मुंबई लोकल--3
गतान्क से आगे...............
क्या आप ज़िंदगी से मायूस हैं? क्या आपकी बीवी आपसे खुश नही? क्या आप काम
में तरक्की नही कर पा रहे? क्या आपको बच्चा नही हो पा रहा? क्या आपकी
माशूका आपसे अब प्यार नही करती? क्या आप अपने प्यार
का इज़हार अपने दिल में बसने वाली से नही कर पा रहे? तो ना हों उदास
क्यूंकी उपाय है हमारे पास. एक बार अवश्य मिले या नीचे दिए नंबर पर फोन
करें. पैसे काम पूरा होने के बाद
022 .........
+9199 .........
निशा ने अब मुझसे मिलना या बात करना बिल्कुल बंद कर दिया था और मैं उसके
इश्क़ में दीवाना हुआ जा रहा था. प्रिया के साथ मेरी सेक्स लाइफ कबकि
ख़तम हो चुकी थी इसलिए बिस्तर पर मुझे निशा की ज़रूरत हद से ज़्यादा
महसूस हो रही थी. किसी कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के की तरह मैं अक्सर निशा
के घर के सामने बने पार्क में बैठा रहता.
उसकी एक झलक पाने को.
ये देखने को कि क्या वो किसी और के साथ है?
कई बार मैने सोचा के उठकर खुद उसके घर पहुँच जाऊं पर फिर निशा के वो बात
याद आ जाती के अगर मैने उससे मिलने की कोशिश की तो वो अपनी जान दे देगी.
नही, ऐसा तो मैं बिल्कुल नही चाहता था.
उस पार्क में बैठे वो अक्सर मुझे दिखाई देती थी. उसने सिगरेट पीनी फिर से
शुरू कर दी थी जो मैने बड़ी कोशिश और वादों के बाद च्छुडवाई थी. केस के
बारे में सोचना तो मैने कबका बंद कर दिया था.
और मेरा यही जुनून था के एक दिन मैने दिल के हाथों हार कर प्रोफेसर
नोफ़रत को फोन कर दिया, इस उम्मीद के साथ के शायद वो मेरी कोई मदद कर दे.
शायद वो कुच्छ ऐसा कर दे के निशा का दिल बदल जाए और वो फिर मेरी ज़िंदगी
में आ जाए.
"आइए अंदर आइए" प्रोफेसर नोफ़रत ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा. फोन पर उसने
मुझे आकर मिलने को कहा और मैं उसी शाम उसके बताए अड्रेस पर पहुँच गया था
रंग रूप में वो बिल्कुल काला था. देखकर कहा नही जा सकता था के देश के किस
हिस्से का वो रहने वाला है पर घर और उसको देख कर कहा जा सकता था के अपने
धंधे में वो पैसे अच्छे कमा रहा था.
"आपने अपना नाम अब तक नही बताया" उसने मुझे एक चेर पर बैठने का इशारा
किया और मेरे सामने बैठते हुए मुझसे पुछा.
"मेरा नाम इस वक़्त उतना ज़रूरी नही जितना के आपका मुझे ये बताना के आप
मेरी कोई मदद कर सकते हैं या नही?" मैने पॉलिसिया अंदाज़ में जवाब दिया
"जहाँ तकलीफ़ होती है वहाँ इलाज भी होता है. एवेरी प्राब्लम हॅज़ ए
सल्यूशन" उसने मुस्कुराते हुए मेरी बात का जवाब दिया.
उसने काले रंग का एक सूट पहना हुआ था जो देखने से ही काफ़ी महेंगा मालूम
हो रहा था जबकि मैं तो लाल या भागुवे रंग में किसी बाबा की उम्मीद कर रहा
था. हाथ पर महेंगी घड़ी, सोने की अंगूठियाँ, गोलडेन फ्रेम का चश्मा,
लक्ष्मी उसपर मेहेरबान थी.
