दीदी की नौकरानी - रेखा--1
बात कोई तीन साल पुरानी है। मैं तब २६ साल का गबड़ू जवान था। नई-नई नौकरी
हुई थी और मैं अपनी दीदी-जीजाजी के घर पर हीं रहता था। करीब छः महिने हो
गए थे और मैं मुश्किल से करीब ३०-४० दिन हीं घर पर रह पाया था, लगातार
टूर पर हीं ज्यादा रहना होता था। जब घर पर होता तो मेरा कमरा ऊपरवाली
मंजिल पर बना घर का एक्स्ट्रा कमरा होता था, जो वैसे बंद हीं रहता। असल
में मैंने खुद उस कमरे को चुना था। नीचे दीदी-जीजाजी को मेरे रहने से आपस
में चुहलबाजी करने में थोड़ी परेशानी होती थी। जीजाजी तो फ़िर भी शुरु के
कुछ दिनों के बाद खुल गए थे, पर दीदी को मेरे सामने जीजाजी के चालों का
जवाब देने में परेशानी होती, जो मैं भांप कर हीं अलग उपर के कमए में रहने
लगा। वैसे उस कमरे का आमतौर पर इस्तेमाल दीदी के घर की नौकरानी रेखा करती
थी। १७-१८ साल की रेखा खुब हंसमुख थी और उसको दीदी-जीजाजी की चुहलबाजी और
छेड़-छाड़ देख कर खुब मजा आता था। मैंने देखा था कि वो भी कभी-कभी उस
छेड़-छाड़ में शामिल हो जाती। वैसे सब आपस में खुब खुश थे। जब मैं घर पर
नहीं रहता तब रेखा हीं उपर वाले कमरे में रहती, और जब मैं रहता तो उसको
किचेन में सोना होता, पर बाथरूम वो मेरे कमरे का हीं इस्तेमाल करती। मैं
तब सोया हीं रहता था जब वो मेरे कमरे के बाथरूम में घुसती। वो नहाने-धोने
के बाद हीं किचेन में जाती, सब का चाय बनाती और फ़िर सबको जगाती। सब
ठीक-ठाक चल रहा था कि एक दिन सब शुरु हो हीं गया।
उस दिन जब मैं बाथरूम में गया तो देखा कि कमोड के रिंग के उपर पर ७-८ बाल
पड़े हुए हैं, लम्बे, काले, घुंघराले बाल। देखते हीं समझ गया कि ये रेखा
की झाँट के बाल हैं, क्योंकि मैं अपने झाँट को अक्सर कैंची से काट कर
छोटा कर लिया करता था। उस दिन पहली बार रेखा को ध्यान में रख कर मूठ
मारी। इसके बाद जो जैसे यह रोज का नियम हो गया। मैं बाथरूम में रेखा की
झाँट के बाल खोजता, और वो रोज मुझे मिलता भी। फ़िर मैं उसकी चूत के बारे
में सोच कर मूठ मरता। रेखा इतने खुले दिल की लड़की थी कि मुझे आगे बढ़ने
की हिम्मत न हो रही थी। बात-चीत, चुहलबाजी अलग बात है और चुदाई अलग बात।
वैसे भी सप्ताह में २ दिन बहुत था कि मैं घर पर होता और रेखा के झाँट के
बाल के दर्शन होते। एक दिन तो खुब सारे बाल मुझे कमोड पर दिखे, करीब २०
बाल। ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने हाथों से अपने बाल उखाड़ कर वहाँ
गिराएँ हों। उस दिन संयोग से दीदी-जीजाजी एक दिन के लिए बगल के शहर के
मंदिर गये थे, एक पूजा कराने, सो मैंने हिम्मत की। मैंने रेखा को आवाज
लगाई तो वो आई और मैं उसे सीधे बाथरूम में ले गया, फ़िर पूछा - "यह सब
क्या है?" रेखा ऐसे कि जैसे कुछ समझी हीं ना हो, तो मैंने कमोड के उपर की
साईड पर गिरे कुछ बालों को उठा लिया और फ़िर उसको दिखा कर पूछा, "ये सब
क्या है?" अब वो हकलाई, "जी ब बा बाल है भैया जी"। मैं उसकी हकलाहट पर
खुश हुआ और बोला, "कैसे नहाती हो रेखा तुम कि तुम्हारे बदन का रोआँ भी
नहीं भींगता? ठीक से नहाया करो, साफ़-सुथरा रहा करो।" अब वो हिम्मत करके
बोली, "जी भैया जी, साफ़ से हीं नहाते हैं। उस पर तो नहाने के पहले बैठते
हैं न, सो तब हीं कुछ बाल गिर जाता है।" अब मैं नासमझ की ऐक्टिंग करते
हुए बोला, "ओह हो, समझा। मैं इसको अभी तक काँख का बाल समझ रहा था।" रेखा
मुस्कुराई, "नहीं नहीं भैया जी यह तो मेरा प्राईवेट वाला बाल है।" मैं अब
बुद्धु सा बनते हुए कहा, "और मुझे देखो, मुझे यह बाल देख कर लगा कि यह
तुम्हारे काँख का बाल है। मुझे तो पहले हीं समझ में जाना चाहिए था यह
तुम्हारा झाँट है। तुम्हारे काँख में तो सीधा-सीधा बाल है, जबकि यह तो
मुड़ा हुआ घुंघराला सा है।" रेखा भी सम्हज हो कर बोली, "जी भैया जी, मेरा
काँख में तो सीधा बाल सब है, देखिए।" कह कर उसने अपने हाथ उपर कर दिए
ताकि मैं उसके बगल के बाल देख सकूँ। जब मैं उसके काँख के बाल का अवलोकन
कर रहा था, तब वो बोली, "यह सब तो पतला भी बहुत है, और रंग भी ऐसा काला
नहीं है। जबकि मेरा प्राईवेट वाला बाल बहुत घना, काला और घुंघराला है।"
मैंने अपनी हथेली पर रखे उसके झाँट और उसकी काँख को देखते हुए बोला, "सही
में, यह तो तुम्हारे काँख के बाल बहुत मजबूत है और बड़ा भी। तीन इंच का
जरुर होगा। और हाँ, ये "प्राईवेट वाला बाल" क्यों बोलती हो इसको, "झाँट"
बोलो। जवान लड़का-लड़की को "बाल" नहीं "झाँट" होता है। देखती हो, जीजाजी
भी दीदी को उस दिन कह रहे थे कि बहुत दिन हो गया है अब वो अपना झाँट साफ़
