Saturday, November 5, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मुंबई लोकल--1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ


मुंबई लोकल--1


मुंबई जैसे शहर में किसी लाश का मिलना कोई अजीब बात नही है पर जब एक सर
कटी लाश मिले तो न्यूपेपर के पहले नही तो दूसरे पेज पर तो खबर आ ही जाती
है. ऐसी ही एक सरकती लाश एक दिन जोगेश्वरी के पास लोकल ट्रेन्स की रेलवे
ट्रॅक्स पर पाई गयी. अख़बार में खबर छपी, लोगों ने पढ़ी और भूल गये.


फिर भी उस केस ने पोलिसेवालों को सोचने और सर खुजाने पर मजबूर कर दिया.
पहला ख्याल तो लाश देखकर यही लगा के या तो मरने वाला किसी ट्रेन की चपेट
में आकर वक़्त से पहले चल बसा या खुद ज़िंदगी से परेशान आकर रेलवे
ट्रॅक्स पर अपना सर रख दिया. पर बहुत जल्दी ही ये ख्याल बदल गया. वजह 2
थी.


पहली तो ये के लाश का सिर्फ़ धड़ हासिल हुआ, सर का दूर दूर तक कोई पता
नही था. दूसरा ये के शरीर के किसी भी दूसरे हिस्से पर चोट का कोई निशान
नही था जो की आक्सिडेंट के केस में होना नामुमकिन था. पूरा शरीर सलामत
था, सिर्फ़ सर काट दिया गया था जो की पोलिसेवालों को लाख कोशिश करने के
बाद भी ट्रॅक्स पर दूर दूर तक कहीं नही मिला.


मर्डर हुआ था ये बात तो साफ थी पर लाश के साथ ऐसा सलूक क्यूँ किया गया ये
बात साफ नही हो पाई. आम तौर पर सर काट कर कहीं और इसलिए च्छूपा दिया जाता
है के मरने वाले की शिनाख्त ना हो सके पर इस केस में ऐसा नही था. लाश पर
कपड़े सही सलामत थे और कोई भी चीज़ जैसे के पर्स या घड़ी चुराई नही गयी
थी. पर्स से ड्राइवर'स लाइसेन्स मिला और लाश की शिनाख्त हो गयी. मरने
वाले की बीवी ने भी धड़ देख कर अपने पति को पहचान लिया.


अगले कुच्छ दिन तक सर की तलाश होती रही. रेलवे ट्रॅक्स और आस पास के
डस्टबिन्स को छान लिया गया पर सर नही मिला. हमारे देश में जहाँ इंसानी
ज़िंदगी की वैसे ही कोई कीमत नही और जहाँ ऑलरेडी इतने केसस पेंडिंग पड़े
हों ये बात भी बस एक दिन के अख़बार की सुर्खी बनकर रह गयी. ये मर्डर केस
भी पेंडिंग केसस की एक लंबी लिस्ट में शामिल हो गया और शायद मरने वाले के
रिश्तेदारो के अलावा सब इस बात को भूल गये.


पर 2 महीने बाद ही सबकी याद तब ताज़ा हो गयी जब ऐसी ही एक और लाश फिर
जोगेश्वरी में ही रेलवे ट्रॅक्स पर पाई गयी. पहले केस की तरह ही इस बार
फिर बड़ी सफाई के साथ सर काट दिया गया था जो के ढूँढे से भी नही मिला.
लाश पर कपड़े, पर्स, घड़ी, रिंग सब कुच्छ था. पोलिसेवालो ने लाश की पहचान
की और किसी रिश्तेदार ने फिर आकर शिनाख्त पक्की कर दी.


