माया की माया --1
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन
देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी
लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की
लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने
के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का
कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो
मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरूर मारी
है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी
थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए
गुलामी ही कर लूं।
इसी कहानी से......
हमारी शादी को 4-5 महीने होने को आये थे और हम लगभग रोज़ ही मधुर मिलन
(चुदाई) का आनंद लिया करते थे। मैंने मधुर को लगभग हर आसन में और घर के
हर कोने में जी भर कर चोदा था। पता नहीं हम दोनों ने कामशास्त्र के कितने
ही नए अध्याय लिखे होंगे। पर सच कहूं तो चुदाई से हम दोनों का ही मन नहीं
भरा था। कई बार तो रात को मेरी बाहों में आते ही मधुर इतनी चुलबुली हो
जाया करती थी कि मैं रति पूर्व क्रीड़ा भी बहुत ही कम कर पाता था और झट
से अपना पप्पू उसकी लाडो में डाल कर प्रेम युद्ध शुरू कर दिया करता था।
एक बात आपको और बताना चाहूँगा। मधुर ने तो मुझे दूध पीने और शहद चाटने की
ऐसी आदत डाल दी है कि उसके बिना तो अब मुझे नींद ही नहीं आती। और मधुर भी
मलाई खाने की बहुत बड़ी शौक़ीन बन गई है। आप नहीं समझे ना ? चलो मैं
विस्तार से समझाता हूँ :
हमारा दाम्पत्य जीवन (चुदाई अभियान) वैसे तो बहुत अच्छा चल रहा था पर मधु
व्रत त्योहारों के चक्कर में बहुत पड़ी रहती है। आये दिन कोई न कोई व्रत
रखती ही रहती है। ख़ास कर शुक्र और मंगलवार का व्रत तो वो जरूर रखती है।
उसका मानना है कि इस व्रत से पति का शुक्र गृह शक्तिशाली रहता है। पर
दिक्कत यह है कि उस रात वो मुझे कुछ भी नहीं करने देती। ना तो वो खुद
मलाई खाती है और ना ही मुझे दूध पीने या शहद चाटने देती है।
लेकिन शनिवार की सुबह वह जल्दी उठ कर नहा लेती है और फिर मुझे एक चुम्बन
के साथ जगाती है। कई बार तो उसकी खुली जुल्फें मेरे चहरे पर किसी काली
घटा की तरह बिखर जाती हैं और फिर मैं उसे बाँहों में इतनी जोर से भींच
लेता हूँ कि उसकी कामुक चित्कार ही निकल जाती है और फिर मैं उसे बिना
रगड़े नहीं मानता। वो तो बस कुनमुनाती सी रह जाती है। और फिर वो रात
(शनिवार) तो हम दोनों के लिए ही अति विशिष्ट और प्रतीक्षित होती है। उस
रात हम दोनों आपस में एक दूसरे के कामांगों पर शहद लगा कर इतना चूसते हैं
कि मधु तो इस दौरान 2-3 बार झड़ जाया करती है और मेरा भी कई बार उसके
मुँह में ही विसर्जित हो जाया करता है जिसे वो किसी अमृत की तरह गटक लेती
है।
रविवार वाले दिन फिर हम दोनों साथ साथ नहाते हैं और फिर बाथरूम में भी
खूब चूसा चुसाई के दौर के बाद एक बार फिर से गर्म पानी के फव्वारे के
नीचे घंटों प्रेम मिलन करते रहते हैं। कई बार वो बाथटब में मेरी गोद में
बैठ जाया करती है या फिर वो पानी की नल पकड़ कर या दीवाल के सहारे थोड़ी
नीचे झुक कर अपने नितम्बों को थिरकाती रहती है और मैं उसके पीछे आकर उसे