कर ले। बेचारी दीदी कैसे मेरे सामने यह सुन कर झेंप गई थी।" रेखा ने
भोलेपन से कहा, "हमको लाज लगता है बोलने में, आज तक कभी बोली नहीं न,
आपके दीदी-जीजाजी तो सब कुछ खुल्लम्खुल्ला बोलते रहते हैं।" मैं बोला,
"हाँ इसीलिए तो मैं ऊपर रहता हूँ, ताकि दीदी को मेरे सामने शर्म महसूस न
हो।" रेखा अब थोड़ा एक्साईटेड हो कर बोली, "अरे भैया जी, आपके दीदी को
कोई शर्म-वर्म नहीं लगता है। मेरे सामने गोदी में बैठ कर चुम्मा-चाटी
करती है। फ़िर दोनों उठ कर रूम में बंद हो जाते हैं। जब बाहर आते हैं तो
दोनों का चेहरा लाल, तमतमाया हुआ होता है।" मेरा लन्ड अब फ़ड़कने लगा था।
मैं पूछा, "फ़िर तुम क्या करती हो?" अब वो सकपकाई, "म्म हम क्या करेंगे,
कुछ नहीं। ऊ लोग का जिन्दगी है, जो करें।" मैं फ़िर बात को वापस ट्रेक पर
लाया, "अच्छा रेखा, अब चलो तीन बार मेरे सामने बोलो, "झाँट, झाँट, झाँट।,
इसके बाद बताओ कि रोज तुम्हारा इतना झाँट कैसे टुट कर गिर जाता है।" रेखा
नजर नीचे करके बोली, "हमसे नहीं बोलाएगा यह।" मैं अब उसको प्यार से बोला,
"एक बार कोशिश करो। जवानी में यह सब बोलने से अच्छा लगता है एक बार बोल
कर देखो। फ़िर मैं भी बताऊँगा कि मैं जब तुम्हारे झाँटों को देखता हूँ तो
मैं बंद बाथरुम में क्या करता हूँ।" वो मेरे से नजर मिलाई और जाने लगी,
"हमको किचेन में काम है"। मैं अब उसको अपने साथ बाथरुम से बाहर लाया और
अपने बेड पे बिठा दिया (मेरे नहीं रहने पर वैसे भी वो उसी बेड पर सोती
थी), फ़िर बोला, "देखो, आज तो कोई काम है नहीं। छुट्टी का दिन है। आज एक
बार बोल कर देखो न।" मेरे बार-बार कहने पर वो नजर नीची कर के हीं धीरे से
बोली, "झाँट - अब हो गया न"। मैं बोला, "हाँ अब तीन बार बोलो, मेरी तरफ़
देख कर। फ़िर मैं बताऊँगा कि मैं क्या करता हूँ।" वो इस बार मेरे से नजर
मिला कर बोली, "झाँट झाँट झाँट" और अपना चेहरा अपने हथेलियों से ढ़क लिया
और वैसे हीं बोली अब आप बताईए।" मैं बोला, "क्या बताऊँ?" रेखा बोली, "इसी
को देख के"। मैं बोला, "किसको देख कर?" रेखा बोली, "यही बाल देख कर"। मैं
टोका, "फ़िर बाल?" रेखा अब मुस्कुरा कर बोली, "ओह नहीं, मेरा झाँट देख
कर?" मैं अब बोला, "देखी, कैसे यह शब्द तुमको मेरे साथ खोल दिया।" रेखा
बोली, "कैसे?" मैं हँसते हुए कहा, "देखी तीन बार झाँट शब्द बोली और फ़िर
अपने झाँट की बात करने लगी। अभी तो तुम बोली कि "मेरा झाँट" देख कर आप
क्या करते हैं।" रेखा भी अब मेरे साथ खुलने लगी थी सो बोली, "ठीक है ठीक
है, अब बताईए न।"
मैं अब शरारत के मूड में था, "अगर मैं नहीं बताऊँगा तो क्या करोगी?" रेखा
भी मुस्कुराते हुए बोली, "तब कल से हम अपना झाँट पानी से बहा देंगे, फ़िर
देखने को भी नहीं मिलेगा।" मेरा लन्ड यह सुन कर एक झटका खा गया। साली तो
अपने जानते-समझते मुझे अपने झाँट दिखाती थी। मैं अब उसको घुरते हुए बोला,
"अच्छा तो मुझे जान-बूझ कर अपना झाँट दिखाती थी, और मैं बुद्धु तुम्हें
बच्ची समझता था।" अबकि बार रेखा असल लौन्डिया की अदा के साथ बोली, "बच्ची
कैसे समझ गए हमको, अभी तो आप बोले थी कि जवान लड़का-लड़की को झाँट होता
है।" मैं बोला, "सो तो है...पर आईने में देखो अपने को फ़्राक-या
सलवार-सूट में १२-१३ साल की लगती हो देख कर। रेखा ४'१०" की छॊटी सी लड़की
थी।"
रेखा भी अब बोली, "ऐसा बच्ची भी नहीं दिखते हैं। सब लोग खुब लाईन मारते
हैं हम पर।" मैं पूछा, "अच्छा कौन लाईन मारता है। मैंने तो नहीं मारा
कभी?" वो बोली, "क्या पता, आप भी मन में लाईन मारते होंगे। ऐसे तो सब
मारता है मेरे गाँव में भी और यहाँ भी। आपके जीजाजी भी जब दीदी को चुम्मा
लेते हैं तो मेरे तरफ़ देखते हैं। आपके दीदी तो हमेशा आँख बन्द कर लेती
है, जब उनको चुम्मा लेते हैं जीजाजी तब। उनको कहाँ पता है यह सब।" मैं
बोला, "अरे जब जीजा जी को मौका मिला हुआ है कि घर पर एक लड़की के रहते
हुए सब मजा लें तो वो क्यों नहीं मजा लेंगे। ऐसे भी किसी के सामने यह सब
करने में ज्यादा मजा आता है। शुरु में भले अकेले हो पर बाद में तो खुल कर
करने में मजा आता है।" रेखा बोली, "वही तो, एक दिन जब आप नहीं थे तो वो
खाना खाते हुए वो बोले भी थी कि स्वीटी कभी अपने छॊटे भाई के सामने भी तो
ऐसे खुल कर मेरी गोदी में बैठ कर मस्ती करो। साले साहब को पता तो चलें कि
उनकी दीदी का कितना ख्याल रखा जा रहा है। आपकी दीदी तब उनके गोदी में बैठ
कर उनको खाना खिला रही थी।" मैं एक गहरी साँस छॊड़ते हुए कहा, "हाँ रेखा,
मुझे पता है कि अगर जीजाजी को दीदी जरा भी लिफ़्ट दी तो वो मेरे सामने
