raj sharma stories
झोला छाप डाक्टर--2
मर्द को दर्द नहीं होता, इस फिलाँसफी में ही पूरी जिन्दगी तकलीफ झेलता-झेलता एक दिन कुत्ते की मौत मर जाता है।
पर क्या फर्क पड़ता है।
मरने से पहले वो कितनी सारी कुतियों की योनि में अपना बीज बो चुका होता है। इधर वो मरा और उघर कितने सारे पिल्ले फिर से पैदा हो जाते हैं- योनि के साथ दुराचार करने के लिये।
मैंने धीरे से उसकी साड़ी ऊपर उठा दी।
हाय! क्या मोटी-मोटी, गोरी-गोरी, माँसल, चिकनी मुलायम जाँघें थीं।
और जाँघों के बीच में दबी हुई माँसल योनि।
एकदम चिकनी, जैसे किसी नाई ने उल्टा उस्तरा फेर कर चिकना बना दिया हो।
मै उसकी बुर को फैला-फैला कर देख रहा था।
सच कहूँ तो ब्लू फिल्में देख-देख कर मैं एक खास तरह की योनि के लिये बहुत संवेदनशील हो चुका था और वो योनि ऐसी होती थी जिसके बीच में भगनाशा एकदम छोटा हो। जिसे देखने के लिये योनि की फाँकों को एकदम फाड़ना पड़े। और कमाल की बात ये थी की उसकी योनि ठीक ऐसी ही थी।
भगनाशा एकदम चने के दाने जितना बड़ा था।
भगनाशाने के थोड़ा नीचे एक अदृश्य छेद था जिसमें से पता नहीं कैसे चिपचिपी सी लार बह रही थी।
लार में एक अजीब तरह की बदबू थी मगर उस बदबू ने मुझे मदहोश कर दिया था। बदबू ऐसी थी जैसे कई दिनों का मक्खन सड़ रहा हो। इस तरह की बदबू अमूमन तभी आती है जब योनि के भीतर पुरुष का बीज सड़ता है।
इसका मतलब वो रात को चुदी थी और उसके पति का बीज उसकी योनि में ही पड़ा था।
मैंने ऊँगली पर थूक लगाकर 2-3 बार गुचगुचा दिया। बुर से सफेद-सफेद लार निकलने लगी।
"साली छिनार....."
मैंने मन ही मन उसे गालियाँ दी।
निकलने वाली लार में दो चीजे थीं।
पहली- पारदर्शी रंग का तरल और,
दूसरी- सफेद रंग का थक्का।
सफेद रंग वाला थक्का बेशक पुरुष का बीज हो सकता था और तरल पदार्थ उसकी योनि से बहने वाला वो द्रव था जो लिंग के लिये चिकनाई का काम करता था। जो तब निकलता था जब वो बहुत ही चोदासी हो जाया करती थी।
जो की फिलहाल वो थी।
औरत जब चोदासी हो जाती है तो उसके भीतर से धृणा की भावना काफी कम हो जाती है।
घृणा की भावना जितनी कम होती है औरत उतनी ही चुदक्कड़ और रसीली होती है।
ये चेक करने के लिये की वो कितनी बड़ी छिनार है मैने ऊँगली पर लगा लिसलिसा पानी उसके मुँह के पास किया और वैसे ही-
'गप्प्....'
उसने पूरी ऊँगली अपने मुँह में भर ली।
अमूमन इस तरह की औरतें 10 में से एक ही होती हैं।
उसकी इस हरकत से मेरे लिंग का तनाव चरम पर जा पहुँचा।
मैने आव देखा न ताव सारे कपड़े ऊतार कर नंगा हो गया।
उसे लिटाकर ठीक उसके मुँह के पास आ बैठा और जैसे ही उसके होंठों से अपने मोटे औजार को सटाया वैसे ही किसी बौरायी कुतिया की तरह पूरा का पूरा सटक गई।
"साली तू एक मर्द के काबू में आने वाली नहीं है...."
मैंने बालों को मुट्ठी में पकड़ा और जड़ तक उसके मुँह में चाप दिया-
"चूस साली छिनार...."
