Monday, September 14, 2020

सुनीता के बहकते कदम-4

FUN-MAZA-MASTI


सुनीता के बहकते कदम-4


सुबह सुनीता की आख खुली तो अपने आपको शीशे मे देखकर वो ताज्जुब करने लगी। उसके अस्त व्यस्त कपड़े, बिखरे बाल, बिस्तर की हालत और हाथो मे सुख चुका सफ़ेद पानी रात की कामुक कहानी को बयान कर रहा था। ऐसी हालत तो अनुराग ने सुहागरात पर भी नहीं की होगी जो की उस अंजान आदमी से बात करने के बाद उसका हुया था। और हो भी क्यो ना उस मर्द की कामुक बाते अब भी सुनीता के जेहन मे थी, उसका एक एक शब्द उसकी उत्तेजना को ऐसा भड़का रहा था जैसे आग को घी भड़काता है। कुछ भी हो उस आदमी ने जो बाते उसके जिस्म की खूबसूरती को बयां करने के लिए बोली थी वो सुनने मे भले ही उदण्ड थी पर उनका एहसास बड़ा ही कामुक था। सुनीता को अब ये नई काल्पनिक दुनिया रास आने लगी थी। इसमे न तो कोई रिस्क था, ना बदनाम होने का डर, और ना ही उसके जिस्म को कोई गैर मर्द छू रहा था। सुनीता का जिस्म एक नई उमंग को महसूस करने लगा था। जो जिस्मानी अधूरापन अनुराग पूरा नही कर पा रहा था वो अब सुनीता खुद ही पूरा करने लगी थी, वो भी बिना रिस्क के। इसलिए उसे अपने इस कृत्य पर कोई पछतावा नहीं था और ना ही उसे आत्मग्लानि महसूस होती थी। क्योकि वो सब कुछ करके भी कुछ नहीं कर रही थी।
उधर असलम भी रात मे सुनीता जिस्म का दीदार कर उसकी यादों मे अपना पानी निकाल कर सो चुका था, सुबह अनुराग के उठने से पहले ही असलम उठ गया और अपनी हालत को दुरुस्त कर लिया था। अनुराग लेट उठा और फ्रेश होकर अपना काम निपटाया और कार से वापस अपने शहर आ गया। अनुराग ने असलम को दुकान पर उतार दिया और कार की ड्राइविंग सीट पर खुद बैठते हुये असलम से बोला
अनुराग – असलम तुम ऐसा करो... तुम घर चले जाओ आराम कर लो... मैं भी घर जा रहा हू... और आ सुनो... वो कल मैंने दवाई के लिए बोला था न... तो अगर इंतजाम हो जाये तो मुझे बताना.... ये कहकर अनुराग गाड़ी अपने घर की तरफ बढ़ा दिया... उसे जाते हुए असलम एक रहस्म्यी मुस्कान के साथ देख रहा था।
अनुराग के जाने के बाद असलम ने भी अपना लोडिंग कार लिया और घर की तरफ चल पड़ा। उसके जेहन मे सुनीता के मदमस्त जिस्म कर गदराया जोबन, मखमली मांसल पेट, उसकी मोटी चिकने जांघे, चौड़े पुष्ट कूल्हे और सुनीता की टपकती चूत घूम रही थी। उसे इस बात का गुमान था की उसके लंड की दीवानी सुनीता जैसे पढ़ी लिखी और बड़े घरे की बहू है। और तो और सुनीता को असलम से चुदने की बाते करने मे कोई झिझक भी नहीं हो रही थी। इसका मतलब की वो मेरे से चुदने के लिए बिलकुल तैयार बैठी है। ये ख्याल आते ही उसके चेहरे की चमक दोगुनी हो गई। तभी उसके उम्र के अनुभव ने उसके जेहन पर दस्तक दी।
“अरे तूने कैसे सोच लिया की सुनीता तुझसे चुदने को तैयार बैठी है, आज तक कभी उसने तेरे को जरा सा भी भाव दिया है? आज तक उसने तेरे और खुद के बीच एक दूरी बना रखी है” ये बात दिमाग मे आते ही असलम के चेहरे पर गंभीरता छा गई। बात बिलकुल सही थी, क्योकि सुनीता असलम के बारे मे बाते जरूर कर रही थी, लेकिन उस समय वो कामज्वाला मे जल रही थी, और एक कामवासना मे डूबे हुये इंसान से आप कोई भी कामुक बाते कर सकते हो, ये बात असलम भी अच्छे से जानता था। लेकिन जिस्म का ज्वार शांत होने के बाद सुनीता का असलम के बारे मे सोचना इतना आसान नहीं है जितना देखने मे लगता है।  