Tuesday, April 10, 2012

सेक्सी कहानियाँ आईना पार्ट -2

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

आईना पार्ट -2

गतान्क से आगे....
"सही हैं यार तेरे" कहते हुए सोनू ने अपनी पेंट की ज़िप खोली और अपना
खड़ा लंड बाहर निकाल कर सहलाने लगा. नीलम ने एक नज़र उसके लंड पर डाली और
चुप चाप उसके चेहरे की तरफ देखने लगी. पर सोनू की नज़र तो जैसे उसकी
चूचियो से चिपक कर रह गयी थी.

"ब्रा खोल" वो कुच्छ देर अपना लंड सहलाने के बाद बोला. नीलम ने अपने हाथ
पिछे ले जाकर हुक खोला और ब्रा भी उतार कर सामने डॅश बोर्ड पर रख दिया.

"आई शपथ. साला बहुत लड़कियाँ बजाया मैं. बहुत मम्मे देखे हैं पर तेरे
जैसे नही देखे" उसका हाथ तेज़ी से अपने लंड पर चलने लगा और आँखें साँस के
साथ उपेर नीचे हो रही चूचियो पर गढ़ गयी.

"साला अब समझ आता है के राजेश क्यूँ तेरे पे इतना ज़ोर दिया. साला अपना
लड़कियों का ही धंधा है पर तेरी जैसी माल मैने आज तक मार्केट में देखी
नही"

और भी वो ना जाने क्या क्या बोले जा रहा था पर नीलम चुप चाप बैठी कभी
उसकी शकल को तो कभी लंड पर तेज़ी से उपेर नीचे हो रहे हाथ को देख रही थी.

सोनू तो जैसी उसकी बड़ी बड़ी चूचियो में कहीं खोकर रह गया था. लंड पर हाथ
की स्पीड बढ़ती चली गयी और 2 मिनट में ही उसका काम ख़तम हो गया.

"आआहह. साला इतना मज़ा तो कभी किसी लड़की को चोद कर नही आया जितना तुझे
नंगी देख कर हिलाने में आया. तू अपनी कीमत बोल. मैं कहीं से भी कैसे भी
पैसे का जुगाड़ करेगा पर तेरे साथ सोएगा ज़रूर"

कुच्छ दिन बाद कार एक बार फिर तेज़ी से खंडाला की तरफ बढ़ चली.

"एक बात बता. वो राजेश साला कह रहा था के अच्छे घर से है तू काफ़ी तो ये
काम काहे कू करती है?"

नीलम उसकी बात सुन कर हस पड़ी.

"अच्छे घर से तो साला तू भी है फिर किस वास्ते ये ड्रग्स और लड़कियों के
धंधे में आया?" उसने सवाल का जवाब एक सवाल से ही दिया.


सोनू ने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के उसका फोन बज उठा.

"हां भाई" उसने फोन उठाया "बस हम पहुचने ही वाले हैं. लड़की मेरे साथ है"

डांडेकर. ये एक ऐसा नाम था जिसे मुंबई अंडरवर्ल्ड में हर कोई जानता था.
कुच्छ लोग डांडेकर के नाम से जानते थे तो कुच्छ दांडिया भाई.


सुबोध डांडेकर मुंबई में ही पला बढ़ा और सारी ज़िंदगी इसी शहर में
गुज़ारी. इस शहर ने उसे वो सब कुच्छ दिया जिसकी एक ग़रीब घर में पैदा
होने वाले इंसान को हो सकती है. उसके साथ के कई और भी थे जिन्होने
ज़िंदगी में तरक्की की और देश के बाहर जाकर बस गये पर वो हमेशा यहीं रहा.
क्यूंकी इस
शहर से उसको एक लगाव था. ये उसका अपना घर था, अपनी मुंबई, आमची मुंबई.


20 साल पहले वो भी शहर में चलने वाले लाखों की भीड़ में एक मामूली सा
आदमी था. नौकरी की तलाश, सर पर छत का ठिकाना नही, पैसे की दिक्कत और
सुंदर लड़कियों की ख्वाहिश. ऐसा नही था के उसने सीधे रास्ते से चलने की
कोशिश नही की. एक शरीफ आदमी की तरह उसने भी कई रोज़गार अपनाए.

कभी सिगरेट और पान की दुकान, कभी किसी फॅक्टरी में काम तो कभी कुच्छ पर
कहीं भी ना तो इतना पैसा मिला जीतने कि उसे ख्वाहिश थी और ना ही दिल को
सुकून.
फिर एक दोस्त के साथ मिल कर उसने एक ट्रॅवेल एजेन्सी शुरू कर ली और यहाँ
पर जैसे उसकी लॉटरी लग गयी.

