बारिश का मौसम
आज फिर बारिश का मौसम है. कई दिनों से बारिश हो रही है, शायद कल धूप
निकले. घर बैठे बैठे जब लोगों को पुरानी बातें याद आती हैं तो कभी लोग
पुरानी फोटो निकाल के बैठ जाते हैं या फिर आँखें बंद करके पुरानी बातें
सोचते रहते हैं. अक्सर अच्छे वक़्त ज्यादा अच्छे लगते हैं और बुरे वक़्त
कम बुरे. अब मैंने जैसा कि आप लोगों से वादा किया है के अपनी कहानियां
बिना नमक मिर्च लगाए सुनाऊंगा, सो वही बात दिमाग में रखते हुए, मैं ये
कहानी बयान कर रहा हूँ.
आज जब पुरानी फोटो देख रहा था तो एक पुरानी फोटो नज़र आयी, मेरे बिस्तर
में बैठी स्वाति की – हलके नीले रंग की टी-शर्ट और हलके नीले रंग की
ट्रैक-पैंट्स में. शायद हम लोग जोग्गिंग करके लौटे थे या करने जाने वाले
थे. स्वाति की आवाज़ कानों में गूँज सी गयी और पुरानी यादें एक सिरहन की
तरह सर से नीचे की ओर बहते हुए टांगों के बीच में आके एक झन्नाहट के साथ
रुकी. उम्मीद है के आप पूरी कहानी जानना चाहेंगे, सो ये लीजिये:
मैं पहली बार स्वाति से अपने कोलेज के फंक्शन में मिला था. मैं अपने
दोस्तों के साथ सज धज के पहुंचा तो देखा एक बहुत ही प्यारी सी लड़की मेरे
एक दोस्त की गर्ल फ्रेंड रूचि के साथ खड़ी है. उसकी हंसी एकदम माधुरी
दिक्षित जैसी लग रही थी. उसने बड़ी शालीनता से एक पार्टी वेअर टाइप की
चोली और ड्रेस पहन राखी थी. मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था या तो रूचि
की सहेली है या फिर नयी आयी है कॉलेज में. माल लडकी देखी तो बस जा के
चिपक गए. रूचि ने परिचय करवाया – "ये हैं हमारी नयी रूम मेट – स्वाति,
अभी इसी साल कॉलेज ज्वाइन किया है". परिचय करवा के रूचि तो एक ओर खिसक
गयी, और हम स्वाति के साथ हो लिए. वो भी नयी नयी आयी थी और दोस्त बनाने
के मूड में थी. इतनी माल लडकी और लंड उठने पे उतारू. बड़ी मुश्किल से
जैसे कैसे छुपाया. बहुत ज्यादा नर्वस होने पे कई बार काम की बात होठों से
निकल ही जाती है, सो हमने स्वाति से मूवी देखने का पूछ ही लिया. हैरानी
इस बात की ज्यादा हुई के उसने हाँ भी बोल दिया. खैर, अगले दिन मिलने का
प्रोग्राम बना और उस रात की मुठ्ठ का भी जुगाड़ हो गया.
दोस्तों, अगर मेरी कहानी लम्बी लगती है तो फास्ट फॉरवर्ड करके पढ़ लेना.
मैं तो धीरे धीरे ही बयान करूंगा. आप समझ सकते हैं के ये मेरे लिए डायरी
लिखने के बराबर है और मैं मेरे लिए महत्वपूर्ण घटनाओं को बाहर नहीं
छोड़ना चाहता. खैर, ..
अगले दिन मैंने स्वाति को पिक किया. ट्यूब टॉप में और भी माल लग रही थी
और अन्दर क्या पहन रखा है, सब पता पड़ रहा था. यहाँ सबको अँगरेज़ बनाने
का शौक है, तो अंग्रेजी फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था. मैं थोडा
पछताया के हिंदी फिल्म थोडी लम्बी होती है तो ज्यादा मौका मिलता फिल्म
में, लेकिन अंग्रेजी फिल्म में क्या पता कोई सीन हो तो मेरी हिम्मत खुले.