चोदाई के वक्त औरत को जितनी ज्यादा गाली दो वो उतनी ज्यादा मतुवाती है।
एक बात ध्यान देने वाली है।
चोदाई दो तरह की होती है।
एक सिर्फ चोदाई और दूसरी- बकचोदाई।
चोदाई में औरत का सिर्फ शरीर चोदा जाता है और बकचोदाई में औरत को गालियाँ देते हुए उसके शरीर और भावना दोनों का ब्लात्कार किया जाता है।
चोदाई अमूमन कुँवारी लड़कियों के साथ करते हैं और बकचोदाई चुदी हुई औरतों के साथ की जाती है।
क्योंकि बकचोदाई को झेलना हर मादा के बस की बात नहीं हैं।
चोदाई अगर प्रथम अवस्था है तो बकचोदाई द्वितीय अवस्था।
इसके आगे भी कोई अवस्था होती होगी तो फिलहाल वैग्यानिक उस पर तफशीश कर रहे होंगे नहीं तो मुझे बेशक पता होता।
लण्ड चटाई तभी अच्छी लगती है जब चाटने वाली प्रशिक्षित हो और वो थी।
कितनी?....ये तो मुझे पता नहीं।
पर जितनी भी थी- यकीनन छिनार तो पक्का थी।
अपनी लिजलिजी, रसीली, मलाईदार जीभ को इस तरह मेरे लौड़े पर फिरा रही थी मानों उसके बाप ने दहेज में उसे ये लौड़ा भिजवाया हो कि-
मौका मिले तो न चूक,
दिखा-दिखा के छिनरी चूत,
अंड-बंड कर खड़ा लंड,
चूस सके तो चूस,
पल में प्रलय होयेगी,
प्राण जायेगा छूट।
प्रशिक्षित या फिर छिनरी औरतें लण्ड चूसते वक्त कभी भी अपने दाँतों को लण्ड पर लगने नहीं देती।
लौड़े को दो ही चीज का अहसास होता है- गद्देदार होंठों की नरम गुफा और लण्ड के छेद पर रेंगती अठखेलियाँ करती हुई लिजलिजी जीभ।
जो लण्ड के छेद को इस तरह कुरेदती है मानों 'वंशरस' पीने के लिये छटपटा रही हो।
इस तरह की चटाई में कोई झन्डु मर्द 5 मिनट भी ठहर जाये तो बड़ी बात है।
मैं झन्डु मर्द हूँ की नहीं.....भला मैं ऐसी नौबत ही क्यों आने देता सो मैंने झट से अपने लौड़े को उसकी मुख-चुसनी से बाहर खींच निकाला-
'पक्क्...'
की अजीब मगर सेक्सी आवाज गूँजी।
लण्ड उसकी छिनरी चुसाई से पस्त पड़कर हॉफ रहा था।
मानों उसके मुँह के भीतर उसे साँस लेने में तकलीफ हो रही थी।
और किसी भी वक्त दम घुटने की वजह से वो उल्टी कर बैठता।
पर आखिर ठहरा डाक्टर!
मरीज की हालत और खराब हो उससे पहले ही मैं उसे उसकी मनपसंद जगह की सैर करा देना चाहता था।
उल्टी अगर करनी ही है तो उस जगह करे जहाँ से कुछ नतीजा निकले।
भले ही नतीजा निकलने में 9 महीना लग जाय।
पर देर आये दुरुस्त और तंदुरुस्त तो आये।
औरतें लौड़ा चूसने के बाद तत्काल में पुरुष से क्या उम्मीद रखती है????
तकरीबन दो-
जाती अनुभव के आधार पर कहुँ तो।
हालाकि ये जाती अनुभव भी काल्पनिक ही है।
पहला- गीला लण्ड सीधे उसकी गरमाई और चिपचिपाती बुर में पेल दिया जाय।
दूसरा- पुरुष भी उसके बुर की चटाई करे।
मै बेशक उसके बुर की चटाई करता बशर्ते उसके बुर से वीर्य की सड़ी हुई बदबू न आ रही होती।
कुछ औरतें ऐसी होती है जो पुरुष के वीर्य को अपने बुर की दरार में थामें रखती हैं। इसके लिये वो अपनी बुर के छेद को भींच कर रखती हैं ताकि वीर्य बाहर न बह सके।
पर वो ऐसा क्यों करती हैं????
