Friday, March 9, 2012

41 ग्राम की खुशबू

हिंदी सेक्सी कहानियाँ


41 ग्राम की खुशबू
मैं हूँ बाबू, उम्र 43 साल, अविवाहित पर सेक्स का मजा लेने में खूब
उस्ताद। मेरी इस कहानी में जो लड़की है उसका नाम है- सानिया खान। वो मेरे
एक दोस्त प्रोफ़ेसर जमील अहमद खान की बेटी है। सानिया के पिता और मैं
दोनों कॉलेज के दिनों से दोस्त हैं। उनकी शादी एम०ए० करते समय हीं हो गई।
मेरी भाभी यानि उनकी बेगम रिश्ते में मौसेरी बहन थी। खैर मैं तो सानिया
के बारे में कहने वाला हूँ उसके माँ-बाप में तो शायद ही आप-लोगों को रुचि
हो।

सानिया 18 साल की बी कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा है, बहुत सुन्दर चेहरे की
मालकिन है। एकदम गोरी, 5'5" लम्बी, पतली छरहरी काया, लहराती-बलखाती जब वो
सामने से चलती तो मेरे दिल में एक हूक सी उठती। मेरे जैसे चूतखोर मर्द के
लिए उसका बदन एक पहेली था, कैसी लगेगी बिना कपड़ों के सानिया ?

तब मैं भूल जाता कि वो मेरे गोद में खेली है, उसके बदन को जवान होते
मैंने देखा है। उसकी चूची नींबू से छोटे सेब, संतरा, अनार होते देखा है,
महसूस किया है। सोच-सोच कर मैंने पचासों बार अपना लंड झाड़ा होगा।पर उसका
मुझे चाचा कहना, मुझे रोक देता था कुछ भी करने से। उसके दिल की बात मुझे
पता नहीं थी न। वैसे सानिया का चक्कर दो-तीन लड़कों से चला था, घर पर उसे
खूब डाँट भी पड़ी थी, पर उन लोगों ने हद पार की थी या नहीं मुझे पता न चल
पाया।

और जब भी मेरे दोस्त और भाभी जी ने इस बात की चर्चा की, तब उनके भाषा से
मुझे कुछ समझ नहीं आया।

और एक बार...भगवान की दया से कुछ ऐसा हुआ कि...

हुआ यह कि सानिया के नाना की तबियत खराब होने की खबर आई और सानिया के
अम्मी-अब्बा को उसके ननिहाल मेरठ जाना पड़ा। सानिया की पढ़ाई चलते रहने की
वजह से वो उसको नहीं ले जा सके। उनके घर में नीचे के हिस्से में जो
किरायेदार थे वो भी अपने गाँव गए हुए थे, सो सानिया को अकेला वहाँ न छोड़,
उन लोगों ने उसको एक सप्ताह मेरे साथ रहने को कहा। असल में यह प्रस्ताव
मैंने ही उन लोगों को परेशान देख कर दिया था। वो तुरंत मान गए।

मेरे दोस्त ने तब कहा भी कि यार मैं भी यही सोच रहा था पर तुम अकेले रहते
हो, लगा कहीं तुम्हें कोई परेशानी ना हो।

बातचीत करते हुए जमील ने हल्की आवाज में बताया कि एक बार पहले भी वो
सानिया को अकेले तीन दिन के लिए छोड़े थे तो आने पर किरायेदार से पता चला
कि दो दिन लगातार सानिया के साथ कोई लड़का रहा था, जो उसके साथ स्कूल में
पढ़ता था, अब कहीं इंजीनियरिंग पढ़ रहा है। वो अपनी परेशानी मुझे बता रहा
था और मैं सोच रहा था कि जब सानिया अपने घर पर एक लड़के को माँ-बाप के
नहीं रहने पर रख सकती है, तो घर के बाहर तो वो जरूर ही चुदवाती होगी।

खैर ! अगले दिन सुबह कोई 7 बजे वो लोग सानिया को मेरे अपार्ट्मेंट पर
छोड़ने आए, चाय पी और मेरठ चले गये। सानिया तब अपने स्लीपिंग ड्रेस में ही
थी- एक ढ़ीली सा कैप्री और काला गोल गले का टी-शर्ट।

उसको को नौ बजे कॉलेज जाना था, दो घंटे के लिए।

मेरी नौकरानी नाश्ता बना रही थी, जब सानिया किचन में जाकर उससे पूछने
लगी- साबुन कहाँ है?

