Thursday, November 12, 2009

ताऊ की शोले पार्ट -1

FUN-MAZA-MASTI


पिछली बार आपने पढा : कालिया और अपना माल छुडवाने के लिये गब्बर और सांभा वापस ठाकुर की हवेली में लौट आते हैं. जहां ठाकुर उनको ब्लागिंग ब्लागिंग खेलता हुआ मिलता है. गब्बर द्वारा यह कहने पर कि वो और सांभा थोडे दिन ठाकुर की हवेली पर पुलिस से छुपकर रहना चाहते हैं. ठाकुर ने सांभा को घोडे लेकर कहीं और जाने का कहा. क्युंकि पुलिस घोडे की लीद सूघ कर उनको यहां ढुंढने आ सकती थी. और सांभा वहां से अपने घोडे पर सवार होकर गांव में मौसी के घर जा पहुंचता है. मौसी ने उसको बडे प्यार से खाना खिलाया और दोनों बातें करने लगे. अब आगे पढिये...
मौसी : अरे सांभा...वो गब्बर नही आया बहुत दिनों से?

सांभा : मौसी..वो क्या है ना आजकल गब्बर भैया बहुत बिजी हो गये हैं।

मौसी : काहे, आज कल उड़नतश्तरी का धंधा जोरों पर है क्या? कि फ़िर वो मुआ ऑडिट साडिट का चक्कर है? मेरे तो समझ में नहीं आये कि जब इतना बढ़िया खानदानी धंधा चल रहा था तो ये मुए नये धंधे पकड़ने की का जरूरत। खुद तो खानदान की लुटिया डुबो रहा है, साथ में वीरु का भी सत्यानाश करे है।

सांभा : अरे मौसी ...आप तो यूं ही फ़िकर करती हो गब्बर भैया का? ऊ तो का कहवैं कि.. बहुत बडा काम करते हैं...आप चिंता मत किया करो.

मौसी : अरे, चिंता कैसे ना करुं? भाई है मेरा...मैं ही चिंता ना करुंगी तो कौन करेगा? बाप दादा का धंधा संभालता तो आज कित्ता बड़का आदमी होता, सारे मंत्री ऐसे लाइन लगाते जैसे राशन की दुकान पे चीनी की लाइन

सांभा : मौसी तू चिन्ताये मती न, गब्बर भैया तो बस बड़े आदमी बने समझो जरा बस ये लेपटॉप तो पालतू हो जाये

मौसी : का बोला…का बोला…लेपटाप, ये मुआ कोई नया जनावर है का?

सांभा : अरे नहीं मौसी..ये तो बड़के बड़के लोगां के शौक है, राजा महाराजा के…ऊ फ़िल्लम आयी थी, देखो तुमरी जवानी में संजीव कुमार वाली, शंतरज के खिलाड़ी, याद आयी, उसमें वो राजा लोग कैसा खेल खेलते थे, वैसा ही है ये लेपटॉप।

मौसी : हाय हाय तो गब्बर अब धंधा पानी छोड़ के खेल खेलत है, हे भगवान, ये छोरा तो गया हाथ से. बापूऊऊऊउ…क्या मुंह दिखाऊंगी तुम्हें।

सांभा : अरररर मौसी, पिटवाओगी गब्बर भैया से, मैने ये कब कहा कि गब्बर भैया खेलत है, अरे वो भी सुसरी पढ़ाई जैसा है, ठाकुर भैया सिखलाय रहे हैं।

मौसी : हे राम, अब इस उमर में पढ़ाई करत है, काहे, उसके बाप दादा ने कभी पढ़ाई की जो ये कर रहा है, देखत नहीं का? गांव के सब स्कूल पास लौंडे मारे मारे फ़िरत हैं दो दो चार आने की बेगार करे हैं और तू…देख कैसा मौज करे हैं और वो कालिया…। मैं पहले ही बोली थी गब्बर को, ये मरे ठाकुर की सौबत में मत पड़ , मत पड़, बर्बाद हो जायेगा, पर सुने तब न

