Friday, February 1, 2013

vasana- हर्षा, लाली और होली

 

sexi stori


हर्षा, लाली और होली

होली पर पिछले तीन साल से घर नहीं जा पाया था. उस बार माँ का फ़ोन आ ही गया. कह रही थी 'सुरेश बेटा इस होली पर जरूर आ जाना. और हाँ वो अपनी हर्षा भी आई हुयी है, तुझे पूछ रही थी'

हर्षा का नाम सुनते ही मेरे तन बदन में एक मादक तरंग दौड़ गयी. मैंने तुरंत फैसला किया की इस बार होली पर जरूर घर जाऊंगा.
'
ठीक है माँ, मै कोशिश करता हूँ, अगर दफ्तर से छुट्टी मिल गयी तो जरूर आऊंगा' मैंने माँ से फ़ोन पर कह दिया.

होली को अभी पूरा एक हफ्ता बाकी था....मै स्टेशन पर ट्रेन का इन्तजार कर रहा था. मन में हर्षा उमड़ घुमड़ रही थी. तभी ट्रेन आने का अनाउंसमेंट हुआ, ट्रेन के आते ही मै अपनी कोच में अपनी बर्थ पर जा के बैठ गया. ट्रेन चल पड़ी और मै फिर से हर्षा के ख्यालों में खो गया

हर्षा, मेरे अज़ीज़ दोस्त मेघ सिंह ठाकुर की बेटी हर्षा.

मेघ सिंह ठाकुर हमारे गाँव के जमींदार थे. खूब बड़ी हवेली, सैकड़ों एकड़ जमीन जिस पर खेती होती थी. बाग़ बगीचे; सब कुछ. मेघ सिंह से मेरी पुरानी यारी थी. हम लोग शाम को अक्सर एक साथ बैठते कुछ पीने पिलाने का दौर चलता, हसी मजाक होती, कहकहे लगते. ना जाने कितनी हसीनाओं का मान मर्दन हम दोनों ने मिल कर किया था....अब तो वो सब बातें इक ख्वाब सी लगती हैं.

बात हर्षा की है, उस दिन से पहले मेरे मन में हर्षा के प्रति ऐसा वैसा कुछ भी नहीं था....मैंने उसे उस नज़र से कभी देखा भी नहीं था.
हर्षा ने इंटर पास करने के बाद पास के शहर में बी काम में दाखिला ले लिया था. उन दिनों वो गर्मिओं की छुट्टी में आई हुयी थी.

उस दिन जून का तपता महिना, लू के थपेड़े अभी भी चल रहे थे....हालाँकि शाम के ६ बजने वाले थे. मेरी तबियत ठीक नहीं थी. शायद लू लग गयी थी. सोचा की कच्चे आम का पना (पना.....कच्चे आम भून कर बनाया जाने वाला शर्बत) पी लूँ तो मेरी तबियत ठीक हो जाएगी. यही सोच कर मै हर्षा की अमराई (आम का बगीचा) में कच्चे आम तोड़ने के इरादे से चला गया. चारों तरफ सन्नाटा था. माली भी कहीं नज़र नहीं आया.

मन ही मन सोच रहा था की अब मुझे ही पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ने पड़ेंगे.

तभी मुझे कुछ लड़कियों के हंसने खिलखिलाने के आवाजें सुनाई दी. 'हर्षा, तुम देखो ना मेरी चूत को....तुमसे बड़ी है, और गहरी भी' कोई लड़की कह रही थी.

'हाँ हाँ...मुझे पता है तू अपने जीजाजी से चुदवाती है...तभी तो तेरी चूत ऐसी भोसड़ा बन गयी है' किसी दूसरी लड़की की आवाज आई. 'ऐ कमली, अब तू रहने दे..मेरा मुहं ना खुलवा. मुझे पता है तुम अपने चाचू का लण्ड चूसती हो और अपनी बुर में लेती हो' वो लड़की बोल उठी.

'देखो, तुम लोग झगडा मत करो, "चूत-चूत" खेलना हो तो बोलो वर्ना मै तो घर जा रही हूँ' हर्षा बोल रही थी.

मेरे कदम जहाँ के तहां ठहर गए....मै दबे पांव उस तरफ चल दिया जहाँ से आवाजें आ रहीं थी. पेड़ों की ओट में छुपता हुआ मै आगे बड़ने लगा...फिर जो देखा, उसे देख कर मेरा गला सूख गया. मेरी साँसे थम गयीं. दिल की धड़कन तेज हो गयी.

हर्षा और उसकी सात आठ सहेलियां एक गोल घेरा बना के बैठी थी. सब लड़कियों ने अपनी अपनी सलवार और चड्डी उतार रखी थी और अपनी अपनी टाँगे फैला के अपनी अपनी चूत अपने हाथो से खोल रखी थी. और आपस में बतिया रहीं थी.

'सरस्वती, अब तू ही समझा इस पुष्पा को...ये तो आज "चूत-चूत" खेलने नहीं झगडा करने आई लगती है' कमली बोल पड़ी

सभी लड़कियों को मैं जनता पहचानता था. सरस्वती उम्र में सबसे बड़ी थी, उसने भी अपनी चूत दोनों हाथों से खोल रखी थी. कमली की बात सुन कर उसने अपना एक हाथ चूत पर से हटाया और सबको समझाने के अंदाज़ में बोली 'देखो तुम लोग लड़ो मत, हम लोग यहाँ खेलने आयीं हैं झगड़ने नहीं...समझीं सब की सब'

तभी हर्षा बोल पड़ी 'तो अब खेल शुरू, मै तीन तक गिनुंगी फिर खेल शुरू और अब कोई झगडा नहीं करेगा....एक दो तीन'

हर्षा के तीन बोलते ही सब लड़कियों ने अपनी अपनी चूत में ऊँगली करना शुरू कर दी. किसी ने एक ऊँगली डाल रखी थी किसी किसी ने दो. जिस पेड़ के पीछे मै छुपा हुआ था वहां से सिर्फ तीन लड़कियां ही मेरे सामने थीं. बाकी सब की नंगी कमर और हिप्स ही दिख रहे थे. हर्षा मेरे ठीक सामने थी.

हर्षा, मेरे खास मित्र की बेटी...जिसे मैं आज तक एक भोली भाली मासूम नादान लड़की समझता आया था उसका कामुक रूप मेरे सामने था. वो भी अपनी चूत की दरार में अपनी ऊँगली चला रही थी. हर्षा की गोरी गोरी पुष्ट जांघो के बीच में उसकी चूत पाव रोटी की तरह फूली हुयी दिख रही थी. उसकी चूत पे हलकी हलकी मुलायम रेशमी झांटे थी...तभी...सुनयना बोल पड़ी...

