Tuesday, May 31, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ हरीयालो देवरियो

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

हरीयालो देवरियो

लेखिका : नेहा वर्मा
मेरा देवर मुझसे कोई दस साल छोटा है, पर मुझे वो बहुत प्यारा है। वो
सीधा-साधा, भोला-भाला सा है, हंसमुख है। मेरा हर काम वो पलक झपकते ही कर
देता है। वैसे वो भी मुझसे बहुत प्यार करता है। शायद उसका प्यार तो भाभी
के लिये था, पर दुर्भाग्यावश मेरा प्यार वासनामय था। सच पूछो तो उसका
लम्बा कद, गोरा रंग, उसकी खूबसूरती, उसके कुछ विशेष अन्दाज मेरे दिल को
तड़पा जाते थे। वो बुद्धू तो था ही, उसकी मासूमियत का मैं नाजायज फ़ायदा
उठाती थी। कभी सर दर्द का बहाना करके सर दबवाती थी और उसका स्पर्श पाकर
मुझे आन्तरिक सुख मिलता था। कभी कभी तो मैं उससे अपने पांव की मालिश
करवाती थी, उसका मेरी जांघों तक का स्पर्श मुझे बेहाल कर देता था। कभी
कभी तो उसके साथ मैं उसी के बिस्तर पर लेट जाती थी, और हंसी मजाक करने के
दौरान उसका हाथ मेरे नाजुक अंगों को स्पर्श कर जाता था, तो जैसे मेरे दिल
के तार झनझना जाते थे। मन करता था कि किसी भी तरीके से उसके साथ चुदाई कर
लूँ... ।
वो बेचारा अनजान सा बिना चड्डी पहने घर में घूमता रहता था। बरसात में
नहाने पर उसका सफ़ेद पजामा उसके कूल्हों से यों चिपक जाता था कि उसके
दोनों पोन्द नंगे से नजर आने लगते थे, उसके सोये हुए लण्ड की भी तस्वीर
दिख जाती थी। पर वो अनजाना बेसुध हो कर वर्षा का आनन्द लेता रहता था, इस
बात से अनजान कि कोई अन्य भी उसके महकते जवान जिस्म को निहार कर अपने मन
में और भी वासना की भावना को प्रज्वलित कर रहा है।
एक बार तो बिस्तर पर लेटे हुए मजाक करते समय उसने मस्ती में उसने मेरे
दोनों स्तनों के मध्य अपना चेहरा घुसा लिया था और मेरे स्तनो की नरमाई का
आनन्द लेने लगा था। जब मैंने उसे दूर किया तो उसकी आँखों में नींद सी भरी
हुई थी। वो क्या जाने उसने मेरे दिल में कैसी काम पीड़ा जागृत कर दी थी?
पर वो तो लाड़ के मारे नींद में हो गया था, फिर मैंने भी उसका सर अपने
दोनों स्तनों के बीच रख कर उसके बालों को सहलाते हुए सुला दिया था। पर
उसने मेरी चूत में एक मीठा सी कसक भर दी थी ... ।
आज भी हम दोनों बिस्तर पर लेटे हुए ऐसे ही मस्ती कर रहे थे। वो मेरे बदन
में गुदगुदी कर रहा था, मुझे हमेशा की तरह उसका स्पर्श तन पर मोहक लग लग
रहा था। उसके अधिक से अधिक स्पर्श को पाने के लिये अब मैं अन्दर ब्रा और
चड्डी नहीं पहनती थी। आज मेरे उभरे हुए स्तनों पर वो हाथ भी मार रहा था।
मेरे शरीर में वासना भरी गर्माहट चढ़ने लगी थी। पर पापा की आवाज ने मेरा
ध्यान भंग कर दिया था। पापा को दफ़्तर जाना था। मैं रवि के कमरे से निकल
कर भाग कर नीचे आ गई।
पापा का का भोजन टिफ़िन में लगा कर उन्हें दे दिया और वो रवाना हो गये।
मैंने घर का दरवाजा नीचे से लगा दिया और वापिस ऊपर रवि ले कमरे में चली
आई। रवि भी सुस्ताया हुआ सा था। मैं उसके बिस्तर पर आकर बैठ गई। बस मुझे
देखते ही उसमें फिर से मस्ती आ गई। मुझे लगा कि जैसे वो मेरे प्यार में
खोने लगा था। मेरी गोदी में उसने सर रख दिया और मुझे निहारने लगा। मैं भी
उसके बालों में हाथ फ़ेरने लगी, पर इस बार वो गोदी में अपना सर मेरी चूत
पर दबा रहा था ... पता नहीं वो जाने या फ़िर अनजाने में ये कर रहा था।
मेरी चूत में मीठी सी गुदगुदी भरने लगी। मैंने झुक कर उसके गालों पर चूम
