हिंदी सेक्सी कहानियाँ
प्रेषिका : स्लिमसीमा
नई नवला रस भेद न जानत, सेज गई जिय मांह डरी
रस बात कही तब चौंक चली तब धाय के कंत ने बांह धरी
उन दोउन की झकझोरन में कटी नाभि ते अम्बर टूट परी
कर कामिनी दीपक झांप लियो, इही कारण सुन्दर हाथ जरी
इही कारण सुन्दर हाथ जरी....
…..इसी कहानी से
मेरी प्यारी पाठिकाओ,
मधुर की एक बात पर मुझे कई बार गुस्सा भी आता है और बाद में हंसी भी आती है। वो अक्सर बाथरूम में जब नहाने के लिए अपने सारे कपड़े उतार देती है तब उसे तौलिये और साबुन की याद आती है। अभी वो बाथरूम में ही है और आज भी वो सूखा तौलिया ले जाना भूल गई है। अन्दर से उसकी सुरीली आ रही है :
पालकी पे हो के सवार चली रे …
मैं तो अपने साजन के द्वार चली रे
अचानक बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और मधुर ने अपनी अपनी मुंडी बाहर निकलकर मुझे अलमारी से नया तौलिया निकाल कर लाने को कहा। मुझे पता है आज वो मुझे अपने साथ बाथरूम के अन्दर तो बिलकुल नहीं आने देगी और कम से कम एक घंटा तो बाथरूम में जरूर लगाएगी क्योंकि पिछली रात हमने 2.00 बजे तक प्रेम युद्ध जो किया था। आप सोच रहे होंगे ऐसा क्या था पिछली रात में। ओह … आप नहीं जानते 10 नवम्बर हमारी शादी की वर्षगाँठ आती है तो हम सारी रात एक दूसरे की बाहों में लिपटे प्रेम युद्ध करते रहते हैं।
अलमारी खोल कर जैसे ही मैंने दूसरे कपड़ों के नीचे रखे तौलिये को बाहर खींचा तो उसके नीचे दबी एक काले जिल्द वाली डायरी नीचे गिर पड़ी। मुझे बड़ी हैरानी हुई, मैंने पहले इस डायरी को कभी नहीं देखा। मैंने उत्सुकतावश उसका पहला पृष्ठ खोला।
अन्दर लिखा था "मधुर प्रेम मिलन" और डायरी के बीच एक गुलाब का सूखा फूल भी दबा था।
मैं अपने आप को कैसे रोक पाता । मैंने उस डायरी को अपने कुरते की जेब में डाल लिया और मधुर को तौलिया पकड़ा कर ड्राइंग रूम में आ गया। मैंने धड़कते दिल से उस डायरी को पुनः खोला। ओह … यह तो मधुर की लिखावट थी। पहले ही पृष्ठ पर लिखा था मधुर प्रेम मिलन 11 नवम्बर, 2003 ओह… यह तो हमारी शादी के दूसरे दिन यानी सुहागरात की तारीख थी। मैंने कांपते हाथों से अगला पृष्ठ खोला। लिखा था :
11 नवम्बर, 2003
दाम्पत्य जीवन में मिलन की पहली रात को सुहागरात कहते हैं। वर और वधू दोनों के मन में इस रात के मिलन की अनेक रंगीन एवं मधुर कल्पनाएँ होती हैं जैसे पहली रात अत्यंत आनंदमयी, गुलाबी, रोमांचकारी मिलन की रात होगी। फूलों से सजी सेज पर साज़ श्रृंगार करके अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में बैठी नव वधू अपने प्रियतम के बाहुपाश में बांध कर असीम अलौकिक आनंद का अनुभव करेगी। जैसे हर लड़की के ह्रदय में विवाह और मधुर मिलन (सुहागरात) को लेकर कुछ सपने होते हैं मेरे भी कुछ अरमान थे।
ओह … पहले मैंने अपने बारे में थोड़ा बता दूँ। मैं मधुर उम्र 23 साल। 10 नवम्बर, 2003 को मेरी शादी प्रेम माथुर से हुई है। और आज मैं प्रेम की बाहों में आकर कुमारी मधुर शर्मा से श्रीमती मधुर माथुर बन गई हूँ। प्रेम तो मेरे पीछे ही पड़े हैं कि मैं हमारे मधुर मिलन के बारे में अपना अनुभव लिखूं । ओह…. मुझे बड़ी लाज सी आ रही है। अपने नितांत अन्तरंग क्षणों को भला मैं किसी को कैसे बता सकती हूँ। पर मैंने निश्चय किया है कि मैं उन पलों को इस डायरी में उकेरूंगी जिसे कोई दूसरा नहीं जान पायेगा और जब हम बूढ़े हो जायेंगे तब मैं प्रेम को किसी दिन बहाने से यह डायरी दिखाऊँगी तो वो मुझे अपनी बाहों में जकड़ लेंगे और एक बार फिर से हम दोनों इन मधुर स्मृतियों में खो जाया करेंगे।
मैं सोलह श्रृंगार किए लाल जोड़े में फूलों से सजी सुहाग-सेज पर लाज से सिमटी बैठी उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। कमरे में मध्यम प्रकाश था। भीनी-भीनी मोगरे, गुलाब और चमेली की सुगंध फैली थी। सुहागकक्ष तो मेरी कल्पना से भी अधिक सुन्दर सजा था। पलंग के ठीक ऊपर 5-6 फुट की ऊंचाई पर गुलाब और गैंदे के फूलों की झालरें लगी थी। बिस्तर पर सुनहरे रंग की रेशमी चादर के ऊपर गुलाब और मोगरे की पत्तियाँ बिछी थी और चार मोटे मोटे तकिये रखे थे। पलंग के बगल में छोटी मेज पर चांदी की एक तश्तरी में पान, दूसरी में कुछ मिठाइयाँ, एक थर्मस में गर्म दूध और पास में दो शीशे के ग्लास रखे थे। दो धुले हुए तौलिये, क्रीम, वैसलीन, तेल की शीशियाँ और एक लिफ़ाफ़े में फूल मालाएं (गज़रे) से रखे थे। पलंग के दूसरी और एक छोटी सी मेज पर नाईट लैम्प मध्यम रोशनी बिखेर रहा था और उसके पास ही एक गुलाब के ताज़ा फूलों का गुलदान रखा था। मेरी आँखें एक नए रोमांच, कौतुक और भय से बंद होती जा रही थी। पता नहीं वो आकर मेरे साथ कैसे और क्या-क्या करेंगे।ऐसा विचार आते ही मैं और भी सिकुड़ कर बैठ गई।
बाहर कुछ हँसने की सी आवाज ने मेरा ध्यान खींचा। अचानक दरवाजा खुला और मीनल और उसकी एक सहेली के साथ प्रेम ने अन्दर प्रवेश किया। प्रेम तो खड़े रहे पर ये दोनों तो मेरे पास ही आकर बैठ गई।
फिर उन्होंने प्रेम को संबोधित करते हुए कहा,"भाभी को ज्यादा तंग ना करियो प्रेम भैया !"
