हिंदी सेक्सी कहानियाँ
कैसे हो दोस्तो !
मैं राज एक बार फिर से आप सबके लिए एक मज़ेदार कहानी लेकर आया हूँ। यह कहानी तब की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था और नया नया जवान हुआ था। शरारती तो मैं बचपन से ही हूँ। वैसे बच्चे होते ही शरारती हैं क्यूंकि वो रात को उनके माँ बाप की शरारत का ही तो नतीजा होते हैं। बस मैं भी खूब बालसुलभ मस्ती करता था। जवानी की दहलीज पर पहुँच कर भी मेरी शरारतें कम नहीं हुई थी।
और फिर एक दिन...
उस दिन मैं घर से तैयार होकर स्कूल के लिए निकला तो दिन ही खराब था। घर से निकलते ही मेरी साइकिल की टक्कर पड़ोस की एक सबसे ज्यादा लड़ाकू औरत से हो गई। चंपा नाम था उसका। उम्र यही को चालीस के आस पास होगी। उसकी कोई औलाद नहीं थी। बस शायद इसी लिए वो पूरे मोहल्ले में सब से लड़ती रहती थी। छोटी छोटी बात पर वो झगड़ पड़ती थी।
और फिर मैंने तो उसको अपनी साइकिल से टक्कर मार दी थी तो आप समझ सकते है की मेरी क्या हालत हुई होगी इसके बाद। उसने गुस्से में मुझे दो तीन थप्पड़ जड़ दिए। गलती मेरी थी सो मैं कुछ नहीं बोला और चुपचाप स्कूल के लिए निकल गया।
उस टक्कर के चक्कर में मैं स्कूल में लेट हो गया। जाते ही स्कूल की मैडम ने क्लासरूम के बाहर खड़ा कर दिया। मुझे उस चंपा पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
कहते हैं ना गुस्सा इंसान के दिमाग को कुछ सोचने लायक नहीं छोड़ता। वही कुछ मेरे साथ हुआ। क्लास रूम से बाहर खड़े खड़े जब बहुत वक्त बीत गया तो मैंने मैडम से क्लास में आने के लिए पूछा तो उसने मुझे डाँट दिया। मैंने भी गुस्से में मैडम को कुछ ऐसा बोल दिया जो मुझे नहीं बोलना चाहिए था। बस फिर क्या था मेरी तो जैसे शामत आ गई। पहले तो मैडम ने खुद पीटा और फिर मुझे प्रिंसीपल के कमरे में ले गई और फिर प्रिंसीपल ने भी तसल्ली से मेरी मरम्मत की। इतनी मार मुझे कभी भी नहीं पड़ी थी।
उसके बाद मुझे यह कह कर स्कूल से निकल दिया कि कल अपने घर से किसी को साथ लाना तभी कक्षा में बैठ सकते हो नहीं तो नाम काट देंगे।
मेरी तो हवा सरक गई। क्यूंकि घर क्या बताता कि मैंने मैडम को क्या कहा। फिर घर से भी पिटाई पक्की थी। एक बार तो मन में आया कि उस चंपा का सर फोड़ दूँ जिसने मेरा सारा दिन खराब कर दिया।
बस यही सब सोचते सोचते मैं घर की तरफ चल दिया। सारा बदन और गाल दर्द कर रहे थे। मैं सीधा घर ना जाकर अपने पड़ोस की एक आंटी जिसे मैं चाची कहता था के पास चला गया। वो बहुत ही अच्छी थी और मुझे बहुत प्यार भी करती थी।
"आज स्कूल से इतनी जल्दी कैसे आ गया राज?" चाची ने घर में घुसते ही सवाल दाग दिया।
मैं सकपका गया और सोचने लगा कि क्या जवाब दूँ। पर जब चाची ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए पूछा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और सारी बात चाची को बता दी। चाची ने भी चंपा को दो तीन गालियाँ दी और फिर मेरे बदन को देखने लगी जहाँ जहाँ मार पड़ी थी।
चाची ने जब मेरी कमीज ऊपर कर के मेरी कमर को देखा तो कमर पर पड़े नील देख कर वो सहम सी गई और प्यार से मेरी कमर पर हाथ फेरने लगी। उस समय वो और मैं बेड पर बैठे थे। वो बिल्कुल मेरे पास बैठी थी। जब वो मेरी कमर पर हाथ फेर रही थी तो ना जाने कब और कैसे मेरा हाथ उसकी रानों पर चला गया।
अचानक से मुझे थोड़ा ज्यादा दर्द हुआ तो मैंने चाची की जांघों को कस कर पकड़ लिया। चाची को भी एकदम से दर्द हुआ तो मुझे भी एहसास हुआ कि मेरा हाथ कहाँ है। मैंने जल्दी से अपना हाथ वहाँ से हटाया पर तब तक चाची की कोमल जांघों का एहसास दिल में बस चुका था। अचानक बिना किसी इरादे के हुए इस हादसे ने चाची के लिए मेरी नजर ही बदल कर रख दी।
चाची उठ कर अंदर से आयोडेक्स लेकर आई और मेरी कमर पर लगाने लगी। पर अब मेरी नजर चाची की जांघों और फिर धीरे धीरे उठते हुए चाची की चूचियों पर ठहर गई।
सच में क्या बड़ी बड़ी चूचियाँ थी चाची की। दवाई लगाते हुए चाची की साड़ी का पल्लू थोड़ा नीचे ढलक गया था तो ब्लाउज में कसी चूचियाँ देख कर मेरे तन बदन में ज्वालामुखी से फटने लगे थे। लण्ड था कि अकड़ कर दुखने लगा था अब।
चाची का प्यार देख कर मेरे दिल में अलग सा सितार बजने लगा था। अब तो मुझे भी चाची पर बहुत प्यार आ रहा था। पर पहली बार था तो डर रहा था। और वैसे भी आज का मेरा दिन ही खराब था सोचा कि कहीं प्यार के चक्कर में चाची से भी मार ना पड़ जाए।
दवाई लगा कर चाची ने मुझे दूध गर्म करके पीने को दिया। चाची और मैं फिर से बातें करने लगे। चंपा की बात आई तो मेरे मुँह से निकल गया कि दिल करता है साली को पकड़ कर चोद दूँ।
कहने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आखिर मैंने क्या कह दिया है। चाची अवाक् सी मेरे मुँह की तरफ देख रही थी। चाची की ऐसे देखते देख मैं सकपका गया।
तभी चाची बोली- वाह राज बेटा... लगता है तू जवान हो गया है तभी तो पहले स्कूल की मास्टरनी को और अब चंपा को... बहुत गर्मी चढ़ गई है क्या?
