Friday, November 13, 2009

ताऊ की शोले पार्ट-4

FUN-MAZA-MASTI

"ताऊ की शोले" की शूटिंग रुकी - गब्बर जंगल लौटा!!



ताऊ की शोले (एपिसोड - 7)
लेखक और एपिसोड निर्देशक : समीरलाल "समीर" और ताऊ रामपुरिया


गब्बर को बड़ी मुश्किल से ठाकुर घेर घार के ब्लॉगिंग में लाये थे. धीरे धीरे गब्बर का मन भी रमने लगा था ब्लॉगिंग की दुनिया मे. जंगल में छिप छिप कर अड्डा चलाते चलाते वो भी थक गया था.

कुछ समय तो बहुत मजा आया मगर जैसे ही गब्बर स्थापित होने लगा, नाम कमाने लगा, उसकी यहाँ ब्लॉगिंग मे खिलाफत होने लग गई. लोग मौज लेने के नाम पर उसे परेशान करते, जलील करते. यहाँ व्यंग्य बाणों के बेवजह तीर और स्ट्रींग ऑपरेशन की तर्ज पर खुद को और अन्यों को जलील होता देख कर गब्बर को लगा कि अगर यही सब यहाँ भी करना है तो जंगल में ही ठीक थे. यही सोच कर गब्बर वापस उदास मन से अपनी पूरी गैंग के साथ वापस जंगल जाने की तैयारी करने लगा.


ब्लॉगिंग के दौरान ही कालिया इस बात से गब्बर से नाराज रहने लगा कि गब्बर सांभा को ज्यादा चाहता है जबकि वो कालिया के बाद गैंग में आया है और सीरियस भी नहीं है. हर समय हा हा हो हो और लड़कपना करता है.

गब्बर अक्सर कालिया को समझाता है कि सांभा जैसा मौलिक और सुलझी सोच का डकैत मैने पूरे जंगल में आज तक नहीं देखा, इसलिए वो मेरा प्रिय है. जब मैं बीमार था तब भी सांभा रोज मुझे डकैती डालने की सलाह देता था. गब्बर ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए सांभा की शान में एक बेहतर शेर भी सुनाया जिसका लब्बोलुआब यह था कि सांभा क्यूँ उनका प्रिय है. शेर सुना कर गब्बर हो.. हो.. करके हंसने लगा मानो बहुत उँचा शेर सुनाया हो.

ठाकुर के साथ रह रह कर गब्बर को भी मौज लेने की आदत पड़ गई और इसी चुहल में उसने पुलिस वालों से भी मौज ले ली थी. अब पूरी पुलिस फोर्स भी उसके पीछे पड़ गई थी. भागते रास्ता नजर नहीं आ रहा था तो उसने सोचा कि जंगल का रास्ता लेने में उनसे भी बचाव हो जायेगा, इसलिए जंगल वापस लौट जाना 'एक पंथ दो काज' जैसी बात थी. कालिया तुरंत जंगल चलने को तैयार नहीं था क्योंकि सांभा सरदार के साथ आगे आगे चलता अतः उसने कह दिया कि आप और सांभा चलिये, हम पहुँचते हैं. अगले दिन सुबह सरदार गब्बर सिंह और सांभा जंगल की तरफ निकल पड़े.

सांभा ने भी पुलिस की मार से बचने के लिए जंगल में सेफ पहुँचने तक अपना नाम बदल कर सांभा 'सज्जन' रख लिया और गब्बर ने अपना ब्लॉग पासवर्ड से प्रोटेक्ट कर लिया. नाम बदलने के बाद भी सांभा की लड़कपने की आदत तो थी ही तो सांभा लड़कपना करते करते जंगल की तरफ चले जा रहे थे. गब्बर उसके लड़कपने पर उसे समझाने की बजाये कभी उसे और लड़कपना करने के लिए उकसाता तो कभी ताली बजा कर हौसला अफजाई करता तो कभी सिर्फ मुस्करा देता लेकिन रोकता कभी नहीं.