खैर, फिल्म देखने बैठे तो दोनों ने अपनी कोहनी सीट के बीच वाले आर्म
रेस्ट पे रखी हुई थी. बाजुओं के हलके हलके स्पर्श से मेरे लंड में हलचल
होने लगी. एकदम नाजुक और मुलायम मुलायम स्किन थी उसकी. लंड एकदम टनाटन
खडा हो गया तो मैंने सोचा के बाजू रास्ते से हटा लूं और देखूं के क्या
पता उसकी बाजू फिसल के मेरे लंड पे आ जाए या वो खुद ही मेरा लंड पकड़ ले
और मुझे अपनी तरफ से कोशिश न करनी पडे. खैर, इतना तो न हुआ, पर जो हुआ
अच्छा ही हुआ. मैंने बाजू उठा के अपने सर के पीछे रखी तो स्वाति बोली-
"मेरे कंधे पे रख सकते हो". ऐसे मौके रोज़ रोज़ तो आते नहीं, सो हमने
उसके कंधे पे हाथ रख दिया. अब, मुझे जानते हो तो समझ ही गए होगे के मेरा
हाथ धीरे धीरे उस के कंधे पे खिसकता रहा और मम्मों की और बढ़ने लगा. वो
लगातार मूवी पे कमेन्ट्स कर रही थी, मैं चुपचाप मुस्करा रहा था और आस पास
के लोग श.. श… कर रहे थे. मुझे क्या, मम्मों के इतने नज़दीक आके मैं अब
पीछे हटने वाला नहीं था. स्वाति मेरी ओर झुक गयी और मेरे हाथ हलके हलके
करते और नीचे सरक गए. अब मेरे हाथ उसके मम्मों के उपरी हिस्से पे थे और
एकदम नर्म नर्म जगह पर. पिक्चर चलती रही और मैंने अपनी अंगुलियाँ हलके
हलके से घुमानी शुरू कर दी. स्वाति कुछ ना बोली तो मैंने अपना हाथ थोडा
और नीचे सरका दिया. अब मेरा हाथ एकदम सख्त कपडे से टकराया. उसने टाईट
(शायद पुश उप) ब्रा पहन राखी थी. मेरे हाथ थोडी देर तक उसकी ब्रा के
किनारों पे मंडराए और ब्रा के ऊपर पहुँच गए. आखिर उसके चूचे मेरे हाथों
में थे. मैं कोई 2-4 मिनट अपनी उँगलियों को उसके चूचों पे फिराता रहा
और हिम्मत कर के मैंने अचानक से उसकी चूची को दबोच लिया. वो एकदम खड़ी
हो गयी. मैंने सोचा, हो गया काम, लगा थप्पड़. वो बोली के तबियत ठीक
नहीं चलो घर चलें. सो हम मूवी के बीच में ही वापिस आ गए. उसको घर
छोड़ दिया, रास्ते में बहुत कम बात हुई और मैंने सोचा के अब आगे से कभी
मेरे साथ बात नहीं करेगी. खैर, कम से कम चूचे दबाने को तो मिले सो
पिक्चर के पैसे वसूल हो गए. उसके चूचों के नाम की उस रात कम से कम 4-5
बार मुठ्ठ मारनी पडी़. शुक्रवार रात थी, सोचा के अगले मंगल-बुध को उसे
फो़न करूंगा और देखूँगा के उठाती है के नहीं.
अगले दिन हर शनिचर की तरह ११ बजे तक मैं बिस्तर में पडा़ पलटियां खा रहा
था और एक और मुठ्ठ का माहौल बना रहा था के फो़न की घंटी बजी – स्वाति का
फो़न था. कम उम्मीद पे ही सही, अच्छा हुआ फो़न उठा लिया. स्वाति ने
पिछली रात के लिए सॉरी बोला और बोला के सर में दर्द था. मैं पूछा के
इन्तेवार को घूमने चलें तो बोली के इन्तेवार क्यूँ, आज शाम ही चलते हैं,
उसकी रूममेट भी नहीं है. मैं अपनी किस्मत पे यकीन नहीं कर पा रहा था.
