हिंदी सेक्सी कहानियाँ
डॉक्टर की चूत चुदाइ --2
गतान्क से आगे...............................
अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए. मेरे बदन पर अब केवल गीली पॅंटी थी जिसको कि मैं अलग नहीं करना चाहती थी. ठंड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था. कुच्छ देर बाद दोनो भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी मे आ गये. दोनो के बदन पर भी बस एक एक पॅंटी थी. उनके निवस्त्र बदन को मैने भी गहरी नज़रों से देखा.
"यार, मुकुल ठंड से तो रात भर मे बर्फ की तरह जम जाएँगे. केबईनेट मे रम की एक बॉटल रखी है उसको निकाल." अरुण ने कहा. मुकुल ने केबईनेट से एक बॉटल निकाली. लाइट जला कर डॅश बोर्ड के अंदर कुच्छ ढूँढने लगा. "सर, ग्लास नहीं है." उसने कहा. "अबे नीट ही ला." अरुण ने बॉटल लेकर मुँह से लगाया और दो घूँट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया.
मुकुल ने भी एक घूँट लिया. "नीलू तू भी दो घूँट लेले सारी सर्दी निकल जाएगी." अरुण ने कहा. " नहीं मैं दारू नहीं पीती" मैने मना कर दिया. मगर कुच्छ ही देर में मुझे अपने फ़ैसले पर गुस्सा आने लगा. वैसे भी दो दो आदमख़ोरों के बीच में मे इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी कि मेरा अपने उपर से कंट्रोल हट जाए. मगर ठंडक ने मेरी मति मार दी. मैं दोनो को पीते हुए देख रही थी. उन्होंने फिर मुझ से पूछा.
इस बार मेरी ना मे दम नहीं था. अरुण ने बॉटल मुझे पकड़ा दी. "अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा. एक डॉक्टर के मुँह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगती." अरुण ने कहा. मैने काँपते हाथों से बॉटल लिया. और मुँह से लगाकर एक घूँट लिया. ऐसा लगा मानो तेज़ाब मेरे मुँह और गले को जलाता हुआ पेट में जा रहा है. मेरे को फॉरन उबकाई आ गई. मैने बड़ी मुश्किल से मुँह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका.
"लो एक और घूँट लो." अरुण ने कहा.
"नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो." मैने कहा.
मगर कुच्छ देर बाद मैने हाथ बढ़ा कर बॉटल ले ली और एक और घूँट लिया. इस बार उतनी बुरी नहीं लगी. "बस और नहीं." मैने बॉटल वापस कर दिया. मेरी इन हरकतों के कारण चादर मेरी एक चूची से हट गया. मेरा सर घूम रहा था. मैं अपने आप को बहुत हल्का फूलका महसूस कर रही थी. अपने ऊपर से कंट्रोल ख़तम होने लगा. शरीर भी गरम हो चला था.
अरुण सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आगेया. मैं सिमट ते हुए सरक गयी मगर वो मेरे पास सरक आया. "देखो अरुण यह सब सही नहीं है." मैने कहा.
" मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ."
"नहीं मुझे नहीं चाहिए."मैं उनको धक्का देती रह गयी मगर उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे समा लिया.
उसके गरम होंठ मेरे होंठों पर चिपक गये. धीरे धीरे मैं कमजोर पड़ती जा रही थी. मैने उसे धकेलने की कोशिश की मगर वो मेरे बदन से और ज़ोर से चिपक गये. एक झटके मे मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया. "मुकुल इसे सम्हाल." अरुण ने चादर आगे की सीट पर फेक दी जिसे मुकुल ने सम्हाल लिया. मेरे बदन पर अब सिर्फ़ एक पॅंटी की अलावा कुच्छ भी नहीं था. मैं हाथ पैर फेक रही थी..
मुकुल को धकेलते हुए कहा"छ्चोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउंगी" "मचाओ शोर. जितना चाहे चीखो यहाँ मीलो तक सिर्फ़ पेड और जानवरों के सिवा तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है." मुकुल ने लाइट जलादी और हमारी रासलीला देखने लगा. अरुण के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. उसके नग्न बदन से मेरा बदन चिपका हुआ था.
मैने काफ़ी बचने की कोशिश की अपनी सहेली की दुहाई भी दी मगर दोनो पूरे राक्षश बन चुके थे. मेरा विरोध भी धीरे धीरे मंद पड़ता जा रहा था. उसने मेरे उरोज थाम लिए और निपल्स अपने मुँह मे ले कर चूसने लगा. अपने एक हाथ से अपने बदन से आखरी वस्त्र भी उतार दिया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लिंग पर रख दिया.
मैने हटाने की कोशिश की मगर उसके हाथ मजबूती से मेरे हाथ को लिंग पर थाम रखे थे. शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा. कुच्छ देर बाद मैने अपने को ढीला छ्चोड़ दिया. उसके हाथ मेरे उरजों को मसल्ने लगे. उसके होंठ मेरे होंठों से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुँह के अंदर घूम रही थी. मुकुल से अब नहीं रहा गया और वो दूसरी साइड का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया. उसने पहले सीट के लीवर को खोल कर चौड़ा कर दिया.