लिया। उसने भी अपने हाथ जाने क्या करने के उठाये पर वो मेरे स्तनों से जा
टकराये, मुझे झुरझुरी सी आ गई।
तभी मेरी नजर उसके पजामे पर गई, उसका लण्ड अनजाने में सीधा खड़ा हो गया
था, उसके पजामे को ऊपर उठा दिया था। शायद उसकी वासना जागने लगी थी। मुझे
लगा कि उसके लण्ड को मैं भींच लूँ, मसल डालूँ, मल-मल कर उसका माल निकाल
डालूँ, मेरी सांसें तेज हो उठी। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी। मैंने नीचे
से चूत का दबाव उसके सर पर दे दिया ... । मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी
जांघें पकड़ ली और उन्हें सहलाते हुए लण्ड के पास तक आ गई।
मेरे दोनों स्तन उसके मुख पर जोर से दब गये, जिसकी नरमाई से वो तड़प सा
गया। उसकी दोनों टांगें कांपने लगी। उसका लण्ड एक बार फ़िर से फ़ड़क कर लहरा
उठा।
"भाभी, मुझे नींद सी आ रही है ..." शायद यह वासना का प्रभाव था।
"तो सो जा मेरी गोदी में !" मैंने उसकी ओर झुकते हुए कहा। वो उठ कर
बिस्तर पर ठीक से लेट गया और मेरी गले में बाहें डाल कर मुझे भी लेटाने
की कोशिश करने लगा। मैं बिना किसी बहाने के लेट गई और वो मुझसे लिपट कर
सोने का उपक्रम करने लगा। उसकी टांगें मेरी कमर के ऊपर आ गई और वो एक
छोटे बच्चे की तरह मुझसे लिपट कर आँखें बन्द करके सोने का प्रयास करने
लगा।
मेरे स्तन जैसे फ़ूलने लगे, कड़े होने लगे, चुचूक भी कठोर हो गये। मेरा
ब्लाऊज जैसे तंग होने लगा, फ़ंसने सा लगा था। लगा कि वो जैसे फ़ट जायेगा।
मैंने अपनी आँखें वासना के नशे में बंद कर ली और अपने स्तन उसके चेहरे पर
दबा दिए। उसके लण्ड का कड़ापन मेरे कूल्हे के इर्द-गिर्द चुभने लगा। मुझे
अपना सपना साकार होता नजर आने लगा। मैंने धीरे से उसके चूतड़ों पर हाथ रख
कर अपनी ओर जकड़ लिया। उसका लण्ड मेरी चूत के आस पास गड़ने लगा।
"भाभी, मुझे कुछ हो रहा है... कुछ अजीब सा लग रहा है ..." वो निन्दासा सा
होकर बोलने लगा।
"कुछ नहीं रवि, ऐसा तो जवानी में सभी को ऐसा लगता है... तुझे प्यार करना
है ना.." मैंने उसे प्यार करने का न्यौता दे डाला। ऐसा कहने में मुझे
शर्म सी आ रही थी, पर आगे बढ़ने के लिये कुछ तो करना ही पड़ेगा ना।
"हाँ भाभी, ऐसा लगता है कि आपसे ऐसे ही लिपटा रहूँ... आपके होंठों पर
प्यार करूँ ..."
मैं अपने अधरों को उसके समीप ले गई, वो अपना मुख उठा कर चूमने की मुद्रा
में मुख बनाने लगा। फिर उसने बिना किसी हिचक के मेरे होंठ चूम लिये।
मैंने मौके का फ़ायदा उठाया और उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया।
मैंने जोश में उसे एक पलटी मार कर अपने नीचे दबा दबा लिया। उसका लण्ड अब
मेरी टांगों के ठीक बीचों-बीच चूत पर दब रहा था। मेरी चूत एकाएक लण्ड
लेने के तड़पने लगी।
रवि भी अपने होश खो बैठा और उसने मेरे मम्मे दबा दिये।
आह्ह्ह ... !! मेरे ईश्वर !! मेरा सब्र टूटा जा रहा था। मेरा हाथ नीचे बढ़
कर उसके लण्ड पर चला गया और दूसरे ही पल उसका लण्ड मेरे हाथों में दबा
हुआ था।
रवि ने एक सिसकारी भरी। वो जैसे तड़प सा उठा। हम दोनों वासना से भरे हुए
एक दूसरे को जैसे खींचने लगे। तभी रवि ने भी मुझे एक झटका दिया और मेरे
ऊपर आ गया।
"भाभी मुझे यह क्या हो रहा है ? मेरा मन आपसे लिपट कर कुछ करने को होने
लगा है।" उसका बड़ा सा लण्ड पजामे में उभर कर बुरी तरह से फ़ड़फ़ड़ा रहा था।
"रवि, यह तो प्यार है बस, कभी मन करता है कि तुझे मैं अपने में समा लूँ !"
