जवानी की मिठास--2
सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो
की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
गतान्क से आगे................
गुड़िया- भैया कितने दिन रुकोगे यहा
विजय- इस बार तो मैं दो दिन की छुट्टी लेकर आया हू पर एक बात और कहना थी तुझसे
गुड़िया- वह क्या
विजय- इस बार तू मेरे साथ शहर चलेगी, मुझे खाना बनाने मे बड़ा परेशन होना
पड़ता है और फिर तू भी शहर
का महॉल देख लेगी
गुड़िया- मैं तो तैयार हू भैया पर मा जाने दे तब ना,
विजय- तू फिकर ना कर मैं मा से बात कर लूँगा,
विजय- अब ज़रा अपने भैया को पानी भी पीला दो
गुड़िया- अभी लाई और गुड़िया अंदर चली जाती है तभी दरवाजे से रुक्मणी का
आना होता है,
रुक्मणी- आ गया बेटे
विजय- जैसे ही अपनी मा को देखता है, हर बार की तरह उसका नज़रिया कुछ अलग
था और उसकी नज़र सीधे इस बार अपनी मा के उठे हुए गहरी नाभि वाले पेट पर
पड़ती है और फिर बड़े-बड़े दूध और भरे-भरे गाल, रसीले होंठ, विजय अपने
मन मे सोचता है उसकी मा तो वाकई बहुत तगड़ा माल है, लखन ठीक ही कह रहा
था, मेरी मा पूरी नंगी कितनी जबरदस्त
नज़र आती होगी, कुछ ही पलो मे यह सब सोचते ही विजय का लंड पूरी तरह खड़ा
हो जाता है, और विजय आगे बढ़ कर
अपनी मा के पेर छुता है और फिर जैसे ही उसकी बड़ी-बड़ी कठोर चूचियों को
अपने सीने से लगाता है उसका लंड झटके
मारने लग जाता है,
रुक्मणी- विजय के चेहरे पर हाथ फेरती हुई, वाहा तुझे खाना पीना नही मिलता
है क्या कितना दुबला हो गया है
विजय- नही मा वह तो मैं तुम्हारी याद मे दुबला हो जाता हू
रुक्मणी- ऐसा होता तो मैं तो तुझे दिन रात याद करती हू पर देख मैं कितनी
मोटी होती जा रही हू,
विजय- अपनी गदराई मा के गोरे-गोरे उठे हुए पेट की खाल को अपने हाथो से
दबाता हुआ, नही मा तुम मोटी कहाँ हो,
तुम्हारे बदन पर तो यह हल्का फूलका मोटापा बहुत अच्छा लगता है, हा मा
मुझे दुनिया की हर औरत मे सबसे अच्छी
तुम ही लगती हो,
रुक्मणी- मुस्कुरकर अच्छा-अच्छा अब बाते बनाना बंद कर मैं तेरे लिए खाना
लेकर आती हू और फिर जैसे ही रुक्मणी
जाने लगती है विजय जब गौर से अपनी मा की भारी भरकम मोटी गंद की थिरकन
देखता है तो उसका लंड झटके पर झटके मारने लगता है और वह अपनी मम्मी को
पूरी नंगी देखने के ख्याल से ही पागल होने लग जाता है.