बिज़्नेस दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की करने लगा. पहले एक टॅक्सी, फिर 2
और धीरे धीरे मुंबई की सड़कों पर उसकी 50 टॅक्सी दौड़ने लगी.


और एक दिन जब उसके बिज़्नेस पार्ट्नर की लाश मुंबई के एक गटर से मिली तो
उसे पता चला के उसकी टॅक्सी असल में आम पब्लिक नही, बल्कि मुंबई
अंडरवर्ल्ड यूज़ करता था. और यहीं से शुरू किया उसने अपना सुबोध डांडेकर
से दांडिया भाई बनने का सफ़र.


पूरा अंडरवर्ल्ड जैसे किसी परिवार की तरह बटा हुआ था और उनका घर था
मुंबई. घर में हर किसी की अपनी जगह और अपना काम था और घर का कोई आदमी
किसी दूसरे के काम में दखल नही देता था. अगर ऐसा होता तो घर का मुखिया,
यानी के बड़े भाई, बीच में आकर सुलह करते और अक्सर सुलह के बाद शहर के
अलग अलग हिस्सो में कई लाशें मिला करती थी.


सुबोध का टॅक्सी बिज़्नेस असल में एक चलता फिरता कोठा था. रात को टॅक्सीस
में लड़कियाँ बैठ कर निकलती और शहर का चक्कर लगाती. कस्टमर ढूँढती और फिर
वही टॅक्सी में अपने कपड़े उतारती. काम ख़तम होने के बाद कस्टमर को
टॅक्सी से उतार दिया जाता और अगले कस्टमर की तलाश में टॅक्सी फिर आगे बढ़
जाती. ना किसी कमरे की ज़रूरत, ना होटेल का झंझट और ना पोलीस रेड का डर.

पहले मुंबई की मामूली लड़कियाँ और धीरे धीरे हाइ प्राइस्ड कॉल गर्ल्स,
देसी और विदेशी दोनो, दांडिया भाई की टॅक्सी में हर तारह का माल मिलता
था.


धीरे धीरे धंधा सिर्फ़ एक ब्रॉतल चलाने से तरक्की करके एक एस्कॉर्ट
सर्विस तक पहुँच गया. दांडिया भाई का नाम शहर के हर अय्याश को पता था.


पर हक़ीकत में दांडिया भाई की असलियत कोई नही जानता था. अपने पार्ट्नर की
मौत के बाद वो हमेशा पर्दे में रहा. आम लोगों के लिए एक आम शहरी, एक शरीफ
ज़िम्मेदार नागरिक.


पर 20 साल ये काम करके वो परेशान हो चुका था. ऐसा नही था के इस काम में
पैसा नही था पर जितना उसको चाहिए था उतना नही था. फिर उपेर से ये काम ऐसा
था के उसपर दल्ला होने का टॅग लग गया था जो उसको बिल्कुल पसंद नही था.
उसको ज़िंदगी में आगे बढ़ना था, लड़कियों के धंधे से आगे निकल कर कोई
दूसरा धंधा करना था जहाँ ज़्यादा पैसा कमा सकता.


और इसी के लिए आज उसने खंडाला के एक गेस्ट हाउस में बड़े भाई के लिए एक
पार्टी का इंटेज़ाम किया था.


पार्टी का उसका मैं मकसद यही था के भाई से कह कर किसी दूसरे धंधे में हाथ डाले.

लड़कियों की उसके पास कमी नही थी पर जब उसी के एक लड़के ने उसको एक ऐसी
लड़की के बारे में बताया जो दिखने में पटाखा और बिस्तर पर आग थी तो उसने
भाई के लिए उसी लड़की का इंटेज़ाम करने को कह दिया.


और अब वो खंडाला में गेस्ट हाउस के बाहर खड़ा अपने उस लड़के का इंतेज़ार
कर रहा था जो लड़की को लेकर आ रहा था.

"हां भाई" उसने फोन उठाया "बस हम पहुचने ही वाले हैं. लड़की मेरे साथ है"
उसने फोन किया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई.


कोई एक घंटे बाद एक होंडा सिटी आकर रुकी और सोनू गाड़ी से बाहर निकला.

"कितना टाइम लगा दिया साले?" दांडिया उसे देख कर बोला

"सॉरी भाई. साला मुंबई से बाहर निकलना जंग लड़ने जैसा है. इतना ट्रॅफिक"

"खैर. लड़की कहाँ है?"

"गाड़ी में है भाई"

"सेफ है? चेक करवाया? पोलीस वॉलीस या किसी और गॅंग के साथ तो नही है?"

"नही भाई. कॉलेज में पढ़ती है. अययाशी के लिए बाप का दिया पैसा कम पड़ता
है तो ये धंधा करती है. कोई पोलीस वॉलीस का चक्कर नही है" सोनू बोला और
गाड़ी के पास जाकर लड़की को बाहर निकलने का इशारा किया.


