Wednesday, September 4, 2013

raj sharma stories मज़ेदार अदला-बदली--9


 raj sharma stories

मज़ेदार अदला-बदली--9
गतांक से आगे..........................
रवि को जैसे ही सारा माज़रा समझ में आया उसने पिंकी को जोर से अपनी और खींचा बोला साली, पहले नहीं बता सकती थी, डराना जरूरी था क्या, अब देख इसकी कैसी सजा मिलती है तुझे........... और फिर उसे कस के अपने आलिंगन में लिया और फिर इसी अवस्था में वो पलट गया.....अब पिंकी नीचे और रवि ऊपर....अपना मुंह पूरा पिंकी के मुंह में घुसा दिया और दोनों हाथों से उसके दोनों बोबे बुरी तरह से कुचलने लगा.......मैंने राहत की साँस ली....और रवि को उस पर से हटाते हुव़े बोली.....अरे, तुम्हारी तो आज लोटरी लग गई है, इतनी हड़बड़ी भी क्या है, अब तो सारी रात पड़ी है जीजा-साली के पास.......वो एक दुसरे को छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रहे थे........

जब मैंने डपट कर बोला तब बड़े अनमने मन से रवि उठा और मेरी गांड पर एक जोर से चपत लगा कर बोला-
साली, कवाब में हड्डी......,
फाड़ डालूँ तेरी चड्डी........,
इस खता का बस यही है दंड.....,
कि चोदे तुझे कोई गधे का लंड........

उसकी इस बेहूदी तुकबंदी पर मैं उसे मारने दौड़ी और वो फिर पिंकी से पलंग पर लिपट गया और उसे अपने ऊपर करके मुझसे बचने कि कोशिश करने लगा.....

थोड़ी देर की इन छेड़छाड़ के बाद मैं और रवि जल्दी जल्दी फ्रेश हुवे और पिंकी ने भी जल्दी से हमारे लिए खाना बना दिया.....सब डायनिंग टेबल पर रखे खाने पर टूट पड़े....बहुत भूखे थे हम सभी.......खाते खाते ही आगे की प्लानिंग बनी कि चूँकि रवि और पिंकी बहुत दिनों के बाद मिल रहे हैं और अब फिर पता नहीं कब चांस हाथ लगे तो मैंने ही ये तय करवाया कि मैं वाकई कवाब में हड्डी न बनू और दोनों को भरपूर चुदाई करने दूं....मैंने आज रात आराम करने की सोची......मेरा दिमाग बहुत तेज़ी के साथ एक योजना पर काम कर रहा था और इसलिए भी थोडा एकांत चाहिए ही था............

मैं दुसरे कमरे में आकर लेट गई और अपनी योजना के बारे में सोचने लगी. कुछ ही देर में पिंकी के बेडरूम उन दोनों की छेड़छाड़ की आवाजें आने लगीं. पिंकी बहुत ही सेक्सी आवाजें निकल रही थी. फिर कुछ देर के बाद पिंकी जैसे रवि से गिडगिडा कर उसे छोड़ने के लिए मन रही थी और शायद रवि उसे तडपा रहा था. मुझे उन दोनों की आवाजें सुनने में बहुत मज़ा आने लगा तो मैंने थोड़ी देर उधर ध्यान लगाया. वे बिना किसी डर के जोर जोर से बातें करते करते काम क्रीडा में लिप्त थे.

" तेरे ये मम्मे इन्हें मसलने और चूसने में मुझे बहुत मज़ा आता है रे मेरी साली"

" जीजू, आज ३ महीने बाद तुम्हारा लंड मिलेगा मुझे, चूत में बहुत सनसनाहट हो रही है मेरे राजा"

फिर कुछ देर पिंकी के बोबे चूसने की आवाज़ और साथ ही साथ पिंकी की जोर जोर से कराहने की आवाजें.