', शबनम तेरा हाथ बहुत धीरे चल रहा है....जरा जाके अपना हथियार तो उठा ला' सुनयना बोली

यह सुन कर शबनम उठी और पास की झाड़ियों में से कुछ उठा लायी. मै उत्सुकता से देख रहा था....शबनम के हाथ में लाल कपडे में लिपटा हुआ लम्बा सा कुछ था. वो उसने लाकर सुनयना को दे दिया. सुनयना ने उस हथियार के ऊपर से कपडा हटाया...वो हथियार एक लकड़ी का बना हुआ डिल्डो, (कृत्रिम लण्ड) था....लगभग बारह अंगुल लम्बा और तीन अंगुल मोटा...एकदम चिकना...कांच की तरह.

सुनयना ने वो हथियार अपनी चूत में दन्न से घुसेड लिया और उसे अन्दर बाहर करने लगी....

मुझे भी दो. मुझे भी दो...सब लड़कियां कह रही थी...फिर सुनयना ने वो डिल्डो अपनी चूत से बाहर निकाल कर हवा में उछाल दिया...कई लड़कियों ने केच करने की कोशिश की. लेकिन बाजी शबनम के हाथ लगी. शबनम उस डिल्डो को अपनी चूत में सरका कर मजे लेने लगी.

उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़ मेरी कनपटियाँ गरम होने लगी थी...मेरा गला सूख चुका था...जैसे तैसे मैंने थूक निगला...जिन लड़कियों को मै आज तक सीधी सादी भोली भाली समझता आया था...उनका असली रूप मेरे सामने था.

'हर्षा, तू भी ले ना इसे अपनी बुर में...बहुत मज़ा आता है' शबनम बोली

'ना, बाबा...ना. मुझे तो इसे देख कर ही डर लगता है...मै तो शादी के बाद ही असली चीज लुंगी अपने भीतर' हर्षा बोली

सब लड़कियां बारी बारी से उस डिल्डो को अपनी चूत में चलाती रही...सिर्फ हर्षा ने वो डिल्डो अपनी चूत में नहीं घुसाया. जब लडकियों की मस्ती पूरे शवाब पे आई तो वो एक दुसरे के ऊपर लेट के चूत से चूत रगड़ने लगीं....ये खेल लगभग पंद्रह बीस मिनिट तक चला...जब सब की सब झड गयीं तो सबने अपनी अपनी चड्डी और सलवार पहिन ली.

अच्छा सखियों, आज का अपना खेल ख़तम...कल फिर हम लोग चूत-चूत खेलेंगी....हर्षा बोल पड़ी

सब लड़कियों के जाने के बाद मै भी दबे पांव अपने घर को चल दिया उस रात. नींद मेरी आँखों से कोंसों दूर थी. रह रह कर "चूत-चूत" का खेल मेरे दिमाग में चल रहा था. जिसकी कभी कल्पना भी ना की थी उसे प्रत्यक्ष देख चुका था. हर्षा की भरी भरी चूत मेरी आँखों में नाच रही थी. उसकी गुलाबी सलवार उसके पांव के पास पड़ी थी, और उसने अपनी धानी रंग की कुर्ती अपनी कमर के ऊपर तक समेट ली थी...उसकी चुचियों पे मैंने ज्यादा गौर नहीं किया था...लेकिन हर्षा की कुर्ती काफी ऊंची उठी हुयी दिख रही थी...

तभी मेरे लण्ड ने खड़े होकर हुंकार सी भरी...और मेरे पेट से सट गया....जैसे मुझे उलाहना दे रहा था.....

मैंने अपने लण्ड को प्यार से थपथपाया....'सब्र करो छोटू...बहुत जल्दी तुम हर्षा की चूत की सैर करोगे'

लेकिन कैसे....? ये सवाल मेरे सामने मुह बाए खड़ा था. हर्षा...जो मेरे सामने पैदा हुई थी...मेरी गोद में नंगी खेली थी...मेरे खास दोस्त की बिटिया...मैंने कभी आज तक उसके बारे में ऐसा सोचा भी नहीं था....लेकिन आज जो खेल उसकी अमराई में देखा...हर्षा ने अपनी चूत अपने हाथों से खोल रखी थी...उसकी चूत के भीतर वो तरबूज जैसा लाल और भीगा भीगा सा द्वार. वो उसकी छोटी अंगुली की पोर जैसा उसकी चूत का दाना (Clit)

अनचाहे ही मै हर्षा की चूत का स्मरण करता हुआ मुठ मारने लगा. मेरे लण्ड से जब लावा निकल गया तब कुछ चैन मिला.

अब मेरा मन...हर्षा की रियल चुदाई करने के ताने बाने बुनने लगा..

अगली सुबह मै जल्दी उठ गया और घूमने के बहाने हर्षा की अमराई में जा पहुंचा. मै झाड़ियों में डिल्डो की तलाश करने लगा...वो मुझे वैसा ही कपडे में लिपटा मिल गया. मैंने डिल्डो को कपडे से बाहर निकल कर देखा, बड़ा मस्त डिल्डो था...उस में से लड़कियों की चूत के रस की गंध अभी भी आ रही थी...मैंने उसे अपनी नाक से लगा कर एक गहरी सांस ली....और डिल्डो अपनी जेब में रख लिया.

इतना तो मै समझ ही गया था की हर्षा एक सेक्सी लड़की है और लण्ड लेने की चाहत उसे भी होगी. आखिर अब वो भरपूर जवान हो चुकी थी. मुझे अपनी राह आसान नज़र आने लगी.
मैंने कुछ कुछ सोच लिया था की मुझे क्या करना है. उसी दिन मैं हर्षा के घर जा पहुंचा, इत्तफाक से हर्षा से अकेले में बात करने का मौका मिल ही गया...

'हर्षा, कैसी हो तुम...तुम्हारी पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है' मैंने पूछा

'ठीक चल रही है अंकल जी, मै दिन भर मन लगा के पड़ती हूँ' हर्षा बोली

'ठीक है हर्षा, खूब मन लगा के पढो तुम्हे ज़िन्दगी में बहुत आगे बढ़ना है' मैंने कहा

'जी अंकल' वो बोली

'वैसे हर्षा, कल मैंने तुम्हे तुम्हारी अमराई में सहेलियों के साथ पढ़ते देखा था' मैंने कह दिया
यह सुन कर हर्षा सकपका गयी और उसका चेहरा फक पढ़ गया. उसके मुंह से बोल ना फूटा. फिर मैंने वो डिल्डो निकाल कर हर्षा को दिखाया...
'ये तुम्हारा ही है ना?' मैंने पूछा
'अंकल जी, वो वो.....' इसके आगे हर्षा कुछ ना बोल सकी
'हर्षा, ये आदतें अच्छी नहीं...मुझे तुम्हारे पिताजी से बात करनी पड़ेगी इस बारे में' मैंने कहा

'नहीं अंकल जी, आप पिताजी से कुछ मत कहना इस बारे में...मैं आपके पांव पड़ती हूँ' वो बोली

'हर्षा, तुम उन गन्दी लड़कियों के साथ ये सब गंदे गंदे काम करती हो...मुझे तुम्हारे पिताजी को ये सब बताना ही पड़ेगा' मैंने अपनी बात पर जोर देकर कहा.