और वो ऑनलाइन किसी गैर मर्द से बात कर रही थी ना की असलम से। इसका मतलब साफ है की सुनीता कोई भी ऐसा कृत्य नहीं करना चाहती जिसे की उसकी पारिवारिक जीवन मे कोई भूचाल आए। इसलिए सुनीता को पाना इतना आसान नहीं था असलम के लिए, जितना वो समझ बैठा था। लेकिन हा एक बात तो तय थी की ये काम मुश्किल जरूर था लेकिन नामुमकिन नहीं। इसके लिए असलम को काफी धैर्य रखने की जरूरत थी, असलम भी किसी उतावलेपन मे आकर अपनी नौकरी और सामाजिक इज्जत को नहीं खोना चाहता था। अब असलम का दिल और दिमाग इस बात को समझ चुका था की “दिल्ली” अभी काफी दूर है। पिछली रात की कहानी का सुरूर उसपर अब भी छाया हुआ था, वो जल्द से जल्द घर पहुचना चाहता था। असलम अपने घर पर आ चुका था। उसका घर एक सामान्य सी बस्ती मे एक छोटा सा सामान्य घर था। वो गाड़ी खड़ी करके जैसे ही घर मे घुसा बाहर वाले कमरे मे उसका साला जिसकी उम्र लगभग 30 साल की होगी, जिसका नाम रफीक था वो कुर्सी पर बैठा था। सामने के तख्त पर उसकी बीवी परवीन जो की करीब 40 के उम्र की थी वो बैठी थी साथ मे उसके साली की बीवी सलमा जो 28 के करीब थी, वो भी बैठी थी। तीनों आपस मे बाते कर रहे थे।
असलम को देखकर उसके साले ने दुआ सलाम की, और एक दूसरे का हाल पूछने के बाद घर की बाते करने लगी। तभी परवीन ने रफीक से कहा “रफीक, तेरे जीजा तो कल से ही काम पर गए हुये थे, उनको थकान हो रही होगी, तू मेरे साथ बाजार चल, कुछ सामान ले आते है” रफीक ने हामी भरते हुए खड़ा हुया, परवीन ने सलमा से कहा की वो असलम के लिए चाय बना दे। ये कहकर वो अंदर कीचेन की तरफ चली गई, सलमा भी उसके पीछे किचन की तरफ चली गई। असलम ने अपनी जेब मे हाथ डाल कर 500 का एक नोट निकाला और उसे रफीक की तरफ बढ़ा दिया। दोनों एक दूसरे की आखो मे देखकर मुस्कुराए और रफीक बाहर निकाल गया। दरअसल रफीक को शराब की लत थी, असलम ये बाते जानता था इसलिए उसने रफीक को शराब लाने के लिए पैसे दिये थे। परवीन सामान के लिए थैला लेकर बाहर चली गई। असलम उनके जाने के बाद हाथ मूह धोकर कीचेन की तरफ बढ़ा।
अंदर सलमाँ चाय बना रही थी। उसने सलवार सूट पहना हुया था। उसकी कसी हुई ब्रा की किनारे असलम कपड़ो के ऊपर से ही देख सकता था। उसके कुर्ते के पीछे की तरफ चेन लगी हुयी थी। कमर का कटाव साफ़ झलक रहा था उसके कुर्ते से। हालाकी उसका कुर्ता नीचे से काफी घेरदार और ढीला था बावजूद इसके वो सलमाँ के कूल्हो की विकरालता को छुपाने के लिए नाकाफी था। असलम सलमा को कई बार चोद चुका था लेकिन वो सलमा को लगभग ढाई साल के बाद देख रहा था। सलमा दूसरी बार बच्चे पैदा कर चुकी थी। दूसरी बार बच्चा होने के बाद सलमा का जिस्म काफी भर गया था। ऐसा नहीं है की रफीक सलमा को चोदता नहीं था लेकिन शराब की लत से और शादी के कई साल गुजारजाने के बाद से वो सलमा को पहले जैसे लगातार नहीं चोदता था। पहला बच्चा होने के बाद रफीक का जिस्मानी झुकाव सलमा की तरफ कम होता चला गया। और इसी का फायदा उठाकर अनुभवी असलम ने सलमा को अपनी ल्ंड की चहेती बना लिया था। असलम आहिस्ता से सलमा के पीछे जाकर खड़ा हुआ और अपने गरम होठो को उसके खुले कंधे पर रख दिया। सलमाँ असलम के तपते होठो को एहसास को अच्छी तरह समझती थी। वो थोड़ी कसमसाई तो असलम ने अपने हाथो का घेरा बनाकर सलमा को अभी मजबूत बाहो मे भर लिया, असलम की सख्त हथेली सलमा के मोटे स्तनो को दबोच का भोपू की तरह दबाने लगी।
सलमा – इश्श्श्श्श्स... छोड़ो न जीजाजी... ये क्या कर रहे हो?
असलम पर सलमा की बातो को कोई असर नहीं हुया। वो अपने ल्ंड को सलमा की चौड़ी गांड पर घिसते हुए उसके उभारो को और ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। असलम के मसलने से सलमा के चौड़े गले मे से उसके आधे से ज्यादा उभार दिखने लगे...
