Saturday, April 14, 2012

हिंदी सेक्सी कहानियाँ माया की माया -2

हिंदी सेक्सी कहानियाँ
माया की माया --2

बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। माया तो पूरी मुटियार बनी थी।
गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा
दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। माया अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली "यह
सब तो मधुर की गलती है।"
"क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?" मधु ने तुनकते हुए कहा।
"सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !"
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर माया ने "ये काली काली आँखें गोरे
गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल" पर जो ठुमके लगाए कि
मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा "ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी
गाण्ड …"
सच कहूँ तो उसके नितम्बों को देख कर तो मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि
एक बार तो मेरा मन बाथरूम हो आने को करने लगा। मेरा तो मन कर रहा था कि
डांस के बहाने इसे पकड़ कर अपनी बाहों में भींच ही लूँ !
वैसे मधुर भी बहुत अच्छा डांस करती है पर आज उसने पता नहीं क्यों डांस
नहीं किया वरना तो वो ऐसा कोई मौका कभी नहीं चूकती।
खाना खाने के बाद रात को कोई 11 बजे माया और मिक्की अपने कमरे में चली गई
थी। मैं भी मधु को दूध पिला जाने का इशारा करना चाहता था पर वो कहीं
दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं सोने के लिए ऊपर चौबारे में चला आया। हालांकि मौसम में अभी भी थोड़ी
ठंडक जरुर थी पर मैंने अपने कपड़े उतार दिए थे और मैं नंगधडंग बिस्तर पर
बैठा मधु के आने का इंतज़ार करने लगा। मेरा लण्ड तो आज किसी अड़ियल टट्टू
की तरह खड़ा था। मैं उसे हाथ में पकड़े समझा रहा था कि बेटा बस थोडा सा
सब्र और कर ले तेरी लाडो आती ही होगी। मेरे अन्दर पिछले 10-15 दिनों से
जो लावा कुलबुला रहा था मुझे लगा अगर उसे जल्दी ही नहीं निकाला गया तो
मेरी नसें ही फट पड़ेंगी। आज मैंने मन में ठान लिया था कि मधु के कमरे
में आते ही चूमाचाटी का झंझट छोड़ कर एक बार उसे बाहों में भर कर कसकर जोर
जोर से रगडूंगा।
मैं अभी इन खयालों में डूबा ही था कि मुझे किसी के आने की पदचाप सुनाई
दी। वो सर झुकाए हाथों में थर्मस और एक गिलास पकड़े धीमे क़दमों से कमरे
में आ गई। कमरे में अँधेरा ही था मैंने बत्ती नहीं जलाई थी।
जैसे ही वो बितर के पास पड़ी छोटी स्टूल पर थर्मस और गिलास रखने को झुकी
मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मेरा लण्ड उसके मोटे मोटे
नितम्बों की खाई से जा टकराया। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पीठ और
गर्दन पर ही ले लिए और एक हाथ नीचा करके उसके उरोजों को पकड़ लिया और
दूसरे हाथ से उसकी लाडो को भींच लिया। उसने पतली सी नाइटी पहन रखी थी और
अन्दर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसके
नितम्ब और उरोज इन 10-15 दिनों में इतने बड़े बड़े और भारी कैसे हो गए।
कहीं मेरा भ्रम तो नहीं। मैंने अपनी एक अंगुली नाइटी के ऊपर से ही उसकी
लाडो में घुसाने की कोशिश करते हुए उसे पलंग पर पटक लेने का प्रयास किया।
वह थोड़ी कसमसाई और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। इसी आपाधापी में
उसकी एक हलकी सी चीख पूरे कमरे में गूँज गई ......
"ऊईईई... ईईईई ... जीजू ये क्या कर रहे हो.......? छोड़ो मुझे ... !"
