Wednesday, July 27, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मस्त राधा रानी-2

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मस्त राधा रानी-2

प्रेषक : राधा, राज
सुहागरात शुरू हो चुकी थी। मोहित अब नीलम के बराबर में लेटा हुआ था और
नीलम के उरोजों को सहला रहा था। नीलम की चूचियाँ भी बड़ी-बड़ी थी और देखने
में बहुत सुन्दर लग रही थी। नीलम का एक हाथ अब मोहित के मोटे लण्ड को
सहला रहा था। चूमा-चाटी के बाद मोहित ने नीलम की टाँगें ऊपर की तो मुझे
नीलम की चूत नज़र आई। नीलम की चूत पर एक भी बाल नहीं था। मेरा हाथ अपने आप
मेरी चूत पर चला गया क्योंकि मेरी चूत पर तो बाल थे। मोहित ने नीलम की
टाँगे अपने कंधों पर रखी और अपना मोटा लण्ड नीलम की चूत पर सटा दिया।
मैं यह सब देखने में मस्त थी कि तभी मुझे मेरे कंधों पर किसी का हाथ
महसूस हुआ जो मेरे कंधे सहला रहा था।
मैं चौंक गई। मैंने मुड़ कर देखा तो अँधेरे में वो पहचान में नहीं आया। पर
वो था कोई बलिष्ट शरीर का मालिक। उसके हाथ के स्पर्श में मर्दानगी स्पष्ट
नज़र आ रही थी। मैंने उसका हाथ हटा कर वहाँ से भागने की कोशिश की तो उसने
मुझे कमर से पकड़ लिया और मेरी एक चूची को पकड़ कर मसल दिया। मैं दर्द के
मारे कसमसाई पर डर के मारे मेरी आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि आवाज
निकलने का मतलब था कि मेरी चोरी पकड़ी जाती। मैं पुरजोर उससे छूटने का
प्रयास करती रही। पर जितना मैं छूटने का प्रयास करती उतना ही उसके हाथ
मेरे शरीर के अंदरूनी अंगों की तरफ बढ़ते जा रहे थे।
अब तो उसके हाथ का स्पर्श मेरे शरीर में एक आग सी लगाता महसूस हो रहा था।
ना जाने क्यों अब मुझे भी उसके हाथ का स्पर्श अच्छा लगने लगा था। मेरा
प्रतिरोध पहले से बहुत कम हो गया था। अब उसके हाथ बहुत सहूलियत के साथ
मेरे शरीर के अंगों को सहला रहे थे।
अचानक उसने मुझे अपनी ओर घुमाया और अपने होंठ मेरे कोमल गुलाब की
पंखुड़ियों जैसे होंठो पर रख दिए। उसकी बड़ी बड़ी मूछें थी। पर वो बहुत अछे
तरीके से मेरे होंठों की चुसाई कर रहा था।
अब वो मुझे खींच कर खिड़की की तरफ ले गया और मेरा मुँह खिड़की की तरफ करके
पीछे से मेरी चूचियाँ मसलने लगा साथ साथ उसका एक हाथ मेरी जाँघों को भी
सहला रहा था। मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी। पहली बार मेरा दिल कुछ ऐसा कर
रहा था कि मैं कोई चीज़ अपनी प्यारी चूत में घुसेड़ लूँ। मेरी आँखे बंद हो
गई थी कि तभी कमरे में उठी सीत्कार ने मेरी आँखे खोली तो देखा कि मोहित
का वो मोटा लण्ड अब नीलम की नाजुक और छोटी सी दिखने वाली चूत में जड़ तक
घुसा हुआ था और अब मोहित उसे आराम आराम से अंदर-बाहर कर रहा था और नीलम
तकिये को मजबूती से अपने हाथों में पकड़े और अपने होंठ दबाये उसके लण्ड का
अपनी चूत में स्वागत कर रही थी।
धीरे धीरे मोहित के धक्के जोर पकड़ने लगे और नीलम और जोर जोर से सीत्कार
करने लगी। बाहर उस आदमी का हाथ अब मेरी चूत तक पहुँच चुका था और उसकी एक
अंगुली अब मेरी चूत के दाने को सहला रही थी जिस कारण मेरी चूत के अंदर एक
ज्वार-भाटा सा उठने लगा था। उसने अपनी अंगुली मेरी चूत में अंदर करने की
कोशिश भी की पर मेरी चूत अब तक बिलकुल कोरी थी क्योंकि अभी तक तो मैंने
भी कभी अपनी चूत में अंगुली डालने की कोशिश तक नहीं की थी। उसकी अंगुली
से मुझे दर्द सा हुआ तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसने भी अंगुली अंदर
डालने का इरादा छोड़ दिया और वो ऐसे ही चूत के दाने को सहलाता रहा। अंदर
की चुदाई देख कर और अंगुली की मस्ती ने अपना रंग दिखाया और मेरा बदन अब
अकड़ने लगा। इससे पहले कि मैं कुछ समझती मेरी चूत में झनझनाहट सी हुई और
फिर मेरी चूत से कुछ निकलता हुआ सा महसूस हुआ। मेरा हाथ नीचे गया तो मेरी