"जीजू, ये दूसरी वाली चूची भी चूसो ना, हाय आज तो क्या जान ही ले लेगा राजा"

"ऐ पिंकी, यार तेरी चूचियां तो और मोटी मोटी हो गई है, और ये टिप के नीचे का काला घेरा और भी बड़ा और कितना फूला फूला लग रहा है, लगता है किसी ने तेरे बोबों पर इन्हें ऊपर से चिपका दिया हो, इनको उँगलियों से छेड़ने में ही कितना मज़ा आरहा है, हालांकि चूस चूस कर तो मैं पागल हुआ ही जा रहा हूँ"

"जीजू, अमित इन चूचियों का बहुत दीवाना है, वो जब तक आधे घंटे इनसे खिलवाड़ न करले वो अपना लंड मेरी चूत में घुसता ही नहीं हैं. पिछले तीन महीनो की उसकी चुसाई और मसलाई से देखो ये कितनी फूली फूली लगने लगी है, अब तो मुझे भी इन्हें छूने और मसलने में बहुत मज़ा आने लगा है."

फिर कुछ देर बोबों के जोर जोर से चूसने की आवाजें. पिंकी इस तरह से कराह रही थी जैसे एकसाथ कई लोग उसके शरीर के साथ खिलवाड़ कर रहे हों.
"आआ आआआआआअअ"

"क्या हुआ पिंकी, इतनी जोर से चीखी"

"वो जीजू, तुमने एकदम से मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसेड दी न, मैं समझी थी कि तुम नीचे की तरफ मेरी पेंटी उतारने गए हो"

अभी भी वो आह आह की आवाजें निकल रही थी.

"जीजू, कब डालोगे अन्दर, मेरी चूत बहे जा रही है बहुत दिनों के बाद बदले हुवे लंड का स्वाद चखने के लिए, क्या यार जीजू मेरी तो सुन ही नहीं रहा है, क्या छक्का हो गया है क्या मेरा जीजा, लंड खड़ा नहीं होता क्या तेरा रे भड़वे. क्या मेरी रंडी बहन ने चूस चूस के तेरा सारा पानी सुखा दिया है रे मादरचोद." पिंकी अब पूरी बहक चुकी थी और गालियाँ ही निकल रही थी उसके मुंह से.

"भेन की लवड़ी, खानदान की सबसे बड़ी लूज़ करेक्टर, चुदक्कड़ रांड...... मेरे को नामर्द बोलती है, ले मेरा लवड़ा चूस के देख पता चलेगा की कितना तगड़ा मूसल है, अरे तेरे जैसी दसियों बाजारू रांडो को एक लाइन से सुला कर चोद सकता हूँ, मेरे को छक्का बोली, ये ले चूस, भर ले अपने मुंह में.....हाँ ले पूरा का पूरा घुसेड दूंगा, तेरे गले को फाड़ डालेगा ये"

"गूं गूं गूं ................"

कुछ देर बाद............"अरे क्या मार डालेगा मुझे, नीचे वाले छेद में क्यों नहीं पेलता है इसे, ऊपर तो मेरी सांस ही रोक दी थी तुने भड़वे."

"जा नहीं डालता तेरी चूत में इसे"

"अरे मेरे राजा, नखरे क्यों करता है, देख कैसा तड़प रहा है मेरी चूत में जाने के लिए."

और ऐसे मौके पर पिंकी ने एक बहुत ही मौजूं वीर रस में चार लाइने सुना मारी जिसे सुन कर मुझे भी जोर से हंसी आगे.........वो कुछ इस तरह से थी.....

