एनसीसी कैंप की रात
प्रेषक : प्रवीण
मैं अध्यापक हूँ। हमारे स्कूल में लड़के और लड़कियाँ दोनों ही पढ़ते हैं
इसलिए अध्यापक भी पुरुष और महिलायें दोनों ही हैं। हमारे साथ एक ज़ाहिरा
नाम की अध्यापिका भी पढ़ाती थी, वो एक शादीशुदा औरत थी लेकिन उसका पति
किसी अरब देश में नौकरी करता था और साल दो साल में एक बार आता था। ज़ाहिरा
देखने में गज़ब की सेक्सी लगती थी, उसकी मोटी गाण्ड की चर्चा सिर्फ
अध्यापकों में ही नहीं, विद्यार्थियों में भी बहुत प्यार से की जाती थी,
उसके बड़े बड़े मम्मे अक्सर उसके ब्लाउज में से निकलने को मचलते रहते थे,
उसका रंग थोड़ा सांवला ज़रूर था मगर उसके नैन-नक्श इतने सुन्दर थे कि
देखते ही पैंट में हलचल मच जाती थी। हर अध्यापक और यहाँ तक कि बड़ी कक्षा
के विद्यार्थियों का भी सपना था उसे चोदना !
वैसे भी वो कोई दूध की धुली नहीं थी, स्कूल के प्रिंसिपल के साथ अक्सर वो
देर शाम तक स्कूल में रुका करती थी और कभी कभी तो उसके साथ दूसरे शहर में
भी दो-दो, तीन-तीन दिनों तक घूमने चली जाती थी।
हमारे स्कूल में एनसीसी की ट्रेनिंग भी दी जाती थी, मैं एनसीसी का ट्रेनर
था और ज़ाहिरा भी उसकी ट्रेनर थी।
एक बार गर्मियों में हमें एनसीसी का कैंप लगाने के निर्देश मिले तो हम
लोगों ने मिल बैठ कर निर्णय लिया कि शहर से एक सौ बीस किलोमीटर की दूरी
पर घने जंगलों में कैंप लगाया जाए। दो दिन का कार्यक्रम तय हुआ। सभी
एनसीसी के सदस्यों को जाना अनिवार्य था।
निश्चित दिन सभी ट्रेनर और छात्र-छात्राएँ एक बस में सवार होकर रवाना हो
गए। ज़ाहिरा ने बदन से चिपकी हुई जींस और गहरे गले का बिना बाहों का टॉप
पहना था।
बस के रवाना होते ही सब लोगों ने हंसी-मज़ाक करना शुरू कर दिया,
छात्र-छात्राएँ भी इस हंसी मज़ाक में शामिल थे, सब लोग अपने-अपने तरीके
से मस्ती कर रहे थे। शाम होते होते हमने निश्चित जगह पर जा कर तम्बू लगा
लिए और रात गुज़ारने का इंतजाम कर लिया। खाना भी वहीं बनाना था इसलिए सभी
को अपने अपने हिस्से का काम दे दिया गया।
मेरे हिस्से में लड़कों के तम्बू की जिम्मेदारी थी और ज़ाहिरा के हिस्से
में लड़कियों के तम्बू की।
हमें उनके रात को सोने का और सुरक्षा का जिम्मा संभालना था। ज़ाहिरा मेरे
पास आई और बोली- देखिये पाटिल जी, आपके साथ तो लड़के हैं.. वो तो सो
जायेंगे ! लेकिन मेरे साथ तो लड़कियाँ हैं.. जंगल में अकेले तम्बू में
सोने में डर लगेगा.. कुछ तो अभी से डर के मारे आधी हो रहीं हैं.. क्या
करूँ मैं..?
मैंने उन्हें हौंसला दिया- अरे ज़ाहिरा जी, आप परेशां क्यूँ होती हो? मैं
हूँ ना.. कोई भी परेशानी हो तो आप मुझे आवाज़ लगाइएगा, मैं तुरंत आ
जाऊँगा।
ज़ाहिरा हँसते हुए बोली- हैं..हैं..पाटिल जी.. आप जब तक आओगे तब तक तो वो
जंगली जानवर एक दो लड़कियों को निगल चुका होगा..
