Friday, March 9, 2012

हाय राम ! मैं का करूँ?

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

हाय राम ! मैं का करूँ?

लेखिका : नेहा वर्मा
यह कहानी मुझे शर्मीली ने भेजी है, इसे बस थोड़ा सा संवार कर आपके समक्ष
पेश कर रही हूँ।
लोग मुझे क्यों शर्मीली कहते हैं? क्योंकि मैं बिल्कुल इसके विपरीत रही
हूँ ! कुछ लोग एक नन्ही शर्मीली कली को पसंद करते हैं लेकिन कुछ चाहते
हैं कि औरत ही सब सम्भाले ! और मैं हूँ वैसी ही ! आप जैसा चाहेंगे, मैं
वैसे ही करूँगी। और यदि आपको अपना मन बनाने में ज्यादा समय लगता है तो
मैं आपके लिए तय करूंगी कि आप मेरे साथ क्या और कैसे करेंगे, जैसे आप
मुझे मेरे बदन पर कहाँ चूमेंगे या गुदगुदी करेंगे !
मुझे अपने हाथ गन्दे करना भी अच्छा लगता है ! आप समझ रहे होंगे कि मैं
क्या कहना चाह रही हूँ !
मैं सामान लेने से पहले इसे छू कर अच्छी तरह जांचना पसंद करती हूँ इसलिए
अगर मैं आपके उस सख्त पौरूष मांस को पास से देखना, जांचना चाहूँ तो शायद
आप बुरा नहीं मानेंगे।
मुझे पता है कि इसे कहाँ डलवाना है तो चाहे मैं इसे अन्दर लेकर आपको मजा
दूँ या बाहर से ही !
मैं शर्मीली मुम्बई में रहती हूँ। हमारे घर के आस-पास मुहल्ले में एक दम
तंग गलियाँ है, इतनी संकरी कि गली के दूसरी ओर के मकान की बात तक सुनाई
दे जाती है। हमारे इन घरों के नजदीक रेल लाईन भी है। दिन भर लोकल ट्रेन
और बड़ी बड़ी ट्रेने पास से निकलती हैं, चाहे दिन हो या रात। पर हम लोग तो
इसके आदि हो गये हैं। मेरे पति एक मिल में काम करते है और देवर जी पास ही
एक बहुमंजिली कॉम्प्लेक्स में सुरक्षा गार्ड हैं। दोनों की ड्यूटी बदलती
रहती है, कभी दिन में तो कभी रात में।
उन दिनों मैंने एक बार सुना कि हमारे मुहल्ले में किसी गुल्लू नाम के
लड़के ने रमेश की पत्नी को दिन में ही चोद दिया। गुल्लू पकड़ा भी गया। उसकी
थोड़ी सी पिटाई भी हुई। पर कुछ ही समय बाद यह हादसा सभी भूल गये। फिर इसी
तरह का एक हादसा और सुना। कुछ ले देकर मामला निपटा दिया गया। फिर तो
मुहल्ले के जवान लड़कों ने आये दिन वहाँ की जवान लड़कियों को चोदना शुरू कर
दिया। पकड़ा जाने पर ले देकर मामला निपटा दिया जाता था।
ना जाने एक दिन मेरे दिल में भी ख्याल आया कि मेरा देवर राजा भी तो कई
बार रात को मेरे साथ अकेला रहता है, कहीं उसकी बुरी नजर मुझ पर पड़ गई तो।
उन दिनों मेरे दिल में एक अनजान सा डर बैठने लगा। अब मैं राजा से सावधान
रहने लगी। इतनी सावधान कि मैं उसकी हर बारीक से बारीक हरकत पर ध्यान रखने
लगी। इसी के चलते मैं उसकी छोटी छोटी हरकतें भी पकड़ लेती थी। कई बार तो
मैंने उसे बाथ रूम में मुठ भी मारते हुए भी पकड़ लिया था, उसकी और भी
बातें मुझे पता चल चुकी थी। एक बार तो मैंने चुपके से कपड़े बदलते समय उसे
लण्ड पकड़ कर खेलते भी देखा था। उसका लौड़ा खासा मोटा और लम्बा था, मेरे
पति जैसा ही। मेरा दिल भी धड़क उठता था यह सब देख कर। कहीं उसने मुझे
अकेली पाकर चोद दिया तो। उंह, अकेली तो रोज रहती हूँ, उसकी तो कभी हिम्मत
