Monday, April 8, 2013

raj sharma stories झोला छाप डाक्टर--1

 

raj sharma stories
 झोला छाप डाक्टर--1

मैं जो बोलूंगा- सच बोलूंगा, सच के सिवा जो बोलूंगा- वो भी तकरीबन सच ही बोलूंगा।
यानि कुल मिलाकर मैं सच ही बोलूंगा।
वैसे तो मेरा ठीक-ठाक आदमियों जैसा ही नाम था लेकिन आज  कल एक काम चलाऊ नाम से काम चला रहा था।
लोग मुझे जानते थे - डाक्टर झकमारे के नाम से।
मै एक झोला छाप डाक्टर हूँ जिसे यम.बी.बी.यस का फुल फाम भी नहीं पता है।
चाहे आप मुझे कम्पाउन्डर का अपग्रेड वर्जन ही समझ लीजिये।
कम्पाउन्डरी करते हुए मैने गाँव में अपनी खुद की एक क्लीनिक खोल ली थी।
जो फिलहाल चल तो रही थी मगर खरगोश की तरह नहीं भले ही सो-सो कर बल्कि कछुए की तरह यानि रेंग-रेंग कर।
दिन भर में एक मजदूर से तो ज्यादा ही कमा लेता था इसलिए खुद की नजरों में मेरी थोड़ी बहुत तो इज्जत थी। इतनी इज्जत ही मेरे लिए काफी थी। मुझे ढिंढोंरा थोड़े ही न पीटना था।
कुल मिलाकर आज तक मेरे हाथों से किसी मरीज का अहीत तो नहीं हुआ था। इस बात पर मुझे गर्व था और भगवान की कृपा से शायद रहने वाला भी था।
मैं आप लोंगो को राज की एक बात और बताने वाला हूँ की मै इस पेशे में क्यों आया।
दो वजह से....
पहली- पैसा! जो की अमूमन हर पेशे की अहम वजह है।
दूसरी- लड़की! जो की हर पेशेवाला आदमी चाहता है की ये भी एक वजह हो!
पर ऐसा होना हर जगह मुमकिन नहीं होता।
खैर मेरे साथ तो मुमकिन था।
भले ही मेरे पास डिफेक्टिव पीस ही आते हो- पर आते तो थे।
किसी को जुकाम, बुखार, पेट दर्द, माहवारी में समस्या और पता नहीं क्या-क्या वाहियात टाइप की बिमारियाँ।
इनके बारे में सोचूं तो खूबसूरत लड़की भी सड़ी हुई नजर आती है।
इसलिए बिमारियों के बारे में मैं कभी सोचता ही नहीं था।
कोई भी लड़की या औरत आती तो मैं यही सोचता की ये पूरी तरह से चाक चौबन्द है इसे किसी भी तरह की बिमारी नहीं है।
हालाकि इस पेशे में मै अभी तक किसी के साथ सम्भोग तो नहीं कर पाया था लेकिन हाथों से जहाँ-जहाँ भी भोग लगाया जा सकता था वो मैं लगा चुका था।
आज भी कुछ खास नहीं था।
बाकी के आम दिनों की तरह मै ऑफिस में बैठा झक मार रहा था कि एकाएक कुछ देखकर मेरी आँखों में तीव्र चमक पैदा हुई।
एक नई नवेली दुल्हन घूँघट काढ़े अपने पति के साथ वहाँ पर प्रकट हुई।
मैंने जल्दी से खुद में परिवर्तन किया और धीर-गम्भीर मुद्रा में कागज पर कुछ घसीटने का बहाना करने लगा। मानो दुनिया का सबसे व्यस्त डाक्टर मैं ही हूँ।
"डाक्टर साहब...."
व्यक्ति की आवाज सुनकर मैने चेहरा उसकी तरफ उठाकर देखा-
"जी कहिये...."
मैने हाथ से सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया-
"ये मेरी पत्नी है....अभी कल ही इनका गउना हुआ है......कल रात से ही पता नहीं क्यों पेट दर्द की शिकायत बता रही है....जरा देख लीजिये"
"आप यहाँ आकर बैठ जाइये.. "
मैने बेहद गम्भीर स्वर में घूँघट काढ़े उस युवती से कहा।
जिसकी हथेलियाँ मेंहदी से एकदम लाल सुर्ख पड़ी हुई थी।
वह उठी और मेरे पास में रखे एक स्टूल पर आ बैठी।
उसकी पायल और चूड़ियों की खनखन सुनकर मुझे बड़ा मजा आया।
दिमाग में सिर्फ एक ही बात कौंधी-
'नया माल है...'
