, मुझे आज मौका मिला है तो मुझे पीछे नहीं हटना चाहिए. वहीदा ने अपनी बात को आगे बढाया, “और उनकी जगह आप होते तो क्या करते?”

“पहली बात तो यह है कि मैंने अपने कारोबार के लिए जितने कारिंदे रख रखे हैं, उनसे मैं पूरा काम करवाता हूँ. मैं उन्हें जरूरी हिदायतें दे देता हूं और फिर कारोबार संभालने की जिम्मेदारी उनकी होती है. इस तरह से मेरा काफी वक़्त बच जाता है. वक़्त बचने के कारण ही मैं यहाँ आ पाया हूँ. और हां, अगर युसूफ की जगह मैं होता तो इस बचे हुए वक़्त का इस्तेमाल मैं अपनी बेग़म के हुस्न की इबादत करने में करता.” अपनी बात ख़त्म होते ही मैंने वहीदा को अपनी बांह के घेरे में लिया और उसे अपनी तरफ खींच लिया.

“एहसान साहब, छोडिये मुझे.” वहीदा ने कहा. उसकी आवाज से अचरज तो झलक रहा था लेकिन गुस्सा या नाराज़गी नहीं. उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की. मुझे लगा कि उसका विरोध सिर्फ दिखाने के लिए है. मैंने उसे मजबूती से अपने शरीर से सटा लिया. उसके गुदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे रोमांचित कर रहा था. उसके बदन से निकलने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी. वहीदा ने रस्मी तरीके से कहा, “ये क्या कर रहे हैं आप?”

“मैं अपनी बेग़म के हुस्न की इबादत कर रहा हूं,” मैंने चापलूसी से कहा. “तुम मुझ से इबादत करने का हक़ नहीं छीन सकती.”

“लेकिन यह क्या तरीका है इबादत करने का?” वहीदा ने कहा. “और मैं आपकी नहीं, आपके दोस्त की बेग़म हूँ.”

वहीदा के अल्फ़ाज़ जो भी हों, उसकी आवाज में कमजोरी आ गई थी. उसने मेरे से दूर होने की कोई कोशिश नहीं की थी और उसका बदन ढीला पड़ चुका था. मुझे लगा कि उसका विरोध अब नाम मात्र का रह गया है.

“मैं तो तुम्हे दिखा रहा हूं कि मैं तुम्हारा शौहर होता तो क्या करता,” मैंने उसे और पास खींच कर कहा. “इसके लिए मुझे कुछ देर के लिए तुम्हे अपनी बेग़म समझना होगा. और आज मैं अपनी बेग़म की ख़िदमत पैरों से नहीं बल्कि अपने हाथों से करूंगा.”

मेरा एक हाथ वहीदा की कमर के गिर्द था और दूसरे हाथ से मैं उसके कंधे को सहला रहा था. पैरों की बात छेड़ कर मैंने उसे पिछली रात की याद दिला दी थी. और पिछली रात जो हुआ था वो तो उसके शौहर की मौजूदगी में हुआ था. जब उसने अपने शौहर के होते हुए कोई विरोध नहीं किया तो उसका आज का विरोध तो बेमानी था. लेकिन वो इतनी जल्दी हथियार डालने को तैयार नहीं थी. उसने कहा, “एहसान साहब, कल जो हुआ वो सिर्फ एक बेगुनाह छेड़छाड़ थी.”

“वो बेगुनाह थी तो इसमें कौन सा गुनाह है?” मेरा हाथ वहीदा के कंधे से फिसल कर उसके नंगे बाजू पर आ चुका था. “वो बेगुनाह छेड़छाड़ थी तो ये बेगुनाह इबादत है! बस तुम मुझे थोड़ी और इबादत करने का मौका दे दो.”

“कल की बात अलग थी,” वहीदा ने जवाब दिया. “कल मेरे शौहर साथ में थे.”

“इसीलिए तो तुमने मुझे कहा था कि मैं कभी भी दिन में यहाँ आ सकता हूं,” मैंने सोचा कि अब शर्म-ओ-लिहाज छोड़ने का वक़्त आ गया है. “तुम्हे पता था कि दिन में तुम्हारे शौहर यहाँ नहीं होंगे. क्या तुम मुझ से अकेले में नहीं मिलना चाहती थीं?”

अब वहीदा के लिए जवाब देना मुश्किल था. फिर भी उसने कोशिश की, “हां, लेकिन मेरा मकसद ...”

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम्हारा और मेरा मकसद एक ही है. तुम्हारा शौहर तुम्हारी अहमियत समझे या न समझे पर मैं समझता हूं. तुम्हारा हुस्न बेशक इबादत के काबिल है. तुमने मुझे अकेले में यहाँ आने के लिए कह कर बहुत हिम्मत की है. अब थोड़ी हिम्मत और करो. मुझे अपनी इबादत करने का मौका दे दो.”

क्रमशः 

FUN-MAZA-MASTI जाल में फंसाया--1

FUN-MAZA-MASTI

 जाल में फंसाया--1


युसूफ मेरा बचपन का दोस्त था. बड़े होने के बाद हम पहले जितने नज़दीक नहीं रहे थे पर हम एक ही शहर में रहते थे इसलिए हमारा मिलना होता रहता था. युसुफ़ को आप एक आम आदमी कह सकते हैं. वो दिखने में आम आदमी जैसा है, आम किस्म का बिजनेस करता है और औसत आर्थिक स्तर का है. लेकिन उसके मुताल्लिक एक बात आम आदमियों से अलग है और वो है उसकी बीवी वहीदा. देखने में वो उतनी ही खूबसूरत है जितनी किसी ज़माने में फिल्म एक्ट्रेस वहीदा रहमान हुआ करती थी. जब युसुफ़ से उसकी शादी हुई तो मैं हैरान रह गया कि इस युसूफ के बच्चे को ऐसी हूर कैसे मिल गई!

वहीदा को देखते ही मेरे दिल की धडकनें बेकाबू हो जाती थीं, मेरे मुंह में पानी आ जाता था और मेरे दिल में एक ही ख़याल आता था – किसी तरह ये मुझे मिल जाए! मेरा ही क्या, और सब मर्दों का भी यही हाल होता होगा. एक बार उसके चेहरे पर नज़र पड़ जाए तो वहां से नज़र हटाना मुश्किल हो जाता था. उसके होंठ तो चुम्बन का मौन निमंत्रण देते प्रतीत होते थे. चेहरे से किसी तरह नज़र हट भी जाए तो उसके सीने पर जा कर अटक जाती थी. उसके सुडौल, पुष्ट और उठे हुए स्तन मर्दों को दावत देते लगते कि आओ, हमें पकड़ो, हमें सहलाओ, हमें दबाओ और हमारा रस पीयो. अगर नज़र थोड़ी और नीचे जाती तो ताज्जुब होता कि इतनी पतली और नाज़ुक कमर सीने का बोझ कैसे उठाती होगी. मैं कभी उसके पीछे होता और उसे चलते हुए देखता तो उसके लरजते, थर्राते और एक-दूसरे से रगड़ते नितम्ब देख कर मैं तमाम तरह की नापाक कल्पनाओं में खो जाता!

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि वहीदा जैसी हसीन औरत बनाने के पीछे ऊपर वाले के दो ही मकसद रहे होंगे – पहला, कमबख्त युसूफ की ख्वाबगाह को जन्नतगाह बनाना और दूसरा, बाकी सब मर्दों के ईमान का इम्तेहान लेना. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस इम्तेहान में मैं फेल साबित हुआ था. मैं जब-जब वहीदा को देखता, मेरा लंड कपड़ों के अन्दर से उसे सलामी देने लगता था. अपने मनचले लंड को उसकी चूत की सैर करवाने के ख्वाब मैं सोते-जागते हर वक़्त देखा करता था.

युसूफ का दोस्त होने के कारण मुझे वहीदा से मिलने के मौके जब-तब मिल जाते थे. मैं अपनी मर्दाना शख्सियत से उसे इम्प्रेस करने की पूरी कोशिश करता था. अपनी तारीफ सुनना हर औरत की आम कमजोरी होती है. वहीदा की इस कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश भी मैं हमेशा करता रहता था. पर इस सब के बावजूद मैं अपने मकसद में आगे नहीं बढ़ पाया और मेरी कामयाबी सिर्फ उसके जलवों से अपनी आंखें सेकने तक ही सीमित रही.


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एक दिन युसूफ मेरे ऑफिस में मेरे से मिलने आया. वो निहायत परेशान लग रहा था पर अपनी बात कहने में झिझक रहा था. मेरे बार-बार पूछने पर उसने बड़ी मुश्किल से मुझे बताया, “एहसान, मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं. मुझे मदद की जरूरत है लेकिन ऐसे मामले में तुम्हारी मदद मांगने में मुझे शर्म आ रही है.”

“युसूफ, हम एक-दूसरे के सच्चे दोस्त हैं,” मैंने कहा. “अगर मुझे मदद की जरूरत होती तो मैं सबसे पहले तुम्हारे पास ही आता. तुमने ठीक किया कि तुम मेरे पास आये हो. अब मुझे बताओ कि मसला क्या है.”

“मसला मेरे बिज़नेस से ताल्लुक रखता है,” युसूफ ने सर झुका कर कहा. “एक पार्टी के पास मेरे पैसे अटक गए हैं. वे दो-तीन हफ़्तों का वक़्त मांग रहे हैं. लेकिन उससे पहले मुझे अपने सप्लायर्स को दस लाख रुपये चुकाने हैं. बैंक से मैं जितना लोन ले सकता हूं उतना पहले ही ले चुका हूं. अगर मैंने ये दस लाख रुपये फ़ौरन नहीं चुकाए तो मैं बड़ी मुश्किल में पड़ जाऊंगा.”

युसूफ की बात सुन कर मेरी आंखों के सामने वहीदा की तस्वीर घूमने लगी. मुझे अपने नाकाम मंसूबे पूरे करने का मौका नज़र आने लगा. दस लाख रुपये काफी बड़ी रकम थी, खास तौर से युसूफ के लिये. मैं सोच रहा था कि अगर मैं युसुफ़ को यह रकम दे दूं और वो इसे वक़्त पर न लौटा पाए तो क्या मैं अपने मकसद में कामयाब हो सकता हूं! मैंने यह रिस्क लेने का फैसला किया और युसूफ से कहा, “इस मुसीबत के वक़्त तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज़ है पर दस लाख की रकम बहुत बड़ी है.”

“मैं जानता हूं,” युसूफ ने जवाब दिया. “इसीलिए मैं तुमसे कहने में झिझक रहा था. लेकिन बात सिर्फ एक महीने की है. अगर किसी तरह तुम इस रकम का इंतजाम कर दो तो मैं हर हालत में एक महीने में इसे लौटा दूंगा.”

मेरे शातिर दिमाग में तरह-तरह के नापाक खयाल आ रहे थे. मेरी आँखों के सामने घूम रही वहीदा की तस्वीर से कपड़े कम हो रहे थे. मैं उम्मीद कर रहा था कि युसूफ की कारोबारी मुश्किलें कम नहीं हों और वो वक़्त पर मेरा क़र्ज़ न उतार पाए. उस सूरत में युसूफ क़र्ज़ अदा करने की मियाद बढाने की गुज़ारिश करेगा और मेरे वहीदा तक पहुँचने का रास्ता खुल सकता है. वैसे यह दूर की कौड़ी थी. मुमकिन था कि युसुफ वक़्त पर पैसों का इंतजाम कर ले. और इंतजाम न भी हो पाए तो लाजमी नहीं था कि वहीदा मेरी झोली में आ गिरे. पर उम्मीद पर दुनिया कायम है. फिर मैं उम्मीद क्यों छोड़ता!

मैंने युसूफ को कहा, “दस लाख रुपये देने में मुझे कोई दिक्क़त नहीं है पर तुम जानते हो कि बिजनेस में लेन-देन लगातार चलता रहता है. मुझे भी अपनी देनदारियां वक़्त पर पूरी करनी होंगी. इसलिए मैं एक महीने से ज्यादा के लिए क़र्ज़ नहीं दे पाऊंगा.”

यह सुन कर युसूफ खुश हो गया. उसने कहा, “तुम उसकी चिंता मत करो. मैं एक महीने से पहले ही यह रकम लौटा दूंगा.”

“मुझे तुम पर पूरा यकीन है,” मैंने सावधानी से कहा. “लेकिन मेरे पास कोई ब्लैक मनी नहीं है. मुझे पूरा लेन-देन अपने खातों में दिखाना होगा.”

“हां, हां! क्यों नहीं? मुझे कोई एतराज़ नहीं है.” युसूफ ने कहा.

मैंने कहा, “ठीक है, तुम कल इसी वक़्त यहाँ आ जाना. तुम्हारा काम हो जाएगा.”

युसूफ खुश हो कर वापस गया. मैं भी खुश था क्योंकि अब मेरा काम होने की भी सम्भावना बन रही थी.

जब युसूफ अगले दिन आया तो वो कुछ चिंतित दिख रहा था, शायद यह सोच कर कि मैं रुपयों का इंतजाम न कर पाया होऊं! जब मैंने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया तो उसकी चिंता कुछ कम हुई. अब मुझे होशियारी से बात करनी थी. मैंने थोड़ी ग़मगीन सूरत बना कर कहा, “युसूफ, रुपयों का इंतजाम तो हो गया है लेकिन ...”

युसूफ ने मुझे अटकते देखा तो पूछा, “लेकिन क्या? अगर कोई दिक्कत है मुझे साफ-साफ बता दो.”

“दिक्कत मुझे नहीं, मेरे ऑफिस के लोगों को है,” मैंने अपने शब्दों को तोलते हुए कहा. “मुझे तुम्हारे पर पूरा भरोसा है लेकिन मेरे ऑफिस वाले कहते हैं कि पूरी लिखा-पढ़ी के बाद ही रकम दी जाए.”

“तो इसमें गलत क्या है?” युसूफ ने फौरन से पेश्तर जवाब दिया. “इतनी बड़ी रकम कभी बिना लिखा-पढ़ी के दी जाती है! तुम्हारे ऑफिस वाले बिलकुल ठीक कह रहे हैं. तुम उनसे कह कर कागजात तैयार करवाओ.”

अब मैं उसे क्या बताता कि कागजात तो मैंने पहले से तैयार करवा रखे हैं और उनमे वक़्त पर क़र्ज़ अदा न होने की सूरत में कड़ी पेनल्टी की शर्त रखी गई है. खैर अपने आदमियों को एग्रीमेंट बनाने की हिदायत दे कर मैंने चाय के बहाने कुछ वक़्त निकाला.