"अब इन रिपोर्टर्स को क्या बताऊं?" मैने नाश्ता करते हुए अपनी बीवी से
कहा "इन्हें तो हर चीज़ का जवाब चाहिए. और अब तो रिपोर्टर्स ही नही बल्कि
उपेर से भी प्रेशर आने लगा है. हर कोई मेरी जान खा रहा है के मैं जल्दी
ही इस केस की जड़ तक जाऊं और पता लगाऊं के क्या हो रहा है. जैसे ये कोई
बहुत ही आसान और मामूली काम हो"

"अगर ये काम आसान और मामूली होता तो उन लोगों को आपकी कोई ज़रूरत ही नही
थी" मेरी बीवी प्रिया ने कहा "और वैसे भी, आपसे बेहतर पोलिसेवला इस शहर
में है ही कौन? जितने केसस आपने सॉल्व किए हैं उतने इस शहर में तो क्या,
पूरे देश में किसी पोलिसेवाले ने नही किए होंगे"


उसकी बात सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट फेल गयी. मैने चश्मा उतार कर
प्यार से उसकी तरफ देखा. जब भी वो इस तरह की बातें करती थी, मुझे अपने
उपेर गर्व महसूस होने लगता था.


"पर इस केस में तो मुझे कुच्छ समझ ही नही आ रहा है के कहाँ से शुरू करूँ"
मैने खड़े होते हुए कहा "दोनो मरने वालो की किसी से कोई दुश्मनी नही थी,
दोनो कहीं भी इन्वॉल्व्ड नही थे, अपनी अपनी ज़िंदगी में खुश थे और सबसे
बड़ी बात, दोनो का आपस में कोई लेना देना नही था. वो दोनो तो क्या, उनके
दूर दूर के रिश्तेदार और दोस्तों तक एक दूसरे से कोई कनेक्षन नही था. पर
फिर भी वो दोनो एक ही तरीके से मार दिए गये. और एक ही इलाक़े में मारे
गये"

"तुम्हें यकीन है के इन दोनो को एक ही आदमी ने मारा है?"

"लगता तो है" मैने उठकर दरवाज़े की तरफ चला "यक़ीनन तौर पर पता करने में
थोड़ा वक़्त लगेगा"


पर मैं ग़लत था, वक़्त लगा नही.


उसी रात 2 बजे मेरा फोन बजा तो मेरी आँख खुल गयी.

"एक और लाश मिली है सर" दूसरी तरफ से कॉन्स्टेबल की आवाज़ आई.

"कहाँ?"

"जोगेश्वरी. रेलवे ट्रॅक्स पर ही. सर गायब है"


ये 3 महीने में तीसरी लाश थी.

मैं मर्डर साइट पर जाने की सोच ही रहा था के मेरी बीवी भी उठकर बेडरूम से
बाहर आ गयी.

"चाइ या कॉफी कुच्छ बना दूं?" उसने पुछा

"नही मुझे फ़ौरन निकलना पड़ेगा"

"5 मिनट लेगेंगे बस. तुम तैय्यार हो जाओ, मैं बना देती हूँ" कहकर वो बिना
मेरे जवाब का इंतेज़ार किए किचन की तरफ बढ़ गयी.

मेरी बीवी प्रिया 46 साल की एक सीधी सादी औरत थी. कोई उसे एक झलक देख कर
ही बता सकता था के जवानी में वो बेहद खूबसूरत रही होगी. इस उमर में भी
तीखे नैन नक्श, सॉफ रंग, लंबा कद और मज़बूत काठी की वो औरत मुझे आज भी जी
जान से प्यार करती थी, और राह देखती थी उस दिन की जब मैं रिटाइर हो
जाऊँगा और हम दोनो कहीं किसी हिल स्टेशन में छ्होटा सा घर लेकर रिटाइर हो
जाएँगे.


उस बेचारी को क्या पता था के मैं अपनी ज़िंदगी का हर दिन ये सोचते हुए
बिता रहा था के कैसे उससे छुटकारा पाऊँ. कैसे कोई ऐसा करिश्मा हो जाए के
वो बिना कुच्छ कहे सुने मुझे छ्चोड़कर चली जाए.


उसे क्या पता था के उसका पता शादी के 25 साल बाद अब इस उमर में उसको धोखा
दे रहा था.


निशा को देखते ही मुझे उससे प्यार हो गया था.