मैने धीरे से उसकी नाजुक, गोरी कलाई को थामा तो बदन में जैसे करेण्ट लगा।
कलाई तो बड़ी नाजुक थी मानो रूई का कोमल फाहा।
मै नब्ज गिनने लगा।
उसकी नब्ज गिनने के चक्कर में मेरी नब्ज बढ़ने लगी थी।
"नब्ज तो ठीक लग रही है......दिल की धड़कन चेक करनी पड़ेगी।"
मैंने आल्हा निकाला और जहाँ पर उसकी चूचियाँ थीं वहाँ पर धीरे से छुआते ही लगा मानों दिल नहीं बल्कि नगाड़ा बज रहा हो।
"दिल की धड़कन तो काफी तेज है.....पेड़ू चेक करना पड़ेगा।"
फिर मैं बड़े शान्त व उपेक्षणीय भाव से बोला की-
"आप थोड़ी देर यहीं बैठिये मैं इनको लेकर भीतर जाता हूँ और बाकी ट्रीटमेन्ट कर लेता हूँ...थोड़ा वक्त लगेगा।"
वह हिचकिचाया।
मैंने तपाक से कहा-
"या फिर आप शहर चले जाईये वहाँ किसी लेडी डाक्टर से चेकअप करा लीजिये"
शहर 50 किलोमीटर दूर था।
वहाँ आने-जाने व हॉस्पिटल में चेकअप कराने की औकात उसकी वैसे ही नहीं मालूम होती थी।
इसलिये वह जल्दी से बोला-
"जी नहीं डाक्टर साहब आप को जो भी चेकअप करना हो कर लीजिये..मैं इंतजार कर लूंगा।"
मैं उस युवती से बोला-
"आप मेरे पीछे-पीछे आइये..."
पीछे एक रूम छोड़कर एक गुप्त रूम था जिसमें बढ़िया डनलप का गद्दा और एक बेड पड़ा हुआ था। जब वो कमरे में भीतर आ गई तो मैंने चुपके से भीतर की सिटकनी लगा दी।
छत पर लटकी एकलौती फोकस लाइट को मैने ऑन कर दिया।
अब रोशनी सिर्फ बेड पर पड़ रही थी जिस पर सफेद रंग की बेदाग चादर बिछी हुई थी।
"इस पर लेट जाओ...."
वो सकुचाती हुई सी धीरे से लेट गई।
फिर भी उसके चेहरे पर घूँघट पड़ा हुआ था।
"प्लीज घूँघट हटा दीजिये मुझे आप की आँखों का चेकअप करना पड़ेगा..."
उसने धीरे से घूँघट हटा दिया।
उसका गोरा-गोरा चेहरा देखकर मेरा तो दिल ही धड़कना भूल गया।
"उफ...तुम तो बला की खूबसूरत हो.."
उसने धीरे से शर्मा कर चेहरा घुमा लिया।
मैने धीरे से उसकी टुड्ढी पकड़ी और अपनी तरफ घुमा दिया-
"कितनी सुन्दर हो तुम!......तुम्हें तो मेरी बीवी बनना चाहिये था.......इस देहाती घोंचू को कहाँ से मिल गई..."
उसने अपना चेहरा फिर से दूसरी तरफ घुमा लिया।
मै अपने होंठों को उसके कान के पास ले जाकर धीरे से बोला-
"रात को कुछ हुआ था?.."
इस बार उसने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया।
मेंहदी से रचे हाथों को देखकर तो मैं बावला हो गया।
"पति ने कुछ किया था की नहीं..."
मैंने आल्हा निकाल कर उसकी चूचियों के पास धीरे से स्पर्श कराया।
वो कुछ नहीं बोली।
मैंने धीरे से आल्हे को उसकी चूचियों की नोंक पर रखकर धीरे से दबाया।
उसने हल्की सी सिसकी ली और मेरा हाथ पकड़ लिया-
"क्या हुआ?..."
तब पहली बार वो बोली-
"हमें शरम आ रही है..."
आवाज भी उसकी बड़ी पतली और सुरीली थी।
"डाक्टर से शरमाओगी तो इलाज कैसे कराओगी?..."