"वो...." मैं कुछ भी कहने की हालत में नहीं था।
"होता है राज... तुम्हारी उम्र में ऐसा ही होता है... जवानी नई नई जो आई होती है तो तंग करने लगती है...तुम्हारा कोई कसूर नहीं है... पर थोड़ा अपने उपर कण्ट्रोल रखो" चाची ने मुझे समझते हुए कहा।
मैं चुपचाप बैठा चाची की बात सुनता रहा। तभी चाची ने जो पूछा तो मेरे अंडरवियर में फिर से हलचल होने लगी।
चाची बोली- राज... सच में चंपा को चोदने का दिल कर रहा है तुम्हारा?
मैं क्या जवाब दूँ, समझ में नहीं आ रहा था। पर ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया कि आज साली ने सारा दिन खराब करवा दिया, आज तो सच में कुछ कर दूँगा अगर सामने आ गई तो।
"तेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?"
"नहीं चाची.. अभी तो नहीं है।"
"क्या बात? कोई मिली नहीं क्या अभी तक?"
"क्या चाची तुम भी ना..." मैंने शरमाते हुए कहा।
"अरे बता ना... मुझ से क्या शरमा रहा है।"
"तुम हो ना मेरी गर्लफ्रेंड..." मैंने हँसते हुए चाची को मजाक में कहा।
"रहने दे झूठ मत बोल..."
"सच में चाची...तू ही तो है मेरी गर्लफ्रेंड... नहीं तो आज तेरे पास आने के बजाय किसी और के पास बैठ कर अपना दर्द नहीं बाँट रहा होता क्या?"
"धत्त...पागल... मैं तो तेरी आंटी हूँ... मैं तेरी गर्लफ्रेंड कैसे बन सकती हूँ?" यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
"सच चाची तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो... यहाँ तक कि रात को सपने भी तुम्हारे ही देखता हूँ मैं !" मैंने प्यार की चासनी में थोड़ा सा झूठ का तड़का लगा दिया।
चाची की आँखों में लाली दिखने लगी थी। शायद वो गर्म हो रही थी या यह भी हो सकता है कि वो शर्म की लाली हो।
मैं चाची के थोड़ा नजदीक जाकर बैठ गया और चाची की साँसों के साथ ऊपर नीचे होती चूचियों को देखने लगा। दिल किया कि पकड़ लूँ, पर डर था दिल के किसी कोने में अभी भी।
पहल करने लायक हिम्मत नहीं आई थी अभी तक।
तभी चाची ने मेरी चोरी पकड़ ली और बोली- ये ऐसे क्या देख रहा है?
मैं फिर से सकपका गया, मैंने कहा- कुछ नहीं चाची... बस ऐसे ही...।
"मेरी चूचियाँ देख रहा है?" चाची ने बम फोड़ दिया। चाची के मुँह से यह सुनते ही मेरे दिल की धड़कन दुगनी हो गई।
"सच चाची तुम बहुत खूबसूरत हो और तुम्हारी चूचियाँ भी बहुत बड़ी बड़ी हैं।"
"ह्म्म्म... बेटा चाची पर ही लाइन मरने लगे... बहुत जवानी चढ़ रही है तुझ पर... ठहर मैं बताती हूँ तुझे.." कह कर चाची ने मेरा कान पकड़ कर मरोड़ दिया।
मुझे दर्द हुआ तो मैंने भी जानबूझ कर चाची की चूची पकड़ कर दबा दी। क्या मस्त मुलायम चूची थी चाची की। पर चाची इस तरह चूची दबाने से नाराज हो गई और दो थप्पड़ भी लगा दिए मुझे।
मैं तो आज सुबह से ही पिट रहा था। चाची के गुस्सा होने से अब घर पर पिटाई का डर भी सताने लगा। मुझे डर था कि कहीं चाची मेरे घर पर यह बात ना बता दे। डर के मारे मैंने चाची के पाँव पकड़ लिए और माफ़ी मांगने लगा पर चाची बिना कुछ कहे रसोई में चली गई।
मैं भी पीछे पीछे रसोई में पहुँच गया और कान पकड़ कर सॉरी बोलने लगा।
तभी मैंने रसोई में सामने लगे छोटे से शीशे में देखा तो लगा कि चाची मुस्कुरा रही हैं। मुझे समझते देर ना लगी कि चाची मेरे मज़े ले रही हैं। मैं चाची के बिल्कुल पीछे खड़ा था, शीशे में चाची को मुस्कुराते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने चाची को पीछे से पकड़ लिया और चाची की गर्दन पर चूमने लगा।
चाची ने मुझ से छुटने की कोशिश की पर मैंने चाची को अपनी तरफ घुमा कर चाची की होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
कुछ देर की कोशिश के बाद चाची ने भी हथियार डाल दिए और चुम्बन करने में मेरा साथ देने लगी।
अब चाची की जीभ मेरे मुँह में मेरी जीभ से प्यार लड़ा रही थी और मेरे हाथ चाची के माखन के गोले जैसी चूचियों को मसल रहे थे।
करीब पाँच मिनट की चुम्माचाटी के बाद हम अलग हुए तो चाची बोली- हट... तू तो बहुत गन्दा है..
