Friday, February 17, 2012

मेरी बहन-मेरी पत्नी पार्ट -4

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मेरी बहन-मेरी पत्नी पार्ट -4
गतांक से आगे...................................
मै जनता था कि अमृता झड चुकी है लेकिन मेरा लंड अभी झाडा नहीं था इसलिए
मै रूक गया ये सोच कर कि शायद अमृता अब इसे चूत में से बहार निकलना चाहे
मगर एक अच्छे साथी कि तरह अमृता ने ऐसा नहीं किया |उसने खुद कहा- क्या
हुआ भईया ? रूक क्यों गए? आप अपना पूरा करो मै दे रही हूँ आपका साथ | जब
तक आपका नहीं झडेगा मै साथ देती रहूंगी ............आप करो |

अमृता के इतना कहते ही मैंने दुगनी स्पीड से झटके मारने शुरू कर दिए और
थोड़ी ही देर में मेरा लंड भी झड गया |जैसे ही मेरा लंड झाडा, मैंने अपने
लंड को अपनी बहन कि चूत से बहार निकलना चाह ताकि मेरा वीर्य उसकी चूत के
अंदर न झड जाए मगर अमृता ने बलपूर्वक मुझे ऐसा करने से रोक दिया और इससे
पहले कि मै उसके बल का जवाब अपने बल से दे पता मेरा लंड मेरी बहन कि चूत
में ही झड गया और मै उसे इस गलती के लिए गाली देने लगा | गाली सुनकर
अमृता हंसने लगी और बोली भईया जब सब कुछ करना ही है तो डरना कैसा ? जो
असली मजा है अगर वाही न लिया तो ये सब करना बेकार है | आज मै पूरी तरह से
आपकी हो जाना चाहती थी और कोई भी दूरी बाकी रखना नहीं चाहती थी इसलिए जो
होगा देखा जायेगा | अगर कुछ हो भी गया तो हम दवाई ले लेंगे मगर अब से मै
आपकी दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकती हूँ और अब मुझे बहन का ये लोडा (फिर से
मेरे लंड को हाथ में लेते हुए ) चाहिए ही चाहिए |

मै भी जनता था कि जो होना था वो तो हो ही चूका है और अब उस बात को सोच कर
कुछ हासिल नहीं होगा इसलिए जो आन्नद आज मिला है उसे याद करना चाहिए न कि
जो गलत हो गया उसे |मैंने अमृता को आखिरी लिप्स तो लिप्स किया और उसके
ऊपर से उतर कर उसके बराबर में लेट गया |
अमृता बिस्तर से उठी और सबसे पहले पलंग के दोनों तरफ गिरे हुए कपड़ों को
समेटने लगी (जिन्हें मै तो भूल ही चूका था ) और पूर्ण संतुष्टि के भाव के
साथ किसी अच्छी पत्नी कि तरह कमरा साफ़ करने लगी |
उसके बाद अमृता ने अलमारी से अपने कपडे भी निकले और मेरे भी | हम दोनों
भाई बहन नए कपडे पहन कर सो गए और अगले दिन फटे हुए कपडे मम्मी कि नजरों
से बचा कर फैंक आये |

उस रात के बाद हम दोनों भाई बहन लगभग रोज (उसके मासिक दिनों को छोड़ कर,
वैसे तो कभी कभार उन दिनों में भी एक दो बार ) एक दुसरे कि बाहों में
समां जाते है | आज भी (उस घटना के लगभग ११ वर्ष बाद भी ) मुझे मेरी बहन
उतनी ही सुंदर लगती है जितनी कि तब लगती थी |और आज भी मै उसकी चूत को देख
कर उतना ही पागल हो जाता हूँ जितना उस दिन हुआ था | बस अंतर इतना है कि
अब हमें एक दुसरे के कपडे फाड़ने कि जरुरत नहीं पड़ती क्योकि हम जानते है
कि अब हम दोनों ही एक दुसरे से प्यार किये बिना रह ही नहीं सकते |

