Wednesday, September 4, 2013

raj sharma stories मज़ेदार अदला-बदली--11





 raj sharma stories
 मज़ेदार अदला-बदली--11
गतांक से आगे..........................
तभी अमित कमरे में प्रवेश करता है

अमित: लो दीदी मैं तेल गरम कर लाया हूँ.

मैं बस बेसुध होने का नाटक कर के पेट को पकड़ के आँखे बंद किये धीमे धीमे कराह रही थी जैसे दर्द ने मेरे कराहने की भी शक्ति ख़तम कर दी हो. मेरी कोई प्रतिक्रिया न होते देख वो थोडा सहज हुआ कि उसे जल्दी ही अपना काम निपटाना है.......अब मैं भी देखना चाहती थी कि जेसा बताया गया होगा इसे सिर्फ उतना उतना ही करेगा या मुझे बेसुध सा देख कर कुछ कमीनापन भी सूझेगा इसे.

सबसे पहले तो उसने मेरे दोनों पैरों के अंगूठों पर रबर-बेन्ड चढ़ा दिए. अब उसने मेरी नाभि से मेरा हाथ हटाया और पूछा दीदी, बहुत दर्द है, तो मैंने बस हूँ कहा, फिर उसने बहुत कुछ पूछा तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया.......कुछ कुछ देर में बस कराह रही थी........

वो बेचारा अब बहुत परेशान हो रहा था क्योंकि मैंने नाइटी पहन रखी थी और अब उसे मेरी नाभि को बेपर्दा करना था. कांपते हाथों से उसने मेरो नाइटी ऊपर करनी शुरू की, घुटनों के ऊपर लाकर वो रुक गया, फिर उसने ऊपर की परन्तु नीचे से फँसी होने कि वजह से वो जांघो से ऊपर नहीं हो पा रही थी. मैं आँखों में थोड़ी सी झिरी बना कर उसके चेहरे की रंगत देख रही थी. उसने अपना एक हाथ मेर पुट्ठे के नीचे फसांया और फिर दुसरे हाथ से जांघ ऊँची करके वो नाइटी ऊपर खींचने लगा. उसकी पूरी हथेली मेरी जांघो और पुट्ठों से रगड़ खा रही थी. इसी तरह से उसने दूसरी तरफ से भी मेरे पुट्ठो से नीचे फँसी नाइटी को ऊपर किया.

और जैसे ही आगे से ऊपर सरकाई वो शाक्ड रह गया. मैंने पेंटी नहीं पहन रखी थी और मेरी खुली चूत उसकी आँखों के सामने थी, उसने मेरी तरफ देखा, मैंने आँखों की झिरी में से उसे देखा, उसने चूत से परे मुंह घुमा कर नाभि को खोला. अब तेल की आठ दस बुँदे नाभि पर गिराई और बड़ी हिम्मत करके अपने होंठ का अंदरूनी भाग पेट पर रखा और हलके से मालिश देने लगा. बेचारा.....मान गया की हाथ से मालिश मत करना वो कड़क होते हैं....शरीर के सबसे मुलायम अंग से हलकी मालिश देना.

उसने दोनों हाथ दूसरी और टिकाये और झुक कर मेरी नाभि की अंदरूनी होंठो से मालिश करने लगा. इतनी मुलायम मालिश से मेरी उत्तेजना बड़ने लगी परन्तु जाहिर नहीं कर सकती थी सो मैंने फिर कराहना चालू कर दिया. वो रुका फिर जब मैं चुप हुई तो उसने फिर शुरू कर दी.....वो मालिश क्या...एकदम चटाई थी होंठो से..... थोड़ी ही देर में वो कामुक मालिश में तब्दील हो गई और मैं अपने को जज़्ब किये इस स्थिति का घोर आनंद लेने लगी. ५ मिनट बाद अमित हटा वहां से.

अब वो मेरी ओर पीठ करके खड़ा हो गया. मुझे पता था कि अब उसे अपना लंड निकाल कर घोट घोट के खड़ा करना है ताकि वो मेरी नाभि को अपनी उर्जा दे सके. इस रामबाण रेकी की विधि का आविष्कार कल रात इसी कमरे में हुआ था. काफी देर लगा रहा था, शायद उसके संस्कार उसके आड़े आ रहे थे, पर मेरे जाल में फँस कर वो फडफडा तो सकता है परन्तु बच नहीं सकता.

फिर उसके हाथ हिलते देखे मैंने, हाँ लंड की घुटाई शुरू कर दी थी उसने, मैं उसके पहलवानी लंड के प्रथम दर्शन की प्रतीक्षा में रोमांचित हुई जा रही थी. लंड तो बहुतेरे देखे जीवन में परन्तु, मेरे से भी ज्यादा चुदक्कड़ मेरी रांड बहन को जिस लंड ने अस्थाई तौर पर पतिव्रता नारी बना दिया उस लंड में कुछ ना कुछ तो बात होगी ही.