रास्ते में गांव पड़ा. उम्र में बड़ा दिखने पर भी सांभा को लड़कपना करता देख वह गांव के बच्चों के लिए कोतुहल का कारण बन गया. बच्चों नें मजमा लगा लिया और सांभा को घेर लिया. बच्चे उसे चिढाने लगे. ढेले और चूसे हुए आम की गुठलियों से मार मार कर हंसने लगे. तब गब्बर भागा भागा सांभा को बचाने आगे आया. बच्चे तो बच्चे होते हैं. उनके पास इतनी शैक्षणिक योग्यता और अनुभव कहाँ होता है कि जान पाये कि इतने नामी गिरामी डाकू गब्बर को और उसके खास मौलिक डकैती वाले चेले सांभा को हरकतों से पहचान सकें..

बस, बच्चों ने दोनों को घेर कर बहुत परेशान किया. हे हे ही ही करके चिढ़ाया भी. गब्बर को लगा कि अब यहाँ से भाग निकलने में ही भलाई है. उसने सांभा को ईशारा किया और दोनों ने दौड़ लगा दी. तब भागते भागते गांव से दूर आकर रास्ते में दोनों एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे. इस बीच गब्बर ने माणिक चन्द का नया गुटके का पाऊच खाया. गब्बर का मूड ठीक करने के लिए सांभा ने जेब से अपनी एक मौलिक रचना निकाल कर गब्बर को सुनाई:

अपनों को भीड़ से बचाना भी जरुरी है

झुठ को छिपाने का बहाना भी जरुरी है,

यूँ तो इत्र का जलवा कम नहीं होता कभी

लेकिन कभी कभी, नहाना भी जरुरी है.

इस मार्मिक एवं संदेशपूर्ण कविता पर वाह वाह करते हुए गब्बर को ख्याल आया कि संदेश है कि नहाये हुए हफ्ते भर से उपर हो गया है. पास ही एक तालाब था. अतः दोनों जा कर उसमें घुस गये. अब अपने लड़कपने के अंदाज में सांभा ने एक गीत सुनाया:

सांभा को संगीत शिक्षा देते हुये उस्ताद गब्बर सिंह


'पानी में जले मेरा गोरा बदन!! पानी मेंZZZZZZzzzzzzzzzzzzz!!
गब्बर का खास चेला था तो गब्बर ने उसका मनोबल बढ़ाने के लिए वाह वाह की और इस गीत की मौलिकता एवं धुन पर सांभा को बधाई एवं शुभकामनाएँ दी.

इतने में न जाने कैसे कालिया उनको ढ़ूंढ़ता हुआ आ गया. गब्बर को वाह वाह करता देखना एवं बधाई एवं शुभकामनाएँ संदेश देता देखना उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने ब्रेकिंग न्यूज की तरह एक्सक्लूजिव राज खोला कि 'सरदार, ये फिल्म का गाना है. सांभा ने नहीं लिखा है, उठाया हुआ माल सुना रहा है.'

उसने अपनी बात साबित करने के लिए उसकी पिछली मौलिक रचना पर,
अपनों को भीड़ से बचाना भी जरुरी है
झुठ को छिपाने का बहाना भी जरुरी है,...... जो सांभा ने विश्राम के क्षणों मे पेड़ के नीचे सुनाई थी, पर आई ३६ में से छंटी हुई १२ टिप्पणियाँ भी दिखलाई जिससे सांभा को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा था.

उसने यह भी बताया कि सांभा को रोकने वाली टिप्पणियाँ उड़ा दी जाती है अतः पानी अब सर के उपर से गुजरता कहलायेगा. लेकिन चेले के मोह में मदहोश होने के कारण गब्बर के कान में जूँ तक नहीं रेंगी और वो वाह वाह करता रहा और सांभा तर्रनुम में गाता रहा..