असल में अकेले रहने के कारण मेरे कमरे के बाथरूम में तो सब था पर दूसरे
कमरे, जिसमें सानिया का सामान रखा गया था, वह बाथरूम कपड़े धोने के लिए ही
इस्तेमाल होता था।

मैंने तभी कहा- सानिया, तुम मेरे कमरे का बाथरूम प्रयोग कर लो, मुझे
नहाने में अभी समय है।

और सानिया अपन कपड़े लेकर मुस्कुराते हुए चली गई। मैं बाहर वाले कमरे में
अखबार पढ़ रहा था, जब सानिया तैयार हो, नाश्ता करके आई, बोली- चाचा, मैं
करीब बारह बजे लौटूँगी, तब तो घर बंद रहेगा?

मैंने उसके भीगे बालों से घिरे सुन्दर से चेहरे को देखते हुए कहा- परेशान
होने की कोई बात नहीं है, तुम एक चाबी रख लो !

और मैंने नौकरानी से चाबी ले कर उसको दे दी। (मैंने एक चाबी उसको इसलिए
दी थी कि वो शाम को आ कर काम कर जाए और मेरा खाना पका जाए) साथ ही
नौकरानी को शाम की छुट्टी कर दी कि शाम को हम लोग होटल में खाना खा
लेंगे। थोड़ी देर में नकरानी भी काम निपटा कर चली गई, और मैं तैयार होने
बाथरूम में आया।

और..

बाथरूम में सानिया की कैप्री और टी-शर्ट खूँटी से टंगी थी और नीचे गीली
जमीन पर सानिया की ब्रा-पैन्टी पड़ी थी। ऐसा लग रहा था कि उसने उन्हें
धोया तो है, पर सूखने के लिए डालना भूल गई। मेरे लन्ड में सुरसुरी जगने
लगी थी।

मैंने उसके अन्तर्वस्त्र उठा लिए और उनका मुआयना शुरु कर दिया। सफ़ेद ब्रा
का टैग देखा-लवेबल 32 बी। सोचिए, 5'5" की सानिया कितनी दुबली-पतली है।

मैंने अब उसकी पैन्टी को सीधा फ़ैला दिया। वो एक पुरानी पन्टी थी-रुपा
सॉफ़्ट्लाईन 32 नम्बर। इतनी पुरानी थी कि उसके किनारे पर लगे लेस उघड़ने
लगे थे और वो बीच से हल्का-हल्का घिस कर फ़टना शुरु कर चुकी थी। मैंने उसे
सूँघा, पर उसमें से साबुन की ही खुशबू आई। फ़िर भी मैंने ऐसे तो कई बार
उसके नाम की मुठ मारी थी, पर आज उसकी पैन्टी से लन्ड रगड़-रगड़ कर मुठ मारी
और अपना माल उसके पैन्टी के घिसे हुए हिस्से पर निकाला और फ़िर बिना धोये
ही पैन्टी-ब्रा को सूखने के लिए डाल दिया।

मेरे दिमाग में अब ख्याल आने लगा कि एक बार कोशिश कर के देख लूँ, शायद
सानिया पट जाए। पर मुझे अब देर हो रही थी सो मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो कर
निकल गया।

शाम को करीब सात बजे मैं घर आया, सानिया बैठ कर टीवी देख रही थी। उसने ही
मुझे चाय बना कर दी।

हम दोनों साथ चाय पी रहे थे, जब मैंने कहा- तैयार हो जाओ सानिया, आज बाहर
ही खाएंगे !

खुशी उसके चेहरे पर झलक गई और मैं उसके उस सलोने से चेहरे से नजर हटा न
पाया। हम लोग इधर-उधर की बात कर रहे थे, तभी उसे ख्याल आया, बोली- सॉरी
चाचा, आज आपके बाथरूम में गलती से मेरे कपड़े रह गए। असल में मेरे जाने के
बाद अम्मी जब सारे घर को ठीक करती है, तो वो यह सब भी कर देती है। कल से
ऐसा नहीं होगा।

उसके चेहरे पे सारी दुनिया की मासूमियत थी।

मैंने भी प्यार से कहा- अरे, कोई बात नहीं बेटा, मुझे कोई परेशानी नहीं
हुई। तुम तो धो कर गई ही थी, मैंने तो सिर्फ़ सुखने के लिए तार पर डाल
दिया।

फ़िर थोड़ी शरारत मन में आई तो कह दिया- वैसे भी तुम तो खुद दस किलो की हो,
तो तुम्हारी ब्रा-पैन्टी तो १० ग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए न। उसको
सूखने डालने में कोई मेहनत तो करना नहीं पड़ा मुझे।

उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखो को गोल-गोल नचाया-"पूरे 41 किलो हूँ मैं !

मैंने तड़ से जड़ दिया- ठीक है, फ़िर तो मैं सुधार कर देता हूँ, फ़िर ४१
ग्राम होगी ब्रा-पैन्टी?