मैं तो उस अप्रत्याशित आवाज को सुनकर हड़बड़ा ही गया। वो मेरी पकड़ से
निकल गई और उसने दरवाजे के पास लगे लाईट के बटन को ऑन कर दिया। मैं तो
मुँह बाए खड़ा ही रह गया। लाईट जलने के बाद मुझे होश आया कि मैं तो नंग
धडंग ही खड़ा हूँ और मेरा 7 इंच का लण्ड कुतुबमीनार की तरह खड़ा जैसे आये
हुए मेहमान को सलामी दे रहा है। मैंने झट से पास रखी लुंगी अपनी कमर पर
लपेट ली।
"ओह ... ब ...म... माया तुम ?"
"जीजू ... कम से कम देख तो लेना था ?"
"वो ... स .. सॉरी ... मुझे लगा मधु होगी ?"
"तो क्या तुम मधु के साथ भी इस तरह का जंगलीपन करते हो?"
"ओह .. सॉरी ..." मैं तो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था।
वो मेरी लुंगी के बीच खड़े खूंटे की ओर ही घूरे जा रही थी।
"मैं तो दूध पिलाने आई थी ! मुझे क्या पता कि तुम मुझे इस तरह दबोच लोगे
? भला किसी जवान कुंवारी लड़की के साथ कोई ऐसा करता है?" उसने उलाहना देते
हुए कहा।
"माया ... सॉरी ... अनजाने में ऐसा हो गया ... प्लीज म ... मधु से इस बात
का जिक्र मत करना !" मैं हकलाता हुआ सा बोला।
मेरे मुँह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी, मैंने कातर नज़रों से उसकी ओर देखा।
"किस बात का जिक्र?"
"ओह... वो... वो कि मैंने मधु समझ कर तुम्हें पकड़ लिया था ना ?"
"ओह ... मैं तो कुछ और ही समझी थी ?" वो हंसने लगी।
"क्या ?"
"मैं तो यह सोच रही थी कि तुम कहोगे कि कमरे में तुम्हारे नंगे खड़े होने
वाली बात को मधु से ना कहूं ?" वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
अब मेरी जान में जान आई।
"वैसे एक बात कहूं ?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
"क ... क्या ?"
"वैसे आप बिना कपड़ों के भी जमते हो !"
"धत्त शैतान ... !"
"हुंह ... एक तो मधु के कहने पर मैं दूध पिलाने आई और ऊपर से मुझे ही
शैतान कह रहे हो ! धन्यवाद करना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा ?"
"ओह... सॉरी ? प्लीज बैठो !" मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह
विचित्र ब्रह्म माया मेम साब इतना जल्दी मिश्री की डली बन जायेगी। यह तो
नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती।
"जीजू एक बात पूछूँ?" वो मेरे पास ही बिस्तर पर बैठते हुए बोली।
"हम्म ... ?"
"क्या वो छिपकली (मधुर) रोज़ इसी तरह तुम्हें दूध पिलाती है?"
"ओह ... हाँ ... पिलाती तो है !"
"ओये होए ... होर नाल अपणा शहद वी पीण देंदी है ज्या नइ ?" (ओहो ... और
साथ में अपना मधु भी पीने देती है या नहीं) वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
सुधा भाभी और माया पटियाला के पंजाबी परिवार से हैं इसलिए कभी कभी पंजाबी
भी बोल लेती हैं।
अजीब सवाल था। कहीं मधु ने इसे हमारे अन्तरंग क्षणों और प्रेम युद्ध के
बारे में सब कुछ बता तो नहीं दिया? ये औरतें भी बड़ी अजीब होती हैं पति
के सामने तो शर्माने का इतना नाटक करेंगी और अपनी हम उम्र सहेलियों को
अपनी सारी निजी बातें रस ले ले कर बता देंगी।
"हाँ ... पर तुम क्यों पूछ रही हो ?"
"उदां ई ? चल्लो कोई गल नइ ! जे तुस्सी नई दसणा चाहंदे ते कोई गल नइ ...
मैं जान्नी हाँ फेर ?" (ऐसे ही ? चलो तुम ना बताना चाहो तो कोई बात नहीं
...। मैं जाती हूँ फिर) वो जाने के लिए खड़ी होने लगी।
मैंने झट से उसकी बांह पकड़ते हुए फिर से बैठते हुए कहा,"ओह ... तुम तो
नाराज़ हो गई? वो ... दरअसल ... भगवान् ने पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा
बनाया है !"