ही नहीं हुई, तो अब क्या होगी।
पर उस पर निगाहें रखते रखते जाने कब मेरा दिल उस पर आ गया था। उसकी हर
अदा अब मुझे भली लगने लगी थी। वो मुझे अब सुन्दर लगने लगा था। उसकी
स्टाईल मुझे मोहने लगी थी। उसकी जवानी मेरे दिल पर छुरी चलाने लग गई थी।
पर मैं उससे सावधान तो अब भी रहती थी।
अब तो मुहल्ले में जवान लड़कियों और औरतों की चुदाई की वारदातें बढ़ने लगी
थी। इसका असर शायद राजा पर भी शायद होने लगा था। रात को कमरे में बस नाम
का अंधेरा रहता था, गली की लाईटों से कमरे में हल्का सा उजाला रहता था।
कमरे की सारी चीजें मुझे रात में भी स्पष्ट आती थी।
मैं बेसुध सी रात को सोई हुई थी। अचानक मुझे कमरे में आहट सुनाई दी और
मेरी नींद खुल गई। कौन होगा, दिल धड़क उठा। उसके कदमों की थाप मेरे बेड के
पास आ कर थम गई। मैंने बिना करवट बदले कनखियों से उसे बिना हिले देखने की
कोशिश की पर वो मुझे नहीं दिखा। उसके हाथ का स्पर्श मेरे कंधो पर हुआ।
कौन था शायद रवि होगा। वही तो मेरा एक आशिक था।
तभी मेरे बेड के चरमराने की आवाज आई और वो धीरे से बैठ गया। मुझे उसका
मंशा मालूम हो गई थी। मुझे जी में आया कि चिल्ला कर राजा को बुला लूं। पर
डर से मन कांपने भी लगा था। वो धीरे से मेरी बगल में लेट गया और धीरे
धीरे मुझसे चिपकने लगा। उसका लण्ड सख्त हो चुका था और मेरे कूल्हों के
आस-पास वो उसे गड़ा भी रहा था। मुझे गुदगुदी सी होने लगी। उसका एक हाथ अब
मेरे भारी पर सुडौल स्तनों पर आ गया। मुझे बिजली जैसा झटका लगा। पर दूसरे
ही पल मुझे होने वाली अनहोनी का अहसास हुआ। मेरे मुख से चीख निकलने को
हुई पर शायद वो उसके लिये तैयार था। उसका हाथ सीने से हट कर मेरे मुख पर
आ गया और उसे बुरी तरह से दबा दिया।
मैं छटपटा उठी उससे छूटने के लिये।
"अरे, भौजाई, चिल्लाना मत, वर्ना गजब हो जायेगा।"
मेरा दिल धक से रह गया। अरे यह तो खुद राजा ही है। दिल का एक बड़ा डर राजा
के होने के कारण से मिट गया। दिल में था कि जाने कौन होगा, मेरी इज्जत को
तार तार कर देगा। तार तार हुंह … अब मुझमें रखा ही क्या है, कई बार तो
चुद चुकी हूँ। फिर मुहल्ले की दूसरी औरतें तो आये दिन चुदती ही रहती हैं।
"ओह, राजा तू है? मैं तो समझी कि जाने कौन मुआ घर में घुस आया है?"
उसका लण्ड मेरी गाण्ड को चीर कर छेद से जा लगा था। उसका हाथ फिर से मेरे
उरोजों पर आ गया था। अब हाय राम मैं का करू … लौड़ा तो मुझे चुदने के लिये
चाहिये ही था।
"भैया, दूर तो हट ! ऐसे क्या चिपका जा रहा है?"
"वो भाभी, कुछ नहीं, बस ऐसे ही, दिल आपके बारे में गन्दे ख्याल आने लगे थे।"
उसका लण्ड जैसे गाण्ड में घुसने को बेताब हो रहा था, लण्ड में बला की
ताकत थी, मरदूद, कंवारा जो था ना ! मैंने हाथ नीचे ले जा कर उसका लण्ड
वहाँ से हटाया।
"तेरी तो शादी कर देनी चाहिये, अब तू जा !"
"भौजाई यहीं सोने दो ना?"
"अच्छा, सो जा, मैं नीचे सो जाती हूँ।"
"समझो ना भौजाई ! मुझे आपके साथ सोना है !"
"क्यों सोना है राजा?"
"ओह भौजाई, बहुत बोलती हो तुम तो !"