'नहीं, अंकल जी, प्लीज....आप पिताजी से कुछ मत कहना...अब मैं कभी भी वैसा नहीं करुँगी' हर्षा रुआंसे स्वर में बोली और मेरे पैरों पर झुक गयी...मेरा तीर एकदम सही जगह लगा था..

'देखो, हर्षा मैं तुमसे इस बारे और बात करना चाहता हूँ.....तुम कल दोपहर को मुझे अपनी अमराई में मिलना' मैंने उससे कहा

'अंकल जी, अब क्या बात करनी है आपको...' वो बोली

'हर्षा, तुम कल मुझे वही पे मिलना....अब तुम छोटी बच्ची तो हो नहीं.....अपने आप समझ जाओ' मैंने उसकी आँखों में आँखे डाल कर कहा..

कुछ देर वो चुप रही.....फिर धीरे से बोली...'ठीक है अंकल जी, मै कल दोपहर को आ जाउंगी वही पर, लेकिन आप पिता जी से कुछ मत कहना'
'ठीक है, नहीं कहूँगा....लेकिन तुम समझ गयीं ना मेरी बात को ठीक से' ?

'जी, अंकल....मै तैयार हू' वो बड़ी मुश्किल से बोली...यह सुन कर मैंने हर्षा को अपनी बहो में भर लिया और उसका गाल चूम लिया. वो थोड़ी कसमसाई लेकिन कुछ नहीं बोली फिर मैंने धीरे से उसकी चुचिओं पर हाथ फिराया और उसकी जांघो के बीच में हाथ ले जाकर उसकी चूत अपनी मुट्ठी में भर ली...हर्षा के मुह से एक सिसकारी निकली
'हर्षा...अपनी इसे भी चिकनी कर के आना' मै उसकी चूत पर हाथ फिरते हुए बोला. हर्षा ने अपना सर झुका लिया, बोली कुछ नहीं.
मै फिर अपने घर लौट आया....अब मुझे कल का इंतज़ार था.

अगले दिन मै नहा धोकर तैयार हुआ, खूब रगड़ रगड़ के मल मल के नहाया और फिर अपने लण्ड पर चमेली के तेल की मालिश की, सुपाडे पर खूब सारा तेल चुपड़ लिया....आखिर हर्षा की चूत की सील तोड़ने जा रहा था मेरा छोटू. मैं हर्षा की अमराई में लगभग एक बजे ही पहुँच गया. चारों तरफ सुनसान था, चिलचिलाती धूप पड रही थी और गरम हवाएं चल रही थी.

करीब आधे घंटे बाद मुझे हर्षा आती दिखाई दी, उसने अपने सर पर दुपट्टा ढँक रखा था, गुलाबी रंग के सलवार सूट में ताजा खिला गुलाब सी लग रही थी. 'आओ हर्षा...तुमने तो मुझे बहुत इंतजार करवाया, मैं कब से यहाँ अकेला बैठा हू' मैंने कहा.

'अंकल जी, वो तैयार होने में देर लग गयी' वो धीरे से बोली. हर्षा की कातिल जवानी गजब ढहा रही थी, खूब सज संवर के आई थी वो.
मैंने उसे अपनी बाँहों में खींच लिया, उसकी कड़क कठोर चूचिया मेरे सीने से आ लगीं, उसके तन की तपिश मुझे दीवाना बनाने लगी.

'अंकल जी, कोई देख लेगा' वो बोली और मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी. 'अरे, यहाँ तो कोई भी नहीं है...तुम बेकार डर रही हो' मैंने उसे समझाया

'नहीं, अंकल यहाँ नहीं....हम लोग मचान पर चलते हैं. वहां हमें कोई डर नहीं रहेगा' हर्षा बोली. 'ठीक है चलो' मैंने कहा मचान का नाम सुन कर मै भी खुश हो गया. वहीँ पास में एक आम के पेड़ पर मचान बनी थी....मैंने हर्षा को सहारा देकर ऊपर मचान पर चडा दिया और फिर मैं भी ऊपर चढ़ गया. अब हमें देखने वाला कोई नहीं था....

मचान पर नर्म नर्म पुआल बिछी थी, जिस पेड़ पर मचान बनी थी उसमे ढेर सारे बड़े बड़े आम लटक रहे थे....इक्का दुक्का तोते आमों को कुतर रहे थे.

हर्षा सहमी सिकुड़ी सी मचान पर बैठ गयी. मै उसके पास में लेट गया और उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया. वो मेरे सीने से आ लगी. मैं धीरे धीरे उसके अंगों से खेलने लगा. वो हल्का फुल्का विरोध भी कर रही थी...उसके मुंह से ना नुकुर भी निकल रही थी, मैंने हर्षा की कुर्ती में हाथ डाल दिया और उसके दूध दबाने लगा. उसका निचला होठ अपने होठो में लेकर मैं उसकी निप्पलस चुटकी में भर कर धीरे धीरे मसलने लगा. धीरे धीरे हर्षा भी सुलगने लगी. आखिर जवान लड़की थी, मेरे हाथों का असर तो उस पर होना ही था.

फिर मैंने उसकी सलवार का नाडा पकड़ कर खींच दिया....और उसकी चड्ढी में हाथ डाल दिया. हर्षा को मानो करेंट सा लगा....उसका सारा बदन सिहर उठा....हर्षा की चिकनी चूत मेरी मुट्ठी में थी. वो सच में अपनी चूत को शेव कर के आई थी. मैंने खुश होकर हर्षा को प्यार से चूम लिया..और उसकी चूत से खेलने लगा.

हर्षा का विरोध अब ख़तम हो चुका था और वो भी मेरे साथ रस लेने लगी थी. फिर मैंने उसकी सलवार निकाल दी...और जब चड्ढी उतारने लगा तो हर्षा ने मेरा हाथ पकड़ लिया....'अंकल जी, मुझे नंगी मत करो प्लीज' वो अनुरोध भरे स्वर में बोली. लेकिन अब मैं कहाँ मानने वाला था. मैंने जबरदस्ती उसकी चड्ढी उतार के अलग कर दी. और फिर उसकी कुर्ती और ब्रा भी जबरदस्ती उतार दी.

उफ्फ्फ, कितना मादक हुस्न था हर्षा का. उसके दूध कैद से आजाद होकर मानो फूले नहीं समां रहे थे. हर्षा की गोरी गुलाबी पुष्ट जांघो के बीच में उसकी चिकनी गुलाबी चूत....मैं तो हर्षा को निहारता ही रह गया.....तभी वो शरमा के दोहरी हो गयी और उसने अपने पैर मोड़ कर अपने सीने से लगा लिए. और अपना मुंह अपने घुटनों में छिपा लिया.