"आंड आइ लव यू यू" पलटकर निशा ने मुझसे एक दिन कहा था.

उसकी उमर तकरीबन 20-21 के आस पास थी. एक टिपिकल बिंगाली ब्यूटी पर उसके
चेहरे से ज़्यादा आकर्षक था उसका शरीर. अगर मॉडर्न वर्ल्ड की टर्मिनॉलजी
में कहूँ तो सर से पावं तक पूरी की पूरी आइटम बॉम्ब थी और बिस्तर पर तो
जैसे आग लगा देती थी.


हां, मैं 50 साल की उमर में 20 साल की एक लड़की के साथ सो रहा था, अपनी
बीवी को धोखा दे रहा था.


पर जब मैं निशा के साथ होता था तो मुझे फिर से जैसे जवानी का एहसास होता
था. लगता था के मैं अब भी वो सब कर सकता हूँ जो आज से 30 साल पहले कर
सकता था. जबकि अपनी बीवी प्रिया के साथ मुझे हर पल यही महसूस होता था के
मैं बुड्ढ़ा हो रहा हूँ, ज़िंदगी के आखरी पड़ाव की तरफ बढ़ रहा
हूँ. निशा के साथ मैं एक आज़ाद पन्छि की तरह होता था, एक हिरण की तरह जो
पूरे जंगल में उच्छलता हुआ भाग सकता था जबकि अपनी बीवी के साथ मैं अपने
आपको एक कोल्हू में लगे हुए बुड्ढे बेल की तरह महसूस करता था.

"मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसा कभी महसूस नही हुआ यार" मैने एक दिन
अपने दोस्त सुशील से कहा था


"मेरा दिल बँध सा गया है इस लड़की के साथ. 25 साल की अपनी शादी में मैने
कभी प्रिया को धोखा नही दिया. मेरे लिए मेरी ज़िंदगी बस मेरा काम, मेरे
बच्चे और मेरी बीवी थे. पर जब मैं निशा से मिला तो कुच्छ हो सा गया यार.
उसने मुझे जैसे फिर से जीना सीखा दिया. मेरे से आधी उमर की इस लड़की
ने मुझे सिखाया के वासना और प्रेम का असली मतलब क्या है. अच्छा तू ही
बता, क्या तुझे उसे देखके नही लगता के भगवान ने उसे सिर्फ़ इसलिए बनाया
है के उसके साथ प्यार किया जाए? और हैरत की बात पता है क्या है? के वो भी
मुझसे उतना ही प्यार करती है. क्यूँ? ये मैं भी नही जानता. आइ मीन क्या
देखा उसने मुझ में? मैं उमर में उसके बाप से भी बड़ा हूँ, मेरा पेट निकला
हुआ है, मैं गंजा हूँ, शादी शुदा हूँ, जवान बच्चो के बाप हूँ......"
क्रमशः...................

MUMBAI LOCAL--1


Mumbai jaise shehar mein kisi laash ka milna koi ajeeb baat nahi hai
par jab ek sar kati laash mile toh newpaper ke pehle nahi toh doosre
page par toh khabar aa hi jaati hai. Aisi hi ek sarkati laash ek din
Jogeshwari ke paas local trains ki railway tracks par paayi gayi.
Akhbaar mein khabar chhapi, logon ne padhi aur bhool gaye.


Phir bhi us case ne policewalon ko sochne aur sar khujane par majboor
kar diya. Pehla khyaal toh laash dekhkar yahi laga ke ya toh marne
wala kisi train ki chapet mein aakar waqt se pehle chal basa ya khud
zindagi se pareshan aakar railway tracks par apna sar rakh diya. Par
bahut jaldi hi ye khyaal badal gaya. Wajah 2 thi.


Pehli toh ye ke laash ka sirf dhad haasil hua, sar ka door door tak
koi pata nahi tha. Doosra ye ke shareer ke kisi bhi doosre hisse par
chot ka koi nishan nahi tha jo ki accident ke case mein hona namumkin
tha. Poora shareer salamat tha, sirf sar kaat diya gaya tha jo ki
policewalon ko lakh koshish karne ke baad bhi tracks par door door tak
kahin nahi mila.


