घरेलू चुदाई समारोह -7
“ये सब बंद करो और मेरी क्लिट को जोर से काटो…”
प्रमोद के ऐसा करते ही कोमल ने एक बार फिर से पानी छोड़ दिया।
“बहुत अच्छा प्रमोद… मज़ा आ गया…” कोमल अब झड़ते-झड़ते थक चुकी थी। उन दोनों जवानों ने उसकी भूख मिटा दी थी। उसने पहले प्रमोद और फिर सजल का एक गहरा चुम्बन लिया, और टेक लगाकर लेट गई।
“मुझे उम्मीद है कि तुम्हारी मम्मी अगली छुट्टियों में भी तुम्हें यहाँ आने की इज़ाज़त देगी। है न प्रमोद…” कोमल ने पूछा।
प्रमोद- “क्यों नहीं, और मैं अगली बार ज्यादा दिनों के लिये आऊँगा…”
“मैं तुम्हारे आनंद के लिये पूरा इंतज़ाम रखूंगी…” कोमल ने कहा और उसी हालत में नंगी, सिर्फ सैंडल पहने हुए रसोई की ओर सबके लिये नाश्ता बनाने के लिये बढ़ गई।
“जल्दी करो और अपनी पैंट उतारो, सुनील…” मनीषा ने अपने पड़ोसी से कहा- “मैं तो समझी थी कि शायद कोमल घर से जाने वाली ही नहीं है…”
सुनील ने जल्दी करने की कोशिश की पर उसकी नज़रें मनीषा पर ही टिकी थीं जो अपने मम्मों को अपने हाथों में थामे चुदवाने के लिये पूरी तरह से तैयार खड़ी थी।
सुनील- “वो थोड़ी ही देर के लिये गई है। 45 मिनट में वापस आ जायेगी। मुझे उससे पहले घर पहुंचना होगा। वैसे भी मुझे गोल्फ खेलने जाना है…”
मनीषा- “क्या कहा तुमने… तुम्हारे लिये गोल्फ खेलना मुझे चोदने से ज्यादा ज़रूरी है…”
सुनील- “मैं विवश हूँ। वो मेरी कम्पनी का एक बहुत बड़ा ग्राहक है… जाना ही होगा…”
मनीषा- “हे भगवान, मैं यह तो समझ सकती हूँ कि कोमल एक जल्दबाजी की चुदाई के लिये तैयार हो सकती है क्योंकी वो तुम्हारी पत्नी है। पर मेरी चूत की प्यास मिटाने के लिये तो तुम्हें अधिक समय निकालना ही होगा। 45 मिनट में मेरा कुछ नहीं बनेगा…” मनीषा ने सुनील के मोटे तगड़े लौड़े पर एक नज़र डालते हुए कहा।
सुनील- “आज के लिये तो इतना ही हो पायेगा, मनीषा…” सुनील मनीषा को बिस्तर की ओर लेकर जाते हुए बोला।
“अगर ऐसा है तो मेरी खातिरदारी शुरू करो। पहले मेरे मम्मों को चूसो…” मनीषा ने हथियार डालते हुए कहा।
सुनील ने अपने कम समय देने का मुआवज़ा देने का फैसला किया। उसने एक हाथ से मनीषा की चूचियां मसलनी शुरू की और दूसरे हाथ से उसकी चूत की सेवा शुरू कर दी। उसने दो अँगुलियां मनीषा की चूत में घुसेड़ दीं। अपने दांतों से उसने मनीषा की दूसरी चूची का निप्पल काटना शुरू कर दिया।
“कचोट लो उन्हें प्यारे। और एक अँगुली और डालो मेरी चूत में…” मनीषा ने विनती की। उसने सुनील का लण्ड हाथ में लिया और उसे सहलाना शुरू कर दिया। वह सुबह से चुदवाने को बेचैन थी और उसका पूरा जिश्म वासना की आग में झुलस रहा था। उसने सुनील की मुठ मारनी शुरू कर दी। फिर बोली- “पहले मुझे ज़रा नाश्ता तो कराओ…” कहते हुए उसने लेटते हुए सुनील का लण्ड अपने मुँह में ले लिया। मनीषा ने पूरे जोर-शोर से अपनी भूख मिटानी शुरू कर दी। वो तो उसे कभी न छोड़ती अगर सुनील जल्दी में न होता। उसने बेमन से सुनील का लण्ड अपने मुँह से निकाला।
“अब तुम मुझे चोदो राजा… वही पुराने तरीके से, तेज़ और गहरे… पेल दो ये मूसल मेरी चूत में…” मनीषा ने सुनील के लण्ड को अपनी चूत के मुँह पर रखकर कांपते हुए स्वर में सुनील से मिन्नत की।
“अरे मादरचोद…” जैसे ही वह हलब्बी लौड़ा अंदर गया मनीषा के मुँह से चीख निकली। सुनील ने एक ही धक्के में अपना पूरा लण्ड अंदर जो पेल दिया था।
“दे दो मुझे ये पूरा लंड़ पर जल्दी झड़ना नहीं। मुझे कई बार झाड़े बिना मत झड़ना। मुझे कई बार झड़ना है। कई बार…”
सुनील के लिये ये कोई आसान काम नहीं था। वो जितनी ताकत और तेज़ी से मनीषा को चोद रहा था उसमें अपने आपको काबू में रखना मुश्किल था। उसने अपना ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश की जिससे वह जल्दी न झड़े। उसने गोल्फ, अपनी नौकरी और अपने दोस्तों के बारे में सोचने की कोशिश की।
जब पहला झटका आया तो मनीषा फिर चीखी- “वाह रे मेरे ठोंकू… चोद मुझे… मैं जली जा रही हूँ। मेरी चूत में आग लगी हुई है। झड़ना नहीं, मेरा इंतज़ार करना, सुनील…”
सुनील खुद आश्चयर्चकित था कि इस घनघोर चुदाई के बावज़ूद वो अभी तक टिका हुआ था। उसका हौसला बढ़ा और उसने पूरी चेष्टा की कि मनीषा झड़-झड़ कर बेहाल हो जाए।
“तुम नीचे आओ…” मनीषा बोली।
“पर हमारे पास ज्यादा समय नहीं है…”