पीछे की सीट ने खुल कर एक आरामदेह बिस्तर का रूप ले लिया था. जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफ़ी था.दोनो एक साथ मेरे बदन पर टूट पड़े. मैं उनके बीच फँसी हुई थी. दोनो ने एक एक उरोज थाम लिए. उनके साथ वो बुरी तरह पेश आरहे थे. मेरे दोनो हाथों मे एक एक लिंग था. दोनो लिंगों को मैं सहला रही थी. मेरी पॅंटी पहले से ही गीली थी वरना मेरे करमास से गीली हो जाती. दोनो के हाथ मेरी पॅंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया. दो जोड़ी उंगलियाँ मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी.
"आआहहूऊओह" मेरे मुँह से वासना भरी आवाज़ें निकल रही थी. अरुण ने मुझे गुड़िया की तारह उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया. उसने मेरे दोनो पैरों को फैला कर अपनी गोद मे बिठाया. उसने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. मेरे बड़े-बड़े उरोज उसके सीने मे पिसे जा रहे थे. वो मेरे होंठों को चूम रहा था. मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे. अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसे फिरा रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो.
बदन मे झूर झूरी सी दौड़ रही थी.मैं दोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी.. रही सही झिझक भी ख़त्म हो गयी थी.मैं अपनी योनि को अरुण के लिंग पर मसल्ने लगी. अरुण ने अभी तक अंडरवेर पहन रखी थी जो कि अब मेरी योनि के रस से भीग गयी थी. ऐसी हालत मे मुझे कोई देखता तो एक वेश्या ही समझता. मेरी डिग्निटी, मेरा रेप्युटेशन,मेरी सिक्षा सब इस आदिम भूख के सामने छ्होटी पड़ गयी थी.
मेरी आँखो मे मेरे प्यार, मेरा हमदम, मेरे पति के चेहरे पर इन दोनो के चेहरे नज़र आ रहे थे. शराब ने मुझे अपने वश मे ले लिया था. सब कुच्छ घूमता हुआ लग रहा था. महसूस हो रहा था कि जो हो रहा है वो अच्च्छा नहीं है मगर मैं किसिको मना करने की स्तिथि मे नहीं थी. दोनो के हाथ मेरी छातियों को ज़ोर-ज़ोर से मसल्ने लगे. अरुण ने मेरे होंठों को चूस चूस कर सूजा दिया था. फिर उन्हें छ्चोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़ा.
अपने दोनो हाथों से मेरे एक-एक उरोज को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुँह मे डाल कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बॉटल आ गयी हो. दाँतों के निशान पूरे उरोज पर नज़र आ रहे थे. मुकुल उस वक़्त मेरी गर्दन पर और मेरी नितंबों पर दाँत गढ़ा रहा था. मैं मस्त हुई जा रही थी. फिर मुकुल ने अपना अंडरवेर उतार कर मेरे सिर को पकड़ा और मेरे पास बैठ कर अपने लिंग पर झुकने लगा. मैं उसका इरादा समझ कर कुच्छ देर तक मुँह को इधर उधर घुमाती रही.
मगर उसके आगे मेरी एक ना चली. वो मेरे खूबसूरत होंठों पर अपना काला लिंग फेरने लगा. लिंग के आगे के टोपे की मोटाई देख कर मैं काँप गयी. लिंग से चिपचिपा प्रदार्थ निकल कर मेरे होंठों पर लग रहा था. अरुण ने मुझे गोद से उठा कर पूरा नंगा हो गया.मुझे कोहनी और घुटनों के बल पर चौपाया बनाकर मेरी योनि को छेड़ने लगा. योनि की फाँकें अलग कर अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर करने लगा.
मैं पूरी तरह अब निवस्त्र थी. मुकुल मेरे सिर को अपने लिंग पर दबा रहा था. मुझे मुँह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल दिया. मैने जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोला उसका मोटा लिंग जीभ को रास्ते हटाते हुए गले तक जाकर फँस गया. मेरा दम घुट रहा था. मैने सिर को बाहर खींचने के लिए ज़ोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुच्छ ढीला कर दिया. लिंग आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सिर को दाब दिया.
और इस तरह वो मेरे मुँह को योनि की तरह चोद रहा था. उधर अरुण मेरी योनि मे अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था. मैं कामोत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले मे मुकुल का लिंग फँसा होने के कारण मेरे मुँह से सिर्फ़ "उूउउन्न्ञनणणनह" जैसी आवाज़ें निकल रही थी.
मैं उसी अवस्था मे झार गयी. काफ़ी देर तक चूसने चाटने के बाद अरुण उठा. उसके मुँह, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था. उसने अपने लिंग को मेरी योनि के द्वार पर सटा दिया. फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा. खंबे के जैसे अपने मोटे ताजे लिंग को पूरी तरह मेरी योनि मे समा दिया. योनि पहले से ही गीली हो रही थी इसलिए कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई. मुकुल मेरा मुख मैथुन कर रहा था.
दोनो लिंग दोनो तरफ से अंदर बाहर हो रहे थे और मैं जीप मे झूला झूल रही थी. मेरे दोनो उरोज़ पके हुए अनार की तरह झूल रहे थे. दोनो ने मसल कर काट कर दोनो उरोजों का रंग भी अनारों की तरह लाल कर दिया था. कुच्छ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिसचार्ज होने वाला है. यह देख कर मैने लिंग को अपने मुँह से निकाल ने का सोचा. मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली. उसने मेरे सिर को प्युरे ताक़त से अपने लिंग पर दबा दिया. मूसल जैसा लिंग गले के अंदर तक घुस गया.
