Thursday, August 18, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ डॉक्टर की चूत चुदाइ --1




हिंदी सेक्सी कहानियाँ

डॉक्टर की चूत चुदाइ --1


जैसा कि पिच्छली स्टोरी मे बताया था कि मेरी शादी के बाद मेरा ट्रान्स्फर दूसरी जगह हो गया था. मेरे साथ मेरी प्यारी सहेली रचना का भी ट्रान्स्फर उसी जगह हो गया था जो कि हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात थी. सूरज ने नयी जगह पर एक नर्सरी खोल ली. जो कि उसकी महनत से अच्छा चल बैठा. मेरी पहली प्रेग्नेन्सी जो की शादी से पहले ही हो गयी थी मिसकॅरियेज हो गया था. हम दोनो बच्चों के मामले मे कोई भी जल्दी बाजी नहीं करना चाहते थे.


इसलिए हमने काफ़ी सुरक्षा के साथ ही संभोग किया. रचना की शादी वहीं पास के एक फॉरेस्ट ऑफीसर अरुण से हो गयी. रचना यू.पी. से बिलॉंग करती थी. अरुण बहुत ही हँसमुख और रंगीन मिज़ाज आदमी था. उसकी पोस्टिंग हमारे हॉस्पिटल से 80 किमी दूर एक जंगल मे थी. शुरू शुरू मे तो हर दूसरे दिन भाग आता था. कुच्छ दिनों बाद हफ्ते मे दो दिन के लिए आने लगा. हम चारों आपस मे काफ़ी खुले हुए थे. अक्सर आपस मे रंगीले जोक्स और द्विअर्थि संवाद करते रहते थे.



उसकी नज़र शुरू से ही मुझ पर थी. मगर ना तो मैने उसे कभी लिफ्ट दिया ना ही उसे ज़्यादा आगे बढ़ने का मौका मिला. होली के समय ज़रूर मौका देख कर रंग लगाने के बहाने मुझसे लिपट गया था और मेरे कुर्ते मे हाथ डाल कर मेरी चूचियो को कस कर मसल दिया था. उसकी इस हरकत पर किसी की नज़र नहीं पड़ी थी इसलिए मैने भी चुप रहना बेहतर समझा. वरना बेवजह हम सहेलियों मे दरार पड़ जाती. मैं उससे ज़रूर अब कुच्छ कतराने लगी थी. मगर वो मेरी निकट ता के लिए मौका खोजता रहता था. रचना को शादी के साल भर बाद ही मैके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी.


अब अरुण कम ही आता था. आकर भी उसी दिन ही वापस लौट जाता था. अचानक एक दिन दोपहर को पहुँच गया. साथ मे एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया. उनका कोई आदमी पेड से गिर पड़ा था. बॅकबोन. मे इंजुरी थी. रास्ता खराब था इसलिए उसे लेकर नहीं आए.



मुझे साथ ले जाने के लिए आए थे. मैने झटपट हॉस्पिटल मे इनफॉर्म किया और सूरज को बता कर अपना समान ले कर निकल गयी. निकलते निकलते दो बज गये थे. 80 की. का फासला कवर करते करते हमे ढाई घंटे लग गये. वो तीनो सूमो मे आगे की सीट पर बैठे थे. दोनो के बीच मे मे फँसी हुई थी. रास्ता बहुत उबड़ खाबड़ था. हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भीड़ रहे थे. मौका देख कर अरुण बीच बीच मे मेरे एक स्तन को कोहनी से दाब देता. कभी जांघों पर हाथ रख देता था. मुझे तब लगा कि मैने सामने बैठ कर ग़लती की थी.


हम शाम तक वहाँ पहुँच गये. मरीज को चेकप करने मे शाम के सिक्स ओ'क्लॉक हो गये. यहाँ शाम कुच्छ जल्दी हो जाती है. नवेंबर का महीना था मौसम बहुत रोमॅंटिक था. मगर धीरे धीरे बदल घिरने लगे थे मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी.


"इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपडे मे." अरुण ने कहा मगर मेरे टावर कर देखने पर वो चुप हो गया.


"चलो मुझे छोड़ आओ."मैने कहा.


"चल रे मुकुल, मॅडॅम को घर छ्चोड़ आएँ."


हम वापस सूमो मे वैसे ही बैठ गये और रिटर्न यात्रा शुरू हो गयी. मैं पीछे बैठने लगी थी की अरुण ने रोक दिया.


"कहाँ पीछे बैठ रही हो. सामने आ जाओ. बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा."


"लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखोगे वरना मैं रचना से बोल दूँगी." मैने उसे चेताया.


