Monday, September 14, 2020

सुनीता के बहकते कदम-5

FUN-MAZA-MASTI


सुनीता के बहकते कदम-5



घड़ी की सुइया 5 बजा रही थी। उसके कानो मे फिर से एक बार गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनाई दी। बच्चे स्कूल से आ चुके थे, अब सुनीता के पास साड़ी पहनने का टाइम नहीं था, उसने जल्दी से एक सिल्की गाउँन को अपने बदन पर डाला और तेजी से बाहर की तरफ निकल पड़ी। बाहर रोड पर स्कूल की बस खड़ी थी बस का कंडक्टर बच्चो के स्कूल बैग को हाथ मे लिए इंतजार कर रहा था, सुनीता ने तेज कदमो से जाकर मैन गेट खोलकर बस की तरफ बढ़ी। सिल्की गाउँन मे सुनीता के दोनों स्तन हिलते हुये साफ नजर आ रहे थे। उसके हिलते हुये मदमस्त जोबन को देख कर कंडक्टर की साँसे अटक सी गई। वो आखे फाड़ फाड़ कर सुनीता की जोबन के झोल का नज़ारा देखने लगा। उसका सिल्की गाउँन सुनीता के गदराए जिस्म से चिपका हुआ था, उसके स्तनो का आकार उस गाउन मे भी साफ साफ उजागर हो रहा था, उसे देखकर कोई भी सहज ही अंदाजा लगा सकता था की सुनीता के जोबन अंदर बिना ब्रा के है। कंडक्टर उसकी गोलाइयों का भरपूर नाजारा ले रहा था। जैसी ही सुनीता करीब आई अब उसके चुचको का आकार भी साफ साफ कंडक्टर को दिखने लगे, जिसे देख कर कंडक्टर से सहज ही अंदाजा लगा लिया की सुनीता के चूचको का आकार बड़े वाले अंगूर के जैसा था। उसके बड़े जोबन की चोटी पर उसके चूचक ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे की किसी पहाड़ की चोटी का शिखर हो। सुनीता ने कंडक्टर के हाथो से बैग लेने चाहा लेकिन वो तो सुनीता के मदमस्त यौवन मे डूबा हुया था, सुनीता उसकी इस हरकत पर उसे टोकना ही चाहती थी की उसे एहसास हुया को वो कंडक्टर उसके जिस्म को घूर रहा है, उसने नजरे अपने सीने पर डाली तब उससे पता चला की उसका जिस्म उस गाउन को ढक कम रहा और उजागर ज्यादा कर रहा है, गाउन उसके जोबन पर ऐसे चिपका था की उसके जोबन कर उभार स्पष्ट रूप से उजागर हो रहा था, उसके जोबन कर हर कटाव गाउन के ऊपर से बखुबी दर्शा रहे थे, यहा तक की गाउन के ऊपर से ही उसके चूचक की size का अंदाजा लगाया जा सकता था। ऐसी अवस्था मे उसे देखकर किसी भी मर्द की हालत कंडक्टर जैसी हो जानी थी। उसने बैग को थोड़ा ज़ोर लगाकर खीचा तब जाकर कंडक्टर को होश आया। वो अपने आपको संभालते हुये सुनीता की तरफ देख कर बोला “लगता है आप “काम” मे लगी हुयी थी, तभी आपको आने मे देर हुई” कंडक्टर ने “काम” शब्द पर ज़ोर लगाकर बोला जिससे की वो द्वियार्थी हो गया। बच्चे अंदर जा चुके थे, सुनीता उनके बेग को उठाए बिना कुछ बोले मुड़ कर तेजी से मैन गेट की तरफ बढ़ चली, वो बेग लेकर जैसे ही गेट के करीब उसकी हाथो से बैग फिसकर कर नीचे गिरने लगा वो बैग को संभालने के लिए नीचे झुकी, उसके नीचे जुकते ही उसका विकराल कूल्हो के दोनों फाके फैलकर अपनी विकरालता का प्रचंड रूप दिखाने लगे, हालाकी सुनीता ने panty पहनी हुयी थी लेकिन वो तो पहले ही सुनीता के कूल्हो के गहराई मे समाकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी, सुनीता