हुई चौड़ी चने के खेत में-1
लेखक : प्रेम गुरु
प्रेषिका : स्लिमसीमा (सीमा भारद्वाज)
चोदन चोदन सब करें, चोद सके न कोय,
कबीर जब चोदन चले लण्ड खड़ा न होय ....
..... प्रेम गुरु की याद में
प्रिय पाठकों और पाठिकाओ !
मैं (सीमा भारद्वाज) भी आप सभी की तरह प्रेम गुरु की कहानियों की बहुत
बड़ी प्रसंशक हूँ। वो एक अच्छे लेखक ही नहीं बहुत अच्छे इंसान और मित्र
भी हैं। मैंने उनकी कुछ कहानियों के हिंदी रूपांतरण में सहयोग किया था।
इसी सम्बन्ध में उन्होंने मुझे अपनी कुछ अप्रकाशित कहानियाँ पिछले दिनों
भेजी थी। आप तो जानते हैं आजकल प्रेम ने कहानी लिखना और पाठकों को मेल
करना बंद कर दिया है पर आप सभी के प्रेम और आग्रह पर वो इन कहानियों को
हिंदी सेक्सी कहानियाँ में प्रकाशन हेतु भेजने को मान गए हैं। उनके
द्वारा रचित कथा,"हुई चौड़ी चने के खेत में" नीचे दे रही हूँ आशा है आपको
पसंद आएगी :
मेरे मिट्ठू प्रेम !
सबसे पहले तो मैं तुम्हारा धन्यवाद करना चाहती हूँ। तुम्हारे सहयोग से
मेरी कहानी "जब वी मेट" अन्तर्वासना पर प्रकाशित हो पाई। इस कहानी के बाद
मुझे बहुत से चिकने लौंडों के मेल्स और चुदाई के प्रस्ताव आये थे। मैंने
उनमें से 4-5 को आजमाया भी पर सच कहूँ तो इन नौसिखिये पप्पुओं से मुझे
ज्यादा मज़ा नहीं आया। तुम सोच रहे होगे मैं इतनी चुदक्कड़ क्यों हूँ।
ओह.. मेरे मिट्ठू ! तुम तो मेरी इस रसीली और उफनती जवानी का मज़ा लूट ही
चुके हो क्या तुम्हें नहीं पता मैं कितनी कामुक हूँ। मुझे पराये मर्दों
से अपने गुप्तांगों का मर्दन करवाना, उनको चुसवाना और अपनी प्यासी चूत को
अलग अलग लंडों से नए नए आसनों में चुदवाना बहुत पसंद है। दरअसल मेरी इस
कामुकता का एक कारण है। चलो मैं पूरी बात बताती हूँ :
मैंने अपनी शादी से पहले ही चुदाई का मज़ा लेना शुरू कर दिया था। गणेश के
साथ शादी होने के बाद पहली ही रात में मुझे पता चल गया था कि मैंने उससे
शादी करके गलती की है। मैं तो सोचती थी कि सुहागरात में वो मुझे कम से कम
3-4 बार तो कस कस कर जरूर रगड़ेगा और अपनी धमाकेदार चुदाई से मेरे सारे
कस-बल निकाल देगा। पर पता नहीं क्या दिक्कत थी उसका लंड अकड़ता तो था पर
चुदाई से पहले ही मेरी फुदकती चूत की गर्मी से उसकी मलाई दूध बन के निकल
जाती थी। ऐसा लगता था कि उसका लंड मेरी चूत में केवल मलाई छोड़ने के लिए
ही जाता है। एक तो उसका लंड वैसे ही बहुत छोटा और पतला है मुश्किल से 3-4
धक्के ही लगा पाता कि उसका रस निकल जाता है और मैं सारी रात बस करवटें
बदलते या बार बार अपनी निगोड़ी छमक छल्लो में अंगुली करती रहती हूँ।
सुहागरात तो चलो जैसे मनी ठीक है पर उसने एक काम जरूर किया था कि मेरी
छमिया की फांकों के बीच बनी पत्तियों (कलिकाओं) में नथ (सोने की पतली
पतली दो बालियाँ) जरुर पहना दी थी। अब जब भी कभी मेरा मन चुदाई के लिए
बेचैन हो जाता है तो मैं ऊपर से उन बालियों को पकड़ कर सहलाती रहती हूँ।