और दोनों खिलखिला कर जोर जोर से हंसने लगी।
"ओह…. मीनल अब तुम दोनों जाओ यहाँ से !"
"अच्छाजी … क्यों … ? ऐसी क्या जल्दी है जी ?" वो दोनों तो ढीठ बनी हंसती रही, जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।
प्रेम क्या बोलता। उनकी हालत देख कर मीनल उठते हुए बोली,"चलो भाई, अब हमारा क्या काम है यहाँ। जब तक मंगनी और शादी नहीं हुई थी तब तक तो हमारा साथ बहुत प्यारा लगता था, अब हमें कौन पूछेगा ? चल नेहा हम कबाब में हड्डी क्यों बनें ? इन दोनों को कबाब खाने दो … मेरा मतलब …. प्रेम मिलन करने दे ! देखो बेचारे कैसे तड़फ रहे हैं !"
दोनों खिलखिला कर हंसती हुई बाहर चली गई। मीनल वैसे तो मेरी चचेरी बहन है पर रिश्ते में प्रेम की भी मौसेरी बहन लगती है। प्रेम के साथ मेरी शादी करवाने में मुख्य भूमिका इसी की रही थी। सुधा भाभी तो अपनी छोटी बहन माया (माया मेम साब) के साथ करवाना चाहती थी पर मीनल और चाची के जोर देने पर मेरा रिश्ता इन्होंने स्वीकार कर लिया था। दरअसल एक कारण और भी था।
मीनल बताती है कि प्रेम को बिल्लौरी आँखें बहुत पसंद हैं। अगर किसी लड़की की ऑंखें बिल्लोरी हों तो वो उसे बिल्लो रानी या सिमरन कह कर बुलाते हैं। आप तो जानते ही हैं काजोल और करीना कपूर की ऑंखें भी बिल्लोरी हैं और काजोल का तो एक फिल्म में नाम भी सिमरन ही था। भले ही माया के नितम्ब पूरे आइटम लगते हों पर मेरी बिल्लौरी आँखों और पतली कमर के सामने वो क्या मायने रखती थी। सच कहूं तो मेरी कजरारी (अरे नहीं बिल्लौरी) आँखों का जादू चल ही गया था। प्रेम से सगाई होने के बाद माया ने एक बार मुझे कहा था,"दगडू हलवाई की कसम, अगर यह प्रेम मुझे मिल जाता तो मैं एक ही रात मैं उसके पप्पू को पूरा का पूरा निचोड़ लेती !"
"छी … पागल है यह माया मेम साब भी !" ओह ! मैं भी क्या बातें ले बैठी मैं तो अपनी बात कर रही थी।
मधुर मिलन (सुहागरात) को लेकर मेरे मन में उत्सुकता और रोमांच के साथ साथ डर भी था मुझे ज्यादा तो पता नहीं था पर पति पत्नी के इस रिश्ते के बारे में काम चलाऊ जानकारी तो थी ही। मीनल तो मुझे छेड़ती ही रहती थी। प्रेम के बारे में बहुत सी बातें बताती रहती थी कि वो बहुत रोमांटिक है देखना तुम्हें अपने प्रेम से सराबोर कर देगा। एक बार मैंने मीनल से पूछा था कि पहली रात में क्या क्या होता है तो उसने जो बताया आप भी सुन लें :
"अरे मेरी भोली बन्नो ! अगर किसी आदमी से पूछा जाए कि तुम जंगल में अकेले हो और तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाये तो तुम क्या करोगे ? तो वो बेचारा क्या जवाब देगा ? वो तो बस यही कहेगा ना कि भाई मै क्या करूँगा, जो करेगा वोह शेर ही करेगा । सुहागरात में भी यही होता है जो भी करना होता है वो पति ही करता है तुम्हें तो बस अपनी टांगें चौड़ी करनी हैं !"
कितना गन्दा बोलती है मीनल भी। और सुधा भाभी ने भी ज्यादा नहीं समझाया था। बस इतना कहा था कि "सुहागरात जीवन में एक बार आती है, मैं ज्यादा ना-नुकर ना करूँ वो जैसा करे करने दूँ। उसका मानना है कि जो पत्नी पहली रात में ज्यादा नखरे दिखाती है या नाटक करती है उनकी जिन्दगी की गाड़ी आगे ठीक से नहीं चल पाती।"
"रति मात्र शरीर व्यापार नहीं है। स्त्री पुरुष के सच्चे यौन संबंधों का अर्थ मात्र दो शरीरों का मिलन नहीं बल्कि दो आत्माओं का भावनात्मक रूप से जुड़ना होता है। स्त्री पुरुष का परिणय सूत्र में बंधना एक पवित्र बंधन है। इस बंधन में बंधते ही दोनों एक दूसरे के सुख-दुःख, लाभ-हानि, यश-अपयश के भागीदार बन जाते हैं। विवाह की डोर कई भावनाओं, संवेदनाओं और असीम प्रेम से बंधी होती है। विवाह नए जीवन में कदम रखने जा रहे जोड़े की उम्मीदों, चाहनाओं, ख़्वाहिशों और खुशियों को मनाने का समय होता है और विवाह की प्रथम रात्रि दोनों के गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का प्रथम सोपान होती है। इसलिए इस मिलन की रात को आनंदमय, मधुर और रोमांचकारी बनाना चाहिए।
सम्भोग (सेक्स) अपनी भावनाओं को उजागर करने का बहुत अच्छा विकल्प या साधन होता है ये वो साधन है जिससे हम अपने साथी को बता सकते हैं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हु। यह तो तनाव मुक्ति और जिन्दगी को पूर्णता प्रदान करने का मनभावन साधन है। यह क्रिया दोनों में नजदीकी और गहरा प्रेम बढ़ाती है। और पत्नी के दिल में उस रिक्तता को भरता है जो माता पिता से बिछुड़ने के बाद पैदा होती हे। यही परिवार नामक संस्था जीवन में सुरक्षा और शान्ति पूर्णता लाती है।
भाभी की बातें सुनकर मैंने भी निश्चय कर लिया था कि मैं इस रात को मधुर और अविस्मरणीय बनाउंगी और उनके साथ पूरा सहयोग करुँगी। उन्हें किसी चीज के लिए मन नहीं करूंगी।
"मधुर, आप ठीक से बैठ जाएँ !"
