हिंदी सेक्सी कहानियाँ
पिल्लों की फौज
मेरा नाम नीरज भाटिया है। उम्र तकरीबन 45 साल।
मुझे दो ही चीजें हमेशा लुभाती थी। पहली- शराब और दूसरी कमसिन उम्र की लड़कियाँ।
पता नहीं ये कोई आदत है या बीमारी लेकिन जब तक मुझे कोई कमसिन उम्र की लड़की भोगने के लिये नहीं मिल जाती तब तक मेरी हालत बड़ी अजीब सी हो जाया करती थी। मेरे अंदर एक अजीब सा कामुक पुरूष पैदा होने लगता था। मेरी नियत मेरे छोटे भाई की बीवी पर खराब होने लगती थी।
सच कहूँ जब से वो शादी हो के आई थी तभी से मेरी नजर उसके ऊपर खराब थी।
मेरा छोटा भाई जिसका नाम था धीरज, एकदम पतला दुबला एक हड्डी का आदमी था।
जबकि मैने शरीर के साथ कभी समझौता नहीं किया था। एकदम पहलवानों जैसा शरीर।
मेरी पत्नी आजकल काफी बीमार रहती थी जिसकी वजह से मेरा उसके साथ कुछ करने का मूड ही नहीँ बन पात था। मन मसोस कर, मूठ मारकर ही संतोष कर लेता था। लेकिन सोचता था अपने छोटे भाई की बीवी के बारे में ही जिसका की नाम था- रिया।
आज तक मै ठीक से उसका चेहरा भी नहीं देख पाया था। कभी-कभार हवा की मेहरबानी से जब घूँघट हल्का सा उठ जाया करता तो एकाध झलक मिल ही जाती थी । एकदम गोरे-गोरे हाथ पाँव जैसे किसी फिल्म की हीरोइन।
शादी हुए दो साल हो गया था लेकिन अभी तक बच्चा नहीं जना था। उम्र मुश्किल से 18 साल रही होगी। सोलह में ही शादी होकर आ गई थी। मेरे सामने जल्दी पड़ती ही नहीं थी । कभी-कभार जब गलती से आमना-सामना हो भी जाता तो जल्दी से रास्ते से हट जाया करती थी। मैं तो बस एक आह भर कर ही रह जाता।
पर एक कहावत है- जहाँ चाह, वहाँ राह।
गर्मी की तपती हुई दोपहर थी। मैँ छत पर एंटीना सही कर रहा था। वहीं बगल में लोहे के तार बँधे थे जिस पर कपड़े सूखते थे। तब पहली बार मेरी नजर एक रंग-बिरंगी कच्छी पर गई। मेरी पत्नी इस तरह की कच्छी बिल्कुल नहीं पहनती थी। मैँ झपटकर डोर तक पहुंचा और कच्छी लेकर देखने लगा। कच्छी बहुत छोटी थी। जिस पर ढेर सारे फूल बने हुए थे। मैने कच्छी की इलास्टिक में ऊँगली डालकर फैलाया, तब मेरे मुँह में पानी आ गया। कमर मुश्किल से 28 की रही होगी। ठीक तभी सीढ़ियों पर कुछ आहट सुनकर मैं जल्दी से पलटा और कच्छी को यथा स्थान रख कर मैं दुबारा एंटीना बनाने में जुट गया। वो मेरे छोटे भाई की पत्नी ही थी। मुझे देखते ही उसने जल्दी से घूँघट निकाल लिया। जबकि मैं कनखियोँ से उसकी बलखाती कमर को ही देख रहा था। और सिर्फ कच्छी में कल्पना कर रहा था। पर मुझे सिर्फ एक गहरी आह भर कर रह जाना पड़ा- " ये माल मुझे कब मिलेगा??..."कहते हैं किसी औरत को हासिल करने के लिए सीधा और सच्चा होने का ढोंग करने के साथ-साथ कभी-कभी थोड़ी बहुत कमीनीगीरी भी दिखानी चाहिए। जिसकी शुरूआत मैने बहुत ही कमीनेपन के साथ की। एंटीना ठीक करते हुए एकाएक मैंने नीचे देखा। बड़ा ही शानदार नज़ारा था। नीचे एक कुत्ता एक कुतिया की पीछे से ले रहा था। मैंने तिरछी निगाह रिया की तरफ डाली जो घूँघट काढ़े डारे से कपड़े उतार रही थी। शायद अभी तक उसकी निगाह उस दृश्य की तरफ नहीं पड़ी थी इसलिए मैं थोड़ा ऊँची आवाज में बोला- "साला, बड़ा बुर-चोद कुत्ता है।...गचर-गचर डाले पड़ा है।...ये भी साले जहाँ चूत दिखी नहीं बस टाँग उठाकर चाप देते हैं।....हट.." मैने पत्थर उठाकर कुत्ते की तरफ फेंका- "साला...मादरचोद.."मैं लगातार कनखियोँ से अपने छोटे भाई की बीवी को ताक रहा था। ये देखकर तो मैं भीतर ही भीतर गनगना गया की उसकी नजर भी उस तरफ पड़ चुकी थी। क्योंकि फिर वह जल्दी-जल्दी कपड़े उतार कर सीढ़ियों से नीचे चली गई। पीछे मैं उसकी मस्तानी चाल को देखकर पैजामें में अपने मस्ताने औज़ार को सहला रहा था- "बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी, एक न एक दिन तो छुरी के नीचे आयेगी..."ऐसे ही एक दिन मैं पीछे बैठ कर छुरे से दाढ़ी बना रहा था कि एकाएक रिया वहाँ से गुजरी। उसके हाथ में बाल्टी थी शायद वो पानी भरने जा रही थी। एक बार मैं फिर अपने कमीनेपन से बाज नहीं आया। दाढ़ी को छुरे से छाँटते हुए मैं ऊँची आवाज में बोला- "ये साला छूरा भी झाँट साफ करते करते भतरा गया है...दूसरा ब्लेड लगाना पड़ेगा।..."इतना बोलते वक्त मैं कनखियोँ से रिया की तरफ देख रहा था। वो जल्दी-जल्दी हैन्डपाइप से पानी भर रही थी। मैँ लुंगी और बनियान में बैठा था। तभी एक और कमीनापन भरा विचार मेरे दिमाग में आया।