हमारी शादी को 6 महीने हो गए थे। सच कहूँ तो मुझे अपनी पहली चुदाई की याद
आज तक आती रहती है। मुझे उदास देख कर गणेश ने प्रस्ताव रखा कि हम कुछ
दिनों के लिए जोधपुर घूमने चलें। जोधपुर में इनके एक चचेरे भाई जगनदास
शाह रहते हैं। जोधपुर में उनकी पक्की हवेली है और शहर से कोई 15-20
किलोमीटर दूर फार्म हाउस भी है। मार्च के शुरुआती दिन थे और मौसम बहुत
सुहावना था। जिस प्रकार बसन्त ऋतु ने अंगड़ाई ली थी मेरी जवानी भी उस समय
अपने पूरे शबाब पर ही तो थी और निगोड़ी चूत की खुजली तो हर समय मुझे यही
कहती थी कि सारी रात एक लंबा और मोटा लंड डाले ही पड़ी रहूँ।
घर में जगन की पत्नी मंगला (32) और एक बेटी ही थी बस। जगन भी 35-36 के
लपेटे में तो जरूर होगा पर अभी भी बांका गबरू जवान पट्ठा लगता था। छोटी
छोटी दाढ़ी, कंटीली मूंछें और कानों में सोने की मुरकियाँ (बालियाँ) देख
कर तो मुझे सोहनी महिवाल वाला महिवाल याद आ जाता और बरबस यह गाना गाने को
मन करने लगता :
जोगियाँ दे कन्ना विच कच्च दीयां मुंदराँ
वे मुंदराँ दे विच्चों तेरा मुँह दिसदा
मैं जिहड़े पासे वेखां मेनू तू दिसदा
जब वो मुझे बहूजी कहता तो मुझे बड़ा अटपटा सा लगता पर मैं बाद में
रोमांचित भी हो जाती। उन दोनों ने हमारा जी खोल कर स्वागत किया। रात को
गणेश तो थकान के बहाने जल्दी ही 36 होकर (गांड मोड़ कर) सो गया पर बगल
वाले कमरे से खटिया के चूर-मूर और कामुक सीत्कारें सुनकर मैं अपनी चूत
में अंगुली करती रही। मेरे मन में बार बार यही ख़याल आ रहा था कि जगन का
लंड कितना बड़ा और कितना मोटा होगा।
आज सुबह सुबह गणेश किसी काम से बाहर चला गया तो मंगला ने अपने पति से कहा
कि नीरू को खेत (फार्म हाउस) ही दिखा लाओ। मैंने आज जानबूझ कर चुस्त
सलवार और कुरता पहना था ताकि मेरे गोल मटोल नितम्बों की लचक और भी बढ़
जाए और तंग कुर्ते में मेरी चूचियाँ रगड़ खा-खा कर कड़ी हो जाएँ। मैंने
आँखों पर काला चश्मा और सर पर रेशमी स्कार्फ बाँधा था। जगन ने भी कुरता
पायजामा पहना था और ऊपर शाल ओढ़ रखी थी।
जीप से फार्म हाउस पहुँचने में हमें कोई आधा घंटा लगा होगा। पूरे खेत में
सरसों और चने की फसल अपने यौवन पर थी। खेत में दो छोटे छोटे कमरे बने थे
और साथ में एक झोपड़ी सी भी थे जिसके पास पेड़ के नीचे 2-3 पशु बंधे थे।
पास ही 4-5 मुर्गियाँ घूम रही थी। हमारी गाड़ी देख कर झोपड़ी से 3-4
बच्चे और एक औरत निकल कर बाहर आ गए। औरत की उम्र कोई 25-26 की रही होगी।
नाक नक्स तीखे थे और रंग गोरा तो नहीं था पर सांवला भी नहीं कहा जा सकता
था। उसने घाघरा और कुर्ती पहन रखी थी और सर पर लूगड़ी (राजस्थानी ओढ़नी)
ओढ़ रखी थी। इन कपड़ों में उसके नितंब और उरोज भरे पूरे लग रहे थे।
"घणी खम्मा शाहजी !" उस औरत ने अपनी ओढनी का पल्लू थोड़ा सा सरकाते हुए कहा।
"अरी....कम्मो ! देख आज बहूजी आई हैं खेत देखने !"
