ट्रेन में शालू और रुपिका की चुदाई--3
गतांक से आगे..........
पिछले अंक में मेरी कहानी थोड़ी अधूरी छोट गयी थी, और टोइलेट में शालू की
चुदाई के साथ ख़त्म हुई थी. इस अफ़सोस के साथ की सिर्फ एक लडकी की चुदाई
कर पाया. सो, चोदन के बाद हम लोगों ने सोचा के थोडा थोडा करके दरवाजा
खोलें और अगर बाहर कोई न हो तो एक एक करके बाहर निकल लें. आगे थी रुपिका,
उसने दरवाजा हलके से खोला तो दरवाजा जोर से पूरा खुल गया. सामने कोच को
देख के हम तीनों चौंक गए. कोच ने मुझे एक झापड़ लगाया और थोड़ी ऊँची आवाज
में बात करने लगा. मैं घबरा गया के लोग इकठ्ठे हो जायेंगे और जम के पिटाई
होगी. लेकिन कोच ने अपना ध्यान शालू पर केन्द्रित कर लिया. बोले- "तुम
उम्र में सबसे बड़ी और टीम की सबसे पुरानी खिलाडी हो, तुम भी ऐसा करोगी.
साथ में नयी लडकी को भी खराब कर रही हो. मैं तुम्हे टीम से भी निकालूँगा
और स्कूल से भी." शालू गिडगिडाने लगी. बोली- "सर, गलती हो गयी, बोलिए
क्या करू?" कोच बोला- "गलती की सजा तो मिलेगी, यहीं ख़त्म कर सकते हैं
नहीं तो बाद में." मैं समझा नहीं लेकिन शालू समझ गयी, बोली- "जैसे आप
करें, सर." कोच बोला- "ठीक है, तो फिर वापिस अन्दर चलो." शालू वापिस
बाथरूम में, कोच के साथ और मैं और रुपिका बाहर रह गए. हमें समझ में नहीं
आया के क्या करें. यकीन करो दोस्तों, अब का समय होता तो मैं शोर मचा के
लोगों को इकठ्ठा करके कोच की करतूत खोल देता, लेकिन उस समय मैं खुद ही
डरा हुआ था और जैसे भी हो, मुसीबत से पिंड छुटाना चाहता था.
आगे की कहानी खुद शालू के मुंह से सुनी हुई कहानी है:
अन्दर पहुँच के कोच ने अपने हाथ में शालू का मुंह ऐसे पकड़ा के अंगूठा एक
गाल को दबोच रहा था तो अंगुलियाँ दुसरे गाल को. बीच में उसके गोल गोल ओंठ
मानो चुम्बन के लिए बाहर निकले हों. कोच ने उसके होंठों को चूसना शुरू कर
दिया. फिर उसने शालू की चूची पे ज़ोरदार च्यूंटी मारी. शालू कराह उठी. कोच
बोला -"क्यूँ, अजनबियों से चुदने में दर्द नहीं होता, हमी से दर्द होता
है?" फिर कोच बोला- "लंड चूसेगी मेरा?" शालू बोली- "नहीं सर, जो करना है
कर लीजिये" तो बोला- "लंड तो चूसना पड़ेगा, लंड चूसे बिना तो बात नहीं
बनेगी. कितने दिनों से तेरे रसीले होठों पे लंड रगड़ने का ख्वाब लिए मुठ
मार रहा हूँ मैं, आज तो मुंह में ले ही ले." बोल के कोच ने अपना ढीला लंड
अपनी पेंट से बाहर निकाला. शालू को थोड़ी हंसी आ गयी, तो कोच बोला, "चूस
तो बिटिया रानी, फिर देख कितना बड़ा होता है. गांड फट जायेगी तेरी मेरा
खडा लंड देख के." शालू को उसके अश्लील शब्द इस्तेमाल करने पे गुस्सा तो
आया, लेकिन बेचारी मजबूर थी. उसे घिन भी आ रही थी कोच के लौड़े से टपकती
लार से, जिसने उसके गालों को गन्दा कर दिया था. अभी भी कोच का लंड एकदम
ढीला था, लेकिन लम्बाई और गोलाई में थोडा बढ़ गया था. फिर उसने अपना लंड
ले जाके शालू के होठों पे रगड़ना शुरू कर दिया. अपनी गंदी नज़रों से शाल
के चेहरे पे लगातार नज़र रखे वो अपना लंड शालू के सख्त और बंद होठों से
रगड़ता रहा. फिर बोला – "होंठ खोल भी जालिम, मुंह में ले ले". शालू ने
मुंह ज़रा सा खोला और उसके नाजुक नाजुक नर्म नर्म भरे भरे होठों पे कोच
ने अपने लंड की उपरी त्वचा हटा के सुपाडा उसके मुंह में हल्का सा दे
दिया. शालू को उसके लंड से बदबू सी आयी और ऊपर से लौड़े की लार का खट्टा
खट्टा नमकीन सा स्वाद. उसके मुंह से उल्टी सी निकली, लेकिन उसका मुंह जरा
और खुलते ही कोच ने उसके मुंह में अपना नर्म लौड़ा घुसेड़ने की कोशिश की.