कुछ देर की लंड घुटाई के बाद वो जैसे ही पलटा, मेरी नज़र एक श्वेत-वर्ण , झांट विहीन, काफी उभरे मुख वाले, स्वस्थ, तेजस्वी और विशालकाय दंड रूपी स्त्री-चुदाई यंत्र पर पड़ी तो मेरी फुद्दी के कोने कोने में मौजूद सनसनी मचने वाले हर एक पाइंट में जोरो से खुजली मचने लगी. चूत का हर एक तंतु इस मूसल से अपने आप को रगड़वाने को होड़ में पसीना पसीना हो रहा था और वो सारा पानी मेरी बुर की झिरी में से तेज़ बहाव के साथ बाहर आने लगा.

अब उसे अपने खड़े लंड को नाभि के छेद से सटा कर अपनी उर्जा देते हुवे होले होले मालिश करना थी.....वो मेरी चूत के ठीक ऊपर बैठ गया और अपने भीमकाय अस्त्र को अपनी दोनों हथेलियों से थमा और आगे से निचे झुकाते हुवे अग्र भाग को नाभि के छेद पर टिका दिया और आँख बंद करके वो उर्जा हस्तांतरण करने लगा. फिर वो मेरी नाभि को घोटने लगा, फिर नाभि के चारो और सुपाड़े से मसलने लगा. उसकी इस लंड घिसी से जहाँ में सातवे आसमान पर पहुँच गई थी तो काम से काम पांचवे आसमान तक तो वो भी पहुँच गया होगा क्योंकि उसे भी काम ज्वर चड़ने लगा था.

साले ने बहुत नाभि चुदाई कर डाली. जैसे तैसे वो वहां से हटा और फिर उसने एक प्याली उठाई जिसमें वो चन्दन घिस कर लाया था. अब थोडा चन्दन अपनी जीभ पर लिया और उसे सीधा नाभि में घुसेड दिया .... मैं सिहर उठी.........कुछ देर जीभ छेद के अन्दर घुमाई और फिर चन्दन में डूबी जीभ पुन: मेरे छेद में आ गली. ऐसा उसने बराबर ९ बार किया. थोडा रुका वो. शायद अपनी उत्तेजना को काबू में करने का प्रयत्न कर रहा था.

घडी भर के विश्राम के बाद अब वो मेरे उभारों कि ओर आया. फिर उसने मेरी नाईटी ऊपर सरकाना चालू की और थोड़ी जद्दोजहद के बाद पूरी निकाल दी. मैंने ब्रा नहीं पहनी थी.....उसकी नज़र दो मोटे मोटे मम्मो पर पड़ी. उसका लंड जो अभी थोडा मुरझा गया था वो पुन: स्पंदित होकर तरंगित होने लगा और झटके से लहू-गुंजीत होकर उर्ध्व-अधोगति करने लगा. पिंकी के बताये अनुसार उसने फिर चन्दन जीभ पर लिया और अबकी बार मेरे एक निप्पल पर लथेड दिया. फिर ऐसे ही दुसरे पर भी लगाया. फिर पहले पर. .........और हाँ लगाते समय वो जीभ को घुंडी की परिधि पर पूरा राउण्ड राउण्ड घुमा रहा था. ऐसा उसने दोनों दानो पर ९-९ बार किया. मेरी घुन्डिया एकदम कड़क हो गई.

उसने चन्दन की प्याली निचे रख दी. अब जो वो करने जा रहा था, बेचारा उसे भी इलाज़ का हिस्सा ही समझ रहा था जबकि मेरी तो उसके बाद जान ही निकल जानी थी.

अब उसने अपने दोनों हाथों में मेरे एक कबूतर को कस के भरा, भींच कर ऊपर कि और उभारा और कंचनजंगा की चोटी सद्रश्य आसमान की और मुंह ताकते मेरे नुकीले छोर को अपने मुंह में गहराई तक भर लिया. अब उसे चूचीं पर लगे चन्दन को चूस चूस कर अपने मुंह में इकट्ठा करना था. पिंकी ने बताया होगा कि चन्दन और मुख-लार, स्तन के संपर्क में आकर दर्दनिवारक अमृत बन जाती है सो वो भी कुछ देर तक अपनी लार को चन्दन लिपटी घुंडी को चूस चूस कर अपने मुख में अमृत इकट्ठा करता रहा.....