दीदी को नंगा कर देंगे। इसीलिए तो मैं जरा अलग रहता हूँ उनसे।" रेखा
बोली, "अरे नहीं भैया जी, आज तक वो कभी आपके दीदी का कपड़ा मेरे सामने भी
नहीं हटाए हैं। चुम्मा-चाटी करते हैं, पर बाकी सब रुम बंद करके करते
हैं।" मैं थोड़ा सोंचा फ़िर पूछा, "कभी देखी हो दोनों रुम बंद करके क्या
करते हैं?" रेखा थोड़ा सोच कर बोली, "हाँ साईड वाली खिड़की से
थोड़ा-मोड़ा झांक कर देखी थी दो-चार बार। वो खिड़की पूरा ठीक से बन्द
नहीं होता है। बाकि जल्दी हीं हम हट गए, अगर वो लोग देख लेते तो क्या
सोचते मेरे बारे में। वैसे भी देख कर अजीब लगता है पूरा देह में।" मैं अब
थोड़ा चौंका, "खिड़की से सब साफ़ दिखा था?" रेखा बोली, "जी भैया जी, एक
दम सामने हीं बेड है उनका। आप को देखने का मन है तो कभी भी देख लीजिएगा
रात में। तब बाहर में थोड़ा अंधेरा रहता है, भीतर रूम में बत्ती जला रहता
है। पर हमारा बात और था, आपकी दीदी हैं।" मैं बोला, "वही तो, सोचना
पड़ेगा कि देखूँ कि नहीं।"
अचानक रेखा कुछ याद करके बोली, "आप बताए नहीं कि आप मेरा झाँट देख कर
क्या करते हैं?" अब झेंपने की बारी मेरी थी। मैं बोला, "अरे रेखा, अब जो
तुम मेरे दीदी-जीजाजी को देख ली हो सब करते तो मैं तो उसके तुलना में कुछ
नहीं करता हूँ। छॊड़ो इस बात को।" पर अब वो जिद ले कर बैठ गई, "नहीं भैया
जी, प्लीज बताईए न। आपके कहने से हम आज पहली बार "झाँट" बोल दिए और आप
मुकर रहे हैं।" मुझे लग रहा था कि उसको यह सब बात करके अच्छा लग रहा है
सो बोला, "ऐसी बात नहीं है। असल में तुम्हारी यही झाँट सब देख कर हीं
पहली बार मुझे तुम्हारे जवान बदन का ख्याल आया और तब मैंने तुम्हें याद
करके हस्त-मैथुन किया, बस..."। रेखा हल्के से चहकी, "मतलब लाईन मारे थे
मेरे देह के लिए? हम कहे थे न कि आप भी हम पर लाईन मारते हैं।" बेचारी को
"मूठ मारना" और "लाईन मारना" एक हीं समझ में आ रहा था। मुझे उसके भोलेपन
पर प्यार आया सो मैं उसको कहा, "इसको लाईन मारना नहीं मूठ मारना बोलते
हैं। जवान लड़का जब अकेले होता है तो मूठ हीं मारता है। लाईन मारना तो यह
है जो अभी मैं कर रहा हूँ। यह सब बात करके मैं तुम पर लाईन मार रहा हूँ,
या कहो तो तुम्को लाईन पर ला रहा हूँ।" उसको कुछ समझ में आया तो वो फ़िर
पूछी, "अच्छा फ़िर जब हम लाईन पर आ जाएँगे तब?" मैं खुश हो कर बोला, "तब
मैं अकेले थोड़े न रहुँगा। लड़का के साथ जब लड़की हो तो लड़का मूठ नहीं
मरता, "चूत मारता" है।" वो थोड़ा अचकचाई, "यानि?" मैं बोला, "यह तो तुम
देखी हो, जो जीजाजी कर रहे थे। यही सब लड़का अपने साथ की लड़की के साथ
करता।" वो सब समझ कर बोली, "अच्छा भैया जी, यह "चोदाई" क्या हुआ फ़िर जब
वो चूत मारना हुआ तो?" मैं समझाया, "दोनों लगभग एक हीं बात है। लड़का लोग
लड़की को चोदता है। यह तीन तरह से होगा - या तो "लड़की की चूत मारी
जाएगी" या फ़िर लड़की गाँड़ मारी जाएगी" या फ़िर "उसकी मुँह मारी जाएगी"।
तीनों बाद का मतलब "चुदाई" हीं है। लड़का का लन्ड अगर लड़की के तीनों छेद
के साथ कुछ किया तो वो चुदाई है।" रेखा अब सब समझी फ़िर सोच कर बोली,
"मतलब हम मुँह मराई देखे हैं और चूत मराई, गाँड़ मराई अभी तक नहीं देखे
हैं।" मुझे दीदी के बारे में यह सब सोचते हुए अजीब लग रहा था पर रेखा तो
सिर्फ़ वही बात कर सकती थी।
मैं विषय बदलते हुए कहा, "तुम कभी अपना कुछ मरवाई हो?" रेखा बोली, "छी:
अभी कैसे, जब मेरा शादी हो जाएगा तब न हमको साथ में सोने वाला मर्द
मिलेगा।" मैं उसके भोलेपन पर हँस कर कहा, "क्यों, तुम चाहो तो अभी मेरे
साथ सो लो यहीं बिस्तर पर। मैं मर्द नहीं हूँ क्या?" वो हड़बड़ाई, "नहीं
नहीं, ऐसा बात नहीं है। फ़िर भी एकदम से आपके साथ कैसे सो जाएँ? शादी
होने के बाद का बात कुछ और है। आपकी दीदी शादी के पहले थोड़े न सोई होगी
किसी के साथ?" दीदी की बात सुन कर मुझे फ़िर अजीब लगा, फ़िर भी बात को
आगे बढ़ाना था सो बोला, "क्या पता सो ही गई होगी किसी के साथ तो। कौलेज
में पढ़ती थी तो बहुत दोस्त था उसका भी। अब जैसे अगर आज तुम मेरे साथ सो
जाओ तो किसी को पता थोड़े चलेगा, वैसे हीं वो भी कहीं किसी के साथ सो गई
होगी अकेले, तो कोई क्या जानेगा।" वो अब सब समझ कर हल्के से "हूँम्म" की
और बोली, "आप ठीक कह रहे हैं, वैसे भी आधा घंटा में तो दोनों बाहर आ जाते
हैं।" मैं बोला, "वही तो, अगर जरा जल्दी-जल्दी किया जाए तो लड़की को १०
मिनट से भी कम समय में चोदा जा सकता है।" फ़िर मैंने शरारती शब्दों में
कहा, "इतना समय तो तुमको हमेशा है, रोज सुबह जब चाय ले कर आती हो, तब भी