क्रमशः................................
Doctor ki chut chudaai --2
gataank se aage...............................
Arun ne mere hathon se kapde le liye. Mere badan par ab kewal geeli panti thi jsko ki mai alag nahin karna chahti thi. Thand ab bhi lag rahi thi magar kya kiya ja sakta tha. Kuchh der baad dono bhi thand se bachne ke liye gadi me a gaye. Dono ke badan par bhi bas ek ek panty thi. Unke nivastra badan ko maine bhi gahree nazaron se dekha.
"Yaar, Mukul thand se to raat bhar me barf ki tarah jam jayenge. Cabinate me rum ki ek bottle rakhi hai usko nikaal." Arun ne kaha. Mukul ne cabinate se ek bottle nikaali. Light jala kar dash board ke andar kuchh dhoondhne laga. "sir, glass nahin hai." Usne kaha. "abe neet hi laa." Arun ne bottle lekar munh se lagaya aur do ghoont lekar Mukul ki taraf badhaya.
Mukul ne bhi ek ghoont liya. "Neelu tu bhi do ghoont lele sari sardi nikal jayegi." Arun ne kaha. " Nahin mai daru nahin piti" maine mana kar diya. Magar kuchh hi der mein mujhe apne faisle par gussa ane laga. Waise bhi do do adamkhoron ke beech men mai is tarah ka koi risk nahin lena chahati thi ki mera apne upar se control hat jaye. Magar thandak ne meri mati maar dee. Mai dono ko peete huye dekh rahi thi. Unhonne fir mujh se poochha.
Is baar mere na me dum nahin tha. Arun ne bottle mujhe pakda di. "Are le yaar koi paap nahin lagega. Ek doctor ke munh se is tarah ki dakiyanoosi baten sahi nahin lagti." Arun ne kaha. Maine kanpte hathon se bottle liya. Aur munh se lagakar ek ghoont liya. Aisa laga maano tejaab mere munh aur gale ko jalata hua pet men jaraha hai. Mere ko foran ubkai agaee. Maine badi mushkil se munh par hath rakh kar apne aap ko roka.
"lo ek aur ghoont lo." Arun ne kaha.
"Nahin, kitni gandi cheej hai tum log peete kaise ho." Maine kaha.
Magar kuchh der baad maine hath badha kar bottle le li aur ek aur ghoont liya. Is baar utni buri nahin lagi. "bus aur nahin." Maine bottle wapas kar diya. Meri in harkaton ke karan chadar mere ek chhatee se hat gaya. Mera sar ghoom raha tha. Apne aap ko bahut halka fulka mahsoos kar rahi thi. Apne oopar se control khatam hone laga. Sharer bhi garam ho chala tha.
Arun samne ka darwaja khol kar bahar nikla aur peechhe ki seat par agaya. Mai simat te huye sarak gayee magar wo mere paas sarak aye. "Dekho Arun yeh sab sahi nahin hai." Maine kaha.
" Mai to sirf tumhare kanpte huye badan ko garmi dene ki koshish kar raha hoon."
"Nahin mujhe nahin chahiye."mai unko dhakka deti rah gayee magar unhon ne mujhe apni bahon me sama liya.
Uske garam honth mere honthon par chipak gaye. Dheere dheere mai kamjor padti jaarahi thi. Maine use dhakelne ki koshish ki magar who mere badan se aur jor se chipak gaye. Ek jhatke me mere badan se chadar ko alag kar diya. "Mukul ise samhal." Arun ne chadar age ki seat par fek dee jise Mukul ne samhal liya. Mere badan par ab sirf ek panty ki alawa kuchh bhi nahin tha. Mai haath pair fek rahi thi..
Mukul ko dhakelte hue kaha"chhodo mujhe warna mai shor machaungi" "machao shor. Jitna chahe cheekho yahan melon tak sirf pedh aur janwaron ke siwa tumhari cheekh sunne wala koi nahin hai." Mukul ne light jaladi aur hamari raasleela dekhne laga. Arun ke hath mere badan par fir rahe the. Uske nagn badan se mera badan chipka hua tha.
Maine kafi bachne ki koshish ki apni saheli ki duhai bhi di magar dono poore rakshash ban chuke the. Mera virodh bhi dheere dheere mand padta ja raha tha. Usne mere uroj tham liye aur nipples apne munh me le kar choosne laga. Apne ek haath se apne badan se aakhri vastra bhi utar diya aur mere hath ko pakad kar apne tapte ling par rakh diya.
Maine hatane ki koshish ki magaruske haath majbooti se mere hath ko ling par tham rakhe the. Sharab apna asar dikhane lagi. Mera badan bhi garam hone laga. Kuchh der baad maine apne ko dheela chhod diya. Uske haath mere urojon ko masalne lage. Uske honth mere honthon se chipke huye the aur jeebh mere munh ke andar ghum rahi thi. Mukul se ab nahin raha gaya aur who doosari side ka darwaja khol kar mere doosri taraf a gaya. Usne pahle seat ke lever ko khol kar chauda kar diya.