"अरे उस हिट्लर को मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छि ख़ासी रॅगिंग ले लेगी."


मैं उसकी बात सुन कर हँसने लगी. और मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फँस गयी.अचानक मूसलाधार बेरिश शुरू हो गयी. जुंगल के अंधेरे राश्तो मे ऐसी बरसात मे गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था. अचानक गाड़ी जंगल के बीच मे झटके खाकर रुक गयी. अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा. गाड़ी चेक किया मगर कोई खराबी पकड़ मे नहीं आई. कुच्छ देर बाद वापस आ गया.वो पूरी तरह भीग चुक्का था. "कुच्छ नहीं हो सकता."


उसने कहा"चलो नीचे उतर कर धक्का लगाओ.
हो सकता है कि चल जाए."


"मगर….बरसात…"मैं बाहर देख कर कुच्छ हिचकिचाई.


"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतेज़ार करो"उसने कहा"अब
इस बरसात का भी क्या भरोसा. हो सकता है सारी रात बरसता रहे.


इसीलिए तुम्हें रात को वहीं रुकने को कहा था."


मैं नीचे उतर गयी. बरसात की परवाह ना कर मैं और मुकुल दोनो काफ़ी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली. रात के आठ बज रहे थे. मैं पूरी तरह गीली हो गयी थी. मैं पीछे की सीट पर बैठ गयी. अरुण ने अंदर की लाइट ओन की. मैने रुआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा. अरुण बॅक मिरर से मेरे बदन का अवलोकन कर रहा था. चूचियो से सारी सरक गयी थी. सफेद ब्लाउस और ब्रा बरसात मे भीग कर पारदर्शी हो गयी थी. निपल सॉफ सॉफ नज़र आरहे थे. मैने जल्दी से अपनी छातियो को सारी से छिपा लिया.


उसने भी लाइट बंद कर दी. रात अंधेरे में दो गैर मर्दों का साथ दिल को डुबाने के लिए काफ़ी था. कुच्छ देर बाद बरसात बंद हो गयी मगर ठंडी हवा चलने लगी. बाहर कभी कभी जानवरों के आवाज़ सुनाई दे रही थी.अरुण और मुकुल गाड़ी से निकल गये. उन्हों ने अपने अपने वस्त्र उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए. मैं ठंड से काँप रही थी. शरम की वजह से गीले कपड़े भी उतार नहीं पा रही थी. अरुण मेरे पास आया "देखो नीलम घुप अंधेरा है. तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो." अरुण ने कहा."वरना ठंड लग जाएगी."


"कुच्छ है पहन ने को?" मैने पूछा "मैं शरम से दोहरी हो गयी."


"नहीं!" अरुण ने कहा "हमारे पहने कपड़े भी तो भीग चुके हैं.


पहले से थोड़ी मालूम था कि हमे रात जंगल मे गुजारनी पड़ेगी.


वैसे देखना रीच्छ बहुत सेक्सी जानवर होते हैं.सुंदर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं."


"मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. कोई कंबल होगा?"मैने पूछा. "पिक्निक पे गये थे क्या." अरुण मज़ाक कर रहा था. "सर, एक पुरानी फटी हुई चादर है. अगर उस से काम चल जाए.." मुकुल ने कहा. "दिखा नीलम को." अरुण ने कहा.


मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी. गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते ही लाइट बंड हो गयी. दो मर्दों के सामने वस्त्र उतारने के ख़याल से ही शर्म अरही थी. मगर करने को कुच्छ नहीं था ठंड के मारे दाँत बज रहे थे. ऐसा लग रहा था मैं बर्फ की सिल्लिओ से घिरी हुई हूँ. मैने झिझकते हुए अपनी सारी उतार दी. मगर उस से भी राहत नहीं मिली तो चारों ओर देखा. अंधेरा घना था कुच्छ भी दिखाई नहीं दे रहा था. मैने एक एक कर के ब्लाउस के सारे बटन खोल दिए.


चारों ओर नज़र दौड़ाई. कुच्छ भी नहीं दिख रहा था . फिर ब्लाउस को बदन से उतार दिया. उसके बाद मैने अपनी पेटिकोट भी उतार दी. मैं अब सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी मे थी. ब्रा को भी मैने बदन से अलग कर दिया. और उस चादर से बदन को लप्पेट लिया. गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर मैने उन्हे निचोड़ कर सुखाने का सोचा मगर दरवाज़ा खोलते ही बत्ती जल गयी. मेरे बदन पर केवल एक चिथड़े हुई चादर बेतरतीब तरीके से लिपटी हुई थी. आधा बदन साफ नज़र अरहा था. मेरा दायां वक्ष पर से चादर हटा हुआ था.


