जवानी की मिठास--1
सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो
की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
विजय अपनी मोटरबिक पर 70 की रफ़्तार मे उड़ा जा रहा था, तभी अचानक
तीन-चार पोलीस वालों ने दूर से विजय की बाइक को
हाथ देकर रोक लिया और विजय ने अपनी बाइक की रफ़्तार कम करके एक तरफ खड़ी करली,
विजय- क्या हुआ साहब
पोलीस- गाड़ी के पेपर और लाइसेन्स दिखाओ,
विजय ने अपनी जेब से लाइसेन्स निकाल कर दिया तब पोलीस वाले ने पेपर माँगे
तब विजय ने कहा गाड़ी के पेपर तो उसके घर
पर ही रह गये है, पोलीस वालो ने विजय को गाड़ी एक ओर लगाने को कहा और तभी
एक सिपाही जिसका नाम लखन सिंग था ने
साहेब से कहा अरे साहेब यह हमरे गाँव का है इसे जाने दो, और साहेब आप कहो
तो मैं भी गाँव तक इसके साथ चला जाउ बड़ा ज़रूरी काम है.
विजय- अरे धन्यवाद लखन तुम ना आते तो पता नही मुझे कितनी देर परेशान होना पड़ता
लखन- अरे नही विजय भैया हमरे रहते आप कैसे परेशान होगे, पर यह बताओ आज
गाँव की तरफ कैसे चल दिए
विजय- अरे लखन भैया मेरी नौकरी शहर मे है और वाहा से गाँव 50-60 क्म
पड़ता है तो मैं हर सनडे गाँव आ
जाता हू आख़िर मा और गुड़िया से भी तो मिलना पड़ता है ना.
लखन-अच्छा चलो मुझे भी गाँव तक चलना है, मैं तुम्हारे साथ ही चला चलता हू
साहेब से भी छुट्टी माँग ली है
विजय- क्यो नही लखन बैठो
विजय लखन को लेकर गाँव की ओर चल देता है, विजय एक 30 साल का हॅटा-कॅटा
जवान था और शहर मे सरकारी नौकरी
करता था और अपना पूरा नाम विजय सिंग ठाकुर लिखता था, गाँव मे उसकी मा
रुक्मणी और बहन गुड़िया रहते थे,
रुक्मणी करीब 48 साल की एक भरे बदन की औरत थी और करीब 10 साल पहले ही
उसके पति की मौत हो चुकी थी उसे लोग गाँव
मैं ठकुराइन के नाम से ही पुकारते थे, विजय की बहन गुड़िया अब 25 बरस की
हो चली थी, लेकिन अभी तक दोनो भाई बहन
मैं से किसी की शादी नही हुई थी, लेकिन सभी की कामनाए दबी हुई थी,
लखन- विजय भैया कहो तो आज थोड़ा मदिरापान हो जाए, कहो तो एक बोतल ले लू
गाँव के हरे भरे पेड़ो के नीचे बैठ
कर पीने का मज़ा ही कुछ और आता है.
विजय जानता था कि लखन एक रंगीन मिज़ाज का आदमी है और विजय एक दो बार पहले
भी लखन और एक दो लोगो के साथ बैठ कर
पी चुका था, उसने सोचा चलो अब शाम भी हो रही है और गाँव भी 10 किमी होगा
थोड़ा मूड फ्रेश कर ही लिया जाए
लखन और विजय गाँव से 3-4 किमी दूर एक तालाब के किनारे लगे पेड़ो के नीचे
बैठ कर पीना शुरू कर देते है,
लखन- अच्छा विजय भैया कोई माल वग़ैरह पटाया है कि नही शहर मे या ऐसे ही
नीरस जिंदगी जी रहे हो,
विजय- अरे बिना औरत के क्या जिंदगी नीरस रहती है,
लखन- अरे और नही तो क्या, अब हमको ही देख लो तुमसे 2 साल छोटे है पर जबसे
