Monday, April 8, 2013

सेक्सी कहानियाँ तुम सच में बहुत सेक्सी हो-2

 

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

तुम सच में बहुत सेक्सी हो-2

बड़े संकोच में उसने जीन्स की बटन खोलकर जिप को नीचे किया।
मैंने गौर से देखा उसने गुलाबी रंग की कक्षी पहनी थी जिस पर सफेद रंग के छोटे-छोटे फूल बने हुये थे।
"बस......"
"नहीं.....जीन्स नीचे करके घुटनों तक सरकाओ....मुझे पूरी कक्षी दिखाओ...."
मैं बहुत कस-कसके अपने लौड़े को साटने लगा था।
"उफ्!.......क्या हो गया है आपको?......आप मानोंगे नहीं..."
अखिरकार उसे मेरी फरमाइश को पूरा करना ही पड़ा।
उसने जीन्स को नीचे खिसका दिया।
उफ्! क्या कक्षी थी।
वो कक्षी कम और बिकनी ज्यादा थी।
जिसको किनारे-किनारे डोरी से बांधा जाता है।
मन तो कर रहा था कि उसकी डोरी को खींच कर नंगी कर दूं।
लेकिन अब तो मछली फंस ही चुकी थी।
भाग के कहा जायेगी।
"कुतिया बन कर अपनी गांड़ मेरी ओर करो......जल्दी...."
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरा माल कभी भी निकल सकता है।
"नहीं .....प्लीज......"
"जैसा बोल रहा हूँ वैसा ही करो........बस मेरा माल निकलने ही वाला है...."
आखिरकार उसे मानना ही पड़ा।
"ओ.के....लेकिन पहले आप प्रामिस कीजिये कि आप मेरे कपड़े के ऊपर नहीं निकालेगें......"
"हाँ....हाँ...प्रामिस.....प्रामिस...."
मेरी हालत बिल्कुल हाँफते हुये कुत्ते जैसी हो गई थी।
जैसे ही उसने अपनी गांड़ मेरी ओर की वैसे ही मैंने अपने लण्ड को उसकी गांड़ की तरफ निशाना किया और एक टाँग उठाकर पिच्च से पहली पिचकारी उसके ठीक वहाँ छोड़ी जहाँ गांड़ और बुर का छेद उसकी कक्षी के नीचे छिपा हुआ था।
"ऊई मम्मी...आपने मेरी पैन्टी खराब कर दी।..."
वो जल्दी से अपनी गांड़ को वापस घुमाने को हुई लेकिन मैं उस वक्त काफी जोश में था इसलिये उसकी पतली कमर को कस कर पकड़ लिया और पीछे से जोर से चिपक गया।
मेरा लौड़ा बुर से एकदम चिपक कर अपना बाकी बचा माल उगलने लगा।
कई महीनों से मैंने अपनी बीवी के साथ सहवास नहीं किया था तो आप समझ सकते हैं कि कितना अधिक माल निकला होगा।
उसकी पूरी कक्षी मेरे गाड़े-गाड़े सफेद माल से भींग गई थी।
मैं हांफते हुये कुत्ते की तरह वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया था।
"सॉरी......मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया......तुम सच में बहुत सेक्सी हो।......तुमको जो पायेगा वो सच में बहुत भाग्यशाली होगा।......अभी जो मुझको मजा मिला है वो पूरी जिन्दगी में कभी नहीं मिला। मेरा बस चलता तो मैं सच में तुमको अभी अपनी बीवी बना लेता।....."
वो रुमाल से अपनी कक्षी पर लगे मेरे गाड़े वीर्य को साफ कर रही थी।
मेरे मुँह से अपनी इतनी तारीफ सुनकर अब उसका गुस्सा काफी कम हो गया था।
"अब सच में एकदम पागल हैं।....."