का सिल्क गाउन उसकी उसके कूल्हे पर चिपक गया जिससे उसके कूल्हो का भौगोलिक नक्शा उभर कर दिखने लगा। सुनीता के कूल्हो की विशालता देखकर कंडक्टर के आखे पथराने लगी, उसने पल भर मे ये जान लिया की सुनीता ने अंदर panty नहीं पहनी है, अगर पहनी होती तो panty का किनारा उस सिल्की गाउँन से जरूर उभर जाता लेकिन अभी उसके कूल्हे चिकने सपाट दिखाई दे रहे तो जो इस बात के गवाह थे की वो गाउन के अंदर पूरी तरह से नंगे है। सुनीता के झुकने से उसके कूल्हो के दरार भी खुल गए थे और उस गाउन के ऊपर से ही उसकी दरार की गहराई का अंदाजा होने लगा था। दोनों फाको के बीच के गहराई का अंदाजा होते ही कंडक्टर आहे भरने लगा और उसका मन सुनीता के कूल्हो पर सवारी करने के मचलने लगा। सुनीता जैसे ही बेग को संभालकर सीधी खड़ी हुयी किसी कपाट की तरह उसके दोनों खुले हुये कूल्हे आपस मे तेजी से चिपक गए और उसका सिल्की गाउन भी अपने आपको गहरे कूल्हो मे फसने से न रोक सका। सुनीता के कूल्हो मे अंदर तक गाउन फसा हुया था, ये नजारा देखकर कंडक्टर बेचैन हो गया। सुनीता भी समझ चुकी थी की गाउन गहरी दरार मे फस गया है, उसने धीरे से अपना हाथ पीछे कर के कूल्हो मे फसे हुये गाउन को बाहर खीच लिया। ये सब कंडक्टर बड़ी तल्लीनता से देख रहा था। सुनीता ने ये सुनिश्चित करने के लिए की कोई उसे पीछे से देख तो नहीं रहा है, वो पीछे मुड़ी, उसे समझते देर न लगी की वो कंडक्टर उसकी सारे हरकतों को देख रहा था, और शायद मोबाइल मे रेकॉर्ड भी कर लिया था। सहसा उसे लगा की उसके हाथ मे मोबाइल भी था। लेकिन वो अपने इस शंका को दूर कर पाती इससे पहले ही कंडक्टर ने मुसकुराते हुये बस को थपथपा दिया। उसकी अश्लील मुस्कान को देखकर सुनीता झेप से गई और अंदर चली गई।
अंदर आकर वो बच्चो के साथ व्यस्त हो गई। “असलम भी आने वाला होगा” और इस हालत मे उसने देखा तो... पहले ही उस कंडक्टर ने जी भर के घूरा मेरे जिस्म को। ये सोचकर वो बाथरूम मे चली गई।
शाम को 6-30 बजे के करीब असलम अनुराग का बैग लेने के लिए घर आया। सुनीता ने उस समय कुर्ता और लेगी पहनी हुयी थी असलम सुनीता के जिस्म के उतार चढ़ाव को अपनी नजरों से नापते हुये बोला “कैसी है भाभी जी?” “ठीक हू असलम जी” सुनीता मे मुसकुराते हुये जवाब दिया। असलम सुनीता से उम्र मे लगभग 10-12 साल बड़ा था इसलिए सुनिता कभी उसे भाई साहब या असलम जी कह कर ही बुलाती थी। सुनीता ने अनुराग का छोटा से ट्रैवल बेग लाकर असलम को दे दिया।
“कहा जा रहे हो आपलोग?” “ये तो मुझे नहीं पता भाभी जी, बस साहब ने कहा की चलना है, ये नहीं बताया की कहा चलना है”
हम्म सुनीता ने गंभीर होते हुये कहा। असलम मौका देखकर सुनीता के मन को टटोलने लगा।
“अच्छे भाभी जी... वो site कैसी लगी आपको” सुनीता ऐसे सवालो के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी, वो थोड़ी हकलाते हुये बोली
“कौन सी साइट?”
“अरे वही जो मैंने उस दिन दी थी जब मैन साहब के साथ आउट ऑफ स्टेशन गया था... याद आया ....आपको?”