क्योंकि जब वीर्य से भरी बुर को लेकर औरतें चलती हैं तो वो अपनी जाँघों को आपस में भीचें रखती हैं और चलने की वजह से वीर्य, बुर की फाँकों के बीच में मोबिल ऑयल की तरह काम करता है। चलने की वजह से बुर की फाँकें आपस में रगड़ती है तो वीर्य की चिपचिपाहट महसूस करके औरतों को मस्ती चढ़ती है।
इसे कहते हैं 'वीर्य की बेइज्जती' का मनोविग्यान।
जिसमें औरतें अपने बुर में छोड़े गये वंशरस को अपनी फाँकों के बीच कुचल कर मजा लेती है।
ऐसा उन्हीं मर्दों के वीर्य के साथ औरतें करती हैं जो उनके मन माफिक नहीं होते या बिना संतुष्ट किये ही झड़ जाते हैं।
औरतें ऐसे पुरुष से बदला लेने के लिये उसके वीर्य का दमन कर देती हैं।
अगर कोई हैण्डसम और स्मार्ट पुरुष हो तो टाँगें ऊपर करके उसके वंशरस को अपने बच्चेदानी में ग्रहण कर लेती हैं।
इसीलिये कहा गया है की औरतों को भगवान भी नहीं समझ सकता।
नवजात शिशु की अलग बनावट देखकर हर पुरुष को शक होता है की कहीं उसके वीर्य का दमन तो नहीं किया गया।
पर हराम की चोदाई में साला इतना कौन सोचता है?
वीर्य की बेइज्जती हो तो माँ चुदाने जाय।
बिस्तर पर झाड़ने से तो अच्छा ही है।
कम से कम कुछ तो सम्भावना रहेगी बच्चा बनने की।
लण्ड की चटाई में लौड़ा साला और फूलकर मोटा हो गया था और उस छिनार बुर को चोदने के लिये हिनहिनाने लगा था।
जब कम समय में मंजिल तक पहुचना हो तो गति बढ़ानी पड़ती है और मैंने वही किया।
उसकी मस्त गदराई टाँगों को कंधे पर लादकर चूत के चिपचिपाते छेद पर टिकाते ही-
"सीSSSSSS......बहुत मोटा है....फट गई तो....."
उस छिनार की बात सुनकर मेरा भी दिमाग भन्ना गया।
"डाक्टर हूँ साली....फेवीक्विक लगाकर चिपका दूँगा....पहले तेरी भोषड़ी को फाड़ू तो...."
इतना बोलकर मैंने कुत्ते की तरह आसन जमाकर हुमक दिया-
'पिच्च्...'
"साली छिनार...."- बुर के अंदर तो जैसे पनारा बह रहा था।
लण्ड सरसराता हुआ बिना किसी स्पीड ब्रेकर के उसकी बच्चेदानी के मुँह में जाकर अटक गया।
"आई माईSS...मर गई...सीSSSS....फाड़ दी मेरी फुद्दी..."
वह मेरे सीने से लगकर फुदकने लगी।
"चुप साली....नाटक बंद कर....नहीं तो तेरा पति सच में तेरी फाड़ देगा....फिर टाँके लगाने पर भी नही जुड़ेगी..."
मैंने लौड़े को बाहर निकाला और उसके पेटीकोट को ऊँगली में लपेटकर उसकी पनियाई बुर में घुसाकर गोल-गोल घुमाने लगा तो वो परकटी कबुतरी की तरह फड़फड़ाई।
"आई.....जलन हो रही है.....ये क्या कर रहे हो?.."