नाकाम होने पे कोच ने अपना हाथ शालू की ठोडी के नीचे रखा और दुसरे हाथ से
उसका माथा थोडा पीछे धकेला. शालू का मुंह और खुला, कोई और चारा न देख के
शालू ने पूरा लंड अपने मुंह में ले लिया और धीरे धीरे चूसने लगी. कोच ने
अपनी आँखें यूँ बंद कर ली के अभी माल निकाल देगा, लेकिन वीर्य स्खलन के
बजाय उसका लंड बड़ा और खड़ा होने लगा. अब लंड कोई ७-८ इंच लम्बा हो गया था
और सिर्फ सामने के २ इंच शालू के मुंह में आ पा रहे थे. शालू ने अपने एक
कोमल हाथ से कोच का लंड थामा और अपने मुंह को आगे पीछे कर के पंड चूसने
लगी. लौड़ा और सख्त होता गया. कोच ने गंदी बातें जारी रखी – "बहन की
लौड़ी, कहाँ थी इतने दिनों से, इतना मस्त तो रंडियां भी नहीं चूसती. चूस,
और स्वाद ले ले के चूस." गुस्से और शर्म से शालू का मुंह एकदम लाल हो रहा
था, जिससे कोच को शायद और उत्तेजना मिल रही थी. झुक के कोच ने शालू का एक
मम्मा पकड़ लिया और जोर जोर से दबाने लगा. शालू के निप्पल एकदम सख्त हो गए
तो कोच ने कपड़ों के ऊपर से ही भांप के जोर से च्यूंटी भर दी. शालू ने
हल्का सा कोच के लंड पे दांतों पे काट दिया लेकिन कोच को दर्द के बजाय
उल्टा मजा आया, बोला- "हाँ, काट मेरे लौड़े पे कुतिया की तरह. उफ़, तेरे
जैसी लौंडिया को तो मैं हर छेद में दिन रात चोदूं."
शालू ने और हलके हलके कोच के लंड पे दाँतों से २-३ बार काटा, इस उम्मीद
से के कोच का वीर्य स्खलन होगा और उसे ज्यादा झेलना नहीं पड़ेगा. कोच
एक्टिंग तो ऐसे कर रहा था के अब निकला अब निकला, लेकिन उसका लंड उलटे और
तना जा रहा था. फिर उसने शालू के मुंह से लंड बाहर निकला. शालू खड़ी होने
लगी तो वो बोला- "नहीं, वैसे ही बैठी रह, सज़ा का वक़्त आ गया है." बोल के
उसने अपने लंड से शालू के गालों पे हल्की हल्की चपत सी लगानी शुरू कर दी.
फिर शालू से कहा जीभ बाहर निकाल. शालू ने जीभ बाहर निकाली तो अपना लंड
उसकी जीभ पे रख के ऊपर उठाया और फिर धडाक से वापिस जीभ पे थप्पड़ सा
लगाया, जैसे से लंड झाड रहा हो लेकिन ये सिर्फ आगे की तैय्यारी थी.
