Wednesday, July 27, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मस्त राधा रानी-3

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मस्त राधा रानी-3

प्रेषक : राधा, राज
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
मामा चार दिन के बाद आये। आने से पहले उन्होंने पापा को फोन कर दिया था
पर मुझे इस बात का पता नहीं था। मेरे लिए तो यह एक सरप्राइज से कम नहीं
था। जैसे ही मैं स्कूल से वापिस आई तो घर में घुसते ही सामने मामा बैठे
थे। मैं अवाक सी उन्हें देखती रही। तभी मामा ने आगे आकर मुझे गले से लगा
लिया और इसी दौरान मेरे कूल्हे को भी स्कर्ट के ऊपर से ही दबा दिया।
"मामा पहले बताना तो चाहिए था ना !" मैंने ऊपरी मन से नाराज़ होने का नाटक सा किया।
"बस अपनी बेटी से मिलने का दिल किया और और दौड़ते हुए आ गए मिलने के लिए
!" मामा ने मुझे आपनी बाहों में अच्छे से जकड़ते हुए कहा।
मम्मी मामा का और मेरा प्यार देख कर हँस रही थी। उसे अंदर की खिचड़ी का
पता थोड़े ही था। मैंने महसूस किया की मामा के स्पर्श मात्र से मेरी चूत
गीली हो गई थी। मैं भाग कर बाथरूम में गई और चूत को सहला दिया।
कपड़े बदल कर मैं फिर से मामा के पास आकर बैठ गई। तभी मम्मी को बुलाने
पड़ोस की एक औरत आई और मम्मी उससे बात करने के लिए बाहर चली गई। मैं भी
उठकर जाने लगी तो मामा ने मेरी बाहँ पकड़ कर अपनी और खींचा तो मैं सीधे
मामा की गोद में जाकर गिरी। मुझे अपनी गाण्ड के नीचे कुछ चुभता हुआ सा
महसूस हुआ तो मेरा दिमाग एक दम से ठनका कि कहीं यह वही तो नहीं ?? मोटा
सा, लंबा सा, मोहित के जैसा। सोचते ही मैं फिर से झनझना गई। वो मुझे बहुत
कठोर महसूस हो रहा था। मामा ने मेरा मुँह पकड़ा और मेरे नाजुक होंठों पर
अपने होंठ रख दिए और मस्त हो चूसने लगे।
"मामा तुम्हारी मूछें बहुत गुदगुदी करती हैं।"
मेरी बात सुन कर मामा हँस पड़े। मैं अपने को छुड़वाते हुए मामा से अलग हुई
तो मामा के पायजामे में तम्बू बना हुआ था। उस तम्बू से उस के अंदर छुपे
काले नाग का एहसास मुझे हो गया था। इसे महसूस करके मेरा मन थोड़ा डर भी
गया था कि अगर मामा इसे मेरी चूत में घुसाने लगा तो मेरी तो फट ही
जायेगी। जिस चूत में अंगुली भी नहीं जाती उसमे इतना मोटा लण्ड कैसे जाएगा
भला ???
मैं इसी उधेड़बुन में थी कि मामा खड़े होकर मेरे पीछे आ गया और पीछे से
मेरी चूचियों को पकड़ कर सहलाने लगे। मामा का लण्ड अब मुझे अपने कूल्हों
पर महसूस होने लगा था।
तभी मम्मी आ गई और मामा मुझ से दूर होकर सोफे पर बैठ गए।
अभी दोपहर के तीन बजे थे, मौसम बहुत सुहाना हो रहा था, मामा बोले "राधा
बेटा ! तुम तो कह रही थी कि जब मैं शहर आऊंगा तो तुम मुझे शहर घुमाओगी,
अब क्या हुआ ??"
मैं मामा के शहर घूमने का मतलब अच्छे से समझ रही थी। मैंने भी हँसते हुए
बोला,"आप पापा के साथ घूम आना।"
"पर बेटा वादा तो तुमने किया था !"