मैंने भी उनकी हंसी में साथ दिया और पूछा- तो फिर आप ही बताओ कि क्या
व्यवस्था की जाए.. लड़के लड़कियों को एक साथ तो सुला नहीं सकते.. आप तो
सब समझती हो।
ज़ाहिरा ने बड़े नशीले अंदाज़ में मुस्कुरा कर जवाब दिया- हाँ.. आग और
फूंस एक साथ नहीं रख सकते, यह बात सही है.. लेकिन एक काम तो कर सकते हैं?
मैंने पूछा- हाँ...बोलिए...क्या काम?
ज़ाहिरा ने सुझाव दिया- ऐसा करते हैं.. आप लड़कियों के तम्बू में रुकिए और
मैं लड़कों के तम्बू को संभालती हूँ.. लड़कों को देखभाल की ज़रुरत भी
नहीं पड़ेगी और लड़कियों के साथ आप रहोगे तो आपको भी मज़ा... आ...
जायेगा... मेरा मतलब.. लड़कियों को डर नहीं लगेगा...हा..हा..हा..
उसकी बात सुन कर मुझे भी हंसी आ गई और फिर उसका विचार भी सही था इसलिए
मैंने तुरंत हाँ कर दी।
मैं भी इस फिराक में था कि लड़कियों के साथ रात में शायद कोई नज़ारा
देखने को मिल जाए या फिर कोई जुगाड़ ही हो जाये..
हम लोग खाना खाकर देर रात तक नाचना-गाना करते रहे और उसके बाद
लड़के-लड़कियों को अपने अपने तम्बू में भेज कर हम लोग भी अपनी अपनी जगह
पहुँच गए।
जंगल की रात काफी सर्द थी, मुझे भी हल्की-हल्की सर्दी लग रही थी, मैं
लड़कियों के सोने का इंतज़ार कर रहा था, मेरा ध्यान ज़ाहिरा के तम्बू पर
था। मैंने मन ही मन निश्चय किया कि आज ज़ाहिरा पर हाथ आजमाया जाए।
यही सोच कर मैं सिगरेट पीने के लिए तम्बू से बाहर आ गया और ज़ाहिरा के
तम्बू की तरफ देखते हुए सिगरेट पीने लगा। अचानक मुझे ज़ाहिरा के टेंट में
तेज़ हलचल दिखाई दी. मैं तेज़ क़दमों से टेंट के पास गया तो मैंने देखा
कि ज़ाहिरा ने बड़े तम्बू में एक पर्दा लगा कर अपने लिए अलग कमरा सा बना
लिया था और एक मोमबत्ती उसके कमरे में जल रही थी. टेंट भी कपड़े का था और
वो पर्दा भी कपड़े का था. मैंने देखा ज़ाहिरा अपने कपड़े बदल रही थी. उसने
अपना टॉप उतारा फिर ब्रा उतारी..
मुझे उसकी टेंट के अन्दर से केवल परछाई नज़र आ रही थी लेकिन वो परछाई भी
इतनी कातिल थी जिसकी कोई हद नहीं. अब उसने अपनी जींस उतारी। मैं पूरे
ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था कि मुझे उस टेंट के दूसरे हिस्से में
हलचल दिखाई दी। मैंने देखा की लड़कों का एक झुण्ड भी मेरी तरह परदे के
पीछे से इस नज़ारे का मज़ा ले रहा है। मैंने सोचा कि जाकर लड़कों को डांट
पिलाई जाये लेकिन फिर यह सोच कर रुक गया कि क्या फर्क पड़ता है..जब दिखाने
वाली को परहेज़ नहीं तो मैं क्यूँ बीच में बोलूँ?
इस बीच ज़ाहिरा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे यहाँ तक कि उसने अपनी पेंटी
भी उतार दी थी..
