हिंदी सेक्सी कहानियाँ
प्यार से तृप्त कर दो
प्रेषक : विजय पण्डित
विजय शर्मा, अपना पहली चुदाई का सच्चा अनुभव बता रहे हैं। उन्हीं की
जुबानी और मेरी लेखनी, कुछ इस तरह से है ...
मेरे कार्यालय के तीन अफ़सरों ने मिलकर एक बड़ा मकान ले लिया था। यह मकान
दो मंजिला था। नीचे के भाग में हमने एक हमारे ही कार्यालय के कम आय वाले
कर्मचारी को बिना किसी किराये के रहने को दे दिया था। हम तीनों उसे राशन
लाकर दे देते थे और उसकी पत्नी हमारे लिये चाय, भोजन आदि का प्रबन्ध कर
देती थी।
हम तीनों कुंवारे ही थे और निचले भाग में रहने वाले परिवार में दो छोटी
सी लड़कियाँ भी थी। मेरा व्यवहार सभी से मृदुल और सरल था, इसलिये नीचे
रहने वाली कमला बाई, जी हाँ, हम लोग उसे इसी नाम से पुकारते थे, मुझ से
बहुत खुश रहती थी। वो तो खुद ही कहती थी कि उसे सिर्फ़ कमला नहीं, कमला
बाई कह कर बुलाया करो। उसे रसोई में किसी सामग्री की कमी नजर आती थी तो
वो मुझे ही कहती थी।
साल भर में मेरे तीनों साथियों ने अपने इच्छित स्थानों कानपुर और लखनऊ
अपना तबादला करवा लिया था। अब इस घर में बस एक ही फ़ेमिली रह गई थी और साथ
में मैं अकेला। पर इससे कमला बाई बहुत खुश रहने लगी थी। अब तो खाली समय
में वो मुझसे खूब बतियाती रहती थी। मेरे साथ हंसती थी थी, खिलखिलाती थी।
कभी कभी तो वो कोई मीठी सी सेक्स की बात भी छेड़ देती थी। अधिकतर तो रात
के बारह तक बज जाते थे। मुझे भी उसका साथ अच्छा लगने लगा था। वो मेरे पास
आती थी तो खुशबू लगा कर आती थी। हमेशा मुस्कराता चेहरा... कमला मेरा
ध्यान बिल्कुल अपने पति की तरह रखने लगी थी। मेरी चाय, मेरा खाना वो मेरे
कमरे में लेकर आ जाती थी और बहुत प्यार से खिलाती थी। मेरे स्नान के लिये
मेरा तौलिया, मेरी ऑफ़िस की ड्रेस तक वो जमा कर बाहर मेज पर रख देती थी।
मुझे कभी कभी ऐसा प्रतीत होता था कि वो मुझसे प्यार करने लगी है। उसका या
मैं अनावश्यक ही उसकी ओर आकर्षित होने लगा हूँ। उसका पति अधिकतर अपने
लिपिक दोस्तों के साथ दारू पीकर रात को बारह से एक बजे तक लौटता था। पर
वो शान्त किस्म का आदमी था। मैंने कभी भी उसे दारू पी कर लड़ते झगड़ते नहीं
देखा था। कई बार तो कमला मेरे कमरे में मुझसे बातें करते करते सो भी जाती
थी। तब मैं उसके अंगों को बहुत ही आराम से निहारा करता था।
यह तो मेरा सौभाग्य था कि मुझे निहारने के लिये मेरे पास एक नारी तो है।
मुझे लगता था कि उसके अंग जैसे अनछुये से है, सीधा तना हुआ सीना, उसके
चिकने पैर, कभी कभी उसकी जांघे तक दिख जाती थी, एक दम मांसल, गोरी, चिकनी
सी। मैं उसे निहारते हुये कभी कभी तो सपनों में खो जाता था और उसे नग्न
देखा करता था...
पर चूंकि मैंने ना तो चूत को कभी देखा ही था और ना ही उसके उरोजो को देखा
था, तो बस चूत को या उरोजों को सोचते हुये उसकी तस्वीर धुंधलाने लगती थी।
उसका भोला चेहरा। पतली पतली सी होंठो की पखुड़ियाँ, डिम्पल वाले गोल गोल
गाल, आँखें जैसे मय खाने सी... मुझे उस पर बहुत प्यार आता था।
एक बार अचानक ही ... कुछ ऐसा घट गया कि मेरी जिदगी ही बदल गई। रोज की तरह
मैं स्नान करके मात्र चड्डी में ही बाहर निकल आया था। मेरा लण्ड जाने
कैसे सीधा खड़ा था। मैं अनजान सा बाहर आ गया था। बाहर कमला तौलिया लेकर
खड़ी थी। मेरे लिये ये कोई नई बात नहीं थी, पर हाँ, मेरा लण्ड जाने कैसे
कड़क हो कर तना हुआ था। वो मुझे एक टक देखती रही, लण्ड को भी देखा ...