कुछ देर बाद मेरा आदमी एग्रीमेंट ले कर आया. मुझे डर था कि उसे पढ़ कर युसूफ अपना इरादा न बदल दे. पर मुझे यह भी मालूम था कि उसे कहीं और से इतना बड़ा क़र्ज़ नहीं मिलने वाला था. बहरहाल उसने सरसरी तौर पर एग्रीमेंट पढ़ा और बिना झिझक उस पर दस्तखत कर दिए. जब युसूफ ने चैक अपनी जेब में रखा तो मुझे अपनी योजना का पहला चरण पूरा होने की तसल्ली हुई.


****************************************************


मेरे अगले एक-दो हफ्ते बड़ी बेचैनी से गुजरे. मैं लगातार युसूफ के बिजनेस की यहां-वहां से जानकारी जुटाता रहा. जैसे-जैसे मुझे खबर मिलती कि उसके पैसे अब भी अटके हुए हैं, मेरी ख़ुशी बढ़ जाती. आम तौर पर क़र्ज़ देने वाला उम्मीद रखता है कि उसके पैसे वक़्त पर वापस आ जायें पर मैं उम्मीद कर रहा था कि यह क़र्ज़ वक़्त पर न लौटाया जाए. जब तीन हफ्ते गुजर गए और मुझे युसूफ की मुश्किलें कम होने की खबर नहीं मिली तो मेरे अरमानों के पंख लग गए. अब मेरी कल्पना में वहीदा लगभग नग्न दिखने लगी थी. जब क़र्ज़ की मियाद पूरी होने में सिर्फ तीन दिन बचे थे तब युसूफ का फ़ोन आया. उसने मुझे शाम को डिनर की दावत दी तो मुझे आश्चर्य के साथ-साथ ख़ुशी भी हुई.

मेरी ख़ुफ़िया जानकारी के मुताबिक युसूफ अब तक पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया था. मुझे यकीन था कि वो क़र्ज़ की मियाद बढाने की बात करेगा. मुझे इसका क्या और कैसे जवाब देना था यह मैंने सोच रखा था. क्योंकि युसूफ ने मेरी बेग़म को नहीं बुलाया था, मुझे लगा कि आज की रात मेरी किस्मत खुल सकती है! मैं रात के आठ बजे उसके घर पहुँच गया. मैं वहीदा के लिए एक कीमती गुलदस्ता ले गया था.

युसूफ ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे ड्राइंग रूम में बैठाया. कुछ मिनटों के बाद वहीदा मुझे सलाम करने आई. उसको देखते ही मुझे लगा कि आज का दिन कुछ अलग किस्म का है. उसकी चाल, उसकी मुस्कुराहट, उसका पहनावा ... सब कुछ अलग और दिलनशीं लग रहा था. उसने एक बहुत चुस्त साटिन की कमीज़ पहन रखी थी. कमीज़ का गला काफी लो-कट था जिसमे से उसके एक-चौथाई मम्मे और उनके बीच की घाटी दिख रही थी. उसके दिलफरेब मम्मे तो जैसे कमीज़ से बाहर निकलने को अकुला रहे थे. आमतौर पर मेरी नज़र उसके हसीन चेहरे पर अटक कर रह जाती थी पर आज मैं उसके सीने से नज़र नहीं हटा पा रहा था.

जब वहीदा ने थोड़ी जोर से ‘सलाम, एहसान साहब’ कहा तो मैं अपने खयालों की जन्नत से हकीकत की दुनिया में लौटा. उसने देख लिया था कि मेरी निगाहें कहाँ अटकी थी. पर वो नाराज़ दिखने की बजाय खुश दिख रही थी. मैंने शर्मा कर उसके सलाम का जवाब दिया. जब वो बैठ गई तो मेरी नज़र उसके बाकी जिस्म पर गयी. वो एक नई नवेली दुल्हन की तरह खुशनुमा लग रही थी. अचानक मुझे गुलदस्ते की याद आई जो अभी तक मेरे हाथ में था. मैंने उठ कर गुलदस्ता उसे दिया तो उसके हाथ मेरी उँगलियों से छू गये. उस छुअन से मेरे शरीर में एक हल्का सा करंट दौड़ गया. युसूफ कुछ बोल रहा था जिस पर मेरा बिलकुल ध्यान नहीं था क्योंकि मेरा पूरा ध्यान तो वहीदा की खूबसूरती पर केन्द्रित था. वो भी बीच-बीच में मुझे एक मनमोहक अदा से देख लेती थी.

कुछ देर बाद वहीदा ने कहा कि उसे किचन में काम करना था और वो उठ कर चली गई. युसूफ और मैं बातें करते रहे पर मेरा दिमाग कहीं और ही था. हां, बीच-बीच में मैं उम्मीद कर रहा था कि युसूफ क़र्ज़ की बात छेड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. मैंने भी सोचा कि जल्दबाजी से कोई फायदा नहीं होगा. मुझे इंतजार करना चाहिए. तभी वहीदा ने आ कर कहा कि खाना तैयार है. हम उठ कर डाइनिंग रूम में चले गए. वहीदा खाना परोसने के लिए झुकती तो मुझे लगता कि वो जानबूझ कर मुझे अपने मम्मों की झलक दिखा रही है. मैं उसके मम्मों पर नज़र डालने के साथ-साथ यह भी कोशिश कर रहा था कि युसूफ को कोई शक न हो. मुझे यह भी लग रहा था कि वो या तो मेरी लालची नज़रों से अनजान है या फिर जानबूझ कर अनजान बन रहा है.

खाना परोसने के बाद वहीदा मेरे सामने की कुर्सी पर बैठ गई. मेज की चौड़ाई ज्यादा नहीं थी इसलिए मेरे घुटने एक-दो बार वहीदा के घुटनों से छू गये. उसने कोई नाखुशी जाहिर नहीं की तो मेरी हिम्मत बढ़ गई. मैं जानबूझ कर अपने घुटने उसके घुटनों से टकराने लगा. मुझे आशंका थी कि वो अपने घुटने पीछे खींच लेगी पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया. हां, उसकी नज़रें शर्म से झुक गई थीं. मैं युसूफ की तरफ देखते हुए उससे बात करने लगा और साथ ही मैंने अपने घुटने से वहीदा के घुटने को एक-दो बार सहलाया. उसने भी जवाब में मेरे घुटने को अपने घुटने से सहला कर जैसे इशारा कर दिया कि उसे कोई एतराज़ नहीं था. वो बीच-बीच में हमारी बातचीत में भी भाग ले रही थी और दिखा रही थी जैसे सब कुछ सामान्य हो. उसका व्यवहार मेरे शरीर में रोमांच पैदा कर रहा था. मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मैंने उसकी समूची टांग को अपनी टांग से सहलाना शुरू कर दिया. अब मेरा ध्यान खाने से हट चुका था. मुझे कुछ पता नहीं था कि युसूफ क्या बोल रहा था. मेरा ध्यान सिर्फ उन तरंगों पर था जो मेरी टांगों से उठ कर ऊपर की तरफ जा रही थीं और जिनका सीधा असर मेरे लंड पर हो रहा था.

