उफफफफफफफ्फ़ ये जवानी --1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर आपके लिए
हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी दो सहेलियो और उनके दो दोस्तो की है अब आप
कहानी का मज़ा लीजिए कहानी कुछ इस तरह है ......
मेरी उम्र 18 साल है, मैं कुँवारी युवती हूँ. मैने 12थ का एग्ज़ॅम दिया
है. मैं अपने बारे में यह बताना ज़रूरी समझती हूँ कि मेरी फॅमिली काफ़ी
अड्वान्स है, और मुझे किसी प्रकार की बंदिश नहीं लगाई जाती. मैं अपनी
मर्ज़ी से जीना पसंद करती हूँ. अपने ही ढंग से फॅशनबल कपड़े पहन-ना मेरा
शौक है. और क्योंकि मैं मम्मी पापा की इकलौती बेटी हूँ इसलिए किसी ने भी
मुझे इस तरह के कपड़े पहन-ने से नहीं रोका. स्कूल आने जाने के लिए मुझे
एक ड्राइवर के साथ कार मिली हुई थी. वैसे तो मम्मी मुझे ड्राइव करने से
मना करती थी, मगर मैं अक्सर ड्राइवर को घूमने के लिए भेज देती और खुद ही
कार लेकर सैर करने निकल जाती थी.
स्कूल में पढ़ने वाला एक लड़का मेरा दोस्त था. उसके पास एक अच्छी सी बाइक
थी. मगर वो कभी कभी ही बाइक लेकर आता था, जब भी वो बाइक लेकर आता मैं
उसके पीछे बैठ कर उसके साथ घूमने जाती. और जब उसके पास बाइक नहीं होती तो
मैं उसके साथ कार में बैठ कर घूमने का आनंद उठाती. ड्राइवर को मैने पैसे
देकर मना कर रखखा था कि घर पर मम्मी या पापा को ना बताए कि मैं अकेली कार
लेकर अपने दोस्त के साथ घूमने जाती हूँ. इस प्रकार उसे दोहरा फ़ायदा होता
था, एक ओर तो उसे पैसे भी मिल जाते थे और दूसरी ओर उसे अकेले घूमने का
मौका भी मिल जाया करता था. दो बजे स्कूल से छुट्टी के बाद अक्सर मैं अपने
दोस्त के साथ निकल जाती थी और करीब 6-7 बजते बजते घर पहुँच जाती थी. एक
प्रकार से मेरा घूमना भी हो जाता था और घर वालो को कुछ कहने का मौका भी
नहीं मिलता था.
मेरे दोस्त का नाम तो मैं बटन ही भूल गयी. उसका नाम शिवम है. शिवम को मैं
मन ही मन प्यार करती थी और शिवम भी मुझसे प्यार करता था, मगर ना तो मैने
कभी उससे प्यार का इज़हार किया और ना ही उसने. उसके साथ प्यार करने में
मुझे कोइ झिझक महसूस नहीं होती थी. मुझे याद है कि प्यार की शुरुआत भी
मैने ही की थी जब हम दोनो बाइक में बैठ कर घूमने जा रहे थे. मैं पीछे
बैठी हुई थी जब मैने रोमांटीकबात करते हुए उसके गाल पर किस कर लिया. ऐसा
मैने भावुक हो कर नहीं बल्कि उसकी झिझक दूर करने के लिए किया था. वो इससे
पहले प्यार की बात करने में भी बहुत झिझकता था. एक बार उसकी झिझक दूर
होने के बाद मुझे लगा कि उसकी झिजाहक दूर करके मैने ठीक नहीं किया.
क्योंकि उसके बाद तो उसने मुझसे इतनी शरारत करनी शुरू कर दी कि कभी तो
मुझे मज़ा आ जाता था और कभी उस पर गुस्सा. मगर कुल मिलाकर मुझे उसकी
शरारत बहुत अच्छी लगती थी. उसकी इन्ही सब बातो के कारण मैं उसे पसंद करती
थी और एक प्रकार से मैने अपना तन मन उसके नाम कर दिया था.