वो मुस्कुरा कर बोली- मेरा मजाक बना रहे हैं, मैं तैयार होने जा रही हूँ।

और वो अपने कमरे में चली गई, मैं अपने कमरे में।

कोई आधे घण्टे बाद हम घर से निकले। सानिया ने एक गहरे हरे रंग की कैप्री
और गुलाबी टॉप पहनी थी। बालों को थोड़ा ऊपर उठा पैनीटेल बनाया था, पैर में
बिना मोजा रीबॉक के जूते।

मैं उसकी खूबसूरती पर मुग्ध था।

हम लोग पैदल ही एक घण्टा घूमे और फ़िर करीब नौ बजे एक चाईनीज रेस्तराँ में
खाना खाकर दस बजे तक घर आ गए। थोड़ी देर टीवी देखने के बाद करीब 11 बजे
सानिया अपने कमरा में और मैं अपने कमरा में सोने चले गए। सानिया के बारे
में सोचते सोचते बड़ी देर बाद मुझे नींद आई।

अगले दिन करीब छः बजे सानिया ने मुझे जगाया, वो सामने चाय लेकर खड़ी थी।
मेरे दिमाग में पहला ख्याल आया कि आज का दिन अच्छा हो गया, उसकी सलोनी
सूरत देख कर।

हमने साथ चाय पी। वो तब मेरे बिस्तर पे बैठी थी। उसने एक नाईटी पहनी हुई
थी जो उसके घुटने से थोड़ा नीचे तक थी। रेडीमेड होने के कारण थोड़ा लूज थी,
और उसके ब्रा के स्टैप्स दिख रहे थे। आज उसे साढ़े आठ बजे निकलना था, सो
वो बोली-"आप बाथरूम से हो लीजिए, तब मैं भी नहा लूँगी, आज थोड़ा पहले जाना
है।

मैं जब बाथरूम से बाहर आया तो देखा कि उसने मेरा बिस्तर ठीक कर दिया है
और अपने कपड़े हाथ में लेकर मेरे बेड पर बैठी है।

जब वो बाथरूम की तरफ़ जाने लगी तब मैंने छेड़ते हुए कहा- आज भी अपना 41
ग्राम छोड़ देना।

वो यह सुन जोर से बोली- छीः ! और हल्के से हँसते हुए बाथरूम का दरवाजा
बन्द कर लिया।

मैं बाहर बैठ पेपर पढ़ रहा था, जब वो बोली-"मैं जा रही हूँ चाचू, करीब एक
बजे लौटूँगी, मेरा लंच बनवा दीजिएगा, नस्ता मै कैंटीन में कर लूँगी।

मैं उसको कसे पीले सलवार कुर्ते में जाते देखता रहा, जब तक वो दिखती रही।
उसकी सुन्दर सी गांड हल्के हल्के मटक रही थी।

थोड़ी देर में मेरी नौकरानी मैरी आ गई और अपना काम करने लगी, मैं भी तैयार
होने बाथरूम में आ गाया। मुझे थोड़ा शक था कि आज शायद मुझे ब्रा-पैन्टी ना
दिखे, पर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि आज फ़िर उसने अपनी
ब्रा-पैन्टी धो कर कल की तरह ही जमीन पर छोड़ दी है। कल शायद उससे गलती से
छूट गया था, पर आज के लिए मैं पक्का था कि उसने जान-बूझ कर छोड़ा है। मुझे
लगने लगा कि यह साली पट सकती है। मैंने आज फ़िर उसकी पैन्टी लंड पे लपेट
मूठ मारी और माल उसके पैन्टी में डाल दिया। यह वाली पैन्टी कल वाली से भी
पुरानी थी, और उसमें भी दो-एक छोटे छेद थे। पर मुझे मजा आया। मैंने अपने
माल से लिपटी पैन्टी को ब्रा के साथ सूखने को डाल दिया।

शाम को मुझे आने में थोड़ी देर हो गई, मैरी हम दोनों का खाना बना कर जा
चुकी थी। मैं जब आया तो सानिया ने चाय बनाई और हम दोनों गपशप करते हुए
चाय पीने लगे।

सानिया ने ही बात छेड़ दी- आज फ़िर आपको मजा आया मेरी सेवा करके?