१० मिनट में रोज चुदा कर नीचे जा सकती हो। एक बार चुदा कर देखो, खुब मजा
आएगा।" वो अब हकला गई, "न्न्न ही नहीं, अभी यह सब नहीं। अभी आप हमको बस
यह दिखा दीजिए कि आप मेरा झाँट से कैसे मूठ मारते थे।" मैंने सोचा चलो आज
के लिए इतना बहुत है। सो मैं बोला, "ठीक है अब आराम से बैठ कर देखो, पर
पहले मुझे अपना कुछ झाँट तो दो, वो सब तो बह गया पानी में।" वो तुरन्त
उठी और बाथरुम में घुस गई, फ़िर जब वापस आई तो उसके हथेली में ४ झाँट का
बाल था।
मैंने सोचा चलो आज के लिए इतना बहुत है। सो मैं बोला, "ठीक है अब आराम से
बैठ कर देखो, पर पहले मुझे अपना कुछ झाँट तो दो, वो सब तो बह गया पानी
में।" वो तुरन्त उठी और बाथरुम में घुस गई, फ़िर जब वापस आई तो उसके
हथेली में ४ झाँट का बाल था। इतनी देर में मैं मानसिक रूप से तैयार हो
गया था रेखा के सामने नंगा होने के लिए। लड़कियों को मैं १९ साल की उम्र
से चोदता रहा हूँ। अब तक करीब १९-२० लड़की चोद चुका था, जिसमें चार तो
मेरी बहन हीं थी। दो मेरे मौसी की बेटी थी और एक-एक मेरे दोनों मामा की
बेटी थी। अपनी बड़ी वाली मौसेरी बहन को पटाना पड़ा फ़िर तो बाकी को वही
मेरे लिए सेट कर दी। खैर वो सब किस्सा बाद में, वैसे भी मेरी इन चार
बहनों में से दो तो इस साईट के हिसाब से अंडरएज थीं, सो उनका जिक्र यहाँ
हो हीं नहीं सकता। खैर, अब तो सामने रेखा खड़ी थी, अपनी हथेली मेरे सामने
करके, जिस पर उसके ४ झाँट के बाल दिख रहे थे। मैं हँसते हुए बोला, "बहुत
जल्दी अपना सलवार खोल कर अपना झाँट उखाड़ कर आ गई। ऐसे जल्दी में तो दर्द
भी हुआ होगा उखाड़ने में।" रेखा मुस्कुरा कर बोली, "कुछ खास नहीं, ऐसे भी
बाल हाथ से खींचने का हमको बहुत दिन से आदत है। और इसमें देर क्या लगता,
सलवार में डोरी नहीं एलास्टीक है न, सो तुरंत उपर-नीचे हो जाता है।" मैं
कहा, "अच्छा, अब तो तुमको मेरे सामने बैठ कर देखने शर्म तो नहीं आएगी न,
सोच लो एक बार। यह तो समझ रही होगी कि यह बात किसी को बताने वाली नहीं
है। पहली बार आज तुम शायद किसी मर्द को नंगा देखोगी।" उसने हाँ में सर
हिलाया और अपने जीभ को होठों पर घुमा कर बेड पर मेरे ठीक सामने बैठ गई।
बेड की सर की तरफ़ दीवार से पीठ अड़ा कर मैं बैठा था और वो बेड के दूसरी
तरफ़ किनारे पर बैठी थी।
मैं बेड पर अपने घुटने के बल खड़ा हुआ और फ़िर अपना टी-शर्ट खोल दिया। वो
बोली, "इसको काहे खोले?" मैं मस्ती से भर कर बोला, "क्यों आज पहली बार
मर्द को नंगा देखने वाली हो तो पुरा हीं नंगा देखो न। आओ मेरे सीने के
बाल सहला कर देखो।" और मैं उसके पास खिसक कर उसके हाथ को पकड़ कर अपने
सीने पर रख दिया। मेरा इशारा समझ वो मेरे सीने को सहलने लगी। नीचे मेरा
लन्ड सुर्सुराने लगा था। मैं कुछ सेकेन्ड रुक कर फ़िर से बिस्तर से उठा
और फ़िर अपना बरमुडा नीचे खिसका दिया। मेरा आधा चुतड़ नंगा हो गया था और
बरमुडा मेरे लन्ड के भरोसे अटका हुआ था। मेरी झाँटों के दर्शन अब उसको
होने लगे थे। मैंने रेखा से नजर मिलाई, "देखोगी अब आगे कि शर्म आ रही
है?" बहुत धीमे से वो बोली, "सब देखुँगी।" और उसने अपने हाथ से मेरा
बरमुडा नीचे ससार कर पैसों से निकाल दिया। मेरा काला लन्ड करीब ८०% कड़ा
हो कर खड़ा था। ८" के उस लन्ड की चमड़ी आधी पीछे हो गई थी और लाल-लाल
गोल-गोल लन्ड का सर झलक रहा था। मैं पूछा, "हिलाओगी लन्ड को हाथ में ले
कर?" वो न में सर हिलाई औ थोड़ा पीछे हट गई। मैंने जोर नहीं दिया। मैंने
अब जोर नहीं दिया। मुझे पता था कि अब शुरुआत हो गई है तो साली जल्दी हीं
चुदेगी मेरे से। वैसे भी ४'१०" का उसका बदन मेरे ५'११" के बदन के सामने
अजीब लग रहा था। मैं सोंचने लगा कि जब इसको चोदुँगा तो कब और कैसे किस
आसन में इस्को चोदुँगा। मैं अब उसके सामने बैठ गया और वेसलीन ले कर अपने
लन्ड और झाँट पर फ़ैला लिया फ़िर हल्के हल्के लन्ड की मूठ मारनी शुरु कर
दी। कभी लन्ड दाएँ हाथ क मजा पाता तो कभी बाँए का। फ़िर मैंने अपने को
पलट लिया और अपनी एक ऊँगली से अपनी गाँड़ भी खोदनी शुरु कर दी। अपने
दोनों अन्डकोषों को सहलाते हुए फ़िर मैं सीधा हो गया। हमारी नजर मिली तो
मैंने पूछा, "देख रही हो सब? मजा आ रहा है?" रेखा की आवाज थड़थड़ा गई,
"अजीब लग रहा है भैया जी। आपके दीदी-जीजाजी को देखी तब ऐसा पास में नहीं
न थी। मर्द का ऐसा होता है, सो आज पहली बार पता चला।"
मैं खुश हो कर बोला, "हाँ यही लन्ड है जो लड़की को चोदता है।" वो बोली,
"पर भैया जी, इस लन्ड से मुँह तो मरा जाएगा, चूत भी मरा जाएगा, मगर गाँड़
कैसे मराएगा? उसका छेद तो सबसे छोटा है।" मैं उसको समझाया, "हाँ गाँड़ सब