एक दिन मैं उसके साथ कार में थी. कार वोही ड्राइव कर रहा था. एकाएक एक
सुनसान जगह देखकर उसने कार रोक दी और मेरी ओर देखते हुए बोला, "अच्छी जगह
है ना ! चारो तरफ अंधेरा और पेड पौधे हैं. मेरे ख़याल से प्यार करने की
इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती." यह कहते हुए उसने मेरे होंठो को चूमना
चाहा तो मैं उससे दूर हटने लगी. उसने मुझे बाहों में कस लिया और मेरे
होंठो को ज़ोर से अपने होंठो में दबाकर चूसना शुरू कर दिया. मैं जबरन
उसके होंठो की गिरफ़्त से आज़ाद हो कर बोली, "छ्चोड़ो, मुझे साँस लेने
में तक़लीफ़ हो रही है." उसने मुझे छ्चोड़ तो दिया मगर मेरी चूची पर अपना
एक हाथ रख दिया. मैं समझ रही थी कि आज इसका मन पूरी तरह रोमॅंटिक हो
चुक्का है. मैने कहा, "मैं तो उस दिन को रो रही हूँ जब मैने तुम्हारे गाल
पर किस करके अपने लिए मुसीबत पैदा कर ली. ना मैं तुम्हे किस्स करती और ना
तुम इतना खुलते." "तुमसे प्यार तो मैं काफ़ी समय से करता था. मगर उस दिन
के बाद से मैं यह पूरी तरह जान गया कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो. वैसे
एक बात कहों, तुम हो ही इतनी हसीन की तुम्हे प्यार किए बिना मेरा मन नहीं
मान-ता है."
वो मेरी चूची को दबाने लगा तो मैं बोली, "उम्म्म्मम क्यों दबा रहे हो
इसे? छ्चोड़ो ना, मुझे कुच्छ कुच्छ होता है." "क्या होता है?" वो और भी
ज़ोर से दबाते हुए बोला, मैं क्या बोलती, ये तो मेरे मन की एक फीलिंग थी
जिसे शब्दो में कह पाना मेरे लिए मुश्किल था. इसे मैं केवल अनुभव कर रही
थी. वो मेरी चूची को बदस्तूर मसल्ते दबाते हुए बोला, "बोलो ना क्या होता
है?"
"उम्म्म्मम उफफफफफफ्फ़ मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं इस फीलिंग को
कैसे व्यक्त करूँ. बस समझ लो की कुच्छ हो रहा है."
वो मेरी चूची को पहले की तरह दबाता और मसलता रहा. फिर मेरे होंठो को किस
करने लगा. मैं उसके होंठो के चुंबन से कुछ कुछ गर्म होने लगी. जो मौका
हमे संयोग से मिला था उसका फ़ायदा उठाने के लिए मैं भी व्याकुल हो गयी.
तभी उसने मेरे कपड़ो को उतारने का उपक्रम किया. होंठ को मुक्त कर दिया
था. मैं उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराने लगी. ऐसा मैने उसका हौंसला बढ़ाने
के लिए किया था. ताकि उसे एहसास हो जाए कि उसे मेरा सपोर्ट मिल रहा है.
मेरी मुस्कुराहट को देखकर उसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट दिखाई देने लगी.
वो आराम से मेरे कपड़े उतारने लगा, पहले उसका हाथ मेरी चूची पर ही था सो
वो मेरी चूची को ही नंगा करने लगा. मैं होल से बोली, "मेरा विचार है कि
तुम्हे अपनी भावनाओं पर काबू करना चाहिए. प्यार की ऐसी दीवानगी अच्छी
नहीं होती."
उसने मेरे कुच्छ कपड़े उतार दिए. फिर मेरी ब्रा खोलते हुए बोला,
"तुम्हारी मस्त जवानी को देखकर अगर मैं अपने आप पर काबू पा लूँ तो मेरे
लिए ये एक अजूबे के समान होगा."