"घनी खम्मा बहूजी....आओ पधारो सा !" कम्मो ने मुस्कुराते हुए हमारा स्वागत किया।
"वो....गोपी कहाँ है ?" जगन ने कम्मो से पूछा।
"जी ओ पास रै गाम गया परा ए !" (वो पास के गाँव गए हैं)
"क्यूँ ?"
"वो आज रात सूँ रानी गरम होर बोलने लाग गी तो बस्ती ऊँ झोटा ल्याण रै
वास्ते गया परा ए..."
"ओ.... अच्छा ठीक है।" जगन ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और फिर कम्मो
से बोला,"तू बहूजी को अंदर लेजा और हाँ... इनकी अच्छे से देख भाल करियो..
हमारे यहाँ पहली बार आई हैं खातिर में कोई कमी ना रहे !" कहते हुए जगन
पेड़ के नीचे बंधे पशुओं की ओर चला गया।
रानी और झोटे का क्या चक्कर था मुझे समझ नहीं आया। मैं और कम्मो कमरे में
आ गए। बच्चे झोपड़े में चले गए। कमरे में एक तख्तपोश (बेड) पड़ा था। दो
कुर्सियाँ, एक मेज, कुछ बर्तन और कपड़े भी पड़े थे।
मैं कुर्सी पर बैठ गई तो कम्मो बोली,,"आप रै वास्ते चाय बना लाऊँ ?"
"ना जी चाय-वाय रहने दो, आप मेरे पास बैठो, आपसे बहुत सी बातें करनी हैं।"
वो मेरे पास नीचे फर्श पर बैठ गई तो मैंने पूछा,"ये रानी कौन है ?"
"ओ रई रानी.... देखो रात सूँ कैसे डाँ डाँ कर रई है ?" उसने हँसते हुए
पेड़ के नीचे खड़ी एक छोटी सी भैंस की ओर इशारा करते हुए कहा।
"क्यों ? क्या हुआ है उसे ? कहीं बीमार तो नहीं ? मैंने हैरान होते हुए पूछा।
"ओह... आप भी.... वो... इसको अब निगोड़ी जवानी चढ़ आई है। पिया मिलन रै
वास्ते बावली हुई जा रई है।" कह कर कम्मो खिलखिला कर हँसने लगी तो मेरी
भी हंसी निकल गई।
"अच्छा यह पिया-मिलन कैसे करेगी ?"