हमारी शादी हुई है तब से हम को
अपनी औरत को चोदे बिना नींद ही नही आती है,
विजय को लखन की बातो मैं बड़ा मज़ा आ रहा था और उसका नशा चढ़ता ही जा रहा
था, उधर लखन की यह कमज़ोरी थी
कि वह पीने के बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ चूत और चुदाई की ही बाते करता था,
विजय- तो क्या तुम अपनी औरत को रोज चोद्ते हो
लखन- शराब का बड़ा सा घूँट गटकते हुए, हा भैया मुझे तो बिना अपनी औरत की
चूत मारे नींद ही नही आती है,
विजय- लगता है तेरी बीबी बहुत सुंदर है
लखन- सुंदर तो है भैया लेकिन जैसे माल की हमे चाहत थी वैसा माल नही है,
विजय- क्यो तुझे कैसे माल की चाहत थी
लखन- अब क्या बताउ भैया मुझे लोंदियो को चोदने मे उतना मज़ा नही आता है
जितना मज़ा बड़ी उमर की औरतो को
चोदने मैं आता है,
विजय- बड़ी उमर की मतलब, किस तरह की औरत
लखन- भैया मुझे तो अपनी मा की उमर की औरतो को चोदने मे मज़ा आता है,
विजय- क्यो मा की उमर की औरतो मे कुछ खास बात होती है क्या
लखन- अच्छा पहले यह बताओ तुमने कभी अपनी मा की उमर की औरत को पूरी नंगी देखा है,
विजय- नही देखा क्यो
लखन- अगर देखा होता तो जानते, मैं तो शादी के पहले ऐसी ही औरतो को
सोच-सोच कर खूब अपना लंड हिलाता था,
विजय- अच्छा, तो क्या तूने किसी को पूरी नंगी भी देखा था
लखन- नशे मैं मुस्कुराते हुए, देखो भैया तुमसे बता रहा हू क्यो कि तुम
मेरे भाई जैसे हो पर यह बात कही और
ना करना,
विजय- लखन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नही है
लखन- भरोसा है तभी तो बता रहा हू भैया, एक बार मैंने अपनी अम्मा को पूरी
नंगी देखा था, क्या बताउ भैया
इतनी भरे बदन की है मेरी अम्मा की उसकी गदराई उफान खाती जवानी देख कर
मेरा लंड किसी डंडे की तरह तन गया था,
बस तब से ही भैया मुझे अपनी अम्मा जैसी औरते ही अच्छी लगती है और जब भी
मैं अपनी औरत को चोदता हू तो मुझे
ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी अम्मा को पूरी नंगी करके चोद रहा हू,
विजय- लखन की बात सुन कर हैरान रह जाता है लेकिन उसका लंड उसके पेंट मे
पूरी तरह तना हुआ था,
विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया
लखन- अरे विजय भैया तुम इन औरतो को नही जानते इनकी उमर जितनी बढ़ती जाती
है उनकी जवानी और उठने लगती है, मेरी
अम्मा को चूत मे खूब खुजली मची होगी इसीलिए वह पूरी नंगी होकर घर के आँगन
मे नहा रही थी और मैं चुपचाप
छुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था,
विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा,
लखन- अब भैया घर मे ऐसा छोड़ने लायक माल हो तो उसे पूरी नंगी देखे बिना
रहा भी तो नही जाता, पता नही तुम
30 बरस के हो चले हो और तुम्हारा मन क्यो नही होता है, जबकि तुम्हारी मा
तो..............
