Thursday, September 27, 2012

सेक्सी कहानियाँ जवानी की मिठास--4

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

जवानी की मिठास--4

सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो
की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
गतान्क से आगे................
शाम को विजय घूम फिर कर घर आ जाता है और उसे देखते ही गुड़िया उसके पास
जाकर लिपट जाती है, विजय उसे अपनी बाँहो मैं भर कर चूमते हुए मेरी
गुड़िया रानी सुबह से कहाँ गायब थी मैं तेरे लिए कितना बैचैन था,
गुड़िया- अपने भैया का हाथ पकड़ कर उसे खाट पर बैठते हुए भैया मैंने सब
तैयारी कर ली है और कल से तुम्हारा
जब दिल करेगा अपनी बहन को अपनी गोद मे बैठा कर प्यार कर लेना,
विजय- मेरा दिल तो अभी अपनी बहन को प्यार करने का हो रहा है,
गुड़िया- अपने भाई के उपर चढ़ कर बैठ जाती है और विजय उसके पतले से घाघरे
के उपर से उसके भारी चूतादो को
सहलाने लगता है, उसके भारी चूतादो को दबाते हुए, गुड़िया तू कितनी दुबली हो गई है,
गुड़िया अपने भाई के गालो से अपने गाल रगड़ते हुए भैया आप यहाँ रहते नही
तो मुझे अच्छा नही लगता है ना
विजय- अच्छा अब तो तू मेरे साथ ही रहेगी और फिर गुड़िया की मोटी गंद को
अपने हाथो से दबाते हुए देखना गुड़िया
मैं तुझे कितनी तंदुरुस्त कर दूँगा,
गुड़िया- हा भैया मेरा भी बदन बहुत दर्द करता है और जब तुम दबाते हो तो
बहुत अच्छा लगता है
विजय- अच्छा मुझे बता तेरा बदन कहाँ-कहाँ दर्द करता है
गुड़िया- अपने भैया का एक हाथ पकड़ कर अपने मोटे-मोटे दूध के उपर रख लेती
है और दूसरे हाथ को अपने भारी
चूतादो के उपर रख लेती है, विजय अपनी बहन को भोली समझ कर उसके मोटे-मोटे
दूध और गदराई गंद को खूब कस-
कस कर मसल्ने लगता है, उसका लंड अपनी बहन के दूध और मोटी गंद मसल्ते हुए
एक दम तन कर खड़ा हो जाता है
विजय- अब अच्छा लग रहा है
गुड़िया- हाँ भैया बहुत अच्छा लग रहा है पर मुझे अपनी गोद मे बैठा कर
दोनो हाथो से मेरी छातियाँ मसलो ना
विजय गुड़िया को अपने लंड पर बैठा कर उसके दोनो मोटे-मोटे दूध को खूब
कस-कस कर मसल्ने लगता है तभी
अचानक रुक्मणी घर के अंदर आ जाती है और विजय और गुड़िया का ध्यान उसकी ओर
नही रहता है, वह गुड़िया को पागलो की तरह चूमता हुआ उसके मोटे-मोटे दूध
को दोनो हाथो से खूब कस-कस कर मसलता रहता है, गुड़िया आह आह करती हुई हा
भैया अब बहुत अच्छा लग रहा है ऐसे ही ऐसे ही करते रहो,
रुक्मणी दोनो को उस तरह देख कर गरम हो जाती है और चुपचाप दरवाजे के पीछे
छुपकर उन दोनो को देखने लगती
है,
गुड़िया- भैया आपको इस तरह मालिश करना कहाँ से पता चला है आप बहुत अच्छे
से मसल्ते हो दो मिनिट मे दर्द
ख़तम हो जाता है और मज़ा आने लगता है, क्या आप मम्मी की भी ऐसे ही मालिश करते हो
गुड़िया के मूह से ऐसी बात सुन कर रुक्मणी की चूत कुलबुलाने लगती है,
विजय- नही रे मम्मी की ऐसी मालिश करने को कहाँ मिलता है
गुड़िया- तो भैया मम्मी को भी मेरी तरह दर्द रहता होगा आप मम्मी को भी
इसी तरह मसल कर मालिश कर दिया करो
ना,
विजय- गुड़िया की चोली खोल कर उसके दोनो मोटे-मोटे दूध अपने हाथो मे भरकर
दबाते हुए, हे गुड़िया मम्मी
मुझसे ऐसी मालिश करवाती ही कहाँ है, मैं तो कब से मम्मी की मालिश करने के
लिए तरस रहा हू
गुड़िया- आह तो क्या आपको भी भैया ऐसी मालिश करने मे मज़ा आता है
विजय- हाँ गुड़िया तभी विजय को ऐसा लगता है जैसे कोई छुपकर खड़ा है और
विजय समझ जाता है कि उसकी मा रुक्मणी छुप कर खड़ी है, वह उसकी ओर बिना
देखे पहले थोड़ा घबराता है लेकिन फिर उसका लंड झटके मारने लगता है और वह
गुड़िया के दूध को दबाता हुआ, गुड़िया तू नही जानती मैं ऐसी मालिश करने
के लिए कितना तरसता हू,

गुड़िया- क्या आपका मन मम्मी की भी मालिश करने को करता है
विजय- हाँ गुड़िया मेरा मान तो मम्मी को पूरी नंगी करके मालिश करने का करता है
गुड़िया- हस्ते हुए क्या भैया मम्मी कभी आपको नंगी करके मालिश करने देगी क्या
विजय- क्यो नही करने देगी मैंने तो सुना है मम्मी को पूरी नंगी होकर
मालिश करवाने मे बहुत मज़ा आता है
गुड़िया- हाँ भैया लेकिन सिर्फ़ जमुना काकी के साथ
विजय- अच्छा चल अब अपनी चोली बाँध ले मा आती होगी
रुक्मणी थोड़ी देर बाद घर के अंदर आती है, रात को सभी खाना खा कर सो जाते
है और सुबह जब गुड़िया बाहर बाइक के
पास समान लेकर खड़ी थी तब विजय अपनी मा से गले मिलने लगा
रुक्मणी- जल्दी आना बेटे तेरे बिना मन नही लगता है, वैसे भी तुझे मेरा
बिल्कुल ख्याल नही है बस अपनी बहन का ही
ध्यान रहता है,
विजय- नही मा अब की बार आउन्गा तो तुम्हारी हर शिकायत दूर कर दूँगा
रुक्मणी- गुड़िया का ख्याल रखना अभी बहुत बचपाना है उसमे
विजय- तुम फिकर ना करो मा अब तुम्हारी बेटी बच्ची नही रहेगी उसे मैं
तुम्हारी तरह समझदार बना दूँगा

विजय अपनी बहन को लेकर शहर आ जाता है और उसे घर छ्चोड़ कर ड्यूटी चला
जाता है, शाम को विजय घर पहुच कर
जब दरवाजा बजाता है तब गुड़िया दरवाजा खोलती है वह सीधे विजय से लिपट
जाती है, विजय उसे अपनी गोद मे उठा कर
अंदर ले आता है और फिर कभी उसके होंठो को कभी उसके गालो को चूमना शुरू कर देता है,

गुड़िया अपने मन मे सोचती है आज तो मैं अपने भैया के मोटे लंड को अपनी
चूत मे भर कर उनसे खूब अपनी चूत मरवाउंगी, गुड़िया भैया अब अपनी बहन को
चूमते ही रहोगे या उससे यह भी पूछोगे कि तुझे आज सबसे ज़्यादा दर्द कहाँ
हो रहा है,

विजय- उसके रसीले होंठो को चूस कर बता मेरी प्यारी बहना आज तुझे सबसे
ज़्यादा दर्द कहाँ पर हो रहा है
गुड़िया उसके उपर से उठती हुई पहले भैया अपना ये पेंट उतार कर हाथ मूह धो
लो और लूँगी पहन लो फिर बताती हू, पेंट
मे आप अच्छे से मुझे अपनी गोद मे बैठा नही पाते है,

विजय जल्दी से अपने कपड़े उतार कर बाथरूम मे हाथ मुँह धोकर पूरा नंगा
होकर केवल अपनी लूँगी पहन कर आ जाता है
और गुड़िया को पकड़ कर अपनी और उसका मूह करके उसे अपनी गोद मे चढ़ा लेता
है गुड़िया का घाघरा पीछे सरक जाता
है और उसकी चूत सीधे अपने भैया के मोटे लंड से सत जाती है, विजय उसे
पागलो की तरह चूमते हुए उसके मोटे-मोटे
दूध को बुरी तरह दबाने लगता है,

गुड़िया अपने भैया के मोटे लंड से अपनी चूत को बार-बार आगे पीछे करके रगड़ने
लगती है,

विजय- बोल मेरी बहाना आज कहाँ तुझे दर्द हो रहा है, गुड़िया अपने भाई के
मोटे लंड को पकड़ कर कहती है जहाँ आपका
यह मोटा डंडा मुझे चुभ रहा है, गुड़िया की बात सुन कर विजय उसे बेड पर
लेटा देता है और गुड़िया अपनी दोनो टाँगे
फैला कर उसे अपनी गुलाबी कसी हुई चूत दिखा कर कहती है भैया देखो ने यहा
आज बहुत दर्द हो रहा है देखो कैसी
लाल हो गई है, विजय अपनी बहन की गुलाबी रस से भरी चूत देख कर उसकी दोनो
फांको को खूब कस कर फैला देता है और फिर अपनी जीभ अपनी बहन की रसीली चूत
की फांको के बीच बहते गुलाबी छेद मैं डाल कर पागलो की तरह अपनी जवान बहन
की चूत का रस पीने लग जाता है,


गुड़िया- ओह भैया आह आह हॅ भीया यही दर्द है बहुत दर्द है और ज़ोर से चतो
भैया आह आह, विजय पागलो की तरह
गुड़िया की चूत की फूली हुई फांको को फैला कर उसकी गुलाबी चूत चाटने लगता
है, गुड़िया खूब सिसकिया लेती हुई अपनी मोटी गंद उठा-उठा कर अपने भैया के
मूह मे मारने लग जाती है, कुछ देर तक विजय अपनी बहन की चूत चाट-चाट कर
पूरी लाल कर देता है, उसके बाद गुड़िया अपने भैया से पूरी चिपक जाती है,


विजय- उसका घाघरा और चोली उतार कर पूरी नंगी करके उसकी चूत को अपने हाथो
से सहलाता रहता है
गुड़िया- भैया तुम मम्मी को भी ऐसे ही नंगी करके प्यार करना चाहते हो ना
विजय- गुड़िया के मोटे-मोटे दूध को दबाता हुआ हा मेरी बहना मैं मम्मी को
बहुत प्यार करता हू और इसी तरह
मम्मी को पूरी नंगी करके उनकी मालिश करना चाहता हू,
गुड़िया- भैया आपका ये तो बहुत मोटा है


विजय- तू इसे चतेगी तो तुझे बहुत अच्छा लगेगा,
गुड़िया- भैया आप भी मेरी चॅटो ना मैं आपका ये मोटा डंडा चुस्ती हू और
फिर दोनो भाई बहन एक दूसरे के लंड और
चूत को पागलो की तरह तब तक चूस्ते है जब तक कि एक दूसरे का सारा रस
चूस-चूस कर पी नही जाते,
गुड़िया- हान्फ्ते हुए, अपने भैया से बुरी तरह से लिपट जाती है और ओह
भैया कितना मज़ा आता है, आपका डंडा चूसने मे
तो बहुत मज़ा आता है भैया मुझे और चूसना है भैया,
विजय- हा मेरी बहना तेरा जितना मन करे चूस लेना पर पहले एक बार तू इस
डंडे के उपर अच्छे से बैठ जा मैं तुझे और
भी मज़ा देना चाहता हू,
गुड़िया- ओह भैया मुझे ऐसे नही तुम खड़े होकर फिर मुझे अपने डंडे पर चढ़ा लो,


विजय- गुड़िया की बात सुन कर उसकी दोनो जाँघो से उसे दबोच कर उसकी दोनो
जाँघो को अपनी कमर के इर्द गिर्द लपेट कर उसकी कसी चूत को अपने लंड से
भिड़ा कर जब पीछे से उसकी गंद को दबोच कर एक तगड़ा झटका मारता है और उसका
मोटा लंड गुड़िया की चूत को फाड़ता हुआ पूरा अंदर तक फँस जाता है और
गुड़िया एक ज़ोर की चीख के साथ अपने भैया के मोटे लंड मे अपनी चूत फसाए
उससे बुरी तरह चिपक जाती है,

गुड़िया- ओह भैया मर गई भैया ये क्या कर रहे हो भैया,
विजय- अपने लंड के तगड़े झटके अपनी बहन की चूत मे मारता हुआ, मेरी रानी
मैं अपनी बहन को चोद रहा हू और फिर

विजय गुड़िया को बेड पर लिटा कर उसकी चूत मे अपने मोटे लंड के खूब तगड़े
धक्के मारने लगता है, लगभग 10 मिनिट
तक जब विजय अपनी बहन की टाइट चूत मे अपना लंड खूब पेल -पेल कर चोदता है
तब कही जाकर गुड़िया भी अपनी मोटी गंद अपने भैया के लंड पर मारने लगती
है, ओह भैया फाड़ दो और छोड़ो अपनी बहन को आह आह भैया कितना मज़ा आता है
चोदने मे खूब चोदो भैया,


विजय की रफ़्तार पूरी तरह तेज हो जाती है और फिर वह कुछ जोरदार धक्के मार कर अपनी
बहन की चूत मे अपना पानी गिरा देता है, दोनो भाई बहन अपने चूत और लंड को
खूब एकदुसरे मे कसे हुए पड़े
रहते है,

कुछ देर बाद विजय गुड़िया को उठा कर अपने उपर लिटा लेता है और उसे चूमते
हुए उसकी गदराई गंद को सहलाने लगता है
कहो गुड़िया तुम्हे मज़ा आया कि नही

गुड़िया- ओह भैया आज तो आप ने वो मज़ा दिया है जो कभी नही भूलेगा, मुझे
क्या पता था भैया इसको चोदना कहते
है नही तो मैं कब की आप से अपनी चूत मरवा चुकी होती,
विजय- मेरी रानी मैं तो तुझे ना जाने कब से चोदना चाहता था,

गुड़िया- अपने भैया का मोटा लंड सहलाती हुई, भैया तो क्या तुम मम्मी को
भी इसी तरह चोदना चाहते हो
अपनी मम्मी का नाम सुनते ही विजय का लंड फिर से झटके मारने लगता है,
विजय- हाँ गुड़िया मुझे मम्मी को पूरी नंगी करके चोदने का बड़ा मन करता है
गुड़िया- तो चोद दो ना भैया, तुम इतना अच्छा चोद्ते हो देखना मम्मी कभी
मना नही करेगी

विजय- पर गुड़िया मैं यह भी तो नही जानता कि मम्मी मुझसे अपनी चूत मरवाना
चाहती है या नही
गुड़िया- तुम्हारा मन क्या मम्मी की चूत देखने का करता है
विजय- नही गुड़िया मेरा मन मम्मी की चूत चाटने और उसे नंगी करके चोदने का करता है

गुड़िया- क्या तुमने मम्मी की चूत देखी है
विजय- नही रे अभी तक नही
गुड़िया- भैया मम्मी की चूत तो बहुत फूली हुई और बड़ी है बिल्कुल
तुम्हारे मोटे लंड से चुदने के लायक है,

विजय- गुड़िया की चूत को सहलाता हुआ, गुड़िया क्या मम्मी भी ऐसा सोचती
होगी कि वह मुझे अपनी चूत पर चढ़ा कर अपने बेटे का मोटा लंड अपनी चूत मे
लेती होगी,
गुड़िया- एक आइडिया है भैया, अगर मम्मी तुम्हारे लंड से चुदवाने के लिए
तड़प रही होगी तो वह यह बात जमुना काकी से
ज़रूर करेगी बस हमे उनकी बाते सुननी होगी, तभी पता चल पाएगा,

विजय- अच्छा गुड़िया ज़रा घोड़ी की तरह झुक कर मुझे अपनी मोटी गंद तो
दिखा, गुड़िया जल्दी से अपनी गंद अपने भैया के मूह की ओर करके झुक जाती
है और विजय अपने हाथो से गुड़िया की गंद का छेद सहलाते हुए

विजय- गुड़िया तूने मम्मी का यह गंद वाला छेद देखा है
गुड़िया- आह भैया मैंने तो नही देखा लेकिन जमुना काकी ने ज़रूर देखा होगा
वह तो रोज ही मम्मी की चूत और गंद
अपने होंठो से खूब चुस्ती और चाटती है,

विजय- गुड़िया मुझे मम्मी का ये वाला छेद खूब कस कर चाटने और सूंघने का मन होता है
गुड़िया- भैया तुम मम्मी की मोटी गंद को नंगी देख लोगे तो उसकी गंद चाते
बिना वैसे भी नही रह पाओगे

विजय गुड़िया की मोटी गंद से अपना मूह लगा कर उसे बड़े प्यार से चूत से
लेकर गंद तक चाटना शुरू कर देता है और
फिर धीरे से वह अपना मोटा लंड गुड़िया की चूत मे पीछे से पेलना शुरू कर
देता है, कुछ देर ऐसे ही चोद्ते हुए विजय
गुड़िया को एक साइड मे सुला कर पीछे से उसकी चूत मे लंड फसा कर आराम से
चिपक कर धीरे-धीरे गुड़िया को चोद्ते
हुए उससे बाते करने लगता है, गुड़िया धीरे-धीरे अपनी चूत मे घुसते अपने
भैया के मोटे लंड से आसमान मे उड़ने
लगती है,

गुड़िया- मैं कैसा चोदता हू
गुड़िया- ओह भैया आप बहुत अच्छा चोद्ते हो

विजय-गुड़िया एक बात कहु, कभी-कभी मेरा दिल करता है कि मैं तुझे और मम्मी
को दोनो को पूरी नंगी करके एक साथ
पूरी रात चोदु,
गुड़िया- ओह भैया क्या ऐसा हो सकता है क्या मम्मी आपसे अपनी चूत मरवाने
को राज़ी हो जाएगी

विजय- हाँ गुड़िया मैं कैसे भी करके मम्मी को इस बार ज़रूर चोदुन्गा
उस रात विजय सारी रात अपनी बहन को तबीयत से ठोकता रहा और फिर गुड़िया
जितने दिन उसके पास रही वह दिन रात उसे जी भर कर चोदता था,
क्रमशः...............