उसके इस वाक्य में प्यार शामिल था।
शायद इतनी दिवानगी कभी किसी ने उसके लिये दिखाई नहीं थी।
शाहर के लड़के तो वैसे भी कई लड़कियों के साथ लगे रहते हैं ऐसे में इस तरह की दिवानगी उनके अंदर कहाँ से होगी।
मेरी तरह कई महीनों से भूखा इंसान भला कैसे खुद पर काबू रख पायेगा।
लेकिन सच में मन अभी भरा नहीं था।
बल्कि भूख अब और भी बढ़ गई थी।
मुझे खुद की किस्मत पे गुमान हो रहा था कि ऐसी सुन्दरी मुझे भोगने के लिये मिल रही थी।
पर ये अवसर मेरे पास बस तभी तक के लिये थे जब तक की उसे मेरा लड़का पसंद नहीं आ जाता।
इस बीच अगर मैं उसके साथ सहवास कर पाऊं तो मेरी किस्मत।
वरना!!!!!!!!!!
घर आ चुका था।
मोनिका को शायद हमारा घर कुछ खास पसन्द नहीं आया था।
लेकिन मुझे इस बात की कुछ खास परवाह नहीं थी क्योंकि मुझे अपनी औकात पता थी।
एक साधारण बैंक मैनेजर जितना आफोर्ड कर सकता था मैंने उससे ज्यादा ही किया था।
फिर भला शर्म किस बात की।
घर में मेरी बेटी, पत्नी और बेटा सभी मानो हमारा ही इंतजार कर रहे थे।
ये हमारे खानदान में पहली बार हो रहा था कि कोई लड़की शादी के लिये हमारे परिवार के किसी सदस्य को देखने आई थी।
था तो ये अजीब लेकिन आजकल के हिसाब से जो भी हो जाय उसका विरोध करने की जगह स्वागत करना ज्यादा फायदेमंद होता है।
वैसे भी इन चीजों का विरोध करके कुछ हासिल नहीं होता उल्टा नुकसान ही है।
बेटा या बेटी विरोध की अवस्था में आपके खिलाफ हो जाते हैं और आपको दोनों के प्रेम से जुदा होना पड़ सकता है।
कम से कम मैं उन बापों में से नहीं था जिनको अपने बेटों और बेटियों की खुशियों की परवाह न हो।
क्या होगा ज्यादा से ज्यादा शादी नहीं चलेगी टूट जायेगी।
तो कौन सी बड़ी बात है।
आज कल के जमाने में किसी एक के साथ पूरी जिन्दगी गुजारना बड़ा बोरियत भरा फैसला है।
जिन्दगी जीते जी नरक जैसी बन जाती है।
मैं नहीं चाहता जो जिन्दगी मैंने जी वो मेरे बच्चे भी जिये।
मेरी तरफ से उनका जितनी भी बार तलाक लेकर शादी करने का मन करे उतनी बार करें।
ये सारी चीजें इंसान को ज्यादा जिम्मेदार बनाती है।
और सबसे बड़ी चीज है जिम्मेदारी।
जो खुद फैसले लेनी से आती है किसी दूसरे के फैसलों से इंसान कुछ नहीं सीख पाता बस उसे आँख मूंद कर जिये चला जाता है।
मैंने कभी ऐसे बच्चों की कल्पना नहीं की थी।
और शुक्र है भगवान का मेरे बच्चे ऐसे है भी नहीं।

मोनिका थी तो बड़ी मार्डन लेकिन उसकी कुछ बातों ने दिल को छु लिया।
जाते ही उसने सबसे पहले मेरी पत्नी के पैरों को झुककर छुआ।
मेरी पत्नी हैं बड़ी भोली इतने से ही गदगद हो गई।
भला एक सास को और क्या चाहिये।
खानपान का सिलसिला शुरू हुआ।
बातों का दौर जारी रहा।
मुझे अपने लड़क़े पर थोड़ा गुस्सा आ रहा था।
मोनिका बिल्कुल भी नहीं शरमा रही थी जबकि मेरा लड़का ऐसे शरमा रहा था जैसे अगर वो कुछ बोलेगा तो मोनिका उसे रिजेक्ट कर देगी।
आजकल के लड़के वास्तविक जीवन से ज्यादा अपना समय काल्पनिक दुनिया मे लगाते हैं जैसे कम्प्युटर, इंटरनेट, फेसबुक, चैटिंग....और पता नहीं क्या-क्या बकवास काम।