मैने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी छाती को घूर रहा है. मैने झट चादर को ठीक किया. चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक अंग ढकति तो दोसरा बाहर निकल आता. दोनो मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे. मैने दरवाजा बंद कर दिया. बत्ती बंद हो गयी. "अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ों को सूखने देदो." मैने कहा.
क्रमशः................................



Doctor ki chut chudaai --1


Jaisa ki pichhlee story me bataya tha ki meri shaadi ke baad mera transfer doosree jagah ho gaya tha. Mare saath meri pyaari saheli Rachna ka bhi transfer usi jagah ho gaya tha jo ki humaare liye bahut hi khushi ki baat thi. Sooraj ne naye jagah par ek nursery khol li. Jo ki uski mahnat se achchha chal baitha. Meri pehli pregnancy jo ki shadi se pahle hi ho gayi thi miscarriage ho gaya tha. Hum dono bachchon ke mamle me koi bhi jaldi baaji nahin karna chahte the.


Isliye humne kaafi suraksha ke saath hi sambhog kiya. Rachna ki shaadi waheen paas ke ek forrest officer Arun se ho gayi. Rachna U.P. se belong karti thi. Arun bahut hi hansmukh aur rangeen mijaj aadmi tha. Uski posting hamare hospital se 80 kms door ek jungle me thi. Shuru shuru me to har doosre din bhag ata tha. Kuchh dinon baad hafte me do din ke liye ane laga. Hum chaaron apas me kaafi khule huye the. Aksar apas me rangeele jokes aur dwiarthi samvad karte rahte the.



Uski najar shuru se hi mujh par thi. Magar na to maine use kabhi lift diya na hi use jyada age badhne ka mauka mila. Holi ke samay jaroor mauka dekh kar rang lagane ke bahane mujhse lipat gaya tha aur mere kurte me hath daal kar meri chhatiyon ko kas kar masal diya tha. Uski is harkat par kisi ki najar nahin padi thi isliye maine bhi chup rahna behtar samjha. Warna bewajah hum saheliyon me darar pad jaati. Mai usese jaroor ab kuchh katrane lagi thi. Magar wo mere nikat ta ke liye mauka khojta rahta tha. Rachna ko shaadi ke saal bhar baad hi maike jaana pad gaya kyonki who pregnant thi.


Ab Arun kam hi ata tha. Akar bhi usi din hi wapas laut jata tha. Achanak ek din dopahar ko pahunch gaya. Saath me ek aur uska saathi tha jiska naam usne mukul bataya. Unka koi aadmi pedh se gir pada tha. Backbone me injury thi. Rasta kharab tha isliye use lekar nahin aaye.



Mujhe saath le jane ke liye aye the. Maine jhatpat hospital me inform kiya aur Sooraj ko bata kar apna saman le kar nikal gayi. Nikalte nikalte do baj gaye the. 80 kms ka fasla cover karte karte hume dhai ghante lag gaye. Hu teeno sumo me age ki seat par baithe the. Dono ke beech me mai fansi hui thi. Rasta bahut ubar khabar tha. Hichkole lag rahe the. Hum ek doosre se bhid rahe the. Mauka dekh kar Arun beech beech me mere ek stan ko kohni se daab deta. Kabhi janghon par haath rakh deta tha. Mujhe tab laga ki maine samne baith kar galti ki thi.


Hum shaam tak wahan pahunch gaye. Mareej ko checkup karne me shaam ke six o'clock ho gaye. Yahan sham kuchh jaldi ho jati hai. November ka maheena tha mausam bahut romantic tha. Magar dheere dheere badal ghirne lage the mai jaldi apna kaam nipta kar raat tak ghar laut jana chahti thi.


"itni jaldi kya hai? Aaj raat yahin ruk jao mere jhopde me." Arun ne kaha magar mere tarer kar dekhne par who chup ho gaya.


"chalo mujhe chod aao."maine kaha.


"chal re Mukul, madamme ko ghar chhod ayen."


Hum waps sumo me waise hi baith gaye aur return jeorney shuru ho gaya. Mai peechhe baithne lagi thi ki Arun ne rok diya.


"kahan peechhe baith rahi ho. Samne a jao. Baten karte huye rasta gujar jayega."


"lekin tum apni harkaton par kaboo rakhoge warna mai Rachna se bol doongi." Mine use chetaya.


"Are us Hitler ko mat batana nahin to who meri achchhi khasi ragging le legi."


