sexi stori
हर्षा, लाली और होली होली पर पिछले तीन साल से घर नहीं जा पाया था. उस बार माँ का फ़ोन आ ही गया. कह रही थी 'सुरेश बेटा इस होली पर जरूर आ जाना. और हाँ वो अपनी हर्षा भी आई हुयी है, तुझे पूछ रही थी' उस दिन जून का तपता महिना, लू के थपेड़े अभी भी चल रहे थे....हालाँकि शाम के ६ बजने वाले थे. मेरी तबियत ठीक नहीं थी. शायद लू लग गयी थी. सोचा की कच्चे आम का पना (पना.....कच्चे आम भून कर बनाया जाने वाला शर्बत) पी लूँ तो मेरी तबियत ठीक हो जाएगी. यही सोच कर मै हर्षा की अमराई (आम का बगीचा) में कच्चे आम तोड़ने के इरादे से चला गया. चारों तरफ सन्नाटा था. माली भी कहीं नज़र नहीं आया. हर्षा के तीन बोलते ही सब लड़कियों ने अपनी अपनी चूत में ऊँगली करना शुरू कर दी. किसी ने एक ऊँगली डाल रखी थी किसी किसी ने दो. जिस पेड़ के पीछे मै छुपा हुआ था वहां से सिर्फ तीन लड़कियां ही मेरे सामने थीं. बाकी सब की नंगी कमर और हिप्स ही दिख रहे थे. हर्षा मेरे ठीक सामने थी. सुनयना ने वो हथियार अपनी चूत में दन्न से घुसेड लिया और उसे अन्दर बाहर करने लगी.... अगली सुबह मै जल्दी उठ गया और घूमने के बहाने हर्षा की अमराई में जा पहुंचा. मै झाड़ियों में डिल्डो की तलाश करने लगा...वो मुझे वैसा ही कपडे में लिपटा मिल गया. मैंने डिल्डो को कपडे से बाहर निकल कर देखा, बड़ा मस्त डिल्डो था...उस में से लड़कियों की चूत के रस की गंध अभी भी आ रही थी...मैंने उसे अपनी नाक से लगा कर एक गहरी सांस ली....और डिल्डो अपनी जेब में रख लिया. 'देखो, हर्षा मैं तुमसे इस बारे और बात करना चाहता हूँ.....तुम कल दोपहर को मुझे अपनी अमराई में मिलना' मैंने उससे कहा अगले दिन मै नहा धोकर तैयार हुआ, खूब रगड़ रगड़ के मल मल के नहाया और फिर अपने लण्ड पर चमेली के तेल की मालिश की, सुपाडे पर खूब सारा तेल चुपड़ लिया....आखिर हर्षा की चूत की सील तोड़ने जा रहा था मेरा छोटू. मैं हर्षा की अमराई में लगभग एक बजे ही पहुँच गया. चारों तरफ सुनसान था, चिलचिलाती धूप पड रही थी और गरम हवाएं चल रही थी. हर्षा सहमी सिकुड़ी सी मचान पर बैठ गयी. मै उसके पास में लेट गया और उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया. वो मेरे सीने से आ लगी. मैं धीरे धीरे उसके अंगों से खेलने लगा. वो हल्का फुल्का विरोध भी कर रही थी...उसके मुंह से ना नुकुर भी निकल रही थी, मैंने हर्षा की कुर्ती में हाथ डाल दिया और उसके दूध दबाने लगा. उसका निचला होठ अपने होठो में लेकर मैं उसकी निप्पलस चुटकी में भर कर धीरे धीरे मसलने लगा. धीरे धीरे हर्षा भी सुलगने लगी. आखिर जवान लड़की थी, मेरे हाथों का असर तो उस पर होना ही था. मैंने भी अपने सारे कपडे उतार दिए और हर्षा को जबरदस्ती सीधा करके मैं उसके नंगे बदन से लिपट गया. जवान कुंवारी अनछुई लड़की के बदन से जो मनभावन मादक गंध आती है....हर्षा के तन से भी उसकी हिलोरें उठ रही थी....मै हर्षा के पैरों को चूमने लगा...