"आप अभी थोड़ी देर में देख लीज्यो झोटा इसके ऊपर चढ़ कर जब अपनी गाज़र
इसकी फुदकणी में डालेगा तो इसकी गर्मी निकाल देवेगा।"
अब आप मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने
लगा था और मेरी छमक छल्लो तो इस ख्याल से ही फुदकने लगी थी कि आज मुझे
जबरदस्त चुदाई देखने को मिलने वाली है। मैंने कई बार गली में कुत्ते
कुत्तियों को आपस में जुड़े हुए जरुर देखा था पर कभी पशुओं को सम्भोग
करते नहीं देखा था।
उधर वो भैंस बार बार अपनी पूंछ ऊपर करके मूत रही थी और जोर जोर से रम्भा रही थी।
थोड़ी ही देर में दो आदमी एक झोटे (भैंसे) को रस्सी से पकड़े ले आये। जगन
उस पेड़ के नीचे उस भैंस के पास ही खड़ा था। आते ही उन्होंने जगन को 'घनी
खम्मा' कहा और फिर उस झोटे को थोड़ी दूर एक खूंटे से बाँध आये। झोटा उस
भैंस की ओर देखकर अपनी नाक ऊपर करके हवा में पता नहीं क्या सूंघने की
कोशिश कर रहा था।
एक आदमी तो वहीं रुक गया और दूसरा हमारे कमरे की ओर आ गया। उसकी उम्र कोई
45-46 की लग रही थी। मुझे तो बाद में समझ आया कि यही तो कम्मो का पति
गोपी था।
उसने कम्मो को आवाज लगाई,"नीतू री माँ झोटे रे वास्ते चने री दाल भिगो दी थी ना ?"
"हाँ जी सबेरे ही भिगो दी थी।"
"ठीक है।" कह कर वो वापस चला गया और उसने साथ आये आदमी की ओर इशारा करते
हुए कहा,"सत्तू ! जा झोटा खोल अर ले आ।"
अब गोपी उस भैंस के पास गया और उसके गले में बंधी रस्सी पकड़ कर मुस्तैद
(चौकन्ना) हो गया। सत्तू उस झोटे को खूंटे से खोल कर भैंस की ओर ले आया।
झोटा दौड़ते हुए भैंस के पास पहुँच गया और पहले तो उसने भैंस को पीछे से
सूंघा और फिर उसे जीभ से चाटने लगा। अब भैंस ने अपनी पूछ थोड़ी सी ऊपर
उठा ली और थोड़ी नीचे होकर फिर मूतने लगी। झोटे ने उसका सारा मूत चाट
लिया और फिर उसने एक जोर की हूँकार की। सत्तू उसकी पूँछ पकड़ कर मरोड़
रहा था और साथ साथ हुस...हुस... भी किये जा रहा था। गोपी अब थोड़ा और
सावधान सा हो गया।
अब कम्मो दरवाजा बंद करने लगी। उसने बच्चों को पहले ही झोपड़े के अंदर
भेज दिया था। इतना अच्छा मौका मैं भला कैसे छोड़ सकती थी। मैंने एक दो
बार डिस्कवरी चेनल पर पशुओं को सम्भोग करते देखा था पर आज तो लाइव शो था,
मैंने उसे दरवाज़ा बंद करने से मना कर दिया तो वो हँसने लगी।
अब मेरा ध्यान झोटे के लंड की ओर गया। कोई 10-12 इंच की लाल रंग की गाज़र
की तरह लंबा और मोटा लंड उसके पेट से ही लगा हुआ था और उसमें से थोड़ा
थोड़ा सफ़ेद तरल पदार्थ सा भी निकल रहा था। मैंने साँसें रोके उसे देख
रही थी। अचानक मेरे मुँह से निकल गया,"हाय राम इतना लंबा ?"