पर मनीषा नहीं मानी और सुनील को पीठ के बल लिटाकर उसके लण्ड को अपनी बुर में ठुंसकर कलाबाजियां खाने लगी। बोली- “मैं फिर से झड़ रही हूँ…” पर वह रुकी नहीं। दो ही मिनट में वो फिर बोली- “फिर से झड़ी, वाह क्या ज़िंदगी है…”
सुनील मनीषा के पुट्ठे पकड़कर उसे अपने लण्ड पर कलाबाजी खाने में मदद कर रहा था। वो उस चुदासी औरत की उछलती छातियों को देखने में इतना मस्त था कि उसे अपनी संतुष्टि का ख्याल ही नहीं आया। मनीषा के जिश्म ने एक झटका लिया और वो सुनील के ऊपर ढह गई। उसने सुनील का एक दीर्घ चुम्बन लिया और वह बिस्तर पर कुतिया वाले आसन में आ गई। उसका लाल चेहरा तकिया में छुप गया।
मनीषा- “एक बार मुझे इस आसन में और चोदो फिर मैं तुम्हें छोड़ दूंगी…”
सुनील ले अपने सामने फैली हुई गाण्ड को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। उसने अपने हाथों से अपने भारी लण्ड को सम्भाला और मनीषा के पीछे जाकर अपना लण्ड उसकी गीली चूत में जड़ तक समा दिया। इस बार उसने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि मनीषा झड़ेगी या नहीं। आखिर यह उसका भी आज का अंतिम पराक्रम था।
“अब तुम मुझे चोदो राजा… वही पुराने तरीके से, तेज़ और गहरे… पेल दो ये मूसल मेरी चूत में…” मनीषा ने सुनील के लण्ड को अपनी चूत के मुँह पर रखकर कांपते हुए स्वर में सुनील से मिन्नत की।
“अरे मादरचोद…” जैसे ही वह हलब्बी लौड़ा अंदर गया मनीषा के मुँह से चीख निकली। सुनील ने एक ही धक्के में अपना पूरा लण्ड अंदर जो पेल दिया था।
“दे दो मुझे ये पूरा लंड़ पर जल्दी झड़ना नहीं। मुझे कई बार झाड़े बिना मत झड़ना। मुझे कई बार झड़ना है। कई बार…”
सुनील के लिये ये कोई आसान काम नहीं था। वो जितनी ताकत और तेज़ी से मनीषा को चोद रहा था उसमें अपने आपको काबू में रखना मुश्किल था। उसने अपना ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश की जिससे वह जल्दी न झड़े। उसने गोल्फ, अपनी नौकरी और अपने दोस्तों के बारे में सोचने की कोशिश की।
जब पहला झटका आया तो मनीषा फिर चीखी- “वाह रे मेरे ठोंकू… चोद मुझे… मैं जली जा रही हूँ। मेरी चूत में आग लगी हुई है। झड़ना नहीं, मेरा इंतज़ार करना, सुनील…”
सुनील खुद आश्चयर्चकित था कि इस घनघोर चुदाई के बावज़ूद वो अभी तक टिका हुआ था। उसका हौसला बढ़ा और उसने पूरी चेष्टा की कि मनीषा झड़-झड़ कर बेहाल हो जाए।
“तुम नीचे आओ…” मनीषा बोली।
“पर हमारे पास ज्यादा समय नहीं है…”
पर मनीषा नहीं मानी और सुनील को पीठ के बल लिटाकर उसके लण्ड को अपनी बुर में ठुंसकर कलाबाजियां खाने लगी। बोली- “मैं फिर से झड़ रही हूँ…” पर वह रुकी नहीं। दो ही मिनट में वो फिर बोली- “फिर से झड़ी, वाह क्या ज़िंदगी है…”
सुनील मनीषा के पुट्ठे पकड़कर उसे अपने लण्ड पर कलाबाजी खाने में मदद कर रहा था। वो उस चुदासी औरत की उछलती छातियों को देखने में इतना मस्त था कि उसे अपनी संतुष्टि का ख्याल ही नहीं आया। मनीषा के जिश्म ने एक झटका लिया और वो सुनील के ऊपर ढह गई। उसने सुनील का एक दीर्घ चुम्बन लिया और वह बिस्तर पर कुतिया वाले आसन में आ गई। उसका लाल चेहरा तकिया में छुप गया।
मनीषा- “एक बार मुझे इस आसन में और चोदो फिर मैं तुम्हें छोड़ दूंगी…”
सुनील ले अपने सामने फैली हुई गाण्ड को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। उसने अपने हाथों से अपने भारी लण्ड को सम्भाला और मनीषा के पीछे जाकर अपना लण्ड उसकी गीली चूत में जड़ तक समा दिया। इस बार उसने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि मनीषा झड़ेगी या नहीं। आखिर यह उसका भी आज का अंतिम पराक्रम था।
“इतना गहरे तो पहले तुम कभी नहीं गये, सुनील…” मनीषा बोली- “चोदो इस चूत को और तुम भी झड़ो और मुझे भी तारे दिखा दो…”
सुनील को हमेशा इस बात से और उन्माद आता था, जब उससे चुदा रही औरत इस तरह की अश्लील भाषा का प्रयोग करती थी। उसने अपनी रफ्तार तेज़ कर दी। उसके लण्ड से निकली वीर्य की धार मनीषा की धार के साथ ही छूटी। दोनों जैसे स्वर्ग में थे।
मनीषा- “हे मेरे रब्बा… इतना आनंद… यही स्वर्ग है… और तुम फरिश्ते हो, सुनील…”
सुनील ने अपना सिकुड़ा हुआ लण्ड एक पाप की अवाज़ के साथ बाहर निकाला। उसने घड़ी देखी तो जल्दी से कपड़े पहनने लगा। उसका ग्राहक आने ही वाला था।
सुनील- “मैं चलता हूँ…” उसने जल्दी से विदा माँगी।
मनीषा- “तुम बड़े रूखे इन्सान हो…”