क्रमशः 

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--10

FUN-MAZA-MASTI

 गुमराह पिता की हमराह बेटी--10

जयसिंह उसे देख कर मुस्कुराए और उठ खड़े हुए. मनिका बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने एक तरफ हट कर अपने पिता को बाथरूम में जाने के रास्ता दिया था. जयसिंह ने बाथरूम में घुस दरवाज़ा बंद कर लिया. उधर मनिका भी जा कर बेड पर बैठ गई थी.
बाथरूम से बाहर आने से पहले मनिका ने एकबारगी सोचा था कि अगर आज भी उसके पिता पिछली रात की भाँती सामने नंगे बैठे हुए तो वह क्या करेगी? पर फिर उसने यह सोचकर अपने मन से वह बात निकाल दी थी कि वो सिर्फ एक बार अनजाने में हुई घटना थी. लेकिन बाथरूम से बाहर निकलते ही जयसिंह से रूबरू हो जाने पर मनिका की नज़र सीधा उनकी टांगों के बीच गई थी. आज भी जयसिंह ने टांगें इस तरह खोल रखीं थी के उनके गुप्तांग प्रदर्शित हो रहे हों लेकिन आज जयसिंह ने एक सफ़ेद अंडरवियर पहन रखा था. मनिका की धड़कन बढ़ गई थी. अंडरवियर पहने होने के बावजूद जयसिंह के लंड का उठाव साफ़ नज़र आ रहा था. अंडरवियर में खड़े उनके लिंग ने उसके कपड़े को पूरा खींच कर ऊपर उठा दिया था, मनिका ने झट से अपनी नज़र ऊपर उठा कर अपने पिता की आँखों में देखा था, वे मुस्कुराते हुए उठे थे और बाथरूम में जाने लगे थे. उनके करीब आने पर मनिका की साँस जैसे रुक सी गई थी, बिना शर्ट के जयसिंह के बदन का ऊपरी भाग पूरी तरह से उघड़ा हुआ था, उन्होंने बनियान भी नहीं पहन रखी थी. जयसिंह का चौड़ा सीना और बलिष्ठ बाँहे देख हया से मनिका की नज़र नीचे हो गई थी और उसने एक तरफ हो उन्हें बाथरूम में जाने दिया व आ कर बेड पर बैठी थी,
'ओह्ह...थैंक गॉड आज पापा अंडरवियर पहने हुए थे...बट फिर से मैंने उनके प्राइवेट पार्ट्स को एक्सपोस होते देख लिया...मतलब अंडरवियर में से भी उनका बड़ा सा डिक...हे राम मैं फिर से ऐसा-वैसा सोचने लगी...' ब्लू-फिल्म में देखने से मनिका को यह तो पता था कि मर्द जब उत्तेजित होते हैं तो उनका लिंग सख्त हो जाता है पर उसने कभी बैठे हुए लिंग का दीदार तो किया नहीं था सो उसे उनके बीच के अंतर का पता नहीं था. एक बार फिर उसका बदन तमतमा गया था और वह सोचने लगी थी 'पता नहीं पापा कैसे इतना बड़ा...पैंट में डाल के रखते हैं? नहीं-नहीं...ऐसा मत सोच...अनकम्फर्टेबल फील नहीं होता क्या उन्हें..? हाय...ये मैं क्या-क्या सोच रही हूँ...पापा को पता चला तो क्या सोचेंगे?'
जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो मनिका को टी.वी देखते हुए पाया. मनिका ने ध्यान बंटाने के लिए टेलीविज़न चला रखा था. जयसिंह भी आकर उसके पास बैठ गए. मनिका ने कनखियों से उनकी तरफ देखा था वे आज भी बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए थे.
जयसिंह ने मनिका की बाँह पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा, वह उनका इशारा समझ गई थी और उनकी तरफ देखा, जिस पर जयसिंह ने उसे उठ कर गोद में आने का इशारा किया. मनिका थोडा सकुचा गई थी पर फिर भी उठ कर उनकी गोद में आ बैठी. आज वह उनकी जाँघ पर बैठी थी.
'क्या कुछ चल रहा है टी.वी में..?' जयसिंह ने पूछा.
'कुछ नहीं पापा...वैसे ही चैनल चेंज कर रही थी बैठी हुई. आज दिन में सो लिए थे तो नींद भी कम आ रही है.' मनिका ने बताया.
'हम्म...' जयसिंह ने टी.वी की स्क्रीन पर देखते हुए कहा.
कुछ देर वे दोनों वैसे ही बैठे टेलीविज़न देखते रहे, मनिका थोड़ी-थोड़ी देर में चैनल बदल दे रही थी. कुछ पल बाद जब मनिका ने एक बार फिर चैनल चेंज किया तो 'ईटीसी' चल पड़ा और उस पर 'जन्नत' फिल्म का ही ट्रेलर आ रहा था. जयसिंह को बात छेड़ने का मौका मिल चुका था.
आज जयसिंह ने जानबूझकर अंडरवियर पहने रखा था ताकि मनिका को शक न हो जाए कि वे उसे अपना नंगापन इरादतन दिखा रहे थे. लेकिन फिर कुछ सोच कर उन्होंने अपन शर्ट और बनियान निकाल दिए थे, आखिर मनिका को सामान्य हो जाने का मौका देना भी तो खतरे से खाली नहीं था. बाथरूम से निकलते ही मनिका की प्रतिक्रिया को वे एक क्षण में ही ताड़ गए थे और मुस्कुराते हुए नहाने घुस गए थे. लेकिन नहाने के बाद उन्होंने अपना अंडरवियर धो कर सुखा दिया था और अब बरमूडे के अन्दर कुछ नहीं पहने हुए थे. उन्होंने बात शुरू की,
'अरे मनिका! बताया नहीं तुमने कि मूवी कैसी लगी तुम्हें? पिछली बार तो फिल्म की बातों का रट्टा लगा कर हॉल से बाहर निकली थी तुम...'
'हेहे...ठीक थी पापा...' मनिका ने फिल्म के दौरान हुई घटनाओं को याद किया तो और झेंप गई थी.
'हम्म..मतलब जंची नहीं फिल्म आज..?' जयसिंह ने मनिका से नजर मिलाई.
'हेह..नहीं पापा ऐसा नहीं है...बस वैसे ही, मूवी की कास्ट (हीरो-हीरोइन) कुछ खास नहीं थी...और क्राउड भी गंवार था एकदम...सो...आपको कैसी लगी?' मनिका ने धीरे-धीरे अपने मन की बात कही और पूछा.
'मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं आई.' जयसिंह ने कहा.
'हैं? क्या सच में..?' मनिका ने आश्चर्य से पूछा.
'और क्या जो चीज़ तुम्हें नहीं पसंद वो मुझे भी नहीं पसंद...' जयसिंह ने डायलॉग मारा.
'हाहाहा पापा...कितने नौटंकी हो आप भी...बताओ ना सच-सच..?' मनिका हंस पड़ी.
'हाह...मुझे तो ठीक लगी...' जयसिंह ने कहा, 'और क्राउड तो अब हमारे देश का जैसा है वैसा है.'
'हुह...फिर भी बदतमीजी की कोई हद होती है. पब्लिक प्लेस का कुछ तो ख्याल होना चाहिए लोगों को...' मनिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा.
'हाहाहा...अरे भई तुम क्यूँ खून जला रही हो अपना?' जयसिंह ने मनिका की पीठ थपथपाते हुए कहा.
'और क्या तो पापा...गुस्सा नहीं आएगा क्या आप ही बताओ?' मनिका का आशय थिएटर में हुए अश्लील कमेंट्स से था.
'अरे अब क्या बताऊँ...हाहाहा.' जयसिंह बोले 'माना कि कुछ लोग ज्यादा ही एक्साइटेड हो जाते हैं...'
'एक्साइटेड? बेशर्म हो जाते हैं पापा...और सब के सब आदमी ही थे...आपने देखा किसी लड़की या लेडी को एक्साइटेड होते हुए?' मनिका ने जयसिंह के ढुल-मुल जवाब को काटते हुए कहा.
'हाहाहा भई तुम तो मेरे ही पीछे पड़ गई...मैं कहाँ कह रहा हूँ के लडकियाँ एक्साइटेड हो रहीं थी.' जयसिंह को एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा था और उन्होंने अब मनिका को उकसाना शुरू किया 'अब हो जाते हैं बेचारे मर्द थोड़ा उत्साहित क्या करें...'
'हाँ तो पापा और भी लोग होते है वहाँ जिनको बुरा लगता है...और ये वही मर्द हैं आपके जिनका आप कह रहे थे कि बड़ा ख्याल रखते हैं गर्ल्स का...' मनिका ने मर्द जात को लताड़ते हुए कहा.
'अच्छा भई...ठीक है सॉरी सब मर्दों की तरफ से...अब तो गुस्सा छोड़ दो.' जयसिंह ने मामला सीरियस होते देख मजाक किया.
'हेहे...पापा आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आप उनकी तरह नहीं हो.' मनिका ने भी अपने आवेश को नियंत्रित करते हुए मुस्का कर कहा.
इस पर जयसिंह कुछ पल के लिए चुप हो गए. मनिका ने उनकी तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर धीरे से कहा,
'पापा?'
'देखो मनिका ये बात तुम्हारे या मेरे सही-गलत होने की नहीं है. हमारे समाज में बहुत सी ऐसी पाबंदियां हैं जिनकी वजह से हम अपनी लाइफ के बहुत से आस्पेक्ट्स (पहलु) अपने हिसाब से ना जी कर सोसाइटी के नियम-कानूनों से बंध कर फॉलो करते हैं और यह भी उसी का एक एक्साम्प्ल (उदहारण) है.' जयसिंह ने कुछ गंभीरता अख्तियार कर समझाने के अंदाज़ में मनिका से कहा. चुप हो जाने की बारी अब मनिका की थी.
'पर पापा...ये आप कैसे कह सकते हो? दोज़ पीपल वर एब्यूजिंग सो बैडली...' मनिका ने कुछ पल जयसिंह की बात पर विचार करने के बाद कहा.
'हम्म...वेल लुक एट इट लाइक दिस...जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था...' जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका की नज़र झुक गई 'क्या वह हमारे समाज में एक्सेप्टेड है..? मेरा मतलब है कुछ साल पहले तक तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे.'
'इह...हाँ पापा बट इसका मतलब ये थोड़े ही है की आप ऐसा बिहेव करो सबके सामने..' मनिका ने तर्क रखा.
'नहीं इसका यह मतलब नहीं है...पर पता नहीं कितने ही हज़ार सालों से चली आ रही परम्परा के नाम पर जो दबी हुई इच्छाएँ...और मेरा मतलब सिर्फ लड़कों या मर्दों से नहीं है, औरत की इच्छाओं का दमन तो हमसे कहीं ज्यादा हुआ है...लेकिन जो मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि जब सोसाइटी के बनाए नियम टूटते हैं तो इंसान अपनी आज़ादी के जोश में कभी-कभी कुछ हदें पार कर ही जाता है.' जयसिंह ने ज्ञान की गगरी उड़ेलते हुए मनिका को निरुत्तर कर दिया था 'अब तुम ही सोचो अगर आज जब लड़कियों को सामाज में बराबर का दर्जा मिल रहा है तो भी क्या उन लड़कियों को बिगडैल और ख़राब नहीं कहा जाता जो अपनी आजादी का पूरा इस्तेमाल करना चाहती हैं...जिनके बॉयफ्रेंड होते हैं या जो शराब-सिगरेट पीती हैं..?'
'हाँ...बट...वो भी तो गलत है ना..? आई मीन अल्कोहोल पीना...' मनिका ने तर्क से ज्यादा सवाल किया था.
'कौन कहता है?' जयसिंह ने पूछा.
'सभी कहते हैं पापा...सबको पता है इट्स हार्मफुल.' मनिका बोली.
'सभी कौन..? लोग-समाज-सोसाइटी यही सब ना? अब शराब अगर आपके लिए ख़राब है तो यह बात उनको भी तो पता है...अगर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता तो समाज कौन होता है उनहें रोकनेवाला?' जयसिंह अब टॉप-गियर में आ चुके थे. 'अगर उन्हें अपने पसंद के लड़के के साथ रहना है तो तुम और मैं कौन होते हैं कुछ कहने वाले..? सोचो...सही और गलत की डेफिनिशन भी तो समाज ने ही बना कर हम पर थोपी है.'
'अब मैं क्या बोलूँ पापा..? आप के आइडियाज तो कुछ ज्यादा ही एडवांस्ड हैं.' मनिका ने हल्का सा मुस्का कर कहा. 'बट हमें रहना भी तो इसी सोसाइटी में है ना.' उसने एक और तर्क रखते हुए कहा.
'हाँ रहना है...' जयसिंह बोलने लगे.
'तो फिर हमें रूल्स भी तो फॉलो करने ही पड़ेंगे ना..?' अपना तर्क सिद्ध होते देख मनिका ने उनकी बात काटी.
'हाहाहा...कोई जरूरी तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.
'वो कैसे?' मनिका ने सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा.
'वो ऐसे कि रूल्स को तो तोड़ा भी जा सकता है...बशर्ते यह समझदारी से किया जाए.' जयसिंह ने कहा.
'मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा पापा...क्या कहना चाहते हो आप?' मनिका ने उलझन में पड़ते हुए सवाल किया.
'देखो...आज जब हॉल में वे लोग हूटिंग कर रहे थे तो कोई एक आदमी अकेला नहीं कर रहा था बल्कि चारों तरफ से आवाजें आ रही थी. अब सोचो अगर सिर्फ कोई एक अकेला होता तो तुम जैसे समाज के ठेकेदार उसे वहाँ से भगाने में देर नहीं लगाते पर क्यूंकि वे ज्यादा थे तो कोई कुछ नहीं बोला...अगर वे इतने ही ज्यादा गलत थे तो किसी ने आवाज़ क्यूँ नहीं उठाई?' जयसिंह का एक हाथ अब मनिका की कमर पर आ गया था 'मैं बताऊँ क्यूँ..? क्यूंकि असल में उस हॉल में ज्यादातर लोग उसी तरह के सीन देखने आए थे. पर बाकी सबने सभ्यता का नकाब ओढ़ रखा था और उन लोगों पर नाक-भौं सिकोड़ रहे थे जिन्होंने अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की हिम्मत दिखाई थी. सो एकजुट होकर अपनी इच्छा मुताबिक करना पहला तरीका है जिससे समाज के नियमों को तोड़ नहीं तो मोड़ तो सकते ही हैं.'
जयसिंह के तर्क मनिका के आज तक के आत्मसात किए सभी मूल्यों के इतर जा रहे थे लेकिन उनका प्रतिरोध करने के लिए भी उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था.
'पर पापा वो इतना रुडली बोल रहे थे उसका क्या? किसी को तो उन्हें रोकना चाहिए था...और आपका पता नहीं मैं तो वहां कोई सीन देखने नहीं गई थी.' मनिका ने सफाई देते हुए कहा.
'हाँ जरूर समाज का तो काम ही है रोकना. पहले दिन से ही समाज रोकना ही तो सिखाता है कभी लड़का-लड़की के नाम पर तो कभी घर-परिवार के नाम पर तो कभी धर्म-आचरण के नाम पर...अब तुम बताओ क्या फिर भी तुम रुकी?' जयसिंह का बात की आखिर में किया सवाल मनिका के समझ नहीं आया.
'क्या मतलब पापा...मैंने क्या किया?' उसने हैरानी से पूछा.
'क्या संचिता से तुम्हारी लड़ाई नहीं होती? वो तुम्हारी माँ है...क्या उनके सामने बोलना तुम्हें शोभा देता है? और फिर समाज भी यही कहता है कि अपने माता-पिता का आदर करो...नहीं कहता तो बताओ?' जयसिंह ने कहा.
'पर पापा मम्मी हमेशा बिना बात के मुझे डांट देती है तो गुस्सा नहीं आएगा क्या? मेरी कोई गलती भी नहीं होती...और मैं कोई हमेशा उनके सामने नहीं बोलती पर जब वो ओवर-रियेक्ट करने लगती है तो क्या करूँ..? अब आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो.' मनिका जयसिंह की बात से आहत होते हुए बोली.
'अरे!' जयसिंह ने अब अपना हाथ मनिका की कमर से पीठ तक फिरा कर उसे बहलाया 'मैं तो हमेशा तुम्हारा साथ देता आया हूँ...'
'तो आप ऐसा क्यूँ कह रहे हो कि मैं मम्मी से बिना बात के लड़ती हूँ?' मनिका ने मुहं बनाते हुए अपना सिर उनके कंधे पर टिकाया.
'मैंने ऐसा कब कहा...मैं जो कह रहा हूँ वो तुम समझ नहीं रही हो. तुम संचिता से लड़ाई इसीलिए तो करती हो ना क्यूंकि वो गलत होती है और तुम सही...फिर भी तुम्हे उसके ताने सहने पड़ते हैं क्यूंकि वो तुम्हारी माँ है. लेकिन इस बारे में अगर सोसाइटी में चार जानो के सामने तुम अपना पक्ष रखोगी तो वे तुम्हें ही गलत मानेंगे कि नहीं?' जयसिंह ने इस बार प्यार से उसे समझाया.
'हाँ पापा.' मनिका को भी उनका आशय समझ आ गया था.
'सो अब तुम अपनी माँ से हर बात शेयर नहीं करती क्यूंकि तुम्हें उसके एटीटयुड का पता है और यही तुम्हारी समझदारी है व वह दूसरा तरीका है जिस से समाज में रह कर भी हम अपनी इच्छा मुताबिक जी सकते हैं.'
'मतलब...पापा?' मनिका को उनकी बात कुछ-कुछ समझ आने लगी थी.
'मतलब समाज और लोगों को सिर्फ उतना ही दिखाओ जितना उनकी नज़र में ठीक हो, जैसे तुम अपनी माँ के साथ करती हो...लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम गलत हो और तुम्हारी माँ या समाज के लोग सही हैं. कुछ समझी?'
'हेहे...हाँ पापा कुछ-कुछ...' मनिका अब मुस्का रही थी.
'और ये बात मैंने तुम्हें पहले भी समझाई थी के अगर मैं भी समाज के हिसाब से चलने लगता तो क्या हम यहाँ इतना वक्त बिताते? हम दोनों ही घर से झूठ बोल कर ही तो यहाँ रुके हुए हैं...' जयसिंह ने आगे कहा.
'हाँ पापा आई क्नॉ...आई थिंक आई एम् गेटिंग व्हाट यू आर ट्राइंग टू से...कि सोसाइटी इज नॉट ऑलवेज राईट...और ना ही हम हमेशा सही होते हैं...है ना?' मनिका ने जयसिंह की बात के बीच में ही कहा.
'हाँ..फाइनली.' जयसिंह बोले.
'हीहीही. इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ मैं पापा...' मनिका हँसी.
'हाहाहा. बस समझाने वाला होना चाहिए.' जयसिंह ने हौले से मनिका को अपनी बाजू में भींच कर कहा.
'तो आप हो ना पापा...' मनिका भी उनसे करीबी जता कर बोली.
'हाहाहा...हाँ मैं तो हूँ ही पर मुझे लगा था तुम अपने आप ही समझ गई होगी दिल्ली आने के बाद.' जयसिंह ने बात ख़त्म नहीं होने दी थी.
'वो कैसे?' मनिका ने फिर से कौतुहलवश पूछा.
'अरे वही हमारी बात...कुछ नहीं चलो छोड़ो अब...' जयसिंह आधी सी बात कह रुक गए.
'बताओ ना पापा!? कौनसी बात..?' मनिका ने हठ किया.
'अरे कुछ नहीं...कब से बक-बक कर रहा हूँ मैं भी...' जयसिंह ने फिर से टाला.
'नहीं पापा बताओ ना...प्लीज.' मनिका ने भी जिद नहीं छोड़ी. सो जयसिंह ने एक पल उसकी नज़र से नज़र मिलाए राखी और फिर हौले से बोले,
'भूल गई जब तुम्हें ब्रा-पैंटी लेने के लिए कहा था?' मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई थी.

***

'क्या हुआ मनिका?' मनिका के चुप हो जाने पर जयसिंह ने पूछा था.