अब कोच ने शालू को खड़ा किया और उसकी पेंट और पेंटी नीचे सरका दी, ब्रा और
टॉप ऊपर सरका दी और दूसरी और घुमा दिया. पीछे से वो शालू के कान और कंधे
पे दांत गडाने लगा और अपने हाथों से शालू के मम्मों पे चिकोटियां काटने
लगा. शालू बोली- "सर. धीरे धीरे, पलीज, दर्द हो रहा है." तो कोच बोला-
"क्यूँ, मैंने कहा था, के चुदवाती फिर. अब अंजाम भुगत" कह के और जोर से
शालू की चूचियां मसल डाली. फिर दूसरा हाथ सरका के शालू के नाजुक नाजुक
पेट पे चूंटी काटने लगा. शालू का बुरा हाल था. कोच में पीछे से अपना लंड
शालू की गद्देदार गंद के एकदम बीच में लगा रखा था. फिर वो बीच की लकीर पे
लंड लिटाये लिटाये धक्के से मारने लगा. फिर उसने शालू के मुंह में अपनी
अंगुलियाँ दे के कहा- गीला कर, जानेमन. शालू ने उसकी अँगुलियों को थोडा
चूसा और फिर गीला सा कर दिया. कोच ने गीली अँगुलियों से अपने लंड पे रगड़
के लौड़े को थोडा गीला किया, फिर अंगुलियाँ वापिस शालू के मुंह में डाल
के फिर गीला करवाई और फिर लंड पे लगाई. फिर कोच ने पूछा- "चुदवाई थी
उससे?" शालू की ख़ामोशी में हाँ का जवाब था. फिर वो बोला, कोई बात नहीं.
और अपनी उँगलियाँ फिर शालू के मुंह में डाल के गीली की और शालू की गांड
पे रगड़ने लगा. जैसे ही शालू को अंदेशा हुआ कोच के इरादों का वो एकदम परे
हटने लगी, बोली- नहीं, नहीं, पीछे से नहीं. कोच बोला – "तो तेरी पहले ही
चुदी हुई चूत में फिर डालूँ? क्या समझ रखा है मुझे?" कह के कोच ने शालू
को मजबूर सा कर दिया. बोला के आराम आराम से करेगा. फिर कोच ने अपनी गंदी
उँगलियों को शालू के मुंह में गीली करके शालू की गांड में पहले एक उंगली
डाली, फिर दोनों. फिर उंगलियाँ बाहर निकाल के उसने अपना सख्त लौड़ा शालू
की गांड से लगाया और अपने हाथों से पकड़ के थोडा थोडा घुसाने लगा. शालू
कराहने लगी, बोली- सर, दर्द हो रहा है, पलीज, मत करो. लेकिन उस वहशी का
और लंड खडा होने लगा शालू की हायकार सुन कर. उसने अपने हाथ से शालू का एक
कूल्हा एक तरफ को दबाया और दुसरे हाथ से लंड को पकड़ के और थोडा अन्दर
घुसाने की कोशिश की, लेकिन मुश्किल से आधा सुपाड़ा ही अन्दर जा पाया. फिर
कोच ने लंड निकला और झुक के शालू की गांड पे थूका. फिर लंड को इस थूक में
गीला करके फिर से शालू की गांड में घुसाने का प्रयतन किया. इस बार सुपदा
पूरा अन्दर घुस गया और गांड के पहले द्वार में प्रवेश कर गया. शालू दर्द
के चलते अचानक से फुदक उठी, लेकिन कोच ने उसके उछलने से मिलता हुआ जोरदार
झटका ऐसा दिया के लंड पूरा अन्दर घुस गया. दर्द के मारे शालू की आँखों से
आंसूं निकल आये. कोच ने वहशी दरिंदों की तरह शालू के कूल्हे और मम्मे
नोचने शुरू कर दिए और जोर जोर से गांड में धक्के लगाने शुरू कर दिए. उसके
बुजुर्ग और खुरदरे बाल जब शालू के कूल्हों से टकराते तो शालू को खराश सी
मच जाती. बाहर हम खड़े खड़े इंतज़ार कर रहे थे लेकिन थोड़ी देर में दरवाजे
पे धक्कों की आवाज सुन के समझ में आ गया के अन्दर चुदाई चल रही है.