"ठीक है, माँ से पूछ लो अगर वो बोलेगी तो घुमा लाऊंगी।"
मम्मी जो वहीं बैठी थी बोली,"अरी बेटी, घुमा लाओ ! इसमें पूछने वाली क्या
बात है? तुम्हारे मामा हैं !"
बस फिर देर किस बात की थी। मैं झट से तैयार हो गई। मैंने टॉप स्कर्ट और
ठण्ड से बचने के लिए जैकेट पहन लिया। मैंने मामा को अपनी एक्टिवा पर
बैठाया और निकल पड़े घूमने।
शहर में इधर-उधर घूमते-घूमते मैं मामा को मॉल दिखाने ले गई। वहाँ मूवी भी
लगी हुई थी। मामा का मन पसंद एक्टर अभिषेक बच्चन है और वहाँ उसकी फिल्म
'रावण" लगी हुई थी। मैं मूवी देख चुकी थी और मुझे पता था कि बिल्कुल
डिब्बा फिल्म है पर मामा बोले कि उन्हें वही फिल्म देखनी है।
सो हम टिकेट लेकर अंदर चले गए। हॉल में एक दो लोग ही बैठे थे बाकि सारा
हॉल बिल्कुल खाली था। हम दोनों कोने की एक सीट पर बैठ गए। मुझे मालूम था
कि अब क्या होने वाला है।
मैंने मम्मी को फ़ोन करके बोल दिया कि मैं मामा के साथ सहारा मॉल में मूवी
देख रही हूँ। मम्मी को बताने के बाद मैं निश्चिन्त हो गई। फिल्म शुरू
होते ही मामा का हाथ मेरे बदन पर घुमने लगा। आज मैंने ब्रा जानबूझ कर
नहीं पहनी थी। जब मामा का हाथ मेरे टॉप पर गया तो मेरी चूचियाँ एकदम से
तन गई, चुचूक कड़े हो गए, आँखें बंद हो गई।
तभी मामा ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींचा। मुझे कुछ अंदाजा नहीं था
कि एकदम से मुझे कुछ गर्म-गर्म सा महसूस हुआ। आँख खोल कर देखा तो वो मामा
का मूसल था- आठ इंच लंबा और करीब तीन इंच मोटा लण्ड लोहे की तरह सख्त, सर
तान कर खड़ा हुआ। उसे देखते ही मेरी चूत चुनमुना गई। मैंने मामा का लण्ड
हाथ में पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। मामा का हाथ भी मेरी पेंटी के
अंदर घुस कर मेरी चूत का दाना सहला रहा था। मुझे इस बात का एहसास था कि
मैं कहाँ हूँ तभी मैंने अपनी आहें अंदर ही दबा ली अगर कहीं और होती तो
सीत्कार निकल ही जाती । आसपास कोई नहीं था।
मामा बोले "राधा कभी चुदवाया है किसी से?"
चुदवाया शब्द सुनते ही दिल धक-धक करने लगा, मुँह से आवाज नहीं निकल रही
थी, बस मैंने ना में गर्दन हिला दी।
"यानि अभी तक कोरी हो?"
"हाँ !"
"लण्ड का मज़ा लोगी ?"
अब मैं क्या कहती कि नहीं लूँगी। अगर लण्ड का मज़ा नहीं लेना होता तो क्या
मैं ऐसे उसका लण्ड सहला रही होती और उसे अपनी चूत सहलाने दे रही होती। ये
गांव के लोग भी ना बहुत भोले होते है पर इनका लण्ड सच में कमाल होता है।
"यहाँ पर नहीं, घर पर चलते हैं ना !"
"पर घर पर तो सभी होंगे ?"
"आप चिंता ना करें, रात को जब सब सो जायेंगे तो मैं आपके कमरे में आ जाउंगी !"
"सच?"