बाहों में भर लेता हूँ और फिर पप्पू और लाडो दोनों में महा संग्राम शुरू
हो जाता है। उसके गोल मटोल नितम्बों के बीच उस भूरे छेद को खुलता बंद
होता देख कर मेरा जी करता अपने पप्पू को उसमें ही ठोक दूँ। पर मैं उन पर
सिवाय हाथ फिराने या नितम्बों पर चपत (हलकी थपकी) लगाने के कुछ नहीं कर
पाता। पता नहीं उसे गाण्ड मरवाने के नाम से ही क्या चिढ़ थी कि मेरे बहुत
मान मनोवल के बाद भी वो टस से मस नहीं होती थी। एक बात जब मैंने बहुत जोर
दिया तो उसने तो मुझे यहाँ तक चेतावनी दे डाली थी कि अगर अब मैंने दुबारा
उसे इस बारे में कहा तो वो मुझ से तलाक ही ले लेगी।
मेरा दिल्ली वाला दोस्त सत्य जीत (याद करें लिंगेश्वर की काल भैरवी) तो
अक्सर मुझे उकसाता रहता था कि गुरु किसी दिन उल्टा पटक कर रगड़ डालो।
शुरू शुरू में सभी पत्नियाँ नखरे करती हैं वो भी एक बार ना नुकर करेगी
फिर देखना वो तो इसकी इतनी दीवानी हो जायेगी कि रोज़ करने को कहने लगेगी।
ओह …यार जीत सभी की किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं होती भाई।
एक और दिक्कत थी। शुरू शुरू में तो हम बिना निरोध (कंडोम) के सम्भोग कर
लिया करते थे पर अब तो वो बिना निरोध के मुझे चोदने ही नहीं देती। और
माहवारी के उन 3-4 दिनों में तो पता नहीं उसे क्या बिच्छू काट खाते हैं
वो तो मधु से मधु मक्खी ही बन जाती है। चुदाई की बात तो छोड़ो वो तो अपने
पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देती। और इसलिए पिछले 3 दिनों से हमारा चुदाई
कार्यक्रम बिल्कुल बंद था और आज उसे जयपुर जाना था, आप मेरी हालत समझ
सकते हैं।
आप की जानकारी के लिए बता दूं राजस्थान में होली के बाद गणगौर उत्सव बड़ी
धूमधाम से मनाया जाता है। कुंवारी लड़कियाँ और नव विवाहिताएं अपने पीहर
(मायके) में आकर विशेष रूप से 16 दिन तक गणगौर का पूजन करती हैं मैं तो
मधु को भेजने के मूड में कतई नहीं था और ना ही वो जाना चाहती थी पर वो
कहने लगी कि विवाह को 3-4 महीने हो गए हैं वो इस बहाने भैया और भाभी से
भी मिल आएगी।
मैं मरता क्या करता। मैं इतनी लम्बी छुट्टी लेकर उसके साथ नहीं जा सकता
था तो हमने तय किया कि मैं गणगोर उत्सव के 1-2 दिन पहले जयपुर आ जाऊँगा
और फिर उसे अपने साथ ही लेता आऊंगा। मैंने जब उसे कहा कि वहाँ तुम्हें
मेरे साथ ही सोना पड़ेगा तो वो तो मारे शर्म के गुलज़ार ही हो गई और कहने
लगी,"हटो परे … मैं भला वहाँ तुम्हारे साथ कैसे सो सकती हूँ?"
"क्यों ?"
"नहीं… मुझे बहुत लाज आएगी ? वहाँ तो रमेश भैया, सुधा भाभी और मिक्की
(तीन चुम्बन) भी होंगी ना? उनके सामने मैं … ना बाबा ना … मैं नहीं आ
सकूंगी … यहाँ आने के बाद जो करना हो कर लेना !"
"तो फिर मैं जयपुर नहीं आऊंगा !" मैंने बनावती गुस्से से कहा।
"ओह …?" वो कातर (निरीह-उदास) नज़रों से मुझे देखने लगी।
"एक काम हो सकता है?" उसे उदास देख कर मैंने कहा।
"क्या?"
"वो सभी लोग तो नीचे सोते हैं। मैं ऊपर चौबारे में सोऊंगा तो तुम रात को
चुपके से दूध पिलाने के बहाने मेरे पास आ जाना और फिर 3-4 बार जम कर
चुदवाने के बाद वापस चली जाना !" खाते हुए मैंने उसे बाहों में भर लेना
चाहा।
"हटो परे … गंदे कहीं के !" मधु ने मुझे परे धकेलते हुए कहा।
"क्यों … इसमें गन्दा क्या है?"
