Monday, April 8, 2013

सेक्सी कहानियाँ रण्डी से पंगा मत लेना--1

 
To: raarkey@gmail.com


हिंदी सेक्सी कहानियाँ
 रण्डी से पंगा मत लेना--1


शाम के 5 बज चुके थे।
आसमान पर काले-काले बादल काफी देर से घुमड़ रहे थे।
शायद बारिश होने वाली थी।
मैं अपनी फोर्ड आइकॉन में बैठा बार-बार आसमान की तरफ देखने लगता।
रह-रह कर बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकने लगती थी।
हवा बहुत ही सर्द थी।
ऐसा लगता था जैसे आसपास कहीं बारिश हुई है या फिर शायद हो रही है।
ये दिल्ली से कोलकत्ता जाने वाला नेशनल हाईवे था जिसे मैं फ्लैट पहुचने के लिये शार्टकट की तरह इस्तेमाल करता था।
ठीक तभी तीव्र गड़गड़ाहट के साथ बारिश की बूँदा-बाँदी शुरू हो गई।
मैंनें वाइपर को ऑन कर दिया।
अभी एक मिनट भी नहीं गुजरा होगा कि आसमान से बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े मेरी विन्ड स्क्रीन से टकराने लगे।
वहाँ पर टीन का विशाल छप्पर बना हुआ था।
कार को इसी के सामने लाकर रोकने के बाद जब मैंनें देखा तो.............
मैं वहाँ अकेला नहीं था बल्कि कोई और भी था, बल्कि ये कहना ठीक होगा कि कोई थी।
कार के भीतर बैठे-बैठे ही  मैंनें उसकी तरफ देखा।
वो मुश्किल से 18-19 साल की लड़की थी। जिसने नीले रंग की स्किन टाइट जीन्स पहन रखी थी। बाल पोनीटेल की स्टाइल में बँधे हुए थे। चेहरे के दाँये गाल पर एक लट थी, जो बेहद दिलकश लग रही थी। पैरों में कम से कम तीन इंच की हाई हील की सैण्डिल।
उसके पास एक लेडीज साईकिल थी, जिसे पकड़कर वो सकुचाई हुई सी खड़ी थी।
उसने एक-दो बार मेरी ओर भी देखा लेकिन फिर वो इधर-उधर देखने लगी। साईकिल के स्टैण्ड में एक कालेज बैग दबा हुआ था।
शायद वो कोचिंग पढ़कर लौट रही थी। पर बारिश की वजह से उसे इस छप्पर के नीचे रुकना पड़ा था।
वैसे मैं ये नहीं कहूंगा कि मैं बहुत कमीना इंसान हूँ पर न जाने ऐसे भीगे मौसम में, एक सूनसान हाईवे पर, एक जवान, खूबसूरत तन्हा, मासूम लड़की को देखकर, दिल कमीनेपन पर उतरना चाहता था।
मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा लेकिन स्किन टाइट जीन्स में उसकी मोटी-मोटी जाघें देखकर मेरी साँसों की तपिस बढ़ती जा रही थी।
मेरी नजरें सिर से लेकर पाँव तक उसके शरीर का मुआयना कर रहीं थीं। उसके जिस्म में वो सारी चीजें थीं, जो मेरी कमजोरी थीं।
पहली- उसके कबूतरों का साइज।
मैंनें दूर से ही टॉप में ठुसे पड़े उसके कबूतरों का साइज जान लिया था, कम से कम 34।
पेट अंदर की तरफ, काफी हद तक समतल। पिचके पेट वाली लड़कियाँ मुझे वैसे भी अच्छी नहीं लगतीं थीं।
दूसरी- बाहर की तरफ निकले हुए उसके नितम्ब।
जिनका साइज था कम से कम 36।
यानि लौंडिया एकदम तैयार माल थी।
ठोकने लायक।
पर सवाल ये था कि क्या ये मुमकिन था?
और अगर था तो कैसे?