मैं कुछ नहीं बोला बस चाची को बाहों में भर कर बाहर ले आया और सोफे पर लेटा दिया। मेरे हाथ अब चाची की केले के तने जैसी चिकनी जांघों पर थे। एक हाथ से जांघों को सहलाते सहलाते मैं दूसरे हाथ से चाची के ब्लाउज के हुक खोलने लगा।
चाची आँखें बंद किये मज़ा ले रही थी। कुछ ही पल में चाची की सफ़ेद ब्रा में कसी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी। मैं ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को चूमने लगा। मेरा दूसरा हाथ भी अब चाची की पैंटी तक पहुँच चुका था, कुछ कुछ गीलापन महसूस हो रहा था।
मैंने चाची की ब्रा उतार कर एक तरफ़ रख दी और चाची की मस्त चूची को मुँह में लेकर चूसने और काटने लगा। मैंने चाची की साड़ी को ऊपर उठा कर पेट पर कर दिया। चाची की जांघें अब बिल्कुल नंगी मेरी आँखों के सामने थी और सफ़ेद रंग की पैंटी में कसी चूत नजर आने लगी थी।
मैंने चाची की पैंटी को पकड़ कर नीचे खींचा तो चाची ने शरमा कर दोनों हाथ अपनी चूत पर रख लिए। पर मैंने पैंटी को नीचे खींच दिया। चाची ने अपनी चूत दोनों हाथों से ऐसे छुपा ली थी जैसे बिना मुँह दिखाई के दर्शन ही नहीं करने देगी। पर मुँह दिखाई के लिए तो मैं भी तैयार था। मैं चाची की जांघों को अपने होंठों से चूमने लगा और फिर धीरे से चाची के हाथ पर चूम लिया तो चाची ने एक हाथ हटा दिया। हाथ हटते ही चाची की चूत के दर्शन हुए।
मैंने मौका जाने नहीं दिया और चूत पर अपने होंठ रख दिए। एक अजीब सी खुशबू मेरे नाक में आई और गीली चूत का नमकीन सा स्वाद मेरी जीभ पर आ गया जिसको चखते ही मैं तो जैसे मदहोश सा होने लगा।
मैंने चाची का हाथ एक तरफ किया और जीभ से चूत को कुरेदने लगा और चाटने लगा। अब चाची की सिसकारियाँ गूंजने लगी थी। चाची की आँहे कमरे के वातावरण को मादक बना रही थी।
तभी चाची का हाथ मैंने अपने लण्ड पर महसूस किया। मेरा लण्ड तो पहले से ही पूरा तैयार हो चुका था। चाची ने मेरे लण्ड को पैंट से बाहर निकाला और अपने मुँह में ले लिया। अब हम दोनों 69 की अवस्था में थे। मतलब मेरा लण्ड चाची के मुँह में और उसकी चूत मेरे मुँह पर थी।
कुछ देर की चुसाई के बाद जब लण्ड अकड़ने लगा तो मैंने चाची के मुँह से लण्ड निकाल लिया और चाची की चूत पर रख दिया। चूत पर लण्ड का एहसास मिलते ही चाची ने अपनी गाण्ड ऊपर को उठाई तो लण्ड का सुपारा चाची की चिकनी और पानी पानी होती चूत में घुस गया।
चाची सीत्कार उठी। चाची ने जैसे ही गाण्ड नीचे करके दुबारा ऊपर को उचकाई तो मैंने भी देर नहीं की और एक जोरदार धक्का लगा कर आधे से ज्यादा लण्ड चाची की चूत में डाल दिया।
"उईईइ माँ......आराम से हरामी... फाड़ डालेगा क्या..."