मैने लोटे का पानी गिरा दिया और फिर लोटा लेकर नल के पास पहुंचा।
"हटो, मैं चला देता हूँ..."वह चुपचाप परे हटकर खड़ी हो गई। मैने लुंगी को कमर पर लपेटकर चापाकल को चापना शुरू किया- "साला बड़ा गाढ़ा चल रहा है।....थोड़ा तेल डाल दिया जाय तो सटासट चलेगा.."फिर मैं दौड़कर सरसों के तेल की शीशी उठा लाया। फिर बूँद-बूँद कर उसमें टपकाने लगा- "पहले जोर से चापने पर चलता था लेकिन अब छेद में तेल चला गया है तो धीरे-धीरे चापने पर सटासट चलेगा और धकापेल पानी निकलेगा..."मैं कनखियोँ से रिया की तरफ देखकर ऐसे चापाकल को चाप रहा था की जैसे किसी कुतिया को कोई कुत्ता चाप रहा हो। और कुतिया कूँ-कूँ कर रही हो जैसे की इस वक्त चापाकल से खट्खट् की आवाज आ रही थी।
इधर बाल्टी भरी और उधर वो उठाकर चलती बनी। पीछे से मैं उसकी मस्त चाल को ललचाई निगाहों से देख रहा था- "कुछ दिन और सब्र करना पड़ेगा..."- मैने एक गहरी आह भरी।
लेकिन दिल साला कमीनेपन पर उतारू था। जल्द ही मौका मिल गया। मेरी पत्नी की माँ बीमार थी सो मेरे छोटे भाई के साथ मेरी बीवी मायके चली गई। अब पूरे घर में सिर्फ मैं था और रिया थी। मैँ 45 के पेटे में पहुंचा हुआ कमीना इंसान और वो 18 साल की बलखाती नादान जवानी।
अब सवाल ये था की कैसे जाल में कबूतरी को फँसाकर शिकार किया जाए। चाहता तो मैं कोई सीधा साधा तरीका भी अपना सकता था। लेकिन कमीनेपन का अपना मजा था।
मैं उस्तरा लेकर ठीक उस वक्त छत पर गया जब रिया कपड़े उतारने आती थी। मैने सिर्फ लुंगी और बनियान पहन रखी थी। मैने चुपके से नीचे झाँक कर देखा रिया बस आने ही वाली थी। झट से मैने लुंगी उतार फेंकी और टाँग को सीढ़ियों की तरफ करके चौड़ा कर दिया ताकि औज़ार पूरा दिखाई दे। झट से मैने सरसों का तेल लिया और चुपड़ने लगा। फनफनाकर औज़ार टाइट होकर हॉफने लगा। जब मैने सीढ़ियों पे हल्की सी आहट सुनी तो मैं उस्तरे से अपनी झाँटें साफ करने का ढोंग करने लगा। तभी रिया आई। ऐसी हालत में देखकर उसने जल्दी से सिटपिटा कर लम्बा सा घूँघट निकाल लिया। और डारे से जल्दी-जल्दी कपड़े उतारने लगी। उसको देखकर मैने अपनी टाँग और चौड़ी कर दी और बनियान भी उतार दिया। फिर ऊँची आवाज में औज़ार को साटते हुए बोला- "अबे मादरचोद, मिलेगी- तुझे नई चूत मिलेगी। थोड़ा सब्र रख...इतना ज्यादा मत फनफना....चूत की गंध मिलते ही घोड़े की तरह हिनहिनाने लगता है....अबे बुरचोद...वो छोटे की माल है...उस पर नियत मत खराब कर....आजा बहनचोद तेल लगाकर तेरा गरम पानी झाड़ दूँ....बीवी भी नहीं है जो बुर चोदने को मिल जायेगी...सब्र रख दो-तीन दिन बाद आ जायेगी...फिर लेना बुर और गौड़ का मजा....खूब पेलना थूक लगाकर।"बोलते-बोलते मैं एकदम मस्ता गया था। इसी मस्ती में मैं नंग-धड़ंग लौड़ा साटते हुए खड़ा हो गया और टाँगें चौड़ी करके अण्डकोशों को सहलाते हुए कस-कस कर साटने लगा- "झड़ जा साले मादरचोद....फेंक दें पानी..."अंट-शंट बकते हुए मैं रिया के एकदम पीछे जा खड़ा हुआ। फिर भी वो मुझसे दो कदम की दूरी पर थी।...मैं उसके गोल-मटोल चूतड़ों को देखकर कस-कस के मुठिया रहा था। जैसे ही अंतिम कपड़ा उतारने के बाद रिया मेरी तरफ पलटी वैसे ही लौड़े ने वीर्य की गाढ़ी-गाढ़ी पिचकारी छोड़ दी। रिया की साड़ी पर बीज के सफेद-सफेद छींटे पड़ गये। उधर वो डर कर जल्दी से नीचे भाग गई और इधर मैं मस्ताया हुआ गहरी-गहरी साँसें लेने लगा। कसम से मजा आ गया।
"जब इसकी बुर में डालकर चोदूंगा तो कितना मजा आयेगा..."इतना सोचना थी की मैं फिर से मस्ताने लगा। मन तो कर रहा थी की उसके कमरे मे जाकर उसकी ले लूँ। मगर बात बिगड़ भी सकती थी।