कोच का लम्बा और मोटा लंड शालू की गांड की तहस नहस करने में लगा था और
उसके हाथ कभी शालू की गांड पे जोर से चपत लगाते, कभी भींच देते. शालू
बोली- "सर, हुआ क्या, कसम से दर्द हो रहा है" तो कोच बोला- "बोल, मैं
रंडी हूँ, मेरी गांड मारो." थोडा जोर देने के बाद शालू को जब कोई चारा
नज़र न आया तो उसने भी साथ देने का फैसला कर लिया, बोली- "मैं रंडी हूँ,
मेरी गांड मारिये, सर, और ज़ोरों से." कोच को और चढ़ गयी और उसने शालू को
और नीचे झुका के और जोरों से धक्के लगाने शुरू कर दिए. बोला – "गंदी
बातें करती रह बहन की लौड़ी नहीं तो पूरी रात ऐसे ही गांड चौद्ता रहूँगा
और माल नहीं निकलेगा." शालू घबरा गयी और हाँफते हाँफते बोलने लगी- "हाँ,
हाँ, सर, और जोर से धक्का लगाइए, मेरे चूचे दबाइए, उफ़, कितना मजा आ रहा
है, है रोज़ सुबह आपका खड़ा लंड चूसूं. मेरी गांड, चूत और मुंह, सबमें
डालिए. लंड मेरे चूचों से रगड़िये चाहे गांड से." कोच हैरान हो गया के
ऐसी ऐसी बातें ये कहाँ से सीखी लेकिन गांड मारता रहा. फिर उसने शालू के
बाल पकड़ के सर पीछे खींचा और उसके होठों को चूसने लगा. शालू को गांड में
दर्द के साथ साथ गर्माइश महसूस हुई. कोच का काम तमाम हो चूका था. कोच फिर
भी हलके हलके धक्के लगता रहा और एक हाथ से बाल खींच के दुसरे हाथ से शालू
की चूची दबा रहा था. फिर उसने लंड बाहर निकाला और शालू की गांड पे झाड़ा,
फिर बोला- चूस. शालू बोली- "लेकिन सर, गन्दा हो गया है, मेरे पीछे से
निकला है" कोच बोला- "हाँ, तूने गन्दा किया है, तू ही साफ़ कर." कहके कोच
ने शालू को मजबूर किया लंड चूसने पे, बोला- हलके हलके चूस, चुदाई के बाद
बहुत संवेदनशील हो जाता है. कह के वो शालू को थोड़ी देर लंड चूसाता रहा.
फिर बोला – "अब मेरी मुट्ठ मार." शालू ने अपने हाथों से कोच के बैठे लंड
पे मुट्ठ लगानी शुरू कर दी. थोड़ी देर में लंड अध्-खड़ा हो गया लेकिन पहले
की तरह विराट नहीं. कोच आँखें बंद करके शालू से चुम्बन में लगा रहा और
हाथों से शालू की गांड और मम्मों से खिलवाड़ करता रहा. शालू इंतज़ार करती
रही कोच के लंड का खड़ा होने का, ये सोच के के फिर से चुदेगी. लेकिन वो उस
समय बहुत खुश हुई जब कोच के लंड ने हौले हौले थोडा सा माल शालू के हाथ पे
उगल दिया. उसकी गांड भी चिप-चिप कर रही थी, और अब हाथ भी. कोच बोला- "अब
बचा खुचा भी चूस, लेकिन एकदम आहिस्ता आहिस्ता." आखिर यातना का अंत देख के
शालू फटाफट तैयार हो गयी और कोच का लंड ऐसे चूसा के कोच खुशी और आनंद से
झूम उठा. सब ख़त्म होने के बाद बोला- "शाबाश, तुम वाकई मेरी टीम की
कैप्टेन बनाने लायक हो. तुमने काफी इनाम के लायक काम किया है." फिर शालू
पानी से अपनी गांड साफ़ करने लगी तो कोच अपनी वैवाहिक जीवन के दुखड़े रोने
लगा. अब शालू को उस पे तरस सा आने लगा, लेकिन उस ने फिर भी बदला लेने का
मन बना रखा था. बदले में कुछ एक साल लग गए लेकिन उसने बदला लिया ज़रूर.
उसकी कहानी भी आपको सुनाऊंगा, लेकिन फिर कभी.
समाप्त.........
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