Saturday, January 30, 2016

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--34

बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--34



 पापा ने मुझे झाड़ने के बाद अपने अमानवीय लंड के गाढ़े सफ़ेद जननक्षम वीर्य के बारिश से मेरी अविकसित चूत गर्भाशय को

सराबोर कर दिया।

मैं अचानक फिर से झड़ गयी और इस बार के रति-निष्पति के आधिक्य से मैं लगभग मूर्छित हो गयी। 



उस रात पापा ने मेरी गांड बड़ी देदर्दी से मारी। मैं पहले दर्द सी बिलबिला गयी पर वो मीठी आग में बदल गया। मम्मी ने

अक्कू और पापा के लंड इकट्ठे लिए, एक गांड दूसरा चूत में। उनके उफ़्फ़नते आनंद को देख कर मुझे जूनून चढ़ गया। जब पापा

का वृहत लंड मेरी चूत में समां गया तो अक्कू ने अपना लंड निर्ममता से मेरी गांड में जड़ तक ठूंस दिया। मैं दर्द से चीख उठी

पर पहले की तरह कुछ देर में मेरे दर्द की लहर आनंद की बौछार में बदल गयी।

उस रात पापा और अक्कू ने मम्मी मुझे सारी रात चोदा ।

उस दिन के बाद से शाम को स्कूल से आने के बाद जब हम दोनों स्कूल का कार्य निबटा लेते थे तब पापा मुझे जम कर चोदते

और मम्मी अक्कू से चुदवातीं थीं। रात को भोजन के बाद हमेशा की तरह अक्कू और मैं रात सोने से पहले घनघोर चुदाई करते

थे।

कुछ सालों में स्कूल हमारी दोस्ती इन महाशय से गयी, बुआ ने छोटे मामा को प्यार से चूम कहा , और फिर हमें पता चला कि

हमारी तरह एक और परिवार समाज के तंग प्रतिबंधों से मुक्त था। सुनी ( सुनीता, मेरी मम्मी), रवि भैया और आप अपने मम्मी

और डैडी के साथ पूर्ण रूप से हर आनंद में सलंग्न थे।

उसके बाद कहानी तो आप दोनों को खूब अच्छे से पता है।

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मैं दरवाज़े से लगी संस्मरण सुन कर न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरी उँगलियों ने मानों अपने आप बिना मेरे निरणय के

मेरी चूत को सारे समय मठ दिया था। मैंने बिना सोचे अपने रति सराबोर लिसलिसी उँगलियों को अपने मुंह में डाल लिया और

मेरा मुंह मेरे रस की मिठास से भर गया। मैं मानसिक और शारीरिक शिथिलता से ग्रस्त हो चली थी। मैं व्यग्रता से अपने कमरे की

ओर भाग गयी। कमरे में पहुँचते ही मैंने अपने वस्त्र उत्तर कर बिस्तर में निढाल लुढ़क गयी। बिना एक क्षण बीते मैं निंद्रा देवी

गहन गोड में समा गयी।

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सारी रात मुझे एक के बाद एक वासना में लिप्त सपनों ने घेरे रखा। सारे स्वप्नों में मैं परिवार के एक या दुसरे सदस्य के साथ

सम्भोग में सलंग्न थी। आखिर के सपने में सुशी बुआ ने मुझे अपनी बाँहों में जकड रखा था और वो भी निवस्त्र थीं। 

 "अरे प्यारी भतीजी जी अपनी बुआ के लिए अब तो ज़रा से अपने चक्षुओं को खोल दीजिये ," बुआ वास्तव में निवस्त्र

मुझे अपनी बाँहों में भरे हुए मुझे प्यार से चूम रहीं थीं।

मैंने शर्म से अपने लाल जलता हुआ मुंह बुआ के विशल मुलायम स्तनों के बीच छुपा लिया। बुआ ने मेरा मुंह ऊपर उठा

कर मेरे जलते होंठों पर अपने कोमल होंठ रख कर हौले से कहा , "अच्छा यह बताओ कल हमारे परिवारों की घनिष्ठता