बाकी पूरे दिन मैने कुछ नहीं किया। क्योँकि मुझे इंतजार था रात का। चूँकि गरमी का महीना था इसलिए अगर लाइट चली जाये तो कमरे में सोना मुहाल था। मगर शुक्र था की लाइट थी। मैं अपने कमरे में लेटा करवट बदल रहा था। मगर अंदर बुरी तरह से खलबली मची हुई थी। लौड़े को मुट्ठी में पकड़ कर कस-कस के भींच रहा था। इस वक्त अगर रिया मिल जाती तो उसकी बुर को फाड़कर घुसा देता। वैसे भी मेरा लौड़ा छोटे के लौड़े से काफी लम्बा और मोटा था। क्योँकि बचपन से ही इसे साँटना आ रहा था।
रात के 11 बजते ही मैं अपना आपा खो बैठा और धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर निकला। तनु के कमरे के बाहर पहुँच कर मैं ठिठका। भीतर पंखा चलने की आवाज आ रही थी। दरवाजे की झिर्री से मैने भीतर देखा..अंदर 100 वॉट की पीली रोशनी से पूरा कमरा चमक रहा था। वो बेड पर साड़ी पहनकर लेटी हुई थी। उसके चूतर मेरी ओर थे। मैने धीरे से दरवाजे पर दबाव डाला तो दरवाजा खुल गया। पता नहीं उसने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ दिया था या भूल गई थी। अंदर आते ही मैने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया। मेरे पास तीन चीजें थी।
पहली-बुर चोदने वाली क्रीम, दूसरी-एक मोमबत्ती और माचिस, तीसरी- एक वियाग्रा।
जो मैं अपने कमरे से ही निगल कर आया था। ताकि कम से कम दो घण्टे तक मेरा लौड़ा पानी न छोड़े। और रिया को पूरी रात चपक कर लूँ। बुर चोदने वाली जो क्रीम मैं लेकर आया था उससे बुर में पानी कम निकलता था और लौड़ा चूत के छेद में चपक कर घुसता था। यहीं क्रीम लगाकर जब अपनी बीवी को पेलना था तो पूरे दिन उसकी चूत कल्लाती रहती थी। मोमबत्ती और माचिस ये सोचकर ले आया था की पता नहीं कब लाइट चली जाय। अँधेरे में जवान बदन को देखे बिना चोदने का मजा ही नहीं आता। कुल मिलाकर पूरी तैयारी के साथ मैँ आया था। शराब का एक पैग मैँ पहले ही पी चुका था। इस वक्त चुदाई का दिमाग पर बुखार चढ़ा हुआ था। इस वक्त चाहे जो आ जाता लेकिन रिया की बुर चोदे बिना मैं मानने वाला नहीं था। मैने झट से अपना सारा कपड़ा उतार डाला और एकदम नंगा हो गया। लौड़ा चूत में घुसने के लिए हाँफ रहा था। मैने आव देखा न ताव तनु के पीछे जाकर चिपक गया। बिना इस बात की परवाह किये की वो क्या कहेगी। क्योँकि औरत को काबू में करना मुझे पूरी तरह से आता था।
इधर जैसे ही मैं रिया के पीछे जाकर चिपका तो वो कसमसाई। इससे पहले वो मेरी बाँहों से फिसलती मैने उसे कसकर दबोच लिया। उसके दोनों पैरों को अपने पैरों के बीच में कैंची मारकर फँसा लिया और एक हाथ चूचियों के ऊपर रख कर धीरे-धीरे दबाने लगा। क्या कड़ी-कड़ी चूचियाँ थीं हाथ रखते ही खून उबाल खाने लगा।
"सीSSSS...आह...प्लीज छोड़ दीजिए हमें....ये पाप है.."
"तो मैं कौन सा यहाँ पून्य कमाने आया हूँ.....जानेमन...जब चूत में ही जन्नत का रास्ता है तो साला पून्य कौन करेगा..."मैने उसकी टुड्ढी पकड़कर उसके गाल पर धीरे से चुम्मा लिया और हवस में लिपटी कामुक आवाज में बोला-
"...मुझे पता है की छोटे तुझे माँ नहीं बना पायेगा...क्योंकि उसके बीज में शुक्राणु हीं नहीं हैं। बचपन में एक एक्सीडेन्ट में वो नपुंसक हो गया था।...वो तो तुम्हारी बुर को ठीक से चोद भी नहीं पाता होगा।"बोलते-बोलते मैने उसके गुलाबी होंठों को अपने होंठों में चभक कर भर लिया और मस्ताये भौरे की तरह उसकी गुलाबी लिपस्टिक चूसने लगा।
"अगर तुम मेरी बीवी होती तो अभी तक दो बच्चा जन चुकी होती।..."फिर क्या था! मैने जल्दी से ब्लाउज़ को ऊपर खिसका कर उसकी चूचियों को नंगी कर दिया। कड़ी-कड़ी नाजुक गोरी चूचियों को देखकर दिमाग खराब हो गया। गप्प से मैने चूचियों को मुँह में भर लिया और कस-कस कर पीने लगा। वह जल बिन मछली की तरह फड़फड़ाने लगी। मगर मैं कहाँ छोड़ने वाला था।