मैंने आल्हे को एक ओर सरकाकर उसकी एक चूचि अपनी मुट्ठी में भर ली।
जैसे ही मैने चूची को मसला वैसे ही वो कसके सिसिया पड़ी-
"सीSSSSSS......दर्द होता है...."
उसने मेरा हाथ और कसके पकड़ लिया था।
"वही तो चेक कर रहा हूँ की कितना दर्द होता है...."
मैंने उसकी दूसरी चूची को भी मुट्ठी में दबोच लिया।
कसम से जन्नत का मजा मिला।
ऐसा लगा जैसे अधपका आम मुट्ठी मे कस गया हो।
चूचियों के कड़ेपन से लगा की कुँवारा माल है।
"चूचियों से दूध निकलता है की नहीं...."
"आप डाक्टर हैं.....इस तरह मत बोलिये अच्छा नहीं लगता..."
अब वो धीरे-धीरे मुझसे खुलने लगी थी।
चूचियों को मसलवा के उसको भी मजा आ रहा था।
"क्यों? डाक्टर के पास लण्ड नहीं होता....हम लोंगो का भी तो बुर चोदने का मन करता है..."
"धत्.....आप बहुत गंदे डाक्टर हैं.."
मैंने झट से उसकी चूची को नंगी कर दिया।
मैं धीरे-धीरे मसलने लगा।
"चूची तो तुम्हारी बहुत गरम है....लगता है रात को तुम्हारे आदमी ने इनको मसला नहीं.."
"ऐसा मत बोलिये....आप डाक्टर हैं..."
वह सिसकी लेकर मेरा हाथ पकड़ने लगी।
लेकिन चूचियों की बेइज्जती किये बिना मैं कहाँ मानने वाला था।
"चूचियों की गरमी अगर झड़वाओगी नहीं तो पस पड़ जायेगी...और अगर एक बार पस पड़ गई तो दिन भर दर्द करेगी...बाँडी भी नहीं पहन पाओगी.."
वह धीरे से शरमाकर बोली-
"उसके लिए हमारे वो हैं न....आप बस पेट का चेकअप कीजिये..."
लड़की बड़ी समझदार थी।
पर एक कहावत है- औरतें जितनी समझदार होती है उनको पटाना उतना ही आसान होता है।
लेकिन समझदार औरतों से मजा लूटने के लिये थोड़ी सी बेवकूफी दिखाना जरूरी होता है।
सम्भोग की कला तभी सम्पन्न हो पाती है जब एक बेवकूफ हो(भले ही न हो लेकिन दर्शाये) और दूसरा समझदार(एक बेवकूफ इंसान और भी बेवकूफ लगता है जब वो खुद को समझदार दिखाने की कोशिश करता है।)
"चलिये ठीक है, पेट का ही चेकअप कर लेते हैं...."
मैने उसकी मदभरी चूचियों के साथ थोड़ी सी उदासीनता दिखाई।
औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है लेकिन अपने कमांगों के प्रति पुरूष की उपेक्षा नहीं।
मैने उसके चिकने व मखमली पेट पर धीरे से हाथ फेरा-
"पेट का चेकअप करने के दो तरीके हैं.... "
मै अपनी ऊँगली से उसकी गहरी नाभि को कुरेद रहा था।
शायद उसको गुदगुदी लगी और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
"पहला- पेट फाड़ कर भीतर का मुआयना करूं.....और दूसरा...."
इतना बोलकर मैंने अपना हाथ सीधे वहाँ रख दिया जहाँ उसकी योनि थी-
"...जो जगह भगवान ने पहले ही फाड़ कर चीरा लगाया है वहाँ से कोशिश करूं..."
"सीSSSSS..."
एक तीखी सिसकी लेकर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
पर शायद सिसकी की आवाज कुछ ज्यादा ही तेज थी-
"क्या हुआ डाक्टर साहब कोई दिक्कत है क्या?...."
बाहर से उसके बेवकूफ पति की आवाज आई।
"सब ठीक है....प्लीज आप बीच में बोलकर डिस्टर्ब मत कीजिये...नहीं तो सही के बदले गलत जगह औजार चला जायेगा..."
फिर मैंने फुसफुसाकर अपनी चिढ़ निकाली-
"साला गाँड़ु.....बहनचोद...."