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--8

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 गुमराह पिता की हमराह बेटी--8

अलमारी में कुछ एक्स्ट्रा लिनन (चादर तौलिए इत्यादि) था और एक ओर उसके शॉपिंग बैग्स रखे हुए थे.
जयसिंह से लड़ाई हो जाने के बाद मनिका ने अपना खरीदा हुआ सामान यह कर के नहीं खोला था कि वो सब उन्होंने उसे दिलाया था. फिर जब उनके बीच सुलह हो गई थी तो ख़ुशी के मारे उसके दीमाग से यह बात निकल गई थी जबकि जयसिंह ने बीच में एक बार उसकी शॉपिंग को ले कर उसे कुछ कहा भी था. जयसिंह ने वह बैग्स लाकर उनके लगेज के पास ही रखे थे लेकिन शायद हाउस-कीपिंग (कमरे की साफ़ सफाई करने वाले) में से किसी ने उठाकर उन्हें अलमारी में रख दिया था. मनिका ने सारे बैग्स निकाले और उत्साह से बेड पर बैठ एक-एक कर उनमें से अपनी लाई चीज़ें निकालने लगी. जयसिंह की पीठ उसकी तरफ थी और वे कुर्सी पर बैठे अभी भी फोन पर लगे थे.
अपने नए कपड़े देख-देख मनिका खुश होती बैठी रही, 'ओह वाओ...मेरे वार्डरॉब में कितनी सारी नई ड्रेसेस आ गईं हैं...सबको दिखाने में कितना मजा आएगा...हहा...' अपनी सहेलियों की प्रतिक्रियाएँ सोच वह आनंदित हो रही थी. 'पर...मम्मी देखेंगी जब..? फिर से वही लड़ाई होगी...खर्चा कम...ढंग के कपड़े...और तेरे पापा...ले-देके यही चार बातें हैं उनके पास...' संचिता से लड़ाई अभी भी उसके जेहन में ताज़ी थी और उसके विचार घूम-फिर के फिर उन्हीं बातों पर लौट आए थे. 'बट पापा ने कहा कि वे सँभाल लेंगे...हाह... पापा के सामने फ़ुस्स हो जातीं है मम्मी की तोप भी...हीहाहा...अरे कल पापा ने कहा था कि उन्हें तो दिखाया ही नहीं कि क्या कुछ शॉप कर के लाई हूँ..?' मनिका ने अपने सामने फैली पोशाकों पर एक नज़र घुमाते हुए सोचा और मुस्काते हुए एक ड्रेस उठा ली थी.
कुर्सी पर बैठे हुए जयसिंह को बाथरूम का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ तो आई थी पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया था और अपने असिस्टेंट को ऑफिस में आ रही दिक्कतों को हैंडल करने के इंस्ट्रक्शन देते रहे,
'पापा..' बाथरूम का दरवाज़ा खुला और आवाज़ आई.
जयसिंह ने कुर्सी पर बैठे हुए ही मुड़ कर पीछे देखा और फोन में बोले, 'हाँ माथुर, जो मैंने कहा है वो कैरी आउट करो और कोई दिक्कत हो तो कल मुझे कॉल कर लेना, अभी थोड़ा बिजी हूँ...' माथुर ने उधर से कुछ कहा था लेकिन जयसिंह फोन काट चुके थे.
'औकात में रहना है.' उनके दीमाग ने लंड को संदेश भेज चेताया था.
मनिका ने बाथरूम में जा कर अपने नए लिए कपड़ों को पहना था, वह एक पल के लिए नर्वस हुई तो थी के 'पता नहीं पापा क्या सोचेंगे?' पर फिर उसे अपनी माँ की समझाइशें याद आ गईं और अपनी माँ को चिढ़ाने (जबकि वे वहाँ नहीं थीं) के चक्कर में उसने कपड़े बदल लिए थे. बाथरूम के शीशे में उसने अपने-आप को निहारा था और अपनी चटख लाल स्लीवलेस टी-शर्ट और काली शार्ट स्कर्ट को देख उसके संकोच ने फिर एक बार उसे आगाह किया था, लेकिन उसे जयसिंह की बात याद आ गई थी 'कपड़े ही तो हैं...' और वह मुस्कुराती हुई बाहर निकल आई थी. उसने यह नहीं सोचा था कि कपड़ों के अंदर जिस्म भी तो होते हैं.
जयसिंह कुछ समझ पाते उससे पहले ही मनिका बाथरूम के दरवाज़े से बाहर निकल आई थी,
'तो पापा? कैसी लग रही हूँ मैं? ये ड्रेस ली थी मैंने...मतलब और भी हैं, पहन के दिखाती हूँ अभी...पहले ये बताओ कैसी है?' मनिका ने चहक कर पूछा.
'अच्छी है...' जयसिंह ऊपर से नीचे तक उसे देखते हुए बोले, मनिका को हल्की सी लाज भी आई पर वह खड़ी रही.
उसकी गोरी-गोरी बाँहें और जांघें देख जयसिंह को पहली रात याद आ गई थी 'ओह्ह मैं तो भूल ही गया था कि कितनी चिकनी है ये कमीनी...' मनिका का स्कर्ट उसके घुटनों से थोड़ा ऊपर तक का था.
'पापा मेरी पिक्स तो क्लिक कर दो इन ड्रेसेस में प्लीज...फ्रेंड्स को भेजूंगी और जलाऊँगी... हीही...' मनिका ने अपना फोन उनकी तरफ बढ़ाया.
लेकिन जयसिंह ने उसके बोलते ही अपने फोन, जो अभी उनके हाथ में ही था, का कैमरा ऑन कर लिया था. मनिका ने अपना फोन पास रखे टेबल पर रख दिया और पोज़ बनाते हुए बोली,
'अच्छा फिर मुझे सेंड कर देना पिक्स बाद में...'
'हम्म..' जयसिंह उसका फोटो खींचते हुए बोले. चिड़िया पिंजरे में आ बैठी थी.
अब मनिका बारी-बारी से कपड़े बदल-बदल उनके सामने आने लगी और जयसिंह उसके फोटो लेने लगे, मनिका ने स्कर्ट के बाद उनको अपनी नई जीन्स पहन कर दिखाईं थी और उसके बाद दो जोड़ी डेनिम हॉट-पैंट्स(डेनिम या कपड़े से बनी शॉर्ट्स) पहन कर आई थी, उसकी ज्यादातर नई टी-शर्ट्स स्लीव्लेस हीं थी. जयसिंह का लंड उनके हर एनकाउंटर पर उछाल मार रहा था लेकिन जयसिंह भी मनिका के बाथरूम में चेंज करने को घुसते ही लंड को शांत करने के प्रयास चालु कर देते थे ताकि बात हाथ से निकलने के पहले ही संभाली जा सके.
उसके बाद मनिका एक काली पार्टी-ड्रेस पहन कर बाहर निकली थी, ड्रेस का कपड़ा सिल्की सा था, जयसिंह देखते ही तड़प गए थे. ड्रेस में क्लीवेज थोड़ा सा गहरा था (इतना ज्यादा भी नहीं कि कुछ दिखे) जिससे मनिका की क्लीवेज-लाइन का थोड़ा सा आभास मिल रहा था और ड्रेस की लंबाई भी इस बार पहले वाले स्कर्ट और हॉट-पैंट्स के मुकाबले कम थी. पर सबसे ज्यादा उत्तेजक बात यह थी कि ड्रेस के चिकने कपड़े ने मनिका के बदन से चिपक कर उसके उभारों को तो निखार ही दिया था लेकिन साथ ही उसकी ब्रा-पैंटी की आउटलाइनस् भी साफ़ नज़र आ रहीं थी.
मनिका ने जब पहली कुछ ड्रेसेस पहन कर उन्हें दिखाईं थी तो पहले वह अपने-आप को शीशे में अच्छे से देख-भाल कर फिर बाहर आती थी लेकिन बार-बार कपड़े बदल कर आने के कारण हर बार उसका ध्यान जल्दी से बाहर आने की तरफ बढ़ता गया था और इस बार वह ड्रेस पहनते ही एक नज़र अपने आप को देख बाहर आ गई थी जबकि उसकी ड्रेस का कपड़ा उसके बाहर आते-आते ही उसके बदन से चिपकना शुरू हुआ था (क्योंकि चिकने मैटेरियल से बने कपड़े में बदन से होने वाले घर्षण से ऐसा होता है). फोटो खींचते वक्त जयसिंह का हाथ एकबारगी काँप गया था.
मनिका के पास दिखाने को अब और कोई ड्रेस नहीं बची थी सो वह खड़ी रही व इस बार जयसिंह ने उसके ज्यादा ही फोटो ले लिए थे.
'बस पापा इतनी ही थीं..' मनिका ने उन्हें बताया.
'बस? इतने से कपड़ों का बिल था वो..?' जयसिंह ने हैरानी जताई.
'हाहाहा...मैंने कहा था ना पापा...क्या हुआ शॉक लग गया आपको?' मनिका ने हँसते हुए उनके थोड़ा करीब आते हुए कहा.
'नहीं-नहीं...पैसे की फ़िक्र थोड़े ही कर रहा हूँ. मुझे लगा और भी ड्रेस होंगी...' जयसिंह ने मुस्का कर कहा और उसे अपनी गोद में आने का इशारा किया. मनिका इतनी कातिल लग रही थी के लाख न चाहने के बाद भी वे अपने लंड की डिमांड को अनसुना नहीं कर सके थे. पर इस बार मनिका ने ही उन्हें बचा लिया,
'और तो पापा दो पर्स लिए थे मैंने और एक वॉच...एंड और क्या था..? हाँ बेल्ट और...सैंडिलस्...' मनिका सोच-सोच कर गिनाने लगी, पर वह उनकी गोद में नहीं बैठी थी क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि उसने अंदर पैंटी पहन रखी थी जबकि इन ड्रेसेस के अंदर नीचे अमूमन बॉय-शॉर्ट्स (शॉर्टसनुमा पैंटी) पहनी जातीं हैं. अगर वह जयसिंह की जांघ पर बैठ जाती तो नीचे से खुली ड्रेस ऊपर उठ जाती जिसमें उसके अंडरवियर के एक्सपोज़ हो जाने का खतरा था. मनिका को यह आभास अजीब सा लगा था पर इस बार उसने अपने चेहरे पर शरम की अभिव्यक्ति नहीं होने दी थी, आखिर बेटी तो वह भी जयसिंह की ही थी.
'अच्छा-अच्छा ठीक है.' जयसिंह ने अपनी शॉपिंग लिस्ट सुनाती मनिका को थमने के लिए कहा और एक बार फिर अपने पास बुलाया, पर मनिका ने पीछे हटते हुए कहा,
'पापा मैं चेंज कर के आती हूँ...फिर मुझे पिक्स दिखाना.'
जयसिंह ने भी फिर से उसे नहीं बुलाया और थोड़ी राहत महसूस की थी. फिर उन्हें याद आया,
'मनिका..!?'
'जी पापा?' मनिका बाथरूम के दरवाजे पर पहुँच रुक गई थी.
'वो मेरी दिलाई चीज़ तो तुमने दिखाई ही नहीं पहन कर..' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा.
'कौनसी चीज़...? ओह्ह...हाँ पापा...भूल गई मैं...रुको.' मनिका एक पल बाद समझ गई थी और बेड की तरफ जा कर झुक कर वहाँ रखे कपड़ों में लेग्गिंग्स की जोड़ी खोजने लगी. जयसिंह ने देखा कि उसने अपना एक घुटना मोड़ कर बेड पर रखा हुआ था और उसका दूसरा पैर नीचे फर्श पर था, वह आगे झुकी हुई थी सो उसकी कमर और नितम्ब ऊपर हो गए थे और साथ ही वह ड्रेस भी, जयसिंह का बदन एक बार फिर से गरमा गया था. उन्होंने अपने बचे-खुचे विवेक का इस्तेमाल कर कैमरा वीडियो मोड पर कर लिया था और उस मादक से पोज़ में झुकी अपनी बेटी की गांड का वीडियो बनाने लगे.
कुछ दस सेकंड यह वाकया चला जिसके बाद मनिका ने सीधी होकर मुस्कुराते हुए जयसिंह को अपने हाथ में ली हुई लेग्गिंग्स दिखाई थी और पहन कर आने का बोल बाथरूम में चली गई थी. जयसिंह ने फटाफट वीडियो बंद कर दिया था और उसके जाते ही जल्दी से अपने फोन की गैलरी में जा कर देखा क़ि वो सेव तो हुआ था के नहीं? वीडियो सेव हो गया था लेकिन गैलरी में उसकी थंबनेल (फोटो या वीडियो की झलक देता आइकॉन) देख मनिका को जयसिंह की कारस्तानी का साफ़ पता चल जाना था. जयसिंह ने जल्दी से वीडियो और साथ ही अभी ली हुई तस्वीरों का बैकअप ले उस वीडियो को वहाँ से डिलीट कर दिया था.
मनिका को लेग्गिंग पहन कर बाहर आने में थोड़ा वक्त लग गया था. खड़े-खड़े इतनी पतली पजामी पैरों में पहनने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब तक जयसिंह ने भी अपनी सेफ साइड रख ली थी. मनिका ने ऊपर से एक टी-शर्ट डाली और इस बार बिना आईना देखे ही बाहर आ गई. जयसिंह, जो अभी उसकी गांड को अपने मन से निकालने की कोशिश करने में लगे ही थे, पर कहर बरप पड़ा था.
एक तो जयसिंह ने पहले ही लेग्गिंग दो साइज़ छोटी ले कर दी थी उस पर उसका कपड़ा बिल्कुल झीना था तिस पर उसका रंग भी लाइट-स्किन कलर जैसा था; और मनिका यह सब बिन देखे ही बाहर निकल आई थी.
जयसिंह के बदन में करंट दौड़ने लगा था, लेग्गिंग्स के रंग की वजह से उसके कुछ भी न पहने हुए होने का आभास होता था व मनिका के अधो-भाग का एक-एक उभार नज़र आ रहा था. जयसिंह को अभी तक तो अपनी बेटी के कपड़ों में से उसकी जाँघों और नितम्बों का ही दीदार अच्छे से होता आया था लेकिन यह लेग्गिंग्स इतनी ज्यादा टाइट कसी हुई थी कि उसकी टांगों के बीच का फासला '' भी नज़र आने लगा था. कपड़ा पूरी तरह से उसकी जाँघों और योनि पर चिपक गया था और मनिका की योनि का उभार साफ़ दिख रहा था.
'कैसी लग रहीं है पापा?' मनिका चहकते हुए बाहर आई थी.
'उह्ह ह..' जयसिंह ने कुछ शब्द निकालने का प्रयास किया था पर सिर्फ आह ही निकल सकी.
मनिका उनके पास आ पहुंची थी. जयसिंह को इस बार पहले से ही इल्म था की कहाँ-कहाँ ध्यान से देखने पर मनिका के जिस्मानी जादू का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. उनकी नज़र सीधी उसके प्राइवेट पार्ट्स (गुप्तांग) पर जा टिकीं थी और उसके करीब आते-आते उन्हें उसकी पहनी हुई पैंटी के रंग और साइज़ का पता चल चुका था. उसने आज अपनी स्काई-ब्लू रंग वाली अंडरवियर पहन रखी थी. मनिका की उभरी हुई योनि देख जयसिंह वैसे ही आपा खो रहे थे जब मनिका उनके ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी,
'बताओ न पापा?'
'बहुत...बहुत अच्छी ल..लग रही है..' जयसिंह ने तरस कर कहा. अपने लंड को काबू करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा चुकीं थी.
मनिका उनकी गोद में आ बैठी, जयसिंह को अपनी बेटी की कच्ची सी योनि अपनी जांघ पर टिकती हुई महसूस हुई थी, उनकी रूह कांप गई थी.
'ओह मनिका यू आर सो ब्यूटीफुल...' उनके मुहँ से निकला.
'इश्श पापा. यू आर मेकिंग मी शाय (शरम)...' मनिका ने मुस्काते हुए जवाब दिया 'इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं..मुझे बहलाओ मत..'
'तुम्हें क्या पता?' जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा और उस दिन ट्रेन वाली तरह अपना दूसरा हाथ उसकी जांघ पर रख लिया. मनिका की योनि का आभास उन्हें पागल किए जा रहा था. 'आज तो रेप होगा मुझसे लग रहा है..!' जयसिंह ने मन ही मन अपनी लाचारी व्यक्त की थी.
असल में मनिका को भी जयसिंह की तारीफ़ बहुत भायी थी. एक बात और थी जिसने आज मनिका को अपनी ये फैशन परेड करने के लिए उकसाया था लेकिन जिसका भान अभी उसके चेतन मन को नहीं हुआ था; पिछली रोज जब जयसिंह टी.वी. में दिखाई जा रही लडकियाँ ताड़ रहे थे तो मनिका ने नोटिस कर लिया था व उन्हें छेड़ा था. उस बात ने भी उसके आज के फैसले में कहीं ना कहीं एक भूमिका निभाई थी.
जयसिंह उसकी जांघ सहलाना शुरू कर चुके थे.
'पापा फ़ोन दो ना. पिक्स देखते हैं..' मनिका बोली.
जयसिंह ने उसकी जांघ से हाथ हटा अपने बाजू में रखा फ़ोन उठा कर उसे पकड़ा दिया और फिर से उसकी जाँघों पर हाथ ले गए. मनिका फ़ोन की फोटो-गैलरी खोल जयसिंह की ली हुई तस्वीरें देखने लगी. शुरुआत की कुछ फोटो देख वह बोली,
'पापा! कितनी अच्छी पिक्स क्लिक की है आपने...एंड ये ड्रेसेस कितनी अमेजिंग लग रही है ना?' उसने जयसिंह और अपनी, दोनों की ही तारीफ़ करते हुए पूछा था. जयसिंह ने तो हाँ कहना ही था, उनका खड़ा हुआ लिंग भी उनके अंडरवियर में कसमसा कर हाँ कह रहा था.
फिर आगे मनिका की पार्टी-ड्रेस वाले फोटो आने शुरू हो गए, इस बार वह झेंप गई. जयसिंह ने फोटो भी ज्यादा ले रखे थे सो उन्हें आगे कर-कर देखते हुए उसकी झेंप शरम में तब्दील होती जा रही थी. उसने एक फोटो पर रुकते हुए डिलीट-बटन दबाया था, जयसिंह ने तपाक से पूछा कि वह क्या कर रही है? तो उसने थोड़ा सकुचा कर कहा कि वे फोटोज़ ज्यादा अच्छे नहीं आए थे, उसका मतलब था कि उनमें उसके पहने अंडर-गारमेंट्स का पता चल रहा था.
मनिका ने एक दो फोटो ही डिलीट किए थे कि जयसिंह के फ़ोन पर एक बार फिर से रिंग आने लगी, ऑफिस से माथुर का फ़ोन था,
'ओहो आज तो कुछ ज्यादा ही कॉल्स आ रहीं है आपको..!' मनिका ने झुंझला कर कहा.
'बजने दो..अभी तो बात की थी..' जयसिंह ने कहा, उनका चेहरा अब मनिका के बालों के पास था और वे उनकी भीनी-भीनी खुशबू में खोए थे. मनिका ने फ़ोन के अपने आप डिसकनेक्ट हो जाने तक इंतज़ार किया और फिर से उन पिक्स को डिलीट करने लगी जो उसे ज्यादा ही रिवीलिंग लगीं थी. बैक-अप ले चुके जयसिंह बेफिक्र थे. फ़ोन एक बार फिर से बजने लगा.
'हाँ माथुर बोलो?' जयसिंह ने तल्खी से पूछा. उन्होंने मनिका को एक बार फिर से कॉल न उठाने को कहा था लेकिन फ़ोन डिसकनेक्ट होते ही वापस रिंग आने लग गई थी.
उनके सेक्रेटरी ने उन्हें बताया की उनका एक बहुत बड़ा क्लाइंट जो पिछले कुछ दिनों से उनसे बात करने के लिए रोज कॉल कर रहा था, वह भी अभी दिल्ली में था. उसने जब आज फिर से कॉल किया तो उनके सेक्रेटरी ने उसको जयसिंह के दिल्ली गए होने की सूचना दी थी, जिस पर उसने उससे मीटिंग फिक्स करने के लिए कहा था और इसी बाबत उनका सेक्रेटरी उन्हें कॉल पर कॉल कर रहा था.
जयसिंह सोच में पड़ गए. यह क्लाइंट बहुत बड़ी आसामी थी और उनकी कंपनी की बैलेंस-शीट में मौजूद बड़े नामों में से एक था, मीटिंग करनी जरूरी थी; उन्होंने सेक्रेटरी से मीटिंग फिक्स कर उन्हें कॉल करने को कहा. अचानक घटनाक्रम में हुए परिवर्तन ने एक बार फिर उनके हवस के मीटर की सुई को चरम पर पहुँच कर टूटने से बचा लिया था, 'कुछ करना पड़ेगा...जल्द.' जयसिंह ने सोचा और मनिका से बोले,
'जाना पड़ेगा मुझे...एक क्लाइंट यहाँ आया हुआ है.' जयसिंह ने मनिका से कहा.
'बट पापा! वी आर ऑन अ हॉलिडे ना?' मनिका ने बेमन से कहा.
'येस डार्लिंग आई क्नॉ बट ये काफी मालदार क्लाइंट है...इसी जैसों से तो तुम्हारी शॉपिंग पूरी होती है.' जयसिंह ने उसके गाल सहला उसे बहलाया 'चलो गेट उप नाओ, मुझे रेडी भी होना है.' जयसिंह ने आगे कहा था और अभी भी काम-वासना के वशीभूत अपने हाथ से, उनकी जांघ पर बैठी हुई मनिका को उठाने के लिए, उसके नितम्ब पर हल्की सी थपकी दे दी थी.
'आउच...ओके-ओके पापा.' मनिका को उनके इस स्पर्श का अंदेशा नहीं था और वह उचक कर खड़ी हो गई थी, जयसिंह ने बिल्कुल भी ऐसा नहीं दर्शाया कि उन्होंने कोई गलत या अजीब हरकत कर दी हो और उठ कर मीटिंग के लिए तैयार होने चल दिए.
मनिका को अपनी गांड में एक हल्की सी तरंग उठती महसूस हुई थी और वह कुछ पल वैसे ही खड़ी उनको जाते हुए देखती रही थी.