"हाय मम्मी....मेरी चूचियाँ...सीSSSSS.....छोड़ दीजिये नहीं तो मर जाऊँगी...दुःख रही है......सीSSSS.....धीरे से....."मुझे समझते देर नहीं लगी की लौँडिया गरमाने लगी थी। फिर क्या था चूची पीते हुए मैने अपना मर्दाना हाथ साड़ी के भीतर घुसा कर उसका कौमार्य टटोलने लगा। साये के अंदर हाथ डालकर मैं एकदम गनगना गया। जाँघ इतनी चिकनी जैसे की मक्खन। इधर जैसे ही मेरा हाथ उसकी चूत पर पड़ा तो उसने अपनी जाँघों को कस कर बंद कर लिया। फिर क्या था। मेरे जैसे रसिक और लोलुप आदमी से वो भला कहाँ बचने वाली थी। मैने हाथ को उसके चिकने चूतड़ों पर फिसला कर दरार में ऊँगली घुसा दी और ऊँगली को धँसा कर गाँड़ का छेद ढूढ़ने लगा। एकदम नीचे जाकर ऊँगली छेद में जाकर फँस गई। वो सिसियाकर फुदकने लगी। मैने ऊँगली को गाँड़ के छेद में गोल-गोल घुमाना शुरू किया तो बस टाँगें अपने आप खुल गई। यही तो मैं चाहता था। इधर टाँगें खुली उधर मैने जल्दी से बुर को दबोच लिया। कसम से बुर पर हाथ लगते ही मैं मस्ता गया। एकदम सफ़ाचट मैदान। ऐसा लगता था जैसे की 14 साल की लौँडिया की बुर। फिर क्या था मैं अपना आपा खो बैठा। मैने चूत को मुट्ठी में लेकर कस-कस कर मसलना शुरू कर दिया। वो सिसियाकर खुद-ब-खुद मेरे सीने से चिपक गई। यानि लौँडिया गरमा चुकी थी। अब मैं अपना खेल इत्मीनान से खेल सकता था। मैं जल्दी से उठ बैठा और उसकी चिकनी भरी-भरी टांगों को पेट से चिपका दिया। मैं उसकी बुर की फाँकों को चीरकर उसका छोटा सा छेद देखना चाहता था।
इधर जैसे ही मैने चूत की फाँकों को खोला वैसे ही लाईट चली गई।
"धत तेरी माँ का भोषड़ा......साले अपनी बहन को भी भड़वों के पास भेज देते हैं।.."मैंने बिजली वालों को गरियाते हुए मोमबत्ती को जलाकर रोशन किया। हाथ में मोमबत्ती पकड़ के मैने उसकी फाँकों को चीर कर देखा।
लगता ही नहीं था की 18 साल की बुर है। मानो कोई 14 साल की लौंडिया मेरे सामने लेटी हो। कमाल की बात ये थी की वो 18 की हो चुकी थी लेकिन अभी तक चूत पर झाँट नहीं आई थी। सिर्फ भूरे-भूरे रोयें ही निकले थे। मैने किसी किताब में पढ़ा था की ऐसी चूत से बच्चा बड़ी मुश्किल से बाहर आता है। क्योँकि इस तरह की बुर का मुँह ज्यादा खुल ही नहीं पाता।
बुर फाड़ के भी बच्चा निकले तो मेरे बाप का क्या जा रहा था।
इस वक्त चूत से इस तरह पानी चूँ रहा था मानो बारीस हो रही हो। मैने जल्दी से क्रीम ली और बुर पर चुपड़ने लगा। थोड़ी सी क्रीम देकर मैने रिया से कहा की मेरे लौड़े पर चुपड़ो।
जब उसने मेरा लौड़ा गौर से देखा तो उसकी सिसकी निकल गई- "ये तो बहुत मोटा है..."
"इसीलिए तो क्रीम लगवा रहा हूँ...ताकि चूत के अंदर सटासट घुसे...."
"धत्त्...." इतना कहकर वो शरम से लाल हो गई।
उसका शरमाना था की लौड़ा और टनटना गया।
मैने उसे नीचे लिटाकर चूतर के नीचे दो तकिया लगाया और उसकी मोटी-मोटी टाँगों को मोड़कर अपने कंधे पर लाद लिया फिर लौड़े को चूत के छेद पर अटकाकर पेल दिया। लौड़ा सटककर चूत के छेद में अटक गया। रिया उई मम्मी कहकर मुझसे किसी जोंक की तरह चिपक गई। फिर क्या था.....मैने हुमक-हुमक कर चूत में लौड़ा पेलना शुरू कर दिया। 10-15 छक्कों के बाद वो भी मस्ता गई और नीचे से चूतर उठाकर बुर छेदवाने लगी।
"साली मादरचोद....आज मैं तेरी बुर का भोषड़ा बनाकर अपना गोंद जैसा गाढ़ा बीज तेरी चूत में थूक दूँगा......नौ महीने बाद वही बीज तेरी भोषड़ी को फाड़ कर बाहर निकलेगा."गाली बकते हुए मैं उसे हचक-हचक कर चापने लगा....गाली सुनकर उसकी चूत और पानी छोड़ने लगी।
डेढ़ घण्टे तक अलग-अलग आसनों से बुर की छेदाई करने के बाद रिया सिसियाती हुई झड़ गई।
"आई मम्मी........सीSSSSSSSS......आह..."उसका पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया था। उसके झड़ने के बाद मैं भी अपना पानी उसकी बुर के अंदर पिचकारी मारकर छोड़ने लगा।
एक महीने के बीज से उसकी कसी बुर भरकर बहने लगी थी। वो उठना चाहती थी लेकिन मैने उसे उठने नहीं दिया बल्कि उसकी टाँग को ऊपर उठाकर कम से कम 5 मिनट तक वैसे ही लिटाये रखा।
" मेरी जानेमन.... थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रहो ताकि मेरा सारा बीज तुम्हारी बच्चेदानी में भर जाय तभी तो लौडा बाहर आयेगा...."
"धत्त्...." उसके गाल काश्मीरी सेब की तरह लाल होते चले गये।
और एक बार मैं फिर बौराये कुत्ते की तरह उस कुतिया पर टूट पड़ा।
ताकि नौ महीने बाद पिल्लों की फौज शर्तिया बाहर आये।
.......................समाप्त!!!!!!