सोचा के अब की बार धीरे धीरे आगे बढूंगा – वो नर्सरी राईम याद आ रही थी –
धीरे धीरे लंड को उठाना है, चूत में घुसाना है. बाकी दिन कुछ याद नहीं
कैसे काटा. शाम 5 बजे हम फिर सरकार की खिदमत में अपना लंड उठाये पहुँच
गए. इस बार जानेमन ने एक झीना सा काला टॉप और एक मेचिंग मिनी पहन रही
थी. जब टाईट मिनी में उसकी गांड को मचलते देखा तो दिल किया के अभी लंड
रगड़ दूं. बडी मुश्किल से अपने दिल पे काबू रखा.
घूम फिर के शाम के 9 बज गए तो प्रोग्राम बना एक डांस क्लब जाने का.
मैंने दो बीयर लगा राखी थी, उसने भी मोडरन दिखने की हौड में एक लगा ली
थी. एक ही लग रहा था बहुत थी उसके लिए. मैंने मन में पहले ही डांस का
प्रोग्राम बना रखा था तो एक खाकी पेंट के अन्दर एक हल्का सा बोक्सेर
कच्छा पहन रखा था, ताकि रगडा रगडी अच्छे से हो. मुझे डांस तो ज्यादा आता
नहीं था, लेकिन रगडने के नाम पे कुछ भी करवा लो.
शुरू में बालरूम डांस म्यूजिक चल रहा था तो स्वाति ने मुझे सिखाया के
कैसे करते हैं. मैंने अपने एक हाथ से उसका हाथ पकडा़ और दूसरा हाथ उसकी
कमर में. उसके कपडों के झीनेपन के चलते उसकी नाजुक और पतली कमर ऐसे महसूस
हो रही थी के जैसे मेरे हाथ उसके नंगे बदन पे पडे़ हों. इतनी बढिया फिगर
न जाने कैसे बना रखी थी, हर चीज़ एकदम परफेक्ट साइज़ की. डांस शुरू हुआ
और मैंने उसकी कमर से अपनी और खींच के अपने बदन से लगा लिया. उसने मेरे
कंधे पे अपना दूसरा हाथ रखा हुआ था, लेकिन मेरे खींचने से उसका मुंह भी
मेरे मुंह के काफी नज़दीक आ गया. उसने मुंह नीचे झुका लिया. इधर उसकी कमर
पे मेरे हाथ की वजह से मेरा लंड खडा़ हो गया और उसके पेट से जा लगा. अब
मुश्किल ये के दूर हटूं तो सबको दिखेगा के लंड खडा़ है और नज़दीक रहूँ तो
जाने स्वाति क्या सोचे. खैर, जब तक वो शिकायत न करे, तब तक ठीक है.
हम कोई १०-१५ मिनट तक ऐसे ही चिपके रहे-मेरा लंड उसके पेट पे, मेरा हाथ
उसकी कमर पे और उसके मम्मे मेरी छाती पे. उसकी गदराई जवान जांघे मेरी
जाँघों से सटी थी. तीसरा गाना ख़त्म हुआ तो मैंने हाथ हटाने के बहाने से
उसकी गांड सहलाते हुए हाथ नीचे किया. लंड ने हल्का सा झटका सा लिया.
स्वाति ने एक्टिंग तो ऐसे की के कुछ ना हुआ हो, लेकिन सवाल ही नहीं के
मेरे लंड की सख्ती ने उसके पेट को न गोद डाला हो. लेकिन बाई गोड, क्या
नर्म गांड थी. जी चाह रहा था के दोनों हाथों से दोनों गदराये कुल्हे पकड़
के मसलता रहूँ. ऐसी सोचों से लंड और टाईट हुआ जा रहा था. अब तक लंड का
सुपाडा़ थोडा गीला भी होने लगा था. मैंने सोचा और थोडी देर यूँही लगा
रहूँ तो यहीं माल निकल जाएगा और पेंट भी गंदी हो जायेगी. फिर बाद में
ज्यादा कुछ करने लायक भी न बचूंगा. खैर, डांस के बाद हम लोग कोने में बार
के पास जाके खडे हुए. उसने एक कोल्ड ड्रिंक लिया और मैंने एक और बीयर. वो
मुड़ के डांस फ्लोर की और देखने लगी और मैं उसके साथ वाले स्टूल पे बैठ