विजय उधर अपनी मा के सामने बैठ कर खाना खाने लगता है और दूसरी और गुड़िया
पड़ोस मे रहने वाली चंपा के पास
बाते करने पहुच जाती है,
गुड़िया देखा जाए तो विजय को बहुत सीधी सादी और भोली लगती होगी लेकिन
गुड़िया के दिमाग़ मे क्या चलता है इसका ख्याल विजय को नही था, और
गुड़िया का मन बदलने वाली कोई और नही चंपा ही थी, चंपा गुड़िया की ही
उम्र की लड़की थी और अपने बाप और भाई के साथ रहती थी, चंपा अपने भैया से
रोज रात को चुदवाती थी और अपने भैया के लंड की दीवानी थी, और यह सब बाते
उसने गुड़िया को भी बता रखी थी तब से ही गुड़िया उसकी बातो मे कुछ
ज़्यादा ही मज़ा लेने लग गई थी, इसी कारण गुड़िया को जब मोका मिलता वह
चंपा के पास चली जाती थी,
चंपा- क्या बात है आज बड़ी खुस लग रही है
गुड़िया- बात ही कुछ ऐसी है देख मेरे भैया मेरे लिए क्या लेकर आए है,
चंपा-गुड़िया की पायल देख कर अरे वाह बड़ी सुंदर पायल है, ऐसी पायल तो
लोग अपनी बीबी को भी नही देते है, कही तेरा
भाई तुझे अपनी बीबी तो नही बनाना चाहता है,
गुड़िया-तुनक कर मेरा भाई है, वह जो चाहे वह करे, मुझे अपनी बहन बनाए या
बीबी तुझे उससे क्या
चंपा- गुड़िया के दूध को कस कर दबाती हुई, हे मेरी बन्नो, लगता है बड़ा
मन कर रहा है अपने भैया का मोटा
लंड लेने का,
गुड़िया- मेरा कर रहा हो या नही तू तो अपने भाई का लंड ले चुकी है ना,
चंपा- उसके दूध को दबाती हुई, अरे रानी ले चुकी हू और बड़ा मज़ा भी आता
है अपने भाई के मोटे लंड से चुदवाने मैं
इसीलिए तो तुझे भी कहती हू, एक बार अपने भैया के मोटे लंड पर बैठ जाएगी
ना तो फिर जिंदगी भर उठने का मन नही
करेगा,
गुड़िया- अपने घाघरे के अंदर हाथ डाल कर अपनी चूत को खुजलाती हुई, अरे
चंपा मेरी ऐसी किस्मत कहाँ
चंपा- गुड़िया के घाघरे से उसका हाथ निकालते हुए, अरे महरानी तुम क्यो
कष्ट कर रही हो जब तुम्हारी गुलाम तुम्हारे
पास बैठी है और फिर चंपा अपने हाथ से गुड़िया की चूत को सहलाते हुए, खूब
मन कर रहा है ना अपने भैया के
मोटे लंड को लेने का, लगता है यह पायल भी तेरे भैया ने ही तुझे पहनाई है,
गुड़िया- हा उन्होने अपने हाथो से मेरे पैरो मे पायल पहनाई है,
चंपा- तो थोड़ा घाघरा उठा कर उन्हे अपनी इस गुलाबी चूत के दर्शन भी करवा देती
गुड़िया- अरे कहाँ से करवा दू कही भैया गुस्सा हो गये तो
चंपा- लगता है तू अपने भैया से ज़्यादा चिपकती नही है, एक बार अपनी इस
गदराई जवानी का एहसास उन्हे करा दे, तेरी
जवानी की महक पाते ही देख लेना तेरे भैया का मोटा लंड खड़ा ना हो जाए तो फिर कहना,
गुड़िया- तुझे एक बात तो बताना भूल ही गई भैया मुझे अपने साथ शहर ले जाना चाहते है,
चंपा- मुस्कुरकर लगता है तेरे भैया को तेरी पकी जवानी की महक आ चुकी है
तभी तो वह तुझे शहर ले जाकर
आराम से चोदना चाहते है,
दोनो बाते मैं मगन थी तभी रुक्मणी की आवाज़ आई
गुड़िया ओ गुड़िया देख तेरे भैया बुला रहे है और फिर गुड़िया फुदक कर
अपने घर मे आ जाती है,
रुक्मणी- दोनो भाई बहन सो जाओ और मैं ज़रा पड़ोस मैं जमुना के यहा से हो कर आती हू,
अपनी मा के जाने के बाद विजय अपनी खटिया बिच्छा कर लेट जाता है और
गुड़िया उसके पास जाकर बैठ जाती है
विजय-गुड़िया की पीठ सहलाता हुआ, मेरी बहना अब बड़ी हो गई है, है ना
गुड़िया- अपना मूह फूला कर हा बड़ी हो गई हू इसीलिए आप मुझसे अब पहले
जैसा प्यार नही करते,
विजय- अरे किसने कहा मैं तुझे प्यार नही करता
गुड़िया- उसे आँखे दिखाती हुई और नही तो क्या पहले तो आप मुझे चाहे जब