मैने मन में सोचा कि अभी तुमने मेरी जवानी को देखा ही कहाँ है. जब देख
लोगे तो पता नहीं क्या हाल होगा. मगर मैं केवल मुस्कुराई. वो मेरे मम्मे
को नंगा कर चुक्का था. दोनो चूचियों में ऐसा तनाव आ गया था उस वक़्त तक
कि उसके दोनो निपल अकड़ कर और ठोस हो गये थे. और सुई की त्तरह तन गये थे.
वो एक पल देख कर ही इतना उत्तेजित हो गया था कि उसने निपल समेत पूरी चूची
को हथेली में समेटा और कस कस कर दबाने लगा. अब मैं भी उत्तेजित होने लगी
थी. उसकी हर्कतो से मेरे अरमान भी मचलने लगे थे. मैने उसके होंठो को किस
करने के बाद प्यार से कहा, "छ्चोड़ दो ना मुझे. तुम दबा रहे हो तो मुझे
गुदगुदी हो रही है. पता नहीं मेरी चूचियों में क्या हो रहा है की दोनो
चूचियों में तनाव सा भरता जा रहा है. प्लीज़ छ्चोड़ दो, मत दबाओ." वो
मुस्कुरा कर बोला, "मेरे बदन के एक ख़ास हिस्से में भी तो तनाव भर गया
है. कहो तो उसे निकाल कर दिखाऊँ?"
मैं समझ नहीं पायी कि वो किसकी बात कर रहा है. मगर एका एक वो अपनी पॅंट
उतारने लगा तो मैं समझ गयी और मेरे चेहरे पर शर्म की लाली फैल गयी. वो
किस्में तनाव आने की बात कर रहा था उसे अब मैं पूरी तरह समझ गयी थी. मुझे
शर्म का एहसास भी हो रहा था और एक प्रकार का रोमांच भी सारे बदन में
अनुभव हो रहा था. मैं उसे मना करती रह गयी मगर उसने अपना काम करने से खुद
को नहीं रोका, और अपनी पॅंट उतार कर ही माना. जैसे ही उसने अपना अंडरवेर
भी उतारा तो मैने जल्दी से निगाह फेर ली.
वो मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए बोला, "छ्छू कर देखो ना. कितना
तनाव आ गया है इसमें. तुम्हारे निप्पल से ज़्यादा तन गया है ये."
मैने अपना हाथ छुड़ाने की आक्टिंग भर की. सच तो ये था कि मैं उसे छ्छूने
को उतावली हो रही थी. अब तक देखा भी नहीं था. छ्छू कर देखने की बात तो और
थी. उसने मेरे हाथ को बढ़ा कर एक मोटी सी चीज़ पर रख दिया. वो उसका लंड
है ये मैं समझ चुकी थी. एक पल को तो मैं सन्न रह गयी, उसका लंड पकड़ने के
बाद. मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि खुद मेरे कानो में भी गूँजती
लग रही थी. मैं उसके लंड की जड़ की ओर हाथ बढ़ाने लगी तो एहसाह हुआ कि
लंड लंबा भी काफ़ी था. मोटा भी इस कदर की उसे एक हाथ में ले पाना एक
प्रकार से नामुमकिन ही था.
वो मुझे गरम होता देख कर मेरे और करीब आ गया और मेरे निपल को सहलाने लगा.
एका एक उसने निपल को चूमा तो मेरे बदन में खून का दौरा तेज़ हो गया, और
मैं उसके लंड के ऊपर तेज़ी से हाथ फिराने लगी. मेरे ऐसा करते हुए उसने झट
से मेरे निपल को मूह में ले लिया और चूसने लगा. अब तो मैं पूरी मस्ती में
आ गयी और उसके लंड पर बार बार हाथ फेर कर उसे सहलाने लगी. बहुत अच्छा लग
रहा था, मोटे और लंबे गरम लंड पर हाथ फिराने में.
एका एक वो मेरे निपल को मूह से निकाल कर बोला, "कैसा लग रहा है मेरे लंड
पर हाथ फेरने में?"
