दोस्ती से नहीं तो प्यार से ही
नमस्कार दोस्तों,मेरा नाम शिवम है और मैं आज आपको इस कहानी के ज़रिये
नेहा और मेरी चुदाई की रासलीला के बारे में बताना चाहता हूँ | नेहा मेरे
बचपन से स्कूल की छात्रा रह चुकी थी और जब मैं मुंबई में अपनी नौकरी कर
रहा था तभी मेरी मुलाकात अचानक नेहा से हुई | वो शकल – सूरत में बदली तो
नहीं थी बस उससके चुचो इतने मोटे हो चुके थे जैसे अभी उसके टॉप में से
निकल जाएंगे और वोह थोड़ी लंबी हो चुकी थी | नेहा ने मुझे बताया की वो
इसी शहर में नयी आई हुई है और सामने की ही एक कम्पनी में काम भी कर रही
थी | उसे काम के बाद मैं अब मुंबई के दर्शन करने लगा जिससे मेरी और नेहा
की दोस्ती काफ़ी अच्छी हो गयी थी | धीरे – धीरे मैं नेहा को शारीरक अनुभव
भी दिलाता पर वो मेरा विरोध कर अपने हाथ को हटा लेती |अब मेरी धीरे –
धीरे नेहा की चुत हरी करनी कामना बढ़ने लगी और ऐसे लगने लगा की मेरे अंदर
का ज्वालामुखी फट निकलेगा | अब मैंने नेहा को एक मुम्बई शहर की मस्त
खूबसूरत जगह पर ले गया और वहीँ उसके सामने अपने प्यार का प्रस्ताव भी रख
दिया | नेहा ने कुछ सोचकर मझे हामी भर दिया पर उसे नहीं पता था की अब
उसने अपनी चुत मरवाने के कागजातों पर हाश्ताक्षर कर चुके हैं | मैंने अब
धीरे – धीरे नेहा को चूमना और कभी उसके चुचियों को दबाना चालू कर दिया
जिसपर अब मेरा कोई विरोध भी ना करती | अब जब बात नेहा को चोदने की आई तो
मैंने दिन नेहा को बिना ज्यादा कुछ कहे रविवार को की सुबह – सुबह अपने घर
बुला लिया |हमने सुबह का वक्त तो बस बातों – बातों में गुज़ार दिया | अब
जब शाम होने लगी तो मैंने कुछ देर की एक रोमांटिक फिल्म लगा दी और उसके
खतम होने के बाद मस्त में अपने सोफे पर नेहा की गौद में लेटे हुए उसे
सहलाने लगा और रोमांटिक बातें भी करने लगा | तभी मैंने अपने उसके टॉप के
उप्पर से उसके चुचियों को हल्का – हल्का भींचकर उसके चूकों को पैना दिया
और वो इस कमुकी की गर्मी से तंग हो गयी | मैंने उसे इशारों में उसके
कपड़ों को खोलने के लिए मना लिया | मैंने पहले उसके टॉप को उतारा और उसकी
ब्रा के के हुक को खोल उसकी मस्त न्योर गोरी – गोरी चुचियों को दबाते हुए
मुंह में भींच – चींच के पीने लगा | मैंने अब नेहा को वहीँ सोफे पर लिटा
दिया और उसकी काले रंग स्कर्ट को भी खोल दिया | मैं नेहा के साथ लेटे हुए
उसकी चूची को पीने लगा और उसकी पैंटी के उप्पर हाथ फेरने लगा |नेहा की
सफ़ेद थोड़ी देर में गीली हो गई थी और तभी मैंने नेहा को पूरो नंगी कर
उसकी उसकी चुत को अपनी उँगलियों से चौड़ाकर अपनी जीभ से चाटने लगा जिसपर
नेहा अआहहह्ह अहहहहा मज़े में चूर हो गयी | हम दोनों अब चुदम – चुदाई का
खेल खेलने के लिए पूरे तैयार हो गए थे | मैं अब सीधा उसके उप्पर चढकर
उसकी टांगों के बीच उसकी चुत में अपने को घुसाते हुए झटके देने लगा |
नेहा को कुछ समझ में ना आ रहा था वो पहले दर्द से कराहने लगी और जब उसे
कुछ मिनट तक मेरे लंड के झटकों आदत सी पड़ गयी वो भी अपनी गांड को उठा –
उठा के मेरे लोले पर फिसलने लगी | आखिर में झड़ने से पहले मैंने उसे उलटा
लिटाया और उसकी गांड को में ऊँगली करता हुआ वहीँ झड गया | हम पूरी रात भर
एक साथ पड़े रहे और इस तरह कम से कम ४ बार चुदाई तक कर चुके थे |
अगर, मैने ये गलती न की होती
मेरा नाम सलमा है और ये बात मेरे कॉलेज के दिनों की है | मै अपने कॉलेज
मे अपने शायराना अंदाज के लिए मशहूर हुआ करती थी और मै एक संभ्रांत
परिवार से हुआ करती थी | मै दिखने मे काफी सुंदर थी और तीखे नैनं-नक्श की
मालिक थी | कॉलेज के काफी सारे लड़के मेरी चमचागिरी किया करते थे | मेरे
दीवानों मे एक शोअब नाम का लड़का हुआ करता था; वो, भी शायराना अंदाज के
लिए कॉलेज मे प्रसिद था | वो मेरी चमचागिरी तो नहीं करता था; लेकिन,