लड़की गाड़ी से बाहर निकली. सुबोध और नीलम की नज़र मिली और दोनो के पावं
जैसे वहीं जम गये. चेहरा ऐसे सफेद पड़ गया जैसे खून निचोड़ लिया गया हो.

आँखें फेली हुई और मुँह खुले हुए रह गये हो.

दोनो के चेहरे पर एक जैसे भाव थे, जैसे आईने में वो अपनी ही शकल देख रहे हों.

"पापा" नीलम के मुँह से निकला .......
दोस्तो इसी को कहते हैं कुदरत की मार सुबोध ने जिंदगी भर दूसरो की
लड़कियो को चुडवाया और देखो आज वो दूसरे के लिए अपनी ही बेटी को छुड़वाने
लाया था दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त


Aaina paart -2

gataank se aage....
"Sahi hain yaar tere" Kehte hue Sonu ne apni pent ki zip kholi aur
apna khada lund bahar nikal kar sehlane laga. Neelam ne ek nazar uske
lund par daali aur chup chap uske chehre ki taraf dekhne lagi. Par
Sonu ki nazar toh jaise uski chhatiyon se chipak kar reh gayi thi.

"Bra khol" Vo kuchh der apna lund sehlane ke baad bola. Neelam ne apne
haath pichhe le jakar hook khola aur bra bhi utaar kar saamne dash
board par rakh diya.

"Aai shapath. Sala bahut ladkiyan bajaya main. Bahut mammey dekhe hain
par tere jaise nahi dekhe" Uska haath tezi se apne lund par chalne
laga aur aankhen saans ke saath uper niche ho rahi chhatiyon par gad
gayi.

"Sala ab samajh aata hai ke Rajesh kyun tere pe itna zor diya. Sala
apna ladkiyon ka hi dhandha hai par teri jaisi maal maine aaj tak
market mein dekhi nahi"

Aur bhi vo na jaane kya kya bole ja raha tha par Neelam chup chap
bethi kabhi uski shakal ko toh kabhi lund par tezi se uper niche ho
rahe haath ko dekh rahi thi.

Sonu toh jaisi uski badi badi chhatiyon mein kahin khokar reh gaya
tha. Lund par haath ki speed badhti chali gayi aur 2 min mein hi uska
kaam khatam ho gaya.

"Aaaahhhh. Sala itna maza toh kabhi kisi ladki ko chod kar nahi aaya
jitna tujhe nangi dekh kar hilane mein aaya. Tu apni keemat bol. Main
kahin se bhi kaise bhi paise ka jugaad karega par tere saath soyega
zaroor"

Kuchh din baad car ek baar phir tezi se Khandala ki taraf badh chali.

"Ek baat bata. Vo Rajesh sala keh raha tha ke achhe ghar se hai tu
kaafi toh ye kaam kaahe ku karti hai?"

Neelam uski baat sun kar has padi.

"Achhe ghar se toh sala tu bhi hai phir kis vaaste ye drugs aur
ladkiyon ke dhandhe mein aaya?" Usne sawal ka jawab ek sawal se hi
diya.


Sonu ne kuchh kehne ke liye munh khola hi tha ke uska phone baj utha.

"Haan Bhai" Usne phone uthaya "Bas ham pachunche hi wale hain. Ladki
mere saath hai"

Dandekar. Ye ek aisa naam tha jise Mumbai underworld mein har koi
jaanta tha. Kuchh log Dandekar ke naam se jaante the toh kuchh Dandiya
Bhai.


Subodh Dandekar Mumbai mein hi pala badha aur saari zindagi isi shehar
mein guzari. Is shehar ne use vo sab kuchh diya jiski ek gareeb ghar
mein paida hone wale insaan ko ho sakti hai. Uske saath ke kai aur bhi
the jinhone zindagi mein tarakki ki aur desh ke bahar jakar bas gaye
par vo hamesha yahin raha. Kyunki is
shehar se usko ek lagav tha. Ye uska apna ghar tha, apni mumbai, aamchi mumbai.


20 saal pehle vo bhi shehar mein chalne wale laakhon ki bheed mein ek
mamuli sa aadmi tha. Naukri ki talash, sar par chhat ka thikana nahi,
paise ki dikkat aur sundar ladkiyon ki khwahish. Aisa nahi tha ke usne
sidhe raaste se chalne ki koshish nahi ki. Ek shareef aadmi ki tarah
usne bhi kai rozgaar apnaye.

Kabhi cigarette aur paan ki dukaan, kabhi kisi factory mein kaam toh
kabhi kuchh par kahin bhi na toh itna paisa mila jitne ki use khwahish
thi aur na hi dil ko sukoon.
Phir ek dost ke saath mil kar usne ek travel agency shuru kar li aur
yahan par jaise uski lottery lag gayi.