कहते हैं कि प्यासे को ही कुँए के पास जाना पड़ता है इसलिये पहल तो मुझे ही करनी पड़ेगी।
मैं कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला।
बारिस काफी तेज हो रही थी।
ओले अभी भी आसमान से बरस रहे थे।
इस सब से चारों ओर एक गहरा शोर हो रहा था।
मैं उस नवयौवना से मुश्किल से छः फीट की दूरी पर जा खड़ा हुआ।
मगर उसकी तरफ देखा नहीं ताकि वो मुझे भला आदमी समझे।
ठण्ड बहुत ज्यादा थी इसलिये मैंनें जेब से सिगरेट निकाली और लाईटर से सुलगा कर उसके कस लगाने लगा।
अभी मैंनें तीन-चार ही कस लगाये होंगें कि तेज गड़गड़ाहट के साथ तीव्र बिजली चमकी।
मैंनें अहसास किया कि बिजली चमकने से लड़की के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी।
"डरो मत, कुछ नहीं होगा, अगर बिजली गिरी भी तो ये छप्पर हमें बचा लेगा...."
उसने मेरी तरफ जब देखा तो जाने क्यों उसकी निगाहों में मेरे लिये एक उपेक्षा सी थी। तब मुझे अहसास हुआ कि सिगरेट अभी भी मेरी ऊँगलियों में थी।
मैंनें गला खँखार कर सिगरेट को पानी की तरफ उछाल दिया।
मेरी इस हरकत को शायद वो देख रही थी।
तब मैने उसके गालों पर धीरे से डिम्पल पड़ते देखे।
उफ्..........कसम से मैं लुट चुका था, बरबाद हो चुका था।
मन तो कर रहा था कि उसे अपनी बाहों में लेकर भींच डालूं, उसके गदराये बदन को मसल डालूं,  लेकिन ऐसा करने की हिम्मत नही कर सका।
उसके भरे-भरे बदन पर जब भी निगाह पड़ती, खुद पर काबू रखना मेरे लिये मुश्किल हो जाता।
अगर किसी लड़की की लेना हो तो दो तरीके हैं-
पहली- जबरजस्ती ले लो ।
दूसरी- प्यार से, फुसलाकर लो।
बेसब्र लोग पहले वाला तरिका अपनाते हैं जिसकी वजह से कभी-कभी जेल में चक्की पीसनी पड़ती है। जिसका फिलहाल मेरा कोई इरादा नहीं था।
जबकि दूसरा तरीका काफी बेकरारी से भरा था।
जिसमें धैर्य धरो और फल चखो सिद्धान्त का पालन करना पड़ता था।
वैसे सच कहूँ तो इन सब मामलो में मैं बहुत बेसब्रा इंसान हूँ लेकिन ऐसी मस्त हसीना का सुख भोगने के लिये सब्र बेहद जरूरी था।
मैंनें मन ही मन ऊपर बैठे भगवान से प्रार्थना की, जो की अमूमन मैं नहीं करता था।
पर पता नहीं जब भी मामला किसी हसीन, खूबसूरत, नाजुक, चिकनी और भरे-भरे बदन वाली लड़की का होता है, तो भगवान की याद आ ही जाती है।
'हे प्रभु, आपने ने ही कहा है कि कर्म किये जा, फल की इच्छा मत कर .......इसलिये मैं कर्म कर रहा हूँ, फल आपके ऊपर छोड़ता हूँ....'
पर समझ में नहीं आ रहा था कि कर्म क्या करूं।
काश कि '5 मिनट में लड़की कैसे पटायें ', इस विषय पर कोई किताब लिखी गई होती।
मैं बेशक उसे अभी तक हजार बार पढ़ चुका होता और इस दुविघा से ग्रस्त न होता।
लेकिन सब साले लड़की पटाने में ही जुटे रहते हैं, किसी के पास किताब लिखने का टाइम कहाँ से होगा।
वैसे भी कुछ चीजे इंसान प्रयास करके ही सीख सकता है, किताब पढ़कर नहीं।
जैसे- साईकिल चलाना, पतंग उड़ाना, पानी में तैरना......और इसी लिस्ट में शामिल है लड़की को पटना।
पर लड़की पटाने का मसला काफी नाजुक होता है। एक-एक कदम काफी फूँक-फूँक कर उठाना पड़ता है। एक भी गलत स्टेप उठा तो सारे किये कराये पर पानी फिर जाता है।
शुक्र है भगवान का कि मेरे मामले में पानी फिरने की गुंजाइश नही थी क्योंकि चारों ओर बारिश हो रही थी यानि मामला पहले से ही पानी में चल रहा था। इसलिये डरने की जरूरत नहीं थी।
अगर मेरी कोई बात उसको बुरी लगती तो भी वो वहाँ से जा नहीं सकती थी।
शुक्र है भयानक बारिश के साथ ओले भी पड़ रहे थे। जय हो मेघ-देव की।
मैंनें हिम्मत बटोरी और गला खँखार कर जैसे ही कुछ बोलने वाला था कि-
"बुर......."