दिल-ही-दिल मे मुझे चाहता था | लेकिन, मैने उसको कभी घास नहीं डाली |
मेरी साड़ी सहेलिया मुझे बोलती थी; सलमा, डोर पकड़ ले | अच्छा लड़का है |
पर पता नहीं, मुझे वो पसंद नहीं था | मेरे साथ मेरी चचेरी बहन शीबा पढती
थी | उसको, शोअब बाबु पे बडा तरस आता था | जब भी, वो मुझे उसके बारे मे
समझाती; मै उसको बोलती, तू ही पकड़ ले उसे | वो, हमेशा एक ठंडी सांस लेकर
कहती, काश वो हमपे फ़िदा होते और फिर, हम दोनों बहुत जोर से एक साथ हंस
पड़ते | शीबा की जन्मदिन की महफिल जमी थी और शायरी का समां बंधा था | मै
और शोअब अपनी-अपनी शायरी से अबका मन मोह के बेठे थे | चुकि, हम दावत देने
वाले थे | तो, शोअब ने मेरी तरफ मुखातिब होते हुए बोला, केवल शायरी से
पेट भरने का इरादा है क्या? मुझे उसपर बडा ग़ुस्सा आया और मैने शीबा को
बोला; देखा, छोटे लोगो की छोटी मानसकिता | लेकिन, शीबा ने उसको सादगी
बताया |ख़ैर, मै सबके साथ व्यस्त हो गयी | सबके जाने के बाद पता चला; कि,
हमारी शीबा मेमसाहब ने शोअब बाबु को निकाह की दावत दे दी है और शोअब बू
ने उसको कुबूल भी कर लिया है | शीबा, तो पर लगा कर हवा मे उड़ रही थी;
परिवार वाले भी, उन्दोनो की शादी के तैयार हो गये | उन्दोनो का निकाह
कॉलेज के बाद तय हो गया | कॉलेज के दिन खत्म हो गये और शोअब बाबु दुसरे
शहर मे नौकरी के लिए चले गये | उनकी सरकारी नौकरी लगी थी और काफी अच्छी
थी | शीबा और परिवार काफी खुश था | मेरे लिए भी, एक लड़का ढूंढा गया |
उनका नाम वकार था और वो निजी कंपनी मे अच्छे पद पे काम कर रही थे | मुझे
वो और उनका रुतबा काफी पसंद आया | मेरा और शीबा का निकाह एक ही दिन हो
गया और हम दोनों अपने-अपने शौहर के साथ दुसरे शहरो मे चले गये | हम दोनों
ही अपनी जिन्दगी मे इतने व्यस्त हो गये; कि, एक दुसरे से बात करने का
मौका नहीं मिला | वकार, मेरी उम्मीद से काफी परे थे और वो औरतो का बाहर
आना-जाना पसंद नहीं करते थे | मै सिर्फ उनके घर को सँभालने वाली एक
कठपुतली रहा गयी थी | हम दोनों की सेक्स लाइफ कुछ भी नहीं थी; क्योकि,
हमारा निकाह उनकी मर्ज़ी के खिलाफ हुआ था और मै सिर्फ उनकी अम्मी की पसंद
थी | सही मायनों मे , मेरी जिन्दगी नरक बन चुकी थी | उधर, शीबा अपनी
जिन्दगी मे लाफि खुश थे और दो बच्चो की माँ बन चुकी थी | काफी अरसे बाद,
शीबा का फ़ोन आया; तो, मै ख़ुशी से उछल पड़ी | शोअब, हमारे शहर मे किसी
समारोह मे मुख्य अतिथी थे | जब उन्होंने, पता और कंपनी के बारे मे बताया,
तो वो वकार की कंपनी मे आने वाले थे | शोअब काफी अच्छे पद पर पहुच गये थे
| शोअब और वकार एक दुसरे से निकाह के बाद नहीं मिले थे; तो, एक दुसरे से
परिचित नहीं थे | जब मैने वकार को उसके बारे मे बताया; तो, उन्होंने कोई
ध्यान नहीं दिया और सोने चले गये | समारोह वाले दिन, शोअब, शीबा को लाकर
घर आये और शीबा का छोड़कर वो समारोह मे चले गये | शीबा थोड़ी देर रुककर
अम्मी के घर चली गयी और मै शाम को समारोह मै चली गयी | शोअब का, वकार के
हाथो सम्मान देखकर, मुझे शीबा की किस्मत से ईर्ष्या होने लगी | समारोह के
बाद, मै अकेले खड़ी थी; तो, शोअब मेरे पास आकर मुझे से बाते करने लगे |
तभी, पास की झाड़ियो मे से, एक आदमी और औरत की आवाज़ आयी | ये आवाज़,
वकार के जूनियर की बीवी की थी | वो, बोल रही थी; सर, थोडा धीरे कीजिये |
आज की रात, ये चूत सिर्फ आपकी है | वकार के जूनियर, तरक्की के लिए वकार
को अपनी बीवी पेश करते थे | वकार ने मेरे शरीर को आज तक छुया भी नहीं था
और वही वो दुसरो की चुतो को अपने लंड की गरमी से तृप्त कर रहे थे | शोअब
और मै, दोनों ही ये सब सुन रहे थे और मै शोअब से आँखे नहीं मिला पा रही
थी | शोअब मुझे लाकर घर आ गये | और हम शोअब ने मुझे उस रात अपनी नजाकत से
तृप्त किया |
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