***

जयसिंह रात को लेट वापस आए थे. उन्होंने मनिका को कॉल करके बता दिया था कि आज उन्हें आने में देर हो जाएगी, उनके क्लाइंट ने उन्हें अपने एक-दो जानकार इन्वेस्टर्स से मिलवाया था और निकट भविष्य में जयसिंह को उनसे एक बड़ी डील होती नज़र आ रही थी. मीटिंग से निकल उन्होंने माथुर को फ़ोन कर आज की अपनी मीटिंग का ब्यौरा दिया था और जल्द से जल्द अपने नए क्लाइंट्स के लिए एक पोर्टफोलियो तैयार करने को कहा था.
'अब तो दिल्ली चक्कर लगते रहेंगे..' वे फ़ोन रखते हुए बोले थे.
जब तक जयसिंह अपने हॉटेल रूम में पहुँचे थे मनिका सो चुकीं थी. जयसिंह ने भी बाथरूम में जा कर चेंज किया और आकर लेट गए, 'हे भगवान् ये डील फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए.' उन्होंने प्रार्थना की, उनके दीमाग में आज की उनकी बिज़नस मीटिंग के विचार उठ रहे थे. काफी पैसा आने की सम्भावना ने मनिका पर उनका ध्यान अभी जाने नहीं दिया था, पर फिर उन्होंने करवट बदली और उनके विचार भी बदल गए 'और ये डील हो जाए तो डबल मजा आ जाए...' उन्होंने अपनी बेटी के जिस्म की तरफ हाथ बढ़ाते हुए सोचा.
जयसिंह ने शुक्र मनाया कि उन्होंने हाथ मनिका के गाल पर रख उसे सहलाया था. मनिका अभी पूरी तरह से नींद में नहीं थी और उनका स्पर्श पाते ही उसने आँखें खोल लीं थी.
'आह...पापा? आ गए आप?' उसने अंगडाई लेते हुए पूछा.
'हाँ...सोई नहीं अभी तक?' जयसिंह उसे जागती हुई पा कर थोड़ा घबरा गए थे.
'उहूँ...बस नींद आने ही लगी थी आपका वेट करते-करते..' मनिका ने नींद भरी आवाज़ से कहा.
'ह्म्म्म..वो मीटिंग जरा देर तक चलती रही सो लेट हो गया.' जयसिंह ने बताया.
उनींदी हुई मनिका से कुछ देर बात करने के बाद जयसिंह ने उसे सो जाने को कह और एक बार फिर से लाइट ऑफ कर दी थी. मनिका अभी सोई नहीं थी और आज वे भी थक चुके थे, सो उन्होंने भी अपने सिर उठाते लंड को हल्का सा दबा कर शांत करने का प्रयास किया था और कुछ ही देर में उनकी आँख लग गई थी.
जयसिंह सपना देख रहे थे; सपने में वे एक बिज़नस मीटिंग में बैठे थे और एक बेहद बड़ी डील साईन करने के लिए निगोशिएट कर रहे थे. उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनके साथ उनका सेक्रेटरी और ऑफिस के कर्मचारी कागजात लेकर बैठे हुए हैं और काफी गहमा-गहमी का माहौल है लेकिन जयसिंह किसी का भी चेहरा साफ-साफ़ नहीं देख पा रहे थे. कुछ देर इसी तरह सपना चलता रहा जब आखिर सामने बैठा क्लाइंट डील साईन करने को राजी हो गया और उसने उठते हुए उनसे हाथ मिलाया. जयसिंह ने भी उठ कर हाथ आगे बढाया था लेकिन अब उनके सामने क्लाइंट की जगह मनिका खड़ी थी और मुस्का रही थी, 'आई अग्री (मान जाना) पापा..!' सपने वाली मनिका ने कहा, उसने एक छोटी सी काली ड्रेस पहन रखी थी. जयसिंह ने नीचे देखा और पाया कि वे खुद नंगे खड़े थे और उनका लंड खड़ा हो कर हिलोरे ले रहा था, तभी मनिका ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया; जयसिंह की आँख खुल गई, उनका हाथ पजामे के अन्दर लंड को थामे हुए था और उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.
जयसिंह ने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, उन्होंने सिरहाने रखे फ़ोन में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा, वह पेट के बल लेटी सो रही थी. उनका लंड अभी भी उनके हाथ में था पर मनिका को सोते हुए पा कर भी उन्होंने उसे छूने की कोशिश नहीं की थी. वे लेटे-लेटे सोचने लगे,
'उफ़...अब तो साली के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है इसकी जवानी...पर कुछ होता दिखाई नहीं देता, इसके सिर पर तो दोस्ती का भूत सवार है और मेरे लंड पर इसकी ठुकाई का. दोनों के बीच मेरी बैंड बजी रहती है. क्या करूँ समझ नहीं आता...आज आखिरी दिन है, कल तो चिनाल का इंटरव्यू होगा.' जयसिंह अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए मनिका की उभरी हुई गांड देख रहे थे. 'हर तरह से इसे बहला चुका हूँ...पर आगे दीमाग में कोई तरकीब आ ही नहीं रही है...' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद उनके लंड ने एक जोरदार हिचकोला खाया. यकायक जयसिंह के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...दीमाग नहीं...अब लंड की बारी है...'
जयसिंह ख़ुशी-ख़ुशी सो गए, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
सूरज निकल आने के साथ ही जयसिंह और मनिका भी उठ गए थे. उन्होंने अपनी दिनचर्या के काम निपटाए और मनिका के कहने पर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लिया. मनिका को भी अगले दिन का अपना इंटरव्यू नज़र आने लगा था और जयसिंह को अपनी बुद्धिमता के लाख उदाहरण देने के बावजूद अब वह भी कुछ नर्वस हो गई थी. उसने अपने पिता से कहा कि आज वह इंटरव्यू के लिए पढ़ कर थोड़ा रिवीजन करने का सोच रही थी सो अगर उन्हें भी अपने बिज़नस का कोई जरूरी काम हो तो वे बेफिक्र कर सकते हैं. जयसिंह ने मुहँ-अँधेरे आँख खुलने पर जो तरकीब सोची थी उसे इस्तेमाल करने की हिम्मत अभी तक नहीं बाँध सके थे. उस वक्त तो नींद में उन्होंने फैसला कर लिया था लेकिन सुबह मनिका के उठ जाने के बाद उनका असमंजस और व्याकुलता बढ़ गए थे. एक मौका आ कर हाथ से निकल भी चुका था. उन्होंने मनिका की बात पर सहमत होते हुए कहा कि वैसे तो आज वे फ्री थे और रूम में ही रहेंगे बट अगर कोई काम आन पड़ता है तो शायद उन्हें जाना पड़ जाए.
नाश्ता करने के बाद मनिका अपनी किताबें ले कर बैठ गई और जयसिंह कुछ देर कमरे में इधर-उधर होने के बाद उस से पूल खेलने जाने का बोल कर नीचे चले गए. कुछ घंटों बाद उन्होंने रूम में कॉल कर के मनिका को नीचे लंच के लिए बुलाया, जब वे खाना खत्म कर चुके तो जयसिंह के आग्रह के बाद भी मनिका उनके साथ पूल एरिया में न जा कर पढ़ने के लिए रूम में लौट गई थी.
जयसिंह शाम हुए रूम में लौट कर आए. वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे, उनको इस कदर मुस्काते देख बेड पर किताब लिए बैठी मनिका ने उन्हें छेड़ते हुए पूछा,
'क्या हुआ पापा? बड़ा मुस्कुरा रहे हो आज तो...कोई गर्लफ्रेंड बना आए हो क्या?'
'हाहाहा...नहीं-नहीं कहाँ गर्लफ्रेंड...पर हाँ अपनी एक गर्लफ्रेंड की शॉपिंग का जुगाड़ कर आया हूँ...' जयसिंह ने भी हँस कर उसे आँख मार दी थी, उनका इशारा मनिका की तरफ ही था.
'हाहाहा...ये बात है? मुझे भी बताओ फिर तो...' मनिका ने किताब एक तरफ रखते हुए पूछा.
जयसिंह ने उसे बताया कि आज वे पूल में जीत कर आए हैं और जीत की राशि उनके हारे हुए अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा थी व उसे चेक दिखाया. मनिका भी खुश हो गई थी. मनिका ने बताया कि उसने तो बस पढाई ही करी थी दिन भर और अब उसे नींद आ रही थी. जयसिंह ने डिनर भी रूम में ही मंगवा लेने का सुझाव दिया.
खाना खा लेने के बाद मनिका नहाने चली गई और जयसिंह बेड पर बैठ सोच में डूब गए, 'क्या वे यह कर सकेंगे?' कुछ पल बैठे रहने के बाद वे उठे और जा कर सूटकेस में रखे अपने शेविंग-किट में से एक छोटी सी बोतल निकाल लाए. उनका दिल जोरों से धड़क रहा था.
मनिका नहाते वक्त अगले दिन की टेंशन में डूबी थी. उसके पापा आज पूल में जीत कर आए थे इस बात से वह खुश भी थी लेकिन इतने दिन दिल्ली की हवा लग जाने के बाद अब उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसका सेलेक्शन नहीं हुआ तो उसे वापस बाड़मेर जाना पड़ सकता है 'अगर कल मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो पापा से बोलूंगी कि यहीं किसी और कॉलेज में एडमिशन लेना है मुझे...वापस तो मैं भी नहीं जाने वाली.' उसने सोचा था और नहा कर बाथरूम से बाहर निकली. जयसिंह रोज की तरह सामने काउच पर ही बैठे थे. टी.वी चल रहा था.
मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं, उसका दिल, दीमाग और तन तीनों चक्कर खा गए थे.
जयसिंह ने अपने किट से तेल की शीशी निकाली थी और बेड पर आ बैठे थे. फिर उन्होंने अपनी पेंट और अंडरवियर निकाल दिए व हाथों में तेल लेकर अपने काले लंड पर लगाने लगे, लंड तो पहले से ही खड़ा था, अब तेल की मालिश से चमकने लगा था. उस सुबह नहाते वक़्त जयसिंह ने अपने अंतरंग भाग पर से बाल भी साफ़ कर लिए थे, सो उनके लंड के नीचे उनके अंडकोष भी साफ नज़र आ रहे थे. कुछ देर अपने लंड को इसी तरह तेल पिलाने के बाद जयसिंह ने उठ कर अलमारी में रखे एक्स्ट्रा तौलियों में से एक निकाल कर लपेट लिया और अपनी उतारी हुई पेंट और चड्डी को सूटकेस में रख दिया. तेल की शीशी को भी यथास्थान रखने के बाद वे काउच पर जा जमे और मनिका के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे थे.
मनिका जब नहा कर बाहर आई तो अपने पिता को काउच पर बैठ टी.वी देखते पाया. वे ऊपर तो शर्ट ही पहने हुए थे लेकिन नीचे उन्होंने एक टॉवल लपेट रखा था और पैर पर पैर रख कर बैठे थे. टॉवल बीच से ऊपर उठा हुआ था और उनकी टांगों के बीच उनका 'डिक!' नज़र आ रहा था. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा.
मनिका ने अपनी सहेलियों के साथ गुपचुप खिखीयाते हुए एक दो पोर्न फ़िल्में देखीं हुई थी लेकिन असली लंड से उसका सामना पहली बार हुआ था और वह भी उसके पिता का था. जयसिंह के भीषण काले लंड को देख उसका बदन शरम और घबराहट से तपने लगा था.
'बस अभी नहाता हूँ...' जयसिंह ने मनिका की तरफ एक नज़र देख कर कहा. उनका हाल भी मनिका से कोई बेहतर नहीं था, दिल की धड़कने रेलगाड़ी सी दौड़ रहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी इछाश्क्ति से अपने चेहरे के भाव नॉर्मल बनाए रखे थे. मनिका के चेहरे का उड़ा रंग देख उन्होंने झूठी आशंका व्यक्त की, 'क्या हुआ मनिका?'
'क..क...कुछ...कुछ नहीं...पापा..' मनिका ने हकलाते हुए कहा और पलट कर बेड की तरफ चल दी.
जयसिंह उसे जाते हुए देखते रहे, उसकी पीठ उनकी तरफ थी और उसने अपना सूटकेस खोल रखा था, जयसिंह ने अपनी नज़रें टी.वी पर गड़ा लीं, उसी वक्त मनिका ने एक बार फिर उन्हें पलट कर देखा. जयसिंह अपनी बेटी के सामने अपने आप को यूँ एक्सपोस (दिखाना) करने के बाद थोड़े और बोल्ड हो गए थे, हालाँकि डर उन्हें भी लग रहा था कि कहीं कुछ उल्टा रिएक्शन ना हो जाए उसकी तरफ से,
'मनिका!?' उन्होंने पुकारा.
'ज..जी पापा?' मनिका ने थोड़ा सा मुहँ पीछे कर के पूछा. उसकी आवाज़ भर्रा रही थी.
'ये मेरा फ़ोन चार्ज में लगा दो जरा...' जयसिंह ने अपना फ़ोन हाथ में ले उसकी तरफ बढ़ाया.
'जी..हाँ अभी...अभी लगाती हूँ..पापा..' मनिका ने उनकी तरफ देखा और एक बार फिर से सिहर उठी.
थोड़ी हिम्मत कर मनिका पलटी और बिना जयसिंह की टांगों के बीच नज़र ले जाए उनके पास आने लगी, जयसिंह को हाथ में फ़ोन उठाए कुछ पल बीत चुके थे, जैसे ही उन्हें मनिका पास आती दिखी उन्होंने फ़ोन अपने आगे रखे एक छोटे टेबल पर रख दिया था. मनिका की नज़र भी उनके नीचे जाते हाथ के साथ नीची हो गईं, वह जयसिंह से चार फुट की दूरी पर खड़ी थी और उसने झुक कर फ़ोन उठाया, ना चाहते हुए भी उसकी नज़र एक बार फिर से जयसिंह के चमकते लंड और आंडों पर जा टिकी. जयसिंह भी उत्तेजित तो थे ही, मनिका की नज़र कहाँ है इसका आभास उन्हें कनखियों से हो गया था. उन्होंने अपने उत्तेजित हुए लंड की माश्पेशियाँ कसते हुए उसे एक हुलारा दिला दिया, मनिका झट से उछल कर सीधी हुई और लघभग भागती हुई बेड के पास जा कर उनका फ़ोन चार्जर में लगाने की कोशिश करने लगी, उसके हाथ कांप रहे थे.