मैंने भी अपने सारे कपडे उतार दिए और हर्षा को जबरदस्ती सीधा करके मैं उसके नंगे बदन से लिपट गया. जवान कुंवारी अनछुई लड़की के बदन से जो मनभावन मादक गंध आती है....हर्षा के तन से भी उसकी हिलोरें उठ रही थी....मै हर्षा के पैरों को चूमने लगा...उसके पैरों की अँगुलियों को मैंने अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा. फिर मेरे होंठ उसकी टांगो को चूमते हुए उसकी जांघो को चूमने लगे.

हर्षा के बदन की सिहरन और कम्पन मै महसूस कर रहा था. फिर मैंने अपनी जीभ उसकी चूत पे रख दी. हर्षा की चूत के लब आपस में सटे हुए थे...मैंने धीरे से उसकी चूत के कपाट खोले और अपनी जीभ से उसका खजाना लूटने लगा....तभी मानो हर्षा के बदन में भूकंप सा आ गया. उसने मेरे सिर के बाल कस कर अपनी मुट्ठियों में जकड लिए.

उसने अपनी कमर ऊपर उठा दी...फिर मैंने अपनी अंगुली की एक पोर उसकी चूत में घुसा दी और उसके दूध चूसने लगा...हर्षा का दायाँ दूध मेरे मुंह में था और उसके बाएं दूध से मै खेल रहा था...
तभी हर्षा मेरी पीठ को सहलाने लगी.....'अंकल जी, हटो आप..बहुत देर हो गयी, अब मुझे जाने दो' वो थरथराती आवाज में बोली....और अपनी टाँगे मेरी कमर में लपेट दीं. हर्षा अपने मुंह से कुछ और कह रही थी लेकिन उसका नंगा बदन कुछ और ही कह रहा था. मै हर्षा को जिस मुकाम पे लाना चाहता था वहां वो धीरे धीरे आ रही थी.

फिर मैं उसके ऊपर लेट गया...मेरे लण्ड में भरपूर तनाव आ चुका था. और मेरा लण्ड हर्षा की चूत पे टकरा रहा था. मैं उसके ऊपर लेटे लेटे ही उसके गाल काटने लगा.

'अंकल जी, गाल मत काटो ऐसे...निशान पड जायेंगे' वो बोली....लेकिन मैंने अपनी मनमानी जारी रखी

'अब नहीं रहा जाता...' वो बोल उठी.

हर्षा की आँखों में वासना के गुलाबी डोरे तैरने लगे थे. उसकी कजरारी आँखे और भी नशीली हो चुकी थी. फिर मैं उठ कर बैठ गया और हर्षा को खींच कर मैंने उसका मुंह अपनी गोद में रख लिया. और मैं अपना लण्ड उसके गालों पर रगड़ने लगा...

'हर्षा, मेरा लण्ड अपने मुंह में लेकर चूसो ' मैंने कहा.

'नहीं, अंकल जी ये नहीं' वो बोली.

'तो ठीक है...मत चूसो, अपने कपडे पहिन लो और जाओ अब' मैंने कहा

तब हर्षा ने झट से मेरा लण्ड पकड़ लिया और झिझकते हुए अपने मुह में ले लिया....और चूसने लगी. मै तो जैसे पागल सा हो उठा...कुछ देर बाद उसने मेरी foreskin नीचे करके मेरा सुपाडा अपने मुंह में भर लिया और वो बड़ी तन्मयता से मेरा लण्ड चूमते चाटते हुए चूसने लगी.
मैंने भी हर्षा का सिर पकड़ लिया और उसे अपने लण्ड पर ऊपर नीचे करने लगा. मेरा लण्ड हर्षा के मुंह में आ जा रहा था.

कुछ देर मै यू ही हर्षा का मुंह चोदता रहा...और साथ में उसकी चूत की दरार में अपनी अंगुली भी फिराता रहा...

'अंकल जी, अब नहीं होता सहन....आप और मत तरसाओ मुझे....जल्दी से मुझे अपनी बना लो' हर्षा कांपती सी आवाज में बोली.

'ठीक है मेरी जान...मैं भी तड़प रहा हू तुम्हे अपनी बनाने के लिए.....हर्षा, अब तुम सीधी लेट जाओ और अपने पैर अच्छी तरह से फैला कर अपनी चूत की फांके खोल दो पूरी तरह से' मैंने कहा

'जी, अंकल...हर्षा शरमाते हुए बोली' और फिर उसने अपनी टाँगे फैला के अपनी चूत के होंठ अपनी अँगुलियों से खोल ही दिए

मुझे लड़की का ये पोज सदा से ही पसंद है...जब लड़की नंगी होकर अपनी चूत अपने हाथों से खोल कर लेटती है....

फिर मैंने हर्षा की खुली हुयी चूत के छेद से अपना सुपाडा सटा दिया और उसकी हथेलियाँ अपनी हथेलियों में फंसा कर धीरे धीरे अपना लण्ड उसकी चूत में घुसाने की कोशिश करने लगा. कुंवारी चूत के साथ थोड़ी मुश्किल तो होती ही है. मैंने अपने लण्ड को खूब सारा चमेली का तेल पिलाया था....और फिर हर्षा के चूसने के बाद मेरा लण्ड काफी चिकना हो चुका था.

अंततः मेरी मेहनत रंग लायी. और मेरा लण्ड हर्षा की चूत की सील को वेधता हुआ, उसका कौमार्य भंग करता हुआ उसकी चूत में समां गया.

हर्षा के मुंह से एक घुटी घुटी सी चीख निकली, उसने मुझे परे धकेलने की कोशिश की लेकिन मेरे हथेलियों में उसकी हथेलियाँ फंसी हुयी थी....वो बस तड़प के ही रह गयी.

'उई माँ...मर गयी...' हर्षा के मुंह से निकला...'हाय अंकल, निकाल लो अपना बाहर ...मुझे नहीं चुदवाना आपसे'

लेकिन मै बहुत धीरे धीरे आहिस्ता आहिस्ता उसकी चूत में अपने लण्ड को चलाता रहा. मेरा लण्ड हर्षा की चूत में रक्त-स्नान कर रहा था..और वो मेरे नीचे बेबस थी.

'आह, अंकल...बहुत दुख रही है...' हर्षा बोली. उसकी आँखों में आंसू छलक आये. मुझसे उसकी तड़प देखी नहीं जा रही थी; लेकिन मै कर भी क्या सकता था. मैंने प्यार से उसकी आँखों को चूम लिया, उसके गालों को अपना प्यार दिया..और अपनी धीमी रफ़्तार जारी रखी.