पर मैंने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं और मैंने एक और जोरदार धक्का लगा कर पूरा लण्ड चाची की चूत में सरका दिया। चाची की चूत और मेरे अंडकोष अब आपस में चिपके हुए थे। मेरा पूरा लण्ड जड़ तक चाची की चूत में था।
मैं इसी अवस्था में लेटा रहा और चाची के होंठ और चूचियों को चूसता रहा। तभी चाची ने अपनी गाण्ड ऊपर को उछाली तो मैंने भी उसका जवाब एक जोरदार धक्के के साथ दिया। फिर तो पहले धीरे धीरे और फिर पूरी रफ़्तार से चाची की चूत की चुदाई शुरू हो गई।
कमरे में चाची की ऊउह्ह्ह्ह्ह आह्हह्ह उईईइ हाआआईई ओह्ह्ह ही सुनाई दे रही थी या फिर सुनाई दे रहा था चुदाई का मधुर संगीत जो फच्च फच्च फट फट करके कमरे में गूंज रहा था।
पूरे पन्द्रह मिनट की जोरदार चुदाई के बाद मेरा लण्ड अब अन्तिम चरण पर था। लण्ड चूत के अंदर ही फ़ूल कर मोटा हो गया था जिसका भरपूर मज़ा चाची भी ले रही थी। चाची मेरे लण्ड की गर्मी से दो बार पिंघल चुकी थी। चूत पानी पानी हो रही थी कि तभी मैंने भी अपने लण्ड का लावा चाची की चूत में भर दिया। लावे की गर्मी महसूस होते ही चाची ने मुझे अपने से चिपका लिया और अपनी टांगो में भींच लिया।
मेरा लण्ड चाची की चूत में पिचकारियाँ छोड़ रहा था। मेरे वीर्य ने चाची की चूत को पूरा भर दिया था जो अब चाची की चूत से बाहर आने लगा था।
हम दोनों कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे और फिर अलग होकर चाची ने मेरे लण्ड और अपनी चूत को अच्छे से साफ़ किया। चाची चुदाई के बाद बहुत खुश थी।
मैं एक बार और चाची की चूत में हलचल करना चाहता था पर तभी घड़ी पर नजर गई तो मेरे स्कूल की छुट्टी का समय हो गया था। चाची ने भी मुझे घर जाने को कहा क्यूंकि चाचा भी लगभग इसी समय दोपहर का खाना खाने आते थे।
मैं स्कूल की सजा को भूल कर चाची के साथ के मज़े में खो सा गया और फिर बुझे मन से अपने घर चला गया।
मेरी नजर चाची के दरवाजे पर ही टिकी थी। जैसे ही चाचा खाना खाकर वापिस गए तो मैं तुरन्त चाची के घर पहुँच गया और चाची को बाहों में भर लिया। चाची ने मुझे कमरे में बैठने को कहा और बोली- मैं अभी आती हूँ।
कुछ देर रसोई के काम निपटा कर चाची मेरे पास आ कर बैठ गई। पर मैं बैठने थोड़े ही आया था तो बस चाची के आते ही टूट पड़ा और चाची की चूचियाँ मसलने लगा।
चाची ने मुझे थोड़ा रोकने की कोशिश की पर जल्दी ही हथियार डाल दिए और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
चुम्मा-चाटी का दौर करीब दस पन्द्रह मिनट के लिए चला। चाची मस्ती के मारे बदहवास सी हो गई थी और मुझे अपने से पकड़ पकड़ कर लिपटा रही थी। चाची की बेचैनी को समझते हुए मैंने चाची के बदन से कपड़े कम करने शुरू किये और कुछ ही देर बाद चाची मेरे सामने बिल्कुल नंगी बैठी थी।
मेरा लण्ड भी अकड़ कर दुखने लगा था तो मैंने भी देर नहीं की और अपने कपड़े उतार कर लण्ड टिका दिया चाची की चूत पर।
एक ही धक्के में पूरा लण्ड चाची की चूत में था। चाची पूरी गर्म थी। लण्ड अंदर जाते ही चाची ने मुझे अपने नीचे कर लिया और मेरे लण्ड पर बैठ कर अपनी मस्त गाण्ड को ऊपर नीचे करने लगी। चाची पूरी मस्ती में और पूरे जोश के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। मेरा तो लण्ड धन्य हो गया था चाची की चूत पा कर।
करीब दस मिनट तक चाची मेरे ऊपर बैठ कर चुदती रही और फिर एक जोरदार ढंग से झड़ गई।
झड़ने के बाद चाची थोड़ी सुस्त हो गई तो मैंने चाची को अपने नीचे लिया और फिर से जोरदार चुदाई शुरू कर दी। कमरे में फच्च फच्च की मादक आवाज़ गूंज रही थी। चाची की सिसकारियाँ और सीत्कारें मुझे बहुत अच्छी लग रही थी। मैं चोदता रहा और चाची चुदती रही। ऐसे ही करीब आधा घंटा बीत गया। चाची कम से कम तीन बार झड़ चुकी थी और अब वो बिल्कुल पस्त नजर आ रही थी। मेरा लण्ड अभी भी पूरे जोश में था।
"राजा...अब तो चूत दुखने लगी है.. उईईई... अब और नहीं चुदवा सकती... तूने तो चूत का भुरता ही बना दिया...आह्ह्ह... तेरा चाचा तो दो मिनट भी नहीं चोद पाता है।"
मैं तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा था। और पूरे जोश के साथ चाची की चूत में धक्के लगा रहा था।
तभी चाची ने हाथ नीचे ले जा कर मेरे अंडकोष को दबाया और मसला तो मेरा लण्ड भी चाची की चूत को भरने के लिए तड़प उठा। फिर भी करीब पाँच मिनट और चाची की चूत को चोदा और फिर ढेर सारा माल चाची की चूत में भर दिया।
चाची मुझसे चुदवा कर बहुत खुश थी।
उस दिन के बाद से हम दोनों हर रोज चुदाई करने लगे। स्कूल से आने के बाद मेरी नजर चाची के दरवाजे पर लगी रहती। जैसे ही चाचा खाना खा कर अपने काम पर जाता, मैं पहुँच जाता अपनी चाची जान की चूत का मज़ा लेने।
कहानी का एक भाग अभी और है।
आपका अपना राज
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स्कूल की सजा का मज़ा-1
प्रेषक : राज कार्तिककैसे हो दोस्तो !
