raj sharma stories
बलात्कार--4
गतान्क से आगे..................
पूरे वक़्त रूपाली बेखुदी में कुछ ना कुछ बुदबुदाती रही. उसे कुछ याद
नहीं था कि कैसे मोतिया और सत्तू कमसिन कमला को लेकर, खेतों के बीच से
होते हुए अपने कच्चे घरों की ओर बढ़ गये थे और कैसे कालू और मुंगेरी उसे
हवेली की ओर पहुँचाने के लिए ले गये. जब होश संभाला तो अपनी वीरान हवेली
बहुत पास नज़र आई.
सुबह के कोई सवा पाँच बाज रहे होंगे…….सूरज की हल्की लालिमा अंधेरे को
चीरने को तैय्यार हो रही थी, मगर रूपाली को अब भी अंधेरेपन के सिवा कुछ
दिखाई नहीं दे रहा था.
हवेली के आँगन में गूंगा चंदर गुम-सूम सा आँगन की मुंडेर पे बैठा था. बगल
में उसने अपना लाल-सफेद गमछा रखा हुआ था. उसने एक नज़र रूपाली को देखा,
फिर कालू और मुंगेरी को और वापस रूपाली को. उसे समझ नहीं आ रहा था पूरी
रात रूपाली किधर थी?
कालू ने कहा,"सुबह सुबह हम लोग खेत को जाई रहे…..उन्हा पे बेहोस पड़ी
मिली हमका ठकुराइन….". रूपाली ने एक बार कालू की ओर देखा……..कहना मुश्किल
था, आँखों में नफ़रत थी, उदासीनता या सिर्फ़ एक कभी ना भरने वाला शून्य.
खामोशी से रूपाली हवेली में दाखिल हो गयी और अपने शयन-कख़्श में घुसकर
अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. ख़यालो में कभी अपने मरे हुए पति को मुस्कुराता
हुआ देखती तो कभी अपने ससुर और देवर को, जो सब पहले ही रूपाली को इस बड़ी
सी ज़ालिम दुनिया में अकेला छोड़ के कब्के जा चुके थे. फुट-फुट के रोने
लगी बेचारी!
चंदर उसके पीछे पीछे अंदर आया था और चंदर को कुछ समझ नहीं आया था. वो
किसी बेवकूफ़ बच्चे की तरह, रूपाली को रोता हुआ देख रहा था और अंदाज़ा
लगाने की कोशिश कर रहा था. रूपाली का रुदन ऐसा था मानो कोई जानवर गहरी
पीड़ा में कराह रहा हो.
बाहर से कालू और मुंगेरी खिसक चुके थे.
चंदर ने धीरे से रोती हुई रूपाली के कंधे पे हाथ रखा. रूपाली धीरे से
मूडी, उसने एक नज़र चंदर की ओर देखा और फिर ज़ोर से उसे सीने से लगाते
हुए ज़ोर ज़ोर से रोने लगी,"चंदर….चंदर……आआआआहह…….". जैसे जैसे चंदर ने
रूपाली के चेहरे के निशान, गले पे खरोंच, ब्लाउस के दो टूटे हुए बटन आदि
पे गौर किया, उसकी आँखों की आगे सारा माजरा सॉफ होता चला गया. एक ही पल
में नौकर-मालकिन का रिश्ता मानो ख़तम हो गया हो. ऐसा प्रतीत हो रहा था
मानो, चंदर घर का मर्द था और रूपाली उसकी, इस घर की इज़्ज़त, जिसको कुछ
चमारों ने तार-तार करके रख छोड़ा था…..
"उूुुुुुुउउ……आआआआआआआआआआाअगगगगगगगगगगगगघह….हाआआआआआआआआआ……..आआआआआआआाागगगगगगगगगगगघह,",
गूंगे के मुँह से कराह निकली और उसने इधर उधर देख के पास पड़ी बड़ी सी
गुप्ती निकाल ली. जैसे ही रूपाली ने चंदर का वीभत्स चेहरा और हाथ में
खुली हुई गुप्ती देखी……वो ज़ोर से चीखी,"चंदर नहीं…..तुझे मेरी कसम, कोई
भी ऐसा काम मत करना….तुझे मेरी कसम." चंदर जो गुप्ती को कालू के जिगर के
पार कर देना चाहता था, रूपाली की बात सुन कर ठिठक के रुक गया…एक नज़र
रूपाली को देखा और फिर उसने ख़तरनाक गुप्ती को पटक कर फेंक दिया……….ज़ोर
से रूपाली को सीने से लगाया और दोनो फूट फूट कर रोने लगे.
दोपहर, कोई 3 बजे का समय. चौपाल सजी हुई थी. गाओं के बीचों बीच बड़ा सा
बरगद का पेड़ था और उसकी घनी छाया में चार चारपाइयाँ लगी हुई थी. एक पर
गाओं के सरपंच, पंडित मिश्रा जी बैठे हुए थे. दूसरी चारपाई पे ठाकुर
रणबीर सिंग, तीसरी पे ठाकुर सरी राम विराजमान थे. चौथी चारपाई को कुछ
दूरी पे रखा गया था और उसपे नीच जाती के दो बुज़ुर्ग, किसान कुम्हार और
छेदि मल्लाह बैठे थे. पंडित जी और दोनो ठाकुर अपना अपना हुक्का गुड-ग्डा
रहे थे जबकि किसान कुम्हार और छेदि मल्लाह अपने सूखे होंठों पे बीच बीच
में जीभ फिरा लेते थे. कहना मुश्किल था कि वो ऐसा हुक्के के लालच में कर
रहे थे या पंचायत की खबराहट की वज़ह से.
15-20 साल पहले तक भी, सोचना भी नामुमकिन था कि गाओं की पंचायत में नीच
जाती के प्रतिनिधि हो सकते हों……मगर जबसे समय बदला, लालू-मायावती का
ज़माना आया और ग्राम स्तर पर भी पिकछडी जातियों को प्रतिनिधित्व मिलने
लगा था. ठाकुर-बामान भी इस बात से डरते थे कि कहीं कोई नास्पीटा उन्हें
शहरी अदालत में ज़ुल्म के मामले में ना घसीट ले और अन्मने मंन से उन्होने
पंचायती स्तर पे भी पिछड़ी जात वालों को प्रतिनिधित्व देना शुरू कर दिया
था………चेहरे पे बेतरतीब दाढ़ी वाला किशन कुम्हार और घबराया हुआ चीदी
मल्लाह इसी प्रतिनिधित्व के प्रतीक थे.
पाँचों के सामने, एक तरफ गाओं के पगड़ी धारी ठाकुर और ब्राह्मण बैठे थे,
और उनसे कुछ ही दूर गाओं का बनिया और वश्य समाज के चंद और प्रतिनिधि बैठे
थे. दूसरी ओर गाओं के डोम-चमार-मल्लाह-नई वग़ैरह बैठे थे. ज़ाहिर है,
किसी के सिर पे कोई पगड़ी नहीं थी. सभी ठाकुर-बामान चारपाइयों और मोडो पे
बैठे थे जबही नीची जात वाले ज़मीन पे बैठे थे. किसी को कुछ भी अटपटा नहीं
लग रहा था.
एक ठाकुर नौजवान, नीलेश सिंग खड़ा हुआ और उसने हाथ के इशारे से सबको
खामोश होने को कहा. सभी एकदम से खामोश हो गये. नीलेश ने अपनी जेब से एक
काग़ज़ का टुकड़ा निकाला और पढ़ना शुरू किया,"आदरणीय सरपंच महोदय!