दोस्तों मै आपको पहले भी अपनी और अपनी बहन अमृता के बारे में बहुत कुछ
बता चूका हूँ | आज मै आपको अपनी जिंदगी के कुछ ऐसे किस्से बताने जा रहा
हूँ जो मेरी जिंदगी की हसीन यादों में से एक है | यूँ तो मै लगभग डेढ़ या
दो साल से अपनी बहन की चूत मार रहा था और इन दो सालों में मैंने अपनी बहन
के साथ हर तरह का मजा लिया था- उसे बिस्तर पे बिछा के चूत मारना, उसे लंड
के ऊपर बैठा कर कुदाना, कुतिया बना कर लेना..............और भी बहुत तरह
के मगर ये सब रात में बंद कमरे तक ही सीमित था | लेकिन दिन में या खुले
में मुझे ये सब करने की छूट नहीं थी | अमृता मम्मी से बहुत डरती थी इसलिए
दिन में या खुले में ये सब करने नहीं देती थी |यूँ तो हम दोनों भाई बहन
पति-पत्नी की तरह तो लगभग दो साल से साथ रह रहे थे मगर हमने कभी हनीमून
नहीं मनाया था |
लेकिन ये बात आज से लगभग नो साल पुरानी है - हमारे पापा का ट्रान्सफर
इलहाबाद हो गया था और पापा की तबियत कुछ दिनों से खराब चल रही थी (उन्हें
बुखार चल रहा था ) मगर उन्हें छुट्टियाँ नहीं मिल पा रही थी, इसलिए मम्मी
पंद्रह दिनों के लिए पापा के पास रहने जा रही थी और हम दोनों भाई बहन अब
घर में पंद्रह दिनों के लिए अकेले रहने वाले थे |
मैंने तो सोच रखा था की इन पूरे पन्द्रह दिनों तमें मै अपनी बहन के साथ
इतनी मस्ती करूँगा की ये पंद्रह दिन हमारे आने वल्र पंद्रह सालों के लिए
यादगार दिन रहें | इन पंद्रह दिनों को मै अपनी बहन के साथ हनीमून की तरह
मानाने की सोच रहा था |

ऐसा नहीं की ये सपने सिर्फ मेरे ही थे या मम्मी के जाने से केवल मै ही
उत्साहित था, मेरी बहन अमृता का भी कुछ ऐसा ही हाल था |वो भी मम्मी के
जान से उतनी ही उत्साहित थी, जितना कि मै था |

आखिर वो दिन आ ही गया जब मम्मी ने पापा के पास जाना था | हम दोनों भाई
बहन मम्मी को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन गए थे |उस समय मेरे पास मारुती
१००० कार हुआ करती थी | हम दोनों ने मम्मी को इलाहबाद की ट्रेन पकड़वाई और
उसके बाद हम दोनों घर के लिए वापिस चल पड़े |
अभी हम दोनों थोड़ी ही दूर चले थे की मेरे दिल में बहुत तरह की उमंगें और
शरारते उठने लगीं | इसलिए मैंने शरारत में आ कर चलती कार में ही अपना
बायाँ (लेफ्ट हैण्ड ) हाथ अपनी बगल में बैठी बहन की जांघ पर रख दिया
|मेरी शरारत से मेरी बहन शरमा गयी और हलके हलके मुस्कुराने लगी |मुझे
उसकी मुस्कान से हिम्मत मिली और मैंने उसकी जांघ को सहलाने लगा |अभी
मैंने अमृता की जांघ थोड़ी सी ही सहलाई थी कि उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोकना
चाहा और बोली-
अमृता- क्या कर रहे हो भईया, कोई देख लेगा |
मै- देखेगा कैसे? शीशे तो काले है..........कुछ नहीं दिखेगा | (उस समय
दिल्ली में कार के काले शीशों को लेकर बहुत जयादा सख्ती नहीं थी) |
अमृता- मत करो न भईया, मुझे शरम आती है |अब घर ही तो जा रहे है, घर जा कर
कर लेना जो करना हो............मै रोकूंगी थोड़े ही |
मै- तू कबसे मुझसे शरमाने लगी? और रही बात घर जा कर करने की तो, घर जा कर
मै तेरी जांघ थोड़े ही न सह्लाऊंगा ? घर जा कर तो मै तुझे सह्लऊंगा
(मैंने मुस्कुराते हुए कहा )|