सच में किसी लड़की से बात करने को कह दिया जाय तो जूड़ी के मरीज की तरह हाथ पाँव ही कापने लगता है।
ऐसे लोग पता नहीं सुहागरात पर क्या कर पाते होंगे।
कभी-कभी मुझे यही सब तलाक की असली वजह लगती है।
लड़के इसी सब में ज्यादा दिमाक लगाते हैं और लड़कियाँ तो बस पुरुष का प्यार पाने में ही अपना दिमाक लगाती हैं।
फिर वही होता है अलगाव, तलाक, ब्रेकअप आदि-आदि।
बातों का दौर ऐसा चला कि समय कब गुजर गया पता ही नहीं चला।
मैंने इस बीच गौर किया जैसे मोनिका मुझसे कुछ कहना चाहती हो।
मैं उसका इशारा भाप गया था।
वो राहुल के साथ कुछ समय अकेले में बात करना चाहती थी।
इस बात पर मुझे कोई ऐतराज नहीं था। आखिरकार मैंने बोरियत भरी बातों का सिलसिला खत्म करते हुये कहाँ-
"राहुल बेटे.....मोनिका आज पहली बार हमारे घर आई है। इसको ले जाकर पूरा घर टहलाओ।...आज चाँदनी रात है। छत पर ले जाकर इलाहाबाद का संगम का नजारा कराओ।"
राहुल भी शायद मोनिका से अकेले में बात करना चाहता था।
"ओ.क़े पापा मैं मोनिका को घुमा के लाता हूँ।"
दोनों वहाँ से ऊपर चले गये।
मेरी नजर चाह कर भी मोनिका के मटकते चूतरों से हट नहीं पा रही थी।
मैं उसे तब तक जाते देखता रहा जब तक की वो मेरे सामने से ओझल न हो गई।
उधर वो मेरी आंखों के आगे से ओझल हुई इधर मेरे दिल का करार लुट गया।
न जाने वो दोनों अकेले में जाकर क्या-क्या करेंगे।
सोच-सोच कर मेरे दिल की हालत बुरी हो रही थी।
मानों मोनिका मेरी प्रमिका हो।
पहली बार मुझे खुद का बेटा एक कम्पटीटर के रूप में नजर आ रहा था।
लेकिन कोई बाप भला अपने बेटे को कैसे कम्पीट कर सकता है?
लेकिन एक खूबसूरत लड़की कुछ भी करवा सकती है।
खास कर अगर वो उतनी ही सेक्सी भी हो।
और मोनिका जैसी लड़कियों के लिये तो लोग खून तक कर गुजरते हैं।
मैंने एक पल के लिये सोचा-
'क्या मैं मोनिका के लिये अपने बेटे का खून कर सकता था?'
"नामुमकिन"
मेरे होठ खुद-ब-खुद बुदबुदा उठे।
कोई बाप भला किसी जवान लड़की के जिस्म से खेलने के लिये अपने एकलौते बेटे का खून कैसे कर सकता है?
असम्भव!
ये कोई नहीं कर सकता।
मैं तो अपने बेटे से इतना प्यार करता था।
इस विचार को मैं ज्यादा सोचना नहीं चाहता था।
कहते हैं कि किसी विचार को ज्यादा देर तक सोचो तो वो खुद पर हावी हो जाता है।
पर दिल भी तो मेरा छटपटा रहा था।
क्या होगा अगर मोनिका ने मेरे लड़के को पसन्द कर लिया?
मुझे तो लग रहा था वो पसंद कर चुकी है बस उसके साथ सहवास करके देखना चाहती है कि वो उसे संतुष्ट कर पायेगा या नहीं।
यानि मोनिका राहुल को इसलिये अकेले में ले गई है।
ये सोच कर मुझे मोनिका पर काफी गुस्सा आ रहा था।
राहुल जवान है बेशक मोनिका को संतुष्ट कर लेगा और फिर मेरा पत्ता हमेशा के लिये साफ।
उस वक्त मैंने भगवान से जो मागा शायद ही कोई बाप अपने लड़के के लिये मागेगा।
मैंने मांगा कि हे ईश्वर काश की मेरा लड़का नपुसंक हो।
पहली बार मैंने मोनिका को खुद पर बुरी तरह हावी होते पाया।
मेरा मन कर रहा था कि मैं ऊपर जाकर देखुं कि दोनों क्या कर रहे हैं?
पर मैं जाता भी तो कैसे?