मान-नीया पॅंच गनो और ग्राम ब्रिज्पुर के निवासीयो………….इतिहास गवाह है
परम पिता परमेश्वर की असीम कृपा से, इस गाओं पे हमेशा ईश्वर की अनुकंपा
बनी रही है और जब भी कोई मामला पंचायत तक पहुँचा है, पाँच परमेश्वर ने
हमेशा न्याय ही किया है. हमें आशा ही नहीं, बिस्वास है, कि आज भी यही
होगा. मुक़द्दमा गाओं की ठकुराइन, श्वर्गीय श्री शौर्या सिंग जी की बाहू,
आदरणीया रूपाली सिंग की ओर से दायर किया गया है…….उनका संगीन आरोप ये है,
इसी गाओं के श्री कालू, श्री सत्तू, श्री मुंगेरी और श्री मोतिया ने कल
रात, पक्शिम दिसा के खीतों में, उनकी और इसी गाओं की कुमारी कमला की
इज़्ज़त लूटी है….अब आगे की कार्यवाही, आदरणीया सरपंच, पंडित मिश्रा जी
को सौंपते हुए उनसे सभी ग्राम वासियों की तरफ से दरख़्वास्त की जाती है
कि वो न्याय और सिर्फ़ न्याय करें
पंडित मिश्रा जी ने अपना हुक्का एक ओर सरकाया और अपना गला खंखारते हुए,
गंभीर आवाज़ में सामने सिर झुकाए बैठी हुई रूपाली से बोले," वादी ठकुराइन
श्रीमती रूपाली सिंग जी?"…………….रूपाली ने, जो लंबे घूँघट में सफेद
सारी-ब्लाउस में थी, घूँघट के अंदर से ही सिर हिलाकर हामी भरी. पंडित जी
बोले,"प्रतिवादी, कालू, मोतिया, मुंगेरी और सत्तू?" चारों चमार, जो सामने
ज़मीन पे बैठे थे झट से बोले,"जी परमात्मा."
पंडित मिश्रा: श्रीमती रूपाली जी. विस्तार से बतायें क्या हुआ आपके साथ.
घबराएँ नहीं, यहाँ, सब अपने ही लोग हैं.
रूपाली: प्रणाम पंडित जी…..(झिझकते हुए), वो कल, हमने सोचा कि हवेली के
आस-पास उगी घास-झाड़-पतवार की…..
पंडित मिश्रा: हां हां…आगे बोलो…घबराव नहीं…….
और धीरे धीरे रूपाली ने सारा किस्सा बयान किया. कि कैसे उसने सोचा था की
वो कोई गाओं का मज़दूर हवेली लाएगी और पैसे दे कर हवेली की आस-पास सफाई
करवाएगी…..कैसे उसने शाम के ढूंधलके में कमला की चीख सुनी…...कैसे उसने
कमला को बचाने की कोशिश की थी और कैसे उल्टा उसी की इज़्ज़त तार-तार कर
बैठे थे ये चार वहशी दरिंदे. अपना पूरा दर्द बयान किया रूपाली ने और सिसक
सिसक कर रोने लगी.
गाओं की एक-दो बुज़ुर्ग ठकुराइनो ने आगे बढ़कर उसे सीने से लगा लिया और
उसके सिर को सहलाने लगी
पंडित मिश्रा ने चारों अभियुक्तों पे एक नज़र डाली और पूछा उन्हें कुछ कहना है?
कालू (गिड़गिदाते हुए): झूट है मालिक, एक दम झूट है. ईस्वर की सौं ऐसा कच नाई भया.
सत्तू, मोतिया और मुंगेरी ने भी उसकी हां में हां भरी.
रूपाली सन्न थी. उसे उम्मीद थी ये कमीने गिड़गिडाएंगे, माफी माँगेंगे मगर
ये तो सॉफ मुकर रहे थे.
ठाकुर सरीराम : अभियुक्तों को अपनी सफाई में क्या कहना है?
अभियुक्त:
धीरे धीरे सत्तू और मोतिया ने बारी बारी से अपनी सफाई पेश करनी शुरू की.
कुल मिला कर उन की बातों का सार यह था की, रूपाली की ये बात सच थी की वो
चारों खेत में बैठकर शराब पी रहे थे…….ये भी सच था की उन्होने वहीं पर
खाना भी खाया था और ये वो चारों खेतों में अक्सर करते थे. उनके मुताबिक
वो चारों खा-पी रहे थे, हँसी-थॅटा कर रहे थे और अचानक मुंगेरी को लगा था
कि खेतों से किसी औरत के धीमे से हँसने की आवाज़ आई थी. बाकी तीनो ने इसे
मुंगेरी का भ्रम या नशे की अधिकता समझा लेकिन कुछ देर बाद जब कालू को भी
ऐसा लगा खेत से आआवाज़ें आ रही है तो वे चारों आवाज़ के स्रोत को ढूँदने
में लग गये और जल्दी ही उन्होने वो जगह ढूँढ ली जहाँ कुछ गन्ने उखाड़ के
थोड़ी जगह समतल की गयी थी…..और फिर……उन चारों की आँखें फटी की फटी रह
गयी......
सत्तू: हुज़ूर…हम देखे….हम देखे की ठकुराइन खेत मा नंगा लेटी रहीं…..और
उनका ऊपर…उनका ऊपर……ई गूंगा चंदर रहा……." और उसने अपनी उंगली वहाँ पे
खामोशी से बैठे चंदर की ओर घुमा दी.
रूपाली चिल्लाई,"क्य्ाआआआआआआआआआआआआआअ????? कामीनो! झूट बोलते ज़बान ना जल
गयी तुम्हारी. हरामजादो……..ये गूंगा बेचारा तो रात भर हवेली में था……गंदे
काम करते हो और बेज़ुबान पे इल्ज़ाम लगाते हो कामीनो……..भगवान करे
निर्वंश हो जाओ तुम…......कोई आग देने वाला ना रहे तुम्हारे गंदे बदन
को….."
ठाकुर सरी राम ने रूपाली को पंचायत की बे-अदबी ना करने की सलाह दी और वो
एक आह भरके चुप बैठ गयी.
कालू और मोतिया ने मज़े ले लेकर बयान किया कि कैसे कैसे चंदर और रूपाली
ने उनकी नज़रों से बेख़बर, अलग अलग मुद्राओं में हवस के सागर में गोते
लगाए थे. मुंगेरी सिर झुकाए सब कुछ चुप चाप सुन रहा था.
पॅंच छेदि मल्लाह ने अपने तंबाखू से सड़े हुए दाँत निकाले और
बोला,"ठकुराइन ने कहा है कि हमरे गाओं की कमला की इज़्ज़त से भी खिलवाड़
किए हैं ये चारों……सरपंच महाराजा की आग्या हो तो कमला को भी बुलवाई लिया
जाए."
आग्या मिलते ही 2-3 चमार महिलाओं ने आवाज़ लगाई,"कमलाअ….आए कमलाअ…" और
थोड़ी देर में सिर झुकाए गथे बदन की साँवली सलोनी, मांसल कमला पंचायत के
सामने थी. उसके चुतड़ों का कटाव और सखत चूचियों का उभार देख कर गाओं के
काई चमार और ठाकुर छोकरो ने आहें भरी. कुछ चमार छोकरे रूपाली के पैरों की
गोरी गोरी उंगलियों और हाथों की गोरी खूबसूरती को देख के अंदाज़ा भर लगा
रहे थी कि कितना मज़ा आया होगा या तो चंदर को या फिर इन चार बूढ़े चमारों
को.
गाओं के केयी लंड कसी हुई धोतियों और पायज़ामो के अंदर कसमसा रहे थे साँस
लेने के लिए और पूर्णा आज़ादी पाने के लिए. एक दुबला पतला चमार छोकरा ये
नहीं तय कर पा रहा था कि अगर उसको ठकुराइन और कमला दोनो चोद्ने को मिल
जाएँ तो वो पहले किसको चोदेगा?
कमला के खुले सिर पे एक नज़र डालते हुए ठाकुर रणबीर सिंग उसके बाप, झूरी
मल्लाह की ओर देखते हुए गरज के बोले,"आए झूरी…..ठाकुरान के आगे कैसे पेश
आते हैं, तहज़ीब नहीं है तोहरी मौधी को?"
घबरा के झूरी ने अपने सिर के ऊपर 2-3 बार हाथ फिराया……इशारा समझ कर फ़ौरन
कमला ने अपने सिर के ऊपर दुपट्टा रख लिया अपना. सिर और मुँह आधा ढक गया
था और छाती की गोलाइयाँ पूरी छिप गयी थी. गाओं के कयि चोकरो को रणबीर
सिंग पे गुस्सा आ रहा था.