विजय-बोल-बोल क्या कह रहा था
लखन- माफ़ करना भैया ग़लती से मूह से निकल गया
विजय- उसकी बोतल लेकर एक सांस मे तीन-चार घूँट खिचते हुए, अरे बोल ना
क्या कह रहा था मेरी मा के बारे मैं, जब
मैं तेरी मा के बारे मे सुन सकता हू तो अपनी मा के बारे मे भी सुन सकता
हू, बोल तू क्या कहना चाहता है, तू मेरा दोस्त
है मैं तेरी बात का बुरा नही मानूँगा और अगर मुझे बात बुरी लगी तो मैं
तुझे करने के लिए मना कर दूँगा, अब बोल भी
दे
लखन- विजय की बात सुन कर थोडा जोश मैं आ चुका था और भैया मैं तो यह कह
रहा था की इस पूरे गाँव मैं अगर
सबसे गदराया बदन और नशीली जवानी अगर किसी की है तो वह है आपकी मा ठकुराइन
की, क्या आपका लंड आपकी मा को
देख कर खड़ा नही होता है जब कि आप तो हमेशा उनके साथ घर पर ही रहते हो,
ठकुराइन जब गाँव मे चलती है तो
अच्चो -अच्चो के लंड खड़े हो जाते है,
विजय- नशे मैं बहुत मस्त हो रहा था और जब उसने लखन के मूह से अपनी मा की
गदराई ज्वानी की बात सुनी तो उसका मोटा
लॅंड झटके खाने लगा था, क्या इतनी मस्त लगती है मेरी मा
लखन- सच कहु विजय भैया अगर तुम्हारी जगह मैं ठकुराइन का बेटा होता तो दिन
रात ठकुराइन को खूब कस-कस कर
चोदता, सच विजय भैया आपकी मा बहुत मालदार औरत है, कितने सालो से उन्होने
कोई लंड भी नही लिया है उनकी चूत तो
पूरी कुँवारी लोंदियो जैसी हो गई होगी,
विजय- अच्छा तो एक बात बता लखन तूने कभी अपनी अम्मा को चोदने की कोशिश नही की,
लखन- अरे नही विजय भैया मेरी मा बहुत गरम मिज़ाज की औरत है और इसीलिए
मेरी गंद फाटती है इन सब कामो से,
विजय- तूने ठीक ही किया है, कोई मा अपने बेटे से अपनी चूत थोड़े ही चुदवा लेगी,
लखन- हाँ वो तो है भैया पर जिस औरत को लंबे समय से लंड ना मिला हो वह औरत
अगर किसी जवान लोंडे का मस्त लंड
देख ले तो उसकी चूत पिघल सकती है और जब औरत खूब चुदासि हो जाती है तो फिर
वह किसी का भी लंड ले सकती है,
विजय बात लखन से कर रहा था लेकिन लखन की बातो के कारण उसके दिमाग़ मे
सिर्फ़ उसकी मा रुक्मणी का ही ख्याल आ रहा
था और उसे कभी रुक्मणी की मोटी लहराती गंद कभी उसके मोटे-मोटे कसे हुए
दूध और कभी उसके रसीले होंठ और
उभरा हुआ पेट ही नज़र आ रहा था,
विजय- अच्छा यह बता लखन और कौन औरत गाँव मे सबसे पताका लगती है तुझे.
लखन- अरे भैया हमे लगने से क्या होता है सच कहु तो असली माल तुम्हारे घर
मे है और तुम हो कि एक दम नीरस
आदमी हो,
विजय- तो मुझे क्या करना चाहिए लखन
लखन- भैया औरत की दबी हुई आग अगर भड़का दो तो फिर तुम्हे कुछ करने की
ज़रूरत नही पड़ेगी औरत खुद ही सब
कुछ कर लेगी,
विजय- तूने अपनी बीबी को अपनी अम्मा को नंगी देखने वाली बात बताई है कि नही
लखन- अरे वह तो सब जानती है, कई बार तो वह खुद कहती है कि मुझे अपनी
अम्मा समझ कर चोदो, जब तुम मुझे अपनी
अम्मा समझ कर चोद्ते हो तो बहुत अच्छे से चोद्ते हो,
विजय- मुस्कुराता हुआ, साले अपनी औरत को भी पटा लिया है तूने
विजय- चल अब चलते है बहुत देर हो रही है,
लखन- फिर कभी बैठने का मूड हो भैया तो उसी नाके पर आ जाना जहा तुम्हारी
गाड़ी रोकी थी मेरी ड्यूटी उसी चौकी पर
रहती है,
विजय- क्यो नही लखन अब तो तेरे साथ बैठना ही पड़ेगा, तेरी बाते पूरा मूड
फ्रेश कर देती है,
लखन- अगर ऐसी बात है भैया तो अगली बार जब हम साथ बैठेंगे तब मैं तुम्हे
और भी कई मस्त बाते बताउन्गा,