जैसा की आदि काल से होता आया है, कामदेव ने अपना रंग दिखाना शुरू किया तो हर्षा को भी मस्ती चड़ने लगी...उसके निप्पलस जो पहले किशमिश की तरह थे अब कड़क हो कर बेर की गुठली जैसे हो चुके थे. और उसका पूरा बदन कमान की तरह तन चुका था. अब हर्षा के हाथ भी मेरी पीठ पर फिसलने लगे थे.
थोड़ी देर बाद उसके मुंह से धीमी धीमी किलकारियां निकलने लगीं. तब मैंने चुदाई की स्पीड थोड़ी तेज कर दी. और अपने लण्ड को पूरा बाहर तक खींच कर फिर से उसकी चूत में पूरी गहराई तक घुसा कर उसे चोदने लगा...
'हाँ, अंकल जी, ऐसे ही करो...थोडा और जल्दी जल्दी करो ना' हर्षा अपनी कमर उठाते हुए बोली.
'हाँ, ये लो मेरी जान...' मैंने कहा और फिर मैंने अपने स्पेशल शोट्स मारने शुरू कर दिए.

'अंकल जी, अब बहुत मजा दे रहे हो आप...हाँ '

'तो ये लो मेरी रानी ...और लूटो मजा...क्या मस्त जवानी है तेरी, हर्षा' मैंने कहा

'अंकल जी, ये हर्षा ठाकुर आपके लिए ही जवान हुयी है.....आप लूटो मेरी जवानी को, जी भर कर भोग लो मेरे शरीर को ... खेलो मेरे जिस्म से, रौंद डालो मेरी चूत को, फाड़ दो मेरी चूत आह.........जैसे आप चाहो वैसे खेलो मेरी अस्मत से...
जी भर के लूटो मेरी इज्जत को...अंकल कुचल के रख दो मेरी चूत को; बहुत सताती है ये चूत मुझे' हर्षा पूरी मस्ती में आके बोले जा रही थी....

फिर मैं हर्षा के क्लायीटोरिस को अपनी झांटो से रगड़ रगड़ के उसकी चूत मारने लगा, उछल उछल कर उसकी चूत कुचलने लगा. (बनाने वाले ने भी क्या चीज बनाई है चूत भी...कितनी कोमल, कितनी नाजुक, कितनी लचीली, कितनी रसभरी लेकिन कितनी सहनशील...कठोर लण्ड का कठोर से कठोरतम प्रहार सहने में सक्षम...)

'आईई अंकल....उफ्फ्फ....हाँ ऐसे ही...' वो बोली और मेरे धक्कों से ताल में ताल मिलाती हुयी नीचे से अपनी कमर चलाते हुए टाप देने लगी


हर्षा की चूत अब बहुत गीली हो रही थी और मेरा लण्ड अब बहुत आराम से अन्दर बाहर हो रहा था...

कुछ देर की चुदाई के बाद हर्षा का बदन ऐंठने लगा...उसने अपनी बाहें मेरी पीठ पर कस कर लपेट दी...मैं भी झड़ने के करीब था. फिर अचानक उसने अपनी टाँगे मेरी कमर में लपेट दी और मुझे कस कर भींच लिया...मैंने हर्षा के मुंह में अपनी जीभ डाल दी.. मेरे लण्ड से भी रस छूट गया. हर्षा भी झड चुकी थी.

कुछ देर बाद हर्षा का बदन ढीला पड गया....लेकिन मैं अपना लण्ड उसकी चूत में डाले हुए यू ही लेटा रहा...उसकी चूत में कम्पन से हो रहे थे...और वो हलके हलके फ़ैल-सिकुड़ रही थी.
हर्षा की चूत फ़ैल-सिकुड़ कर मेरे लण्ड से वीर्य की एक एक बूँद निचोड़ रही थी..और वो खुद मेरी जीभ चूस रही थी.

'अंकल जी....आपने मुझे लड़की से औरत बना ही दिया आखिरहर्षा मेरा गाल चूमते हुए बोली

'हाँमेरी रानी...मैंने कुछ गलत तो नहीं किया ना ?' मैंने प्यार से उसका चुम्बन लेते हुआ पूछा

'नहीं अंकलमै तो हमेशा से आपके बारे में यही सब सोचा करती थीहर्षा मेरे सीने में अपना
मुंह छिपाते हुए बोली. मैंने भी उसे कस कर अपने से लिपटा लिया.
हम लोग काफी देर तक यू ही नंगे लिपटे हुए पड़े रहे....हर्षा के नंगे बदन को चिपटाए हुए जो स्वर्गिक आनंद मिल रहा था...उसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं. करीब आधे घंटे बाद मेरे लण्ड में फिर से तनाव आने लगा...और मेरे हाथ फिर से हर्षा के नंगे बदन पर घूमने लगे. और मैं उसके हिप्स को सहलाने लगा...

हर्षा के गोल गोल गुलाबी हिप्स बहुत ही सेक्सी और मनभावन थे....मैं हर्षा की गांड मारने का लोभ संवरण न कर सका. मैंने उसे वही मचान पर घोड़ी बना दिया...और उसके लाख मना करने पर भी उसकी गांड में भी लण्ड पेल ही दिया...वो बेचारी दर्द से बिलबिला उठी.

मैं उसके नीचे हाथ डाल करउसकी चुचिया पकड़ कर उसकी गांड में धक्के लगाने लगा...बीच बीच में मैंउसकी चूत में ऊँगली डाल कर उसकी गांड में धक्के मारता रहा. हर्षा की पीठ चूमते हुए...उसके सलोने हिप्स सहलाते हुए...उसकी कमर पकड़ कर उसकी गांड में धक्के लगाने का एक अलग ही आनंद था.

जब मैं झड़ने को हुआ तो मैंने हर्षा के बाल पकड़ कर खींच लिए...उसका चेहरा ऊपर उठ गया...और फिर मैं पूरी बेरहमी के साथ उसके गांड मारने लगा... फिर दो तीन मिनिट बाद में मैं उसकी गांड में ही झड गया.

शाम घिरने लगी थी. 'अंकल जीअब जाने दो मुझे...बहुत देर हो गयीपिताजी भी घर लौटने वाले होंगेहर्षा बोली
'ठीक है जाओमैंने कहा...फिर हमने जल्दी जल्दी कपडे पहिन लिए. और हर्षा मचान से उतर कर अपने घर को चल दी.

मैं पीछे से उसे जाते हुए देखता रहा....अब हर्षा की चाल में वो पहले वाली बात न थी.

* * * * *
अचानक मेरी तन्द्रा भंग हुयी. पूरा सफ़र हर्षा की याद में कट गया था. मेरा स्टेशन आने ही वाला था..ट्रेन की रफ़्तार भी धीमी पड़ने लगी...ट्रेन रुकने पर मै उतर कर अपने घर चल दिया दो दिन बाद होली थी.

हर्षा की शादी पिछली मई में ही हो गयी थी....अभी उसकी शादी को पूरा एक साल भी नहीं हुआ था.

'कैसी लगती होगी अब वो?'...पता नहीं कितने तरह के सवाल मेरे दिमाग में आते जाते रहे.