ऐसा मैं इसलिये कर रहा था ताकि उस छिनार की बुर की दिवालों से मेरा लौड़ा एकदम रगड़ खाता हुआ अंदर जाय तब इसकी नानी याद आयेगी।
"अभी पता चल जायेगा मेरी बुलबुल...."
मैने लौड़े को एक बार फिर से चूत के छेद पर टिकाकर हुमक दिया।
'कच्च्......'
"आई माई.....मर गई....आई....फट गई मेरी मुर्गी..."
"फटने दे साली....तेरे पति के नसीब मे फटी बुर ही लिखी है...."
ऐसा लग रहा था जैसे मेरा लौड़ा 13 साल की कच्ची बुर को बाता हुआ जबरजस्ती भीतर घुस रहा है।
'हच्च्....'
मैंने कमर की पूरी ताकत हौंक दी।
लौड़ा जड़ तक घुसा और उसकी बच्चेदानी के मुँह में जाकर अटक गया।
"आई सीSSSSS.....ये कैसी चुदाई है....आई.....अंदर मेरी बच्चेदानी का मुँह कल्ला रहा है...निकाल लो नहीं चुदवाना मुझे...."
"इसे कहते हैं डाक्टर झकमार की चुदाई.......एक बार जिसकी मुर्गी में घुसेड़ता हूँ तो अण्डा तो शर्तिया बनना है......साली छिनार....ले...."
'गच्च्....'
फिर मैंने उसे दबोच के हुमकना शुरू कर दिया।
जिस आसन में मैंने उसे दबोच रखा था उस आसन में लण्ड की ठोकर सीधे बच्चेदानी के मुँह पर पड़ती है।
और एक बार जब बच्चेदानी पर ठोकर लगती है तो कोई भी, कितनी भी छिनार औरत हो....15 धक्के भी ठीक से नहीं झेल सकती।
पानी तो उसे फेंकना ही फेंकना है।
और 15वें धक्के में वो मुझसे ऐसे चिपकी जैसे भैंस के शरीर से जोंक।
और चूतर उठाकर उसने लौड़े को एकदम बुर के अंदर दबोच लिया।
और गरम पानी की बौछार छोड़ने लगी।
"आई....ऊई...सीSSSS...हो गया.."
झड़ने के बाद तो वो एकदम से पस्त ही पड़ गई।
पर असली दुर्गति होनी तो अभी बाकी थी।
बुर जब झड़ जाती है तो उसके अंदर का पानी 10 धक्कों में ही सूख जाती है।
और उसके बाद.....
"आई माई...ऊई दी....छिल जायेगी...जल्दी से झड़ जाईये...अब नहीं करवा पाऊँगी...आई..."
लेकिन मुझे उसके दर्द से क्या मतलब था।
बल्कि मुझे तो अब और मजा आ रहा था उसकी बुर में हुमक कर चोदने में।
बुर एकदम कस गई थी।
लग रहा था की किसी 14 साल की लड़की को चोद रहा हूँ।
"साली....चर्बी ढीली हो गई.....बुर की सारी गर्मी झर गई...ले..."
'गच्च्...'
मैंने ताकत लगाकर पेल दिया।
"आई माई......कल्ला रही है...सीSSSS...प्लीज छोड़ दीजिये.."
मैं गचागच उस छिनरी बुर में पेलता रहा ताकि उसकी बुर हमेशा इस चुदाई को याद रखे।
पर साली छिनार औरतों को हर तरीका पता होता है लौड़ा झाड़ने का-
"आई....सीSSSS...झड़ जाओ मेरे राजा....भर दो अपना पानी मेरी बुर में....तुम्हारा ही बच्चा जनूंगी.....रखैल बनाकर रखना मुझे....तुम भी चोदना और तुम्हारा कम्पाउण्डर भी...सीSSS...तुम आगे से लेना और वो पीछे से मेरी गंदी नाली साफ करेगा....आई...."
बोलते वक्त वो नीचे हाथ ले जाकर मेरे अण्डकोशों को सोहराने लगी थी।
मानों उससे मनुहार कर रही हो की सारा माल मेरी बुर में डाल दो।
भला स्त्री के मनुहार के सामने कोई मर्द टिक सका है मैं भी आखिरी धक्का मार कर चिपक गया-
"ले साली....छिनार....अपना बीज तेरी बच्चेदानी में भर दूंगा...."