"अच्छाजी ... होर बदले विच्च तुस्सी की पिलांदे ओ?" (अच्छाजी ... और बदले
में आप क्या पिलाते हो) वो मज़ाक करते हुए बोली।
हे लिंग महादेव ! यह किस दूध मलाई और शहद की बात कर रही है ? अब तो शक की
कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई थी। लगता है मधुर ने इसे हमारी सारी अन्तरंग
बातें बता दी हैं। जरुर इसके मन भी कुछ कुलबुला रहा है। मैं अगर थोड़ा सा
प्रयास करूँ तो शायद यह पटियाला पटाका मेरी बाहों में आ ही जाए।
"ओह .. जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब अपने आप सब पता लग जाएगा !" मैंने कहा।
"कि पता कोई लल्लू जिहा टक्कर गिया ताँ ?" (क्या पता कोई लल्लू टकर गया तो)
"अरे भई ! तुम इतनी खूबसूरत हो ! तुम्हें कोई लल्लू कैसे टकराएगा ?"
"ओह ... मैं कित्थे खूबसूरत हाँ जी ?" (ओह... मैं कहाँ खूबसूरत हूँ जी)
मैं जानता था उसके मन में अभी भी उस बात की टीस (मलाल) है कि मैंने उसकी
जगह मधु को शादी के लिए क्यों चुना था। यह स्त्रीगत ईर्ष्या होती ही है,
और फिर माया भी तो आखिर एक स्त्री ही है अलग कैसे हो सकती है।
"माया एक बात सच कहूं ?"
"हम्म... ?"
"माया तुम्हारी फिगर ... मेरा मतलब है खासकर तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं !"
"क्यों उस मधुमक्खी के कम हैं क्या ?"
"अरे नहीं यार तुम्हारे मुकाबले में उसके कहाँ ?"
वो कुछ सोचती जा रही थी। मैं उसके मन की उथल पुथल को अच्छी तरह समझ रहा था।
मैंने अगला तीर छोड़ा,"माया मेम साब, सच कहता हूँ अगर तुम थोड़ी देर नहीं
चीखती या बोलती तो आज ... तो बस ....?"
"बस ... की ?" (बस क्या ?)
"वो ... वो ... छोड़ो ... मधु को क्या हुआ वो क्यों नहीं आई ?" मैंने जान
बूझ कर विषय बदलने की कोशिश की। क्या पता चिड़िया नाराज़ ही ना हो जाए।
"किउँ ... मेरा आणा चंगा नइ लग्या ?" (क्या मेरा आणा अच्छा नहीं लगा ?)
"ओह... अरे नहीं बाबा वो बात नहीं है ... मेरी साली साहिबा जी !"
"पता नहीं खाना खाने के बाद से ही उसे सरदर्द हो रहा था या बहाना मार रही
थी सो गई और फिर सुधा दीदी ने मुझे आपको दूध पिला आने को कहा ..."
"ओह तो पिला दो ना ?" मैंने उसके मम्मों (उरोजों) को घूरते हुए कहा।
"पर आप तो दूध की जगह मुझे ही पकड़ कर पता नहीं कुछ और करने के फिराक में थे ?"
"तो क्या हुआ साली भी तो आधी घरवाली ही होती है !"
"अई हई ... जनाब इहो जे मंसूबे ना पालणा ? मैं पटियाला दी शेरनी हाँ ?
इदां हत्थ आउन वाली नइ जे ?" (ओये होए जनाब इस तरह के मंसूबे मत पालना ?
मैं पटियाला की शेरनी हूँ इस तरह हाथ आने वाली नहीं हूँ)
"हाय मेरी पटियाला की मोरनी मैं जानता हूँ ... पता है पटियाला के बारे
में दो चीजें बहुत मशहूर हैं ?"
"क्या ?"
"पटियाला पैग और पटियाला सलवार ?"
"हम्म ... कैसे ?"
"एक चढ़ती जल्दी है और एक उतरती जल्दी है !"
"ओये होए ... वड्डे आये सलवार लाऽऽन आले ?"