उसे मैंने अपनी ओर खींच लिया। उसका बलिष्ठ लण्ड मेरी चूत में घुसने के
लिये जोर मारने लगा। इसका मतलब था कि वो सम्भोग के लिये एकदम तैयार है।
"नहीं भाभी, मुझे तो लगता है कि मैं आपके शरीर में समा जाऊँ !" उसने फिर
अपने लण्ड का जोर नीचे लगा दिया। मुझे लगा कि अब मैंने अपने पेटीकोट को
ऊपर नहीं किया तो वो या तो झड़ ही जायेगा या मेरे पेटीकोट समेत ही लण्ड को
चूत में घुसा देगा।
"बस दो मिनट ... अपना पजामा उतार दे ... मेरा पेटीकोट भी ऊपर उठा दे ...
फिर सब अपने आप हो जायेगा..." मेरी सांसें उखड़ रही थी, दिल तेजी से धड़कने
लगा था।
"सच भाभी ..."
"देख तेरा नीचे ये लण्ड कैसा फ़ूल रहा है ... इसे बाहर निकाल और हवा लगने
दे।" मैंने अपना पेटीकोट का नाड़ा ढीला कर दिया। उसने जल्दी से अपना पजामा
उतार दिया, उसका लण्ड हवा में लहरा उठा। मैंने प्यार से उसे काबू में
किया और उसका सुपारा खोल दिया। वीर्य की महक सी आई। मैं उसे देख कर
विस्मित सी हो गई। लाल सुन्दर सा सुपारा, मेरा मुख अपने आप खुल गया और
उसे मैंने खींच कर अपने मुख में ले लिया। रवि पागल सा होकर अपनी चूतड़ों
को जोर जोर से हिलाने लगा था। उसका लण्ड मेरे मुख में आगे पीछे चलने लगा
था। मेरा मन चंचल हो उठा गाण्ड चुदवाने के लिये ...
मैंने उसका गीला लण्ड बाहर निकाला और रवि से कहा,"रवि, मजा आ रहा है ना...?"
"हाँ भाभी बहुत जोर का मजा आ रहा है..." उसका तन चुदाई की सी क्रिया करने लगा था।
"मेरे पोन्द को सहला कर मसल दे जरा...!" मुझे लगा कि यह भी तो कुछ करे।
"नहीं भाभी, मुझे तो ऐसे ही मजा आ रहा है..."
अरे मुझे भी तो मजा आना चाहिये ... अच्छा तुझे फिर एक नई चीज़ भी बताऊंगी।"
मैंने तड़प कर उसे लालच दिया। वो मेरी छाती पर से हट गया और मैंने तुरन्त
अपनी पीठ उसकी तरफ़ कर ली। उसने मेरा पेटीकोट नीचे खींच लिया। मेरे सुन्दर
उभरे हुए चूतड़ देख कर उसका मन मचल गया। उसने मेरे नरम पर कसे हुए चूतड़ों
को बुरी तरह से दबाना चालू कर दिया। अन्त वही हुआ जो मैं चाहती थी। उसका
तन्नाया हुआ लण्ड मेरी चूतड़ों की दरार में घुस गया। मैंने अपने गाण्ड के
छेद को ढीला कर दिया। उसके लण्ड पर मेरा थूक लगा हुआ था सो छेद पर जोर
लगते ही अन्दर घुस गया। मैंने अपनी गाण्ड का छेद थोड़ा ढीला किया और उसे
अन्दर जाने दिया, उसे और भी लण्ड घुसाने में भरपूर सहायता की। लण्ड के
गाण्ड में घुसते ही मीठी सी गुदगुदी हुई। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली।
उसका लण्ड सरकता हुआ पूरा अन्दर चला गया।
मैंने भी अपनी गाण्ड हिला कर उसे ठीक से पूरा घुसा लिया। उसके मुख से कुछ
दर्द भरी आवाजें आने लगी थी। शायद उसे पता नहीं था कि उसके लण्ड की त्वचा
सुपाड़े के नीचे से चिर चुकी है और सुपारा खुल कर पूरा बाहर आ चुका था।
उसके लण्ड के डण्डे पर चमड़ी उलट कर सुपारा पूरा स्वतन्त्र हो गया था। वो
धीरे धीरे आह भरता हुआ लण्ड आगे पीछे करने लगा था। उसे आनन्द अधिक आ रहा
था, तभी तो वो दर्द को सह रहा था। पर उससे मुझे क्या लेना था, मुझे तो बस
अपनी गाण्ड मरवानी थी सो मैं तो वही मजे ले रही थी। उसके धक्के मुझे असीम
आनन्द दे रहे थे। मेरी चूत की खुजली भी तेज होती जा रही थी। वो अपने हाथ
मेरे सीने पर डाल कर उभारों को मसले जा रहा था। मेरी सिसकियाँ बढ़ती जा
रही थी, मेरी चूत भीग कर पानी छोड़ रही थी। गाण्ड मराने से जब मेरी चूत
में उत्तेजना बहुत बढ़ गई तो मैंने उसे हटा दिया और सीधे लेट गई और उसे
अपनी टांगों के बीच में बैठा दिया, उसका कड़कता लण्ड मैंने अपनी चूत पर रख
दिया और थोड़ा सा अन्दर सरका लिया, फिर उसे अपने ऊपर खींच लिया। जैसे ही
वो मुझ पर झुका, उसका लण्ड तेजी से अन्दर घुसने लगा। मैंने सिसकते हुए इस
आनन्द भरे क्षण को महसूस किया और उसे अपने से जोर से चिपका लिया। मेरे
मुख से एक हल्की सी चीख निकल गई। उसका लण्ड पूरा जड़ से टकरा गया था।
"रवि, जितना जोर से लण्ड मार सकता है ... मार दे ... बहुत मजा आयेगा..."