मैं उसके सवाल को सुनकर शर्मा गये. हाथ हटाना चाहा तो उसने मेरा हाथ पकड़
कर लंड पर ही दबा दिया और बोला, "तुम हाथ फेरती हो तो बहुत अच्छा लगता
है, देखो ना, तुम्हारे द्वारा हाथ फेरने से और कितना तन गया है."
मुझसे रहा नहीं गया तो मैं मुस्कुरा कर बोली, "मुझे दिखाई कहाँ दे रहा है?"
"देखोगी ! ये लो." कहते हुए वो मेरे बदन से दूर हो गया और अपनी कमर को
उठा कर मेरे चेहरे के समीप किया तो उसका मोटा तगड़ा लंड मेरी निगाहो के
आगे आ गया. लंड का सुपाड़ा ठीक मेरी आँखो के सामने था और उसका आकर्षक रूप
मेरे मन को विचलित कर रहा था. उसने थोड़ा सा और आगे बढ़ाया तो मेरे होंठो
के एकदम करीब आ गया. एक बार
तो मेरे मन में आया की मैं उसके लंड को किस कर लूँ मगर झिझक के कारण मैं
उसे चूमने को पहल नहीं कर पा रही थी. वो मुस्कुरा कर बोला, "मैं तुम्हारी
आँखो में देख रहा हूँ कि तुम्हारे मन में जो है उसे तुम दबाने की कोशिश
कर रही हो. अपनी भावनाओं को मत दबाओ, जो मन में आ रहा है, उसे पूरा कर
लो."
उसके यह कहने के बाद मैने उसके लंड को चूमने का मन बनाया मगर एकदम से
होंठ आगे ना बढ़ा कर उसे चूमने की पहल ना कर पायी. तभी उसने लंड को थोड़ा
और आगे मेरे होंठो से ही सटा दिया, उसके लंड के दहाकते हुए सुपादे का
स्पर्श होंठो का अनुभव करने के बाद मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और लंड
के सुपादे को जल्दी से चूम लिया. एक बार चूम लेने के बाद तो मेरे मन की
झिझक काफ़ी कम हो गयी और मैं बार बार उसके लंड को दोनो हाथो से पकड़ कर
सुपादे को चूमने लगी, एकाएक उसने सिसकारी लेकर लंड को थोड़ा सा और आगे
बढ़ाया तो मैने उसे मूह में लेने के लिए मूह खोल दिया, और सुपपड़ा मूह
में लेकर चूसने लगी.
इतना मोटा सुपाड़ा और लंड था कि मूह में लिए रखने में मुझे परेशानी का
अनुभव हो रहा था, मगर फिर भी उसे चूसने की तमन्ना ने मुझे हार मान-ने
नहीं दी और मैं कुछ देर तक उसे मज़े से चूस्ति रही. एका एक उसने कहा,
"हयाययीयियी तुम इसे मूह में लेकर चूस रही हो तो मुझे कितना मज़ा आ रहा
है, मैं तो जानता था कि तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, मगर थोड़ा झिझकति
हो. अब तो तुम्हारी झिझक समाप्त हो गयी, क्यों है ना?"
क्रमशः...............
उफफफफफफफ्फ़ ये जवानी --1
Meri Umr 18 saal hai, main kunwaari yuvti hoon. Maine 12th ka exam
diya hai. Main apne bare mein yeh batana jaroori samajhti hoon ki meri
family kaafi advance hai, aur mujhe kisi prakaar ki bandish nahin
lagayee jaati. Main apni marzi se jeena pasand karti hoon. Apne hi
dhang se fashionable kapade pehan-na mera shauk hai. Aur kyonki main
Mummy Papa ki iklauti beti hoon isliye kisi ne bhi mujhe is tarah ke
kapade pehan-ne se nahin roka. School aane jaane ke liye mujhe ek
driver ke saath car mili huee thi. Waise to Mummy mujhe drive karne se
mana karti thee, magar main aksar driver ko ghoomne ke liye bhej deti
aur khud hi car lekar sair karne nikal jaati thee.