JAWAANI KI MITHAS--4

gataank se aage................
sham ko vijay ghum phir kar ghar aa jata hai aur use dekhte hi gudiya
uske pas jakar lipat jati hai, vijay use apni banho
main bhar kar chumte huye meri gudiya rani subah se kaha gayab thi
main tere liye kitna baichain tha,
gudiya- apne bhaiya ka hath pakad kar use khat par baithate huye
bhaiya mainne sab taiyari kar li hai aur kal se tumhara
jab dil karega apni bahan ko apni god main baitha kar pyar kar lena,
vijay- mera dil to abhi apni bahan ko pyar karne ka ho raha hai,
gudiya- apne bhai ke upar chadh kar baith jati hai aur vijay uske
patle se ghaghre ke upar se uske bhari chutado ko
sahlane lagta hai, uske bhari chutado ko dabate huye, gudiya tu kitni
dubli ho gai hai,
gudiya apne bhai ke galo se apne gal ragadte huye bhaiya aap yaha
rahte nahi to mujhe achcha nahi lagta hai na
vijay- achcha ab to tu mere sath hi rahegi aur phir gudiya ki moti
gand ko apne hantho se dabate huye dekhna gudiya
main tujhe kitni tandurust kar dunga,
gudiya- ha bhaiya mera bhi badan bahut dard karta hai aur jab tum
dabate ho to bahut achcha lagta hai
vijay- achcha mujhe bata tera badan kaha-kaha dard karta hai
gudiya- apne bhaiya ka ek hath pakad kar apne mote-mote doodh ke upar
rakh leti hai aur dusre hath ko apne bhari
chutado ke upar rakh leti hai, vijay apni bahan ko bholi samajh kar
uske mote-mote doodh aur gadaraai gand ko khub kas-
kas kar masalne lagta hai, uska land apni bahan ke doodh aur moti gand
masalte huye ek dam tan kar khada ho jata hai
vijay- ab achcha lag raha hai
gudiya- ha bhaiya bahut achcha lag raha hai par mujhe apni god main
baitha kar dono hantho se meri chaatiyan masalo na
vijay gudiya ko apne land par baitha kar uske dono mote-mote doodh ko
khub kas-kas kar masalne lagta hai tabhi
achanak rukmani ghar ke andar aa jati hai aur vijay aur gudiya ka
dhyan uski aur nahi rahta hai, vah gudiya ko paglo ki
tarah chumta hua uske mote-mote doodh ko dono hantho se khub kas-kas
kar masalta rahta hai, gudiya aah aah karti hui
ha bhaiya ab bahut achcha lag raha hai aise hi aise hi karte raho,
rukmani dono ko us tarah dekh kar garam ho jati hai aur chupchap
darwaje ke piche chupkar un dono ko dekhne lagti
hai,
gudiya- bhaiya aapko is tarah malish karna kaha se pata chala hai aap
bahut achche se masalte ho do minute main dard
khatam ho jata hai aur maza aane lagta hai, kya aap mummy ki bhi aise
hi malish karte ho
gudiya ke muh se aisi bat sun kar rukmani ki chut kulbulane lagti hai,
vijay- nahi re mummy ki aisi malish karne ko kaha milta hai
gudiya- to bhaiya mummy ko bhi meri tarah dard rahta hoga aap mummy ko
bhi isi tarah masal kar malish kar diya karo
na,
vijay- gudiya ki choli khol kar uske dono mote-mote doodh apne hantho
main bharkar dabate huye, hay gudiya mummy
mujhse aisi malish karwati hi kaha hai, main to kab se mummy ki malish
karne ke liye taras raha hu
gudiya- aah to kya aapko bhi bhaiya aisi malish karne main maza aata hai
vijay- ha gudiya tabhi vijay ko aisa lagta hai jaise koi chupkar khada
hai aur vijay samajh jata hai ki uski ma rukmani
chup kar khadi hai, vah uski aur bina dekhe pahle thoda ghabrata hai
lekin phir uska land jhatke marne lagta hai aur
vah gudiya ke doodh ko dabata hua, gudiya tu nahi janti main aisi
malish karne ke liye kitna tarasta hu,

gudiya- kya aapka man mummy ki bhi malish karne ko karta hai
vijay- ha gudiya mera man to mummy ko puri nangi karke malish karne ka karta hai
gudiya- haste huye kya bhaiya mummy kabhi aapko nangi karke malish
karne degi kya
vijay- kyo nahi karne degi mainne to suna hai mummy ko puri nangi
hokar malish karwane main bahut maza ata hai
gudiya- ha bhaiya lekin sirf jamuna kaki ke sath
vijay- achcha chal ab apni choli bandh le ma aati hogi
rukmani thodi der bad ghar ke andar aati hai, rat ko sabhi khana kha
kar so jate hai aur subah jab gudiya bahar byke ke
pas saman lekar khadi thi tab vijay apni ma se gale milne laga
rukmani- jaldi aana bete tere bina man nahi lagta hai, vaise bhi tujhe
mera bilkul khyal nahi hai bas apni bahan ka hi
dhyan rahta hai,
vijay- nahi ma ab ki bar aaunga to tumhari har shikayat dur kar dunga
rukmani- gudiya ka khyal rakhna abhi bahut bachpana hai usme
vijay- tum fiakr na karo ma ab tumhari beti bachchi nahi rahegi use
main tumhari tarah samajhdar bana dunga

vijay apni bahan ko lekar shahar aa jata hai aur use ghar chhod kar
duty chala jata hai, sham ko vijay ghar pahuch kar
jab darwaja bajata hai tab gudiya darwaja kholti hai vah sidhe vijay
se lipat jati hai, vijay use apni god main utha kar
andar le aata hai aur phir kabhi uske hontho ko kabhi uske galo ko
chumna shuru kar deta hai,

gudiya apne man main sochti hai aaj to main apne bhaiya ke mote land
ko apni chut main bhar kar unse khub apni chut marwaungi, gudiya
bhaiya ab apni bahan ko chumte hi rahoge ya usse yah bhi puchoge ki
tujhe aaj sabse jyada dard kaha ho raha hai,

vijay- uske rasile hontho ko chus kar bata meri pyari bahna aaj tujhe
sabse jyada dard kaha par ho raha hai
gudiya uske upar se uthti hui pahle bhaiya apna ye pent utar kar hath
muh dho lo aur lungi pahan lo phir batati hu, pent
main aap achche se mujhe apni god main baitha nahi pate hai,

vijay jaldi se apne kapde utar kar bathroom main hathmuh dhokar pura
nanga hokar keval apni lungi pahan kar aa jata hai
aur gudiya ko pakad kar apni aur uska muh karke use apni god main
chadha leta hai gudiya ka ghaghra piche sarak jata
hai aur uski chut sidhe apne bhaiya ke mote land se sat jati hai,
vijay use paglo ki tarah chumte huye uske mote-mote
doodh ko buri tarah dabane lagta hai,

gudiya apne bhaiya ke mote land se apni chut ko bar-bar aage piche karke ragadne
lagti hai,

vijay- bol meri bahana aaj kaha tujhe dard ho raha hai, gudiya apne
bhai ke mote land ko pakad kar kahti hai jaha aapka
yah mota danda mujhe chubh raha hai, gudiya ki bat sun kar vijay use
bed par leta deta hai aur gudiya apni dono tange
phiala kar use apni gulabi kasi hui chut dikha kar kahti hai bhaiya
dekho ne yaha aaj bahut dard ho raha hai dekho kaisi
lal ho gai hai, vijay apni bahan ki gulabi ras se bhari chut dekh kar
uski dono phanko ko khub kas kar phaila deta hai aur
phir apni jeebh apni bahan ki rasili chut ki phanko ke beech bahte
gulabi chhed main dal kar paglo ki tarah apni jawan
bahan ki chut ka ras pine lag jata hai,


gudiya- oh bhaiya aah aah ha bhiya yahi dard hai bahut dard hai aur
jor se chato bhaiya aah aah, vijay paglo ki tarah
gudiya ki chut ki phuli hui phanko ko phaila kar uski gulabi chut
chatnde lagta hai, gudiya khub siskiya leti hui apni moti
gand utha-utha kar apne bhaiya ke muh main marne lag jati hai, kuch
der tak vijay apni bahan ki chut chat-chat kar puri
lal kar deta hai, uske bad gudiya apne bhaiya se puri chipak jati hai,


vijay- uska ghaghra aur choli utar kar puri nangi karke uski chut ko
apne hantho se sahlata rahta hai
gudiya- bhaiya tum mummy ko bhi aise hi nangi karke pyar karna chahte ho na
vijay- gudiya ke mote-mote doodh ko dabata hua ha meri bahana main
mummy ko bahut pyar karta hu aur isi tarah
mummy ko puri nangi karke unki malish karna chahta hu,
gudiya- bhaiya aapka ye to bahut mota hai


vijay- tu ise chategi to tujhe bahut achcha lagega,
gudiya- bhaiya aap bhi meri chato na main aapka ye mota danda chusti
hu aur phir dono bhai bahan ek dusre ke land aur
chut ko paglo ki tarah tab tak chuste hai jab tak ki ek dusre ka sara
ras chus-chus kar pi nahi jate,
gudiya- hafte huye, apne bhiaya se buri tarah se lipat jati hai aur oh
bhaiya kitna maza aata hai, aapka danda chusne main
to bahut maza aata hai bhaiya mujhe aur chusna hai bhaiya,
vijay- ha meri bahna tera jitna man kare chus lena par pahle ek bar tu
is dande ke upar achche se baith ja main tujhe aur
bhi maza dena chahta hu,
gudiya- oh bhaiya mujhe aise nahi tum khade hokar phir mujhe apne
dande par chadha lo,


vijay- gudiya ki bat sun kar uski dono jangho se use daboch kar uski
dono jangho ko apni kamar ke ird gird lapet kar uski
kasi chut ko apne land se bhida kar jab piche se uski gand ko daboch
kar ek tagda jhatka marta hai aur uska mota land
gudiya ki chut ko phadta hua pura andar tak phans jata hai aur gudiya
ek jor ki chikh ke sath apne bhaiya ke mote land
main apni chut phasaye usse buri tarah chipak jati hai,

gudiya- oh bhaiya mar gai bhaiya ye kya kar rahe ho bhaiya,
vijay- apne land ke tagde jhatke apni bahan ki chut main marta hua,
meri rani main apni bahan ko chod raha hu aur phir

vijay gudiya ko bed par lita kar uske chut main apne mote land ke khub
tagde dhakke marne lagta hai, lagbhag 10 minute
tak jab vijay apni bahan ki tite chut main apna land khub pel -pel kar
chodataa hai tab kahi jakar gudiya bhi apni moti gand
apne bhaiya ke land par marne lagti hai, oh bhiaya phad do aur chodo
apni bahan ko aah aah bhaiya kitna maza ata hai
chodane main khub chodo bhaiya,


vijay ki raftar puri tarah tej ho jati hai aur phir vah kuch jordar
dhakke mar kar apni
bahan ki chut main apna pani gira deta hai, dono bhai bahan apne chut
aur land ko khub ekdusre main kase huye pade
rahte hai,

kuch der bad vijay gudiya ko utha kar apne upar lita leta hai aur use
chumte huye uski gadaraai gand ko sahlane lagta hai
kaho gudiya tumhe maza aaya ki nahi

gudiya- oh bhaiya aaj to aap ne wo maza diya hai jo kabhi nahi
bhulega, mujhe kya pata tha bhaiya isko chodna kahte
hai nahi to main kab ki aap se apni chut marwa chuki hoti,
vijay- meri rani main to tujhe na jane kab se chodna chahta tha,

gudiya- apne bhaiya ka mota land sahlati hui, bhiya to kya tum mummy
ko bhi isi tarah chodna chahte ho
apni mummy ka nam sunte hi vijay ka land phir se jhatke marne lagta hai,
vijay- ha gudiya mujhe mummy ko puri nangi karke chodane ka bada man karta hai
gudiya- to chod do na bhaiya, tum itna achcha chodte ho dekhna mummy
kabhi mana nahi karegi

vijay- par gudiya main yah bhi to nahi janta ki mummy mujhse apni chut
marwana chahti hai ya nahi
gudiya- tumhara man kya mummy ki chut dekhne ka karta hai
vijay- nahi gudiya mera man mummy ki chut chatne aur use nangi karke
chodane ka karta hai

gudiya- kya tumne mummy ki chut dekhi hai
vijay- nahi re abhi tak nahi
gudiya- bhaiya mummy ki chut to bahut phuli hui aur badi hai bilkul
tukhare mote land se chudne ke layak hai,

vijay- gudiya ki chut ko sahlata hua, gudiya kya mummy bhi aisa sochti
hogi ki vah mujhe apni chut par chadha kar apne
bete ka mota land apni chut main leti hogi,
gudiya- ek idea hai bhaiya, agar mummy tumhare land se chudne ke liye
tadap rahi hogi to vah yah bat jamuna kaki se
jarur karegi bas hame unki bate sunna hogi, tabhi pata chal payega,

vijay- achcha gudiya jara ghodi ki tarah jhuk kar mujhe apni moti gand
to dikha, gudiya jaldi se apni gand apne bhaiya ke
muh ki aur karke jhuk jati hai aur vijay apne hatho se gudiya ki gand
ka chhed sahlate huye

vijay- gudiya tune mummy ka yah gand wala chhed dekha hai
gudiya- aah bhaiya mainne to nahi dekha lekin jamuna kaki ne jarur
dekha hoga vah to roj hi mummy ki chut aur gand
apne hontho se khub chusti aur chatti hai,

vijay- gudiya mujhe mummy ka ye wala chhed khub kas kar chatne aur
sunghne ka man hota hai
gudiya- bhaiya tum mummy ki moti gand ko nangi dekh loge to uski gand
chate bina vaise bhi nahi rah paoge

vijay gudiya ki moti gand se apna muh laga kar use bade pyar se chut
se lekar gand tak chatna shuru kar deta hai aur
phir dhire se vah apna mota land gudiya ki chut main piche se pelna
shuru kar deta hai, kuch der aise hi chodte huye vijay
gudiya ko ek side main sula kar piche se uski chut main land phasa kar
aaram se chipak kar dhire-dhire gudiya ko chodte
huye usse bate karne lagta hai, gudiya dhire-dhire apni chut main
ghuste apne bhiaya ke mote land se aasman main udne
lagti hai,

gudiya- main kaisa chodataa hu
gudiya- oh bhaiya aap bahut achcha chodte ho

vijay-gudiya ek bat kahu, kabhi-kabhi mera dil karta hai ki main tujhe
aur mummy ko dono ko puri nangi karke ek sath
puri rat chodu,
gudiya- oh bhaiya kya aisa ho sakta hai kya mummy aapse apni chut
marwane ko raji ho jayegi

vijay- ha gudiya main kaise bhi karke mummy ko is bar jarur chodunga
us rat vijay sari rat apni bahan ko tabiyat se thokta raha aur phir
gudiya jitne din uske pas rahi vah din rat use jee bhar
kar chodataa tha,
KRAMASHAH...............