अचानक उनकी आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई। मेरा हृदय जोर जोर से धड़कने लगा। मैं तो अपने विचारों में ही डूबी थी। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब प्रेम ने दरवाजे की सिटकनी (कुण्डी) लगा ली थी और मेरे पास आकर पलंग पर बैठे मुझे अपलक निहार रहे थे।
मैं लाज के मारे कुछ बोलने की स्थिति में ही नहीं थी बस थोड़ा सा और पीछे सरक गई। कई बार जब लाज से लरजते होंठ नहीं बोल पाते तो आँखें, अधर, पलकें, उंगलियाँ और देह के हर अंग बोलने लगते हैं। मेरे अंग अंग में अनोखी सिहरन सी दौड़ रही थी और हृदय की धड़कने तो जैसे बिना लगाम के घोड़े की तरह भागी ही जा रही थी।
"ओह … मधुर, आप घबराएँ नहीं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जो आपको अच्छा ना लगे !"
"म … मैं ठीक हूँ !" मेरे थरथराते होंटों से बस इतना ही निकला।
"ओह…. बहुत बहुत धन्यवाद।"
" ?...? " मैंने अब चौंकते हुए उनकी ओर देखा।
उन्होंने सुनहरे रंग का कामदार कुरता और चूड़ीदार पायजामा पहना था। गले में छोटे छोटे मोतियों की माला पहनी थी। उन्होंने बहुत ही सुगन्धित सा इत्र लगा रखा था। वो तो जैसे पूरे कामदेव बने मेरी ओर देखे ही जा रहे थे। मैं तो बस एक नज़र भर ही उनको देख पाई और फिर लाज के मारे अपनी मुंडी नीचे कर ली। मैं तो चाह रही थी कि प्रेम अपनी आँखें बंद कर लें और फिर मैं उन्हें आराम से निहारूं।
"शुक्र है आप कुछ बोली तो सही। वो मीनल तो बता रही थी कि आप रात में गूंगी हो जाती हैं ?"
मैंने चौंक कर फिर उनकी और देखा तो उनके होंठों पर शरारती मुस्कान देख कर मैं एक बार फिर से लजा गई। मैं जानती थी मीनल ने ऐसा कुछ नहीं बोला होगा, यह सब उनकी मनघड़ंत बातें हैं।
फिर उन्होंने अपनी जेब से एक ताज़ा गुलाब का फूल निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा,"हमारा दाम्पत्य जीवन इस गुलाब की तरह खुशबू बिखेरता रहे !"
मैंने कहीं पढ़ा था गुलाब प्रेम का प्रतीक होता है। यह प्रेमी और प्रेमिकाओं के आकर्षण का केंद्र होता है। लाल गुलाब की कलि मासूमियत का प्रतीक होती हैं और यह सन्देश देती हैं कि तुम बहुत सुन्दर और प्यारी हो, मैं तुम्हें अथाह प्रेम करता हूँ।
मैंने उस गुलाब के फूल को उनके हाथों से ले लिया। मैं तो इसे किसी अनमोल खजाने की तरह जीवन भर सहेज कर अपने पास रखूंगी।
"मधुर आपके लिए एक छोटी सी भेंट है !"
मैंने धीरे से अपनी मुंडी फिर उठाई। उनके हाथों में डेढ़ दो तोले सोने का नेकलेस झूल रहा था। गहनों के प्रति किसी भी स्त्री की यह तो स्त्री सुलभ कमजोरी होती है, मैंने अपना हाथ उनकी ओर बढ़ा दिया। पर उन्होंने अपना हाथ वापस खींच लिया।
"नहीं ऐसे हाथ में नहीं ….!"
मैंने आश्चर्य से उनकी और देखा।
"ओह … क्षमा करना … आप कहें तो मैं इसे आपके गले में पहना दूं …." वो मेरी हालत पर मुस्कुराये जा रहे थे। अब मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ।
फिर वो उस नेकलेस को मेरे गले में पहनने लगे। मेरी गर्दन पर उनकी अँगुलियों के रेंगने का अहसास मुझे रोमांचित करने लगा। उनकी आँखें तो बस मेरी कुर्ती के अन्दर झांकते अमृत कलशों की गहरी घाटी में ही अटकी रह गई थी। मुझे उनके कोमल हाथों का स्पर्श अपने गले और फिर गर्दन पर अनुभव हुआ तो मेरी सारी देह रोमांच के मारे जैसे झनझना ही उठी। मेरे ह्रदय की धड़कने तो जैसे आज सारे बंधन ही तोड़ देने पर उतारू थी। उनकी यह दोनों भेंट पाकर मैं तो मंत्र मुग्ध ही हो गई थी।
मैंने भी अपना जेब-खर्च बचा कर उनके लिए एक ब्रासलेट (पुरुषों द्वारा हाथ में पहनी जाने वाली चैन) बनवाई थी। मैंने अपना वैनिटी बैग खोल कर ब्रासलेट निकला और उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा "यह मेरी ओर से आपके लिए है !"
"ओह … बहुत खूबसूरत है …" वो हंसते हुए बोले "पर इसे आपको ही पहनाना होगा !"
मैं तो लाज के मारे छुईमुई ही हो गई। मेरे हाथ कांपने लगे थे। पर अपने आप पर नियंत्रण रख कर मैंने उस ब्रासलेट को उनकी कलाई में पहना दिया। मैंने देखा मेरी तरह उन्होंने भी अपने हाथों में बहुत खूबसूरत मेहंदी लगा रखी थी।
"मधुर ! इस अनुपम भेंट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !" कहते हुए उन्होंने उस ब्रासलेट को चूम लिया। मैं एक बार फिर लजा गई।
"मधुर आप को नींद तो नहीं आ रही ?"
अजीब प्रश्न था। मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा।
"ओह … अगर आप कहें तो मैं आपके बालों में एक गज़रा लगा दूँ ? सच कहता हूँ आपके खूबसूरत जूड़े पर बहुत सुन्दर लगेगा !"
हे भगवान् ! ये प्रेम भी पता नहीं मेरी कितनी परीक्षा लेंगे। इनका नाम तो प्रेम माथुर नहीं प्रेमगुरु या कामदेव होना चाहिए। मैं सर नीचे किये बैठी रही। मेरा मन तो चाह रहा था कि वो कुछ प्रेम भरी बातें बोले पर मैं भला क्या कर सकती थी।
उन्होंने अपना हाथ बढ़ा कर मेज पर रखा पैकेट उठाया और उसमें से मोगरे के फूलों का एक गज़रा निकाला और मेरे पीछे आकर मेरी चुनरी थोड़ी सी हटा कर वेणी (जूड़े) में गज़रे लगाने लगे। अपनी गर्दन और पीठ पर दुबारा उनकी रेंगती अँगुलियों का स्पर्श पाकर मैं एक बार फिर से रोमांच में डूब गई। उन्होंने एक कविता भी सुनाई थी। मुझे पूरी तो याद नहीं पर थोड़ी तो याद है :
एक हुश्न बेपर्दा हुआ और ये वादियाँ महक गई
चाँद शर्मा गया और कायनात खिल गई
तुम्हारे रूप की कशिश ही कुछ ऐसी है
जिसने भी देखा बस यही कहा :
ख़्वाबों में ही देखा था किसी हुस्न परी को,
किसे खबर थी कि वो जमीन पर भी उतर आएगी
किसी को मिलेगा उम्र भर का साथ उसका
और उसकी तकदीर बदल जायेगी….