सांभा : अरे नहीं नहीं मौसी, ठाकुर भैया तो उन्हें ब्लागिंग करना सिखाय, अब देखो, गब्बर भैया कित्ते बड़े आदमी बन गये , पहले तो सौ कोस दूर तक गब्बर भैया का नाम था अब तो दुनिया के चप्पे चप्पे में लोग उन्हें जानत हैं, प्यार करत हैं। हम तो ठाकुर भैया को बोले हमें भी तनिक सिखलाय दो इ मुई ब्लागिंग, हमें भी कोई इक बार क्यूट कह दे झूठा ही सही।

मौसी :ह्म्म, तो ये मुई बिलागिंग ने सत्यानास किया है मेरे गब्बर का, पहले वो छमिया आयी थी बर्बाद करने। कौन गांव से है ये मुई ब्लागिंग, चल अभी उसका झोंटा काट उसके हाथ न दिया तो मेरा नाम भी जगत मौसी नहीं, हां
sssss नहीं तो।

सांभा : अरे मौसी , तुम भी न , बस न आव देखती हो न ताव बस झट से डंडा निकाल लेती हो, अब बिना समझे ही चढ गई ना हुक्का पानी लेके? अरे ई ब्लागिंग कोई माहतारी नहीं ये तो एक विधा है, तुम भी सिखल्यो ना ई बिलागिंग अब छोड़ो ये आचार बनाने, ब्लागिंग सीखो ब्लागिंग, फ़िर देखो, तुम भी बड़की हो लोगी

मौसी : अरे हट परे मुए, अब क्या मेरी उमर है बड़का होने की? तेरी ये ब्लागिंग कोई दाम भी दिलाये की बस टाइम खोटी? गब्बर कुछ कमाता धमाता भी है की ना

सांभा, मौसी के सामने गब्बर की पोल खोलते हुये


सांभा : अरे मौसी..तुम भी का बात करती हो? अरे लेपटोपवा है तो ई समझ ल्यो कि पैसा ही पैसा है
मौसी आंखे बडी करके कहती है : वो कैसे ?
सांभा : अरे मौसी, अब देखो, डाका डालना हो तो पहले खबरी का खर्चा, फ़िर कम से कम दस घोड़े का खर्चा, एक एक घोड़ा, साठ सत्तर हजार का आता है, फ़िर घास भी कित्ती मंहगी हो रेली है आजकल, आदमियों का खर्चा सो अलग, और फ़िर पुलिस का खटका हुआ तो उल्टे पैर भाग लेते है, कित्ता लुकसान हो जाता है, समझ रही हैं न ?

मौसी : का मतलब है तुहार सांभा..?

सांभा : अरे मौसी..ऊ देखो ना..अब कालिया पकडे गये हैं...उसे छुड़वाने का खर्चा , भले गब्बर भैया ने ठाकुर को कह दिया,,वो छुडवा भी देंगे..पर खर्चा तो देना ही पड़े न, इसमें तो फ़ौरन काम चालू..

मौसी : सांभा..ई का ताऊ जैसन पहेलियां बुझा रहा है? कालिया..पकडा गया..ठाकुर छुडवा देगा? काम चालू..साफ़ साफ़ बता...

सांभा : अब मौसी..हम का बतायें..कि कालिया के साथ साथ ठाकुर ...गब्बर भैया का माल भी छुडवा देंगे....
मौसी : माल भी छुडवा देंगे...का कह रहे हो सांभा? कौन सा माल..

सांभा : अरे मौसी..जब गब्बर के आदमी पकडे जाते हैं तो माल भी तो साथ मे पकडा जाता है ना?
अब मौसी ने लठ्ठ हाथ मे ऊठाया और सांभा पर तानते हुये बोली - देख बचूआ..तू हमका सही सही बता वर्ना आज तेरी हड्डी पसली हम तोड ताड के रख देंगे..