मेरे लण्ड को देख कर वो मुस्कराई। मुझे नहीं पता था कि वो क्यूँ
मुस्कराई, पर मैं भी उसे देख कर यूँ ही मुस्करा दिया। उसने आगे बढ़ कर
तौलिया दे दिया।
"आज तो मजा आ गया, कमला !" मैंने उसे हंसते हुये कहा। वो कुछ ओर ही समझी।
"धत्त, ऐसा मत बोलो..." वो मेरे लण्ड की ओर देखते हुई बोली।
मैंने तौलिया लपेट कर अपनी गीली चड्डी उतार दी और दूसरी चड्डी पहनने लगा।
तभी मेरा तौलिया मेरी कमर से फ़िसल गया और मैं नंगा हो गया। बौखलाहट में
मेरी चड्डी भी मेरे पांवों में उलझ गई और मैं पास में पड़ी कुर्सी का
सहारा लेकर धम्म से बैठ गया। वो मेरी हालत देख कर हंसने लगी। फिर वो मेरे
पास आ गई और मेरी चड्डी पांवों से निकाल दी। उसने मेरे नग्न शरीर को एक
बार फिर से देखा।
'अरे यह तो पहननी है मुझे !"
"पहले तौलिया तो लपेट लो, ऐसे बड़े अच्छे लग रहे हो ना !" उसने मेरे लण्ड
को देखते हुये कहा। मुझे लगा वो मेरे लण्ड को देख रही है।
"ईई ... तुम उधर देखो ना ... ये क्या ? मेरे पास ही आ गई हो?"
उसका इस तरह से घूरना मुझे अच्छा तो लगा पर शरम बहुत आई। उसने हंसते हुये
दूसरी तरफ़ मुख फ़ेरा लिया। ओह ! कमला ने तो मुझे नंगा ही देख लिया।
"ऐ कमला, देख किसी कहना मत, कि तूने मुझे नंगा देख लिया है।" मैंने
बच्चों जैसे घबरा कर कहा।
"जरूर कहूँगी, देखना..." उसने भी मुझसे मसखरी की।
"देख, यह अच्छा नहीं होगा ..."
मैं चड्डी पहन चुका था। जाने मन में क्या आया कि मैंने उसकी कमर पकड़ ली
और उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया। वो घबरा गई। मैंने आव देखा ना ताव !
उसका पेटीकोट एक झटके में नीचे खींच कर उतार दिया। वो अन्दर चड्डी नहीं
पहने हुये थी।
"खूब मजा आया ना, अब बताना सबको, मैं भी बता दूँगा कि मैंने भी तुझे नंगी
देख लिया है।"
वो नीचे झुक कर अपना पेटीकोट सम्भालने लगी। तभी उसके मस्त चूतड़ों की
गोलाई और गहराई देख कर मुझे कुछ होने लगा। पहली बार किसी स्त्री की इतनी
मस्त गाण्ड देखी थी। उसने अपना पेटीकोट वापस पहन लिया और उसकी नजरें नीचे
झुक गई।
"यह क्या किया तुमने, औरतों के साथ कोई ऐसा करता है क्या?" उसका स्वर कांप रहा था।
"कमला, वो ... वो... तो मैंने अनजाने में शरारत की थी, मुझे माफ़ कर देना।"
अब मुझे बहुत खराब लग रहा था कि मैंने नासमझी में यह क्या कर दिया। एक
लड़की की इज्जत का ध्यान भी ना रख सका।
"देखो किसी को कहना मत ... सुना तुमने ... प्लीज मत कहना !" कमला बार बार
मुझसे कह रही थी।
पर मेरी आँखों के आगे उसके नंगे चिकने चूतड़ नजर आ रहे थे। उसकी आँखों में
एक तेज चमक थी। मेरा दिल आज कुछ बेचैन सा होने लगा था। मेरा लण्ड भी आज
किसी अन्जाने जोश में कड़क होने लगा था। मेरे चड्डी के अन्दर लण्ड का उभार
कमला को भी बेचैन कर रहा था। पर वो कुछ कह नहीं पा रही थी। मुझे भी उसके
चेहरे पर आज एक मधुर सी कशिश नजर आने लगी थी। फिर वो मुझे पीछे देखते
हुये कमरे से बाहर निकल गई।
रात को मैं छत पर खाट पर बैठा हुआ था। हमेशा की तरह कमला भी ऊपर आ गई। पर
आज वो खामोश थी, उसकी आँखों में एक शरम सी थी, एक ललाई भी थी। उसकी तिरछी
नजर देख कर मेरे दिल में एक हलचल सी मचने लगी। मेरा लण्ड भी पजामे में से
उभरने लगा। मैं खाट पर लेट गया और सितारों को देखने लगा, इस बात से
अन्जान कि मेरा लण्ड कड़क होकर सीधा तन चुका है, जिसे कमला लगातार घूरे जा
रही थी।
"कमला, आज मौसम कितना अच्छा है ना, तुझे नहीं लगता?"