पता नहीं ये प्रेम के कौन कौन से रंग मुझे दिखाएँगे। मेरा मन भी कुछ गुनगुनाने को करने लगा था :
वो मिल गया जिसकी हमने तलाश थी
बेचैन सी साँसों में जन्मों की प्यास थी
जिस्म से रूह में हम उतरने लगे ….
इस कदर आपसे हमको मोहब्बत हुई
टूट कर बाजुओं में बिखरने लगे
आप के प्यार में हम सँवरने लगे …..
पर इस से पहले कि मैं कुछ कहूं वो बोले,"मधुर मैं एक बात सोच रहा था !"
"क … क्या ?" अनायाश मेरे मुंह से निकल गया।
"वो दर असल मीनल बहुत से गज़रे ले आई थी अगर आप कहें तो इनका सदुपयोग कर लिया जाए ?"
सच कहूं तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैंने उत्सुकतावश उनकी ओर देखा। मुझे तो बाद में समझ आया कि वो मुझे सहज करने का प्रयास कर रहे थे।
"वो.... वो अगर आप कहें तो मैं आपकी कलाइयों पर भी एक एक गज़रा बांध दूं ?"
ओह.... उनकी बच्चों जैसे मासूमियत भरे अंदाज़ पर तो मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। मुझे मुस्कुराते हुए देख और मेरी मौन स्वीकृति पाकर उनका हौसला बढ़ गया और इससे पहले कि मैं कुछ बोलती उन्होंने तो मेरा एक हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे धीरे उस पर गज़रा बांधने लगे। मैंने अपनी कलाइयों में कोहनी से थोड़ी नीचे तक तो लाल चूड़ियाँ पहन रखी थी सो उन्होंने मेरी दोनों बाजुओं पर गज़रे बाँध दिए तो अनायास मुझे दुष्यंत की शकुंतला याद हो आई। उनके हाथों की छुवन से तो जैसे मेरा रोम रोम ही पुलकित होने लगा।
मैं तो सोच रही थी कि गज़रे बाँध कर वो मेरा हाथ छोड़ देंगे पर उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिए ही रखा। फिर मेरी बंद सी मुट्ठी को खोलते हुए मेरे हाथों में लगी मेहंदी देखने लगे। मीनल और भाभी ने विशेष रूप से मेरे दोनों हाथों में बहुत खूबसूरत मेहंदी लगवाई थी। आप तो जानते ही होंगे कि जयपुर में बहुत अच्छी मेहंदी लगाने का रिवाज़ है। मैंने कहीं सुना था कि नववधु के हाथों में जितनी गहरी मेहंदी रचती है उसका पति उस से उतना ही अधिक प्रेम करता है।
वो पहले तो मेरी हथेली सहलाते रहे फिर होले से कुछ देखते हुए बोले,"मधुर एक काम आपने सरासर गलत किया है !"
"क … क्या ?" मैंने चौंकते हुए उनकी ओर देखा।
"देखो आपने एक हथेली में मधुर लिखा है और दूसरी हथेली में इतनी दूर प्रेम लिखा है !" कह कर वो हंसने लगे।
मैं पहले तो कुछ समझी नहीं बाद में मेरी भी हंसी निकल गई,"वो मीनल ने लिख दिया था !"
"यह मीनल भी एक नंबर की शैतान है अगर दोनों नाम एक साथ लिखती तो कितना अच्छा लगता। चलो कोई बात नहीं मैं इन दोनों को मिला देता हूँ !" कह कर उन्होंने मेरे दोनों ही हाथों को अपने हाथों में भींच लिया।
"मधुर मैंने तो अपने दोनों हाथों में आपका ही नाम लिखा है !"
कहते हुए उन्होंने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी और फैला दी। उनके हाथों में भी बहुत खूबसूरत मेंहंदी रची थी। बाईं हथेली में अंग्रेजी में "एम" लिखा था और दाईं पर "एस" लिखा था। "एम" तो मधुर (मेरे) के लिए होगा पर दूसरी हथेली पर यह "एस" क्यों लिखा है मेरी समझ में नहीं आया।
"यह "एस" किसके लिए है ?"
"वो.... वो.... ओह … दरअसल यह "एस" मतलब सिमरन … मतलब स्वर्ण नैना !" वो कुछ सकपका से गए जैसे उनका कोई झूठ पकड़ा गया हो।
"कौन स्वर्ण नैना ?"
"ओह … मधुर जी आप की आँखें बिल्लोरी हैं ना तो मैं आपको स्वर्ण नैना नहीं कह सकता क्या ?" वो हंसने लगे।
पता नहीं कोई दूसरी प्रेमिका का नाम तो नहीं लिख लिया। मैं तो अपने प्रेम को किसी के साथ नहीं बाँट पाउंगी। मुझे अपना प्रेम पूर्ण रूप से चाहिए। सुधा भाभी तो कहती है कि ये सभी पुरुष एक जैसे होते हैं। किसी एक के होकर नहीं रह सकते। स्त्री अपने प्रेम के प्रति बहुत गंभीर होती है। वो अपने प्रेम को दीर्घकालीन बनाना चाहती है। पुरुष केवल स्त्री को पाने के लिए प्रेम प्रदर्शित करता है पर स्त्री अपने प्रेम को पाने के लिए प्रेम करती है। पुरुष सोचता है कि वो एक साथ कई स्त्रियों से प्रेम कर सकता है पर स्त्री केवल एक ही साथी की समर्पिता बनना पसंद करती है।
खैर कोई बात नहीं मैं बाद में पूछूंगी। एक बात तो है जहाज का पक्षी चाहे जितनी दूर उड़ारी मारे सांझ को लौट कर उसे जहाज़ पर आना ही होगा। ओह.... मैं भी क्या व्यर्थ बातें ले बैठी।
"मधुर …?"
"जी ?"
मैं जानती थी वो कुछ कहना चाह रहे थे पर बोल नहीं पा रहे थे। आज की रात तो मिलन की रात है जिसके लिए हम दोनों ने ही पता नहीं कितनी कल्पनाएँ और प्रतीक्षा की थी।
"मधुर, क्या मैं एक बार आपके हाथों को चूम सकता हूँ ?"
मेरे अधरों पर गर्वीली मुस्कान थिरक उठी। अपने प्रियतम को प्रणय-निवेदन करते देख कर रूप-गर्विता होने का अहसास कितना मादक और रोमांचकारी होता है, मैंने आज जाना था। मैंने मन में सोचा 'पूरी फूलों की डाली अपनी खुशबू बिखरने के लिए सामने बिछी पड़ी है और वो केवल एक पत्ती गुलाब की मांग रहे हैं !'
मैंने अपने हाथ उनकी ओर बढ़ा दिए।
कई भागों में समाप्य !
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..............raj.....................