की कहानी सुन कर तुम कितनी बार झड़ी थीं। "

मेरे आश्चर्य से खुले मुंह का लाभ बुआ ने उठाया और उनकी मीठी जीभ मेरे सुबह सवेरे के मुंह में प्रविष्ट हो गयी।

मेरी बाँहों ने भी स्वतः बुआ को घेर लिया। मैंने भी बुआ के जीभ से अपनी जीभ भिड़ा दी। बुआ की मीठी लार जैसे ही

मेरा मुंह भर देती मैं उसे सटक जाती। बुआ और मैं गहन भावुक चुम्बन में पूर्णतया सलंग्न हो कर हलके हलके 'उम' 'उम'

की आवाज़ें बनाते हुए एक दुसरे के सुबह के अनधुले मुंह के स्वाद के लिए

तड़प रहे थे।

आखिर बुआ ने मेरे पूरे मुंह को अपनी जीभ से तलाश कर संतुष्टि से मुझे हलके से चूमा।

"बुई आपको कैसे पता चला कि मैं दरवाज़े पर थी ?" मैंने बुआ पीठ हांथों से सहलाया।

"अपने बच्चों के लिए माँ की छठी इंद्री बहुत तीक्षण होती है ," बुआ ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए मुझे और भी

कास कर पकड़ लिया, "नेहा अब तो मुझे तुम्हारे सुबह के मीठे मुंह के स्वाद की आदत पड़ जाएगी। "

मैंने शरमाते हुए बुआ से कहा , "आप जब चाहें," फिर मुझे रात की एक बात याद आयी , "बुआ क्या दोनों मामा ने

आपको एक साथ उम.... चो.... चोदा ?" आखिर में 'च' शब्द मेरे मुंह से निकल ही गया।

"नेहा एक बार नहीं तीन बार। मेरी चूत और गांड दोनों के वीर्य से है। तुम्हारा मन हो तो मैं …… ," बुआ के अधूरे

प्रस्ताव से ही मेरी चमकती आँखे और अधखुले लालची मुंह ने मेरी तीव्र इच्छा का विवरण बुआ को दे दिया।

बुआ अंजू भाभी की तरह अपने दोनों घुटने मेरे दोनों ओर रख कर पहले रेशमी झांटों ढकी मेरे दोनों मामाओं सनी

चूत तो खोल कर मेरे खुले मुंह के ऊपर रख दिया। धीरे धीरे उनकी महकती चूत से लिसलिसी गाढ़ी धार मेरे खुले मुंह

में टपकने लगी। मैंने भी बुआ के चूत के कोमल सूजे भगोष्ठों को चूम कर उनके मोटे लम्बे भगशिश्न को जीभ से कुरेद

दिया। जब मैंने बुआ की चूत से सारा खज़ाना चाट लिया तो उन्होंने अपनी दूसरी गुफा के को मेरे मुंह के ऊपर। बुआ

के भारी विशाल गोरे नितिम्बों के बीच उनकी नन्ही सी गुदा का छिद्र उनके ज़ोर लगाने से खुल गया। उनकी अनोखी

मनमोहक सुगंध ने मुझे भावविभोर कर दिया। बुआ ज़ोर लगा कर अपनी मलाशय से गाढ़े वीर्य की लिसलिसी धार आखिर

में मेरे मुंह की ओर प्रवाहित करने में सफल हो गयीं। दोनों मामा के वीर्य का रंग और सुगंध बुआ की गांड के रंग और

सुगंध से मिल कर और भी मोहक हो गया था।

मैंने जितना भी खज़ाना बुआ की गांड से मिल सकता था उसे लपक कर चाट लिया और धन्यवाद के रूप में गांड को

अपनी जीभ लगी। बुआ की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया कर दिया ।

बुआ जल्दी से मुड़ीं और शीघ्र वो मेरे ऊपर लेती हुईं थीं। अब उनका मुंह मेरी गीली चूत के ऊपर था। मैंने दोनों हाथों से