"हाँ ... बहुत अच्छा है, एकदम तना हुआ !" उसके मुख से अन्जाने में निकल
पड़ा। फिर जल्दी से उसने अपना चेहरा छिपा लिया।
"क्या कहा?"
"मेरा मतलब है, कितनी अच्छी हवा चल रही है।"
"कमला, तू भी मुझे आज कुछ अधिक ही अच्छी लग रही है, है ना?" मैंने उसके
पास आते हुये कहा।
"विजय, तुझे एक बात कहूँ, बुरा मत मानना !"
मैंने उसकी बाह पकड़ ली और अपनी ओर खींचा।
"वाह री कमला, आज तो बोलने में बड़ी नखरे दिखा रही है?"
"देख विजय, तू मुझे बहुत अच्छा लगता है।"
"तो क्या हुआ? तू भी तो प्यारी सी लगती है।"
उसने धीरे से मेरी छाती पर अपना सर रख दिया और मेरा हाथ पकड़ लिया।
'मैं ... मैं... तुझ से... हाय राम... कैसे कहूं?"
"मैं बताऊँ, मैं तुझसे प्यार करती हूँ, है ना ... बिल्कुल फ़िल्मी डायलोग
... कुछ और कह ..."
पर वो क्या बोलती, मैंने तो उसकी बोलती ही बन्द कर दी। उसने मेरी छाती से
सर उठाया और अपने होंठो को थोड़ा सा खोल दिया। उफ़्फ़ ! कैसे थरथरा रहे थे
उसके कोमल अधर। उसने अपनी आंखें खोली और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख
दिए। मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैं बस यूँ ही खड़ा रहा। उसने मुझे खूब
चूमा ... शायद दिल की भड़ास पूरी निकाल ली।
"यह क्या कर रही है कमला, तू सच में मुझे प्यार करने लगी है?"
"ऐसी बातें मजाक में नहीं की जाती हैं। विजय, मैं तो जाने कब से तुझे
प्यार करने लगी हूँ, पर कैसे कहती?"
"कमला ... मेरी कमला ... "मैंने उसे अपने आलिन्गन में बांध लिया। मुझे वो
अच्छी लगती थी, पर मुझे अभी झिझक थी। वो शादीशुदा थी, उससे प्यार ! मैं
तो ये सपने में भी नहीं सोच सकता था। यह तो अनैतिक है। दो बच्चो की मां
है, उसका पति है ! मैंने उसे झटक दिया।
"यह तो हो ही नहीं सकता है यार, तुम तो... शादीशुदा हो ... दो बच्चों की
मां हो और तुम्हारा पति ..."
उसने मेरे होंठों पर अंगुली रख दी।
"बस प्यार ही तो मांग रही हूँ, तुमसे कोई शादी थोड़े ही करनी है, कर भी
नहीं सकती हूँ, बस तुम्हारा साथ चाहिये, तुम्हारा शरीर चाहिये, बदले में
तुम मेरा शरीर ले लो। मुझे बस प्यार से तृप्त कर दो।"
उसकी यह भाषा मुझे समझ में नहीं आई। मेरा खड़ा हुआ लण्ड डर के मारे लटक
गया। लटक क्या गया बल्कि कहो कि सिकुड़ कर छोटा सा हो गया। वो मेरे साथ
खाट में लेट गई और मेरे से चिपकने लगी। यह सब मुझे अजीब सा लग रहा था।
कोई औरत मेरे समीप पहली बार मेरे इतने समीप आ कर लेट गई थी।
"तुम मेरे साथ आज सो जाओ... विजय"
"सो तो रही हो... और क्या?"
"नहीं ऐसे नहीं, मतलब कि ... उह ... बुद्धू हो ... कैसे बताऊँ?"
उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख दिया। अपना पेटीकोट ऊंचा कर लिया। मेरा
पजामा खोलने लगी। पजामे का इलास्टिक खींच कर उसे नीचे सरका दिया। मैं
नीचे से नंगा हो गया। मेरा लण्ड और भी सिकुड़ कर मूंगफ़ली जैसा हो गया।
उसने अपनी चूत को नीचे से सटा दिया। पर मेरा लण्ड खड़ा ही नहीं हो पा रहा
था। शायद मैं बहुत डर गया था, या यह मेरा पहला अनुभव था। उसका हाथ मेरे
लण्ड तक पहुँच गया। मैं सिहर उठा। उसने पहले उसे टटोला और फिर उसे
आश्चर्य हुआ।
"तुम्हारा तो इतना लम्बा और मोटा था और अब क्या हो गया?"
"तुमने कब देखा? मजाक कर रही हो? ऐसा मत करो देखो ... ये सब मुझे ठीक
नहीं लग रहा है।" मेरे चेहरे से पसीना बह निकला।
उसने धैर्यपूर्वक काम किया और मुझसे ऐसे ही चिपके पड़ी रही। मुझे प्यार से
बातें करती रही, मेरे बदन को सहलाती रही। तब कहीं जा कर मैं उसकी ओर से
निश्चिन्त हो कर उसे प्यार करने लगा। फिर तो ना जाने कब मेरा लण्ड तन कर
खड़ा हो गया। उसने धीरे से मेरे लण्ड को हाथ में ले लिया और उसे सहलाने
लगी। उसने उसे अपनी चूत में उसे रगड़ा और अपनी योनि से उसे लगा लिया।
"विजय, थोड़ा जोर लगाओ।"
मैंने जोर लगाया पर लण्ड इधर-उधर फ़िसल गया। मुझसे नहीं गया वो और नतीजा
यह हुआ कि लण्ड फिर से किसी अनहोनी से डर कर सिकुड़ गया।
'कमला, यह सब मुझसे नहीं होता है, मैं नहीं कर सकता यह सब !"
उसे निराशा होने लगी। उसे लगा कि मैं शायद नामर्द हूँ। मैं उसे चोद ही
नहीं सकता हूँ। उसने लम्बी सी सांस भरी और उठ खड़ी हुई। वो नीचे जा रही
थी। मैं बस उसे देखता ही रह गया। सोचता रहा कि कमला को आज यह क्या हो गया
है। ... और मेरा ये लण्ड ... साले का खूब तो मुठ्ठ मारा है। अरे कहीं
अधिक मुठ्ठ मारने से यह बेकार तो नहीं हो गया है। मुझे निराशा ने घेर
लिया।
दो दिन बाद रात को मैं लेटा ही था कि कमला मुझे सोया जानकर धीरे से मेरे
कमरे में आ गई। कमरा बन्द करके मेरे पास वो लेट गई। उस समय मैं बस चड्डी
में लेटा हुआ था। वो मेरी दूसरी तरफ़ करवट लेकर लेट गई। मैंने धीरे से
करवट बदली और उसकी पीठ से चिपक गया। उसने अपना पेटीकोट कमर तक ऊपर कर रखा
था। मुझे उसके नीचे नंगे होने का अहसास हुआ। मेरा लण्ड एकदम से कड़क हो
गया। मेरा एक हाथ उसकी कमर पर आ गया। मेरा दिल धड़क उठा। मैंने धीरे से
अपनी चड्डी उतार दी। अनजाने में ही मेरा तन्नाया हुआ लण्ड उसकी चिकनी
चूतड़ों की दरार में घुस कर जगह बनाने लगा । तभी कमला ने अपने चूतड़ों को
ढीला छोड़ दिया।
मेरा लण्ड उसके छेद तक आ गया था। मेरा लण्ड उसके नाजुक छेद के ऊपर दबाव
डाल रहा था। मुझमें जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई थी कि मैं जोर से उसकी
गाण्ड में लण्ड दबाने लगा। मेरा सुपाड़ा फ़क से उसकी गाण्ड में उतर गया। वो
चुप से लेटी रही, हिली तक नहीं। मैंने धीरे से हाथ बढ़ा कर उसकी चूचियों
को थाम लिया और दबाने लगा।
फिर लण्ड में जैसे उफ़ान आया, मैंने जोर लगा कर लण्ड को और अन्दर दबाया।
लण्ड धीरे धीरे अन्दर घुसता गया। इतनी कसी गाण्ड थी, पर फिर भी लण्ड
अन्दर चलता चला गया।
"कमला, ये मुझे क्या हो रहा है?" मैंने आह भरी।
"विजय, यह अपना पहला मिलन है, अपना प्यार है... प्यार में ऐसी ही कशिश
होती है, चलो अब अन्दर-बाहर करो।"
बड़ी मुश्किल से यह सब हो रहा था। पर इसमे अथाह आनन्द आ रहा था।
"आगे चूत से लण्ड अन्दर डालोगे तो और मजा आयेगा, करोगे?"