प्रेम युद्ध-1
लेखक : प्रेम गुरुप्रेषिका : स्लिमसीमा
नई नवला रस भेद न जानत, सेज गई जिय मांह डरी
रस बात कही तब चौंक चली तब धाय के कंत ने बांह धरी
उन दोउन की झकझोरन में कटी नाभि ते अम्बर टूट परी
कर कामिनी दीपक झांप लियो, इही कारण सुन्दर हाथ जरी
इही कारण सुन्दर हाथ जरी....
…..इसी कहानी से
मेरी प्यारी पाठिकाओ,
मधुर की एक बात पर मुझे कई बार गुस्सा भी आता है और बाद में हंसी भी आती है। वो अक्सर बाथरूम में जब नहाने के लिए अपने सारे कपड़े उतार देती है तब उसे तौलिये और साबुन की याद आती है। अभी वो बाथरूम में ही है और आज भी वो सूखा तौलिया ले जाना भूल गई है। अन्दर से उसकी सुरीली आ रही है :
पालकी पे हो के सवार चली रे …
मैं तो अपने साजन के द्वार चली रे
अचानक बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और मधुर ने अपनी अपनी मुंडी बाहर निकलकर मुझे अलमारी से नया तौलिया निकाल कर लाने को कहा। मुझे पता है आज वो मुझे अपने साथ बाथरूम के अन्दर तो बिलकुल नहीं आने देगी और कम से कम एक घंटा तो बाथरूम में जरूर लगाएगी क्योंकि पिछली रात हमने 2.00 बजे तक प्रेम युद्ध जो किया था। आप सोच रहे होंगे ऐसा क्या था पिछली रात में। ओह … आप नहीं जानते 10 नवम्बर हमारी शादी की वर्षगाँठ आती है तो हम सारी रात एक दूसरे की बाहों में लिपटे प्रेम युद्ध करते रहते हैं।
अलमारी खोल कर जैसे ही मैंने दूसरे कपड़ों के नीचे रखे तौलिये को बाहर खींचा तो उसके नीचे दबी एक काले जिल्द वाली डायरी नीचे गिर पड़ी। मुझे बड़ी हैरानी हुई, मैंने पहले इस डायरी को कभी नहीं देखा। मैंने उत्सुकतावश उसका पहला पृष्ठ खोला।
अन्दर लिखा था "मधुर प्रेम मिलन" और डायरी के बीच एक गुलाब का सूखा फूल भी दबा था।
मैं अपने आप को कैसे रोक पाता । मैंने उस डायरी को अपने कुरते की जेब में डाल लिया और मधुर को तौलिया पकड़ा कर ड्राइंग रूम में आ गया। मैंने धड़कते दिल से उस डायरी को पुनः खोला। ओह … यह तो मधुर की लिखावट थी। पहले ही पृष्ठ पर लिखा था मधुर प्रेम मिलन 11 नवम्बर, 2003 ओह… यह तो हमारी शादी के दूसरे दिन यानी सुहागरात की तारीख थी। मैंने कांपते हाथों से अगला पृष्ठ खोला। लिखा था :
11 नवम्बर, 2003
दाम्पत्य जीवन में मिलन की पहली रात को सुहागरात कहते हैं। वर और वधू दोनों के मन में इस रात के मिलन की अनेक रंगीन एवं मधुर कल्पनाएँ होती हैं जैसे पहली रात अत्यंत आनंदमयी, गुलाबी, रोमांचकारी मिलन की रात होगी। फूलों से सजी सेज पर साज़ श्रृंगार करके अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में बैठी नव वधू अपने प्रियतम के बाहुपाश में बांध कर असीम अलौकिक आनंद का अनुभव करेगी। जैसे हर लड़की के ह्रदय में विवाह और मधुर मिलन (सुहागरात) को लेकर कुछ सपने होते हैं मेरे भी कुछ अरमान थे।
ओह … पहले मैंने अपने बारे में थोड़ा बता दूँ। मैं मधुर उम्र 23 साल। 10 नवम्बर, 2003 को मेरी शादी प्रेम माथुर से हुई है। और आज मैं प्रेम की बाहों में आकर कुमारी मधुर शर्मा से श्रीमती मधुर माथुर बन गई हूँ। प्रेम तो मेरे पीछे ही पड़े हैं कि मैं हमारे मधुर मिलन के बारे में अपना अनुभव लिखूं । ओह…. मुझे बड़ी लाज सी आ रही है। अपने नितांत अन्तरंग क्षणों को भला मैं किसी को कैसे बता सकती हूँ। पर मैंने निश्चय किया है कि मैं उन पलों को इस डायरी में उकेरूंगी जिसे कोई दूसरा नहीं जान पायेगा और जब हम बूढ़े हो जायेंगे तब मैं प्रेम को किसी दिन बहाने से यह डायरी दिखाऊँगी तो वो मुझे अपनी बाहों में जकड़ लेंगे और एक बार फिर से हम दोनों इन मधुर स्मृतियों में खो जाया करेंगे।
मैं सोलह श्रृंगार किए लाल जोड़े में फूलों से सजी सुहाग-सेज पर लाज से सिमटी बैठी उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। कमरे में मध्यम प्रकाश था। भीनी-भीनी मोगरे, गुलाब और चमेली की सुगंध फैली थी। सुहागकक्ष तो मेरी कल्पना से भी अधिक सुन्दर सजा था। पलंग के ठीक ऊपर 5-6 फुट की ऊंचाई पर गुलाब और गैंदे के फूलों की झालरें लगी थी। बिस्तर पर सुनहरे रंग की रेशमी चादर के ऊपर गुलाब और मोगरे की पत्तियाँ बिछी थी और चार मोटे मोटे तकिये रखे थे। पलंग के बगल में छोटी मेज पर चांदी की एक तश्तरी में पान, दूसरी में कुछ मिठाइयाँ, एक थर्मस में गर्म दूध और पास में दो शीशे के ग्लास रखे थे। दो धुले हुए तौलिये, क्रीम, वैसलीन, तेल की शीशियाँ और एक लिफ़ाफ़े में फूल मालाएं (गज़रे) से रखे थे। पलंग के दूसरी और एक छोटी सी मेज पर नाईट लैम्प मध्यम रोशनी बिखेर रहा था और उसके पास ही एक गुलाब के ताज़ा फूलों का गुलदान रखा था। मेरी आँखें एक नए रोमांच, कौतुक और भय से बंद होती जा रही थी। पता नहीं वो आकर मेरे साथ कैसे और क्या-क्या करेंगे।ऐसा विचार आते ही मैं और भी सिकुड़ कर बैठ गई।
बाहर कुछ हँसने की सी आवाज ने मेरा ध्यान खींचा। अचानक दरवाजा खुला और मीनल और उसकी एक सहेली के साथ प्रेम ने अन्दर प्रवेश किया। प्रेम तो खड़े रहे पर ये दोनों तो मेरे पास ही आकर बैठ गई।
फिर उन्होंने प्रेम को संबोधित करते हुए कहा,"भाभी को ज्यादा तंग ना करियो प्रेम भैया !"