और बस कर्म काण्ड समाप्त होते ही वो साली छिनार उठी और चूत की फाँकें चीरकर वीर्य को पोंछने लगी।
यहाँ तक की चूत के अंदर घुसा-घुसा के।
मानों उसे डर हो की कहीं बाहर जाते ही उसका पति उसकी बुर को फाड़कर झाँके न।
सच में थी तो साली छिनार ही....अब तो कोई शक नहीं था।
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हाय! क्या मोटी-मोटी, गोरी-गोरी, माँसल, चिकनी मुलायम जाँघें थीं।
और जाँघों के बीच में दबी हुई माँसल योनि।
एकदम चिकनी, जैसे किसी नाई ने उल्टा उस्तरा फेर कर चिकना बना दिया हो।
मै उसकी बुर को फैला-फैला कर देख रहा था।
सच कहूँ तो ब्लू फिल्में देख-देख कर मैं एक खास तरह की योनि के लिये बहुत संवेदनशील हो चुका था और वो योनि ऐसी होती थी जिसके बीच में भगनाशा एकदम छोटा हो। जिसे देखने के लिये योनि की फाँकों को एकदम फाड़ना पड़े। और कमाल की बात ये थी की उसकी योनि ठीक ऐसी ही थी।
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भगनाशाने के थोड़ा नीचे एक अदृश्य छेद था जिसमें से पता नहीं कैसे चिपचिपी सी लार बह रही थी।
लार में एक अजीब तरह की बदबू थी मगर उस बदबू ने मुझे मदहोश कर दिया था। बदबू ऐसी थी जैसे कई दिनों का मक्खन सड़ रहा हो। इस तरह की बदबू अमूमन तभी आती है जब योनि के भीतर पुरुष का बीज सड़ता है।
इसका मतलब वो रात को चुदी थी और उसके पति का बीज उसकी योनि में ही पड़ा था।
मैंने ऊँगली पर थूक लगाकर 2-3 बार गुचगुचा दिया। बुर से सफेद-सफेद लार निकलने लगी।
"साली छिनार....."
मैंने मन ही मन उसे गालियाँ दी।
निकलने वाली लार में दो चीजे थीं।
पहली- पारदर्शी रंग का तरल और,
दूसरी- सफेद रंग का थक्का।
सफेद रंग वाला थक्का बेशक पुरुष का बीज हो सकता था और तरल पदार्थ उसकी योनि से बहने वाला वो द्रव था जो लिंग के लिये चिकनाई का काम करता था। जो तब निकलता था जब वो बहुत ही चोदासी हो जाया करती थी।
जो की फिलहाल वो थी।
औरत जब चोदासी हो जाती है तो उसके भीतर से धृणा की भावना काफी कम हो जाती है।
घृणा की भावना जितनी कम होती है औरत उतनी ही चुदक्कड़ और रसीली होती है।
ये चेक करने के लिये की वो कितनी बड़ी छिनार है मैने ऊँगली पर लगा लिसलिसा पानी उसके मुँह के पास किया और वैसे ही-
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अमूमन इस तरह की औरतें 10 में से एक ही होती हैं।
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"साली तू एक मर्द के काबू में आने वाली नहीं है...."
मैंने बालों को मुट्ठी में पकड़ा और जड़ तक उसके मुँह में चाप दिया-
"चूस साली छिनार...."