"चलिए नाम अभी मत बताइए. अपनी प्राब्लम बताइए" उसने मुझसे कहा
अगले आधे घंटे तक मैं किसी तोते की तरह अपनी कहानी उस अंजान आदमी को
बताने लगा. बातों बातों में मैं उसे अपना, प्रिया और निशा का नाम भी बता
गया. इसको कहानी बताकर आख़िर जाएगा भी क्या, मैने दिल ही दिल में सोचा
था. इस बहाने से कम से कम मेरे कंधो से एक बोझ हट गया था क्यूंकी मुझपर
क्या गुज़र रही थी मैं बहुत दिन से किसी को बताना चाह रहा था. किसी ऐसे
को जो सुने मगर मेरे बारे में कोई फ़ैसला ना करे, मुझे जड्ज ना करे. मुझे
लगने लगा था के अगर यही पागलपन चलता रहा तो मैं या तो अपने आपको ख़तम कर
लूँगा या किसी और को नुकसान पहुँचा दूँगा. प्रिया और निशा के बीच मैं ऐसा
फसा हुआ था के नोफ़रत से बात करने में मुझे कोई नुकसान दिखाई नही दिया.
"ह्म्म्म्ममम" मेरे बात ख़तम होने पर वो बोला "आप पहले नही हैं जो मेरे
पास इस तरीके की परेशानी लेकर आए हैं और शर्तिया तौर पर मैं आपकी मदद कर
सकता हूँ. पर ये मेरे लिए आसान नही है. इन सबके लिए एक स्पेशल प्रोसेस
होता है, एक सेरेमनी की जाती है जिसे हम आम भाषा में तन्त्र या पूजा कहते
हैं. आप शादी शुदा हैं और आप चाहते हैं के मैं एक नही बल्कि 2 औरतों का
मॅन बदल दूँ. आपकी बीवी का मंन ऐसा बनाऊँ के वो आपको छ्चोड़ कर चली जाए,
बिना कुच्छ कहे सुने और आपकी प्रेमिका का मंन ऐसा बनाऊँ के उसे आपके सिवा
दुनिया में कुच्छ दिखाई ना दे. और ऐसी चीज़ों के लिए कई बार अजीब अजीब
रास्ते लेने पड़ते हैं. कुर्बानी देनी पड़ती है. सॅक्रिफाइस जिसे हम कहते
हैं"
"किस तरह का सॅक्रिफाइस?" मैने पुछा
"वो आप मुझ पर छ्चोड़ दीजिए. अब बिना अंडा फोड़े तो ओम्लीट बन नही सकता.
पर इस सब में खर्चा बहुत आएगा"
"कितना?" मैने पुछा और जितना पैसा उसने बताया, वो सुनकर मेरी आँखें फेल गयी.
"जानता हूँ के आपको बहुत ज़्यादा लग रहा है पर बेफिकर रहिए. पैसा मैं
आपसे काम होने के बाद लूँगा क्यूंकी मुझे यकीन है के काम हो जाने के बाद
आप खुशी खुशी पैसा देने खुद आएँगे. और वैसे भी, अगर मैं आपके लिए कुच्छ
कर सकता हूँ तो आपके खिलाफ भी कर ही सकता हूँ"
उसका अंदाज़ ऐसा था के मैं सिहर उठा.
"तो ठीक रहा फिर. तो मैं आपसे 2 हफ्ते बाद मिलूँगा. आप मेरे पास आ जाइएगा
इस महीने की 15 तारीख को. तब तक मैं उन चीज़ों का इंटेज़ाम कर लूँगा जो
हमें सेरेमनी के लिए चाहिए होंगी"
"आप मुझे बता दीजिए, मैं आपको चीज़ें लाकर दे दूँगा" मैने कहा तो वो हस पड़ा
"अर्रे नही नही. ये मेरा काम है आप मुझपर ही छ्चोड़ दीजिए. इस तरह की
पूजा में जो चीज़ें चाहिए होती हैं वो आपकी सोच से परे हैं. ये एक तन्त्र
आहुति है, यहाँ बलि देनी पड़ती है ऐसी चीज़ों की जो हम अक्सर अपने कलेजे
से लगाए घूमते हैं"
मुझे समझ नही आया के उसकी बात का क्या जवाब दूं.
"आपके पास आपकी बीवी और आपकी प्रेमिका की कोई तस्वीर है?" उसने मुझसे पुछा
प्रिया की तस्वीर मेरे पर्स में थी जो मैने उसे दे दी पर निशा की कोई
तस्वीर मेरे पास नही थी.
"चलिए कोई नही, मुझे बताइए के वो दिखती कैसी है और बहुत बारीकी से
बताईएएगा" उसने कहा तो मैं उसको निशा के बारे में बताने लगा और वो एक
पेपर पर लिखने लगा.
आख़िर में उसने मुझसे उन दोनो की कोई चीज़ माँगी. मेरे पास उस वक़्त बाइ
चान्स मेरी बीवी का पेन था और निशा का दिया हुआ रुमाल जो वो पहले खुद
इस्तेमाल करती थी पर आखरी मुलाक़ात में मेरे पास रह गया था और जिसे मैं
साथ साथ लिए घूमता था.