उसके पैरों की अँगुलियों को मैंने अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा. फिर मेरे होंठ उसकी टांगो को चूमते हुए उसकी जांघो को चूमने लगे. हर्षा की आँखों में वासना के गुलाबी डोरे तैरने लगे थे. उसकी कजरारी आँखे और भी नशीली हो चुकी थी. फिर मैं उठ कर बैठ गया और हर्षा को खींच कर मैंने उसका मुंह अपनी गोद में रख लिया. और मैं अपना लण्ड उसके गालों पर रगड़ने लगा... फिर मैंने हर्षा की खुली हुयी चूत के छेद से अपना सुपाडा सटा दिया और उसकी हथेलियाँ अपनी हथेलियों में फंसा कर धीरे धीरे अपना लण्ड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा. कुंवारी चूत के साथ थोड़ी मुश्किल तो होती ही है. मैंने अपने लण्ड को खूब सारा चमेली का तेल पिलाया था....और फिर हर्षा के चूसने के बाद मेरा लण्ड काफी चिकना हो चुका था. जैसा की आदि काल से होता आया है, कामदेव ने अपना रंग दिखाना शुरू किया तो हर्षा को भी मस्ती चड़ने लगी...उसके निप्पलस जो पहले किशमिश की तरह थे अब कड़क हो कर बेर की गुठली जैसे हो चुके थे. और उसका पूरा बदन कमान की तरह तन चुका था. अब हर्षा के हाथ भी मेरी पीठ पर फिसलने लगे थे. फिर मैं हर्षा के क्लायीटोरिस को अपनी झांटो से रगड़ रगड़ के उसकी चूत मारने लगा, उछल उछल कर उसकी चूत कुचलने लगा. (बनाने वाले ने भी क्या चीज बनाई है चूत भी...कितनी कोमल, कितनी नाजुक, कितनी लचीली, कितनी रसभरी लेकिन कितनी सहनशील...कठोर लण्ड का कठोर से कठोरतम प्रहार सहने में सक्षम...) |
हर्षा की चूत अब बहुत गीली हो रही थी और मेरा लण्ड अब बहुत आराम से अन्दर बाहर हो रहा था...
कुछ देर की चुदाई के बाद हर्षा का बदन ऐंठने लगा...उसने अपनी बाहें मेरी पीठ पर कस कर लपेट दी...मैं भी झड़ने के करीब था. फिर अचानक उसने अपनी टाँगे मेरी कमर में लपेट दी और मुझे कस कर भींच लिया...मैंने हर्षा के मुंह में अपनी जीभ डाल दी.. मेरे लण्ड से भी रस छूट गया. हर्षा भी झड चुकी थी.
कुछ देर बाद हर्षा का बदन ढीला पड गया....लेकिन मैं अपना लण्ड उसकी चूत में डाले हुए यू ही लेटा रहा...उसकी चूत में कम्पन से हो रहे थे...और वो हलके हलके फ़ैल-सिकुड़ रही थी.
हर्षा की चूत फ़ैल-सिकुड़ कर मेरे लण्ड से वीर्य की एक एक बूँद निचोड़ रही थी..और वो खुद मेरी जीभ चूस रही थी.
'अंकल जी....आपने मुझे लड़की से औरत बना ही दिया आखिर' हर्षा मेरा गाल चूमते हुए बोली
'हाँ, मेरी रानी...मैंने कुछ गलत तो नहीं किया ना ?' मैंने प्यार से उसका चुम्बन लेते हुआ पूछा
'नहीं अंकल, मै तो हमेशा से आपके बारे में यही सब सोचा करती थी' हर्षा मेरे सीने में अपना
मुंह छिपाते हुए बोली. मैंने भी उसे कस कर अपने से लिपटा लिया.
हर्षा के गोल गोल गुलाबी हिप्स बहुत ही सेक्सी और मनभावन थे....मैं हर्षा की गांड मारने का लोभ संवरण न कर सका. मैंने उसे वही मचान पर घोड़ी बना दिया...और उसके लाख मना करने पर भी उसकी गांड में भी लण्ड पेल ही दिया...वो बेचारी दर्द से बिलबिला उठी.
