अंजाना रास्ता --2
गतान्क से आगे................
बाकी दिन और कुछ खांस नही हुआ…बस ये था कि उस दिन दीदी और मेरे बीच कुछ
ज़्यादा बाते नही हुई..धीरे धीरे दिन बिताने लगे और एक हफ़्ता और गुजर
गया.. इस बीच मे राज के साथ एक दो बार साइबर केफे भी गया था..अब मुझे
सेक्स के बारे मे काफ़ी नालेज हो गई थी…अंजलि दीदी भी अब फिर से मेरे साथ
नॉर्मल हो गयी थी..
एक दिन की बात है फ्राइडे का दिन था मैं रूम मे कंप्यूटर गेम खिल रहा था
उन दिनो स्कूल और कॉलेज की छुट्टियाँ चल रही थी. दीदी रूम मे आई और मुझे
बोली के मैं उनके साथ बॅंक चलू क्योंकि उनको एक ड्राफ्ट बनवाना है…अंजलि
दीदी उस दिन हरा सूट और ब्लॅक पाज़ामी पहने हुए थी.. दीदी के रेशमी बाल
एक लंबे हाइ पोनी टेल मे बँधे थे .
" ज़ल्दी कर अनुज बॅंक बंद होने वाला होगा…और मुझे आज ड्राफ्ट ज़रूर
बनवाना है" दीदी अपने संडले पहनते हुए बोली..वो झुकी हुई थी..और उनके
झुकने से मुझे उनके सूट के अंदर क़ैद वो गोरे गोरे उभार नज़र आ रहे
थे..मेरा दिल फिर से डोल गया था. बॅंक घर से ज़्यादा दूर नही था सो हम चल
दिए. मैने चलते चलते वोही महसूस क्या जो मे हर बार महसूस करता था ज़ॅब
दीदी मेरे साथ होती थी. लगभाग हर उम्र का आदमी दीदी को घूर रहा था….उनकी
आखो मे हवस और वासना की आग सॉफ साफ देखी जा सकती थी. पर दीदी उनलोगो पर
ध्यान दिए बगैर अपन रास्ते जा रही थी. मुझे अपने उप्पर बड़ा फकर महसूस हो
रहा था कि मे इतनी खोबसूरत लड़की के साथ हू हालाकी वो मेरी बड़ी चचेरी
बहन थी. खैर हम 10 मिनट मे बॅंक पहुच गये बॅंक मे बहुत भीड़ थी..हालाकी
ड्राफ्ट बनवाने वाली लाइन मे ज़्यादा लोग नही थे वो लाइन सबसे कोने मे
थी…दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और हम उस लाइन की तरफ़ बढ़ चले.
"अनुज तू यहा बैठ..और ये पेपर पकड़..मैं लाइन मे लगती हू" दीदी बॅग से
कुछ पेपर निकालते हुए बोली.
मैं साइड मे रखी बेंच पर बैठ गया और दीदी कुछ पेपर और पैसे लेकर लाइन मे
लग गयी..भीड़ होने की वजेह से औरत और आदमी एक ही लाइन मे थे. मैं खाली
बैठा बैठा बॅंक का इनफ्राज़्टरूट देखने लगा.और जैसा हर सरकारी बॅंक होता
है वो भी वैसे ही था ...जिस लाइन मे दीदी लगी थी वो लाइन सबसे लास्ट मे
थी और उसके थोड़ा पीछे एक खाली रूम सा था जिसमे कुछ टूटा फर्निचर पड़ा
हुआ था..उस जागह काफ़ी अंधेरा भी था. शायद टूटा फर्निचर छुपाने के लिए
जान भूज कर वाहा से बल्ब और ट्यूब लाइट हटा दिए गये थे..इसलिए वाहा इतना
अंधेरा था..खैर ये तो हर सरकारी बॅंक की कहानी थी.. दीदी जिस तरफ़ लाइन
मे खड़ी थी वाहा थोड़ा अंधेरा था. मुझे लगा कही दीदी डर ना जाय क्योंकि
उन्हे अंधेरे से बहुत डर लगता था…तभी दीदी मुझे अपनी तरफ़ देखते हुए
थोड़ा मुस्कुराइ और ऐसा जताने लगी की..मानो कहना चाहती हो कि ये हम कहा
फँस गये. गर्मी भी काफ़ी थी..तभी एक आदमी और उस लाइन मे लग गया..वो देखने
मे बिहारी टाइप लग रहा था..उमर होगी कोई 35 साल के आस पास. उसने पुरानी
सी शर्ट और पॅंट पहने हुए था और वो शायद मूह मे गुटका भी चबा रहा था..एक
तो उसका रंग काला था उप्पर से वो लाइन के अंधेरे वाले हिस्से मे लगा हुआ
था..उसको देख कर मुझे थोड़ी हँसी भी आरहि थी.