उसने मेरा लण्ड अपनी गाण्ड से बाहर निकाल लिया और मेरी तरफ़ मुख करके एक
टांग मेरी कमर में डाल दी। अपनी चूत मेरे लण्ड से चिपका दी। उसका चेहरा
मेरे चेहरे के करीब आ गया था। अब तो कमला की गर्म गर्म सांसें मेरे चेहरे
पर आ रही थी। उसके पतले पतले होंठ मेरे गालों को रगड़ रहे थे। उसने अपने
हाथ से मेरे लम्बे लण्ड को पकड़ कर अपनी चिकनी योनि द्वार पर रख दिया।
पानी से तर योनि ने मेरे कड़क लण्ड को गड़प से अन्दर ले लिया। मुझे एक तेज
आनन्द की अनुभूति हुई। उसने मेरे होंठों को रगड़ते हुये चूत में जोर लगाया
और मेरे लण्ड को अपनी चूत के खड्डे में आसानी से अन्दर ठूंस लिया। उसके
मुख से सीत्कार निकल गई। मेरे हाथों ने उसके चूतड़ों को अपनी ओर कस लिया।
उसे अच्छा अनुभव था चुदाने का, सो वो अपनी चूत को हिला हिला कर लण्ड को
तेजी से अन्दर-बाहर कर रही थी। उसकी सांसें धौकनी के समान चल रही थी।
मुझे असीम आनन्द आने लगा था। तो पहले क्यों नहीं हुआ था मुझसे?
"आह ... आह ... मर गई ... विजय ... तू भी लगा ना धक्का ...हाय मर गई ...
चल मार ना ... चोद ना"
मुझे ये सब नहीं आता था ... हां मेरे लण्ड में एक जलन सी हो रही थी, अब
किससे कहूँ मैं? वो मेरे ऊपर चढ़ गई और ठीक से पोज बना कर मुझे जैसे चोदने
लगी।
उसके बाल मेरे ऊपर लहराने लगे थे। पसीने की बूंदे मेरे चेहरे पर गिरने
लगी थी। उसके स्तन जोर जोर से हिल रहे थे। मैंने उसके स्तन ही पकड़ लिये।
वो चीख सी उठी,"मरोड़ दे बोबे को, जरा जोर से ... आह मर गई रे ... घुण्डी
खींच दे रे ... मस्त कर दे।"
उसे इसमें मजा आ रहा था। पर मेरा हाल तो और भी बुरा हो रहा था। सारे शरीर
में जैसे तरंगें चल रही थी। जिस्म रह रह कर कांप रहा था। मीठी मीठी वासना
की मधुर लहरें मेरे सारे शरीर में कसक भर रही थी। लण्ड बहुत ही फ़ूला जा
रहा था। मैं अपने लण्ड को उसकी चूत की तरह ऊपर उठा कर उसके धक्के झेल रहा
था।
तभी मेरे लण्ड से जोर से फ़ुहारें निकलने लगी।
"आह ... आह्ह्ह्ह ... मुझे ये क्या हो रहा है ... कमला ... मेरी जान निकल रही है।"
वो जैसे लम्बी हो कर मेरे शरीर पर पूरी लेट गई। बाहर निकला हुआ लण्ड अभी
भी फ़ुहार छोड़ रहा था। उसके होंठ मुझे प्यार से अभी भी चूम रहे रहे थे।
उसके हाथ मेरे बालो को सहला रहे थे।
"कैसा लगा विजय, शरीर का ये मिलन...?"
"इतना मजा आया है कमला कि कह नहीं सकता।" मैंने निढाल होते हुये कहा।
"अब मैं जाती हूँ, आराम से सो जाना।"
"कमला, जरा लाईट तो जलाना, ये मेरे लण्ड पर जलन कैसी है?"
'तुम तो बुद्धू हो, पहली बार तुमने किया है ना, इसलिये।"
"तुझे क्या पता कि मैंने पहली बार किया है, मैंने तो बहुत बार किया है
खूब चोदा है लड़कियो को !!"
मैंने अपनी शेखी झाड़ी।
"हाय रे मर जाऊँ तुझ पर, झूठ बोलना भी नहीं आता है।" उसकी खनकती हुई हंसी
ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया। भला इसे क्या पता कि मैंने ऐसा पहली बार
किया है !!! उसके सीढ़ियों से नीचे उतरने की पदचाप सुनाई दे रही थी।
विजय पण्डित
No comments:
Post a Comment