किसान कुम्हार: आए मौधी….तू कल साम खेत मा का करने गयी थी?
कमला: खेत मा? हम तो पूरी रात अपने घर मा ही थे.
सन्न सी रह गयी रूपाली चिल्लाई,"क्या बक रही है कमला? तू नहीं चाहती इन
पापियों को इनके किए की सज़ा मिले?"
कमला ने अपराध बोध से रूपाली को एक पल के लिए देखा और फिर बोली,"हमसे झूट
ना बुलवाओ ठकुराइन…..किसी ने कुछ नहीं किया हमरे साथ……" और वो रोती हुई,
अपने घर की ओर भाग गयी थी.
क्रमशः...........
Balaatkaar--4
gataank se aage..................
Poore waqt Roopali bekhudi mein kuch na kuch budbudaati rahi. Use kuch
yaad naheen tha ki kaise Motiya aur Sattu kamsin Kamla ko lekar,
kheton ke beech se hote hue apne kacche gharon ki ore badh gaye the
aur kaise Kaalu aur Mungeri use Haweli ki ore pahunchaane ke liye le
gaye. Jab hosh sambhala toh apni veeran Haweli bahut paas nazar aayi.
Subah ke koi savaa paanch baj rahe honge…….Sooraj ki halki laalima
andhere ko cheerne ko taiyyar ho rahi thi, magar Roopali ko ab bhi
andherepan ke siva kuch dikhayi naheen de raha tha.
Haweli ke aangan mein goonga Chandar gum-sum sa aangan ki munder pe
baitha tha. Bagal mein usne apna laal-safed gamcchha rakha hua tha.
Usne ek nazar Roopali ko dekha, phir Kaaloo aur Mungeri ko aur waapas
Roopali ko. Use samajh naheen aa raha tha poori raat Roopali kidhar
thi?
Kaloo ne kaha,"Subah subah hum log khet ko jaai rahe…..unhaa pe behos
padi mili humkaa Tahkurain….". Roopali ne ek baar Kaloo ki ore
dekha……..kehna mushquil tha, aankhon mein nafrat thi, udaseenta ya
sirf ek kabhi naa bharne waala shoonya.
Khaamoshi se Roopali haweli mein daakhil ho gayi aur apne
shayan-kakhsh mein ghuskar apne bistar pe gir padi. Khayaalo mein
kabhi apne mare hue Pati ko muskurata hua dekhti to kabhi apne sasur
aur devar ko, jo sab pehle hi Roopali ko is badi si zaalim duniyaa
mein akeyla chod ke kabke jaa chuke the. Fooot-fooot ke rone lagi
beychaari!
Chandar uske peeche peeche andar aaya tha aur Chandar ko kuch samajh
naheen aaya tha. Wo kisi bewakoof bachche ki tarah, Roopali ko rota
hua dekh raha tha aur andaaza lagane ki koshish kar raha tha. Roopali
ka rudan aisa tha maano koi jaanwar gehree peeda mein karaah raha ho.
Baahar se Kaaloo aur Mungeri khisak chuke the.
Chandar ne dheere se roti hui Roopali ke kandhe pe haath rakha.
Roopali dheere se mudi, usne ek nazar Chandar ki ore dekha aur fir zor
se use seene se lagate hue zor zor se rone
lagi,"Chandar….Chandar……aaaaaaaahhhh…….". Jaise jaise Chandar ne
Roopali ke chehre ke nishaan, gale pe kharonch, blouse ke do toote hue
button aadi pe gaur kiya, uski aankhon kea age saara maajra saaf hota
chala gaya. Ek hi pal mein naukar-maalkin ka rishta maano khatam ho
gaya ho. Aisa prateet ho raha tha mano, Chandar ghar ka mard tha aur
Roopali uski, is ghar ki izzat, jisko kuch chamaaron ne taar-taar
karke rakh choda tha…..
"uuuuuuuuuu……aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaggggggggggggghhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh….haaaaaaaaaaaaaaaaaaaa……..aaaaaaaaaaaaaaaaaagggggggggggghhhhhhhhhh,",
goonge ke munh se karaah nikli aur usne idhar udhar dekh ke paas padi
badi si Gupti nikaal li. Jaise hi Roopali ne Chandar ka veebhats
chehra aur haath mein khuli hui gupti dekhi……wo zor se
cheekhi,"Chandar naheen…..tujhe meri kasam, koi bhi aisa kaam mat
karna….tujhe meri kasam." Chandar jo gupti ko Kaloo ke jigar ke paar
kar dena chaahta tha, Roopali ki baat sun kar thithak ke ruk gaya…ek
nazar Roopali ko dekha aur fir usne khatarnaak gupti ko patak kar
phenk diya……….zor se Roopali ko seene se lagaya aur dono phoot phoot
kar rone lagey.
Dopahar, koi 3 baje ka samay. Chaupaal saji hui thi. Gaon ke beechon
beech bada sa bargad ka ped tha aur uski ghani chhaya mein chaar
chaarpaaiyaan lagi hui thi. Ek par gaon ke sarpanch, Pandit Mishra ji
baithe hue the. Doosri chaarpaayi pe Thakur Ranbir Singh, teesri pe
Thakur Sree Ram viraajmaan the. Chauthi chaarpaayee ko kuch doori pe
rakha gaya tha aur uspe neech jaati ke do buzurg, Kisan Kumhaar aur
Chedi Mallah baithe the. Pandit ji aur dono Thakur apna apna hukka
gud-guda rahe the jabki Kisan Kumhar aur Chedi Mallah apne sookhe
honthon pe beech beech mein jeebh fira lete the. Kehna mushquil tha ki
wo aisa hukke ke laalach mein kar rahe the ya Panchayat ki khabraahat
ki wazah se.
15-20 saal pehle tak bhi, sochna bhi naamumkin tha ki gaon ki
panchayat mein neech jaati ke pratinidhi ho sakte hon……magar jabse
samay badla, Laloo-Mayawati ka zamaana aaya aur gram star par bhi
picchdi jaatiyon ko pratinidhitv milne laga tha. Thaakur-baaman bhi is
baat se darte the ki kaheen koi naaspeeta unhein shahri adaalat mein
zulm ke maamle mein na ghaseet le aur anmane mann se unhone panchaayti
star pe bhi picchdi jaat waalon ko pratinidhitv dena shuru kar diya
tha………chehre pe betarteeb daadhi waala Kishan Kumhar aur ghabraaya hua
Cheedi Mallah isi pratinidhitv ke prateek the.
Panchon ke saamne, ek taraf gaon ke pagdi dhaaree Thakur aur Brahman
baithe the, aur unse kuch hi door gaon ka baniya aur vasihya samaaj ke
chand aur pratinidhi baithe the. Doosri ore gaon ke
dome-chamaar-mallah-nai wagairah baithe the. Zaahir hai, kisi ke sir
pe koi pagdi naheen thi. Sabhi Thakur-baaman chaarpaaiyon aur modhon
pe baithe the jabhi neechi jaat waale zameen pe baithe the. Kisi ko
kuch bhi atpata naheen lag raha tha.
Ek Thakur naujawaan, Neelesh Singh khada hua aur usne haath ke ishaare
se sabko khaamosh hone ko kaha. Sabhi ekdum se khaamosh ho gaye.