"पकड़ के टांग खीच दो"
"पकड़ के टांग खींच दो"
"के चूं हो ना चंड हो"
"भूसंड लंड ठूंस दो "
"कि चूत खंड खंड हो"

रवि कि भी सुन कर हंसी छूट गई, और कुछ देर कि शान्ति के बाद पिंकी की एक जोर की कराह सुनाई आई, ये निश्चित रूप से लंड को चूत में घुसाए जाने की प्रतिक्रिया स्वरुप उपजी होगी. और फिर धप्प धप्प धप्प धप्प की आवाजें आने लगी, हर धप्प के साथ एक नारी स्वर "आई" भी जुगलबंदी कर रहा था. पिंकी की तेज़ी से बदती चुदास को देखते हुवे रवि ने प्रथम चक्र की चुदाई शायद जल्दी से शुरू कर दी थी, इतने दिनों के बाद दोनों जीजा-साली को अपने पुराने भरचक चुदाई वाले दिनों की याद ताज़ा करने का मौका मिला था, वो भी यकायक, तो वे बहुत ही कम प्राथमिक गरमाऊ प्रक्रिया किये ही चुदाई में उतर गये थे. एक दुसरे को देखते ही तो एक का नल और दुसरे की नदियाँ बहने लगी थी, क्या खाक गरम करने कराने की जरूरत थी दोनों को.

"गपागप...गपागप....गपागप......गपागप" पिंकी की चूत रवि का लंड खाए जा रही थी, कुछ ही देर में इन आवाजों के अंतराल कम होते चले गए और दोनों के कराहने की आवाजें तेज़ होने लगी थी............और फिर दोनों की एकसाथ जोर से चीखने की आवाज़ आई और फिर पिंकी हचक हचक के कांपते हुवे कराह रही थी, चुदाई के चरम को फतह कर लेने के बाद ढलान से उतरते हुवे रह रह कर हलके हलके झटके लिए कंपकंपाहट और तड़पन, शायद रवि अभी भी हौले हौले लंड अन्दर बाहर कर रहा है, हर घस्से पर उछाला और आह, में समझ सकती हूँ ये स्थिथि......मैं दम साधे उधर हुई चुदाई के माहौल में खो गई थी............

बहरहाल, उधर चुदाई का तूफान गुज़र चूका था तो मैंने उधर से अपना ध्यान हटाया.एक गहरी सांस ली और करवट बदल कर अपनी योजना पर विचार करना शुरू किया...

अगले एक घंटे मैंने अपनी योजना पर काम किया, तब तक पिंकी और रवि की चुदाई का एक और दौर ख़तम हो चूका था. मैं उठी और उनके कमरे की ओर बढ चली. कमरे की लाईटें जली हुई थी. पलंग पर पिंकी पीठ के बल लेटी हुई थी, उसका एक हाथ अपने सर के नीचे था और दूसरा पास में करवट लेकर सो रहे रवि की पीठ पर था, एक टांग लम्बी कर रखी थी और दुसरी मोड़ कर रवि के पैरों पर टिकाई हुई थी कुछ इस तरह से की उसकी चूत पूरी तरह से खुली हुई थी और चूत से रवि का वीर्य उसके खुद के रस के साथ हौले हौले रिस रहा था. रवि ने अपना एक हाथ पिंकी के बोबे पर रखा हुआ था और उसका लंड पिंकी के पैर की ओट में छुपा हुआ था, दोनों की आँखे बंद थी और चेहरे पर अपार संतोष के भाव थे.

मेरी नज़र यकायक ही पिंकी के उन निप्पल की और पड़ी जिनकी रवि अभी थोड़ी देर पहले चूसने के समय तारीफ करते नहीं थक रहा था. मैं उसके बेड पर झुकी और पेट के बल लेट गई. अब उसकी चूचिन ठीक मेरी आँखों के सामने थी. सच में रवि ने कुछ गलत नहीं कहा था. उसकी चूंची ठीक काले घेरे की जगह से काफी फूली फूली लग रही थी जैसे कि वो एरोला ही अपने आप में एक मोटी चूंची हो और उस पर एक काली और कड़क निप्पल अलग से जड़ दी गई हो बहुत ही सुन्दर दृश्य था. मेरी उंगलियाँ उनसे खेलने के लिए बढ चली और जैसे ही मैंने उसे अपनी उँगलियों से हलके हलके कुरेदना चालू किया उसकी आँख खुल गई. उसने मुझे देखा और फिर बिना हिले वो मुस्कुराई और फिर शांति से आँख बंद कर ली. मैंने अपनी ठोड़ी हौले से उसके बड़े उभार के किनारे पर टिका दी कोहनी उसके पेट पर टिका कर उँगलियों से निप्पल से खेलने लगी. मेरी सांसे ठीक उसकी चूचियों पर पड़ रही थी. कुछ देर के बाद मैं थोडा सा आगे हुई और उसकी गदराई और सूजी हुई चूची अपने मुंह में भर ली और चूसने लगी. उत्तेजना के कारण उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी. उसके हिलने डुलने के कारण रवि की नींद में बाधा आई और उसने अपना मुंह उठा कर चल रहे कार्यक्रम का जायजा लिया. फिर वो कोहनी के बल थोडा उठा और झुक कर दूसरा चुच्चा अपने मुंह में भर लिया और फिर हम दोनों उसको भचक भचक चूसने लगे. कुछ ही देर में पिंकी के मुंह से आन्हे निकलने लगी और उसने एक हाथ मेरे सर से हटा कर रवि के सर पर चिपका लिया.

जैसे जैसे हम कड़क चुसाई करते जा रहे थे वैसे वैसे पिंकी के हाथों की पकड़ हमारे सरों पर मज़बूत होती जा रही थी और वो उन्हें अपने बोबों पर खिंच रही थी.........

"चूसो और जोर से चूसो, काट डालो सालियों को बहुत परेशान करती है, खा जाओ इन्हें कच्चा ही , चबा डालो..... हाँ ऐसे ही.... जोर से..... और जोर से" उत्तेजीत होकर वो बडबडाने लगी.
हमें भी वो फूली फूली चून्चिया चूसने में इतना मज़ा आ रहा था कि हम बस उन्हें चूसे ही जा रहे थे और वो हम दोनों के सरो को अपनी ओर ठेलते हुए मसले जा रही थी....पांच सात मिनट तक कोई हटने हटाने को तैयार ही नहीं था.

तभी पिंकी चीखी - अरे मेरा कुछ करो यारों, मैं तो बस झड़ने के करीब पहुँच चुकी हूँ....हम रुके तो उसने हमें झिंझोड़ा और कहा- रुको मत, रुको मत चूसते चूसते ही कुछ करो. हमने फिर चुसाई चालू कर दी. रवि चूसते चूसते ही थोडा ऊपर उठा और अपने शरीर को पिंकी के ऊपर खिसकाने लगा और बिना उसका निप्पल छोड़े वो उसके पुरे शरीर पर आ गया. पिंकी ने अपने पैर दूर दूर फैला दिए और रवि का लौड़ा पिंकी की चूत पर आ गया. मैंने भी बिना निप्पल छोड़े थोडा सा खिसक कर रवि के लिए थोड़ी जगह बना दी. अब उसने अपने लौड़े से पिंकी कि चूत में घस्से मरने चालू कर दिए. पिंकी उछल उछल कर रवि के लंड को और अन्दर खाने का प्रयास कर रही थी.

"तेज़...और तेज़....जोर से .....हाँ ऐसे ही ....और अन्दर .....पूरा घुसेड दे.....मार मार और जोर से मार .....आआआआआ......मैं गई ईईईईईईईईईई" निप्पल की अबाधित दोनों ओर की चुसाई और रवि की फटाफट चुदाई के चलते पिंकी भड-भड़ा के बुरी तरह से झड गई. एकदम लुस्त हो गई. हम दोनों ने उसके बोबे छोड़े. उसने अपना लंड बाहर निकाला और अपने हाथ से मुठियाने लगा क्योंकि वो भी आधे रास्ते तक पहुँच चूका था और अब रुकना मुश्किल था.
क्रमशः........................
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