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सेक्सी कहानियाँ जवानी की मिठास--3

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

जवानी की मिठास--3

सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो
की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
गतान्क से आगे................
रुक्मणी- मूह बना कर अरे मेरा बेटा मुझ पर चढ़ता भी है तो तू क्यो जली जा रही है
जमुना- अरे आज मैं तुझे दोपाःआऱ को एक बात बताउन्गि फिर देखना तेरा मन भी
करेगा कि तेरा बेटा ही तुझ पर चढ़ कर तुझे चोद दे,
रुक्मणी-उसका हाथ पकड़ कर तो बना ना क्या बताने वाली है

जमुना- अरे बाद मैं बताउगि आराम से तुझे सहलाते हुए,
रुक्मणी- पर उस दिन जैसे मत करना उस दिन तूने सचमुच मेरा पानी निकाल दिया था
जमुना- चल मैं अब जा रही हू
विजय- जमुना की बात सुन कर सोचने लगता है यह जमुना काकी ना जाने मा को
क्या बताने वाली है आज चुपके से इनकी बात सुनना चाहिए, कुछ देर बाद विजय
नहा कर बाहर आता है और रुक्मणी बैठी-बैठी सब्जिया काट रही थी, लूँगी मे
उसका मोटा लंड लटका हुआ था लेकिन उसकी मोटाई का उभार लूँगी के बाहर भी
पता चल रहा था और रुक्मणी बार-बार अपने बेटे के मोटे लंड को देखने के लिए
तरस रही थी.
मा ये गुड़िया सुबह-सुबह कहा चली गई है

रुक्मणी- बेटे वह पड़ोस के गाँव मे उसकी सहेली के यहाँ शादी है इसलिए वह
दिन भर वही रहेगी शाम को वापस आ
जाएगी.
विजय- एक बात कहु मा
रुक्मणी-क्या

विजय- तुम कहो तो गुड़िया को कुछ दिन शहर मैं अपने पास रख लू, खाना बनाने
मे सुबह बड़ी देर हो जाती है और ड्यूटी को अक्सर लेट हो जाता हू बस कुछ
दिन और कट जाए फिर ऑफीस के पास ही एक घर का जुगाड़ करना पड़ेगा,
रुक्मणी- पर बेटे गुड़िया वहाँ रह लेगी अकेली
विजय- मा रह पाएगी तो ठीक है नही तो वापस पहुचा दूँगा.

रुक्मणी- मुस्कुराते हुए, कभी अपनी मा को भी घुमा ला शहर मे.
विजय- अपनी मा के पास नीचे उकड़ू बैठता हुआ उसे अपनी बाँहो मे भर कर
चूमता है और उसके नीचे बैठने से उसका
मोटा लंड लूँगी से निकल आता है और रुक्मणी अपने बेटे से चिपकी हुई
बिल्कुल करीब से उसके मोटे लंड को देख लेती है,
रुक्मणी की चूत पानी-पानी हो जाती है,
क्यो नही मा अगली बार तुम्हे भी अपने साथ सहर ले चलूँगा,
दोपहर को विजय खाना खाने के बाद अंदर कमरे मे सो रहा था और तभी जमुना
काकी अंदर आकर रुक्मणी के पास बैठ
जाती है, विजय जमुना काकी की आवाज़ सुन कर चुपचाप दरवाजे के पास आकर अपने
कान लगा लेता है.
जमुना- हो गया काम धंधा, और तेरा बेटा विजय कहाँ है, और फिर जमुना
रुक्मणी की दोनो जाँघो को फैला कर उसकी
टाँगो के बीच झँकति हुई कही अंदर तो नही छुपा लिया तूने अपने बेटे को

रुक्मणी- मुस्कुरकर, कामिनी मेरा बेटा कोई बच्चा है जो अब इतनी सी जगह मे
छुप जाएगा,
जमुना-हा हा उस मुस्टंडे के आने से ही तो तेरा ये भोसड़ा दिन भर भीगा रहता है
रुक्मणी- अच्छा ज़रा धीरे बोल और अब बता तू क्या बात बताने वाली थी, क्या
फिर किसी को तूने चुद्ते हुए देखा है,
जमुना- नही रे मैं तो तुझे ऐसी बात बता रही हू कि तेरा पानी छूट जाएगा,
रुक्मणी- तो फिर जल्दी बता ना

जमुना- अरे मैं तुझसे यह बता रही थी कि तेरा 32 साल का बेटा भी तुझे उतना
मज़ा नही देता होगा जितना आज कल कुछ दिनो से मेरा 16 साल का बेटा रिंकू
दे रहा है,
रुक्मणी- आश्चर्या से रिंकू, भाल वह क्या मज़ा देता है तुझे,
जमुना- अरे कुछ दिनो से जब मैं रात को सो जाती हू तो वह मुझे सोया हुआ
समझ कर धीरे- धीरे मेरी साडी मेरी कमर
तक चढ़ा देता है और फिर इतने प्यार से अपने हाथो से मेरी फूली हुई चूत को
सहलाता है कि क्या बताउ,
रुक्मणी-यह तू क्या कह रही है,

जमुना- सच रुक्मणी, जब पहली बार मुझे लगा कि कोई मेरी चूत को बड़े प्यार
से सहला रहा है तो मैंने चुपके से
आँखे खोल कर देखा तो मेरा बेटा रिंकू मेरे दोनो पैरो के पास बैठ कर बड़े
प्यार से मेरी फूली हुई चूत पर हाथ फेर
रहा था,

रुक्मणी- तो तूने उसे डांता नही
जमुना- अरे मेरी डाँटने की हिम्मत ही कहाँ थी, उसका इस तरह से मेरी चूत
सहलाना मुझे इतना अच्छा लग रहा था कि क्या बताउ, और अब तो वह रोज जैसे ही
मैं सोने का नाटक करती हू वह रात-रात भर बैठ कर मेरी फूली हुई चूत को
बड़े प्यार से सहलाता है, और उसकी अब तो हिम्मत बढ़ती ही जा रही है,
कभी-कभी तो वह मेरी फूली हुई चूत को अपनी मुत्ती मे दबोच भी लेता है, हाय
रुक्मणी क्या बताउ उस समय कितना मज़ा आता है, और कल रात तो उसने मेरी
फूली हुई चिकनी चूत पर सीधे अपना मूह रख कर अपने मूह से जब दबाया तो मुझे
ऐसा लगा जैसे मैं पानी छ्चोड़ दूँगी,

जमुना- सच रुक्मणी सोच जब मेरा छ्होटा सा बेटा अपनी मम्मी की चूत इतने
प्यार से सहलाता है तो फिर अगर तेरा जवान बेटा तेरी इस गदराई चूत को अपने
मूह से चुसेगा तो तुझे कितना मज़ा आएगा, और वैसे भी तू इतनी मस्त घोड़ी
है कि तेरा बेटा एक बार तुझे पूरी नंगी देख लेगा तो अपनी मा की इस गदराई
फूली हुई रसीली चूत को मारे बिना नही रह पाएगा,

जमुना की बात सुन कर विजय का मोटा लंड अपनी मा को चोदने के लिए बुरी तरह
तन चुका था और वह अपनी मम्मी की गदराई जवानी का रस दरवाजे के पीछे छुपा
हुआ अपनी आँखो से पी रहा था,
रुक्मणी- अरे तेरी किस्मत अच्छी है पर मेरा बेटा भला ऐसा क्यो करेगा,
जमुना- अरे तुझे क्या पता तेरे सोने के बाद तेरा बेटा भी तेरी चूत पर हाथ
मार देता हो,

रुक्मणी- मुस्कुराते हुए चल हट मेरा बेटा ऐसा नही है
जमुना- चल शर्त लगा ले, जिसकी मा इतनी मालदार हो उसका बेटा उसकी चूत का
प्यासा ना हो ऐसा हो ही नही सकता है, वह ज़रूर तुझे चोदने की फिराक मे
रहता होगा पर तू ध्यान ही नही देती है,

रुक्मणी- अच्छा चल तेरी बात मान लेती हू पर यह कैसे पता लगेगा कि मेरा
बेटा मुझे चोदना चाहता है
जमुना- अच्छा तू एक काम कर आज अपने बेटे से बात करते हुए इतना कहना बेटा
मैं पहले से बहुत मोटी हो गई हू ना फिर देखना तेरा बेटा सबसे पहले तेरे
मोटे-मोटे दूध उठा हुआ पेट और फिर तेरे भारी भरकम चूतादो को कैसे घूर कर
देखता है, और फिर देखना किसी बहाने से या तेरी तारीफ करके तुझसे कैसे
चिपकने की कोशिश करेगा, देखना उसका मन
करेगा कि वह तुझे पूरी नंगी करके खड़े-खड़े अपने मोटे लंड पे चढ़ा ले,
जब काफ़ी देर बाद जमुना वहाँ से चली जाती है तब विजय आँख मलता हुआ बाहर
अपनी मा के पास आकर बैठ जाता है

रुक्मणी-उठ गया बेटे
विजय- हाँ मा
रुक्मणी- अच्छा बेटे क्या मैं ज़्यादा मोटी हो गई हू
विजय- अपनी मा के मोटे-मोटे दूध उसका उठा हुआ मखमली पेट और फिर उसके भारी
चूतादो को खा जाने वाली नज़रो से
देखता हुआ अरे नही मा तुम तो बहुत अच्छी दिखती हो,

रुक्मणी- क्या मैं तुझे बहुत अच्छी लगती हू
विजय- अपनी मा को अपनी बाँहो मे भर कर, अरे मा किस बेटे को अपनी मा अच्छी नही लगेगी
रुक्मणी- मुझे देख कर तेरा क्या मन करता है बेटा

विजय- अपनी मा का भरा हुआ चेहरा अपने हाथो मे थाम कर, मा मेरा दिल करता
है अपनी मा को चूमता रहू और उसे
खूब प्यार करू और फिर विजय अपनी मा के गुलाबी गालो को चूमता हुआ अपने
दोनो हाथो से उसके भारी चूतादो को सहलाने लगता है, रुक्मणी अपने बेटे से
पूरी तरह चिपक जाती है, उस समय दोनो मा बेटे के लंड और चूत एक दूसरे मे
समा जाने को मचल जाते है,
शाम को गुड़िया जब लॉट आती है तो रुक्मणी अगले दिन उसके जाने की तैयारी
करने लगती है, इधर विजय शाम को घूमने निकलता है तो उसकी मुलाकात लखन से
हो जाती है और दोनो बाते करते-करते शराब लेकर एक आम के बाग मे जाकर बैठ
जाते है, दोनो के बीच जाम पर जाम शुरू हो जाते है,

लखन- अच्छा विजय भैया एक बात पुंचू
विजय- एक नही दो पूछ लखन
लखन- भैया तुम्हारा कैसी औरत को चोदने का मन करता है

विजय- नशे मे मस्त हो रहा था, अरे लखन मेरा भी मन कुछ दिनो से ऐसी औरत को
चोदने का करने लगा है जैसा
मन तेरा करता है,
लखन- नशे मे तुंन होकर मतलब भैया
विजय- अरे लखन जैसा मन तेरा अपनी मा को चोदने का करता है वैसा ही मेरा मन
अपनी मा को चोदने का करने लगा है
लखन- सच भैया बुरा मत मानना पर तुम्हारी मम्मी बहुत जोरदार माल है

विजय- हाँ लखन मैं दो दिन से दिन रात अपनी मा की गदराई जवानी को ठोकने के
लिए तरस रहा हू
लखन- क्या तुम्हे अपनी मा बहुत अच्छी लगती है
विजय- हा लखन तू सच कहता था मैं अपनी मा के भारी चूतादो को देख -देख कर
पागल रहने लगा हू जब उसकी मोटी
गंद और जंघे इतनी चौड़ी नज़र आती है तो उसका गुलाबी फूला हुआ भोसड़ा कैसा होगा

लखन- भैया ठकुराइन को वैसे तुम्हारे जैसे मोटे लंड से ही मज़ा आएगा, सच
भैया मैंने पूरे गाँव मे सुन
रखा है तुम्हारी मा बहुत चुदासी है उसे अपनी चूत मे मस्त लंड चाहिए, सारा
गाँव उसकी गदराई जवानी को चोदने के
लिए तरस रहा है पर वह किसी को घास तक नही डालती है,

विजय- अरे लखन एक बार जब अपने बेटे का मोटा लंड देखेगी तो अपने बेटे के
लंड पर चढ़े बिना नही रह पाएगी पर
यार लखन समझ मे नही आता अपनी मा को कैसे चोदु,
लखन- अरे भैया मैं भी एक समस्या से घिरा हू और उसका उपाय आ जाता तो आपकी
समस्या भी हल हो जाती और आप आराम से अपनी मा की चूत चोद सकते थे.

विजय- वह क्या
लखन- भैया मैं तो जब भी अपनी बीबी को चोदता हू मुझे मेरी मा ही नज़र आती
है जब अपनी बीबी की मस्त फूली हुई चूत देखता हू तो मुझे ऐसा लगता है जैसे
मैं अपनी मा की चूत को दबा और चूम रहा हू, सच पूछो तो जब मैं अपनी बीबी
को अपनी मा समझ कर चोदता हू तो मुझे चुदाई करने मे बड़ा मज़ा आता है, पर
क्या बताउ बस समझ नही आता की
कैसे अपनी मा की चूत चोदु.

विजय- एक आइडिया है मेरे मन मे लखन
लखन- वह क्या
विजय- तू अपनी मम्मी को अपनी बीबी की मदद से क्यो नही चोद लेता है, तेरी
बीबी को पटा ले वह ज़रूर तेरी मा की चूत को गरम करके तेरे सामने परोस
सकती है,
लखन- बात तो आप एक दम ठीक कह रहे हो भैया, मैं आज ही से अपनी बीबी को
पटाना शुरू कर देता हू

विजय- अच्छा एक बात बता लखन , किसी कुँवारी लोंड़िया को चोदना हो तो कैसे
चोदना चाहिए,
लखन- अरे क्या बताउ भैया कुँवारी लोंदियो को चोदने मैं भी बड़ा मज़ा
मिलता है, ऐसा कसा हुआ लंड जाता है उनकी
चूत मे कि मज़ा आ जाता है, पर तुम कौन सी कुँवारी लोंड़िया को चोदने का सोच रहे हो
विजय- बस है यार एक जो नज़र मे चढ़ गई है, और फिर विजय अपने मोटे लंड को
जो पूरी तरह तना हुआ था को मसल्ने लगता है

लखन- मुस्कुराता हुआ भैया बुरा ना मानो तो एक बात कहु
विजय-हाँ बोल ना
लखन- भैया वैसे मेरी नज़र मे एक बहुत ही मस्त लोंड़िया है और तुम उसे
बड़ी आसानी से चोद सकते हो
विजय- कौन है वह

लखन- वही जिसके बारे मे सोच कर तुम्हारा लंड खड़ा हो गया है, तुम ज़रूर
अपनी बहन गुड़िया को ही चोदने का सोच
रहे हो ना
विजय- उसे हैरत भरी निगाहो से देखता हुआ, हा लेकिन तूने कैसे अंदाज़ा लगाया लखन

लखन- मैं तो पहले ही समझ गया था जब तुमने कुवारि लोंड़िया को चोदने की
बात की, अभी तुम्हारे घर के आस पास
गुड़िया से मस्त लोंड़िया है भी कौन,
विजय- हा लखन गुड़िया मुझे बहुत अच्छी लगती है मैं उसे चोदना चाहता हू,
लखन- अरे भैया अब मैं क्या कहु, गुड़िया को तुमने लगता है ठीक से देखा ही
नही अगर उसकी गुलाबी चूत और कसी हुई
गदराई गंद देख लो तो तुम पागल हो जाओगे

विजय- क्या तूने गुड़िया की गंद और चूत देखी है,
लखन- हा भैया एक बार खेतो मे वह घाघरा उँचा करके मूतने बैठी थी और सामने
पास ही के पेड़ के पीछे मैं दारू
पी रहा था तब मैंने गुड़िया को खूब अपनी चूत से खेलते हुए देखा था बड़ी
गुलाबी चूत है भैया आपकी बहन की, एक
बार उसे अपने लंड पर बैठा कर देखो सारे जमाने का मज़ा दे देगी आपको

विजय- अपने लंड को मसलता हुआ, क्या गुड़िया की चूत बहुत गुलाबी है,
लखन-हा भैया तुम्हारी बहन तो एक दम पका हुआ माल है अब यही समय है कि उसे
तुम खूब तबीयत से चोदो
विजय -अच्छा लखन तू तो हमेशा गाँव मे रहता है और कुछ बता ना अपने गाँव की
औरतो के बारे मे,
लखन- भैया अभी तो गाँव मे बस तुम्हारी मा रुक्मणी का ही चर्चा रहता है
कहो तो तुम्हारी मा की ही बाते बता दू
विजय- अपने मोटे लंड को मसल्ते हुए, क्यो क्या तूने मेरी मा की भी गंद और
चूत देखी है, अगर देखी हो तो बता ना
लखन मेरी मा की फूली हुई चूत कैसी लगती है उसकी नंगी गंद कैसी नज़र आती है,
लखन- भैया मैंने तो नही देखी तुम्हारी मा को नंगी पर हा यह ज़रूर सुना है
कि तुम्हारी मा और जमुना काकी दोनो
खूब एकदुसरे की चूत और गंद चाटती है, एक बार तो मेरी मा ने तुम्हारी मा
और जमुना काकी को पूरी नंगी होकर एक दूसरे से चिपके हुए देखा था,
विजय- तो तुझे कैसे पता चला
लखन- मेरी मा जमुना काकी के घर गई थी और उनका दरवाजा खुला था जब मेरी मा
ने उन्हे देखा तो वह दोनो जान
नही पाई कि मेरी मा ने उन दोनो को नंगी देखा है बस फिर यह बात मेरी मा ने
मेरी बीबी को बता दी और मेरी बीबी ने
मुझे, सच विजय भैया तुम्हारी मा बहुत बड़ी चुदासी है उसे अपना मोटा लंड
कैसे भी करके दे ही दो.
क्रमशः...............

