हिंदी सेक्सी कहानियाँ
तेरे इश्क़ में पार्ट--2
गतान्क से आगे.................
उस शाम जब तहज़ीब अपने घर पहुँची तो दरवाज़े के बाहर फूलों की 5 टोक्रियाँ रखी थी. वही फूल जो दिन में उसने खुद बेचे थे, उस जीप वाले लड़को को ....
टोकरी पर एक काग़ज़ का टुकड़ा रखा था जिसपर लिखा था,
"फूल वापिस नही कर रहा हूँ, आपको दे रहा हूँ ... ये आपके लिए हैं, मेरी तरफ से"
"कबसे मेरा पिच्छा कर रहे थे?" तहज़ीब ने पुछा. वो और आदित्य दोनो एक पार्क में बैठे हुए थे.
"अर्रे बहुत पहले से" आदित्य ने जवाब दिया "याद है 2 साल पहले जब तुम वो टेलरिंग सीखने जाती थी?"
"हां याद है" तहज़ीब ने कहा
"तब मैं रोज़ाना ...." आदित्य ने कहना शुरू ही किया था के तहज़ीब ने बीच में उसकी बात काट दी.
"हां याद आया. जब भी मैं अपनी टेलरिंग क्लास से निकलती थी, तुम बाहर खड़े मिलते थे हमेशा"
"राइट. तुम्हें देखने के लिए ही वहाँ खड़ा रहता था" आदित्य ने हँसते हुए जवाब दिया.
"और मैं हमेशा सोचती थी के पता नही किसके लिए खड़ा रहता है बेचारा क्यूंकी मैने तुम्हें किसी के साथ देखा नही था, बस अकेले खड़े इंतेज़ार करते रहते थे" तहज़ीब उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली.
"बेचारा?" आदित्य भी उसके नरम हाथ पर अपनी गिरफ़्त जामाता हुआ बोला
"हां और नही तो क्या. तुम यार दिखने में इतने अच्छे भले थे और वहाँ टेलरिंग क्लास में एक भी लड़की ढंग की नही थी. मैं तुम्हें देखती थी तो लगता था के पता नही किसके साथ तुम्हारे नसीब फूट गये" कहते हुए वो हंस पड़ी.
"तुम्हारे साथ ही नसीब फोड़ने के चक्कर में था मैं"
"तो जब मैं रोज़ तुम्हारे सामने से होकर गुज़रती थी तो बताना चाहिए था ना मिस्टर. आदिल रहमान"
आदित्य और तहज़ीब को साथ 2 महीने हो गये थे. एक साल पहले वो रोज़ कुच्छ दिन तक तहीब के फूल उससे खरीदता और उसी के दरवाज़े पर छ्चोड़ आता जिससे चिड कर तहज़ीब ने उसे फूल बेचने से ही इनकार कर दिया था. नतीजा ये हुआ के आदित्य कहीं और से फूल खरीद कर उसके दरवाज़े पर छ्चोड़ने लगा.
धीरे धीरे रोज़ यूँ फूल देने का कुच्छ तो असर हुआ. तहज़ीब एक आम लड़की थी और उसका बर्ताव भी एक आम लड़की की तरह धीरे धीरे बदल गया. पहले सख़्त गुस्सा, फिर सिर्फ़ गुस्सा, फिर चिड़ना, फिर नॉर्मल रिक्षन, फिर रोज़ फूलों का इंतेज़ार और फिर उसको रोज़ यूँ शाम को अपने दरवाज़े पर फूलों का मिलना पसंद आने लगा. वो खूबसूरत सा लड़का जिसको देखकर ही वो कुढने लगती थी उसे पसंद आने लगा.
और फिर जब एक दिन उस लड़के ने उसका हाथ पकड़कर अपने दिल की बात कही, तो वो इनकार नही कर पाई. उस लड़के ने अपना नाम बताया था आदिल रहमान जिसके पापा एक बिज़्नेस-मॅन थे.