खुद ही तो दोनों को अकेले में जाने के लिये कहा था।
हर गुजरते मिनट के साथ बुरे-बुरे ख्याल मेरे मन में आ रहे थे।
जरूर मोनिका राहुल का लौड़ा चूस रही होगी।
राहुल साला मोनिका की कोरी-कोरी चूचियों को पी रहा होगा।
बुर को बुरी तरह से भींच रहा होगा।
मोनिका की गांड़ को नंगी करके बुरी तरह से नोंच रहा होगा।
क्या पता मोनिका को नंगी करके उसकी गांड़ मार रहा हो।
मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मैं पागल हो जाऊंगा।
इससे पहले मेरा पागलपन सच में मेरे ऊपर हावी हो पाता मैंने मोनिका और राहुल को नीचे उतरते हुये देखा।
मैंने एक गहरी सांस ली।
ये देखकर मुझे और भी संतोष मिला कि न तो मोनिका के होठों की लिपिस्टिक उड़ी थी और न ही उसकी चाल में कोई बदलाव आया था।
यानि जैसा मैं सोच रहा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ था।
सच में कोई जवान लड़की किसी को भी पागल कर सकती है।
दोनों और 5 मिनट तक न आते तो मैं अपने बाल नोंचने लगता।
बातों का एक और दौर शुरू हुआ। मैं लगातार मोनिका के चेहरे को ही देख रहा था कि उसका क्या फैसला है? क्या वो मेरे बेटे से शादी करने को तैयार थी या अभी कुछ और समय उसे चाहिये था सोचने के लिये। खैर कुछ भी हो मेरे पास ये एक अच्छी खबर हो सकती थी की अभी भी वो उलझन में रहे। तब तक शाय़द मेरा मौका लग ही जाय।
रात के 11 बज चुके थे। सोने की तैयारियाँ शुरू हो गई। बाकी सब को वहीं सोना था झाँ वो सोना चाहते थे। बस समस्या थी तो मोनिका के लिये। मैंने ही चालाकी से इसका एक हल सुझाया कि मोनिका को बाथरूम का बगल वाला कमरा दे दिया जाय ताकि रात को उसे बातरूम की कोई समस्या से न जूझना पड़े। कमाल की बात ये थी कि ये वो बाथरूम था जिसका एक दरवाजा पीछे की तरफ खुलता था। मैंने चालाकी से पहले से ही उसकी कुन्डी खोल रखी थी। बस भगवान का ही भरोसा था कि कहीं कोई और उसे बंद न कर दे।
नींद तो आनी नहीं थी। रात के लगभग 2 बज चुके थे। ये वो समय था जब मेरी चेतना ने मुझे उकसाया कि अब कुछ करने का समय आ गया है। मैं चुपचाप उठा। मेरी पत्नी गहरी नींद में सो रही थी। संतुष्ट होने के बाद मैं धीरे से उठा। बिना कोई आवाज किये पीछे की तरफ चला गया। अब मुझे नहीं पता था कि दरवाजा खुला होगा या नहीं। मैंने धीरे से दबाव डाला। बस, मानों मुँह मांगी मुराद मिल गई हो। अंदर आकर मैंने बाथरूम का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया। अब दूसरे दरवाजे को खोलने की बारी थी जो मोनिका के कमरे में खुलता था। मैंने दबाव दिया लेकिन दरवाजा बंद था। यानि मोनिका ने ये वाला दरवाजा भीतर से बंद कर लिया था। उफ, अब मैं क्या करूं? लेकिन तभी मेरे कान धीरे से खड़े होते चले गये। कुछ फुसफुसाती आवाज मेरे कानों से टकराई। बाथरूम के दरवाजे और फर्श के बीच में हल्का सा सांस था। मैंने झाँकने की कोशिश की लेकिन बेड के पायों के सिवा कुछ भी नजर नहीं आया। मैंने इधर-उधर नजर घुमा कर देखा। एक पाइप मुझे दिखाई पड़ी। मैंने पाइप को उसी जगह में घुसा दिया और दूसरा छोर अपने कानों से लगा लिया। अब कमरे की फुसफुसाती आवाजें भी मुझे साफ सुनाई देने लगीं। मुझे ये समझते देर न लगी कि इस वक्त मोनिका के कमरे में कोई और नहीं बल्कि मेरा बेटा था। साला सब के सामने कैसे शरमा रहा था और अब? मैंने दोनों की आवाजें सुनने की कोशिश की।
"आह....और कस के डालो।....तुम्हारे पापा बहुत बदतमीज है।"- मोनिका चुदते हुये बोल रही थी।
"क्यों? कोई बदतमीजी की क्या?"- मेरा लड़का मोनिका की चुदाई करते हुये पूछ रहा था।
"रास्ते में मुझे मूतने के बहाने अपना लौड़ा दिखा रहे थे।"- मोनिका सिसियाते हुये बोल रही थी।
"तो....कैसा है उनका लौड़ा?"