चोदाई के वक्त औरत को जितनी ज्यादा गाली दो वो उतनी ज्यादा मतुवाती है।
एक बात ध्यान देने वाली है।
चोदाई दो तरह की होती है।
एक सिर्फ चोदाई और दूसरी- बकचोदाई।
चोदाई में औरत का सिर्फ शरीर चोदा जाता है और बकचोदाई में औरत को गालियाँ देते हुए उसके शरीर और भावना दोनों का ब्लात्कार किया जाता है।
चोदाई अमूमन कुँवारी लड़कियों के साथ करते हैं और बकचोदाई चुदी हुई औरतों के साथ की जाती है।
क्योंकि बकचोदाई को झेलना हर मादा के बस की बात नहीं हैं।
चोदाई अगर प्रथम अवस्था है तो बकचोदाई द्वितीय अवस्था।
इसके आगे भी कोई अवस्था होती होगी तो फिलहाल वैग्यानिक उस पर तफशीश कर रहे होंगे नहीं तो मुझे बेशक पता होता।
लण्ड चटाई तभी अच्छी लगती है जब चाटने वाली प्रशिक्षित हो और वो थी।
कितनी?....ये तो मुझे पता नहीं।
पर जितनी भी थी- यकीनन छिनार तो पक्का थी।
अपनी लिजलिजी, रसीली, मलाईदार जीभ को इस तरह मेरे लौड़े पर फिरा रही थी मानों उसके बाप ने दहेज में उसे ये लौड़ा भिजवाया हो कि-
मौका मिले तो न चूक,
दिखा-दिखा के छिनरी चूत,
अंड-बंड कर खड़ा लंड,
चूस सके तो चूस,
पल में प्रलय होयेगी,
प्राण जायेगा छूट।
प्रशिक्षित या फिर छिनरी औरतें लण्ड चूसते वक्त कभी भी अपने दाँतों को लण्ड पर लगने नहीं देती।
लौड़े को दो ही चीज का अहसास होता है- गद्देदार होंठों की नरम गुफा और लण्ड के छेद पर रेंगती अठखेलियाँ करती हुई लिजलिजी जीभ।
जो लण्ड के छेद को इस तरह कुरेदती है मानों 'वंशरस' पीने के लिये छटपटा रही हो।
इस तरह की चटाई में कोई झन्डु मर्द 5 मिनट भी ठहर जाये तो बड़ी बात है।
मैं झन्डु मर्द हूँ की नहीं.....भला मैं ऐसी नौबत ही क्यों आने देता सो मैंने झट से अपने लौड़े को उसकी मुख-चुसनी से बाहर खींच निकाला-
'पक्क्...'
की अजीब मगर सेक्सी आवाज गूँजी।
लण्ड उसकी छिनरी चुसाई से पस्त पड़कर हॉफ रहा था।
मानों उसके मुँह के भीतर उसे साँस लेने में तकलीफ हो रही थी।
और किसी भी वक्त दम घुटने की वजह से वो उल्टी कर बैठता।
पर आखिर ठहरा डाक्टर!
मरीज की हालत और खराब हो उससे पहले ही मैं उसे उसकी मनपसंद जगह की सैर करा देना चाहता था।
उल्टी अगर करनी ही है तो उस जगह करे जहाँ से कुछ नतीजा निकले।
भले ही नतीजा निकलने में 9 महीना लग जाय।
पर देर आये दुरुस्त और तंदुरुस्त तो आये।
औरतें लौड़ा चूसने के बाद तत्काल में पुरुष से क्या उम्मीद रखती है????
तकरीबन दो-
जाती अनुभव के आधार पर कहुँ तो।
हालाकि ये जाती अनुभव भी काल्पनिक ही है।
पहला- गीला लण्ड सीधे उसकी गरमाई और चिपचिपाती बुर में पेल दिया जाय।
दूसरा- पुरुष भी उसके बुर की चटाई करे।
मै बेशक उसके बुर की चटाई करता बशर्ते उसके बुर से वीर्य की सड़ी हुई बदबू न आ रही होती।
कुछ औरतें ऐसी होती है जो पुरुष के वीर्य को अपने बुर की दरार में थामें रखती हैं। इसके लिये वो अपनी बुर के छेद को भींच कर रखती हैं ताकि वीर्य बाहर न बह सके।
पर वो ऐसा क्यों करती हैं????