मैं खुशी के मारे चहक उठी।
"हां भाभी... हाँ ... ये लो...आह्ह्ह्..."
उसके ताकतवर झटके ने मुझे फिर से आनन्द से चीखने पर मजबूर कर दिया। बहुत
ही प्यारे झटके से चोद रहा था, फिर उसके अनाड़ीपन का भी मुझे आनन्द आने
लगा था। वो बार बार जोर से मेरे मम्मे मचकाने लगा था। उसके होंठ मेरे
चेहरे को चूम चूम कर गीला कर चुके थे, मैं कभी अपनी जीभ उसके मुख में डाल
देती थी, तो कभी उसके गाल काट लेती थी। दो तीन धक्के उसने ओर लगाये और
मैं तो जैसे आनन्द के समुंदर में डूब गई। मेरा काम रस निकल पड़ा, मैं झड़ने
लगी। मैं शान्ति से झड़ती रही, पर उसने चोदना जारी रखा।
कुछ ही देर में मैं चुदते हुए फिर से तैयार हो चुकी थी, और फिर से मेरी
उत्तेजना बढ़ गई थी। वो अब हांफ़ने लगा था, उसकी सांसें तेज हो उठी थी,
चेहरे पर पसीना छलक आया था। पर वो बहुत ही मन लगा कर चुदाई कर रहा था।
उसकी तेज चुदाई से मैं तो फिर से चरमसीमा पर पहुंचने लगी ... उसकी रफ़्तार
भी बढ़ गई ... उसकी जोरदार चुदाई से मेरा शरीर फिर से एक बार और कांप उठा
और मैंने फिर से अपना काम रस छोड़ दिया। तभी वो भी झड़ने को होने लगा।
उसका वीर्य मुझे चाहिये था सो मैंने उसका लण्ड बाहर निकाल कर उसे मुख के
पास आने का इशारा किया। उसने अपना लण्ड मेरे मुख में घुसेड़ दिया। मैंने
उसके डण्डे को पकड़ कर बस दो तीन बार दबा कर ही मुठ मारा और उसका वीर्य
निकल पड़ा। उसने एक हल्की सी सिसकारी भरते हुए वीर्य छोड़ दिया, बड़ी तेजी
से वीर्य मेरे मुख में पिचकारी मारता हुआ छोड़ने लगा। उसका वीर्य तो
निकलता ही गया, इतना वीर्य तो मेरे पति का भी कभी नहीं निकला था। शायद वो
एक जवान लण्ड था सो बहुत सा वीर्य निकला। मैं बड़े चाव से सारा वीर्य
स्वाद ले ले कर निगलती गई।
मुझे लगा कि वास्तव में चुदाई का भरपूर सुख तो मैंने आज ही लिया है। शायद
मन का मीत मेरी इच्छा के अनुसार ही मिला था इसलिये मैंने यह सुख महसूस
किया था।
मेरा और मेरे देवर का इस घटना के बाद प्यार और बढ़ गया था। जब भी घर खाली
होता तो वो बस पागल सा हो जाता था और मुझे चोद डालता था। बस एक बार मैंने
उसे यह लत लगा दी थी और मेरी वासना अपने आप ही रवि शान्त कर देता था। नई
नई जवानी चढ़ी थी भला कभी रुक सकती थी क्या... कुछ ही दिनो में मैं उसकी
जरूरत बन गई थी, मेरे बिना वो बेचैन हो उठता था ...


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