Neelesh ne apni jeb se ek kaagaz ka tukda nikaala aur padhna shuru
kiya,"Aaadarneeya Sarpanch Mahoday! Maana-neeya Panch gano aur graam
Brijpur ke nivaasiyo………….Itihaas gavaah hai Param Pita Parmeshwar ki
aseem kripa se, is gaon pe hamesha Ishwar ki anukampa bani rahi hai
aur jab bhi koi maamla Panchayat tak pahuncha hai, Panch Parmeshwar ne
hamesha nyaay hi kiya hai. Hamein aasha hi naheen, biswaas hai, ki aaj
bhi yahee hoga. Muqaddama Gaon ki Thakurain, Swargeeya Shri Shaurya
Singh ji ki bahoo, Aadarneeya Roopali Singh ki ore se daayar kiya gaya
hai…….unka sangeen aarop ye hai, isi gaon ke Shri Kaloo, Shri Satoo,
Shri Mungeri aur Shri Motiya ne kal raat, pacchim disa ke kheeton
mein, unki aur isi gaon ki Kumari Kamla ki izzat looti hai….ab aage ki
kaaryawaahi, aadarneeya Sarpanch, Pandit Mishra ji ko saunpte hue unse
sabhi graam waasiyon ki taraf se darkhwaast ki jaati hai ki wo Nyay
aur SIRF NYAAY karein
Pandit Mishra ji ne apna hukka ek ore sarkaaya aur apna gala
khankhaarte hue, gambheer aawaaz mein saamne sir jhukaaye baithi hui
Roopali se bole," Vaadi thakurain Shrimati Roopali Singh
ji?"…………….Roopali ne, jo lambe ghoonghat mein safed saaree-blouse mein
thi, ghoonghat ke andar se hi sir hilaakar haami bhari. Pandit ji
bole,"Prativaadi, Kaloo, Motiya, Mungeri aur Satoo?" Chaaron chamaar,
jo saamne zameen pe baithe the jhat se bole,"Jee parmatma."
Pandit Mishra: Shrimati Roopali ji. Vistaar se bataayein kya hua aapke
saath. Ghabraayen naheen, yahaan, sab apne hi log hain.
Roopali: Pranaam Pandit ji…..(jhijhakte hue), wo kal, humne socha ki
haweli ke aas-paas ugi ghaas-jhaad-patwaar ki…..
Pandit Mishra: Haan haan…aage bolo…ghabrao naheen…….
Aur dheere dheere Roopali ne saara kissa bayaan kiya. Ki kaise usne
socha tha ki wo koi gaon ka mazdoor haweli laayegi aur paise de kar
haweli kea aas-paas safaai karwaayegi…..kaise usne shaam ke dhundhalke
mein Kamla ki cheekh suni…...kaise usne Kamla ko bachane ki koshish ki
thi aur kaise ulta usi ki izzat taar-taar kar baithe the ye chaar
vehshee darinde. Apna poora dard bayaan kiya Roopali ne aur sisak
sisak kar rone lagi.
Gaon ki ek-do buzurg Thakuraino ne aage badhkar use seene se laga liya
aur uske sir ko sehlaane lagi
Pandit Mishra ne chaaron abhiyukton pe ek nazar daali aur poocha
unhein kuch kehna hai?
Kaloo (gidgidaate hue): Jhoot hai maalik, ek dum jhoot hai. Eeswar ki
saun aisa kacch naai bhaya.
Sattu, Motiya aur Mungeri ne bhi uski haan mein haan bhari.
Ropali sann thi. Use ummeed thi ye kameene gidgidaayenge, maafi
maangenge magar ye toh saaf mukar rahe the.
Thakur Sreeram : Abhiyukton ko apni safaai mein kya kehna hai?
Abhiyukt:
Dheere dheere Sattu aur Motiya ne baari baari se apni safaayi pesh
karni shuru ki.
Kul mila kar un ki baton ka saar yeh tha ki, Roopali ki ye baat sach
thi ki wo chaaron khet mein baithkar sharaab pee rahe the…….ye bhi
sach tha ki unhone waheen par khaana bhi khaaya tha aur ye wo chaaron
kheton mein aksar karte the. Unke mutaabik wo chaaron khaa-pee rahe
the, hansee-thatta kar rahe the aur achanak Mungeri ko laga tha ki
kheton se kisi aurat ke dheeme se hansne ki aawaaz aayi thi. Baaki
teeno ne ise Mungeri ka bhram ya nashe ki adhikta samjha lekin kuch
der baad jab Kaloo ko bhi aisa laga khet se aaawaazein aa rahee hai
toh ve chaaron aawaaz ke srot ko dhoondne mein lag gaye aur jaldi hi
unhone wo jagah dhoondh li jahaan kuch ganne ukhaad ke thodi jagah
samtal ki gayi thi…..aur phir……un chaaron ki aankhein phati ki phati
reh gayi......
Sattu: Huzoor…hum dekhe….hum dekhe ki Thakurain khet maa nangaa leyti
raheen…..aur unka oopar…unkaa oopar……i goonga Chandar raha……." Aur
usne apni ungli wahaan pe khaamoshi se baithe Chandar ki ore ghuma di.
Roopali chillayi,"Kyaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa????? Kameeno! Jhoot
bolte zabaan naa jal gayi tumhari. Haraamzaado……..Ye goonga bechaara
toh raat bhar Haweli mein tha……gandey kaam karte ho aur bezubaan pe
ilzaam lagaate ho kameeno……..bhagwaan kare nirvansh ho jao
tum…......koi aag dene waala naa rahe tumhare gande badan ko….."
Thakur Sree Ram ne Roopali ko Panchayat ki be-adbai naa karne ki
salaah di aur wo ek aah bharke chup baith gayi.
Kaloo aur Motiya ne maze le lekar bayaan kiya ki kaise kaise Chandar
aur Roopali ne unki nazaron se bekhabar, alag alag mudraon mein hawas
ke saagar mein gotey lagaaye the. Mungeri sir jhukaaye sab kuch chup
chaap sun raha tha.
Panch Chedi Mallah ne apne tambaakhoo se sade hue daant nikaale aur
bola,"Thakurain ne kaha hai ki humre gaon ki Kamla ki izzat se bhi
khilwaad kiye hain ye chaaron……Sarpanch maharaja ki aagya ho toh Kamla
ko bhi bulwayi liya jaaye."
Aagya milte hi 2-3 chamaar mahilaaon ne aawaaz lagayi,"Kamlaaa….aye
Kamlaaa…" aur thodi der mein sir jhukaaye gathe badan ki saanwli
saloni, maansal Kamla panchayat ke saamne thi. Uske chootadon ka
kataav aur sakhat choochiyon ka ubhaar dekh kar gaon ke kayi chamaar
aur thakur chhokron ne aahein bhari. Kuch chamaar chhokre Roopali ke
pairon ki gori gori ungliyon aur haathon ki gori khoobsoorti ko dekh
ke andaaza bhar laga rahe thi ki kitna maza aaya hoga ya toh Chandar
ko ya phir in chaar boodhe chamaaron ko.
Gaon ke kayi lund kasi hui dhotiyon aur paayjaamo ke andar kasmasa
rahe the saans lene ke liye aur poorna aazaadi pane ke liye. Ek dubla
patla chamaar chhokra ye naheen tay kar paa raha tha ki agar usko
Thakurain aur Kamla dono chodne ko mil jaayen toh wo pehle kisko
chodega?
Kamla ke khule sir pe ek nazar daalte hue Thakur Ranbir Singh uske
baap, Jhoori Mallah ki ore dekhte hue garaj ke bole,"Aye
Jhoori…..Thakuran ke age kaise pesh aate hain, saur naheen hai tohri
moudhi ko?"
Ghabra ke Jhoori ne apne sir ke oopar 2-3 baar haath firaaya……ishaara
samajh kar fauran Kamla ne apne sir ke oopar dupatta rakh liya apna.
Sir aur munh aadha dhak gaya tha aur chhati ki golaayiaan poori chip
gayi thi. Gaon ke kayi chhokron ko Ranbir Singh pe gussa aa raha tha.
Kisan Kumhaar: Aye moudhi….tu kal saam khet maa kaa karne gayi thi?
Kamla: Khet maa? Hum toh poori raat apne ghar maa hi the.
Sann si reh gayi Roopali chillayi,"Kya bak rahi hai Kamla? Tu naheen
chaahti in paapiyon ko inke kiye ki sazaa mile?"
Kamla ne apradh bodh se Roopali ko ek pal ke liye dekha aur phir
boli,"Hamse jhoot na bulwao Thaurain…..kisi ne kuch naheen kiya humre
saath……" aur wo roti hui, apne ghar ki ore bhaag gayi thi.
kramashah...........