Peechhe ki seat khul kar ek aramdey bistar ka roop le liya tha. Jagah kam thi magar is kaam ke liye kafi tha.Dono ek sath mere badan par toot pade. Mai unke beech fansi hui thi. Dono ne ek ek uroj tham liye. Unke saath we buri tarah pesh aarahe the. Mere dono hathon me ek ek ling tha. Dono lingon ko mai sahala rahi thi. Meri panty pahle se hi geelee thi warna mere karmas se geeli ho jati. Dono ke hath meri panty ko mere badan se noch kar alag kar diya. Do jodi ungliyan meri yoni me pravesh kar gayee.
"aaaahhhhhooooohhhh" mere munh se vasna bhari awajen nikal rahi thi. Arun ne mujhe gudiya ki tarh utha kar apni god me bitha liya. Usne mere dono pairon ko faila kar apni god me bithaya. Usne mujhe kheench kar apne nagn badan se chipka liya. Mere bade-bade uroj uske seene me pise jaa rahe the. Who mere honthon ko chum raha tha. Mukul ke honth meri peeth par fisal rahe the. Apni jeebh nikal kar meri gardan se lekar mere nitambon tak aise fira raha tha mano badan par koi halke se pankh fer raha ho.
Badan me jhur jhuri si daur rahi thi.mai dono ki harkaton se paagal hui jaa rahi thi.. rahi sahi jhijhak bhi khatm ho gayi thi.mai apni yoni ko Arun ke ling par masalne lagi. Arun ne abhi tak underwear pahan rakhi thi jo ki ab meri yoni ke ras se bheeg gayi thi. Aisi halat me mujhe koi dekhta to ek vyeshya hi samajhta. Meri dignity, mera reputation,meri siksha sab is aadim bhookh ke samne chhoti pad gayi thi.
Meri aankon me mere pyaar, mera humdum, mere pati ke chehre par in dono ke chehre nazar anrahe the. Sharab ne mujhe apne vash me le liya tha. Sab kuchh ghumta hua lag raha tha. Mahsoos ho raha tha ki jo ho raha hai wo achchha nahin hai magar mai kisiko mana karne ki stithi me nahin thi. Dono ke haath meri chatiyon ko jor-jor se masalne lage. Arun mere honthon ko choos choos kar suja diya tha. Fir unhen chhod kar mere nipples par toot pada.
Apne dono haathon se mere ek-ek uroj ko nichod raha tha aur nipples ko munh me daal kar choos raha tha. Aisa lag raha tha mano barson ke bhookhe ke samne koi doodh ki bottle a gayi ho. Daanton ke nishan poore uroj par nazar arahe the. Mukul us waqt meri gardan par aur meri nitambon par data gada raha tha. Mai mast hui jaa rahi thi. Phir Mukul ne apna underwear utar kar mere sir ko pakada aur mere paas baith kar apne ling par jhukane laga. Mai uska irada samajh kar kuchh der tak munh ko idhar udhar ghumati rahi.
Magar uske aage meriek na chali. Wo mere khubsoorat honthon par apna kala ling pherne laga. Ling ke age ke tope ki motai dekh kar mai kaanp gayi. Ling se chipchipa pradarth nikal kar mere honthon par lag raha tha. Arun ne mujhe god se utha kar poora nanga ho gaya.mujhe kohni aur ghutnon ke bal par chaupaya banakar meri yoni ko chhedne laga. Yoni ki phanken alag karapni ungliyan andar bahar karne laga.
Mai poori tarah ab nivastra thi. Mukul mere sir ko apne ling par daba raha tha. Mujhe munh nahin kholta dekh kar mere nipples ko buri tarah masal diya. Mai jaise hi cheekhne ke liye munh kholi uska mota ling jeebh ko raaste hatate hue gale tak jakar fans gaya. Mera dum ghut raha tha. Maine sir ko bahar kheenchne ke liye jor lagaya to usne apne haath ko kuchh dheela kar diya. Ling adha hi bahar nikla hoga usne dobara mere sir ko daab diya.
Aur is tarah wo mere munh ko yoni ki tarah chod raha tha. Udhar Arun meri yoni me apni jeebh andar bahar kar raha tha. Mai kamottejna se cheekhna chahti thi magar gale me Mukul ka ling fansa hone ke karan mere munh se sirf "uuuunnnnnnnhhhh" jaisi awajen nikal rahi thi.
Mai usi awastha me jhar gayee. Kafi der tak chusne chatne ke baad Arun utha. Uske munh, naak par mera kaamras laga hua tha. Usne apne ling ko meri yoni ke dwar par sata diya. Fir bahut dheere dheere use andar dhakelne laga. Khambe ke jaise apne mote taaje ling ko poori tarah meri yoni me sama diya. Yoni pahle se hi geeli ho rahi thi isliye koi jyada dikkat nahin hui. Mukul mera much maithun kar raha tha.
Dono ling dono taraf se andar bahar ho rahe the aur mai jeep me jhula jhul rahi thi. Mere dono uroz pake huye anaar ki tarah jhul rahi the. Dono ne masal kar kat kar dono urozon ka rang bhi anaron ki tarah laal kar diya tha. Kuchh der baad mujhe lagne laga ki ab Mukul discharge hone wala hai. Yeh dekh kar maine ling ko apne munh se nikaal ne ka socha. Magar Mukul ne shayad mere man ki baat padh lee. Usne mere sir ko pure taqat se apne ling par daba diya. Moosal jaisa ling gale ke andar tak ghus gaya.
kramashah................................