चूत बिलकुल गीली थी और उसमें से अब भी पानी निकल रहा था।
मेरी चूत अपने जीवन का पहला परम-आनन्द महसूस कर चुकी थी। पर वो किसी लण्ड
से नहीं बल्कि एक अजनबी की अंगुली से हुआ था। मेरा शरीर अब ढीला पड़ चुका
था और मुझ से अब खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था।
तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज आई और उसकी पकड़ थोड़ी ढीली हुई तो मैं एकदम उसकी
पकड़ से आज़ाद हो कर जल्दी से अंदर की तरफ भागी। भागते हुए मेरी शॉल जो
मैंने ठण्ड से बचने के लिये ओढ़ रखी थी, वो बाहर ही गिर गई। मैं जल्दी से
जाकर अपनी रजाई में घुस गई। कमरे में सब सो चुके थे। तभी मुझे अपनी शॉल
याद आई। पहले तो सोचा कि सुबह ले लूंगी पर फिर सोचा अगर मेरी शॉल किसी ने
मोहित के कमरे की खिड़की के नीचे देख ली तो भांडा फूटने का डर था।
मैं उठी और बाहर जाने के लिये दरवाज़ा खोला तो देखा वो अब भी मोहित की
खिड़की के पास खड़ा था। मैंने उस चेहरे को पहचानने की कोशिश की पर पहचान
नहीं पा रही थी क्योंकि उसने कम्बल ओढ़ रखा था। वो अब मोहित की खिड़की के
थोड़ा और नजदीक आया तो कमरे से आती नाईट बल्ब की रोशनी में मुझे उसका
चेहरा दिखाई दिया। मैं सन्न रह गई। ये तो मेरे मामा यानि मोहित के पापा
रोशन लाल थे। तो क्या वो मेरे मामा थे जो कुछ देर पहले मेरे जवान जिस्म
के साथ खेल रहे थे। सोचते ही मेरे अंदर एक अजीब सा रोमांच भर गया।
मेरी शॉल लेने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी पर वो लेनी भी जरुरी था। डर
भी लग रहा था कि कहीं वो दुबारा ना मुझे पकड़ कर मसल दे। फिर सोचा अगर मसल
भी देंगे तो क्या हुआ, मज़ा भी तो आयेगा।
मैं हिम्मत करके वहाँ गई और अपनी शाल उठा कर जैसे ही मुड़ी तो मामा ने
मुझे हलके से पुकारा,"राधा !"
मेरी तो जैसे साँस ही रुक गई। मेरे कदम एकदम से रुक गए। मामा मेरे नजदीक
आए और मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमाया। मेरी कंपकंपी छूट गई। एक
तो सर्दी और फिर डर दोनों मिल कर मुझे कंपकंपा रहे थे। मामा ने मेरे
चेहरे को अपने बड़े बड़े हाथों में लिया और एक बार फिर मेरे होंठ चूम लिए।
फिर बोले,"राधा ! तू बहुत खूबसूरत हैं, तूने तो अपने मामा का दिल लूट
लिया है मेरी रानी !"
"मुझे छोड़ दो मामा ! कोई आ जाएगा तो बहुत बदनामी होगी आपकी भी और मेरी भी !"
मामा ने मुझे एक बार और चूमा और फिर छोड़ दिया। मैं बिना कुछ बोले अपनी
शॉल ले कर कमरे में भाग आई। उस सारी रात मैं सो नहीं पाई। मामा की अंगुली
का एहसास मुझे बार बार अपनी चूत पर महसूस हो रहा तो और रोमांच भर में चूत
पानी छोड़ देती थी। बार बार मन में आ रहा था कि अगर मामा भी वैसे ही अपना
लण्ड मेरी चूत में घुसाते जैसे मोहित ने नीलम की चूत में घुसाया हुआ था
तो कैसा महसूस होता।
सुबह सुबह की खुमारी में जब मैं अपने बिस्तर से उठ कर बाहर आई तो सामने
मामा जी कुछ लोगों के साथ बैठे थे। मुझे देखते ही उनके चेहरे पर एक
मुस्कान सी तैर गई।
तभी मेरी मम्मी भी आ गई और वो भी मामा के पास बैठ गई। माँ और मामा आपस
में बात करने लगे और मम्मी ने मामा से जाने की इजाजत माँगी तो मामा ने
मम्मी को कहा,"राधा को तो कुछ और दिन रहने दो।"
मम्मी ने मेरी ओर देखा शायद पूछना चाहती थी कि क्या मैं रुकना चाहती हूँ।
अगर दिल की बात कहूँ तो मेरा वापिस जाने का मन नहीं था पर मुझे स्कूल भी
तो जाना था। बस इसी लिए मैंने मम्मी को बोला,"नहीं मम्मी मुझे स्कूल भी
तो जाना हैं, आगे जब छुट्टियाँ होंगी तो रहने आ जाउंगी।"
मामा ने एक भरपूर नज़र मुझे देखा। तभी मम्मी को किसी ने आवाज़ दी और मम्मी
उठ कर चली गई। अब मामा के पास सिर्फ मैं रह गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो
मामा बोले,"राधा रानी, नाराज़ तो नहीं हो अपने मामा से ?"