बुआ के प्रचुर नितिम्बों को जकड कर उनकी रसीली चूत ऊपर अपना मुंह दबा दिया। बुआ ने अपने होंठों में मेरे कोमल

छोटे भगोष्ठों को कस कर पकड़ कर चूसने लगीं। उनके मीठा दर्द हुआ और मैंने भी उनके बड़े मोटे भग-शिश्न को हौले

से दाँतों से चुभलाने लगी। हम दोनों की सिस्कारियां एक दुसरे को प्रोत्साहन सा दें रहीं थीं। मैंने अपने दोनों घुटने मोड़

कर फैला दिए जिस से बुआ को मेरी चूत और गांड और भी आमंत्रित कर रही थी। मैं अब बुआ के चूत की संकरी गुफा

को चोदने लगी। बुआ ने भी अपने एक गीली उंगली हलके से मेरी तंग गांड में सरका दी और ज़ोर से मेरे भग -शिश्न को

चूसने, चूमने और अपनी जीभ से चुभलाने लगीं।

उनकी देखा देखी अपनी तर्जनी बुआ की गांड में जोड़ तक डाल दी। अब हम दोनों एक दुसरे की गांड अपनी उंगली से

मार रहे थे और अपने मुंह से एक दुसरे मठ थे।

हम दोनों पहले से ही बहुत उत्तेजित थे। कुछ मिनटों में हम लगभग इक्कट्ठे हल्की से चीख मार झड़ने लगीं। बुआ कुछ

अपनी साँसे सँभालते हुए फिर से मुड़ कर मुझे बाँहों में ले कर लेट गयीं।

"नेहा बिटिया , अब तो तुम्हारा सारा परिवार तुम्हारे प्यारे सौंदर्य के प्रसाद के लिए उत्सुक है ," बुआ ने मेरे मुंह को

चूमते हुए कहा। हम दोनों का रति रस एक दुसरे के मुंह के ऊपर लिसड़ गया।

"बुआ , मुझे शर्म आती है ," मारी लज्जा अभी भी मुझे रोक रही थी।

"अरे बड़े मामा के हल्लवी लंड को तो कूद कूद के लेने से नहीं हिचकिचाई अब शर्म किस बात की ?" बुआ ने मेरी

सारी नाक अपने मुंह में ले कर उसे चूमने और काटने लगीं।

"बुआ मैं बड़े मामा के बाद किस के पास जाऊं ?" मैंने आखिर अपनी ईच्छाओं के लिए अपनी लज्जा को समर्पित

करने का निर्णय ले लिया।

"नेहा बेटी निर्णय तो तुम्हारा है पर जब तुमने पूछा है शायद नानाजी को तुम्हारा इंतज़ार बहुत दिनों से है ," बुआ ने

मेरे दोनों कस कर कहा।

मैं ने शरमाते हुए सर हिला दिया।

"पर अभी सिर्फ मेरी हो ," बुआ ने प्यार से दांत किचकिचाते हुए मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया।

हम दोनों कुछ शयन कक्ष से लगे स्नानगृह में। गुसलखाने में बुआ ने फुसफुसा कर कहा , "नेहा बिटिया अपने बुआ को

अपना मीठा प्रसाद नहीं दोगी जिसके स्वाद के तुम्हारे बड़े मामा पुजारी बन गए हैं। "

मैं बुआ का तात्पर्य शर्मा गयी , "जरूर बुआ पर मुझे बिना रोके-टोके पूरा प्रसाद देंगीं। " मैं हल्की से मुस्कान शर्त रख

दी।

बुआ ने भी मुस्करा कर हामी भर दी। पहले मेरी बारी थी। बुआ ने बिना एक बूँद खोये मेरी पूरी सारा सुनहरी गर्म भेंट

सटक ली। उनके चेहरे पर एक अनोखी संतुष्टी थी। मैंने भी नदीदेपन से बुआ की गीली खुली चूत पर मुंह लगा कर