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पिल्लों की फौज
मेरा नाम नीरज भाटिया है। उम्र तकरीबन 45 साल।
मुझे दो ही चीजें हमेशा लुभाती थी। पहली- शराब और दूसरी कमसिन उम्र की लड़कियाँ।
पता नहीं ये कोई आदत है या बीमारी लेकिन जब तक मुझे कोई कमसिन उम्र की लड़की भोगने के लिये नहीं मिल जाती तब तक मेरी हालत बड़ी अजीब सी हो जाया करती थी। मेरे अंदर एक अजीब सा कामुक पुरूष पैदा होने लगता था। मेरी नियत मेरे छोटे भाई की बीवी पर खराब होने लगती थी।
सच कहूँ जब से वो शादी हो के आई थी तभी से मेरी नजर उसके ऊपर खराब थी।
मेरा छोटा भाई जिसका नाम था धीरज, एकदम पतला दुबला एक हड्डी का आदमी था।
जबकि मैने शरीर के साथ कभी समझौता नहीं किया था। एकदम पहलवानों जैसा शरीर।
मेरी पत्नी आजकल काफी बीमार रहती थी जिसकी वजह से मेरा उसके साथ कुछ करने का मूड ही नहीँ बन पात था। मन मसोस कर, मूठ मारकर ही संतोष कर लेता था। लेकिन सोचता था अपने छोटे भाई की बीवी के बारे में ही जिसका की नाम था- रिया।
आज तक मै ठीक से उसका चेहरा भी नहीं देख पाया था। कभी-कभार हवा की मेहरबानी से जब घूँघट हल्का सा उठ जाया करता तो एकाध झलक मिल ही जाती थी । एकदम गोरे-गोरे हाथ पाँव जैसे किसी फिल्म की हीरोइन।
शादी हुए दो साल हो गया था लेकिन अभी तक बच्चा नहीं जना था। उम्र मुश्किल से 18 साल रही होगी। सोलह में ही शादी होकर आ गई थी। मेरे सामने जल्दी पड़ती ही नहीं थी । कभी-कभार जब गलती से आमना-सामना हो भी जाता तो जल्दी से रास्ते से हट जाया करती थी। मैं तो बस एक आह भर कर ही रह जाता।
पर एक कहावत है- जहाँ चाह, वहाँ राह।
गर्मी की तपती हुई दोपहर थी। मैँ छत पर एंटीना सही कर रहा था। वहीं बगल में लोहे के तार बँधे थे जिस पर कपड़े सूखते थे। तब पहली बार मेरी नजर एक रंग-बिरंगी कच्छी पर गई। मेरी पत्नी इस तरह की कच्छी बिल्कुल नहीं पहनती थी। मैँ झपटकर डोर तक पहुंचा और कच्छी लेकर देखने लगा। कच्छी बहुत छोटी थी। जिस पर ढेर सारे फूल बने हुए थे। मैने कच्छी की इलास्टिक में ऊँगली डालकर फैलाया, तब मेरे मुँह में पानी आ गया। कमर मुश्किल से 28 की रही होगी। ठीक तभी सीढ़ियों पर कुछ आहट सुनकर मैं जल्दी से पलटा और कच्छी को यथा स्थान रख कर मैं दुबारा एंटीना बनाने में जुट गया। वो मेरे छोटे भाई की पत्नी ही थी। मुझे देखते ही उसने जल्दी से घूँघट निकाल लिया। जबकि मैं कनखियोँ से उसकी बलखाती कमर को ही देख रहा था। और सिर्फ कच्छी में कल्पना कर रहा था। पर मुझे सिर्फ एक गहरी आह भर कर रह जाना पड़ा- " ये माल मुझे कब मिलेगा??..."कहते हैं किसी औरत को हासिल करने के लिए सीधा और सच्चा होने का ढोंग करने के साथ-साथ कभी-कभी थोड़ी बहुत कमीनीगीरी भी दिखानी चाहिए। जिसकी शुरूआत मैने बहुत ही कमीनेपन के साथ की। एंटीना ठीक करते हुए एकाएक मैंने नीचे देखा। बड़ा ही शानदार नज़ारा था। नीचे एक कुत्ता एक कुतिया की पीछे से ले रहा था। मैंने तिरछी निगाह रिया की तरफ डाली जो घूँघट काढ़े डारे से कपड़े उतार रही थी। शायद अभी तक उसकी निगाह उस दृश्य की तरफ नहीं पड़ी थी इसलिए मैं थोड़ा ऊँची आवाज में बोला- "साला, बड़ा बुर-चोद कुत्ता है।...गचर-गचर डाले पड़ा है।...ये भी साले जहाँ चूत दिखी नहीं बस टाँग उठाकर चाप देते हैं।....हट.." मैने पत्थर उठाकर कुत्ते की तरफ फेंका- "साला...मादरचोद.."मैं लगातार कनखियोँ से अपने छोटे भाई की बीवी को ताक रहा था। ये देखकर तो मैं भीतर ही भीतर गनगना गया की उसकी नजर भी उस तरफ पड़ चुकी थी। क्योंकि फिर वह जल्दी-जल्दी कपड़े उतार कर सीढ़ियों से नीचे चली गई। पीछे मैं उसकी मस्तानी चाल को देखकर पैजामें में अपने मस्ताने औज़ार को सहला रहा था- "बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी, एक न एक दिन तो छुरी के नीचे आयेगी..."ऐसे ही एक दिन मैं पीछे बैठ कर छुरे से दाढ़ी बना रहा था कि एकाएक रिया वहाँ से गुजरी। उसके हाथ में बाल्टी थी शायद वो पानी भरने जा रही थी। एक बार मैं फिर अपने कमीनेपन से बाज नहीं आया। दाढ़ी को छुरे से छाँटते हुए मैं ऊँची आवाज में बोला- "ये साला छूरा भी झाँट साफ करते करते भतरा गया है...दूसरा ब्लेड लगाना पड़ेगा।..."इतना बोलते वक्त मैं कनखियोँ से रिया की तरफ देख रहा था। वो जल्दी-जल्दी हैन्डपाइप से पानी भर रही थी। मैँ लुंगी और बनियान में बैठा था। तभी एक और कमीनापन भरा विचार मेरे दिमाग में आया।