असलम – दूसरा बच्चा निकालने के बाद तो और मस्त हो गई है तू... तेरे को देख कर ही मर्दो का ल्ंड सलाम ठोकता होगा तेरे को... असलम के मूह से अपनी गंदी तारीफ सुनकर सलमा के चेहरे पर मुस्कान फ़ेल गई।
सलमा – आप भी ना... औरतों को जाल मे फसाना आप से सीखे॥ असलन ने उसके दुपट्टे को हटाकर एक तरफ रख दिया और उसके गरदन पर kiss करते हुये उसके कुर्ते की चैन के निब को अपने दाँतो से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगा। सलमा के कुर्ते की निब उसके कूल्हो के ऊपरी हिस्से तक थी। असलम के सामने सलमाँ की उभरती गांड थी, असलम घुटनो के बल बैठ कर अपनी दोनों हथेलियो मे सलमा की गांड की दोनों फाको को सलवार के ऊपर से ही मसलते लगा। सलमाँ दर्द और आनंद मिश्रित सिसकारी लेने लगी। असलम सलवार के ऊपर से ही उसकी गांड की दोनों फाको को फैलाकर अपना चेहरा उसकी गांड की दरार मे डालकर अपने चेहरे को हिलाने लगा। असलम की साँसो की गर्माहट सलमा अपनी गांड की छेद पर महसूस करने लगी। असलम अपना मूह मे उसकी मांसल गांड को भर कर हल्के हल्के दाँतो से काटने लगा। और अपने एक हाथ को उसकी चौड़ी टाँगो के बीच मे डालकर उसकी फुली हुयी चूत को सलवार के ऊपर से ही अपनी मुट्ठी मे भर कर ज़ोर से मसलने लगा। सलमा ने दर्द से सिसकारी लेते हुये अपनी गांड को थोड़ा पीछे की तरफ खिसकाना चाहा तो असलम ने अपने दाँतो का दबाव उसकी मांसल गांड पर बढ़ा दिया। अब सलमा अगर आगे की तरफ कमर हिलाती तो असलम चूत को ज़ोर ज़ोर से मसलने लगता और अगर कमर पीछे की तरफ हिलाती तो गांड पर असलम की दाँत दबाव बना रहे थे। इस मीठे दर्द से सलमा की चुचिया तनने लगी थी और उसकी चूत मे सुगबुगाहट होने लगी थी। कुछ देर बाद असलम ने सलमा की चूत से हाथ हटाया और उसकी सलवार के नाड़े को खोलने का प्रयास करने लगा, सलमाँ ने उसका साथ निभाते हुए अपने हाथो से अपने नाड़े को खोल दिया। नाड़ा ढीला होते ही सलमाँ का सलवार जमीजोद हो गया और उसके बड़े कूल्हे छोटी सी पैंटी मे असलम के सामने आधे से ज्यादा खुल गए।
असलम जानता था की परवीन कुछ ही देर मे आ जाएगी। असलम खड़ा होकर उसकी panty को नीचे सरका दिया और सलमा के एक पैर को उठाकर सलवार और पैंटी के पर से निकाल दिया ताकि सलमाँ को टाँगे खोलने मे परेशानी न हो। असलम सलमा की गांड की दरार मे अपनी बीच वाली उंगली डालकर उसकी गहरी दरार का जायजा लेने लगा।
असलम – उफ़्फ़ साली अब तो तेरी गांड और भी मस्त हो गई है... लगता है खूब मर्द सवारी कर रहे है इस गाँड की...
सलमा- गांड तो सवारी करने के लिए ही होती है जीजाजी... शौहर नहीं करेगा तो कोई और करेगा... सलमा ने बेशर्मी से बोला
असलम – हा साली तेरे जैसे रंडी की चुदासी गांड बिना सवारी के कैसे रह सकती है॥
असलम ने अपने पाजामे का नाड़ा खोल कर अपने तन्नाए ल्ंड को बाहर निकाल लिया था। सामने के स्लैब पर रखी सरसों के तेल के बोतल को खोलकर उसने तेल के एक धार सलमा के गांड की दरार के बीच मे गिरा दिया और अपनी उंगली डालकर उसकी दरार मे अच्छे से तेल लगाने लगा। तेल लगने से सलमा की गांड चमकने लगी थी। असलम को पता था की कुछ देर मे ही उसकी बीवी और साला आ जाएगा। इसलिए वो समय बर्बाद न करते हुये अपने हाथो मे तेल लेकर अपने तन्नाए ल्ंड पर अच्छे से लगाया और अपना चिकना सुपाड़ा सलमा की गांड को दोनों हाथो से फैलाकर उसके गांड की छेद पर टिका दिया। सलमा आगे की सिचुएशन को समझते हुये अपने टाँगे चौड़े कर के कीचेन की पट्टी पर झुक चुकी थी। असलम ने अपना लंड का दबाव सलमाँ के गांड पर बनाना शुरू किया, चिकने टोपे पर सरसों के तेल की वजह से चिकनाहट काफी हो गई थी। सलमा की गांड असलम के लंड की अभ्यस्त थी, तेल के वजह से गांड लो भीतरी छल्लों मे भी काफी चिकनाहट थी। परिणाम स्वरूप असलम के मोटा लंड सलमाँ की गांड मे ऐसे धसने लगा जैसे की मक्खन मे गरम रॉड घुसती हो। जैसे जैसे असलम का ल्ंड सलमा की गांड के छल्ले को बड़ा कर के अंदर जा रहा था वैसे ही सलमा के मूह भी बड़ा हो रहा था। आधे से ज्यादा ल्ंड के अंदर घुस जाने के बाद असलम ने लंड को हल्के हल्के अंदर बाहर करना शुरू किया। इस धक्कम पेल से सलमा की सिसकारी तेज होने लगी। कुछ देर बाद उसकी गांड मे असलम का ल्ंड आराम से आने जाने लगा। असलम ने अपने हाथ उसकी खुली हुयी कमीज मे डाल कर उसके अधनंगे चुचे को अपने हाथो मे पकड़ कर एक ज़ोर का झटका दिया। इस अप्रतायशित झटके से सलमा के मूह से चीख निकल पड़ी “अमीईईईईई” अब असलम का ल्ंड जड़ तक सलमा की गांड मे पेबस्त हो चुका था। अब असलम ने सलमाँ के चुचो को अपने हथेली मे थाम कर एक रिदम के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया। कुछ धक्को के बाद ही सलमा की सिसकारी फिर कीचेन मे गूंजने लगी। असलम के धक्को के स्पीड पहले से डबल हो चुकी थी। असलम अपना ल्ंड पूरा बाहर खिचकर फिर तेजी से अंदर सलमा की गांड मे पेल देता, किच्चन मे हर धक्के के साथ फट फट फट की आवाज सुनाई दे रही थी। सलमा खुद अपनी गांड को पीछे की तरफ धकेल रही थी ताकि असलम का अपने अंदर ज्यादा से ज्यादा महसूस कर सके।