"मैने तुम्हें बहुत तलाश किया था तहज़ीब. तुम अचानक ही गायब हो गयी थी. बहुत भटका था तुम्हें ढूँढते हुए. तुम्हारे पड़ोसियों से पुछा, टेलरिंग क्लास की कुच्छ लड़कियों से पुछा पर किसी को कुच्छ पता नही था तुम्हारा. शहर के हर कोने में ढूँढा था मैने तुम्हें. कभी पोलीस फाइल्स में, कभी सोशियल सर्वीसज़ के ऑफिसस में, हर जगह तुम्हारा नाम तलाश किया पर तुम नही मिली. और फिर जब मैं उम्मीद छ्चोड़ चुका था, तब तुम मुझे एक दिन सड़क पर फूल बेचती हुई नज़र आ गयी. मैं बता नही सकता के क्या हाल हुआ था मेरा उस दिन. लगा था के जैसे मेरी खोई दुनिया मुझे मिल गयी. तुम वहाँ खड़ी फूल बेच रही थी और मैं अपनी जीप में बैठा तुम्हें देख बस खुशी के मारे रोता रहा"
"ओह आदिल" तहज़ीब उसके कंधे पर अपना सर रखते हुए बोली
"फिर तुम फूल बेचकर अपने घर चली और मैं तुम्हारा पिछा करता हुआ तुम्हारा घर देख आया"
"और अगले दिन मेरे फूल मुझसे ही खरीद लिए" तहज़ीब ने मुस्कुराते हुए बात पूरी की.
कुच्छ देर तक दोनो खामोश रहे.
"उस एक रात ने सब कुच्छ बदल दिया था आदिल" थोड़ी देर बाद तहज़ीब बोली "हिंदू-मुस्लिम के बीच लगी आग ने उन दिनो जाने कितने घर फूँके थे और उन्ही में एक घर मेरा भी था. मेरे माँ बाप और मेरा छ्होटे भाई, तीनो को ज़िंदा जला दिया गया था. बच गयी थी बस एक मैं. बहुत दिन तक यूँ ही भटकती रही रिश्ते-दारो के यहाँ. कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर. पर एक जवान लड़की को यूँ कोई नही छ्चोड़ता. जिसके यहाँ भी रही, वहाँ पर यही कोशिश की गयी के क्यूंकी मैं उनके यहाँ एक बोझ बनकर रह रही हूँ तो मेरा फ़र्ज़ बनता है के मैं ये क़र्ज़ किसी का बिस्तर गरम करके उतारू. किसी ने खुद अपने जिस्म की प्यास मुझसे बुझानी चाही तो किसी ने कोशिश की के मैं कही कोठे पर जाकर बैठ जाऊं. थक हारकर मैं फिर इसी शहर में लौट आई जहाँ मैं पैदा हुई थी और जहाँ मैने अपना सब कुछ खोया था और यहाँ मिल गये मुझे तुम ......"
"तो ये है वो लड़की?" निखिल और आदित्य दोनो बैठे चाइ पी रहे थे.
"हां" आदित्या ने निखिल की बात का जवाब दिया "याद है मैं कैसे रोज़ शाम को जीप लेकर गायब हो जाता था?"
"हां याद है. सारे काम एक तरफ करके मिस्टर. आशिक़ रोज़ शाम बिना किसी को कुच्छ बताए जाने कहाँ निकल जाते थे"
"इसके चक्कर में ही जाता था. उस वक़्त एक टेलरिंग स्कूल में जाती थी वो और मैं शाम को उसे देखने वहीं पहुँचता था"
"बढ़िया है, पुराना प्यार मिल गया. वैसे नाम क्या है होने वाली भाभी जी का?" निखिल ने पुछा तो आदित्य चुप हो गया
"तहज़ीब ख़ान" कुच्छ देर बाद उसने जवाब दिया.