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बलात्कार--4
गतान्क से आगे..................
पूरे वक़्त रूपाली बेखुदी में कुछ ना कुछ बुदबुदाती रही. उसे कुछ याद
नहीं था कि कैसे मोतिया और सत्तू कमसिन कमला को लेकर, खेतों के बीच से
होते हुए अपने कच्चे घरों की ओर बढ़ गये थे और कैसे कालू और मुंगेरी उसे
हवेली की ओर पहुँचाने के लिए ले गये. जब होश संभाला तो अपनी वीरान हवेली
बहुत पास नज़र आई.
सुबह के कोई सवा पाँच बाज रहे होंगे…….सूरज की हल्की लालिमा अंधेरे को
चीरने को तैय्यार हो रही थी, मगर रूपाली को अब भी अंधेरेपन के सिवा कुछ
दिखाई नहीं दे रहा था.
हवेली के आँगन में गूंगा चंदर गुम-सूम सा आँगन की मुंडेर पे बैठा था. बगल
में उसने अपना लाल-सफेद गमछा रखा हुआ था. उसने एक नज़र रूपाली को देखा,
फिर कालू और मुंगेरी को और वापस रूपाली को. उसे समझ नहीं आ रहा था पूरी
रात रूपाली किधर थी?
कालू ने कहा,"सुबह सुबह हम लोग खेत को जाई रहे…..उन्हा पे बेहोस पड़ी
मिली हमका ठकुराइन….". रूपाली ने एक बार कालू की ओर देखा……..कहना मुश्किल
था, आँखों में नफ़रत थी, उदासीनता या सिर्फ़ एक कभी ना भरने वाला शून्य.
खामोशी से रूपाली हवेली में दाखिल हो गयी और अपने शयन-कख़्श में घुसकर
अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. ख़यालो में कभी अपने मरे हुए पति को मुस्कुराता
हुआ देखती तो कभी अपने ससुर और देवर को, जो सब पहले ही रूपाली को इस बड़ी
सी ज़ालिम दुनिया में अकेला छोड़ के कब्के जा चुके थे. फुट-फुट के रोने
लगी बेचारी!
चंदर उसके पीछे पीछे अंदर आया था और चंदर को कुछ समझ नहीं आया था. वो
किसी बेवकूफ़ बच्चे की तरह, रूपाली को रोता हुआ देख रहा था और अंदाज़ा
लगाने की कोशिश कर रहा था. रूपाली का रुदन ऐसा था मानो कोई जानवर गहरी
पीड़ा में कराह रहा हो.
बाहर से कालू और मुंगेरी खिसक चुके थे.
चंदर ने धीरे से रोती हुई रूपाली के कंधे पे हाथ रखा. रूपाली धीरे से
मूडी, उसने एक नज़र चंदर की ओर देखा और फिर ज़ोर से उसे सीने से लगाते
हुए ज़ोर ज़ोर से रोने लगी,"चंदर….चंदर……आआआआहह…….". जैसे जैसे चंदर ने
रूपाली के चेहरे के निशान, गले पे खरोंच, ब्लाउस के दो टूटे हुए बटन आदि
पे गौर किया, उसकी आँखों की आगे सारा माजरा सॉफ होता चला गया. एक ही पल
में नौकर-मालकिन का रिश्ता मानो ख़तम हो गया हो. ऐसा प्रतीत हो रहा था
मानो, चंदर घर का मर्द था और रूपाली उसकी, इस घर की इज़्ज़त, जिसको कुछ
चमारों ने तार-तार करके रख छोड़ा था…..
"उूुुुुुुउउ……आआआआआआआआआआाअगगगगगगगगगगगगघह….हाआआआआआआआआआ……..आआआआआआआाागगगगगगगगगगगघह,",
गूंगे के मुँह से कराह निकली और उसने इधर उधर देख के पास पड़ी बड़ी सी
गुप्ती निकाल ली. जैसे ही रूपाली ने चंदर का वीभत्स चेहरा और हाथ में
खुली हुई गुप्ती देखी……वो ज़ोर से चीखी,"चंदर नहीं…..तुझे मेरी कसम, कोई
भी ऐसा काम मत करना….तुझे मेरी कसम." चंदर जो गुप्ती को कालू के जिगर के
पार कर देना चाहता था, रूपाली की बात सुन कर ठिठक के रुक गया…एक नज़र
रूपाली को देखा और फिर उसने ख़तरनाक गुप्ती को पटक कर फेंक दिया……….ज़ोर
से रूपाली को सीने से लगाया और दोनो फूट फूट कर रोने लगे.
दोपहर, कोई 3 बजे का समय. चौपाल सजी हुई थी. गाओं के बीचों बीच बड़ा सा
बरगद का पेड़ था और उसकी घनी छाया में चार चारपाइयाँ लगी हुई थी. एक पर
गाओं के सरपंच, पंडित मिश्रा जी बैठे हुए थे. दूसरी चारपाई पे ठाकुर
रणबीर सिंग, तीसरी पे ठाकुर सरी राम विराजमान थे. चौथी चारपाई को कुछ
दूरी पे रखा गया था और उसपे नीच जाती के दो बुज़ुर्ग, किसान कुम्हार और
छेदि मल्लाह बैठे थे. पंडित जी और दोनो ठाकुर अपना अपना हुक्का गुड-ग्डा
रहे थे जबकि किसान कुम्हार और छेदि मल्लाह अपने सूखे होंठों पे बीच बीच
में जीभ फिरा लेते थे. कहना मुश्किल था कि वो ऐसा हुक्के के लालच में कर
रहे थे या पंचायत की खबराहट की वज़ह से.
15-20 साल पहले तक भी, सोचना भी नामुमकिन था कि गाओं की पंचायत में नीच
जाती के प्रतिनिधि हो सकते हों……मगर जबसे समय बदला, लालू-मायावती का
ज़माना आया और ग्राम स्तर पर भी पिकछडी जातियों को प्रतिनिधित्व मिलने
लगा था. ठाकुर-बामान भी इस बात से डरते थे कि कहीं कोई नास्पीटा उन्हें
शहरी अदालत में ज़ुल्म के मामले में ना घसीट ले और अन्मने मंन से उन्होने
पंचायती स्तर पे भी पिछड़ी जात वालों को प्रतिनिधित्व देना शुरू कर दिया
था………चेहरे पे बेतरतीब दाढ़ी वाला किशन कुम्हार और घबराया हुआ चीदी
मल्लाह इसी प्रतिनिधित्व के प्रतीक थे.
पाँचों के सामने, एक तरफ गाओं के पगड़ी धारी ठाकुर और ब्राह्मण बैठे थे,
और उनसे कुछ ही दूर गाओं का बनिया और वश्य समाज के चंद और प्रतिनिधि बैठे
थे. दूसरी ओर गाओं के डोम-चमार-मल्लाह-नई वग़ैरह बैठे थे. ज़ाहिर है,
किसी के सिर पे कोई पगड़ी नहीं थी. सभी ठाकुर-बामान चारपाइयों और मोडो पे
बैठे थे जबही नीची जात वाले ज़मीन पे बैठे थे. किसी को कुछ भी अटपटा नहीं
लग रहा था.
एक ठाकुर नौजवान, नीलेश सिंग खड़ा हुआ और उसने हाथ के इशारे से सबको
खामोश होने को कहा. सभी एकदम से खामोश हो गये. नीलेश ने अपनी जेब से एक
काग़ज़ का टुकड़ा निकाला और पढ़ना शुरू किया,"आदरणीय सरपंच महोदय!