गया. वो हल्की हल्की झूम रही थी और उसकी गांड मेरे घुटने से हलके हलके से
छुए जा रही थी. मैंने अपना हाथ बढा के घुटने पे रख दिया लेकिन वो अपनी
जगह खडे वैसे ही झूमती रही. अब उसकी गांड मेरे हाथ के पिछले तरफ टकरा रही
थी. मैंने इधर उधर देखा, मेरे पीछे बार काउंटर था और कोई कुछ देख नहीं
सकता था, तो मैंने अपना हाथ घुमा लिया. अब उसकी गांड मेरी हथेली से लगे
जा रही थी. पहले हलके हलके और फिर मैंने थोडा जोर भी लगाना शुरू कर दिया
और अपना हाथ सीधे उसकी गांड पे रख दिया. वो वैसे ही झूमती रही. मैंने
अपनी हथेली पूरी खोल ली. अब मेरा बांया हाथ उसके दांयें कूल्हे के एक
किनारे से गांड के बीच की दरार तक फैला हुआ था. मैंने हाथ और जो़र से
उसकी गांड पे सटा दिया. अब मैंने उसका कूल्हा पकड़ रखा था और वो मस्त
अनजान सी बनी झूम रही थी. उसके होठों पे एक हल्की हल्की मुस्कान थी. उस
की गांड नर्म भी थी और टाईट भी. उसकी मिनी का कपडा पतला था और मैं उसकी
पेंटी ऐसे महसूस कर रहा था के जैसे मेरे और गांड के बीच में बस पंटी का
फासला हो. मैंने देखा के वो कुछ बोल नहीं रही तो मैंने अपनी अंगुलियाँ
उसकी गांड के बीच में घुसा दी. अब भी उसने कुछ न बोला तो मैंने उसकी गांड
को जो़र से दबा दिया. वो फिर भी कुछ ना बोली, वैसे ही खडे़ खडे़ झूमती
रही. मैं उसकी गांड दबाता रहा. मेरा लंड अब उफान मार रहा था. मैं उसके
पीछे खडा़ हो गया और अपना बायाँ हाथ उसकी गांड से हटा के उसके बायें
कुल्हे के बाजू में रखे उसके पीछे सट के खडा़ हो गया. हमारे कोने में
अँधेरा था तो किसी के देखने का ज्यादा डर था नहीं. वैसे भी बाकी लोग एक
दुसरे में मशगूल थे. एक महिला के मम्मे एकदम बाहर झूल रहे थे, बस निप्पल
न जाने कैसे छिपे थे. एक और जोडा़ एक कोने में चुम्मा चाटी में लगा था.
लड़का कम उम्र का था और आंटी कोई ३५ साल की. ऐसे माहौल में एक लडकी की
गांड से लंड सटा के खडे़ होने पे किसका ध्यान जाना था. वैसे भी ये तो आये
दिन बसों में होता रहता है, सो नया क्या था. खैर, बेकार की बातें कम और
मतलब की बात ज्यादा. मैं एकदम स्वाति की गांड के पीछे लंड लगा के खडा़
था. लंड एक और मुड़ के उसके एक कूल्हे और मेरी जांघ के बीच में आ गया.
इतनी मस्त गांड से लंड लगाये बहुत वक़्त हो गया था, सो एकदम आनंद आ गया.
उसने भी अपनी गांड पीछे कर करके एकदम मेरी जाँघों से सटा दी. उसके
कूल्हों और मेरी जाँघों में बस कपडों़ की २-३ तहों का फासला था. मैंने
अपने कूल्हे धीरे धीरे घुमाने शुरू कर दिए, यानी के उसकी गांड पे झटके
लगाने शुरू कर दिए. मैं बीच बीच में अपने हाथों से उसकी गांड भींचता रहा
और ऐसे ही झटके लगता रहा. कोई १०-१५ मिनट झटके लगा के वीर्य तो निकला
नहीं उलटे लंड और टाईट हो गया. मैंने उसकी गर्दन से उसके प्यारे प्यारे
बाल एक और करके उसकी सुराही सी गर्दन पे एक चुम्मा लगा दिया. "चलें?"