“अरे वो.... हा हा याद है... हा गई थी ... लेकिन ज्यादा देर तक मै रुकी नहीं उसपर, नींद आने लगी थी मुझे” सुनीता ने सफ़ेद झूठ बोल दिया
“साली कैसे झूठ बोल रही है उस दिन तो मेरे ल्ंड के बारे मे बाते करके भरभरा के पानी निकाला था अपनी चूत से... और कह रही है की नींद आ रही थी मुझे” असलम ने मन ही मन कहा।
इधर सुनीता को भी असलम के नाम की चुदाई याद आने लगी, उसके जिस्म उस रात की बातो को याद कर के फिर से गुदगुदाने लगा। लेकिन सुनीता ने वक्त की नजाकत को समझते हुये अपनी भावनाओ पर काबू किया हुआ था।
“वैसे कमेंट तो आए होंगे आप के लिए काफी सारे”
“नहीं ऐसा कुछ नहीं है सब नॉर्मल ही था” सुनीता ने बात को खतम करना चाहा।
असलम भी उसका मूड भाप चुका था इसलिए वो गाड़ी स्टार्ट करते हुये बोला “ये तो हो ही नहीं सकता भाभीजी” उसकी मुस्कान मे कोई राज छुपा हुआ सा सुनीता को महसूस हुया।
“क्यो? क्यो नहीं हो सकता” सुनीता के मूह से निकाल गया।
“फिर कभी बताऊंगा फुर्सत मे” ये कहकर असलम गाड़ी लेकर चल दिया।
सुनीता उसे पीछे से जाते हुये गंभीरता से देखती रही। “आखिर असलम ने ऐसा क्यो कहा” उसके जेहन मे ये सवाल उभरने लगा।
रात को करीब 10-00 बजे अनुराग और रघु पब मे बैठे जाम छलकाते हुये अपने बचपन की बातो को याद कर रहे थे। दोनों के चेहरे मे नशे के असर साफ झलक रहा था। अचानक बातो बचपन की शरारतों से उठकर लड़कपन की आवारगी पर चलने लगी।
हमउम्र लड़के लड़कियो की बात होने लगी। जो शादी से पहले बिलकुल पतली दिखती थी वो अब दो बच्चो की माँ है और उसके स्तन 38 के लगते है देखने मे... कुछ ऐसी बाते होने लगी उन दोनों के बीच... बात शादी के बाद की सेक्स लाइफ पर होने लगी... रघु इतराते हुये बोला
रघु – अरे यार मेरी बीवी तो कई बार ऐसे बोलती है की “तुम तो ऐसी हरकते करते हो, जैसे अभी नई नई शादी हुयी है तुम्हारी”।
अनुराग – क्यो बे साले! ऐसा क्या करता है तू? अनुराग चुस्की लेते हुये बोला।
रघु – देख भाई... अब मेरी शादी को 15 साल हो चुके है, एक वक्त के बाद हर चीज़ से इन्टरेस्ट कम होने लगता है... अनुराग किसी सेक्स के प्रोफ़ेसर की तरह गंभीर होके बोला।
अनुराग – मतलब... अब तेरा sex मे इन्टरेस्ट कम हो गया है।
रघु – नहीं बे चूतिये..... तूने वो फिल्म देखी है क्या?
“कौन सी”?
“अरे वो विवेक, अजय देवगन वाली”
“अच्छे वो... कंपनी” अनुराग घूट भरते हुये बोला
“अरे नहीं वो वाली जिसमे अजय देवगन इंस्पेक्टर है, और उसमे रितेश देशमुख भी है यार... क्या नाम है उसका मस्ती....”
“अच्छे वो वाली.... हा देखी है न तो” अनुराग ने पूछा
“उस फिल्म मे अजय देवगन बोलता है न की “घर का खाना कितना भी अच्छा क्यो न हो... रोज रोज खाकर आदमी बोर हो ही जाता है”
अनुराग – इसका मतलब तू भाभी से बोर हो गया है अब और तुझे अब बाहर का खाना चाहिए। अनुराग उसकी बातो अर्थ निकलते हुये बोला।
रघु – साले पूरी बात तो सुन ले तू... फिर वो बोलता है की “बीवी को चाहिए की वो घर मे ही कुछ ऐसा खाना पकाए की.... पतियों को कभी बाहर खाने के जरूरत ही न पड़े”
अनुराग – अरे यार तू कहना क्या चाहता है साफ साफ बोल ना, क्यो पका रहा है (अनुराग झुंझुलाते हुये बोला)
रघु – मेरे कहने के मतलब ये है की बहुत टाइम के काम को एक ही स्टाइल से करते करते आदमी बोर हो जाता है चाहे वो सेक्स ही क्यो न हो। इतने लंबे टाइम के बाद वो उतावलनापन नहीं होता है जो की शादी के कुछ सालो बाद तक दिखता है।
अनुराग – हा ये तो स्वभाइक बात है यार… ये तो सबके साथ होता है (अनुराग अभी खुद भी इसी स्थिति से गुजर रहा था)
रघु – मगर तू जरा सोच की अगर तू घर पर जाये और तेरे बिस्तर पर तेरी बीवी की जगह तेरी खूबसूरत पड़ोसन हो तो... क्या करेगा बता?
