बुआ की जवानी --8
गतांक से आगे........................
मै वहीँ कोरिडोर में कोने में खडा हो गया और सोंचने लगा क्या करूँ | इस
तरह वहां खडा भी तो नहीं रह सकता था क्योंकि एक -डेढ़ घंटे बाद वरुण के
पापा खाना खाने के लिए आते और मुझे वहां देखते तो स्थिति और बिगड़ जाता |
हल तो एक ही दिखाई दे रहा था कि किसी तरह आंटी के पास जाकर उनसे माफ़ी
मांगू ...उनके पैर पकडूँ....और किसी तरह उनसे चाभी लेकर दरवाजा खोलूं और
फिर दुबारा इस घर में नजर न आऊं....|
इसलिए मन को समझाते हुए की इसके सिवा और कोई चारा nahi है , मै किसी तरह
हिम्मत जुटाकर आंटी के पास जाने का फैसला किया | मै धीरे धीरे बोझिल कदमो
से वरुण के कमरे की खिड़की तक पहुंचा और वहीँ से उचककर एक बार अन्दर
झांका …..झांकते ही मेरे बढ़ते कदमो को ब्रेक लग गया …….अन्दर आंटी के
साडी का पल्लू गिरा हुआ था और ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे ….फिर मेरे
देखते ही देखते उन्होंने अपना ब्लाउज निकाला और सफ़ेद ब्रा के हुक को भी
हाथ पीछे ले जाकर खोल दिया ….और जैसे ही उन्होंने ब्रा को भी निकाला
…उनके ये बड़े बड़े कबूतर आजाद हो गए …..मै पहली बार इतना बड़ा पर्वत
सरीखे चुचियों को अपनी आँखों से देख रहा था जिसके बीच में ताना हुआ चुचक
पर्वत शिखर जैसा प्रतीत हो रहा था और जिसकी घाटी में 'मेरा लावा ' अभी तक
बह रहा था ….फिर आंटी ने बिस्तर पर पड़े टॉवेल से अपने शरीर को पोंछना
शुरू कर दिया …. मै देखता और सोंचता रहा की अब क्या करूँ ?.... इस समय
उनके सामने जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था ….. वहां पर खड़े खड़े आंटी
द्वारा देख लिए जाने का भी भय था ….इसलिए मै उलटे पाँव वापस मुख्या द्वार
के कारीडोर में आ गया …थोड़ी देर बाद आंटी वरुण के कमरे से निकली …साडी से
उनका बदन ढंका हुआ था और उनके हाथ में ब्लाउज और ब्रा नजर आ रहा था
…..शायद उन्होंने अपने नंगे जिस्म के ऊपर साडी वैसे ही लपेट लिया था
……पता नहीं किस भावनावश मै तुरंत कारीडोर के खम्भे की ओट में आ गया …जबकि
मुझे वहीँ पर खडा रहना चाहिए था , कम से कम आंटी मुझे देख तो लेती कि मै
अभी तक वहीँ हूँ ….फिर किसी तरह गिड़गिडाकर उनसे दरवाजा खुलवाता और फिर
स्वतंत्र हो जाता ….परन्तु कहते है न -'विनाशकाले बिपरीत बुध्धी'……आंटी
कारीडोर तक आयी और दूर से दरवाजा देखकर वापस बाथरूम में घुस गयी ….परन्तु
जब उन्हें बाथरूम में देर लगने लगा तो मै बेचैन होने लगा ….फिर मेरे मन
में एक ख्याल आया कि आंटी चाभी तो बाथरूम में लेकर नहीं गयी होगी , चाभी
जरुर उनके कमरे में ही होगी ……शायद …पर्स में ….मेरे दिमाग में बस एक ही
बात आ रहा था कि किसी तरह चाभी मुझे मिल जाए और मै फुर्र हो जाऊं … मुझे
क्या पता था कि मेरी ये सोंच एक और नयी मुसीबत पैदा करने वाली है …..