"कितनी भीड़ है बेहन चोद ". वो अंधेरी साइड मे गुटका थुक्ता हुआ बोला.
तभी उसका फोन बजा.फोन उठाते ही उसने फोन पर भी गंदी गंदी गाली देने शुरू
कर दी..जैसे..तेरी बेहन की चूत ,,मा की लोड्े,,तेरी बहन चोद
दूँगा..वागरह वागारह..दीदी भी ये सब सुन रही थी शायद पर क्या कर सकती थी
वो..मुझे भी गुस्सा आ रहा था.. कुछ मिनिट्स के बाद मैने कुछ ऐसा देखा
जिससे मेरे दिल की धड़कन तेज होगयी अब वो बिहारी दीदी से चिपक कर खड़ा
था. उसकी और दीदी की हाइट लगभग सेम थी जिससे उसका अगला हिस्सा ठीक दीदी
की पाजामी के उप्पर से उनके उभरे हुए चूतर पर लगा हुआ था. वो लगातार दीदी
को पीछे से घूर भी रहा था..दीदी के सूट का पेछला हिस्सा थोड़ा ज़्यादा
खुला हुआ था जिससे उनकी गोरी पीठ नज़र आ रही थी . तभी वो थोड़ा पीछे हुआ
और मैने देखा कि उसके पेंट मे टॅंट बना हुआ है .फिर उसने अपना राइट हॅंड
नीचे किया और अपने पॅंट को थोड़ा अड़जस्ट क्या..अब उसका वो टेंट काफ़ी
विशाल लग रहा था..मेरा दिल जोरो से धड़क ने लगा. मेरे लंड मे हरकत शुरू
होने लगी ये सोच कर ही कि अब ये गंदा आदमी मेरी खूबसूरत दीदी के साथ क्या
करेगा. हालाकी वो और दीदी अंधेरे वाले हिस्से मे थे फिर भी उस आदमी ने
इधर उधर देखा और.फिर अपने आपको धीरे से दीदी से चिपका लिया उसका वो टेंट
अंजलि दीदी के पाजामे मे उनके उभरे हुए चुतड़ों के बीच कही खोगया था. और
जैसे ही उसने ये किया दीदी थोड़ा आगे की तरफ़ खिसकी..दीदी का चेहरा
अंधेरे मे भी मुझे लाल नज़र आ रहा था. तनाव उनके चेहरे पर सॉफ देखा जा
सकता था..ये सारी बाते बता रही थी कि दीदी जो उनके साथ हो रहा था उससे अब
वाकिफ्फ हो चुकी थी. दीदी की तरफ़ से कोई ओब्जेक्सन ना होने की वजह से
उसके होसले बढ़ने लगे थे वो दीदी से और ज़्यादा चिपक गया . जैसा कि मैने
बताया था कि अंजलि दीदी ने अपने रेशमी बालो की हाइ पोनी टेल बाँधी हुई
थी.उस आदमी का गंदा चेहरा अब दीदी के सिर के पीछले हिस्से के इतना पास था
कि उसकी नाक दीदी की बालो मे लगी हुई थी और शायद वो उनके बालो से आती
खुसबू सुंग रहा था..दीदी की पोनी टेल तो मानो उनके और उस बिहारी के बदन
से रगड़ खा रही थी. मेरी बेहद खूबसूरत जवान बड़ी बहन के बदन से उस लोवर
क्लास आदमी को इस तरह से चिपका देखा मेरा लंड मेरे ना चाहने पर भी खड़ा
होने लगा था.
मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी उस आदमी ने अपना नीचला हिस्सा धीरे धीरे
हिलाना सुरू कर दिया और उसका लंड पेंट के उप्पर से ही अंजलि दीदी के उभरे
हुए चूतरो पर आगे पीछे होने लगा..ये सारी हरकत करते हुए वो आदमी लगातार
दीदी के खूबसूरत चेहरे के बदलते भाव को देख रहा था. अंधेरे कोने मे होने
की वजह से कोई उसकी ये हरकत नही देख पा रहा था और इसका वो आदमी अब पूरा
फ़ायदा उठा रहा था..वैसे भी इतनी सुंदर जवान लड़की उसकी किस्मत मे कहा
होती. दीदी डर के मारे या ना जाने क्यू उस आदमी को रोक नही पा रही थी..पर
तभी अचानक दीदी को शायद याद आया कि मैं भी उधर ही बैठा हू तब उन्होने
थोड़ा सा मूड कर मेरी साइड की तरफ़ देखा कि कही मैं से सब तो नही देख रहा
हू ..मैने फॉरन अपना ध्यान न्यूज़ पेपर पर लगा लिया जो के मेरे हाथो मे
था. दीदी को शायद यकीन हो गया था कि मैं उनकी साथ जो हो रहा है उसको नही
देख रहा हू. वो आदमी अब पिछले 10 मिनट से दीदी को खड़े खड़े ही कपड़ो के
उप्पर से उनकी चूतादो पर अपने खड़ा लंड को अंदर बाहर कर रहा था. तभी मुझे
लगा की उस आदमी ने दीदी की कानो मे कुछ धीरे से कहा पर दीदी ने कोई जवाब
नही दिया…मेरा दिल अपनी बड़ी बहन का सेडक्षन देख इतनी जोरो से धड़क रहा
था कि मानो अभी मेरा सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा..तभी मुझे एक हल्की से
कराह सुनाई दी…और मुझे ये समझने मे देर ना लगी कि वो मादक आवाज़ अंजलि
दीदी के मूह से आई थी..दीदी की आँखे 5 सेक के लिए बिल्कुल बंद हो गई थी
और उनके दाँतअपने रसीले होटो को काट रहे थे..मुझे से समझ नही आया कि ये
क्या हुआ..उस आदमी का हाथ तो अब भी साइड मे था..पर भगवान ने इंसान को दो
हाथ दिए है....तभी मुझे दीवार के साइड से दीदी की चुननी हिलती हुई नज़र
आई…क्या वो आदमी…..नही ये नही हो….सकता…क्यो नही हो सकता….क्या उस आदमी
का लेफ्ट हॅंड दीवार की साइड से दीदी के लेफ्ट बूब्स पर है..अब उस आदमी
की आँखो मे हवस साफ नज़र आ रही थी..वो दीदी की लेफ्ट चूची को उनके हरे
सूट के उप्पर से हवस के नशे मे शायद बड़े जोरो से दबा रहा था ..तभी उसने
दोबारा दीदी की कान मे कुछ कहा ..और दीदी ने झिझाक ते हुए अपनी टाँगो को
थोड़ा खोल लिया …अब वो आदमी थोड़ा ज़ोर से दीदी के उभरे हुए कोमल चुतड़ों
को ठोकने लगा..हवस का ऐसा नज़ारा देख मे खुद पागल सा हो गया था ..अब मैं
ज़्यादा से ज़्यादा देखना चाहता था कि वो आदमी अब और क्या करेगा..दीदी की
बढ़ती सासो से उनके वो पके आम की साइज़ के उभार सूट मे जोरो से उप्पर
नीचे हो रहे थे ..पर शायद मेरी किस्मात खराब थी क्योंकि तभी मेरे पास एक
बूढ़ा आदमी आया और बोला कि बेटा मेरे लिए एक स्टंप पेपर ला दोगे बाहर
से..उस बुढ्ढे आदमी को उधर देख वो बिहारी फटाफट दीदी से अलग हुआ..शायद
उसको भी गुस्सा आया था…और क्यू ना आए ऐसा गोलडेन चान्स कोन छोड़ना चाहता
था..मैने देखा दीदी और वो बिहारी मेरी तरफ़ देख रहे है..मुझे गुस्सा तो
बहुत आया बुढ्ढे आदमी पर क्या करता मैं ये सोच कर मैं उठा और बाहर जाने
लगा.वो बुढ्ढा अब मेरी जगह पर बैठ गया था..बाहर जाते जाते मैने तिरछी