नहीं मार पाते हैं, न हीं सब लड़की को गाँड़ मराने में मजा आता है। गाँड़
मारना तो एक कला है।" अब रेखा बोली, "हाँ, तभी हम आज तक दीदी का गाँड़
मराई नहीं देखे हैं। अच्छा भैया जी, आप लड़की को चोदे हैं?" मैं अब लन्ड
को जरा तेज हिलाते हुए कहा, "हाँ रे, कई को?" वो फ़िर पूछी, "गाँड़ भी
मारते हैं सब लड़की का?" मैं अब सच बोला, "सब का नहीं पर ५-६ का गाँड़
जरुर मारी होगी मैंने।" वो आश्चर्य से भर कर बोली, "अरे राम, फ़िर आप कुल
केतना लड़की को चोदे हैं?" मेरा अब लगभग निकलने वाला था सो रफ़्तार धीमा
करके बोला, "१५ साल से ले कर २८-३० साल के उमर की करीब २०, जिसमें ५
कुँवारी थी।" अब रेखा बोली, "हाय राम, १५ साल की लड़की को चोदे? उसका तो
बहुत छॊटा छेद रहा होगा?" मैं हँसा, "क्यों तुमको झाँट किस उमर में हुआ
था, जिस दिन से झाँट हुआ उसी दिन से समझो तुम जवान हो गई, और कोई भी जवान
लड़की चुदवा सकती है।" यह कहते कहते मेरा पानी निकल गया। रेखा को अंदाजा
नहीं था सो मैं उसके सामने बेड पर खड़ा हो गया और उसके चेहरे पर पिचकारी
मार दी और जोर से ठठा कर हँस दिया। बेचारी का चेहरा देखने लायक था। उसे
सब समझाना पड़ा कि यह स्पेशल रस है लन्ड का, लड़की सब इसको निगल जाती है,
यही रस लड़की की चूत में गिरा कर लड़का लोग लड़की को प्रेगनेन्ट करते
हैं। वो अब अपने हाथ से इस चिपचिपे रस को फ़ील कर रही थी। मेरे कहने पर
उसने थोड़ा चाटा भी औए कही "नमकीन है।" मैं बोला, "तुम्हारे चूत का पानी
भी तो नमकीन हीं होगा, कभी टेस्ट नहीं की हो।" उसने शर्माते हुए कहा,
"धत्त्त्त्त"। मैंने हँसते हुए कहा, ठीक है एक दिन मैं तुम्हें चटाऊँगा
तुम्हारे खुद की चूत का पानी।" तभी कौल-बेल बज गई और हम दोनों नीचे आ गए।
इसके बाद तो जैसे मुझे रेखा के साथ चुहल-बाजी करने का लाईसेंस मिल गया।
जब भी मौका मिलता मैं उसके साथ कुछ सेक्सी बात कर लेता, और बाद में इन सब
बातों के बारे में सोच-सोच कर मूठ मारता। ३ दिन बाद फ़िर मुझे टूर पर ५
दिन के लिए बाहर रहना पड़ा, और जब वापस आया तो रेखा को देख फ़िर से मेरा
दिल हिलोड़े मारने लगा। अगली सुबह जब रेखा चाय ले कर आई तो मुस्कुराते
हुए मुझसे पूछ बैठी, "भैया जी, जब आप बाहर रहते हैं तब भी हमको याद करके
मूठ मारते हैं?" उस दिन पहली बार मैंने सेक्सी नजरिए से रेखा को छूआ।
रेखा की चुतड़ पर एक हल्की से चपत लगा कर कहा, "तुम तो मेरे अकेले समय की
रानी हो। जब भी मौका मिलता है तुम्हारे बदन के बारे में सोचता रहता हूँ
और तुम हो कि आज तक एक बार भी अपना रत्ती-भर बदन नहीं दिखाई हो।" रेखा भी
अब शरारती लहजे में बोली, "ऐसा थोड़ए न हैं। आपको मेरा चेहरा नहीं दिखता
क्या? और ई हाथ और ये पैर..." और उसने अपने सलवार को थोड़ा ऊपर खींच कर
करीब घुटने तक पैर दिखाया। मैंने रेखा की कमर पर हल्की सी चिकोटी काटी,
"अरे मेरी सपनों की रानी, जवान लड़की के बदन का मतलब उसकी चूची और चूत है
न कि हाथ-पैर बेवकूफ़। मेरे सामने तो और न तो दुपट्टा सही करने लगती हो।"
रेखा हँसते हुए बोली, "आप से लाज लगता है न, इसीलिए।" अब मैं खिसिया कर
कहा, "अब यह सब छॊड़ो, और आज तुम अपने हाथ से मेरी मूठ मारो, तब सब लाज
शर्म तुम्हारा खत्म होगा।" और मैंने अपना पैंट नीचे सरार कर उसका हाथ
पकड़ कर जबर्दस्ती अपने लन्ड पर रख दिया। हल्की से हिचक के बाद वो मेरा
लन्ड सहलाने लगी। मेरा लन्ड आज पहली बर उस जवान लौन्डिया के हाथ का
स्पर्श पा कर कुछ जल्दी हीं झड़ गया और रेखा का पूरा हाथ मेरे वीर्य से
सन गया। मैंने उसको इशारे में कहा कि वो उसे चाट जाए, और रेखा मेरी बात
मान कर अपने हाथ पर लगे उस चिपचिपे माल को चाट गई तो मैंने कहा कि वो
लन्ड भी चूस चाट कर साफ़ कर दे। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था जब वो बिना
हिल-हुज्जत के तुरन्त मेरे लन्ड को चाट कर साफ़ कर दी।
मैंने उससे पूछ हीं लिया, "रेखा तुम आज इतना जल्दी मेरा लन्ड कैसे चुसने
पर राजी हो गई, जबकि तुम्को इतना लाज लगता है कि अपना बदन भी नहीं दिखाती
हो मुझे?" रेखा कुछ पल मुझे घुरती रही फ़िर बोली, "असल में हम पिछले ५
दिन जो आप यहाँ नहीं थे उसमें तीन दिन आपके दीदी-जीजाजी जब भी अपना खेल
खेले हम पूरा खेल देखे हैं। अंत में हमेशा आपकी दीदी ऐसे हीं जीजाजी का
चाटती है, सो हमको लगा कि यह चाटना खराब बात नहीं है।" मुझे अपनी दीदी की
ऐसी बात सुन कर अजीब तो लगा पर मजबूरी थी। अगर रेखा को शीशे में उतारना
था तो यह सब बात सुनना हीं था। मैंने बात आगे बढ़ाई, "और क्या देखी?