धत्त तेरे की, साली जुबान फिसल गई।
"एक्सक्युज मी........"- उसने भौंहें सिकोड़ कर मेरी ओर देखा।
मैं सिटपिटा कर रह गया।
लगा की इससे पहले वो मुझे एकाध थप्पड़ रसीद कर दे, मैं वहाँ से निकल लूँ।
पर एक बात से मुझे सकून मिला कि जो कुछ मैंनें बोला था वो मन के भीतर ही बोला था पर उसके 'एक्सक्युज मी' कहने पर लगा कि कहीं मैंनें सच में ही तो नहीं बोल दिया।
एक पल के लिये तो लगा कि सीधे-सीधे बोल ही दूँ, टाइम बर्बाद करने से क्या फायदा, कि मैं तुम्हारी बुर में थुक लगाकर अपने भुसन्ड को घुसाना चाहता हूँ...बोलो घुसवाओगी की नहीं!
पर सावधान।
ये शार्टकट तरीका कभी कामयाब नहीं होता, बशर्ते कोई रण्डी न हो। उल्टा वो लड़की फिर जिन्दगी भर आपको हासिल नहीं हो सकती।
किसी भी लड़की को पटाने के लिये एक चीज बहुत जरूरी होता है और वो है- टाइम का इन्वेस्टमेन्ट।
दूसरे भाषा में कहा जाय तो समय की बर्बादी। समय तब तक बर्बाद करो जब तक कोई लड़की  बोर होकर खुद ही 'आई लव यू' न बोल दे। जिसका  कमीने  लड़को की भाषा में मतलब होता है कि - 'मुझे नंगी करके चोद दो!'
अब मैं लड़की के वाक्य पर फिर से लौटता हूँ-
"एक्सक्युज मी...........आपने मुझसे कुछ कहा?..."
हाय!.......बोली तो लगा किसी ने मन्दिर की लटकती घण्टियाँ बजाई हो।
"दरअसल मैनें अपना नाम बताया था...."
"सॉरी.....मैं सुन नहीं पायी थी....बारिस की वजह से बहुत शोर हो रहा है न....."
शुक्र है उसने सॉरी तो कहा।
मतलब मेरी बात सुनने में उसे कोई एतराज नहीं था।
धन्य हो शनिदेव की! साढ़े-साती लगने से बच गया था।
पर मुकम्मल तरीके से नहीं-
"बुर...."- साली पता नहीं क्यों जुबान फिसल रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि अपनी भावनाओं पर मेरा खुद कोई काबू नहीं था।
"व्हाट!!!!"- वो तो मानो चीख ही पड़ी। पक्का इस बार उसने सुन लिया था।
और इस बार मैंनें सच में ये शब्द बोल डाला था।
मरता क्या न करता, जो बक दिया था उसे दुरुस्त करना भी तो जरूरी था।
"म्म्म्म्...मेरा मतलब था भरत उपलव राठौर यानि B...U...R.............बुर, मेरे नाम का शार्ट फॉम!.........सॉरी, सुनने में थोड़ा बुरा लगता है,  पर अब क्या करें,  माँ-बाप ने जो रख दिया तो रख दिया,  बदल तो नहीं सकता न,  और झूठ तो मैं बोलता ही नहीं क्योंकि  गाँधी जी का भक्त हूँ....सदा सत्यम् वदति।"
इस बार झेलने की बारी लड़की की थी। वह बुरी तरह से सकपका गई थी। पर आखिर कार उसने प्रतिवाद भी किया-
"सदा सत्यम् वदति के आगे भी कुछ था....."
"सॉरी......मैंने इतना ही पढ़ा था.....इसके बाद मुझे नींद  आ गई  थी......"- मैंनें मासूमियत से कहा।
मेरे भोलेपन पर लगा कि वो हँसने वाली है पर ऐसा हुआ नहीं।
 "सत्यम् प्रियम् वदति.....कटु सत्यम् न वदति....यानि वही सच बोलना चाहिये जो सुनने में प्रिय हो.....कढ़वा सच नहीं बोलना चाहिये..."