नज़र से देखा कि वो बिहारी फिर दीदी को कुछ बोल रहा है और इस बार दीदी भी
उसकी तरफ़ देख रही थी उनका गोरा चहरा शरम और डर से लाल हो रहा था…मैं
ज़ल्दी से बाहर गया और स्टंप पेपर लेने के लिए दुकान ढूँढने लगा…मेरे मन
मे अब ये चल रहा था कि अब वो आदमी दीदी के साथ क्या क्या कर रहा
होगा..क्या वो रुक गया होगा..क्या दीदी ने उसको मना कर दिया होगा…ये सब
दीदी की मर्ज़ी से नही हुआ है…शायद ..मेरी दीदी के भोले पन का उसने
फ़ायदा उठया है..मेरी दीदी ऐसी नही है.….ये सब बाते मेरे दिमाग़ मे चल
रही थी..करीब 20 मिनट घूमने के बाद मुझे स्टंप पेपर मिला..और मैं बॅंक मे
वापस गया ..वो बूढ़ा मुझे गेट मे एंट्री करते ही मीलगया ..मैने उसको
स्टंप पेपर दिया..अब मैं उम्मीद कर रहा था अब ताक दीदी ने ड्राफ्ट बनवा
लिया होगा ..और वो आदमी भी जा चुका होगा ...और मैं फटाफट ड्राफ्ट की लाइन
के तरफ़ बढ़ा..पर वाहा पहुच कर मेरा सिर चकरा गया …ड्राफ्ट की लाइन अब
ख़तम हो चुकी थी ..काउंटर पर लिखा था क्लोस्ड ..बॅंक मे भी भीड़ कम होने
लगी थी..मैं परेशान हो गया
..मैने सोचा की दीदी शायद बाहर मेरा वेट कर रही होंगी ..सो मैं बाहर जाने
ही लगा था कि..मैने देखा जिस तरफ अंधेरा था और वाहा जो खाली रूम था जिसमे
टूटा फर्निचर पड़ा था..वाहा से वोही बिहारी अपनी पॅंट की ज़िपार बंद करता
हुआ निकला..और बाहर चला गया..मुझे ये बड़ा आजीब लगा पर फिर मैने सोचा
शायद टाय्लेट गया होगा क्योंकि टाय्लेट भी उधर ही था…फिर मे बाहर जाने के
लिए मुड़ा ही था की मैने देखा अंजलि दीदी अपने बालो को सही करते हुए उसी
रूम से बाहर आ रही है जहा से कुछ मिनिट पहले वो आदमी निकला था..मेरा दिल
की धाड़कन एक दम बढ़ गयी …दीदी उस कमरे मे उस गंदे आदमी के साथ अकेले
थी…जो आदमी खुले आम किसी लड़की के साथ इतनी छेड़ खानी कर सकता है ..वही
आदमी अकेले मे एक खोबसुर्रत जवान लड़की के साथ क्या क्या करेगा…इन सब
ख्यालो ने मेरे लंड मे खून का दौर बढ़ा दिया...दीदी ने मेरी तरफ़ नही
देखा था….मैं दीदी की तरफ़ बढ़ा "
"दीदी आप कहा थी..मैं आपको ढूंड रहा था.."मैं बोला
दीदी थोड़ा घबरा गयी पर फिर शायद अपनी घबराहट को छुपाटी हुई वो थोड़ा
मुस्कुराइ और बोली. " तू कब आया था …और स्टंप पेपर दे दिए तूने उन अंकल
को"
"जी..और आपने ड्राफ्ट बनवा लिया क्या" मैने उनके पसीने से भरे चेहरे को
देखते हुए बोला.उनका सूट भी कई जगह से पसीने से तर बतर था. जिसका सॉफ सॉफ
मतलब ये था कि दीदी उस रूम मे काफ़ी टाइम से थी.
"नही यार…क्लर्क ने कहा है कि ड्राफ्ट बनवाने के लिए इस बॅंक मे अकाउंट
होना ज़रूरी है"
दीदी मेरे सामने खड़ी थी मैने देखा कि उनके सूट पर बहुत झुर्रियाँ पड़ी
हुई है खास कर उनके उभारो के आस पास.मुझे ये अच्छी से याद था कि जब हम
बॅंक आने वाले थे तो दीदी ने प्रेस किया हुआ सूट पहना था. तो फिर क्या ये
काम उस आदमी के हाथो का है…..मुझे अब थोड़ी थोड़ी जलन भी हो रही थी कि
दीदी मुझसे झूठ क्यो बोल रही है.. और अचानक ही मैने उनसे पूछा लिया " आप
वाहा अंधेरे मे…." "
"अरे वाहा मैं वॉश रूम गयी थी.." दीदी मुस्कुराती हुई मेरी बात को वही
काटती हुई बोली.