'पानी में जले मेरा गोरा बदन!! पानी मेंZZZZZZzzzzzzzzzzzzz!!
कालिया ने पूरी गैंग को इक्ट्ठा कर लिया कि सांभा उठाया हुआ माल सुनाता है तो भी सरदार उसे वाह वाही देता है, शाबासी देता है, बधाई एवं शुभकामनाएँ संदेश देता है और हम ओरीजनल भी सुनायें तो कहता है कि कहाँ से उड़ाया, मौलिक नहीं लगता. गोली मार दूँगा. गाली दूँगा आदि.

गैंग ने कालिया की बात का पुरजोर समर्थन किया एवं सांभा का पुरजोर विरोध किया तो सरदार गब्बर सिंह को डर लगा कि गैंग उसके विरोध में न चली जाये. वैसे ही बिखरी हुई है. जंगल के मामले में शैशव अवस्था में है, कहीं टूट ही न जाये.
इस डर से हमेशा की तरह ऐसे मौकों पर अपनी आदतानुसार बात बिगड़ती देख सरदार 'खे खें ही हीं' करके हंसने लगा और कहने लगा कि वो तो मैं यूँ ही तुम लोंगो की मौज ले रहा था और साथ ही सांभा को प्रोत्साहन देकर उसका मनोबल बढ़ा रहा था ताकि वो ठीक से नहा ले. वरना वो तो एक डुबकी मार कर निकल जाता है. फिर दो दो महिने तालाब पर नहीं आता. तुम लोग कबसे इतने छुईमुई हो गये कि इतनी सी बात का बुरा मान गये. उसने कालिया की तरफ देख कर आँख मारी और दाँत दिखाये.

गैंग वालों को भी गब्बर की बात उचित लगी और लगा कि सांभा नहाया रहेगा तो जंगल में बदबू भी कम रहेगी.
सबको सहमत देख गब्बर भीतर ही भीतर शातिराना मुस्कराया और सांभा को धीरे से आंख भी मारी.
फिर सब शांति से जंगल की तरफ चल पड़े.

गब्बर अब अपना गैंग फिर से नये सिरे से स्थापित कर रहा है जंगल में. नये पद आवंटित किए जा रहे हैं. सबके रहने खाने की पुनः व्यवस्था की जा रही है. आसपास के गांवों के रुट मैप बन रहे हैं. नियमित जल, दारु, गुटका एवं गोश्त आपूर्ति के लिए इंतजाम किये जा रहे हैं. डांस फ्लोर (नृत्य भूमि) का कन्सट्रक्शन(निर्माण कार्य) किया जा रहा है. ठाकुर का हाथ अलग करने के लिए हाथ बांधने के लिए बल्लियाँ लगाई जा रही हैं.

अब इतने सब कामों में समय तो लगता ही है अत: शोले की शूटिंग रोकी जा रही है. आप अब इन्तजार करें शूटिंग पुनः शुरू होने का ताऊ की शोले भाग-२ के लिए.

तब तक आप सबको शोले की पूरी टीम की ओर से राम राम!!

-आगे शूटिंग कब शुरु होगी, इसी मंच से सूचित किया जायेगा. आते रहें.-
अंत में : - मैं इस बात के लिये क्षमायाचना चाहता हूं कि ताऊ की शोले में ज्यादा मदद नहीं कर पाया बस, यही एक स्क्रिप्ट लिख पाया हूँ. ताऊ की शोले- २ में मैं वादा करता हूं कि ज्यादा से ज्यादा लिखने की कोशीश करुंगा. इसमे आप लोगों द्वारा की गई गई सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार व्यक्त करता हूं.
-समीरलाल "समीर"

डिस्क्लेमर :-
इस आलेख का मकसद मात्र शूटिंग के रुकने की सूचना देना और हास्य विनोद है, कृपया इसे मौज निरुपित कर विवाद पैदा करने का कष्ट न उठायें.