उनका मोहक सुनहरा प्रदार्थ बिना हिचके घूंट घूंट लिया।

फिर हम दोनों ने एक दुसरे को नहलाया। बुआ ने एक बार फिर से अपनी उँगलियों से मुझे झाड़ दिया।

 नाश्ते की मेज पर हमेशा की तरह चुहल बाजी एक शुरू हुई तो धीमे होने का नाम ही नहीं लिया। सबकी बारी लगी।

नेहा नंबर आया तो बुआ ने मोर्चा संभाला, "भाई नेहा ने नानाजी का भरपूर ख्याल रखने का वायदा किया है। "

दादाजी ने हँसते हुए कहा ,"इसका मतलब है नेहा बेटी अपने दादा जी को बिलकुल भूल जाएगी ?"

बुआ जी ने हंस कर कहा , "पापाजी नेहा बहुत समझदार है। मुझे विश्वास है वो आपका ख्याल जितना रखेगी। नहीं

नेहा बेटी? "

मेरे शर्म से लाल मुंह को देख कर सब हंस दिए।

उसके बाद सबने टीम्स बना कर टेनिस का टूर्नामेंट खेलने का निर्णय बनाया। अंतिम चरण [फाइनल] में मैं और छोटे

मामा की टीम का मम्मी और नानाजी की टीम से मुकाबला था। मैं और छोटे मामा बड़ी मुश्किल से मम्मी और नानाजी

पाये।

हम सब पसीने से भीग गए थे। नानाजी ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया। जब मैं खिलखिला कर हंस दी और बोली

,"नानू अब मैं छोटी बच्ची तो नहीं हूँ। "

नानाजी ने मेरे पसीने से भीगे शरीर को अपने उतने ही गीले शरीर से कस कर बोले ," नेहा बेटी नानू और दादू के

लिए तो तुम हमेशा बच्ची हे रहोगी। पर हमें कब दिखाओगी की तुम कितनी बड़ी हो गयी हो ?"

नानाजी के मीठे छुपे तात्पर्य से न चाहते हुए भी शर्मा गयी। मैंने अपना मुंह नानू की गर्दन में से कहा , "जब आप चाहें

नानू। "

नानू ने मेरी पीठ सहलाते हुए कहा , "आज रात्रि के भजन के बाद हम दोनों तुम्हारा पूराना खेल क्यों नहीं खेलते ?"

मैं और शर्म से लाल हो गयी। नानाजी मेरे बचपन के जिस खेल का ज़िक्र कर रहे थे उसका नाम 'डंडी कहाँ छिपायी '

था। यह खेल गोल छोटी डंडी को बोर्ड के छेद में छिपा कर दुसरे खिलाड़ी के अनुमान के ऊपर आधारित था। जब सही

अनुमान होता तो उस छेद पर लिखे अंकों को उस खिलाड़ी खाते में जोड़ दिया जाता था। यह खेल बहुत छोटे बच्चों

के लिए बना था जिस से उन्हें गड़ना आ जाए। नानू और दादू जब मैं तीन चार साल थी तो हम वो खेल बहुत खेलते थे।

"जैसा आप चाहें नानाजी, " सांसें तेज हों गयीं। मैंने नानू को कस कर पकड़ लिया।

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दोपहर के भोजन के ठीक उपरांत डैडी और दोनों मामा के गहरे दोस्त का फोन आया। कुछ मेरी सहेली शानू फोन पर

उलाहने दे रही थी। शानू, यानि शहनाज़, मुझसे एक साल छोटी थी। जो परिवर्तन मुझमे किशोरावस्था के सालों ने

किया था वो शानू में सिर्फ दो सालो में आ गया था।

"नेहा साली आप की शादी में नहीं आयी इम्तेहान के वजह से पर अब तो आ जा। आपा और भैया मधुमास [हनीमून] से

वापस आ गए हैं। नसीम दीदी तुझे कितना हैं। " शानू मेरी गिनी चुनी दोस्तों में से है जो खुल कर मुझे गालियां दे