निखिल के हाथ से चाइ का कप गिरते गिरते बचा
"तेरा दिमाग़ खराब हो गया है?" निखिल जैसे चिल्ला ही पड़ा "जो तू कह रहा है उस बात का मतलब समझता है?"
"हां समझता हूँ यार पर ....."
"नही तू नही समझता" निखिल ने बात काट दी "बिल्कुल नही समझता. तहज़ीन ख़ान? एक मुस्लिम? साले तेरे बाप को पता चल गया तो गला काट देगा तेरा? और लोग क्या कहेंगे?"
"मुझे लोगों का फरक नही पड़ता" आदित्य ने जवाब दिया
"पड़ना चाहिए. तेरा बाप हिंदू गठन का प्रेसीडेंट है बल्कि ये ग्रूप शुरू ही उन्होने किया है. क्या कहेंगे लोग जब सबको ये पता चलेगा के जो आदमी हिदुत्व की बड़ी बड़ी बातें करता है उसका अपना बेटा एक मुस्सेलमान लड़की के
चक्कर में पड़ा हुआ है?"
"मैने कहा ना निखिल" आदित्य ने फिर आराम से जवाब दिया "मुझे लोगों का कोई फरक नही पड़ता"
"अपने बाप का तो पड़ता है ना या उन्हें भी भूल गया तू चूत के चक्कर में?" निखिल गुस्से में बोला
"निखिल" आदित्य इतनी ज़ोर से चिल्लाया के निखिल 2 कदम पिछे को हो गया "दोस्ती में भी एक हद होती है. मैं उस लड़की से प्यार करता हूँ. तमीज़ से बात कर"
कुच्छ देर तक दोनो फिर चुप हो गये.
"आइ आम सॉरी यार" आदित्य थोड़ी देर बाद बोला.
"अब समझा" निखिल ने अपना सर पकड़ते हुए कहा "साला वो मस्जिद में जाके नमाज़ पढ़ना, धरम को छ्चोड़ कर इंसानियत की बातें करना. गठन की मीटिंग्स में तेरा ना आना .. ये सब उस लड़की के चक्कर में कर रहा है ना
तू?"
"उसके साथ जो हुआ उसका ज़िम्मेदार मैं हूँ निखिल. और बराबर का ज़िम्मेदार है तू साले. वो मुस्लिम कॉलोनी जहाँ वो रहती थी, उस कॉलोनी पर उस रात हमला तूने और मैने लेड किया था. मैं और तू वहाँ आदमी लेकर गये थे. उस रात जितने घर जले, जितने भी लोग मरे, सब तेरे और मेरे इशारे पर हुआ था. उसका घर मेरे कहने पर जला था. मेरा कहने पर उसके घरवालो को ज़िंदा जला दिया गया था"
"उनके बारे में सोच रहा है तू? और उन्होने हमारे घर नही जलाए? उन्होने हमारे हिंदू भाइयों की जान नही ली?" निखिल बोला
"उसने नही ली" आदित्य चेहरा सख़्त करते हुए बोला "वो बेचारी एक मासूम लड़की थी जो टेलरिंग सीख रही थी, अपनी एक टेलरिंग शॉप खोलना चाहती थी. उसने किसी की जान नही ली, किसी का घर नही जलाया"
कुच्छ देर के लिए कमरे में सन्नाटा च्छा गया.
"सोच निखिल" थोड़ी देर बाद आदित्य बोला "हम दोनो के कहने पर उस रात कितने लोग मरे थे. कितनी औरतें मरी थी. कितने मासूम बच्चो को हलाल किया गया था"
"ऐसा ही कुच्छ हमारी औरतों और बच्चों के साथ भी हुआ था" निखिल बोला
"नही" आदित्य ने कहा "उन दंगो में ना कोई तेरे घर से मरा था और ना ही मेरे घर से. दोनो तरफ से मरे थे आम लोग जिनको हिंदू-मुस्लिम से ज़्यादा 2 वक़्त की रोटी से मतलब था. और इस देश में 100 करोड़ हिंदू रहते हैं, सब
तेरे अपने हैं क्या? अगर ऐसा है तो जाकर लड़ उन सबके लिए. उन सबको 2 वक़्त की रोटी दे, रोज़गार दिला, नौकरियाँ दिला, किसी के साथ ना-इंसाफी मत होने दे. सब तेरे अपने हैं ना?"