किसी तरह हिम्मत जुटाकर मै आंटी के कमरे की तरफ जाने लगा | रास्ते में
मुझे बाथरूम से आंटी के नहाने और पानी गिरने की आवाज आ रही थी | तभी मुझे
ख़याल आया कि मैंने अभी तक आंटी को पूर्णतः नग्न तो देखा ही नहीं है,
सिर्फ उनकी बड़ी बड़ी चुंचियां ही देखा था और उनकी चूत और गांड देखने का
इससे बढ़िया मौक़ा मुझे नहीं मिल सकता था , इसी भावनावश मै बाथरूम के पास
जाकर कोई छेद ढूढने लगा परन्तु दरवाजा हैंडल से बंद और खुलने वाला था
इसलिए उसमे कोई की-होल भी नहीं था , मै बेसब्र होकर किसी तरह अन्दर देखने
की कोशिश करने लगा | तभी कहते है ना - जहां चाह , वहां राह | मुझे लकड़ी
के दरवाजे के दो पाटो के बीच हल्का सा गैप मिला , वही से मै आँख सटाकर
अन्दर देखने लगा ...आ..ह ...क्या नजारा था .... आंटी के बड़े बड़े भाड़ी
भड़कम चुतर पानी डालने के क्रम में ऊपर नीचे हो रहे थे | आंटी के गोल गोल
गांड को देखकर मेरे लंड ने सलामी दी |
परन्तु काफी कोशिश के बाद भी मै उनका बुर देखने में कामयाब नहीं हो सका
...बस बुर के उभार का हल्का झलक सा मिला | मैंने अपना लंड निकालकर उसे
मुठीयाने लगा ..लंड चिपचिपा सा लगा ..देखा तो जेली अभी तक चमक रहा था जो
मैंने वरुण की गांड मारने के लिए लगाया था , मैंने रुमाल निकालकर उसे
अच्छी तरह से साफ़ किया और फिर आँख दरार से सटाकर आंटी के नग्न बदन को
देखते हुए अपने लंड को उमेठने लगा |थोड़ी देर बाद आंटी जब झुकी तब पीछे से
आंटी के चूत के दरारों के दर्शन हुए .. मै धन्य हो गया ..आंटी अपने बदन
पर साबुन मल रही थी और अपनी चूत कस कसकर रगड़ रही थी ...मै थोड़ी देर
देखता रहा फिर ध्यान आया मुझे देर हो रहा है और अगर चूत के चक्कर में
थोड़ी देर और रहा तो या तो पिटूंगा या जेल जाउंगा |
तब मैंने खड़े लंड को अपने पैंट में ठूंसते हुए चाभी सर्च करने आंटी के
कमरे की तरफ चल पडा | कमरा काफी साफ़ सुथरा था ..बिस्तर भी करीने से सजा
था , मैंने तकिये की तरफ देखा क्योंकि प्रायः तकिये के पास ही चाभी रक्खी
जाती है परन्तु वहां पर एक छोटा टॉवेल के अलावा कुछ नहीं पडा था, फिर
मैंने आलमारी की तरफ देखा जो कि खुला ही था परन्तु उसमे भी पर्स जैसा कुछ
नहीं दिखा जिसमे मै चाभी ढूंढ़ सकूँ | फिर मैंने कमरे में नजर दौडाया
....बिस्तर के बिलकुल बगल में कमरे के दरवाजे के ठीक सामने ड्रेसिंग टेबल
था और बिस्तर के दूसरी तरफ खिड़की के पास एक मेज था, सबसे पहले मैंने
ड्रेसिंग टेबल पर नजर दौडाया ,फिर उसका ड्रावर खोलकर देखा परन्तु मुझे
चाभी कहीं नहीं मिली | फिर मै बिस्तर के दूसरी तरफ कोने में रखे मेज के
पास गया और वहाँ चाभी ढूंढने लगा लेकिन हाय रे मेरी किस्मत ... चाभी वहाँ
भी नहीं मिला | फिर मै सोंचने लगा कि कहाँ हो सकता है ? मुझे पर्स भी
नहीं दिखाई दे रहा था | फिर मुझे ध्यान आया कि आंटी तो सीधा बाहर से आकर
वरुण के कमरे में गयी थी , तो शायद...... आंटी का पर्स वरुण के कमरे में
ही होगा | यह ध्यान में आते ही मै अपने आप को कोसने लगा कि अगर थोड़ा भी
दिमाग लगाया होता तो इस मुसीबत से निजात पा वरुण के घर से बाहर होता |
अतः समय नष्ट ना करते हुए मै तुरंत वहाँ से निकलने को उदृत हुआ ही था कि
बाथरूम का दरवाजा बंद होने और आंटी के कदमो कि आहट सुनकर मेरे पैरो को
ब्रेक लग गए | कमरे से बाहर निकलने के प्रयास में ही पकड़ा जाता | मेरा
दिमाग एकदम सुन्न हो गया ...दिल डर से बैठने लगा | क्या करूँ ? बेड के
नीचे भी घुस नहीं सकता था क्योकि बेड बहुत नीचा था |
तभी आंटी ने कमरे में प्रवेश किया ....बिलकुल नग्न ....वो शायद बाथरूम
में पहनने वाले कपडे ले ही नहीं गयी थी .....मै मूर्तिवत जहां खडा था