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--7

FUN-MAZA-MASTI

 गुमराह पिता की हमराह बेटी--7

खाना खाने के बाद मनिका और जयसिंह वापस अपने कमरे में न आ हॉटेल गेस्ट-एक्टिविटीज एरिया में गए. दोपहर का वक्त होने की वजह से वहाँ ज्यादा जने नहीं थे. जयसिंह मनिका को ले पूल टेबल के पास पहुँचे, वहाँ दो कपल मस्ती करते हुए पूल खेल रहे थे. जयसिंह ने जा कर एक क्यू-स्टिक (जिससे पूल-स्नूकर खेलते हैं) उठा ली थी पर दूसरों को खेलते देख थोड़े अचकचाकर खड़े हो गए थे. लेकिन वे लोग काफी फ्रेंडली थे और उन्हें देख उनसे भी ज्वाइन करने को कहा और बताया कि वे तो बस लेडीज को खुश करने के लिए वहाँ मसखरी कर रहे थे और अगर वे चाहें तो सीरियसली गेम लगा लेते हैं. इस पर जयसिंह ने भी हाँ कह दिया. उन्होंने अपने-आप को इंट्रोड्यूस किया था तो जयसिंह ने भी अपना परिचय दिया 'आई एम जयसिंह एंड दिस इस मनिका..' और हाथ मिलाया था. उन्होंने यह नहीं बताया था कि मनिका उनकी बेटी है.
वे लोग वेजर (शर्त) लगा कर खेलने लगे. तीनों को उनके साथ आईं लडकियाँ सपोर्ट कर रही थी और वहाँ हँसी और मस्ती का माहौल बन गया था.
सामने वाले लौंडे खेलने में माहिर थे और जल्द ही जयसिंह ने अपने-आप को हारते हुए पाया, लेकिन जयसिंह ने भी हार नहीं मानी थी और शर्त की बाजी बढ़ाते चले जा रहे थे, आखिर एक वक्त आया जब जयसिंह ने ५०००० रूपए का दाँव लगाने का चैलेंज कर डाला. सामने वाले कपल्स के चेहरे पर हैरानी का भाव आ गया था. पर आपस में सलाह कर वे उनकी बात मान गए और खेलने लगे. इस बार गेम की इंटेंसिटी बढ़ी हुई थी और हर स्ट्राइक (चाल) के बाद चिल्लम-चिल्ली मची हुई थी. देखनेवाले कुछ और लोग भी पूल-टेबल के आस-पास आ जमे थे. पर अंत में जयसिंह वह बाजी भी हार गए, माहौल थोड़ा शांत हुआ, जयसिंह ने भी हँस कर अपनी हार स्वीकार कर ली थी.
अब दूसरों ने उन्हें ड्रिंक्स का ऑफर किया जिसे उन्होंने मान लिया. तीनों लड़कियों को वहीँ छोड़ वे लोग बार से ड्रिंक्स लेने चले गए थे, लड़कियों ने अपने लिए मोक्टेल्स (बिना शराब की ड्रिंक्स) मंगवाई थी.
मर्दों के चले जाने के बाद तीनों लडकियाँ बतियाने लगीं, बातों-बातों में सामनेवाली लड़कियों ने मनिका से कहा था,
'ऑब्वियस्ली यू गायस हैव अ लॉट ऑफ़ मनी...'
जब मनिका ने उनसे ऐसा कहने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि जिस तरह से वे लोग शर्त का अमाउंट बढ़ाते जा रहे थे उस से उन्हें ऐसा लगा था और जब जयसिंह ने आखिरी बार पचास हजार का दाँव खेला था तो उन्होंने सिर्फ इसीलिए हाँ भरी थी के वे लोग ऑलरेडी सेवेंटी थाउजेंड जीत कर प्लस में चल रहे थे. वे लोग तो वहाँ एक कंपनी स्पॉन्सर्ड वेकेशन आउटिंग पर आए हुए थे. मनिका ने भी उन्हें बताया कि वह भी पहली बार दिल्ली आई थी और एक-दो दिन में उसका इंटरव्यू था व उसके पापा उसके साथ आए थे. इस पर दोनों ही लड़कियाँ चौंक गई थीं,
'यू मीन टू से यू आर हेयर विद योर डैड?' एक ने पूछा.
'येस...वाय?' मनिका ने उनकी उलझन देख जानना चाहा.
'ओह वेल वी थॉट दैट ही वास् योर...आई मीन हमने नहीं सोचा था कि ही इज़ योर फादर..'
'ओह..हाहाहा...सो यू पीपल थॉट ही इस माय बॉयफ्रेंड ऑर समथिंग..?' मनिका ने हँस कर पूछा था. जिस पर उन दोनों ने भी झेंप भरी स्माइल दे हाँ में सिर हिला दिया.
'इट्स ओके...आई गेट दैट अ लॉट...मेरी सब फ्रेंड्स भी ऐसा ही बोलती हैं...बिकॉज़ वी आर वैरी क्लोज़ टू ईच-अदर..' मनिका ने उन्हें रिलैक्स होने को कहते हुए बताया था.
फिर जयसिंह और वो दोनों बन्दे वापस आ गए थे, उन लोगों ने घुलते-मिलते ड्रिंक्स ख़त्म कीं थी जिसके बाद जयसिंह और मनिका उनसे विदा हो अपने रूम में आ गए थे. आने से पहले जयसिंह ने उनसे उनका रूम नंबर ले लिया था और कमरे में पहुँचते ही रूम-सर्विस से किसी के हाथ एन्वेलोप (लिफाफा) भिजवाने को कहा. जब एक स्टाफ़ का बन्दा एन्वेलोप देने आया तो उन्होंने उसे रुकने को कहा और एन्वेलोप में एक लाख बीस हजार की राशि का चेक डाल कर उसे दिया व उन लोगों के बताए रूम नंबर पे दे आने को भेज दिया. कुछ देर बाद उनके साथ पूल खेल रहे जनों में से एक का उन्हें थैंक्यू कहने को फोन (रिसेप्शन के थ्रू कॉल कनेक्ट करा) भी आया था.
जयसिंह कमरे में आ कर बेड पर लेटे हुए थे और मनिका भी दूसरी तरफ बैठी हुई अपने फोन में कुछ कर रही थी. जयसिंह ने आँखें बंद करी ही थी कि मनिका उनसे बोली,
'पापा...जोश-जोश में वन लैख ट्वेंटी थाउजेंड उड़ा दिए हैं आज आपने...'
'हम्म कोई बात नहीं क्या हो गया तो...पैसे तो आते-जाते रहते हैं.' जयसिंह ने बेफिक्री से कहा.
'इससे अच्छा तो मैं शॉपिंग ही कर लेती..' मनिका ने ठंडी आह भरी.
'हे भगवान्! कितनी शॉपिंग करनी है इस लड़की को?' जयसिंह ने झूठ-मूठ का अचरज दिखाया.
'आपको क्या पता पापा...शॉपिंग तो हर लड़की का सबसे बड़ा सपना होता है...' मनिका ने इठला कर कहा.
'और उस दिन जो पूरा मॉल खरीद कर लाईं थी उसका क्या?' जयसिंह ने याद दिलाया.
'हाँ तो थोड़ी सी और कर लेती...' मनिका मुस्काई.
'उस दिन जो इतनी ड्रेसेज़ लेकर आईं थी वो तो दिखाईं नहीं अभी तक तुमने..?' जयसिंह ने ताना दिया.
'अरे भई पापा दिखा दूँगी तो...अभी मुझे नींद आ रही है...' मनिका ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और वह भी लेट गई.
जयसिंह और मनिका दो घंटे सोने के बाद उठे थे. उन्होंने इवनिंग-टी (चाय) का ऑर्डर किया था और बैठ कर टी.वी. देखने लगे. एक हिन्दी फ़िल्म चल रही थी; रेस. फ़िल्म अभी कुछ महीने पहले ही रिलीज़ हुई थी सो मनिका ने लगा ली थी.
जयसिंह के साथ इतने दिनों से रह रही मनिका उनके स्वभाव में आने वाले परिवर्तनों को भाँपने लगी थी, उसने देखा क़ि जयसिंह वैसे तो फ़िल्म में कम ही इंटरेस्ट ले रहे थे पर जब कोई हीरोइन या आईटम सॉन्ग स्क्रीन पर दिखाते थे तो उनकी नज़र जरा पैनी हो जाती थी. मनिका मन ही मन मुस्का उठी थी, 'देखो कैसे भाती हैं बिपाशा और कैटरीना इन्हें...'
कुछ देर बाद फ़िल्म खत्म हो गई, उनकी चाय और स्नैक्स भी डिलीवर हो गए थे सो वे बैठे हुए खाना-पीना कर रहे थे और टेलीविज़न से उनका ध्यान थोड़ा हट गया था. तभी टी.वी. पर 'एनैमोर', जो एक लॉनजुरे बनाने वाली कंपनी है, का एडवर्टिसमेंट (विज्ञापन) आया, अब स्क्रीन पर चल रही इमेज पर दोनों का ही ध्यान चला गया था. कुछ मॉडल्स को ब्रा-पैंटीज़ में अठखेलियाँ करते दिखाया गया था, ऐड कुछ ही सेकंड चला था पर दोनों बाप-बेटी के मनों में अलग-अलग विचार उठा गया था. एक तरफ मनिका को सुबह वाली बात याद आ गई और वह शरमा गई थी व दूसरी तरफ जयसिंह का दिल खुश हो गया था, उन्होंने हल्का सा मुस्काते हुए मनिका की ओर देखा था. मनिका थोड़ी तन के सीधी बैठी थी और अपनी नज़रें टेबल पर रखे स्नैक्स पर गड़ाए थी उसे कनखियों से जयसिंह की नज़र और शरारती मुस्कान का आभास हो गया था, एक-दो पल बाद उससे भी रुका नहीं गया और उसके चेहरे पर भी शर्मीली मुस्कान तैर गई, जयसिंह फिर भी उसे देखते रहे,
'पापा स्टॉप इट ना...?' मनिका ने उनकी तरफ बिना देखे कहा.
'अरे मैंने तो कुछ कहा ही नहीं...' जयसिंह ने मुस्काते हुए कहा.
'पापा! याद है ना मैंने कहा था आपसे कभी बात नहीं करुँगी मुझे छेड़ोगे तो...' मनिका ने उनकी तरफ एक नज़र देख अपनी धमकी दोहराई.
'अच्छा भई मैं दूसरी तरफ मुहँ करके बैठ जाता हूँ अगर तुम कहती हो तो...' जयसिंह ने मुहँ दीवार की तरफ घुमाते हुए कहा.
अब तक मनिका की शरम कुछ कम हो गई थी और उसे जयसिंह की नौटंकी पर हँसी आने लगी थी. उधर जयसिंह चुप-चाप मुहँ फेरे बैठे थे. मनिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या कहे?
'कपड़े ही तो हैं...' जयसिंह की आवाज़ आई.
'हाहाहाहाहाहा... हेहेहे...हीहीहीही... पापाआआ!' मनिका को उनकी बात ने गुदगुदा कर लोटपोट कर दिया था 'यू आर सो नॉटी पापा...!' वह हँसते हुए बोली थी.
जयसिंह भी हँसते हुए उसकी तरफ घूमे और पास सरक आए. मनिका को अभी भी हँसी छिड़ी हुई थी जब जयसिंह ने पहली बार खुद अपने हाथों से पकड़ कर उसे अपनी गोद में खींच लिया. वह हँसते-हँसते अपने आप को छुड़ाने के प्रयास कर रही थी और साथ ही बोल रही थी कि उन्होंने उसे चिढ़ाया है इसलिए वह उनके पास नहीं आएगी लेकिन असल में वहीं बैठी रही. जयसिंह ने उसे थोड़ा कसकर अपने से लगा लिया था. उधर उनके लंड ने भी उत्साह से सिर उठा रखा था.
'वैसे आप भी कम नहीं हो...पता चल गया मुझे ठीक है ना...' मनिका ने उलाहना देते हुए कहा.
'मैंने क्या किया..?' जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, उन्हें लग रहा था कि वह उनकी कही बात के लिए ही कह रही है.
'जो आँखें फ़ाड़-फाड़ कर देख रहे थे ना अभी मूवी में बिपाशा-कैटरीना को और डांस करती फिरंगनों को...सब देखा मैंने...' मनिका ने उनकी गोद में बैठे-बैठे उन्हें हल्का सा धक्का दे कर कहा.
जयसिंह मनिका के इस खुलासे से सच में निरुत्तर हो गए थे. मनिका को उनके इस तरह झेंप जाने पर बहुत मजा आ रहा था, उसने खनकती हुई आवाज में आगे कहा,
'अब क्या हुआ...बोलो ना पापा? बढ़ा छेड़ रहे थे मुझे..!'
'अब मूवी भी ना देखूं क्या?' जयसिंह ने कहा था पर उनकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि उनकी चोरी पकड़ी गई थी.
'हाहाहाहा... कैसे भोले बन रहे हो देखो तो...बता दो बता दो...नहीं कहूँगी मम्मी से आई प्रॉमिस..' पहली बार लगाम मनिका के हाथ में आई थी (मतलब उसे तो ऐसा ही लग रहा था) सो वह और जोर से हँसते हुए बोली थी.
'हाँ तो...क्या हो गया देख लिया तो..' जयसिंह ने भी हौले से अपना जुर्म कबूल कर लिया था.
'हाहाहा...' मनिका ने अपनी बात के साबित हो जाने पर ठहाका लगाया, उसे आज कुछ ज्यादा ही हँसी आ रही थी. इसी तरह हँसी-मजाक चलता रहा और रात ढल आई. जयसिंह और मनिका डिनर करने को भी रेस्टॉरेंट में ही गए क्योंकि रूम-सर्विस के विपरीत वहाँ वेटर खाना परोसने के लिए पास में तत्पर रहता है. लेकिन जयसिंह के लंड ने उस रात उन्हें ढंग से खाना भी नहीं खाने दिया.
हुआ ये कि जब जयसिंह और मनिका नीचे रेस्टॉरेंट में जाने के लिए कमरे से निकलने लगे थे तब मनिका ने अपने सूटकेस से लिप-ग्लॉस निकाल कर अपने होंठों पर लगाया था. यह देखना था कि बस जयसिंह का तो काम तमाम हो गया था, बड़ी मुश्किल से एलीवेटर से निकल कर वे रेस्टॉरेंट में कुर्सी तक पहुँचे थे. सामने बैठी मनिका उनसे हँस-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी और वे उसके होंठों पर लगे अपने लंड के पानी मिले लिप-ग्लॉस की चमक देख-देख प्रताड़ित हो रहे थे. उन्हें लग रहा था जैसे उनका शरीर दीमाग की बजाय लंड के कंट्रोल में आ गया था और उनके पूरे जिस्म में हवस के मरोड़े उठ रहे थे. वे थोड़ा सा ही खाना खा सके थे और पूरा समय टेबल के नीचे अपने लेफ्ट हाथ से लंड को जकड़े हुए बैठे रहे थे.
उनकी कारस्तानी से अनजान मनिका ने खाना खाने के बाद मंगवाई आइसक्रीम खा कर जब अपने होंठों पर जीभ फिराई तो जयसिंह को हार्ट-अटैक आते-आते बचा था. इस बार वे अपने चेहरे के भावों पर काबू नहीं रख सके थे और मनिका को उनकी बेचैनी का आभास हो गया था.
'क्या बात है पापा?' मनिका के चेहरे पर चिंता झलक आई 'आप ठीक तो हैं?' उसने पूछा.
'ह्म्म्म...कुछ नहीं बस थोड़ा सिर में दर्द है. ' जयसिंह को समझ नहीं आया कि क्या कहें सो उनके जो मुहँ में आया वही बोल गए थे 'साली क्या बताऊँ तू जो मेरे लंड का रस चाट रही है जीभ फिरा-फिरा कर और पूछ रही है क्या हुआ...उससे सिर में नहीं लंड में दर्द है...' जयसिंह ने आँखें मींचते हुए सोचा था.
डिनर के बाद जब वे अपने कमरे में आए तो मनिका ने जयसिंह को जल्दी सो जाने को कहा और उनका सिर दबाने को भी पूछा था. लेकिन इतने दिन की उत्तेजना ने आज भयंकर रूप धारण कर लिया था और जयसिंह को डर था कि मनिका का स्पर्श कहीं उन्हें अपना आपा खोने पर मजबूर न कर दे, सो उन्होंने उसे मना कर दिया था. वे कंबल ओढ़ लेट गए थे ताकि अंदर अपने उफनते लंड को पकड़ कर काबू में रख सकें, उनके रोम-रोम में मनिका ने आग लगा दी थी और उन्होंने सुलगते हुए सोचा था 'इस हरामजादी मनिका को तो तरसा-तरसा कर इससे भीख मंगवाऊंगा मेरे लंड की एक दिन...'