मेरी बात सुनकर अमृता एक बार फिर से शरमा गयी और चुप-चाप बैठ गयी और मै
उसकी जांघ सहलाने लगा |

अमृता कि जांघ सहलाते सहलाते मेरे दिल के अंदर शरारते बढती जा रही थी और
मेरी हिम्मत भी |अब मैंने उसकी स्कर्ट उठा कर उसकी जांघ सहलानी शुरू कर
दी थी और उसकी नंगी जांघ पर हाथ जाते ही मेरा लंड भी बेकाबू होता जा रहा
था | उधर अमृता मेरी इस हरकत से परेशान होने लगी थी |उसे डर लग रहा था कि
कही किसी ने देख लिया तो क्या होगा? मगर मुझे मजा आ रहा था और मेरे अंदर
शरारत करने कि उमंग बढती जा रही थी | अमृता बार बार मेरा हाथ पकड़ कर
रोकती और मै बार बार जबरदस्ती उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर दुबारा उसकी
नंगी जांघ पे रख कर सहलाने लगता |यूँ तो इन दो सालों में मैने ना जाने
कितनी बार अमृता को नंगा देखा भी था और किया भी था मगर उस दिन चलती कार
में सिर्फ उसकी नंगी जांघ को देख कर जो मस्ती चढ़ रही थी उसका कोई जवाब
नहीं था और शायद इसकी वजह उसकी जांघ नहीं थी, बल्कि एक विचार था - मेरा
लंड ये सोच-सोच कर मचल रहा था कि मै दिन-दहाड़े, चलती कार में- बीच सड़क
पर अपनी बहन की नंगी जांघ सहला रहा हूँ | मेरे लंड को बेकाबू करने के लिए
सिर्फ ये विचार ही बहुत था |
अंत में आकर अमृता को समझ में आ गया कि वो जितना मुझे रोकना चाहेगी मै
उतना ही जिद्दी होता जाऊँगा और उतनी ही जबरदस्ती से उसकी जांघ सह्लाऊंगा
| इसलिए अमृता ने खुद को पूरी तरह से मेरे हवाले कर दिया और मै उसकी जांघ
को सहलाने लगा |अब अमृता अपनी आँखे बंद करके आराम से बैठ गयी और खुद भी
मेरे सहलाने का मजा लेने लगी |

मै भी बेकाबू होता जा रहा था, इसलिए मैंने अपना हाथ अब धीरे धीरे उसकी
जांघ से ऊपर करते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिए और उसकी पेंटी के ऊपर से
ही उसकी चूत सहलाने लगा (साथ साथ कार चलता रहा )| अब अमृता भी गरम हो
चुकी थी अब उसका स्वर , गुस्से से बदलकर शिकायत वाले सुर में आ गया था-
अमृता- भईया क्या कर रहे हो? मान जाओ न प्लीज |
मै - क्या कर रहा हूँ? अपनी बहन को प्यार कर रहा हूँ और क्या कर रहा हूँ?
अमृता- ऐसे प्यार करते है क्या बहन को?
मै- (शरारत से मुस्कुराते हुए ) तो कैसे प्यार करते है अपनी बहन को?
अमृता- घर जा कर आराम से करते है, ऐसे सड़क पर नहीं |
मै- घर जा कर भी करूँगा मगर जिसकी बहन तेरे जैसी प्यारी हो, वो बेचारा घर
पहुँचने तक का इन्त्जार कैसे करे ?
अमृता- भईया, आप ना बहुत शरारती होते जा रहे हो दिन-ब-दिन |पता नहीं
कहाँ-कहाँ से सीखते हो ये सब?
मै- तुझे देख कर खुद-बी-खुद आ जाता है सब कुछ |
ये सब बातें करते करते मैंने उसकी चूत में बहुत अंदर तक ऊँगली दाल दी थी
और उसने जोर से सिसकी लेते हुए मुझे एक गन्दी से गाली दी |
मै- क्या हुआ?
अमृता-लाओ मेरे हाथ में दो अपना लंड तो मै बताती हूँ क्या हुआ? इतनी देर
से तडपा रहे हो | बार बार कह रही हूँ घर जा कर कर लेना जो करना है, मानते
ही नहीं |लाओ निकालो, मै बताती हूँ क्या हुआ?