"हुं "
"चलो ठीक है !" कहते हुए मामा ने मुझे एक बार फिर चूम लिया ।
तय कार्यक्रम के मुताबिक़ मैं रात को 11 बजे उनके कमरे में पहुँच गई।
कमरे में पहुँचते ही मामा ने दरवाज़ा बंद किया और मुझे गोद में उठा कर
बिस्तर पर लिटा दिया। मामा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं बेड पर
लेटी हुई मामा को देख रही थी। जब मामा ने अपना कुरता उतारा तो मामा की
बालों से भरी मर्दाना छाती देख कर ही मस्त हो उठी। मेरे दिल में अब
गुदगुदी होने लगी थी यह सोच कर कि कुछ देर के बाद मेरी चूत भी लण्ड का
मज़ा लेने वाली है।
मामा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए, अब सिर्फ एक कच्छा ही मामा के शरीर पर
रह गया था। मामा मेरे पास आये और एक एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे। और
मात्र एक मिनट में ही मैं मामा के सामने सिर्फ पेंटी में पड़ी थी। और मामा
मेरे चुचूक पकड़ कर मसल रहे थे और अपने होंठों में दबा-दबा कर चूस रहे थे।
मामा की इस हरकत से मेरे बदन में आग सी लगती जा रही थी। मामा ने अब मेरी
पेंटी भी उतार दी और मेरी रेशमी बालों से भरी चूत पर हाथ फेरने लगे और
फिर अचानक अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए। मैं एक दम से चिंहुक उठी।
होंठों की गर्मी और चूत की गर्मी का मिलन इतना अच्छा था कि उसका वर्णन
शब्दों में बताना मेरे बस में नहीं है।
"आह्हह्ह" मेरी सीत्कारें अब खुल कर निकल रही थी और मैं मस्ती में मामा
का सर अपनी चूत पर अपनी जाँघों के बीच दबा रही थी, मन कर रहा था कि मामा
अपना पूरा सर मेरी चूत में घुसेड़ दें।
"खा जा बहन के लौड़े मेरी चूत को….. अह्ह्ह मामा……." ना जाने कैसे मेरे
मुँह से अपने आप गाली निकल गई।
मामा तो मेरी कुंवारी चूत को चाटने में मस्त था। वो अपनी खुरदरी जीभ मेरी
चूत में अंदर तक घुसाने की कोशिश कर रहा था। जीभ का खुरदरा एहसास हाय
कैसे बयान करूँ, मैं तो जन्नत में थी उस समय।
कुछ देर बाद मामा ने दशा बदली और अब उसका मोटा मूसल अब मेरे मुँह के
सामने था। मैंने देखा तो नहीं था पर सुना था कि कुछ लडकियां और औरतें लंड
को मुँह में लेकर चूसती भी हैं। बस मैंने भी अपना मुँह खोला और मामा का
वो काला भुजंग मैंने अपने नाजुक होंठों में दबा लिया। मामा का लण्ड मेरे
मुँह के लिए भी मोटा था पता नहीं चूत में कैसे जाएगा। अभी मैं यह सोच ही
रही थी कि मामा अब सीधे हुए और मेरी टाँगें पकड़ कर मेरी जांघे चौड़ी की।
मामा ने अपना मस्त कलंदर मेरी मुनिया से भिड़ा दिया। एक बार तो ऐसा लगा
जैसे कोई गर्म लोहे की राड भिड़ा दी हो। मेरी अब सीत्कारें निकल रही थी और
मामा मेरी कुंवारी चूत में अपना लण्ड घुसाने के लिए मरा जा रहे थे और मैं
भी आने वाले दर्द से अनजान मामा के लण्ड का इंतज़ार कर रही थी कि कब
घुसेगा यह मूसल मेरी चूत में ??