मुझे हैरान होते देख कम्मो हंसने लगी और बोली,"जगन शाहजी का भी ऐसा ही
लंबा और मोटा है।"
मैं कम्मो से पूछना चाहती थी कि उसे कैसे पता कि जगन का इतना मोटा और
लंबा है पर इतने में ही वो झोटा अपने आगे के दोनों पैर ऊपर करके उछाला और
भैंस की पीठ पर चढ़ गया। उसका पूरा लंड एक झटके में भैंस की चूत में समां
गया। मेरी आँखें तो फटी की फटी रह गई थी। मुझे तो लग रहा था कि वह उस
झोटे का वजन सहन नहीं कर पाएगी पर वो तो आराम से पैर जमाये खड़ी रही।
किसी जवान लड़की या औरत के साथ भी ऐसा ही होता है। देखने में चाहे वो
कितनी भी पतली या कमजोर लगे अगर उसकी मन इच्छा हो तो मर्द का लंड कितना
भी बड़ा और मोटा हो आराम से पूरा निगल लेती है।
सत्तू अभी भी झोटे की पीठ सहला रहा था अब झोटे ने हूँ...हूँ...करते हुए
4-5 झटके लगाए। अब झोटे ने एक और झटका लगाया और फिर धीरे धीरे नीचे उतरने
लगा। होले होले उसका लंड बाहर निकलने लगा। अब मैंने ध्यान से देखा झोटे
का लंड एक फुट के आस पास तो होगा ही। नीचे झूलता लंड आगे से पतला था पर
पीछे से बहुत मोटा था जैसे कोई मोटी लंबी लाल रंग की गाज़र लटकी हो। लंड
के अगले भाग से अभी भी थोड़ा सफ़ेद पानी सा (वीर्य) निकल रहा था। भैंस ने
अपना सर पीछे मोड़ कर झोटे की ओर देखा। सत्तू झोटे को रस्सी से पकड़ कर
फिर खूंटे से बाँध आया।
मेरी बहुत जोर से इच्छा हो रही थी कि अपनी छमिया में अंगुली या गाजर डाल
कर जोर जोर से अंदर बाहर करूँ। कोई और समय होता तो मैं अभी शुरू हो जाती
पर इस समय मेरी मजबूरी थी। मैंने अपनी दोनों जांघें जोर से भींच लीं।
मुझे कम्मो से बहुत कुछ पूछना था पर इस से पहले कि मैं पूछती वो उठ कर
बाहर चली गई और चने की दाल वाली बाल्टी गोपी को पकड़ा आई। फिर जगन ने साथ
आये उस आदमी को 200 रुपये दिए और वो दोनों झोटे को दाल खिला कर उसे लेकर
चले गए। जगन खेत में घूमने चला गया।
"बहूजी थारे वास्ते खाना बना लूँ ?" कम्मो ने उठते हुए कहा।
"आप मुझे बहूजी नहीं, बस नीरू बुलाएं और खाने की तकलीफ रहने दो... बस
मेरे साथ बातें करो !"
"यो ना हो सके जी थे म्हारा मेहमान हो बिना खाना खाए ना जाने दूँगी। आप
बैठो, मैं बस अभी आई।"
"चलो, मैं भी साथ चलती हूँ।"
मैं उसके साथ झोपड़े में आ गई। बच्चे बाहर खेलने चले गए। उसने खाना बनाना
चालू कर दिया। अब मैंने कम्मो से पूछा,"ये गोपी तो उम्र में तुमसे बहुत
बड़ा लगता है?"
"म्हारी तकदीर ही खोटी है ज॥" कम्मो कुछ उदास सी हो गई।
वो थोड़ी देर चुप रही फिर उसने बताया कि दरअसल गोपी के साथ उसकी बड़ी बहन
की शादी हुई थी। कोई 10-11 साल पहले तीसरी जचगी के समय उसकी बहन की मौत
हो गई तो घर वालों ने बच्चों का हवाला देकर उसे गोपी के साथ खूंटे से
बाँध दिया। उस समय कम्मो की उम्र लगभग 15 साल ही थी। उसने बताया कि उसकी
शादी के समय तक उसकी चूत पर तो बाल भी नहीं आने शुरू हुए थे और छाती पर
उरोजों के नाम पर केवल दो नीबू ही थे। सुहागरात में गोपी ने उसे इतनी
बुरी तरह रगड़ा था कि सारी रात उसकी कमसिन चूत से खून निकालता रहा था और
फिर वो बचारी 5-6 दिन तक ठीक से चल भी नहीं पाई थी। अब जब कम्मो पूरी तरह
जवान हुई है तो गोपी नन्दलाल बन गया है। वो कहते हैं ना :
चोदन चोदन सब करें, चोद सके न कोय
कबीर जब चोदन चले, लंड खड़ा न होय
"तो तुम फिर कैसे गुज़ारा करती हो ?" मैंने पूछा तो वो हँसने लगी।
फिर उसने थोड़ा शर्माते हुए सच बता दिया,"शादी का 3-4 साल बाद हम यहाँ आ
गए थे। हम लोगों पर शाहजी (जगन) के बहुत अहसान हैं। और वैसे भी गरीब की
लुगाई तो सब की भोजाई ही होवे है। शाहजी ने भी म्हारे साथ पहले तो हंसी
मजाक चालू कियो फिर म्हारी दोना री जरुरत थी। थे तो जाणों हो म्हारो पति
तो मरियल सो है और मंगला बाई सा को गांड मरवाना बिलकुल चोखा ना लागे।
थाने बता दूं शाहजी गांड मारने के घणे शौक़ीन हैं !"