सांभा : अब देखो मौसी..आप खाम्खाह मे हमारे उपर तो नाराज हो मति..हमरा आपके सिवा और हैईये कौन? और आप हमारा हड्डी पसली तोड कर भी अपना ही नुक्सान करवा लेंगी...काहे से कि हमारी दवा दारू भी आपको ही करवानी पडेगी ना बुढौती मे...

मौसी ने एक लठ्ठ दिया सांभा को घुमाकर...और बोली ---बातें बाद मे बनाना मुए..चल अब सही सही बता सब कुछ मेरे को. नही तो अब और पिटेगा.

सांभा - अरे मौसी इत्ती जोर से क्युं मारती हो? आव देखती हो ना ताव..बस जब मन हुआ घुमाय दिया लठ्ठ सांभा की खुपडिया पर...हम बताये देत हैं...ऊ का है ना कि गब्बर भैया को ठाकुर की हवेली मे जाये बिना चैन नही है और ऊंहा..ठाकुर साब उनको नशा पानी पिलवाय देत हैं...बस नशा करके ..

मौसी बीच मे ही टोक कर...तो अब क्या गब्बर नशा भी करने लगे हैं?

सांभा - अरे मौसी... ई हम कब कहत हैं? ऊ तो ई होत है कि ..नशे के बाद गब्बर बडा रोमांटिक हो जाता है और फ़िर ऊ जो कौन बंजारन है...का नाम है.. अरे मौसी ऊ ही जो सिप्पी साहब की फ़िल्लम मे बडे ठुमके लगाके नाची रही...ऊ ...हां शायद हेलनवा या ऐसन ही कोनू नाम रहा.. अबहिं नाम याद आने पर पक्का बताते हैं...बस ऊसको बुलवाकर ठुमके उमके की महफ़िल लगा लेत है...

मौसी फ़िर से बीच मे बोली ---हे राम..मेरे तकदीर फ़ूटे..इस लडके ने तो सारा कुल का नाम मिट्टी मे मिलाय दिया..अब क्या कसर रह गई? हे भगवान..यही कमी थी..अब नशा और उसके बाद नाच..गाना..छि: छि:....सांभा....

सांभा - अरे मौसी ई तो कोनू बडी बात नही है...अब का है कि इन बंजारण कि महफ़िल मे खर्चा भी बहुत बडा आता है..सब नवाबी शौक हैं..तो जब पैसा की जरुरत लग पडे तो गब्बर कहां से लाये....ई तो पूछो जरा हमसे?

मौसी बीच मे ही.. अबे मुए बतायेगा भी कहां से लाता है इतने पैसे गब्बर? या दूं घुमा के? मौसी लठ्ठ तानती हुई बोली.

सांभा खींसे निपोरते हुये बोला - अरे मौसी ...वही तो समझा रहे थे न, पैसे पाने के लिए डाके डालने पड़ते हैं, लेकिन अब तो वो सबहे काम लेपटॉप पर झूला झूलते झुलते हो जाता है, काहे गधे घोड़े की खिटपिट मोल लेनी?

मौसी: सांभा, तू पगला गया है या मुझे पगला देगा, अब क्या ये तेरे लेपटॉप से पैसा निकलता है?

सांभा: नहीं मौसी, ठाकुर ने ऐसे ऐसन गुर सिखा दिये है गब्बर भैया को कि किसी का घर में घुसने की जरूरत ही नाहीं, बस लेपटॉप खोलो, किसी के भी बैंकवा में घुसो और वारे न्यारे, क्या समझीं…॥ ही ही ही... अरे मौसी, इसी लिये तो कहूं हूं कि तू भी सीख ले ये खेल फ़िर तू भी पैसा कमाना, छोड़ ये आचार वाचार के चक्कर्। कब तक बनाती रहेगी?

मौसी: अच्छा ssssss. चल फ़िर मैं भी जरा चलूं ठाकुर के घर,
















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