दोनो चीज़ें मैने उसे दे दी.
आख़िर 2 हफ्ते गुज़रे और वो दिन आया जिसका मैं बेसब्री से इंतेज़ार कर
रहा था, यानी के पूजा का दिन.
जिस दिन मेरी सारी मुश्किलें हल हो जानी थी, जिस दिन निशा पूरी तरह मेरी
होकर मेरी ज़िंदगी में आ जानी थी.
मेरी बीवी जल्दी सो गयी थी और मैं रात के 11 बजे चुप चाप नोफ़रत के पास
जाने के लिए तैय्यार हो रहा था के अचानक फोन बज उठा.
"क्या है?" मैने गुस्से में फोन उठाते हुए पुछा
"सर कमिशनर साहब ने आपको बुलाया है" दूसरी तरफ से आवाज़ आई
"क्यूँ क्या हो गया?"
"सर फिर से लाश मिली है" सुनकर मेरा दिल धड़क उठा
"कहाँ?"
"वहीं जोगेश्वरी में सर. रेलवे ट्रॅक्स पर"
मैं अजीब हालत में फस गया. मुझे नोफ़रत से मिलने जाना था पर कमिशनर की
बात भी नही टाल सकता था.
"ठीक है मैं आ रहा हूँ" कहकर मैने फोन रख दिया.
नोफ़रत जोगेश्वरी में ही रहता था. मैं कमिशनर से मिलके सीधा उसके पास जा
सकता था. घर से मैं तैय्यार होकर निकला.
जोगेश्वरी रेलवे स्टेशन के बाहर मैने अपनी गाड़ी रोकी तो एक कॉन्स्टेबल
फ़ौरन मेरी गाड़ी की तरफ आया.
"क्या चल रहा है?" मैने पुछा
"तूफान मचा हुआ है सर. किसी रेलवे में काम करने वाले आदमी ने लाशें देखी
और पोलीस को फोन किया" कॉन्स्टेबल ने जवाब दिया
"लाशें?" मैने हैरत से उसकी तरफ देखा
"इस बार 2 मिली हैं सर" उसने कहा और मेरे पिछे पिछे चल पड़ा
जहाँ लाशें मिली वहाँ लोगों की भीड़ लगी हुई थी. आने जाने वाली सब
ट्रेन्स को फिलहाल के लिए रोक लिया गया था. पोलिसेवालो और मीडीया ने पूरी
जगह को घेर रखा था.
"सर मरने वाले कौन हैं?"
"आख़िर ये कब तक चलेगा? पोलीस कुच्छ करती क्यूँ नही?"
"क्या आपके पास कोई लीड्स हैं?"
"क्या किसी पर शक है"
और इस तरह के हज़ारों सवाल मेरे वहाँ पहुँचते ही चारो तरफ से उठने लगे.
मैं सबसे बचता हुआ लाश के करीब पहुँचा. कमिशनर भी वहीं साइड पर खड़े थे.
मेरी नज़र उनसे मिली और गुस्से में उन्होने मुझे घूरा.
चारो तरफ रोशनी फेली हुई थी और मेरे सामने 2 शरीर पड़े हुए थे, सफेद चादर
में ढके हुए और उपेर की तरफ जहाँ उनका सर होना चाहिए था वहाँ खून का
धब्बा बना हुआ था. सर दोनो लाशों के गायब थे.
"इस बार दोनो औरतें हैं सर. फिलहाल कुच्छ भी छेड़ा नही गया है" साथ खड़े
सब-इनस्पेक्टर ने मुझसे कहा तो मैने इशारे से चादर उपेर करने को कहा.
चादर हल्की सी उपेर की गयी ताकि मैं लाश को देख सकूँ. वो कोई 40-45 साल
की औरत थी. देखने से वो सॉफ रंग, लंबा कद और मज़बूत काठी की औरत लगती थी.
मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. सामने पड़े शरीर की जिस तरह की बनावट
थी, अगर मुझे ये पता ना होता के मेरी बीवी को मैं अभी घर पर सोता हुआ
छ्चोड़के आया हूँ, तो मुझे यही लगता के वो मेरी बीवी है.
तभी मेरी नज़र उस औरत के हाथ पर पड़ी. उसके हाथ में एक पेन था. मैने नीचे
बैठते हुए करीब से देखा. ये मेरी बीवी का पेन था, वही पेन था जो मैने
नोफ़रत को दिया था.