असलम तेजी से सलमा की गांड मारते हुये बोला “कैसा लग रहा है मेरा लवड़ा अपनी गांड मे लेकर.... बहन की लवड़ी”
“आहहआहह.... बहुत अच्छा जीजाजी... और ज़ोर से मारो मेरी इस निगोड़ी गांड को...” पूरा किचेन चुदाईमयी सिसकारियों से गूंज उठा था।


अनुराग अपने बिजनेस मे काफी उलझा हुआ था, वैसे तो उसे सुनीता से किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं थी लेकिन पिछली रातो ने उसके जेहन मे घर कर लिया था वो सोचने लगा था की खान पान, बढ़ती उम्र और काम के स्ट्रेस की वजह से उसके “मर्दाना” ताकत पर फर्क तो पड़ा है, क्योकि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ की सुनीता के डिस्चार्ज होने से पहले वो कभी स्खलित हुया (हालाकि ये महज उसका भ्रम था)। वो ये अच्छे से जानता था कि स्ट्रैस और खानपान पर असर सेक्स कि जिंदगी पर काफी पड़ता है, और कोशिश करने पर अपनी “ताकत” को काफी बढ़ा सकता है। इंसान कि फितरत ही ऐसे ही होती है वो अपनी कमी को किसी के सामने जल्दी से उजागर नहीं करता, फिर ये बात तो ऐसी है कि इसपर वो किसी खास से भी डिस्कशन नहीं कर सकता था। वो इस विषय मे किसी से खुल के बात करना चाहता था लेकिन इसके लिए कोई सही आदमी उसकी नज़र मे नहीं आ रहा था। अनुराग अपने ऑफिस मे बैठा इसी कशोकश मे डूबा हुया था कि उसके मोबाइल पर एक अननोन नंबर से कॉल आया कुछ सोचकर उसने कॉल रिसीव किया –
अनुराग – हैलो... कौन
फोन पर – हैलो, कौन.... अनुराग बोल रहा है क्या?
अनुराग – जी.... अनुराग बोल रहा हू, लेकिन आप कौन बोल रहे है? अनुराग कि आवाज मे जिज्ञासा था कि इस तरह से बोलने वाला कौन है।
फोन पर – अरे किया जी जी लगा रखा है मैं बोल रहा हु तेरा लंगोटिया यार... राघव... पहचाना?
अनुराग – (दिमाग पर ज़ोर डालते हुए) राघव.... कौन राघव.... माफ करना भाई.... मैंने नहीं पहचाना।
फोन पर – सही है बेटा..... अब तू क्यो पहचाहने लगा अपने बचपन के दोस्तो को... साले गाव के नहर मे बिना चड्ढी के साथ साथ नहाया है और... बोल रहा है कि पहचाना ही नहीं... सही कहते है लोग कि शहर का पानी ही अलग होगा है.... लोग यंहा आकर अपनों को भूल जाते है... मैं तो फिर भी तेरा दोस्त ही हू साले......... (उसकी आदमी कि आवाज मे एक अपनेपन वाला गुस्सा उबलने लगा था)
अनुराग – अरेरेरे..... तू रघु बोल रहा है ना.... साले तू है ना... रघु है ना (अनुराग के आवाज मे एक बच्चे कि तरह तरह उतावलपन था)
फोन पर – हा साले... रघु हु बोल रहा हू.... अब पहचाना?
अनुराग – (हसते हुये) हा यार..... तो भी क्या राघव राघव बोल रहा है? साले तू रघु है और रघु ही रहेगा मेरे लिए समझा। राघव होगा तू अपने दफ्तर मे। अच्छे ये बता तेरे को मेरे नंबर कहा से मिले?
रघु – अरे यार ऑफिस के काम से आया था यहा पर... तू तो अब गाव आता नहीं.... मैंने तो अक्सर गाव जाता रहता हू... मैंने तेरे चाचाजी से तेरा नंबर लिया, सोचा कि जब तेरे शहर मे आया हु तो तुझसे मिलता भी चलू!
अनुराग – बिलकुल ठीक किया तूने... इस भाग दौड़ कि ज़िंदगी मे कब इतने साल बीते पता ही नहीं चला... लेकिन तेरी आवाज सुनकर आज फिर से मुझे वो 30 साल पहले वाला बचपन याद आ गया, क्या दिन थे यार वो, ना कुछ पाने कि चाहत, और ना कुछ खोने का गम (अनुराग कि आवाज गंभीर हो उठी थी)
रघु – हा यार सच कहा तूने कभी कभी लगता है कि सब कुछ होते हुये भी मेरे पास कुछ नहीं नहीं है... दोस्त के टिफिन से चुरा कि खाई हुयी रोटी मे जो स्वाद था ना वो इस फाइव स्टार होटल के खाने मे कहा है यार (रघु भी बचपन के अनमोल लम्हो को याद कर के संजीदा हो उठा)
अनुराग – अच्छे अब ये सब छोड़... अब तू ऐसा कर जल्दी से घर आ जा घर पर आज साथ साथ खाना खाएँगे।
रघु – हा खाना तो साथ साथ ही खाएँगे ... लेकिन घर पर नहीं... कही बाहर।
अनुराग – बाहर क्यो?