"उसको पता है के तू हिंदू है?"निखिल ने जैसे उसकी बात सुनी ही नही थी
"नही. मैने उसको बताया है के मैं एक मुस्लिम हूँ. आदिल रहमान"
"वाह" निखिल ने ज़ोर से ताली बजाई "हिंदू गठन के प्रेसीडेंट का बेटा एक मुस्लिम. आदिल रहमान. शाबाश मेरे यार. अब आगे क्या प्लान है? अपना लंड भी कटवाओगे क्यूंकी लंड तो तुम उसको दिखाओगे ही किसी ना किसी दिन?"
"निखिल" आदित्य फिर गुस्से में बोला
"और कितना टाइम लगेगा?" आदित्य ने रिसेप्षनिस्ट से पुछा
"बस थोड़ी देर और सर" रिसेप्षन पर खड़ी लड़की ने जवाब दिया वो और तहज़ीब दोनो एक क्लिनिक में बैठे हुए थे.
"बार बार रिसेप्षन पर पहुच जाते हो" आदित्य वापिस आकर बैठा तो तहज़ीब बोली "वो लड़की बहुत पसंद आ रही है क्या?"
"शूट अप" आदित्य ने हँसते हुए जवाब दिया.
कुच्छ दिन पहले दोनो साथ में थे जब तहज़ीब को अचानक चक्कर आए और वो बेहोश होकर गिर पड़ी. उस वक़्त दोनो ने सोचा के शायद गर्मी की वजह से ऐसा हुआ पर फिर ये बार बार होने लगा. तहज़ीब अचानक कुछ करते करते
चक्कर खाकर गिर पड़ती और बेहोश हो जाती.
और फिर उसके सर में दर्द रहने लगा जो धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था. सेहत रोज़ाना गिरती जा रही थी.
आँखों के नीचे काले धब्बे बनने शुरू हो गये क्यूंकी सर में दर्द की वजह से वो सो नही पाती थी. आदित्य उसको लेकर एक डॉक्टर के यहाँ पहुँचा. कुच्छ टेस्ट्स कराए गये और आज उनको रिज़ल्ट्स लेने के लिए आना था.
दोनो लॉबी में बैठे डॉक्टर के साथ अपने अपायंटमेंट का इंतेज़ार कर रहे थे.
"आदिल तुमने कभी कोई सपना देखा है?" अचानक तहज़ीब ने पुछा
"हां देखा है. रोज़ रात को आते है अजीब अजीब से ख्वाब"
"अर्रे वो नही" वो खिसक कर उसके करीब होते हुए बोली "मेरा मतलब के ज़िंदगी का ख्वाब. जो तुम अपनी ज़िंदगी में हासिल करना चाहते हो"
"हाँ है ना. तुम" आदित्य ने मुस्कुरा कर कहा
क्रमशः.......................................
TERE ISHQ MEIN paart--2
gataank se aage.................
Us shaam jab Tehzeeb apne ghar pahunchi toh darwaze ke bahar phoolon ki 5 tokriyan rakhi thi. Vahi phool jo din mein usne khud beche the, Us jeep wale ladko ko ....
Tokri par ek kagaz ka tukda rakha tha jispar likha tha,
"Phool vaapis nahi kar raha hoon, aapko de raha hoon ... Ye aapke liye hain, meri taraf se"
"Kabse mera pichha kar rahe the?" Tehzeeb ne puchha. Vo aur Aditya dono ek park mein bethe hue the.
"Arrey bahut pehle se" Aditya ne jawab diya "Yaad hai 2 saal pehle jab tum vo Tailoring sikhne jaati thi?"