विजय- मुस्कुराते हुए किसके बारे मे अपनी अम्मा के बारे मे या मेरी मा के बारे मे
लखन- तुम जिसके बारे मे सुनना चाहोगे भैया उसके बारे मे बता दूँगा, पोलीस
वाला हू सबकी खबर रखता हू, और
हा भैया आपसे एक बात कहना भूल गया, बुरा मत मानना पर मेरी सलाह है अपनी
बहन गुड़िया को अपने साथ शहर मे
रखो यहा गाँव का महॉल बड़ा खराब रहता है, किसी दिन कुछ उन्च नीच ना हो जाए,
विजय- तू कुछ छुपा रहा है लखन, साफ-साफ बता क्या बात है
लखन- भैया बुरा मत मानना पर एक दिन मैंने देखा की मनोहर काका अपना लंड
निकाल कर मूत रहा था और गुड़िया
झाड़ियो के पीछे छुप कर उसका मोटा लंड देख रही थी, अब वह बड़ी हो गई है,
उसका भी मन अब इन चीज़ो की तरफ जाने लगा है,
विजय- अरे लखन तूने बहुत अच्छा किया जो मुझे पहले से ही इन बतो के बारे
मे बता दिया मैं कल ही गुड़िया को यहा के महॉल से शहर ले जाता हू वाहा
कुछ सिलाई बुनाई सीख लेगी तो ससुराल मे उसके काम आएगी, दोनो बाते करते
हुए गाँव पहुच जाते है और फिर लखन अपने और विजय अपने घर की ओर आ जाता
है,
विजय का लंड अभी-अभी बैठा ही था कि घाघरा चोली पहने गुड़िया दौड़ कर आती
है और विजय के सीने से लग जाती है, विजय के सीने मे गुड़िया की पपीते
जैसी बड़ी-बड़ी ठोस छातियाँ पूरी तरह से चुभने लगती है, विजय गुड़िया को
पहली बार इस तरह महसूस कर रहा था और वह गुड़िया को अपने सीने से पूरी तरह
कस कर उसके गालो को चूम लेता है,
गुड़िया उसके सीने से अलग होकर उसके सीने पर मुक्के मार कर हस्ती हुई,
गुड़िया-क्या भैया आपने तो कहा था कि दिन मे ही आ जाओगे और आप आधी रात को
आ रहे हो मैं कब से आपका रास्ता देख रही थी. विजय शराब के नशे मे पूरी
तरह मदहोश था और गुड़िया की गदराई जवानी को पहली बार इतनी गौर से देख रहा
था, उसे गुड़िया के मोटे-मोटे दूध इतना मस्त कर रहे थे कि वह अपनी नज़रे
अपनी बहन के दूध से हटा ही नही पा रहा था,
गुड़िया- अच्छा भैया मेरे लिए क्या लाए हो, विजय कुर्सी पर बैठता हुआ,
पहले यह बता मा कहा है,
गुड़िया- मा तो जमुना काकी के यहा बैठी है,
विजय- देख मैं तेरे लिए ये पायल लेकर आया हू,
पायल देखते ही गुड़िया चहक कर विजय से लिपट जाती है और विजय भी कोई मोका
छोड़ना नही चाहता था इसलिए वह गुड़िया को अपनी गोद मे बिठा कर अपने हाथ
उसकी भरी हुई कठोर चूचियों पर ले जाकर धीरे-धीरे उसे सहलाता हुआ गुड़िया
के गालो को चूमता हुआ, मेरी प्यारी बहना रानी अब तो खुश है अपने भैया से
गुड़िया- हा लेकिन यह पायल तुम्हे ही पहनानी होगी मेरे पैरो मैं,
विजय- उसे खड़ी करके, क्यो नही मेरी रानी बहना ला पैर उठा और फिर विजय
अपनी बहन के पैरो को पकड़ कर अपनी जाँघो मे रख लेता है और दूसरे हाथ से
उसका घाघरा उसके घटनो तक चढ़ा देता है जिससे एक पैर की गोरी पिंदलिया और
दूसरे पैर की मोटी जंघे भी विजय को नज़र आने लगती है, विजय का लंड खड़ा
हो जाता है और वह अपने लंड को अपनी पेंट मे अड्जस्ट करना चाहता है पर
सोचता है कि गुड़िया देखेगी तो क्या सोचेगी, लेकिन फिर उसे याद आता है कि
गुड़िया की चूत भी अब खुजलाने लगी है तभी तो मनोहर काका का लंड छुप कर
देख रही थी, विजय उसे पायल पहनाते हुए अपने मोटे लंड को गुड़िया के सामने
ही मसल देता है,
जब विजय उसे पायल पहना रहा था तब वह बीच-बीच मे गुड़िया की पिंडलियो और
जाँघो का भी जयजा ले रहा था और
जब वह अपनी बहन की गदराई जाँघो को च्छू रहा था तो उसकी जाँघो के गुदज