रघु – यार कल सुबह कि मेरी वापसी कि फ्लाइट है, मुझे कल निकालना है। घर पर कुछ बंदिशे होंगी, वहाँ भाभी, बच्चे होंगे... इतने दिनो बाद मिल रहे है दो बचपन के दोस्त, एक दो पेग मारेंगे और साथ साथ और बचपन कि यादों मे डूबकिया लगाएंगे, मैं तेरे को होटल का एड्रैस msg करता हु, तू फ्री होकर आजा यहाँ, समझा!
अनुराग – हा बात तो सही कह रहा है, तो ठीक है मैं आज शाम को तेरे पास आ जाता हु, बाकी कि बाते वही करेंगे फिर।
रघु – हा ठीक है, मैं तेरा wait कर रहा हू होटल मे। ये कहकर रघु ने फोन काट दिया।
रघु अनुराग के बचपन का दोस्त था, दोनों ने साथ मिलकर बचपन मे खूब शैतानी कि थी, कभी किसी बगीचे मे जाकर आम, अमरूध चुरा कर खाना, घरवालो के लाख मना करने पर भी गाव कि नहर मे जाकर नहाना और भी न जाने क्या क्या। रघु से बात करके अनुराग फिर से अपने आपको 10 साल के बच्चे कि तरह उमंगीत महसूस करने लगा था। फिर वो अपने जरूरी कामो को जल्दी से जल्दी निपटाकर होटल जाना चाहता था। उसने सुनीता को भी कॉल करके बोल दिया था कि उसे किसी जरूरी काम से बाहर जाना था। हर बार कि तरह असलम भी साथ जाएगा उसके। उसने सुनीता से कहा कि वो असलम को घर भेजेगा तो उसके एक जोड़ी कपड़े पैक कर के वो असलम को दे दे। अनुराग ये सब इसलिए कर रहा था कि सुनीता को सबकुछ नार्मल लगे।
बच्चे रोज कि तरह अपने स्कूल मे थे, असलम भी अनुराग के कपड़े शाम को लेने आने वाला था, सुनीता के पास अभी काफी टाइम था, वो शॉपिंग पर जाने के इरादे से तैयार होने लगी। उसने एक ट्रान्सप्रेनसी साड़ी पहनी, वैसे तो वो अक्सर ही अपनी साड़ी को नावेल के नीचे ही रखती थी, उसने अपने आपको एक बार आईने मे देखा और साड़ी को थोड़ा और नीचे खिसका दी, उसकी साड़ी उसकी नावेल से लगभग 4-5 इंच नीचे थी, जिससे उसके गोरा पेट का अधिकतर हिस्सा उजागर हो रहा था, उसके पेट और जांगों के अंदरूनी हिस्सो का कटाव भी साफ नज़र आने लगा था, उसका मांसल पेट किसी भी मर्द को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए मजबूर करने मे काफी था। अपने इस आकर्षक और खूबसूरत जिस्म को देखकर सुनीता के होठो पर एक शरारती मुस्कान तैरने लगी। उसने साड़ी के मैचिंग का डोरी वाला ब्लाउज़ पहना था, आज ये ब्लाउज़ सुनीता को थोड़ा टाइट लग रहा था, उसके दोनों स्तन इसमे दबकर थोड़े उभर कर ब्लाउज़ के गले से अपनी उपस्थिती दर्ज करा रहे थे। उसके दोनों उभारो के बीच कि ऐसी लग रही थी जैसे को दो बड़े पहाड़ो कि बीच मे कोई गहरी घाटी हो। और इस घाटी के बीच मे मर्दो कि नजरों का उलझना आम बात थी। सुनीता के गले मे सोने कि चैन मे लटका मंगलसूत्र उसके दोनों जोबन के बीच कि घाटियो मे फसा कसमसा रहा था ठीक वैसे ही जैसे कुछ दिन पहले अनुराग सुनीता के जोबन के बीच मे कसमसाने लगा था। सुनीता ने पल्लू को अपने सीने पर रख लिया। उसकी ट्रान्स्स्प्रेनसी साड़ी मे से उसके ब्लाउज़ के ऊपरी हिस्से से दिखता उसके cleavage और भी मादक लगने लगे। उसके ट्रांसप्रनसी साड़ी उसके जिस्म कि खूबसूरती ऐसे झलक रही थी जैसे कि पूनम के चाँद के आगे किसी ने एक झीनी सी चादर डाल दी हो।
कुछ देर बाद सुनीता एक शॉप पर कुछ कपड़े लेने के लिए थी। मैं काउंटर पर एक 40-42 साल का आदमी जो कि हाव भाव से उस दुकान का मालिक लग रहा था। उसकी नज़र सुनीता कि कामुक बदन पर उलझ सी गई। सुनीता के जिस्म कि उतार चढ़ाव, हर कदम पर उसके भारी कमर के बलखाव, उसके उभारो के उठानों को नापता हुया वो आदमी अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुये बोला। “आईये मैडम, क्या सेवा करू आपकी?” उसकी बात करने का लहजा बिलकुल प्रॉफेश्नल था।
“मुझे कुछ ब्लाउज़ और अंडरगोरमेंट चाहिए” सुनीता ने कहा।