"Haan yaad hai" Tehzeeb ne kaha
"Tab main rozana ...." Aditya ne kehna shuru hi kiya tha ke Tehzeeb ne beech mein uski baat kaat di.
"Haan yaad aaya. Jab bhi main apni tailoring class se nikalti thi, tum bahar khade milte the hamesha"
"Right. Tumhein dekhne ke liye hi vahan khada rehta tha" Aditya ne haste hue jawab diya.
"Aur main hamesha sochti thi ke pata nahi kiske liye khada rehta hai bechara kyunki maine tumhein kisi ke saath dekha nahi tha, bas akele khade intezaar karte rehte the" Tehzeeb uska haath apne haath mein lete hue boli.
"Bechara?" Aditya bhi uske naram haath par apni giraft jamata hua bola
"Haan aur nahi toh kya. Tum yaar dikhne mein itne achhe bhale the aur vahan tailoring class mein ek bhi ladki dhang ki nahi thi. Main tumhein dekhti thi toh lagta tha ke pata nahi kiske saath tumhare naseeb phoot gaye" Kehte hue vo has padi.
"Tumhare saath hi naseeb phodne ke chakkar mein tha main"
"Toh jab main roz tumhare saamne se hokar guzarti thi toh batana chahiye tha na Mr. Adil Rehman"
Aditya aur Tehzeeb ko saath 2 mahine ho gaye the. Ek saal pehle vo roz kuchh din tak Teheeb ke phool usse kharidta aur usi ke darwaze par chhod aata jisse chid kar Tehzeeb ne use phool bechne se hi inkaar kar diya tha. Nateeja ye hua ke Aditya kahin aur se phool kharid kar uske darwaze par chhodne laga.
Dheere dheere roz yun phool dene ka kuchh toh asar hua. Tehzeeb ek aam ladki thi aur uska bartav bhi ek aam ladki ki tarah dheere dheere badal gaya. Pehle sakht gussa, phir sirf gussa, phir chidna, phir normal reaction, phir roz phoolon ka intezaar aur phir usko roz yun shaam ko apne darwaze par phoolon ka milna pasand aane laga. Vo khoobsurat sa ladka jisko dekhkar hi vo kudhne lagti thi use pasand aane laga.
Aur phir jab ek din us ladke ne uska haath pakadkar apne dil ki baat kahi, toh vo inkaar nahi kar paayi. Us ladke ne apna naam bataya tha Adil Rehman jiske Papa ek business-man the.
"Maine tumhein bahut talash kiya tha Tehzeeb. Tum achanak hi gayab ho gayi thi. Bahut bhatka tha tumhein dhoondhte hue. Tumhare padosiyon se puchha, tailoring class ki kuchh ladkiyon se puchha par kisi ko kuchh pata nahi tha tumhara. Shehar ke har kone mein dhoondha tha maine tumhein. Kabhi police files mein, kabhi social services ke offices mein, har jagah tumhara naam talash kiya par tum nahi mili. Aur phir jab main ummeed chhod chuka tha, tab tum mujhe ek din sadak par phool bechti hui nazar aa gayi. Main bata nahi sakta ke kya haal hua tha mera us din. Laga tha ke jaise meri khoyi duniya mujhe mil gayi. Tum vahan khadi phool bech rahi thi aur main apni jeep mein betha tumhein dekh bas khushi ke maare rota raha"
"Oh Adil" Tehzeeb uske kandhe par apna sar rakhte hue boli
"Phir tum phool bechkar apne ghar chali aur main tumhara pichha karta hua tumhara ghar dekh aaya"
"Aur agle din mere phool mujhse hi khareed liye" Tehzeeb ne muskurate hue baat poori ki.
Kuchh der tak dono khamosh rahe.