ये सब बात सोचते सोचते मे काफ़ी गर्म हो गया था और मेरा लंड अकाड़ने लगा
था अब मुझे वाकयी पेशाब जाना था नही तो मेरा खड़ा होता लंड अंजलि दीदी
देख सकती थी..और अगर मैं उस जगह जाता हू तो मुझे ये भी पता चला जाएगा कि
वाहा टाय्लेट है भी कि नही क्योंकि अंधेरे मे तो कुछ नज़र नही आ रह था उस
जगह. फिर मैने दीदी क वेट करने के ले बोला और फटाफट उस अंधेरे कोने की
तरफ़ चला गया..जैसे कि मैने सोचा था कोने मे टाय्लेट था मुझे ये जान कर
खुशी हुई कि दीदी सही बोल रही है..मैने वाहा पेशाब किया और बाहर आने लगा
पर पता नही मुझे उस अंधेरे कमरे मे जाने की इक्षा हुई..मैने फिर दीदी की
तरफ़ देखा तो वो अभी भी अपना सूट ठीक कर रही थी…मेरे दिमाग़ मे फिर से
शाक पैदा हुआ और मैं उस रूम मे घुस गया ..उंधर अंधेरा तो था पर इतना भी
नही ..क्योंकि उप्पर रोशन दान से रोशनी आ रही थी ..मैं इधर उधर देखने लगा
..रूम मे सीलन होने की वजह से थोड़ी बदबू भी थी..हालाकी रूम के काफ़ी
हिस्से मे टूटा फर्नीचर पड़ा हुआ था फिर मैं एक कोना खाली था मैं उस तरफ
गया. रूम के फर्श पर काफ़ी धूल जमी हुई थी.. तभी मेरी नज़र रूम की ज़मीन
पर पड़े कदमो पर गयी..लगता था मानो कोई थोड़ी देर पहले ही रूम से गया है
और वो अकेला नही था क्योंकि दो जोड़ी पैरो के निशान थे ..पर मुझे एक बात
समझ नही आई कि वो उस कोने की तरफ़ क्यो गये है ..खैर मैं उनके पीछे आगे
बढ़ा ..तो मैने देखा के उसकोने मे पैरो के निशान गायब थे और फर्श पर पड़ी
मिट्टी काफ़ी हिली हुए लग रही थी मानो जैसे किसी के बीच काफ़ी खिछा तानी
हुई हो..तो क्या ये निशान उस आदमी और दीदी के है..मैं ये सोच ही रहा था
की दीदी की आवाज़ आई और मैं जल्दी से बाहर आ गया.
क्रमशः.......................
Anjaana Rasta --2
gataank se aage................
Baki din aur kuch khans nahi hua…bus ye tha ki us din didi aur mere
beech kuch jyaada baate nahi huee..dhirre din bItni lage aur ek hafta
aur gujar gaya..s beech me Raj ki sath ek do baar cyber café bhi gay
thaa..ab mujhe sex ke bare me kafii knowledge ho agye thi…Anjali didi
bhi ab phir se mere sath normal ho gaye thi..
Ek din ki baat hai Friday ka din thaa mai room me computer game khil
raha thaa uundino school aur college ki chotteyaa chaal rahi thi. Didi
room me aaye aur mujhe boli ke main unke sath bank chalooo kyonki unko
ek draft banwana hai…Anjali didi ne us din hara suit aur black pagami
pahne hue thi.. didi ke reshmi baal ek lambe high poni tail me bandee
thi .
" zaldi kar Anuj bank band hone wala hogaa…aur mujhe aaj draft jaroor
banawana hai" Didi apne sandle pahnte hue boli..vo jhuki hue thi..aur
unke jhukne se mujhe unke suit ke andar kaid vo gore gore ubhaar najar
aaa rahi thi..mera dil phir se dool gaya thaa. Bank ghar se jyaada
door nahi thaa so ham chaal deyee. Maine chahlte chalet vohi mehsoos
kya jo me haar baar mahos karta tha zab Didi mere sath hoti thi.
Lagbhaag haar umr ki admi didi ko ghorr rahi thi….unki akho me hawas
aur vasna ki aag saaf saf dekhi ja sakatee thi. Par didi unlogo par
diyaan deye begaar appen raste ja rahi thi. Mujhe apne uppar bada
fakar behos ho raha thaa ki me Itni khobsurat ladki ke sath ho Halaki
wo mere badi chaahiri bahan thi. Khair ham 10 min me bank pahoch agye
bank me bahut bhied thi..halaki draft bannane wali line me jyaada log
nahi thi vo line sabse kone me thi…Didi ne mera hath pakda aur ham us
line ki tarf baad chale.
"Anuj tuu yaha beth..aur ye papar pakad..me line me lagtii hoo" didi
bag se kuch papar nikalte hue boli.