मामा ने काफी सारा थूक मेरी चूत पर लगाया। मामा के लण्ड पर तो पहले से ही
मेरा थूक लगा हुआ था। थूक लगा कर मामा ने अपना काला नाग मेरी सुरंग में
घुसाने के हलकी सी कोशिश करी तो मुझे पहली बार कुछ दर्द का एहसास हुआ पर
मस्ती पूरे जोर पर थी तो मैंने उस दर्द की तरफ ध्यान नहीं दिया। तभी मामा
ने अपना लण्ड सही से सेट करके एक जोरदार धक्का लगाया तो मामा का मोटा
सुपारा मेरी चूत में उतर गया और मैं हलाल होते बकरे की तरह मिमिया उठी।
दर्द की एक तीखी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे चाकू से
मेरी चूत को कोई चीर रहा हो।
अभी मैं कुछ सोच पाती कि मामा ने एक और जोर दार धक्का मारा और मामा का दो
इंच मोटा लण्ड करीब 4 इंच तक मेरी कोरी चूत में उतर गया। मेरी आँखों से
गंगा-जमुना बह निकली। दर्द के मारे मैं अब बिलबिला रही थी। मामा ने मेरे
होंठ आपने होंठों में दबा रखे थे इस कारण मैं चिल्ला नहीं पा रही थी वरना
मेरी चीख से तो पूरा घर हिल जाता।
मामा मेरी कोमल चूत में अपने लण्ड पूरा घुसाने में पूरी मशक्कत कर रहे
थे। मामा ने पूरा जोर लगते हुए दो तीन धक्के एक साथ बिना रुके लगा दिए और
लण्ड मेरी सील तोड़ता हुआ चूत में जड़ तक समा गया। चूत में कुछ गीला गीला
सा महसूस हुआ। तब पता नहीं था कि मेरी ही चूत का खून हुआ है अभी अभी।
लण्ड पूरा घुसाने के बाद मामा कुछ देर के लिए मेरे ऊपर ही लेट सा गया और
मेरी चूचियों को सहलाने और मसलने लगे।
जैसे ही मामा ने मेरे होंठ छोड़े, मैं गिड़गिड़ा उठी,"मामा, प्लीज़ निकाल लो
इसे, बाहर वर्ना मैं मर जाउंगी। निकाल लो मामा, मेरी फट गई है प्लीज़ !!!
मुझे बहुत दर्द हो रहा है, मामा मैं मर जाउंगी।"
"कुछ नहीं होगा मेरी रानी बेटी, बस थोड़ा सा सहन करो, फिर तुम ही बोलोगी
कि अंदर डालो।"
"म… मामा … मुझे नहीं करवाना…. प्लीज़ निकाल लो।"
मामा ने मेरी एक ना सुनी और धीरे धीरे लण्ड को अंदर-बाहर करना शुरू कर
दिया। मुझे तीखा दर्द हो रहा था पर मामा अपना काम पूरा करने में लगे थे।
मामा मेरे चुचूक चूसते हुए धीरे-धीरे धक्के लगा रहे थे। कुछ देर के बाद
जब लण्ड आराम से अंदर-बाहर होने लगा तो मुझे भी दर्द की जगह मज़ा आने लगा।
बीच-बीच में कभी-कभी हल्की टीस सी होती पर अब मज़ा आने लगा था। मेरे चूतड़
अब मामा के धक्के का जवाब देने के लिए उठने लगे थे। मामा के धक्कों की
गति भी अब बढ़ गई थी। अब मुझे बहुत मज़ा आने लगा था। दर्द बिल्कुल खत्म हो
चुका था।
अब तो मैं भी "और जोर जोर से करो मामा और जोर से !" बड़बड़ा रही थी। अब तो
दिल कर रहा था कि मामा ऐसे ही जोर जोर से धक्के लगाते रहें। मामा को भी
जैसे मेरे मन की बात पता थी, तभी तो वो बिना रुके जोर जोर से धक्के लगा
रहे थे, सीत्कारें कमरे में गूँज रही थी।
"आह्हआह्ह्ह.उईईईईजोर से म….. मामाऽऽ !"
"ये ले मेरी रानी !"