मान-नीया पॅंच गनो और ग्राम ब्रिज्पुर के निवासीयो………….इतिहास गवाह है
परम पिता परमेश्वर की असीम कृपा से, इस गाओं पे हमेशा ईश्वर की अनुकंपा
बनी रही है और जब भी कोई मामला पंचायत तक पहुँचा है, पाँच परमेश्वर ने
हमेशा न्याय ही किया है. हमें आशा ही नहीं, बिस्वास है, कि आज भी यही
होगा. मुक़द्दमा गाओं की ठकुराइन, श्वर्गीय श्री शौर्या सिंग जी की बाहू,
आदरणीया रूपाली सिंग की ओर से दायर किया गया है…….उनका संगीन आरोप ये है,
इसी गाओं के श्री कालू, श्री सत्तू, श्री मुंगेरी और श्री मोतिया ने कल
रात, पक्शिम दिसा के खीतों में, उनकी और इसी गाओं की कुमारी कमला की
इज़्ज़त लूटी है….अब आगे की कार्यवाही, आदरणीया सरपंच, पंडित मिश्रा जी
को सौंपते हुए उनसे सभी ग्राम वासियों की तरफ से दरख़्वास्त की जाती है
कि वो न्याय और सिर्फ़ न्याय करें
पंडित मिश्रा जी ने अपना हुक्का एक ओर सरकाया और अपना गला खंखारते हुए,
गंभीर आवाज़ में सामने सिर झुकाए बैठी हुई रूपाली से बोले," वादी ठकुराइन
श्रीमती रूपाली सिंग जी?"…………….रूपाली ने, जो लंबे घूँघट में सफेद
सारी-ब्लाउस में थी, घूँघट के अंदर से ही सिर हिलाकर हामी भरी. पंडित जी
बोले,"प्रतिवादी, कालू, मोतिया, मुंगेरी और सत्तू?" चारों चमार, जो सामने
ज़मीन पे बैठे थे झट से बोले,"जी परमात्मा."
पंडित मिश्रा: श्रीमती रूपाली जी. विस्तार से बतायें क्या हुआ आपके साथ.
घबराएँ नहीं, यहाँ, सब अपने ही लोग हैं.
रूपाली: प्रणाम पंडित जी…..(झिझकते हुए), वो कल, हमने सोचा कि हवेली के
आस-पास उगी घास-झाड़-पतवार की…..
पंडित मिश्रा: हां हां…आगे बोलो…घबराव नहीं…….
और धीरे धीरे रूपाली ने सारा किस्सा बयान किया. कि कैसे उसने सोचा था की
वो कोई गाओं का मज़दूर हवेली लाएगी और पैसे दे कर हवेली की आस-पास सफाई
करवाएगी…..कैसे उसने शाम के ढूंधलके में कमला की चीख सुनी…...कैसे उसने
कमला को बचाने की कोशिश की थी और कैसे उल्टा उसी की इज़्ज़त तार-तार कर
बैठे थे ये चार वहशी दरिंदे. अपना पूरा दर्द बयान किया रूपाली ने और सिसक
सिसक कर रोने लगी.
गाओं की एक-दो बुज़ुर्ग ठकुराइनो ने आगे बढ़कर उसे सीने से लगा लिया और
उसके सिर को सहलाने लगी
पंडित मिश्रा ने चारों अभियुक्तों पे एक नज़र डाली और पूछा उन्हें कुछ कहना है?
कालू (गिड़गिदाते हुए): झूट है मालिक, एक दम झूट है. ईस्वर की सौं ऐसा कच नाई भया.
सत्तू, मोतिया और मुंगेरी ने भी उसकी हां में हां भरी.
रूपाली सन्न थी. उसे उम्मीद थी ये कमीने गिड़गिडाएंगे, माफी माँगेंगे मगर
ये तो सॉफ मुकर रहे थे.
ठाकुर सरीराम : अभियुक्तों को अपनी सफाई में क्या कहना है?
अभियुक्त:
धीरे धीरे सत्तू और मोतिया ने बारी बारी से अपनी सफाई पेश करनी शुरू की.
कुल मिला कर उन की बातों का सार यह था की, रूपाली की ये बात सच थी की वो
चारों खेत में बैठकर शराब पी रहे थे…….ये भी सच था की उन्होने वहीं पर
खाना भी खाया था और ये वो चारों खेतों में अक्सर करते थे. उनके मुताबिक
वो चारों खा-पी रहे थे, हँसी-थॅटा कर रहे थे और अचानक मुंगेरी को लगा था
कि खेतों से किसी औरत के धीमे से हँसने की आवाज़ आई थी. बाकी तीनो ने इसे
मुंगेरी का भ्रम या नशे की अधिकता समझा लेकिन कुछ देर बाद जब कालू को भी
ऐसा लगा खेत से आआवाज़ें आ रही है तो वे चारों आवाज़ के स्रोत को ढूँदने
में लग गये और जल्दी ही उन्होने वो जगह ढूँढ ली जहाँ कुछ गन्ने उखाड़ के
थोड़ी जगह समतल की गयी थी…..और फिर……उन चारों की आँखें फटी की फटी रह
गयी......
सत्तू: हुज़ूर…हम देखे….हम देखे की ठकुराइन खेत मा नंगा लेटी रहीं…..और
उनका ऊपर…उनका ऊपर……ई गूंगा चंदर रहा……." और उसने अपनी उंगली वहाँ पे
खामोशी से बैठे चंदर की ओर घुमा दी.
रूपाली चिल्लाई,"क्य्ाआआआआआआआआआआआआआअ????? कामीनो! झूट बोलते ज़बान ना जल
गयी तुम्हारी. हरामजादो……..ये गूंगा बेचारा तो रात भर हवेली में था……गंदे
काम करते हो और बेज़ुबान पे इल्ज़ाम लगाते हो कामीनो……..भगवान करे
निर्वंश हो जाओ तुम…......कोई आग देने वाला ना रहे तुम्हारे गंदे बदन
को….."
ठाकुर सरी राम ने रूपाली को पंचायत की बे-अदबी ना करने की सलाह दी और वो
एक आह भरके चुप बैठ गयी.
कालू और मोतिया ने मज़े ले लेकर बयान किया कि कैसे कैसे चंदर और रूपाली
ने उनकी नज़रों से बेख़बर, अलग अलग मुद्राओं में हवस के सागर में गोते
लगाए थे. मुंगेरी सिर झुकाए सब कुछ चुप चाप सुन रहा था.
पॅंच छेदि मल्लाह ने अपने तंबाखू से सड़े हुए दाँत निकाले और
बोला,"ठकुराइन ने कहा है कि हमरे गाओं की कमला की इज़्ज़त से भी खिलवाड़
किए हैं ये चारों……सरपंच महाराजा की आग्या हो तो कमला को भी बुलवाई लिया
जाए."
आग्या मिलते ही 2-3 चमार महिलाओं ने आवाज़ लगाई,"कमलाअ….आए कमलाअ…" और
थोड़ी देर में सिर झुकाए गथे बदन की साँवली सलोनी, मांसल कमला पंचायत के
सामने थी. उसके चुतड़ों का कटाव और सखत चूचियों का उभार देख कर गाओं के
काई चमार और ठाकुर छोकरो ने आहें भरी. कुछ चमार छोकरे रूपाली के पैरों की
गोरी गोरी उंगलियों और हाथों की गोरी खूबसूरती को देख के अंदाज़ा भर लगा
रहे थी कि कितना मज़ा आया होगा या तो चंदर को या फिर इन चार बूढ़े चमारों
को.
गाओं के केयी लंड कसी हुई धोतियों और पायज़ामो के अंदर कसमसा रहे थे साँस
लेने के लिए और पूर्णा आज़ादी पाने के लिए. एक दुबला पतला चमार छोकरा ये
नहीं तय कर पा रहा था कि अगर उसको ठकुराइन और कमला दोनो चोद्ने को मिल
जाएँ तो वो पहले किसको चोदेगा?
कमला के खुले सिर पे एक नज़र डालते हुए ठाकुर रणबीर सिंग उसके बाप, झूरी
मल्लाह की ओर देखते हुए गरज के बोले,"आए झूरी…..ठाकुरान के आगे कैसे पेश
आते हैं, तहज़ीब नहीं है तोहरी मौधी को?"
घबरा के झूरी ने अपने सिर के ऊपर 2-3 बार हाथ फिराया……इशारा समझ कर फ़ौरन
कमला ने अपने सिर के ऊपर दुपट्टा रख लिया अपना. सिर और मुँह आधा ढक गया
था और छाती की गोलाइयाँ पूरी छिप गयी थी. गाओं के कयि चोकरो को रणबीर
सिंग पे गुस्सा आ रहा था.