सकती है।

"शानू, यार मेरा मन भी बहुत कर रहा है पर आज शाम को मुझे ज़रूरी काम है। मैं कल सुबह आ जाऊंगीं। " मैंने

बिना सोचे नानू के साथ हुए वायदे को अत्यंत महत्व दे दिया।

"अबे साली तू अब मेरे दिल और दीदी के दिल को तोड़ रही है। ज़रूरी काम है यह। मैं कुछ नहीं सुनने वाली,

तैयार हो जा और अंकल को बोल ड्राइवर को तैयार कर दें, " शानू अब पूरे प्रभाव में थी।

बुआ जो पास हीं थीं बोलीं ," नेहा शानू का दिल नहीं तोड़ो। तैयारी कर देंगें। "

मैंने फोन के ऊपर हाथ रख कर धीरे से कहा ," बुआ आज मुझे नानू का ख़याल रखना था। "

बुआ ज़ोर से हंस दी ," डैडी यदि मैं आपका ख्याल रखूँ तो आप नेहा को जाने देंगें न ?"

नानू भी हंस दिए , "नेहा बिटिया दोस्ती बहुत मत्वपूर्ण होती है। सुशी को मेरा ख्याल रखना अच्छे से आता है। "

मैं शर्मा गयी और हड़बड़ाहट में जल्दी से शानू से बोली , " ठीक है। मैं वहां पहुँच जाऊँगी। "

शानू ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में कहा, "और सुन यदि तूने एक हफ्ते से पहले वापस जाने को बोला तो मुझसे कुट्टी ," मैं अब बेबस थी। 



बुआ ने मेरी तैयारी में मदद की, "नेहा बेटी तुम्हें ज़रूरी काम करना पड़ेगा। अकबर भैया बहुत अकेले पड़ गएँ हैं। शब्बो

दीदी भी बहुत अकेली हैं। "

अकबर अंकल विधुर हैं और उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को अपनी बहिन शबनम आंटी की मदद से पाला पोसा। शबनम

आंटी भी विधवा हैं। उनके इकलौते बेटे आदिल की शादी नसीम दीदी से उन दोनों के प्यार को देख कर हुई थी।

"तुम्हारा जादू यदि उस परिवार पर चल गया तो उनकी खुशी कई गुना बड़ जाएगी। मैं अचानक बुआ की योजना को

समझ गयी।

"बुआ मैं अकबर अंकल से सीधे सीधे कैसे बात कर पाऊंगीं ?" मैं सीख रही थी पर अभी भी बुआ जितनी चतुर नहीं बन

पाई थी।

"अकबर भैया और तुम्हारे दोनों मामा और मैंने कई बार इकट्ठे सम्भोग किया है। अकबर भैय्या का किसी को तो ध्यान

रखना था ना ! पर शब्बो दीदी का प्यार उनके दिल में ही घुट कर रह जायेगा। जब तुम अकबर भैया को अकेला पाओ तो

पाओ तो उनको कहना कि तुम्हे मैंने उनका ख्याल रखने के लिए कहा है। यदि इस से उन्हें सब समझ नहीं आया तो मुझे

कहना," बुआ ने मुझे जादू की चाभी थमा दी - अकबर अंकल के लिए उनका निजी खत।

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अकबर चाचू का घर शहर से बाहर था। दो घंटों में ड्राइवर ने उनके विशाल भवन के सामने गाड़ी रोक दी। शानू बाहर

ही मेरा इंतज़ार कर रही थी।

शानू का शरीर पहले से भी और भर गया था। उसके गदराया शरीर मेरी तरह ही उस से कई साल बड़ी लड़कियों को

शोभा दे सकने दे सकने के लायक था। हम दोनों को देख कर कई लोग हमें हमारी वास्तविक उम्र से कई साल बड़ा

समझते थे। शानू मेरे से ग्यारह महीने छोटी थी। मैं तब किशोरावस्था के दो साल पूरे कर चुकी थी। शानू तब दुसरे साल के