Me side me rakhi bench par bhiet gaya aur didi kuch papar aur paise
lekar line me lag gayee..bhidd hone ki wajeh se aurat aur admi ek hi
line me thi. Me khali bhitha baithaa bank ka infrastrute dekhne
lagaa.aur jaisa har sarkari bank hota hai vo bhi viase hi thaa
..Furiture tootha photaa thaa..jis line me didi lage thi vo line sabse
last me thi aur uskee thoda peechi ek khali room sa thaa jisme kuuch
toota furniture pada hua thaa..us jaagah kafi undhira bhi thaa.
shaayad toota furniture choopne ke leye jaan bhog kar waha se bulb aur
tube light hata deye gaye thi..isliye waha itna undhira thaa..khair ye
to haar sarkari bank ki kahani thi.. didi jiss tarf line me khadee thi
waha thoda undhira thaa. Mujhe laga kahi did dar na gaya koeki unhi
undhiree se bahut dar lagta thaa…tabhi didi mujhe apne tarf dekhte hue
doda muskurai aur aisaa jatatne lage ki..mano kahna chaate ho ki ye
haam kaha phans gayee. Garmi bhi kafi thi..tabhi ek admi aur us line
me lag gaya..wo dekne me bihari type lag raha thaa..umar hogi koi 35
sal ki as pass. Usnee purani se shirt aur pant pahne hue thi aur wo
shaayad muh me gutka bhi chaba raha thaa..ek too uska raang kaala tha
uppar se vo line kee undhiere wale hisse me laga hua thaa..uski dekh
kar mujhe thodee hassi bhi aarahi thi.
"kItni bhied hai behan chod ". Woo undhire side me gutka thuktaa hua bola.
tabhi uska phone baga.Phone uthaaatee hi usnee phone par bhi gandi
gandi gali dene shuroo kar dee..jaise..teri behaan ki chot ,,ma ki
lode,,terii bahan chod dungaa..wagarah wagarh..Didi bhi ye sab sun
rahi thi shaayad par kyaa kar sakatee thi vo..mujhe bhi guassa a raha
thaa.. kuch minutes kee baad maine kuch aisa dekha jisse mere dil ki
dhadkaam tej hogayee ab vo bhihari didi se chicpka kar khada thaa.
uski aur didi ki hiigh lagbaag same thi jise uska agla hissa thik didi
ki pajami ke uppar se unke ubhre hue chutaroo par laga hua thaa. wo
lagatar didi ko peechi se ghor bhi raha thaa..didi ke suit ka pechala
hisaa doda jyaada khula hua thaa jiise unki gori peeth najar aa rahi
thi . tabhi vo thoda peechi huaa aur men dekha ki uske peent me tant
bana hua hai .phir usnee appna right hand neechi kyaa apne apne paand
ko thoda aajust kyaa..ab uska wo tent kafi vishal lag raha thaa..mera
dil joro se dhadak nee lagaa. mere lund me harkat shuru hone lagii se
sooch kar hi ki ab ye ganda admi mere khubsoorat didi ke sath kya
karegaa. Halaki wo aur didi undhire wale hise me aa rahi thi phir bhi
us admi ne idar udhir dekhaa aur.phir apne appko dhier ese didi se
chipka leyaa uska woo tend Anjali didi kee pajame me unki ubhre hue
chotdo ke beech kahi khogay thaa. Aur jaise hi usne ye kyaa didi thoda
agee ki tarf khiski..didi ka chihra undhire me bhi mujhe llaal najar a
raha tha. Tanav unke chare par saaf dekha ja sakta thaa..ye sare baate
bata rahi thi ki didi joo unki sath ho raha tha use ab vakiff ho chuki
thi. Didi ki tarf se koi opposition na hone ki wagah se uski hosle
badne lagii thi wo didi se aur jyaada chip gaya . Jiasa ki maine
bataaya tha ki Anjali didi ne apne reshmi balo ki high pony tail banye
hue thi.Us admi ka ganda cheharaa ab didi ke saar ki peechle hiss ke
itna pas thaa ki uski naak didi ki baloo me lagi huae thi aur shaayad
vo unke balo se atte khusbo sung raha thaa..didi ki pony tail to manoo
unke aur uss bihari ke baadan se ragad kha rahi thi. Mere behad
khosoorat jawan badi bahan ke badan se us lower class admi uskoo
istard se chipka dekha mera lund mere naa chane par bhi khada hone
laga thaa.