मैं उसके नीचे हाथ डाल कर, उसकी चुचिया पकड़ कर उसकी गांड में धक्के लगाने लगा...बीच बीच में मैंउसकी चूत में ऊँगली डाल कर उसकी गांड में धक्के मारता रहा. हर्षा की पीठ चूमते हुए...उसके सलोने हिप्स सहलाते हुए...उसकी कमर पकड़ कर उसकी गांड में धक्के लगाने का एक अलग ही आनंद था.
जब मैं झड़ने को हुआ तो मैंने हर्षा के बाल पकड़ कर खींच लिए...उसका चेहरा ऊपर उठ गया...और फिर मैं पूरी बेरहमी के साथ उसके गांड मारने लगा... फिर दो तीन मिनिट बाद में मैं उसकी गांड में ही झड गया.
शाम घिरने लगी थी. 'अंकल जी, अब जाने दो मुझे...बहुत देर हो गयी, पिताजी भी घर लौटने वाले होंगे' हर्षा बोली
'ठीक है जाओ' मैंने कहा...फिर हमने जल्दी जल्दी कपडे पहिन लिए. और हर्षा मचान से उतर कर अपने घर को चल दी.
मैं पीछे से उसे जाते हुए देखता रहा....अब हर्षा की चाल में वो पहले वाली बात न थी.
* * * * *
अचानक मेरी तन्द्रा भंग हुयी. पूरा सफ़र हर्षा की याद में कट गया था. मेरा स्टेशन आने ही वाला था..ट्रेन की रफ़्तार भी धीमी पड़ने लगी...ट्रेन रुकने पर मै उतर कर अपने घर चल दिया दो दिन बाद होली थी.
हर्षा की शादी पिछली मई में ही हो गयी थी....अभी उसकी शादी को पूरा एक साल भी नहीं हुआ था.
'कैसी लगती होगी अब वो?'...पता नहीं कितने तरह के सवाल मेरे दिमाग में आते जाते रहे.
अब तो शायद माँ भी बन चुकी होगी....या गर्भवती होगी...अगर ऐसा हुआ तो मैं कैसे ले पाऊंगा उसकी...???
मजबूरियां थी.
हर्षा के घर की ओर चलते चलते वो उसकी अमराई भी रास्ते में आई...फागुन का महिना था....आम के पेड़ों पर बौर छाया हुआ था. टेसू के फूल पेड़ों पर लदे हुए थे... सब कुछ जैसे मेरी आँखों के सामने सजीव हो उठा...वो मचान...मेरी बाँहों में मचलती उसकी नंगी जवानी...उसका प्यार दुलार...अचानक मेरी आँखों में नमीं सी आ गयी. सेक्स तो जिंदगी में कईयों के साथ किया था लेकिन ऐसी तड़प किसी के लिए कभी ना उठी थी मेरे दिल में.
हर्षा की हवेली का द्वार सदा की तरह खुला हुआ था. हर्षा की माँ ने मुझे आते देखा तो अपना पल्लू अपने सर पे ले के बोली. ' आओ भाई साहब....कैसे हो आप....आओ बैठो'
(मैं हर्षा की माँ को भाभी जी कह कर बोलता था और वो मुझे हमेशा भाई साहब ही कहतीं थीं)
'ठीक हूँ भाभी...मैं बैठते हुए बोला....क्या हाल चाल है...आप सुनाओ. और वो मेरा यार मेघ सिंह कहाँ है...जरा बुलाओ तो सही उसे, कब से नहीं मिला मै उससे'
'भाई साब वो तो कहीं गए हैं...कह रहे थे की रात को देर से आऊंगा. आप कल मिल लेना उनसे' भाभी जीबोलीं.
'ठीक है भाभी...अब मैं चलता हूँ...कल फिर आऊंगा' मैं उठते हुए बोला
'हाय राम!! भाई साब....मेरे कहने का ये मतलब नहीं की आप चले जाओ...आग लगे मेरे मुंह को. इतने दिनों बाद आये हो. त्यौहार का मौका है...कुछ चाय नाश्ता करके जाना.'
भाभी जी ने इतना कह के जोर से आवाज लगाई ...