अब मुझे समझ आया कि उसके 2 बच्चों की उम्र तो 12-13 साल थी पर छोटे
बच्चों के 3-4 साल ही थी। यह सब जगन की मेहरबानी ही लगती है। उसकी बातें
सुनकर मेरी चूत इतनी गीली हो गई थी कि उसका रस अब मेरी फूल कुमारी (गांड)
तक आ गया था और पेंटी पूरी गीली हो गई थी। मैंने अपनी छमिया को सलवार के
ऊपर से ही मसलना चालू कर दिया।
अब वो भी बिना शर्माए सारी बात बताने लगी थी। उसने आगे बताया कि जगन
शाहजी का लंड उस झोटे जैसा ही लगता है। रंग काला है और उसका सुपारा मशरूम
की तरह है। वह चुदाई करते समय इतना रगड़ता है कि हड्डियाँ चटका देता है।
चुदाई के साथ साथ वो गन्दी गन्दी गालियाँ भी निकलता रहता है। वो कहता है
इससे लुगाई को भी जोश आ जाता है। मेरी तो एक बार चुदने के बाद पूरे एक
हफ्ते की तसल्ली हो जाती है। मैं तो आधे घंटे की चुदाई में मस्त हो जाती
हूँ उस दौरान 2-3 बार झड़ जाती हूँ।
"क्या उसने तुम्हारी कभी ग... गां... मेरा मतलब है...!" मैं कहते कहते
थोड़ा रुक गई।
"हाँ जी ! कई बार मारते हैं।"
"क्या तुम्हें दर्द नहीं होता ?"
"पहले तो बहुत होता था पर अब बहुत मज़ा आता है।"
"वो कैसे ?"
"मैंने एक रास्ता निकाल लिया है।"
"क....क्या ?" मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी। कम्मो बात को लंबा खींच रही थी।
"पता है वो कोई क्रीम या तेल नहीं लगता ? पहले चूत को जोर जोर से चूस कर
उसका रस निकाल देता है फिर अपने सुपारे पर थूक लगा कर लंड अंदर ठोक देता
है। पहले मुझे गांड मरवाने में बहुत दर्द होता था पर अब जिस दिन मेरा
गांड मरवाने का मन होता है मैं सुबह सुबह एक कटोरी ताज़ा मक्खन गांड के
अंदर डाल देती हूँ। हालांकि उसके बाद भी यह चुनमुनाती तो रहती है पर जब
मैं अपने चूतडों को भींच कर चलती हूँ तो बहुत मज़ा आता है।"
अब आप सोच सकते हो मेरी क्या हालत हुई होगी। मेरा मन बुरी तरह उस मोटे
लंड के लिए कुनमुनाने लगा था। काश एक ही झटके में जगन अपना पूरा लंड मेरी
चूत में उतार दे तो 'झूले लाल' की कसम यह जिंदगी धन्य हो जाए। मेरी छमिया
ने तो इस ख्याल से ही एक बार फिर पानी छोड़ दिया।
कई भागों में समाप्य !
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