मेरे जैसे बकचोद को क्या चाहिये? सिर्फ एक मौका।
और ये मौका उसने मुझे खुद दे दिया था।
धन्य हो स्त्री वाचाल देवी की!
"अब भला इसमें मेरा क्या दोष......मेरे नाम से ही सारी लड़कियाँ मूतती हैं तो भला मैं क्या कर सकता हूँ......अब हर लड़की के पास जाकर तो कह नहीं सकता कि प्लीज आप की चड्ढी के नीचे जो छेद है, उससे मेरा नाम मिलता है....प्लीज आप वहाँ से मूतियेगा मत वरना मेरा नाम कढ़वा हो जायेगा...फिर मैं किसी को अपना नाम भी नहीं बता पाऊगा...क्योंकि कटु सत्यम् न वदति....अब आप अपने आप को ही ले लीजिये....अगर मैं आप से कहूँ कि आपकी जीन्स के नीचे जो पैन्टी है और पैन्टी के नीचे जो छेद है उससे आज के बाद आप मूतियेगा मत...तो क्या आप मूतना छोड़ देगी?..."
मैं इतनी मासूमियत के साथ शब्दों से खेल रहा था कि मुझे लगा वो अब हँसी की तब हँसी, लेकिन दाल गलते-गलते रह गई।
काश उसने भूल से भी एक बार हँस दिया होता तो मौसम का फायदा उठाकर मैं उससे चिपक जाता और बहाना मार देता की मुझे बिजली चमकने से बहुत डर लगता है।
हालांकि ये मर्दानगी की तौहीन होती पर मर्द बनने के चक्कर में अगर लौंडिया हाथ से निकल जाय तो क्या मर्दानगी को खुद आचार लगा के खाता।
कभी-कभी लौंडियों के ही हथकन्डे अपनाने चाहिये, लौडिया को फँसाने के लिये।
साली होती बहुत चालाक हैं, जब चुदवाने का मन होगा तो बिजली, छिपकली, काकरोज और पता नहीं किस-किस का बहाना लेकर आकर चिपक जाती हैं।
फिर भला मर्द का चोदने का मन हो तो वो क्या करे??????
घण्टा पकड़ कर हिलाता रहे  या एक घन्टे बकचोदई करके लड़की का दिल बहलाने से अच्छा है कि कोने में जाकर हाथ से कम तमाम कर लें। साला साँप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे।
पर काश, करना भी कहने जितना आसान होता।
बुर के बिना अगर गुजारा होता तो मर्दो को क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो हाँड़-माँस की बनी मुसीबत शादी करके घर ले आते हैं। साला आधे घण्टे के मजे के लिये चौबिसों नहीं बल्कि एक जीवन काल में जितनें घण्टे होते हैं, उतने घण्टों का टेन्शन।
धन्य हो बुर देवी की, जो पुरूष के भीतर छिपे जानवर को जगा कर सारा प्रकोप खुद सहती हैं....तब जाकर पुरूष के अंदर का एक श्रेष्ठ मानव जागता है और बुर की दुनिया से ऊपर उठकर पहली बार जो सोचता है, वो बेहतर सोचता है।
लेकिन जो साले कमीने हैं इसे इस तरह से समझेंगें- यानि बेहतर सोचने के लिये और श्रेष्ठ मानव बनने के लिये बुर चोदना बहुत जरूरी है।
और दर कमीने इंसान इस नियम को और भी व्यापक कर लेते हैं।
जितना बुर चोदोगे, उतनी तरक्की करोगे। इसलिये जिसकी भी मिले, चोद डालो। छन्नी लेकर छानोंगे तो हिलाते बैठे रहोगे। कोई पूछने नहीं आयेगा कि बेटा- बुर न चोदी हो तो मेरी बेटी या बीवी की ले लो।
ये पूरी तरह से पर्सनल बिजनेस है, इसलिये इसे खुद ही चलाना पड़ता है।
कमाल की बात है कि इस एक बिजनेस में सभी एक दूसरे के कम्पटीटर होते हैं और हर कोई दूसरे के माल पर नजर गड़ाये रखता है क्योकि उसे लगता है कि इस घोंचू से फँस सकती है तो मैं तो इस धन्धे का दशहरी आम हूँ, मुझसे क्यों नहीं।
इसलिये बिजनेस को आगे बढ़ाने से ज्यादा जरूरी होता है, अपने माल की सिक्योरीटी।
इधर आप नई फँसाते जा रहे हैं और उधर पीछे से कोई थूक लगाकर सरकाता जा रहा है।
खैर प्रवचन ज्यादा हो गया अब वापस लौटता हूँ।
आप को क्या लगता है कि मेरी बात सुनकर उसकी प्रतिक्रिया क्या रही होगी?