सुनील- “मैं तुम्हें बाद में मिलूंगाा अभी मुझे वाकई जल्दी है…”
मनीषा भी उठकर नहाने चली गई। हालांकि उनकी चुदाई तेज़ और तीखी रही थी पर उसे याद नहीं पड़ता था कि वह इतनी बार कभी झड़ी हो। उसने दो जबरदस्त पैग बनाकर पिये और एक लम्बा स्नान लिया। फिर वोह बाहर जाने के लिए तैयार हुई और हमेशा की तरह भड़कीले कपड़े पहने। अभी उसने अपने ऊँची एंड़ी के सैंडल पहने ही थे कि इतने में ही उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। यह सोचकर कि शायद सुनील का गोल्फ का साथी नहीं आया, उसने तत्काल ही दरवाज़ा खोला। पर उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सजल आया था।
सजल बोला- “मनीषा आंटी, मैं अपने पापा को ढूढ़ रहा था, कुछ देर पहले मैंने उन्हें यहीं देखा था। मैंने सोचा शायद वो अभी यहीं हैं…”
“हाँ वो यहाँ थे तो सही… मेरी वाशिंग मशीन को ठीक कर रहे थे। पर वो कुछ मिनट पहले ही निकले हैं। किसी के साथ गोल्फ खेलने जाना था उन्हें… क्या तुमने उन्हें नहीं देखा…”
“फिर तो मैं उन्हें बाद में ही देख पाऊँगा। माफ करना आंटी मैनें आपको बेवजह परेशान किया… धन्यवाद…”
जब सजल वापस जाने के लिये मुड़ा तो मनीषा के दिमाग में एक शैतानी ख्याल आया। वो बोली- “रुको, सजल… तुम अंदर आकर क्यों नहीं मेरे साथ एक पेप्सी लेते…” कहकर उसने सजल को उसकी बांह से पकड़कर अंदर खींचा। उसके मन में आया कि कोमल से इससे अच्छा बदला क्या होगा कि उसका पति और बेटा दोनों उसकी गिरफ्त में हों…
सुनील को हमेशा इस बात से और उन्माद आता था, जब उससे चुदा रही औरत इस तरह की अश्लील भाषा का प्रयोग करती थी। उसने अपनी रफ्तार तेज़ कर दी। उसके लण्ड से निकली वीर्य की धार मनीषा की धार के साथ ही छूटी। दोनों जैसे स्वर्ग में थे।
मनीषा- “हे मेरे रब्बा… इतना आनंद… यही स्वर्ग है… और तुम फरिश्ते हो, सुनील…”
सुनील ने अपना सिकुड़ा हुआ लण्ड एक पाप की अवाज़ के साथ बाहर निकाला। उसने घड़ी देखी तो जल्दी से कपड़े पहनने लगा। उसका ग्राहक आने ही वाला था।
सुनील- “मैं चलता हूँ…” उसने जल्दी से विदा माँगी।
मनीषा- “तुम बड़े रूखे इन्सान हो…”
सुनील- “मैं तुम्हें बाद में मिलूंगाा अभी मुझे वाकई जल्दी है…”
मनीषा भी उठकर नहाने चली गई। हालांकि उनकी चुदाई तेज़ और तीखी रही थी पर उसे याद नहीं पड़ता था कि वह इतनी बार कभी झड़ी हो। उसने दो जबरदस्त पैग बनाकर पिये और एक लम्बा स्नान लिया। फिर वोह बाहर जाने के लिए तैयार हुई और हमेशा की तरह भड़कीले कपड़े पहने। अभी उसने अपने ऊँची एंड़ी के सैंडल पहने ही थे कि इतने में ही उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। यह सोचकर कि शायद सुनील का गोल्फ का साथी नहीं आया, उसने तत्काल ही दरवाज़ा खोला। पर उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सजल आया था।
सजल बोला- “मनीषा आंटी, मैं अपने पापा को ढूढ़ रहा था, कुछ देर पहले मैंने उन्हें यहीं देखा था। मैंने सोचा शायद वो अभी यहीं हैं…”
“हाँ वो यहाँ थे तो सही… मेरी वाशिंग मशीन को ठीक कर रहे थे। पर वो कुछ मिनट पहले ही निकले हैं। किसी के साथ गोल्फ खेलने जाना था उन्हें… क्या तुमने उन्हें नहीं देखा…”
“फिर तो मैं उन्हें बाद में ही देख पाऊँगा। माफ करना आंटी मैनें आपको बेवजह परेशान किया… धन्यवाद…”
जब सजल वापस जाने के लिये मुड़ा तो मनीषा के दिमाग में एक शैतानी ख्याल आया। वो बोली- “रुको, सजल… तुम अंदर आकर क्यों नहीं मेरे साथ एक पेप्सी लेते…” कहकर उसने सजल को उसकी बांह से पकड़कर अंदर खींचा। उसके मन में आया कि कोमल से इससे अच्छा बदला क्या होगा कि उसका पति और बेटा दोनों उसकी गिरफ्त में हों…
सजल ने अपनी पडोसन की मधुरिम काया पर एक भरपूर नज़र दौड़ाते हुए पूछा- “क्या आप सही कह रही हैं…”
“और नहीं तो क्या… आओ अंदर…” मनीषा ने सजल को अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर बोलि “तुम काफी बड़े हो गये हो, सजल… देखो तो क्या मसल निकल आई हैं। अब तुम वह छोटे बच्चे नहीं रहे जो मेरे घर के सामने साइकल चलाया करते थे…”
सजल के चेहरे पर लाली छा गई- “हाँ अब मैं छोटा बच्चा नहीं रहा आंटी…”
मनीषा ने खिलखिलाते हुए फ्रिज़ से दो पेप्सी निकाली और एक ग्लास में डालकर सजल को दी और अपने लिए दूसरे ग्लास में लेकर उसमें थोड़ी व्हिस्की मिला ली, बोली- “एक दो साल में तुम अपने पापा के जितने हो जाओगे… तुम उनके जैसे आकर्षक तो हो ही गए हो…”