क्योंकि जब वीर्य से भरी बुर को लेकर औरतें चलती हैं तो वो अपनी जाँघों को आपस में भीचें रखती हैं और चलने की वजह से वीर्य, बुर की फाँकों के बीच में मोबिल ऑयल की तरह काम करता है। चलने की वजह से बुर की फाँकें आपस में रगड़ती है तो वीर्य की चिपचिपाहट महसूस करके औरतों को मस्ती चढ़ती है।
इसे कहते हैं 'वीर्य की बेइज्जती' का मनोविग्यान।
जिसमें औरतें अपने बुर में छोड़े गये वंशरस को अपनी फाँकों के बीच कुचल कर मजा लेती है।
ऐसा उन्हीं मर्दों के वीर्य के साथ औरतें करती हैं जो उनके मन माफिक नहीं होते या बिना संतुष्ट किये ही झड़ जाते हैं।
औरतें ऐसे पुरुष से बदला लेने के लिये उसके वीर्य का दमन कर देती हैं।
अगर कोई हैण्डसम और स्मार्ट पुरुष हो तो टाँगें ऊपर करके उसके वंशरस को अपने बच्चेदानी में ग्रहण कर लेती हैं।
इसीलिये कहा गया है की औरतों को भगवान भी नहीं समझ सकता।
नवजात शिशु की अलग बनावट देखकर हर पुरुष को शक होता है की कहीं उसके वीर्य का दमन तो नहीं किया गया।
पर हराम की चोदाई में साला इतना कौन सोचता है?
वीर्य की बेइज्जती हो तो माँ चुदाने जाय।
बिस्तर पर झाड़ने से तो अच्छा ही है।
कम से कम कुछ तो सम्भावना रहेगी बच्चा बनने की।
लण्ड की चटाई में लौड़ा साला और फूलकर मोटा हो गया था और उस छिनार बुर को चोदने के लिये हिनहिनाने लगा था।
जब कम समय में मंजिल तक पहुचना हो तो गति बढ़ानी पड़ती है और मैंने वही किया।
उसकी मस्त गदराई टाँगों को कंधे पर लादकर चूत के चिपचिपाते छेद पर टिकाते ही-
"सीSSSSSS......बहुत मोटा है....फट गई तो....."
उस छिनार की बात सुनकर मेरा भी दिमाग भन्ना गया।
"डाक्टर हूँ साली....फेवीक्विक लगाकर चिपका दूँगा....पहले तेरी भोषड़ी को फाड़ू तो...."
इतना बोलकर मैंने कुत्ते की तरह आसन जमाकर हुमक दिया-
'पिच्च्...'
"साली छिनार...."- बुर के अंदर तो जैसे पनारा बह रहा था।
लण्ड सरसराता हुआ बिना किसी स्पीड ब्रेकर के उसकी बच्चेदानी के मुँह में जाकर अटक गया।
"आई माईSS...मर गई...सीSSSS....फाड़ दी मेरी फुद्दी..."
वह मेरे सीने से लगकर फुदकने लगी।
"चुप साली....नाटक बंद कर....नहीं तो तेरा पति सच में तेरी फाड़ देगा....फिर टाँके लगाने पर भी नही जुड़ेगी..."
मैंने लौड़े को बाहर निकाला और उसके पेटीकोट को ऊँगली में लपेटकर उसकी पनियाई बुर में घुसाकर गोल-गोल घुमाने लगा तो वो परकटी कबुतरी की तरह फड़फड़ाई।
"आई.....जलन हो रही है.....ये क्या कर रहे हो?.."
ऐसा मैं इसलिये कर रहा था ताकि उस छिनार की बुर की दिवालों से मेरा लौड़ा एकदम रगड़ खाता हुआ अंदर जाय तब इसकी नानी याद आयेगी।
"अभी पता चल जायेगा मेरी बुलबुल...."
मैने लौड़े को एक बार फिर से चूत के छेद पर टिकाकर हुमक दिया।
'कच्च्......'
"आई माई.....मर गई....आई....फट गई मेरी मुर्गी..."
"फटने दे साली....तेरे पति के नसीब मे फटी बुर ही लिखी है...."
ऐसा लग रहा था जैसे मेरा लौड़ा 13 साल की कच्ची बुर को बाता हुआ जबरजस्ती भीतर घुस रहा है।
'हच्च्....'