स्पर्श से उसका लंड भनभना चुका था,
गुड़िया अपने दोनो पैरो को नीचे करके अपने घाघरे को घुटनो तक उठा कर अपने
भैया को दिखाती हुई,
गुड़िया- देखो भैया कैसी लग रही है मेरी पायल
विजय- बहुत अच्छी लग रही है तेरे पैरो मैं
गुड़िया- अब देखना भैया जब मैं इन्हे पहन कर चलूंगी तब कैसी लगती हू
बताना, और फिर गुड़िया अपनी मोटी-मोटी गंद
को मतकती हुई जब पायल पहन कर चलती है तो विजय से रहा नही जाता है और वह
उठ कर गुड़िया के पीछे से जाकर उससे कस कर चिपक जाता है और उसे अपनी गोद
मे उठा लेता है, विजय अपने हाथो को अपनी जवान बहन की मसल गंद के नीचे
दबाए हुए उसे अपनी गोद मे उठा कर जब उसके गालो को चूमने जाता है तभी
गुड़िया अपना मूह उसके मूह की ओर कर देती है और विजय के होंठ अपनी बहन के
रसीले होंठो से चिपक जाते है और विजय एक पल के लिए अपनी बहन के रस भरे
होंठो का रस पीने लगता है, और गुड़िया उसके सीने से कस कर चिपक जाती है,
लेकिन फिर अचानक विजय को ध्यान आता है और वह अपनी बहन को नीचे उतार देता
है,
क्रमशः...............
JAWAANI KI MITHAS--1
vijay apni moterbyke par 70 ki raftar main uda ja raha tha, tabhi
achanak teen-char police walon ne dur se vijay ki byke ko
hath dekar rok liya aur vijay ne apni byke ki raftar kam karke ek
taraf khadi karli,
vijay- kya hua sahab
police- gadi ke paper aur licence dikhao,
vijay ne apni jeb se licence nikal kar diya tab police wale ne paper
mange tab vijay ne kaha gadi ke paper to uske ghar
par hi rah gaye hai, police walo ne vijay ko gadi ek aur lagane ko
kaha aur tabhi ek sipahi jiska nam lakhan singh tha ne
saheb se kaha are saheb yah hamre ganv ka hai ise jane do, aur saheb
aap kaho to main bhi ganv tak iske sath chala jau
bada jaruri kam hai.
vijay- are dhanyawad lakhan tum na aate to pata nahi mujhe kitni der
pareshan hona padta
lakhan- are nahi vijay bhaiya hamre rahte aap kaise pareshan hoge, par
yah bataao aaj ganv ki taraf kaise chal diye
vijay- are lakhan bhaiya meri naukari shahar main hai aur vaha se ganv
50-60 km padta hai to main har sunday ganv aa
jata hu aakhir ma aur gudiya se bhi to milna padta hai na.
lakhan-achcha chalo mujhe bhi ganv tak chalna hai, main tumhare sath
hi chala chalta hu saheb se bhi chutti mang li hai
vijay- kyo nahi lakhan baitho
vijay lakhan ko lekar ganv ki aur chal deta hai, vijay ek 30 sal ka
hatta-katta jawan tha aur shahar main sarkari naukri
karta tha aur apna pura nam vijay singh thakur likhta tha, ganv main
uski ma rukmani aur bahan gudiya rahte the,
rukmani karib 48 sal ki ek bhare badan ki aurat thi aur karib 10 sal
pahle hi uske pati ki maut ho chuki thi use log ganv
main thakurain ke nam se hi pukarte the, vijay ki bahan gudiya ab 25
baras ki ho chali thi, lekin abhi tak dono bhai bahan
main se kisi ki shadi nahi hui thi, lekin sabhi ki kamnaye dabi hui thi,
lakhan- vijay bhaiya kaho to aaj thoda madiraapan ho jaye, kaho to ek
botal le lu ganv ke hare bhare pedo ke niche baith
kar pine ka maja hi kuch aur aata hai.