JAWAANI KI MITHAS--3

gataank se aage................
rukmani- muh bana kar are mera beta mujh par chadhta bhi hai to tu kyo
jali ja rahi hai
jamuna- are aaj main tujhe dophar ko ek bat bataaungi phir dekhna tera
man bhi karega ki tera beta hi tujh par chadh kar
tujhe chod de,
rukmani-uska hath pakad kar to bana na kya batane wali hai

jamuna- are bad main bataaugi aaram se tujhe sahlate huye,
rukmani- par us din jaise mat karna us din tune sachmuch mera pani
nikal diya tha
jamuna- chal main ab ja rahi hu
vijay- jamuna ki bat sun kar sochne lagta hai yah jamuna kaki na jane
ma ko kya batane wali hai aaj chupke se inki bat
sunna chahiye, kuch der bad vicky naha kar bahar aata hai aur rukmani
baithi-baithi sabjiya kat rahi thi, lungi main uska
mota land latka hua tha lekin uski motai ka ubhar lungi ke bahar bhi
pata chal raha tha aur rukmani bar-bar apne bete
ke mote land ko dekhne ke liye taras rahi thi.
ma ye gudiya subah-subah kaha chali gai hai

rukmani- bete vah pados ke ganv main uski saheli ke yaha shadi hai
isliye vah din bhar vahi rahegi sham ko vapas aa
jayegi.
vijay- ek bat kahu ma
rukmani-kya

vijay- tum kaho to gudiya ko kuch din shahar main apne pas rakh lu,
khana banane main subah badi der ho jati hai aur duty
main aksar let ho jata hu bas kuch din aur kat jaye phir office ke pas
hi ek ghar ka jugad karna padega,
rukmani- par bete gudiya vaha rah legi akeli
vijay- ma rah payegi to thik hai nahi to vapas pahucha dunga.

rukmani- muskurate huye, kabhi apni ma ko bhi ghuma la shahar main.
vijay- apni ma ke pas niche ukadu baithta hua use apni banho main bhar
kar chumta hai aur uske niche baithne se uska
mota land lungi se nikal aata hai aur rukmani apne bete se chipki hui
bilkul karib se uske mote land ko dekh leti hai,
rukmani ki chut pani-pani ho jati hai,
kyo nahi ma agli bar tumhe bhi apne sath sahar le chalunga,
dophar ko vijay khana khane ke bad andar kamre main so raha tha aur
tabhi jamuna kaki andar aakar rukmani ke pas baith
jati hai, vijay jamuna kaki ki awaj sun kar chupchap darwaje ke pas
aakar apne kan laga leta hai.
jamuna- ho gaya kam dhandha, aur tera beta vijay kaha hai, aur phir
jamuna rukmani ki dono jangho ko phaila kar uski
tango ke beech jhankti hui kahi andar to nahi chupa liya tune apne bete ko

rukmani- muskurakar, kamini mera beta koi bachcha hai jo ab itni si
jagah main chup jayega,
jamuna-ha ha us mustande ke aane se hi to tera ye bhosda din bhar
bhiga rahta hai
rukmani- achcha jara dhire bol aur ab bata tu kya bat batane wali thi,
kya phir kisi ko tune chudte huye dekha hai,
jamuna- nahi re main to tujhe aisi bat bata rahi hu ki tera pani chhut jayega,
rukmani- to phir jaldi bata na

jamuna- are main tujhse yah bata rahi thi ki tera 32 sal ka beta bhi
tujhe utna maza nahi deta hoga jitna aaj kal kuch
dino se mera 16 sal ka beta rinku de raha hai,
rukmani- ashcharya se rinku, bhal vah kya maza deta hai tujhe,
jamuna- are kuch dino se jab main rat ko so jati hu to vah mujhe soya
hua samajh kar dhire- dhire meri sadi meri kamar
tak chadha deta hai aur phir itne pyar se apne hantho se meri phuli
hui chut ko sahlata hai ki kya bataau,
rukmani-yah tu kya kah rahi hai,

jamuna- sach rukmani, jab pahli bar mujhe laga ki koi meri chut ko
bade pyar se sahla raha hai to mainne chupke se
aankhe khol kar dekha to mera beta rinku mere dono pairo ke pas baith
kar bade pyar se meri phuli hui chut main hath pher
raha tha,

rukmani- to tune use danta nahi
jamuna- are meri dantne ki himmat hi kaha thi, uska is tarah se meri
chut sahlana mujhe itna achcha lag raha tha ki kya
bataau, aur ab to vah roj jaise hi main sone ka natak karti hu vah
rat-rat bhar baith kar meri phuli hui chut ko bade pyar se
sahlata hai, aur uski ab to himmat badhti hi ja rahi hai, kabhi-kabhi
to vah meri phuli hui chut ko apni mutti main daboch
bhi leta hai, hay rukmani kya bataau us samay kitna maza ata hai, aur
kal rat to usne meri phuli hui chikni chut par sidhe
apna muh rakh kar apne muh se jab dabaya to mujhe aisa laga jaise main
pani chhod dungi,

jamuna- sach rukmani soch jab mera chhota sa beta apni mummy ki chut
itne pyar se sahlata hai to phir agar tera jawan
beta teri is gadaraai chut ko apne muh se chusega to tujhe kitna maza
aayega, aur vaise bhi tu itni mast ghodi hai ki tera
beta ek bar tujhe puri nangi dekh lega to apni ma ki is gadaraai phuli
hui rasili chut ko mare bina nahi rah payega,

jamuna ki bat sun kar vijay ka mota land apni ma ko chodane ke liye
buri tarah tan chuka tha aur vah apni mummy ki
gadaraai jawani ka ras darwaje ke piche chupa hua apni aankho se pi raha tha,
rukmani- are teri kismat achchi hai par mera beta bhala aisa kyo karega,
jamuna- are tujhe kya pata tere sone ke bad tera beta bhi teri chut
par hath mar deta ho,

rukmani- muskurate huye chal hat mera beta aisa nahi hai
jamuna- chal shart laga le, jiski ma itni maldar ho uska beta uski
chut ka pyasa na ho aisa ho hi nahi sakta hai, vah jarur
tujhe chodane ki phirak main rahta hoga par tu dhyan hi nahi deti hai,

rukmani- achcha chal teri bat man leti hu par yah kaise pata lagega ki
mera beta mujhe chodna chahta hai
jamuna- achcha tu ek kam kar aaj apne bete se bat karte huye itna
kahna beta main pahle se bahut moti ho gai hu na phir
dekhna tera beta sabse pahle tere mote-mote doodh utha hua pet aur
phir tere bhari bharkam chutado ko kaise ghur kar
dekhta hai, aur phir dekhna kisi bahane se ya teri tarif karke tujhse
kaise chipakne ki koshish karega, dekhna uska man
karega ki vah tujhe puri nangi karke khade-khade apne mote land pe chadha le,
jab kaphi der bad jamuna vaha se chali jati hai tab vijay aankh malta
hua bahar apni ma ke pas aakar baith jata hai

rukmani-uth gaya bete
vijay- ha ma
rukmani- achcha bete kya main jyada moti ho gai hu
vijay- apni ma ke mote-mote doodh uska utha hua makhmali pet aur phir
uske bhari chutado ko kha jane wali najro se
dekhta hua are nahi ma tum to bahut achchi dikhti ho,

rukmani- kya main tujhe bahut achchi lagti hu
vijay- apni ma ko apni banho main bhar kar, are ma kis bete ko apni ma
achchi nahi lagegi
rukmani- mujhe dekh kar tera kya man karta hai beta

vijay- apni ma ka bhara hua chehra apne hantho main tham kar, ma mera
dil karta hai apni ma ko chumta rahu aur use
khub pyar karu aur phir vijay apni ma ke gulabi galo ko chumta hua
apne dono hantho se uske bhari chutado ko sahlane
lagta hai, rukmani apne bete se puri tarah chipak jati hai, us samay
dono ma bete ke land aur chut ek dusre main sama
jane ko machal jate hai,
sham ko gudiya jab lot aati hai to rukmani agle din uske jane ki
taiyari karne lagti hai, idhar vijay sham ko ghumne
nikalta hai to uski mulakat lakhan se ho jati hai aur dono bate
karte-karte sharab lekar ek aam ke bag main jakar baith
jate hai, dono ke beech jam par jam shuru ho jate hai,

lakhan- achcha vijay bhaiya ek bat punchu
vijay- ek nahi do puch lakhan
lakhan- bhaiya tumhara kaisi aurat ko chodane ka man karta hai

vijay- nashe main mast ho raha tha, are lakhan mera bhi man kuch dino
se aisi aurat ko chodane ka karne laga hai jaisa
man tera karta hai,
lakhan- nashe main tunn hokar matlab bhaiya
vijay- are lakhan jaisa man tera apni ma ko chodane ka karta hai vaisa
hi mera man apni ma ko chodane ka karne laga hai
lakhan- sach bhaiya bura mat manna par tumhari mummy bahut jordar mal hai

vijay- ha lakhan main do din se dinrat apni ma ki gadaraai jawani ko
thokne ke liye taras raha hu
lakhan- kya tumhe apni ma bahut achchi lagti hai
vijay- ha lakhan tu sach kahta tha main apni ma ke bhari chutado ko
dekh -dekh kar pagal rahne laga hu jab uski moti
gand aur janghe itni chaudi najar aati hai to uska gulabi phula hua
bhosda kaisa hoga

lakhan- bhaiya thakurain ko vaise tumhare jaise mote land se hi maza
aayega, sach bhaiya mainne pure ganv main sun
rakha hai tumhari ma bahut chudasi hai use apni chut main mast land
chahiye, sara ganv uski gadaraai jawani ko chodane ke
liye taras raha hai par vah kisi ko ghas tak nahi dalti hai,

vijay- are lakhan ek bar jab apne bete ka mota land dekhegi to apne
bete ke land par chadhe bina nahi rah payegi par
yaar lakhan samajh main nahi aata apni ma ko kaise chodu,
lakhan- are bhaiya main bhi ek samasya se ghira hu aur uska upay aa
jata to aapki samasya bhi hal ho jati aur aap aaram
se apni ma ki chut chod sakte the.

vijay- vah kya
lakhan- bhaiya main to jab bhi apni bibi ko chodataa hu mujhe meri ma
hi najar aati hai jab apni bibi ki mast phuli hui chut
dekhta hu to mujhe aisa lagta hai jaise main apni ma ki chut ko daba
aur chum raha hu, sach pucho to jab main apni bibi ko
apni ma samajh kar chodataa hu to mujhe chudai karne main bada maza
aata hai, par kya bataau bas samajh nahi aata ki
kaise apni ma ki chut chodu.

vijay- ek idea hai mere man main lakhan
lakhan- vah kya
vijay- tu apni mummy ko apni bibi ki madad se kyo nahi chod leta hai,
teri bibi ko pata le vah jarur teri ma ki chut ko
garam karke tere samne paros sakti hai,
lakhan- bat to aap ek dam thik kah rahe ho bhaiya, main aaj hi se apni
bibi ko patana shuru kar deta hu

vijay- achcha ek bat bata lakhan , kisi kunwari londiya ko chodna ho
to kaise chodna chahiye,
lakhan- are kya bataau bhaiya kunwari londiyo ko chodane main bhi bada
maza milta hai, aisa kasa hua land jata hai unki
chut main ki maza aa jata hai, par tum kaun si kunwari londiya ko
chodane ka soch rahe ho
vijay- bas hai yaar ek jo najar main chadh gai hai, aur phir vijay
apne mote land ko jo puri tarah tana hua tha ko masalne
lagta hai

lakhan- muskurata hua bhaiya bura na mano to ek bat kahu
vijay-ha bol na
lakhan- bhaiya vaise meri najar main ek bahut hi mast londiya hai aur
tum use badi aasani se chod sakte ho
vijay- kaun hai vah

lakhan- vahi jiske bare main soch kar tumhara land khada ho gaya hai,
tum jarur apni bahan gudiya ko hi chodane ka soch
rahe ho na
vijay- use hairat bhari nigaho se dekhta hua, ha lekin tune kaise
andaja lagaya lakhan

lakhan- main to pahle hi samajh gaya tha jab tumne kuwari londiya ko
chodane ki bat ki, abhi tumhare ghar ke aas pas
gudiya se mast londiya hai bhi kaun,
vijay- ha lakhan gudiya mujhe bahut achchi lagti hai main use chodna chahta hu,
lakhan- are bhaiya ab main kya kahu, gudiya ko tumne lagta hai thik se
dekha hi nahi agar uski gulabi chut aur kasi hui
gadaraai gand dekh lo to tum pagal ho jaoge

vijay- kya tune gudiya ki gand aur chut dekhi hai,
lakhan- ha bhaiya ek bar kheto main vah ghaghra uncha karke mutne
baithi thi aur samne pas hi ke ped ke piche main daru
pi raha tha tab mainne gudiya ko khub apni chut se khelte huye dekha
tha badi gulabi chut hai bhaiya apki bahan ki, ek
bar use apne land par baitha kar dekho sare jamane ka maza de degi aapko

vijay- apne land ko masalta hua, kya gudiya ki chut bahut gulabi hai,
lakhan-ha bhaiya tumhari bahan to ek dam paka hua mal hai ab yahi
samay hai ki use tum khub tabiyat se chodo
vijay -achcha lakhan tu to hamesha ganv main rahta hai aur kuch bata
na apne ganv ki aurto ke bare main,
lakhan- bhaiya abhi to ganv main bas tumhari ma rukmani ka hi charcha
rahta hai kaho to tumhari ma ki hi bate bata du
vijay- apne mote land ko masalte huye, kyo kya tune meri ma ki bhi
gand aur chut dekhi hai, agar dekhi ho to bata na
lakhan meri ma ki phuli hui chut kaisi lagti hai uski nangi gand kaisi
najar aati hai,
lakhan- bhaiya mainne to nahi dekhi tumhari ma ko nangi par ha yah
jarur suna hai ki tumhari ma aur jamuna kaki dono
khub ekdusre ki chut aur gand chatti hai, ek bar to meri ma ne tumhari
ma aur jamuna kaki ko puri nangi hokar ek dusre
se chipke huye dekha tha,
vijay- to tujhe kaise pata chala
lakhan- meri ma jamuna kaki ke ghar gai thi aur unka darwaja khula tha
jab meri ma ne unhe dekha to vah dono jan
nahi pai ki meri ma ne un dono ko nangi dekha hai bas phir yah bat
meri ma ne meri bibi ko bata di aur meri bibi ne
mujhe, sach vijay bhaiya tumhari ma bahut badi chudasi hai use apna
mota land kaise bhi karke de hi do.
KRAMASHAH...............