"Us ek raat ne sab kuchh badal diya tha Adil" Thodi der baad Tehzeeb boli "Hindu-Muslim ke beech lagi aag ne un dino jaane kitne ghar phoonke the aur unhi mein ek ghar mera bhi tha. Mere maan baap aur mera chhote bhai, teeno ko zinda jala diya gaya tha. Bach gayi thi bas ek main. Bahut din tak yun hi bhatakti rahi rishte-daaro ke yahan. Kabhi kisi ke ghar toh kabhi kisi ke ghar. Par ek jawan ladki ko yun koi nahi chhodta. Jiske yahan bhi rahi, vahan par yahi koshish ki gayi ke kyunki main unke yahan ek bojh bankar reh rahi hoon toh mera farz banta hai ke main ye karz kisi ka bistar garam karke utaroon. Kisi ne khud apne jism ki pyaas mujhse bujhani chahi toh kisi ne koshish ki ke main kahi kothe par jaanakr beth jaoon. Thak haarkar main phir isi shehar mein laut aayi jahan main paida hui thi aur jahan maine apna sab kuchhh khoya tha aur yahan mil gaye mujhe tum ......"
"Toh ye hai vo ladki?" Nikhil aur Aditya dono bethe chaai pi rahe the.
"Haan" Aditya ne Nikhil ki baat ka jawab diya "Yaad hai main kaise roz shaam ko Jeep lekar gayab ho jata tha?"
"Haan yaad hai. saare kaam ek taraf karke Mr. Aashiq roz shaam bina kisi ko kuchh bataye jaane kahan nikal jaate the"
"Iske chakkar mein hi jata tha. Us waqt ek tailoring school mein jaati thi vo aur main shaam ko use dekhne vahin pahunchta tha"
"Badhiya hai, purana pyaar mil gaya. Vaise naam kya hai hone wali Bhabhi ji ka?" Nikhil ne puchha toh Aditya chup ho gaya
"Tehzeeb Khan" Kuchh der baad usne jawab diya.
Nikhil ke haath se chaai ka cup girte girte bacha
"Tera dimag kharab ho gaya hai?" Nikhil jaise chilla hi pada "Jo tu keh raha hai us baat ka matlab samajhta hai?"
"Haan samajhta hoon yaar par ....."
"Nahi tu nahi samajhta" Nikhil ne baat kaat di "Bilkul nahi samajhta. Tehzeen Khan? Ek Muslim? Saale tere baap ko pata chal gaya to gala kaat dega tera? Aur log kya kahenge?"
"Mujhe logon ka farak nahi padta" Aditya ne jawab diya
"Padna chahiye. Tera baap Hindu Gathan ka president hai balki ye group shuru hi unhone kiya hai. Kya kahenge log jab sabko ye pata chalega ke jo aadmi Hindutva ki badi badi baaten karta hai uska apna beta ek musselman ladki ke
chakkar mein pada hua hai?"
"Maine kaha na Nikhil" Adita ne phir aaram se jawab diya "Mujhe logon ka koi farak nahi padta"
"Apne baap ka toh padta hai na ya unhen bhi bhool gaya tu choot ke chakkar mein?" Nikhil gusse mein bola
"Nikhil" Aditya itni zor se chillaya ke Nikhil 2 kadam pichhe ko ho gaya "Dosti mein bhi ek hadh hoti hai. Main us ladki se pyaar karta hoon. Tameez se baat kar"
Kuchh der tak dono phir chup ho gaye.
"I am sorry yaar" Aditya thodi der baad bola.
"Ab samjha" Nikhil ne apna sar pakadte hue kaha "Saala vo masjid mein jaake namaz padhna, Dharam ko chhod kar insaaniyat ki baaten karna. Gathan ki meetings mein tera na aana .. ye sab us ladki ke chakkar mein kar raha hai na
tu?"