अपनी गोद मे बैठा कर कितना मुझे चूमते
थे और कितनी देर तक मुझे सहलाते हुए प्यार करते थे लेकिन अब पता नही क्यो
मुझसे दूर-दूर रहते हो
विजय ने मन मे सोचा उसकी बहन कितनी भोली है क्यो ना मैं इसकी गदराई जवानी
का मज़ा ले लू और फिर उसकी ऐसी बाते सुन कर विजय का लंड अपनी लूँगी मे
खड़ा हो चुका था,
विजय- अच्छा भाई आज हम अपनी बहन को पहले जैसा ही प्यार करेगे, चल आजा मैं
तुझे अपनी गोद मे बैठा कर प्यार
करूँगा और फिर विजय अपने दोनो पेर चारपाई से नीचे झूला कर गुड़िया को
अपनी लूँगी मे खड़े लंड पर बैठा लेता है
और गुड़िया को जैसे ही अपनी मोटी गंद मे घाघरे के उपर से अपने भैया के
मोटे लंड का एहसास होता है उसकी चूत पानी
छ्चोड़ने लग जाती है और वह कस कर विजय से चिपक जाती है, विजय अपनी बहन के
रसीले होंठो और गालो को खूब ज़ोर-ज़ोर से चूमते हुए कभी उसके कसे हुए दूध
को हल्के हल्के दबाता है और कभी उसके चिकने पेट पर हाथ फेरता है, विजय का
मोटा लंड गुड़िया की गंद मे फसा रहता है और गुड़िया अपने भैया के लंड की
मोटाई और लंबाई का एहसास करते हुए उसके लंड पर इधर उधर अपनी गंद मारने
लगती है,
विजय- उसके गालो को चूमता हुआ एक हाथ से उसके मोटे-मोटे दूध को हल्के
हाथो से दबाते हुए, बोल गुड़िया चलेगी
मेरे साथ शहर
गुड़िया- हा भैया वैसे भी मुझे तुम्हारे बिना यहा अच्छा नही लगता है,
विजय- पर वहाँ जाकर तुझे इसी तरह रोज मेरी गोद मे बैठना पड़ेगा क्यो कि
वाहा लेजा कर मैं तुझे बहुत प्यार करूँगा
गुड़िया- मैं भी तो यही चाहती हू भैया कि तुम मुझे दिन भर अपनी गोद मे
बैठा कर प्यार करो, जानते हो जब तुम मुझे
अपनी गोद मे बैठा कर प्यार करते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है और जहा भी
शरीर मे दर्द होता है वह ख़तम
हो जाता है,
विजय- अच्छा तुझे कहाँ पर ज़्यादा दर्द रहता है
गुड़िया- भोली बनते हुए अपने भैया का हाथ पकड़ कर अपने मोटे-मोटे कसे हुए
दूध पर रख कर, यहा बहुत दर्द
रहता है भैया,
विजय का लंड गुड़िया की बात सुन कर झटके मारने लगता है और, वह गुड़िया के
होंठो को चूमता हुआ, मेरी रानी मैं अभी
तेरा सारा दर्द दूर कर देता हू और फिर विजय बेफिकर होकर अपनी बहन के
मोटे-मोटे खूब कसे हुए दूध को पागलो की
तरह खूब कस-कस कर मसल्ने लगता है, गुड़िया पूरी मस्ती मे आकर ओह भैया ओह
भैया ऐसे ही आ हा भैया थोड़ा
धीरे आह ओह भैया बहुत अच्छा लग रहा है,
विजय अपनी बहन के दोनो दूध को पूरी तबीयत से मसलता रहता है, करीब आधे
घंटे तक गुड़िया के दूध को मसल-
मसल कर विजय लाल कर देता है तभी दरवाजे पर दस्तक होती है और गुड़िया
जल्दी से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए जाती है और विजय चादर डाल कर चारपाई
पर लेट जाता है, कुछ देर बाद दोनो मा बेटी वही नीचे अपना बिस्तेर लगा कर
लेट जाती है
कमरे मे एक हल्की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था और विजय की आँखो मे नींद नही
थी वह करवट लेकर लेटा हुआ था
और उसकी नज़रे अपनी मा के गदराए बदन पर टिकी हुई थी, रुक्मणी ने गर्मी
होने की वजह से केवल पेटिकोट और ब्लौज पहना हुआ था और हल्की रोशनी मे
विजय को अपनी मा की गदराई मोटी-मोटी जंघे उठा हुआ गहरी नाभि वाला पेट और
खूब चौड़े-चौड़े विशाल चूतड़ साफ नज़र आ रहे थे उसका लंड लोहे की तरह
अपनी मस्तानी मा के शरीर को देख-देख कर
तना हुआ था और उसका दिल कर रहा था कि वह अभी उठ कर अपनी मा के गदराए शरीर
के उपर चढ़ जाए और उसकी उफनती जवानी को खूब कस-कस कर चोदे.