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सेक्सी कहानियाँ जवानी की मिठास--2

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

जवानी की मिठास--2

सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो
की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
गतान्क से आगे................
गुड़िया- भैया कितने दिन रुकोगे यहा
विजय- इस बार तो मैं दो दिन की छुट्टी लेकर आया हू पर एक बात और कहना थी तुझसे
गुड़िया- वह क्या
विजय- इस बार तू मेरे साथ शहर चलेगी, मुझे खाना बनाने मे बड़ा परेशन होना
पड़ता है और फिर तू भी शहर
का महॉल देख लेगी
गुड़िया- मैं तो तैयार हू भैया पर मा जाने दे तब ना,
विजय- तू फिकर ना कर मैं मा से बात कर लूँगा,
विजय- अब ज़रा अपने भैया को पानी भी पीला दो
गुड़िया- अभी लाई और गुड़िया अंदर चली जाती है तभी दरवाजे से रुक्मणी का
आना होता है,
रुक्मणी- आ गया बेटे
विजय- जैसे ही अपनी मा को देखता है, हर बार की तरह उसका नज़रिया कुछ अलग
था और उसकी नज़र सीधे इस बार अपनी मा के उठे हुए गहरी नाभि वाले पेट पर
पड़ती है और फिर बड़े-बड़े दूध और भरे-भरे गाल, रसीले होंठ, विजय अपने
मन मे सोचता है उसकी मा तो वाकई बहुत तगड़ा माल है, लखन ठीक ही कह रहा
था, मेरी मा पूरी नंगी कितनी जबरदस्त
नज़र आती होगी, कुछ ही पलो मे यह सब सोचते ही विजय का लंड पूरी तरह खड़ा
हो जाता है, और विजय आगे बढ़ कर
अपनी मा के पेर छुता है और फिर जैसे ही उसकी बड़ी-बड़ी कठोर चूचियों को
अपने सीने से लगाता है उसका लंड झटके
मारने लग जाता है,
रुक्मणी- विजय के चेहरे पर हाथ फेरती हुई, वाहा तुझे खाना पीना नही मिलता
है क्या कितना दुबला हो गया है
विजय- नही मा वह तो मैं तुम्हारी याद मे दुबला हो जाता हू
रुक्मणी- ऐसा होता तो मैं तो तुझे दिन रात याद करती हू पर देख मैं कितनी
मोटी होती जा रही हू,
विजय- अपनी गदराई मा के गोरे-गोरे उठे हुए पेट की खाल को अपने हाथो से
दबाता हुआ, नही मा तुम मोटी कहाँ हो,
तुम्हारे बदन पर तो यह हल्का फूलका मोटापा बहुत अच्छा लगता है, हा मा
मुझे दुनिया की हर औरत मे सबसे अच्छी
तुम ही लगती हो,
रुक्मणी- मुस्कुरकर अच्छा-अच्छा अब बाते बनाना बंद कर मैं तेरे लिए खाना
लेकर आती हू और फिर जैसे ही रुक्मणी
जाने लगती है विजय जब गौर से अपनी मा की भारी भरकम मोटी गंद की थिरकन
देखता है तो उसका लंड झटके पर झटके मारने लगता है और वह अपनी मम्मी को
पूरी नंगी देखने के ख्याल से ही पागल होने लग जाता है.
विजय उधर अपनी मा के सामने बैठ कर खाना खाने लगता है और दूसरी और गुड़िया
पड़ोस मे रहने वाली चंपा के पास
बाते करने पहुच जाती है,
गुड़िया देखा जाए तो विजय को बहुत सीधी सादी और भोली लगती होगी लेकिन
गुड़िया के दिमाग़ मे क्या चलता है इसका ख्याल विजय को नही था, और
गुड़िया का मन बदलने वाली कोई और नही चंपा ही थी, चंपा गुड़िया की ही
उम्र की लड़की थी और अपने बाप और भाई के साथ रहती थी, चंपा अपने भैया से
रोज रात को चुदवाती थी और अपने भैया के लंड की दीवानी थी, और यह सब बाते
उसने गुड़िया को भी बता रखी थी तब से ही गुड़िया उसकी बातो मे कुछ
ज़्यादा ही मज़ा लेने लग गई थी, इसी कारण गुड़िया को जब मोका मिलता वह
चंपा के पास चली जाती थी,

चंपा- क्या बात है आज बड़ी खुस लग रही है
गुड़िया- बात ही कुछ ऐसी है देख मेरे भैया मेरे लिए क्या लेकर आए है,
चंपा-गुड़िया की पायल देख कर अरे वाह बड़ी सुंदर पायल है, ऐसी पायल तो
लोग अपनी बीबी को भी नही देते है, कही तेरा
भाई तुझे अपनी बीबी तो नही बनाना चाहता है,
गुड़िया-तुनक कर मेरा भाई है, वह जो चाहे वह करे, मुझे अपनी बहन बनाए या
बीबी तुझे उससे क्या
चंपा- गुड़िया के दूध को कस कर दबाती हुई, हे मेरी बन्नो, लगता है बड़ा
मन कर रहा है अपने भैया का मोटा
लंड लेने का,


गुड़िया- मेरा कर रहा हो या नही तू तो अपने भाई का लंड ले चुकी है ना,
चंपा- उसके दूध को दबाती हुई, अरे रानी ले चुकी हू और बड़ा मज़ा भी आता
है अपने भाई के मोटे लंड से चुदवाने मैं
इसीलिए तो तुझे भी कहती हू, एक बार अपने भैया के मोटे लंड पर बैठ जाएगी
ना तो फिर जिंदगी भर उठने का मन नही
करेगा,

गुड़िया- अपने घाघरे के अंदर हाथ डाल कर अपनी चूत को खुजलाती हुई, अरे
चंपा मेरी ऐसी किस्मत कहाँ
चंपा- गुड़िया के घाघरे से उसका हाथ निकालते हुए, अरे महरानी तुम क्यो
कष्ट कर रही हो जब तुम्हारी गुलाम तुम्हारे
पास बैठी है और फिर चंपा अपने हाथ से गुड़िया की चूत को सहलाते हुए, खूब
मन कर रहा है ना अपने भैया के
मोटे लंड को लेने का, लगता है यह पायल भी तेरे भैया ने ही तुझे पहनाई है,
गुड़िया- हा उन्होने अपने हाथो से मेरे पैरो मे पायल पहनाई है,
चंपा- तो थोड़ा घाघरा उठा कर उन्हे अपनी इस गुलाबी चूत के दर्शन भी करवा देती

गुड़िया- अरे कहाँ से करवा दू कही भैया गुस्सा हो गये तो
चंपा- लगता है तू अपने भैया से ज़्यादा चिपकती नही है, एक बार अपनी इस
गदराई जवानी का एहसास उन्हे करा दे, तेरी
जवानी की महक पाते ही देख लेना तेरे भैया का मोटा लंड खड़ा ना हो जाए तो फिर कहना,
गुड़िया- तुझे एक बात तो बताना भूल ही गई भैया मुझे अपने साथ शहर ले जाना चाहते है,
चंपा- मुस्कुरकर लगता है तेरे भैया को तेरी पकी जवानी की महक आ चुकी है
तभी तो वह तुझे शहर ले जाकर
आराम से चोदना चाहते है,

दोनो बाते मैं मगन थी तभी रुक्मणी की आवाज़ आई
गुड़िया ओ गुड़िया देख तेरे भैया बुला रहे है और फिर गुड़िया फुदक कर
अपने घर मे आ जाती है,
रुक्मणी- दोनो भाई बहन सो जाओ और मैं ज़रा पड़ोस मैं जमुना के यहा से हो कर आती हू,
अपनी मा के जाने के बाद विजय अपनी खटिया बिच्छा कर लेट जाता है और
गुड़िया उसके पास जाकर बैठ जाती है
विजय-गुड़िया की पीठ सहलाता हुआ, मेरी बहना अब बड़ी हो गई है, है ना
गुड़िया- अपना मूह फूला कर हा बड़ी हो गई हू इसीलिए आप मुझसे अब पहले
जैसा प्यार नही करते,
विजय- अरे किसने कहा मैं तुझे प्यार नही करता

गुड़िया- उसे आँखे दिखाती हुई और नही तो क्या पहले तो आप मुझे चाहे जब
अपनी गोद मे बैठा कर कितना मुझे चूमते
थे और कितनी देर तक मुझे सहलाते हुए प्यार करते थे लेकिन अब पता नही क्यो
मुझसे दूर-दूर रहते हो
विजय ने मन मे सोचा उसकी बहन कितनी भोली है क्यो ना मैं इसकी गदराई जवानी
का मज़ा ले लू और फिर उसकी ऐसी बाते सुन कर विजय का लंड अपनी लूँगी मे
खड़ा हो चुका था,

विजय- अच्छा भाई आज हम अपनी बहन को पहले जैसा ही प्यार करेगे, चल आजा मैं
तुझे अपनी गोद मे बैठा कर प्यार
करूँगा और फिर विजय अपने दोनो पेर चारपाई से नीचे झूला कर गुड़िया को
अपनी लूँगी मे खड़े लंड पर बैठा लेता है
और गुड़िया को जैसे ही अपनी मोटी गंद मे घाघरे के उपर से अपने भैया के
मोटे लंड का एहसास होता है उसकी चूत पानी
छ्चोड़ने लग जाती है और वह कस कर विजय से चिपक जाती है, विजय अपनी बहन के
रसीले होंठो और गालो को खूब ज़ोर-ज़ोर से चूमते हुए कभी उसके कसे हुए दूध
को हल्के हल्के दबाता है और कभी उसके चिकने पेट पर हाथ फेरता है, विजय का
मोटा लंड गुड़िया की गंद मे फसा रहता है और गुड़िया अपने भैया के लंड की
मोटाई और लंबाई का एहसास करते हुए उसके लंड पर इधर उधर अपनी गंद मारने
लगती है,


विजय- उसके गालो को चूमता हुआ एक हाथ से उसके मोटे-मोटे दूध को हल्के
हाथो से दबाते हुए, बोल गुड़िया चलेगी
मेरे साथ शहर
गुड़िया- हा भैया वैसे भी मुझे तुम्हारे बिना यहा अच्छा नही लगता है,
विजय- पर वहाँ जाकर तुझे इसी तरह रोज मेरी गोद मे बैठना पड़ेगा क्यो कि
वाहा लेजा कर मैं तुझे बहुत प्यार करूँगा
गुड़िया- मैं भी तो यही चाहती हू भैया कि तुम मुझे दिन भर अपनी गोद मे
बैठा कर प्यार करो, जानते हो जब तुम मुझे
अपनी गोद मे बैठा कर प्यार करते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है और जहा भी
शरीर मे दर्द होता है वह ख़तम
हो जाता है,

विजय- अच्छा तुझे कहाँ पर ज़्यादा दर्द रहता है
गुड़िया- भोली बनते हुए अपने भैया का हाथ पकड़ कर अपने मोटे-मोटे कसे हुए
दूध पर रख कर, यहा बहुत दर्द
रहता है भैया,

विजय का लंड गुड़िया की बात सुन कर झटके मारने लगता है और, वह गुड़िया के
होंठो को चूमता हुआ, मेरी रानी मैं अभी
तेरा सारा दर्द दूर कर देता हू और फिर विजय बेफिकर होकर अपनी बहन के
मोटे-मोटे खूब कसे हुए दूध को पागलो की
तरह खूब कस-कस कर मसल्ने लगता है, गुड़िया पूरी मस्ती मे आकर ओह भैया ओह
भैया ऐसे ही आ हा भैया थोड़ा
धीरे आह ओह भैया बहुत अच्छा लग रहा है,
विजय अपनी बहन के दोनो दूध को पूरी तबीयत से मसलता रहता है, करीब आधे
घंटे तक गुड़िया के दूध को मसल-
मसल कर विजय लाल कर देता है तभी दरवाजे पर दस्तक होती है और गुड़िया
जल्दी से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए जाती है और विजय चादर डाल कर चारपाई
पर लेट जाता है, कुछ देर बाद दोनो मा बेटी वही नीचे अपना बिस्तेर लगा कर
लेट जाती है

कमरे मे एक हल्की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था और विजय की आँखो मे नींद नही
थी वह करवट लेकर लेटा हुआ था
और उसकी नज़रे अपनी मा के गदराए बदन पर टिकी हुई थी, रुक्मणी ने गर्मी
होने की वजह से केवल पेटिकोट और ब्लौज पहना हुआ था और हल्की रोशनी मे
विजय को अपनी मा की गदराई मोटी-मोटी जंघे उठा हुआ गहरी नाभि वाला पेट और
खूब चौड़े-चौड़े विशाल चूतड़ साफ नज़र आ रहे थे उसका लंड लोहे की तरह
अपनी मस्तानी मा के शरीर को देख-देख कर
तना हुआ था और उसका दिल कर रहा था कि वह अभी उठ कर अपनी मा के गदराए शरीर
के उपर चढ़ जाए और उसकी उफनती जवानी को खूब कस-कस कर चोदे.
अपनी मस्ती से भरपूर रसीली मा को चोदने की कल्पना करते-करते ना जाने कब
विजय की नींद लग गई, लेकिन विजय को यह ध्यान नही रहा कि उसका मोटा लंड
उसके कछे से बाहर था और फिर रात को जब रुक्मणी को पेशाब लगी तो वह उठ कर
जैसे ही बैठती है उसकी नज़र अपने बेटे के खड़े मोटे लंड पर पड़ती है तो
उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती है, इतना मोटा और विशाल लंड रुक्मणी ने
कभी नही देखा था उसकी चूत से पिशाब की जगह एक अलग ही तरह की चुदास लगने
लगती है,


वह, ना जाने कब अपनी चूत को मसल्ते हुए अपने बेटे के लंड के बिल्कुल पास
पहुच कर उसे बहुत प्यार से देखती है, कुछ देर अपनी चूत रगड़ने के बाद
रुक्मणी चुप चाप लेट जाती है लेकिन उसकी आँखो से नींद गायब हो जाती है,
तभी गुड़िया कसमसा कर करवट लेती है और रुक्मणी जल्दी से उठ कर विजय की
लूँगी उठा कर उसके खड़े लंड पर डाल कर उसे छुपा देती है,

रात भर रुक्मणी की आँखो के सामने उसके अपने बेटे का मोटा तगड़ा लंड घूम
रहा था और उसकी चिकनी चूत गीली हो गई थी, बड़ी मुश्किल मे रात गुजर पाई,


सुबह रुक्मणी और गुड़िया काम धाम मे जुट गई और विजय देर तक सोता रहा,
विजय जब सो कर उठा तो वह उठ कर बैठा ही था कि रुक्मणी हाथ मे चाइ का
प्याला लिए सामने से चली आ रही थी, शायद वह बाथरूम से कोई काम ख़तम करके
लॉट रही थी उसकी साडी उसके मोटे-मोटे दूध से अलग हट गई थी और उसका उभरा
हुआ गोरा मखमली पेट और उस पर एक बड़ी सी गहरी नाभि देखने भर की देर थी और
विजय का मोटा लंड अपनी मा के लिए तन कर खड़ा हो चुका था,

रुक्मणी- विजय के पास बैठते हुए, मुस्कुरकर ले बेटा चाइ पी ले
विजय- मुस्कुरकर चाइ पीते हुए, बहुत काम है क्या मा, मैं कुछ मदद करू
रुक्मणी अरे नही बेटे अब तू एक दो दिनो के लिए आया है तो आराम कर काम तो
चलता ही रहता है, रुक्मणी के मोटे-मोटे भरे हुए दूध उसके दो बटन खुले
होने की वजह से आधे से ज़्यादा बाहर आ रहे थे, रुक्मणी का ध्यान बार-बार
विजय की लूँगी के नीचे छुपे लंड की ओर जा रहा था और उसे ज़रा भी ख्याल
नही था कि वह अपना पल्लू हटाए अपने जवान बेटे के सामने अधनंगी बैठी थी,
विजय अपनी मम्मी के मोटे-मोटे दूध को बड़े प्यार से देखता हुआ चाइ पी रहा
था,


रुक्मणी- विजय के सर पर हाथ फेरते हुए, और वाहा टाइम से खाना खाया कर देख
कितना दुबला हो गया है
विजय- चाइ का प्याला रखते हुए मा तुम मुझे बिल्कुल बच्चो जैसे समझा रही
हो मैं सब टाइम पर कर लेता हू
रुक्मणी - विजय का मूह पकड़ कर तो क्या तू बहुत बड़ा हो गया है, मेरे लिए
तो अभी भी बच्चा ही है और मैं तुझे
हमेशा की तरह अपनी गोद मे बैठा कर प्यार कर सकती हू, और फिर रुक्मणी अपने
बेटे के मूह को अपने सीने से लगा लेती है और विजय अपनी मा के मस्ताने
शरीर की कामुक महक को सूंघते हुए अपनी मा के मोटे-मोटे दूध मे अपना मूह
भर देता है, दोनो मा बेटे चिपके होते है तभी दरवाजे पर जमुना काकी आ जाती है,

जमुना- क्या बात है दोनो मा बेटे बड़ा प्रेम कर रहे है,
रुक्मणी- आ जमुना अंदर आजा
विजय- मा मैं फ्रेश होकर आता हू
विजय वाहा से उठ कर बाथरूम मे घुस जाता है तभी उसका मन होता है कि बाहर
झाँक कर देखे मा और जमुना के
बीच क्या बात हो रही है,

जमुना- रुक्मणी की मोटी गंद मे चुटकी कटती हुई, क्यो रुक्मणी अपने जवान
बेटे को इस उमर मे अपना दूध पिलाते हुए
शरम नही आ रही थी,
रुक्मणी- चुप कर रंडी, ना जाने क्या-क्या बकती रहती है, वो तो मैं अपने
बेटे को प्यार कर रही थी
जमुना- रुक्मणी के दूध को एक दम से दबाती हुई, कोई बाहर का तुम दोनो मा
बेटे को एक साथ ऐसे देखे तो वह यही
सोचेगा कि विजय तेरा आदमी है इतना मुस्टंडा लगता है तेरा बेटा, और तू
कहती है कि तू उसे प्यार कर रही थी, ज़रूर तेरी चूत गीली होगी चल दिखा और
फिर जमुना अपना हाथ एक दम से रुक्मणी की साडी के अंदर चूत मे कर देती है
और अपना हाथ बाहर निकाल कर, हे राम तेरी चूत तो सचमुच बहुत गीली है, सच
बता अपने बेटे के जवान जिस्म से चिपकने से तेरी चूत गीली हुई है ना,


रुक्मणी- मुस्कुरकर मूह बनाते हुए चुप कर जमुना, कही विजय ना सुन ले
जमुना- अरे सुनता है तो सुने उसे भी तो पता चले कि जिस जवान मा के साथ वह
रहता है उसकी चिकनी चूत दिन रात खड़े लंड के लिए पानी छ्चोड़ती रहती है,
विजय का मोटा लंड उनकी बाते सुन कर पूरी तरह तना हुआ था और वहाँ से छुप
कर विजय अपनी मम्मी की गदराई जवानी को देख-देख कर अपना लंड मसल रहा था,
जमुना- अच्छा मैं अब जाती हू, दोपहर को तेरे पास आउन्गि, और हा यह अपना
पल्लू अपने मोटे थनो पर डाल कर रखा कर कही तेरा बेटा ही तुझ पर ना चढ़ने
लगे,
क्रमशः...............