Business din dooni aur raat chaugani tarakki karne laga. Pehle ek
taxi, phir 2 aur dheere dheere Mumbai ki sadkon par uski 50 taxi
daudne lagi.


Aur ek din jab uske business partner ki laash Mumbai ke ek gutter se
mili toh use pata chala ke uski taxi asal mein aam public nahi, balki
Mumbai underworld use karta tha. Aur yahin se shuru kiya usne apna
Subodh Dandekar se Dandiya Bhai banne ka safar.


Poora underworld jaise kisi pariwar ki tarah bata hua tha aur unka
ghar tha Mumbai. Ghar mein har kisi ki apni jagah aur apna kaam tha
aur ghar ka koi aadmi kisi doosre ke kaam mein dakhal nahi deta tha.
Agar aisa hota toh ghar ka mukhiya, Yani ke Bade Bhai, beech mein
aakar sulah karate aur aksar sulah ke baad shehar ke alag alag hisso
mein kai laashen mila karti thi.


Subodh ka taxi business asal mein ek chalta phirta kotha tha. Raat ko
taxis mein ladkiyan bethkar nikalti aur shehar ka chakkar lagati.
Customer dhoondhti aur phir vahi taxi mein apne kapde utarti. Kaam
khatam hone ke baad customer ko taxi se utaar diya jata aur agle
customer ki talash mein taxi phir aage badh jaati. Na kisi kamre ki
zaroorat, na hotel ka jhanjhat aur na police raid ka darr.

Pehle Mumbai ki mamuli ladkiyan aur dheere dheere high priced call
girls, desi aur videshi dono, Dandiya Bhai ki taxi mein har tarh ka
maal milta tha.


Dheere dheere dhandha sirf ek brothel chalane se tarakki karke ek
escort service tak pahunch gaya. Dandiya Bhai ka naam shehar ke har
ayyash ko pata tha.


Par haqeeat mein Dandiya Bhai ki asliyat koi nahi janta tha. Apne
partner ki maut ke baad vo hamesha parde mein raha. Aam logon ke liye
ek aam shehari, ek shareef zimmedar naagrik.


Par 20 saal ye kaam karke vo pareshan ho chuka tha. Aisa nahi tha ke
is kaam mein paisa nahi tha par jitna usko chahiye tha utna nahi tha.
Phir uper se ye kaam aisa tha ke uspar dalla hone ka tag lag gaya tha
jo usko bilkul pasand nahi tha. Usko zindagi mein aage badhna tha,
ladkiyon ke dhandhe se aage nikal kar koi doosra dhandha karna tha
jahan zyada paisa kama sakta.


Aur isi ke liye aaj usne Khandala ke ek guest house mein Bade Bhai ke
liye ek party ka intezaam kiya tha.


Party ka uska main maksad yahi tha ke Bhai se keh kar kisi doosre
dhandhe mein haath daale.

Ladkiyon ki uske paas kami nahi thi par jab usi ke ek ladke ke usko ek
aisi ladki ke baare mein bataya jo dikhne mein patakha aur bistar par
aag thi toh usne Bhai ke liye usi ladki ka intezaa karne ko keh diya.


Aur ab vo Khandala mein guest house ke bahar khada apne us ladke ka
intezaar kar raha tha jo ladki ko lekar aa raha tha.

"Haan Bhai" Usne phone uthaya "Bas ham pachunche hi wale hain. Ladki
mere saath hai" Usne phone kiya toh doosri taraf se aawaz aayi.


Koi ek ghante baad ek Honda City aakar ruki aur Sonu gaadi se bahar nikla.

"Kitna time laga diya saale?" Dandiya use dekh kar bola

"Sorry bhai. Sala Mumbai se bahar nikalna jung ladne jaisa hai. Itna traffic"

"Khair. Ladki kahan hai?"

"Gaadi mein hai Bhai"

"Safe hai? Check karvaya? Police volice ya kisi aur gang ke saath toh nahi hai?"

"Nahi Bhai. College mein padhti hai. Ayyashi ke liye baap ka diya
paisa kam padta hai toh ye dhandha karti hai. Koi police volice ka
chakkar nahi hai" Sonu bola aur gaadi ke paas jakar ladki ko bahar
nikalne ka ishara kiya.


Ladki gaadi se bahar nikli. Subodh aur Neelam ki nazar mili aur dono
ke paon jaise vahin jam gaye. Chehra aise safed pad gaya jaise khoon
nichod liya gaya ho.

Aankhen pheli hui aur munh khule hue reh gaye ho.

Dono ke chehre par ek jaise bhaav the, jaise aaine mein vo apni hi
shakal dekh rahe hon.

"Papa" Neelam ke munh se nikla .......

samaapt

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