कहकर वो मुझसे लिपट गया। उसके हाथों में मेरी चूचियाँ समा गई। वो धीरे से
सरक कर मेरे ऊपर आ गया। ओह, कितना आनन्द दायक दबाव था। उसने मुझे चूमना
शुरू कर दिया। मैं जानकर के घूं-घूं करती रही। अपना चेहरा इधर उधर करके
उससे बचती रही। वो अब मेरे ऊपर सेट हो गया था। मेरी टांगों पर दबाव डाल
कर उसे फ़ैलाने में कामयाब हो गया था। या यूं कहिये कि मैंने खुद ही धीरे
धीरे अपने पांव फ़ैला दिये थे। अब उसका लण्ड उसकी लुंगी के ऊपर से मेरी
चूत पर पेटीकोट के ऊपर ही चिपका हुआ था। गुदगुदी सी होने लगी थी। मन तो
कर रहा था कि उसका लौड़ा चूत में रगड़ लूँ, चूत में भर लूं और जी भर कर
चुदा लूँ। पर देवर की नजरो में मैं तो कहीं की नहीं रहूंगी, साला छिनाल
समझेगा।
हम दोनों के बीच जैसे मल्ल युद्ध सा होने लगा था। उसने मेरा पेटीकोट आखिर
ऊपर कर ही दिया। उसने मुझे अपनी टांगों की कैचीं में फ़ंसा ही लिया। उसने
अब लुंगी हटा कर अपना लण्ड निकाला और हिलाया,"बोलो भौजाई, अब क्या करोगी,
बहुत हाथ पैर चला लिये।"
उसने लौड़ा हिलाते हुये मेरी चूत पर लगा दिया। मेरी चूत तो उसे निगलने के
लिये जैसे तैयार ही थी। साली एकदम पानी छोड़कर चिकनी हो गई थी।
"राजा, मैं तो तेरी भौजी हूँ, छोड़ दे मुझे !" मैंने कहते हुये चूत का
दबाव उसके लण्ड पर डाल दिया।
"मलाई सामने पड़ी है और मैं छोड़ दूँ? भौजाई तू भी खाले ना… ले खा।"
उसने अपना सुपाड़ा धीरे से अन्दर डाला। मेरी चूत का दाना भी रगड़ खाया।
मुझे एक मीठी सी सिरहन हुई।
"देख अब तो तेरे मेरे बीच में झग़ड़ा हो जायेगा।" मैंने ना में अपनी सहमति दर्शाई।
"ना भौजी, तेरे मेरे में नहीं, झगड़ा तो तेरी चूत और मेरे लण्ड में होगा,
मजा आयेगा ना?"
उसने मेरी भारी चूचियाँ दाब दी और एक सधे हुये मर्द की तरह अपना शरीर
अपनी कोहनियों पर लिया और अपने चूतड़ मेरी चूत पर दबा दिये। मेरे मुख से
आनन्द भरी एक सिसकी निकल गई। लण्ड अन्दर बड़े प्यार से सरकता हुआ मेरी चूत
की गहराई में डूबने लगा। उसका भारी बलिष्ठ शरीर मेरे ऊपर आ गया। उसका
भारी शरीर भी मुझे फ़ूल सा लगने लगा था, मन में कसक भरने लगा था।
"तेरी भोसड़ी मारूँ भौजी, तू तो मस्ती से भरी हुई है।"
"राजा, आह्ह्ह्ह, तू बहुत हरामी है रे, तूने मार दी ना मेरी चूत?"
"तेरी मां का भोसड़ा, साली एकदम चिकनी घोड़ी है, कितना मजा आ रिया है तुझे
चोदने में, देख तेरे मस्त पुठ्ठे, साले जानदार हैं !"