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डॉक्टर की चूत चुदाइ --2
गतान्क से आगे...............................
अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए. मेरे बदन पर अब केवल गीली पॅंटी थी जिसको कि मैं अलग नहीं करना चाहती थी. ठंड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था. कुच्छ देर बाद दोनो भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी मे आ गये. दोनो के बदन पर भी बस एक एक पॅंटी थी. उनके निवस्त्र बदन को मैने भी गहरी नज़रों से देखा.
"यार, मुकुल ठंड से तो रात भर मे बर्फ की तरह जम जाएँगे. केबईनेट मे रम की एक बॉटल रखी है उसको निकाल." अरुण ने कहा. मुकुल ने केबईनेट से एक बॉटल निकाली. लाइट जला कर डॅश बोर्ड के अंदर कुच्छ ढूँढने लगा. "सर, ग्लास नहीं है." उसने कहा. "अबे नीट ही ला." अरुण ने बॉटल लेकर मुँह से लगाया और दो घूँट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया.
मुकुल ने भी एक घूँट लिया. "नीलू तू भी दो घूँट लेले सारी सर्दी निकल जाएगी." अरुण ने कहा. " नहीं मैं दारू नहीं पीती" मैने मना कर दिया. मगर कुच्छ ही देर में मुझे अपने फ़ैसले पर गुस्सा आने लगा. वैसे भी दो दो आदमख़ोरों के बीच में मे इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी कि मेरा अपने उपर से कंट्रोल हट जाए. मगर ठंडक ने मेरी मति मार दी. मैं दोनो को पीते हुए देख रही थी. उन्होंने फिर मुझ से पूछा.
इस बार मेरी ना मे दम नहीं था. अरुण ने बॉटल मुझे पकड़ा दी. "अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा. एक डॉक्टर के मुँह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगती." अरुण ने कहा. मैने काँपते हाथों से बॉटल लिया. और मुँह से लगाकर एक घूँट लिया. ऐसा लगा मानो तेज़ाब मेरे मुँह और गले को जलाता हुआ पेट में जा रहा है. मेरे को फॉरन उबकाई आ गई. मैने बड़ी मुश्किल से मुँह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका.
"लो एक और घूँट लो." अरुण ने कहा.
"नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो." मैने कहा.
मगर कुच्छ देर बाद मैने हाथ बढ़ा कर बॉटल ले ली और एक और घूँट लिया. इस बार उतनी बुरी नहीं लगी. "बस और नहीं." मैने बॉटल वापस कर दिया. मेरी इन हरकतों के कारण चादर मेरी एक चूची से हट गया. मेरा सर घूम रहा था. मैं अपने आप को बहुत हल्का फूलका महसूस कर रही थी. अपने ऊपर से कंट्रोल ख़तम होने लगा. शरीर भी गरम हो चला था.
अरुण सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आगेया. मैं सिमट ते हुए सरक गयी मगर वो मेरे पास सरक आया. "देखो अरुण यह सब सही नहीं है." मैने कहा.
" मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ."
"नहीं मुझे नहीं चाहिए."मैं उनको धक्का देती रह गयी मगर उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे समा लिया.
उसके गरम होंठ मेरे होंठों पर चिपक गये. धीरे धीरे मैं कमजोर पड़ती जा रही थी. मैने उसे धकेलने की कोशिश की मगर वो मेरे बदन से और ज़ोर से चिपक गये. एक झटके मे मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया. "मुकुल इसे सम्हाल." अरुण ने चादर आगे की सीट पर फेक दी जिसे मुकुल ने सम्हाल लिया. मेरे बदन पर अब सिर्फ़ एक पॅंटी की अलावा कुच्छ भी नहीं था. मैं हाथ पैर फेक रही थी..
मुकुल को धकेलते हुए कहा"छ्चोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउंगी" "मचाओ शोर. जितना चाहे चीखो यहाँ मीलो तक सिर्फ़ पेड और जानवरों के सिवा तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है." मुकुल ने लाइट जलादी और हमारी रासलीला देखने लगा. अरुण के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. उसके नग्न बदन से मेरा बदन चिपका हुआ था.
मैने काफ़ी बचने की कोशिश की अपनी सहेली की दुहाई भी दी मगर दोनो पूरे राक्षश बन चुके थे. मेरा विरोध भी धीरे धीरे मंद पड़ता जा रहा था. उसने मेरे उरोज थाम लिए और निपल्स अपने मुँह मे ले कर चूसने लगा. अपने एक हाथ से अपने बदन से आखरी वस्त्र भी उतार दिया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लिंग पर रख दिया.
मैने हटाने की कोशिश की मगर उसके हाथ मजबूती से मेरे हाथ को लिंग पर थाम रखे थे. शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा. कुच्छ देर बाद मैने अपने को ढीला छ्चोड़ दिया. उसके हाथ मेरे उरजों को मसल्ने लगे. उसके होंठ मेरे होंठों से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुँह के अंदर घूम रही थी. मुकुल से अब नहीं रहा गया और वो दूसरी साइड का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया. उसने पहले सीट के लीवर को खोल कर चौड़ा कर दिया.