मैंने कमर की पूरी ताकत हौंक दी।
लौड़ा जड़ तक घुसा और उसकी बच्चेदानी के मुँह में जाकर अटक गया।
"आई सीSSSSS.....ये कैसी चुदाई है....आई.....अंदर मेरी बच्चेदानी का मुँह कल्ला रहा है...निकाल लो नहीं चुदवाना मुझे...."
"इसे कहते हैं डाक्टर झकमार की चुदाई.......एक बार जिसकी मुर्गी में घुसेड़ता हूँ तो अण्डा तो शर्तिया बनना है......साली छिनार....ले...."
'गच्च्....'
फिर मैंने उसे दबोच के हुमकना शुरू कर दिया।
जिस आसन में मैंने उसे दबोच रखा था उस आसन में लण्ड की ठोकर सीधे बच्चेदानी के मुँह पर पड़ती है।
और एक बार जब बच्चेदानी पर ठोकर लगती है तो कोई भी, कितनी भी छिनार औरत हो....15 धक्के भी ठीक से नहीं झेल सकती।
पानी तो उसे फेंकना ही फेंकना है।
और 15वें धक्के में वो मुझसे ऐसे चिपकी जैसे भैंस के शरीर से जोंक।
और चूतर उठाकर उसने लौड़े को एकदम बुर के अंदर दबोच लिया।
और गरम पानी की बौछार छोड़ने लगी।
"आई....ऊई...सीSSSS...हो गया.."
झड़ने के बाद तो वो एकदम से पस्त ही पड़ गई।
पर असली दुर्गति होनी तो अभी बाकी थी।
बुर जब झड़ जाती है तो उसके अंदर का पानी 10 धक्कों में ही सूख जाती है।
और उसके बाद.....
"आई माई...ऊई दी....छिल जायेगी...जल्दी से झड़ जाईये...अब नहीं करवा पाऊँगी...आई..."
लेकिन मुझे उसके दर्द से क्या मतलब था।
बल्कि मुझे तो अब और मजा आ रहा था उसकी बुर में हुमक कर चोदने में।
बुर एकदम कस गई थी।
लग रहा था की किसी 14 साल की लड़की को चोद रहा हूँ।
"साली....चर्बी ढीली हो गई.....बुर की सारी गर्मी झर गई...ले..."
'गच्च्...'
मैंने ताकत लगाकर पेल दिया।
"आई माई......कल्ला रही है...सीSSSS...प्लीज छोड़ दीजिये.."
मैं गचागच उस छिनरी बुर में पेलता रहा ताकि उसकी बुर हमेशा इस चुदाई को याद रखे।
पर साली छिनार औरतों को हर तरीका पता होता है लौड़ा झाड़ने का-
"आई....सीSSSS...झड़ जाओ मेरे राजा....भर दो अपना पानी मेरी बुर में....तुम्हारा ही बच्चा जनूंगी.....रखैल बनाकर रखना मुझे....तुम भी चोदना और तुम्हारा कम्पाउण्डर भी...सीSSS...तुम आगे से लेना और वो पीछे से मेरी गंदी नाली साफ करेगा....आई...."
बोलते वक्त वो नीचे हाथ ले जाकर मेरे अण्डकोशों को सोहराने लगी थी।
मानों उससे मनुहार कर रही हो की सारा माल मेरी बुर में डाल दो।
भला स्त्री के मनुहार के सामने कोई मर्द टिक सका है मैं भी आखिरी धक्का मार कर चिपक गया-
"ले साली....छिनार....अपना बीज तेरी बच्चेदानी में भर दूंगा...."
और बस कर्म काण्ड समाप्त होते ही वो साली छिनार उठी और चूत की फाँकें चीरकर वीर्य को पोंछने लगी।
यहाँ तक की चूत के अंदर घुसा-घुसा के।
मानों उसे डर हो की कहीं बाहर जाते ही उसका पति उसकी बुर को फाड़कर झाँके न।
सच में थी तो साली छिनार ही....अब तो कोई शक नहीं था।
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