किसान कुम्हार: आए मौधी….तू कल साम खेत मा का करने गयी थी?
कमला: खेत मा? हम तो पूरी रात अपने घर मा ही थे.
सन्न सी रह गयी रूपाली चिल्लाई,"क्या बक रही है कमला? तू नहीं चाहती इन
पापियों को इनके किए की सज़ा मिले?"
कमला ने अपराध बोध से रूपाली को एक पल के लिए देखा और फिर बोली,"हमसे झूट
ना बुलवाओ ठकुराइन…..किसी ने कुछ नहीं किया हमरे साथ……" और वो रोती हुई,
अपने घर की ओर भाग गयी थी.
क्रमशः...........
Balaatkaar--4
gataank se aage..................
Poore waqt Roopali bekhudi mein kuch na kuch budbudaati rahi. Use kuch
yaad naheen tha ki kaise Motiya aur Sattu kamsin Kamla ko lekar,
kheton ke beech se hote hue apne kacche gharon ki ore badh gaye the
aur kaise Kaalu aur Mungeri use Haweli ki ore pahunchaane ke liye le
gaye. Jab hosh sambhala toh apni veeran Haweli bahut paas nazar aayi.
Subah ke koi savaa paanch baj rahe honge…….Sooraj ki halki laalima
andhere ko cheerne ko taiyyar ho rahi thi, magar Roopali ko ab bhi
andherepan ke siva kuch dikhayi naheen de raha tha.
Haweli ke aangan mein goonga Chandar gum-sum sa aangan ki munder pe
baitha tha. Bagal mein usne apna laal-safed gamcchha rakha hua tha.
Usne ek nazar Roopali ko dekha, phir Kaaloo aur Mungeri ko aur waapas
Roopali ko. Use samajh naheen aa raha tha poori raat Roopali kidhar
thi?
Kaloo ne kaha,"Subah subah hum log khet ko jaai rahe…..unhaa pe behos
padi mili humkaa Tahkurain….". Roopali ne ek baar Kaloo ki ore
dekha……..kehna mushquil tha, aankhon mein nafrat thi, udaseenta ya
sirf ek kabhi naa bharne waala shoonya.
Khaamoshi se Roopali haweli mein daakhil ho gayi aur apne
shayan-kakhsh mein ghuskar apne bistar pe gir padi. Khayaalo mein
kabhi apne mare hue Pati ko muskurata hua dekhti to kabhi apne sasur
aur devar ko, jo sab pehle hi Roopali ko is badi si zaalim duniyaa
mein akeyla chod ke kabke jaa chuke the. Fooot-fooot ke rone lagi
beychaari!
Chandar uske peeche peeche andar aaya tha aur Chandar ko kuch samajh
naheen aaya tha. Wo kisi bewakoof bachche ki tarah, Roopali ko rota
hua dekh raha tha aur andaaza lagane ki koshish kar raha tha. Roopali
ka rudan aisa tha maano koi jaanwar gehree peeda mein karaah raha ho.
Baahar se Kaaloo aur Mungeri khisak chuke the.
Chandar ne dheere se roti hui Roopali ke kandhe pe haath rakha.
Roopali dheere se mudi, usne ek nazar Chandar ki ore dekha aur fir zor
se use seene se lagate hue zor zor se rone
lagi,"Chandar….Chandar……aaaaaaaahhhh…….". Jaise jaise Chandar ne
Roopali ke chehre ke nishaan, gale pe kharonch, blouse ke do toote hue
button aadi pe gaur kiya, uski aankhon kea age saara maajra saaf hota
chala gaya. Ek hi pal mein naukar-maalkin ka rishta maano khatam ho
gaya ho. Aisa prateet ho raha tha mano, Chandar ghar ka mard tha aur
Roopali uski, is ghar ki izzat, jisko kuch chamaaron ne taar-taar
karke rakh choda tha…..
"uuuuuuuuuu……aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaggggggggggggghhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh….haaaaaaaaaaaaaaaaaaaa……..aaaaaaaaaaaaaaaaaagggggggggggghhhhhhhhhh,",
goonge ke munh se karaah nikli aur usne idhar udhar dekh ke paas padi
badi si Gupti nikaal li. Jaise hi Roopali ne Chandar ka veebhats
chehra aur haath mein khuli hui gupti dekhi……wo zor se
cheekhi,"Chandar naheen…..tujhe meri kasam, koi bhi aisa kaam mat
karna….tujhe meri kasam." Chandar jo gupti ko Kaloo ke jigar ke paar
kar dena chaahta tha, Roopali ki baat sun kar thithak ke ruk gaya…ek
nazar Roopali ko dekha aur fir usne khatarnaak gupti ko patak kar
phenk diya……….zor se Roopali ko seene se lagaya aur dono phoot phoot
kar rone lagey.
Dopahar, koi 3 baje ka samay. Chaupaal saji hui thi. Gaon ke beechon
beech bada sa bargad ka ped tha aur uski ghani chhaya mein chaar
chaarpaaiyaan lagi hui thi. Ek par gaon ke sarpanch, Pandit Mishra ji
baithe hue the. Doosri chaarpaayi pe Thakur Ranbir Singh, teesri pe
Thakur Sree Ram viraajmaan the. Chauthi chaarpaayee ko kuch doori pe
rakha gaya tha aur uspe neech jaati ke do buzurg, Kisan Kumhaar aur
Chedi Mallah baithe the. Pandit ji aur dono Thakur apna apna hukka
gud-guda rahe the jabki Kisan Kumhar aur Chedi Mallah apne sookhe
honthon pe beech beech mein jeebh fira lete the. Kehna mushquil tha ki
wo aisa hukke ke laalach mein kar rahe the ya Panchayat ki khabraahat
ki wazah se.
15-20 saal pehle tak bhi, sochna bhi naamumkin tha ki gaon ki
panchayat mein neech jaati ke pratinidhi ho sakte hon……magar jabse
samay badla, Laloo-Mayawati ka zamaana aaya aur gram star par bhi
picchdi jaatiyon ko pratinidhitv milne laga tha. Thaakur-baaman bhi is
baat se darte the ki kaheen koi naaspeeta unhein shahri adaalat mein
zulm ke maamle mein na ghaseet le aur anmane mann se unhone panchaayti
star pe bhi picchdi jaat waalon ko pratinidhitv dena shuru kar diya
tha………chehre pe betarteeb daadhi waala Kishan Kumhar aur ghabraaya hua
Cheedi Mallah isi pratinidhitv ke prateek the.
Panchon ke saamne, ek taraf gaon ke pagdi dhaaree Thakur aur Brahman
baithe the, aur unse kuch hi door gaon ka baniya aur vasihya samaaj ke
chand aur pratinidhi baithe the. Doosri ore gaon ke
dome-chamaar-mallah-nai wagairah baithe the. Zaahir hai, kisi ke sir
pe koi pagdi naheen thi. Sabhi Thakur-baaman chaarpaaiyon aur modhon
pe baithe the jabhi neechi jaat waale zameen pe baithe the. Kisi ko
kuch bhi atpata naheen lag raha tha.
Ek Thakur naujawaan, Neelesh Singh khada hua aur usne haath ke ishaare
se sabko khaamosh hone ko kaha. Sabhi ekdum se khaamosh ho gaye.