जीजाजी को भी देखी होगी, दीदी का चूत चाटते हुए?" पहली बार दीदी की चूत
का अपने मुँह से जिक्र करके बड़ा गन्दा लगा, पर रेखा बेहिचक बोली, "हाँ,
जीजाजी हमेशा दीदी का पहले चाटते हैं फ़िर करते हैं, उसके बाद दीदी अंत
में जीजाजी का चाटती है।" मैं रेखा को बेशर्म बनाने के चक्कर में खुद
अपनी दीदी की मिट्टी पलीद करते हुए कहा, "क्या कोड-वर्ड में बोल रही हो,
खुल के बोल न मेरी रानी।" वो बोली, "मतलब?" मैं बोला, "ऐसे बोली कि
जीजाजी हमेशा दीदी को चोदने के पहले उनकी चूत चाटते हैं फ़िर चोदते हैं
और अंत में दीदी उनका लन्ड चाटती है। ऐसी बात करोगी तब न तुम्हारा भी मन
करेगा और तुम्हारी शर्म मिटेगी, नहीं तो शादी के बाद भी अगर शर्माती रही
तो बेचारे दुल्हे को तो तुम्हारा बलात्कार करना पड़ेगा। तुम देखो मुझे,
अपनी दीदी के बारे में बात करते भी शर्म नहीं आ रही। जब तक बेशर्म न
बनोगी, जवानी का मजा हीं नहीं लूट सकोगी।" और तभी दीदी ने नीचे से आवाज
लगा दी, और रेखा बेचारी झेंपती से वहाँ से भागी।
अगले दिन मैं जान-बूझ कर नंगा ही सो गया। रुम का दरवाजा ऐसे भी रोज मैं
केवल भिरा देता था क्योंकि रेखा रोज सुबह आती थी बाथरुम युज करने। इसमें
रिस्क तो था कि रेखा की जगह कहीं और कोई न ऊपर आ जाए, पर सुबह में सबसे
पहले आम-तौर पर रेखा हीं आती थी बाथरुम जाने। उसके उठने के करीब घंटे भर
बाद हीं वो दोनों ऊठते थे। सो उस दिन जब रेखा सुबह आई तो मुझे पूरा नंगा
देख, सकपका गई। उसने हल्के से मुझे आवाज दी, "भैया जी"। मेरी नींद खुल
गई, "ऊँह्ह" तो उसने कहा, "ऐसे काहे सोए हैं?" मैंने अब पूरी तरह से जगते
हुए कहा, "तुम्हारे लिए रानी, आज तुम पहले मेरे पप्पू को चूस दो, फ़िर
जाना बाथरुम।" रेखा थोड़ा हिचकी, "यह ठीक नहीं है भैया जी।" पर मैं उसकी
बात सुनने के मूड में नहीं था सो कहा, "आ जाओ पहले, सब ठीक हो जाएगा एक
बार जब लन्ड मुँह में घुसेगा" और मैं उसको अपने बेड पर खींच लिया। जब तक
वो संभले तब तक मैं उसको नीचे पटक कर उसके छाती पर चढ़ गया और अपना लन्ड
उसके मुँह से लगा दिया। वो अपना मुँह खोल दी और अगले पल वो मेरा लन्ड चूस
रही थी। आज की सुबह मुझे जन्न्त नसीब हो रहा था। जवान कुँवारी लड़की मेरा
लन्ड चूस रही थी। करीब एक मिनट के बाद जब वो भी संयत हो कर चुसने लगी, तब
मैंने उसको तकिये पर ठीक से सीध लिटा दिया और फ़िर खुद भी सही तरीके से
घुटने के बल बैठ कर उसको कहा कि वो सिर्फ़ मुँह खोल कर रखे। अब मैं अपने
कमर चलाते हुए अपना लन्ड उसके मुँह में भीतर-बाहर कर रहा था जबकि वो आराम
से नीचे लेटी हुई थी। मैंने कहा, "पहले तुम मेरा लन्ड चूस-चाट रही थी, अब
"मैं तुम्हारी मुँह मार रहा हूँ" या कहो तो "तुम अपना मुँह मरा रही हो"।
ऐसे हीं जब मैं तुम्हारी चूत में अपना लन्ड भीतर-बाहर करुँगा तब "तुम
अपना चूत मरा रही होगी", और जब ऐसे हीं मेरा लन्ड तुम्हारी गाँड़ में
मेरे धक्के के साथ भीतर-बाहर होगा तब "मैं तुम्हारी गाँड़ मार रहा
होऊँगा"। समझी मेरी रानी..." और ऐसे ही मेरे लन्ड से पिचकारी छूट गई,
बेचारी इसके लिए तौयार नहीं थी सो सब सड़क गया और उसको खाँसी आ गई।" वो
हड़बड़ा कर बैठ गई, फ़िर थोड़ा शान्त हो कर मुस्कुराई। मैंने कुर्ते के
उपर से हीं उसकी चूचियों को सहलाते हुए कहा, अब जाओ बाथरुम आज का दिन
तुम्हारा बहुत अच्छा बीतेगा और वो भी मुस्कुराते हुए बाथरुम चली गई।
इसके बाद तो मैं जब-जब घर पर रह्ता, यह जैसे रोज का नियम हो गया कि वो
सुबह आती मेरे लन्ड को चुस कर एक पानी निकालती फ़िर बाथरुम जाती। मेरे
लन्ड की सुबह-सुबह चुसाई उसके रोज के ड्युटी में जैसे शामिल हो गया। हर
रोज मैं कोशिश करता कि उसके बदन को नंगा करूँ, पर कपड़े के ऊपर से सहलाने
तक तो ठीक पर जैसे हीं हाथ कपड़े के भीतर दालने की कोशिश करता, वो मेरा
हाथ पकड़ लेती और मैं भी बिना जोर-जबर्दस्ती को रुक जाता। मुझे अब इंतजार
था उस दिन का जब वो मेरे सामने नंगी होती। पाँच दिन लगे मुझे उसकी चूची