"Uske saath jo hua uska zimmedar main hoon Nikhil. Aur barabar ka zimmedar hai tu saale. Vo muslim colony jahan vo rehti thi, us colony par us raat hamla tune aur maine lead kiya tha. Main aur tu vahan aadmi lekar gaye the. Us raat jitne ghar jale, jitne bhi log mare, sab tere aur mere ishare par hua tha. Uska ghar mere kehne par jala tha. Mera kehne par uske gharwalo ko zinda jala diya gaya tha"
"Unke baare mein soch raha hai tu? Aur unhone hamare ghar nahi jalaye? Unhone hamare Hindu bhaiyon ki jaan nahi li?" Nikhil bola
"Usne nahi li" Aditya chehra sakht karte hue bola "Vo bechari ek masoom ladki thi jo tailoring seekh rahi thi, apni ek tailoring shop kholna chahti thi. Usne kisi ki jaan nahi li, kisi ka ghar nahi jalaya"
Kuchh der ke liye kamre mein sannata chha gaya.
"Soch Nikhil" Thodi der baad Aditya bola "Ham dono ke kehne par us raat kitne log mare the. Kitni auraten mari thi. Kitne masoom bachcho ko halal kiya gaya tha"
"Aisa hi kuchh hamari auraton aur bachchon ke saath bhi hua tha" Nikhil bola
"Nahi" Aditya ne kaha "Un dango mein na koi tere ghar se mara tha aur na hi mere ghar se. Dono taraf se mare the aam log jinko hindu-muslim se zyada 2 waqt ki roti se matlab tha. Aur is desh mein 100 crore hindu rehte hain, sab
tere apne hain kya? Agar aisa hai toh jakar lad un sabke liye. Un sabko 2 waqt ki roti de, rozgar dila, naukriyan dila, kisi ke saath na-insafi mat hone de. Sab tere apne hain na?"
"Usko pata hai ke tu Hindu hai?"Nikhil ne jaise uski baat suni hi nahi thi
"Nahi. Maine usko bataya hai ke main ek Muslim hoon. Adil Rehman"
"Wah" Nikhil ne zor se taali bajayi "Hindu Gathan ke president ka beta ek muslim. Adil Rehman. Shabash mere yaar. Ab aage kya plan hai? Apna lund bhi katwaoge kyunki lund to tum usko dikhaoge hi kisi na kisi din?"
"Nikhil" Aditya phir gusse mein bola
"Aur kitna time lagega?" Aditya ne receptionist se puchha
"Bas thodi der aur sir" Reception par khadi ladki ne jawab diya Vo aur Tehzeeb dono ek clinic mein bethe hue the.
"Baar baar reception par pahuch jaate ho" Adtiya vaapis aakar betha toh Tehzeeb boli "Vo ladki bahut pasand aa rahi hai kya?"
"Shut up" Aditya ne haste hue jawab diya.
Kuchh din pehle dono saath mein the jab Tehzeeb ko achanak chakkar aaye aur vo behosh hokar gir padi. Us waqt dono ne socha ke shayad garmi ki vajah se aisa hua par phir ye baar baar hone laga. Tehzeeb achanak kuchhh karte karte
chakkar khakar gir padti aur behosh ho jaati.
Aur phir uske sar mein dard rehne laga jo dheere dheera badhta ja raha tha. Sehat rozana girti ja rahi thi.
Aankhon ke neeche kaale dhabbe banne shuru ho gaye kyunki sar mein dard ki vajah se vo so nahi paati thi. Aditya usko lekar ek doctor ke yahan pahuncha. Kuchh tests karaye gaye aur aaj unko results lene ke liye aana tha.
Dono lobby mein bethe doctor ke saath apne appointment ka intezaar kar rahe the.
"Adil tumne kabhi koi sapna dekha hai?" Achanak Tehzeeb ne puchha
"Haan dekha hai. Roz raat ko aate hai ajeeb ajeeb se khwaab"
"Arrey vo nahi" Vo khisak kar uske kareeb hote hue boli "Mera matlab ke zindagi ka khwaab. Jo tum apni zindagi mein haasil karna chahte ho"
"Haan hai na. Tum" Aditya ne muskura kar kaha
kramashah.......................................
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