सजल फिर से शर्मा गया। उसकी आंखें मनीषा के जिश्म पर से अब हट नहीं रही थीं। अपनी मम्मी को चोदने के बाद उसे बड़ी उम्र की औरत की सुंदरता का अहसास हो गया था। और उसकी ये आंटी सुंदरता में उसकी मम्मी से कहीं भी उन्नीस नहीं थी।
मनीषा- “आओ सोफे पर आराम से बैठते हैं। तुम्हें कहीं जाना तो नहीं है न…”
जब सजल उसके पास आकर बैठ गया तो मनीषा ने उसे वहीं अपने पति के मनचाहे कमरे में चोदने का निश्चय कर लिया।
“तो मुझे बताओ, आजकल तुम क्या कर रहे हो…” मनीषा ने अपने व्हिस्की मिले पेप्सी का घूँट लेते हुए पूछा।
“कुछ ज्यादा नहीं…” सजल ने कंधे उचकाकर कहा। उसका लण्ड खड़ा हो रहा था और वह उसे छिपाने का रास्ता ढूढ़ रहा था- “वही कालेज की कहानी…”
“तुम अगले साल कहाँ पढ़ने जा रहे हो…” मनीषा ने बात बढ़ाने के लिये पूछा।
“अगले साल से तो मैं यही रहकर पढ़ूँगा। मम्मी को मेरा वह कालेज पसंद नहीं है…”
“मुझे खुशी है कि तुम अपने घर में रहोगे। इससे हमें एक दूसरे को बेहतर जानने का मौका मिलेगा…” मनीषा ने अपने हाथ से सजल की जांघ को सहलाते हुए कहा।
मनीषा इस नौजवान को जल्द से जल्द राह पर लाने का तरीका सोच रही थी। उसे इसका कोई अभ्यास नहीं था। उसे तो चट-पटाओ, बिस्तर पर जाओ, चोदो और निकल जाओ का तरीका ही आता था। उसने कुछ देर और ऐसी ही बेमानी बातों का सिलसिला ज़ारी रखा। पर कुछ ही देर में उसका धैर्य जवाब दे गया, और उसने अपनी चाल चलने का फैसला किया। उसने बातें करते-करते सजल के होठों का एक लम्बा चुम्बन ले डाला। उसकी जीभ सजल के मुँह में घुस गई। जब सजल ने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो मनीषा ने अपनी बाहें उसके गिर्द करीं और उसे लेकर वह सोफे पर ढह गई।
“तुम बड़े सजीले लड़के हो, सजल…” उसने अपने जिश्म को सजल के जिश्म से रगड़ते हुए कहा- “मेरे पुट्ठों को पकड़ो और दबाओ…”
सजल को अपनी मम्मी की चुदाई करने से यह तो पता चल गया था कि इस उम्र की औरतें क्या चाहती हैं। उसने फ़ौरन मनीषा की इच्छा पूरी की।
“और नहीं तो क्या… आओ अंदर…” मनीषा ने सजल को अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर बोलि “तुम काफी बड़े हो गये हो, सजल… देखो तो क्या मसल निकल आई हैं। अब तुम वह छोटे बच्चे नहीं रहे जो मेरे घर के सामने साइकल चलाया करते थे…”
सजल के चेहरे पर लाली छा गई- “हाँ अब मैं छोटा बच्चा नहीं रहा आंटी…”
मनीषा ने खिलखिलाते हुए फ्रिज़ से दो पेप्सी निकाली और एक ग्लास में डालकर सजल को दी और अपने लिए दूसरे ग्लास में लेकर उसमें थोड़ी व्हिस्की मिला ली, बोली- “एक दो साल में तुम अपने पापा के जितने हो जाओगे… तुम उनके जैसे आकर्षक तो हो ही गए हो…”
सजल फिर से शर्मा गया। उसकी आंखें मनीषा के जिश्म पर से अब हट नहीं रही थीं। अपनी मम्मी को चोदने के बाद उसे बड़ी उम्र की औरत की सुंदरता का अहसास हो गया था। और उसकी ये आंटी सुंदरता में उसकी मम्मी से कहीं भी उन्नीस नहीं थी।
मनीषा- “आओ सोफे पर आराम से बैठते हैं। तुम्हें कहीं जाना तो नहीं है न…”
जब सजल उसके पास आकर बैठ गया तो मनीषा ने उसे वहीं अपने पति के मनचाहे कमरे में चोदने का निश्चय कर लिया।
“तो मुझे बताओ, आजकल तुम क्या कर रहे हो…” मनीषा ने अपने व्हिस्की मिले पेप्सी का घूँट लेते हुए पूछा।
“कुछ ज्यादा नहीं…” सजल ने कंधे उचकाकर कहा। उसका लण्ड खड़ा हो रहा था और वह उसे छिपाने का रास्ता ढूढ़ रहा था- “वही कालेज की कहानी…”
“तुम अगले साल कहाँ पढ़ने जा रहे हो…” मनीषा ने बात बढ़ाने के लिये पूछा।
“अगले साल से तो मैं यही रहकर पढ़ूँगा। मम्मी को मेरा वह कालेज पसंद नहीं है…”
“मुझे खुशी है कि तुम अपने घर में रहोगे। इससे हमें एक दूसरे को बेहतर जानने का मौका मिलेगा…” मनीषा ने अपने हाथ से सजल की जांघ को सहलाते हुए कहा।
मनीषा इस नौजवान को जल्द से जल्द राह पर लाने का तरीका सोच रही थी। उसे इसका कोई अभ्यास नहीं था। उसे तो चट-पटाओ, बिस्तर पर जाओ, चोदो और निकल जाओ का तरीका ही आता था। उसने कुछ देर और ऐसी ही बेमानी बातों का सिलसिला ज़ारी रखा। पर कुछ ही देर में उसका धैर्य जवाब दे गया, और उसने अपनी चाल चलने का फैसला किया। उसने बातें करते-करते सजल के होठों का एक लम्बा चुम्बन ले डाला। उसकी जीभ सजल के मुँह में घुस गई। जब सजल ने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो मनीषा ने अपनी बाहें उसके गिर्द करीं और उसे लेकर वह सोफे पर ढह गई।