अपनी मस्ती से भरपूर रसीली मा को चोदने की कल्पना करते-करते ना जाने कब
विजय की नींद लग गई, लेकिन विजय को यह ध्यान नही रहा कि उसका मोटा लंड
उसके कछे से बाहर था और फिर रात को जब रुक्मणी को पेशाब लगी तो वह उठ कर
जैसे ही बैठती है उसकी नज़र अपने बेटे के खड़े मोटे लंड पर पड़ती है तो
उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती है, इतना मोटा और विशाल लंड रुक्मणी ने
कभी नही देखा था उसकी चूत से पिशाब की जगह एक अलग ही तरह की चुदास लगने
लगती है,
वह, ना जाने कब अपनी चूत को मसल्ते हुए अपने बेटे के लंड के बिल्कुल पास
पहुच कर उसे बहुत प्यार से देखती है, कुछ देर अपनी चूत रगड़ने के बाद
रुक्मणी चुप चाप लेट जाती है लेकिन उसकी आँखो से नींद गायब हो जाती है,
तभी गुड़िया कसमसा कर करवट लेती है और रुक्मणी जल्दी से उठ कर विजय की
लूँगी उठा कर उसके खड़े लंड पर डाल कर उसे छुपा देती है,
रात भर रुक्मणी की आँखो के सामने उसके अपने बेटे का मोटा तगड़ा लंड घूम
रहा था और उसकी चिकनी चूत गीली हो गई थी, बड़ी मुश्किल मे रात गुजर पाई,
सुबह रुक्मणी और गुड़िया काम धाम मे जुट गई और विजय देर तक सोता रहा,
विजय जब सो कर उठा तो वह उठ कर बैठा ही था कि रुक्मणी हाथ मे चाइ का
प्याला लिए सामने से चली आ रही थी, शायद वह बाथरूम से कोई काम ख़तम करके
लॉट रही थी उसकी साडी उसके मोटे-मोटे दूध से अलग हट गई थी और उसका उभरा
हुआ गोरा मखमली पेट और उस पर एक बड़ी सी गहरी नाभि देखने भर की देर थी और
विजय का मोटा लंड अपनी मा के लिए तन कर खड़ा हो चुका था,
रुक्मणी- विजय के पास बैठते हुए, मुस्कुरकर ले बेटा चाइ पी ले
विजय- मुस्कुरकर चाइ पीते हुए, बहुत काम है क्या मा, मैं कुछ मदद करू
रुक्मणी अरे नही बेटे अब तू एक दो दिनो के लिए आया है तो आराम कर काम तो
चलता ही रहता है, रुक्मणी के मोटे-मोटे भरे हुए दूध उसके दो बटन खुले
होने की वजह से आधे से ज़्यादा बाहर आ रहे थे, रुक्मणी का ध्यान बार-बार
विजय की लूँगी के नीचे छुपे लंड की ओर जा रहा था और उसे ज़रा भी ख्याल
नही था कि वह अपना पल्लू हटाए अपने जवान बेटे के सामने अधनंगी बैठी थी,
विजय अपनी मम्मी के मोटे-मोटे दूध को बड़े प्यार से देखता हुआ चाइ पी रहा
था,
रुक्मणी- विजय के सर पर हाथ फेरते हुए, और वाहा टाइम से खाना खाया कर देख
कितना दुबला हो गया है
विजय- चाइ का प्याला रखते हुए मा तुम मुझे बिल्कुल बच्चो जैसे समझा रही
हो मैं सब टाइम पर कर लेता हू
रुक्मणी - विजय का मूह पकड़ कर तो क्या तू बहुत बड़ा हो गया है, मेरे लिए
तो अभी भी बच्चा ही है और मैं तुझे
हमेशा की तरह अपनी गोद मे बैठा कर प्यार कर सकती हू, और फिर रुक्मणी अपने
बेटे के मूह को अपने सीने से लगा लेती है और विजय अपनी मा के मस्ताने
शरीर की कामुक महक को सूंघते हुए अपनी मा के मोटे-मोटे दूध मे अपना मूह
भर देता है, दोनो मा बेटे चिपके होते है तभी दरवाजे पर जमुना काकी आ जाती है,
जमुना- क्या बात है दोनो मा बेटे बड़ा प्रेम कर रहे है,
रुक्मणी- आ जमुना अंदर आजा
विजय- मा मैं फ्रेश होकर आता हू
विजय वाहा से उठ कर बाथरूम मे घुस जाता है तभी उसका मन होता है कि बाहर
झाँक कर देखे मा और जमुना के
बीच क्या बात हो रही है,
जमुना- रुक्मणी की मोटी गंद मे चुटकी कटती हुई, क्यो रुक्मणी अपने जवान
बेटे को इस उमर मे अपना दूध पिलाते हुए
शरम नही आ रही थी,
रुक्मणी- चुप कर रंडी, ना जाने क्या-क्या बकती रहती है, वो तो मैं अपने
बेटे को प्यार कर रही थी
जमुना- रुक्मणी के दूध को एक दम से दबाती हुई, कोई बाहर का तुम दोनो मा