'अरी ओ हर्षा.....कहाँ है तू. देख तो कौन आया है. जल्दी आ'
मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा.
'आई माँ'' ... तभी मेरे कानों में हर्षा की खनकती आवाज पड़ी, फिर वो मेरे सामने थी.
मैंने उसे देखा, उसने मुझे देखा. मुझे देख कर वो थम सी गयी. एक नज़र में उसने जैसे मुझे सर से पाँव तक पढ़ लिया, हर्षा के होठों पर वो चिरपरिचित मोहक मुस्कान खिली और फिर उसने अपनी नज़रें झुका दी और मेरे सामने आके बैठ गयी.
शादी के बाद वो और भी खिली खिली सी लग रही थी. उसका शरीर थोडा सा भर गया था, जैसा की लगभग सभी लड़कियों के साथ होता है.
साड़ी ब्लाउज में मैंने उसे पहली बार देखा. मांग में सिन्दूर, माथे पे सुहाग का लाल टीका....तरह तरह के गहने...पाँव में सोने की पायल और बिछिया. उसके साथ अपनी पिछली यादें याद करके मुझे अपने आप पर फख्र सा हुआ.
'कैसी हो बिटिया रानी*, ससुराल में सब लोग ठीक से तो हैं ना' मैंने बात शुरू की.
'अंकल जी, सब ठीक है...' वो धीरे से बोली.
'अरे, हर्षा...अंकल जी के लिए कुछ नाश्ता ला ना....बातें फिर कर लेना' भाभी बोलीं
हर्षा उठ कर अन्दर चली गयी और कुछ देर बाद tray में ढेर सारा नाश्ता रख लायी....
जैसा की होली पर बनता है...गुजियाँ, रसगुल्ले, मठरी, दही बड़े....और ना जाने क्या क्या...और फिर उसने सारी प्लेटें मेरे सामने मेज पर सजा दीं. और बैठ गयी.
*बिटिया रानी
(हर्षा को मैं उसके घर में सबके सामने "बिटिया रानी" कह कर ही बुलाता था)
'अंकल जी, रुक क्यों गए....और खाओ ना....क्या अच्छा नहीं लगा मेरे हाथ से बनाया हुआ ?' हर्षा ने पूछा
'अरी बिटिया रानी ....तेरे हाथों में तो सच में जादू है...मेरा पेट तो भर गया लेकिन नियत नहीं भरी अभी तक...तूने सब कुछ बहुत ही स्वादिष्ट बनाया है' मैंने दिल से कहा.
'भाई साब...अब आप हर्षा से बातें करो, शाम हो गयी है मुझे तो मंदिर जाना है. मैं तैयार होकर आतीं हूँ.' भाभी बोलीं और उठ कर अन्दर चली गयीं. फिर मैं और हर्षा यहाँ वहां की हलकी फुलकी बातें करने लगे.
कुछ देर बाद हर्षा की माँ मंदिर जाने के लिए तैयार हो कर बाहर आयीं; उनके साथ में एक लड़की और थी.
मैंने इस लड़की को पहली बार हर्षा के घर में देखा. उम्र कोई सोलह या सत्रह की रही होगी. देखने में कुछ मॉडर्न लगी...जींस टाप पहिन रखा था उसने. rugged जींस और सफ़ेद टॉप में वो बहुत ही आकर्षक लग रही थी. उसके कसे हुए वक्षस्थल पर मेरी नजर ठहर सी गयी....शायद 32D ..मैंने मन ही मन अंदाज़ लगाया. मेरी नज़रें उस क़यामत का जायजा लेती हुईं उसकी जींस पर उसकी जांघो के बीच ठहर गयीं....उसकी जांघो के बीच का उभार साफ़ नुमायाँ हो रहा था. ..
'भाई साब, ये है लाली....हर्षा की ननद, पहली बार यहाँ आई है होली पर. इस साल हाई स्कूल पास किया है इसने अब इंटर में जायेगी' भाभी जी ने उस लड़की के बारे में मुझे बताया.
अब मैं और हर्षा घर में अकेले थे.
'हर्षा, मेरे पास आके बैठो ना'
'जी, अंकल जी' वो बोली और मेरे पास आके बैठ गयी. मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसकी चूड़ियों से खेलने लगा.