Murder hua tha ye baat toh saaf thi par laash ke saath aisa salook
kyun kiya gaya ye baat saaf nahi ho paayi. Aam taur par sar kaat kar
kahin aur isliye chhupa diya jata hai ke marne wale ki shinakht na ho
sake par is case mein aisa nahi tha. Laash par kapde sahi salamat tha
aur koi bhi cheez jaise ke purse ya ghadi churayi nahi gayi thi. Purse
se driver's license mila aur laash ki shinakht ho gayi. Marne wale ki
biwi ne bhi dhad dekh kar apne pati ko pehchan liya.


Agle kuchh din tak sar ki talash hoti rahi. Railway tracks aur aas
paas ke dustbins ko chhan liya gaya par sar nahi mila. Hamare desh
mein jahan insani zindagi ki vaise hi koi keemat nahi aur jahan
already itne cases pending pade hon ye baat bhi bas ek din ke akhbaar
ki surkhi bankar reh gayi. Ye murder case bhi pending cases ki ek
lambi list mein shaamil ho gaya aur shayad marne wale ke rishtedaro ke
alawa sab is baat ko bhool gaye.


Par 2 mahine baad hi sabki yaad tab taza ho gayi jab aisi hi ek aur
laash phir Jogeshwari mein hi railway tracks par paayi gayi. Pehle
case ki tarah hi is baar phir badi safai ke saath sar kaat diya gaya
tha jo ke dhoondhe se bhi nahi mila. Laash par kapde, purse, ghadi,
ring sab kuchh tha. Policewalo ne laash ki pehchan ki aur kisi
rishtedaar ne phir aakar shinakht pakki kar di.


"Ab in reporters ko kya bataoon?" Maine naashta karte hue apni biwi se
kaha "Inhen toh har cheez ka jawab chahiye. Aur ab toh reporters hi
nahi balki uper se bhi pressure aane laga hai. Har koi meri jaan kha
raha hai ke main jaldi hi is case ki jad tak jaoon aur pata lagaoon ke
kya ho raha hai. Jaise ye koi bahut hi aasan aur mamuli kaam ho"

"Agar ye kaam aasan aur mamuli hota toh un logon ko aapki koi zaroorat
hi nahi thi" Meri biwi Priya ne kaha "Aur vaise bhi, aapse behtar
policewala is shehar mein hai hi kaun? Jitne cases aapne solve kiye
hain utne is shehar mein toh kya, poore desh mein kisi policewale ne
nahi kiye honge"


Uski baat sunkar mere chehre par muskurahat phel gayi. Maine chashma
utaar kar pyaar se uski taraf dekha. Jab bhi vo is tarah ki baaten
karti thi, mujhe apne uper garv mehsoos hone lagta tha.


"Par is case mein toh mujhe kuchh samajh hi nahi aa raha hai ke kahan
se shuru karun" Maine khade hote hue kaha "Dono marne walo ki kisi se
koi dushmani nahi thi, dono kahin bhi involved nahi the, apni apni
zindagi mein khush the aur sabse badi baat, dono ka aapas mein koi
lena dena nahi tha. Vo dono toh kya, unke door door ke rishtedaar aur
doston tak ek doosre se koi connection nahi tha. Par phir bhi vo dono
ek hi tarike se maar diye gaye. Aur ek hi ilaake mein maare gaye"

"Tumhein yakeen hai ke in dono ko ek hi aadmi ne mara hai?"

"Lagta toh hai" Maine uthkar darwaze ki taraf chala "Yakeenan taur par
pata karne mein thoda waqt lagega"


Par main galat tha, waqt laga nahi.


Usi raat 2 baje mera phone baja toh meri aankh khul gayi.

"Ek aur laash mili hai sir" Doosri taraf se constable ki aawaz aayi.

"Kahan?"