मैंने पूछा. "ओ के", डार्लिंग ने कहा. मैं उसकी कमर में हाथ डाल के उसे
ले वहां से बाहर निकल आया. अब तो चुदाई से कम में बात नहीं चलेगी, मैंने
सोचा. बाहर आके जैसे ही हम लोग कार में बैठे, मैंने अपने हाथ को उसकी
गर्दन के पीछे लगा के अपनी और खींच लिया और उसके होठों को चूसना शुरू कर
दिया. उसकी आँखों में एकदम वासना का नशा छाया हुआ था. उसने अपने होंठ
थोडे़ थोडे़ खोले और आँखें ज़रा ज़रा मूँद ली. एकदम नर्म नर्म होंठ और न
जाने क्या इत्र छिड़क रखा था, बार के धुंएँ और बीयर के बाद भी एकदम महक
रही थी. मैंने एक हाथ उसकी गर्दन के पीछे लगाए रखा और दूसरे हाथ से उसका
मम्मा थाम लिया. मैं उस के होंठ चूसता रहा और साथ में मम्मे दबाता रहा.
फिर मैंने अपना हाथ उसके कंधे से हटा के उसका हाथ पकडा़ और अपने लंड पे
रख दिया. पहली बार उसके चेहरे पे आश्चर्य भाव आया.
मैंने अपने हाथ को उसके हाथ पे लपेटा और अपने लंड को उसके हाथों में थमा
दिया. उसने शायद पहले कभी लंड नहीं पकडा़ था, सो बडी नजा़कत से हलके हलके
हाथों से ऐसे पकडा़ जैसे रूई से कोई बहुत ही नाजुक घाव को छू रही हो.
मैंने उसकी चूची को दबाना जा़री रखा और उसके होठों को चूसता रहा. थोडी़
देर यूँही मजे लेने के बाद मैंने पूछा – "मेरे यहाँ चलें, नयी इंग्लिश
मूवी की डी वी डी है मेरे पास". वो भी जानती थी के मूवी का बहाना है,
मेरा इरादा चूत में लंड घुसाना है.
बोली के चलो. सो, हम मैडम को अपने अपार्टमेन्ट में ले आये. अन्दर घुसते
ही मैंने उसे पीछे से दबोच लिया. कस के मम्मे पकड़ लिए और जो़र जो़र से
दबाने लगा. स्वाति सिस्कारियां लेने लगी. मैंने अपने घुटने मोड़ के अपना
लंड उसकी गांड पे लगा के उसे उठा लिया और अपने बेड रूम में ले गया और उसे
अपने बिस्तर पे पटक दिया. कुछ सेकंडों में मैं एकदम नंगा था और मेरा लंड
हवा में नाच रहा था. वो अब भी अपना मुंह नीचे करके लेटी थी. मैंने उसकी
सैंडल उतार के अपना हाथ उसके पैरों पे रख दिया. फिर मैं अपना हाथ उसकी
टांगों के ऊपर सरकाने लगा. लंड रह रह के झटके खा रहा था और एक शरारत
मेरे दिमाग में आयी. मैंने अपना लंड उसकी एडी पे रखा और उसकी टांग पे
रगड़ते हुए ऊपर की और ले जाने लगा. स्वाति की सिसकियाँ तेज़ होने लगी. अब
मेरा लैंड उसके घुटने के पिछली और था. मैं अपने लंड को थोडी देर उसके
घुटने के पीछे की और रगड़ता रहा. उसकी टांगें एकदम बढिया शेप में थी. बाद
में पता चला के वो भी मेरी तरह जोग्गिंग करती थी और योगा वोगा करके एकदम
टिप टॉप शेप में रहती थी. फिर मेरे लंड ने ऊपर की और चढा़ई शुरू कर दी.