उस आदमी कि नजरे सुनीता को के वक्ष का जायजा लेने लगी, सुनीता कि ट्रांसप्रेसनी आँचल से झाकता उसके दूधिया स्तनो के बीच उसकी नजरे उलझ गई, सुनिता के स्तनो को अपनी आखो मे उतारते हुये वो उनकी विशालता को ऐसे देखने लगा जैसा कोई जोहरी किसी हीरे कि कौसटी जाचते समय देखता हो। सुनीता को अपने जोबन पर उसके नजरों के मीठे तीर चुभने लगे थे। इससे पहले कि सुनीता कुछ बोलती वो दुकानदार बोला “38 सी कप की size ठीक रहेगी शायद आपके लिए” उसका लहजा इतना प्रोफेशनल था की सुनीता का सिर अपने आप हा मे हिल गया। उसने एक लड़के को आवाज लगते हुये कहा, “मैडम को कपड़े दिखा राहुल!” और उसने सुनीता की इशारे से दुकाने मे दूसरे काउंटर पर जाने का इशारा किया। सुनीता दूसरे काउंटर की तरफ बढ़ गई। उसकी पीठ दुकानदार के नजरों के सामने थी, सुनीता का डोरी वाला ब्लाउज़ पीछे से बैकलेस था जिसमे से उसकी गोरी चमकदार पीठ की चमक से उसकी आखे चौधियाने लगी। सुनीता की चिकनी मांसल पीठ पर उसकी नजरे ज्यादा देर ठहर न सकी और फिसल कर उसकी गोरी और गदराई कमर पर आ गई। कुछ देर उसकी नजरे कमर की खम के साथ हिचकोले खाती रही पर उसकी चिकनी कमर पर उसकी नजरे की और ज्यादा ठहरने की हैसियत नहीं थी। उसकी गिरती नजरे सुनीता की कूल्हो को उठानों पर आकर फिर से अटक गई, लेकिन इस बार सुनीता के कूल्हो की विकरालता उसकी आखो मे समा न सकी उसे सुनीता के कूल्हो को अपनी आखो मे उतारने के लिए उसे अपनी पुतलियों को काफी फैलाना पड़ा। “उफ़्फ़ क्या पिछवाड़ा है” दुकानदार की होठो अपने आप बुदबुदा उठे। सुनीता के पुष्ट कूल्हे हर कदम के साथ थिरक रहे थे, एक तो सुनीता के कूल्हे पहले सी ही काफी कटाव वाले थे उसपर उसकी उची हील की सैंडल ने उसके पिछवाड़े के उठान को इतना कातिल बना दिया था की हर कदम से उसके कूल्हो के झटके का असर उस दुकानदार को अपने जिस्म पर महसूस हो रहा था। इधर सुनीता भी काउंटर से हटने के बाद जब मुड़ कर दूसरे काउंटर के तरफ बढ़ी तो अपने जोबन पर दुकानदार के नजरों को महसूस कर रही थी। “उफ़्फ़ कैसे मेरे स्तनो को घूर रहा था, ऐसा लग रहा था की जैसे खा जाएगा इन्हे। लेकिन एक बात तो है काफी एक्सपिरियन्स है कमीने को, केवल नजरों से देख कर ही सही नाप बता दिया उसने... पता नहीं क्यो ऐसा लग रहा है जैसे वो अब भी मुझे घूर रहा है, क्या देख रहा है वो अभी ... शायद मेरी अधनंगी पीठ... या फिर मेरी कमर या फिर कभी मेरे कूल्हे….. हे भगवान... पक्का वो वही देख रहा होगा” ये सोचते ही सुनीता अपनी कूल्हो की दरार मे उसकी पैनी नजर महसूस करने लगी... सुनीता ने अपने इस संशय को दूर करने के लिए पलट के देखा और दुकानदार की नजरों के अपनी कूल्हो को निहारता हुआ पाया। “उफ़्फ़ मेरा शक सही था... कमीना मेरे कूल्हो को घूर रहा है”। सुनीता के अचानक इस तरह पलटने से दुकानदार अपनी चोरी पकड़े जाने से थोड़ा हदबड़ा गया। सुनीता उसकी हड़बड़ाहट देखकर मुस्कुरा उठी और काउंटर पर खड़े सेल्समेन से बाते करने लगी।
20-25 मिनट मे सुनीता ने अपने पसंद के चीजे लेकर वापस कैश काउंटर पर दुकानदार के पास आ गई। इस दौरान और भी कस्टमर दुकान मे आ जा चुके थे इसलिए वो दुकानदार भी अब सहज हो चुका था। सुनीता के हाथो से पाकेट लेकर वो बिल बनाते हुये बोला।
“मैडम... कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो हमारी दुकान पर आइएगा... यंहा पर आपको आपकी जरूरत की सभी ब्रांडेड चीजे किफ़ायती rate मे मिलेगी” वो सुनीता की तरफ देखकर मुसकुराते हुये बोला। सुनीता ने भी संजीदा तरीके से मुसकुराते हुये कहा “बिलकुल भाई साहब.....अब से मैं इसी शॉप पर ख़रीदारी करने आऊँगी”