मेरे से जवाब देते नहीं बन रहा था। पर मेरी गर्दन अपने आप ही ना में हिल
गई और जुबान ने भी गर्दन का साथ दिया,"नहीं… नहीं तो मामा जी !" मैंने
'मामा जी' शब्द पर थोड़ा ज्यादा जोर दिया था।
"तो रुक जाओ ना !" मामा ने थोड़ा मिन्नत सी करते हुए कहा।
"नहीं मामा, मुझे स्कूल भी जाना होता है और रुकने से पढाई का बहुत हर्ज
होगा। मैं बाद में छुट्टियों में आ जाउंगी।"
"चल जैसी तेरी मर्ज़ी, पर अगर रूकती तो मुझे बहुत अच्छा लगता !"
अब हम दोनों रात की बात को लेकर बिलकुल निश्चिन्त थे। ना तो मामा ने और
ना ही मैंने रात की बात का जिक्र किया था। पर हम दोनों की ही आँखें रात
की मस्ती की खुमारी बाकी थी जो दिल की धड़कन बढ़ा रही थी।
खैर मम्मी और मैं शाम की गाड़ी से वापिस आ गए।
घर पहुँच कर मेरा बिल्कुल भी दिल नहीं लग रहा था। पर फिर जब स्कूल आना
जाना शुरू हो गया तो सहेलियों के साथ पढ़ने घूमने और गप्पें मारने में मैं
वो बात दिन में तो भूल जाती थी पर रात को अपने बिस्तर पर लेटते ही मुझे
मामा की याद फिर से सताने लगती।
कुछ दिन के बाद मामा का फोन आया। संयोग ही था कि उस समय मैं घर पर अकेली
ही थी। मम्मी पड़ोस में गई हुई थी और पापा ऑफिस। मामा की आवाज़ सुनते ही
मेरी चूत गीली हो गई। मामा पहले तो ठीक बात करते रहे पर जब उन्हें पता
चला कि मैं घर पर अकेली हूँ तो मामा ने बात करने का टॉपिक बदल दिया।
"कैसी हो राधा रानी?" राधा बेटी से मामा सीधे राधा रानी पर आ गए।
"ठीक हूँ मामा जी।"
"मामा की याद आती है राधा रानी?"
"आती तो है ! क्यूँ ???"
"मुझे तो बहुत याद आती है तुम्हारी…. मेरी जान !"
"मामा, अपनी भांजी को 'जान' कह रहे हो ! इरादे तो नेक हैं ना तुम्हारे ?"
मामा थोड़ा झेंप गया।
"अरी नहीं…. बस उस रात को याद कर कर के दिल में दर्द सा होने लगता है राधा रानी !"
"मामा तुम भी ना !"
"क्या तुम भी ना?"
"मैं नहीं बोलती आप से। आप बहुत बेशर्म हैं।"
"अच्छा ऐसा मैंने क्या किया ?"
मैंने बात का टॉपिक फिर से बदलते हुए पूछा,"शहर कब आओगे मामा ?"
"जब मेरी राधा रानी बुलाएगी तो चले आयेंगे।"
"तो आ जाओ, तुम्हें पूरा शहर घुमा कर लाऊंगी।"
"चल ठीक है, मैं एक दो दिन में आने का कार्यक्रम बनाता हूँ, पर तू अपना
वादा मत भूलना, पूरा शहर घुमाना पड़ेगा।"
"ठीक है ….ये लो मम्मी आ गई मम्मी से बात करो।"
मम्मी आ गई थी तो मैंने फोन मम्मी को दिया और बाथरूम में चली गई।
बाथरूम में जाने का एक कारण तो ये था कि मामा से बात करते करते मेरी
पेंटी पूरी गीली हो गई थी और चूत भी चुनमुनाने लगी थी। मैं बाथरूम में गई
और चूत को सहलाने लगी और तब तक सहलाती रही जब तक उसने पानी नहीं छोड़
दिया।
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
अगले भाग में समाप्त !
मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरुर बताना।
sharmarajesh96@gmail.com
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