"बकवास......तुम्हारा आधा.....ठीक से खड़ा भी नहीं होता।....मैंने तो डांट दिया था। बेचारे.....उनका चेहरा ही लटक गया।......अपनी उम्र का लिहाज भी नहीं है। तुम्हारी मम्मी उनको सभांल नहीं पाती क्या?"
उसकी ये बात सुनकर मेरा खून खौल उठा।
साली कितनी बड़ी हराम जादी थी। मुझसे वादा करके मेरे बेटे से चुदवा रही थी और ऊपर से मेरी बुराई भी कर रही थी। मादर चोद, रण्डी। लेकिन अपनी भावनाओं को मैंने काबू में रखा। अब मेररे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं भीतर की बात सुन सकूं। मैं चुपचाप कामोड पर बैठ गया। हंसु या रोऊं ये समझ में नहीं आ रहा था।
कुछ मिनट बाद कमरे में खटर-पटर की अवाज सुनकर मैं फिर से पाइप को कान से लगा कर आवाज सुनने की कोशिश की।
"अब तुम जाओ.....मुझे नींद आ रही है।"-मोनिका की आवाज थी।
"ठीक है.....दरजावा अंदर से बंद कर लेना ...नहीं तो क्या पता पापा भी इसी मौके की तलाश में हो।"-मेरे बेटे की आवाज।
"तुम्हारे पापा की ऐसी की तैसी...."
फिर शायद मेरा लड़का कमरे से बाहर निकल गया। मोनिका से दरवाजा भीतर से बंद किया। अब वो बाथरूम की तरफ आ रही थी।
अब मेरी बारी थी उस रण्डी को सबक सिखाने की।
मैं जल्दी से पीछे वाला दरवाजा खोलकर बाथरूम से बाहर निकल गया।
जैसे ही मोनिका बाथरूम में आई पीछे वाले दरवाजे से मैं धड़ाक से भीतर घुस गया।
मुझे देखते ही मोनिका हक्की-बक्की रह गई।
"अंकल आप......"
मन तो कर रहा था उसे 4-5 कन्टाप मारूं। लेकिन उसे नंगी हालत में देखकर मेरी हालत खराब हो गई थी। साली जितनी छिनार थी उससे भी ज्यादा जानमारूं थी। ऐसी लड़कियाँ एक-एक रात में 10-10 लोगों से चुदवाने के बाद भी सती-सवित्री का ढोंग रच सकती हैं। साली की बॉडी एकदम सोनाक्षी सिन्हा से मिलती थी।
उसे देखते ही मैं सारी बातें भूल गया और कस कर उसके नंगे बदन को अपने आगोश में भर लिया।
"अंकल प्लीज छोड़िये...कोई आ जायेगा..."
"मैं नहीं छोड़ूगा......आज तो मैं तुम्हारी बुर का बाजा बजा कर ही रहूंगा..."
मोनिका को भी पता था कि मैं मानने वाला नहीं हूँ।
"अच्छा ठीक है......आप कमरे में चलिये मैं टॉयलेट करके आ रही हूँ।"
मुझे पता था कि वो मूतने का बहाना बनाके अपनी बुर में जो बीज डलवाके आई थी उसे निकाल कर चुत को साफ करके तब मेरे पास आयेगी। ताकि उसकी ताजा-ताजा चुदाई की पोल न खुल जाय।
खैर, मुझे क्या फर्क पड़ता था। मुझे तो बुर चोदने से मतलब था।
शेष अगले भाग में......










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