“तुम बड़े सजीले लड़के हो, सजल…” उसने अपने जिश्म को सजल के जिश्म से रगड़ते हुए कहा- “मेरे पुट्ठों को पकड़ो और दबाओ…”
सजल को अपनी मम्मी की चुदाई करने से यह तो पता चल गया था कि इस उम्र की औरतें क्या चाहती हैं। उसने फ़ौरन मनीषा की इच्छा पूरी की।
“मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, सजल… मुझे तुम्हारे साथ ऐसा करते हुए लग रहा है जैसे मैं फिर से जवान हो गई हूँ। मुझे चोदोगे… मैं तुम्हारे मोटे लण्ड को अपनी चूत में लेना चाहती हूँ…”
सजल ने अपने पुट्ठों को उठाया और मनीषा ने उसकी पैंट और फिर चड्ढी उतार फेंकी। उसकी शर्ट उसने अपने आप ही निकाल दी। मनीषा ने तो खुद नंगी होने में रिकार्ड बना दिया। जब सजल अपनी शर्ट उतार रहा था उतने में मनीषा ने अपने सैंडल छोड़कर बाकी सारे वस्त्र उतार फेंके थे।
“वाह, सजल…” मनीषा ने उसका मूसल जैसा लौड़ा देखकर तारीफ की- “यह तो बहुत बड़ा और मोटा है। लगभग…” उसके मुँह से सुनील का नाम निकलते-निकलते रह गया- “और ये मेरे हाथ में कितना सख्त लग रहा है…” कहते हुए मनीषा ने ईश्वर की उस सुंदर रचना को अपने मुँह में ले लिया।
“आआआह मनीषा आंटी…” सजल ने सिंहनाद की। मनीषा ने मुँह में लेते ही लण्ड की जबरदस्त चुसाई शुरू कर दी थी। सजल इसके लिये बिलकुल तैयार नहीं था।
“उम्म्म…” मनीषा ने चुसाई ज़ारी रखते हुए जवाब दिया। वह मन ही मन में सजल के लण्ड की तुलना उसके बाप के लण्ड से कर रही थी। यह बताना मुश्किल था कि उसे किसका स्वाद अधिक स्वादिष्ट लगा था। इसके लिये रस पीना ज़रूरी था।
“मुझे अपने झरने का थोड़ा रस पिलाओ न सजल…” मनीषा ने चुसाई करते हुए सजल के लण्ड की मुट्ठी मारनी चालू कर दी- “मुझे बताना जब तुम रस छोड़ने वाले हो। मैं तुम्हारा रस पीना चाहती हूँ। क्या तुम मेरा ऐसा करना पसंद करोगे…”
सजल के मुँह से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकली- “हाँ आंटी, ज़रूर… निकाल लो रस मेरे लण्ड से। चूस लो…” कुछ ही देर में वो फिर बोला- “मेरे ख्याल से निकलने ही वाला है… क्या आप तैयार हैं…”
मनीषा ने अपने मुँह की जकड़ उस पाइप पर तेज़ कर दी। कितनी लालची थी वो कि एक बूंद भी बेकार करने को राज़ी नहीं थी। सजल के गाढ़े वीर्य का पहला स्वाद उसे मुँह लगाते ही मिल गया। उसके बाद जो सजल ने रस की बरसात की तो मनीषा से पीना मुश्किल पड़ गया। आज तक उसने इतने जवान मर्द का पानी पिया नहीं था, न उसे पता था कि सजल के लौड़े में रस का झरना नहीं समंदर था। पर उसने हार नहीं मानी और किसी तरह पूरा पानी पी ही डाला।
“क्या तुम मेरे मम्मे, चूत और गाण्ड को छूना चाहोगे…” मनीषा ने जैसे इनाम की घोषणा की।
सजल ने अपने पुट्ठों को उठाया और मनीषा ने उसकी पैंट और फिर चड्ढी उतार फेंकी। उसकी शर्ट उसने अपने आप ही निकाल दी। मनीषा ने तो खुद नंगी होने में रिकार्ड बना दिया। जब सजल अपनी शर्ट उतार रहा था उतने में मनीषा ने अपने सैंडल छोड़कर बाकी सारे वस्त्र उतार फेंके थे।
“वाह, सजल…” मनीषा ने उसका मूसल जैसा लौड़ा देखकर तारीफ की- “यह तो बहुत बड़ा और मोटा है। लगभग…” उसके मुँह से सुनील का नाम निकलते-निकलते रह गया- “और ये मेरे हाथ में कितना सख्त लग रहा है…” कहते हुए मनीषा ने ईश्वर की उस सुंदर रचना को अपने मुँह में ले लिया।
“आआआह मनीषा आंटी…” सजल ने सिंहनाद की। मनीषा ने मुँह में लेते ही लण्ड की जबरदस्त चुसाई शुरू कर दी थी। सजल इसके लिये बिलकुल तैयार नहीं था।
“उम्म्म…” मनीषा ने चुसाई ज़ारी रखते हुए जवाब दिया। वह मन ही मन में सजल के लण्ड की तुलना उसके बाप के लण्ड से कर रही थी। यह बताना मुश्किल था कि उसे किसका स्वाद अधिक स्वादिष्ट लगा था। इसके लिये रस पीना ज़रूरी था।
“मुझे अपने झरने का थोड़ा रस पिलाओ न सजल…” मनीषा ने चुसाई करते हुए सजल के लण्ड की मुट्ठी मारनी चालू कर दी- “मुझे बताना जब तुम रस छोड़ने वाले हो। मैं तुम्हारा रस पीना चाहती हूँ। क्या तुम मेरा ऐसा करना पसंद करोगे…”
सजल के मुँह से बड़ी मुश्किल से आवाज़ निकली- “हाँ आंटी, ज़रूर… निकाल लो रस मेरे लण्ड से। चूस लो…” कुछ ही देर में वो फिर बोला- “मेरे ख्याल से निकलने ही वाला है… क्या आप तैयार हैं…”