मै तो पहले ही से बेकाबू हो रहा था और अब तो खुद अमृता मेरा लंड चलती कार
में अपने हाथ में ले कर सहलाने वाली थी| मैंने मौका खोना उचित नहीं समझा
और तुरंत अपनी पेंट की चेन खोल कर अपना लंड बहन निकल लिया |

अमृता ने अपने आप मेरा लंड अपने हाथ में ले कर सहलाना शुरू कर दिया और मै
उसकी चूत सहलाने लगा (पेंटी के ऊपर से ही ) और पहले से भी धीरे धीरे कार
चलने लगा

मेरी मदहोशी बढती जा रही थी |मजा इस बात से नहीं था कि कोई लड़की मेरा लंड
सहला रही है, बल्कि मुझे तो ये सोच-सोच कर नशा हो रहा था कि मेरी बहन
मेरा लंड अपने हाथ में लेकर बैठी हुई है और मै उसकी चूत से खेल रहा हूँ
और वो भी -चलती कार में |

मैंने उससे लंड को मुह में लेकर चूसने को कहा मगर अमृता ने मना कर दिया |
लेकिन मै उस दिन पूरे मूड में आ चूका था |इसलिए मैंने भी ये जिद्द पकड़ ली
थी कि आज तो मै अमृता से कार में ही लंड चुसवाकर ही रहूँगा, चाहे वो एक
या दो चुसके ही ले |लेकिन अमृता ने ये सब करने से साफ़-साफ़ और सख्त शब्दों
में मना कर दिया था | वो इस बात पर अड़ी हुई थी कि वो जो भी करेगी अब घर
जा कर ही करेगी |लेकिन मै अपनी जिद्द पर कायम था कि चाहे दो बार ही सही
वो मेरा लंड कार के अंदर ही चूसे |
मैंने गुस्से में आ कर कार सड़क के किनारे ही रोक दी और गुस्से में बोला-
"नहीं जा रहा मै घर |मै तब तक घर नहीं जाऊंगा जब तक तू मुह में ले कर
नहीं चूसेगी |चाहे एक या दो बार चूस ले, मगर जब तक तू चूसेगी नहीं मै अब
घर नहीं जाऊँगा, तुने जाना है तो तू चली जा |"

अमृता मेरा गुस्सा और मेरी जिद्द जानती थी |उसने मुझे समझाने कि बहुत
कोशिश करी मगर उस समय मेरे ऊपर जिद्द सवार थी |आखिरकार अमृता ने हार मानी
और ये शर्त रखी कि इसके बाद मै अमृता के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं करूँगा और
सिर्फ दो बार वो मेरा लंड चूसेगी |मै सहमत हो गया और मैंने वादा किया कि
इसके बाद मै अमृता को सड़क पर हाथ नहीं लगाऊँगा |उसके बाद अमृता ने चलती
कार में मेरा लंड पहले तो थोड़ी देर तक अपने हाथ से सहलाकर खड़ा किया और
उसके बाद मुह में लेकर चूसना शुरू कर दिया |
उसने कहा तो ये था कि वो सिर्फ दो बार चूसेगी मगर एक बार मुह में लेकर
बहुत देर तक उसने मेरा लंड चूसा, क्योकि वो जानती थी कि मुझे उससे लंड
चुस्वाना बहुत पसंद है |
क्रमशः........


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