पीछे की सीट ने खुल कर एक आरामदेह बिस्तर का रूप ले लिया था. जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफ़ी था.दोनो एक साथ मेरे बदन पर टूट पड़े. मैं उनके बीच फँसी हुई थी. दोनो ने एक एक उरोज थाम लिए. उनके साथ वो बुरी तरह पेश आरहे थे. मेरे दोनो हाथों मे एक एक लिंग था. दोनो लिंगों को मैं सहला रही थी. मेरी पॅंटी पहले से ही गीली थी वरना मेरे करमास से गीली हो जाती. दोनो के हाथ मेरी पॅंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया. दो जोड़ी उंगलियाँ मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी.
"आआहहूऊओह" मेरे मुँह से वासना भरी आवाज़ें निकल रही थी. अरुण ने मुझे गुड़िया की तारह उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया. उसने मेरे दोनो पैरों को फैला कर अपनी गोद मे बिठाया. उसने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. मेरे बड़े-बड़े उरोज उसके सीने मे पिसे जा रहे थे. वो मेरे होंठों को चूम रहा था. मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे. अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसे फिरा रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो.
बदन मे झूर झूरी सी दौड़ रही थी.मैं दोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी.. रही सही झिझक भी ख़त्म हो गयी थी.मैं अपनी योनि को अरुण के लिंग पर मसल्ने लगी. अरुण ने अभी तक अंडरवेर पहन रखी थी जो कि अब मेरी योनि के रस से भीग गयी थी. ऐसी हालत मे मुझे कोई देखता तो एक वेश्या ही समझता. मेरी डिग्निटी, मेरा रेप्युटेशन,मेरी सिक्षा सब इस आदिम भूख के सामने छ्होटी पड़ गयी थी.
मेरी आँखो मे मेरे प्यार, मेरा हमदम, मेरे पति के चेहरे पर इन दोनो के चेहरे नज़र आ रहे थे. शराब ने मुझे अपने वश मे ले लिया था. सब कुच्छ घूमता हुआ लग रहा था. महसूस हो रहा था कि जो हो रहा है वो अच्च्छा नहीं है मगर मैं किसिको मना करने की स्तिथि मे नहीं थी. दोनो के हाथ मेरी छातियों को ज़ोर-ज़ोर से मसल्ने लगे. अरुण ने मेरे होंठों को चूस चूस कर सूजा दिया था. फिर उन्हें छ्चोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़ा.
अपने दोनो हाथों से मेरे एक-एक उरोज को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुँह मे डाल कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बॉटल आ गयी हो. दाँतों के निशान पूरे उरोज पर नज़र आ रहे थे. मुकुल उस वक़्त मेरी गर्दन पर और मेरी नितंबों पर दाँत गढ़ा रहा था. मैं मस्त हुई जा रही थी. फिर मुकुल ने अपना अंडरवेर उतार कर मेरे सिर को पकड़ा और मेरे पास बैठ कर अपने लिंग पर झुकने लगा. मैं उसका इरादा समझ कर कुच्छ देर तक मुँह को इधर उधर घुमाती रही.
मगर उसके आगे मेरी एक ना चली. वो मेरे खूबसूरत होंठों पर अपना काला लिंग फेरने लगा. लिंग के आगे के टोपे की मोटाई देख कर मैं काँप गयी. लिंग से चिपचिपा प्रदार्थ निकल कर मेरे होंठों पर लग रहा था. अरुण ने मुझे गोद से उठा कर पूरा नंगा हो गया.मुझे कोहनी और घुटनों के बल पर चौपाया बनाकर मेरी योनि को छेड़ने लगा. योनि की फाँकें अलग कर अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर करने लगा.
मैं पूरी तरह अब निवस्त्र थी. मुकुल मेरे सिर को अपने लिंग पर दबा रहा था. मुझे मुँह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल दिया. मैने जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोला उसका मोटा लिंग जीभ को रास्ते हटाते हुए गले तक जाकर फँस गया. मेरा दम घुट रहा था. मैने सिर को बाहर खींचने के लिए ज़ोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुच्छ ढीला कर दिया. लिंग आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सिर को दाब दिया.
और इस तरह वो मेरे मुँह को योनि की तरह चोद रहा था. उधर अरुण मेरी योनि मे अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था. मैं कामोत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले मे मुकुल का लिंग फँसा होने के कारण मेरे मुँह से सिर्फ़ "उूउउन्न्ञनणणनह" जैसी आवाज़ें निकल रही थी.
मैं उसी अवस्था मे झार गयी. काफ़ी देर तक चूसने चाटने के बाद अरुण उठा. उसके मुँह, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था. उसने अपने लिंग को मेरी योनि के द्वार पर सटा दिया. फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा. खंबे के जैसे अपने मोटे ताजे लिंग को पूरी तरह मेरी योनि मे समा दिया. योनि पहले से ही गीली हो रही थी इसलिए कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई. मुकुल मेरा मुख मैथुन कर रहा था.
दोनो लिंग दोनो तरफ से अंदर बाहर हो रहे थे और मैं जीप मे झूला झूल रही थी. मेरे दोनो उरोज़ पके हुए अनार की तरह झूल रहे थे. दोनो ने मसल कर काट कर दोनो उरोजों का रंग भी अनारों की तरह लाल कर दिया था. कुच्छ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिसचार्ज होने वाला है. यह देख कर मैने लिंग को अपने मुँह से निकाल ने का सोचा. मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली. उसने मेरे सिर को प्युरे ताक़त से अपने लिंग पर दबा दिया. मूसल जैसा लिंग गले के अंदर तक घुस गया.