बेटे को एक साथ ऐसे देखे तो वह यही
सोचेगा कि विजय तेरा आदमी है इतना मुस्टंडा लगता है तेरा बेटा, और तू
कहती है कि तू उसे प्यार कर रही थी, ज़रूर तेरी चूत गीली होगी चल दिखा और
फिर जमुना अपना हाथ एक दम से रुक्मणी की साडी के अंदर चूत मे कर देती है
और अपना हाथ बाहर निकाल कर, हे राम तेरी चूत तो सचमुच बहुत गीली है, सच
बता अपने बेटे के जवान जिस्म से चिपकने से तेरी चूत गीली हुई है ना,
रुक्मणी- मुस्कुरकर मूह बनाते हुए चुप कर जमुना, कही विजय ना सुन ले
जमुना- अरे सुनता है तो सुने उसे भी तो पता चले कि जिस जवान मा के साथ वह
रहता है उसकी चिकनी चूत दिन रात खड़े लंड के लिए पानी छ्चोड़ती रहती है,
विजय का मोटा लंड उनकी बाते सुन कर पूरी तरह तना हुआ था और वहाँ से छुप
कर विजय अपनी मम्मी की गदराई जवानी को देख-देख कर अपना लंड मसल रहा था,
जमुना- अच्छा मैं अब जाती हू, दोपहर को तेरे पास आउन्गि, और हा यह अपना
पल्लू अपने मोटे थनो पर डाल कर रखा कर कही तेरा बेटा ही तुझ पर ना चढ़ने
लगे,
क्रमशः...............
JAWAANI KI MITHAS--2
gataank se aage................
gudiya- bhaiya kitne din rukoge yaha
vijay- is bar to main do din ki chutti lekar aaya hu par ek bat aur
kahna thi tujhse
gudiya- vah kya
vijay- is bar tu mere sath shahar chalegi, mujhe khana banane main
bada pareshan hona padta hai aur phir tu bhi shahar
ka mahol dekh legi
gudiya- main to taiyar hu bhaiya par ma jane de tab na,
vijay- tu fikar na kar main ma se bat kar lunga,
vijay- ab jara apne bhaiya ko pani bhi pila do
gudiya- abhi lai aur gudiya andar chali jati hai tabhi darwaje se
rukmani ka aana hota hai,
rukmani- aa gaya bete
vijay- jaise hi apni ma ko dekhta hai, har bar ki tarah uska najariya
kuch alag tha aur uski najar sidhe is bar apni ma ke
uthe huye gahari nabhi wale pet par padti hai aur phir bade-bade doodh
aur bhare-bhare gal, rasile honth, vijay apne
man main sochta hai uski ma to vakai bahut tagda mal hai, lakhan thik
hi kah raha tha, meri ma puri nangi kitni jabardust
najar aati hogi, kuch hi palo main yah sab sochte hi vijay ka land
puri tarah khada ho jata hai, aur vijay aage badh kar
apni ma ke per chhuta hai aur phir jaise hi uski badi-badi kathor
choochiyon ko apne sine se lagata hai uska land jhatke
marne lag jata hai,
rukmani- vijay ke chehre par hath pherti hui, vaha tujhe khana pina
nahi milta hai kya kitna dubla ho gaya hai
vijay- nahi ma vah to main tumhari yaad main dubla ho jata hu
rukmani- aisa hota to main to tujhe din rat yaad karti hu par dekh
main kitni moti hoti ja rahi hu,
vijay- apni gadaraai ma ke gore-gore uthe huye pet ki khal ko apne
hantho se dabata hua, nahi ma tum moti kaha ho,
tumhare badan par to yah halka fulka motapa bahut achcha lagta hai, ha
ma mujhe duniya ki har aurat main sabse achchi
tum hi lagti ho,
rukmani- muskurakar achcha-achcha ab bate banana band kar main tere
liye khana lekar aati hu aur phir jaise hi rukmani
jane lagti hai vijay jab gaur se apni ma ki bhari bharkam moti gand ki
thirkan dekhta hai to uska land jhatke par jhatke
marne lagta hai aur vah apni mummy ko puri nangi dekhne ke khyal se hi
pagal hone lag jata hai.