और दोनों खिलखिला कर जोर जोर से हंसने लगी।
"ओह…. मीनल अब तुम दोनों जाओ यहाँ से !"
"अच्छाजी … क्यों … ? ऐसी क्या जल्दी है जी ?" वो दोनों तो ढीठ बनी हंसती रही, जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।
प्रेम क्या बोलता। उनकी हालत देख कर मीनल उठते हुए बोली,"चलो भाई, अब हमारा क्या काम है यहाँ। जब तक मंगनी और शादी नहीं हुई थी तब तक तो हमारा साथ बहुत प्यारा लगता था, अब हमें कौन पूछेगा ? चल नेहा हम कबाब में हड्डी क्यों बनें ? इन दोनों को कबाब खाने दो … मेरा मतलब …. प्रेम मिलन करने दे ! देखो बेचारे कैसे तड़फ रहे हैं !"
दोनों खिलखिला कर हंसती हुई बाहर चली गई। मीनल वैसे तो मेरी चचेरी बहन है पर रिश्ते में प्रेम की भी मौसेरी बहन लगती है। प्रेम के साथ मेरी शादी करवाने में मुख्य भूमिका इसी की रही थी। सुधा भाभी तो अपनी छोटी बहन माया (माया मेम साब) के साथ करवाना चाहती थी पर मीनल और चाची के जोर देने पर मेरा रिश्ता इन्होंने स्वीकार कर लिया था। दरअसल एक कारण और भी था।
मीनल बताती है कि प्रेम को बिल्लौरी आँखें बहुत पसंद हैं। अगर किसी लड़की की ऑंखें बिल्लोरी हों तो वो उसे बिल्लो रानी या सिमरन कह कर बुलाते हैं। आप तो जानते ही हैं काजोल और करीना कपूर की ऑंखें भी बिल्लोरी हैं और काजोल का तो एक फिल्म में नाम भी सिमरन ही था। भले ही माया के नितम्ब पूरे आइटम लगते हों पर मेरी बिल्लौरी आँखों और पतली कमर के सामने वो क्या मायने रखती थी। सच कहूं तो मेरी कजरारी (अरे नहीं बिल्लौरी) आँखों का जादू चल ही गया था। प्रेम से सगाई होने के बाद माया ने एक बार मुझे कहा था,"दगडू हलवाई की कसम, अगर यह प्रेम मुझे मिल जाता तो मैं एक ही रात मैं उसके पप्पू को पूरा का पूरा निचोड़ लेती !"
"छी … पागल है यह माया मेम साब भी !" ओह ! मैं भी क्या बातें ले बैठी मैं तो अपनी बात कर रही थी।
मधुर मिलन (सुहागरात) को लेकर मेरे मन में उत्सुकता और रोमांच के साथ साथ डर भी था मुझे ज्यादा तो पता नहीं था पर पति पत्नी के इस रिश्ते के बारे में काम चलाऊ जानकारी तो थी ही। मीनल तो मुझे छेड़ती ही रहती थी। प्रेम के बारे में बहुत सी बातें बताती रहती थी कि वो बहुत रोमांटिक है देखना तुम्हें अपने प्रेम से सराबोर कर देगा। एक बार मैंने मीनल से पूछा था कि पहली रात में क्या क्या होता है तो उसने जो बताया आप भी सुन लें :
"अरे मेरी भोली बन्नो ! अगर किसी आदमी से पूछा जाए कि तुम जंगल में अकेले हो और तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाये तो तुम क्या करोगे ? तो वो बेचारा क्या जवाब देगा ? वो तो बस यही कहेगा ना कि भाई मै क्या करूँगा, जो करेगा वोह शेर ही करेगा । सुहागरात में भी यही होता है जो भी करना होता है वो पति ही करता है तुम्हें तो बस अपनी टांगें चौड़ी करनी हैं !"
कितना गन्दा बोलती है मीनल भी। और सुधा भाभी ने भी ज्यादा नहीं समझाया था। बस इतना कहा था कि "सुहागरात जीवन में एक बार आती है, मैं ज्यादा ना-नुकर ना करूँ वो जैसा करे करने दूँ। उसका मानना है कि जो पत्नी पहली रात में ज्यादा नखरे दिखाती है या नाटक करती है उनकी जिन्दगी की गाड़ी आगे ठीक से नहीं चल पाती।"
"रति मात्र शरीर व्यापार नहीं है। स्त्री पुरुष के सच्चे यौन संबंधों का अर्थ मात्र दो शरीरों का मिलन नहीं बल्कि दो आत्माओं का भावनात्मक रूप से जुड़ना होता है। स्त्री पुरुष का परिणय सूत्र में बंधना एक पवित्र बंधन है। इस बंधन में बंधते ही दोनों एक दूसरे के सुख-दुःख, लाभ-हानि, यश-अपयश के भागीदार बन जाते हैं। विवाह की डोर कई भावनाओं, संवेदनाओं और असीम प्रेम से बंधी होती है। विवाह नए जीवन में कदम रखने जा रहे जोड़े की उम्मीदों, चाहनाओं, ख़्वाहिशों और खुशियों को मनाने का समय होता है और विवाह की प्रथम रात्रि दोनों के गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का प्रथम सोपान होती है। इसलिए इस मिलन की रात को आनंदमय, मधुर और रोमांचकारी बनाना चाहिए।
सम्भोग (सेक्स) अपनी भावनाओं को उजागर करने का बहुत अच्छा विकल्प या साधन होता है ये वो साधन है जिससे हम अपने साथी को बता सकते हैं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हु। यह तो तनाव मुक्ति और जिन्दगी को पूर्णता प्रदान करने का मनभावन साधन है। यह क्रिया दोनों में नजदीकी और गहरा प्रेम बढ़ाती है। और पत्नी के दिल में उस रिक्तता को भरता है जो माता पिता से बिछुड़ने के बाद पैदा होती हे। यही परिवार नामक संस्था जीवन में सुरक्षा और शान्ति पूर्णता लाती है।
भाभी की बातें सुनकर मैंने भी निश्चय कर लिया था कि मैं इस रात को मधुर और अविस्मरणीय बनाउंगी और उनके साथ पूरा सहयोग करुँगी। उन्हें किसी चीज के लिए मन नहीं करूंगी।
"मधुर, आप ठीक से बैठ जाएँ !"
अचानक उनकी आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई। मेरा हृदय जोर जोर से धड़कने लगा। मैं तो अपने विचारों में ही डूबी थी। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब प्रेम ने दरवाजे की सिटकनी (कुण्डी) लगा ली थी और मेरे पास आकर पलंग पर बैठे मुझे अपलक निहार रहे थे।
मैं लाज के मारे कुछ बोलने की स्थिति में ही नहीं थी बस थोड़ा सा और पीछे सरक गई। कई बार जब लाज से लरजते होंठ नहीं बोल पाते तो आँखें, अधर, पलकें, उंगलियाँ और देह के हर अंग बोलने लगते हैं। मेरे अंग अंग में अनोखी सिहरन सी दौड़ रही थी और हृदय की धड़कने तो जैसे बिना लगाम के घोड़े की तरह भागी ही जा रही थी।
"ओह … मधुर, आप घबराएँ नहीं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जो आपको अच्छा ना लगे !"