'हर्षा, तुम्हारी याद बहुत आती है मुझे....वो पल छिन जो हमने साथ बिताये..वो तुम्हारा प्यार....कभी कभी तुम्हारा रूठ जाना और मेरा मनाना..मुझे दिन रात चैन नहीं लेने देता' मैं भावुक होकर बोला और उसे खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया. हर्षा के दूध मेरे सीने से आ सटे. उसका निचला होंठ मैंने अपने होठों में दबा लिया और अपनी बाँहों का घेरा और कस दिया.
हर्षा की साँसों की महक मेरी साँसों में घुलमिल रही थी....मैंने हर्षा के ब्लाउज में हाथ डाल दिया.
हर्षा ने ब्रा नहीं पहिन रखी थी...
मैंने उसके गालों का रस लेता हुआ उसके भरपूर उरोजों से खेलने लगा...साथ ही साथ उसके गले को चूमने लगा...हर्षा की साँसे भारी होती जा रहीं थी. फिर मैंने उसकी साड़ी उसकी जांघो तक सरका दी और उसकी चिकनी जांघे सहलाने लगा...
तभी....वो मुझसे छिटक कर दूर हुई...
'अंकल जी, मै अब एक शादीशुदा औरत हूँ' अब नहीं.' हर्षा बोली
'मेरी जान...आज तुम इतने सालों बाद मिली हो...मत रोको मुझे, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा' मैंने कहा और अपना हाथ उसकी जांघो के जोड़ तक घुसा दिया.
हर्षा ने चड्ढी भी नहीं पहिन रखी थी.
उसकी चूत मेरी मुट्ठी में आ गयी. उसकी नरम गरम चूत पर मेरा हाथ लगते ही उसका विरोध हल्का पड़ने लगा और उसकी टाँगे खुद ब खुद फ़ैल गयीं. फिर मैंने उसकी नरम गरम चूत अपनी मुट्ठी में भर ली और मसलने लगा.
मैंने फिर हर्षा के ब्लाउज के हूक्स खोल दिए और उसके दोनों नंगे दूध पकड़ कर दबाने लगा...उसका एक दूध अपने मुह में भर कर चूसने लगा और दूसरे दूध की निप्पल अपनी चुटकी में भर कर धीरे धीरे मसलने लगा.
'आह अंकल...ईईईस...मत करो ना' हर्षा थरथराती आवाज में बोली. फिर मैंने उसका ब्लाउज उतार दिया और उसकी साडी खींच कर एक तरफ फेंक दी और उसके पेटीकोट का नाडा खोल कर उसका पेटीकोट भी उतर डाला. चड्ढी तो उसने पहिन नहीं रखी थी. अब हर्षा पूरी नंगी थी.
मैंने अपने कपडे भी उतारे और हर्षा को लेकर बगल वाले कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया.
हर्षा भी अब अधीर होने लगी थी. उसके निप्पलस कड़क हो चले थे और उसका clitoris भी अपने शवाब पे आ चुका था...उसकी चूत में से रस की नदिया सी बह निकली थी.
हर्षा अब मुझे चोदने के लिए उकसा रही थी. वो बार बार मुझे चूम चूम कर मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी चूत में रगड़ रही थी. लेकिन मुझे उसे सताने में मजा आ रहा था और मैं अपना लण्ड उसकी चूत में घुसने ही नहीं दे रहा था.
हर्षा ने फिर बहुत ही बेकरार हो कर.. अपना एक पैर मोड़ लिया और अपनी कमर को थोडा सा उठा कर मेरा सुपाडा जबरदस्ती अपनी चूत में घुसा लिया. और मेरा पूरा लण्ड अपनी चूत में लेने का प्रयास करने लगी....सिर्फ मेरा सुपाडा उसकी चूत के भीतर था.
'अंकल जी, मेरा राज्जा .. अब और मत तडपाओ मेरी चूत को....मैं पागल हो जाउंगी...आह...आप मारो ना मेरी चूत....क्यों इतना तरसा रहे हो अपनी हर्षा को....' हर्षा बोली. वो सचमुच अत्यधिक उत्तेजना में आ चुकी थी. उसकी चूत से लगातार पानी बह रहा था.