***

मनिका ने देखा कि जयसिंह कपड़े बदले बिना ही सो गए थे. मनिका के पास भी करने को कोई काम न था सो वह भी नहाकर आई और सोने की तैयारी करने लगी. उसके बिस्तर में घुसने से पहले ही रूम का डोर क्नॉक हुआ, लॉन्ड्री वाला उनके कपड़े ले कर आया था. मनिका ने कपड़े रखवा कर उसे कुछ टिप (जयसिंह के पर्स से निकाल) दी थी और वह चला गया. मनिका भी जयसिंह के बगल में लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी लेकिन वह दिन में भी एक बार नींद ले चुकी थी इसलिए उसे अभी इतनी जल्दी नींद नहीं आ रही थी पर उसने जयसिंह का ख्याल करके उन्हें कह दिया था कि उसे भी रेस्ट करना था.
वह लेटी-लेटी उस दिन की घटनाओं के बारे में सोचने लगी, कि कैसे दिन की शुरुआत में उसे उसके अंडर-गारमेंट्स शावर में पड़े मिले थे और जयसिंह ने उसका कितना मजाक बनाया था उस बात पर और फिर जब वह सैलून से वापस आई थी तब भी उसके पापा ने कितना स्वीटली रियेक्ट किया था, उसे एहसास हुआ था कि जयसिंह भले ही मजाक कर रहे थे पर उसमें उनकी तारीफ भी छुपी हुई थी और इसीलिए मनिका को लाज आने लगी थी और वह मेकअप उतार आई थी और आज एक बार फिर से लोगों ने उसे जयसिंह की गर्लफ्रेंड समझ लिया था. 'कितना सरप्राइजड थीं वे लड़कियाँ जब मैंने कहा कि वे मेरे पापा हैं...लोग भी न पता नहीं क्या-क्या सोचते रहते हैं.' मनिका ने थोड़ा तुनक कर सोचा था पर फिर उसका ध्यान जयसिंह की फीसिकेलिटी (शारीरिक बनावट) पर चला गया था. वह सोचने लगी कि ४७ साल की उम्र में भी जयसिंह उसके चाचा और ताऊजी की तरह मोटे व बेडौल नहीं थे और उन्होंने अपनी बॉडी को फिट रखा हुआ था 'मे-बी इसी वजह से उन लोगों ने पापा और मुझे कपल इमेजिन कर लिया था...पापा हैस मेंटेंड हिज़ बॉडी सो वैल के कोई सोचता ही नहीं कि वो मेरे पापा हैं.'
मनिका ने जयसिंह की तरफ देखा, कुछ ही पल पहले वे हिले थे और करवट बदल उसकी तरफ मुहँ किया था, उन्हें सोता पा मनिका धीरे से उठ कर अधलेटी हुई व अपने हाथ पीछे से टी-शर्ट में डाल अपनी ब्रा का हुक खोला और वापिस लेट गई.
इतने दिनों से मनिका और जयसिंह रोज बाहर घूम कर आते थे तो थके हुए होते थे और रूम में आ कर उन्हें जल्दी ही नींद आ जाया करती थी (जयसिंह को कभी-कभी नहीं भी आती थी) और उनकी अनबन हो जाने के बाद वे अपने ख्यालों में डूबे ही बैठे या सोए रहा करते थे. लेकिन उनके बीच के गिले-शिकवे मिट चुकने और आज का अपना पूरा दिन हॉटेल में ही रहने के बाद मनिका अच्छे से रेस्टेड थी. सो जब मनिका, जिसे रात को सोते वक़्त ब्रा पहनने की आदत नहीं थी, को कुछ देर तक नींद नहीं आई थी तो उसे अपनी पहनी ब्रा का कसाव खटकने लगा था और इसी वजह से उसने जयसिंह को सोते पा अपनी ब्रा का हुक खोल लिया था.
आग में घी डालना किसे कहते हैं जयसिंह को आज समझ आया था.
खाना खा कर लौटने के बाद जयसिंह मनिका के कहने पर लेट कर रेस्ट करने लगे थे, उन्हें पता था कि अगर वे रोजमर्रा की तरह नहाने घुसे तो शायद अपनी हवस की आँधी को रोक नहीं पाएंगे और मुठ मार बैठेंगे. अपने लिए हुए इस अजीबोगरीब वचन को निभाने के मारे वे बिस्तर पर जा लेटे थे. साथ ही वे इस ताक में भी थे कि क्या पता उनके सो जाने पर मनिका को भी जल्दी नींद आ जाए और वे कुछ छेड़-छाड़ कर अपनी प्यास कुछ शाँत करने में सफल हो सकें और इसी के चलते मनिका के बिस्तर में आ जाने के बाद उन्होंने करवट बदली थी. पर मनिका ने तो उनके मन की आँधी को भूचाल में तब्दील कर दिया था.
जब मनिका ने अपनी ब्रा का हुक खोला था तो उसकी टी-शर्ट पीछे से ऊपर हो गई थी और कमरे की हल्की रौशनी में उसकी नंगी कमर और पीठ का दूधिया रंग जयसिंह ने एक छोटे से पल के लिए अध्-मिंची आँखों से देखा था.
'उह्ह्ह...उम्म्म...' आखिर जयसिंह के मुहँ से दबी हुई आह निकल ही गई थी, शुक्र इस बात का था कि उसके वापस लेट जाने तक वे किसी तरह रुके रहे थे. मनिका ने चौंक कर उनकी तरफ देखा, उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी.
'पापा?' मनिका उठ बैठी थी और एक पल के लिए उसका हाथ जल्दी से उसकी पीठ पर चला गया था. 'पापा उठे हुए हैं..?' उसने धड़कते दिल से सोचा. पर जयसिंह पहले की भाँती जड़ पड़े रहे.
'पापा आप जाग रहे हो क्या?' मनिका ने फिर से पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला परंतु इस बार जयसिंह ने फिर से एक आह भरी थी जैसे बहुत अनकम्फ़र्टेबल हों. मनिका ने अब बेड-साईड से लाइट ऑन की और उन्हें ध्यान से देखा. उनके चेहरे पर पसीना आ रखा था.
'पापा! आर यू ऑलराइट?' मनिका ने थोड़ा घबराकर उन्हें हिलाया और उठाने लगी. जयसिंह ने भी एक-दो पल बाद हड़बड़ाने का नाटक कर आँखें खोल दीं और गहरी साँसें भरने लगे.
'पापा यू आर सिक!' मनिका ने उनके तपते माथे पर हाथ रखते हुए कहा. वह उनके ऊपर झुकी हुई थी और उसकी खुली ब्रा में झूलते उरोज जयसिंह के चेहरे के सामने थे.
'हम्म्प्...' उनका पारा और बढ़ गया था.
जयसिंह उठ कर बैठ गए थे, आशँकाओ से भरी मनिका बार-बार उनसे पूछ रही थी कि वे कैसा फील कर रहे हैं और जयसिंह कम्बल के अंदर अपने लंड का गला दबाते हुए उसे आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे थे कि वे ठीक हैं बस उन्हें माइनर सा माइग्रेन (तेज़ सिरदर्द) का अटैक आया था. उन्होंने कहा कि वे नहा कर आते हैं ताकि थोड़ा रिफ्रेश हो जाएं.
'साला अब तो रेसोल्युशन गया भाड़ में...लगता है मुठ मारना ही पड़ेगा वरना आज तो लंड और आँड दोनों की एक्सपायरी डेट आ जाएगी.' सोच कर जयसिंह ने कम्बल के अंदर अपने लंड का मुहँ ऊपर की तरफ कर उसे अपने अंडरवियर के एलास्टिक में कैद किया ताकि उठ खड़े होने पर उनकी पैंट में कहीं तम्बू न बना हो. जब वे उठे थे तब लंड का मुहाना अंडरवियर से दो इंच बाहर निकल झाँक रहा था पर उनकी शर्ट से ढँका होने के कारण मनिका को दिखाई नहीं पड़ सकता था. वे भारी क़दमों से चलते हुए बाथरूम में घुस गए.
बेड पर बैठी मनिका के चेहरे पर चिंता के भाव थे, उसने हाथ पीछे ले जा कर अपनी ब्रा का हुक फिर से लगाया और जयसिंह के बाहर आने का इंतजार करने लगी.
बाथरूम में जा कर जयसिंह ने बाथटब में ठंडा पानी भरा और उसमें अपना बदन डुबो कर लेट गए. अंदर आते-आते एक बार फिर वे अपनी प्रतिज्ञा के प्रति थोड़ा सीरियस हो गए थे. ठंडे पानी से भरे टब में डूबे वे अपने लंड और टट्टों को रगड़ रहे थे ताकि अपनी गर्मी कुछ शांत कर सकें, 'ये अचानक मुझे क्या हो गया है...बिल्कुल भी काबू नहीं कर पा रहा हूँ अपने-आप को...कुतिया की जवानी ने आखिर मेरे दीमाग का फ्यूज उड़ा ही दिया है लगता है...क्या होंठ है रांड के, मेरे लंड-रस का स्वाद तो आया ही होगा उसे....आह्ह...' जयसिंह का लंड उनके हाथ की कैद से बाहर निकलने को फड़फड़ा उठा था. 'भड़वी ने ब्रा का हुक और खोल लिया ऊपर से...क्या झूल रहे थे साली के बोबे...ओहोहो...मसल-मसल कर लाल कर दूँगा...' इसी तरह के गंदे-गंदे विचारों से अपनी बेटी का बलात्कार करते वे आधे घंटे तक पानी में पड़े रहे थे. पर फिर धीरे-धीरे ठंडे पानी का असर होने लगा था, उनके बदन की गर्मी रिलीज़ होने लगी और बदन सुन्न होने लगा. लंड और आँड भी अब शांत पड़ने लगे थे जिससे जयसिंह के दीमाग ने एक बार फिर काम करना शुरू कर दिया था.
'अगर ये हाल रहा तो फिर तो मनिका की झाँट भी हाथ नहीं लगेगी...मुझे अपने बस में रहना ही होगा! लेकिन साली हर वक्त जिस्म की नुमाईश करती रहेगी तो दीमाग तो ख़राब होगा ही...पर उसकी लिप-ग्लॉस तो मैंने ही ख़राब की थी...हाँ तो मुझे क्या पता था ऐसे सामने बैठ कर होंठ चाटेगी रांड..? जो भी हो आज इतना समझ आ गया है कि लंड के आगे दीमाग की एक नहीं चलती है...हाहाहाहा...' जयसिंह मन ही मन हँसे थे. अब वे राहत महसूस करने लगे थे. उनका इरेक्शन भी अब मामूली सा रह गया था. उन्होंने मन ही मन तय कर लिया था कि जल्द ही उन्हें कोई अहम कदम उठाना होगा, मनिका के इंटरव्यू को सिर्फ दो दिन बचे थे और अब वे अपनी मंज़िल से भटकने का खतरा मोल नहीं ले सकते थे, यह विचार आते ही उनके लंड का रहा-सहा विरोध भी खत्म हो गया था. जयसिंह ने कामना की के उनकी किस्मत, जिसने अब तक उनका साथ इतना अच्छे से निभाया था, शायद आगे का रास्ता भी दिखा दे और इस तरह एक नए जोश के साथ वे बाथटब से बाहर निकल आए और तौलिए से बदन पोंछ कर अपना पायजामा-कुरता पहन लिया.
जब वे बाहर निकल कर आए तो मनिका बेड से उतरकर उनके पास आई और उनकी ख़ैरियत जाननी चाही. जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा,
'डोंट वरी मनिका...अब सब ठीक है...' और उसका हाथ पकड़ उसे वापस बिस्तर में ले गए थे.