"भेनचोद राजा, तुझे जोर आजमाने के लिये भौजाई ही मिली थी क्या? मना करने
पर भी चोद रिया है।"
वो अब मुझे कस कर जकड़ कर अपने चूतड़ धीरे धीरे ऊपर नीचे करके मेरी चूत में
लण्ड अन्दर बाहर कर रहा था। मैंने भी अपनी टांगे चौड़ी करके उसकी कमर से
कैंची लिपटा दी थी। उसकी गले में अपनी बाहें डाल कर उसे चिपका लिया था।
"भौजी, आह्ह्ह बहुत मजा आ रिया है… आह्ह्ह्ह उफ़्फ़्फ़्फ़"
"हां राजा भैया, सच में बहुत मजा आ रिया है, बस किये ही जाओ राजा स्स्स्स्सीईईईईइ""
अब हम सब रिश्ते नाते भूल कर एक दूसरे में समाये हुये, अधरों से अधर को
चिपकाये हुये, एक दूसरे की जीभ का रस लेते हुये रंगीन दुनिया की ओर बढ
चले थे, दोनों के शरीर एक मीठी आग में जल रहे थे, वासना के शोलों में
दोनो लिपटे हुये अनन्त सुख में डूबे हुये थे। मैं तो इसी बीच दो बार झड़
भी गई थी। बड़ी देर बाद राजा के लण्ड ने अपने अन्दर से ढेर सारा माल उगला।
आज तो मैं ना चाहते हुये भी चुद गई थी। पर मन ही मन उसे मैंने चोदने के
लिये धन्यवाद भी दिया। राजा अपनी लुंगी बांधने लगा था। मुझे बहुत खराब लग
रहा था कि बस लौड़ा खड़ा हुआ, चोदा और अपना काम निकाल लिया और जाने लगे।
यानी खाया पिया और मुँह साफ़ करके बाय बाय।
"भौजाई, भैया को मत कहना, अपने तक ही रखना !"
मैंने चुप से सर झुकाये हां में सर हिला दिया। वो चुपचाप चला गया। लेकिन
उसने अपने आप के लिये एक रास्ता खोल लिया था।
मुझे तो मालूम था कि कल रात को वो मुझे चोद गया है तो वो आज भी कोशिश
करेगा। आज तो मैं चुदने के लिये बिल्कुल तैयार थी। नीचे के भीतरी अंगों
में मैंने अच्छी तरह से तेल की मालिश भी कर ली थी। अग्रद्वार, पीछे का
द्वार सभी को अच्छी तरह से तेल लगा कर तैयारी कर ली थी।
जैसा मैंने सोचा था वैसा हुआ ही नहीं। वो काफ़ी रात तक नही आया। यहाँ तक
कि मुझे नींद भी आ गई। रात को मेरी नींद खुली। बाहर बरसात हो रही थी। मैं
उठी और खिड़की बन्द कर ली। मेरी सारी तैयारी धरी की धरी रह गई थी। हाय
राम, कैसा जल्लाद है ये राजा, चूत में आग लगा कर छुप गया है। मैंने चुपके
से झांक कर उसके कमरे में झांका। वो तो बेफ़िकर हो कर अपने पांव पसारे
खर्राटे भर रहा था। मैं दबे पैर उसके पास गई। उसकी लुंगी कमर से ऊपर उठा
दी। उसका मस्त लण्ड एक तरफ़ लुढ़का हुआ सो रहा था। उसे देख कर मेरे मन में
आग भड़क उठी। मैंने अपना पेटिकोट उतार दिया और नंगी हो गई। उसके लण्ड को
देख देख कर मेरी चूत कुलबुल कुलबुल करने लगी।
मैंने उसके सोते हुये लण्ड पर हाथ फ़ेरा। वो धीरे धीरे से लम्बा होने लगा।
जैसे जैसे मैं हाथ से उसे सहलाती, उसका माप बढ़ता ही जाता और सख्त होता
जाता था। मैंने अपना ढीला सा ब्लाऊज़ उतार दिया और पूर्ण नग्न हो गई। मेरे
दिल में आग भड़क उठी थी। मुआ कैसा ढीठ की तरह सो रहा है। कल तो मुझे
जबरदस्ती चोद गया था और आज तो देखो, साला मादर चोद है। शरीर में जैसे
मीठी सी आग सुलगने लगी थी, मेरी चूचियाँ कठोर होने लगी थी, चुचूक कड़े
होकर तन कर फ़ूल कर सीधे हो गये थे। मैं उसके सख्त हुये लण्ड को सहला कर
उसके ऊपर बैठ गई। उसके कड़े होते हुये लण्ड को मैंने अपनी गाण्ड के छिद्र
पर जमा दिया। छिद्र तेल लग कर पहले से ही चिकना था। लण्ड का सुपाड़ा भी तन
कर लाल हो गया था। सुपाड़े के सिरे का गुदगुदापन मुझे गद्देदार लग रहा था।
फिर नरमाई से वो गाण्ड के छेद में उतर गया।
"अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, शर्मीली लण्ड तो घुस गया।"
"नाम ना लो राजा। भौजाई ही कहो, आज तो बड़ी बेरुखी दिखा रहे हो?"
"ना भौजाई मैं तो कब से तैयार था, पर कल की बात से डर गया था।"
"काहे का डर, भौजाई को चोद कर डर गये, और ये ना सोचा, कि उसका अब रातों
को क्या हाल होगा?"