vijay janta tha ki lakhan ek rangin mijaj ka admi hai aur vijay ek do
bar pahle bhi lakhan aur ek do logo ke sath baith kar
pi chuka tha, usne socha chalo ab sham bhi ho rahi hai aur ganv bhi 10
km hoga thoda mood fresh kar hi liya jaye
lakhan aur vijay ganv se 3-4 km dur ek talab ke kinare lage pedo ke
niche baith kar pina shuru kar dete hai,
lakahn- achcha vijay bhaiya koi mal vagairah pataya hai ki nahi shahar
main ya aise hi neeras jindagi ji rahe ho,
vijay- are bina aurat ke kya jindagi neeras rahti hai,
lakhan- are aur nahi to kya, ab hamko hi dekh lo tumse 2 sal chote hai
par jabse hamari shadi hui hai tab se hum ko
apni aurat ko chode bina neend hi nahi aati hai,
vijay ko lakhan ki bato main bada maza aa raha tha aur uska nasha
chadhta hi ja raha tha, udhar lakhan ki yah kamjori thi
ki vah pine ke bad sirf aur sirf chut aur chudai ki hi bate karta tha,
vijay- to kya tum apni aurat ko roj chodte ho
lakhan- sharab ka bada sa ghunt gatakte huye, ha bhaiya mujhe to bina
apni aurat ki chut mare neend hi nahi aati hai,
vijay- lagta hai teri bibi bahut sundar hai
lakhan- sundar to hai bhaiya lekin jaise mal ki hame chahat thi vaisa
mal nahi hai,
vijay- kyo tujhe kaise mal ki chahat thi
lakhan- ab kya bataau bhaiya mujhe londiyo ko chodane main utna maza
nahi aata hai jitna maza badi umar ki aurto ko
chodane main aata hai,
vijay- badi umar ki matlab, kis tarah ki aurat
lakhan- bhaiya mujhe to apni ma ki umar ki aurto ko chodane main maza ata hai,
vijay- kyo ma ki umar ki aurto main kuch khas bat hoti hai kya
lakhan- achcha pahle yah bataao tumne kabhi apni ma ki umar ki aurat
ko puri nangi dekha hai,
vijay- nahi dekha kyo
lakhan- agar dekha hota to jante, main to shadi ke pahle aisi hi aurto
ko soch-soch kar khub apna land hilata tha,
vijay- achcha, to kya tune kisi ko puri nangi bhi dekha tha
lakhan- nashe main muskurate huye, dekho bhaiya tumse bata raha hu kyo
ki tum mere bhai jaise ho par yah bat kahi aur
na karna,
vijay- lakhan kya tujhe mujh par bharosa nahi hai
lakhan- bharosa hai tabhi to bata raha hu bhaiya, ek bar mainne apni
amma ko puri nangi dekha tha, kya bataau bhaiya
itni bhare badan ki hai meri amma ki uski gadaraai ufan khati jawani
dekh kar mera land kisi dande ki tarah tan gaya tha,
bas tab se hi bhaiya mujhe apni amma jaisi aurte hi achchi lagti hai
aur jab bhi main apni aurat ko chodataa hu to mujhe
aisa lagta hai jaise main apni amma ko puri nangi karke chod raha hu,
vijay- lakhan ki bat sun kar hairan rah jata hai lekin uska land uske
pent main puri tarah tana hua tha,
vijay- par tune apni amma ko puri nangi kaise dekh liya
lakhan- are vijay bhaiya tum in aurto ko nahi jante inki umar jitni
badhti jati hai unki jawani aur uthne lagti hai, meri
amma ko chut main khub khujli machi hogi isiliye vah puri nangi hokar
ghar ke angan main naha rahi thi aur main chupchap
chup kar uski gadaraai jawani dekh raha tha,
vijay- tab to tu roj apni amma ko nangi dekhta hoga,
lakhan- ab bhaiya ghar main aisa chodane layak mal ho to use puri
nangi dekhe bina raha bhi to nahi jata, pata nahi tum
30 baras ke ho chale ho aur tumhara man kyo nahi hota hai, jabki
tumhari ma to..............