***

बीती रात के बाद जयसिंह को एक बात का भान अच्छी तरह से हो गया था, वो यह कि मनिका का हुस्न भी उनकी मँजिल पर लगा एक ऐसा गुलाब था जिसमे काँटे ही काँटे थे क्यूँकि उसके हुस्न में उनके लिंग को बेबस करने वाला जादू था और उनके लिंग में उनके दीमाग को बेबस करने की शक्ति. अगर उन्हें फूल तोड़ना है तो काँटों से बचते रहना होगा और उसके लिए एक बार गुलाब से नज़र हटानी जरूरी थी.
सवेरे उठ कर जयसिंह ने आत्मचिंतन किया था और पाया कि उन्हें अभी के लिए अपनी काम-वासना को न जागने देते हुए मनिका के मन में काम-क्रीड़ा के प्रति उत्सुकता के बीज बोने पर ध्यान देना होगा. परन्तु वे नहीं जानते थे कि इस बार जयसिंह का साथ उनकी किस्मत नहीं बल्कि उनकी बीवी और मनिका की माँ संचिता देने वाली थी.
दरअसल जब से वे दोनों दिल्ली आए थे मनिका की अपनी माँ से एक बार भी बात नहीं हुई थी. जब भी घर से कॉल आता था जयसिंह के पास ही आता था और वे सब ठीक बता कर फोन रख दिया करते थे. उस दिन उठने के बाद जब जयसिंह और मनिका ने ब्रेकफास्ट कर लिया उसके बाद जयसिंह नहाने चले गए थे.
मनिका बैठी यूँही अखबार के पन्ने पलट रही थी तभी पास पड़े जयसिंह के फोन पर रिंग आने लगी, उसकी माँ का फोन था.
'हैल्लो?' मनिका ने फोन उठाया. उसे अपनी माँ से हुई अपनी आखिरी बातें याद आन पड़ी थी.
'हैल्लो लवली?' उसकी माँ ने पूछा 'कैसे चल रहे हैं इंटरव्यू?' संचिता को उन्होंने झूठ जो कह रखा था कि इंटरव्यू तीन स्टेज में होंगे.
'इंटरव्यू..? ओह हाँ अच्छे हुए मम्मी...परसों लास्ट राउंड है.' मनिका एक पल के लिए समझी नहीं थी पर फिर उसे भी याद आया कि उन्होंने घर पर क्या बोल रखा था, उसने माथे पर हाथ रख सोचा, 'बाप रे अभी पोल खोल देती मैं पापा के इतना समझाने के बाद भी...'
'पापा कहाँ है तुम्हारे?' संचिता ने पूछा.
'नहाने गए है...' मनिका ने बता दिया.
'इतनी लेट..?' संचिता ने एक और सवाल किया.
'ओहो मम्मी...अब यहाँ रूम पर ही रहते हैं तो आराम से उठना-नहाना होता रहता है...' मनिका ने संचिता के सवालों से झुँझला कर कहा. उसे बुरा इस बात से भी लगा था कि उसकी माँ ने एक बार भी उससे उसकी खैरियत नहीं पूछी थी.
जब जयसिंह नहा कर बाहर आए थे तब तक उन्हें आभास हो चुका था क़ि कमरे में मनिका किसी से ऊँची आवाज़ में बाते कर रही थी लेकिन शावर के पानी की आवाज़ में उन्हें उसके कहे बोल साफ़ सुनाई नहीं दिए थे और जब तक उन्होंने शावर ऑफ किया था मनिका की आवाज़ आनी बंद हो चुकी थी. बाहर निकल कर मनिका के तेवर देख उन्होंने पूछा,
'क्या हुआ मनिका? किस से बात कर रहीं थी?'
'आपकी बीवी से और किस से...?' मनिका ने गुस्से से तमतमाते हुए कहा.
मनिका के अपनी माँ को थोड़ी तल्खी से जवाब देने के बाद उसकी माँ भी छिड़ गईं थी. संचिता ने फिर से वही पुराना राग आलापना शुरू कर दिया था कि कैसे वह हाथ से निकलती ही जा रही है और कितनी बद्तमीज़ भी हो गई है इत्यादि. मनिका के भी दिल्ली आ कर कुछ पर निकल चुके थे वह भी अब वो मनिका नहीं रही थी जो चुपचाप सुन लेती थी.. उसने भी अपनी माँ के सामने बोलना शुरू कर दिया कि कैसे वे हमेशां उस पर लगती रहती हैं जबकि उसकी कोई गलती ही नहीं होती, जिस पर संचिता ने हमेशा की तरह उसके पापा पर उसे शह देने का आरोप मढ़ा था. जयसिंह की बात आने पर मनिका अब उनका भी पक्ष लेने लगी और आखिर गुस्से में आ फोन ही डिसकनेक्ट कर दिया था, उसने फोन रखने से पहले अपनी माँ से कहा था,
'आपसे तो सौ गुना अच्छे हैं पापा...मेरा इतना ख्याल रखते हैं...बेचारे पता नहीं इतने साल से उन्होंने आपको कैसे झेला है..?' (संचिता उसके मुहँ से ऐसी बात सुन स्तब्द्ध रह गई थी)
जयसिंह के बाहर आ जाने के बाद मनिका ने शिकायत पर शिकायत करते हुए उन्हें बताना चालू किया कि कैसे उसको मम्मी ने फिर से डाँट दिया था, 'और बस एक बार जब वो शुरू हो जातीं है तो फिर पूरी दुनियां की कमियाँ मुझ में ही नज़र आने लगती है उनको...लवली ऐसी लवली वैसी...ढंग से बाहर निकलो, ढंग से कपड़े पहनो, ढंग से ये करना ढंग से वो करना...और जब कुछ नहीं बचता तो फिर आप का नाम लेकर ताने...पापा की शह है तुम्हें...पापा बिगाड़ रहे हैं तुम्हें...हद होती है मतलब...!' मनिका का गुस्सा उसकी माँ की कही बातों को याद कर बार-बार फूट रहा था.
'मैं तो मर जाऊं तो ही चैन आएगा उनको...' मनिका रुआँसी हो बोली.
जयसिंह उसके पास गए और उसके कंधे पर हाथ रख उसे ढाँढस बँधाते हुए बोले,
'तुम दोनों का भी हर बार का यही झगड़ा है...फिर भी हर बार तुम अपसेट हो जाती हो, कितनी बार कहा है बोलने दिया करो उसे...'
'हाँ पापा...बट मुझे बुरा नहीं लगता क्या...आप ही बताओ?' मनिका ने उनका सपोर्ट पा कर कहा 'मैंने भी कह दिया आज तो कि आपसे तो पापा अच्छे हैं और वो पता नहीं कैसे झेलते हैं आपको..' और उन्हें बताया.
'हैं..?' जयसिंह की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं थी 'सचमुच ऐसा बोल दिया तुमने अपनी माँ से..?' उन्होंने पूछा.
'हाँ...' मनिका को भी अब लगा कि वह कुछ ज्यादा ही बोल गई थी.
'हाहाहा...संचिता की तो धज्जियाँ उड़ा दीं तुमने...' जयसिंह हँसते हुए बोले.
'और क्या तो पापा मुझे गुस्सा आ गया था तेज़ वाला..' मनिका ने धीरे से कहा 'पर ज्यादा ही बोल दिया कुछ...' और अपनी गलती स्वीकारी.
'हेहे...अरे तुम चिंता मत करो मैं सँभाल लूँगा उसे...' जयसिंह ने प्यार से मनिका का गाल खींच दिया था. मनिका भी अपनी मुस्कान रोक न सकी.
'ओह पापा काश मम्मी भी आप के जैसी ही कूल और प्यार करने वाली होती...' मनिका ने आह भर कहा.
'अब होतीं तो बात अलग थी मगर अब तो तुम्हें जो है उसी से काम चलाना पड़ेगा...' जयसिंह ने मुस्का कर खुद की तरफ इशारा किया था. 'मम्मी भी मेरी तरह हो सकती थी अगर उसके लंड होता तो..हहा' जयसिंह ने मन में सोचा था और उनकी मुस्कान और बड़ी हो गई थी.
कुछ देर समझाने-बुझाने पर मनिका का मूड कुछ ठीक हो गया था. जयसिंह ने उसके सामने ही अपनी बीवी को फोन लगा कर उससे हर वक़्त टोका-टोकी न करने की अपनी हिदायत दोहरा दी थी. जिस से वह थोड़ी और बहल गई थी.
वे बैठ कर उस दिन के लिए कुछ प्लान करते उससे पहले ही जयसिंह के फ़ोन पर फिर से रिंग आने लगी. इस बार जयसिंह ने ही फोन उठाया, उनके ऑफिस से कॉल आया था. इतने दिन ऑफिस से नदारद रहने की वजह से उनके वहाँ अब काम अटकने लगा था. सो जयसिंह फोन पर अपने काम से जुड़ी अपडेटस् लेने में लग गए थे.
जब मनिका ने देखा कि जयसिंह लम्बी बातचीत करेंगे तो वह इधर-उधर पड़ा उनका छोटा-मोटा सामान व्यवस्थित करने लगी. फिर उसने बेड के पास रखा अपना सूटकेस खोला और लॉन्ड्री से वापस आए अपने कपड़े जँचाने लगी.
जयसिंह और मनिका ने अपना लगेज बेड की एक तरफ बनी एक अलमारी के पास नीचे रखा हुआ था. पहले तो वे सिर्फ दो ही दिन रुकने के इरादे से आए थे, सो उन्होंने अपना सामान ज्यादा खोला नहीं था. फिर जब उनका रुकने का पक्का हो गया तो मनिका को लगा था कि शायद उसके पिता अपना सामान उसमें रखें और जयसिंह, जिनके पास ज्यादा सामान नहीं था, ने मनिका उसे यूज़ कर लेगी (और वे उसका सामान छेड़ लेंगे) करके अलमारी खाली छोड़ दी थी. मनिका ने अपना सामान सेट् करने के बाद भी जब पाया कि जयसिंह फोन पर ही लगे हुए थे तो उसने वैसे ही देखने के लिए अलमारी खोल ली थी.





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