से उसके चूत तक पहुँचने में, फ़िर इसके करीन एक सप्ताह बाद वो मुझे अपने
हाथ कपड़े के भीतर घुसा कर अपने बदन को सहलवाने लगी थी। मैं अब रोज उसकी
झाँट के बाल खींचता, तब तक जब तक कि वो आह न कर देती। अब वो मेरी ऊँगली
से अपनी चूत खोदवाने लगी थी, सिस्की भी भरने लगती थी, और ऐसे हीं झड़ती
भी थी। अब मैं उस पर दवाब बना रहा था कि वो मेरे लन्ड से एक बार चुदा कर
देखे। पर वो भी एक शर्त रख दी, जिसकी वजह से मैं थोड़ा ढ़ीला पड़ गया था।
वो बोली कि जब मैं उसके साथ अपने दीदी-जीजाजी को एक दुसरे के साथ चुदाई
करते हुए देख लूँगा तभी वो मुझे सही में बेशर्म मानेगी और तब हीं वो
मुझसे चुदेगी। यह शर्त हीं मुझ पर भारी पड़ रही थी। मैं इसी उहापोह में
था, और अब वो मेरी इसी दुविधा का मजाक बनाती। जब मैं उसको बेशर्म बनने को
कहता तो वो मुझे बेशर्म बनने को कहती। एक दिन मैं उसके इस जिद से हार कर
कहा कि ठीक है फ़िर आज रात दोनों साथ देखते हैं फ़िर उसके बाद उसको मेरे
कमरे में चल कर पहले चुदाना होगा उसके बाद हीं वो सो सकेगी। और फ़िर उस
रात करीब ११ बजे जब सब अपने-अपने कमरे में चले गए तो करीब ११.३० पर मैं
नीचे रेखा के पास किचेन में आ गया। पर उस दिन उन दोनों के रुम की बत्ती
बंद थी। रेखा अब बोली, "आज का तो दिन खराब हो गया भैया जी आपका। अब जिस
दिन ये लोग करेंगे , उस दिन हम आपको बुला लेंगे ऊपर से।"
इसके बाद मैं भी भगवान को धन्यवाद दे कर वहाँ से आ गया। इसके अगले हीं
दिन रेखा करीब १२ बजे मेरे पास आई और बोली, "चलिए भैया जी, अभी-अभी उन
दोनों के कमरे की बत्ती जली है। आज वो लोग जरुर सेक्स करेंगे।" अब मेरे
पास बचने का कोई ऊपाय न था और ना हीं अब मैं रुकना चाहता था। रेखा के साथ
मैं भी अब खिड़की के पीछे खड़ा हो कर सब देखने की तैयारी कर ली। पूरे
कमरे में रोशनी करके मेरे दीदी को जीजाजी अपने बाहों में भर कर उसके ऊपर
लेट कर चुम रहे थे। दोनों एक दुसरे हो सहला रहे थे और चुम रहे थे। जीजाजी
अब मेरी दीदी की नाईटी खींच कर निकाल दिए और फ़िर दीदी की गोरी चुचियों
पर भिर गए। उसको मसलते हुए वो निप्पल चूस रहे थे। उनका बदन कुछ इस तरह से
दीदी के ऊपर थ कि मुझे दीदी की चूत की झलक अभी तक नहीं मिली थी। पर जल्द
हीं वो हटे और नीचे खिसके, तभी पहली बार मुझे अपनी सगी दीदी की चूत का
दीदार हो गया। दीदी की चूत पर मेरी नजर गड़ गई। क्या मस्त चूत थी- चिकनी,
मक्खन चूत जिसको हम यार बोलते थे न कौलेज के दिनों में बिल्कुल वैसी हीं।
एक जरा झाँट का नाम न था। चूत की पुत्तियाँ बाहर निकल आई थीं और जीजाजी
उसे चुस रहे थे। फ़िर उन्होंने दीदी की चूत के होठ अपने ऊँगलियों की मदद
से खोले और भीतर के गुलाबी फ़ूल का दीदार मैंने पाया। तभी रेखा बोली,
"देखिए भैया जी, हम कहे थे न कि हमेशा जीजाजी पहले दीदी का चूत चाटते
हैं, इसके बाद चोदते हैं।" और जब मुझे एक टक दीदी की चूत निहारते देखी तो
बोली, "मान गए भैया जी, आप सही में बहुत बेशर्म है, हमको लगा था कि आप
अपनी दीदी को नहीं देखिएगा, हमेशा आप जीजाजी-दीदी के छेड़-छाड़ से दूर
भागते थे अभी तक। हम समझे थे कि आप सब मजाक में बोल रहे थे आज तक। बाकी
अब आपको यह सब ऐसे मगन हो के देखते देख कर लगता है कि आपको मौका मिला तो
दीदी को भी चोद लीजिएगा।"
यानि अब रेखा मेरे से भी एक डेग आगे निकल गई थी बात करने में। मैंने भी
उसका जवाब देना सही समझा सो बोला, "मेरा विचार तो नहीं था यह सब देखने
का, पर रानी तुम ऐसा मस्त माल हो कि तुम जब अपने को चुदाने की शर्त हीं
यही रख दी तो क्या करता। पर अब अपनी चूत मराने को तैयार रहो। मैंने तो
तुम्हारी शर्त पूरी कर दी, अब तुम्हें चुदाना होगा आज हीं रात को तभी
तुमको सोने दुँगा नहीं तो दीदी को बता दुँगा कि तुम रोज उनको देखती हो।
रेखा बोली, "ठीक है भैया जी, पर आज नहीं, जब घर खाली रहेगा उस दिन चुदा
लूँगी आपसे, नहीं तो डर लगा रहेगा और मजा नहीं आएगा।" आज पहली बार रेखा