vijay-bol-bol kya kah raha tha
lakhan- maf karna bhaiya galti se muh se nikal gaya
vijay- uski batol lekar ek sans main teen-char ghunt khichte huye, are
bol na kya kah raha tha meri ma ke bare main, jab
main teri ma ke bare main sun sakta hu to apni ma ke bare main bhi sun
sakta hu, bol tu kya kahna chahta hai, tu mera dost
hai main teri bat ka bura nahi manuga aur agar mujhe bat buri lagi to
main tujhe karne ke liye mana kar dunga, ab bol bhi
de
lakhan- vijay ki bat sun kar thoda josh main aa chuka tha aur bhaiya
main to yah kah raha tha ki is pure ganv main agar
sabse gadaraayaa badan aur nashili jawani agar kisi ki hai to vah hai
aapki ma thakurain ki, kya aapka land aapki ma ko
dekh kar khada nahi hota hai jab ki aap to hamesha unke sath ghar par
hi rahte ho, thakurain jab ganv main chalti hai to
achcho -achcho ke land khade ho jate hai,
vijay- nashe main bahut mast ho raha tha aur jab usne lakhan ke muh se
apni ma ki gadaraai jwani ki bat suni to uska mota
land jhatke khane laga tha, kya itni mast lagti hai meri ma
lakhan- sach kahu vijay bhaiya agar tumhari jagah main thakurain ka
beta hota to din rat thakurain ko khub kas-kas kar
chodataa, sach vijay bhaiya aapki ma bahut maldar aurat hai, kitne
salo se unhone koi land bhi nahi liya hai unki chut to
puri kunwari londiyo jaisi ho gai hogi,
vijay- achcha to ek bat bata lakhan tune kabhi apni amma ko chodane ki
koshish nahi ki,
lakhan- are nahi vijay bhaiya meri ma bahut garam mijaj ki aurat hai
aur isiliye meri gand phatti hai in sab kamo se,
vijay- tune thik hi kiya hai, koi ma apne bete se apni chut thode hi
chudwa legi,
lakhan- ha vo to hai bhaiya par jis aurat ko lambe samay se land na
mila ho vah aurat agar kisi jawan londe ka mast land
dekh le to uski chut pighal sakti hai aur jab aurat khub chudasi ho
jati hai to phir vah kisi ka bhi land le sakti hai,
vijay bat lakhan se kar raha tha lekin lakhan ki bato ke karan uske
dimag main sirf uski ma rukmani ka hi khyal aa raha
tha aur use kabhi rukmani ki moti lahrati gand kabhi uske mote-mote
kase huye doodh aur kabhi uske rasile honth aur
ubhara hua pet hi najar aa raha tha,
vijay- achcha yah bata lakhan aur kaun aurat ganv main sabse pataka
lagti hai tujhe.
lakhan- are bhaiya hame lagne se kya hota hai sach kahu to asli mal
tumhare ghar main hai aur tum ho ki ek dam neeras
aadmi ho,
vijay- to mujhe kya karna chahiye lakhan
lakhan- bhaiya aurat ki dabi hui aag agar bhadka do to phir tumhe kuch
karne ki jarurat nahi padegi aurat khud hi sab
kuch kar legi,
vijay- tune apni bibi ko apni amma ko nangi dekhne wali bat batai hai ki nahi
lakhan- are vah to sab janti hai, kai bar to vah khud kahti hai ki
mujhe apni amma samajh kar chodo, jab tum mujhe apni
amma samajh kar chodte ho to bahut achche se chodte ho,
vijay- muskurata hua, sale apni aurat ko bhi pata liya hai tune
vijay- chal ab chalte hai bahut der ho rahi hai,
lakhan- phir kabhi baithne ka mood ho bhaiya to usi nake par aa jana
jaha tumhari gadi roki thi meri duty usi chouki par
rahti hai,
vijay- kyo nahi lakhan ab to tere sath baithna hi padega, teri bate
pura mood fresh kar deti hai,
lakhan- agar aisi bat hai bhaiya to agali bar jab hum sath baithenge
tab main tumhe aur bhi kai mast bate bataaunga,
vijay- muskurate huye kiske bare main apni amma ke bare main ya meri
ma ke bare main
lakhan- tum jiske bare main sunna chahoge bhaiya uske bare main bata
dunga, police wala hu sabki khabar rakhta hu, aur
ha bhaiya aapse ek bat kahna bhul gaya, bura mat manna par meri salah
hai apni bahan gudiya ko apne sath shahar main
rakho yaha ganv ka mahol bada kharab rahta hai, kisi din kuch unch
neech na ho jaye,
vijay- tu kuch chupa raha hai lakhan, saf-saf bata kya bat hai
lakhan- bhaiya bura mat manna par ek din mainne dekha ki manohar kaka
apna land nikal kar mut raha tha aur gudiya