अब तो शायद माँ भी बन चुकी होगी....या गर्भवती होगी...अगर ऐसा हुआ तो मैं कैसे ले पाऊंगा उसकी...???
अगले दिन मैं शाम को हर्षा के घर जा पहुंचा. रास्ते में मैं उसी के बारे में सोचता रहा....उस दिन हर्षा से प्रथम मिलन के बाद भी हम लोग कई बार मिले...वो हमेशा नित नई नवेली लगती...बासी तो कभी लगी ही नहीं मुझे. उसकी शादी में तो मैं चाह कर भी न जा सका थाऑफिस की कुछ
मजबूरियां थी.

हर्षा के घर की ओर चलते चलते वो उसकी अमराई भी रास्ते में आई...फागुन का महिना था....आम के पेड़ों पर बौर छाया हुआ था. टेसू के फूल पेड़ों पर लदे हुए थे... सब कुछ जैसे मेरी आँखों के सामने सजीव हो उठा...वो मचान...मेरी बाँहों में मचलती उसकी नंगी जवानी...उसका प्यार दुलार...अचानक मेरी आँखों में नमीं सी आ गयी. सेक्स तो जिंदगी में कईयों के साथ किया था लेकिन ऐसी तड़प किसी के लिए कभी ना उठी थी मेरे दिल में.

हर्षा की हवेली का द्वार सदा की तरह खुला हुआ था. हर्षा की माँ ने मुझे आते देखा तो अपना पल्लू अपने सर पे ले के बोली. आओ भाई साहब....कैसे हो आप....आओ बैठो'

(मैं हर्षा की माँ को भाभी जी कह कर बोलता था और वो मुझे हमेशा भाई साहब ही कहतीं थीं)

'ठीक हूँ भाभी...मैं बैठते हुए बोला....क्या हाल चाल है...आप सुनाओ. और वो मेरा यार मेघ सिंह कहाँ है...जरा बुलाओ तो सही उसेकब से नहीं मिला मै उससे'

'भाई साब वो तो कहीं गए हैं...कह रहे थे की रात को देर से आऊंगा. आप कल मिल लेना उनसेभाभी जीबोलीं.

'ठीक है भाभी...अब मैं चलता हूँ...कल फिर आऊंगामैं उठते हुए बोला

'हाय राम!! भाई साब....मेरे कहने का ये मतलब नहीं की आप चले जाओ...आग लगे मेरे मुंह को. इतने दिनों बाद आये हो. त्यौहार का मौका है...कुछ चाय नाश्ता करके जाना.'

भाभी जी ने इतना कह के जोर से आवाज लगाई ...

'अरी ओ हर्षा.....कहाँ है तू. देख तो कौन आया है. जल्दी आ'

मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा.
हर्षा से मिले हुए तीन साल से ऊपर हो गए थे. मेरे कान उसकी पदचाप सुनने को अधीर हो रहे थेमैं टकटकी लगाये अन्दर के दरवाजे की ओर देख रहा था. उसके इंतजार में मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था.

'आई माँ'' ... तभी मेरे कानों में हर्षा की खनकती आवाज पड़ीफिर वो मेरे सामने थी.

मैंने उसे देखाउसने मुझे देखा. मुझे देख कर वो थम सी गयी. एक नज़र में उसने जैसे मुझे सर से पाँव तक पढ़ लियाहर्षा के होठों पर वो चिरपरिचित मोहक मुस्कान खिली और फिर उसने अपनी नज़रें झुका दी और मेरे सामने आके बैठ गयी.

शादी के बाद वो और भी खिली खिली सी लग रही थी. उसका शरीर थोडा सा भर गया थाजैसा की लगभग सभी लड़कियों के साथ होता है.

साड़ी ब्लाउज में मैंने उसे पहली बार देखा. मांग में सिन्दूरमाथे पे सुहाग का लाल टीका....तरह तरह के गहने...पाँव में सोने की पायल और बिछिया. उसके साथ अपनी पिछली यादें याद करके मुझे अपने आप पर फख्र सा हुआ.

'कैसी हो बिटिया रानी*ससुराल में सब लोग ठीक से तो हैं नामैंने बात शुरू की.

'अंकल जीसब ठीक है...वो धीरे से बोली.

'अरेहर्षा...अंकल जी के लिए कुछ नाश्ता ला ना....बातें फिर कर लेनाभाभी बोलीं

हर्षा उठ कर अन्दर चली गयी और कुछ देर बाद tray में ढेर सारा नाश्ता रख लायी....
जैसा की होली पर बनता है...गुजियाँरसगुल्लेमठरीदही बड़े....और ना जाने क्या क्या...और फिर उसने सारी प्लेटें मेरे सामने मेज पर सजा दीं. और बैठ गयी.

*बिटिया रानी
(हर्षा को मैं उसके घर में सबके सामने "बिटिया रानी" कह कर ही बुलाता था)
'अंकल जीखाओ नासब कुछ मैंने खुद अपने हाथों से बनाया हैहर्षा चहकती हुयी सी बोली. फिर हम सब नाश्ता करने लगे. हर्षा के हाथों में सचमुच जादू था...मैंने जी भर कर खाया....फिर भी मन नहीं भर रहा था.

'अंकल जीरुक क्यों गए....और खाओ ना....क्या अच्छा नहीं लगा मेरे हाथ से बनाया हुआ ?' हर्षा ने पूछा

'अरी बिटिया रानी ....तेरे हाथों में तो सच में जादू है...मेरा पेट तो भर गया लेकिन नियत नहीं भरी अभी तक...तूने सब कुछ बहुत ही स्वादिष्ट बनाया हैमैंने दिल से कहा.

'भाई साब...अब आप हर्षा से बातें करोशाम हो गयी है मुझे तो मंदिर जाना है. मैं तैयार होकर आतीं हूँ.भाभी बोलीं और उठ कर अन्दर चली गयीं. फिर मैं और हर्षा यहाँ वहां की हलकी फुलकी बातें करने लगे.

कुछ देर बाद हर्षा की माँ मंदिर जाने के लिए तैयार हो कर बाहर आयींउनके साथ में एक लड़की और थी.

मैंने इस लड़की को पहली बार हर्षा के घर में देखा. उम्र कोई सोलह या सत्रह की रही होगी. देखने में कुछ मॉडर्न लगी...जींस टाप पहिन रखा था उसने. rugged जींस और सफ़ेद टॉप में वो बहुत ही आकर्षक लग रही थी. उसके कसे हुए वक्षस्थल पर मेरी नजर ठहर सी गयी....शायद 32D ..मैंने मन ही मन अंदाज़ लगाया. मेरी नज़रें उस क़यामत का जायजा लेती हुईं उसकी जींस पर उसकी जांघो के बीच ठहर गयीं....उसकी जांघो के बीच का उभार साफ़ नुमायाँ हो रहा था. ..