भैया ने नीचे से जोर लगा कर लण्ड को अन्दर ठेला। बहुत दिनो बाद गाण्ड की
पिलाई हो रही थी, सो बहुत ही अच्छा लग रहा था। जैसे कि नई नई गाण्ड चुद
रही हो। उसका लण्ड धीरे धीरे सरकता हुआ पूरा ही गाण्ड में चला गया। अब बस
मुझे ऊपर नीचे अपनी गाण्ड को चलाना था। मैंने अपने दोनों हाथ उसकी चौड़ी
छाती पर रखे और अपने चूतड़ ऊपर उठाये और धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी।
राजा मारे उत्तेजना के कराहने लगा। मेरी गाण्ड में भी हल्की सी मीठी सी
गुदगुदी मचलने लगी। मेरी कसी गाण्ड को वो अधिक देर तक नही सह पाया और
अन्दर ही उसके लण्ड ने अपना माल निकाल दिया। उसका लण्ड मेरी गाण्ड में
अन्दर तक फ़ंसा हुआ था। मैंने अपनी गाण्ड भींच कर ऊपर उठाई ताकि उसके लण्ड
को एक जोरदार रगड़ मिले। वीर्य से मेरी गाण्ड बहुत चिकनी हो गई थी। पर
लण्ड निकालते समय उसके मुख से एक चीख निकल ही गई। लण्ड के निकलते ही उसका
वीर्य मेरी गाण्ड के छेद से टप टप करके निकलने लगा।
"बस बस करो शर्मीली, मैं मर जाऊंगा।"
"शर्मीली मरने देगी तब ना !" मैंने बेचैनी से कहा।
मैंने झुक कर और नीचे सरक कर उसके वीर्य से लथपथ लण्ड को मुख में ले
लिया। धीरे धीरे उसे चाट कर पूरा साफ़ कर दिया। पर इस लण्ड चटाई में उसका
लण्ड फिर जोर मारने लगा था। मुझे भी एक मस्त चुदाई चाहिये थी। उसने मेरी
लटकती हुई चूचियाँ अपने मुख में भर ली और चूसने लगा। मैंने उसका लौड़ा
अपनी चूत पर रगड़ा और भीतर समेट लिया। दोनों की सिसकियां निकल पड़ी। मैं
अपनी जीभ बाहर निकाल कर कुत्ते की तरह उसका मुख चाटने लगी। बार बार मैं
अपनी जीभ तीखी करके उसके मुख में घुसेड़ देती थी। मैं बेरहमी से अपनी चूत
को उसके लण्ड पर पटक रही थी। फ़ट फ़ट और फ़च फ़च की आवाजे कमरे में गूंज उठी।
मैं उसे दबा कर चोद रही थी। वो नीचे दबा हुआ मस्ती में तड़प रहा था।
अब मैंने उसके दोनों हाथ फ़ैला कर दबा लिये थे। उसके लण्ड की पिटाई कर रही
थी, बल्कि यूँ कहिये कि अपनी चूत का भरता बना रही थी। कुछ ही देर में
आवाजें फ़चाक फ़चाक में बदल गई। मेरा रस निकलने लगा था। मैं बेहाल सी अपनी
चूत पटके जा रही थी। फिर मैं निढाल हो कर पस्त सी एक तरफ़ लुढ़क गई। तभी
मुझे लगा कि जैसे राजा ने मुझ पर पेशाब कर दिया हो।
पहले तो उसका वीर्य निकला, फिर उसने मेरे शरीर पर मूतना आरम्भ कर दिया।
मुझे गरम गरम सी धार का आनन्द आया, लगा कि स्नान कर लिया हो। फिर वो
पेशाब करके एक तरफ़ आ गया और खड़ा हो गया।
"आओ भौजाई, बाहर बरसात में नहा लें, तन की आग शान्त हो जायेगी।"
उसने मुझे गोदी में उठाया और बाहर वराण्डे में ले आया। जैसे ही ठण्डी
ठण्डी बूंदें नंगे शरीर पर पड़ी, तन में एक नई ताजगी भरती गई। मैं उसकी
गोदी में ही उससे लिपट गई और उसे चूमने लगी।
"आह भैया, सुख तो राजा की बाहों में ही है।"
हम दोनों बरसात के पानी में जमीन पर लोट लगाने लगे। बरसात में फ़र्श पर
लोट लगाते हुये फिर कई बार चुदी मैं।

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