फिर उसे पूरा नाभि में भर दिया. गरमा गरम द्रव की अनुभूति अपनी नाभि में पाकर मेरी चूत में एक बार फिर बिजली कौंध गई....................... फिर इसी तरह से वो दूसरी चूचीं को चूसने लगा ....और फिर चूसता ही चला गया....कोई पांच मिनट हो गए वो भोंदू हटा ही नहीं............. और इधर मैं उसके बेलगाम दुग्ध-पान से उपजे अवर्णनीय आनंद में लिपटी मदहोश सी हुई जा रही थी............ पर किसी भी तरह से, अपने को प्रतिक्रिया विहीन बनाये रखना, मेरी प्लानिंग का अहम् हिस्सा था........ वो मग्न हो कर चुसाई के मज़े लेने लगा .....और देखो तो..... वो, मेरे दूध्दू का भुक्कड़....... मदहोशी के आलम में, भूलवश सारा चन्दन ही गटक गया. ............ उसे जब इस बात का अहसास हुआ तो उसने अपना माथा ठोका......... क्या करा मैंने? परन्तु.....लेकिन.....but ......मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना होता देख, उसने थोड़ी राहत महसूस की.......वो क्या था कि , अब डाक्टर बाबु को भी इलाज करने में मज़ा आने लगा था और ये उसके बात चेहरे से साफ पता चल रही थी.

अब उसने मुझे धीरे से पेट के बल लिटाया. दोनों अंगूठो में तेल लगा कर एक साइड बैठ गया और गर्दन के नीचे रीड की हड्डी के दोनों और अंगूठे टिकाये और हलके हाथ से नीचे की ओर मालिश करते हुए सरकाने लगा. जैसे ही नाभि के पिछले भाग के एक खास पॉइंट पर दबाव पड़ा, मैं जोर से चीख कर झटके से उछली और पीठ के बल दूर जा गिरी और फिर बेहोश हो गई. योजना आयोग की प्रवक्ता पिंकी रानी से उसे हिदायत मिली ही हुई थी कि, अगर मैं इस तरह से जोर का झटका खा कर बेहोश हो जाती हूँ, इसका मतलब......... मतलब......यानि कि नाभि ठीक जगह बैठ गई है और उसका इलाज़ सफल.

मेरे शरीर का अब नज़ारा कुछ इस तरह था कि मेरे दोनों पैर चौड़े थे........ चूत, पहलवान के लंड की आस में एकदम मुंह खोले हुई थी. मेरा मुंह, कन्धा, एक ओर का चुच्चा और एक हाथ बिस्तर के छोर से नीचे की ओर ढुलके हुवे थे............... अब वो उठा, मेरी तरफ आया और अपने कटी-प्रदेश के मध्य स्थित झुला झूलते मुलायम चर्म से आच्छादित मांस के सख्त दंड को एक हाथ में थामा और दुसरे हाथ से मेरे ढुलके पड़े यौवन-उभार को नोंचते हुवे, कुछ जल्दी जल्दी घस्से मारे........ कुछ देर पश्चात् उसने मेरे लटके शरीर को उठाया......एकदम फूल जैसे...... क्या मज़बूत पकड़ थी.........वाह........ और फिर आराम से बिस्तर के बीचो बीच रख दिया.

अब उसे आधा घंटा इंतज़ार करना था मेरे होश में आने का. वो मेरे पास बैठ गया. अब उसे अपने गहरे अंतर्मन में दबे कमीनेपन को सतह पर आकर अपना शैतानी रूप दिखाने की, वक़्त ने कुछ लम्हों की आज़ादी प्रदान कर ही दी थी सो वो अपने लंड को कुछ देर मुठियाया और नज़रे मेरे मम्मो पर टिका दी.......तदुपरांत, एक बार मेरी ओर नज़र डाल.......वो मेरे स्तन-अंकुरों पर झुका और झकाझक उन्हें पीने लगा. चूसते वक़्त हाथों से वो दोनों स्तनों की विस्तृत गोलाइंयों को निचोड़ रहा था. शायद पर्वत-शिखर पर उसके अति-व्यस्त मुखारबिंद को 'दो बूँद ज़िन्दगी की' तलाश थी. मेरी घाटी के दोनों ओर गगन की बुलंदियों को स्पर्श करती अट्टालिकाओं पर बारी बारी से आगमित-प्रस्थित होकर उन्हें अपने लबों से बुरी तरह से खंगाल रहा था. पांच पांच मिनट तो दोनों पर्वतों पर गुज़ारे होंगे उसने. उसकी इस अदम्य कारगुजारी के फलस्वरूप दूर नीचे की ओर अवस्थित मेरे दुसरे दर्रे से फिर से एक बार पहाड़ी नाले में घनघना के उफान आया और अविरल तराई की और बह चला.

बहुत देर के बाद वो पहाड़ से उतरा. लेकिन ये क्या ......इस बार तो उसका जानवर मुझे कुछ खतरनाक नज़र आया. उसने अपने लंड को हाथ में पकड़ा और थोडा सा उमेठ कर मेरे होंठो पर फिराया. फिर बड़ी तेज़ी से उसका सुपाडा मेरे लबों पर स्कीइंग करने लगा, चिकनाई स्वयं सुपाडा-प्रदत्त थी इसलिए अठखेलियाँ नजाकत से चल रही थी. अब तो फिर उसने अगला पैंतरा चला और थोडा होंठ खोल कर अपने स्निग्ध शिश्नाग्र को मेरे मुलायम और मखमली अंदरूनी होंठो पर रगड़ने लगा. क्या बताऊँ.........उसके बाद तो मुख-मैथुन की समस्त तकनीकें आजमाने लगा. अचानक उसे समय-बध्धता का कुछ ख्याल आया और फिर वो कुछ अति-विशिष्ठ क्रिया के संपादन के लिए पहाड़ी नाले की और चला गया.

उठ कर वो मेरी चौड़ी टांगो के बीच लेट गया और जांघो को पकड़ कर उन्नत कर दिया. जैसे ही उसने चौड़ाई को बढाया उसे ताज़े निर्मल जल से लबालब भरे, अभी अभी फूट पड़े चश्मे की झलक दिखाई दी. रह रह कर उस चिकनी, गर्म और गीली दरार के एकदम नीचे स्थित छिद्र से कंचन यौवन जल छलके ही जा रहा था.....छलके ही जा रहा था. और नीचे तराई पर नज़र डाली तो दंग रह गया. नीचे पूरा बिस्तर गीला था. उसने नीचे छुआ, फिर मेरे कंपकपाते भगोष्ठों को स्पर्श किया और वहां की नमी को अपनी उंगली से लपेटा. अब उसने उंगली पर लगे गीलेपन को सुंघा. और सूंघते ही शाक्ड हो गया. बेचारा सु सु समझ रहा था परन्तु वो तो मेरा जूस था. वो एकदम कन्फ्यूज़ हो गया था. उसने मुझे झिंझोड़ कर उठाया. शायद उसे कुछ शक हो गया था.

लेकिन जब मैं नहीं उठी तो वो बोला माँ का भौसडा, जो होगा देखा जायेगा. कामदेव के बाणों से आहत उसका दिमाग वो सब कुछ नहीं सोचना चाहता था जो तथ्य अब आईने की तरह बिलकुल साफ़ था. कोई बेहोशी में उत्तेजित होकर गंगा जमना कैसे बहा सकती है.........शायद मेरा प्रतिक्रिया-विहीन शरीर उसे कुछ और ही संकेत दे रहा था...... तो वो फूल्टू कन्फ्यूज़ था. अब वो घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को हिलाने लगा. बेचारा बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गया था, थोड़ी देर हिलाता रहा फिर एकदम से मेरी चूत पर अपना लंड टिकाया और अन्दर घुसेड़ने लगा. मैं दम साधे पड़ी रही और फिर वो मेरे ऊपर आ गया. उसने अपना पूरा वजन अपने हाथो पर दे रखा था ताकि मैं उठ ना जाऊं .

अभी उसका आधा लंड अन्दर घुसा था अब वो धीरे धीरे घस्से मार मार कर पूरा लंड अन्दर घुसाने लगा. मेरी चूत में आग लग चुकी थी. अब योजना के अनुसार, ऐन इसी वक़्त, मेरे दोनों सह-कलाकारों को मंच पर एंट्री मारना थी, जो कब से बाहर छुपे बैठे रहे होंगे और अन्दर चल रही एकल प्रस्तुति का लुत्फ़ उठाते हुए अपनी रास लीला भी सवस्त्र रचा रहे होंगे. अचानक दोनों ने अन्दर प्रवेश किया और मंच के मतवाले खिलाडी की खोपड़ी को एकदम झन्नाटे से अंतरिक्ष की सैर करा दी. जहाँ एक और अमित उन्हें वहां अचानक देख कर हतप्रभ रह गया वहीँ वे दोनों भी अनहोनी घटना को देखे जाने पर, चेहरे पर आने वाले भावों को, जीवन्तता से उभार कर अपने किरदार का सफलता पूर्वक निर्वहन कर रहे थे.......

पिंकी दोनों हाथों से अपना सर पकड़े अविश्वास की मुद्रा में मंच के समीप आई. रवि ने उसके पीछे आकर कंधे पर अपना हाथ रख दिया. दोनों थानेदारों द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिए जाने पर वो एकदम जड़ हो गया. अभी भी उसका आधा लंड मेरी मस्ती में पिनपिनाती संकरी गली में बेशर्मी से आवारागर्दी करने में तल्लीन था.
क्रमशः................................


















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