Me yee saab sooch hie raha tha ki tabhi us addmi nee appna neechla
hissa dere dere hilana suro kar diyaa auir uska lund pent ke uppar se
hi Anjali didi ke ubhire hue chutaroo par age peechi hone lagaa..ye
sare harkat karte hue vo admi lagatar didi ke kubsurrat chihre ke
badalte bhavo ko dekh raha thaa. Andhire kone me hone ki vagah se koi
uske ye harkat nahi dekh paa raha tha aur iska wo admi ab pura fyada
utha raha thaa..vaise bhi Itni sandar jawan kawari ladki uski kismaat
me kaha hoti. Didi dar ke mare yaa na janee kyoo us admi ko rook nahi
paa rahi thi..par tabhi achchanak didi ko shaayad yaad aayaa ki me bhi
udhir hi baitha hu tab unhone thoda saa mood kar mere side ki tarf
dekha ki kahi me se saab to nahi dekh raha hoo ..maine foran appna
dhyaan newpapar par laga leya joo ke mere hatho me thaa. Didi ko
shaayad yakin ho gaya thi ki me unki sath jo ho raha hai usko nahie
dekh raha hu. Vo admi ab phichle 10 mins se didi ko khade khade hi
kapdo ke uppar se unkee chutadoo par apne khada lund ko andar bahar
kar raaha thaa. Tabh Imujhe laga ki us admi ne didi ki kano me kuch
dhire se kaha par didi no koi javab nahi diyaa…mera dil apne bade
bahan ka seduction dekh Itnie jorro se dhadak rah thaa ki manoo abhi
mer sena faad kar bahar aajeyaa..tabhi mujhe ek halki se kaarah sunye
dee…aur mujhe ye samjne me deer naa lagi ki vo madak awaj Anjali didi
ke muh se aaye thi..didi ki ankhi 5 sec ke leye bilkul baand ho agye
thi aur unke hoth unkee raselle hoto ko kaat rahi thi..mujhe se samaj
nahie aayaa ki ye kya huaa..us admi ka hath to ab bhi side me
thaa..par bhagvan ne insann ko do hath diya hai....tabhi mujhe dewaar
ke side se didi ki chunee hiltee hue najar aaye…Kyaa vo admii…..nahi
ye nahi ho….sakta…kyo nahi ho sakta….kyaa us admi ka left hand dewar
ki side se didi ke left boobs par hai..ab us admi ki ankho me hawas
saf najar a rahi thi..vo didi ke left chochi ko unke hare suit ke
uppar se hawas ke nashie me syaad bade jooro se daba raha thaa ..tabhi
usnee dobara didi kee kaan me kuch kaha ..aur didi jhijhaak tee ne
appen tango ko thoda khola leyaa …ab wo admii thoda joro se didi ke
ubhre hue komal chutadoo ko thokne lagaa..Hawas ka aisaa najar dekh me
khud pagal sa ho gaya thaa ..ab me jyaada se jyaada dekhna chahta thi
ki wo admi ab aur kyaa kregaa..Didi ki badte sasoo se unke woo pake
aam ki size ke umbhaar suit me jorro se uppar neechi ho rahi thi ..par
shaayad mer kismaat kharab thi kyonki tabhi mere pass ek bhuda admi
aaya aur bola ki beta mere leyee ek stamp papar la doge bahar se..us
bhodee admi ko udhar dekh wo bihari fatafat didi se alag huaa..shyad
usko bhi gussa aaya thaa…aur kyoo naa aaye aisa golden chance kon
chodna chahta thaa..maine dekha didi aur wo bihari mere tarf dekh rahi
hai..mujhe gussa to bahut aaya bhodee admi par kya karta main so main
uthaa aur bahaar janee lagaa.wo bhuda ab mer jagah par beth gaya
thaa..bahar jaate jaate maine terchi najar se dekha ki wo bihari phir
didi ko kuch bol raha hai aur is baar didi bhi uski tarf dekh rahi thi
unka gora chahra shaaraam aur dar se laal ho raha thaa…me zaldi se
bahar gaya aur stamp papar lene ke leye dukhan dundhne laga…mere maan
me ab yee chaal raha thaa ki ab wo admi didi ke sath kya kya kar raha
hogaa..kya wo rook gaya hogaa..kya didi ne usko appose kar diya
hogaa…ye sab didi ki margi se nahi hua hai…shaayad ..mere didi ke
bhole paan ka usne faayada uthya hai..mere didi aise nahi hai.….ye
saab baate mere demaj me chaal rahi thi..kareb 20 min gumne ke baat
mujhe stamp papar mila..aur me bank me wapas gaya ..wo bhuda mujhe
gaate me entry karet hu milgaya ..men usko stamp papar diyaa..ab me
ummid kar raha thaa ab taak didi ne draft banwa leya hojaa ..aur wo
adami bhi ja chuka hojaa ...aur me fatafat draft ki line ke tarf