बेशक शरमाकर बगलें झाँकने लगी। भले ही लड़कियाँ बातूनी होती हैं लेकिन बकचोदई सुनकर उनकी भी चोंच बंद हो जाती है।
बेचारी अब भला बोलती भी तो क्या बोलती।
सो माहौल को थोड़ा हल्का बनाने के लिये मुझे ही कहना पड़ा-
"चलिये....अब आप की बारी है नाम बताने की..."
वो खामोश खड़ी रही और मैं उसके बोलने का इंतजार करता रहा।
पर आखिर कब तक।
मेरे सब्र का प्याला तो छलकना ही था।
"लगता है कि एक बार फिर से मुझे अपना नाम बता कर शुरूवात करनी पड़ेगी तो चलिये एक बार और सही। मेरा नाम है....."
इससे पहले ही वो बोल पड़ी-
"सपना...."
"सच में......साला कहीं ये सपना ही न हो......पता नहीं सोने से पहले मैंनें चड्ढी पहनी भी थी या नही.....कहीं बिस्तर न खराब हो जाय....इससे पहले ये नौबत आये मैं चुटकी काट के देखता हूँ, शायद नींद खुल जाय......."
और मैंने वहीं किया, यानि चुटकी काटी।
पर फिर मिस्टेक।
काटी तो सीधे उसके पिछवाड़े पे।
"ऊई......व्हाट द हेल आर यू डूईंग.....गेट फॉर..."
वो इस तरह से बिदकी मानों मैंनें घोड़ी की पूँछ को माचिस दिखा दी हो।
"सॉरी........अब तो मुझे पक्का लगता है की ये सपना ही है.......साला करना कुछ और चाहता हूँ और करता हूँ वो जो दिमाग में घूमता रहता है.......लेट मी ट्राई अगेन......"
मैंनें कस कर अपने हाथ में चिकोटी काटी पर ये क्या! दर्द तो हो ही नहीं रहा था।
यानि ये सच में ही सपना था।
शुक्र है मेरी नींद नहीं खुली थी वरना जो मजा मिलने वाला था वो भी जागने के बाद हाथ से ही करना पड़ता।
पर आप लोग पहले मुझे ये बताओ कि अगर ये सपना था तो इतनी देर से मैं बकचोदई क्यों कर रहा था।
अब मुझे मैट्रिक्स फिल्म की याद आने लगी थी- यदि आप को ये पता चल जाय कि आप सपने में हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
जय हो स्वप्न देव की।
अब तो इस सपने में मैं भरपूर मजा लेने वाला था।
"चूची....."- इस बार मैंनें एकदम साफ-साफ बोला था ताकि उसे सुनाई पड़े।
"आप बड़े ही बदतमीज है......लड़की से कैसे बात की जाती है आप को नहीं पता..."- वो तमक कर बोली।
"दरअसल मैं अपने बिजनेस के बारे में बता रहा था......मैं चूची एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट करता हूँ.....वो भी एकदम फ्रेश-माल...."
"यानि तुम लड़कियों के दलाल हो....यू ब्लडी स्वाइन...."- वो तो मानो फट पड़ी।
'काश की होता.....' मैंनें मन ही मन सोचा फिर इत्मीनान से बोला-
"जी आप गलत समझ रही है........जो आपने अपनी ब्रा के भीतर छुपा रखी है मैं उस चूची की बात नहीं कर रहा हूँ। मेरा मतलब है चूची यानी C-U-C-I मतलब कम्प्युटर - यू.पी.य.स - कैमेरा - इंकजेट प्रिन्टर वगैरह-वगैरह....."