मुझे टेंट के बाहर से उसकी नंगी चूत तो नज़र नहीं आ रही थी मगर मैंने
उसकी परछाई से उसकी गांड का अंदाजा लगा लिया था। सारे कपड़े निकालने के
बाद ज़ाहिरा ने ढीला ढाला एक गाउन पहन लिया। मैंने सोचा कि कपड़े बदल कर
ज़ाहिरा सो जाएगी इसलिए मैं भी वापस लड़कियों के तम्बू में आ गया।
थोड़ी देर तक मैं भी लड़कियों की मस्तियों का मज़ा लेता रहा. लड़कियाँ
आपस में हंसी मज़ाक कर रहीं थीं और उनके कपड़ों में से उनके छिपे हुए अंग
नज़र आ रहे थे। कुछ लड़कियों ने तो ऐसे कपड़े पहने थे कि उनके गहरे गले
में से उनके चुचूक तक दिख जाते थे। मुझे मज़ा आ रहा था और मैं मन ही मन
ज़ाहिरा का शुक्रिया अदा कर रहा था। लड़कियों के ऐसे नज़ारे देख कर मेरा
लण्ड खड़ा हो गया था, मैंने सोचा एक बार चल कर देखा जाये ज़ाहिरा सोई या
नहीं।
मैं सीधा तम्बू के अन्दर चला गया..
लड़के आपस में मस्ती कर रहे थे.. कुछ बदमाश लड़के एक जगह बैठे थे और
सिगरेट पी रहे थे। मैं उन्हें डांट लगाते हुए उधर गया तो देखा वो लोग छिप
छिप कर दारू पी रहे थे..
पहले तो मैंने उन्हें डांटा लेकिन फिर हँसते हुए मैंने भी उनके साथ जल्दी
से एक बड़ा सा पैग लगा लिया.. सर्दी भी तो थी.. और फिर आज कल सब चलता
है..
लड़कों से बातचीत करके मैं ज़ाहिरा के टेंट में गया तो देखा वो गाउन पहने
लेटी हुई थी.. उसके हाथ में कोई किताब थी और उसके पैर पिंडलियों तक खुले
हुए थे... खाली गाउन पहनने के कारण उसके बड़े बड़े मम्मे एक तरफ लटक रहे
थे. मुझे देख कर वो उठ कर बैठी तो उसके मम्मों की हलचल ने मेरी शराब का
नशा दोगुना कर दिया.
मैं उसके बगल में बैठ गया.. कुछ देर तक हम इधर-उधर की बातें करते रहे
लेकिन मेरा पूरा ध्यान उसके बदन पर ही था.. मैं बार बार उसके गाऊन में से
उसके मम्मे देखने की कोशिश में लगा था। उसका ध्यान भी इस तरफ चला गया और
वो मुस्कुराती हुई बोली- क्या बात है पाटिल जी...? आपकी नीयत कुछ गलत लग
रही है आज...?
मैं भी दारू के नशे में ज़रा बिंदास हो चला था इसलिए बोल पड़ा- अरे यार,
तुम चीज़ ही ऐसी हो.. मैं कोई विश्वामित्र थोड़े हूँ...साधारण इंसान हूँ
यार.. !
वो मेर बात सुन कर मुस्कुराने लगी तो मेरा हौसला बढ़ गया। मैंने हाथ बढ़ा
कर उसके कंधे पर हाथ रख दिया..
अभी भी वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराती रही तो मैंने उसके गालों पर
उँगलियाँ फिराना शुरू किया.. वो चेहरा मेरे नज़दीक करके मुस्कुराती रही..
मैंने भी उसके होठों पर अपनी ऊँगली फिराई और हाथ को नीचे खिसकाते हुए
उसके गले से होकर मम्मों तक पहुँच गया.. और बारी-बारी से उसके दोनों
मम्मों को सहला दिया।
उसकी आँखें नशीली होने लगीं.. वो मेरे और नज़दीक आ गई.. मैंने भी उसकी
तरफ खिसकते हुए अपना चेहरा उसके होंठों की तरफ बढ़ाया..