अब उसकी जाँघों के पीछे की और यात्रा करता हुआ मेरा लंड मिनी स्किर्ट के
सिरे तक आ गया था. लौडे़ ने सफ़र जा़री रखा और मिनी ऊपर की और सरकती रही
और कुछ ही पलों में मेरे लंड का सामना मैडम की चड्ढी से हुआ. सफे़द रंग
की चड्ढी में फंसी गांड ऐसे लग रही थी के छोटे से पिंजरे में किसी को
ज़बरदस्ती बंद कर रखा हो. मैंने अपने लंड के सुपाडे को पेंटी के ऊपर से
ही उसके कूल्हों के बीच में रखा और जो़र लगाया. एक गरमाइश से मेरा लंड भर
सा गया. मैं थोडी देर उसकी पेंटी पे लंड रगड़ता रहा और फिर मेरे हाथों ने
उसकी पेंटी को पकडा़ और नीचे सरका दिया. जैसे जैसे पेंटी नीचे उतरती रही
और उसकी नरम, मुलायम गोल-गोल, गुन्दाज और चिकनी गांड अनावृत्त होती रही
लौडा़ और सख्त होता रहा. अब तक मेरा लंड इतना सख्त हो गया था के दीवार
में भी छेद कर डाले. स्वाति ने टाँगे आपस में भींच रखी थी. मैंने उसकी
टांगें खोली. अब भी उसका मुंह नीचे और पिछवाडा मेरी और था. टांगें खुलने
से गांड की लकीर नीचे की और जाते नज़र आने लगी. मैंने अपनी उंगली को उसकी
गांड की लकीर पे रखा और नीचे सरकाने लगा. अब स्वाति काँप रही थी और मैं
समझ गया के वो अब तक कभी चुदी नहीं है. हे भगवान्! मैंने सोचा, चुदाई
धीरे करनी पडे़गी. मेरा दिल उसकी गांड पे आया हुआ था, लेकिन अनुभव से मैं
एक बात सीखा था तो ये के पहली बार में ही गांड में घुसाने की कोशिश की तो
चूत से भी हाथ धोना पडे़गा. फिर सोचा के पहली बार में चूत एकदम टाईट
होगी, और मजा़ वैसे भी आएगा ही.
मेरी उंगली फिसल कर अब एकदम चूत के ऊपर पहुँच गयी थी. चूत कम्पन से ऐसे
ऊपर नीचे हो रही थी जैसे वहीं से सांस चल रहा हो. मेरी अंगुली का सिरा
चूत तक पहुंचा ही था के स्वाति ने अपने नाखूनों को बिस्तर में गडा दिया.
माल तैयार है, मैंने सोचा, लेकिन अभी तो मेरा आनंद शुरू ही हुआ था. मैं
लंड घुसाने की ज़ल्दी में नहीं था. मेरी अंगुली का सिरा चूत के छोने से
हल्का हल्का गीला होना शुरू हो गया था. मैंने अपनी अंगुली घुसाने की
कोशिश की और थोडी देर इधर उधर ढूँढने के बाद मेरी उंगली ज़रा सी अन्दर
घुसी. स्वाति ने एकदम जो़र से झटका सा लिया. मैंने उसकी स्किर्ट नीचे
उतारी और स्वाति के ऊपर चढ़ के लेट गया. मेरा लंड थोडी कोशिश के बाद अब
चूत के मुंह पे बैठा था. मैंने अपने दोनों हाथ स्वाति के हाथों पे रखे और
अपनी अंगुलियाँ उसकी अँगुलियों में फंसा दी. उसने कस के मेरी अंगुलियाँ
भींच दी. थोडी़ देर मैं उसके कानों पे चुम्मे लेता रहा, फिर थोडी देर
होंठ चूसे. फिर मैंने अपने हाथ छुडा़ के उसके सीने के नीचे घुसा दिए और
मम्मे जो़रों से दबाने लगा. फिर मैंने स्वाति को पलटा और अब वो अपनी कमर
के बल लेती थी. मैंने अपना हाथ उसकी चूत पे रखा और रगड़ने लगा, वो आहें
भरने लगी तो मैंने अपना लंड उसके हाथ में पकडा़ दिया. स्वाति आँखें बंद
करे करे मेरे लंड को सहलाने लगी. "घुसा दूं?" मैंने पूछा. "इतना बडा़
कैसे इतने से छेद में घुसेगा", स्वाति ने आखिर पूछ ही लिया. मैं
मुस्कराया और मैंने उसका कमीज़ और ब्रा ऊपर सरका दिए. इतने सुन्दर और
चिकने चूचे मैंने जि़न्दगी में पहले नहीं देखे थे. एकदम सफे़द, जो़रों की
लाली और निप्पल एकदम गुलाबी और सख्त. मैंने अपने दायें हाथ से उसके बाएँ
मम्मे को पकड के दबाया तो पाया के अब तक मैं समझ रहा था के ब्रा टाईट है,
लेकिन उसके मम्मे भी एकदम टाईट थे. त्वचा एकदम नर्म और चिकनी, मम्मे कम
से कम ३४ साइज़ के और एकदम टाईट. पूरी जिं़दगी ऐसे मम्मों से खेलते बिता
दूं तो कम है. मैं मम्मों को जो़र जो़र से दबाने लगा और जो़रों से चूसने
लगा. "इतनी जो़र से नहीं", वो बोलती रही लेकिन भूखे के हाथ से कोई खाना
थोडे़ छीन सकता है.