bhada..par waha pachoch kar mera saar chakra gaya …draft ki line ab
khatam ho chuki thi ..counter par lekha thi Closed ..bank me bhi bhied
kaam hone lagii thi..main pareshan ho gaya ..maine soocha ki didi
shaayad bahar mera wait kar rahi hongii ..so me bahar jane hi laga tha
ki..maine dekha jistraf andhira thaa aur waha joo khali room thaa
jissm totte furniture pade thi..waha se wohi biharii apne pant ki
zippar baad karta hua nikla..aur bahar chala gayaa..mujhe ye bada
aajeb lagaa par phir maine soocha shaayad toilet gaya hogaa kyonki
toilet bhi uthir hi thaa…phir me bahar jana ke leyee muda hi tha ki
maine dekha Anjali didi apne baalo ko sedtha karte hue use room se
bahar aa rahi hai jaha kuch minute pahle woo admi nikla thaa..mera dil
ki dhaadkaam ek daam bhaad gayee …didi us kamre me us gande admi ke
sath akele thie…jo admi khule amm kisse ladkee ke sath Itnie chida
khane kar sakta hai ..vahi addmi akele me ek khobsurrat jawan ladki ki
sath kya kyaa karegaa…in sab khiyalo ne mere lund me khon ka door bada
diyaa...Didi ne mere tarf nahi dekha thaa….me didi ki tarf bada "
"Didi app kaha thi..me appko dhund rha thaa.."me bola
Didi thoda jhabra gaye par phir shaayad apne ghamrahat ko chupati huee
wo thoda muskurii aur boli. " Tukaab aaya tha …aur stamp papar de deye
tune un uncle ko"
"ji..aur apne draft banwa leya kyaa" maine unki pasene se bhare chrae
ko dekhte hue bola.Unka suit bhi kaaye jagah se paseno se ter batar
thaa. Jiska saaf saaf mutlab ye thaa ki didi us room me kaffi time se
thi.
"nahi yaar…clerk ne kaha hai ki draft banwanee ke leye ise bank me
account hona jaroori hai"
Didi mere samne khade thi maine dekha ki unkee suit par bahut jhorrye
padi haayee hai khass kar unkee ubharoor ke ass pass.mujhe ye aachi se
yaad hai ki jab ham bank anane wali thi to didi ne pres kya hua suit
pahna thaa. Tu phir kya ye kaam us admi ke hatoo ka hai…..Mujhe ab
thode thode jalan bhi ho rahi thi ki didi muhi jhot kyo bol rahi hai..
aur achanka hi maine unse poocha leya " app waha undhir me…." "
"Are waha me wash room gaye thi.." didi muskurati hue mere baat ko
wahi kaattte hue boli.
Yee sab baat sochte socchte me kafi garm ho gay thaa aura mera lund
akaadne laga thaa ab mujhe vakye peshaab jana thaa nahi to mera khada
hota lund Anjali didi dekh sakti thi..aur ajar me us jagah jajta hu to
mujhe ye bhi pata chala gayega ki waha toilet hai bhi ki nahi kyonki
undhir me to kuch najar nahi aa rah tha us jagah. Phir maine didi k
wait karne ke ley bola aur fatfat us undhir kone ke tarf chala
gyaa..jaise ki men socha thaa kone me toilet thaa mujhe ye jaan kaar
kushi hue ki didi sahi bol rahi hai..maine waha peshab kya aur bahar
ane laga par pata nahi me us undhir kamre me jane ki isscha
huaa..maine phir didi ki tarf dekha to wo abhi bhi appna suit thik kar
rahi thi…mere demag me phir se shaak peda hua aur me us room me guss
gaya ..undhar undhira to tha par itna bhi nahi ..kyonki uppar roshan
daan se roshni aa rrahi thii ..me ithaar uthar dekhne laga ..room me
selan hone ki vajah se thode badbu bhi thi..halaki room ke kaffe hise
me toota furinute pada hua tha phir me ek kone khalii tha me ustarf
gaya. room ke farsh par kafi thol jame huethi.. tabhi mere najar room
ke jamin par pade kadmo par gayee..lagata tha bano koi thode deer
pahle hi room se gaya hai aur wo akela nahi thaa kyonki two Jodi pari
ki nechan thi ..par mujhe ek baat samjah nahi aaye ki vo uskone ki
tarf keyo gaye hai ..khair me unke pechi agae bada ..to maine dekha ke
uskone me pareo ke nechan gayab thi aur farsh par padi mithi kafi hile
hue lag rahi thi bano jaise kise ke beech kafi khicha tani huee ho..to
kyaa ye nishan usadmi aur didi ke hai..me ye sooch hi raha tha ki didi
ki awaj aaye aur me jaldi se bahar aagaya.
kramashah.......................
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