Mai uski baat sun kar hansne lagi. Aur mai uski chikni chupdi baton se phans gayee.Achanak moosladhaar bearish shuru ho gayi. Junle ke andhere rashton me aisi barsaat me gadi chalana bhi ek mushkil kaam tha. Achcnak gadi jungle ke beech me jhatke khakar ruk gayee. Arun torch lekar neeche utra. Gadi check kiya magar koi kharabi pakad me nahin ayee. Kuchh der baad wapas a gaya.who poori trah bheeg chukka tha. "kuchh nahin ho sakta."


Usne kaha"chalo neeche utar kar dhakka lagao.
Ho sakta hai ki chal jaye."


"magar….barsaat…"mai bahar dekh kar kuchh hichkichai.


"nahin to jab tak barsaat na ruke tab tak intezar karo"usne kaha"ab
is barsaat ka bhi kya bharosa. Ho sakta hai saari raat barasta rahe.


Isiliye tumhhen raat ko waheen rukne ko kaha tha."


Mai neeche utar gayee. Barsaat ki parwah na kar mai aur Mukul dono kafi der tak dhakke marte rahe magar gadi nahin chali. Raat ke aath baj rahe the. Mai poori tarah geeli ho gayee thi. Mai peechhe ki seat par baith gayi. Arun andar ki light on ki. Maine ruansee nazaron se Arun ki taraf dekha. Arun back mirror se mere badan ka avlokan kar raha tha. Chhatiyon se sari srak gayi thi. Safed blouse aur bra barsaat me bheeg kar pardarshi ho gayee thi. Nipple saaf saaf najar aarahe the. Maine jaldi se apni chhatiyon ko sari se chhipa liya.


Usne bhi light band kar dee. Raat andhere men do gair mardon ka sath dil ko dubane ke liye kafi tha. Kuchh der baad barsaat band ho gayi magar thandi hawa chalne lagi. Bahar kabhi kabhi janwaron ke awaj sunai de rahi thi.Arun aur Mukul gadi se nikal gaye. Unhon ne apne apne wastra utar liye aur nichod kar sokhne rakh diye. Mai thand se kaanp rahi thi. Sharam ki wajah se geele kapde bhi utar nahin paa rahi thi. Arun mere pass aya "dekho neelam ghup andhera hai. Tum apne geele vastra utar do." Arun ne kaha."warna thand lag jayegi."


"kuchh hai pahan ne ko?" maine poochha "mai sharam se dohri ho gayi."


"Nahin!" Arun ne kaha "humare pahne kapde bhi to bhig chuke hain.


Pahle se thodi maloom tha ki humen raat jungle me gujaarni padegi.


Waise dekhna reechh bahut sexy janwar hote hain.sunder sexy mahilaon ko dekh kar unpar toot padte hain."


"meri to yahan jaan ja rahi hai aur tumhe majak soojh raha hai. Koi kambal hoga?"maine poochha. "picnic pe gaye the kya." Arun majak kar raha tha. "Sir, ek purani phati hui chaddar hai. Agar us se kaam chal jaye.." Mukul ne kaha. "dikha Neelam ko." Arun ne kaha.


Mukul ne peechhe se ek phati purani chadar nikaali aur mujhe dee. Gadi ka darwaza band karte hi light bund ho gayi. Do mardon ke samne vastra utarne ke khayal se hi sharm arahee thi. Magar karne ko kuchh nahin tha thand ke mare dant baj rahe the. Aisa lag raha tha mai barf ki sillion se ghiri hui hoon. Maine jhijhakte hue apni saari utar dee. Magar us se bhi rahat nahin mili to charon or dekha. Andhera Ghana tha kuchh bhi dikhai nahin de raha tha. Maine ek ek kar ke blouse ke saare button khol diye.


Chaaron or nazar daurai. Kuchh bhi nahin dikh raha tha . Phir blouse ko badan se utar diya. Uske baad maine apne petticoat bhi utar dee. Mai aab sirf bra aur panty me thi. Bra ko bhi maine badan se alag kar diya. Aur us hadar se badan ko lappet liya. Gadi ka darwaza khol kar maine unhe nichod kar sukhane ka socha magar darwaza kholte hi batti jal gayi. Mere badan par kewal ek chithde hui chadar betarteeb tareeke se lipti hui thi. Adha badan saaf najar araha tha. Mera dayan vaksh par se chadar hata hua tha.


Maine dekha Arun bhochakka sa ektak meri chhati ko ghoor raha hai. Maine jhat chadar ko thik kiya. Chadar kai jagah se fati hui thi isliye ek ang dhakti to dosra bahar nikal ata. Dono mere nivastra yovan ko nihar rahe the. Maine darwaja band kar diya. Batti band ho gayi. "Arun please mere kapdon ko sukhne dedo." Maine kaha.
kramashah................................







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