'भाई साबये है लाली....हर्षा की ननदपहली बार यहाँ आई है होली पर. इस साल हाई स्कूल पास किया है इसने अब इंटर में जायेगीभाभी जी ने उस लड़की के बारे में मुझे बताया.
तभी लाली ने मुझे नमस्ते की और अपनी जुल्फों की गिरी हुई लट को संवारा. फिर वो मुझे एक गहरी नज़र से देखती हुई मंदिर चली गयी.

अब मैं और हर्षा घर में अकेले थे.

'हर्षामेरे पास आके बैठो ना'

'जीअंकल जीवो बोली और मेरे पास आके बैठ गयी. मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसकी चूड़ियों से खेलने लगा.

'हर्षातुम्हारी याद बहुत आती है मुझे....वो पल छिन जो हमने साथ बिताये..वो तुम्हारा प्यार....कभी कभी तुम्हारा रूठ जाना और मेरा मनाना..मुझे दिन रात चैन नहीं लेने देतामैं भावुक होकर बोला और उसे खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया. हर्षा के दूध मेरे सीने से आ सटे. उसका निचला होंठ मैंने अपने होठों में दबा लिया और अपनी बाँहों का घेरा और कस दिया.

हर्षा की साँसों की महक मेरी साँसों में घुलमिल रही थी....मैंने हर्षा के ब्लाउज में हाथ डाल दिया.

हर्षा ने ब्रा नहीं पहिन रखी थी...

मैंने उसके गालों का रस लेता हुआ उसके भरपूर उरोजों से खेलने लगा...साथ ही साथ उसके गले को चूमने लगा...हर्षा की साँसे भारी होती जा रहीं थी. फिर मैंने उसकी साड़ी उसकी जांघो तक सरका दी और उसकी चिकनी जांघे सहलाने लगा...

तभी....वो मुझसे छिटक कर दूर हुई...

'अंकल जीमै अब एक शादीशुदा औरत हूँअब नहीं.हर्षा बोली
अंकल जीमै एक शादीशुदा औरत हूँमान जाओ आपहर्षा बोली
'मेरी जान...आज तुम इतने सालों बाद मिली हो...मत रोको मुझेऐसा मौका फिर नहीं मिलेगामैंने कहा और अपना हाथ उसकी जांघो के जोड़ तक घुसा दिया.

हर्षा ने चड्ढी भी नहीं पहिन रखी थी.

उसकी चूत मेरी मुट्ठी में आ गयी. उसकी नरम गरम चूत पर मेरा हाथ लगते ही उसका विरोध हल्का पड़ने लगा और उसकी टाँगे खुद ब खुद फ़ैल गयीं. फिर मैंने उसकी नरम गरम चूत अपनी मुट्ठी में भर ली और मसलने लगा.

मैंने फिर हर्षा के ब्लाउज के हूक्स खोल दिए और उसके दोनों नंगे दूध पकड़ कर दबाने लगा...उसका एक दूध अपने मुह में भर कर चूसने लगा और दूसरे दूध की निप्पल अपनी चुटकी में भर कर धीरे धीरे मसलने लगा.

'आह अंकल...ईईईस...मत करो नाहर्षा थरथराती आवाज में बोली. फिर मैंने उसका ब्लाउज उतार दिया और उसकी साडी खींच कर एक तरफ फेंक दी और उसके पेटीकोट का नाडा खोल कर उसका पेटीकोट भी उतर डाला. चड्ढी तो उसने पहिन नहीं रखी थी. अब हर्षा पूरी नंगी थी.

मैंने अपने कपडे भी उतारे और हर्षा को लेकर बगल वाले कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया.
मैं हर्षा के अंग अंग को चूमने चाटने लगा. फिर मैंने हर्षा टाँगे फैला के उसकी चूत की फांके पसार दीं. हर्षा की चूत मैं पूरे तीन साल बाद देख रहा था...पहले उसकी चूत एकदम गुलाबी सी हुआ करती थी...लेकिन अब उसकी चूत में कुछ सांवलापन आ गया था. मैंने बेक़रार होकर उसकी झांटो को चूम लिया. और फिर अपना लण्ड उसकी चिकनी जांघो पर रगड़ते हुए मैं उसके गाल काटने लगा...उसके अधरपान करने लगा.

हर्षा भी अब अधीर होने लगी थी. उसके निप्पलस कड़क हो चले थे और उसका clitoris भी अपने शवाब पे आ चुका था...उसकी चूत में से रस की नदिया सी बह निकली थी.

हर्षा अब मुझे चोदने के लिए उकसा रही थी. वो बार बार मुझे चूम चूम कर मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी चूत में रगड़ रही थी. लेकिन मुझे उसे सताने में मजा आ रहा था और मैं अपना लण्ड उसकी चूत में घुसने ही नहीं दे रहा था.

हर्षा ने फिर बहुत ही बेकरार हो कर.. अपना एक पैर मोड़ लिया और अपनी कमर को थोडा सा उठा कर मेरा सुपाडा जबरदस्ती अपनी चूत में घुसा लिया. और मेरा पूरा लण्ड अपनी चूत में लेने का प्रयास करने लगी....सिर्फ मेरा सुपाडा उसकी चूत के भीतर था.

'अंकल जीमेरा राज्जा .. अब और मत तडपाओ मेरी चूत को....मैं पागल हो जाउंगी...आह...आप मारो ना मेरी चूत....क्यों इतना तरसा रहे हो अपनी हर्षा को....हर्षा बोली. वो सचमुच अत्यधिक उत्तेजना में आ चुकी थी. उसकी चूत से लगातार पानी बह रहा था.

'मेरे राज्जा... मम्मी मंदिर से आने वाली होंगी.....हर्षा कुछ घबराहट भरे स्वर में बोली

मैं भी चौंका...समय कम था.

ठीक है हर्षा...तो फिर जल्दी से तुम doggy स्टाइल में हो जाओ....

हर्षा झट से उठी और पलंग पर घोड़ी बन गयी. मैंने अपना लण्ड उसकी रिसती हुई बुर से सटा दिया फिर उसकी गोरी गोरी पीठ को चूम कर उसके गोल मटोल हिप्स सहला कर एक झटके में अपना लण्ड उसकी चूत को पहना दिया.

फिर मैंने हर्षा को मजे देने में कोई कसर ना छोड़ी. उसकी चूत में आड़ेतिरछेसीधेगहरे शोट्स लगाता हुआ मैं उसे चोदने लगा.

अचानक मुझे कुछ नया सूझा.
'हर्षा....अब तुम अपनी चूत को सिकोड़ लोमैंने कहा

कैसे करूँ...मेरे राज्जा...मैं नहीं जानतीवो बोली

'अरे जैसे किसी चीज को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दबाते हैं....वैसे ही तुम अपनी चूत से मेरा लण्ड दबाओ...अपनी चूत की muscles को अन्दर की ओर सिकोडो...मैंने उसे समझाया

'अंकलऐसे ?' हर्षा अपनी चूत भीतर की तरफ सिकोड़ती हुयी बोली. अब उसकी चूत ने मेरा लण्ड ठीक से कस लिया था.