..वहीँ खिड़की के परदे और मेज के कोने में जडवत हो गया | आंटी सामान्य
ढंग से चलते हुए बेड पर पड़े छोटे टावेल से शरीर पोंछा और ड्रेसिंग टेबल
के पास आकर अपनी सुन्दरता को निहारने लगी...आंटी वास्तव में खुबसूरत थी
...हाँ शरीर पर थोड़ा चर्बी जरुर चढ़ गया था जो पेट के निचले हिस्से के
रूप में लटक रहा था लेकिन वो भी बड़ी बड़ी चुंचियों और मांसल पुष्ट
जाँघों के साथ मिलकर उनके इस उम्र में भी गदरायेपन का ही एहसास दिला रही
थी | आंटी मुझे अभी तक देख नहीं पाई थी खिड़की से आने वाली रौशनी सीधे
उनके शरीर पर पड़ रहा था और मै परदे के बगल में थोड़े अँधेरे में था |मै
अब अपना डर भूलकर आंटी की नग्न सुन्दरता को निहारने लगा ...आ..ह... इस
उमर में भी क्या गदराई थी वो . ..बड़ी बड़ी चुंचिया ...गोल मटोल तरबूज
सरीखे चुतर ...और जांघो के जोड़ो के बीच में पाँवरोटी के समान फूली हुई
बुर ....वास्तव में आंटी अभी भी चोदने लायक माल थी | जब आंटी ने खड़े खड़े
अपना एक पैर उठाकर बिस्तर पर रखा और ड्रेसिंग टेबल से पाउडर का डब्बा
उठाकर पाउडर का पफ पहले अपनी चूंचियों और फिर अपनी मखमली फूली हुई चूत पर
लगाया तो उनकी चूत जो हलकी कालिमा लिए थी , परदे से छनकर आती हुई हलकी
रौशनी में भी दूर से ही चमक उठी | चमकते चूत को देखते ही मेरे लंड ने
सलामी दी , मैंने बाएं हाथ से लंड को कसकर पकड़ा | तभी आंटी चौकन्नी हुई
और परदे की तरफ गौर से देखने लगी , शायद मेरे लंड उमेठने के कारण हुई
हलचल के कारण उनका ध्यान परदे की तरफ गया था | फिर उन्होंने जैसे ही मुझे
देखा और पहचाना ...उ..ई माँ ..कहते हुए नंगी ही बाथरूम की तरफ भागी |
पीछे पीछे मै भी कमरे से निकलने के लिए भागा , इस क्रम में भागने के कारण
आंटी के मटकते गांड के दर्शन कुछ क्षण और हो गए | मै सीधा फिर कारीडोर
में ही जाकर रुका |
थोड़ी देर बाद बाथरूम से आंटी चिल्लाई - वरुण ....वरुण... कहाँ हो तुम ?
बोलते क्यों नहीं ?वरुण ....वरुण..
तब मैंने बाथरूम के पास आकर जबाब दिया - आंटी ...वरुण घर पर नहीं है ? घर
पर नहीं है का क्या मतलब ....तुम अन्दर कैसे आये ? आंटी बाथरूम से
चिल्लाई -हे भगवान् .....अब मै बाथरूम से बाहर कैसे आऊं? थोड़ी देर शांत
रहने के बाद फिर चिल्लाई - राजन ! मुझे कोई नाइटी मेरे कबर्ड से निकालकर
दो | मै उनके कहे अनुसार एक नाइटी कबर्ड से निकालकर बाथरूम के दरवाजे के
पास आकर पुकारा - आंटीजी अपनी नाइटी ले लीजिये | फिर जब आंटी ने थोड़ा सा
दरवाजा खोलकर हाथ बाहर निकालकर मेरे हाथ से नाइटी ले लिया, तब आखरी बार
हाथ , कंधे और चूंचियों के उपरी मांसल हिस्से का क्षण भर ही सही , दर्शन
हुए | थोड़ी देर बाद आंटी नाइटी पहनकर बाथरूम से बाहर निकली और निकलते ही
सवाल दाग दिया -तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और अपने कमरे में जाने लगी | मै
भी उनके पीछे पीछे उनके कमरे के दरवाजे तक गया | फिर वो बेड पर पैर नीचे
लटकाकर बैठ गयी और तेज स्वर में बोली - तुमने जबाब नहीं दिया -वरुण कहाँ
है और क्या कर रहा है ? तुम अन्दर कैसे आये ? तुम मेरे कमरे में क्या कर
रहे थे ? जरुर उसने तुम्हे चाभी दी होगी .... लेकिन क्यों ? वो खुद कहाँ
है ?? इतने सारे सवालों को एकसाथ सुनकर मै घबरा गया | मैंने धीरे से बोला
- चाभी ही तो नहीं है | आंटी ने तब पूछा - क्या मतलब ? तब मैंने
शर्मिन्दा होते हुए धीरे धीरे रुक रुक कर बताया की कैसे वरुण हडबडाहट में
दरवाजा खींचकर भाग गया और मै अन्दर फंस गया |
क्रमशः....................
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