"म … मैं ठीक हूँ !" मेरे थरथराते होंटों से बस इतना ही निकला।
"ओह…. बहुत बहुत धन्यवाद।"
" ?...? " मैंने अब चौंकते हुए उनकी ओर देखा।
उन्होंने सुनहरे रंग का कामदार कुरता और चूड़ीदार पायजामा पहना था। गले में छोटे छोटे मोतियों की माला पहनी थी। उन्होंने बहुत ही सुगन्धित सा इत्र लगा रखा था। वो तो जैसे पूरे कामदेव बने मेरी ओर देखे ही जा रहे थे। मैं तो बस एक नज़र भर ही उनको देख पाई और फिर लाज के मारे अपनी मुंडी नीचे कर ली। मैं तो चाह रही थी कि प्रेम अपनी आँखें बंद कर लें और फिर मैं उन्हें आराम से निहारूं।
"शुक्र है आप कुछ बोली तो सही। वो मीनल तो बता रही थी कि आप रात में गूंगी हो जाती हैं ?"
मैंने चौंक कर फिर उनकी और देखा तो उनके होंठों पर शरारती मुस्कान देख कर मैं एक बार फिर से लजा गई। मैं जानती थी मीनल ने ऐसा कुछ नहीं बोला होगा, यह सब उनकी मनघड़ंत बातें हैं।
फिर उन्होंने अपनी जेब से एक ताज़ा गुलाब का फूल निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा,"हमारा दाम्पत्य जीवन इस गुलाब की तरह खुशबू बिखेरता रहे !"
मैंने कहीं पढ़ा था गुलाब प्रेम का प्रतीक होता है। यह प्रेमी और प्रेमिकाओं के आकर्षण का केंद्र होता है। लाल गुलाब की कलि मासूमियत का प्रतीक होती हैं और यह सन्देश देती हैं कि तुम बहुत सुन्दर और प्यारी हो, मैं तुम्हें अथाह प्रेम करता हूँ।
मैंने उस गुलाब के फूल को उनके हाथों से ले लिया। मैं तो इसे किसी अनमोल खजाने की तरह जीवन भर सहेज कर अपने पास रखूंगी।
"मधुर आपके लिए एक छोटी सी भेंट है !"
मैंने धीरे से अपनी मुंडी फिर उठाई। उनके हाथों में डेढ़ दो तोले सोने का नेकलेस झूल रहा था। गहनों के प्रति किसी भी स्त्री की यह तो स्त्री सुलभ कमजोरी होती है, मैंने अपना हाथ उनकी ओर बढ़ा दिया। पर उन्होंने अपना हाथ वापस खींच लिया।
"नहीं ऐसे हाथ में नहीं ….!"
मैंने आश्चर्य से उनकी और देखा।
"ओह … क्षमा करना … आप कहें तो मैं इसे आपके गले में पहना दूं …." वो मेरी हालत पर मुस्कुराये जा रहे थे। अब मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ।
फिर वो उस नेकलेस को मेरे गले में पहनने लगे। मेरी गर्दन पर उनकी अँगुलियों के रेंगने का अहसास मुझे रोमांचित करने लगा। उनकी आँखें तो बस मेरी कुर्ती के अन्दर झांकते अमृत कलशों की गहरी घाटी में ही अटकी रह गई थी। मुझे उनके कोमल हाथों का स्पर्श अपने गले और फिर गर्दन पर अनुभव हुआ तो मेरी सारी देह रोमांच के मारे जैसे झनझना ही उठी। मेरे ह्रदय की धड़कने तो जैसे आज सारे बंधन ही तोड़ देने पर उतारू थी। उनकी यह दोनों भेंट पाकर मैं तो मंत्र मुग्ध ही हो गई थी।
मैंने भी अपना जेब-खर्च बचा कर उनके लिए एक ब्रासलेट (पुरुषों द्वारा हाथ में पहनी जाने वाली चैन) बनवाई थी। मैंने अपना वैनिटी बैग खोल कर ब्रासलेट निकला और उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा "यह मेरी ओर से आपके लिए है !"
"ओह … बहुत खूबसूरत है …" वो हंसते हुए बोले "पर इसे आपको ही पहनाना होगा !"
मैं तो लाज के मारे छुईमुई ही हो गई। मेरे हाथ कांपने लगे थे। पर अपने आप पर नियंत्रण रख कर मैंने उस ब्रासलेट को उनकी कलाई में पहना दिया। मैंने देखा मेरी तरह उन्होंने भी अपने हाथों में बहुत खूबसूरत मेहंदी लगा रखी थी।
"मधुर ! इस अनुपम भेंट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !" कहते हुए उन्होंने उस ब्रासलेट को चूम लिया। मैं एक बार फिर लजा गई।
"मधुर आप को नींद तो नहीं आ रही ?"
अजीब प्रश्न था। मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा।
"ओह … अगर आप कहें तो मैं आपके बालों में एक गज़रा लगा दूँ ? सच कहता हूँ आपके खूबसूरत जूड़े पर बहुत सुन्दर लगेगा !"
हे भगवान् ! ये प्रेम भी पता नहीं मेरी कितनी परीक्षा लेंगे। इनका नाम तो प्रेम माथुर नहीं प्रेमगुरु या कामदेव होना चाहिए। मैं सर नीचे किये बैठी रही। मेरा मन तो चाह रहा था कि वो कुछ प्रेम भरी बातें बोले पर मैं भला क्या कर सकती थी।
उन्होंने अपना हाथ बढ़ा कर मेज पर रखा पैकेट उठाया और उसमें से मोगरे के फूलों का एक गज़रा निकाला और मेरे पीछे आकर मेरी चुनरी थोड़ी सी हटा कर वेणी (जूड़े) में गज़रे लगाने लगे। अपनी गर्दन और पीठ पर दुबारा उनकी रेंगती अँगुलियों का स्पर्श पाकर मैं एक बार फिर से रोमांच में डूब गई। उन्होंने एक कविता भी सुनाई थी। मुझे पूरी तो याद नहीं पर थोड़ी तो याद है :
एक हुश्न बेपर्दा हुआ और ये वादियाँ महक गई
चाँद शर्मा गया और कायनात खिल गई
तुम्हारे रूप की कशिश ही कुछ ऐसी है
जिसने भी देखा बस यही कहा :
ख़्वाबों में ही देखा था किसी हुस्न परी को,
किसे खबर थी कि वो जमीन पर भी उतर आएगी
किसी को मिलेगा उम्र भर का साथ उसका
और उसकी तकदीर बदल जायेगी….