JAWAANI KI MITHAS--2

gataank se aage................
gudiya- bhaiya kitne din rukoge yaha
vijay- is bar to main do din ki chutti lekar aaya hu par ek bat aur
kahna thi tujhse
gudiya- vah kya
vijay- is bar tu mere sath shahar chalegi, mujhe khana banane main
bada pareshan hona padta hai aur phir tu bhi shahar
ka mahol dekh legi
gudiya- main to taiyar hu bhaiya par ma jane de tab na,
vijay- tu fikar na kar main ma se bat kar lunga,
vijay- ab jara apne bhaiya ko pani bhi pila do
gudiya- abhi lai aur gudiya andar chali jati hai tabhi darwaje se
rukmani ka aana hota hai,
rukmani- aa gaya bete
vijay- jaise hi apni ma ko dekhta hai, har bar ki tarah uska najariya
kuch alag tha aur uski najar sidhe is bar apni ma ke
uthe huye gahari nabhi wale pet par padti hai aur phir bade-bade doodh
aur bhare-bhare gal, rasile honth, vijay apne
man main sochta hai uski ma to vakai bahut tagda mal hai, lakhan thik
hi kah raha tha, meri ma puri nangi kitni jabardust
najar aati hogi, kuch hi palo main yah sab sochte hi vijay ka land
puri tarah khada ho jata hai, aur vijay aage badh kar
apni ma ke per chhuta hai aur phir jaise hi uski badi-badi kathor
choochiyon ko apne sine se lagata hai uska land jhatke
marne lag jata hai,
rukmani- vijay ke chehre par hath pherti hui, vaha tujhe khana pina
nahi milta hai kya kitna dubla ho gaya hai
vijay- nahi ma vah to main tumhari yaad main dubla ho jata hu
rukmani- aisa hota to main to tujhe din rat yaad karti hu par dekh
main kitni moti hoti ja rahi hu,
vijay- apni gadaraai ma ke gore-gore uthe huye pet ki khal ko apne
hantho se dabata hua, nahi ma tum moti kaha ho,
tumhare badan par to yah halka fulka motapa bahut achcha lagta hai, ha
ma mujhe duniya ki har aurat main sabse achchi
tum hi lagti ho,
rukmani- muskurakar achcha-achcha ab bate banana band kar main tere
liye khana lekar aati hu aur phir jaise hi rukmani
jane lagti hai vijay jab gaur se apni ma ki bhari bharkam moti gand ki
thirkan dekhta hai to uska land jhatke par jhatke
marne lagta hai aur vah apni mummy ko puri nangi dekhne ke khyal se hi
pagal hone lag jata hai.
vijay udhar apni ma ke samne baith kar khana khane lagta hai aur dusri
aur gudiya pados main rahne wali champa ke pas
bate karne pahuch jati hai,
gudiya dekha jaye to vijay ko bahut sidhi sadi aur bholi lagti hogi
lekin gudiya ke dimag main kya chalta hai iska khyal
vijay ko nahi tha, aur gudiya ka man badalne wali koi aur nahi champa
hi thi, champa gudiya ki hi umr ki ladki thi aur
apne bap aur bhai ke sath rahti thi, champa apne bhaiya se roj rat ko
chudavaatee thi aur apne bhiaya ke land ki deewani thi,
aur yah sab bate usne gudiya ko bhi bata rakhi thi tab se hi gudiya
uski bato main kuch jyada hi maza lene lag gai thi, isi
karan gudiya ko jab moka milta vah champa ke pas chali jati thi,

champa- kya bat hai aaj badi khus lag rahi hai
gudiya- bat hi kuch aisi hai dekh mere bhaiya mere liye kya lekar aaye hai,
champa-gudiya ki payal dekh kar are wah badi sundar payal hai, aisi
payal to log apni bibi ko bhi nahi dete hai, kahi tera
bhai tujhe apni bibi to nahi banana chahta hai,
gudiya-tunak kar mera bhai hai, vah jo chahe vah kare, mujhe apni
bahan banaye ya bibi tujhe usse kya
champa- gudiya ke doodh ko kas kar dabati hui, hay meri banno, lagta
hai bada man kar raha hai apne bhaiya ka mota
land lene ka,


gudiya- mera kar raha ho ya nahi tu to apne bhai ka land le chuki hai na,
champa- uske doodh ko dabati hui, are rani le chuki hu aur bada maza
bhi ata hai apne bhai ke mote land se chudne main
isiliye to tujhe bhi kahti hu, ek bar apne bhaiya ke mote land par
baith jayegi na to phir jindagi bhar uthne ka man nahi
karega,

gudiya- apne ghaghre ke andar hath dal kar apni chut ko khujlati hui,
are champa meri aisi kismat kaha
champa- gudiya ke ghaghre se uska hath nikalte huye, are mahrani tum
kyo kasht kar rahi ho jab tumhari gulam tumhare
pas baithi hai aur phir champa apne hath se gudiya ki chut ko sahlate
huye, khub man kar raha hai na apne bhaiya ke
mote land ko lene ka, lagta hai yah payal bhi tere bhaiya ne hi tujhe
pahnai hai,
gudiya- ha unhone apne hantho se mere pairo main payal pahnai hai,
champa- to thoda ghaghra utha kar unhe apni is gulabi chut ke darshan
bhi karwa deti

gudiya- are kaha se karwa du kahi bhaiya gussa ho gaye to
champa- lagta hai tu apne bhaiya se jyada chipakti nahi hai, ek bar
apni is gadaraai jawani ka ehsas unhe kara de, teri
jawani ki mahak pate hi dekh lena tere bhaiya ka mota land khada na ho
jaye to phir kahna,
gudiya- tujhe ek bat to batana bhul hi gai bhaiya mujhe apne sath
shahar le jana chahte hai,
champa- muskurakar lagta hai tere bhaiya ko teri paki jawani ki mahak
aa chuki hai tabhi to vah tujhe shahar le jakar
aaram se chodna chahte hai,

dono bate main magan thi tabhi rukmani ki aawaj aai
gudiya o gudiya dekh tere bhaiya bula rahe hai aur phir gudiya phudak
kar apne ghar main aa jati hai,
rukmani- dono bhai bahan so jao aur main jara pados main jamuna ke
yaha se ho kar aati hu,
apni ma ke jane ke bad vijay apni khatiya bichha kar let jata hai aur
gudiya uske pas jakar baith jati hai
vijay-gudiya ki pith sahlata hua, meri bahna ab badi ho gai hai, hai na
gudiya- apna muh phula kar ha badi ho gai hu isiliye aap mujhse ab
pahle jaisa pyar nahi karte,
vijay- are kisne kaha main tujhe pyar nahi karta

gudiya- use aankhe dikhati hui aur nahi to kya pahle to aap mujhe
chahe jab apni god main baitha kar kitna mujhe chumte
the aur kitni der tak mujhe sahlate huye pyar karte the lekin ab pata
nahi kyo mujhse dur-dur rahte ho
vijay ne man main socha uski bahan kitni bholi hai kyo na main iski
gadaraai jawani ka maza le lu aur phir uski aisi bate sun
kar vijay ka land apni lungi main khada ho chuka tha,

vijay- achcha bhai aaj hum apni bahan ko pahle jaisa hi pyar karege,
chal aaja main tujhe apni god main baitha kar pyar
karunga aur phir vijay apne dono per charpai se niche jhula kar gudiya
ko apni lungi main khade land par baitha leta hai
aur gudiya ko jaise hi apni moti gand main ghaghre ke upar se apne
bhaiya ke mote land ka ehsas hota hai uski chut pani
chhodne lag jati hai aur vah kas kar vijay se chipak jati hai, vijay
apni bahan ke rasile hontho aur galo ko khub jor-jor se
chumte huye kabhi uske kase huye doodh ko halke halke dabata hai aur
kabhi uske chikne pet par hath pherta hai, vijay
ka mota land gudiya ki gand main phasa rahta hai aur gudiya apne
bhaiya ke land ki motai aur lambai ka ehsas karte huye
uske land par idhar udhar apni gand marne lagti hai,


vijay- uske galo ko chumta hua ek hath se uske mote-mote doodh ko
halke hatho se dabate huye, bol gudiya chalegi
mere sath shahar
gudiya- ha bhaiya vaise bhi mujhe tumhare bina yaha achcha nahi lagta hai,
vijay- par vaha jakar tujhe isi tarah roj meri god main baithna padega
kyo ki vaha lejakar main tujhe bahut pyar karunga
gudiya- main bhi to yahi chahti hu bhaiya ki tum mujhe din bhar apni
god main baitha kar pyar karo, jante ho jab tum mujhe
apni god main baitha kar pyar karte ho to mujhe bahut achcha lagta hai
aur jaha bhi sharir main dard hota hai vah khatam
ho jata hai,

vijay- achcha tujhe kaha par jyada dard rahta hai
gudiya- bholi bante huye apne bhaiya ka hath pakad kar apne mote-mote
kase huye doodh par rakh kar, yaha bahut dard
rahta hai bhaiya,

vijay ka land gudiya ki bat sun kar jhatke marne lagta hai aur, vah
gudiya ke hontho ko chumta hua, meri rani main abhi
tera sara dard dur kar deta hu aur phir vijay befikar hokar apni bahan
ke mote-mote khub kase huye doodh ko paglo ki
tarah khub kas-kas kar masalne lagta hai, gudiya puri masti main aakar
oh bahiya oh bhaiya aise hi aah ha bhaiya thoda
dhire aah oh bhaiya bahut achcha lag raha hai,
vijay apni bahan ke dono doodh ko puri tabiyat se masalta rahta hai,
karib aadhe ghante tak gudiya ke doodh ko masal-
masal kar vijay lal kar deta hai tabhi darwaje par dastak hoti hai aur
gudiya jaldi se uth kar darwaja kholne ke liye jati
hai aur vijay chadar dal kar charpai par let jata hai, kuch der bad
dono ma beti vahi niche apna bister laga kar let jati hai

kamre main ek halki roshni wala bulb jal raha tha aur vijay ki aankho
main neend nahi thi vah karwat lekar leta hua tha
aur uski najre apni ma ke gadraye badan par tiki hui thi, rukmani ne
garmi hone ki wajah se keval petikot aur blauj
pahna hua tha aur halki roshni main vijay ko apni ma ki gadaraai
moti-moti janghe utha hua gahri nabhi wala pet aur khub
chaude-chaude vishal chutad saf najar aa rahe the uska land lohe ki
tarah apni mastani ma ke sharir ko dekh-dekh kar
tana hua tha aur uska dil kar raha tha ki vah abhi uth kar apni ma ke
gadraye sharir ke upar chadh jaye aur uski ufanti
jawani ko khub kas-kas kar chode.
apni masti se bharpur rasili ma ko chodane ki kalpna karte-karte na
jane kab vijay ki neend lag gai, lekin vijay ko yah
dhyan nahi raha ki uska mota land uske kachche se bahar tha aur phir
rat ko jab rukmani ko peshab lagi to vah uth kar
jaise hi baithti hai uski najar apne bete ke khade mote land par padti
hai to uski aankhe khuli ki khuli rah jati hai, itna
mota aur vishal land rukmani ne kabhi nahi dekha tha uski chut se
pishab ki jagah ek alag hi tarah ki chudas lagne lagti
hai,


vah,
na jane kab apni chut ko masalte huye apne bete ke land ke bilkul pas
pahuch kar use bahut pyar se dekhti hai, kuch
der apni chut ragadne ke bad rukmani chup chap let jati hai lekin uski
aankho se neend gayab ho jati hai, tabhi gudiya
kasmasa kar karwat leti hai aur rukmani jaldi se uth kar vijay ki
lungi utha kar uske khade land par dal kar use chupa
deti hai,

rat bhar rukmani ki aankho ke samne uske apne bete ka mota tagda land
ghum raha tha aur uski chikni chut gili ho gai
thi, badi mushkil main rat gujar pai,


subah rukmani aur gudiya kam dham main jut gai aur vijay der tak sota
raha, vijay jab so kar utha to vah uth kar baitha hi
tha ki rukmani hath main chai ka pyala liye samne se chali aa rahi
thi, shayad vah bathroom se koi kam khatam karke lot
rahi thi uski sadi uske mote-mote doodh se alag hat gai thi aur uska
ubhara hua gora makhmali pet aur us par ek badi si
gahri nabhi dekhne bhar ki der thi aur vijay ka mota land apni ma ke
liye tan kar khada ho chuka tha,

rukmani- vijay ke pas baithte huye, muskurakar le beta chai pi le
vijay- muskurakar chai pite huye, bahut kam hai kya ma, main kuch madad karu
rukmani are nahi bete ab tu ek do dino ke liye aaya hai to aaram kar
kam to chalta hi rahta hai, rukmani ke mote-mote
bhare huye doodh uske do baton khule hone ki wajah se aadhe se jyada
bahar aa rahe the, rukmani ka dhyan bar-bar
vijay ki lungi ke niche chupe land ki aur ja raha tha aur use jara bhi
khyal nahi tha ki vah apna pallu hataye apne jawan
bete ke samne adhnangi baithi thi, vijay apni mummy ke mote-mote doodh
ko bade pyar se dekhta hua chai pi raha tha,


rukmani- vijay ke sar par hath pherte huye, aur vaha time se khana
khaya kar dekh kitna dubla ho gaya hai
vijay- chai ka pyala rakhte huye ma tum mujhe bilkul bachcho jaise
samjha rahi ho main sab time par kar leta hu
rukmani - vijay ka muh pakad kar to kya tu bahut bada ho gaya hai,
mere liye to abhi bhi bachcha hi hai aur main tujhe
hamesha ki tarah apni god main baitha kar pyar kar sakti hu, aur phir
rukmani apne bete ke muh ko apne sine se laga leti
hai aur vijay apni ma ke mastane sharir ki kamuk mahak ko sunghte huye
apni ma ke mote-mote doodh main apna muh
bhar deta hai, dono ma bete chipke hote hai tabhi darwaje par jamuna
kaki aa jati hai,

jamuna- kya bat hai dono ma bete bada prem kar rahe hai,
rukmani- aa jamuna andar aaja
vijay- ma main fresh hokar aata hu
vijay vaha se uth kar bathroom main ghus jata hai tabhi uska man hota
hai ki bahar jhank kar dekhe ma aur jamuna ke
beech kya bat ho rahi hai,

jamuna- rukmani ki moti gand main chutki katti hui, kyo rukmani apne
jawan bete ko is umar main apna doodh pilate huye
sharam nahi aa rahi thi,
rukmani- rup kar randi, na jane kya-kya bakti rahti hai, vo to main
apne bete ko pyar kar rahi thi
jamuna- rukmani ke doodh ko ek dam se dabati hui, koi bahar ka tum
dono ma bete ko ek sath aise dekhe to vah yahi
sochega ki vijay tera aadmi hai itna mustanda lagta hai tera beta, aur
tu kahti hai ki tu use pyar kar rahi thi, jarur teri
chut gili hogi chal dikha aur phir jamuna apna hath ek dam se rukmani
ki sadi ke andar chut main bhar deti hai aur apna
hath bahar nikal kar, hay ram teri chut to sachmuch bahut gili hai,
sach bata apne bete ke jawan jism se chipakne se teri
chut gili hui hai na,


rukmani- muskurakar muh banate huye chup kar jamuna, kahi vijay na sun le
jamuna- are sunta hai to sune use bhi to pata chale ki jis jawan ma ke
sath vah rahta hai uski chikni chut din rat khade
land ke liye pani chhodti rahti hai,
vijay ka mota land unki bate sun kar puri tarah tana hua tha aur vaha
se chup kar vijay apni mummy ki gadaraai jawani ko
dekh-dekh kar apna land masal raha tha,
jamuna- achcha main ab jati hu, dophar ko tere pas aaungi, aur ha yah
apna pallu apne mote thano par dal kar rakha kar
kahi tera beta hi tujh par na chadhne lage,
KRAMASHAH...............