क्रमशः................................
Doctor ki chut chudaai --2
gataank se aage...............................
Arun ne mere hathon se kapde le liye. Mere badan par ab kewal geeli panti thi jsko ki mai alag nahin karna chahti thi. Thand ab bhi lag rahi thi magar kya kiya ja sakta tha. Kuchh der baad dono bhi thand se bachne ke liye gadi me a gaye. Dono ke badan par bhi bas ek ek panty thi. Unke nivastra badan ko maine bhi gahree nazaron se dekha.
"Yaar, Mukul thand se to raat bhar me barf ki tarah jam jayenge. Cabinate me rum ki ek bottle rakhi hai usko nikaal." Arun ne kaha. Mukul ne cabinate se ek bottle nikaali. Light jala kar dash board ke andar kuchh dhoondhne laga. "sir, glass nahin hai." Usne kaha. "abe neet hi laa." Arun ne bottle lekar munh se lagaya aur do ghoont lekar Mukul ki taraf badhaya.
Mukul ne bhi ek ghoont liya. "Neelu tu bhi do ghoont lele sari sardi nikal jayegi." Arun ne kaha. " Nahin mai daru nahin piti" maine mana kar diya. Magar kuchh hi der mein mujhe apne faisle par gussa ane laga. Waise bhi do do adamkhoron ke beech men mai is tarah ka koi risk nahin lena chahati thi ki mera apne upar se control hat jaye. Magar thandak ne meri mati maar dee. Mai dono ko peete huye dekh rahi thi. Unhonne fir mujh se poochha.
Is baar mere na me dum nahin tha. Arun ne bottle mujhe pakda di. "Are le yaar koi paap nahin lagega. Ek doctor ke munh se is tarah ki dakiyanoosi baten sahi nahin lagti." Arun ne kaha. Maine kanpte hathon se bottle liya. Aur munh se lagakar ek ghoont liya. Aisa laga maano tejaab mere munh aur gale ko jalata hua pet men jaraha hai. Mere ko foran ubkai agaee. Maine badi mushkil se munh par hath rakh kar apne aap ko roka.
"lo ek aur ghoont lo." Arun ne kaha.
"Nahin, kitni gandi cheej hai tum log peete kaise ho." Maine kaha.
Magar kuchh der baad maine hath badha kar bottle le li aur ek aur ghoont liya. Is baar utni buri nahin lagi. "bus aur nahin." Maine bottle wapas kar diya. Meri in harkaton ke karan chadar mere ek chhatee se hat gaya. Mera sar ghoom raha tha. Apne aap ko bahut halka fulka mahsoos kar rahi thi. Apne oopar se control khatam hone laga. Sharer bhi garam ho chala tha.
Arun samne ka darwaja khol kar bahar nikla aur peechhe ki seat par agaya. Mai simat te huye sarak gayee magar wo mere paas sarak aye. "Dekho Arun yeh sab sahi nahin hai." Maine kaha.
" Mai to sirf tumhare kanpte huye badan ko garmi dene ki koshish kar raha hoon."
"Nahin mujhe nahin chahiye."mai unko dhakka deti rah gayee magar unhon ne mujhe apni bahon me sama liya.
Uske garam honth mere honthon par chipak gaye. Dheere dheere mai kamjor padti jaarahi thi. Maine use dhakelne ki koshish ki magar who mere badan se aur jor se chipak gaye. Ek jhatke me mere badan se chadar ko alag kar diya. "Mukul ise samhal." Arun ne chadar age ki seat par fek dee jise Mukul ne samhal liya. Mere badan par ab sirf ek panty ki alawa kuchh bhi nahin tha. Mai haath pair fek rahi thi..
Mukul ko dhakelte hue kaha"chhodo mujhe warna mai shor machaungi" "machao shor. Jitna chahe cheekho yahan melon tak sirf pedh aur janwaron ke siwa tumhari cheekh sunne wala koi nahin hai." Mukul ne light jaladi aur hamari raasleela dekhne laga. Arun ke hath mere badan par fir rahe the. Uske nagn badan se mera badan chipka hua tha.
Maine kafi bachne ki koshish ki apni saheli ki duhai bhi di magar dono poore rakshash ban chuke the. Mera virodh bhi dheere dheere mand padta ja raha tha. Usne mere uroj tham liye aur nipples apne munh me le kar choosne laga. Apne ek haath se apne badan se aakhri vastra bhi utar diya aur mere hath ko pakad kar apne tapte ling par rakh diya.
Maine hatane ki koshish ki magaruske haath majbooti se mere hath ko ling par tham rakhe the. Sharab apna asar dikhane lagi. Mera badan bhi garam hone laga. Kuchh der baad maine apne ko dheela chhod diya. Uske haath mere urojon ko masalne lage. Uske honth mere honthon se chipke huye the aur jeebh mere munh ke andar ghum rahi thi. Mukul se ab nahin raha gaya aur who doosari side ka darwaja khol kar mere doosri taraf a gaya. Usne pahle seat ke lever ko khol kar chauda kar diya.