"पर मेरी यह शेरनी आधी गुजराती भी तो है ?" (माया गुजरात के अहमदाबाद शहर
से एम बी ए कर रही है)
"तो क्या हुआ ?"
"भई गुजराती लड़कियाँ बहुत बड़े दिल वाली होती हैं। अपने प्रेमीजनों का
बहुत ख़याल रखती हैं।"
"अच्छाजी ... तो क्या आप भी जीजू के स्थान पर अब प्रेमीजन बनना चाहते हैं ?"
"तो इसमें बुरा क्या है?"
"जेकर ओस कोड़किल्ली नू पता लग गिया ते ओ शहद दी मक्खी वांग तुह्हानूं कट
खावेगी ?" (अगर उस छिपकली को पता चल गया तो वो मधु मक्खी की तरह आपको काट
खाएगी) वो मधुर की बात कर रही थी।
"कोई बात नहीं ! तुम्हारे इस शहद के बदले मधु मक्खी काट भी खाए तो कोई
नुक्सान वाला सौदा नहीं है !" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मेरा अनुमान था वो अपना हाथ छुड़ा लेगी। पर उसने अपना हाथ छुड़ाने का
थोड़ा सा प्रयास करते हुए कहा,"ओह ... छोड़ो जीजू क्या करते हो ... कोई
देख लेगा ... चलो दूध पी लो फिर मुझे जाना है !"
"मधु की तरह तुम अपने हाथों से पिला दो ना ?"
"वो कैसे ... मेरा मतलब मधु कैसे पिलाती है मुझे क्या पता ?"
मेरे मन में तो आया कह दूं 'अपनी नाइटी खोलो और इन अमृत कलशों में भरा जो
ताज़ा दूध छलक रहा है उसे ही पिला दो' पर मैंने कहा,"वो पहले गिलास अपने
होंठों से लगा कर इसे मधुर बनाती है फिर मैं पीता हूँ !"
"अच्छाजी ... पर मुझे तो दूध अच्छा नहीं लगता मैं तो मलाई की शौक़ीन हूँ !"
"कोई बात नहीं तुम मलाई भी खा लेना !" मैंने हंसते हुए कहा।
मुझे लगा चिड़िया दाना चुगने के लिए अपने पैर जाल की ओर बढ़ाने लगी है,
उसने थर्मस खोल कर गिलास में दूध डाला और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
"माया प्लीज तुम भी इस दूध का एक घूँट पी लो ना?"
"क्यों ?"
"मुझे बहुत अच्छा लगेगा !"
उसने दूध का एक घूँट भरा और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने ठीक उसी जगह पर अपने होंठ लगाए जहां पर माया के होंठ लगे थे। माया
मुझे हैरानी से देखती हुई मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। किसी लड़की को
प्रभावित करने के यह टोटके मेरे से ज्यादा भला कौन जानता होगा।
"वाह माया मेम साब, तुम्हारे होंठों का मधु तो बहुत ही लाजवाब है यार ?"
"हाय ओ रब्बा ... हटो परे ... कोई कल्ली कुंवारी कुड़ी दे नाल इहो जी
गल्लां करदा है ?" (हे भगवान् हटो परे कोई अकेली कुंवारी लड़की के साथ ऐसी
बात करता है क्या) वो तो मारे शर्म ले गुलज़ार ही हो गई।
"मैं सच कहता हूँ तुम्हारे होंठों में तो बस मधु भरा पड़ा है। काश ! मैं
इनका थोड़ा सा मधु चुरा सकता !"
"तुमने ऐसी बातें की तो मैं चली जाउंगी !" उसने अपनी आँखें तरेरी।
"ओह ... माया, सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं ... पता
नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।"
"जीजू तुम फिर ....? मैं जाती हूँ !"
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे
तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस
थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर
नहीं लगाएगी।
"माया चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?"
"ना बाबा ना ... केहो जी गल्लां करदे ओ ... किस्से ने वेख लया ते ? होर
फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?" (ना बाबा
ना ... कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों
का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)
कहानी जारी रहेगी !

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Posted By .....raj..... to हिंदी सेक्सी कहानियाँ at 11/02/2011 12:11:00 AM


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