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सेक्सी कहानियाँ जवानी की मिठास--1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ
जवानी की मिठास--1

सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो
की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
विजय अपनी मोटरबिक पर 70 की रफ़्तार मे उड़ा जा रहा था, तभी अचानक
तीन-चार पोलीस वालों ने दूर से विजय की बाइक को
हाथ देकर रोक लिया और विजय ने अपनी बाइक की रफ़्तार कम करके एक तरफ खड़ी करली,
विजय- क्या हुआ साहब

पोलीस- गाड़ी के पेपर और लाइसेन्स दिखाओ,
विजय ने अपनी जेब से लाइसेन्स निकाल कर दिया तब पोलीस वाले ने पेपर माँगे
तब विजय ने कहा गाड़ी के पेपर तो उसके घर
पर ही रह गये है, पोलीस वालो ने विजय को गाड़ी एक ओर लगाने को कहा और तभी
एक सिपाही जिसका नाम लखन सिंग था ने
साहेब से कहा अरे साहेब यह हमरे गाँव का है इसे जाने दो, और साहेब आप कहो
तो मैं भी गाँव तक इसके साथ चला जाउ बड़ा ज़रूरी काम है.

विजय- अरे धन्यवाद लखन तुम ना आते तो पता नही मुझे कितनी देर परेशान होना पड़ता
लखन- अरे नही विजय भैया हमरे रहते आप कैसे परेशान होगे, पर यह बताओ आज
गाँव की तरफ कैसे चल दिए
विजय- अरे लखन भैया मेरी नौकरी शहर मे है और वाहा से गाँव 50-60 क्म
पड़ता है तो मैं हर सनडे गाँव आ
जाता हू आख़िर मा और गुड़िया से भी तो मिलना पड़ता है ना.
लखन-अच्छा चलो मुझे भी गाँव तक चलना है, मैं तुम्हारे साथ ही चला चलता हू
साहेब से भी छुट्टी माँग ली है
विजय- क्यो नही लखन बैठो


विजय लखन को लेकर गाँव की ओर चल देता है, विजय एक 30 साल का हॅटा-कॅटा
जवान था और शहर मे सरकारी नौकरी
करता था और अपना पूरा नाम विजय सिंग ठाकुर लिखता था, गाँव मे उसकी मा
रुक्मणी और बहन गुड़िया रहते थे,
रुक्मणी करीब 48 साल की एक भरे बदन की औरत थी और करीब 10 साल पहले ही
उसके पति की मौत हो चुकी थी उसे लोग गाँव
मैं ठकुराइन के नाम से ही पुकारते थे, विजय की बहन गुड़िया अब 25 बरस की
हो चली थी, लेकिन अभी तक दोनो भाई बहन
मैं से किसी की शादी नही हुई थी, लेकिन सभी की कामनाए दबी हुई थी,

लखन- विजय भैया कहो तो आज थोड़ा मदिरापान हो जाए, कहो तो एक बोतल ले लू
गाँव के हरे भरे पेड़ो के नीचे बैठ
कर पीने का मज़ा ही कुछ और आता है.
विजय जानता था कि लखन एक रंगीन मिज़ाज का आदमी है और विजय एक दो बार पहले
भी लखन और एक दो लोगो के साथ बैठ कर
पी चुका था, उसने सोचा चलो अब शाम भी हो रही है और गाँव भी 10 किमी होगा
थोड़ा मूड फ्रेश कर ही लिया जाए
लखन और विजय गाँव से 3-4 किमी दूर एक तालाब के किनारे लगे पेड़ो के नीचे
बैठ कर पीना शुरू कर देते है,
लखन- अच्छा विजय भैया कोई माल वग़ैरह पटाया है कि नही शहर मे या ऐसे ही
नीरस जिंदगी जी रहे हो,
विजय- अरे बिना औरत के क्या जिंदगी नीरस रहती है,

लखन- अरे और नही तो क्या, अब हमको ही देख लो तुमसे 2 साल छोटे है पर जबसे
हमारी शादी हुई है तब से हम को
अपनी औरत को चोदे बिना नींद ही नही आती है,
विजय को लखन की बातो मैं बड़ा मज़ा आ रहा था और उसका नशा चढ़ता ही जा रहा
था, उधर लखन की यह कमज़ोरी थी
कि वह पीने के बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ चूत और चुदाई की ही बाते करता था,

विजय- तो क्या तुम अपनी औरत को रोज चोद्ते हो
लखन- शराब का बड़ा सा घूँट गटकते हुए, हा भैया मुझे तो बिना अपनी औरत की
चूत मारे नींद ही नही आती है,
विजय- लगता है तेरी बीबी बहुत सुंदर है
लखन- सुंदर तो है भैया लेकिन जैसे माल की हमे चाहत थी वैसा माल नही है,

विजय- क्यो तुझे कैसे माल की चाहत थी
लखन- अब क्या बताउ भैया मुझे लोंदियो को चोदने मे उतना मज़ा नही आता है
जितना मज़ा बड़ी उमर की औरतो को
चोदने मैं आता है,
विजय- बड़ी उमर की मतलब, किस तरह की औरत

लखन- भैया मुझे तो अपनी मा की उमर की औरतो को चोदने मे मज़ा आता है,
विजय- क्यो मा की उमर की औरतो मे कुछ खास बात होती है क्या
लखन- अच्छा पहले यह बताओ तुमने कभी अपनी मा की उमर की औरत को पूरी नंगी देखा है,
विजय- नही देखा क्यो

लखन- अगर देखा होता तो जानते, मैं तो शादी के पहले ऐसी ही औरतो को
सोच-सोच कर खूब अपना लंड हिलाता था,
विजय- अच्छा, तो क्या तूने किसी को पूरी नंगी भी देखा था
लखन- नशे मैं मुस्कुराते हुए, देखो भैया तुमसे बता रहा हू क्यो कि तुम
मेरे भाई जैसे हो पर यह बात कही और
ना करना,

विजय- लखन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नही है
लखन- भरोसा है तभी तो बता रहा हू भैया, एक बार मैंने अपनी अम्मा को पूरी
नंगी देखा था, क्या बताउ भैया
इतनी भरे बदन की है मेरी अम्मा की उसकी गदराई उफान खाती जवानी देख कर
मेरा लंड किसी डंडे की तरह तन गया था,
बस तब से ही भैया मुझे अपनी अम्मा जैसी औरते ही अच्छी लगती है और जब भी
मैं अपनी औरत को चोदता हू तो मुझे
ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी अम्मा को पूरी नंगी करके चोद रहा हू,


विजय- लखन की बात सुन कर हैरान रह जाता है लेकिन उसका लंड उसके पेंट मे
पूरी तरह तना हुआ था,
विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया
लखन- अरे विजय भैया तुम इन औरतो को नही जानते इनकी उमर जितनी बढ़ती जाती
है उनकी जवानी और उठने लगती है, मेरी
अम्मा को चूत मे खूब खुजली मची होगी इसीलिए वह पूरी नंगी होकर घर के आँगन
मे नहा रही थी और मैं चुपचाप
छुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था,

विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा,
लखन- अब भैया घर मे ऐसा छोड़ने लायक माल हो तो उसे पूरी नंगी देखे बिना
रहा भी तो नही जाता, पता नही तुम
30 बरस के हो चले हो और तुम्हारा मन क्यो नही होता है, जबकि तुम्हारी मा
तो..............

विजय-बोल-बोल क्या कह रहा था
लखन- माफ़ करना भैया ग़लती से मूह से निकल गया
विजय- उसकी बोतल लेकर एक सांस मे तीन-चार घूँट खिचते हुए, अरे बोल ना
क्या कह रहा था मेरी मा के बारे मैं, जब
मैं तेरी मा के बारे मे सुन सकता हू तो अपनी मा के बारे मे भी सुन सकता
हू, बोल तू क्या कहना चाहता है, तू मेरा दोस्त
है मैं तेरी बात का बुरा नही मानूँगा और अगर मुझे बात बुरी लगी तो मैं
तुझे करने के लिए मना कर दूँगा, अब बोल भी
दे

लखन- विजय की बात सुन कर थोडा जोश मैं आ चुका था और भैया मैं तो यह कह
रहा था की इस पूरे गाँव मैं अगर
सबसे गदराया बदन और नशीली जवानी अगर किसी की है तो वह है आपकी मा ठकुराइन
की, क्या आपका लंड आपकी मा को
देख कर खड़ा नही होता है जब कि आप तो हमेशा उनके साथ घर पर ही रहते हो,
ठकुराइन जब गाँव मे चलती है तो
अच्चो -अच्चो के लंड खड़े हो जाते है,


विजय- नशे मैं बहुत मस्त हो रहा था और जब उसने लखन के मूह से अपनी मा की
गदराई ज्वानी की बात सुनी तो उसका मोटा
लॅंड झटके खाने लगा था, क्या इतनी मस्त लगती है मेरी मा
लखन- सच कहु विजय भैया अगर तुम्हारी जगह मैं ठकुराइन का बेटा होता तो दिन
रात ठकुराइन को खूब कस-कस कर
चोदता, सच विजय भैया आपकी मा बहुत मालदार औरत है, कितने सालो से उन्होने
कोई लंड भी नही लिया है उनकी चूत तो
पूरी कुँवारी लोंदियो जैसी हो गई होगी,
विजय- अच्छा तो एक बात बता लखन तूने कभी अपनी अम्मा को चोदने की कोशिश नही की,
लखन- अरे नही विजय भैया मेरी मा बहुत गरम मिज़ाज की औरत है और इसीलिए
मेरी गंद फाटती है इन सब कामो से,
विजय- तूने ठीक ही किया है, कोई मा अपने बेटे से अपनी चूत थोड़े ही चुदवा लेगी,

लखन- हाँ वो तो है भैया पर जिस औरत को लंबे समय से लंड ना मिला हो वह औरत
अगर किसी जवान लोंडे का मस्त लंड
देख ले तो उसकी चूत पिघल सकती है और जब औरत खूब चुदासि हो जाती है तो फिर
वह किसी का भी लंड ले सकती है,

विजय बात लखन से कर रहा था लेकिन लखन की बातो के कारण उसके दिमाग़ मे
सिर्फ़ उसकी मा रुक्मणी का ही ख्याल आ रहा
था और उसे कभी रुक्मणी की मोटी लहराती गंद कभी उसके मोटे-मोटे कसे हुए
दूध और कभी उसके रसीले होंठ और
उभरा हुआ पेट ही नज़र आ रहा था,

विजय- अच्छा यह बता लखन और कौन औरत गाँव मे सबसे पताका लगती है तुझे.
लखन- अरे भैया हमे लगने से क्या होता है सच कहु तो असली माल तुम्हारे घर
मे है और तुम हो कि एक दम नीरस
आदमी हो,
विजय- तो मुझे क्या करना चाहिए लखन
लखन- भैया औरत की दबी हुई आग अगर भड़का दो तो फिर तुम्हे कुछ करने की
ज़रूरत नही पड़ेगी औरत खुद ही सब
कुछ कर लेगी,


विजय- तूने अपनी बीबी को अपनी अम्मा को नंगी देखने वाली बात बताई है कि नही
लखन- अरे वह तो सब जानती है, कई बार तो वह खुद कहती है कि मुझे अपनी
अम्मा समझ कर चोदो, जब तुम मुझे अपनी
अम्मा समझ कर चोद्ते हो तो बहुत अच्छे से चोद्ते हो,
विजय- मुस्कुराता हुआ, साले अपनी औरत को भी पटा लिया है तूने
विजय- चल अब चलते है बहुत देर हो रही है,


लखन- फिर कभी बैठने का मूड हो भैया तो उसी नाके पर आ जाना जहा तुम्हारी
गाड़ी रोकी थी मेरी ड्यूटी उसी चौकी पर
रहती है,
विजय- क्यो नही लखन अब तो तेरे साथ बैठना ही पड़ेगा, तेरी बाते पूरा मूड
फ्रेश कर देती है,
लखन- अगर ऐसी बात है भैया तो अगली बार जब हम साथ बैठेंगे तब मैं तुम्हे
और भी कई मस्त बाते बताउन्गा,
विजय- मुस्कुराते हुए किसके बारे मे अपनी अम्मा के बारे मे या मेरी मा के बारे मे


लखन- तुम जिसके बारे मे सुनना चाहोगे भैया उसके बारे मे बता दूँगा, पोलीस
वाला हू सबकी खबर रखता हू, और
हा भैया आपसे एक बात कहना भूल गया, बुरा मत मानना पर मेरी सलाह है अपनी
बहन गुड़िया को अपने साथ शहर मे
रखो यहा गाँव का महॉल बड़ा खराब रहता है, किसी दिन कुछ उन्च नीच ना हो जाए,
विजय- तू कुछ छुपा रहा है लखन, साफ-साफ बता क्या बात है
लखन- भैया बुरा मत मानना पर एक दिन मैंने देखा की मनोहर काका अपना लंड
निकाल कर मूत रहा था और गुड़िया
झाड़ियो के पीछे छुप कर उसका मोटा लंड देख रही थी, अब वह बड़ी हो गई है,
उसका भी मन अब इन चीज़ो की तरफ जाने लगा है,


विजय- अरे लखन तूने बहुत अच्छा किया जो मुझे पहले से ही इन बतो के बारे
मे बता दिया मैं कल ही गुड़िया को यहा के महॉल से शहर ले जाता हू वाहा
कुछ सिलाई बुनाई सीख लेगी तो ससुराल मे उसके काम आएगी, दोनो बाते करते
हुए गाँव पहुच जाते है और फिर लखन अपने और विजय अपने घर की ओर आ जाता
है,

विजय का लंड अभी-अभी बैठा ही था कि घाघरा चोली पहने गुड़िया दौड़ कर आती
है और विजय के सीने से लग जाती है, विजय के सीने मे गुड़िया की पपीते
जैसी बड़ी-बड़ी ठोस छातियाँ पूरी तरह से चुभने लगती है, विजय गुड़िया को
पहली बार इस तरह महसूस कर रहा था और वह गुड़िया को अपने सीने से पूरी तरह
कस कर उसके गालो को चूम लेता है,
गुड़िया उसके सीने से अलग होकर उसके सीने पर मुक्के मार कर हस्ती हुई,
गुड़िया-क्या भैया आपने तो कहा था कि दिन मे ही आ जाओगे और आप आधी रात को
आ रहे हो मैं कब से आपका रास्ता देख रही थी. विजय शराब के नशे मे पूरी
तरह मदहोश था और गुड़िया की गदराई जवानी को पहली बार इतनी गौर से देख रहा
था, उसे गुड़िया के मोटे-मोटे दूध इतना मस्त कर रहे थे कि वह अपनी नज़रे
अपनी बहन के दूध से हटा ही नही पा रहा था,
गुड़िया- अच्छा भैया मेरे लिए क्या लाए हो, विजय कुर्सी पर बैठता हुआ,
पहले यह बता मा कहा है,
गुड़िया- मा तो जमुना काकी के यहा बैठी है,
विजय- देख मैं तेरे लिए ये पायल लेकर आया हू,
पायल देखते ही गुड़िया चहक कर विजय से लिपट जाती है और विजय भी कोई मोका
छोड़ना नही चाहता था इसलिए वह गुड़िया को अपनी गोद मे बिठा कर अपने हाथ
उसकी भरी हुई कठोर चूचियों पर ले जाकर धीरे-धीरे उसे सहलाता हुआ गुड़िया
के गालो को चूमता हुआ, मेरी प्यारी बहना रानी अब तो खुश है अपने भैया से
गुड़िया- हा लेकिन यह पायल तुम्हे ही पहनानी होगी मेरे पैरो मैं,
विजय- उसे खड़ी करके, क्यो नही मेरी रानी बहना ला पैर उठा और फिर विजय
अपनी बहन के पैरो को पकड़ कर अपनी जाँघो मे रख लेता है और दूसरे हाथ से
उसका घाघरा उसके घटनो तक चढ़ा देता है जिससे एक पैर की गोरी पिंदलिया और
दूसरे पैर की मोटी जंघे भी विजय को नज़र आने लगती है, विजय का लंड खड़ा
हो जाता है और वह अपने लंड को अपनी पेंट मे अड्जस्ट करना चाहता है पर
सोचता है कि गुड़िया देखेगी तो क्या सोचेगी, लेकिन फिर उसे याद आता है कि
गुड़िया की चूत भी अब खुजलाने लगी है तभी तो मनोहर काका का लंड छुप कर
देख रही थी, विजय उसे पायल पहनाते हुए अपने मोटे लंड को गुड़िया के सामने
ही मसल देता है,

जब विजय उसे पायल पहना रहा था तब वह बीच-बीच मे गुड़िया की पिंडलियो और
जाँघो का भी जयजा ले रहा था और
जब वह अपनी बहन की गदराई जाँघो को च्छू रहा था तो उसकी जाँघो के गुदज
स्पर्श से उसका लंड भनभना चुका था,
गुड़िया अपने दोनो पैरो को नीचे करके अपने घाघरे को घुटनो तक उठा कर अपने
भैया को दिखाती हुई,
गुड़िया- देखो भैया कैसी लग रही है मेरी पायल
विजय- बहुत अच्छी लग रही है तेरे पैरो मैं
गुड़िया- अब देखना भैया जब मैं इन्हे पहन कर चलूंगी तब कैसी लगती हू
बताना, और फिर गुड़िया अपनी मोटी-मोटी गंद
को मतकती हुई जब पायल पहन कर चलती है तो विजय से रहा नही जाता है और वह
उठ कर गुड़िया के पीछे से जाकर उससे कस कर चिपक जाता है और उसे अपनी गोद
मे उठा लेता है, विजय अपने हाथो को अपनी जवान बहन की मसल गंद के नीचे
दबाए हुए उसे अपनी गोद मे उठा कर जब उसके गालो को चूमने जाता है तभी
गुड़िया अपना मूह उसके मूह की ओर कर देती है और विजय के होंठ अपनी बहन के
रसीले होंठो से चिपक जाते है और विजय एक पल के लिए अपनी बहन के रस भरे
होंठो का रस पीने लगता है, और गुड़िया उसके सीने से कस कर चिपक जाती है,
लेकिन फिर अचानक विजय को ध्यान आता है और वह अपनी बहन को नीचे उतार देता
है,
क्रमशः...............