School mein padhne waala ek ladka mera dost thaa. Uske paas ek achchi
si bike thee. Magar wo kabhi kabhi hi bike lekar aata thaa, jab bhi wo
bike lekar aata main uske peeche baith kar uske saath ghoomne jaati.
Aur jab uske paas bike nahin hoti to main uske saath car mein baith
kar ghoomne ka anad uthaati. Driver ko maine paise dekar mana kar
rakhkha thaa ki ghar par mummy ya papa ko na bataye ki main akeli car
lekar apne dost ke saath ghoomne jaati hoon. Is prakaar use dohra
faida hota thaa, k or to use paise bhi mil jaate the aur doosri or use
akele ghoomne ka mauka bhi mil jaaya karta thaa. Do baje school se
chutti ke baad aksar main apne dost ke saath nikal jaati thee aur
kareeb 6-7 bajte bajte ghar pahunch jaati thee. Ek prakaar se mera
ghoomna bhi ho jaata thaa aur ghar waalo ko kuch kehne ka mauka bhi
nahin milta thaa.
Mere dost ka naam to main batan hi bhool gayee. Uska naam shivam hai.
Shivam ko main man hi man pyaar karti thee aur shivam bhi mujhse pyaar
karta thaa, magar na to maine kabhi usse pyaar ka izhaar kiya aur na
hi usne. Uske saath pyaar karne mein mujhe koiee jhijhak mehsoos nahin
hoti thee. Mujhe yaad hai ki pyaar ki shuruaat bhi maine hi ki thee
jab ham dono bike mein baith kar ghoomne jaa rahe the. Main peeche
baithi huee thee jab maine romanticbaat karte hue uske gaal par kiss
kar liya. Aisa maine bhavuk ho kar nahin balki uski jhijhak door karne
ke liye kiya thaa. Wo isse pehle pyaar ki baat karne mein bhi bahut
jhijhakta thaa. Ek baar uski jhijhak door hone ke baad mujhe laga ki
uski jhijahk door karke maine theek nahin kiya. Kyonki uske baad to
usne mujhse itni shararat karni shuru kar di ki kabhi to mujhe maza aa
jaata thaa aur kabhi us par gussa. Magar kul milakar mujhe uski
shararat bahut achchi lagti thee. Uski inhi sab baato ke kaaran main
use pasand karti thee aur ek prakaar se maine apna tan man uske naam
kar diya thaa.
Ek din main uske saath car mein thee. Car wohi drive kar raha thaa.
Ekaek ek sunsaan jagah dekhkar sne car rok di aur meri or dekhte hue
bola, "Achchi jagah hai na ! chaaro taraf andhera aur peh paudhe hain.
Mere khayaal se pyaar karne ki isse achchi jagah ho hi nahin sakti."
Yeh kehte hue usne mere hontho ko choomna chaaha to main usse door
hatne lagi. Usne mujhe baahon mein kas liya aur mere hontho ko zor se
apne hontho mein dabakar choosna shuru kar diya. Main jabran uske
hontho ki giraft se aazad ho kar boli, "Chhodo, mujhe saans lene mein
taqleef ho rahi hai." Usne mujhe chhod to diya magar meri choochi par
apna ek haath rakh diya. Main samajh rahi thee ki aaj iska man poori
tarah romantic ho chukka hai. Maine kaha, "Main to us din ko ro rahi
hoon jab maine tumhare gaal par kiss karke apne liye musibat paida kar
li. Na main tumhe iss karti aur na tum itna khulte." "Tumse pyaar to
main kaafi samay se karta thaa. Magar us din ke baad se main yeh poori
tarah jaan gaya ki tum bhi mujhse pyaar karti ho. Vaise ek baat kahon,
tum ho hi itni haseen ki tumhe pyaar kiye bina mera man nahin maan-ta
hai."
Wo meri choochi ko dabane laga to main boli, "Ummmmm kyon daba rahe ho
ise? Chhodo na, mujhe kuchh kuchh hota hai." "Kya hota hai?" wo aur
bhi zor se dabate hue bola, main kya bolti, ye to mere man ki ek
feeling thee jise shabdo mein keh paana mere liye mushkil thaa. Ise
main kewal anubhav kar rahi thee. Wo meri choochi ko badastoor masalte
dabate hue bola, "Bolo na kya hota hai?"
"Ummmmm ufffffff meri samajh mein nahin aa raha hai ki main is feeling
ko kaise vyakt karoon. Bas samajh lo ki kuchh ho raha hai."
Wo meri choochi ko pehle ki tarah dabata aur masalta raha. Phir mere
hontho ko kiss karne laga. Main uske hontho ke chumban se kich kuch
garma hone lagi. Jo mauka hame sanyog se mila thaa uska faida uthaane
ke liye main bhi vyaakul ho gayee. Tabhi usne mere kapado ko utaarne
ka upkram kiya. Honth ko mukt kar diya thaa. Main uski or dekhte hue
muskuraane lagi. Aisa maine uska haunsala badhaane ke liye kiya thaa.
Taaki use ehsaas ho jaaye ki use mera support mil raha hai.
Meri muskurahat ko dekhkar uske chehre par bhi muskurahat dikhaayee
dene lagi. Wo aaraam se mere kapade utaarne laga, pehle uska haath
meri choochi par hi thaa so wo meri choochi ko hi nanga karne laga.
Main hole se boli, "Mera vichaar hai ki tumhe apni bhaavnaaon par
kaabu karna chahiye. Pyaar ki aisi deewaangi achchi nahin hoti."
Usne mere kuchh kapade utaar diye. Phir meri bra kholte hue bola,
"Tumhari mast jawaani ko dekhkar agar main apne aap par kaabu paa loon
to mere liye ye ek ajoobe ke saman hoga."
Maine man mein socha ki abhi tumne meri jawaani ko dekha hi kahan hai.
Jab dekh loge to pata nahin kya haal hoga. Magar main kewal
muskuraayee. Wo mere mamme ko nanga kar chukka thaa. Dono choochiyon
mein aisa tanaav aa gaya thaa us waqt tak ki uske dono nipple akad kar
aur thhos ho gaye the. Aur suee ki ttarah tan gaye the. Wo ek pal dekh
kar hi itna uttejit ho gaya thaa ki usne nipple samet poori choochi ko
hatheli mein sameta aur kas kas kar dabane laga. Ab main bhi uttejit
hone lagi thee. Uski harkato se mere armaan bhi machalne lage the.
Maine uske hontho ko kiss karne ke baad pyaar se kaha, "Chhod do na
mujhe. Tum daba rahe ho to mujhe gudgudi ho rahi hai. Pata nahin meri
choochiyon mein kya ho raha hai ki dono choochiyon mein tanaav sa
bharta jaa raha hai. Please chhod do, mat dabao." Wo muskura kar bola,
"Mere badan ke ek khaas hisse mein bhi to tanaav bhar gaya hai. Kaho
to use nikaal kar dikhaoon?"
Main samajh nahin payee ki wo kiski baat kar raha hai. Magar eka ek wo
apni pant utaarne laga to main samajh gayee aur mere chehre par sharm
ki laalo phail gayee. Wo kismein tanaav aane ki baat kar raha thaa use
ab main poori tarah samajh gayee thee. Mujhe sharm ka ehsaas bhi ho
raha thaa aur ek prakaar ka romanch bhi saare badan mein anubhav ho
raha thaa. Main use mana karti reh gayee magar usne apna kaam karne se
khud ko nahin roka, aur apni pant utaar kar hi maana. Jaise hi usne
apna underwear bhi utaara to maine jaldi se nigaah fer li.
Wo mera haath pakad kar apni or kheenchte hue bola, "Chho kar dekho
na. Kitna tanaav aa gaya hai ismein. Tumhare npple se jyada tan gaya
hai ye."