मामा मस्त मर्द थे, पूरे पन्द्रह मिनट हो चुके थे मामा को चोदते हुए पर
अभी भी मामा का लण्ड लोहे की तरह ही अकड़ कर खड़ा था और मेरी चूत की पूरी
तरह से रगड़-रगड़ कर चुदाई कर रहा था। कुछ देर की चुदाई के बाद मेरा बदन
अकड़ने लगा। ऐसा लगा जैसे मेरा सारा बदन मेरी चूत के रास्ते बाहर आने को
बेताब है। आठ दस धक्कों के बाद ही मेरी चूत से झरना बह निकला। मैं तो
जैसे बादलों के ऊपर उड़ रही थी। मामा अब भी लगातार धक्के पर धक्के लगा रहे
थे।
थोड़ी ही देर बाद मेरा पूरा बदन फिर से मस्ती से भर गया और मैं अपनी गाण्ड
उछाल उछाल कर मामा का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी। एकाएक मामा रुक गए और
मुझे अपने घुटनों के बल घोड़ीकी तरह होने को कहा। मैं मामा के कहे अनुसार
हो गई तो मामा ने पीछे आकर पहले तो मेरी चूत को थोड़ा सा चाटा और फिर लण्ड
का सुपारा मेरी चूत पर सटा कर लण्ड एक ही धक्के में पूरा मेरी चूत में
ड़ाल दिया और फिर से जोरदार धक्के लगाने लगे। इस आसन में चुदवाने में मुझे
बहुत मज़ा आया।
मामा ने पूरे पच्चीस मिनट तक मेरी चुदाई की और मैं एक बार फिर झड़ गई।
अब मामा ने मुझे सीधा लेटा कर फिर से लण्ड अंदर डाल दिया और चोदने लगे।
दस पन्द्रह धक्के ही लगा पाए थे कि उनका लण्ड भी शहीद होने के कागार पर
पहुँच गया।
वो लण्ड का रस मेरी चूत में नहीं निकालना चाहते थे क्योंकि उसमे खतरा था।
पर इससे पहले कि वो कुछ करते उनके लण्ड से गर्म गर्म वीर्य निकल कर मेरी
चूत में भरने लगा। गर्म गर्म वीर्य का एहसास मिलते ही मेरी चूत भी बुरी
तरह से संकोचन करने लगी और मामा के लण्ड को अपने अंदर जकड़ने और छोड़ने
लगी। मुझे मेरी चूत अब भरी भरी सी महसूस हो रही थी। मेरा पूरा शरीर फूल
की तरह हल्का हो गया था और मैं तो जैसे हवा में उड़ रही थी। मैंने अपने
दोनों हाथों और टांगों से मामा को जकड़ रखा था। मामा रुक-रुक कर झटके खा
रहे थे और अपने वीर्य को मेरी चूत में निचोड़ रहे थे। शादी में से आने के
बाद से मेरा शरीर जिस आग में धधक रहा था वो सारी आग मामा के गर्म गर्म
वीर्य ने बुझा दी थी।
हम दोनों एक दूसरे से लिपटे थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहे। मामा एक बार और
मेरी प्यारी मुनिया के साथ मूसल मस्ती करना चाहते थे। मैं भला मन क्यों
करती। थोड़ी देर बाद फिर उन्होंने एक बार फिर से मेरी टाँगें उठाकर अपना
मूसल मेरी चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया और सुबह तक मेरी चूत का दो बार बजा
बजाया।
मैं आज भी जब भी वो मेरे घर पर आते हैं, खूब चुदवाती हूँ।
मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरुर बताना। आपका मूल्यांकन मुझे अपने आगे के
मस्त अनुभवों को आपके बीच लाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इस कहानी को
पूरा करने में राज ने भी मेरा पूरा साथ दिया है तो प्लीज़ राज को भी बताना
और अपनी अनमोल राय देना इस कहानी के बारे में :
sharmarajesh96@gmail.com
आपकी मस्त राधा रानी radha.sexy385@gmail.com

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