JAWAANI KI MITHAS--1


vijay apni moterbyke par 70 ki raftar main uda ja raha tha, tabhi
achanak teen-char police walon ne dur se vijay ki byke ko
hath dekar rok liya aur vijay ne apni byke ki raftar kam karke ek
taraf khadi karli,
vijay- kya hua sahab

police- gadi ke paper aur licence dikhao,
vijay ne apni jeb se licence nikal kar diya tab police wale ne paper
mange tab vijay ne kaha gadi ke paper to uske ghar
par hi rah gaye hai, police walo ne vijay ko gadi ek aur lagane ko
kaha aur tabhi ek sipahi jiska nam lakhan singh tha ne
saheb se kaha are saheb yah hamre ganv ka hai ise jane do, aur saheb
aap kaho to main bhi ganv tak iske sath chala jau
bada jaruri kam hai.

vijay- are dhanyawad lakhan tum na aate to pata nahi mujhe kitni der
pareshan hona padta
lakhan- are nahi vijay bhaiya hamre rahte aap kaise pareshan hoge, par
yah bataao aaj ganv ki taraf kaise chal diye
vijay- are lakhan bhaiya meri naukari shahar main hai aur vaha se ganv
50-60 km padta hai to main har sunday ganv aa
jata hu aakhir ma aur gudiya se bhi to milna padta hai na.
lakhan-achcha chalo mujhe bhi ganv tak chalna hai, main tumhare sath
hi chala chalta hu saheb se bhi chutti mang li hai
vijay- kyo nahi lakhan baitho


vijay lakhan ko lekar ganv ki aur chal deta hai, vijay ek 30 sal ka
hatta-katta jawan tha aur shahar main sarkari naukri
karta tha aur apna pura nam vijay singh thakur likhta tha, ganv main
uski ma rukmani aur bahan gudiya rahte the,
rukmani karib 48 sal ki ek bhare badan ki aurat thi aur karib 10 sal
pahle hi uske pati ki maut ho chuki thi use log ganv
main thakurain ke nam se hi pukarte the, vijay ki bahan gudiya ab 25
baras ki ho chali thi, lekin abhi tak dono bhai bahan
main se kisi ki shadi nahi hui thi, lekin sabhi ki kamnaye dabi hui thi,

lakhan- vijay bhaiya kaho to aaj thoda madiraapan ho jaye, kaho to ek
botal le lu ganv ke hare bhare pedo ke niche baith
kar pine ka maja hi kuch aur aata hai.
vijay janta tha ki lakhan ek rangin mijaj ka admi hai aur vijay ek do
bar pahle bhi lakhan aur ek do logo ke sath baith kar
pi chuka tha, usne socha chalo ab sham bhi ho rahi hai aur ganv bhi 10
km hoga thoda mood fresh kar hi liya jaye
lakhan aur vijay ganv se 3-4 km dur ek talab ke kinare lage pedo ke
niche baith kar pina shuru kar dete hai,
lakahn- achcha vijay bhaiya koi mal vagairah pataya hai ki nahi shahar
main ya aise hi neeras jindagi ji rahe ho,
vijay- are bina aurat ke kya jindagi neeras rahti hai,

lakhan- are aur nahi to kya, ab hamko hi dekh lo tumse 2 sal chote hai
par jabse hamari shadi hui hai tab se hum ko
apni aurat ko chode bina neend hi nahi aati hai,
vijay ko lakhan ki bato main bada maza aa raha tha aur uska nasha
chadhta hi ja raha tha, udhar lakhan ki yah kamjori thi
ki vah pine ke bad sirf aur sirf chut aur chudai ki hi bate karta tha,

vijay- to kya tum apni aurat ko roj chodte ho
lakhan- sharab ka bada sa ghunt gatakte huye, ha bhaiya mujhe to bina
apni aurat ki chut mare neend hi nahi aati hai,
vijay- lagta hai teri bibi bahut sundar hai
lakhan- sundar to hai bhaiya lekin jaise mal ki hame chahat thi vaisa
mal nahi hai,

vijay- kyo tujhe kaise mal ki chahat thi
lakhan- ab kya bataau bhaiya mujhe londiyo ko chodane main utna maza
nahi aata hai jitna maza badi umar ki aurto ko
chodane main aata hai,
vijay- badi umar ki matlab, kis tarah ki aurat

lakhan- bhaiya mujhe to apni ma ki umar ki aurto ko chodane main maza ata hai,
vijay- kyo ma ki umar ki aurto main kuch khas bat hoti hai kya
lakhan- achcha pahle yah bataao tumne kabhi apni ma ki umar ki aurat
ko puri nangi dekha hai,
vijay- nahi dekha kyo

lakhan- agar dekha hota to jante, main to shadi ke pahle aisi hi aurto
ko soch-soch kar khub apna land hilata tha,
vijay- achcha, to kya tune kisi ko puri nangi bhi dekha tha
lakhan- nashe main muskurate huye, dekho bhaiya tumse bata raha hu kyo
ki tum mere bhai jaise ho par yah bat kahi aur
na karna,

vijay- lakhan kya tujhe mujh par bharosa nahi hai
lakhan- bharosa hai tabhi to bata raha hu bhaiya, ek bar mainne apni
amma ko puri nangi dekha tha, kya bataau bhaiya
itni bhare badan ki hai meri amma ki uski gadaraai ufan khati jawani
dekh kar mera land kisi dande ki tarah tan gaya tha,
bas tab se hi bhaiya mujhe apni amma jaisi aurte hi achchi lagti hai
aur jab bhi main apni aurat ko chodataa hu to mujhe
aisa lagta hai jaise main apni amma ko puri nangi karke chod raha hu,


vijay- lakhan ki bat sun kar hairan rah jata hai lekin uska land uske
pent main puri tarah tana hua tha,
vijay- par tune apni amma ko puri nangi kaise dekh liya
lakhan- are vijay bhaiya tum in aurto ko nahi jante inki umar jitni
badhti jati hai unki jawani aur uthne lagti hai, meri
amma ko chut main khub khujli machi hogi isiliye vah puri nangi hokar
ghar ke angan main naha rahi thi aur main chupchap
chup kar uski gadaraai jawani dekh raha tha,

vijay- tab to tu roj apni amma ko nangi dekhta hoga,
lakhan- ab bhaiya ghar main aisa chodane layak mal ho to use puri
nangi dekhe bina raha bhi to nahi jata, pata nahi tum
30 baras ke ho chale ho aur tumhara man kyo nahi hota hai, jabki
tumhari ma to..............

vijay-bol-bol kya kah raha tha
lakhan- maf karna bhaiya galti se muh se nikal gaya
vijay- uski batol lekar ek sans main teen-char ghunt khichte huye, are
bol na kya kah raha tha meri ma ke bare main, jab
main teri ma ke bare main sun sakta hu to apni ma ke bare main bhi sun
sakta hu, bol tu kya kahna chahta hai, tu mera dost
hai main teri bat ka bura nahi manuga aur agar mujhe bat buri lagi to
main tujhe karne ke liye mana kar dunga, ab bol bhi
de

lakhan- vijay ki bat sun kar thoda josh main aa chuka tha aur bhaiya
main to yah kah raha tha ki is pure ganv main agar
sabse gadaraayaa badan aur nashili jawani agar kisi ki hai to vah hai
aapki ma thakurain ki, kya aapka land aapki ma ko
dekh kar khada nahi hota hai jab ki aap to hamesha unke sath ghar par
hi rahte ho, thakurain jab ganv main chalti hai to
achcho -achcho ke land khade ho jate hai,


vijay- nashe main bahut mast ho raha tha aur jab usne lakhan ke muh se
apni ma ki gadaraai jwani ki bat suni to uska mota
land jhatke khane laga tha, kya itni mast lagti hai meri ma
lakhan- sach kahu vijay bhaiya agar tumhari jagah main thakurain ka
beta hota to din rat thakurain ko khub kas-kas kar
chodataa, sach vijay bhaiya aapki ma bahut maldar aurat hai, kitne
salo se unhone koi land bhi nahi liya hai unki chut to
puri kunwari londiyo jaisi ho gai hogi,
vijay- achcha to ek bat bata lakhan tune kabhi apni amma ko chodane ki
koshish nahi ki,
lakhan- are nahi vijay bhaiya meri ma bahut garam mijaj ki aurat hai
aur isiliye meri gand phatti hai in sab kamo se,
vijay- tune thik hi kiya hai, koi ma apne bete se apni chut thode hi
chudwa legi,

lakhan- ha vo to hai bhaiya par jis aurat ko lambe samay se land na
mila ho vah aurat agar kisi jawan londe ka mast land
dekh le to uski chut pighal sakti hai aur jab aurat khub chudasi ho
jati hai to phir vah kisi ka bhi land le sakti hai,

vijay bat lakhan se kar raha tha lekin lakhan ki bato ke karan uske
dimag main sirf uski ma rukmani ka hi khyal aa raha
tha aur use kabhi rukmani ki moti lahrati gand kabhi uske mote-mote
kase huye doodh aur kabhi uske rasile honth aur
ubhara hua pet hi najar aa raha tha,

vijay- achcha yah bata lakhan aur kaun aurat ganv main sabse pataka
lagti hai tujhe.
lakhan- are bhaiya hame lagne se kya hota hai sach kahu to asli mal
tumhare ghar main hai aur tum ho ki ek dam neeras
aadmi ho,
vijay- to mujhe kya karna chahiye lakhan
lakhan- bhaiya aurat ki dabi hui aag agar bhadka do to phir tumhe kuch
karne ki jarurat nahi padegi aurat khud hi sab
kuch kar legi,


vijay- tune apni bibi ko apni amma ko nangi dekhne wali bat batai hai ki nahi
lakhan- are vah to sab janti hai, kai bar to vah khud kahti hai ki
mujhe apni amma samajh kar chodo, jab tum mujhe apni
amma samajh kar chodte ho to bahut achche se chodte ho,
vijay- muskurata hua, sale apni aurat ko bhi pata liya hai tune
vijay- chal ab chalte hai bahut der ho rahi hai,


lakhan- phir kabhi baithne ka mood ho bhaiya to usi nake par aa jana
jaha tumhari gadi roki thi meri duty usi chouki par
rahti hai,
vijay- kyo nahi lakhan ab to tere sath baithna hi padega, teri bate
pura mood fresh kar deti hai,
lakhan- agar aisi bat hai bhaiya to agali bar jab hum sath baithenge
tab main tumhe aur bhi kai mast bate bataaunga,
vijay- muskurate huye kiske bare main apni amma ke bare main ya meri
ma ke bare main


lakhan- tum jiske bare main sunna chahoge bhaiya uske bare main bata
dunga, police wala hu sabki khabar rakhta hu, aur
ha bhaiya aapse ek bat kahna bhul gaya, bura mat manna par meri salah
hai apni bahan gudiya ko apne sath shahar main
rakho yaha ganv ka mahol bada kharab rahta hai, kisi din kuch unch
neech na ho jaye,
vijay- tu kuch chupa raha hai lakhan, saf-saf bata kya bat hai
lakhan- bhaiya bura mat manna par ek din mainne dekha ki manohar kaka
apna land nikal kar mut raha tha aur gudiya
jhadiyo ke piche chup kar uska mota land dekh rahi thi, ab vah badi ho
gai hai, uska bhi man ab in cheejo ki taraf jane
laga hai,


vijay- are lakhan tune bahut achcha kiya jo mujhe pahle se hi in bato
ke bare main bata diya main kal hi gudiya ko yaha ke
mahol se shahar le jata hu vaha kuch silai bunai sikh legi to sasural
main uske kam aayegi, dono bate karte huye ganv
pahuch jate hai aur phir lakhan apne aur vijay apne ghar ki aur aa jata hai,

vijay ka land abhi-abhi baitha hi tha ki ghaghra choli pahne gudiya
daud kar aati hai aur vijay ke sine se lag jati hai, vijay
ke sine main gudiya ki papite jaisi badi-badi thos chaatiyan puri
tarah se chubhne lagti hai, vijay gudiya ko pahli bar is
tarah mehsus kar raha tha aur vah gudiya ko apne sine se puri tarah
kas kar uske galo ko chum leta hai,
gudiya uske sine se alag hokar uske sine par mukke mar kar hasti hui,
gudiya-kya bhaiya aapne to kaha tha ki din main hi aa jaoge aur aap
aadhi rat ko aa rahe ho main kab se aapka rasta dekh
rahi thi. vijay sharab ke nashe main puri tarah madhosh tha aur gudiya
ki gadaraai jawani ko pahli bar itni gaur se dekh raha
tha, use gudiya ke mote-mote doodh itna mast kar rahe the ki vah apni
najre apni bahan ke doodh se hata hi nahi pa
raha tha,
gudiya- achcha bhaiya mere liye kya laye ho, vijay kursi par baithta
hua, pahle yah bata ma kaha hai,
gudiya- ma to jamuna kaki ke yaha baithi hai,
vijay- dekh main tere liye ye payal lekar aaya hu,
payal dekhte hi gudiya chahak kar vijay se lipat jati hai aur vijay
bhi koi moka chodanaa nahi chahta tha isliye vah gudiya
ko apni god main bitha kar apne hath uski bhari hui kathor choochiyon
par le jakar dhire-dhire use sahlata hua gudiya ke galo
ko chumta hua, meri pyari bahna rani ab to khush hai apne bhaiya se
gudiya- ha lekin yah payal tumhe hi pahnani hogi mere pairo main,
vijay- use khadi karke, kyo nahi meri rani bahna la pair utha aur phir
vijay apni bahan ke pairo ko pakad kar apni jangho
main rakh leta hai aur dusre hath se uska ghaghra uske ghtno tak
chadha deta hai jisse ek pair ki gori pindliya aur dusre
pair ki moti janghe bhi vijay ko najar aane lagti hai, vijay ka land
khada ho jata hai aur vah apne land ko apni pent main
adjust karna chahta hai par sochta hai ki gudiya dekhegi to kya
sochegi, lekin phir use yaad aata hai ki gudiya ki chut bhi
ab khujlaane lagi hai tabhi to manohar kaka ka land chup kar dekh rahi
thi, vijay use payal pahnate huye apne mote land
ko gudiya ke samne hi masal deta hai,

jab vijay use payal pahna raha tha tab vah beech-beech main gudiya ki
pindaliyo aur jangho ka bhi jayja le raha tha aur
jab vah apni bahan ki gadaraai jangho ko chhu raha tha to uski jangho
ke gudaj sparsh se uska land bhanbhana chuka tha,
gudiya apne dono pairo ko niche karke apne ghaghre ko ghutno tak utha
kar apne bhaiya ko dikhati hui,
gudiya- dekho bhaiya kaisi lag rahi hai meri payal
vijay- bahut achchi lag rahi hai tere pairo main
gudiya- ab dekhna bhaiya jab main inhe pahan kar chalungi tab kaisi
lagti hu batana, aur phir gudiya apni moti-moti gand
ko matkati hui jab payal pahan kar chalti hai to vijay se raha nahi
jata hai aur vah uth kar gudiya ke piche se jakar usse
kas kar chipak jata hai aur use apnee god main utha leta hai, vijay
apne hantho ko apni jawan bahan ki masal gand ke
niche dabaye huye use apni god main utha kar jab uske galo ko chumne
jata hai tabhi gudiya apna muh uske muh ki aur
kar deti hai aur vijay ke honth apni bahan ke rasile hontho se chipak
jate hai aur vijay ek pal ke liye apni bahan ke ras
bhare hontho ka ras pine lagta hai, aur gudiya uske sine se kas kar
chipak jati hai, lekin phir achanak vijay ko dhyan aata
hai aur vah apni bahan ko niche utar deta hai,
KRAMASHAH...............


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