"एक सेरेमनी करनी पड़ती है, एक पूजा. अब आप मुझे बताइए कि आपकी बीवी और
प्रेमिका दिखती कैसी है. बहुत बारीकी से बताईएएगा" मुझे नोफ़रत की बातें
याद आ रही थी.
धड़कते दिल के साथ मैने मैने दूसरी लाश से चादर हटाई.सबसे पहली चीज़ जो
मुझे नज़र आई वो थी उस लाश के हाथ पर बँधा रुमाल.
निशा का रुमाल, जो मैने नोफ़रत को दिया था.
पहली औरत, शरीर से बिल्कुल मेरी बीवी जैसी. मैं शायद जानता था के दूसरी
चादर के नीचे जो औरत होगी वो कैसी होगी पर जब चादर उठी तो मुझे खड़े खड़े
चक्कर आ गये.
भले ही लाश से सर गायब था पर निशा का जिस्म मैं एक पल में देखते ही पहचान गया.
समाप्त
MUMBAI LOCAL--3
gataank se aage...............
Kya aap zindagi se mayoos hain? Kya aapki biwi aapse khush nahi? Kya
aap kaam mein tarakki nahi kar pa rahe? Kya aapko bachcha nahi ho pa
raha? Kya aapki mashooka aapse ab pyaar nahi karti? Kya aap apne pyaar
ka izhaar apne dil mein basne wali se nahi kar pa rahe? Toh na hon
udaas kyunki upaay hai hamare paas. Ek baar avashya mile ya neeche
diye number par phone karen. Paise kaam poora hone ke baad
022 .........
+9199 .........
Nisha ne ab mujhse milna ya baat karna bilkul band kar diya tha aur
main uske ishq mein diwana hua ja raha tha. Priya ke saath meri sex
life kabki khatam ho chuki thi isliye bistar par mujhe Nisha ki
zaroorat hadh se zyada mehsoos ho rahi thi. Kisi college mein padhne
wale ladke ki tarah main aksar Nisha ke ghar ke saamne bane park mein
betha rehta.
Uski ek jhalak paane ko.
Ye dekhne ko ke kya vo kisi aur ke saath hai?
Kai baar maine socha ke uthkar khud uske ghar pahunch jaoon par phir
Nisha ke vo baat yaad aa jaati ke agar maine usse milne ki koshish ki
toh vo apni jaan de degi.
Nahi, aisa toh main bilkul nahi chahta tha.
Us park mein bethe vo aksar mujhe dikhai deti thi. Usne cigarette
peeni phir se shuru kar di thi jo maine badi koshish aur wadon ke baad
chhudvayi thi. Case ke baare mein sochna toh maine kabka band kar diya
tha.
Aur mera yahi junoon tha ke ek din maine dil ke haathon haar kar
Professor Nofrat ko phone kar diya, is ummeed ke saath ke shayad vo
meri koi madad kar de. Shayad vo kuchh aisa kar de ke Nisha ka dil
badal jaaye aur vo phir meri zindagi mein aa jaaye.
"Aaiye andar aaiye" Professor Nofrat ne darwaza kholte hue kaha. Phone
par usne mujhe aakar milne ko kaha aur main usi shaam uske bataye
address par pahunch gaya tha
Rang roop mein vo bilkul kala tha. Dekhkar kaha nahi ja sakta tha ke
desh ke kis hisse ka vo rehne wala hai par ghar aur usko dekh kar kaha
ja sakta tha ke apne dhandhe mein vo paise achhe kama raha tha.
"Aapne apna naam ab tak nahi bataya" Usne mujhe ek chair par bethne ka
ishara kiya aur mere saamne bethte hue mujhse puchha.
"Mera naam is waqt utna zaroori nahi jitna ke aapka mujhe ye batana ke
aap meri koi madad kar sakte hain ya nahi?" Maine policiya andaz mein
jawab diya
"Jahan takleef hoti hai vahan ilaaj bhi hota hai. Every problem has a
solution" Usne muskurate hue meri baat ka jawab diya.
Usne kaale rang ka ek suit pehna hua tha jo dekhne se hi kaafi mehenga
maalum ho raha tha jabki main toh laal ya bhaguve rang mein kisi baba
ki ummeed kar raha tha. Haath par mehengi ghadi, sone ki anguthiyan,
golden frame ka chashma, lakshmi uspar meherban thi.