मेरी इस दलील पर अब भला वो क्या बोलती।
खामोशी से जमीन ताकने लगी। आखिर थी तो मेरे सपने की एक काल्पनिक किरदार ही वो जो कर रही थी मेरा दिमाग ही उससे करवा रहा था।
जय हो मस्तिष्क देवता की।
"और आप क्या करती हैं?....."- मैंनें उसके गुस्से से तमतमाये चेहरे की परवाह किये बिना बोला। क्योंकि लड़की पटाने के लिये ढीठ होना बहुत जरूरी है।
"आपको क्या दिख रहा है......."- वो तमक कर बोली।
"लगती तो स्टुडेन्ट जैसी हो....."
"लगती नहीं मैं हूँ....यू ईडियट..."
"चलिये, कम से कम कुछ तो समझा आपने....."
इसके बाद मैं जानबुझ कर खामोश हो गया।
बारिश निरन्तर जारी थी।
ओलों की तदाद अब कुछ कम हुई थी।
इससे पहले मौसम साफ हो जाता, मुझे मंजिल तक पहुचना था।
तो मैं भला कहाँ बाज आने वाला था-
"36 नम्बर की गाँड़....."
मैंनें बिल्कुल सही सोचा था। वो एक बार फिर बिदकी-
"उफ हो.........बदतमीजी की भी कोई हद होती है...."
"सॉरी, मैंनें अपना पता बताया था........न की जीन्स से बाहर निकली तुम्हारी 36 इंच की गाँड़ के बारे में कहाँ था....."- इतना बोलकर मैं जानबूझ कर जीन्स से बाहर निकले उसके चूतरों को बेशर्मों की तरह घूरने लगा।
वह सिटपिटा कर जल्दी से टॉप को नीचे खींचकर अपने चूतरों को ढकने की कोशिश करने लगी।
पर इतनी छोटी सी टॉप में उसकी 36 इंच चौड़ी गाँड़ कैसे ढकती।
फिर मैंनें पुनः अपना ट्रैक बजाना शुरू किया-
"गाँड़-36 का मतलब है कि ग्रान्ड ट्रंक रोड पर, आनन्द भवन के सामने, निलय काम्पलेक्स के, डी-सेक्टर के, 36 नम्बर फ्लैट में रहता हूँ।...और आप कहाँ रहती है? "
"आपके मुँह में...."- किसी कटखनी बिल्ली की तरह उसने जबाब दिया।
"शौक से रहिये.....अपना ही घर समझिये.....पर भाड़े के रूप में बन्दे को कुछ तो मिलना चाहिये........."
तीर तो मैंने छोड़ दिया था, अब पता नहीं निशाने पर लगता है या नहीं।
जय हो काम देव की! कुछ तो कमाल करो प्रभु।
और कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। अब तो फल चखा दो भगवन।
पर वो तो मानों आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही थी।
फिर भला फल चखने की नौबत क्यों कर आती।
पर हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा।
अब बारी थी फार्मूला नम्बर-2 अपनाने की।
और वो था लड़की को लालच दिया जाय।
"वैसे अगर मैं डायरेक्टर होता तो मैं पक्का अपनी फिल्म में आप को हिरोईन ले लेता........क्या सेक्सी फिगर है!......करीना, कैटरीना सब फेल.......बस एक बार पब्लिक के सामने आने की बात है.........पता नहीं कितने लड़के तुम्हारा नाम अपनी हथेली और दिल पर गुदवा के घूमेंगें......"
उसने मेरी ओर अजीब निगाहों से देखा-
"पर क्या फायदा....आप डायरेक्टर तो हैं नहीं......सो प्लीज कीप योर माउथ शट!....."
पर मैं भला कहाँ बाज आने वाला था।
"बट् नो प्राब्लम, मेरा एक दोस्त है जो भोजपुरी फिल्में बनाता है.........कुछ एडल्ड फिल्में भी बनाई हैं जैसे कि जवानी की आग, कुँवारी कली, बेवफा बीवी, मुझे मर्द चाहिये, लो मगर थूक लगा के, दबाओ मगर प्यार से, मारो मगर धीरे-धीरे और सबसे बड़ी हिट.....बुर चाटो, मगर झाँट साफ करके......."
मैं कनखियों से उसका चेहरा देख रहा था।
अब मछली पकड़ में आई।

शेष अगले भाग में......









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