मैं राज एक बार फिर से आप सबके लिए एक मज़ेदार कहानी लेकर आया हूँ। यह कहानी तब की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था और नया नया जवान हुआ था। शरारती तो मैं बचपन से ही हूँ। वैसे बच्चे होते ही शरारती हैं क्यूंकि वो रात को उनके माँ बाप की शरारत का ही तो नतीजा होते हैं। बस मैं भी खूब बालसुलभ मस्ती करता था। जवानी की दहलीज पर पहुँच कर भी मेरी शरारतें कम नहीं हुई थी।
और फिर एक दिन...
उस दिन मैं घर से तैयार होकर स्कूल के लिए निकला तो दिन ही खराब था। घर से निकलते ही मेरी साइकिल की टक्कर पड़ोस की एक सबसे ज्यादा लड़ाकू औरत से हो गई। चंपा नाम था उसका। उम्र यही को चालीस के आस पास होगी। उसकी कोई औलाद नहीं थी। बस शायद इसी लिए वो पूरे मोहल्ले में सब से लड़ती रहती थी। छोटी छोटी बात पर वो झगड़ पड़ती थी।
और फिर मैंने तो उसको अपनी साइकिल से टक्कर मार दी थी तो आप समझ सकते है की मेरी क्या हालत हुई होगी इसके बाद। उसने गुस्से में मुझे दो तीन थप्पड़ जड़ दिए। गलती मेरी थी सो मैं कुछ नहीं बोला और चुपचाप स्कूल के लिए निकल गया।
उस टक्कर के चक्कर में मैं स्कूल में लेट हो गया। जाते ही स्कूल की मैडम ने क्लासरूम के बाहर खड़ा कर दिया। मुझे उस चंपा पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
कहते हैं ना गुस्सा इंसान के दिमाग को कुछ सोचने लायक नहीं छोड़ता। वही कुछ मेरे साथ हुआ। क्लास रूम से बाहर खड़े खड़े जब बहुत वक्त बीत गया तो मैंने मैडम से क्लास में आने के लिए पूछा तो उसने मुझे डाँट दिया। मैंने भी गुस्से में मैडम को कुछ ऐसा बोल दिया जो मुझे नहीं बोलना चाहिए था। बस फिर क्या था मेरी तो जैसे शामत आ गई। पहले तो मैडम ने खुद पीटा और फिर मुझे प्रिंसीपल के कमरे में ले गई और फिर प्रिंसीपल ने भी तसल्ली से मेरी मरम्मत की। इतनी मार मुझे कभी भी नहीं पड़ी थी।
उसके बाद मुझे यह कह कर स्कूल से निकल दिया कि कल अपने घर से किसी को साथ लाना तभी कक्षा में बैठ सकते हो नहीं तो नाम काट देंगे।
मेरी तो हवा सरक गई। क्यूंकि घर क्या बताता कि मैंने मैडम को क्या कहा। फिर घर से भी पिटाई पक्की थी। एक बार तो मन में आया कि उस चंपा का सर फोड़ दूँ जिसने मेरा सारा दिन खराब कर दिया।
बस यही सब सोचते सोचते मैं घर की तरफ चल दिया। सारा बदन और गाल दर्द कर रहे थे। मैं सीधा घर ना जाकर अपने पड़ोस की एक आंटी जिसे मैं चाची कहता था के पास चला गया। वो बहुत ही अच्छी थी और मुझे बहुत प्यार भी करती थी।
"आज स्कूल से इतनी जल्दी कैसे आ गया राज?" चाची ने घर में घुसते ही सवाल दाग दिया।
मैं सकपका गया और सोचने लगा कि क्या जवाब दूँ। पर जब चाची ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए पूछा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और सारी बात चाची को बता दी। चाची ने भी चंपा को दो तीन गालियाँ दी और फिर मेरे बदन को देखने लगी जहाँ जहाँ मार पड़ी थी।
चाची ने जब मेरी कमीज ऊपर कर के मेरी कमर को देखा तो कमर पर पड़े नील देख कर वो सहम सी गई और प्यार से मेरी कमर पर हाथ फेरने लगी। उस समय वो और मैं बेड पर बैठे थे। वो बिल्कुल मेरे पास बैठी थी। जब वो मेरी कमर पर हाथ फेर रही थी तो ना जाने कब और कैसे मेरा हाथ उसकी रानों पर चला गया।
अचानक से मुझे थोड़ा ज्यादा दर्द हुआ तो मैंने चाची की जांघों को कस कर पकड़ लिया। चाची को भी एकदम से दर्द हुआ तो मुझे भी एहसास हुआ कि मेरा हाथ कहाँ है। मैंने जल्दी से अपना हाथ वहाँ से हटाया पर तब तक चाची की कोमल जांघों का एहसास दिल में बस चुका था। अचानक बिना किसी इरादे के हुए इस हादसे ने चाची के लिए मेरी नजर ही बदल कर रख दी।
चाची उठ कर अंदर से आयोडेक्स लेकर आई और मेरी कमर पर लगाने लगी। पर अब मेरी नजर चाची की जांघों और फिर धीरे धीरे उठते हुए चाची की चूचियों पर ठहर गई।
सच में क्या बड़ी बड़ी चूचियाँ थी चाची की। दवाई लगाते हुए चाची की साड़ी का पल्लू थोड़ा नीचे ढलक गया था तो ब्लाउज में कसी चूचियाँ देख कर मेरे तन बदन में ज्वालामुखी से फटने लगे थे। लण्ड था कि अकड़ कर दुखने लगा था अब।
चाची का प्यार देख कर मेरे दिल में अलग सा सितार बजने लगा था। अब तो मुझे भी चाची पर बहुत प्यार आ रहा था। पर पहली बार था तो डर रहा था। और वैसे भी आज का मेरा दिन ही खराब था सोचा कि कहीं प्यार के चक्कर में चाची से भी मार ना पड़ जाए।
दवाई लगा कर चाची ने मुझे दूध गर्म करके पीने को दिया। चाची और मैं फिर से बातें करने लगे। चंपा की बात आई तो मेरे मुँह से निकल गया कि दिल करता है साली को पकड़ कर चोद दूँ।
कहने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आखिर मैंने क्या कह दिया है। चाची अवाक् सी मेरे मुँह की तरफ देख रही थी। चाची की ऐसे देखते देख मैं सकपका गया।
तभी चाची बोली- वाह राज बेटा... लगता है तू जवान हो गया है तभी तो पहले स्कूल की मास्टरनी को और अब चंपा को... बहुत गर्मी चढ़ गई है क्या?