मैं समझ न सका तो उसने कहा- वही 41 ग्राम, सुबह ! और मुस्कुराई।

मैंने भी कहा- हाँ, मजा तो खूब आया पर सानिया, इतने पुराने कपड़े मत पहना
करो, फ़टे कपड़े पहनना शुभ नहीं माना जाता।

वो समझ गई, बोली- "ठीक है चाचू, आगे से ख्याल रखूँगी।

मैंने देखा कि बात सही दिशा में है तो आगे कहा- अच्छा सानिया, थोड़ा अपने
निजी जीवन के बारे में बताओ। जमील कह रहा था कि तुम्हारा किसी लड़के के
साथ चक्कर था। अगर न बताना चाहो तो मना कर दो।

वो थोड़ी देर चुप रही, फ़िर उसने रेहान के बारे में कहा, जो उसके साथ स्कूल
में 5 साल पढ़ा था, दोनों अच्छे दोस्त थे पर ऐसा कुछ नहीं किया कि उसको
इतना डाँटा जाए, रेहान तो फ़िर उस डाँट के बाद कभी मिला भी नहीं। अब तो वो
उसको अपना पहला क्रश मानती थी।

मैंने तब साफ़ पूछ लिया- क्यों, क्या सेक्स-वेक्स नहीं किया उसके साथ?

वो अपने गोल-गोल आँख घुमा कर बोली- छीः, क्या मैं आपको इतनी गन्दी लड़की
लगती हूँ, रेहान मेरा पहला प्यार था, अब कुछ नहीं है !

मैंने मूड को हलका करने के लिए कहा- अरे नहीं बेटी तुम और गन्दी, कभी
नहीं, हाँ थोड़ी शरारती जरूर हो, बदमाश जो अपनी ब्रा-पैन्टी अपने चाचू से
साफ़ करवाती हो।

वो बोली- गलत चाचू ! साफ़ तो खुद करती हूँ, आप तो सिर्फ़ सूखने को डालते हो।

हम दोनों हँसने लगे।

फ़िर खाना खा कर टहलने निकल गए। बातों बातों में वो अपने कॉलेज के बारे
में तरह तरह की बात बता रही थी और मैं उसके साथ का मजा ले रहा था।

तीसरे दिन भी सुबह सानिया के चेहरे पर नजर डाल कर ही शुरु हुई। उस दिन
मैरी थोड़ा सवेरे आ गई थी, सानिया का नाश्ता बना रही थी। मैं भी अपने औफ़िस
के काम में थोड़ा व्यस्त था कि सानिया तैयार हो कर आई।

मैंन घड़ी देखी- 8:30

सानिया बोली- चाचू आज भी रख दिया है मैंने आपके लिए 41 ग्राम.... और आज
धोई भी नहीं हैं।

और वो चली गयी।

मैंने भी अब जल्दी से फ़ाईल समेटी और तैयार होने चला गया। आज बाथरूम में
थोड़ी सेक्सी किस्म की ब्रा-पन्टी थी और उससे बड़ी बात कि आज सानिया ने उस
पर पानी भी नहीं डाला था। दोनों एक सेट की थी, गुलाबी लेस की। इतनी
मुलायम कि दोनों मेरी एक मुट्ठी में बन्द हो जाए। मैंने पैन्टी
फ़ैलाई-स्ट्रिन्ग बिकनी स्टाईल की थी। उसके सामने का भाग थोड़ा कम चौड़ा था,
करीब 4 इंच और नीचे की तरफ़ पतला होते होते योनि-स्थल पर दो इंच का हो गया
था, फ़िर पीछे की तरफ़ थोड़ा चौड़ा हुआ पर 5 इंच का होते होते कमर के
इलास्टिक बैंड में जा मिला। साईड की तरफ़ से पुरा खुला हुआ, बस आधा इंच से
भी कम की इलस्टिक।

मैंने प्यार से उस गन्दी पैन्टी का मुआयना किया। चुत के पास हल्का सा एक
दाग था, जो बड़े गौर से देखने पर पता चलता, मैंने उस धब्बे को सुंघा।
हल्की सी खट्टेपन की बू मिली और मेरा लन्ड को सुरूर आने लगा। मैंने प्यार
से उसी धब्बे पर अपना लन्ड भिड़ा, पैन्टी को लन्ड पे लपेट मजे से मुठ
मारने लगा और सारा माल उसी धब्बे पर निकाला, फ़िर उस पैन्टी-और ब्रा को
सिर्फ़ पानी से धो कर सुखने डाल दिया।

शाम साढ़े सात बजे घर आया, साथ चाय पीने बैठे तो मैंने बात छेड़ दी- आज तो
सानिया बेटी, तुमने कमाल कर दिया।

वो कुछ नहीं बोली तो मैंने कह दिया- बिना धुली ब्रा-पैन्टी से तुम्हारी
खुशबू आ रही थी।

वो शर्माने लगी, तो मैंने कहा- सच्ची बोल रहा हूँ, मैंने सूँघ कर देखा
था। तुम्हारे बाप की उम्र का हूँ, पर आज वाली 41 ग्राम की खुशबू ने मेरे
दिल में अरमान जगा दिये।

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