इब खूंटे पै पढो:-


सांभा : सरदार अगर वाहवाही नही दी तो..इस झील मे डुबकर प्राण दे दूंगा....!!!

गब्बर : अरे नही सांभा..तू तो मेरा प्रिय चेला है....तुझे डुबने थोडे ही दूंगा, भले मैं ही डूब जाऊं...तू चालू रह...!!! वाह..वाह...वाह..वाह..क्या खूब...सांभा...जीता रह..क्या मौलिक तान छेडी...पानी में जले..तेरा गोरा बदन..पानी में... जियो मेरे लाल…पानी मे और जलाओ…शाबास…

कालिया : सरदार...ये गलत बात है...उडाये हुये...माल पर वाह वाह...ये पक्षपात है...मैं नही रुक सकता यहां पर...सरदार सांभा का नही हमारा बदन गोरा है...सांभा तो काला कलूटा बैंगन लूटा है...अगर इसे मौलिक गाना है तो गाये...पानी में जले मेरा काला बदन..पानी में...गोरा बदन क्यों जलवा रहा है ये?
गब्बर : अरे ओ कालिया खामोश..वर्ना तेरी खुपडिया में सारी की सारी गोलियां उतार दूंगा…..खबरदार जो मेरे सांभा के लिये कुछ भी कहा तो ..अब सांभा की इच्छा गोरा बदन जलाने की है तो गोरा ही जलेगा...समझा ना? सरदार से जबान लडाने का नही...बोल दिया अपुन ने तो बोल दिया..समझा क्या?

कालिया : ठीक है सरदार..अब तुम और तुम्हारा सांभा ही गिरोह चला लेना…...हमको तो मालूम था कि ग्रहों की चाल ही कुछ टेढी मेढी हो गई है...और यों भी चारों तरफ़ हल्ला मचा है कि ब्लाग जगत आजकल ग्रहों की मार मे पडा है. शनि की वक्र दृष्टी का शिकार है और रोज एक दो पोस्ट तक इस पर लिखी जा रही हैं.

गब्बर : कालिया...ज्यादा बोलने का नईं...अपुन सब समझ गयेला है...तू होशियारी मत दिखा...तू किस के साथ मिल गयेला है? अपुन को सब मालूम है...जब दूर दूर समन्दर पार तक किसी पकड का पता नही चलता है तो लोग कहते है कि गब्बर सरदार उठा ले गया होगा......

कालिया : सरदार बात को समझा करो...और इस चेला मोह से बाहर निकल कर किसी योग्य पंडित से झाड फ़ूंक कराओ .. सरदार एक बार और सोचलो..कुछ पूजा पाठ और दान दक्षिणा के साथ मिष्ठान्न भोजन करवा दो ब्लागरों को...वर्ना ये शनि नही उतरेगा तुम्हारे सर से..और बिना शनि उतरे डकैती और पकड करना बडा मुश्किल है....और कालिया व्यंगात्मक हंसी हंसकर अपना बैग वहां से जाने के लिये कंधे पर डाल लेता है

हूं..अरे ओ सांभा.. कितने आदमी थे रे ..ऊहां?


और गब्बर अपने नथुने फ़ुलाता हुआ कुछ गंभीर मुद्रा अख्तियार कर लेता है....और अचानक पिस्तौल उठाकर पूछ बैठता है...अरे ओ सांभा..कितने आदमी थे रे.. ऊहां?
सांभा : सरदार पूरे के पूरे ... ३६.....

गब्बर : हूंSSSS....पहले ३ थे... अब ३ पर ६ आके बैठ गये...और पूरे ३६...बहुत ना इंसाफ़ी है रे कालिया... (गब्बर सरदार गुर्राकर बोला)
और कालिया की रुह कांप जाती है....गोलियों की आवाज...ठांय..ठांय..ठांय...

गोलियां किस पर चली? कालिया जिंदा बचा या गया ऊपर..? ये सब जानने के लिये इंतजार किजिये..ताऊ की शोले - भाग २ का....

















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