मेरी इस गाली पर वो हल्के से फुसफुसाकर हँसी।
एक कहावत है की लौंडिया हँसी तो समझो फँसी और जब कोई औरत, किसी पराये मर्द के सामने जाकर, अपने पति की मौजूदगी में इस तरह हँसे की उसके पति को पता न चल पाये तो इसका मतलब वो चाहती है की सामने वाले को इस बात का अहसास हो की वो फँस चुकी है और अण्डों से बच्चे निकलवाने के लिये उसके नीचे लेटना चाहती है।
समय कम था और इस बार मै सम्भोग करके ही मानने वाला था क्योंकि माल गरम थी सच कहूँ तो छिनार थी। पता नहीं कितनों ने खेत की गोड़ाई करके उसमें बीज बोया था।
क्या फर्क पड़ता है- एक फसल और सही।
उसके पेट में दर्द-वर्द नहीं था वो बहाना करके आई थी। साफ जाहिर था।
उसे समभोग की लत पड़ चुकी थी।
या तो रात को पति जल्दी झड़ गया था या तो इसकी गर्मी देखकर उसका डिप्रेशन की वजह से खड़ा ही नहीं हुआ होगा। गाँव के लड़के बचपन से ही जो साटने लगते हैं।
मैंने जबरन अपना हाथ साड़ी के नीचे घुसाकर धर दबोचा।
साली सच में छिनार थी।
कच्छी नहीं पहनी थी और योनि पर बाल की एक धज्जी भी नहीं थी और सबसे बड़ी बात योनि और आसपास की जाघें एकदम चिपचिपा रहीं थीं।
योनी तो एकदम धधक रही थी मानों लेना चाहती हो।
ऐसी योनि में मै ज्यादा देर तक रूक नहीं सकता था।
10-15 धक्कों में ही काम-तमाम हो जाता।
जब तक औरत हाथ नहीं रखने देती तब तक लगता है की पकड़ कर चाप दो और जब चपवाने के लिये तैयार हो जाती है तब लगता है की औरत को मर्दानगी का अहसास कराया जाय भले ही खुद को ज्यादा मजा न मिले। लेकिन औरत को संतुष्ट करना ये खुद की मर्दानगी के लिये एक जिम्मेदारी बन जाती है।
किसी कुँवारी लड़की को संतुष्ट करने के कई तरीके हैं लेकिन एक छिनार औरत के लिये बस एक ही तरीका है- योनि पर अत्याचार! क्योंकि इस अत्याचार की उसको आदत पड़ जाती है।
भले ही वो छिनार न होती लेकिन मै रिस्क नहीं ले सकता था इसलिये वियाग्रा की एक गोली मै गटक चुका था।
पुरुषत्व पर नियंत्रण रखना, ये बड़ी भारी समस्या है।....और हर पुरुष को इस समस्या से कभी न कभी जूझना ही पड़ता है। भले ही जवानी में न सही वयस्क होने पर।
जैसे ही मैने योनि में ऊँगली घुसाकर गोल-गोल घुमाना शुरू किया वैसे ही वो चिपक गई।
क्या बात है????
किसी औरत का सुख हासिल करना है तो उसकी योनि को दुःख दो और ये दुःख उसकी सिसकारी से साफ पता चल रहा था।
"सीSSSSS....दुःखती है ....धीरे-धीरे..."
"बुर तो तुम्हारी बहुत गरम है...."
"धत्......गंदे...."
वो और कसके लिपट गई।
एक दुःख होता है तो मन करता है की उस वजह को हटा दो जिससे दुःख पैदा हो रहा है और बात जब इस दुःख की होती है तो लगता है की वजह को और बड़ा और मोटा होना चाहिये।
और वो वजह मेरे अण्डरवियर के भीतर आकार ले रही थी।
यानि उसकी योनि के दुःख में इजाफा होने वाला था।
कमाल है।
एक औरत को दुःख पहुचा कर पुरुष को अपने पुरुषत्व पर कितना अभिमान होता है और औरत इस दुःख से दुःखी होकर कितना सुख हासिल करती है।
देखा जाय तो औरतों का पलड़ा इस हिसाब से भारी है।
औरत का सुख मतलब सुख और दुःख से भी सुख।
यानि औरत हर तरीके से सुखी रहती है।
और बेवकूफ पुरुष,
शेष अगले भाग में.....


















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raj sharma

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