अनुराग – जम के पेलुंगा और क्या.... मगर ऐसा होगा क्यो? मेरे कमरे मे तो मेरी बीवी रहेगी ना... मेरी पड़ोसन कैसे आएगी? बता?  
रघु – मुझे पता है नहीं आएगी... लेकिन तू कल्पना तो कर सकता है ना की तेरी बीवी की जगह पड़ोसन है, जरा कल्पना कर के देख?
शराब के नशे के साथ रघु की बातो का नशा भी अनुराग पर चढ़ने लगा था। वो अपनी पड़ोस मे रहने वाली भावना भाभी को अपने कल्पना मे जीवंत करने लगा। मात्र ऐसी कल्पना से ही उसके अंगो मे तनाव आने लगा था। ऐसा तनाव वो कई सालो बाद महसूस रहा था। उसकी आखो की पुतलीया फैलने लगी थी। रघु उसकी मनोदशा को भापते हुये बोला।
रघु – अब सोच अगर तेरी बीवी भी “भावना” बन कर तेरा साथ दे तो।
अब अनुराग को सब साफ साफ समझ मे आ गया था की रघु उसको क्या बताना चाह रहा है। उसके चेहरे के भावो से रघु भी समझ गया की उसकी बातो को अनुराग समझ चुका है।
रघु – बस मेरी बीवी और मै ऐसा ही कुछ नया सा आजमाते रहते है, जिससे की दोनों को काफी मजा आता है और हम काफी एंजॉय करते है...  अच्छे चल अब भूख लग रही है खाना ऑर्डर करता हू मै.... waiter…..
असलम होटल के पार्क मे अपनी गाड़ी खड़ी करके उसमे बैठा हुया था... रात के 11.00 बज चुके थे। तभी उसके मोबाइल की लाइट जल उठी, स्क्रीन पर भाभीजी फ्लैश हो रहा था।
“सुनीता भाभी का फोन, इतनी रात को मेरे पास” रोमांच और जिज्ञासा से फोन को रीसिव किया।
सुनिता – हैलो... असलम भाई साहब?
असलम – हा बोलिए बोल रहा हो मै/ क्या बात है?
सुनीता – ऐसे ही... आपके साहब ने खाना खाया की नहीं... फोन भी नहीं उठा रहे है वो।
असलम – वो मीटिंग मे व्यस्त है क्लाइंट के साथ.... इसलिए नहीं उठा पाएंगे होंगे फोन। असलम ने सफाई दी।
सुनीता – जब वो फ्री हो तो बोल देना की फोन कर ले एक बार ठीक है।
असलम – ठीक है भाभी जी....
सुनीता – अच्छा भाई साहब सुनो.....
असलम – (उतावलेपन से) हा बोलो ना भाभी जी
सुनीता – वो शाम को आप क्या कहना चाह रहे थे... बोल रहे थे फुर्सत मे बताऊंगा... अब बताओ।
असलम – वो.... अरे वो तो बस मै ऐसे ही बोल दिया था... असलम ने हसते हुये कहा।
सुनीता – नहीं नहीं ... कोई तो बात आप बोलना चाह रहे थे, अब आप बता नहीं रहे है।
असलम- छोड़िए ना भाभीजी... अब उस बात को यही खतम कर दीजिये
सुनीता – (थोड़ी strict होती हुयी बोली) नहीं पहले बताओ क्या कहना चाह रहे थे?
असलम – मै तो बस ये बोल रहा था कि .....
सुनीता – कि .....
असलम – यही कि मै ये मान ही नहीं सकता कि आपकी पिक पर लोगो ने कमेंट नहीं किए होंगे।
सुनीता – क्यो नहीं मान सकते (सुनीता का लहजा नर्म हो चुका था)







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