"Jogeshwari. Railway tracks par hi. Sar gayab hai"


Ye 3 mahine mein teesri laash thi.

Main murder site par jaane ki soch hi raha tha ke meri biwi bhi uthkar
bedroom se bahar aa gayi.

"chai ya coffee kuchh bana doon?" Usne puchha

"Nahi mujhe fauran nikalna padega"

"5 min legenge bas. Tum taiyyar ho jao, main bana deti hoon" Kehkar vo
bina mere jawab ka intezaar kiye kitchen ki taraf badh gayi.

Meri biwi Priya 46 saal ki ek sidhi saadi aurat thi. Koi use ek jhalak
dekh kar hi bata sakta tha ke jawani mein vo behad khoobsurat rahi
hogi. Is umar mein bhi teekhe nain naksh, saaf rang, lamba kad aur
mazboot kaathi ki vo aurat mujhe aaj bhi jee jaan se pyaar karti thi,
aur raah dekhti thi us din ki jab main retire ho jaoonga aur ham dono
kahin kisi hill station mein chhota sa ghar lekar retire ho jaayenge.


Us becahri ko kya pata tha ke main apni zindagi ka har din ye sochte
hue bita raha tha ke kaise usse chhutkara paoon. Kaise koi aisa
karishma ho jaaye ke vo bina kuchh kahe sune mujhe chhodkar chali
jaaye.


Use kya pata tha ke uska pata shaadi ke 25 saal baad ab is umar mein
usko dhokha de raha tha.


Nisha ko dekhte hi mujhe usse pyaar ho gaya tha.

"And i love you yoo" Palatkar Nisha ne mujhse ek din kaha tha.

Uski umar takreeban 20-21 ke aas paas thi. Ek typical bengali beauty
par uske chehre se zyada aakarshak tha uska shareer. Agar modern world
ki terminology mein kahun toh sar se paon tak poori ki poori item bomb
thi aur bistar par toh jaise aag laga deti thi.


Haan, main 50 saal ki umar mein 20 saal ki ek ladki ke saath so raha
tha, apni biwi ko dhokha de raha tha.


Par jab main Nisha ke saath hota tha toh mujhe phir se jaise jawani ka
ehsaas hota tha. Lagta tha ke main ab bhi vo sab kar sakta hoon jo aaj
se 30 saal pehle kar sakta tha. Jabki apni biwi Priya ke saath mujhe
har pal yahi mehsoos hota tha ke main buddha ho raha hoon, zindagi ke
aakhri padav ki taraf badh raha
hoon. Nisha ke saath main ek aazad panchhi ki tarah hota tha, ek hiran
ki tarah jo poore jungle mein uchhlata hua bhaag sakta tha jabki apni
biwi ke saath main apne aapko ek kolhu mein lage hue buddhe bel ki
tarah mehsoos karta tha.

"Mujhe apni poori zindagi mein aisa kabhi mehsoos nahi hua yaar" Maine
ek din apne dost Sushil se kaha tha


"Mera dil bandh sa gaya hai is ladki ke saath. 25 saal ki apni shaadi
mein maine kabhi Priya ko dhokha nahi diya. Mere liye meri zindagi bas
mera kaam, mere bachche aur meri biwi the. Par jab main Nisha se mila
toh kuchh ho sa gaya yaar. Usne mujhe jaise phir se jeena sikha diya.
Mere se aadhi umar ki is ladki
ne mujhe sikhya ke vasna aur prem ka asli matlab kya hai. Achha tu hi
bata, kya tuje use dekhke nahi lagta ke bhagwan ne use sirf isliye
banaya hai ke uske saath pyaar kiya jaaye? Aur hairat ki baat pata hai
kya hai? Ke vo bhi mujhse utna hi pyaar karti hai. Kyun? Ye main bhi
nahi janta. I mean kya dekha usne mujh mein? Main umar mein uske baap
se bhi bada hoon, mera pet nikla hua hai, main ganja hoon, shaadi
shuda hoon, jawan bachcho ke baap hoon......"
kramashah...................

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