मनीषा ने अपने मुँह की जकड़ उस पाइप पर तेज़ कर दी। कितनी लालची थी वो कि एक बूंद भी बेकार करने को राज़ी नहीं थी। सजल के गाढ़े वीर्य का पहला स्वाद उसे मुँह लगाते ही मिल गया। उसके बाद जो सजल ने रस की बरसात की तो मनीषा से पीना मुश्किल पड़ गया। आज तक उसने इतने जवान मर्द का पानी पिया नहीं था, न उसे पता था कि सजल के लौड़े में रस का झरना नहीं समंदर था। पर उसने हार नहीं मानी और किसी तरह पूरा पानी पी ही डाला।
“क्या तुम मेरे मम्मे, चूत और गाण्ड को छूना चाहोगे…” मनीषा ने जैसे इनाम की घोषणा की।
हालांकि सजल अभी-अभी झड़ा था पर उसे अपने अनुभव से पता था कि वो चुटकी में ही फिर से तैयार हो जायेगा। ऐसे में इस तरह का प्रस्ताव ठुकराने का कोई मतलब ही नहीं था- “ज़रूर, मनीषा आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है…”
मनीषा ने अपनी गाण्ड सजल की ओर करते हुए कहा- “छूकर देखो इसे…” उसकी कांपती आवाज़ ने इस बात की गवाही दी कि उसका अपनी भावनाओं पर काबू खत्म होता जा रहा था। उसे चुदाई की भीषण आवश्यकता महसूस हो रही थी। जब मनीषा सामने की ओर मुड़ी तो उसकी खिली हुई चूत देखकर सजल से रहा नहीं गया। उसने उस उजली चूत में अपनी दो उंगलियां पेल दीं। मनीषा की आंखें इस अपर्त्याशित आक्रमण से पलट गईं और वह बिना कुछ सोचे हुए बोल पड़ी- “चोदो इसे… चोद मेरी चूत को, आंटीचोद…”
पर सजल पहले उस कुंए की गहराई नापना चाहता था और अपनी उंगलियों को बाहर निकालने को राज़ी नहीं था।
“बहुत हो गया यह सब सजल…” मनीषा ने डांट लगाई- “पहले मेरे मम्मों को चूसो और फिर मुझे चोदना चालू करो…” मनीषा ने अपना ध्यान सजल के लण्ड को सख्त करने में लगाते हुए हिदायत दी- “मेरे निप्पलों को काटना ज़रूर… चबा जाओ उन्हें… हां ऐसे ही… अरे बड़ा सीखा हुआ लगता है रे तू तो… किसने सिखाया तुझे ये सब…”
जब मनीषा ने देखा कि सजल का लण्ड चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार है तो उसने अपने मम्मों को सजल के मुँह से बाहर निकाल लिया। उसने सजल के खड़े लण्ड को अपने हाथ में लेकर उसके ऊपर अपनी चूत को रख दिया। और फिर एक झटके के साथ उसपर बैठकर उसे अपनी चूत में भर लिया। फिर मनीषा ने गुहार की- “भर दे, भर दे, ऐ महान लौड़े मेरी चूत को भर दे…”
“मेरी गाण्ड को सहारा दो, सजल…” कहकर मनीषा ने अपनी चूचियों को सजल के मुँह में भर दिया। आगे झुकने से लण्ड उसकी चूत में और टाइट हो गया और मनीषा को स्वर्ग के दर्शन धरती पर ही होने लगे।
सजल ने अब रुके बिना मनीषा की प्यासी चूत में अपना हलब्बी लौड़ा पेलना शुरू कर दिया।
मनीषा ने भी धक्कों में हाथ बंटाया और उसके लण्ड पर तेजी से सरकने लगी। कभी सजल नीचे से धक्का देता तो कभी मनीषा ऊपर से अपनी चूत को उसके लण्ड पर बैठाती।
सजल की तो जैसे चांदी थी। घर पर चुदासी मम्मी थी और पड़ोस में चुदक्कड़ आंटी। एक के न होने पर दूसरी चूत मिलने की अब गारंटी थी। यही सोचकर उसके समंदर का रस तेज़ी के साथ अपनी आंटी के कुंए की ओर अग्रसर हुआ- “आआआह, उंह उंह…” उसने अपने लण्ड की पिचकारी मनीषा की चूत में छोड़ते हुए आवाज़ निकाली। उसके शरीर की सारी माँस-पेशियां तनाव में आ गईं और उसे रात और दिन एक ही समय में दिखने लगे।
उधर मनीषा का भी ऐसा ही कुछ हाल था। सजल के लण्ड की पिचकारी को अपनी चूत में रस भरते हुए महसूस करते ही उसकी चूत ने भी अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया। वो इतनी तेजी से झड़ी कि उसे हर चीज़ की ओर से अनभिज्ञता हो गई। अगर कोई उससे इस समय उसका नाम भी पूछता तो शायद वो बता नहीं पाती।
“और सजल, और, भर दो मेरी चूत को… चोद मुझे हरामखोर, मादरचोद, फाड़ दे मेरी चूत रंडी की औलाद…” मनीषा को पता ही नहीं था कि वो क्या बके जा रही थी।
मनीषा तब तक सजल के मूसल जैसे लौड़े पर कथक्कली करती रही जब तक कि वो सिकुड़ नहीं गया। उसके बाद वो वहीं सजल के पास ढह गई। उसके चेहरे पर असीम सन्तुष्टि की झलक थी, और आंखों में एक वहशियाना चमक… वोह सोच रही थी की उस छिनाल कोमल से मेरा बदला अब पूरा हो गया। मैनें उसके पूरे खानदान को अपनी चूत में समा लिया है। अगर मैं अब चाहूँ तो दोनों बाप-बेटे मेरे सैडल के तलुवे भी खुशी-खुशी चाटने को तैयार हो जायेंगे।
सजल उस चुदी हुई औरत की ओर देखकर सोच रहा था कि मेरी अपनी उम्र से बड़ी औरतों पर यह दूसरी विजय थी। पर उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि मनीषा ने उसे मादरचोद क्यों बुलाया था… क्या वो जानती थी कि…