पता नहीं ये प्रेम के कौन कौन से रंग मुझे दिखाएँगे। मेरा मन भी कुछ गुनगुनाने को करने लगा था :
वो मिल गया जिसकी हमने तलाश थी
बेचैन सी साँसों में जन्मों की प्यास थी
जिस्म से रूह में हम उतरने लगे ….
इस कदर आपसे हमको मोहब्बत हुई
टूट कर बाजुओं में बिखरने लगे
आप के प्यार में हम सँवरने लगे …..
पर इस से पहले कि मैं कुछ कहूं वो बोले,"मधुर मैं एक बात सोच रहा था !"
"क … क्या ?" अनायाश मेरे मुंह से निकल गया।
"वो दर असल मीनल बहुत से गज़रे ले आई थी अगर आप कहें तो इनका सदुपयोग कर लिया जाए ?"
सच कहूं तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैंने उत्सुकतावश उनकी ओर देखा। मुझे तो बाद में समझ आया कि वो मुझे सहज करने का प्रयास कर रहे थे।
"वो.... वो अगर आप कहें तो मैं आपकी कलाइयों पर भी एक एक गज़रा बांध दूं ?"
ओह.... उनकी बच्चों जैसे मासूमियत भरे अंदाज़ पर तो मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। मुझे मुस्कुराते हुए देख और मेरी मौन स्वीकृति पाकर उनका हौसला बढ़ गया और इससे पहले कि मैं कुछ बोलती उन्होंने तो मेरा एक हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे धीरे उस पर गज़रा बांधने लगे। मैंने अपनी कलाइयों में कोहनी से थोड़ी नीचे तक तो लाल चूड़ियाँ पहन रखी थी सो उन्होंने मेरी दोनों बाजुओं पर गज़रे बाँध दिए तो अनायास मुझे दुष्यंत की शकुंतला याद हो आई। उनके हाथों की छुवन से तो जैसे मेरा रोम रोम ही पुलकित होने लगा।
मैं तो सोच रही थी कि गज़रे बाँध कर वो मेरा हाथ छोड़ देंगे पर उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिए ही रखा। फिर मेरी बंद सी मुट्ठी को खोलते हुए मेरे हाथों में लगी मेहंदी देखने लगे। मीनल और भाभी ने विशेष रूप से मेरे दोनों हाथों में बहुत खूबसूरत मेहंदी लगवाई थी। आप तो जानते ही होंगे कि जयपुर में बहुत अच्छी मेहंदी लगाने का रिवाज़ है। मैंने कहीं सुना था कि नववधु के हाथों में जितनी गहरी मेहंदी रचती है उसका पति उस से उतना ही अधिक प्रेम करता है।
वो पहले तो मेरी हथेली सहलाते रहे फिर होले से कुछ देखते हुए बोले,"मधुर एक काम आपने सरासर गलत किया है !"
"क … क्या ?" मैंने चौंकते हुए उनकी ओर देखा।
"देखो आपने एक हथेली में मधुर लिखा है और दूसरी हथेली में इतनी दूर प्रेम लिखा है !" कह कर वो हंसने लगे।
मैं पहले तो कुछ समझी नहीं बाद में मेरी भी हंसी निकल गई,"वो मीनल ने लिख दिया था !"
"यह मीनल भी एक नंबर की शैतान है अगर दोनों नाम एक साथ लिखती तो कितना अच्छा लगता। चलो कोई बात नहीं मैं इन दोनों को मिला देता हूँ !" कह कर उन्होंने मेरे दोनों ही हाथों को अपने हाथों में भींच लिया।
"मधुर मैंने तो अपने दोनों हाथों में आपका ही नाम लिखा है !"
कहते हुए उन्होंने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी और फैला दी। उनके हाथों में भी बहुत खूबसूरत मेंहंदी रची थी। बाईं हथेली में अंग्रेजी में "एम" लिखा था और दाईं पर "एस" लिखा था। "एम" तो मधुर (मेरे) के लिए होगा पर दूसरी हथेली पर यह "एस" क्यों लिखा है मेरी समझ में नहीं आया।
"यह "एस" किसके लिए है ?"
"वो.... वो.... ओह … दरअसल यह "एस" मतलब सिमरन … मतलब स्वर्ण नैना !" वो कुछ सकपका से गए जैसे उनका कोई झूठ पकड़ा गया हो।
"कौन स्वर्ण नैना ?"
"ओह … मधुर जी आप की आँखें बिल्लोरी हैं ना तो मैं आपको स्वर्ण नैना नहीं कह सकता क्या ?" वो हंसने लगे।
पता नहीं कोई दूसरी प्रेमिका का नाम तो नहीं लिख लिया। मैं तो अपने प्रेम को किसी के साथ नहीं बाँट पाउंगी। मुझे अपना प्रेम पूर्ण रूप से चाहिए। सुधा भाभी तो कहती है कि ये सभी पुरुष एक जैसे होते हैं। किसी एक के होकर नहीं रह सकते। स्त्री अपने प्रेम के प्रति बहुत गंभीर होती है। वो अपने प्रेम को दीर्घकालीन बनाना चाहती है। पुरुष केवल स्त्री को पाने के लिए प्रेम प्रदर्शित करता है पर स्त्री अपने प्रेम को पाने के लिए प्रेम करती है। पुरुष सोचता है कि वो एक साथ कई स्त्रियों से प्रेम कर सकता है पर स्त्री केवल एक ही साथी की समर्पिता बनना पसंद करती है।
खैर कोई बात नहीं मैं बाद में पूछूंगी। एक बात तो है जहाज का पक्षी चाहे जितनी दूर उड़ारी मारे सांझ को लौट कर उसे जहाज़ पर आना ही होगा। ओह.... मैं भी क्या व्यर्थ बातें ले बैठी।
"मधुर …?"
"जी ?"
मैं जानती थी वो कुछ कहना चाह रहे थे पर बोल नहीं पा रहे थे। आज की रात तो मिलन की रात है जिसके लिए हम दोनों ने ही पता नहीं कितनी कल्पनाएँ और प्रतीक्षा की थी।
"मधुर, क्या मैं एक बार आपके हाथों को चूम सकता हूँ ?"
मेरे अधरों पर गर्वीली मुस्कान थिरक उठी। अपने प्रियतम को प्रणय-निवेदन करते देख कर रूप-गर्विता होने का अहसास कितना मादक और रोमांचकारी होता है, मैंने आज जाना था। मैंने मन में सोचा 'पूरी फूलों की डाली अपनी खुशबू बिखरने के लिए सामने बिछी पड़ी है और वो केवल एक पत्ती गुलाब की मांग रहे हैं !'
मैंने अपने हाथ उनकी ओर बढ़ा दिए।
कई भागों में समाप्य !
आपका प्रेम गुरु premguru2u@gmail.com ; premguru2u@yahoo.com
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