Wednesday, September 4, 2013

raj sharma stories मज़ेदार अदला-बदली--5




 raj sharma stories
 मज़ेदार अदला-बदली--5
गतांक से आगे..........................
मिंटू: चलो बे .........ये मैंने बीच में फैला दिया है ........इसके पहले कि हम शुरू करें..........सब निकालो तो.................

मैं जिस तरह से डर के दुबकी थी उससे वहां हलकी सी सरसराहट की आवाज़ हुई थी......जो एक लड़के ने नोटिस कर ली थी.............

वो मिंटू से कहता है- मिंटू , यार ऊपर कुछ सरसराहट सी हुई थी अभी.........यार देख तो यार कहीं कुछ सांप वगैरह तो नहीं..........

सभी कि निगाहें शायद मेरे छुपने कि जगह कि और उठी होगी क्योंकि अभी कोई आवाज़ नहीं आ रही थी................
मुझे लगा कि अब ये मुझे देख लेंगे................क्या जवाब दूँगी कि मैं यहाँ क्यों आई और इस तरह चुप कर जासूसी करने का क्या मतलब है...............

मिंटू: कुछ नहीं बे............होगा कोई चूहा.............तू डर मत...............चल चल निकाल पहले.................

मैंने राहत की सांस ली.............

मैं अभी तक कुछ भी नहीं समझ पा रही थी..............इस तरह से इस गोदाम में पांच लड़के और
पिंकी............क्यों ये सुनसान जगह चुनी इन लोगों ने............

पिंकी चार अनजान लड़कों के साथ क्यों और वो भी इतनी खुश............कोई मजबूरी सी महसूस नहीं हुई उसके व्यवहार से.................

क्या पता ये सेक्स का खेल खेलें आपस में............परन्तु मिंटू है तो ये संभव लगता नहीं है क्योंकि वो चचेरा भाई है हमारा............

लेकिन बाकि सारे हालात इशारा तो यही कर रहे थे कि ये मामला साधारण से हट कर है जो चुप चाप किया जा रहा है................

मिंटू: हाँ....ला दे......तू भी.......चलो ठीक है............ये ले पिंकी.......ये २०० रुपये रख तो अपने पर्स में......५०-५० चारों के..............

पिंकी: ठीक है मिंटू...........
बड़ी ही लरज़ती हुई आवाज़ में वो मिंटू को बोली.......

तो चलो अब अब अपना सांप-सीड़ी का खेल शुरू करते हैं....................

ओह, तो ये ये खेल खेल रहे हैं.................परन्तु शायद पैसे से खेल रहे हैं, तभी यहाँ सुनसान में हैं.............और पिंकी पैसे संभालने के लिए है..........

अचानक मुझे सारा माज़रा समझ आने लगा............हलकी सी ग्लानी भी हुई कि मैंने पिंकी को लेकर गलत सोचा.........मन कि चंचल और बिंदास है............परन्तु चालू नहीं है.............

मुझे ख़ुशी हुई और गुस्सा भी आया कि फालतू टाइम ख़राब करने आ गई.................अब रुकने का कोई मतलब नहीं था परन्तु अब तो बाहर ताला लगा है............

बिना मिंटू के पता लगे जाना असंभव है...........

अभी इनके सामने आ जाती हूँ तो अपने आने और चुप कर देखने का कारण क्या बताउंगी................

चलो आराम से पड़े रहो ऐसे ही.................वैसे भी सोये सोये बहुत आराम मिल रहा था मुझे.................
और नीचे खेल शुरू हुआ..................

बोर्ड पर एक पांसा फेंकने कि आवाज़ आई ............"टक्क"

"एक" ...............एकसाथ दो तीन आवाजें उभरी.................

मिंटू: मुहूर्त सही नहीं है .............क्या एक से खाता खोला..............चल पहले बढ़ा अपनी गोटी और पांसा अगले को दे.

और फिर खेल शुरू हो जाता है और मैं आराम से लेटे लेटे उनका खेल सुनने लगी.

"तीन"........."पांच"....................."दो"......इस तरह से गेम आगे बढने लगा.

"छ:"........"अरे वाह इसने तो छक्का मार दिया "... एक आवाज़ उभरी.