'हर्षा...मेरी रानी.....बिलकुल ठीक. ऐसे ही..'

'हर्षाअब मैं धक्के नहीं लगाऊंगा. मैं स्थिर रहूँगा. तुम अपनी कमर को आगे पीछे कर के मेरा लण्ड अपनी चूत में अन्दर बाहर करो....और हाँ....अपनी चूत को यूँ ही भींच के रखना....सिकोड़े रखना.मैंने उसे एक नई सीख दी.

'और हाँ...कुछ इस तरह से अपनी कमर को चलाओ की मेरा लण्ड पूरी तरह से अन्दर बाहर हो....जब तुम अपनी कमर को आगे ले जाओ तो मेरा पूरा लण्ड तुम्हारी चूत से बाहर निकल जाए...सिर्फ सुपाडा चूत में रहे...और जब तुम अपनी कमर को वापस लाओ तो मेरा लण्ड फिर से तुम्हारी चूत में समां जाये...मैंने हर्षा को आगे समझाया

'समझ गयी मेरे राज्जा...समझ गयी'

'ये लो मेरे प्यारे राज्जा...वो बोली और अपनी कमर को आगे पीछे करने लगीउसने अपनी चूत कस करसिकोड़ रखी थी. और मेरा लण्ड अन्दर बाहर कर रही थी.

धीरे धीरे वो अपनी स्पीड बढाती चली गयी....मैं हर्षा से जैसा सुख चाहता था...वो मुझे दे रही थी. मैं अपना लण्ड उसके हिप्स के बीच में....उसकी चूत में आते-जाते मजे से देख रहा था.

'ऊ माँ....हाय.......ऐसा मजा तो आज तक नहीं मिला मुझेहर्षा अपनी कमर चलाते हुए कामुक आवाज में बोल उठी. कुछ देर तक वो यु ही ....मेरे लण्ड के मजे लेती रही....फिर

'अंकल जी..मेरे राज्जा.....बस...मेरा तो होने ही वाला है....अब आप धक्के लगाओ...'

फिर मैंने चुदाई की कमान मैंने संभाल ली. और हर्षा के नीचे हाथ डाल कर उसके दोनों दुद्धू पकड़ कर मै मजे से उसकी चूत लेने लगा.
कुछ देर बाद..

हम दोनों झड़ने के बाद निढाल हो कर एक दूजे की बाँहों में नंगे ही पड़े थे. मेरा लण्ड अभी भी हर्षा की चूत में फंसा हुआ था.

'मेरे राज्जा अंकल.. ऐसा मजा मुझे आज तक नहीं मिला...कहाँ थे आप अब तकहर्षा मेरे बालों में अपनी अंगुलियाँ फिराती हुयी बोली. मैंने उसे प्यार से चूम लिया. मैं बोला कुछ नहीं.

'अंकलएक बात बताओ. लाली कैसी लगी आपकोहर्षा ने अचानक पूछा
'लाली...कौन लालीमैंने बनते हुए कहा
'अच्छा जीअभी घंटे भर पहले की बात आप भूल गए...लाली...मेरी ननद लाली....आप तो उसे बड़ी गहरी नज़रों से ताक रहे थे उसेहर्षा ने मुझे उलाहना दिया

'और आप आँखों ही आँखों में उसके बदन का नाप भी ले रहे थे...मैं देख रही थी की आपकी नज़रें क्या क्या टटोल रहीं थी लाली काहर्षा मेरे गाल पे चिकोटी लेती हुयी बोली.

'अच्छा वो...लाली. अच्छी लड़की है...गुडिया की तरह प्यारी सीमैंने भोलेपन से कहा

'अंकल जी...गुडिया से खेलोगे ?' हर्षा मेरे कानों में धीमे से फुसफुसाई और उसने मेरा लण्ड अपने हाथ में ले कर धीरे से दबाया.

'क्या...हर्षा..तुम ये क्या कह रही होवो तुम्हारी ननद हैइस घर की मेहमान हैमैंने आश्चर्य चकित होकर पूछा

'अंकल जीलाली बहुत ही सेक्सी लड़की है. जब मैं अपने पति के साथ सेक्स करती हूँ तो लाली हमें किवाड़ की झिरी से झांक कर देखती है. वो कई बार हमारी चुदाई देख चुकी है. और हमें चुदाई करते देख देख कर वो भी अपनी चूत में ऊँगली चलाती हैहर्षा कुछ परेशान सी होकर बोली.

'लेकिन तुम्हे ये सब बातें कैसे पतामैंने पूछा

'अंकलमुझे कई बार शक हुआ की कोई हमें छिप कर देख रहा है....फिर मैंने एक बार चालाकी से लाली को रंगे हाथों पकड़ लिया था.




















Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | सेक्सी कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना | कामसुत्रा | मराठी जोक्स | सेक्सी कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी सेक्स कहानियाँ | मराठी सेक्स | vasna ki kamuk kahaniyan | kamuk-kahaniyan.blogspot.com | सेक्स कथा | सेक्सी जोक्स | सेक्सी चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी सेक्सी कहानी | पेलता | सेक्सी कहानियाँ | सच | सेक्स कहानी | हिन्दी सेक्स स्टोरी | bhikaran ki chudai | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | चूत की कहानियाँ | मराठी सेक्स कथा | बकरी की चुदाई | adult kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | sexi kutiya | आँटी की चुदाई | एक सेक्सी कहानी | चुदाई जोक्स | मस्त राम | चुदाई की कहानियाँ | chehre ki dekhbhal | chudai | pehli bar chut merane ke khaniya hindi mein | चुटकले चुदाई के | चुटकले व्‍यस्‍कों के लिए | pajami kese banate hain | चूत मारो | मराठी रसभरी कथा | कहानियाँ sex ki | ढीली पड़ गयी | सेक्सी चुची | सेक्सी स्टोरीज | सेक्सीकहानी | गंदी कहानी | मराठी सेक्सी कथा | सेक्सी शायरी | हिंदी sexi कहानिया | चुदाइ की कहानी | lagwana hai | payal ne apni choot | haweli | ritu ki cudai hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | sexi haveli ka sach | sexyhaveli ka such | vasana ki kaumuk | www. भिगा बदन सेक्स.com | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कहानियाँ | chudai | कामरस कहानी | कामसुत्रा ki kahiniya | चुदाइ का तरीका | चुदाई मराठी | देशी लण्ड | निशा की बूब्स | पूजा की चुदाइ | हिंदी chudai कहानियाँ | हिंदी सेक्स स्टोरी | हिंदी सेक्स स्टोरी | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bhabhi ki chudai | chachi ki chudai | mami ki chudai | bahan ki chudai | bharat | india | japan | 

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator