Tuesday, May 31, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ ट्रेन का सफ़र

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

ट्रेन का सफ़र

प्रेषक : कमलेश सिंह
 सभी हिंदी सेक्सी कहानियाँ  के पाठकों को नमस्कार !
मेरा नाम कमलेश है, मैं रहने वाला रायपुर छ्त्तीसगढ़ का हूँ, मेरी पढ़ाई
भोपाल में हुई है।
मैंने हिंदी सेक्सी कहानियाँ  अभी अभी पढ़ना शुरू किया है मुझे भी लगा की
मुझे भी अपनी कहानी लिखनी चाहिए !
यह उस वक्त की कहानी है जब मेरी पढ़ाई खत्म हो गई थी और उसके बाद मैं
रायपुर वापस आ रहा था, यह मेरी जिंदगी की सच्ची घटना है।
मैं भोपाल से ट्रेन में बैठकर नागपुर आया, वहाँ मुझे कुछ काम था। नागपुर
से रायपुर के लिए रात में ट्रेन थी, उसी में मुझे आना था।
मैं जल्दी ही काम ख़त्म करके स्टेशन पहुँच गया था, बहुत कम ही लोग स्टेशन
पर थे, मैं समय काटने के लिए स्टेशन पर घूमने लगा।
कुछ दूर एक 30-32 साल की एक आंटी बैठी थी जो अकेली ही थी, रंग गोरा था,
34-32-36 का फिगर था, क़यामत लग रही थी।
मेरी नजर बार बार उनको ही देख रही थी।
अचानक उन्होंने मुझसे ट्रेन का समय पूछा।
मैंने कहा- ट्रेन आधा घंटा देरी से चल रही है।
मैंने देरी न करते हुए उनसे पूछा- आप कहाँ जा रही हैं?
उन्होंने कहा- रायपुर !
मैं बहुत खुश हो गया, मैंने भी बताया उन्हें कि मैं भी रायपुर जा रहा हूँ।
ऐसे हमारी बात होने लगी, उन्होंने बताया कि वो अपनी बहन के यहाँ जा रही
हैं, नागपुर में ही उनका घर है, रायपुर अकसर जाती रहती हैं।
मैंने अपने बारे में बताया- मेरी पढ़ाई ख़त्म हो गई है ओर मैं अपने घर
वापस जा रहा हूँ। वहाँ जाकर कोई जॉब करूँगा !
बातों बातों में ट्रेन आ गई, हम एक ही डब्बे में चढ़ गए।
रात का सफ़र था, ट्रेन में भीड़ भी बहुत थी। बैठने की जगह नहीं थी।
एक जगह मिली तो मैंने आंटी को बैठने को कह दिया और मैं खड़े हो गया।
कुछ देर बाद ट्रेन कुछ ख़ाली हुई, आंटी ने अपने बगल में बैठने को कहा तो
मैं चुपचाप बैठ गया।
हम घर परिवार की बातें करने लगे। रात का एक बज गया था, सभी सो रहे थे,
आंटी को भी नींद आ रही थी, वो भी थोड़ी देर में सो गई !
मुझे नींद नहीं आ रही थी। इतनी सेक्सी आंटी बगल में बैठी हो तो नींद कैसे
आ सकती थी।
सोते-सोते उनका सर मेरे कंधों पर आ गया था, मैं उनके वक्ष को देखे जा रहा
था, उनके ब्लाउज से थोड़ा-थोड़ा दिख रहा था।
अचानक उनका एक हाथ मेरे जांघों पर आ गिरा, फिर सरकते-सरकते मेरी जिप के
पास चला गया।
मेरा लंड उनके हाथ के एहसास से खड़ा हो गया था, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था
तो मैंने वैसे ही रहने दिया उनका हाथ।
फिर थोड़ी देर बाद आंटी मेरे लंड को सहलाने लगी।
मुझसे रहा नहीं गया, मैं बेचैन होने लगा। लंड पैंट फाड़ कर बाहर आने को
तो तैयार था !
मैंने आंटी के कान में कहा- चलो, बाथरूम में चलते हैं।
वो तैयार हो गई।
पहले वो चली गई, बाद में मैं गया।
सब सो रहे थे किसी ने हमे नहीं देखा।
अब बस आंटी और मैं बाथरूम में थे।
आंटी ने झट से मेरे लंड को बाहर निकाला और चूसने लगी !
मैं पागल हो रहा था, मैं तो जन्नत में पहुँच गया था !
मैं आंटी के स्तन दबा रहा था। क्या स्तन थे साली के ! मजा आ गया था !
अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने आंटी की साड़ी ऊपर उठा दी और उनकी पैंटी
उतार दी, उनको घोड़ी बना कर चोदने लगा।
उनको भी बड़ा मजा आ रहा था, मेरा भरपूर साथ दे रही थी। वो दो बार झड़ गई
थी, फिर मैं भी झड़ गया, सारा माल उनकी चूत में ही निकल दिया मैंने !
फिर हम अपने आप को ठीक करके बारी-बारी से बाहर आ गए !
क्या सेक्सी सफ़र था मेरा ! मजा आ गया !
यह थी मेरे सफ़र की कहानी !
अगली कहानी मैं बताऊँगा कि कैसे बना मैं कॉल बॉय !
यह कहानी कैसे लगी, जरुर बताइयेगा .....


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हिंदी सेक्सी कहानियाँ भाई की गर्ल फ़्रेन्ड

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

भाई की गर्ल फ़्रेन्ड

प्रेषक : राजेश राय
सबसे पहले मैं हिंदी सेक्सी कहानियाँ के सभी पाठकों को नमस्कार करता हूँ,
मैं हिंदी सेक्सी कहानियाँ का नियमित पाठक हूँ यह मेरी पहली और सच्ची
कहानी है।
मेरा नाम राजेश है और मैं लखनऊ में नौकरी करता हूँ। मेरी उम्र 25 साल और
लम्बाई 6 फीट है और मैं देखने में स्मार्ट हूँ। मैं लखनऊ में अकेले ही
रहता हूँ।
यह घटना कुछ दिन पहले की है, मेरा दूर का भाई भी लखनऊ में ही रहता है और
उसकी एक गर्लफ्रेंड है जिसके बारे में मुझे पता था। वो घर से बाहर रहकर
पढ़ाई करती है।
एक दिन वह अपने गर्लफ्रेंड को लेकर मेरे घर पर आया तो मैं उसकी
गर्लफ्रेंड को देखता ही रह गया।
क्या गजब का फिगर था उसका !
और वो भी मुझे देखती रही।
शायद दोनों का दिल एक दूसरे पर आ गया पर हम दोनों ने कुछ भी नहीं कहा और
उस रात वे दोनों मेरे घर पर रहे। रात में वो दोनों एक कमरे में सोए थे और
मैं दूसरे कमरे में !
फिर वो दोनों सुबह चले गए। मैं आपको बता दूँ कि उसकी गर्लफ्रेंड का नाम
निशा है। जाते-जाते उसने मेरा फ़ोन नम्बर ले लिया। फिर हम दोनों के बीच
बातें होने लगी।
पहले तो सब ऐसे ही चलता रहा, फिर हम दोनों के बीच प्यार की बातें होने
लगी और अब वो कहती कि वो मेरे साथ चुदाई करना चाहती है। मैं भी यही चाहता
था और हमारे बीच अब फ़ोन पर सब बातें होने लगी थी।
और एक दिन आखिर हमारी आमने-सामने मुलाकात हो ही गई और इतने दिनों की दूरी
मिट ही गई। आग दोनों तरफ बराबर लगी थी बस मिलने की देरी थी। जैसा मैंने
बताया कि मैं अकेले रहता हूँ तो वह दिन में ही आ गई। मैं भी ऑफिस से
जल्दी आ गया था और आते ही दरवाजा बंद किया तो वो और मैं कमरे में थे।
हम दोनों बस एक दूसरे की बाहों में एसे लिपटे जैसे बरसों के प्यासे मिल
रहे हों। दोनों के होंठ ऐसे जुड़ गए कि छूटने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
अब तक वो भी बहुत ज्यादा गर्म हो गई थी और इधर मेरे लंड में भी तूफान आ
गया था जो अब नियन्त्रण से बाहर हो रहा था। मैंने निशा को बिस्तर पर
लिटाया और उसकी चूचियों को मसलने लगा। वो भी अब अजीब अजीब आवाजें निकालने
लगी थी और जोर-जोर से मुझे चूमने लगी थी।
फिर मैंने उसका टॉप और जींस निकाल दिया। अब वह सिर्फ पैंटी और ब्रा में
थी। मैं पहली बार उसे इस रूप में देख रहा था। अब तो मेरे लंड अपने पूरे
आकार में था, पूरा आठ इंच का हो गया था। उसने भी मेरा शर्ट और पैंट निकाल
दिया। अब मैं उसकी चूचियों को मसल रहा था जो ब्रा से बाहर आना चाहती थी।
मैंने उसकी ब्रा भी उतार दी।
वाह क्या चूचियाँ थी निशा की !
मैं तो पागल हुआ जा रहा था, मैं उन्हें मुँह में लेकर चूसने लगा और एक
हाथ से मसलने लगा। वो भी एकदम से पागल हो गई थी, उसने मेरे अंडरवियर में
हाथ डाल दिया और मेरा लंड बाहर निकाल लिया और मसलना शुरु कर दिया। अब तक
उसकी दोनों चूचियाँ एकदम से लाल हो गई थी। अब मैं उसकी पैंटी के ऊपर से
ही चूम रहा था, वो पूरी मस्ती में थी।
मैंने उसकी पैंटी भी निकाल दी। क्या नजारा था ! पहली बार किसी की बुर देख
रहा था ! एक भी बाल नहीं था, एकदम चिकनी ! उसी दिन ही बनाई थी उसने ! मैं
तो बस अब टूट पड़ा उसकी बिन बालों वाली बुर पर ! और चूमने लगा।
अब तो उसके मुँह से आ आह ह ही निकल रहा था। अब उसने मेरे लंड को मुँह में
ले लिया था और मैं उसकी बुर को चाट रहा था। अब तक उसने बुर का पानी छोड़
दिया था, जिसे मैंने पूरा पी लिया, क्या नमकीन पानी था।
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं अपने लंड को उसकी बुर के ऊपर
रगड़ने लगा। अब तो वो और जोर-जोर से कहने लगी- जल्दी करो ! मुझसे
बर्दाश्त नहीं हो रहा है !
मैं उसकी जांघों के बीच बैठा, लण्ड को चूत पर रख कर एक जोरदार झटका मारा
और मेरा लगभग दो इंच लंड उसके अन्दर चला गया। उसकी बुर कसी थी, उसे हल्का
दर्द हो रहा था, बोली- धीरे से डालो !
मैंने उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया और चूमता रहा, साथ में
धीरे-धीरे लंड को भी अन्दर करता रहा। फिर एक ही झटके में पूरा लंड अन्दर
कर दिया वो एकदम से चिंहुक गई। फिर उसे भी मस्ती आ गई और अब तो बस पूरे
कमरे में एक तूफान आ गया जो थमने का नाम नहीं ले रहा था।
फिर मैंने उसे पीछे से भी चुदाई की। पूरे 30 मिनट की चुदाई में वो दो बार
झड़ चुकी थी, अब मैं भी झड़ने वाला था, मैंने उससे पूछा- कहाँ पर गिराऊँ?
तो वो बोली- अन्दर ही गिरा दो !
पर मैं कोई भी खतरा उठाना नहीं चाहता था, मैंने लंड को बाहर निकाल लिया
और अपने वीर्य को बाहर ही बिस्तर पर गिरा दिया। वो बड़े ध्यान से उस
गिरते हुए देख रही थी।
उस पूरी रात हमने सुबह के 4 बजे तक चुदाई की और फिर हम दोनों एक दूसरे से
चिपक कर सो गए।
अब वह मुझसे दूर चली गई है, अब सिर्फ हमारी बातें होती हैं।
मुझे मेल करें


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हिंदी सेक्सी कहानियाँ हरीयालो देवरियो

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

हरीयालो देवरियो

लेखिका : नेहा वर्मा
मेरा देवर मुझसे कोई दस साल छोटा है, पर मुझे वो बहुत प्यारा है। वो
सीधा-साधा, भोला-भाला सा है, हंसमुख है। मेरा हर काम वो पलक झपकते ही कर
देता है। वैसे वो भी मुझसे बहुत प्यार करता है। शायद उसका प्यार तो भाभी
के लिये था, पर दुर्भाग्यावश मेरा प्यार वासनामय था। सच पूछो तो उसका
लम्बा कद, गोरा रंग, उसकी खूबसूरती, उसके कुछ विशेष अन्दाज मेरे दिल को
तड़पा जाते थे। वो बुद्धू तो था ही, उसकी मासूमियत का मैं नाजायज फ़ायदा
उठाती थी। कभी सर दर्द का बहाना करके सर दबवाती थी और उसका स्पर्श पाकर
मुझे आन्तरिक सुख मिलता था। कभी कभी तो मैं उससे अपने पांव की मालिश
करवाती थी, उसका मेरी जांघों तक का स्पर्श मुझे बेहाल कर देता था। कभी
कभी तो उसके साथ मैं उसी के बिस्तर पर लेट जाती थी, और हंसी मजाक करने के
दौरान उसका हाथ मेरे नाजुक अंगों को स्पर्श कर जाता था, तो जैसे मेरे दिल
के तार झनझना जाते थे। मन करता था कि किसी भी तरीके से उसके साथ चुदाई कर
लूँ... ।
वो बेचारा अनजान सा बिना चड्डी पहने घर में घूमता रहता था। बरसात में
नहाने पर उसका सफ़ेद पजामा उसके कूल्हों से यों चिपक जाता था कि उसके
दोनों पोन्द नंगे से नजर आने लगते थे, उसके सोये हुए लण्ड की भी तस्वीर
दिख जाती थी। पर वो अनजाना बेसुध हो कर वर्षा का आनन्द लेता रहता था, इस
बात से अनजान कि कोई अन्य भी उसके महकते जवान जिस्म को निहार कर अपने मन
में और भी वासना की भावना को प्रज्वलित कर रहा है।
एक बार तो बिस्तर पर लेटे हुए मजाक करते समय उसने मस्ती में उसने मेरे
दोनों स्तनों के मध्य अपना चेहरा घुसा लिया था और मेरे स्तनो की नरमाई का
आनन्द लेने लगा था। जब मैंने उसे दूर किया तो उसकी आँखों में नींद सी भरी
हुई थी। वो क्या जाने उसने मेरे दिल में कैसी काम पीड़ा जागृत कर दी थी?
पर वो तो लाड़ के मारे नींद में हो गया था, फिर मैंने भी उसका सर अपने
दोनों स्तनों के बीच रख कर उसके बालों को सहलाते हुए सुला दिया था। पर
उसने मेरी चूत में एक मीठा सी कसक भर दी थी ... ।
आज भी हम दोनों बिस्तर पर लेटे हुए ऐसे ही मस्ती कर रहे थे। वो मेरे बदन
में गुदगुदी कर रहा था, मुझे हमेशा की तरह उसका स्पर्श तन पर मोहक लग लग
रहा था। उसके अधिक से अधिक स्पर्श को पाने के लिये अब मैं अन्दर ब्रा और
चड्डी नहीं पहनती थी। आज मेरे उभरे हुए स्तनों पर वो हाथ भी मार रहा था।
मेरे शरीर में वासना भरी गर्माहट चढ़ने लगी थी। पर पापा की आवाज ने मेरा
ध्यान भंग कर दिया था। पापा को दफ़्तर जाना था। मैं रवि के कमरे से निकल
कर भाग कर नीचे आ गई।
पापा का का भोजन टिफ़िन में लगा कर उन्हें दे दिया और वो रवाना हो गये।
मैंने घर का दरवाजा नीचे से लगा दिया और वापिस ऊपर रवि ले कमरे में चली
आई। रवि भी सुस्ताया हुआ सा था। मैं उसके बिस्तर पर आकर बैठ गई। बस मुझे
देखते ही उसमें फिर से मस्ती आ गई। मुझे लगा कि जैसे वो मेरे प्यार में
खोने लगा था। मेरी गोदी में उसने सर रख दिया और मुझे निहारने लगा। मैं भी
उसके बालों में हाथ फ़ेरने लगी, पर इस बार वो गोदी में अपना सर मेरी चूत
पर दबा रहा था ... पता नहीं वो जाने या फ़िर अनजाने में ये कर रहा था।
मेरी चूत में मीठी सी गुदगुदी भरने लगी। मैंने झुक कर उसके गालों पर चूम
लिया। उसने भी अपने हाथ जाने क्या करने के उठाये पर वो मेरे स्तनों से जा
टकराये, मुझे झुरझुरी सी आ गई।
तभी मेरी नजर उसके पजामे पर गई, उसका लण्ड अनजाने में सीधा खड़ा हो गया
था, उसके पजामे को ऊपर उठा दिया था। शायद उसकी वासना जागने लगी थी। मुझे
लगा कि उसके लण्ड को मैं भींच लूँ, मसल डालूँ, मल-मल कर उसका माल निकाल
डालूँ, मेरी सांसें तेज हो उठी। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी। मैंने नीचे
से चूत का दबाव उसके सर पर दे दिया ... । मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी
जांघें पकड़ ली और उन्हें सहलाते हुए लण्ड के पास तक आ गई।
मेरे दोनों स्तन उसके मुख पर जोर से दब गये, जिसकी नरमाई से वो तड़प सा
गया। उसकी दोनों टांगें कांपने लगी। उसका लण्ड एक बार फ़िर से फ़ड़क कर लहरा
उठा।
"भाभी, मुझे नींद सी आ रही है ..." शायद यह वासना का प्रभाव था।
"तो सो जा मेरी गोदी में !" मैंने उसकी ओर झुकते हुए कहा। वो उठ कर
बिस्तर पर ठीक से लेट गया और मेरी गले में बाहें डाल कर मुझे भी लेटाने
की कोशिश करने लगा। मैं बिना किसी बहाने के लेट गई और वो मुझसे लिपट कर
सोने का उपक्रम करने लगा। उसकी टांगें मेरी कमर के ऊपर आ गई और वो एक
छोटे बच्चे की तरह मुझसे लिपट कर आँखें बन्द करके सोने का प्रयास करने
लगा।
मेरे स्तन जैसे फ़ूलने लगे, कड़े होने लगे, चुचूक भी कठोर हो गये। मेरा
ब्लाऊज जैसे तंग होने लगा, फ़ंसने सा लगा था। लगा कि वो जैसे फ़ट जायेगा।
मैंने अपनी आँखें वासना के नशे में बंद कर ली और अपने स्तन उसके चेहरे पर
दबा दिए। उसके लण्ड का कड़ापन मेरे कूल्हे के इर्द-गिर्द चुभने लगा। मुझे
अपना सपना साकार होता नजर आने लगा। मैंने धीरे से उसके चूतड़ों पर हाथ रख
कर अपनी ओर जकड़ लिया। उसका लण्ड मेरी चूत के आस पास गड़ने लगा।
"भाभी, मुझे कुछ हो रहा है... कुछ अजीब सा लग रहा है ..." वो निन्दासा सा
होकर बोलने लगा।
"कुछ नहीं रवि, ऐसा तो जवानी में सभी को ऐसा लगता है... तुझे प्यार करना
है ना.." मैंने उसे प्यार करने का न्यौता दे डाला। ऐसा कहने में मुझे
शर्म सी आ रही थी, पर आगे बढ़ने के लिये कुछ तो करना ही पड़ेगा ना।
"हाँ भाभी, ऐसा लगता है कि आपसे ऐसे ही लिपटा रहूँ... आपके होंठों पर
प्यार करूँ ..."
मैं अपने अधरों को उसके समीप ले गई, वो अपना मुख उठा कर चूमने की मुद्रा
में मुख बनाने लगा। फिर उसने बिना किसी हिचक के मेरे होंठ चूम लिये।
मैंने मौके का फ़ायदा उठाया और उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया।
मैंने जोश में उसे एक पलटी मार कर अपने नीचे दबा दबा लिया। उसका लण्ड अब
मेरी टांगों के ठीक बीचों-बीच चूत पर दब रहा था। मेरी चूत एकाएक लण्ड
लेने के तड़पने लगी।
रवि भी अपने होश खो बैठा और उसने मेरे मम्मे दबा दिये।
आह्ह्ह ... !! मेरे ईश्वर !! मेरा सब्र टूटा जा रहा था। मेरा हाथ नीचे बढ़
कर उसके लण्ड पर चला गया और दूसरे ही पल उसका लण्ड मेरे हाथों में दबा
हुआ था।
रवि ने एक सिसकारी भरी। वो जैसे तड़प सा उठा। हम दोनों वासना से भरे हुए
एक दूसरे को जैसे खींचने लगे। तभी रवि ने भी मुझे एक झटका दिया और मेरे
ऊपर आ गया।
"भाभी मुझे यह क्या हो रहा है ? मेरा मन आपसे लिपट कर कुछ करने को होने
लगा है।" उसका बड़ा सा लण्ड पजामे में उभर कर बुरी तरह से फ़ड़फ़ड़ा रहा था।
"रवि, यह तो प्यार है बस, कभी मन करता है कि तुझे मैं अपने में समा लूँ !"
उसे मैंने अपनी ओर खींच लिया। उसका बलिष्ठ लण्ड मेरी चूत में घुसने के
लिये जोर मारने लगा। इसका मतलब था कि वो सम्भोग के लिये एकदम तैयार है।
"नहीं भाभी, मुझे तो लगता है कि मैं आपके शरीर में समा जाऊँ !" उसने फिर
अपने लण्ड का जोर नीचे लगा दिया। मुझे लगा कि अब मैंने अपने पेटीकोट को
ऊपर नहीं किया तो वो या तो झड़ ही जायेगा या मेरे पेटीकोट समेत ही लण्ड को
चूत में घुसा देगा।
"बस दो मिनट ... अपना पजामा उतार दे ... मेरा पेटीकोट भी ऊपर उठा दे ...
फिर सब अपने आप हो जायेगा..." मेरी सांसें उखड़ रही थी, दिल तेजी से धड़कने
लगा था।
"सच भाभी ..."
"देख तेरा नीचे ये लण्ड कैसा फ़ूल रहा है ... इसे बाहर निकाल और हवा लगने
दे।" मैंने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला कर दिया। उसने जल्दी से अपना पजामा
उतार दिया, उसका लण्ड हवा में लहरा उठा। मैंने प्यार से उसे काबू में
किया और उसका सुपारा खोल दिया। वीर्य की महक सी आई। मैं उसे देख कर
विस्मित सी हो गई। लाल सुन्दर सा सुपारा, मेरा मुख अपने आप खुल गया और
उसे मैंने खींच कर अपने मुख में ले लिया। रवि पागल सा होकर अपनी चूतड़ों
को जोर जोर से हिलाने लगा था। उसका लण्ड मेरे मुख में आगे पीछे चलने लगा
था। मेरा मन चंचल हो उठा गाण्ड चुदवाने के लिये ...
मैंने उसका गीला लण्ड बाहर निकाला और रवि से कहा,"रवि, मजा आ रहा है ना...?"
"हाँ भाभी बहुत जोर का मजा आ रहा है..." उसका तन चुदाई की सी क्रिया करने लगा था।
"मेरे पोन्द को सहला कर मसल दे जरा...!" मुझे लगा कि यह भी तो कुछ करे।
"नहीं भाभी, मुझे तो ऐसे ही मजा आ रहा है..."
अरे मुझे भी तो मजा आना चाहिये ... अच्छा तुझे फिर एक नई चीज़ भी बताऊंगी।"
मैंने तड़प कर उसे लालच दिया। वो मेरी छाती पर से हट गया और मैंने तुरन्त
अपनी पीठ उसकी तरफ़ कर ली। उसने मेरा पेटीकोट नीचे खींच लिया। मेरे सुन्दर
उभरे हुए चूतड़ देख कर उसका मन मचल गया। उसने मेरे नरम पर कसे हुए चूतड़ों
को बुरी तरह से दबाना चालू कर दिया। अन्त वही हुआ जो मैं चाहती थी। उसका
तन्नाया हुआ लण्ड मेरी चूतड़ों की दरार में घुस गया। मैंने अपने गाण्ड के
छेद को ढीला कर दिया। उसके लण्ड पर मेरा थूक लगा हुआ था सो छेद पर जोर
लगते ही अन्दर घुस गया। मैंने अपनी गाण्ड का छेद थोड़ा ढीला किया और उसे
अन्दर जाने दिया, उसे और भी लण्ड घुसाने में भरपूर सहायता की। लण्ड के
गाण्ड में घुसते ही मीठी सी गुदगुदी हुई। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली।
उसका लण्ड सरकता हुआ पूरा अन्दर चला गया।
मैंने भी अपनी गाण्ड हिला कर उसे ठीक से पूरा घुसा लिया। उसके मुख से कुछ
दर्द भरी आवाजें आने लगी थी। शायद उसे पता नहीं था कि उसके लण्ड की त्वचा
सुपाड़े के नीचे से चिर चुकी है और सुपारा खुल कर पूरा बाहर आ चुका था।
उसके लण्ड के डण्डे पर चमड़ी उलट कर सुपारा पूरा स्वतन्त्र हो गया था। वो
धीरे धीरे आह भरता हुआ लण्ड आगे पीछे करने लगा था। उसे आनन्द अधिक आ रहा
था, तभी तो वो दर्द को सह रहा था। पर उससे मुझे क्या लेना था, मुझे तो बस
अपनी गाण्ड मरवानी थी सो मैं तो वही मजे ले रही थी। उसके धक्के मुझे असीम
आनन्द दे रहे थे। मेरी चूत की खुजली भी तेज होती जा रही थी। वो अपने हाथ
मेरे सीने पर डाल कर उभारों को मसले जा रहा था। मेरी सिसकियाँ बढ़ती जा
रही थी, मेरी चूत भीग कर पानी छोड़ रही थी। गाण्ड मराने से जब मेरी चूत
में उत्तेजना बहुत बढ़ गई तो मैंने उसे हटा दिया और सीधे लेट गई और उसे
अपनी टांगों के बीच में बैठा दिया, उसका कड़कता लण्ड मैंने अपनी चूत पर रख
दिया और थोड़ा सा अन्दर सरका लिया, फिर उसे अपने ऊपर खींच लिया। जैसे ही
वो मुझ पर झुका, उसका लण्ड तेजी से अन्दर घुसने लगा। मैंने सिसकते हुए इस
आनन्द भरे क्षण को महसूस किया और उसे अपने से जोर से चिपका लिया। मेरे
मुख से एक हल्की सी चीख निकल गई। उसका लण्ड पूरा जड़ से टकरा गया था।
"रवि, जितना जोर से लण्ड मार सकता है ... मार दे ... बहुत मजा आयेगा..."
मैं खुशी के मारे चहक उठी।
"हां भाभी... हाँ ... ये लो...आह्ह्ह्..."
उसके ताकतवर झटके ने मुझे फिर से आनन्द से चीखने पर मजबूर कर दिया। बहुत
ही प्यारे झटके से चोद रहा था, फिर उसके अनाड़ीपन का भी मुझे आनन्द आने
लगा था। वो बार बार जोर से मेरे मम्मे मचकाने लगा था। उसके होंठ मेरे
चेहरे को चूम चूम कर गीला कर चुके थे, मैं कभी अपनी जीभ उसके मुख में डाल
देती थी, तो कभी उसके गाल काट लेती थी। दो तीन धक्के उसने ओर लगाये और
मैं तो जैसे आनन्द के समुंदर में डूब गई। मेरा काम रस निकल पड़ा, मैं झड़ने
लगी। मैं शान्ति से झड़ती रही, पर उसने चोदना जारी रखा।
कुछ ही देर में मैं चुदते हुए फिर से तैयार हो चुकी थी, और फिर से मेरी
उत्तेजना बढ़ गई थी। वो अब हांफ़ने लगा था, उसकी सांसें तेज हो उठी थी,
चेहरे पर पसीना छलक आया था। पर वो बहुत ही मन लगा कर चुदाई कर रहा था।
उसकी तेज चुदाई से मैं तो फिर से चरमसीमा पर पहुंचने लगी ... उसकी रफ़्तार
भी बढ़ गई ... उसकी जोरदार चुदाई से मेरा शरीर फिर से एक बार और कांप उठा
और मैंने फिर से अपना काम रस छोड़ दिया। तभी वो भी झड़ने को होने लगा।
उसका वीर्य मुझे चाहिये था सो मैंने उसका लण्ड बाहर निकाल कर उसे मुख के
पास आने का इशारा किया। उसने अपना लण्ड मेरे मुख में घुसेड़ दिया। मैंने
उसके डण्डे को पकड़ कर बस दो तीन बार दबा कर ही मुठ मारा और उसका वीर्य
निकल पड़ा। उसने एक हल्की सी सिसकारी भरते हुए वीर्य छोड़ दिया, बड़ी तेजी
से वीर्य मेरे मुख में पिचकारी मारता हुआ छोड़ने लगा। उसका वीर्य तो
निकलता ही गया, इतना वीर्य तो मेरे पति का भी कभी नहीं निकला था। शायद वो
एक जवान लण्ड था सो बहुत सा वीर्य निकला। मैं बड़े चाव से सारा वीर्य
स्वाद ले ले कर निगलती गई।
मुझे लगा कि वास्तव में चुदाई का भरपूर सुख तो मैंने आज ही लिया है। शायद
मन का मीत मेरी इच्छा के अनुसार ही मिला था इसलिये मैंने यह सुख महसूस
किया था।
मेरा और मेरे देवर का इस घटना के बाद प्यार और बढ़ गया था। जब भी घर खाली
होता तो वो बस पागल सा हो जाता था और मुझे चोद डालता था। बस एक बार मैंने
उसे यह लत लगा दी थी और मेरी वासना अपने आप ही रवि शान्त कर देता था। नई
नई जवानी चढ़ी थी भला कभी रुक सकती थी क्या... कुछ ही दिनो में मैं उसकी
जरूरत बन गई थी, मेरे बिना वो बेचैन हो उठता था ...


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हिंदी सेक्सी कहानियाँ हमारी किरायेदार

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

हमारी किरायेदार

प्रेषक : राहुल पटिल
मेरा नाम राहुल है, बीस साल का हूँ, मैं महाराष्ट्र में कोल्हापुर में
रहता हूँ और सांगली के कॉलेज में पढ़ता हूँ। मैं हिंदी सेक्सी कहानियाँ
का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। मैं इसे पिछले एक साल से पढ़ रहा हूँ और जो
कहानी मैं अब आपके सामने ला रहा हूँ वो एक सच्ची कहानी है और कुछ दिन
पहले की ही है।
यह मेरा पहला यौन अनुभव है जिसे मुझे आप सबके साथ बांटने में ख़ुशी होगी।
हमारे घर का ऊपर का माला हमने किराये पर दिया है जिसमें एक खूबसरत आंटी
और उसका पति रहता है, उनकी शादी को कुछ 2-3 साल हुए हैं पर अभी तक उन्हें
कोई बच्चा नहीं है। आंटी बहुत खूबसूरत और सेक्सी हैं।
वो जबसे हमारे यहाँ रहने आये थे तब से ही मुझे उस आंटी के साथ सेक्स करने
की ख्वाहिश थी और मेरी हरकतों से वो यह जान गई थी। उसका बदन ही ऐसा है कि
कोई भी उस पर फ़िदा हो जाये, गोरा बदन, लम्बे बाल बड़े-बड़े भरे हुए स्तन,
वो जब चलती है तो उसकी गांड क्या मस्त दिखती है ! उसका आकार होगा 38"...
जब भी मौका मिलता, मैं उसके बदन को छूता और वो कुछ नहीं कहती थी। ऐसा
बहुत दिन तक चलता रहा। अब मैंने उसके साथ सेक्स करने की योजना बनाई।
एक दिन मेरे घर वाले एक शादी में जाने वाले थे। तब मैंने "मेरी तबीयत
ख़राब है !" यह कह कर जाने को टाल दिया...
जब सब चले गए तो मैं उस आंटी के कमरे में चला गया। उसका पति भी दफ़्तर गया
हुआ था और रात को आठ बजे के बाद आने वाला था। अब पूरे घर में हम अकेले ही
थे। मैंने पहले तो उससे यहाँ-वहाँ की बातें शुरु की, फिर उसके काम में
हाथ बंटाने लगा और इसी बहाने उसे बार-बार छूने लगा और जब मुझे पूरा यकीन
हो गया कि उसे कोई एतराज नहीं है तो मैंने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया।
उसने कहा- यह क्या कर रहे हो?
मैं डर गया लेकिन और थोड़ी हिम्मत कर के मैंने कहा- आज कुछ मत बोलो !
और उसे अपनी तरफ खींच लिया। तब वो मुझसे अलग होने की झूठी कोशिश करने
लगी, फिर मैंने उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूमने लगा। कुछ
देर बाद वो भी गर्म होने लगी और मेरा साथ देने लगी।
फिर मैंने उसकी चुनरी हटा दी और उसके पूरे शरीर पर हाथ फिराने लगा। मैंने
उसकी कमीज़ की ज़िप खोल दी और अन्दर हाथ डालकर उसकी पीठ पर हाथ घुमाने लगा।
फिर मैं उसके गले पर, उसकी पीठ पर चूमता रहा। फिर मैंने उसकी कमीज़ पूरी
उतार दी, जिससे उसका गोरा बदन, उसकी गुलाबी रंग की ब्रा मेरे सामने आ गई।
यह सब देख कर मेरा लंड फटा जा रहा था। फिर मैंने उसके स्तनों को ब्रा के
ऊपर से ही चूसना शुरु किया और अपने हाथों से उसकी ब्रा खोल दी। जैसे ही
मैंने ब्रा खोली, वो दो बड़े-बड़े स्तन छलांग लगा कर मेरे सामने आ गए।
मैंने हल्के से उन्हें अपने हाथों में पकड़ा और जोर से दबा दिया और साथ
मैं अपने दांतों से उसके चुचूकों को काटने लगा, जिसकी वजह से उसकी मुँह
से आह की जोर से आवाज निकली...
फिर बहुत देर तक मैं उसके स्तन चूसता रहा...
फिर मैंने उसकी सलवार निकाल दी, उसने गुलाबी रंग की पैंटी पहनी थी जो अब
आगे से भीग चुकी थी। मैं उसे बिस्तर पर ले गया और अपनी टी-शर्ट और जींस
उतारकर उसके ऊपर आ गया। मैंने उसे बहुत चूमा उसके स्तनों को बहुत चूसा और
नीचे की तरफ बढ़ा...
पहले तो मैंने उसकी पैंटी के आसपास अपनी जीभ घुमाई और फिर पैंटी के ऊपर
जीभ घुमाने लगा। उसे बहुत अच्छा लग रहा था और वो मुँह से आह उम् ऊह्ह की
आवाजें निकाल रही थी।
फिर मैंने अपने दांतों से पकड़ कर उसकी पैंटी निकाल दी और उसकी गीली गोरी
चूत को देख कर पागल हो गया, मैंने अपनी जीभ जैसे ही उसकी चूत पर लगाई
उसने मेरे बालों को खींच कर मुझे अपनी चूत के ऊपर दबा दिया और मुँह से
सेक्सी आवाजें निकालने लगी।
मैंने बहुत बार ब्लू फिल्म में चूत को चाटते हुए देखा है लेकिन तब पहली
बार ऐसा किया ... मैं उसकी चूत को बहुत देर तक चूसता रहा। मैंने अपनी जीभ
उसकी चूत में भी डाली और वो सेक्सी आवाजें निकालती गई...
फिर वो उठ गई और मेरा लंड बाहर निकाला और बिना हाथ लगाये सीधे मुँह में
ले लिया। इतना अच्छा मुझे कभी नहीं लगा था...
वो मेरे लण्ड को मुँह में लेकर वो अपने मुँह को ऊपर नीचे करने लगी ....
यह मेरा पहला ही सेक्स अनुभव था इसलिए दो मिनट में मैंने उसका मुँह अपने
माल से भर दिया और वो उसे ऐसे पी गई जैसे पानी हो...
गजब की बात तो मुझे यह लगी कि मेरा माल निकलने के बाद भी मेरा लंड खड़ा का
खड़ा था और वो उसे चूसे जा रही थी। फिर हम 69 की पोजीशन में आ गए और मैं
उसकी चूत और वो मेरा लंड चूसने लगी और दूसरी बार मेरा माल उसने अपने मुँह
में भर लिया।
उसने कहा- अब मुझसे और सहा नहीं जा रहा, जल्दी से मेरी चूत में अपना लंड डाल दो !
और यह कहते हुए वो बिस्तर पर लेट गई और अपने पैर फैला दिए। उसकी चूत को
देख कर मैं उसके ऊपर आ गया और उसने अपने हाथों से मेरा लंड अपनी चूत पर
रख लिया। फिर मैं अपना लंड उसकी चूत पर थोड़ी देर रगड़ता रहा और अचानक ही
उसकी चूत में घुसा दिया जिससे वो चीख उठी, मेरा अभी आधा लंड ही उसकी चूत
में था, मैंने और जोर लगाया और उसकी चूत में पूरा घुसा दिया, जैसे ही
पूरा अन्दर गया उसने मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गड़ा दिए.. फिर मैं उसे उस
अवस्था में तब तक चोदता रहा जब तक मेरा माल नहीं निकल गया।
उस बीच मैंने उसके होंठों को बहुत चूसा और उसे भी यह बहुत अच्छा लगता था
तो वो मेरा पूरा साथ दे रही थी।
चोदते-चोदते मैं उसके स्तन और चुचूक भी जोर से दबा रहा था लेकिन चुम्बन
की वजह से वो चीख भी नहीं पा रही थी बस मुँह में ही आवाज निकाल रही थी।
कुछ देर बाद वो मुझे जोर से चोदने को कहने लगी तो मुझे पता चल गया कि वो
पानी छोड़ने वाली है।
मैं उसे जोर से चोदता रहा और उसने अपनी सांस रोक कर पानी छोड़ दिया, कुछ
देर बाद मैंने भी अपना माल निकाल दिया।
फिर थोड़ी देर बाद मैंने उसे घोड़ी बनने को कहा और पीछे से उसकी चूत चाटने
लगा। पीछे से उसकी गांड क्या खूब लग रही थी, कुछ देर चूत चाटने के बाद
मैं उसकी गांड भी चाटने लग गया और उसकी गांड गीली कर दी। फिर मैंने अपनी
एक ऊँगली उसके मुँह में चाटने के लिए दी और उसकी गांड में घुसा दी। उसकी
गांड कुँवारी थी तो उसे दर्द होने लगा और वो निकालने के लिए बोलने लगी।
फिर दो मिनट बाद मैंने उंगली निकाल ली और अपना लंड उसकी गांड के ऊपर रख
दिया।
वो मुझे कहने लगी- गांड मत मारो !
लेकिन मैंने उसकी एक नहीं सुनी, कब से मैं उसकी गांड को देख-देख कर मुठ
मारता था और आज मौका मिला तो कैसे जाने देता...
फिर मैंने अपने लंड पर थूक लगाया और उसकी गांड में डालने की कोशिश की,
लेकिन नहीं गया। फिर मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी गांड को बाहर की तरफ
खींच दिया और फिर बहुत जोर से अपने लंड को धक्का दिया। तब सिर्फ आगे का
हिस्सा ही अन्दर गया और वो- आह मर गई इसे बाहर निकालो...आह .... करके
चीखने लगी ...
लेकिन मैंने और एक धक्का दिया तब आधा अन्दर गया और जब तीसरी बार कोशिश की
तो पूरा का पूरा उसकी गांड में फिट बैठ गया... वो बहुत चीख रही थी, उसे
बहुत दर्द भी हो रहा था... फिर मैं थोड़ी देर ऐसे ही चुप रहा और नीचे से
मैंने उसकी चूत में ऊँगली डाल दी और हिलाने लगा। तब उसे थोड़ा अच्छा लगने
लगा।
फिर धीरे धीरे मैं अपने लंड को अन्दर-बाहर करने लगा और उसकी चूत में भी
ऊँगली डालता रहा। कुछ देर बाद उसे भी मजा आने लगा और मैं जोर से उसकी
गांड मारने लगा...
मैं जब उसकी गांड मार रहा था तो उसके स्तन बहुत जोर जोर से हिल रहे थे...
कुछ देर बाद मेरा माल निकलने वाला था तो मैंने अपनी गति बढ़ा दी तो उसे
दर्द होने लगा और वो मुँह से सेक्सी आवाजें निकालने लगी। जिससे मुझे और
अच्छा लग रहा था।
और दो मिनट बाद मैंने अपना सारा माल उसकी गांड में निकाल दिया। जैसे ही
मैंने लंड बाहर निकाला, मेरा माल उसकी गांड के बाहर आने लगा।
उसके बाद हमने आराम किया और कुछ देर बाद मैंने उसकी चूत और गांड फिर से मारी...
यह मेरा पहला सेक्स अनुभव है आपको मेरी कहानी कैसी लगी, यह जरूर बताइए..

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हिंदी सेक्सी कहानियाँ अकेले मज़ा लोगे?

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

अकेले मज़ा लोगे?

प्रेषक : अमित गुप्ता
आप सभी को मेरा यानि अमित का नमस्कार ! मैं आप लोगों को अपनी जिंदगी की
सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ कि कैसे मुझे चूत और गांड मारने का शौक
लगा।
हमारे ही घर में किराएदार रहते थे विक्रम और सुनयना। विक्रम कॉलेज में
पढ़ता था और सुनयना एक कंप्यूटर कंपनी में जॉब करती थी।
बात उन दिनों की है जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था। परीक्षा के लिए
कोचिंग की जरूरत पड़ी तो मैं विक्रम से पढ़ने जाने लगा। दोपहरर के समय
विक्रम अकेला होता था, खाली होता था तो उसने मुझे 3 बजे पढ़ने आने को कहा।
मैं स्कूल से दो बजे आ जाता था तो मैं रोज 3 बजे विक्रम के पास जाने लगा।
कुछ दिन तो ठीक-ठाक गुजरने गए मगर कुछ दिन बाद मुझे लगने लगा कि जैसे वो
जान-बूझ कर मुझसे चिपकता है, मेरे पास आता है, मेरा लण्ड छूने की कोशिश
करता है।
मैं अनदेखा करने लगा मगर एक दिन मुझे नींद आ रही थी, मैं पढ़ते-पढ़ते सोने लगा।
विक्रम ने कहा- क्या हुआ?
मैंने कहा- नींद आ रही है !
उसने कहा- यहीं सो जाओ !
मैं उसके पलंग पर ही सो गया। मैं काफी थका हुआ था तो मुझे नींद आ गई।
सोते-सोते मुझे मस्ती सी छाने लगी, मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि
विक्रम ने मेरी पैंट उतार रखी है और मेरे लण्ड के साथ खेल रहा है, कभी
चूस रहा है, कभी चूम रहा है। मुझे अच्छा लग रहा था, मस्ती छा रही थी।
तभी उसने मेरा पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया, लण्ड उसके गले तक चला
गया और वो उसे ऊपर-नीचे करके चूस रहा था। मेरी मस्ती इतनी बढ़ गई थी कि
मैं कह नहीं सकता। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।तभी मेरा सारा बदन अकड़ने लगा
और मेरे लण्ड से एक पिचकारी की सी छूट गई। मेरा लण्ड विक्रम के मुँह में
था वो मेरे लण्ड का सारा पानी पी गया।
तभी मैं उठ गया, मैंने कहा- आप क्या क़र रहे हो? आपने मुझे नंगा क्यों
किया? मेरे लण्ड से क्या कर रहे थे?
वो मुझे बोलने लगा- किसी से कुछ मत बोलना ! गलती हो गई ! अब ऐसा नहीं
होगा, किसी को पता लगेगा तो मेरे बड़ी बदनामी होगी, किसी से कुछ मत
कहना।मैं अपने घर आ गया, मैंने किसी से कुछ नहीं कहा मगर मुझे बार-बार वो
उसका मेरा लण्ड चूसना याद आ रहा था। मेरा लण्ड खड़ा हो रहा था, मेरा मन कर
रहा था कि वो इसे फिर चूसे !
मैंने न जाने कैसे रात और दिन काटा।
अगले दिन फिर उसके पास तीन बजे गया, वो मेरे सामने हाथ जोड़ कर कहने लगा-
किसी से कुछ मत कहना !
मैंने कहा- एक शर्त है !
वो बोला- क्या ?
मैंने कहा- मेरा लण्ड दोबारा चूसो ! मुझे अच्छा लगा था।
वो खुश हो गया।
मैंने अपनी पैंट उतारी, उसने मेरा लण्ड हाथ में लिया। मेरा लण्ड पहले ही
खड़ा था, उसका हाथ लग कर और तन गया।
उसने पहले लण्ड को चूमा, फ़िर बोला- तुम आराम से बैठ जाओ, मैं इसे प्यार करता हूँ।
वो मेरा लण्ड फिर चूसने लगा। मुझे अच्छा लगने लगा।
उसने फिर चूस-चूस के मेरे लण्ड का पानी निकल दिया और पी गया।
फिर हम दोनों साथ में बातें करने लगे, वो बोला- तुम्हारा लण्ड बहुत
बढ़िया है, कम से कम 8 इंच का होगा। मैंने आज तक ऐसा लण्ड नहीं देखा,
इतना लम्बा और मोटा !
मैंने कहा- सबका ऐसा ही होता होगा?
वो बोला- नहीं, तुम्हारा लण्ड खास है !
फिर उसने अपना लण्ड खोल कर दिखाया। उसका लण्ड मैंने हाथ में लिया, वो
मेरे लण्ड से छोटा और पतला था।
वो बोला- देखा, तुम्हारा लण्ड एकदम मस्त है ! बिल्कुल सही लम्बाई और
मोटाई ! वरना लण्ड या तो मोटे होते है या छोटे ! तुम्हारा लण्ड देखकर तो
मेरी गाण्ड में खुजली होने लगी है। मेरी गाण्ड मारोगे?
मैंने कहा- मैंने कभी नहीं मारी !
वो कहने लगा- मैं सिखा दूँगा, बहुत मज़ा आएगा !
मैंने बोला- ठीक है !
वो बोला- अब तुम लेट जाओ ! मैं करता हूँ।
मैं बिस्तर पर लेट गया, वो पहले तो मेरा लण्ड चूमने लगा, फिर चूसा ! मैं
बार-बार खड़ा हो रहा था तो वो बोला- लेटे रहो !
फिर उसने मेरे को माथे से लेकर चूमना चालू किया, मेरे गालों को, मेरे
होटों को, मेरी गर्दन को, मेरे कानों को, मेरी छाती को, मेरे पूरे बदन पर
उसके हाथ घूमने लगे। वो अपनी छाती मेरे लण्ड के पास रगड़ने लगा मुझे
चूमते हुए !
मुझे एक अजीब सी मस्ती चढ़ रही थी। वो मुझे सर से लेकर पैरों तक न जाने
कितनी बार चूमता रहा मेरे बदन को अपने बदन से रगड़ते हुए !
मुझे जैसे लगने लगा कि मेरा ऐसे ही निकल जायेगा।
उसने मेरा लण्ड फिर मुँह में ले लिया और चूसने लगा।
मैं कहने लगा- ऐसे ही निकालोगे या गाण्ड भी मरवाओगे?
वो बोला- रुको !
फिर वह तेल की शीशी लाया और मेरे लण्ड पर बहुत सारा तेल डाला, उसे चिकना
किया, फिर अपनी गांड में तेल डाला, अपनी गांड को बिल्कुल चिकना कर के
बोला- अब तुम मेरे ऊपर आओ और अपना लण्ड मेरी गांड में डालो !
वो घोड़ी बन गया। मैं उसकी गांड में अपने खड़े हुए लण्ड को डालने लगा मगर
मेरा लण्ड उसकी गांड में जा ही नहीं रहा था।
वो बोला- तुम लेटो ! मैं लेता हूँ।
मैं लेट गया, वो मेरे लण्ड के ऊपर मेरा लण्ड अपनी गांड के छेद पर लगा कर
एकदम नीचे हुआ।
मेरे लण्ड में काफी दर्द हुआ उसके भी ! दर्द की वजह से मेरे आँसू निकल
आये। मेरा लण्ड पूरा उसकी गांड के अंदर था। कुछ देर बैठने के बाद वो
धीरे-धीरे ऊपर नीचे होने लगा। मेरे लण्ड में थोड़ा दर्द हुआ, फिर मज़ा आने
लगा। फिर मैं भी उसकी गांड में धक्के लगाने लगा।
वो बोला- और जोर से ! और जोर से !
मैं तेज तेज उसकी गांड मारने लगा। फिर एकदम मेरा सारा बदन अकड़ा और मेरा
माल उसकी गांड में निकल गया।
वो भी थक चुका था। मैंने अपना लण्ड उसकी गांड से निकाला, उसने मुँह में
लेकर मेरा लण्ड साफ किया। फिर हम कुछ देर तक वहीं पड़े रहे।
वो बोला- आज मज़ा आ गया ! ऐसा लण्ड आज तक नहीं मिला !
फिर मैं अपने कपड़े पहन कर घर आ गया।
अब तो रोज मैं उसकी गांड मारने लगा। मगर एक दिन उसकी बीवी सुनयना जल्दी
घर आ गई, उसने मुझे उसकी गांड मारते देख लिया और कमरे आ गई।
हम दोनों बिल्कुल नंगे थे, मेरा लण्ड तना हुआ था।
उसने मेरा लण्ड पकड़ा, बोली- बहुत अच्छा लण्ड है !
और विक्रम से बोली- तुम अकेले ही ऐसे प्यारे लण्ड का मज़ा लोगे? मुझे भूल जाओगे?
और वो मेरा लण्ड चूसने लगी।
यह कहानी अगली बार !
मेरी सच्ची कहानी कैसी लगी? बताना मुझे !

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हिंदी सेक्सी कहानियाँ अकेली मत रहियो

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

अकेली मत रहियो

लेखिका : यशोदा पाठक
मेरी यह कहानी, मात्र कहानी ही है। आदरणीया नेहा दीदी (वर्मा) ने इसमे
कुछ संशोधन किया है और इसे आपके सामने सजा-संवार कर प्रस्तुत किया है,
मैं दीदी की दिल से आभारी हूँ।
मेरे पति एक सफ़ल व्यापारी हैं। अपने पापा के कारोबार को इन्होंने बहुत
आगे बढ़ा दिया है। घर पर बस हम तीन व्यक्ति ही थे, मेरी सास, मेरे पति और
और मैं स्वयं। घर उन्होंने बहुत बड़ा बना लिया है। पुराने मुहल्ले में
हमारा मकान बिल्कुल ही वैसे ही लगता था जैसे कि टाट में मखमल का पैबन्द !
हमारे मकान भी आपस में एक दूसरे से मिले हुए हैं।
दिन भर मैं घर पर अकेली रहती थी। यह तो आम बात है कि खाली दिमाग शैतान का
घर होता है। औरों की भांति मैं भी अपने कमरे में अधिकतर इन्टर्नेट पर
ब्ल्यू फ़िल्में देखा करती थी। कभी मन होता तो अपने पति से कह कर सीडी भी
मंगा लेती थी। पर दिन भर वासना के नशे में रहने के बाद चुदवाती अपने पति
से ही थी। वासना में तड़पता मेरा जवान शरीर पति से नुचवा कर और साधारण से
लण्ड से चुदवा कर मैं शान्त हो जाती थी।
पर कब तक... !!
मेरे पति भी इस रोज-रोज की चोदा-चोदी से परेशान हो गए थे... या शायद उनका
काम बढ़ गया था, वो रात को भी काम में रहते थे। मैं रात को चुदाई ना होने
से तड़प सी जाती थी और फिर बिस्तर पर लोट लगा कर, अंगुली चूत में घुसा कर
किसी तरह से अपने आप को बहला लेती थी। मेरी ऐशो-आराम की जिन्दगी से मैं
कुछ मोटी भी हो गई थी। चुदाई कम होने के कारण अब मेरी निगाहें घर से बाहर
भी उठने लगी थी।
मेरा पहला शिकार बना मोनू !!!
बस वही एक था जो मुझे बड़े प्यार से छुप-छुप के देखता रहता था और डर के
मारे मुझे दीदी कहता था।
मुझे बरसात में नहाना बहुत अच्छा लगता है। जब भी बरसात होती तो मैं अपनी
पेन्टी उतार कर और ब्रा एक तरफ़ फ़ेंक कर छत पर नहाने चली जाती थी। सामने
पड़ोस के घर में ऊपर वाला कमरा बन्द ही रहता था। वहाँ मोनू नाम का एक जवान
लड़का पढ़ाई करता था। शाम को अक्सर वो मुझसे बात भी करता था। चूंकि मेरे
स्तन भारी थे और बड़े बड़े भी थे सो उसकी नजर अधिकतर मेरे स्तनों पर ही
टिकी रहती थी। मेरे चूतड़ जो अब कुछ भारी से हो चुके थे और गदराए हुए भी
थे, वो भी उसे शायद बहुत भाते थे। वो बड़ी प्यासी निगाहों से मेरे अंगों
को निहारता रहता था। मैं भी यदा-कदा उसे देख कर मुस्करा देती थी।
मैं जब भी सुखाए हुए कपड़े ऊपर तार से समेटने आती तो वो किसी ना किसी
बहाने मुझे रोक ही लेता था। मैं मन ही मन सब समझती थी कि उसके मन में
क्या चल रहा है?
मैंने खिड़की से झांक कर देखा, आसमान पर काले काले बादल उमड़ रहे थे। मेरे
मन का मयूर नाच उठा यानि बरसात होने वाली थी। मैं तुरन्त अपनी पेण्टी और
ब्रा उतार कर नहाने को तैयार हो गई। तभी ख्याल आया कि कपड़े तो ऊपर छत पर
सूख रहे हैं। मैं जल्दी से छत पर गई और कपड़े समेटने लगी।
तभी मोनू ने आवाज दी,"दीदी, बरसात आने वाली है ..."
"हाँ, जोर की आयेगी देखना, नहायेगा क्या ?" मैंने उसे हंस कर कहा।
"नहीं, दीदी, बरसात में डर लगता है..."
"अरे पानी से क्या डरना, मजा आयेगा." मैंने उसे देख कर उसे लालच दिया।
कुछ ही पलों में बूंदा-बांदी चालू हो गई। मैंने समेटे हुए कपड़े सीढ़ियों
पर ही डाल दिए और फिर से बाहर आ गई। मोटी मोटी बून्दें गिर रही थी। हवा
मेरे पेटीकोट में घुस कर मुझे रोमांचित कर रही थी। मेरी चूत को इस हवा का
मधुर सा अहसास सा हो रहा था। लो कट ब्लाऊज में मेरे थोड़े से बाहर झांकते
हुए स्तनों पर बूंदें गिर कर मुझे मदहोश बनाने में लगी थी। जैसे पानी
नहीं अंगारे गिर रहे हो। बरसात तेज होने लगी थी।
मैं बाहर पड़े एक स्टूल पर नहाने बैठ गई। मैं लगभग पूरी भीग चुकी थी और
हाथों से चेहरे का पानी बार बार हटा रही थी। मोनू मंत्रमुग्ध सा मुझे
आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर देख रहा था। मेरे उभरे हुए कट गीले कपड़ों में से शरीर के
साथ नजारा मार रहे थे। मोनू का पजामा भी उसके भीगे हुए शरीर से चिपक गया
था और उसके लटके हुए और कुछ उठे हुए लण्ड की आकृति स्पष्ट सी दिखाई दे
रही थी। मेरी दृष्टि ज्यों ही मोनू पर गई, मैं हंस पड़ी।
"तू तो पूरा भीग गया है रे, देख तेरा पजामा कैसे चिपक गया है?" मैं मोनू
की ओर बढ़ गई।
"दीदी, वो... वो... अपके कपड़े भी तो कैसे चिपके हुए हैं..." मोनू भी
झिझकते हुए बोला।
मुझे एकदम एहसास हुआ कि मेरे कपड़े भी तो ... मेरी नजरें जैसे ही अपने बदन
पर गई। मैं तो बोखला गई। मेरा तो एक एक अंग साफ़ ही दृष्टिगोचर हो रहा था।
सफ़ेद ब्लाऊज और सफ़ेद पेटीकोट तो जैसे बिलकुल पारदर्शी हो गए थे। मुझे लगा
कि मैं नंगी खड़ी हूँ।
"मोनू, इधर मत देख, मुझे तो बहुत शरम आ रही है।" मैंने बगलें झांकते हुए कहा।
उसने अपनी कमीज उतारी और कूद कर मेरी छत पर आ गया। अपनी शर्ट मेरी छाती पर डाल दी।
"दीदी, छुपा लो, वर्ना किसी की नजर लग जायेगी।"
मेरी नजरें तो शरम से झुकी जा रही थी। पीछे घूमने में भी डर लग रहा था कि
मेरे सुडौल चूतड़ भी उसे दिख जायेंगे।
"तुम तो अपनी अपनी आँखें बन्द करो ना...!!" मुझे अपनी हालत पर बहुत लज्जा
आने लगी थी। पर मोनू तो मुझे अब भी मेरे एक एक अंग को गहराई से देख रहा
था।
"कोई फ़ायदा नहीं है दीदी, ये तो सब मेरी आँखों में और मन में बस गया है।"
उसका वासनायुक्त स्वर जैसे दूर से आता हुआ सुनाई दिया। अचानक मेरी नजर
उसके पजामे पर पड़ी। उसका लण्ड उठान पर था। मेरे भी मन का शैतान जाग उठा।
उसकी वासना से भरी नजरें मेरे दिल में भी उफ़ान पैदा करने लगी। मैंने अपनी
बड़ी बड़ी गुलाबी नजरें उसके चेहरे पर गड़ा दी। उसके चेहरे पर शरारत के भाव
स्पष्ट नजर आ रहे थे। मेरा यूँ देखना उसे घायल कर गया। मेरा दिल मचल उठा,
मुझे लगा कि मेरा जादू मोनू पर अनजाने में चल गया है।
मैंने शरारत से एक जलवा और बिखेरा ..."लो ये अपनी कमीज, जब देख ही लिया
है तो अब क्या है, मैं जाती हूँ।" मेरे सुन्दर पृष्ट उभारों को उसकी नजर
ने देख ही लिया। मैं ज्योंही मुड़ी, मोनू के मुख से एक आह निकल गई।
मैंने भी शरारत से मुड़ कर उसे देखा और हंस दी। उसकी नजरें मेरे चूतड़ों को
बड़ी ही बेताबी से घूर रही थी। उसका लण्ड कड़े डन्डे की भांति तन गया था।
उसने मुझे खुद के लण्ड की तरफ़ देखता पाया तो उसने शरारतवश अपने लण्ड को
हाथ से मसल दिया।
मुझे और जोर से हंसी आ गई। मेरे चेहरे पर हंसी देख कर शायद उसने सोचा
होगा कि हंसी तो फ़ंसी... उसने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ा दिये। बरसात और तेज
हो चुकी थी। मैं जैसे शावर के नीचे खड़ी होकर नहा रही हूँ ऐसा लग रहा था।
उसने अपना हाथ ज्यों ही मेरी तरफ़ बढाया, मैंने उसे रोक दिया,"अरे यह क्या
कर रहे हो ... हाथ दूर रखो... क्या इरादा है?" मैं फिर से जान कर खिलखिला
उठी।
मैं मुड़ कर दो कदम ही गई थी कि उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच लिया।
"नहीं मोनू नहीं ... " उसके मर्द वाले हाथों की कसावट से सिहर उठी।
"दीदी, देखो ना कैसी बरसात हो रही है ... ऐसे में..." उसके कठोर लण्ड के
चुभन का अहसास मेरे नितम्बों पर होने लगा था। उसके हाथ मेरे पेट पर आ गये
और मेरे छोटे से ब्लाऊज के इर्द गिर्द सहलाने लगे। मुझे जैसे तेज
वासनायुक्त कंपन होने लगी। तभी उसके तने हुआ लण्ड ने मेरी पिछाड़ी पर
दस्तक दी। मैं मचल कर अपने आप को इस तरह छुड़ाने लगी कि उसके मर्दाने लण्ड
की रगड़ मेरे चूतड़ों पर अच्छे से हो जाये। मैं उससे छूट कर सामने की दीवार
से चिपक कर उल्टी खड़ी हो गई, शायद इस इन्तज़ार में कि मोनू मेरी पीठ से
अभी आकर चिपक जायेगा और अपने लण्ड को मेरी चूतड़ की दरार में दबा कर मुझे
स्वर्ग में पहुँचा देगा !
पर नहीं ... ! वो मेरे पास आया और मेरे चूतड़ों को निहारा और एक ठण्डी आह
भरते हुए अपने दोनों हाथों से मेरे नंगे से चूतड़ो की गोलाइयों को अपने
हाथो में भर लिया। मेरे दोनों नरम चूतड़ दब गये, मोनू की आहें भी निकलने
लगी, मेरे मुख से भी सिसकारी निकल गई। वो चूतड़ों को जोर जोर से दबाता चला
गया। मेरे शरीर में एक मीठी सी गुदगुदी भरने लगी।
"मोनू, बस कर ना, कोई देख लेगा ..." मेरी सांसें तेज होने लगी थी।
"दीदी, सीधे से कहो ना, छिप कर करें !" उसके शरारती स्वर ने मुझे लजा ही दिया।
"धत्त, बहुत शरीर हो... अपनी दीदी के साथ भी ऐसा कोई करता है भला ?"
लजाते हुए मैंने कहा।
"कौन सी वास्तव में तुम मेरी दीदी हो, तुम तो एटम-बम्ब हो" मोनू ने अपने
दिल की बात निकाली।
मैंने उसे धीरे से दूर कर दिया। दीवार के पास पानी भी कम गिर रहा था। मैं
फिर से बरसात में आ गई। तेज बरसात में आस पास के मकान भी नहीं नजर आ रहे
थे। मेरी चूत में मोनू ने आग लगा दी थी। अचानक मोनू ने मुझे कस कर अपनी
ओर खींच लिया और अपना चेहरा मेरे नजदीक ले आया। मैं निश्चल सी हो गई और
उसकी आँखों में झांकने लगी। कुछ झुकी हुई, कुछ लजाती आंखें उसे मदहोश कर
रही थी। उसके होंठ मेरे लरजते हुए भीगे होठों से छू गये, कोमल पत्तियों
से मेरे होठ थरथरा गये, कांपते होंठ आपस में जुड़ गए। मैंने अपने आप को
मोनू के हवाले कर दिया। मेरे भीगे हुए स्तनों पर उसके हाथ आ गए और मेरे
मुख से एक सिसकारी निकल पड़ी। मैं शरम के मारे सिमट सी गई।
मेरे सीने को उसने दबा दबा कर मसलना जारी रखा। मैं शरम के मारे उससे छुड़ा
कर नीचे बैठने का प्रयास करने लगी। जैसे ही मैं कुछ नीचे बैठ सी गई कि
मोनू का कड़कता लण्ड मेरे मुख से आ लगा। आह, कैसा प्यारा सा भीगा हुआ
लण्ड, एकदम कड़क, सीधा तना हुआ, मेरे मुख में जाने को तैयार था। पर मैंने
शरम से अपनी आँखें बंद कर ली ... और ... और नीचे झुक गई।
मोनू ने मेरे कंधे पकड़ कर मुझे सीधे नीचे चिकनी जमीन पर लेटा दिया और
अपने पजामे को नीचे खिसका कर अपना तन्नाया हुआ लण्ड मेरे मुख पर दबा
दिया। मैंने थोड़ा सा नखरा दिखाया और अपना मुख खोल दिया। बरसात के पानी से
भीगी हुई उसकी लाल रसीली टोपी को मैंने एक बार जीभ निकाल कर चाट लिया।
उसने अपने हाथ से लण्ड पकड़ा और दो तीन बार उसे मेरे चेहरे पर मारा और लाल
टोपी को मेरे मुख में घुसेड़ दिया। उसका गरम जलता हुआ लण्ड मेरे मुख में
प्रवेश कर गया। पहले तो मुझे उसका भीगा हुआ लण्ड बड़ा रसदार लगा फिर उसका
लाल सुपारा मैंने अपने मुख में दबा लिया। उसके गोल लाल छल्ले को मैंने
जीभ और होंठों से दबा दबा कर चूसा।
हाँ जी, लण्ड चूसने में तो मैं अभ्यस्त थी, गाण्ड मराने के पूर्व मैं
अपने पति के लण्ड को चूस चूस कर इतना कठोर कर देती थी कि वो लोहे की छड़
की भांति कड़ा हो जाता था।
अब बरसात के साथ साथ तेज हवा भी चल निकली थी। इन हवाओं से मुझे बार बार
तीखी ठण्डी सी लगने लगी थी। शायद उसे भी ठण्ड के मारे कंपकंपी सी छूट रही
थी।
"दीदी, चलो अन्दर चलें... " वो जल्दी से खड़ा हो गया और मेरा भारी बदन
उसने अपनी बाहों में उठा लिया। उसने जवान वासना भरे शरीर में अभी गजब की
ताकत आ गई थी।
"अरे रे ... गिरायेगा क्या... चल उतार मुझे..." मैं घबरा सी गई।
उसने धीरे से मुझे उतार दिया और दीवार फ़ांद गया। मैंने भी उसके पीछे पीछे
दीवार कूद गई। मोनू ने अपना कमरा जल्दी से खोल दिया। हम दोनों उसमे समा
गये। मैंने अपने आप को देखा फिर मोनू को देखा और मेरी हंसी फ़ूट पड़ी। हम
दोनों का क्या हाल हो रहा था। उसका खड़ा हुआ पजामे में से निकला हुआ लण्ड,
मेरा अध खुला ब्लाऊज... पेटीकोट आधा उतरा हुआ... मोनू तो मुझे देख देख कर
बेहाल हो रहा था। मैं अपना बदन छिपाने का भरकस प्रयत्न कर रही थी, पर
क्या क्या छुपाती। उसने मेरे नीचे सरके हुए गीले पेटीकोट को नीचे खींच
दिया और मेरी पीठ से चिपक गया। मेरे पृष्ट भाग के दोनों गोलों के मध्य
दरार में उसने अपना लण्ड जैसे ठूंस सा दिया। यही तो मैं भी चाहती थी ...
उसका मदमस्त लण्ड मेरी गाण्ड के छेद पर जम कर दबाव डाल रहा था।
मैं अपनी गाण्ड के छेद को ढीला छोड़ने की कोशिश करने लगी और उसके हेयर ऑयल
की शीशी उसे थमा दी। उसे समझ में आ गया और मेरी गीली गाण्ड को चीर कर
उसमे वो तेल भर दिया। अब उसने दुबारा अपना लाल टोपा मेरे चूतड़ों की दरार
में घुसा डाला।
"मोनू... हाय रे दूर हट ... मुझे मार डालेगा क्या ?" मैंने उसका लण्ड
अपनी गाण्ड में सेट करते हुए कहा।
"बस दीदी, मुझे मार लेने दे तेरी... साली ने बहुत तड़पाया है मुझे !"
उसने मुझे अपने बिस्तर पर गिरा दिया और मेरी पीठ के ऊपर चढ़ गया। उसका
लण्ड गाण्ड के काले भूरे छेद पर जम कर जोर लगाने लगा। मैंने अपनी गाण्ड
ढीली कर दी और लण्ड को घुसने दिया।
"किसने तड़पाया है तुझे..." मैंने उसे छेड़ा।
"तेरी इस प्यारी सी, गोल गोल सी गाण्ड ने ... अब जी भर कर इसे चोद लेने दे।"
उसका लण्ड मेरी गाण्ड में घुस गया और अन्दर घुसता ही चला गया। मुझे उसके
लण्ड का मजा आने लगा। उसने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और एक जोर के
धक्के से पूरा फ़िट कर दिया। मुझे दर्द सा हुआ, पर चिकना लण्ड खाने का मजा
अधिक था।
"साली को मचक मचक के चोदूंगा ... गाण्ड फ़ाड़ डालूंगा ... आह्ह ... दीदी तू
भी क्या चीज़ है... " वो मेरी पीठ से चिपक कर लण्ड का पूरा जोर लगा रहा
था। एक बार लण्ड गाण्ड में सेट हो गया फिर धीरे धीरे उसके धक्के चल पड़े।
उसके हाथों ने मेरी भारी सी चूचियों को थाम लिया। कभी वो मेरे कड़े चुचूक
मसलता और कभी वो पूरे संतरों को दबा कर मसल देता था।
मेरी गाण्ड में भी मिठास सी भरने लगी थी। मैंने अपनी टांगे और फ़ैला ली
थी। वो भरपूर जोर लगा कर मेरी गाण्ड चोदे जा रहा था। मुझे बहुत मजा आने
लगा था। मुझे लगा कि कहीं मैं झड़ ना जाऊँ ...
"जरा धीरे कर ना ... फ़ट जायेगी ना ... बस बहुत मार ली ... अब हट ऊपर से !"
"दीदी, नहीं हटूंगा, इसकी तो मैं मां चोद दूंगा ..." उसकी आहें बढ़ती जा
रही थी। तभी उसने लण्ड गाण्ड से बाहर निकाल लिया।
"आह्ह्ह क्या हुआ मोनू ... मार ना मेरी ..."
"तेरी भोसड़ी कौन चोदेगा फिर ... चल सीधी हो जा।" उसकी गालियाँ उसका
उतावलापन दर्शाने लगी थी। मैं जल्दी से सीधी हो गई। मुझे मेरी गाण्ड में
लण्ड के बिना खाली खाली सा लगने लगा था। मोनू की आँखें वासना से गुलाबी
हो गई थी। मेरा भी हाल कुछ कुछ वैसा ही था। मैंने अपने पांव पसार दिए और
अपनी चूत बेशर्मी से खोल दी। मोनू मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरे शरीर पर अपना
भार डाल दिया, मेरे अधरों से अपने अधर मिला दिये, नीचे लण्ड को मेरी चूत
पर घुसाने का यत्न करने लगा।
मेरे स्तन उसकी छाती से भिंच गये। उसका तेलयुक्त लण्ड मेरी चूत के आस पास
फ़िसल रहा था। मैं अपनी चूत भी उसके निशाने पर लाने यत्न कर रही थी। उसने
मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से सहलाया और मेरी आँखों में देखा।
"दीदी, तू बहुत प्यारी है ... अब तक तेरी चुदाई क्यूँ नहीं की..."
"मोनू, हाय रे ... तुझे देख कर मैं कितना तड़प जाती थी ... तूने कभी कोई
इशारा भी नहीं किया ... और मेरा इशारा तो तू समझता ही नहीं..."
"दीदी, ना रे ...तूने कभी भी इशारा नहीं किया ... वर्ना अब तक जाने कितनी
बार चुदाई कर चुके होते।"
"बुद्धू राम, ओह्ह्... अब चोद ले, आह घुसा ना... आईईईई मर गई ... धीरे से
... लग जायेगी।"
उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में उतर चुका था। शरीर में एक वासना भरी मीठी सी
उत्तेजना भरने लगी। वो लण्ड पूरा घुसाने में लगा था और मैं अपनी चूत उठा
कर उसे पूरा निगल लेना चाह रही थी। हम दोनों के अधर फिर से मिल गए और इस
जहां से दूर स्वर्ग में विचरण करने लगे। उसके शरीर का भार मुझे फ़ूलों
जैसा लग रहा था। वो कमर अब तेजी से मेरी चूत पर पटक रहा था। उसकी गति के
बराबर मेरी चूत भी उसका साथ दे रही थी। कैसा सुहाना सा मधुर आनन्द आ रहा
था।
आनन्द के मारे मेरी आँखें बंद हो गई और टांगें पसारे जाने कितनी देर तक
चुदती रही। उसके मर्दाने हाथ मेरे उभारों को बड़े प्यार से दबा रहे थे,
सहला रहे थे, मेरे तन में वासना का मीठा मीठा जहर भर भर रहे थे। सारा
शरीर मेरा उत्तेजना से भर चुका था। मेरा एक एक अंग मधुर टीस से लौकने लगा
था। यूँ लग रहा था काश मुझे दस बारह मर्द आकर चोद जाएँ और मेरे इस जहर को
उतार दें। अब समय आ गया था मेरे चरम बिन्दु पर पहुंचने का। मेरे शरीर में
ऐठन सी होने लगी थी। तेज मीठी सी गुदगुदी ने मुझे आत्मविभोर कर दिया था।
सारा जहां मेरी चूत में सिमट रहा था। तभी जैसे मेरी बड़ी बड़ी आँखें उबल सी
पड़ी ... मैं अपने आपको सम्भाल नहीं पाई और जोर से स्खलित होने लगी। मेरा
रज छूट गया था ... मैं झड़ने लगी थी।
तभी मोनू भी एक सीत्कार के साथ झड़ने को हो गया,"दीदी मैं तो गया..." उसकी
उखड़ी हुई सांसें उसका हाल दर्शा रही थी।
"बाहर निकाल अपना लण्ड ... जल्दी कर ना..." मैंने उसे अपनी ओर दबाते हुए कहा।
उसने ज्यों ही अपना लौड़ा बाहर निकाला ... उसके लण्ड से एक तेज धार निकल पड़ी।
"ये... ये ... हुई ना बात ... साला सही मर्द है ... निकला ना ढेर सारा..."
"आह ... उफ़्फ़्फ़्फ़्... तेरी तो ... मर गया तेरी मां की चूत ... एह्ह्ह्ह्ह्ह"
"पूरा निकाल दे ... ला मैं निचोड़ दूँ ..." मैंने उसके लण्ड को गाय का दूध
निकालने की तरह दुह कर उसके वीर्य की एक एक बूंद बाहर निकाल दी। बाहर का
वातावरण शान्त हो चुका था। तेज हवाएँ बादल को उड़ा कर ले गई थी। अब शान्त
और मधुर हवा चल रही थी।
"अरे कहां चली जाती है बहू ... कितनी देर से आवाज लगा रही हूँ !"
"अरे नहा कर आ रही हूँ माता जी ..." हड़बड़ाहट में जल्दी से पानी डाल कर
अपने बदन पर एक बड़ा सा तौलिया लपेट कर नीचे आ गई।
मेरी सास ने मुझे आँखें फ़ाड़ कर ऊपर से नीचे तक शक की निगाहों से देखा और
बड़बड़ाने लगी,"जरा देखो तो इसे, जवानी तो देखो इसी मुई पर आई हुई है ?"
"जब देखो तब बड़बड़ाती रहती हो, बोलो क्या काम है, यूँ तो होता नहीं कि
चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रहो, बस जरा जरा सी बात पर...।"
सास बहू की रोज रोज वाली खिच-खिच आरम्भ हो चुकी थी ... पर मेरा ध्यान तो
मोनू पर था। हाय, क्या भरा पूरा मुस्टण्डा था, साले का लण्ड खाने का मजा
आ गया। जवानी तो उस पर टूट कर आई थी। भरी वर्षा में उसकी चुदाई मुझे आज
तक याद आती है। काश आज पचास की उमर में भी ऐसा ही कोई हरा भरा जवान आ कर
मुझे मस्त चोद डाले ... मेरे मन की आग बुझा दे ...
आपकी यशोदा पाठक

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हिंदी सेक्सी कहानियाँ यौन क्षुधा

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

यौन क्षुधा

लेखिका : रीता शर्मा
अकेलापन भी कितना अजीब होता है। कोई साथ हो ना हो, पुरानी यादें तो साथ
रहती ही हैं। मैं छुट्टियों में गांव में दादा-दादी के पास आ गई थी। वो
दोनों मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरे आने से उन दोनों का अकेलापन भी दूर
हो जाता था। पड़ोसी का जवान लड़का भूरा भी मेरी नींद उड़ाये रखता था। ऐसा
नहीं था कि मैंने अपनी जिन्दगी में वो पहला लड़का देखा था। मैंने तो
बहुतों के लण्ड का आनन्द पाया था। पर ये भूरा लाल, वो मुझे जरा भी लिफ़्ट
नहीं देता था। आज शाम को फ़िजां में थोड़ी ठण्डक हो गई। मैं अपना छोटा सा
कुर्ता पहन कर छत पर आ गई। ऊपर ही मैंने ब्रा और चड्डी दोनों उतार दी और
एक तरफ़ रख दी।
मेरी टांगों के बीच ठण्डी हवा के झोंके टकराने लगे। जैसे ही हवा ने मेरी
चूत को सहलाया मुझे आनन्द सा आने लगा। मेरा हाथ स्वतः ही चूत पर आ गया और
अपनी बड़ी बड़ी झांटों के मध्य अपनी चूत को सहलाने लगी। कभी कभी जोश में
झांटो को खींच भी देती थी। मैंने सतर्कता से यहाँ-वहाँ देखा, शाम के गहरे
धुंधलके में आस-पास कोई नहीं था। शाम गहरा गई थी, अंधेरा बढ़ गया था। मैं
पास पड़ी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गई और हौले हौले अपनी योनि को सहलाने
लगी, मेरा दाना कड़ा होने लगा था। मैंने अपना कुर्ता ऊपर कर लिया था और
झांटों को हटा कर चूत खोल कर उसे धीरे धीरे सहला रही थी, दबा रही थी।
मेरी आंखें मस्ती से बन्द हो रही थी। अचानक भूरा आया और मेरी टांगों के
पास बैठ गया। उसने मेरे दोनों हाथ हटाये और अपने दोनों हाथों की
अंगुलियों से मेरी चूत के पट खोल दिये। मुझे एक मीठी सी झुरझुरी आ गई।
उसकी लम्बी जीभ ने मेरी चूत को नीचे से ऊपर तक चाट लिया। फिर मेरी झांटें
खींच कर अपने मुख को योनि द्वार से चिपका लिया। मेरी जांघों में कंपकंपी
सी आने लगी। पर उसकी जीभ मेरी चूत में लण्ड की तरह घुस गई। मेरे मुख से
आह निकल पड़ी। वो मेरी झांटे खींच खींच कर मेरी चूत पीने लगा। मैंने भूरा
के बाल पकड़ कर हटाने की कोशिश की पर बहुत अधिक गुदगुदी के कारण मेरे मुख
से चीख निकल गई।
तभी मेरी तन्द्रा जैसे टूट गई। मेरे हाथों में उसके सर बाल की जगह मेरी
झांटें थी। मैंने जल्दी से इधर उधर देखा, ओह कैसा अनुभव था ! मैं अपने पर
मुस्करा उठी और आश्वस्त हो कर बैठ गई।
चूत में मची हलचल के कारण मेरा शरीर बल सा खाने लगा। मेरी झांटें मेरे
चूत के रस से गीली हो गई थी। मैंने अपने उरोजों पर नजर डाली और उसकी
घुण्डियों को मल दिया। मेरी चूत में एक मीठी सी टीस उठी। मैं जल्दी से
उठी और झट के एक दीवार की ओट में नीचे उकड़ू बैठ गई और अपनी टांगें चीर कर
अपनी योनि को सहलाने लगी। फिर अपने सख्त होते दाने को सहला कर अपनी एक
अंगुली धीरे से चूत के अन्दर सरका ली।
"दीदी , मजा आ रहा है ना…" भूरा पास में खड़ा हंस रहा था।
"तू … ओह … कब आया … देख किसी को कहना मत…" मैं एकाएक बौखला उठी।
"यह भी कोई कहने की चीज है … मुठ मारने में बहुत मजा आता है ना?" वो शरारत से बोला।
"तुझे मालूम है तो पूछता क्यूँ है … तुझे मुठ मारना है तो यहीं बैठ जा।"
मैंने उसे प्रोत्साहित किया।
"सच दीदी, आपके पास मुठ मारने में तो बहुत मजा आयेगा … आप भी मेरे लण्ड
परदो हाथ मार देना।" उसने अपने पजामे में से अपना लौड़ा हिलाते हुये कहा।
"चल आजा … निकाल अपना लौड़ा …यूं इसे हिला क्या रहा है?" मैंने मुस्कराते हुये कहा।
भूरा अपना पजामा उतार कर मेरे पास ही बैठ गया और लण्ड को हाथ में लेकर
हिला-हिला कर मुठ मारने लगा। उसे देख कर मुझे अति संवेदना होने लगी, मुझे
भी हस्त मैथुन करने में अधिक मजा आने लगा। भूरा तो मेरी चूत देख देख कर
जोर-जोर से हाथ चलाने लगा। तभी उसके लण्ड से एक तेज पिचकारी उछल पड़ी और
उसका वीर्य हवा में लहरा उठा। मेरे शरीर ने भी थोड़ा सा बल खाया और मेरा
पानी भी निकल पड़ा।
"भूरा … भूरा … आह मैं तो गई … साली चूत ने रस निकाल दिया।" मैं आह भरती झड़ने लगी।
मैंने अपनी आंखे खोल कर भूरा को निहारा … पर वहाँ अंधेरे के अलावा कुछ भी
नहीं था। मैं अपनी सोच पर फिर से झेंप कर मुस्करा पड़ी। मैं झड़ कर उठ खड़ी
हुई। फिर से एक बार कुर्सी पर बैठ गई।
तभी दादी ने मुझे पुकारा। मेरे विचारो की श्रृंखला भंग हो गई। मैंने
फ़ुर्ती से अपनी ब्रा और चड्डी ली और नीचे भाग आई। दादी ने मेरे हाथ ब्रा
और चड्डी देखी तो मुस्करा पड़ी। फिर दादी भोजन की थाली रख कर सोने चली गई
थी। मैं भी भोजन करके अपने कमरे में आ गई।
रात को लेटे लेटे मुझे फिर भूरा के ख्यालों ने आ घेरा। मेरी चुदाई को
काफ़ी महीने गुजर गये थे सो पल पल में मेरी योनि में कुलबुलाहट होने लगती
थी। कैसा होता यदि भूरा मेरे पास होता और अपना लण्ड मेरे मुख में डाल कर
मुझे चुसाता। ऊह ! साले लड़के तो मुख ही चोद डालते है। वो विनोद ! मैंने
उसे क्या लिफ़्ट दे दी कि मेरी गाण्ड से चिपक कर कुत्ते की तरह कमर चलाने
लगा। सोच सोच कर मुझे हंसी आने लगी।
"दीदी, अब हंसना बन्द करो और मेरा ये लण्ड अपने मुख में लॉलीपॉप की तरह
चूस डालो।" भूरा मुझे घूर घूर कर देख रहा था। उसका मोटा लण्ड उसके हाथों
में हिला रहा था।
"चल हट, बेशरम … ऐसे भी कोई लण्ड को मुख आगे हिलाता है।" मैंने उसे दूर
करते हुये कहा।
"प्लीज, अपना योनि जैसा मुख खोलो ना… आह … हाँ, यह हुई ना बात।" मेरा मुख
बरबस ही अपने आप खुल गया।
उसके मुख से आह निकल गई। मेरे मुख में उसका मोटा लण्ड इधर उधर घूम रहा
था। तभी मैंने उसके लौड़े की चमड़ी खोल कर पीछे खींच दी, आह … लाल सुर्ख
सुपारा !
मेरा मन मचल गया … उसके छल्ले को मैंने कस कस कर चूस लिया।
"दीदी, ज्यादा नहीं, निकल जायेगा …" वो आनन्द से मचलता हुआ बोला।
"इतना मस्त सुपारा … चल मेरी चूत में इसे घुसेड़ कर मुझे मस्त कर दे।"
मेरी चूत अब रतिरस से सराबोर होने लगी थी।
उसने तुरन्त मेरी टांगों के बीच में आकर उन्हें ऊपर उठा दिया। इतना ऊपर
कि मेरी गाण्ड की गोलाईयाँ तक भी ऊपर उठ गई। तभी आशा के विपरीत उसने मेरी
गाण्ड में लण्ड घुसा डाला। लण्ड बिना किसी तकलीफ़ के असीम आनन्द देता हुआ
सरसराता हुआ गाण्ड में घुस गया।
"ओह … भूरा… मार दी मेरी गाण्ड … अच्छा चल … शुरू हो जा !" मैं आनन्द से
लबरेज हो कर मचल पड़ी।
"दीदी सच कहूँ, सारा रस तो तेरे चूतड़ों की गोलाईयों में ही तो है … मेरा
मन इन्हें मटकते देख कर मचल जाता है और लगता है कि बस अब तेरी गाण्ड चोद
दूं।"
उसकी सारी आसक्ति मेरे चूतड़ों की सुन्दरता पर थी, जिसे देख कर उसका लण्ड
फ़ड़क उठता था।
मैं हंस पड़ी … " भूरा, मस्ती से चोद दे … मुझे भी मजा आ रहा है…"
मेरी गाण्ड चोदते चोदते उसने अब मेरी चूत को सहला कर धीरे से उसमें लण्ड
घुसा दिया। मेरी चूत जैसे सुलग उठी। उसके भारी हाथ मेरी छातियों को
मरोड़ने लगे। मैं उसके चोदने से मस्त होने लगी। वो अब मेरे ऊपर लेट गया और
अपने दोनों हाथों पर शरीर का भार ले कर ऊपर उठ गया। अब उसके शरीर का बोझ
मेरे ऊपर नहीं था। वो और मैं बिलकुल फ़्री थे। मुझे भी अपनी चूत उछालने का
पूरा मौका मिल रहा था। वो बार बार चूम कर मेरी चूत पर जोर से लौड़ा मार
रहा था। मेरा शरीर जैसे वासना के मारे उफ़न रहा था। अधखुली आंखों से मैं
उसके रूप का स्वाद ले रही थी, उसके चेहरे के चोदने वाले भाव देख रही थी।
मेरी उत्तेजना चरमसीमा पर थी। तभी मैं चीख पड़ी और मेरा रज छूट गया। तभी
भूरा ने अपना लण्ड निकाला और और मेरे मुख में पूरा घुसेड़ दिया। तभी उसका
वीर्य मेरे मुख में निकल पड़ा और हलक में उतरता चला गया। मेरा रज निकलता
जा रहा था और मैं पस्त हो कर अंधेरे में खोती जा रही थी।
सवेरे जब आँख खुली तो मेरा कुर्ता ऊपर था और दादी मां मुस्करा कर मुझे
चादर ओढ़ा रही थी।
"बिटिया रानी, कोई सुन्दर सपना देख रही थी ना?"
मैं चौंक गई और मैंने चादर देखते ही समझ लिया कि दादी ने मेरा नंगापन देख लिया है।
"दादी मां, वो तो अब… सपने तो सपने ही होते हैं ना !"
दादी मेरे पास बैठ गई और अपने जवानी के किस्से बताने लगी। पर मेरा ध्यान
कहीं ओर ही था। भूरा घर के अन्दर से कुछ सामान ले जा रहा था।
"दादी, भूरे को एक बार यहाँ बुला दो …" मैंने दादी को टोकते हुये कहा।
"आजकल की लड़कियाँ ! मेरी बात तो सुन ही नहीं रही है … सारा ध्यान जवान
लड़कों पर रहता है। अरे भूरे … यहाँ तो आ !"
भूरा ने अन्दर आते ही मुझे देखा और मुड़ कर वापस जाने लगा।
"ऐसा क्या है भूरा, जो मुझे देख कर जा रहे हो …"
"दीदी, मुझे काम याद आ गया है …" और वो दो छंलागों में कमरे से बाहर भाग
गया। मैं उसकी बेरुखी पर तड़प उठी। सारी छुट्टियाँ अब क्या मुझे सपनों में
जीना होगा। उह ! यहाँ तो कोई चोदने वाला भी नहीं मिलता। छुट्टियों में
शहर से सभी लड़के अपने अपने घर चले गये थे … कौन था भला मुझे चोदने वाला …
किससे अपनी चूत की प्यास बुझाऊँ…? मुझे लगा कि अब यहाँ से जल्दी ही
प्रस्थान करना चाहिये। कब तक भला अकेली ही पड़ी विचारों का मैथुन करती
रहूँ, मुझे तो सख्त लौड़े की आवश्यकता थी जो चूत के या गाण्ड के भीतर तक
जाकर मेरी यौन क्षुधा तृप्त कर सके !
रीता शर्मा, नोयडा


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