मिंटू: चल बे, इनाम की चिट निकाल.

.........

"चल जा"...........

..........

.........

कुछ देर की चुप्पी के बाद फिर खेल शुरू हो जाता है.

फिर किसी का छ: आता है.

फिर वो कोई इनाम की चिट निकालता है और कुछ देर की फिर चुप्पी.

हर बार ६ निकलने पर इसी तरह से होने लगता है.

मेरी उत्सुकता जागती है......ये ६ नुम्बर का क्या चक्कर है.

चलो अब जब भी किसी को ६ आएगा मैं धीरे से झाँक कर देखूँगी.

और जैसे ही ६ की आवाज़ आती है मैं झाँकने के लिए तैयार होती हूँ.

एक लड़का मिंटू के हाथ में रखे एक बॉक्स में से एक चिट निकालता है.

खोल के पड़ते ही उसका चेहरा खिल जाता है लेकिन शायद मिंटू के डर की वजह से वो खुल के ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता है.

मिंटू रूखे स्वर में उससे कहता है......."चल जा"

वो उठ खड़ा होता है और मैं उसकी दृष्टि की परिधि में आ जाती हूँ..................

मैं तुरंत अपना सर नीचे कर के उसकी सीधी नज़र से बच जाती हूँ.

फिर कुछ देर की चुप्पी.

अभी मुझे रिस्क लेने में थोडा डर लगने लगता है.

चलो सुन सुन कर ही इनका खेल समझाने का प्रयास करती हूँ.

अभी कुछ देर में कई लोगों को ६ आ चुके थे परन्तु सुनकर खेल कुछ समझ नहीं आ रहा था.

चिट क्यों निकल रहे हैं.......उसमे क्या इनाम निकल रहा है..........कुछ देर की चुप्पी क्यों छा जाती है......इन सब सवालों में उलझ रही थी.

अब मेरी जिज्ञासा बढती जा रही थी.

फिर एक ६ आता है ....चिट निकालने का निर्देश...और फिर कुछ समय की चुप्पी.

हिम्मत करके जैसे ही फिर झाँकने की सोचती हूँ......

पहली बार पिंकी की आवाज़ आती है......मिंटू, इसने फाउल कर दिया है..येल्लो कार्ड दिखाओ इसे.

मिंटू: क्यों बे गांडू, खेल के नियम पता है फिर भी उन्हें तोड़ने से बाज़ नहीं आता है. अभी आगे से जिसने नियम तोडा उसे जोर से गांड पे लात पड़ेगी, समझ गए ना सब.....

"हां भाई" ...... सम स्वर में आवाजें उभरी...

मिंटू: चल अब किसकी चाल है............खेलो जल्दी जल्दी...

मेरी बुद्धि चकरा रही थी....खेल का कुछ भी सर पैर पल्ले नहीं पड़ रहा था...

और इसी तरह खेल बढता रहा और फिर...........

"ये १००, मैं जीत गया, मैं जीत गया" ......एक जोरदार आवाज़ आई..

मिंटू: अबे हाँ, हमें भी दिखाई दे रहा है कि तू जीत गया, इतना चिल्ला क्यों रहा है.....

"भाई, जेकपोट लगा है, पहली बार जीता हूँ पुरे हफ्ते में." ......जीतने वाले की आवाज़ आई...

मिंटू: चल ठीक है......चलो रे बाकी सब फूटो तो अब यहाँ से.....कल कौनसा वाला गेम खेलना है ५० वाला या १०० वाला......२५० वाले गेम की तो तुम्हारी औकात नहीं है......

एक बोला- भाई कोशिश करेंगे कि १०० इकट्ठे जो जाएँ.....अभी तक १०० वाला गेम खेला नहीं है तो एक बार तो खेलना ही है.....

मिंटू: चल ठीक है......ये ले चाबी....ताला खोल के धीरे से निकल लो......ताला वहीँ रख देना....

फिर अगले तीन चार मिनट, मिंटू शांति से बैठा सिगरेट पी रहा था.....बाकी कुछ हलचल भी महसूस नहीं हो रही थी.....

फिर बहुत ही धीमी, पिंकी की कुछ घुटी घुटी सी आवाज़ आई..........
क्रमशः........................
........
















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