खुद से मानी थी कि वह मुझसे चुदेगी, सो मैं मस्त हो गया और नजर दीदी पर
गड़ा दी, जहाँ अब जीजाजी नंगे हो गए थे और दीदी की टाँगे खोल हर उसकी
जांघों के बीच बैठ कर अपना पोजीशन सेट कर रहे थे। जीजाजी ने अपने लन्ड
पर, जो करीब ६" का था पर खुब मोटा, अपना ढ़ेर सारा थुक लगाया और फ़िर
दीदी की चूत में एक हीं जोर के धक्के में भीतर जड़ तक ठेल दिया। दीदी
अपना सर एक तरफ़ झटकी और फ़िर हल्के से आआह्ह की। इसके बाद दीदी की चूत
की चुदाई शुरु कर दी जीजाजी ने। मैंने रेखा से कहा, "प्लीज, आज अपना
सलवार खोल दो न, ऊपर से हीं रगड़ कर मैं अपना झाड़ लुँगा।" रेखा मान गई
और पहली बार मेरे सामने अपना सल्वार नीचे खींच कर अपने पैरो से निकाल
दिया। मैंने उसे अपने सीने से लगाया, पर साली मेरे से पूरे १३" लम्बाई
में कम थी सो मेरा लन्ड उसके पेट के भी थोड़ा उपर सटा तो मैंने उसको पलट
के झुका दिया और फ़िर खुद भी थोड़ा झुक कर उसकी गाँड़ की दरार में लन्ड
रगड़ने लगा। जीजाजी अब दीदी को खुब जकड़ कर जोर-जोर से धक्का मार रहे थे
और दीदी का सारा बदन हिल रहा था उन धक्कों से। पर मेरी हालत खराब थी, सो
जल्द हीं मैं झड़ गया और आज पहली बार मेरे लन्ड से निकला रस रेखा की चूत
को चुमा। मैंने उस पूरे रस को रेखा की झाँटों पर फ़ैला दिया। इस जगह
अंधेरा होने से कुछ खास तो नहीं दिखा फ़िर भी, आज एक नई शुरुआत जरुर हुई।
तभी जीजाजी ने अपना लन्ड बाहर खींचा और फ़िर दीदी पर फ़ुर्ती से चढ़े और
उसके मुँह में अपना रस गिराने लगे। दीदी भी अब उनको चाटने लगी थी। रेखा
बोली अब भागिए जल्दी, अब वो बाहर आ कर फ़्रीज से पानी निकाल कर पीएँगें,
और फ़्रिज किचेन के सामने है, और वो वैसे हीं नंगी सलवार ले कर फ़टाक से
किचेन में घुस गई, मैं भी जल्दी से वहाँ से भाग कर उपर अपने कमरे में आ
गया।
इसके अगले दिन मैं टूर पर निकल गया। जब ६ दिन पर लौटा, तो घर पर सिर्फ़
रेखा थी। पता चला कि दीदी सब्जी लेने बाजार गई है, और जीजाजी औफ़िस।
मैंने तुरन्त रेखा को कहा, "चल रानी उपर, अभी घर में कोई नहीं है - चुदवा
ले मेरे से।" रेखा हँसी और बोली, "नहीं आपकी दीदी तुरन्त आ जाएगी, जब घर
पुरा दिन खाली रहेगा तब। अभी इधर आईए न एक चीज देखाते हैं" और वो मेरे
साथ दीदी के कमरे की तरफ़ बढ़ गई। बेड के नीचे से रेखा ने एक बैग निकाला,
जिसको खोलने के बाद जो दिखाई वो देख मैं दंग रह गया। बैग में एक
वाईब्रेटर था, करीब ६" लम्बा और एक ईंच मोटा। साथ में एक चमड़े का छॊटा
सा चाबूक, करीब ७-८ ईंच का १५-१६ लड़ी था, जो एक सुन्दर से लड़की के
हत्थे से लिपटा हुआ था। रेखा बड़ी एक्साईटेड थी सो बोली, "समझ में आया,
ये क्या है?" मैं भोला बन पूछा, "क्या है?" आपके जीजाजी कुरियर से मंगाए
थे। आपके जाने के अगले दिन हीं शाम में आया था। वो लोग तब चाय पी रहे थे
सो हम हीं रीसीव किए थे और जब हम पैकेट खोल कर यह सब निकाले तो कुछ समझ
में नहीं आया, सो उन दोनों को दे दिए तो दीदी बोली - आप मंगा हीं लिए। इस
पर आपके जीजाजी का बात सुन कर कुछ अंदाजा हुआ।" मैं पूछा, "क्या कहे थे
जीजाजी?" रेखा बोली, "वो बोले थे कि - हाँ, एक दम ठीक टाईम में आया है।
रेखा भी आजकल उपर-वाले कमरे में सोएगी सो नीचे शांत हीं रहेगा। बस हम समझ
गए कि यह जरुर सेक्स का चीज है। इसके बाद वो इसे (वाईब्रेटर) अपने हाथ
में औन किए तो हल्की घनघनाहट के साथ यह थड़थड़ाने लगा, ऐसे (उसने ओन करके
दिखाया)। तब आपकी दीदी इसको हाथ में लेके बोली - ठीक है अब आप नहीं रहेगा
तब भी मेरा काम चल जाएगा। और आपके जीजाजी का मुँह चुम कर थैंक्यु बोली।
इस पर मुझे देख कर बोले थे कि रेखा तुमको भी देखना है क्या? पर तब आपकी
दीदी हीं न कह दी - नहीं, अभी बच्ची है, इसको यह सब मत समझाईए। आपके
जीजाजी तब कहे थे कि यह सब सीखाना नहीं पड़ता है, सब अपने जवानी सीखा
देती है।"
क्रमशः .......................
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