Neelesh ne apni jeb se ek kaagaz ka tukda nikaala aur padhna shuru
kiya,"Aaadarneeya Sarpanch Mahoday! Maana-neeya Panch gano aur graam
Brijpur ke nivaasiyo………….Itihaas gavaah hai Param Pita Parmeshwar ki
aseem kripa se, is gaon pe hamesha Ishwar ki anukampa bani rahi hai
aur jab bhi koi maamla Panchayat tak pahuncha hai, Panch Parmeshwar ne
hamesha nyaay hi kiya hai. Hamein aasha hi naheen, biswaas hai, ki aaj
bhi yahee hoga. Muqaddama Gaon ki Thakurain, Swargeeya Shri Shaurya
Singh ji ki bahoo, Aadarneeya Roopali Singh ki ore se daayar kiya gaya
hai…….unka sangeen aarop ye hai, isi gaon ke Shri Kaloo, Shri Satoo,
Shri Mungeri aur Shri Motiya ne kal raat, pacchim disa ke kheeton
mein, unki aur isi gaon ki Kumari Kamla ki izzat looti hai….ab aage ki
kaaryawaahi, aadarneeya Sarpanch, Pandit Mishra ji ko saunpte hue unse
sabhi graam waasiyon ki taraf se darkhwaast ki jaati hai ki wo Nyay
aur SIRF NYAAY karein
Pandit Mishra ji ne apna hukka ek ore sarkaaya aur apna gala
khankhaarte hue, gambheer aawaaz mein saamne sir jhukaaye baithi hui
Roopali se bole," Vaadi thakurain Shrimati Roopali Singh
ji?"…………….Roopali ne, jo lambe ghoonghat mein safed saaree-blouse mein
thi, ghoonghat ke andar se hi sir hilaakar haami bhari. Pandit ji
bole,"Prativaadi, Kaloo, Motiya, Mungeri aur Satoo?" Chaaron chamaar,
jo saamne zameen pe baithe the jhat se bole,"Jee parmatma."
Pandit Mishra: Shrimati Roopali ji. Vistaar se bataayein kya hua aapke
saath. Ghabraayen naheen, yahaan, sab apne hi log hain.
Roopali: Pranaam Pandit ji…..(jhijhakte hue), wo kal, humne socha ki
haweli ke aas-paas ugi ghaas-jhaad-patwaar ki…..
Pandit Mishra: Haan haan…aage bolo…ghabrao naheen…….
Aur dheere dheere Roopali ne saara kissa bayaan kiya. Ki kaise usne
socha tha ki wo koi gaon ka mazdoor haweli laayegi aur paise de kar
haweli kea aas-paas safaai karwaayegi…..kaise usne shaam ke dhundhalke
mein Kamla ki cheekh suni…...kaise usne Kamla ko bachane ki koshish ki
thi aur kaise ulta usi ki izzat taar-taar kar baithe the ye chaar
vehshee darinde. Apna poora dard bayaan kiya Roopali ne aur sisak
sisak kar rone lagi.
Gaon ki ek-do buzurg Thakuraino ne aage badhkar use seene se laga liya
aur uske sir ko sehlaane lagi
Pandit Mishra ne chaaron abhiyukton pe ek nazar daali aur poocha
unhein kuch kehna hai?
Kaloo (gidgidaate hue): Jhoot hai maalik, ek dum jhoot hai. Eeswar ki
saun aisa kacch naai bhaya.
Sattu, Motiya aur Mungeri ne bhi uski haan mein haan bhari.
Ropali sann thi. Use ummeed thi ye kameene gidgidaayenge, maafi
maangenge magar ye toh saaf mukar rahe the.
Thakur Sreeram : Abhiyukton ko apni safaai mein kya kehna hai?
Abhiyukt:
Dheere dheere Sattu aur Motiya ne baari baari se apni safaayi pesh
karni shuru ki.
Kul mila kar un ki baton ka saar yeh tha ki, Roopali ki ye baat sach
thi ki wo chaaron khet mein baithkar sharaab pee rahe the…….ye bhi
sach tha ki unhone waheen par khaana bhi khaaya tha aur ye wo chaaron
kheton mein aksar karte the. Unke mutaabik wo chaaron khaa-pee rahe
the, hansee-thatta kar rahe the aur achanak Mungeri ko laga tha ki
kheton se kisi aurat ke dheeme se hansne ki aawaaz aayi thi. Baaki
teeno ne ise Mungeri ka bhram ya nashe ki adhikta samjha lekin kuch
der baad jab Kaloo ko bhi aisa laga khet se aaawaazein aa rahee hai
toh ve chaaron aawaaz ke srot ko dhoondne mein lag gaye aur jaldi hi
unhone wo jagah dhoondh li jahaan kuch ganne ukhaad ke thodi jagah
samtal ki gayi thi…..aur phir……un chaaron ki aankhein phati ki phati
reh gayi......
Sattu: Huzoor…hum dekhe….hum dekhe ki Thakurain khet maa nangaa leyti
raheen…..aur unka oopar…unkaa oopar……i goonga Chandar raha……." Aur
usne apni ungli wahaan pe khaamoshi se baithe Chandar ki ore ghuma di.
Roopali chillayi,"Kyaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa????? Kameeno! Jhoot
bolte zabaan naa jal gayi tumhari. Haraamzaado……..Ye goonga bechaara
toh raat bhar Haweli mein tha……gandey kaam karte ho aur bezubaan pe
ilzaam lagaate ho kameeno……..bhagwaan kare nirvansh ho jao
tum…......koi aag dene waala naa rahe tumhare gande badan ko….."
Thakur Sree Ram ne Roopali ko Panchayat ki be-adbai naa karne ki
salaah di aur wo ek aah bharke chup baith gayi.
Kaloo aur Motiya ne maze le lekar bayaan kiya ki kaise kaise Chandar
aur Roopali ne unki nazaron se bekhabar, alag alag mudraon mein hawas
ke saagar mein gotey lagaaye the. Mungeri sir jhukaaye sab kuch chup
chaap sun raha tha.
Panch Chedi Mallah ne apne tambaakhoo se sade hue daant nikaale aur
bola,"Thakurain ne kaha hai ki humre gaon ki Kamla ki izzat se bhi
khilwaad kiye hain ye chaaron……Sarpanch maharaja ki aagya ho toh Kamla
ko bhi bulwayi liya jaaye."
Aagya milte hi 2-3 chamaar mahilaaon ne aawaaz lagayi,"Kamlaaa….aye
Kamlaaa…" aur thodi der mein sir jhukaaye gathe badan ki saanwli
saloni, maansal Kamla panchayat ke saamne thi. Uske chootadon ka
kataav aur sakhat choochiyon ka ubhaar dekh kar gaon ke kayi chamaar
aur thakur chhokron ne aahein bhari. Kuch chamaar chhokre Roopali ke
pairon ki gori gori ungliyon aur haathon ki gori khoobsoorti ko dekh
ke andaaza bhar laga rahe thi ki kitna maza aaya hoga ya toh Chandar
ko ya phir in chaar boodhe chamaaron ko.
Gaon ke kayi lund kasi hui dhotiyon aur paayjaamo ke andar kasmasa
rahe the saans lene ke liye aur poorna aazaadi pane ke liye. Ek dubla
patla chamaar chhokra ye naheen tay kar paa raha tha ki agar usko
Thakurain aur Kamla dono chodne ko mil jaayen toh wo pehle kisko
chodega?
Kamla ke khule sir pe ek nazar daalte hue Thakur Ranbir Singh uske
baap, Jhoori Mallah ki ore dekhte hue garaj ke bole,"Aye
Jhoori…..Thakuran ke age kaise pesh aate hain, saur naheen hai tohri
moudhi ko?"
Ghabra ke Jhoori ne apne sir ke oopar 2-3 baar haath firaaya……ishaara
samajh kar fauran Kamla ne apne sir ke oopar dupatta rakh liya apna.
Sir aur munh aadha dhak gaya tha aur chhati ki golaayiaan poori chip
gayi thi. Gaon ke kayi chhokron ko Ranbir Singh pe gussa aa raha tha.
Kisan Kumhaar: Aye moudhi….tu kal saam khet maa kaa karne gayi thi?
Kamla: Khet maa? Hum toh poori raat apne ghar maa hi the.
Sann si reh gayi Roopali chillayi,"Kya bak rahi hai Kamla? Tu naheen
chaahti in paapiyon ko inke kiye ki sazaa mile?"
Kamla ne apradh bodh se Roopali ko ek pal ke liye dekha aur phir
boli,"Hamse jhoot na bulwao Thaurain…..kisi ne kuch naheen kiya humre
saath……" aur wo roti hui, apne ghar ki ore bhaag gayi thi.
kramashah...........
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