"वो...." मैं कुछ भी कहने की हालत में नहीं था।
"होता है राज... तुम्हारी उम्र में ऐसा ही होता है... जवानी नई नई जो आई होती है तो तंग करने लगती है...तुम्हारा कोई कसूर नहीं है... पर थोड़ा अपने उपर कण्ट्रोल रखो" चाची ने मुझे समझते हुए कहा।
मैं चुपचाप बैठा चाची की बात सुनता रहा। तभी चाची ने जो पूछा तो मेरे अंडरवियर में फिर से हलचल होने लगी।
चाची बोली- राज... सच में चंपा को चोदने का दिल कर रहा है तुम्हारा?
मैं क्या जवाब दूँ, समझ में नहीं आ रहा था। पर ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया कि आज साली ने सारा दिन खराब करवा दिया, आज तो सच में कुछ कर दूँगा अगर सामने आ गई तो।
"तेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?"
"नहीं चाची.. अभी तो नहीं है।"
"क्या बात? कोई मिली नहीं क्या अभी तक?"
"क्या चाची तुम भी ना..." मैंने शरमाते हुए कहा।
"अरे बता ना... मुझ से क्या शरमा रहा है।"
"तुम हो ना मेरी गर्लफ्रेंड..." मैंने हँसते हुए चाची को मजाक में कहा।
"रहने दे झूठ मत बोल..."
"सच में चाची...तू ही तो है मेरी गर्लफ्रेंड... नहीं तो आज तेरे पास आने के बजाय किसी और के पास बैठ कर अपना दर्द नहीं बाँट रहा होता क्या?"
"धत्त...पागल... मैं तो तेरी आंटी हूँ... मैं तेरी गर्लफ्रेंड कैसे बन सकती हूँ?" यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
"सच चाची तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो... यहाँ तक कि रात को सपने भी तुम्हारे ही देखता हूँ मैं !" मैंने प्यार की चासनी में थोड़ा सा झूठ का तड़का लगा दिया।
चाची की आँखों में लाली दिखने लगी थी। शायद वो गर्म हो रही थी या यह भी हो सकता है कि वो शर्म की लाली हो।
मैं चाची के थोड़ा नजदीक जाकर बैठ गया और चाची की साँसों के साथ ऊपर नीचे होती चूचियों को देखने लगा। दिल किया कि पकड़ लूँ, पर डर था दिल के किसी कोने में अभी भी।
पहल करने लायक हिम्मत नहीं आई थी अभी तक।
तभी चाची ने मेरी चोरी पकड़ ली और बोली- ये ऐसे क्या देख रहा है?
मैं फिर से सकपका गया, मैंने कहा- कुछ नहीं चाची... बस ऐसे ही...।
"मेरी चूचियाँ देख रहा है?" चाची ने बम फोड़ दिया। चाची के मुँह से यह सुनते ही मेरे दिल की धड़कन दुगनी हो गई।
"सच चाची तुम बहुत खूबसूरत हो और तुम्हारी चूचियाँ भी बहुत बड़ी बड़ी हैं।"
"ह्म्म्म... बेटा चाची पर ही लाइन मरने लगे... बहुत जवानी चढ़ रही है तुझ पर... ठहर मैं बताती हूँ तुझे.." कह कर चाची ने मेरा कान पकड़ कर मरोड़ दिया।
मुझे दर्द हुआ तो मैंने भी जानबूझ कर चाची की चूची पकड़ कर दबा दी। क्या मस्त मुलायम चूची थी चाची की। पर चाची इस तरह चूची दबाने से नाराज हो गई और दो थप्पड़ भी लगा दिए मुझे।
मैं तो आज सुबह से ही पिट रहा था। चाची के गुस्सा होने से अब घर पर पिटाई का डर भी सताने लगा। मुझे डर था कि कहीं चाची मेरे घर पर यह बात ना बता दे। डर के मारे मैंने चाची के पाँव पकड़ लिए और माफ़ी मांगने लगा पर चाची बिना कुछ कहे रसोई में चली गई।
मैं भी पीछे पीछे रसोई में पहुँच गया और कान पकड़ कर सॉरी बोलने लगा।
तभी मैंने रसोई में सामने लगे छोटे से शीशे में देखा तो लगा कि चाची मुस्कुरा रही हैं। मुझे समझते देर ना लगी कि चाची मेरे मज़े ले रही हैं। मैं चाची के बिल्कुल पीछे खड़ा था, शीशे में चाची को मुस्कुराते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने चाची को पीछे से पकड़ लिया और चाची की गर्दन पर चूमने लगा।
चाची ने मुझ से छुटने की कोशिश की पर मैंने चाची को अपनी तरफ घुमा कर चाची की होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
कुछ देर की कोशिश के बाद चाची ने भी हथियार डाल दिए और चुम्बन करने में मेरा साथ देने लगी।
अब चाची की जीभ मेरे मुँह में मेरी जीभ से प्यार लड़ा रही थी और मेरे हाथ चाची के माखन के गोले जैसी चूचियों को मसल रहे थे।
करीब पाँच मिनट की चुम्माचाटी के बाद हम अलग हुए तो चाची बोली- हट... तू तो बहुत गन्दा है..