"Chaliye naam abhi mat bataiye. Apni problem bataiye" Usne mujhse kaha
Agle aadhe ghante tak main kisi tote ki tarah apni kahani us anjaan
aadmi ko batane laga. Baaton baaton mein main use apna, Priya aur
Nisha ka naam bhi bata gaya. Isko kahani batakar aakhir jaayega bhi
kya, maine dil hi dil mein socha tha. Is bahane se kam se kam mere
kandho se ek bojh hat gaya tha kyunki mujhpar kya guzar rahi thi main
bahut din se kisi ko batana chah raha tha. Kisi aise ko jo sune magar
mere baare mein koi faisla na kare, mujhe judge na kare. Mujhe lagne
laga tha ke agar yahi pagalpan chalta raha toh main ya toh apne aapko
khatam kar loonga ya kisi aur ko nuksaan pahuncha doonga. Priya aur
Nisha ke beech main aisa phasa hua tha ke Nofrat se baat karne mein
mujhe koi nuksaan dikhai nahi diya.
"Hmmmmmm" Mere baat khatam hone par vo bola "Aap pehle nahi hain jo
mere paas is tarike ki pareshani lekar aaye hain aur shartiya taur par
main aapki madad kar sakta hoon. Par ye mere liye aasan nahi hai. In
sabke liye ek special process hota hai, ek ceremony ki jaati hai jise
ham aam bhasha mein tantra ya pooja kehte
hain. Aap shadi shuda hain aur aap chahte hain ke main ek nahi balki 2
auraton ka mann badal doon. Aapki biwi ka mann aisa banaoon ke vo
aapko chhod kar chali jaaye, bina kuchh kahe sune aur aapki premika ka
mann aisa banaoon ke use aapke siwa duniya mein kuchh dikhai na de.
Aur aisi cheezon ke liye kai baar ajeeb ajeeb raaste lene padte hain.
Kurbani deni padti hai. Sacrifice jise ham kehte hain"
"Kis tarah ka sacrifice?" Maine puchha
"Vo aap mujh par chhod dijiye. Ab bina anda phode toh omlette ban nahi
sakta. Par is sab mein kharcha bahut aayega"
"Kitna?" Maine puchha aur jitna paisa usne bataya, vo sunkar meri
aankhen phel gayi.
"Janta hoon ke aapko bahut zyada lag raha hai par befikar rahiye.
Paisa main aapse kaam hone ke baad loonga kyunki mujhe yakeen hai ke
kaam ho jaane ke baad aap khushi khushi paisa dene khud aayenge. Aur
vaise bhi, agar main aapke liye kuchh kar sakta hoon toh aapke khilaff
bhi kar hi sakta hoon"
Uska andaaz aisa tha ke main sihar utha.
"Toh theek raha phir. Toh main aapse 2 hafte baad milunga. Aap mere
paas aa jaaiyega is mahine ki 15 tarikh ko. Tab tak main un cheezon ka
intezaam kar loonga jo hamen ceremony ke liye chahiye hongi"
"Aap mujhe bata dijiye, main aapko cheezen lakar de doonga" Maine kaha
toh vo has pada
"Arrey nahi nahi. Ye mera kaam hai aap mujhpar hi chhod dijiye. Is
tarah ki pooja mein jo cheezen chahiye hoti hain vo aapki soch se pare
hain. Ye ek tantra aahuti hai, yahan bali deni padti hai aisi cheezon
ki jo ham aksar apne kaleje se lagaye ghoomte hain"
Mujhe samajh nahi aaya ke uski baat ka kya jawab doon.
"Aapke paas aapki biwi aur aapki premika ki koi tasveer hai?" Usne mujhse puchha
Priya ki tasveer mere purse mein thi jo maine use de di par Nisha ki
koi tasveer mere paas nahi thi.
"Chaliye koi nahi, mujhe bataiye ke vo dikhti kaisi hai aur bahut
bariki se bataiyega" Usne kaha toh main Usko Nisha ke baare mein
batane laga aur vo ek paper par likhne laga.
Aakhir mein usne mujhse un dono ki koi cheez maangi. Mere paas us waqt
by chance meri biwi ka pen tha aur Nisha ka diya hua rumaal jo vo
pehle khud istemaal karti thi par aakhri mulaqat mein mere paas reh
gaya tha aur jise main saath saath liye ghoomta tha.
Dono cheezen maine use de di.
Aakhir 2 hafte guzre aur vo din aaya jiska main besabri se intezaar
kar raha tha, yaani ke Pooja ka din.