फिर सुनीता ने पेमेंट किया और जाने लगी तभी वो बोला “एक मिनट मैडम, रुकिए” उसकी आवाज सुनकर सुनीता जिज्ञासा भरी नजरों से उसे देखते हुये रुक गई।
“वो क्या है न मैडम... हम अपने खास कस्टमर्स को एक सर्प्राइज़ गिफ्ट देते है” ये कह कर उसने 4-5 पैकेट काउंटर पर रख कर बोला “आप कोई भी एक पैकेट ले उठा लीजिये... अब आपकी किस्मत है की इसमे क्या निकलता है?” सुनीता ने भी हसते हुये एक पैकेट उठा लिया।
“उम्मीद करता हूँ मैडम..... इसमे ऐसा कुछ होगा... जिसे use करके आपको मेरी और दुकान की याद जरूर करेंगी”। सुनीता मुसकुराते हुये दुकाने से बाहर निकल पड़ी। उसे जाते हुये उसके मटकते कूल्हो को देखकर ठंडी आहे भरता हुआ दुकानदार तब तक उसे निहारता रहा जब तक वो उसकी आखो से ओझल न हो गई।
सुनीता पूरे रास्ते उसकी नजरों को अपनी शरीर पर महसूस कर रही थी। सुनीता दुकान मे हुये वाकये को याद करके काफी रोमांचित महसूस कर रही थी। जिस जिस्म को वो मोटापा साझाने लगी थी वो जिस्म इतना आकर्षित है की मर्दो की आखे उसके जिस्म पर अटक कर रह जाती है। उसे अपने जिस्म की खूबसूरती पर फ़क्र महसूस होने लगा था। पूरे रास्ते वो उस अंजान दुकानदार की नजरों को अपने जिस्म पर महसूस करती रही। घर पहुच कर उसने कपड़े के पैकेट को अपने बेड पर फेका और बिस्तर पर निढाल होकर पड गई। उसकी नजरे छत को घूरते हुये फिर से दुकान के वाकया क्रमबद्ध सोचने लगी। कैसे वो दुकानदार उसके जिस्म को घूर रहा था... लेकिन कुछ भी हो उसने देख कर ही मेरे स्तनो का सही साइज बता दिया। आज तक अनुराग को उसके जिस्म का सही साइज़ नहीं पता है लेकिन आज एक गैर मर्द ने अपनी नजरों से देख कर उसके स्तनो का एकदम सही साइज़ बता दिया। ये बात सोच कर उसके स्तनो मे रक्त इकठ्ठा होने लगा और वो कठोर होने लगे। उसे अपना ब्लाउज़ टाइट लगने लगा, उसकी साँसे भारी होने लगी। वो उठकर बैठगई और अपने हाथो को अपने गर्दन के पीछे और नीचे वाले दोनों ब्लाउज़ की डोरी को खोल दिया। डोरी खुलते ही ब्लाउज़ ढीला होकर स्तनो का साथ छोड़ दिया। सुनीता ने अपने ढीले ब्लाउज़ मे अपने दोनों हाथ डाल कर अपने स्तनो को मसलने लगी। उसके मोटे निपप्ल खड़े होकर अपने वजूद को दर्शाने लगे। वो अपने निप्पल को अपनी उँगलियो से दबा दबा कर मसलने लगी।
“उफ़्फ़ कमीने ने ब्लाउज़ के ऊपर से ही इसे देख लिया, ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आखे नहीं x-ray मशीन थी, उसके नजरे कपड़ो के अंदर घुस कर मेरे स्तनो को नाप ले रहे थे, मेरे स्तन तो उसके सामने ब्लाउज़ मे थे तो वो इन्हे इतना घूर रहा था। अगर बिना ब्लाउज़ के होते तो कितना घूरता वो इन्हे! केवल घूरता???? साले को देख कर लगता नहीं की वो सिर्फ घूरता.... वो तो अपने हथेलियो मे मेरे स्तनो को लेकर मसल देता” ऐसा सोचते ही सुनीता के हाथ अपने आपने अपने जोबन पर कसने लगे, ठीक वैसे ही जैसे की उस दुकानदार के हाथ उसके जोबन को मसलते। आवेश मे आकार सुनीता ने अपने स्तनो को इतनी तेज मसला की उसके मूह से सिसकारी निकाल गई “आहह... क्या कर रहे हो ये”, “कुछ नही मैडम, मैं तो बस ब्रा और ब्लाउज़ के लिए नाप ले रहा हु” सुनीता की भावनाए काल्पनिक दुनिया मे बहने लगी। वो उस दुकानदार को अपने साथ इमेजीन करने लगी। “ठीक है, ध्यान रहे, फिटिंग अच्छी होनी चाहिए” सुनीता कसमसाती हुयी बुदबुदा उठी। “अच्छी फिटिंग के लिए नाप अच्छे से लेना पड़ेगा” सुनीता को उस दुकानदार की काल्पनिक आवाज़े अपने कानो मे सुनाई देने लगी थी। “तो ले लो ना अच्छे से नाप, कौन मना का रहा है” उस दुकादार के हाथो को अपने जोबन पर काल्पनिक अनुभव कर सुनीता के जिस्म के कामज्वाला भड़कने लगी। उसने अपनी बाहो मे उलझे ब्लाउज़ को अपने तन से दूर कर दिया और आखे बंद किए हुये वो बेड पर लेटकर अपनी