मैं कुछ नहीं बोला बस चाची को बाहों में भर कर बाहर ले आया और सोफे पर लेटा दिया। मेरे हाथ अब चाची की केले के तने जैसी चिकनी जांघों पर थे। एक हाथ से जांघों को सहलाते सहलाते मैं दूसरे हाथ से चाची के ब्लाउज के हुक खोलने लगा।
चाची आँखें बंद किये मज़ा ले रही थी। कुछ ही पल में चाची की सफ़ेद ब्रा में कसी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी। मैं ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को चूमने लगा। मेरा दूसरा हाथ भी अब चाची की पैंटी तक पहुँच चुका था, कुछ कुछ गीलापन महसूस हो रहा था।
मैंने चाची की ब्रा उतार कर एक तरफ़ रख दी और चाची की मस्त चूची को मुँह में लेकर चूसने और काटने लगा। मैंने चाची की साड़ी को ऊपर उठा कर पेट पर कर दिया। चाची की जांघें अब बिल्कुल नंगी मेरी आँखों के सामने थी और सफ़ेद रंग की पैंटी में कसी चूत नजर आने लगी थी।
मैंने चाची की पैंटी को पकड़ कर नीचे खींचा तो चाची ने शरमा कर दोनों हाथ अपनी चूत पर रख लिए। पर मैंने पैंटी को नीचे खींच दिया। चाची ने अपनी चूत दोनों हाथों से ऐसे छुपा ली थी जैसे बिना मुँह दिखाई के दर्शन ही नहीं करने देगी। पर मुँह दिखाई के लिए तो मैं भी तैयार था। मैं चाची की जांघों को अपने होंठों से चूमने लगा और फिर धीरे से चाची के हाथ पर चूम लिया तो चाची ने एक हाथ हटा दिया। हाथ हटते ही चाची की चूत के दर्शन हुए।
मैंने मौका जाने नहीं दिया और चूत पर अपने होंठ रख दिए। एक अजीब सी खुशबू मेरे नाक में आई और गीली चूत का नमकीन सा स्वाद मेरी जीभ पर आ गया जिसको चखते ही मैं तो जैसे मदहोश सा होने लगा।
मैंने चाची का हाथ एक तरफ किया और जीभ से चूत को कुरेदने लगा और चाटने लगा। अब चाची की सिसकारियाँ गूंजने लगी थी। चाची की आँहे कमरे के वातावरण को मादक बना रही थी।
तभी चाची का हाथ मैंने अपने लण्ड पर महसूस किया। मेरा लण्ड तो पहले से ही पूरा तैयार हो चुका था। चाची ने मेरे लण्ड को पैंट से बाहर निकाला और अपने मुँह में ले लिया। अब हम दोनों 69 की अवस्था में थे। मतलब मेरा लण्ड चाची के मुँह में और उसकी चूत मेरे मुँह पर थी।
कुछ देर की चुसाई के बाद जब लण्ड अकड़ने लगा तो मैंने चाची के मुँह से लण्ड निकाल लिया और चाची की चूत पर रख दिया। चूत पर लण्ड का एहसास मिलते ही चाची ने अपनी गाण्ड ऊपर को उठाई तो लण्ड का सुपारा चाची की चिकनी और पानी पानी होती चूत में घुस गया।
चाची सीत्कार उठी। चाची ने जैसे ही गाण्ड नीचे करके दुबारा ऊपर को उचकाई तो मैंने भी देर नहीं की और एक जोरदार धक्का लगा कर आधे से ज्यादा लण्ड चाची की चूत में डाल दिया।
"उईईइ माँ......आराम से हरामी... फाड़ डालेगा क्या..."