मैने लोटे का पानी गिरा दिया और फिर लोटा लेकर नल के पास पहुंचा।
"हटो, मैं चला देता हूँ..."वह चुपचाप परे हटकर खड़ी हो गई। मैने लुंगी को कमर पर लपेटकर चापाकल को चापना शुरू किया- "साला बड़ा गाढ़ा चल रहा है।....थोड़ा तेल डाल दिया जाय तो सटासट चलेगा.."फिर मैं दौड़कर सरसों के तेल की शीशी उठा लाया। फिर बूँद-बूँद कर उसमें टपकाने लगा- "पहले जोर से चापने पर चलता था लेकिन अब छेद में तेल चला गया है तो धीरे-धीरे चापने पर सटासट चलेगा और धकापेल पानी निकलेगा..."मैं कनखियोँ से रिया की तरफ देखकर ऐसे चापाकल को चाप रहा था की जैसे किसी कुतिया को कोई कुत्ता चाप रहा हो। और कुतिया कूँ-कूँ कर रही हो जैसे की इस वक्त चापाकल से खट्खट् की आवाज आ रही थी।
इधर बाल्टी भरी और उधर वो उठाकर चलती बनी। पीछे से मैं उसकी मस्त चाल को ललचाई निगाहों से देख रहा था- "कुछ दिन और सब्र करना पड़ेगा..."- मैने एक गहरी आह भरी।
लेकिन दिल साला कमीनेपन पर उतारू था। जल्द ही मौका मिल गया। मेरी पत्नी की माँ बीमार थी सो मेरे छोटे भाई के साथ मेरी बीवी मायके चली गई। अब पूरे घर में सिर्फ मैं था और रिया थी। मैँ 45 के पेटे में पहुंचा हुआ कमीना इंसान और वो 18 साल की बलखाती नादान जवानी।
अब सवाल ये था की कैसे जाल में कबूतरी को फँसाकर शिकार किया जाए। चाहता तो मैं कोई सीधा साधा तरीका भी अपना सकता था। लेकिन कमीनेपन का अपना मजा था।
मैं उस्तरा लेकर ठीक उस वक्त छत पर गया जब रिया कपड़े उतारने आती थी। मैने सिर्फ लुंगी और बनियान पहन रखी थी। मैने चुपके से नीचे झाँक कर देखा रिया बस आने ही वाली थी। झट से मैने लुंगी उतार फेंकी और टाँग को सीढ़ियों की तरफ करके चौड़ा कर दिया ताकि औज़ार पूरा दिखाई दे। झट से मैने सरसों का तेल लिया और चुपड़ने लगा। फनफनाकर औज़ार टाइट होकर हॉफने लगा। जब मैने सीढ़ियों पे हल्की सी आहट सुनी तो मैं उस्तरे से अपनी झाँटें साफ करने का ढोंग करने लगा। तभी रिया आई। ऐसी हालत में देखकर उसने जल्दी से सिटपिटा कर लम्बा सा घूँघट निकाल लिया। और डारे से जल्दी-जल्दी कपड़े उतारने लगी। उसको देखकर मैने अपनी टाँग और चौड़ी कर दी और बनियान भी उतार दिया। फिर ऊँची आवाज में औज़ार को साटते हुए बोला- "अबे मादरचोद, मिलेगी- तुझे नई चूत मिलेगी। थोड़ा सब्र रख...इतना ज्यादा मत फनफना....चूत की गंध मिलते ही घोड़े की तरह हिनहिनाने लगता है....अबे बुरचोद...वो छोटे की माल है...उस पर नियत मत खराब कर....आजा बहनचोद तेल लगाकर तेरा गरम पानी झाड़ दूँ....बीवी भी नहीं है जो बुर चोदने को मिल जायेगी...सब्र रख दो-तीन दिन बाद आ जायेगी...फिर लेना बुर और गौड़ का मजा....खूब पेलना थूक लगाकर।"बोलते-बोलते मैं एकदम मस्ता गया था। इसी मस्ती में मैं नंग-धड़ंग लौड़ा साटते हुए खड़ा हो गया और टाँगें चौड़ी करके अण्डकोशों को सहलाते हुए कस-कस कर साटने लगा- "झड़ जा साले मादरचोद....फेंक दें पानी..."अंट-शंट बकते हुए मैं रिया के एकदम पीछे जा खड़ा हुआ। फिर भी वो मुझसे दो कदम की दूरी पर थी।...मैं उसके गोल-मटोल चूतड़ों को देखकर कस-कस के मुठिया रहा था। जैसे ही अंतिम कपड़ा उतारने के बाद रिया मेरी तरफ पलटी वैसे ही लौड़े ने वीर्य की गाढ़ी-गाढ़ी पिचकारी छोड़ दी। रिया की साड़ी पर बीज के सफेद-सफेद छींटे पड़ गये। उधर वो डर कर जल्दी से नीचे भाग गई और इधर मैं मस्ताया हुआ गहरी-गहरी साँसें लेने लगा। कसम से मजा आ गया।
"जब इसकी बुर में डालकर चोदूंगा तो कितना मजा आयेगा..."इतना सोचना थी की मैं फिर से मस्ताने लगा। मन तो कर रहा थी की उसके कमरे मे जाकर उसकी ले लूँ। मगर बात बिगड़ भी सकती थी।