Jis din meri saari mushkilen hal ho jaani thi, jis din Nisha poori
tarah meri hokar meri zindagi mein aa jaani thi.
Meri biwi jaldi so gayi thi aur main raat ke 11 baje chup chap Nofrat
ke paas jaane ke liye taiyyar ho raha tha ke achanak phone baj utha.
"Kya hai?" Maine gusse mein phone uthate hue puchha
"Sir commissioner sahab ne aapko bulaya hai" Doosri taraf se aawaz aayi
"Kyun kya ho gaya?"
"Sir phir se laash mili hai" Sunkar mera dil dhadak utha
"Kahan?"
"Vahin Jogeshwari mein sir. Railway tracks par"
Main ajeeb halat mein phas gaya. Mujhe Nofrat se milne jana tha par
Commissioner ki baat bhi nahi taal sakta tha.
"Theek hai main aa raha hoon" Kehkar maine phone rakh diya.
Nofrat Jogeshwari mein hi rehta tha. Main commissioner se milke sidha
uske paas ja sakta tha. Ghar se main taiyyar hokar nikla.
Jogeshwari railway station ke bahar maine apni gaadi roki toh ek
constable fauran meri gaadi ki taraf aaya.
"Kya chal raha hai?" Maine puchha
"Toofan macha hua hai sir. Kisi railway mein kaam karne wale aadmi ne
laashen dekhi aur police ko phone kiya" Constable ne jawab diya
"Laashen?" Maine hairat se uski taraf dekha
"Is baar 2 mili hain sir" Usne kaha aur mere pichhe pichhe chal pada
Jahan laashen mili vahan logon ki bheed lagi hui thi. Aane jaane wali
sab trains ko filhal ke liye rok liya gaya tha. Policewalo aur media
ne poori jagah ko gher rakha tha.
"Sir marne wale kaun hain?"
"Aakhir ye kab tak chalega? Police kuchh karti kyun nahi?"
"Kya aapke paas koi leads hain?"
"Kya kisi par shak hai"
Aur is tarah ke hazaron sawal mere vahan pahunchte hi chaaro taraf se
uthne lage. Main sabse bachta hua laash ke kareeb pahuncha.
Commisioner bhi vahin side par khade the. Meri nazar unse mili aur
gusse mein unhone mujhe ghoora.
Chaaro taraf roshni pheli hui thi aur mere saamne 2 shareer pade hue
the, safed chadar mein dhake hue aur uper ki taraf jahan unka sar hona
chahiye tha vahan khoon ka dhabba bana hua tha. Sar dono laashon ke
gayab the.
"Is baar dono auraten hain sir. Filhal kuchh bhi chheda nahi gaya hai"
Saath khade sub-inspector ne mujhse kaha toh maine ishare se chadar
uper karne ko kaha.
Chadar halki si uper ki gayi taaki main laash ko dekh sakun. Vo koi
40-45 saal ki aurat thi. Dekhne se vo saaf rang, lamba kad aur mazboot
kaathi ki aurat lagti thi.
Mere dil ki dhadkan tez hone lagi. Saamne pade shareer ki jis tarah ki
banavat thi, agar mujhe ye pata na hota ke meri biwi ko main abhi ghar
par sota hua chhodke aaya hoon, toh mujhe yahi lagta ke vo meri biwi
hai.
Tabhi meri nazar us aurat ke haath par padi. Uske haath mein ek pen
tha. Maine neeche bethte hue kareeb se dekha. Ye meri biwi ka pen tha,
vahi pen tha jo maine Nofrat ko diya tha.
"Ek ceremony karni padti hai, ek pooja. Ab aap mujhe bataiye ki aapki
biwi aur permika dikhti kaisi hai. Bahut baareeki se bataiyega" Mujhe
Nofrat ki baaten yaad aa rahi thi.
Dhadakte dil ke saath maine maine doosri laash se chadar hatayi.Sabse
pehli cheez jo mujhe nazar aayi vo thi us laash ke haath par bandha
rumaal.
Nisha ka rumaal, jo maine Nofrat ko diya tha.
Pehli aurat, shareer se bilkul meri biwi jaisi. Main shayad janta tha
ke doosri chadar ke neeche jo aurat hogi vo kaisi hogi par jab chadad
uthi toh mujhe khade khade chakkar aa gaye.
Bhale hi laash se sar gayab tha par Nisha ka jism main ek pal mein
dekhte hi pehchan gaya.
samaapt
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