jhadiyo ke piche chup kar uska mota land dekh rahi thi, ab vah badi ho
gai hai, uska bhi man ab in cheejo ki taraf jane
laga hai,
vijay- are lakhan tune bahut achcha kiya jo mujhe pahle se hi in bato
ke bare main bata diya main kal hi gudiya ko yaha ke
mahol se shahar le jata hu vaha kuch silai bunai sikh legi to sasural
main uske kam aayegi, dono bate karte huye ganv
pahuch jate hai aur phir lakhan apne aur vijay apne ghar ki aur aa jata hai,
vijay ka land abhi-abhi baitha hi tha ki ghaghra choli pahne gudiya
daud kar aati hai aur vijay ke sine se lag jati hai, vijay
ke sine main gudiya ki papite jaisi badi-badi thos chaatiyan puri
tarah se chubhne lagti hai, vijay gudiya ko pahli bar is
tarah mehsus kar raha tha aur vah gudiya ko apne sine se puri tarah
kas kar uske galo ko chum leta hai,
gudiya uske sine se alag hokar uske sine par mukke mar kar hasti hui,
gudiya-kya bhaiya aapne to kaha tha ki din main hi aa jaoge aur aap
aadhi rat ko aa rahe ho main kab se aapka rasta dekh
rahi thi. vijay sharab ke nashe main puri tarah madhosh tha aur gudiya
ki gadaraai jawani ko pahli bar itni gaur se dekh raha
tha, use gudiya ke mote-mote doodh itna mast kar rahe the ki vah apni
najre apni bahan ke doodh se hata hi nahi pa
raha tha,
gudiya- achcha bhaiya mere liye kya laye ho, vijay kursi par baithta
hua, pahle yah bata ma kaha hai,
gudiya- ma to jamuna kaki ke yaha baithi hai,
vijay- dekh main tere liye ye payal lekar aaya hu,
payal dekhte hi gudiya chahak kar vijay se lipat jati hai aur vijay
bhi koi moka chodanaa nahi chahta tha isliye vah gudiya
ko apni god main bitha kar apne hath uski bhari hui kathor choochiyon
par le jakar dhire-dhire use sahlata hua gudiya ke galo
ko chumta hua, meri pyari bahna rani ab to khush hai apne bhaiya se
gudiya- ha lekin yah payal tumhe hi pahnani hogi mere pairo main,
vijay- use khadi karke, kyo nahi meri rani bahna la pair utha aur phir
vijay apni bahan ke pairo ko pakad kar apni jangho
main rakh leta hai aur dusre hath se uska ghaghra uske ghtno tak
chadha deta hai jisse ek pair ki gori pindliya aur dusre
pair ki moti janghe bhi vijay ko najar aane lagti hai, vijay ka land
khada ho jata hai aur vah apne land ko apni pent main
adjust karna chahta hai par sochta hai ki gudiya dekhegi to kya
sochegi, lekin phir use yaad aata hai ki gudiya ki chut bhi
ab khujlaane lagi hai tabhi to manohar kaka ka land chup kar dekh rahi
thi, vijay use payal pahnate huye apne mote land
ko gudiya ke samne hi masal deta hai,
jab vijay use payal pahna raha tha tab vah beech-beech main gudiya ki
pindaliyo aur jangho ka bhi jayja le raha tha aur
jab vah apni bahan ki gadaraai jangho ko chhu raha tha to uski jangho
ke gudaj sparsh se uska land bhanbhana chuka tha,
gudiya apne dono pairo ko niche karke apne ghaghre ko ghutno tak utha
kar apne bhaiya ko dikhati hui,
gudiya- dekho bhaiya kaisi lag rahi hai meri payal
vijay- bahut achchi lag rahi hai tere pairo main
gudiya- ab dekhna bhaiya jab main inhe pahan kar chalungi tab kaisi
lagti hu batana, aur phir gudiya apni moti-moti gand
ko matkati hui jab payal pahan kar chalti hai to vijay se raha nahi
jata hai aur vah uth kar gudiya ke piche se jakar usse
kas kar chipak jata hai aur use apnee god main utha leta hai, vijay
apne hantho ko apni jawan bahan ki masal gand ke
niche dabaye huye use apni god main utha kar jab uske galo ko chumne
jata hai tabhi gudiya apna muh uske muh ki aur
kar deti hai aur vijay ke honth apni bahan ke rasile hontho se chipak
jate hai aur vijay ek pal ke liye apni bahan ke ras
bhare hontho ka ras pine lagta hai, aur gudiya uske sine se kas kar
chipak jati hai, lekin phir achanak vijay ko dhyan aata
hai aur vah apni bahan ko niche utar deta hai,
KRAMASHAH...............
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