फिर मैंने अपने दाँतों से हलके हलके चूचों और खासकर निप्पलों को चबाना
शुरू कर दिया. एक बार एक निप्पल पे मूंह तो दूसरे निप्पल पे अंगूठे और
तर्जनी (पहली अंगुली) की चिकोटी. मैं ऐसे ही निप्पलों को न जाने कितनी
देर मसलता रहा, याद नहीं. वो हलके हलके लंड को सहलाती रही.
आखिर चूत का नंबर आ ही गया. मैंने उसकी टांगें खोल के अपना लंड चूत के
मुंह पे रख दिया. फिर थोडी देर लंड को चूत की मुलायम चारदीवारी पे सहलाने
के बाद मैंने बीच में रख के हाथ लंड से हटाया और उसके हाथ को थाम लिया.
अब वो थी मेरे नीचे, नीचे से मम्मों तक एकदम नंगी. ब्रा और कमीज मम्मों
से ऊपर चढे़ हुए.और मेरा लंड चूत के दरवाजे पे दस्तक देता हुआ. मैंने
जो़र लगाना शुरू कर दिया और स्वाति ने आँखें जो़रों से भींच दी. पहले
जो़र में कुछ न हुआ. मैंने कहा – रिलेक्स, डार्लिंग इतना जो़र से ना
भींचो. उसकी टांगें थोडी़ सी ढीली होते ही मैंने फिर जो़र लगाया. स्वाति
के मुंह से एक जो़रों की आह निकली और लंड महाराज अब चूत के फाटक के अन्दर
कोई एक सेंटी मीटर पहुँच गए थे. मैंने स्वाति के होंठों से होंठ लगाए और
वो पागलों की तरह चुम्मे लेने लगी. मैंने लंड को थोडा सा पीछे किया, और
हल्का सा जो़र लगा के थोडा और आगे धकेला. एक और सेंटी मीटर. इतनी टाईट
चूत में मैंने आज तक लंड नहीं घुसाया था. चारों और से जैसे टाईट रब्बर
बैंड मेरे लंड पे कस रहा था. मेरा लंड इन सब दबावों के बावजूद अन्दर
घुसता गया और मैंने एक जो़रदार झटका दिया. स्वाति लगभग चिल्ला पडी. मैं
डर गया के कहीं पडो़सी समझें कोई बलात्कार हो रहा है और पुलिस को बुला
लें. मैंने अपने मुंह को उसके मुंह पे रख के उसकी बाकी की चीख दबा दी.
लंड पूरा अन्दर तक घुस गया था. मेरे टट्टे उसके कूल्हों पे रखे थे. उसकी
टांगों ने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मैं धीरे धीरे अपना लंड आगे
पीछे करने लगा. मैं पहले ही धीरे धीरे धकिया रहा था और वो अपनी टांगों से
लपेट के मुझे और धीरे कर रही थी. मैं धक्के लगाते लगाते अपना हाथ उसकी
गांड तक ले के आया और फिर उसकी गांड के छेद तक. अपनी बीच वाली अंगुली
मैंने उसकी गांड के गरम गरम छेद पे रख दी और लगातार सहलाता रहा. उसके
होठों को थोडी़ देर चूसने के बाद मैं रह रह के उसके चूचों को चूस लेता,
कभी निप्पलों पे हलके से दांत गडा देता. ऐसे ही कुछ ५ मिनट हुए होंगे के
मैंने लंड को बाहर निकाल लिया. निकलते हुए मेरे लैंड का सुपाडा करीब करीब
चूत के मुंह के नजदीक वाले इलाके में फँस ही गया था. मैंने स्वाति को परे
मुंह करके एक तरफ करवट पे लिटाया और पीछे से मम्मे पकड़ के लंड घुसाने की
कोशिश की. बहुत कोशिश करके भी लंड इस रास्ते से घुस न पाया क्यूंकि
स्वाति ठीक से टांगें न खोल पायी. थोडी देर लंड को उसकी गांड पे रगडा और
लौट के बुद्धू घर को आये.