'मेरे राज्जा... मम्मी मंदिर से आने वाली होंगी.....' हर्षा कुछ घबराहट भरे स्वर में बोली
मैं भी चौंका...समय कम था.
ठीक है हर्षा...तो फिर जल्दी से तुम doggy स्टाइल में हो जाओ....
हर्षा झट से उठी और पलंग पर घोड़ी बन गयी. मैंने अपना लण्ड उसकी रिसती हुई बुर से सटा दिया फिर उसकी गोरी गोरी पीठ को चूम कर उसके गोल मटोल हिप्स सहला कर एक झटके में अपना लण्ड उसकी चूत को पहना दिया.
फिर मैंने हर्षा को मजे देने में कोई कसर ना छोड़ी. उसकी चूत में आड़े, तिरछे, सीधे, गहरे शोट्स लगाता हुआ मैं उसे चोदने लगा.
अचानक मुझे कुछ नया सूझा.
' कैसे करूँ...मेरे राज्जा...मैं नहीं जानती' वो बोली
'अरे जैसे किसी चीज को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दबाते हैं....वैसे ही तुम अपनी चूत से मेरा लण्ड दबाओ...अपनी चूत की muscles को अन्दर की ओर सिकोडो...' मैंने उसे समझाया
'अंकल; ऐसे ?' हर्षा अपनी चूत भीतर की तरफ सिकोड़ती हुयी बोली. अब उसकी चूत ने मेरा लण्ड ठीक से कस लिया था.
'हर्षा...मेरी रानी.....बिलकुल ठीक. ऐसे ही..'
'हर्षा, अब मैं धक्के नहीं लगाऊंगा. मैं स्थिर रहूँगा. तुम अपनी कमर को आगे पीछे कर के मेरा लण्ड अपनी चूत में अन्दर बाहर करो....और हाँ....अपनी चूत को यूँ ही भींच के रखना....सिकोड़े रखना.' मैंने उसे एक नई सीख दी.
'और हाँ...कुछ इस तरह से अपनी कमर को चलाओ की मेरा लण्ड पूरी तरह से अन्दर बाहर हो....जब तुम अपनी कमर को आगे ले जाओ तो मेरा पूरा लण्ड तुम्हारी चूत से बाहर निकल जाए...सिर्फ सुपाडा चूत में रहे...और जब तुम अपनी कमर को वापस लाओ तो मेरा लण्ड फिर से तुम्हारी चूत में समां जाये...' मैंने हर्षा को आगे समझाया
'समझ गयी मेरे राज्जा...समझ गयी'
'ये लो मेरे प्यारे राज्जा...वो बोली और अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी; उसने अपनी चूत कस करसिकोड़ रखी थी. और मेरा लण्ड अन्दर बाहर कर रही थी.
धीरे धीरे वो अपनी स्पीड बढाती चली गयी....मैं हर्षा से जैसा सुख चाहता था...वो मुझे दे रही थी. मैं अपना लण्ड उसके हिप्स के बीच में....उसकी चूत में आते-जाते मजे से देख रहा था.
'ऊ माँ....हाय.......ऐसा मजा तो आज तक नहीं मिला मुझे' हर्षा अपनी कमर चलाते हुए कामुक आवाज में बोल उठी. कुछ देर तक वो यु ही ....मेरे लण्ड के मजे लेती रही....फिर
'अंकल जी..मेरे राज्जा.....बस...मेरा तो होने ही वाला है....अब आप धक्के लगाओ...'
फिर मैंने चुदाई की कमान मैंने संभाल ली. और हर्षा के नीचे हाथ डाल कर उसके दोनों दुद्धू पकड़ कर मै मजे से उसकी चूत लेने लगा.
हम दोनों झड़ने के बाद निढाल हो कर एक दूजे की बाँहों में नंगे ही पड़े थे. मेरा लण्ड अभी भी हर्षा की चूत में फंसा हुआ था.