मनीषा ने अपनी गाण्ड सजल की ओर करते हुए कहा- “छूकर देखो इसे…” उसकी कांपती आवाज़ ने इस बात की गवाही दी कि उसका अपनी भावनाओं पर काबू खत्म होता जा रहा था। उसे चुदाई की भीषण आवश्यकता महसूस हो रही थी। जब मनीषा सामने की ओर मुड़ी तो उसकी खिली हुई चूत देखकर सजल से रहा नहीं गया। उसने उस उजली चूत में अपनी दो उंगलियां पेल दीं। मनीषा की आंखें इस अपर्त्याशित आक्रमण से पलट गईं और वह बिना कुछ सोचे हुए बोल पड़ी- “चोदो इसे… चोद मेरी चूत को, आंटीचोद…”
पर सजल पहले उस कुंए की गहराई नापना चाहता था और अपनी उंगलियों को बाहर निकालने को राज़ी नहीं था।
“बहुत हो गया यह सब सजल…” मनीषा ने डांट लगाई- “पहले मेरे मम्मों को चूसो और फिर मुझे चोदना चालू करो…” मनीषा ने अपना ध्यान सजल के लण्ड को सख्त करने में लगाते हुए हिदायत दी- “मेरे निप्पलों को काटना ज़रूर… चबा जाओ उन्हें… हां ऐसे ही… अरे बड़ा सीखा हुआ लगता है रे तू तो… किसने सिखाया तुझे ये सब…”
जब मनीषा ने देखा कि सजल का लण्ड चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार है तो उसने अपने मम्मों को सजल के मुँह से बाहर निकाल लिया। उसने सजल के खड़े लण्ड को अपने हाथ में लेकर उसके ऊपर अपनी चूत को रख दिया। और फिर एक झटके के साथ उसपर बैठकर उसे अपनी चूत में भर लिया। फिर मनीषा ने गुहार की- “भर दे, भर दे, ऐ महान लौड़े मेरी चूत को भर दे…”
“मेरी गाण्ड को सहारा दो, सजल…” कहकर मनीषा ने अपनी चूचियों को सजल के मुँह में भर दिया। आगे झुकने से लण्ड उसकी चूत में और टाइट हो गया और मनीषा को स्वर्ग के दर्शन धरती पर ही होने लगे।
सजल ने अब रुके बिना मनीषा की प्यासी चूत में अपना हलब्बी लौड़ा पेलना शुरू कर दिया।
मनीषा ने भी धक्कों में हाथ बंटाया और उसके लण्ड पर तेजी से सरकने लगी। कभी सजल नीचे से धक्का देता तो कभी मनीषा ऊपर से अपनी चूत को उसके लण्ड पर बैठाती।
सजल की तो जैसे चांदी थी। घर पर चुदासी मम्मी थी और पड़ोस में चुदक्कड़ आंटी। एक के न होने पर दूसरी चूत मिलने की अब गारंटी थी। यही सोचकर उसके समंदर का रस तेज़ी के साथ अपनी आंटी के कुंए की ओर अग्रसर हुआ- “आआआह, उंह उंह…” उसने अपने लण्ड की पिचकारी मनीषा की चूत में छोड़ते हुए आवाज़ निकाली। उसके शरीर की सारी माँस-पेशियां तनाव में आ गईं और उसे रात और दिन एक ही समय में दिखने लगे।
उधर मनीषा का भी ऐसा ही कुछ हाल था। सजल के लण्ड की पिचकारी को अपनी चूत में रस भरते हुए महसूस करते ही उसकी चूत ने भी अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया। वो इतनी तेजी से झड़ी कि उसे हर चीज़ की ओर से अनभिज्ञता हो गई। अगर कोई उससे इस समय उसका नाम भी पूछता तो शायद वो बता नहीं पाती।
“और सजल, और, भर दो मेरी चूत को… चोद मुझे हरामखोर, मादरचोद, फाड़ दे मेरी चूत रंडी की औलाद…” मनीषा को पता ही नहीं था कि वो क्या बके जा रही थी।
मनीषा तब तक सजल के मूसल जैसे लौड़े पर कथक्कली करती रही जब तक कि वो सिकुड़ नहीं गया। उसके बाद वो वहीं सजल के पास ढह गई। उसके चेहरे पर असीम सन्तुष्टि की झलक थी, और आंखों में एक वहशियाना चमक… वोह सोच रही थी की उस छिनाल कोमल से मेरा बदला अब पूरा हो गया। मैनें उसके पूरे खानदान को अपनी चूत में समा लिया है। अगर मैं अब चाहूँ तो दोनों बाप-बेटे मेरे सैडल के तलुवे भी खुशी-खुशी चाटने को तैयार हो जायेंगे।
सजल उस चुदी हुई औरत की ओर देखकर सोच रहा था कि मेरी अपनी उम्र से बड़ी औरतों पर यह दूसरी विजय थी। पर उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि मनीषा ने उसे मादरचोद क्यों बुलाया था… क्या वो जानती थी कि…
जब कोमल ने अपनी गाड़ी घर के सामने खड़ी की तो उसे यह देखकर अचरज हुआ कि सजल मनीषा के घर से निकल रहा था।
“सजल… तुम उस औरत के घर में क्या कर रहे थे…” कोमल ने गुस्से से पूछा।
“उनसे एक बोतल नहीं खुल रही थी इसीलिये मुझे बुलाया था…” सजल ने हकलाते हुए जवाब दिया।
एक बार तो कोमल ने इस जवाब को स्वीकार कर लिया- “आगे से मैं तुम्हें उस कुतिया के पास नहीं देखना चाहूंगी। उसे अपने लिये ऐसा मर्द ढूँढ़ लेना चाहिये जो उसकी बोतल को खोल सके। यह हमारी गलती नहीं है कि उसका पति उसे छोड़कर भाग गया है…”