मैंने स्वाति को फिर उसकी कमर पे लिटाया और उसके मुंह पे हाथ रख के लंड
को घुसाया. पिछली बार की तरह घुसाना मुश्किल था, लेकिन इस बार मैंने उतना
सब्र से काम नहीं लिया और पहली बार में ही जो़रों के झटके से पूरा घुसा
दिया. स्वाति ने मेरे हाथ पर दांत गडा़ दिए, लेकिन सिर्फ इतना जो़र से के
हल्का दर्द हो, इतना जो़र से नहीं के खून निकल आये. मैं थोडी देर ऐसे ही
झटके मारता रहा फिर चूत में लंड डाले डाले मैंने अपनी बाजूएं स्वाति की
कमर के इर्द गिर्द लपेट ली और अपनी कमर की और लुढ़क गया. अब वो मेरे ऊपर
थी और मैं अपनी कमर पे. फिर मैंने हलके हलके झटके देने शुरू कर दिए.
मैंने स्वाति के कंधे पे जो़र देके कोशिश की के उसे बैठा दूं ताकि उसके
मम्मे मेरे ऊपर आमों की तरह झूलने लगें और मैं उनसे तमीज़ से खेल पाऊँ.
लेकिन स्वाति बार बार मेरी छाती से चिपके जा रही थी. मैंने सोचा, ये
अच्छी बात है, चुदवा भी रही है और शर्मा भी रही है. मम्मों से न खेल पाने
के चलते मैं वापिस लुढ़क के ऊपर आ गया और जो़रों से झटके लगाने लगा.
स्खलन होने से कुछ पलों पहले मैंने अपनी कमर एकदम सीधी कर ली जैसे के
पुश-अप कर की पोसिशन होती है जब बाजू एकदम सीधी होती हैं और दोनों हाथों
से दोनों मम्मों को दबोच लिया. बहुत जो़र से मम्मे भींच कर माल निकालने
वाला ही था के याद आया – उफ्फ्फ कंडम पहनना भूल गया. मैंने तुरंत लंड
बाहर निकाला, सफे़द वीर्य एकदम जो़रों से पिचकारी की तरह मेरे लंड से
निकला और चूत से एक लकीर बनाता हुआ स्वाति की ठुड्डी तक जा पहुंचा. मैंने
जो़र की आह भरी. एक और पिचकारी निकली, इस बार नाभि और मम्मों के बीच तक
पहुँची. फिर मैंने अपने हाथों से बचा खुचा माल निकाला तो उसके पूरे पेट
पे एक झील सी बन गयी. वीर्य रिस कर उसके पेट से दोनों और जाने लगा. "लंड
चुसोगी?" मैंने पूछा, लेकिन स्वाति कुछ न बोली, मुंह एक और करके साइड की
दीवार की और देखने लगी. मैंने मन बना लिया के मुंह में तो दे ही देता
हूँ, सो मैं अपना लंड लेके उसके होठों तक ले गया. उसने मुंह न खोला तो
मैं अपना अब नर्म हो चूका लंड उसके होठों पे रखा और हलके हलके सहलाने
लगा. आखिर स्वाति को तरस आ गया और उसने मुंह खोल के मेरे लंड को अपने
मुंह में भर लिया. थोडी़ देर तक वो लंड चूसती रही. मेरी आँखें इतने आनंद
से एकदम बंद थी. जब पूरा माल बाहर आ चूका था, और मैं और नहीं झेल पा रहा
था, मैंने लंड उसके मुंह से निकाला. स्वाति अब मुस्करा रही थी. बिस्तर
में मम्मों से नीचे एकदम नंगी, पेट पे एक वीर्य का समंदर, दोनों और रिसती
वीर्य की नदीयाँ और चूत से ठुड्डी तक एक सीधी सफे़द लकीर, ऐसे लग रहा था
के जैसे खुद भगवान् ने आ के बहुत सुन्दर पेंटिंग बनायी हो.
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