'मेरे राज्जा अंकल.. ऐसा मजा मुझे आज तक नहीं मिला...कहाँ थे आप अब तक' हर्षा मेरे बालों में अपनी अंगुलियाँ फिराती हुयी बोली. मैंने उसे प्यार से चूम लिया. मैं बोला कुछ नहीं.
'अंकल, एक बात बताओ. लाली कैसी लगी आपको' हर्षा ने अचानक पूछा
'लाली...कौन लाली' मैंने बनते हुए कहा
'अच्छा जी, अभी घंटे भर पहले की बात आप भूल गए...लाली...मेरी ननद लाली....आप तो उसे बड़ी गहरी नज़रों से ताक रहे थे उसे' हर्षा ने मुझे उलाहना दिया
'और आप आँखों ही आँखों में उसके बदन का नाप भी ले रहे थे...मैं देख रही थी की आपकी नज़रें क्या क्या टटोल रहीं थी लाली का' हर्षा मेरे गाल पे चिकोटी लेती हुयी बोली.
'अच्छा वो...लाली. अच्छी लड़की है...गुडिया की तरह प्यारी सी' मैंने भोलेपन से कहा
'अंकल जी...गुडिया से खेलोगे ?' हर्षा मेरे कानों में धीमे से फुसफुसाई और उसने मेरा लण्ड अपने हाथ में ले कर धीरे से दबाया.
'क्या...हर्षा..तुम ये क्या कह रही हो, वो तुम्हारी ननद है, इस घर की मेहमान है' मैंने आश्चर्य चकित होकर पूछा
'अंकल जी, लाली बहुत ही सेक्सी लड़की है. जब मैं अपने पति के साथ सेक्स करती हूँ तो लाली हमें किवाड़ की झिरी से झांक कर देखती है. वो कई बार हमारी चुदाई देख चुकी है. और हमें चुदाई करते देख देख कर वो भी अपनी चूत में ऊँगली चलाती है' हर्षा कुछ परेशान सी होकर बोली.
'लेकिन तुम्हे ये सब बातें कैसे पता' मैंने पूछा
'अंकल, मुझे कई बार शक हुआ की कोई हमें छिप कर देख रहा है....फिर मैंने एक बार चालाकी से लाली को रंगे हाथों पकड़ लिया था.
Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | सेक्सी कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना | कामसुत्रा | मराठी जोक्स | सेक्सी कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी सेक्स कहानियाँ | मराठी सेक्स | vasna ki kamuk kahaniyan | kamuk-kahaniyan.blogspot.com | सेक्स कथा | सेक्सी जोक्स | सेक्सी चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी सेक्सी कहानी | पेलता | सेक्सी कहानियाँ | सच | सेक्स कहानी | हिन्दी सेक्स स्टोरी | bhikaran ki chudai | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | चूत की कहानियाँ | मराठी सेक्स कथा | बकरी की चुदाई | adult kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | sexi kutiya | आँटी की चुदाई | एक सेक्सी कहानी | चुदाई जोक्स | मस्त राम | चुदाई की कहानियाँ | chehre ki dekhbhal | chudai | pehli bar chut merane ke khaniya hindi mein | चुटकले चुदाई के | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | चूत मारो | मराठी रसभरी कथा | कहानियाँ sex ki | ढीली पड़ गयी | सेक्सी चुची | सेक्सी स्टोरीज | सेक्सीकहानी | गंदी कहानी | मराठी सेक्सी कथा | सेक्सी शायरी | हिंदी sexi कहानिया | चुदाइ की कहानी | lagwana hai | payal ne apni choot | haweli | ritu ki cudai hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | sexi haveli ka sach | sexyhaveli ka such | vasana ki kaumuk | www. भिगा बदन सेक्स.com | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कहानियाँ | chudai | कामरस कहानी | कामसुत्रा ki kahiniya | चुदाइ का तरीका | चुदाई मराठी | देशी लण्ड | निशा की बूब्स | पूजा की चुदाइ | हिंदी chudai कहानियाँ | हिंदी सेक्स स्टोरी | हिंदी सेक्स स्टोरी | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bhabhi ki chudai | chachi ki chudai | mami ki chudai | bahan ki chudai | bharat | india | japan |
No comments:
Post a Comment