“अरे मम्मी, वो कोई बुरी औरत नहीं है…” सजल ने अपने द्वारा चुदी औरत का पक्ष लेते हुए कहा।
इससे तो कोमल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया- “अब मुझसे यह मत कहना कि तुम उस कुतिया को पसंद करने लगे हो। तुम उसके हाथों बेवकूफ मत बनना। मुझे उसपर रत्ती भर का विश्वास नहीं है और मैं हम में से किसी को भी उसके नज़दीक नहीं जाने दूँगी…”
घर के अंदर जाते हुए सजल अपना पूरा बचाव कर रहा था- “आखिर तुम्हें मनीषा आंटी में क्या बुराई नज़र आती है… मुझे तो वो एक ठीक औरत लगी…”
इसका जवाब देने के लिये कोमल बगलें झाँकने लगी। उसके जवाब से सजल को इतना तो समझ में आ गया कि यह नारी-सुलभ-ईर्ष्या का ही नतीज़ा है। सजल के मुँह से निकल गया- “तुम सिर्फ़ जलती हो, मम्मी…”
कोमल के सनसनाते हुए चांटे ने सजल के होश गंवा दिये। पर कोमल को अपनी गलती का तुरंत ही एहसास हो गया। कोमल ने सजल को अपनी बाहों में लेकर प्यार करना चाहा। पर सजल ने उसे अलग कर दिया। न केवल सजल अपनी मम्मी से इस झापड़ के लिये नाराज़ था बल्कि वह इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं था कि उसके जिश्म से मनीषा की चुदाई की खुशबू आ रही थी।
“छोड़ो मम्मी, मैं नहाने जा रहा हूँ…”
“सजल…” कोमल ने आवाज़ दी पर सजल उसे पीछे छोड़कर निकल गया। पर कोमल को इस बात से भी तकलीफ थी कि उसका परिवार जो मनीषा से अभी तक दूरी रखे था अचानक क्यों उसका खैरगार हो गया था। जब इसका सम्भावित उत्तर कोमल के जेहन में आया तो उसे पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। क्या वह मनीषा को भी चोद रहा था, जबकि उसे घर पर ही चूत उपलब्ध थी…
“वो कुतिया…” कोमल ने फुँफकार मारी। उसे विश्वास हो गया कि सजल ने मनीषा को चोद दिया था। अपनी मम्मी को चोदने से उसे अपने से बड़ी औरत का चस्का लग गया था।
मनीषा ने इसी का फायदा उठाया होगा।
राज शर्मा स्टॉरीज पर पढ़ें हजारों नई कहानियाँ
“सजल… तुम उस औरत के घर में क्या कर रहे थे…” कोमल ने गुस्से से पूछा।
“उनसे एक बोतल नहीं खुल रही थी इसीलिये मुझे बुलाया था…” सजल ने हकलाते हुए जवाब दिया।
एक बार तो कोमल ने इस जवाब को स्वीकार कर लिया- “आगे से मैं तुम्हें उस कुतिया के पास नहीं देखना चाहूंगी। उसे अपने लिये ऐसा मर्द ढूँढ़ लेना चाहिये जो उसकी बोतल को खोल सके। यह हमारी गलती नहीं है कि उसका पति उसे छोड़कर भाग गया है…”
“अरे मम्मी, वो कोई बुरी औरत नहीं है…” सजल ने अपने द्वारा चुदी औरत का पक्ष लेते हुए कहा।
इससे तो कोमल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया- “अब मुझसे यह मत कहना कि तुम उस कुतिया को पसंद करने लगे हो। तुम उसके हाथों बेवकूफ मत बनना। मुझे उसपर रत्ती भर का विश्वास नहीं है और मैं हम में से किसी को भी उसके नज़दीक नहीं जाने दूँगी…”
घर के अंदर जाते हुए सजल अपना पूरा बचाव कर रहा था- “आखिर तुम्हें मनीषा आंटी में क्या बुराई नज़र आती है… मुझे तो वो एक ठीक औरत लगी…”
इसका जवाब देने के लिये कोमल बगलें झाँकने लगी। उसके जवाब से सजल को इतना तो समझ में आ गया कि यह नारी-सुलभ-ईर्ष्या का ही नतीज़ा है। सजल के मुँह से निकल गया- “तुम सिर्फ़ जलती हो, मम्मी…”
कोमल के सनसनाते हुए चांटे ने सजल के होश गंवा दिये। पर कोमल को अपनी गलती का तुरंत ही एहसास हो गया। कोमल ने सजल को अपनी बाहों में लेकर प्यार करना चाहा। पर सजल ने उसे अलग कर दिया। न केवल सजल अपनी मम्मी से इस झापड़ के लिये नाराज़ था बल्कि वह इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं था कि उसके जिश्म से मनीषा की चुदाई की खुशबू आ रही थी।
“छोड़ो मम्मी, मैं नहाने जा रहा हूँ…”
“सजल…” कोमल ने आवाज़ दी पर सजल उसे पीछे छोड़कर निकल गया। पर कोमल को इस बात से भी तकलीफ थी कि उसका परिवार जो मनीषा से अभी तक दूरी रखे था अचानक क्यों उसका खैरगार हो गया था। जब इसका सम्भावित उत्तर कोमल के जेहन में आया तो उसे पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। क्या वह मनीषा को भी चोद रहा था, जबकि उसे घर पर ही चूत उपलब्ध थी…
“वो कुतिया…” कोमल ने फुँफकार मारी। उसे विश्वास हो गया कि सजल ने मनीषा को चोद दिया था। अपनी मम्मी को चोदने से उसे अपने से बड़ी औरत का चस्का लग गया था।
मनीषा ने इसी का फायदा उठाया होगा।
राज शर्मा स्टॉरीज पर पढ़ें हजारों नई कहानियाँ
No comments:
Post a Comment