ना उसने रोका और ना मैं रुका..
मैंने उसके रसीले होंठों को अपने दोनों होठों में ले कर चूसना चालू कर दिया..
अब तक उसके दोनों हाथ भी मेरी गर्दन पर लिपट गए थे. हम दोनों जितना पास
खिसक सकते थे आ गए और एक लम्बा चुम्बन शुरू हो गया.. साथ ही मेरे हाथ भी
उसके गाउन के ढीले गले में से अन्दर जा कर अपनी पहली मंजिल तक पहुँच गए
थे.. उसके बड़े बड़े सख्त स्तनाग्र अब मेरी उँगलियों में थे और मैं उसके
ऊपर वाले होंठ को चूसते हुए उसके चुचूक को मसल रहा था।
मेरा हाथ कभी घुण्डी को मसलता तो कभी उसकी मम्मों को दबा और सहला रहा था।
धीरे धीरे हम लोग कब लेट गए पता ही नहीं चला..
मैंने अपने बाएँ हाथ की तरफ उसे लिटा लिया और उसके गाउन की डोरी खोल कर
उसके गुम्बदों को बाहर निकाल लिया.. एक चुचूक को मैंने मुँह में लेकर
चूसा तो ज़ाहिरा "आ..हह.." कर उठी..मुझे भी जोश आ गया..मैंने अपना एक हाथ
उसकी दोनों टांगों के बीच में ले जाकर उसकी चूत का अंदाजा लगाया..
चूत क्या थी रूई का खरगोश थी.. बिल्कुल सफाचट.. इतनी नाज़ुक त्वचा... पाव
की तरह फूली हुई.. मैंने हाथ से सहलाते हुए उसकी चूत में अपनी एक ऊँगली
घुसेड़ दी..
"आ...ह्ह्ह..औउ..च.." ज़ाहिरा के मुँह से आवाज़ निकल पड़ी..
मैंने चुचूक चूसना छोड़ कर फिर से उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और
अपना हाथ उसकी चूत से हटा कर फिर से चूचे सहलाने लगा। ज़ाहिरा का हाथ मेरे
पायजामे की तरफ बढ़ गया। वो पायजामे के ऊपर से ही मेरे सख्त लण्ड को
सहलाने लगी। अब मुझे कोई डर नहीं था। मैंने थोड़ा ऊपर उठकर पायजामे
खिसकाने में उसकी मदद की और मेरा इशारा समझ कर उसने भी तुरंत एलास्टिक
वाला पायजामा और चड्डी दोनों नीचे खिसका दी। मेरा सनसनाता लण्ड उसके हाथ
में था, उसने अपने गाउन को इधर उधर सरका कर जगह बनाई और लंड के सुपारे को
सही जगह पर टिका दिया, बाकी काम मैंने उसके बोबे चूसते चूसते कर दिया।
जैसे ही मेरा लण्ड उसकी गीली चूत में घुसा, उसके मुँह से एक मीठी सी
सिसकारी निकल गई। उसकी सिसकारियों की आवाज़ से मेरा भी जोश बढ़ गया,
मैंने पूरा लण्ड एक ज़ोरदार धक्के के साथ अन्दर डालते हुए कहा- आ..हह..यह
ले ज़ाहिरा... बहुत अरसे से इस दिन का इंतज़ार था....!
ज़ाहिरा ने भी मेरी बात का उसी स्वर में उत्तर दिया-
ऊह..ऊ..आ..जा..राजा..पहले ही बोल दिया होता तो क्यूँ प्यासी रहती मैं
पाटिल..आ.ह..अब..आ..हह..जब भी...आ..हह..मन करे तो बता.. ओह्ह. देना..
आह..
धक्के लगाना जारी था, मैं साथ साथ उसके बोबे भी चूसता जा रहा था और वो
मेरी गर्दन को दोनों हाथों से अपनी छाती पर दबाती हुई बडबडा रही थी-
आ.हह....लो पी लो..मुझे.. पियो..आज... आ..ह..जी.. भर के .. पी लो..पाटिल
..आ..ह..
मैंने गर्दन उठा कर उसकी तरफ देखा और उसके खुले होठों में अपनी ज़बान दाल
दी.. उसने मेरी ज़बान को चम्मच की तरह अपने होठों में कस ली और चूसने
लगी..
मैंने भी अपने दायें हाथ से उसके बाएं चुचूक को मसला तो वो चिहुंक उठी-
उओं.. धीरे करो ना.. जान निकालोगे क्या..?
उसने मेरी जीभ चूसना छोड़ कर प्यार से कहा तो मैंने उतने ही प्यार से
उसके मम्मे सहलाना शुरू कर दिया..
मैंने फिर से अपनी जीभ उसके मुँह में डालना चाही मगर उसने भी अपनी जीभ
बाहर निकली और मेरी जीभ से रगड़ने लगी.. हम दोनों की जुबान बाहर थी और एक
दूसरे से रगड़ खा रही थी।
मैं ऊपर था इसलिए मेरे खुले मुँह से लार टपकने लगी जो मेरी जीभ से होती
हुई उसके जीभ और फिर उसके मुँह में जाने लगी.. उसने बड़े नशीले अंदाज़
में मेरी तरफ देखते हुए प्यार से मेरी लार को पीना चालू कर दिया.. नीचे
मेरा लण्ड उसकी चूत का बाजा बजाने में लगा हुआ था। मैंने अपनी कमर उठा
उठा कर पूरा लंड बाहर निकालते हुए धक्के मारना चालू कर दिया। वो कसमसाने
लगी- उओं.. ऊ.. हह.. आ...." की आवाजों के साथ उसने मुझे कस लिया और अपने
कूल्हे उठा-उठा कर लण्ड गटकने लगी।
धक्कों की रफ़्तार अपने चरम पर पहुँच गई.. जितना समय ज़रूरी था मैं धक्के
मारता रहा और फिर अचानक मुझे लगा कि मेरा रस निकलने को है..
मैंने धक्के मारते हुए उससे पूछा- ज़ाहिरा.. जान.. आ जाऊं क्या... अन्दर
ही...या..बाहर निकालूँ?
ज़ाहिरा मेरी बात सुनते ही चहक कर मुझे जोर से कसती हुई बोली-
नहीं..ई..बाहर मत निकालना..आह..अन्दर ही डाल दो ऊह..आह....सब कुछ
आह..आ..आ.ओह्ह...भिगो दो.. मुझे.. आ.. आह.. अहह..
मैंने उसकी बात रखते हुए धक्के मारना जारी रखा- लो..आ..मेरी
जान...पी..लो..आज मेरा रस..." मैंने कहा तो उसने भी नीचे से कूल्हे उठाते
हुए जवाब दिया- आ..ह.. हाँ..लाओ.. आः..ज़ल्दी..से पिला दो.. आ..ह..आज..
आ.जज.. ओह्ह.ओह्ह ओह.. आ..आ जा भिगो मुझे... कस लो...दबा दो मेरे
बोबे..जोर से.आ..ह...
मैंने अपनी पिचकारी छोड़ी और उधर वो भी मुझे जोर से कसती हुए अपनी आँखें
बंद करके बड़बड़ाने लगी- आ..हह.. ऊ..च..आ..हह...हूँ.हो.. हो..आ..हह..
हम दोनों अपने चरम पर पहुँच गए थे.. मैंने अपना वीर्य उसकी योनि में भर
दिया.. मैंने उठना चाहा लेकिन उसने मुझे अपने ऊपर खीच लिया और मेरे
होंठों को अपने होठों से दबा कर चूसने लगी। थोड़ी देर तक हम दोनों इस
प्यार भरे चुम्बन में लगे रहे लेकिन तभी....
आगे क्या हुआ..फ़िर कभी !
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