Peechhe ki seat khul kar ek aramdey bistar ka roop le liya tha. Jagah kam thi magar is kaam ke liye kafi tha.Dono ek sath mere badan par toot pade. Mai unke beech fansi hui thi. Dono ne ek ek uroj tham liye. Unke saath we buri tarah pesh aarahe the. Mere dono hathon me ek ek ling tha. Dono lingon ko mai sahala rahi thi. Meri panty pahle se hi geelee thi warna mere karmas se geeli ho jati. Dono ke hath meri panty ko mere badan se noch kar alag kar diya. Do jodi ungliyan meri yoni me pravesh kar gayee.
"aaaahhhhhooooohhhh" mere munh se vasna bhari awajen nikal rahi thi. Arun ne mujhe gudiya ki tarh utha kar apni god me bitha liya. Usne mere dono pairon ko faila kar apni god me bithaya. Usne mujhe kheench kar apne nagn badan se chipka liya. Mere bade-bade uroj uske seene me pise jaa rahe the. Who mere honthon ko chum raha tha. Mukul ke honth meri peeth par fisal rahe the. Apni jeebh nikal kar meri gardan se lekar mere nitambon tak aise fira raha tha mano badan par koi halke se pankh fer raha ho.
Badan me jhur jhuri si daur rahi thi.mai dono ki harkaton se paagal hui jaa rahi thi.. rahi sahi jhijhak bhi khatm ho gayi thi.mai apni yoni ko Arun ke ling par masalne lagi. Arun ne abhi tak underwear pahan rakhi thi jo ki ab meri yoni ke ras se bheeg gayi thi. Aisi halat me mujhe koi dekhta to ek vyeshya hi samajhta. Meri dignity, mera reputation,meri siksha sab is aadim bhookh ke samne chhoti pad gayi thi.
Meri aankon me mere pyaar, mera humdum, mere pati ke chehre par in dono ke chehre nazar anrahe the. Sharab ne mujhe apne vash me le liya tha. Sab kuchh ghumta hua lag raha tha. Mahsoos ho raha tha ki jo ho raha hai wo achchha nahin hai magar mai kisiko mana karne ki stithi me nahin thi. Dono ke haath meri chatiyon ko jor-jor se masalne lage. Arun mere honthon ko choos choos kar suja diya tha. Fir unhen chhod kar mere nipples par toot pada.
Apne dono haathon se mere ek-ek uroj ko nichod raha tha aur nipples ko munh me daal kar choos raha tha. Aisa lag raha tha mano barson ke bhookhe ke samne koi doodh ki bottle a gayi ho. Daanton ke nishan poore uroj par nazar arahe the. Mukul us waqt meri gardan par aur meri nitambon par data gada raha tha. Mai mast hui jaa rahi thi. Phir Mukul ne apna underwear utar kar mere sir ko pakada aur mere paas baith kar apne ling par jhukane laga. Mai uska irada samajh kar kuchh der tak munh ko idhar udhar ghumati rahi.
Magar uske aage meriek na chali. Wo mere khubsoorat honthon par apna kala ling pherne laga. Ling ke age ke tope ki motai dekh kar mai kaanp gayi. Ling se chipchipa pradarth nikal kar mere honthon par lag raha tha. Arun ne mujhe god se utha kar poora nanga ho gaya.mujhe kohni aur ghutnon ke bal par chaupaya banakar meri yoni ko chhedne laga. Yoni ki phanken alag karapni ungliyan andar bahar karne laga.
Mai poori tarah ab nivastra thi. Mukul mere sir ko apne ling par daba raha tha. Mujhe munh nahin kholta dekh kar mere nipples ko buri tarah masal diya. Mai jaise hi cheekhne ke liye munh kholi uska mota ling jeebh ko raaste hatate hue gale tak jakar fans gaya. Mera dum ghut raha tha. Maine sir ko bahar kheenchne ke liye jor lagaya to usne apne haath ko kuchh dheela kar diya. Ling adha hi bahar nikla hoga usne dobara mere sir ko daab diya.
Aur is tarah wo mere munh ko yoni ki tarah chod raha tha. Udhar Arun meri yoni me apni jeebh andar bahar kar raha tha. Mai kamottejna se cheekhna chahti thi magar gale me Mukul ka ling fansa hone ke karan mere munh se sirf "uuuunnnnnnnhhhh" jaisi awajen nikal rahi thi.
Mai usi awastha me jhar gayee. Kafi der tak chusne chatne ke baad Arun utha. Uske munh, naak par mera kaamras laga hua tha. Usne apne ling ko meri yoni ke dwar par sata diya. Fir bahut dheere dheere use andar dhakelne laga. Khambe ke jaise apne mote taaje ling ko poori tarah meri yoni me sama diya. Yoni pahle se hi geeli ho rahi thi isliye koi jyada dikkat nahin hui. Mukul mera much maithun kar raha tha.
Dono ling dono taraf se andar bahar ho rahe the aur mai jeep me jhula jhul rahi thi. Mere dono uroz pake huye anaar ki tarah jhul rahi the. Dono ne masal kar kat kar dono urozon ka rang bhi anaron ki tarah laal kar diya tha. Kuchh der baad mujhe lagne laga ki ab Mukul discharge hone wala hai. Yeh dekh kar maine ling ko apne munh se nikaal ne ka socha. Magar Mukul ne shayad mere man ki baat padh lee. Usne mere sir ko pure taqat se apne ling par daba diya. Moosal jaisa ling gale ke andar tak ghus gaya.
kramashah................................
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