बाकी पूरे दिन मैने कुछ नहीं किया। क्योँकि मुझे इंतजार था रात का। चूँकि गरमी का महीना था इसलिए अगर लाइट चली जाये तो कमरे में सोना मुहाल था। मगर शुक्र था की लाइट थी। मैं अपने कमरे में लेटा करवट बदल रहा था। मगर अंदर बुरी तरह से खलबली मची हुई थी। लौड़े को मुट्ठी में पकड़ कर कस-कस के भींच रहा था। इस वक्त अगर रिया मिल जाती तो उसकी बुर को फाड़कर घुसा देता। वैसे भी मेरा लौड़ा छोटे के लौड़े से काफी लम्बा और मोटा था। क्योँकि बचपन से ही इसे साँटना आ रहा था।
रात के 11 बजते ही मैं अपना आपा खो बैठा और धीरे से दरवाजा खोलकर बाहर निकला। तनु के कमरे के बाहर पहुँच कर मैं ठिठका। भीतर पंखा चलने की आवाज आ रही थी। दरवाजे की झिर्री से मैने भीतर देखा..अंदर 100 वॉट की पीली रोशनी से पूरा कमरा चमक रहा था। वो बेड पर साड़ी पहनकर लेटी हुई थी। उसके चूतर मेरी ओर थे। मैने धीरे से दरवाजे पर दबाव डाला तो दरवाजा खुल गया। पता नहीं उसने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ दिया था या भूल गई थी। अंदर आते ही मैने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया। मेरे पास तीन चीजें थी।
पहली-बुर चोदने वाली क्रीम, दूसरी-एक मोमबत्ती और माचिस, तीसरी- एक वियाग्रा।
जो मैं अपने कमरे से ही निगल कर आया था। ताकि कम से कम दो घण्टे तक मेरा लौड़ा पानी न छोड़े। और रिया को पूरी रात चपक कर लूँ। बुर चोदने वाली जो क्रीम मैं लेकर आया था उससे बुर में पानी कम निकलता था और लौड़ा चूत के छेद में चपक कर घुसता था। यहीं क्रीम लगाकर जब अपनी बीवी को पेलना था तो पूरे दिन उसकी चूत कल्लाती रहती थी। मोमबत्ती और माचिस ये सोचकर ले आया था की पता नहीं कब लाइट चली जाय। अँधेरे में जवान बदन को देखे बिना चोदने का मजा ही नहीं आता। कुल मिलाकर पूरी तैयारी के साथ मैँ आया था। शराब का एक पैग मैँ पहले ही पी चुका था। इस वक्त चुदाई का दिमाग पर बुखार चढ़ा हुआ था। इस वक्त चाहे जो आ जाता लेकिन रिया की बुर चोदे बिना मैं मानने वाला नहीं था। मैने झट से अपना सारा कपड़ा उतार डाला और एकदम नंगा हो गया। लौड़ा चूत में घुसने के लिए हाँफ रहा था। मैने आव देखा न ताव तनु के पीछे जाकर चिपक गया। बिना इस बात की परवाह किये की वो क्या कहेगी। क्योँकि औरत को काबू में करना मुझे पूरी तरह से आता था।
इधर जैसे ही मैं रिया के पीछे जाकर चिपका तो वो कसमसाई। इससे पहले वो मेरी बाँहों से फिसलती मैने उसे कसकर दबोच लिया। उसके दोनों पैरों को अपने पैरों के बीच में कैंची मारकर फँसा लिया और एक हाथ चूचियों के ऊपर रख कर धीरे-धीरे दबाने लगा। क्या कड़ी-कड़ी चूचियाँ थीं हाथ रखते ही खून उबाल खाने लगा।
"सीSSSS...आह...प्लीज छोड़ दीजिए हमें....ये पाप है.."
"तो मैं कौन सा यहाँ पून्य कमाने आया हूँ.....जानेमन...जब चूत में ही जन्नत का रास्ता है तो साला पून्य कौन करेगा..."मैने उसकी टुड्ढी पकड़कर उसके गाल पर धीरे से चुम्मा लिया और हवस में लिपटी कामुक आवाज में बोला-
"...मुझे पता है की छोटे तुझे माँ नहीं बना पायेगा...क्योंकि उसके बीज में शुक्राणु हीं नहीं हैं। बचपन में एक एक्सीडेन्ट में वो नपुंसक हो गया था।...वो तो तुम्हारी बुर को ठीक से चोद भी नहीं पाता होगा।"बोलते-बोलते मैने उसके गुलाबी होंठों को अपने होंठों में चभक कर भर लिया और मस्ताये भौरे की तरह उसकी गुलाबी लिपस्टिक चूसने लगा।
"अगर तुम मेरी बीवी होती तो अभी तक दो बच्चा जन चुकी होती।..."फिर क्या था! मैने जल्दी से ब्लाउज़ को ऊपर खिसका कर उसकी चूचियों को नंगी कर दिया। कड़ी-कड़ी नाजुक गोरी चूचियों को देखकर दिमाग खराब हो गया। गप्प से मैने चूचियों को मुँह में भर लिया और कस-कस कर पीने लगा। वह जल बिन मछली की तरह फड़फड़ाने लगी। मगर मैं कहाँ छोड़ने वाला था।