प्रारम्भ में थी। मैंने दसवीं पूरी कर ली थी और शानू ने दसवीं में प्रवेश किया था।

हम दोनों दौड़ कर एक दुसरे से लिपट गए और बिना वजह के दोनों रूआँसे हो गए।

शानू और मैं जल्दी से शानू के कमरे की ओर दौड़ पड़े। घर के नौकरों और ड्राइवर ने सामान संभल लिया।

"शानू सब लोग कहाँ हैं ?" मैंने शानू को अपने से अभी तक जकड़ रखा था।

"अब्बु अभी काम पर हैं. मैंने उन्हें फोन नहीं किया। शाम को उन्हें सरप्राइज़ देंगें। नसीम आपा की दोस्त की मम्मी बीमार हैं

सो उनकों न चाहते हुए भी शहर जाना पड़ा। आदिल भैया टेनिस से वापस आने वालें हैं। "

"अरे अभी भी तू आदिल भैया को अभी भी भैया कहती है। अब तो वो जीजू हैं। मेरे भी और तेरे भी। अरे अब तो तू और मैं

उनकी आधी घरवाली हैं। उनका हम दोनों पर पहला हक़ है और वो जब चाहें उस हक़ से हमें अपना सकते हैं ," मैंने शानू

के गुलाबी होंठों को चुम कर उसे ताना दिया।

"नेहा मैं क्या करूँ ? मेरे मुंह से इतने सालों की आदत की वजह से भैया ही निकल पाता है, " शानू ने भी मुझे चूमा और

फिर खिलखिला के हँसते हुए बोली , "तुझे तो मैं बता सकतीं हूँ कि नसीम आपा भी जब भैया ….. मेरा मतलब है जीजू

जब उनकी जम कर चुदाई करतें हैं तो वो भी भूल जातीं हैं कि आदिल भैया उनके खाविंद हैं और 'भैया और ज़ोर से

चोदो, भैया चोदो मुझे ' चीख पड़ती हैं। "

"खैर अब मैं आ गयीं हूँ। तुझे जीजू का पूरा ख्याल कैसे रखतें हैं सीखा कर जाऊंगीं ," मैंने शानू ने भरी उभरे नितिम्बों

को कस कर दबाया।

"तू तो ऐसे कह रही है जैसे तुझे सब पता है ," शानू ने जवाब में मेरे भरे पूरे नितिम्बों को मसल दिया।

मैंने भेद भरी मुस्कान कायल कर दिया और उसे सारी कहानी विस्तार से सुना दी। मैंने उस से कुछ भी नहीं छुपाया।

शानू भौचक्की रह गयी और फिर मुझे लिपट गयी और हम दोनों खुशी से रो पड़े।

शानू सुबक कर बोली, " हाय रब्बा रवि और सुरेश चाचू ने तुझे बिलकुल भी नहीं बक्शा ? उनके मोटे लण्डों ने तेरी चूत

या गाड़ फाड़ दी होती तो क्या होता ?"

"मेरी प्यारी शानू यह ही तो सम्भोग का आनंद है । बड़े मामा और सुरेश चाचू के हाथी जैसे लंड लेने में मेरी तो जान ही

निकल गयी। पर जितना भी दर्द हुआ और मैं जितना भी बिबिलायी पर जितना आनंद उनके लंड को अपने भीतर लेने में

आता है उसके आगे वो दर्द कुछ भी नहीं है। नम्रता चाची जैसे कहतीं हैं कि जब तक लड़की के चूत या गांड मरवाते समय

चीख ने निकले तो लंड की इज़्ज़त खतरे में है। " मैंने शानू के फड़कते नथुनों को चूम कर उसे कस कर जकड लिया।

जब हम दोनों शांत हुए तो मैं बोली , "जीजू कब आने वाले हैं ?"