vijay udhar apni ma ke samne baith kar khana khane lagta hai aur dusri
aur gudiya pados main rahne wali champa ke pas
bate karne pahuch jati hai,
gudiya dekha jaye to vijay ko bahut sidhi sadi aur bholi lagti hogi
lekin gudiya ke dimag main kya chalta hai iska khyal
vijay ko nahi tha, aur gudiya ka man badalne wali koi aur nahi champa
hi thi, champa gudiya ki hi umr ki ladki thi aur
apne bap aur bhai ke sath rahti thi, champa apne bhaiya se roj rat ko
chudavaatee thi aur apne bhiaya ke land ki deewani thi,
aur yah sab bate usne gudiya ko bhi bata rakhi thi tab se hi gudiya
uski bato main kuch jyada hi maza lene lag gai thi, isi
karan gudiya ko jab moka milta vah champa ke pas chali jati thi,
champa- kya bat hai aaj badi khus lag rahi hai
gudiya- bat hi kuch aisi hai dekh mere bhaiya mere liye kya lekar aaye hai,
champa-gudiya ki payal dekh kar are wah badi sundar payal hai, aisi
payal to log apni bibi ko bhi nahi dete hai, kahi tera
bhai tujhe apni bibi to nahi banana chahta hai,
gudiya-tunak kar mera bhai hai, vah jo chahe vah kare, mujhe apni
bahan banaye ya bibi tujhe usse kya
champa- gudiya ke doodh ko kas kar dabati hui, hay meri banno, lagta
hai bada man kar raha hai apne bhaiya ka mota
land lene ka,
gudiya- mera kar raha ho ya nahi tu to apne bhai ka land le chuki hai na,
champa- uske doodh ko dabati hui, are rani le chuki hu aur bada maza
bhi ata hai apne bhai ke mote land se chudne main
isiliye to tujhe bhi kahti hu, ek bar apne bhaiya ke mote land par
baith jayegi na to phir jindagi bhar uthne ka man nahi
karega,
gudiya- apne ghaghre ke andar hath dal kar apni chut ko khujlati hui,
are champa meri aisi kismat kaha
champa- gudiya ke ghaghre se uska hath nikalte huye, are mahrani tum
kyo kasht kar rahi ho jab tumhari gulam tumhare
pas baithi hai aur phir champa apne hath se gudiya ki chut ko sahlate
huye, khub man kar raha hai na apne bhaiya ke
mote land ko lene ka, lagta hai yah payal bhi tere bhaiya ne hi tujhe
pahnai hai,
gudiya- ha unhone apne hantho se mere pairo main payal pahnai hai,
champa- to thoda ghaghra utha kar unhe apni is gulabi chut ke darshan
bhi karwa deti
gudiya- are kaha se karwa du kahi bhaiya gussa ho gaye to
champa- lagta hai tu apne bhaiya se jyada chipakti nahi hai, ek bar
apni is gadaraai jawani ka ehsas unhe kara de, teri
jawani ki mahak pate hi dekh lena tere bhaiya ka mota land khada na ho
jaye to phir kahna,
gudiya- tujhe ek bat to batana bhul hi gai bhaiya mujhe apne sath
shahar le jana chahte hai,
champa- muskurakar lagta hai tere bhaiya ko teri paki jawani ki mahak
aa chuki hai tabhi to vah tujhe shahar le jakar
aaram se chodna chahte hai,
dono bate main magan thi tabhi rukmani ki aawaj aai
gudiya o gudiya dekh tere bhaiya bula rahe hai aur phir gudiya phudak
kar apne ghar main aa jati hai,
rukmani- dono bhai bahan so jao aur main jara pados main jamuna ke
yaha se ho kar aati hu,
apni ma ke jane ke bad vijay apni khatiya bichha kar let jata hai aur
gudiya uske pas jakar baith jati hai
vijay-gudiya ki pith sahlata hua, meri bahna ab badi ho gai hai, hai na
gudiya- apna muh phula kar ha badi ho gai hu isiliye aap mujhse ab
pahle jaisa pyar nahi karte,
vijay- are kisne kaha main tujhe pyar nahi karta
gudiya- use aankhe dikhati hui aur nahi to kya pahle to aap mujhe
chahe jab apni god main baitha kar kitna mujhe chumte
the aur kitni der tak mujhe sahlate huye pyar karte the lekin ab pata
nahi kyo mujhse dur-dur rahte ho
vijay ne man main socha uski bahan kitni bholi hai kyo na main iski
gadaraai jawani ka maza le lu aur phir uski aisi bate sun
kar vijay ka land apni lungi main khada ho chuka tha,
vijay- achcha bhai aaj hum apni bahan ko pahle jaisa hi pyar karege,
chal aaja main tujhe apni god main baitha kar pyar
karunga aur phir vijay apne dono per charpai se niche jhula kar gudiya
ko apni lungi main khade land par baitha leta hai
aur gudiya ko jaise hi apni moti gand main ghaghre ke upar se apne
bhaiya ke mote land ka ehsas hota hai uski chut pani
chhodne lag jati hai aur vah kas kar vijay se chipak jati hai, vijay
apni bahan ke rasile hontho aur galo ko khub jor-jor se
chumte huye kabhi uske kase huye doodh ko halke halke dabata hai aur
kabhi uske chikne pet par hath pherta hai, vijay
ka mota land gudiya ki gand main phasa rahta hai aur gudiya apne
bhaiya ke land ki motai aur lambai ka ehsas karte huye
uske land par idhar udhar apni gand marne lagti hai,
vijay- uske galo ko chumta hua ek hath se uske mote-mote doodh ko
halke hatho se dabate huye, bol gudiya chalegi
mere sath shahar
gudiya- ha bhaiya vaise bhi mujhe tumhare bina yaha achcha nahi lagta hai,
vijay- par vaha jakar tujhe isi tarah roj meri god main baithna padega
kyo ki vaha lejakar main tujhe bahut pyar karunga
gudiya- main bhi to yahi chahti hu bhaiya ki tum mujhe din bhar apni
god main baitha kar pyar karo, jante ho jab tum mujhe
apni god main baitha kar pyar karte ho to mujhe bahut achcha lagta hai
aur jaha bhi sharir main dard hota hai vah khatam
ho jata hai,
vijay- achcha tujhe kaha par jyada dard rahta hai
gudiya- bholi bante huye apne bhaiya ka hath pakad kar apne mote-mote
kase huye doodh par rakh kar, yaha bahut dard
rahta hai bhaiya,
vijay ka land gudiya ki bat sun kar jhatke marne lagta hai aur, vah
gudiya ke hontho ko chumta hua, meri rani main abhi
tera sara dard dur kar deta hu aur phir vijay befikar hokar apni bahan
ke mote-mote khub kase huye doodh ko paglo ki
tarah khub kas-kas kar masalne lagta hai, gudiya puri masti main aakar
oh bahiya oh bhaiya aise hi aah ha bhaiya thoda
dhire aah oh bhaiya bahut achcha lag raha hai,
vijay apni bahan ke dono doodh ko puri tabiyat se masalta rahta hai,
karib aadhe ghante tak gudiya ke doodh ko masal-
masal kar vijay lal kar deta hai tabhi darwaje par dastak hoti hai aur
gudiya jaldi se uth kar darwaja kholne ke liye jati
hai aur vijay chadar dal kar charpai par let jata hai, kuch der bad
dono ma beti vahi niche apna bister laga kar let jati hai
kamre main ek halki roshni wala bulb jal raha tha aur vijay ki aankho
main neend nahi thi vah karwat lekar leta hua tha
aur uski najre apni ma ke gadraye badan par tiki hui thi, rukmani ne
garmi hone ki wajah se keval petikot aur blauj
pahna hua tha aur halki roshni main vijay ko apni ma ki gadaraai
moti-moti janghe utha hua gahri nabhi wala pet aur khub
chaude-chaude vishal chutad saf najar aa rahe the uska land lohe ki
tarah apni mastani ma ke sharir ko dekh-dekh kar
tana hua tha aur uska dil kar raha tha ki vah abhi uth kar apni ma ke
gadraye sharir ke upar chadh jaye aur uski ufanti
jawani ko khub kas-kas kar chode.
apni masti se bharpur rasili ma ko chodane ki kalpna karte-karte na
jane kab vijay ki neend lag gai, lekin vijay ko yah
dhyan nahi raha ki uska mota land uske kachche se bahar tha aur phir
rat ko jab rukmani ko peshab lagi to vah uth kar
jaise hi baithti hai uski najar apne bete ke khade mote land par padti
hai to uski aankhe khuli ki khuli rah jati hai, itna
mota aur vishal land rukmani ne kabhi nahi dekha tha uski chut se
pishab ki jagah ek alag hi tarah ki chudas lagne lagti
hai,
vah,
na jane kab apni chut ko masalte huye apne bete ke land ke bilkul pas
pahuch kar use bahut pyar se dekhti hai, kuch
der apni chut ragadne ke bad rukmani chup chap let jati hai lekin uski
aankho se neend gayab ho jati hai, tabhi gudiya
kasmasa kar karwat leti hai aur rukmani jaldi se uth kar vijay ki
lungi utha kar uske khade land par dal kar use chupa
deti hai,
rat bhar rukmani ki aankho ke samne uske apne bete ka mota tagda land
ghum raha tha aur uski chikni chut gili ho gai
thi, badi mushkil main rat gujar pai,
subah rukmani aur gudiya kam dham main jut gai aur vijay der tak sota
raha, vijay jab so kar utha to vah uth kar baitha hi
tha ki rukmani hath main chai ka pyala liye samne se chali aa rahi
thi, shayad vah bathroom se koi kam khatam karke lot
rahi thi uski sadi uske mote-mote doodh se alag hat gai thi aur uska
ubhara hua gora makhmali pet aur us par ek badi si
gahri nabhi dekhne bhar ki der thi aur vijay ka mota land apni ma ke
liye tan kar khada ho chuka tha,
rukmani- vijay ke pas baithte huye, muskurakar le beta chai pi le
vijay- muskurakar chai pite huye, bahut kam hai kya ma, main kuch madad karu
rukmani are nahi bete ab tu ek do dino ke liye aaya hai to aaram kar
kam to chalta hi rahta hai, rukmani ke mote-mote
bhare huye doodh uske do baton khule hone ki wajah se aadhe se jyada
bahar aa rahe the, rukmani ka dhyan bar-bar
vijay ki lungi ke niche chupe land ki aur ja raha tha aur use jara bhi
khyal nahi tha ki vah apna pallu hataye apne jawan
bete ke samne adhnangi baithi thi, vijay apni mummy ke mote-mote doodh
ko bade pyar se dekhta hua chai pi raha tha,
rukmani- vijay ke sar par hath pherte huye, aur vaha time se khana
khaya kar dekh kitna dubla ho gaya hai
vijay- chai ka pyala rakhte huye ma tum mujhe bilkul bachcho jaise
samjha rahi ho main sab time par kar leta hu
rukmani - vijay ka muh pakad kar to kya tu bahut bada ho gaya hai,
mere liye to abhi bhi bachcha hi hai aur main tujhe
hamesha ki tarah apni god main baitha kar pyar kar sakti hu, aur phir
rukmani apne bete ke muh ko apne sine se laga leti
hai aur vijay apni ma ke mastane sharir ki kamuk mahak ko sunghte huye
apni ma ke mote-mote doodh main apna muh
bhar deta hai, dono ma bete chipke hote hai tabhi darwaje par jamuna
kaki aa jati hai,
jamuna- kya bat hai dono ma bete bada prem kar rahe hai,
rukmani- aa jamuna andar aaja
vijay- ma main fresh hokar aata hu
vijay vaha se uth kar bathroom main ghus jata hai tabhi uska man hota
hai ki bahar jhank kar dekhe ma aur jamuna ke
beech kya bat ho rahi hai,
jamuna- rukmani ki moti gand main chutki katti hui, kyo rukmani apne
jawan bete ko is umar main apna doodh pilate huye
sharam nahi aa rahi thi,
rukmani- rup kar randi, na jane kya-kya bakti rahti hai, vo to main
apne bete ko pyar kar rahi thi
jamuna- rukmani ke doodh ko ek dam se dabati hui, koi bahar ka tum
dono ma bete ko ek sath aise dekhe to vah yahi
sochega ki vijay tera aadmi hai itna mustanda lagta hai tera beta, aur
tu kahti hai ki tu use pyar kar rahi thi, jarur teri
chut gili hogi chal dikha aur phir jamuna apna hath ek dam se rukmani
ki sadi ke andar chut main bhar deti hai aur apna
hath bahar nikal kar, hay ram teri chut to sachmuch bahut gili hai,
sach bata apne bete ke jawan jism se chipakne se teri
chut gili hui hai na,
rukmani- muskurakar muh banate huye chup kar jamuna, kahi vijay na sun le
jamuna- are sunta hai to sune use bhi to pata chale ki jis jawan ma ke
sath vah rahta hai uski chikni chut din rat khade
land ke liye pani chhodti rahti hai,
vijay ka mota land unki bate sun kar puri tarah tana hua tha aur vaha
se chup kar vijay apni mummy ki gadaraai jawani ko
dekh-dekh kar apna land masal raha tha,
jamuna- achcha main ab jati hu, dophar ko tere pas aaungi, aur ha yah
apna pallu apne mote thano par dal kar rakha kar
kahi tera beta hi tujh par na chadhne lage,
KRAMASHAH...............
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