Maine apna haath chhudaane ki acting bhar ki. Sach to ye thaa ki main
use chhone ko utaawali ho rahi thee. Ab tak dekha bhi nahin thaa. Chho
kar dekhne ki baat to aur thee. Usne mere haath ko badhaa kar ek moti
si cheez par rakh diya. Wo uska lund hai ye main samajh chuki thee. Ek
pal ko to main sann reh gayee, uska lund pakadne ke baad. Mere dil ki
dhadkan itni tez ho gayee ki khud mere kaano mein bhi goonjti lag rahi
thee. Main uske lund ki jad ki or haath badhaane lagi to ehsaah hua ki
lund lamba bhi kaafi thaa. Mota bhi is kadar ki use ek haath mein le
paana ek prakaar se namumkin hi thaa.
Wo mujhe garam hota dekh kar mere aur kareeb aa gaya aur mere nipple
ko sehlaane laga. Eka ek usne nipple ko chooma to mere badan mein
khoon ka daura tez ho gaya, aur main uske lund ke oopar tezi se haath
firaane lagi. Mere aisa karte hu usne jhat se mere nipple ko mooh mein
le liya aur choosne laga. Ab to main poori masti mein aa gayee aur
uske lund par baar baar haath fer kar use sehlaane lagi. Bahut achcha
lag raha thaa, mote aur lambe garam lund par haath firaane mein.
Eka ek wo mere nipple ko mooh se nikaal kar bola, "Kaisa lag raha hai
mere lund par haath ferne mein?"
Main uske sawaal ko sunkar Sharma gaye. Haath hatana chaha to usne
mera haath pakad kar lund par hi daba diya aur bola, "Tum haath ferti
ho to bahut achcha lagta hai, dekho na, tumhare dwaara haath ferne se
aur kitna tan gaya hai."
Mujhse raha nahin gaya to main muskura kar boli, "Mujhe dikhaayee
kahan de raha hai?"
"Dekhogi ! Ye lo." Kehte hue wo mere badan se door ho gaya aur apni
kamar ko uthaa kar mere chehre ke sameep kiya to uska mota tagada lund
meri nigaaho ke aage aa gaya. Lund ka supaada theek meri aankho ke
saamne thaa aur uska aakarshak roop mere man ko vichlit kar raha thaa.
Usne thoda sa aur aage badhaaya to mere hontho ke ekdam kareeb aa
gaya. Ek baar
to mere man mein aaya ki main uske lund ko kiss kar loon magar jhijhak
ke kaaran main use choomne ko pehal nahin kar paa rahi thee. Wo
muskura kar bola, "Main tumhari aankho mein dekh raha hoon ki tumhare
man mein jo hai use tum dabane ki koshish kar rahi ho. Apni bhaavnaaon
ko mat dabao, jo man mein aa raha hai, use poora kar lo."
Uske yeh kehne ke baad maine uske lund ko choomne ka man banaya magar
ekdam se honth aage na badha kar use choomne ki pehal na kar payee.
Tabhi usne lund ko thoda aur aage mere hontho se hi sata diya, uske
lund ke dehakte hue supaade ka sparsh hontho ka anubhav karne ke baad
main apne aap ko rok nahin payee aur lund ke supaade ko jaldi se choom
liya. Ek baar choom lene ke baad to mere man ki jhijhak kaafi kam ho
gayee aur main baar baar uske lund ko dono haatho se pakad kar supaade
ko choomne lagi, ekaek usne siskaari lekar lund ko thoda sa aur aage
badhaaya to maine use mooh mein lene ke liye mooh khol diya, aur
suppada mooh mein lekar choosne lagi.
Itna mota supaada aur lund thaa ki mooh mein liye rakhne mein mujhe
pareshaani ka anubhav ho raha thaa, magar phir bhi use choosne ki
tamanna ne mujhe haar maan-ne nahin diya aur main kuch der tak use
maze se choosti rahi. Eka ek usne kaha, "Haaaaiii tum ise mooh mein
lekar choos rahi ho to mujhe kitna maza aa raha hai, main to jaanta
thaa ki tum mujhse bahut pyaar karti ho, magar thoda jhijhakti ho. Ab
to tumhari jhijhak samapt ho gayee, kyon hai na?"
kramashah...............
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