"हाय मम्मी....मेरी चूचियाँ...सीSSSSS.....छोड़ दीजिये नहीं तो मर जाऊँगी...दुःख रही है......सीSSSS.....धीरे से....."मुझे समझते देर नहीं लगी की लौँडिया गरमाने लगी थी। फिर क्या था चूची पीते हुए मैने अपना मर्दाना हाथ साड़ी के भीतर घुसा कर उसका कौमार्य टटोलने लगा। साये के अंदर हाथ डालकर मैं एकदम गनगना गया। जाँघ इतनी चिकनी जैसे की मक्खन। इधर जैसे ही मेरा हाथ उसकी चूत पर पड़ा तो उसने अपनी जाँघों को कस कर बंद कर लिया। फिर क्या था। मेरे जैसे रसिक और लोलुप आदमी से वो भला कहाँ बचने वाली थी। मैने हाथ को उसके चिकने चूतड़ों पर फिसला कर दरार में ऊँगली घुसा दी और ऊँगली को धँसा कर गाँड़ का छेद ढूढ़ने लगा। एकदम नीचे जाकर ऊँगली छेद में जाकर फँस गई। वो सिसियाकर फुदकने लगी। मैने ऊँगली को गाँड़ के छेद में गोल-गोल घुमाना शुरू किया तो बस टाँगें अपने आप खुल गई। यही तो मैं चाहता था। इधर टाँगें खुली उधर मैने जल्दी से बुर को दबोच लिया। कसम से बुर पर हाथ लगते ही मैं मस्ता गया। एकदम सफ़ाचट मैदान। ऐसा लगता था जैसे की 14 साल की लौँडिया की बुर। फिर क्या था मैं अपना आपा खो बैठा। मैने चूत को मुट्ठी में लेकर कस-कस कर मसलना शुरू कर दिया। वो सिसियाकर खुद-ब-खुद मेरे सीने से चिपक गई। यानि लौँडिया गरमा चुकी थी। अब मैं अपना खेल इत्मीनान से खेल सकता था। मैं जल्दी से उठ बैठा और उसकी चिकनी भरी-भरी टांगों को पेट से चिपका दिया। मैं उसकी बुर की फाँकों को चीरकर उसका छोटा सा छेद देखना चाहता था।
इधर जैसे ही मैने चूत की फाँकों को खोला वैसे ही लाईट चली गई।
"धत तेरी माँ का भोषड़ा......साले अपनी बहन को भी भड़वों के पास भेज देते हैं।.."मैंने बिजली वालों को गरियाते हुए मोमबत्ती को जलाकर रोशन किया। हाथ में मोमबत्ती पकड़ के मैने उसकी फाँकों को चीर कर देखा।
लगता ही नहीं था की 18 साल की बुर है। मानो कोई 14 साल की लौंडिया मेरे सामने लेटी हो। कमाल की बात ये थी की वो 18 की हो चुकी थी लेकिन अभी तक चूत पर झाँट नहीं आई थी। सिर्फ भूरे-भूरे रोयें ही निकले थे। मैने किसी किताब में पढ़ा था की ऐसी चूत से बच्चा बड़ी मुश्किल से बाहर आता है। क्योँकि इस तरह की बुर का मुँह ज्यादा खुल ही नहीं पाता।
बुर फाड़ के भी बच्चा निकले तो मेरे बाप का क्या जा रहा था।
इस वक्त चूत से इस तरह पानी चूँ रहा था मानो बारीस हो रही हो। मैने जल्दी से क्रीम ली और बुर पर चुपड़ने लगा। थोड़ी सी क्रीम देकर मैने रिया से कहा की मेरे लौड़े पर चुपड़ो।
जब उसने मेरा लौड़ा गौर से देखा तो उसकी सिसकी निकल गई- "ये तो बहुत मोटा है..."
"इसीलिए तो क्रीम लगवा रहा हूँ...ताकि चूत के अंदर सटासट घुसे...."
"धत्त्...." इतना कहकर वो शरम से लाल हो गई।
उसका शरमाना था की लौड़ा और टनटना गया।
मैने उसे नीचे लिटाकर चूतर के नीचे दो तकिया लगाया और उसकी मोटी-मोटी टाँगों को मोड़कर अपने कंधे पर लाद लिया फिर लौड़े को चूत के छेद पर अटकाकर पेल दिया। लौड़ा सटककर चूत के छेद में अटक गया। रिया उई मम्मी कहकर मुझसे किसी जोंक की तरह चिपक गई। फिर क्या था.....मैने हुमक-हुमक कर चूत में लौड़ा पेलना शुरू कर दिया। 10-15 छक्कों के बाद वो भी मस्ता गई और नीचे से चूतर उठाकर बुर छेदवाने लगी।
"साली मादरचोद....आज मैं तेरी बुर का भोषड़ा बनाकर अपना गोंद जैसा गाढ़ा बीज तेरी चूत में थूक दूँगा......नौ महीने बाद वही बीज तेरी भोषड़ी को फाड़ कर बाहर निकलेगा."गाली बकते हुए मैं उसे हचक-हचक कर चापने लगा....गाली सुनकर उसकी चूत और पानी छोड़ने लगी।
डेढ़ घण्टे तक अलग-अलग आसनों से बुर की छेदाई करने के बाद रिया सिसियाती हुई झड़ गई।
"आई मम्मी........सीSSSSSSSS......आह..."उसका पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया था। उसके झड़ने के बाद मैं भी अपना पानी उसकी बुर के अंदर पिचकारी मारकर छोड़ने लगा।
एक महीने के बीज से उसकी कसी बुर भरकर बहने लगी थी। वो उठना चाहती थी लेकिन मैने उसे उठने नहीं दिया बल्कि उसकी टाँग को ऊपर उठाकर कम से कम 5 मिनट तक वैसे ही लिटाये रखा।
" मेरी जानेमन.... थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रहो ताकि मेरा सारा बीज तुम्हारी बच्चेदानी में भर जाय तभी तो लौडा बाहर आयेगा...."
"धत्त्...." उसके गाल काश्मीरी सेब की तरह लाल होते चले गये।
और एक बार मैं फिर बौराये कुत्ते की तरह उस कुतिया पर टूट पड़ा।
ताकि नौ महीने बाद पिल्लों की फौज शर्तिया बाहर आये।
.......................समाप्त!!!!!!
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raj sharma
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