पर मैंने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं और मैंने एक और जोरदार धक्का लगा कर पूरा लण्ड चाची की चूत में सरका दिया। चाची की चूत और मेरे अंडकोष अब आपस में चिपके हुए थे। मेरा पूरा लण्ड जड़ तक चाची की चूत में था।
मैं इसी अवस्था में लेटा रहा और चाची के होंठ और चूचियों को चूसता रहा। तभी चाची ने अपनी गाण्ड ऊपर को उछाली तो मैंने भी उसका जवाब एक जोरदार धक्के के साथ दिया। फिर तो पहले धीरे धीरे और फिर पूरी रफ़्तार से चाची की चूत की चुदाई शुरू हो गई।
कमरे में चाची की ऊउह्ह्ह्ह्ह आह्हह्ह उईईइ हाआआईई ओह्ह्ह ही सुनाई दे रही थी या फिर सुनाई दे रहा था चुदाई का मधुर संगीत जो फच्च फच्च फट फट करके कमरे में गूंज रहा था।
पूरे पन्द्रह मिनट की जोरदार चुदाई के बाद मेरा लण्ड अब अन्तिम चरण पर था। लण्ड चूत के अंदर ही फ़ूल कर मोटा हो गया था जिसका भरपूर मज़ा चाची भी ले रही थी। चाची मेरे लण्ड की गर्मी से दो बार पिंघल चुकी थी। चूत पानी पानी हो रही थी कि तभी मैंने भी अपने लण्ड का लावा चाची की चूत में भर दिया। लावे की गर्मी महसूस होते ही चाची ने मुझे अपने से चिपका लिया और अपनी टांगो में भींच लिया।
मेरा लण्ड चाची की चूत में पिचकारियाँ छोड़ रहा था। मेरे वीर्य ने चाची की चूत को पूरा भर दिया था जो अब चाची की चूत से बाहर आने लगा था।
हम दोनों कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे और फिर अलग होकर चाची ने मेरे लण्ड और अपनी चूत को अच्छे से साफ़ किया। चाची चुदाई के बाद बहुत खुश थी।
मैं एक बार और चाची की चूत में हलचल करना चाहता था पर तभी घड़ी पर नजर गई तो मेरे स्कूल की छुट्टी का समय हो गया था। चाची ने भी मुझे घर जाने को कहा क्यूंकि चाचा भी लगभग इसी समय दोपहर का खाना खाने आते थे।
मैं स्कूल की सजा को भूल कर चाची के साथ के मज़े में खो सा गया और फिर बुझे मन से अपने घर चला गया।
मेरी नजर चाची के दरवाजे पर ही टिकी थी। जैसे ही चाचा खाना खाकर वापिस गए तो मैं तुरन्त चाची के घर पहुँच गया और चाची को बाहों में भर लिया। चाची ने मुझे कमरे में बैठने को कहा और बोली- मैं अभी आती हूँ।
कुछ देर रसोई के काम निपटा कर चाची मेरे पास आ कर बैठ गई। पर मैं बैठने थोड़े ही आया था तो बस चाची के आते ही टूट पड़ा और चाची की चूचियाँ मसलने लगा।
चाची ने मुझे थोड़ा रोकने की कोशिश की पर जल्दी ही हथियार डाल दिए और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
चुम्मा-चाटी का दौर करीब दस पन्द्रह मिनट के लिए चला। चाची मस्ती के मारे बदहवास सी हो गई थी और मुझे अपने से पकड़ पकड़ कर लिपटा रही थी। चाची की बेचैनी को समझते हुए मैंने चाची के बदन से कपड़े कम करने शुरू किये और कुछ ही देर बाद चाची मेरे सामने बिल्कुल नंगी बैठी थी।
मेरा लण्ड भी अकड़ कर दुखने लगा था तो मैंने भी देर नहीं की और अपने कपड़े उतार कर लण्ड टिका दिया चाची की चूत पर।
एक ही धक्के में पूरा लण्ड चाची की चूत में था। चाची पूरी गर्म थी। लण्ड अंदर जाते ही चाची ने मुझे अपने नीचे कर लिया और मेरे लण्ड पर बैठ कर अपनी मस्त गाण्ड को ऊपर नीचे करने लगी। चाची पूरी मस्ती में और पूरे जोश के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। मेरा तो लण्ड धन्य हो गया था चाची की चूत पा कर।
करीब दस मिनट तक चाची मेरे ऊपर बैठ कर चुदती रही और फिर एक जोरदार ढंग से झड़ गई।
झड़ने के बाद चाची थोड़ी सुस्त हो गई तो मैंने चाची को अपने नीचे लिया और फिर से जोरदार चुदाई शुरू कर दी। कमरे में फच्च फच्च की मादक आवाज़ गूंज रही थी। चाची की सिसकारियाँ और सीत्कारें मुझे बहुत अच्छी लग रही थी। मैं चोदता रहा और चाची चुदती रही। ऐसे ही करीब आधा घंटा बीत गया। चाची कम से कम तीन बार झड़ चुकी थी और अब वो बिल्कुल पस्त नजर आ रही थी। मेरा लण्ड अभी भी पूरे जोश में था।
"राजा...अब तो चूत दुखने लगी है.. उईईई... अब और नहीं चुदवा सकती... तूने तो चूत का भुरता ही बना दिया...आह्ह्ह... तेरा चाचा तो दो मिनट भी नहीं चोद पाता है।"
मैं तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा था। और पूरे जोश के साथ चाची की चूत में धक्के लगा रहा था।
तभी चाची ने हाथ नीचे ले जा कर मेरे अंडकोष को दबाया और मसला तो मेरा लण्ड भी चाची की चूत को भरने के लिए तड़प उठा। फिर भी करीब पाँच मिनट और चाची की चूत को चोदा और फिर ढेर सारा माल चाची की चूत में भर दिया।
चाची मुझसे चुदवा कर बहुत खुश थी।
उस दिन के बाद से हम दोनों हर रोज चुदाई करने लगे। स्कूल से आने के बाद मेरी नजर चाची के दरवाजे पर लगी रहती। जैसे ही चाचा खाना खा कर अपने काम पर जाता, मैं पहुँच जाता अपनी चाची जान की चूत का मज़ा लेने।
कहानी का एक भाग अभी और है।
आपका अपना राज
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