"ओह .. प्रेम … तुम भी… ना.. चलो ठीक है पर तुम कमरे की बत्ती बिल्कुल
बंद रखना … मैं बस थोड़ी देर के लिए ही आ पाऊँगी !" मधु होले होले
मुस्कुरा रही थी।
मैं जानता था उसे भी मेरा यह प्रस्ताव जम गया है। इसका एक कारण था।
मधु चुदाई के बाद लगभग रोज़ ही मुझे छुहारे मिला गर्म दूध जरुर पिलाया
करती है। वो कहती है इसके पीने से आदमी सदा जवान बना रहता है। वैसे मैं
तो सीधे उसके दुग्धकलशों से दूध पीने का आदि बन गया था पर चलो उसका मेरे
पास आने का यह बहाना बहुत ही सटीक था।
मधु के जयपुर चले जाने के बाद वो 10-15 दिन मैंने कितनी मुश्किल से
बिताये थे, मैं ही जानता हूँ। उसकी याद तो घर के हर कोने में बसी थी। हम
रोज़ ही घंटों फ़ोन पर बातें और चूमा चाटी भी करते और उन सुहानी यादों को
एक बार फिर से ताज़ा कर लिया करते।
मैं गणगोर उत्सव से 2 दिन पहले सुबह सुबह ही जयपुर पहुँच था। आप सभी को
वो छप्पनछुरी "माया मेम साब" तो जरुर याद होगी ? ओह … मैंने बताया तो था
? (याद कीजिये "मधुर प्रेम मिलन") अरे भई मैं सुधा भाभी की छोटी बहन माया
की बात कर रहा हूँ जिसे सभी 'माया मेम साब' के नाम से बुलाते हैं ? पूरी
पटाका (आइटम बम) लगती है जैसे लिम्का की बोतल हो। और उसके नखरे तो बस
बल्ले बल्ले … होते हैं। नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। दिन में कम से कम
6 बार तो पेंटी बदलती होगी।
माया में साब अहमदाबाद में एम बी ए कर रही है पर आजकल परीक्षा पूर्व की
छुट्टियों में जयपुर में ही जलवा अफरोज थी। एक बार मेरे साथ उसकी शादी का
प्रस्ताव भी आया था पर मधु ने बाज़ी मार ली थी।
सच कहूं तो उसके नितम्ब तो जीन्स और कच्छी में संभाले ही नहीं संभलते।
साली के क्या मस्त कूल्हे और मम्मे हैं। उनकी लचक देख कर तो बंद अपने
होश-ओ-हवास ही खो बैठे। और ख़ास कर उसके लचक कर चलने का अंदाज़ तो इतना
कातिलाना था कि उसे देख कर मुझे अपनी जांघों पर अखबार रखना पड़ा था। जब
कभी वो पानी या नाश्ता देने के बहाने झुकती है तो उसके गोल गोल कंधारी
अनारों को देख कर तो मुँह में पानी ही टपकने लगता है। पंजाबी लडकियाँ तो
वैसे भी दिलफेंक और आशिकाना मिजाज़ की होती हैं मुझे तो पूरा यकीन है
माया कॉलेज के होस्टल में अछूती तो नहीं बची होगी।
दिन में रमेश (मेरा साला) तो 3-4 दिनों के लिए टूर पर निकल गए और मधु
अपनी भाभी के साथ उसके कमरे में ही चिपकी रही। पता नहीं दोनों सारा दिन
क्या खुसर-फुसर करती रहती हैं। मेरे पास माया मेम साब और मिक्की के साथ
कैरम बोट और लूडो खेलने के अलावा कोई काम नहीं था। माया ने जीन का निक्कर
पहन रखा था जिसमें उसकी गोरी गोरी पुष्ट जांघें तो इतनी चिकनी लग रही थी
जैसे संग-ए-मरमर की बनी हों। उसकी जाँघों के रंग को देख कर तो उसकी चूत
के रंग का अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं था। मेरा अंदाज़ा था कि उसने
अन्दर पेंटी नहीं डाली होगी। उसने कॉटन की शर्ट पहन रखी थी जिसके आगे के
दो बटन खुले थे। कई बार खेलते समय वो घुटनों के बल बैठी जब थोड़ा आगे झुक
जाती तो उसके भारी उरोज मुझे ललचाने लगते। वो फिर जब कनखियों से मेरी ओर
देखती तो मैं ऐसा नाटक करता जैसे मैंने कुछ देखा ही ना हो। पता नहीं उसके
मन में क्या था पर मैं तो यही सोच रहा था कि काश एक रात के लिए मेरी
बाहों में आ जाए तो मैं इसे उल्टा पटक कर अपने दबंग लण्ड से इसकी गाण्ड
मार कर अपना जयपुर आना और अपना जीवन दोनों को धन्य कर लूं।
काश यह संभव हो पाता। मुझे ग़ालिब का एक शेर याद आ रहा है :
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। माया तो पूरी मुटियार बनी थी।
गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा
दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। माया अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली "यह
सब तो मधुर की गलती है।"
"क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?" मधु ने तुनकते हुए कहा।
"सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !"
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर माया ने "ये काली काली आँखें गोरे
गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल" पर जो ठुमके लगाए कि
मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा "ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी
गाण्ड …"
कहानी जारी रहेगी !
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