शानू ने लाल गीली आँखों से मुस्करा कर कहा , "शायद आने वालें ही होंगें। "

"तो फिर तैयार हो जा, " मैं उसके उभरते उरोज़ों को मसल कर कहा , " आज तेरी चूत का उद्घाटन होने वाला है जीजू के

लंड से। "

"हाय नेहा नसीन आपा ख़ूबसूरत हैं और भ........ आईय़ा …… जीजू इतने हैंडसम हैं मैं तो बच्ची जैसी दिखती होंगी

उनको । तू उनको तो बड़ी आसानी से फंसा सकती है ," शानू के दिल की पुकार उसके बेचैन आंदोलित मस्तिष्क के

ऊपर काबू पाना चाह रही थी।

"अच्छा अब बकवास बंद कर और जल्दी से कपडे बदल ले। आज तेरी चूत का उद्घाटन जीजू के लंड से ज़रूर होगा। तू

चाहे या न चाहे। ," मैंने शानू को खींच कर बिस्तर से उतारा।

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शानू और मैंने तंग टी शर्ट और छोटे शॉर्ट्स पहन लिए। हालांकि शानू और मैं किशोरावस्था के द्वार से एक और दो साल

ही दूर थे पर उस समय किसी ऋषि का मन भी डाँवाँडोल हो जाता।

जब आदिल भैया मेरा मतलब जीजू दाखिल हुए तो मेरी भी सांस रुक गयी। जीजू उस समय बाईस साल के थे और छह

फुट से ऊंचे गोरे सुंदर और बहुत मांसल हो गए थे। भैया पसीने से नहाये हुए थे हुए थे। मुझे देख कर उनकी खुशी रुक

नहीं पा रही थी। मैं दौड़ कर उनकी बाँहों में समा गयी।

"आदिल भैया, आदिल भैया ," मैं खुद शानू को दी हुई सलाह को भूल गयी।

जीजू ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर हवा में उठा लिया, "ऊफ़ मुझसे गलती हो गयी। अब तो आप मेरे जीजू हैं, " मैंने

इठला कर आदिल भैया को चुम लिया।

"नेहा अब तुम शानू को समझाओ ना ," आदिल भैया ने मुझे कस कर भींचा और खुद फिर से मेरे होंठों को चूम लिया।

जैसे ही आदिल भैया ने मुझे नीचे रखा मैंने शानू को उनकी तरफ धकेला , "जीजू अब चलिए अपनी दूसरी साली को भी

किस कीजिये। "

आदिल भैया ने शर्माती शानू को बाँहों कर और बोले, "एक बार तो जीजू बोल दो शानु। "

"जीजू ," शानू ने शरमाते हुए फुसफुसाया। और दुसरे ही क्षण आदिल भैया के होंठ शानू के होंठों से चिपक गए।

आदिल भैया ने हांफती हुई कमसिन शानू को नीचे उतारा और बोले , "मैं जल्दी से नहा कर तैयार होता हूँ फिर बाहर खाने

चलते हैं। "

"जीजू अब आपकी दो दो सालियां है। नहाने में मदद की ज़रुरत हो तो हमें बुला लीजियेगा ," मैंने इतराते हुए कहा।

आदिल भैया की आँखों ने सच बोल दिया और उन्होंने ने हम दोनों को घूर कर देखा, "सच में शायद मुझे मदद की

ज़रुरत पड़ ही जाये। "

शानू और मैं शर्म से लाल हो गए। मैंने भैया को अपने कमरे की ओर जाता देखा।

"शानू की बच्ची यह ही मौका है ," मैंने शानू को जगाया। वो बेचारी आदिल भैया को लाचार प्यार भरी निगाहों से दूर जाते

हुए घूर रही थी।

हम दोनों ने पांच मिनट इंतज़ार किया और फिर धीमे क़दमों से आदिल भैया के कमरे में घुस गए। भैया के कपड़े पलंग पर

बिखरे थे और कमरे से संलग्न स्नानगृह से स्नान के फौवारे आवाज़ साफ़ सुनाई पड़ रही थी। हम दोनों का ध्यान बिस्तर

पर पड़ी तौलिया की तरफ गया और दोनों ने मुस्करा कर विजय की पताका फेहरा दी।



हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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