स्तनो को ज़ोर ज़ोर से मसलने लगी। “उफ़्फ़ कैसे देख रहा था वो मेरे स्तनो को, और जब मैं पीछे मुड़कर देखा तो उसकी नजरे मेरे कूल्हो पर थी, कैसे आखे फाड़ फाड़ कर वो मेरे कूल्हो को देख रहा था, मेरे कूल्हो को भी अपने x-ray वाली आखो से नंगा कर के देखा होगा उसने... इसको भी नाप लिया होगा उसने पक्का... सब कुछ नाप लिया होगा उसने... चौड़ाई... उचाई और दरार मे घुस कर गहराई भी... उफ़्फ़” अचानक सुनीता की अपने पुष्ट कूल्हो के दरार मे दुकानदार की नजरे चुभती हुयी महसूस होने लगी। “मेरी कूल्हो की गहराई नापने के लिए उसे पहले इसे फैलाना पड़ेगा”.... कामाग्नि मे जलती सुनीता फिर बुदबुदाने लगी। उसे अपने पेटीकोट के अंदर गीलापन महसूस होने लगा उसे अंदाजा लगते देर न लगी की उसकी नीचे वाली गली मे बागवात के सुर उठने लगे है। उसने अपने साड़ी को पेटीकोट समेत ऊपर कमर तक समेट दिया और अपने हाथ को अपनी पैंटी पर रख कर सुरत-ए-चूत का जायजा लेने लगी। उसकी पैंटी पूरी गीले हो चुकी थी। उसने अपनी पैंटी की कमर के पास वाले इलास्टिक से पकड़ नीचे की तरफ सरका दिया कुछ ही देर बाद उसकी पैंटी उसकी रसीली चूत से दूर हो चुकी थी। उसने अपनी उंगली को अपनी चूत की दरार पर फेरना शुरू किया उसकी चूत की फाके योनिरस से पूरी चिपचिपी हो चुकी थी। वो अपने उंगली को तेजी से अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी। तभी उसकी नजरे सामने रखे पैकेट पर गई। सहसा उसे कुछ याद आया और वो पैकेट को खिचकर कर उसमे कुछ ढूढ़ने लगी। कुछ देर बाद उसके हाथ मे दुकानदार का दिया हुआ surprise गिफ्ट था, वो उसे उतावली होकर खोलने लगी। पैकेट के अंदर के ब्रांडेड महंगी पैंटी थी, पैंटी क्या थी पैंटी के नाम पर पतली पतली डोरिया थी। जिसपर पर L size का स्टिकर लगा हुया था (जिन औरतों की कमर 29-30 इंच और हिप 39-40 इंच के करीब होती है उसके लिए L size होती है) उसे देखकर सुनीता के होठो पर एक कामुक मुस्कान फ़ेल गई “सचमुच कमीने ने सब कुछ नाप लिया” और सुनीता ने अपने कमर से साड़ी और को हटा दिया अब वो बिना पैंटी के सिर्फ पेटीकोट मे थी। उसने अपने दोनों पैरो मे पैंटी को फंसाया और उसे कमर पर चढ़ाने लगी। पैंटी की डोरी नुमा तो थी ही और उसकी डोरी भी इतनी पतली थी की सुनीता के कूल्हो के गहरे दरार मे गायब होने लगी थी, आगे भी उसकी फैली हुयी चूत के मोटे होठो को बीच फसी हुयी थी। सुनीता ने अपने आपको शीशे मे निहारती हुयी  पेटीकोट के नाड़े को ढीला कर दिया। नाड़ा खुलते ही जमीन पर धराशायी हो गया। अब सुनीता केवल उस सेक्सी पैंटी मे शीशे के सामने खड़ी थी। वो अपने आपको निहारती हुयी एक बार फिर दुकानदार के बातो को याद करने लगी “जब भी आप इसे उसे करो मुझे जरूर याद करोगे” सच कहा था उसने सुनीता को अपने कूल्हो के दरार फसी पैंटी की छुवन उस दुकानदार के उंगलीयो की लगने लगी थी, उसे ऐसा अनुभव होने लगा जैसे की वो दुकानदार अपनी मोती उंगलिया उसके गहरी दरार मे डाल कर ऊपर नीचे घिस रहा रहा है। ऐसा लगने लगा उसे जैसे की उसकी कूल्हो की दरार मे वो दुकानदार अपनी पूरी उंगली डाल कर उसके गुड़ाद्वार को अपनी उँगलियो से छेड्ने लगा। सुनीता आखे बंद करके अपने पैंटी की खिचने लगी जिस से उसके कूल्हो के फाको मे पैंटी और अंदर तक घुस गई और आगे से उसकी चूत की clitoris पर भी पैंटी रगड़ खाने लगी। सुनीता फिर panty की रगड़ को दुकानदार की उगलिया imagine करके काल्पनिक सागर मे गोते लगाने लगी। वो अपने इस रंगीन दुनिया से तंद्रा तब टूटी जब उसकी कानो मे गाड़ी के तेज हॉर्न सुनाई देने लगा। उसने नजरे दीवार पर लगी घड़ी पर दौड़ाई। 5 बज चुके थे।








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